श्रीगणपति अरिष्ट निवारण स्तोत्र

श्रीगणपति अरिष्ट निवारण स्तोत्र का प्रयोग करे

सभी प्रकार के अरिष्ट निवारण श्रीगणपति स्तोत्र का प्रयोग करे।

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।। गुरवे नमः, श्रीकृष्णाय नमः, बलभद्राय नमः, श्रीरामाय नमः, हनुमते नमः, शिवाय नमः, जगन्नाथाय नमः, बदरीनारायणाय नमः, श्री दुर्गा-देव्यै नमः।। सूर्याय नमः, चन्द्राय नमः, भौमाय नमः, बुधाय नमः, गुरवे नमः, भृगवे नमः, शनिश्चराय नमः, राहवे नमः, पुच्छानयकाय नमः, नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।। मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते ! भद्रे ! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।। भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।। ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।। नमो भगवते वासुदेवाय नमः। नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, नमो भगवते, नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।। ठः ठः ह्रीं ह्रीं। ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं भैरवाय नमः। हरि उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ऐं ठः ठः। चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। श्रीं कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।। शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।। शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।। सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि श्रीरामचन्द्राय नमः। हरि भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।। ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।। ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।। ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।। ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।। ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।

एष विद्या माहात्म्यं , पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।। पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। अन्य दृष्टि विषं चैव, देयं संक्रमे ध्रुवम्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता विसंशयः।। सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः। द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य जायते।। किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।। नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।। इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।। विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः। सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते पलायनम्।।

श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खण्ड में इस अनुभूत स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इस पाठ से सभी बाधाओं का निवारण होता है। किसी भी देवता या देवी की प्रतिमा या यन्त्र के सामने बैठकर धूप दीपादि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। विशेष लाभ के लियेस्वाहा’ औरनमः’ का उच्चारण करते हुएघृत मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियाँ दे सकते हैं।

गणेश पूजा -

भगवान गणेश वो देवता है जिनकी पूजा कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले की जाती है। हिन्दू धर्म में भगवान गणेश का बहुत महत्व हैं। भगवान गणपति को गणेश पूजा द्वारा प्रसन्न किया जा सकता हैं। चलिए जानते हैं गणेश पूजा के बारे में।

जाने कौन हैं। गणेश -

हिन्दू धर्म में सभी देवी-देवताओं में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय कहा गया हैं।

भगवान गणेश के पिता शिव और माता पार्वती हैं।

गणेश जी का वाहन मूषक है।

भगवान गणेश को गजानन के नाम से भी जाना जाता हैं।

गणेश पूजा के लाभ -

गणेश पूजन करने से भगवान गणेश प्रसन्न हो जाते है। और मनुष्य के सभी कष्ट हर लेते हैं।

गणेश पूजा से दीर्घायु, आरोग्यता, सफलता, सुख- समृद्धि और धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

गणेश जी की पूजा करने से कोई भी नकारात्मक शक्ति घर में प्रवेश नहीं कर पाती हैं।

गणेश पूजा मंत्र -

गं गणपतये नमः

एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।

गणेश  पूजा  के लिए  -

श्रीराम ज्योतिष सदन  हमारे यहा  प्राचीन वैदिक  अनुष्ठानों के अनुसार आयोजित ऑनलाइन पूजा सेवाओं को लेकर आया है। जो यह हमारे प्रशिक्षित पुजारियों की टीम द्वारा किया जाता है। हम आपको स्वास्थ्य, करियर, शिक्षा, व्यवसाय, विवाह, वित्त और कानूनी लड़ाई से संबंधित आपकी सभी परेशानियों के लिए ऑनलाइन पूजा सेवा प्रदान करते हैं। हम मंगल दोष, पितृ दोष, काल सर्प दोष, नाड़ी दोष के लिए विशेष निवारण पूजा की भी पेशकश करते हैं। और अन्य सभी तरह के अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं।

हमारे विद्वान पुजारी आपके नाम जन्म तिथि, समय गौत्र के आधार पर वैदिक अनुष्ठानों के अनुसार पूजा करेंगे। पूजा अनुष्ठान संपन्न अनुसार पूजन करके देवता का दिव्य आशीर्वाद का प्राप्त कराने और आपकी सभी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करेंगे। श्रीराम ज्योतिष सदन  द्वारा ऑनलाइन पूजा सेवाओं से लोगों को अपनी समस्याओं के लिए अपने इष्ट भगवान की पूजा करने में मदद मिलती है।

श्री अमोघ गणेशास्त्र स्तोत्र:-

इस अमोघ गणेशास्त्र में भगवान गणपति के 32 रूप समाहित है इसके मात्र एक बार जप से गणपति के 32 विभिन्न स्वरूप जागृत हो साधक को मनोवांछित लाभ प्रदान करते हैं।

