सप्ताह के 7 दिन के व्रत विधि सामग्री

1- सोमवार व्रत विधि -

नारद पुराण के अनुसार सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान कर शिव जी को जल चढ़ाना चाहिए तथा शिव-गौरी की पूजा करनी चाहिए । शिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए ।

इसके बाद केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए अथवा फलाहार या फलों के रस का सेवन भी कर सकते हैं।

सोमवार का व्रत साधारणतया दिन के तीसरे पहर तक होता है। यानि शाम तक रखा जाता है। सोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है। – प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत. इन सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है। सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सौलह सोमवार तीनों की कथा अलग अलग है।

अग्नि पूरण के अनुसार चित्रा नक्षत्रयुक्त सोमवार से लगातार सात व्रत करने पर व्यक्ति को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। इसके आलावा सोलह सोमवार का व्रत करने से मंवांचित वर प्राप्त होता है। सोलह सोमवार व्रत अविवाहित कन्याओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण और प्रभावशाली मन जाता है।

सोमवार व्रत का महत्व -

सोमवार का व्रत चैत्र, श्रवण, मार्गशीर्ष तथा कार्तिक मास में आरम्भ किया जाता है। श्रावण मास में सोमवार का व्रत करने का अधिक महत्त्व है। भविष्य पूरण के अनुसार चैत्र शुक्ल अष्टमी को सोमवार और आर्द्रा नक्षत्र हो, तो उस दिन से सोमवार का व्रत आरम्भ करना अति शुभकारी होता है। ग्रहण में हवन, पूजा, अर्चना व दान करने से जो पुण्य फल प्राप्त होता है।  वैसा ही फल सोमवार का व्रत करनेवाले को भी प्राप्त होता है। चैत्र मास में सोमवार का व्रत करने से गंगा-स्नान के समान, वैशाख मास के कन्यादान के समान, ज्येष्ठ मास में पुष्कर में स्नान करने के समान, आषाढ़ मास में यज्ञफल के समान, श्रवण में अश्वमेध यज्ञ के समान, भाद्रपद मास में गोदान के समान, आश्विन मास में सूर्य ग्रहण में कुरुक्षेत्र के सरोवर में स्नान करने के समान तथा कार्तिक में ज्ञानी ब्राह्मणों को दान करने के समान पुण्य प्राप्त होता है। मार्गशीर्ष में व्रत करने से स्त्री-पुरुषो को चन्द्र-ग्रहण के समय काशी में गंगा-स्नान करने के समान, माघ मास में व्रत करने से दूध व गन्ने के रस से स्नान करके ब्रह्मा जी की पूजा करने के समान तथा फाल्गुन मास में गोदान के समान पुण्यफल प्राप्त होता है।

सोमवार व्रत पूजा की सामग्री -

भांग, बेलपत्र, जल, धूप, दीप, गंगाजल, धतूरा, इत्र, चंदन, रोली, अष्टगंध, पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर, शहद)

 

2- मंगलवार व्रत विधि -

हिन्दू धर्म के अनुसार मंगलवार का दिन भगवान श्री हनुमान को समर्पित है। इस दिन मंदिरों में हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है। मंगलवार के दिन श्रद्धालु व्रत भी करते हैं।

नारद पुराण के अनुसार मंगलवार का व्रत करने से भय और चिंताओं का तो अंत होता ही है। साथ ही शनि की महादशा या साड़ेसाती से हो रही परेशानी भी खत्म हो जाती है।

मंगलवार के दिन प्रातः काल उठ कर नित्य-क्रम करके, स्वच्छ जल से स्नान करें यदि हो सके तो व्रत के दिन लाल वस्त्र पहने, लाल रंग हनुमार जी का प्रिय रंग माना जाता है। जहाँ पर पूजा करनी हो  उस स्थान को साफ करके गंगा जल से पवित्र कर लें । लाल चावलों से अष्ट दल कमल पुष्प का रेखाचित्र बनाएं. इस कमल पुष्प पर भगवान श्री हनुमान जी का प्रतिमा रखें. फिर पत्नी सहित मंगल देवता का पूजन करें।

शुद्ध मन से दोनों हाथ जोड़कर हनुमान जी का ध्यान करें एवं पूरे भक्तिभाव से हनुमान जी के सामने बैठकर ज्योति जलाने के बाद हनुमान चालीसा या सुंदर कांड का पाठ करना चाहिए। उनके इक्कीस नामों का जप करें हो इस प्रकार हैं। –

मंगल

महके

लोहिताक्ष

अंगारक

वृश्तिकर्ता

स्थिरासन

कुज

सर्व रोग हरनकर्ता

भौम

लोहित

सामगानंकृपाकर

सर्वकामार्थसाधक

पापहर्ता

धनप्रदा

भूमिपुत्र

धरात्मज

यम

सर्व कर्म फलदाता

भूमिजा

अभिनन्दन

ऋणहर्ता

इन इक्कीस नामों का जाप करते हुए हनुमान जी से सुख सौभाग्य के लिए प्रार्थना करें।-

थोडा जल हाथ में लेकर मूर्ति पर छिडके. अब लाल वस्त्र अर्पित करें, फिर लाल चन्दन, लाल रोली चढ़ाएँ. अब चार मुख वाले दीप को जला कर भगवान के पास रखें, चारों बत्तियाँ चारों दिशाओं से उज्जवल भविष्य और सुख-समृद्धि की कामना का प्रतिक होती है। लाल फूल चढ़ाएँ, लड्डुओं तथा नैवेद्य का भोग लगायें. धूप अर्पित करें. थोड़ा जल ले कर मूर्ति पर छिड़कें. शाम के समय हनुमान जी को बेसन के लड्डू का भोग लगाकर बिना नमक का भोजन खाना चाहिए। हनुमान जी को खीर का भी भोग लगाया जा सकता हैं।

मंगलवार व्रत करने से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। मान्यता है कि शनि ग्रह से होने वाली परेशानियों के निदान में भी यह व्रत बेहद कारगर साबित होता है। मंगलवार व्रत मांगलिक दोष से पीड़ित जातकों के लिए भी फायदेमंद माना जाता है।

मंगलवार का व्रत सभी स्त्री-पुरुष अपनी सामर्थ्य और सुविधानुसार रख सकते हैं। रजस्वला के दिनों में स्त्रियों का व्रत रखना निषिद्ध माना गया है। कम से कम 21 मंगलवार का व्रत किसी भी स्त्री-पुरुष द्वारा रखना चाहिए. इसके बाद मंगलवार के व्रत का उद्यापन कर सकते हैं।

मंगलवार व्रत का महत्व -

यदि किसी मनुष्य के जन्म से ही उसका मंगल नीच स्थान में हो या उसके दूषित कर्मों से मंगल भगवान क्रोधित हो जाएं तो जीवन कष्टकारी हो जाता है, तो उसकी शांति के लिए मंगलवार का व्रत किया जाता है। मंगल के प्रदायक देवता का वार है। मंगलवार। मंगल के देवता जब प्रसन्न हो जाते हैं। तो अपार धन-सम्पत्ति, राज-सुख, निरोगता, ऐश्वर्य, सौभाग्य, पुत्र-पुत्री प्रदान किया करते हैं। पवनपुत्र, केसरीनंदन, अंजनीसुत, रामभक्त हनुमान को मंगलवार के अधिदेवता है। पवनपुत्र श्री हनुमान जी की पूजा-अर्चना से सभी तरह के शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलने के साथ-साथ सभी तरह के वैभव, उच्च पदों की प्राप्ति और जीवन में सुख-सम्पत्ति तथा आरोग्य की उपलब्धि होती है।

मंगलवार व्रत पूजा की सामग्री -

चावल/अक्षत (लाल रंग से रंगे हुए), हनुमान जी की मूर्ति या चित्र, जल, धूप, दीप (चार मुख वाला), गंगाजल, लाल फूल, इत्र, लाल चंदन, लाल धान्य के बने हुये व्यंजन (यदि धान ना हो तो गेहूं या मैदे से बना हुआ मीठा व्यंजन), लड्डु, लाल वस्त्र (हनुमान जी के लिये), रोली,

 

3- बुधवार व्रत विधि -

अग्नि पुराण के अनुसार बुध-संबंधी व्रत विशाखा नक्षत्रयुक्त बुधवार को आरंभ करना चाहिए और लगातार सात बुधवार तक व्रत करना चाहिए।

मान्यतानुसार बुधवार का व्रत शुरू करने से पहले गणेश जी के साथ नवग्रहों की पूजा करनी चाहिए। व्रत के दौरान भागवत महापुराण का पाठ करना चाहिए।

बुधवार व्रत शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार से शुरू करना अच्छा माना जाता है। जिस व्यक्ति को बुधवार का व्रत करना हों । उस व्यक्ति को व्रत के दिन प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए। उठने के बाद प्रात: काल में उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए। इसके बाद नित्यक्रिया से निवृ्त होकर, स्नानादि कर शुद्ध हो जाना चाहिए। स्नान करने के बाद संपूर्ण घर को गंगा जल छिडकर शुद्ध करना चाहिए। गंगा जल ने मिलें, तो किसी पवित्र नदी का जल भी छिडका जा सकता है। इसके पश्चात घर के ईशान कोण में किसी एकांत स्थान में भगवान बुध या शंकर की मूर्ति अथवा चित्र किसी कांस्य के बर्तन में स्थापित करना चाहिए। मूर्ति या चित्र स्थापित करने के बाद धूप, बेल-पत्र, अक्षत और घी का दीपक जलाकर पूजन करना चाहिए। इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए बुधदेव की आराधना करनी चाहिए ।-

बुध त्वं बुद्धिजनको बोधद: सर्वदा नृणाम्।

तत्वावबोधं कुरुषे सोमपुत्र नमो नम:॥

पूरे दिन व्रत करने के बाद सायंकाल में भगवान बुध की एक बार फिर से पूजा करते हुए, व्रत कथा सुननी चाहिए । और आरती करनी चाहिए. सूर्यास्त होने के बाद भगवान को धूप, दीप व गुड, भात, दही का भोग लगाकर प्रसाद बांटना चाहिए, और सबसे अंत में स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करना चाहिए. व्रत करने वाले जातक को हरे रंग की माला या वस्त्रों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।

 

भगवान बुध की मूर्ति ना होने पर शंकर जी की प्रतिमा के समीप भी पूजा की जा सकती है। पूरे दिन व्रत कर शाम के समय फिर से पूजा कर एक समय भोजन करना चाहिए। सायंकाल में व्रत का समापन करने के बाद यथा शक्ति ब्राह्माणों को भोजन कराकर उन्हें दान अवश्य देना चाहिए। और व्रत करने वाले व्यक्ति को एक ही समय भोजन करना चाहिए। व्रत को मध्य में कभी नहीं छोडना चाहिए तथा व्रत की कथा के मध्य में उठकर नहीं जाना चाहिये। साथ ही प्रसाद भी अवश्य ग्रहण करना चाहिए। बुधवार व्रत में हरे रंग के वस्त्रों, फूलों और सब्जियों का दान देना चाहिए। इस दिन एक समय दही, मूंग दाल का हलवा या हरी वस्तु से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए।

बुधवार व्रत का महत्व -

बुद्धि, जुबान एवं व्यापार मनुष्य के जीवन के तीन मुख्य आधार स्तंभ हैं। जो कि बुध देव कि कृपा पर निर्भर हैं। बुधवार का व्रत करने से व्यक्ति की बुद्धि में वृ्द्धि होती है। इसके साथ ही व्यापार में सफलता प्राप्त करने के लिये भी इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है। व्यापारिक क्षेत्र की बाधाओं को दूर करने में भी यह व्रत लाभकारी रहता है। इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध अपने फल देने में असमर्थ हो, उन व्यक्तियों को यह व्रत विशेष रुप से करना चाहिए। अथवा जिनके कुण्डली में बुध अशुभ भावों का स्वामी होकर अशुभ भावों में बैठा हो, उस अवस्था में भी इस व्रत को करना कल्याणकारी रहता है।

ग्रह शांति तथा सर्व-सुखों की इच्छा रखने वालों को बुद्धवार का व्रत करना चाहिये। इस व्रत में दिन-रात में एक ही बार भोजन करना चाहिए। इस व्रत के समय हरी वस्तुओं का उपयोग करना श्रेष्ठतम है। इस व्रत के अंत में शंकर जी की पूजा, धूप, बेल-पत्र आदि से करनी चाहिए। साथ ही बुद्धवार की कथा सुनकर आरती के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिये। इस व्रत का प्रारंभ शुक्ल पक्ष के प्रथम बुद्धवार से करें। 21 व्रत रखें। बुद्धवार के व्रत से बुध ग्रह की शांति तथा धन, विद्या और व्यापार में वृद्धि होती है।

बुधवार व्रत का फल -

बुधवार का व्रत करने से व्यक्ति का जीवन में सुख-शांति और धन-धान्य से भरा रहता है। इसके अलावा लक्ष्मी जी उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

 

4- बृहस्पति व्रत विधि -

बृहस्पतिवार को जो स्त्री-पुरुष व्रत करें उनको चाहिए कि वह दिन में एक ही समय भोजन करें क्योंकि बृहस्पतेश्वर भगवान का इस दिन पूजन होता है।

भोजन पीले चने की दाल आदि का करें परन्तु नमक नहीं खाये और पीले वस्त्र पहनें, पीले ही फलों का प्रयोग करें, पीले चन्दन से पूजन करें, पूजन के बाद प्रेमपूर्वक गुरु महाराज की कथा सुननी चाहिए।

इस व्रत को करने से मन की इच्छाएं पूरी होती हैं। बृहस्पति महाराज प्रसन्न होते हैं। तथा धन, पुत्र, विद्या तथा मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। परिवार को सुख शान्ति मिलती है।  इसलिए यह व्रत सब स्त्री व पुरुषों के लिए सर्वश्रेष्ठ और अति फलदायक है। इस व्रत में केले का पूजन करना चाहिए। कथा और पूजन के समय तन, मन, कर्म, वचन से शुद्ध होकर जो इच्छा हो बृहस्पतिदेव की प्रार्थना करनी चाहिए। उनकी इच्छाओं को बृहस्पतिदेव अवश्य पूर्ण करते हैं। ऐसा मन में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए।

जल में हल्दी डालकर केले के पेड़ पर चढ़ाएँ, पूजन के बाद केले की जड़ में चने की दाल और मनुक्का चढ़ाएँ साथ ही दीपक जलाकर पेड़ की आरती उतारें ।   भगवान बृहस्पति की कथा सुननी चाहिए।

बृहस्पति व्रत का महत्व -

बृहस्पतिवार के दिन विष्णु जी की पूजा होती है। यह व्रत करने से बृहस्पति देवता प्रसन्न होते हैं। स्त्रियों के लिए यह व्रत फलदायी माना गया है। अग्निपुराण के अनुसार अनुराधा नक्षत्र युक्त गुरुवार से आरंभ करके सात गुरुवार व्रत करने से बृहस्पति ग्रह की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। इस पूजा से परिवार में सुख-शांति रहती है. जल्द विवाह के लिए भी गुरुवार का व्रत किया जाता है।

बृहस्पति व्रत पूजा की सामग्री -

विष्णु भगवान की मूर्ति, केले का पेड़, पीले फूल, चने की दाल, गुड़, मनुक्का (किशमिश), हल्दी का चूर्ण, कपूर, जल, धुप, घी का दिया ।

बृहस्पति व्रत उद्यापन विधि -

मनुष्य कोई–न-कोई मनोकामना के साथ व्रत को आरम्भ करते हैं। यदि ग्रह शान्ति के लिये बृहस्पतिवार का व्रत किया हो तो इच्छानुसार 21 या 11 या 51 बृहस्पतिवार का व्रत कर लेने के बाद इसका उद्यापन कर लेना चाहिये। यदि इच्छा हो तो दुबारा फिर से व्रत शुरु कर सकते हैं।

 

5- संतोषी माता व्रत विधि -

संतोषी माता को हिंदू धर्म में संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता के रुप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं।

संतोष हमारे जीवन में बहुत जरूरी है। संतोष ना हो तो इंसान मानसिक और शारीरिक तौर पर बेहद कमजोर हो जाता है। संतोषी मां हमें संतोष दिला हमारे जीवन में खुशियों का प्रवाह करती हैं।

माता संतोषी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है। यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है।

