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रुद्राक्ष की शक्तियों को पहचाने और उपयोग में लाएं।
रुद्राक्ष के वृक्ष भारत समेत विश्व के अनेक देशों में पाए जाते हैं।
यह भारत के पहाड़ी क्षेत्रों तथा मैदानी इलाकों में भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं. रुद्राक्ष का पेड़ किसी अन्य वृक्ष की भांति ही होता है । इसके वृक्ष 50 से लेकर 200 फीट तक पाए जाते हैं तथा इसके पत्ते आकार में लंबे होते हैं। रुद्राक्ष के फूलों का रंग सफेद होता है। तथा इस पर लगने वाला फल गोल आकार का होता है। जिसके अंदर से गुठली रुप में रुद्राक्ष प्राप्त होता है।
रुद्राक्ष का फल खाने में अधिक स्वादिष्ट नहीं होता इसके फलों का स्वाद कुछ खटा या फिर कसैला सा होता है। इसके हरे फल पकने के पश्चात स्वयं ही गिर जाते हैं। और जब उनका आवरण हटता है। तो एक उसमे से अमूल्य रुद्राक्ष निकलते हैं। यह इन फलों की गुठली ही होती है। रुद्राक्ष में धारियां सी बनी होती है। जो इनके मुखों का निर्धारण करती हैं । रुद्राक्ष को अनेक प्रकार की महीन सफाई प्रक्रिया द्वारा उपयोग में लाने के लिए तैयार किया जाता है। जिसे उपयोग में लाकर सभी लाभ उठाते हैं।
भारत के विभिन्न प्रदेशों में रुद्राक्ष |
रुद्राक्ष भारत, के हिमालय के प्रदेशों में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त असम, मध्य प्रदेश, उतरांचल, अरूणांचल प्रदेश, बंगाल, हरिद्वार, गढ़वाल और देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में यह रुद्राक्ष पाए जाते हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत में नीलगिरि और मैसूर में तथा कर्नाटक में भी रुद्राक्ष के वृक्ष देखे जा सकते हैं। रामेश्वरम में भी रुद्राक्ष पाया जाता है। यहां का रुद्राक्ष काजु की भांति होता है। गंगोत्री और यमुनोत्री के क्षेत्र में भी रुद्राक्ष मिलते हैं।
नेपाल और इंडोनेशिया से प्राप्त रुद्राक्ष |
नेपाल, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि प्रमुख रूप से रुद्राक्ष के बहुत बड़े उत्पादक रहे हैं। और भारत सबसे बडा़ ख़रीदार रहा है।. नेपाल में पाए जाने वाले रुद्राक्ष आकार में काफी बडे़ होते हैं। लेकिन इंडोनेशिया और मलेशिया में पाए जाने वाले रुद्राक्ष आकार में छोटे होते हैं। भारत में रुद्राक्ष भारी मात्रा में नेपाल और इंडोनेशिया से मंगाए जाते हैं। और रुद्राक्ष का कारोबार अरबों में होता हैं। सिक्के के आकार का रुद्राक्ष, जो ‘इलयोकैरपस जेनीट्रस’ प्रजाति का होता हैं। बेहद दुर्लभ होता जो नेपाल से प्राप्त होता हैं।
विश्व के अनेक देशों में रुद्राक्ष |
भारत के अतिरिक्त विश्व के अनेक देशों में रुद्राक्ष की खेती की जाती है। तथा इसके वृक्ष पाए जाते हैं। नेपाल, जावा, इंडोनेशिया, मलाया जैसे देशों में रुद्राक्ष उत्पन्न होता है।. नेपाल ओर इंनेशिया में मिलने वाले रुद्राक्ष भारत में मिलने वाले रुद्राक्षों से अलग होते हैं।. नेपाल में बहुत बडे़ आकार का रुद्राक्ष पाया जाता है। तथा यहां पर मिलने वाले रुद्राक्ष की किस्में भी बहुत अच्छी मानी गई हैं।. नेपाल में एक मुखी रुद्राक्ष बेहतरीन किस्म का होता है।.
