स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम्

शक्ति समृद्धि और विश्व को आकर्षित करने हेतु स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम्,

--स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम्--

हम देखते हैं कि जीवन शक्ति और समृध्दि बिना किसी भी मानव का जीवन पुष्प विहीन वृक्ष की भांति ही होता है वह साधन विहीन होकर दर दर भटकता है और जीवन की परेशानियों में फंसा रहता है एकमात्र भैरव शक्ति की उपासना करने वाला साधक ही आसक्ति रहित होकर जीवन सम्पदा का अर्जन और संचयन करने की शक्ति प्राप्त करता है

स्वर्णाकर्षण भैरव की साधना जीवन के समस्त इच्छाओं को पूर्ण कर अपने उपासक को आत्मिक संतोष और समृद्धि प्रदान करती है

क्योंकि भैरव ही काल की गति को समझकर तदनुसार क्रिया करने की मति अपने साधक को प्रदान करते हैं   मानव शरीर जो स्वयं ही पूर्ण ब्रह्मशक्ति का केंद्र है सम्पूर्ण ऊर्जा लक्ष्मी तत्व धारण किये हुए हैं ,वह भी काम ,क्रोध मद ,लोभ , मोह ,माया, अहंकार और बुरी नजर जैसी अदृश्य नकारात्मक शक्तियों के कारण अपने अंदर बैठे परमात्मा का साक्षात्कार करने में असमर्थ है

भैरव शक्ति वह परम अग्नि तत्व हैं जो इस कषाय कल्मषों को जलाकर मानव को उसके अंदर बैठे ब्रह्म तत्व का साक्षात्कार करवाकर  स्वर्ण अर्थात लक्ष्मी तत्व की प्राप्ति करवाते हैं

स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र की सिद्धि  प्राप्त करने वाला साधक मारण ,मोहन ,वशीकरण ,उच्चाटन जैसी विद्याओं का ज्ञाता हो जाता है

स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र के पाठ करने वाले साधक के मुख मंडल पर स्वर्ण कांति की आभा और अलौकिक दिव्यता दृष्टिगोचर होती है ।उसकी वाणी में प्रभाव उत्पन्न हो जाता है लोग उसके ओर सहज ही आकर्षित होते जाते हैं जिससे उसके कार्य सहज ही सिद्ध भी हो जाते हैं

अतः जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए स्वर्णाकर्षण भैरव की सिद्धि गुरु आज्ञा से अवश्य प्राप्त करनी चाहिए

स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम्

विनियोग : -

अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरवस्तोत्रं मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः,

अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षणभैरवदेवता,

ह्रीं बीजं, क्लीं शक्तिः, सः कीलकं,

मम दारिद्र्यनाशार्थे पाठे विनियोगः  ।।

 

ऋष्यादिन्यासः -

ब्रह्मर्षये नमः शिरसि

अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे

स्वर्णाकर्षणभैरवाय नमः हृदि

ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये

क्लीं शक्तये नमः पादयोः

सः कीलकाय नमः नाभौ

विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे

ह्रां ह्रीं ह्रूं इति कर षडङ्गन्यासः

 

कर-हृदयादिन्यासः -

ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः

ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा

ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्

ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम्

ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्रत्रयाय वौषट्

ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट

 

अथ ध्यानम् -

पारिजातद्रुमान्तारे स्थिते माणिक्यमण्डपे

सिंहासनगतं वन्दे भैरवं स्वर्णदायकम्

 

गाङ्गेयपात्रं डमरूं त्रिशूलं वरं करैः सन्दधतं त्रिनेत्रं

देव्या युतं तप्तसुवर्णवर्णं स्वर्णाकृषं भैरवमाश्रयामि

 

मुद्रा - कमण्डलुडमरुत्रिशूलवरमुद्रा दर्शयेत्

मन्त्रः -

ऐं ह्रीं श्रीं ऐं श्रीं आपदुद्धारणाय ह्रां ह्रीं ह्रूं

अजामलवद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षणभैरवाय

मम दारिद्र्यविद्वेषणाय महाभैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐम्

 

अथ स्तोत्रम् -

नमस्ते भैरवेशाय ब्रह्मविष्णुशिवात्मने

नमस्त्रैलोक्यवन्द्याय वरदाय वरात्मने 1

 

रत्नसिंहासनस्थाय दिव्याभरणशोभिने

दिव्यमाल्यविभूषाय नमस्ते दिव्यमूर्तये 2

 

नमस्तेऽनेकहस्ताय अनेकशिरसे नमः

नमस्तेऽनेकनेत्राय अनेकविभवे नमः 3

 

नमस्तेऽनेककण्ठाय अनेकांसाय ते नमः

नमस्तेऽनेकपार्श्वाय नमस्ते दिव्यतेजसे 4

 

अनेकायुधयुक्ताय अनेकसुरसेविने

अनेकगुणयुक्ताय महादेवाय ते नमः 5

 

नमो दारिद्र्यकालाय महासम्पद्प्रदायिने

श्रीभैरवीसंयुक्ताय त्रिलोकेशाय ते नमः 6

 

दिगम्बर नमस्तुभ्यं दिव्याङ्गाय नमो नमः

नमोऽस्तु दैत्यकालाय पापकालाय ते नमः 7

 

सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं नमस्ते दिव्यचक्षुषे

अजिताय नमस्तुभ्यं जितमित्राय ते नमः 8

 

नमस्ते रुद्ररूपाय महावीराय ते नमः

नमोऽस्त्त्वनन्तवीर्याय महाघोराय ते नमः 9

 

नमस्ते घोरघोराय विश्वघोराय ते नमः

नमः उग्राय शान्ताय भक्तानां शान्तिदायिने 10

 

गुरवे सर्वलोकानां नमः प्रणवरूपिणे

नमस्ते वाग्भवाख्याय दीर्घकामाय ते नमः 11

 

नमस्ते कामराजाय योषितकामाय ते नमः

दीर्घमायास्वरूपाय महामायाय ते नमः 12

 

सृष्टिमायास्वरूपाय निसर्गसमयाय ते

सुरलोकसुपूज्याय आपदुद्धारणाय 13

 

नमो नमो भैरवाय महादारिद्र्यनाशिने

उन्मूलने कर्मठाय अलक्ष्म्या: सर्वदा नमः 14

 

नमो अजामलवद्धाय नमो लोकेश्वराय ते

स्वर्णाकर्षणशीलाय भैरवाय नमो नमः 15 ।।

 

मम दारिद्र्यविद्वेषणाय लक्ष्याय ते  नमः

नमो लोकत्रयेशाय स्वानन्दनिहिताय ते 16

 

नमः श्रीबीजरूपाय सर्वकामप्रदायिने

नमो महाभैरवाय श्रीभैरव नमो नमः 17

 

धनाध्यक्ष नमस्तुभ्यं शरण्याय नमो नमः

नमः प्रसन्न आदिदेवाय ते नमः 18

 

नमस्ते मन्त्ररूपाय नमस्ते मन्त्ररूपिणे

नमस्ते स्वर्णरूपाय सुवर्णाय नमो नमः 19

 

नमः सुवर्णवर्णाय महापुण्याय ते नमः

नमः शुद्धाय बुद्धाय नमः संसारतारिणे 20

 

नमो देवाय गुह्याय प्रचलाय नमो नमः

नमस्ते बालरूपाय परेषां बलनाशिने 21

 

नमस्ते स्वर्ण संस्थाय नमो भूतलवासिने

नमः पातालवासाय अनाधाराय ते नमः 22 ।।

 

aमो नमस्ते शान्ताय अनन्ताय नमो नमः

द्विभुजाय नमस्तुभ्यं भुजत्रयसुशोभिने 23

 

नमोऽनमादि सिद्धाय स्वर्णहस्ताय ते नमः

पूर्णचन्द्रप्रतीकाश वदनाम्भोजशोभिने 24

 

नमस्तेऽस्तुस्वरूपाय स्वर्णालङ्कारशोभिने

नमः स्वर्णाकर्षणाय स्वर्णाभाय नमो नमः 25

 

नमस्ते स्वर्णकण्ठाय स्वर्णाभाम्बरधारिणे

स्वर्णसिंहानस्थाय स्वर्णपादाय ते नमः 26

 

नमः स्वर्णभपादाय स्वर्णकाञ्चीसुशोभिने

नमस्ते स्वर्णजङ्घाय भक्तकामदुधात्मने 27

 

नमस्ते स्वर्णभक्ताय कल्पवृक्षस्वरूपिणे

चिन्तामणिस्वरूपाय नमो ब्रह्मादिसेविने 28

 

कल्पद्रुमाघः संस्थाय बहुस्वर्णप्रदायिने

नमो हेमाकर्षणाय भैरवाय नमो नमः 29

 

स्तवेनानेन सन्तुष्टो भव लोकेश भैरव

पश्य मां करुणादृष्ट्या शरणागतवत्सल 30

 

श्रीमहाभैरवस्येदं स्तोत्रमुक्तं सुदुर्लभम्

मन्त्रात्मकं महापुण्यं सर्वेश्वर्यप्रदायकम् 31

 

यः पठेन्नित्यमेकाग्रं पातकै प्रमुच्यते

लभते महतीं लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् 32

 

चिन्तामणिमवाप्नोति धेनु कल्पतरुं ध्रुवम्

स्वर्णराशिमवाप्नोति शीघ्नमेव संशयः 33

 

त्रिसन्ध्यं यः पठेत्स्तोत्रं दशावृत्या नरोत्तमः

स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य साक्षाद्भूत्वा जगद्गुरुः 34 ।।

 

स्वर्णराशि ददात्यस्यै तत्क्षणं नात्र संशयः

अष्टावृत्या पठेत् यस्तु सन्ध्यायां वा नरोत्तमम् 35

 

लभते सकलान् कामान् सप्ताहान्नात्र संशयः

सर्वदः यः पठेस्तोत्रं भैरवस्य महात्मनाः 36

 

लोकत्रयं वशीकुर्यादचलां लक्ष्मीमवाप्नुयात्

नभयं विद्यते क्वापि विषभूतादि सम्भवम् 37

 

म्रियते शत्रवस्तस्य अलक्ष्मी नाशमाप्नुयात्

अक्षयं लभते सौख्यं सर्वदा मानवोत्तमः 38

 

अष्ट पञ्चाद्वर्णाढ्यो मन्त्रराजः प्रकीर्तितः

दारिद्र्यदुःखशमनः स्वर्णाकर्षण कारकः 39

 

एन सञ्चयेद्धीमान् स्तोत्रं वा प्रपठेत् सदा

महा भैरवसायुज्यं सोऽन्तकाले लभेद् ध्रुवम् 40

 

इति रुद्रयामलतन्त्रे ईश्वरदत्तात्रेयसंवादे

          स्वर्णाकर्षणभैरवस्तोत्रं सम्पूर्णम्

 

नोट:- भैरव उपासना-साधना किसी योग्य गुरु से परामर्श लेने के पश्चात ही करनी चाहिए,अन्यथा किसी भी तरह की हानि के लिए आप स्वयं जिम्मेवार होंगे।

राम रामाय नमः

श्री राम ज्योति सदन

पंडित आशु बहुगुणा

भारतीय वैदिक ज्योतिष और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामशॅ दाता

मोबाइल नंबर - 9760924411

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