1.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

. नमो बाल गणपतये सूर्य वर्णाय चतुर्भुजाय बालमुखाय शीघ्र प्रसन्नाय मम सर्वान् विघ्नान् नाशय-नाशय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

2.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद

     सर्वजनम्मे वशमानय ::

. नमो तरुण गणपतये रक्त वर्णाय मध्य कालीन सूर्य स्वरूपाय षड्हस्ताय प्रचण्ड सम्मोहनाय सदा मां रक्ष रक्ष मम हृदये सुस्थिरो भव वर प्रदो भव साक्षात्कार सिद्धि प्रदो भव चर्म चक्षुष्क दर्शन प्रदो भव चतुःषष्टि विद्यप्रवीणां कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

3.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं  श्रींं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

नमो भक्ति गणपतये पूर्णचन्द्र स्वरूपाय चन्द्र वर्णाय चतुर्हस्ताय दुग्ध प्रियाय मम शरीरे अमृतं वर्षा कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

4... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

.. नमो वीर गणपतये रक्त वर्णाय कवच

टंक पाश खड्ग परशु शक्ति धनुष भालसर्प  वेताल बाण गदा खेटक उत्पल चक्र ध्वजा

धारणाय षोडश हस्ताय मम समस्त शत्रून मारय मारय काटय काटय छेदय छेदय पाशय पाशय भंजय भंजय उन्मूलय उन्मूलय धात घातय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

5.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

. नमो शक्ति गणपतये हरित वर्ण शक्ति सहिताय अस्त सूर्य वर्णाय अभय मुद्रा धारणाय मम जन्मांगे स्थित समस्त क्रूर ग्रह बाधा उच्चाटय उच्चाटय शांतय शांतय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

6.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

नमो द्विज गणपतये ब्रह्म स्वरूपाय चतुर्मुखाय कमण्डलु पुस्तक अक्षमाला दण्ड धारणाय चतुर्हस्ताय स्वतंत्र स्वमंत्र स्वयंत्र स्वज्ञान प्रकाशय प्रकाशय गुप्तज्ञान उद्घाटय उद्घाटय परतंत्र परमंत्र परयंत्र नाशय नाशय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

7... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

नमो सिद्धि गणपतये स्वर्ण वर्णा चतुर्हस्ताय शुण्डाग्रे दाड़िम फल धारणाय  सिद्धिं कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

8.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं  श्रींं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

.. नमो उच्छिष्ट गणपतये शक्ति सहिताय षट् हस्ताय नीलवर्णाय दक्षिण शुण्ड युक्ताय तंत्र- देव क्षेत्राधिपतये मारणं मोहन उच्चाटन आकर्षण वश्यं सम्मोहन विद्या सहित सर्व तंत्र सिद्धिं कुरु कुरु गां गीं गूं  गौं गः हुं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं  श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

9... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐंं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

. नमो विघ्न गणपतये पिंगल वर्णाय अष्टभुजाय विष्णु स्वरूपाय शंख चक्र पुष्प इच्छुपात्र पुष्प बाण परशु पाश माला युक्ताय  रत्नाऽभूषण सुसज्जिताय मम शरीरे सर्वान रोगान नाशय नाशय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रींं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

10.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं  श्रीं ग्लौम्  गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

. नमो क्षिप्र गणपतये रक्त वर्णाय चतुर्भुजाय भग्न दंत पाश परशु कल्पवृक्ष धारणाय शुण्डअग्रे रत्नकलश सहिताय सर्व शांति कुरु कुरु स्वस्तिं कुरु कुरु पुष्टिं कुरु कुरु श्रियं देहि देहि यशो देहि देहि आयुर्देहि देहि आरोग्यं देहि देहि पुत्र पौत्रान् देहि देहि सर्व कामांश्च देहि देहि गां गीं गूं गँ गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं  श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

11.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

.. नमो हेरम्ब गणपतये सिंह वाहिने पंच मुखाय गौरवर्णाय दस भुजाय परराष्ट्र गजाचं रथ सैन्य शस्त्रास्त्र बलं स्तम्भय स्तम्भय उच्चाटय उच्चाटय मारय मारय खादय खादय विदारय विदारय भीषय भीषय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय त्वरित त्वरित बन्धय बन्धय प्रमुख प्रमुख स्फुट स्फुट ठं ठं ठं ठं गां गीं गूं गैं गौं : हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

12... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं  श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

नमो लक्ष्मी गणपतये अष्ट-भुजाय सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्वेत वर्णाय मम सर्व दुःखं हर हर दारिद्रं निवारय निवारय यशं देहि यौवनं देहि धनं देहि राज्यं देहि गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

13... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं  श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