रुद्राक्ष के समान ही एक अन्य फल होता है। जिसे भद्राक्ष कहा जाता है। और यह रुद्राक्ष के जैसा हो दिखाई देता है। इसलिए कुछ लोग रुद्राक्ष के स्थान पर इसे भी नकली रुद्राक्ष के रुप में बेचते हैं। भद्राक्ष दिखता तो रुद्राक्ष की भांति ही है। किंतु इसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते।
माना जाता है। कि भारत में बिकने वाले 80 फीसदी रुद्राक्ष फर्जी होते हैं। और उन्हें तराश कर बनाया जाता है। इसलिए रुद्राक्ष को खरीदने से पहले इसके गुणवत्ता को देखना बेहद आवश्यक है। अपने औषधीय और आध्यात्मिक गुणों के कारण रुद्राक्ष का प्रचलन बहुत है। रुद्राक्ष के गुणों के कारण ही सदियों से ऋषि-मुनि इसे धारण करते आए हैं।
रुद्राक्ष की शक्तियों को पहचाने
एक से चौदह मुखी तक रुद्राक्ष लोगों में लोकप्रिय है।
किस धारणा से कोन सा रुद्राक्ष व्यक्ति को धारण करना चाहिए और रुद्राक्षधारी को किन भोज्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए. इसका ज्ञान होना परम आवश्यक है।
रुद्राक्ष धारण करने के लिए शुभ समय ग्रहण,मेष संक्रांति, अयन, अमावस, पूर्णिमा और अन्य शुभ दिन शास्त्रों में लिखित है।
रुद्राक्ष की माला में दानों की संख्या १०८ दानों की माला बल और आरोग्यता प्रदान करती है।
१०८ दानों की माला समस्त कार्यों में सिद्धि देने वाली होती है। ३२ दानों की माला धन दायिनी होती है। जप के लिए प्रयोग लाए जानी वाली माला १०८ दानों की होती है। ५४ दानों की माला आधी और २७ दानों की माला को सुमरनी कहते है। फल सभी का एक जैसा होता है। ५४ दानों की माला दो बार और २७ दानों की माला चार बार पूरी कर लेने पर एक माला सम्पूर्ण होती है। तीन सौ आठ रुद्राक्षों की लड़ी बना कर यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। शिखा में एक,कानों में छह-छह, कंठ में एक सौ या पचास,बांहों में ग्यारह, मणिबंध में ग्यारह, कमर में पांच रुद्राक्ष धारण करने का विधान है। हाईब्लडप्रेशर (उच्च रक्तचाप) के मरीजों के लिए रुद्राक्ष धारण करना वरदान के समान होता है।
रुद्राक्ष रक्तचाप को नियंत्रित रखता है.इसके लिए जरूरी है। कि रुद्राक्ष की माला रोगी के हृदय को छूती हुई होनी चाहिए.यह रोगी के शरीर की गर्मी को स्वयं में खींच कर उसे बाहर फेंकता है।
एक मुखी रुद्राक्ष :- एक मुखी रुद्राक्ष परातत्व का प्रकाशक है। परम तत्व की प्राप्ति की धारणा से इसको धारण करना चाहिए.सहज ही ईश्वर प्राप्ति की शक्ति इस रुद्राक्ष में पायी जाति है।
दो मुखी रुद्राक्ष :- दो मुखी रुद्राक्ष अर्धनारीश्वर होता है। इसे धारण करने वाले पर अर्धनारीश्वर भगवान शिव प्रसन्न रहते है। इस रुद्राक्ष में भगवान शिव-पार्वती दोनों की शक्ति रहती है।
तीन मुखी रुद्राक्ष :- तीन मुखी रुद्राक्ष तीन अग्नियों के रूप वाला है। इसको धारण करने से अग्नि की तृप्ति होती है। स्त्री हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने की शक्ति तीन मुखी रुद्राक्ष में होती है।
चार मुखी रुद्राक्ष :- चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा की शक्ति से ओतप्रोत होता है। इसको धारण करने वाला उत्तम स्वास्थ्य को प्राप्त करता है। उसे कभी कोई रोग नही होता है। इसे महा ज्ञान,बुद्धि और धन के लिए भी धारण किया जाता है।
पांच मुखी रुद्राक्ष :- पांच मुखी रुद्राक्ष पंचब्रह्म स्वरूप होता है ।इसको धारण करने से भगवान शिव तथा हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है ।तथा मन एकाग्र होने लगता है।
छह मुखी रुद्राक्ष :- छह मुखी रुद्राक्ष के देवता कार्तिकेय जी है। विद्वानों ने गणेश जी को भी छह मुखी रुद्राक्ष का देवता माना है। इसे धारण करने से दोनों देवता प्रसन्न होते है। तथा विद्या में लाभ होता है। छह मुखी रुद्राक्ष को बांये हाथ में धारण करने से अज्ञात पापों का नाश होता है।
सात मुखी रुद्राक्ष :- सात मुखी रुद्राक्ष की देवियाँ सात माताये है। सूर्य औए सप्तऋषि इसके देवता है। इसको धारण करने वाले पर श्री महालक्ष्मी प्रसन्न रहती है। इसको धारण करने से परम ज्ञान और धन की भी प्राप्ति होती है ।सोने की चोरी आदि के पाप से मुक्ति दिलाने की शक्ति सात मुखी रुद्राक्ष में होती है।
आठ मुखी रुराक्ष :- आठ मुखी रुद्राक्ष आठ माताये देवता है। इसको धारण करने से आठों वसु और गंगा प्रसन्न रहती है। इसको पहनने वालो पर सत्यवादी सब देवता प्रसन्न रहते है। इसे धारण करने से अनेक प्रकार के पाप नष्ट होते है।
नौ मुखी रुद्राक्ष :- नौ मुखी रुद्राक्ष के देवता भैरव और यमराज जी है। नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करने वालो को कभी भी यमराज का भय नही रहता है। इसको बाँयी भुजा में धारण करने से शाक्ति प्राप्त होती. है। भ्रूणहत्या हत्या के पाप से भी नौ मुखी रुद्राक्ष मुक्ति दिलाता है।