संतोषी माता का व्रत शुक्रवार को किया जाता है। शुक्रवार को सुर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि करके, मंदिर में जाकर (या अपने घर पर संतोषी माता का चित्र या मुर्ति रखकर) संतोषी माता की पूजा करें ।

सुख-सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है।

सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफ़ाई इत्यादि पूर्ण कर लें ।

स्नानादि के पश्चात घर में किसी सुन्दर व पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें ।

माता संतोषी के संमुख एक कलश जल भर कर रखें. कलश के ऊपर एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें ।

माता के समक्ष एक घी का दीपक जलाएं ।

माता को अक्षत, फ़ूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें ।

माता संतोषी को गुड़ व चने का भोग लगाएँ ।

संतोषी माता की जय बोलकर माता की कथा आरम्भ करें ।

संतोषी माता की व्रत कथा को सुनते अथवा दूसरों को सुनाते समय गुड़ और भूने हुए चने हाथ में रखें। व्रत्कथा समाप्त होने पर “संतोषी माता की जय” बोलकर उठें और हाथ में लिए हुए गुड़ और चने गाय को खिलाएँ। कलश पर रखे गए पात्र के गुड़ और चने को प्रसाद के रूप में उपस्थित सभी स्त्री-पुरुषों और बच्चों में बाँट दें। कलश के जल को घर के कोने-कोने में छिड़ककर घर को पवित्र करें। शेष बचे हुए जल को तुलसी के पौधे में डाल दें। व्रत करने वाले को श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न मन से व्रत करना चाहिए ।

विशेष: इस दिन व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को ना ही खट्टी चीजें हाथ लगानी चाहिए और ना ही खानी चाहिए ।

संतोषी माता व्रत का महत्व -

सृष्टि के सभी प्राणियों का कल्याण करने वाले भगवान शंकर के पुत्र श्री गणेश महाराज और माता ऋद्धि-सिद्धि की पुत्री संतोषी माता विश्व के सभी उपासक स्त्री-पुरुषों का कल्याणकरती है। अपना व्रत करने तथा कथा सुननेवाले स्त्री-पुरुषों के धन-सम्पत्ति से भण्डार भरकर संतोषी माता उन्हें पृथ्वीलोक के सबसे बड़े सुख यानी “संतोष” धन से आनंदित करती हैं। व्यवसाय में दिन दूना और रात चौगुना लाभ होता है। शोक-विपत्ति नष्ट होती है। और मनुष्य चिंता मुक्त होकर जीवन-यापन करता है। संतोषी माता का विधिवत् व्रत करने, गुड़ और चने का प्रसाद ग्रहण करने से कन्याओं को सुयोग्य वर मिलता है। स्त्रियाँ सदा सुहागन रहती हैं। नि:संतानों को पुत्र की प्राप्ति होती है। जीवन में सभी मनोकामनाएँ संतोषी माता के व्रत से पूरी होती है।

संतोषी माता व्रत पूजा की सामग्री -

घी का दिया, कलश पात्र, चना, गुड़, संतोषी माता की मूर्ति अथवा चित्र, धूप ।

संतोषी माता व्रत उद्यापन विधि -

संतोषी माता की अनुकम्पा से जब व्रत करने वाले स्त्री-और पुरुष की मनोकामना पूरी हो जाए तो इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन में ढ़ाई सेर गेहूँ के आटे की पूड़ी, हलवा, खीर व चने का साग बनाएँ। किसी भी वस्तु में खटाई का प्रयोग ना करें। उद्यापन के दिन विधिवत् घी का दीपक जलाकर संतोषी माता की पूजा करें। फिर आरती के बाद सबको गुड़ और चने का प्रसाद बाँटे। कलश में भरे जल को घर में छिड़ककर घर को पवित्र कर लें । उसके बाद घर-परिवार के लड़के ना मिले तो आसपास के लड़कों को बुलाकर भोजन कराएँ। ब्राह्मण के लड़कों को भी भोजन करा सकते हैं। भोजन के बाद दक्षिणा में लड़कों को रूपये –पैसे ना देकर फल देना चाहिए। लेकिन फल खट्टा नहीं होना चाहिए। व्रत करने वाला स्त्री-पुरुष को दिन में एक बार ही भोजन करना चाहिए।