.. नमो महागणपतये पीत वर्णाय दक्षिण शुण्ड युक्ताय वामांगे शक्ति सहिताय अर्ध चंद्र मुकुट धारणाय दस भुजाय मम जन्मांगे स्थित - देव ग्रह योनि ग्रह योगिनी ग्रह दैत्य ग्रह दानव वर्षण ग्रह राक्षस ग्रह ब्रह्म राक्षस ग्रह सिद्ध ग्रह यक्ष कुरु ग्रह विद्याधर ग्रह किन्नर ग्रह गन्धर्व ग्रह अप्सरा ग्रह भूत ग्रह पिशाच ग्रह कूष्माण्ड ग्रह गजादि  ग्रह पूतना ग्रह बाल ग्रह सूर्यादि नव ग्रह मुद्गल ग्रहपितृ ग्रह वेताल ग्रह शत्रु ग्रह राज ग्रह चौरवैरि ग्रह नेतृ ग्रह देवता ग्रह आधि ग्रह व्याधि ग्रह अपस्मरादि ग्रह ग्रह ग्रह पुर ग्रह उरग ग्रह सरज ग्रह उक्त ग्रह डामर ग्रह उदक  ग्रह अग्नि ग्रह आकाश ग्रह भू ग्रह वायु ग्रह शालि ग्रह धान्यादि ग्रह विषय ग्रह ग्रहानाति ग्रह घोर ग्रह छाया ग्रह सर्प ग्रह विष जीव ग्रह वृश्चिक ग्रह काल ग्रह शाल्य ग्रहादि सर्वान ग्रहान नाशय नाशय कालाग्नि रुद्र स्वरूपेण दह दह अनुनय अनुनय शोषय शोषय मुखय मुखय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय निमीलय निमीलय मर्दय मर्दय विद्रावय विद्रावय निधन निधन स्तम्भय स्तम्भय उच्चाटय उच्चाटय उष्टन्धय उष्टन्धय मारय मारय चण्ड चण्ड प्रचण्ड प्रचण्ड क्रोध क्रोध ज्वल ज्वल प्रज्ज्वलप्रज्ज्वल ज्वाला दित्य वदने उग्र ग्रस उग्र ग्रस्विजृम्भय विजृम्भय घोषय घोषय मारय मारय हन हन गां गीं गूं गैं गौं : हूं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

14.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं  श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

.. नमो विजय गणपतये रक्त मूषक वाहिने चतुर्भुजाय सर्व क्षेत्रे विजय  देहि गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

15.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

. नमो नृत्य गणपतये दक्षिण है युक्ताय कल्प वृक्ष समीपे नृत्य  सर्वादिशो बध्नामि, महेश्वरं बध्नामि, पितामह बध्नामि, महाविष्णुं बध्नामि, कार्तिक  बध्नामि, दशदिक्पालान बध्नामि, सर्वान असुरान बध्नामि, ब्रहमास्त्रान  बध्नामि, अघोरं बध्नामि, सर्वान् सुरान् बध्नामि, सर्वान् द्बिजान्

बध्नामि,, केशरी बध्नामि, सत्वान बध्नामि, व्याघ्रान बध्नामि, गजान बध्नामि, चौरान बध्नामि, शत्रून बध्नामि, महामारीं बध्नामि,

सर्वा यक्षिणीं बध्नामि, आब्रह्म स्तम्भ पर्यंत सर्वान चराचर जीवान् बध्नामि, माया ज्वालिनि स्तम्भय स्तम्भय सर्व वादीन् मूकय मूकय, कीलय कीलय, गतिं स्तम्भय स्तम्भय, चौरादि सर्वान दुष्ट पुरुषान् बन्धय बन्धय, दिशा विदिशा रात्र्याकर्षण पाताल घ्राण भ्रूचक्षुः शिरः श्रोत्रे हस्तौ पादौ गतिं मतिं मुखं जिह्वां वाचां शब्द पञ्चाशत् कोटि योजन विस्तीर्णान् भू-ब्रह्माण्ड देवान् बध्नामि, मण्डलं बध्नामि, व्याधान् क्रमय क्रमय रक्ष रक्ष गां गीं गूं गैं गौं : हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं  श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

16... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

नमो ऊर्ध्व गणपतये वामांगे हरित शक्ति सहिताय अष्टभुजाय कनक वर्णाय मम शरीरे कुण्डलिनी शक्ति प्रकाशय प्रकाशय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

17... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

.. नमो एकाक्षर गणपतये रक्त वर्णायरक्त पुष्प माला धारिण्ये त्रिनेत्राय अर्ध चंद्रमुकुट धारणाय मूषक वाहिने पद्मासन

स्थिताय योग सिद्धिं देहि देहि गांगीं गूं गैं गौं : हूं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

18.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं  श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

.. नमो वर गणपतये वामांगे शक्तिसहिताय त्रिनेत्राय अर्धचंद्र मुकुट धारणाय वरं देहि देहि अभयं देहि देहि गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

19... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

... नमो त्र्यक्षर गणपतये कार स्वरूपाय स्वर्ण प्रकाश युक्ताय शूप कर्णाय मोक्षं कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

20... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

... नमो क्षिप्र प्रसाद गणपतये रक्तचन्दाङ्किताय षट्भुजाय कुशासन स्थिताया कल्प वृक्ष सहिताय त्वरित कार्य सिद्धिप्रदानाय गां गीं गूं गँ गॉं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं  श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

21.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरद.सर्वजनम्मे वशमानय ::

. नमो हरिद्रा गणपतये पीत वर्णाय चतुर्भुजाय शत्रु वाक् स्तम्भनाय आत्म विरोधिणां शिरोललाट मुख नेत्र कर्ण नासिकोरु  पाद रेणु दन्तोष्ठ जिह्वा तालु गुह्य गुदकटि कय सर्वांगेषु केशादि पाद पर्यन्तं स्तम्भय स्तम्भय मारय मारय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

22.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

.. नमो एकदंत गणपतये नीलवर्णाय  चतुर्भुजाय भग्न दंत सहिताय गारुड़ वारुण सार्प पर्वत वह्नि दैवत अघोर नारायण विष्णु ब्रह्म रुद्र वज्रास्त्राणि भंजय भंजय निवारय निवारय तेषां मंत्र यंत्र तंत्राणि विध्वंसय विध्वंसय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं  ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

23... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

. नमो सृष्टि गणपतये रक्त वर्णाय मूषक वाहिने चतुर्भुजाय आम्रफल पाश अंकुश भग्न दंत युक्ताय आयुष्मन्तं कुरु कुरु सततं मम हृदये चिन्तित मनोरथ सिद्धिं कुरु कुरु चिदानन्दकान्कुरु चिदानन्दकान्तकुरु वाक सिद्धिं देहि देहि अकाल मृत्यु विनाशनं कुरु कुरु अपमृत्यु निर्दलनं कुरु कुरु अकाल मृत्यु भय निवारय निवारय ममैव कर स्पर्शान नाना रोगान् नाशय नाशय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

24... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

.. नमो उद्दण्ड गणपतये वामांगे हरित वर्ण शक्ति युक्ताय दस भुजाय मम सर्व दुष्टान मर्दय मर्दय मारय मारय शोषय शोषय चण्डय चण्डय प्रचण्डय प्रचण्डय गां गीं गूं गैं गौं गः फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

25... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

. नमो ऋण मोचन गणपतये शुक्ल वर्णाय  चतुर्हस्ताय मम कर्म क्षेत्रे स्थित पितृ ऋण मातृ ऋण स्त्री-ऋण पुत्र ऋण मित्र  ऋण राज्य-ऋण देव-ऋण ग्रह-ऋण पंचभूत  इत्यादि समस्त ऋणान् उन्मूलय उन्मूलय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

26... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

नमो ढुण्डी गणपतये सिन्दूर वर्णाय चतुर्भुजाय रत्न कुम्भ धारणाय मम सर्व दोष हारिणे सर्व विघ्न छेदिने सर्व पाप निकृन्तिने सर्वश्रृंखलात्रोटिने सर्वयंत्र स्फोटिने गां गीं गूं गँ गौं गः हुं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

27.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

. नमो द्विमुख गणपतये चतुर्हस्ताय नील हरित वर्णाय रत्न मुकुट सुशोभिताय सपरिवारम् मां रक्ष रक्ष क्षमस्वापराधं क्षमस्वापराधं नमस्ते नमस्ते गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

28... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

  नमो त्रिमुख गणपतये स्वर्ण कमलासन स्थिताय रक्त वर्णाय अभयं कुरु कुरु कृपां कुरु कुरु सिद्धिम कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

29.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

नमो सिंह गणपतये श्वेत वर्णाय सिंह वाहिने अष्ट भुजाय मम शरीरे सर्वान् विषान् शोकान् हर हर गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

30.. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

. नमो योग गणपतये योगासन स्थिताय  इन्द्र स्वरूपाय रस सिद्धिं देहि देहि गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

31... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

नमो दुर्गा गणपतये स्वर्ण आभा युक्ताय अष्टभुजाय रक्त वर्ण वस्त्र सुशोभिताय  मम समस्त प्रकट अप्रकट भयान नाशय नाशय गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

32... श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरदसर्वजनम्मे वशमानय ::

.. नमो संकष्ट हरण गणपतये उदित सूर्य स्वरूपाय वामांगे हरित वर्ण शक्ति सहिताय नील वस्त्र सुशोभिताय शक्तिं देहि देहि गां गीं गूं गैं गौं गः हुं फट् स्वाहा।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं ग्लौम् गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ::

 जय श्री राम रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा,

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