दस मुखी रुद्राक्ष :- दस मुखी रुद्राक्ष के स्वामी दशों दिशाए है। भगवान विष्णु भी इसके देवता है। दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने से दशों दिशाओं में यक्ष रक्षा करता है। भूत-पिशाच, बेताल, ब्रह्मराक्षस आदि दस मुखी रुद्राक्ष से शांत हो जाते है। सको धारण करने से सभी ग्रह भी शांत रहते है।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष :- ग्यारह मुखी रुद्राक्ष के देवता ग्यारह रूद्र. है। इन्द्र भी इसके स्वामी है। जो कुछ भी दान करने की इच्छा रही हो और आपने दान नही किया हो तो ग्यारह मुखी रुद्राक्ष शिखा में धारण करने से दान की पूर्ति हो जाति है। क्योंकि हजारों गोदान का जो पुण्यफल है। वह इसको धारण करने वाले को मिलता है।
बारह मुखी रुद्राक्ष :- बारह मुखी रुद्राक्ष के देवता श्री महाविष्णु जी है। बारहों आदित्य भी इसके देवता है। इसको धारण करने से किसी भी तरह का भय नही सताता है। व्यक्ति रोग-व्याधि से मुक्त हो कर राजा बनने के योग्य हो जाता है। शासन करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को बारह मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करने चाहिए इससे उसे सफलता मिलती है।
तेरह मुखी रुद्राक्ष :- तेरह मुखी रुद्राक्ष के देवता कामदेव है। इसको धारण करने से काम और रस रसायन में वृद्धि होती है। सब प्रकार के भोग प्राप्त होते है। जीव हत्या के पाप का भी शमन होता है। . चौदह मुखी रुद्राक्ष :- चौदह मुखी रुद्राक्ष रूद्र के नेत्र से प्रकट हुआ है। चौदह मुखी रुद्राक्ष यदि प्राप्त हो जाए तो इसे सिर पर धारण करना चाहिए इसके प्रभाव से बहुत मान सम्मान मिलता है। चौदह मुखी रुद्राक्ष के अनगिनत गुण है.इसको धारण करने वाला साक्षात् शिव स्वरुप होता है।
रुद्राक्ष धारण करने वाले को शराब, प्याज, सहिजना लहसोड़ा और मांस आदि नही खाना चाहिए।
सही रुद्राक्ष पहनकर करें कालसर्प दोष निवारण
कालर्सप योग पर अनेक शोध हुए है। ज्योतिष इसके प्रभाव कम करने के लिए अनेक उपाय बताते है। कुंडली में मुख्य रूप से बारह तरह के कालसर्प योग बताए गए हैं। आपने काल सर्प दोष शांति के लिए अनेक तरह के उपायों के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि केवल सही रुद्राक्ष धारण करके भी कालसर्प योग के प्रभाव को कम किया जा सकता है। - प्रथम भाव में बनने वाले कालसर्प योग के लिए एकमुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष काले धागे में डालकर गले में धारण करें। - दूसरे भाव में बनने वाले कालसर्प योग के लिए पांचमुखी, आठमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष गुरुवार के दिन काले धागे में डालकर गले में पहनें। - यदि कालसर्प योग तीसरे भाव में बन रहा हो तो तीनमुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष लाल धागे में मंगलवार को धारण करें। - चतुर्थ भाव में यदि कालसर्प योग हो तो दोमुखी, आठमुखी, नौमुखी रुद्राक्ष सफेद धागे में डालकर सोमवार को रात्रि के समय धारण करें। - पंचम भाव में बनने वाला कालसर्पयोग हो तो पांचमुखी, आठमुखी, नौमुखी रुद्राक्ष पीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें। छटे भाव के कालसर्प योग के लिए मंगलवार के दिन तीनमुखी आठमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष एक लाल धागे में पहनें। - सप्तम भाव में कालसर्प योग हो तो छहमुखी, आठमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष एक चमकीले या सफेद धागे में रात्रि के समय पहनना चाहिए। - अष्टम भाव में कालसर्प योग बन रहा हो तो नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें। - नवम् भाव में कालसर्प योग हो तो गुरुवार के दिन दोपहर में पीले धागे में पांचमुखी आठमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए। - दशम भाव में कालसर्प योग हो तो बुधवार के दिन संध्या के समय चारमुखी, आठमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष हरे रंग के धागे में डालकर धारण करें। - एकादश भाव में यदि कालसर्प योग हो तो एक पीले धागे में दशमुखी, तीनमुखी, चारमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। - यदि द्वादश भाव में कालसर्प योग हो तो शनिवार के दिन शाम को सातमुखी, आठमुखी, और नौमुखी रुद्राक्ष काले धागे में डालकर गले में धारण करे उसके बाद कालसर्प दोष शांति की पूजा के बाद ये रुद्राक्ष धारण करने से कालसर्प योग वाले के जीवन से कालसर्प योग का प्रभाव कम हो जाएगा। इस दोष वाले जातक अद्भुत मानसिक शांति एवं सुख का अनुभव करेंगे।
ॐ रां रामाय नमः श्रीराम ज्योतिष सदन भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता पंडित आशु बहुगुणा मोबाइल नं- 9760924411 https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR