श्रीकालभैरवाष्टमी 05 दिसंबर 2023

काल भैरव जयंती 2023

काल भैरव जयंती 5 दिसंबर, मंगलवार को है। 

अष्टमी तिथि प्रारंभ: 04 दिसंबर 2023 को रात्रि 09:59 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त: 06 दिसंबर 2023 को रात्रि 12:37 बजे

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भैरव अष्टमी, जिसे भैरवाष्टमी, भैरव जयंती, काल-भैरव अष्टमी और काल-भैरव जयंती के रूप में भी जाना जाता है। यह हिंदू धर्म का पवित्र दिन है। जो भैरव, भगवान शिव का एक भयावह और क्रोधी अवतार लेने का दिन है। इस दिन का भैरव का जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह कार्तिक के हिंदू महीने के पंद्रहवें दिन (अष्टमी) को घटते चंद्रमा (कृष्ण पक्ष) के पखवाड़े में पड़ता है।

काल भैरव की उत्पत्ति की पुराणों में काफी रोचक कथा है। बताया गया है। कि एक बार श्रीहरि विष्णु और भगवान ब्रह्मा में इस बात को लेकर बहस हो गई, कि सर्वश्रेष्ठ कौन है। दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया, कि दोनों युद्ध करने को उतारू हो गए। इसके बीच में बाकी सभी देवताओं ने बीच में आकर वेदों से इसका उत्तर जानने का निर्णय लिया। जब वेदों से इसका उत्तर पूछा, तो उत्तर मिला कि जिसमें चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान सबकुछ समाया हुआ है। वहीं इस जगह में सर्वश्रेष्ठ हैं। इसका सीधा अर्थ था कि भगवान शिव सबसे श्रेष्ठ हैं। श्रीहरि विष्णु वेदों की इस बात से सहमत हो गए, लेकिन ब्रह्मा जी इस बात से नाखुश हो गए। उन्होंने आवेश में आकर भगवान शिव के बारे में बहुत बुरा भला कह दिया। ब्रह्माजी के इस दुर्व्यवहार को कारण शिवजी क्रोधित हो उठे, तभी उनकी दिव्य़ शक्ति से काल भैरव की उत्पत्ति हुई, और भगवान शिव को लेकर अपमान जनक शब्द कहने पर दिव्य शक्ति से संपन्न काल भैरव ने अपने बाएं हाथ की छोटी अंगुली से ही ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया। फिर भगवान ब्रह्मा ने भोलेनाथ से क्षमा मांगी, जिस पर भोलेनाथ ने उन्हें क्षमा कर दिया। हालांकि, ब्रह्मा जी के पांचवें सिर की हत्या का पाप भैरव पर चढ़ चुका था। तभी भगवान शिव ने उन्हें काशी भेज दिया, जहां उन्हें हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई। इसके बाद बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया गया। आज भी बाबा काल भैरव की पूजा काशी में नगर कोतवाल के रूप में होती है। ऐसा माना जाता है। कि काशी विश्वनाथ के दर्शन काशी के कोतवाल बाबा भैरव के बिना अधूरे हैं।

बाबा काल भैरव की पूजा करने से आपके हर दुख का निवारण हो सकता है। इस साल आप बाबा काल भैरव की जयंती पर विधि विधान से बाबा काल भैरव जी का पूजन संपन्न करवाएं ।

काल भैरव पूजा विधान

कालभैरव जयंती पर, भक्त सुबह जल्दी पवित्र स्नान करते हैं।और फिर सभी अनुष्ठान करना शुरू करते हैं। भक्त तीनों देवताओं, देवी पार्वती, भगवान शिव और भगवान काल भैरव की एक साथ पूजा करते हैं। देवताओं को मिठाई, फूल और फल चढ़ाए जाते हैं। पूजा पूरी हो जाने के बाद, भक्त काल भैरव कथा का जाप करते हैं। पूरी रात जागकर (बिना सोये) भगवान शिव और भगवान कालभैरव की कथाएँ आमंत्रित किऐ गये लोगों व अन्य सभी भक्तों को सुनाई जाती हैं। कालभैरव मंत्रों का पाठ करने के बाद, भक्त आधी रात को काल भैरव की आरती करते हैं। शंख, घंटियों और ढोल की थाप के साथ एक पवित्र वातावरण बनाया जाता है। भक्त अपने सभी पापों और बाधाओं से मुक्ति और भारी सफलता पाने के लिए कालभैरव जयंती का व्रत भी रखते हैं। कुछ स्थानों पर, भक्त कुत्तों को मिठाई और दूध भी परोसते है। क्योंकि यह एक धार्मिक कार्य माना जाता है। कुत्तों को भगवान कालभैरव का वाहन माना जाता है।

