दीपावली पूजन 24-10-2022

सोमवार दीपावली पूजन  24-10-2022

दिवाली पर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। 

हिंदू धर्म में दिवाली के त्योहार का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष के अमावस्या तिथि को दीपावली  को मनाया जाता है। इस साल कार्तिक अमावस्या 24-अक्टूबर- 2022 (सोमवार) को है।  दिवाली पर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।  मान्यता है। कि दिवाली पर मां लक्ष्मी की विधि पूर्वक पूजा करने से सुख-समृद्धि और यश की प्राप्ति होती है। जीवन में धन की कमी नहीं रहती है।

मान्‍यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्‍त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। दरअसल, हिन्‍दू धर्म में मनुष्‍य के एक-एक गुण को किसी न किसी कला से जोड़कर देखा जाता है।

श्रीमहालक्ष्मी पूजन 2022- शुभ मुहूर्त,

दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त 24-अक्टूबर- 2022 (सोमवार)

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त :- 18:54:52 से 20:16:07 तक

प्रदोष काल :- 17:43:11 से 20:16:07 तक

वृषभ काल :-18:54:52 से 20:50:43 तक

दिवाली महानिशीथ काल मुहूर्त

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त :- 23:40:02 से 24:31:00 तक

दिवाली पर निशिता काल मुहूर्त:- 23:40:02 से 24:31:00 तक

सिंह काल :-25:26:25 से 27:44:05 तक

सालभर मिलता है रहेगा पैसा, ऐसे स्थापित करें मां लक्ष्मी की चौकी
दीपावली के दिन पूजा के लिए मां लक्ष्मी किस प्रकार स्थापित करना है? यह ध्यान रखने वाली बात है। मां लक्ष्मी की चौकी विधि-विधान से सजाई जानी चाहिए।

चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी के दाहिनी ओर स्थापित करें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावल पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटे कि नारियल का आगे का भाग दिखाई दे और इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुणदेव का प्रतीक है। अब दो बड़े दीपक रखें। एक घी व दूसरे में तेल का दीपक लगाएं। एक दीपक चौकी के दाहिनी ओर रखें एवं दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।

दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के समय एक चौकी पर मां लक्ष्मी और श्रीगणेश आदि प्रतिमाएं स्थापित की जाती है। इसकी जानकारी पूर्व में प्रकाशित की जा चुकी है। इसके अतिरिक्त एक छोटी चौकी भी बनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस चौकी को विधि-विधान से सजाना चाहिए। इस छोटी चौकी को इस प्रकार सजाएं-

मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। फिर कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां तीन लाइनों में बनाएं। इसे आप चित्र में (1) चिन्ह से देख सकते हैं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। यह सोलह ढेरियां मातृका (2) की प्रतीक है। जैसा कि चित्र में चिन्ह (2) पर दिखाया गया है। नवग्रह व सोलह मातृका के बीच में स्वस्तिक (3) का चिन्ह बनाएं। इसके बीच में सुपारी (4) रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी रखें। लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिन्ह (5) बनाएं। गणेशजी की ओर त्रिशूल (6) बनाएं। एक चावल की ढेरी (7) लगाएं जो कि ब्रह्माजी की प्रतीक है। सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियां बनाएं (8) जो मातृक की प्रतीक है। सबसे ऊपर ऊँ (9) का चिन्ह बनाएं। इन सबके अतिरिक्त कलम, दवात, बहीखाते एवं सिक्कों की थैली भी रखें।

इस प्रकार मां लक्ष्मी की चौकी सजाने पर भक्त को साल भर पैसों की कोई कमी नहीं रहती है।

 

कैसे करें दीपावली पूजन -

दीपावली पूजन विधि  -

एक लकड़ी की चौकी -

चौकी को ढकने के लिए लाल या पीला कपड़ा -

देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां , चित्र -

कुमकुम,

चंदन,

हल्दी,

रोली,

अक्षत,

पान और सुपारी,

साबुत नारियल अपनी भूसी के साथ,

अगरबत्ती,

दीपक के लिए घी,

पीतल का दीपक या मिट्टी का दीपक,

कपास की बत्ती,

पंचामृत,

गंगाजल,

पुष्प,

फल,

कलश,

जल,

आम के पत्ते,

कपूर,

कलाव,

साबुत गेहूं के दाने,

दूर्वा घास,

जनेऊ,

धूप,

एक छोटी झाड़ू,

दक्षिणा (नोट और सिक्के),

दीपावली पूजन विधि  -
1– एक चौकी लें उस पर साफ कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा रखें। मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम की तरफ होना चाहिए।
2– अब हाथ में थोड़ा गंगाजल लेकर उनकी प्रतिमा पर इस मंत्र का जाप करते हुए छिड़कें।
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।
जल अपने आसन और अपने आप पर भी छिड़कें।
3– इसके बाद मां पृथ्वी को प्रणाम करें और आसन पर बैठकर हाथ में गंगाजल लेकर पूजा करने का संकल्प लें।
4– इसके बाद एक जल से भरा कलश लें जिसे लक्ष्मी जी के पास चावलों के ऊपर रखें। कलश पर मौली बांधकर ऊपर आम का पल्लव रखें। साथ ही उसमें सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का रखें। – अब इस कलश पर एक नारियल रखें। नारियल लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि उसका अग्रभाग दिखाई देता रहे। यह कलश वरुण का प्रतीक है।
5– अब नियमानुसार सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें। फिर लक्ष्मी जी की अराधना करें। इसी के साथ देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, मां काली और कुबेर की भी विधि विधान पूजा करें।
6– पूजा करते समय 11 या 21 छोटे सरसों के तेल के दीपक और एक बड़ा दीपक जलाना चाहिए। एक दीपक चौकी के दाईं ओर एक बाईं ओर रखना चाहिए।
7– भगवान के बाईं तरफ घी का दीपक जलाएं। और उन्हें फूल, अक्षत, जल और मिठाई अर्पित करें।
8– अंत में गणेश जी और माता लक्ष्मी की आरती उतार कर भोग लगाकर पूजा संपन्न करें।
9– जलाए गए 11 या 21 दीपकों को घर के सभी दरवाजों के कोनों में रख दें।
10– इस दिन पूजा घर में पूरी रात एक घी का दीपक भी जलाया जाता है।

सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करें

 ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी। गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।। लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः ज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः। नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।

पूजा स्थान बनाएं:-  यदि आपके पास एक अलग पूजा कक्ष नहीं है, तो अपने घर की पूर्वोत्तर दिशा में एक जगह चुनें। यह ईशान कोने है जो बुरी तरह के लिए आदर्श है। पवित्र, माना जाता है अन्य क्षेत्रों उत्तर, पूर्व या पश्चिम दिशाएं हैं।

1- सर्वप्रथम पूजा का संकल्प लें,
2- श्रीगणेश, लक्ष्मी, सरस्वती जी के साथ कुबेर का पूजन करें,
3- ऊं श्रीं श्रीं हूं नम: का 11 बार या एक माला का जाप करें,
4- एकाक्षी नारियल या 11 कमलगट्टे पूजा स्थल पर रखें,
5- श्रीयंत्र की पूजा करें और उत्तर दिशा में प्रतिष्ठापित करें, देवी सूक्तम का पाठ करें,

!! श्रीमहालक्ष्मी पूजन !!

पुजनसामग्री-घर से- दुध,दही,घी(देशी गाय का हो तो अति उत्तम),शहद,गंगाजल,आम्रपत्र,बिल्व पत्र,,दुर्वांकुर,फुल,फल,लोटा,थाली,शंख,घन्टी,पीला चावल,शुध्द जल. 

मार्केट से-श्री  यन्त्र, कुबेर यन्त्र, महालक्ष्मी यन्त्र, महाकाली का चित्र, हल्दी गांठ-९,पुजा सुपारी-११, जनेऊ-४,सिन्दुर, गुलाल, मौली  धागा, इत्र (गुलाब,चन्दन,मोगरा) ,कमल का फुल-३,कमल  रितुफल, नारियल-४,मिष्ठान, ताम्बुल (जो पान की पत्ती आप सेवन करते  है) ,चन्दन, बंदन.  धान का लावा, तिल का तेल /सरसों के तैल,

इन सामग्रियो की व्यवस्था करके पुजन प्रारंभ करे! 

भगवान कुबेर की पूजा धनतेरस और दिपावली के दिन की जाती है। दिवाली के दिन आपको शाम को भगवान गणेश और मां लक्ष्मी के साथ भगवान कुबेर जी की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए।
इसके लिए आप एक साफ चौकी लें और उस पर गंगाजल छिड़कें। इसके बाद उस पर एक लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और उस पर भी गंगाजल छिड़कें।
इसके बाद उस चौकी पर अक्षत डालें और भगवान गणेश मां लक्ष्मी और भगवान कुबरे की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
प्रतिमा स्थापित करने के बाद अपने आभूषण, पैसे और सभी कीमती चीजें भगवान कुबेर के आगे रखें।
इसके बाद अगर आभूषण के डिब्बे पर स्वास्तिक बनाएं या फिर स्वास्तिक बनाकर अपने सभी पैसे और आभूषण उस पर रखें।
इसके बाद भगवान कुबेर का तिलक करें और कुबेर जी के साथ- साथ सभी आभूषण और पैसों को अक्षत अर्पित करें। धनतेरस पर जानिए धन के देवता

इसके बाद भगवान कुबेर को फल और फूल, माला अर्पित करें। और आभूषण और पैसों पर भी फूल अर्पित करें।
इसके बाद कुबेर त्वं धनाधीश गृहे ते कमला स्थिता।तां देवीं प्रेषयाशु त्वं मद्गृहे ते नमो नम:।। मंत्र का जाप करें।
मंत्र जाप के बाद भगवान कुबेर को मिठाई का भोग लगाएं।
इसके बाद भगवान कुबरे की धूप दीप से आरती उतारें।
इसके बाद एक साफ गिलास में जल लेकर भगवान कुबेर को जल अर्पित करें।
अंत में भगवान कुबेर को हाथ जोड़कर नमन करें और उनसे जाने अनजाने में हुई।  भूल के क्षमा प्रार्थना करें और उनसे अपना अर्शीवाद सदा बनाने के लिए भी प्रार्थना करें।

पुजन -विधि- सर्व प्रथम शुध्द होकर पश्चिमा भिमुख ( क्योकि महालक्ष्मी कि रात्रि कालीन पुजा पश्चिमा भिमुख हो कर ही की जाती है)  हो कर बैठ जाये फिर  सर्वप्रथम पवित्री करण करे !

लोटे में जल लेकर उसमें थोडा सा गंगा जल मिला कर अपनें ऊपर छिडके तथा ये भावना करे कि हम पवित्र हो रहे है!

दीपावली के दिन शुभ मुहूर्त में घर में या दुकान में, पूजा घर के सम्मुख चौकी बिछाकर उस पर लाल वस्त्र बिछाकर लक्ष्मी- गणेश की मुर्ति या चित्र स्थापित करें तथा चित्र को पुष्पमाला पहनाएं। मुर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजी के पास ही किसी पवित्र  पात्रमें केसर युक्त चन्दन से अष्टदल कमल बनाकर उसपर द्रव्यल क्ष्मी-(रुपयों ) को भी स्थापित करके एक साथ ही दोनों की पूजा करनी चाहिये। पूजन-सामग्री को यथा स्थान रख ले। इसके पश्चात धूप, अगरबती और ५ दीप शुध्द घी के और अन्य दीप तिल का तेल /सरसों के तैल से प्रज्वलित करें। जल से भरा कलश भी चौकी पर रखें। कलश में मौली बांधकर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह अंकित करें । तत्पश्चात श्री गणेश जी को,  फिर उसके बादल क्ष्मी जी को तिलक करें और पुष्प  अर्पित करें। इसके पश्चात हाथ में पुष्प, अक्षत, सुपारी, सिक्का और जल लेकर संकल्प करें।
संकल्प -
मैं (अपना नाम बोलें), सुपुत्र श्री (पिता का नाम बोलें), जाति (अपनी जाति बोलें), गोत्र (गोत्र बोलें), पता  (अपना पूरा पता बोलें) अपने परिजनो के साथ जीवन को समृध्दि से परिपूर्ण करने वाली माता महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिये  कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन महालक्ष्मी  पूजन कर रहा हूं। हे मां, कृपया मुझे धन, समृध्दि और ऐश्वर्य देने की कृपा करें। मेरे इस पूजन में स्थान देवता, नगर देवता, इष्ट देवता कुल देवता और गुरु देवता सहायक हों तथा मुझें सफलता प्रदान करें।
यह संकल्प पढकर हाथ में लिया हुआ जल, पुष्प और अक्षत आदि श्री गणेश-लक्ष्मी के समीप छोड दें।
इसके बाद एक एक कर के गणेशजी मां लक्ष्मी  मां सरस्वती  मां काली  धनाधीश कुबेर  तुला मान की पूजा करें। यथाशक्ती भेंट,  नैवैद्य,  मुद्रा,   आदि अर्पित करें।

दीपमालिका पूजन -

किसी पात्र  में 11, 21 या उससे अधिक  दीपों को प्रज्वलित कर महा  लक्ष्मी के समीप रखकर उस दीप-ज्योतिका “ओम दीपावल्यै नमः” इस नाम मंत्र से गन्धादि उपचारोंद्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करे | -

त्वं ज्योतिस्तवं रविश्चन्दरो विधुदग्निश्च तारकाः |

सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ||

दीप मालिकाओं का पूजन कर अपने आचार के अनुसार संतरा,  ईख, पानीफल,  धान का लावा इत्यादि पदार्थ चढाये। धानका लावा (खील) गणेश महा लक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी देवताओं को भी अर्पित करे। अन्तमें अन्य सभी दीपकों को प्रज्वलित कर सम्पूर्ण गृह को अलंकृत करे। 

हवन विधि :  -

श्री सुक्त -

!!श्री गणेशाय नमः!!

हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । 

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो ममावह ।1।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । 

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।2।

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् 

श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।3।

कांसोस्मि तां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।

पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ।4।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् । 

तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।5।

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।

तस्य फलानि तपसानुदन्तुमायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।6।

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।

प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।7।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।

अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुदमे गृहात् ।8।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । 

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।9।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि। 

पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।10।

कर्दमेन प्रजाभूतामयि सम्भवकर्दम। 

श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।11।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीतवसमे गृहे।

निचदेवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।12।

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।13।

आर्द्रां यःकरिणीं यष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।14।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावोदास्योश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ।15।

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।

सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ।16।

उपरोक्त श्री सुक्त के प्रत्येक श्लोक को (ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा लक्ष्मै नमः! ह्रीं श्रीं दुर्गे हरसि भितिमशेष जंतौःस्वस्थैःस्मृतामति मतीव शूभां ददासि !)  फिर श्री सुक्त का १ शलोक तत् पश्चात (दारिद्र्य दुख भय हारिणि का त्वादन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्र चित्ता !ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा लक्ष्मै नमः! कहने के बाद स्वाहा कहते हुए अग्नि मे आहुति डाले !इसी प्रकार श्री सुक्त के १६ श्लोको पर बिल्व पत्र को घृत में डूबा कर आहुति प्रदान करनी है ! उदाहरणार्थ - ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा लक्ष्मै नमः! ह्रीं {श्रीं दुर्गे हरसि भितिमशेष जंतौःस्वस्थैःस्मृतामति मतीव शूभां ददासि !
हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
 चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो ममावह ।1।
दारिद्र्य दुख भय हारिणि का त्वादन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्र चित्ता !ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा लक्ष्मै नमः!}

महात्म्य -

पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे।

तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ।17।

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने।

धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ।18।

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि। 

विश्वप्रिये विश्वमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व ।19।

पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम्।

प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ।20।

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।

धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते ।21।

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।

सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ।23।

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः।

भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् ।24।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ।25।

विष्णुपत्नीं क्षमादेवीं माधवीं माधवप्रियाम्।

लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ।26।

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।27।

श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।

धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ।28।

आरती एवं पुष्पांजलि  -
गणेश, लक्ष्मी और भगवान जगदीश्वर की आरती करें। उसके बाद पुष्पान्जलि अर्पित करें,क्षमा प्रार्थना करें। 
विसर्जन - पूजनके अन्तमें हाथमें अक्षत लेकर  नूतन गणेश एवं महाललक्ष्मी की प्रतिमाको छोडकर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं को अक्षत छोडते हुए निम्न मंत्र से विसर्जित करे-

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजमादाया मामकीम् |

इष्टकामसमृध्दयर्थं पुनरागमनाया च ||

मंदिर, तुलसी माता, पीपल आदि के पास दीपक जलाना नहीं भुलना।
लक्ष्मी पूजा में तिल का तेल का उपयोग ही श्रेष्ठ होता  है | अभाव में सरसों का इस्तमाल कर सकते है |