 

6- शनिवार व्रत विधि -

शनिवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं। परंतु श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारम्भ करना अति मंगलकारी है।

इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि सहित पूजन करनी चाहिए। शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवन्ती का फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए।

शनि के व्रत में श्रद्धा–भक्ति तथा पूर्ण समर्पण भाव सहित स्वयं के कष्ट निवारण का आग्रह मन ही मन करना चाहिए। व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को चाहिए कि शनिवार को प्रात:काल स्नान कर सर्वप्रथम देव, ऋषि तथा पितृ तर्पण करें। पीपल अथवा शमी वृक्ष के नीचे भक्तिपूर्वक वेदी बनाकर उसे गौ के गोबर से लीप देना चाहिए।

इसके पश्चात् लौह निर्मित शनि की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करा कर, काले चावलों से निर्मित, चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें। (यदि घर पर नहीं कर सकते तो शनि मंदिर मे जाकर पुजा करें।) काले रंग के गंध, पुष्प, धूप, दीप, अष्टांग धूप तथा नैवैद्य आदि से भक्तिपूर्वक शनि देवता का पूजन करें। पूजन के बाद दिये गये नीचे लिखे दस नामों का उच्चारण करें । -

कोणस्थ

पिंगला

बभ्रु

कृष्णे

रौद्रातको

यम

सौरि

शनैश्चर

मंद

पिप्पला

इसके पश्चात् "ऊँ शनिश्चरायै नम:" मंत्र का उच्चारण करते हुए ।

पीपल अथवा शमी वृक्ष को कच्चे सूत के धागे से सात बार लपेट कर सात बार परिक्रमा करे। इसके पश्चात् वृक्ष का पूजन करे। यहा पूजा उपासना सूर्योदय से पूर्व करनी चाहिए। पूजन के पश्चात् शनिदेव के व्रत कथा का भक्तिपूर्वक श्रवण करना चाहिए। कथा वाचक को श्रद्धानुसार यथाशक्ति दान देना चाहिए। तिल, जौ, गुड़ , उड़द, लोहा, तेल तथा काले वस्त्र का दान करना चाहिए। शनि देवता की आरती, भजन, पूजन कर प्रसाद वितरित करना चाहिए।

शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए। शनि महाराज की पूजा के पश्चात राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए।

इसी प्रकार नियम पूर्वक तैंतीस शनिवार तक इस व्रत का श्रद्धापूर्वक पालन करे। यदि किसी कारण वस ३३ शनिवार नही कर सकते तो कम से कम ७ शनिवार व्रत करे। जो श्रद्धालुजन इस प्रकार नियम पुर्वक शनि देवता का व्रत करते है उनके समस्त कष्टों तथा दु:ख –दारिद्रय का नाश होकर उन्हें उत्तम सुख सौभाग्य तथा धन-धान्य सहित पुत्र-पौत्रादि होकर दीर्घायु प्राप्त होती है।

शनिदेव के व्रत विधान का भक्ति पूर्वक पालन करने से शनिदेव का कोप शांत होकर इनकी कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही राहु और केतु के दोष निवारण के लिए भी शनि देवता का व्रत विधान पूर्ण उपयोगी तथा उत्तम फलदायी है।