धर्मग्रंथों के अनुसार शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी. भैरव दो प्रकार के होते हैं।- काल भैरव और बटुक भैरव. देश में काल भैरव के सबसे जागृत मंदिर उज्जैन और काशी में हैं।

काल भैरव अष्टमी 2023 मंगलवार 'मार्गशीर्ष' मास में पड़ने वाली सबसे महत्वपूर्ण है। और इसे 'कालभैरव जयंती' के नाम से जाना जाता है। कालाष्टमी को रविवार या मंगलवार को पड़ने पर भी पवित्र माना जाता है। क्योंकि ये दिन भगवान भैरव को समर्पित होते हैं।

भैरव का शाब्दिक अर्थ होता है। भय से रक्षा करनेवाला. हिन्दू धर्म में भैरव का वर्णन विशाल आकार के काले वर्ण वाला, हाथ में दंड धारण किए हुए काले कुत्ते की सवारी करते हुए है। पापियों को दंड देने की प्रवृत्ति की वजह से इन्हें दंडपाणी कहकर भी बुलाया जाता है। शास्त्रों में काले कुत्ते को भैरव की सवारी माना गया है।

पुराणों में भैरव का उल्लेख

असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव।

भगवान शिव के पाँचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है। काल भैरव : काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोषकाल में हुआ था। शिव पुराण के अनुसार, अंधकासुर नामक दैत्य के संहार के कारण भगवान् शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई थी।

भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहां शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं। वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है।

भगवान कालभैरव को महादेव का रौद्र रूप माना गया है। ऐसा माना जाता है। कि काल भैरव की पूजा करने से सभी रोगों और दुखों से निजात मिल जाता है। इसके अलावा इनकी पूजा करने से मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। कष्टों का निवारण होता है। काल भैरव का अर्थ ही यही होता है। यानि कि जो काल और भय से आपकी रक्षा करता हो। ऐसा माना जाता है। कि अगर आपके अंदर किसी बात को लेकर डर है। तो आप काल भैरव का स्मरण कीजिए। काल भैरव के स्मरण मात्र से ही आपके अंदर डर पर विजय पाने की शक्ति आ जाएगी। सनातन काल से ही हिंदू धर्म में श्री काल भैरव की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है। इसे भगवान शंकर का ही एक स्वरूप माना गया है। इस साल काल भैरव जयंती 05 दिसंबर 2023 दिन मंगलवार , को मनाया जाएगा। इस दिन को पूरे भारतवर्ष में भगवान शिव के उपासक बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं।

हिन्दू धर्म के दो मार्ग दक्षिण और वाम मार्ग में भैरव की उपासना वाममार्गी करते हैं। भैरव का अर्थ होता है। जिसका रव अर्थात् शब्द भीषण हो और जो जो देखने में भयंकर हो। इसके अलावा घोर विनाश करने वाला उग्रदेव। भैरव का एक दूसरा अर्थ है। जो भय से मुक्त करे वह भैरव। जगदम्बा अम्बा के दो अनुचर है। पहले हनुमानजी और दूसरा काल भैरव।

भैरव का अर्थ होता है। भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है। कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। भैरव एक पदवी है।

भैरव को भगवान् शिव के अन्य अनुचर, जैसे भूत-प्रेत, पिशाच आदि का अधिपति माना गया है। इनकी उत्पत्ति भगवती महामाया की कृपा से हुई है। भैरव को मानने वाले दो संप्रदाय में विभक्त हैं। पहला काल भैरव और दूसरा बटुक भैरव। भैरव काशी और उज्जैन के द्वारपाल हैं। उज्जैन में काल भैरव की जाग्रत प्रतीमा है। जो मदीरापान करती है। इनके अतिरिक्त कुमाऊ मंडल में नैनीताल के निकट घोड़ाखाल में बटुक भैरव का मंदिर हैं।जिन्हें गोलू देवता के नाम से जाना जाता हैं।

मुख्य रूप से आठ भैरव माने गए हैं।- 1.असितांग भैरव, 2. रुद्र भैरव, 3. चंद्र भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाली भैरव, 7. भीषण भैरव और 8. संहार भैरव।

हिन्दू धर्म में भैरव को विशाल आकार के काले शारीरक वर्ण वाले, हाथ में भयानक दंड धारण किए हुए और साथ में काले कुत्ते की सवारी करते हुए वर्णन किया गया है। दक्षिण भारत में ये 'शास्ता' के नाम से तथा माहाराष्ट्र राज्य में ये 'खंडोबा' के नाम से जाने जाते हैं। तामसिक स्वाभाव वाले, ये सभी भैरव तथा भैरवी, मृत्यु या विनाश के कारक हैं। काल के प्रतिक स्वरुप, रोग-व्याधि इत्यादि के रूप में ये ही प्रकट हो, विनाश या मृत्यु की ओर ले जाते हैं।