कनकधारा स्तोत्र  -

अंग हरे  पुलकभूषणमाश्रयंती , भृंगागनेव  मुकुलाभरणं  तमालम |

अंगीकृताखिलविभूतिर पांग  लीला, मांगल्यदास्तु  मम मंगदेवताया  || १ ||

मुग्धा  मुहुर्विदधाति  वदने  मुरारेः ,  प्रेमत्रपाप्रणिहितानि  गतागतानि |

माला  दुशोर्मधुकरीय  महोत्पले  या, सा  में  श्रियं  दिशतु  सागरसंभवायाः || २ ||

विश्वासमरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष , मानन्दहेतुरधिकं  मधुविद्विषो  पि  |

इषन्निषीदतु    मयी  क्षणमीक्षर्णा, मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः  || ३ ||

आमीलिताक्षमधिगम्य  मुदा मुकुन्द, मानन्दकन्मनिमेषमनंगतन्त्रम   |

आकेकरस्थितिकनीकिमपक्ष्म  नेत्रं, भूत्यै  भवेन्मम  भुजंगशयांगनायाः  || ४ ||

बाह्यंतरे   मधुजितः  श्रितकौस्तुभे  या, हारावलीव  हरीनिलमयी  विभाति  |

कामप्रदा  भागवतोपी  कटाक्ष  माला, कल्याणमावहतु  मे  कमलालायायाः  || ५ ||

कालाम्बुदालितलिसोरसी  कैटमारे, धरिधरे स्फुरति या तु  तडंग  दन्यै |

मातुः  समस्तजगताम  महनीयमूर्ति , र्भद्राणि  मे दिशतु  भार्गवनन्दनायाः  || ६ ||

प्राप्तम पदं  प्रथमतः  किल  यत्प्रभावान, मांगल्यभाजि  मधुमाथिनी  मन्मथेन   |

मययापतेत्तदिह  मन्थन  मीक्षर्णा, मन्दालसम  च  मकरालयकन्यकायाः   || ७ ||

दाद  दयानुपवनो  द्रविणाम्बुधारा, मस्मिन्न  वि  किंधनविहंगशिशौ  विपाणे  |

दुष्कर्मधर्म  मापनीय  चिराय  दूरं, नारायणप्रगणयिनीनयनाम्बुवाहः  || ८ ||

इष्ट  विशिष्टमतयोपी  यया  दयार्द्र, दुष्टया त्रिविष्टपपदं  सुलभं  लर्भते  |

दृष्टिः  प्रहष्टकमलोदरदीप्तिरीष्टां, पुष्टि  कृपीष्ट  मम  पुष्करविष्टरायाः   || ९ ||

गीर्तेवतेती  गरुड़ध्वजभामिनीति, शाकम्भरीति  शशिशेखरवल्लभेति  |

सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु  संस्थितायै, तस्यै  नमास्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुन्यै  || १० ||

क्ष्फत्यै  नमोस्तु  शुभकर्मफलप्रसूत्यै,  रत्यै  नमोस्तु  रमणीयगुणार्णवायै   |

शक्त्यै  नमोस्तु  शतपनिकेतनायै, पुष्ट्यै  नमोस्तु  पुरुषोत्तम वल्लभायै || ११ ||

नमोस्तु  नालीकनिभान्नायै, नमोस्तु  दुग्धोदधिजन्म  भूत्यै |

नमोस्तु  सोमामृतसोदरायै , नमोस्तु  नारायणवल्लभायै   || १२ |

सम्पत्कराणि  सकलेन्द्रियनन्दनानि, साम्राज्यदान विभवानि  सरोरुहाक्षि  |

त्वद्वन्द्वनानि  दुरिताहरणोद्यतानी , मामेव मातरनिशं कलयन्तु  नान्यम  || १३ ||

यत्कटाक्ष समुपासनाविधिः, सेवकस्य सकलार्थ सम्पदः  |

संतनोति  वचनांगमान, सैस्त्वां  मुरारीहृदयेश्वरीं भजे  || १४ ||

सरसीजनिलये  सरोजहस्ते, धवलतमांशु -कगंधमाल्य  शोभे  |

भगवती  हरिवल्लभे  मनोज्ञे, त्रिभुवन भूतिकरि  प्रसीद  मह्यं  || १५ ||

दिग्धस्तिभिः  कनककुम्भमुखावसृष्ट, स्वर्वाहिनीतिमलाचरूजलप्तुतांगम  |

प्रातर्नमामि  जगताम  जननीमशेष, लोकाधिनाथ  गृहिणीम मृताब्धिपुत्रिम || १६ ||

कमले  कमलाक्षवल्लभे, त्वम्, करुणापूरतरंगितैपरपाडयै    |

अवलोकय  ममाकिंचनानां, प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः  || १७ ||