शनिवार व्रत का महत्व -

अग्नि पुराण के अनुसार शनि ग्रह से मुक्ति के लिए "मूल" नक्षत्र युक्त शनिवार से आरंभ करके शनिदेव की पूजा करनी चाहिए और व्रत करना चाहिए। लौकिक जीवन में शनि ग्रह के अनिष्टों, अरिष्टों की शांति के लिए, सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए शनि देवता का व्रत एक उत्तम साधन है। श्रद्धा भक्ति सहित विधिपूर्वक शनि महाराज का व्रत उत्तम फल्दायी है। इसके द्वारा सांसारिक दुख्हों का नाश होता है। शनि ग्रह जनित समस्त उपद्रवों, रोग, शोक का निवारण होता है। दीर्घायु, धन, वैभव, सुख, समृद्धि की प्राप्ति होती है। संसार के समस्त उद्योग धंधे, व्यवसाय, कल-कारखाने, मशीनरी सामान, धातु उद्योग, लोहा, समस्त लौह वस्तु, सारे तिल, काले वर्ण के सम्स्त पदार्थ, जीव-जंतू, जानवर, अकाल, अकाल मृत्यु, रोगभय, अर्थ हाँइ, चोर भय, राज्य भय, कारागार भय, पुलिस भय, गुर्दे के रोग, जुआ, सट्टा, लाटरी, दैवी विपत्ति, आकस्मिक हानि सहित समस्त क्रूर तथा अपराधिक कर्मों का स्वामी ग्रह शनिदेव को ही माना गया है। समस्त भय, कष्ट और लौकिक विपत्तियों का स्वामी ग्रह शनिदेव ही है। प्राय:सभी स्त्री-पुरुषों पर जीवन में तीन बार आयुभेद से जन्म कुंडली के ग्रह चक्रों के अनुसार शनि देवता का प्रभाव होता है।

शनि ग्रह के कष्टों के निवारण का एकमात्र उपाय शनि देवता की आराधना तथा व्रत ही है। जिसे सभी स्त्री-पुरुष तथा बच्चे भी कर सकते हैं। किसी भी शनिवार से शनि देवता का व्रत कर सकते हैं। विशेष रूप से श्रावण मास के किसी शनिवार से यह व्रत प्रारम्भ करना अति उत्तम तथा शीघ्र फलदायी होता है।

शनि पक्षरहित होकर अगर पाप कर्म की सजा देते हैं। तो उत्तम कर्म करने वाले मनुष्य को हर प्रकार की सुख सुविधा एवं वैभव भी प्रदान करते हैं। शनि देव की जो भक्ति पूर्वक व्रतोपासना करते हैं। वह पाप की ओर जाने से बच जाते हैं जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता ।

शनिवार व्रत पूजा की सामग्री -

काले रंग के गंध, पुष्प, धूप, दीप, अष्टांग धूप तथा नैवैद्य

ध्यान दें - शनिवार को लोहा या लोहे की कोई वस्तु, नमक, लकड़ी या लकड़ी का कोई भी सामान, सरसों का तेल, काले रंग के कपड़े या जूते, काले तिल या काली मिर्च, माचिस, कोई भी ज्वलनशील वस्तु, गैस, लाइटर इत्यादि ना खरीदें ।

 

7- रविवार व्रत विधि -

सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये रविवार का व्रत सर्वश्रेष्ठ है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है। सुबह उठकर नित्य क्रिया, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सुर्य भगवान को जल चढ़ायें और रविवार की कथा सुने या सुनायें ।

पूरे दिन व्रत रखें, सुर्य अस्त होने के पहले हीं भोजन तथा फलाहार कर लें। पूजा समाप्ति के बाद रात को भगवान सूर्य को याद करते हुए तेल रहित (बिना नमक के) भोजन करना चाहिए। निराहार रहने पर अगले दिन सुर्य को जल देने के बाद हीं भोजन करें। पांच वर्ष तक इसी प्रकार रविवार व्रत करने के बाद इस का उद्यापन करना चाहिए। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति जीवन के सभी सुखों को भोग कर मृत्यु के बाद सूर्यलोक जाता है।

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष से सूर्यनारायण का व्रत प्रारम्भ होता है। शुक्ल पक्ष में जिस दिन पहला रविवार पड़े, उसी दिन से व्रत आरम्भ करना चाहिए। व्रतकर्ता को दिनभर निराहार रहकर सायंकाल सूर्यास्त होने से पूर्व, सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिए। पूजन में कंडेल (कनइल) का फूल, लाल चंदन, लाल वस्त्र, गुलाल और गुड़ आदि वस्तुएँ लेनी चाहिए। घर को स्वच्छ जल से साफकर, पूजाघर या पूजास्थान में ताम्रनिर्मित भगवान सूर्य की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर पूजन करे । पूजन के अंत में घी मिले गुड़ से हवन करें। व्रत के दिन नमक, खट्टा भोजन या खट्टाई, तेल आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार निरंतर पाँच वर्षों तक व्रत रहकर सूर्य की पूजा करनी चाहिये। व्रत्काल में प्रति वर्ष एक-एक धान्य / अनाज का परित्याग करे, जैसे- प्रथम वर्ष- जौ, द्वीतिय वर्ष में गेहूँ, तृतीय में चना, चतुर्थ में तिल और पंचम मे उड़द ग्रहण नहीं करना चाहिए। व्रत की समाप्ति पर ये हीं परित्याग अनाज 12 सेर (किलो) के परिमाण में ब्राह्मण को दान दें। अंत में, 15 ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें वस्त्र तथा दक्षिणा दें।