भैरव की उत्पत्ति : - पुराणों में उल्लेख है। कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के पाँचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है।

काल भैरव : - काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोषकाल में हुआ था। शिव पुराण के अनुसार, अंधकासुर नामक दैत्य के संहार के कारण भगवान् शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। अन्य एक कथा के अनुसार एक बार जगत के सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने शिव तथा उन के गाणों की रूपसज्जा को देख कर अपमान जनक वचन कहे।

परन्तु भगवान् शिव ने उस वाचन पर कोई ध्यान नहीं दिया, परन्तु शिव के शारीर से एक प्रचंड काया का प्राकट्य हुआ तथा वो ब्रह्मा जी को मरने हेतु उद्धत हो आगे बड़ा, जिसके परिणाम स्वरूप ब्रह्मा जी अत्यंत भयभीत हो गए। अंततः शिव जी द्वारा मध्यस्थता करने के कारण वो क्रोधित तथा विकराल रूप वाला गण शांत हुआ। तदनंतर, भगवान् शिव ने उस गण को अपने आराधना स्थल काशी का द्वारपाल नियुक्त कर दिया।

बटुक भैरव : 'बटुकाख्यस्य देवस्य भैरवस्य महात्मन:। ब्रह्मा विष्णु, महेशाधैर्वन्दित दयानिधे।।'-

अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों द्वारा वंदित बटुक नाम से प्रसिद्ध इन भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदायी है। बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है। इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। उक्त सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी है। यह कार्य में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। उक्त आराधना के लिए मंत्र है- ।।ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।।

भैरव आराधना : एकमात्र भैरव की आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है। आराधना का दिन रविवार और मंगलवार नियुक्त है। पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह को भैरव पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है। उक्त माह के रविवार को बड़ा रविवार मानते हुए व्रत रखते हैं। आराधना से पूर्व जान लें कि कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएँ। जुआ, सट्टा, शराब, ब्याजखोरी, अनैतिक कृत्य आदि आदतों से दूर रहें। दाँत और आँत साफ रखें। पवित्र होकर ही सात्विक आराधना करें। अपवि‍त्रता वर्जित है।

भैरव तंत्र : -  योग में जिसे समाधि पद कहा गया है। भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष 112 विधियों का उल्लेख किया है। जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है।

लोक देवता :  - लोक जीवन में भगवान भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव आदि नामों से जाना जाता है। कई समाज के ये कुल देवता हैं। और इन्हें पूजने का प्रचलन भी भिन्न-भिन्न है। जो कि विधिवत न होकर स्थानीय परम्परा का हिस्सा है। यह भी उल्लेखनीय है। कि भगवान भैरव किसी के शरीर में नहीं आते।

पालिया महाराज : - सड़क के किनारे भैरू महाराज के नाम से ज्यादातर जो ओटले या स्थान बना रखे हैं। दरअसल वे उन मृत आत्माओं के स्थान हैं जिनकी मृत्यु उक्त स्थान पर दुर्घटना या अन्य कारणों से हो गई है। ऐसे किसी स्थान का भगवान भैरव से कोई संबंध नहीं। उक्त स्थान पर मत्था टेकना मान्य नहीं है।

भैरव चरित्र : - भैरव के चरित्र का भयावह चित्रण कर तथा घिनौनी तांत्रिक क्रियाएं कर लोगों में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भरने वाले तांत्रिकों और अन्य पूजकों को भगवान भैरव माफ करें। दरअसल भैरव वैसे नहीं है। जैसा कि उनका चित्रण किया गया है। वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं। उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है।

उनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़कर दंड के लिए प्रस्तुत करना। जैसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसके पास जासूसी ‍कुत्ता होता है। उक्त अधिकारी का जो कार्य होता है। वही भगवान भैरव का कार्य है।

भैरव मंदिर : - काशी का काल भैरव मंदिर सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है।

तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ा खाड़ का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है।

नारद पुराण में काल भैरव की पूजा के महत्व के बारे में बताया गया है। इसमें बताया गया है। कि कालभैरव की पूजा करने से मनुष्‍य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस पूजा के करने से सभी प्रकार से रोगों से मुक्ति मिलती है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र स्‍वरूप काल भैरव की पूजा की जाती है। इसके लिए सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर नित्य-क्रिया कर स्नानादि कर लें। अगर गंगाजल उपलब्ध हो सके, तो उससे शुद्धि करें। इसके बाद भैरव जयंती के व्रत का संकल्प लें। इसके बाद पितरों को याद कर उनका श्राद्ध करें। इस दिन ‘ह्रीं उन्मत्त भैरवाय नमः’ का जाप करना अत्यंत शुभ माना गया है। इस मंत्र के साथ काल भैरव की आराधना करें। इसके बाद अर्धरात्रि के समय धूप, काले तिल, दीपक, उड़द और सरसों के तेल से बाबा काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। साथ ही व्रत पूरा होने के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाना लाभकारी होगा।