स्तुवन्ति  ये  स्तुतिभिरमू भिरन्वहं, त्रयोमयीं  त्रिभुवनमातरम  रमाम  |

गुणाधिका  गुरुतरभाग्यभामिनी, भवन्ति  ते  भुवि  बुधभाविताशयाः    || १८ ||

मां लक्ष्मी को लगाएं भोग-

फलों में आप लक्ष्मी जी की पूजा में  सिघाड़ा, अनार,  श्रीफल अर्पित कर सकते हैं। दिवाली की पूजा में सीताफल को भी  रखा जाता है। इसके अलावा दिवाली की पूजा में कुछ लोग ईख भी रखते हैं। सिंघाड़ा भी नदी के किनारे पाया जाता है इसलिए मां लक्ष्मी को सिंघाड़ा भी  बहुत पंसद है। मिष्ठान में मां लक्ष्मी को केसर भात, चावल की खीर जिसमें  केसर पड़ा हो, हलवा आदि भी बहुत पसंद हैं,

दिवाली वाले दिन किसी से उधार लेने और देने से बचें। इस दिन भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, सरस्वती,  विष्णु जी और राम दरबार की पूजा की जाती है। दिवाली वाले दिन लक्ष्मी गणेश की नई मूर्तियों की पूजा होती है। पूजन के समय अपने गहनों और पैसों की भी पूजा करें और माता लक्ष्मी से हमेश घर में वास करने की प्रार्तना करें। देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन श्री यंत्र  की भी पूजा करें। घर में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें और कोने कोने को दीपक की रोशनी से भर दें। 

दिवाली को लेकर क्या कहा गया है, ब्रह्मपुराण में -

ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात्रि अर्थात् अर्धरात्रि में  महालक्ष्मी स्वयं भूलोक पर आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घरों में विचरण करती हैं। इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीक़े से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है, वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं।  इसलिए इस दिन घर-बाहर को ख़ूब साफ- सुथरा करके सजाया- संवारा जाता है। दिवाली मनाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर स्थायी रूप से सद्गृहस्थों के घर निवास करती हैं।

दिवाली की मान्यताएं -

त्रेता युग में भगवान राम, जब रावण को हराकर अयोध्या वापस लौटे थे तब श्रीराम के  आगमन पर दीप जलाकर उनका स्वागत किया गया और खुशियां मनाई गई थी,  इस दिन यह भी कथा प्रचलित है कि जब श्रीकृष्ण ने आताताई नराकसुर जैसे दुष्ट का वध किया तब ब्रजवासियों ने अपनी प्रसन्नता दीपों को जलाकर प्रकट की। कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया,  इसी खुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुल  वासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थी।

इसलिए मां लक्ष्मी के साथ गणेश जी की होती है, पूजा -

मां लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी मानी जाती हैं। वहीं गणेश इनके बेटे के समान हैं। फिर भी दिवाली के दिन दोनों की साथ पूजा होती है।  दिवाली पर माता लक्ष्मी को इसलिए पूजा जाता है कि ताकि उनके भक्तों के पास धन की कभी कोई कमीं न हो और वह हमेशा के लिए उनके घर में वस जाएं। वहीं  शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश को सभी देवी देवताओं से पहले पूजे जाने का विधान है। यह वरदान शिव और पार्वती ने दिया था। गणेश इसके साथ बुद्धि के देवता भी माने जाते हैं। किसी व्यक्ति को लक्ष्मी की पूजा करने से धन की प्राप्ति होती है तो लेकिन बुद्धि नहीं होने पर धन आना व्यर्थ समझा जाता है। इसलिए धन के साथ बुद्धि की काफी जरूरत होती है। इसलिए मां लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा होती है।

दिवाली पर लक्ष्मी गणेश की ही नहीं कई जगह काली की भी पूजा की जाती है। भारत में दीवाली के दौरान अमावस्या तिथि पर अधिकतर लोग जब देवी लक्ष्मीजी की पूजा करते हैं तब पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में दीवाली के दौरान अमावस्या तिथि पर लोग देवी काली की पूजा करते हैं। मान्यता है कि राक्षसों का वध करने के लिए मां देवी ने महाकाली का रूप धारण किया, राक्षसों का वध  करने के बाद जब भी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया, इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई, इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है।

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम:  श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411