रविवार व्रत का महत्व -

इस दिन भगवान सूर्यदेव की पूजा का विधान है। सुर्य-व्रत विधानपूर्वक करने से मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है। नारद पुराण में रविवार व्रत को सम्पूर्ण पापों को नाश करने वाला, आरोग्यदायक और अत्यधिक शुभ फल देने वाला माना जाता है। भगवान सूर्यदेव के प्रकोप से मनुष्य नाना प्रकार के रोगों से ग्रस्त एवं पीड़ीत होता है। अत: प्रत्येक नर-नारी को रविवार के दिन सूर्यदेव की पूजा एवं प्रतिदिन प्रात:काल सूर्य-नमस्कार करना चाहिए। हमारे देश के सम्पूर्ण उत्तर-भारत में कार्तिक शुक्ल पक्ष के छठी तिथि को “सूर्यषष्ठी” या “ छठ” व्रत का पर्व मनाया जाता है। इस दिन अनेक नर-नारियाँ व्रत रहकर अर्घ्य द्वारा सूर्य की पूजा करती है।

रविवार व्रत पूजा की सामग्री -

कंडेल (कनइल) का फूल, लाल चंदन, लाल वस्त्र, गुलाल और गुड़

सूर्य-पूजा की मासिक विधि -

चैत्र- इस महीने में पूड़ी, हलुवा आदि का नैवैद्य, मिष्ठान्न का दान एवं खीर का भोजन करना उत्तम है।

वैशाख- इस मास मे उड़द से बनी हुई इमरती चढ़ाना और दान देना चाहिए। भोजन में दूध का सेवन सर्वोत्तम है।

ज्येष्ठ- जेठ मास में दही, सत्तु आदि का अर्पण एवं दही, चावल आदि का दान तथा भोजन करना चाहिए।

आषाढ़- इस महीने में दही-चिड्वा का नैवैद्य, फलों का दान एवं दही-चिवड़ा भोजन करना चाहिए।

श्रावण – सावन के महीने में लड्डु-पूड़ी का भोग सूर्यदेव को लगाना चाहिए। ब्राह्मणों को लड्डु का दान एवं भोजन में मालपुआ श्रेष्ठ है।

भाद्रपद – इस महीने में घी, चावल, चीनी आदि का नैवैद्य, गुलगुला का दान एवं भोजन करना उचित है।

आश्विन- इस मास में रविवार के दिन चने से बने लड्डु का भोग लगाना, खीर का दान एवं लड्डु ही भोजन में ग्रहण करना चाहिए ।

कार्तिक – इस महीने में अनेक पकवानों का नैवैद्य, गोदान एवं कलाकंद का सेवन कना श्रेष्ठ माना गया है।

मार्गशीर्ष – अगहन मास के रविवार के दिन मीठी खिचड़ी (मीठी भात ) का भोग लगाना, गुड, तिल आदि का दान करना एवं तिल के लड्डु का भोजन करना सर्वश्रेष्ठ है।

पौष – पौष के महीने में चावल और मूँग चढ़ाकर सूर्यदेव की पूजा करे। दान में घी एवं भोजन में खीर पूड़ी लेना चाहिए।

माघ – इस महीने में चूरमा का भोग, मलाई, रबड़ी आदि का दान एवं उसी पदार्थ का भोजन भी करे।

फाल्गुन – इस महीने में गुझिया, मठरी आदि का भोग, खाजा आदि मिठाई का दान एवं बूंदी के लड्डु का भोजन करना उचित है।

दिये हुए विधि से जो लोग सूर्यदेव की पूजा करते है, उन लोगों पर भगवान् सूर्यदेव की महान कृपा होती है।

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411