रविवार अथवा मंगलवार को बटुक भैरव का दिन माना जाता हैं। इस दिन का व्रत रखने वाले भक्त संकल्प लेकर अपने नित्यादी कर्मों से निवृत होने के पश्चात विधि विधान के अनुसार भैरव की पूजा की जानी चाहिए।

इस पूजा की सामग्री में लाल कनेर एवं गुलहड़ की माला तथा पकवानों में खीर, आटे या मावे के लड्डू, बेसन के लड्डू एवं तले हुये पकवान इत्यादि का भोग लगाया जाना चाहिए।

बटुक भैरव की लाल ध्वजा होती है। जिस पर कुत्ते का चित्र बना होता है। इस दिन विशेष रूप से कुत्ते को भोजन कराना चाहिए, इस दिन खासतौर पर कुत्तों के साथ छेड़खानी करने उन्हें मारने पीटने से भैरव अप्रसन्न हो सकते हैं।

भैरव जयंती या कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा करना अति आवश्यक है। यह उनका जन्म दिन है। इस अवसर पर पूजन करने से वे प्रसन्न हो जाते है।

एक चौकी पर लाल रेशमी वस्त्र बिछा कर रोली से रंगे हुये लाल अक्षतों से अष्ट दल पुष्प बनाकर उस पर भैरव जी की प्रतिमा या फोटो को स्थापित करे उसके बाद गणेश, अम्बिका, कलश, नवग्रह, षोडष की पूजा के बाद बटुक भैरव की पूजा की जानी चाहिए।

भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव ये कुछ कुल देवताओं के रूप है। जो असल में भैरव ही है। इन्हें देश के कई हिस्सों में लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। भैरव शब्द का अर्थ होता है। भय को मिटाने वाला । इन्हें त्रिदेव की शक्तियों से युक्त माना जाता है। ये काशी के कोतवाल के नाम से भी जाने जाते है। शिव तथा पार्वती के साथ इन्हें कई स्थानों पर पूजा जाता हैं।

नाथ सम्प्रदाय में भैरव पूजा का विशेष महत्व है। जो शिवजी के अवतार भैरवनाथ को अपना आदि पुरूष मानते हैं। हिन्दू पुरानों में भैरव के लिए असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार आदि नामों का उल्लेख मिलता है।

भगवान भोले के रूद्र रूप के अवतार कहे जाने वाले भैरव बाबा को काशी का कोतवाल कहा जाता हैं। वर्ष भर में एक दिन कालाष्टमी या भैरव जयंती होता है।जिस दिन यदि भगवान भैरव की पूजा अर्चना की जाए तो वे जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। यहाँ हम कुछ सरल उपायों के बारे में बता रहे है। जिनके जरिये आप बाबा को प्रसन्न कर सकते हैं।

भैरव जयंती के दिन भगवान भैरव के नाम का दीपक सरसों के तेल से जलाए और उनकी प्रतिमा के समक्ष रखकर श्रीकाल भैरवाष्टकम् मंत्र का वाचन करें। यह मंत्र आपको मनोकामनाएं पूर्ण करेगा ।

भैरव अष्टमी के दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ‘ॐ नम: शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करें जिससे भगवान भैरव खुश हो जायेगे ।

इस दिन काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं, रोटी के साथ गुड़ दे सकते है।  अगर काला कुत्ता न मिले तो अन्य कुत्ते को भी दे सकते हैं। यह उपाय करने से भगवान शनिदेव भी प्रसन्न हो जायेगे ।

भैरव अष्टमी पर किसी भिखारी, रोगी या भूखे को भोजन, वस्त्र आदि दान करें इससे आपको खुशहाली मिलेगी.

कालाष्टमी की तिथि से लेकर आगामी चालीस दिनों तक बाबा भैरव की प्रतिमा का दर्शन करें तथा उनके चालीसा का पाठ करें।

कालाष्टमी के दिन बाबा भैरव जी की प्रतिमा पर गुलाब, चंदन, और 33 अगरबत्ती जलाएं. यह उपाय आपके सारे दुःख दर्द से छुटकारा दिलाएगा।

ॐ राम रामाय नमः

श्री राम ज्योति सदन

पंडित आशु बहुगुणा

भारतीय वैदिक ज्योतिष और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामशॅ दाता ।

मोबाइल नंबर – 9760924411

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