श्री उन्मत भैरव ने कहा की मैं अत्यन्त गोपनिय
श्री उन्मत भैरव ने कहा की मैं अत्यन्त गोपनिय उत्तम मन्त्र कह रहा हुँ!
जिसके द्वारा देवता एवं भूतगणों का भी मारण कार्य सिद्ध हो जाता है!!
”ऊँ वज्र-ज्वालेन हन-हन सर्वभूतान हूँ फट्”-
इस मन्त्र के चैतन्य होने मात्र से क्रोध भैरव के रोम कूपोंसे वज्रज्वाला जन्म लेती है और प्रमथादि भूतगण विशुक होते है !!
इससे सभी देव्गतागण भी यम-शासन के अधिन हो जाते है!!
क्रोधभैरव के उन्मत्त भैरवी से इस प्रकार कहने पर रुद्रादि देवगण विस्मित हो कर क्रोध भैरव से कहने लगे भैरव!
इस समय आप इनलोगो का निग्रह मतकिजिये! सभी भूत तथा भूतनी आपके वाक्य का प्रतिपालन करेगें!
”ऊँ वज्रमुखे सर सर फट्”-
यह विग्यानाकर्षिणि नामक मन्त्र है! इस मन्त्र के उच्चारण करने से वज्र-भय का निवारण होता है !यही मृ्त संजीवनी विद्ध्या मन्त्र है,
इसी मन्त्र के द्वारा मृ्त व्यक्ति जीवित होता है !!,इसी मन्त्र के प्रभाव के द्वाराभूतादी विनष्ट होते है!!
इसके पश्चात भूतनाथ,उन्मत्त भैरव का पाद ग्रहण एवं नमस्कार कर के कहने लगे,अप परित्राता षडैश्वर्यशालि पुरुष प्रधान है! जम्बु द्विपमें,कलियुग मे समस्त प्राणि वर्गो को तथा मुझे परित्राण किजिये !!
श्री उन्मत्त भैरव कहते है-
रस,रसायन,सुखभोग,सुवर्ण,विदूरपर्वतजात मणि,मुक्ता,गन्ध द्रव्य,वस्त्र,खाने की वस्तुए,पुष्प मोक्ष आदी अभीष्ट वर मै उच्चारण करने वालो को प्रदान करता हु!
क्रोध भैरव मन्त्र का जो जप करते है,हम उन लोगो के भृ्त्य एवं भूतनी गण दास हो जाते है !!जरा,अनिष्ट तथा पाप से सम्भुत भय,राजा एवं तस्कर भय,भूत,प्रेत,पिशाच आदि सभि अशुभ भय विनिष्ट हो जाते है!
यदि भूतनी,यक्षनी,पिशाचादि साधकों के प्रति सिद्धि प्रदान नहीं करते हैं,तब निश्र्चय ही तत्क्षण उन लोगों का मस्तक क्रोधवज्र के द्वार स्फ़ाटित करते हैं उन्मत्त भैरव!! अथवा अग्नि मेांथवा महाघोर नरक में निक्षेप करते है!!
ऊँ संघट्ट-संघट्ट मुतान जीवय स्वाहा”-इस मन्त्र का उच्चारण करने से भूतादि समस्त देवता मूरछित हो जाते हैऔर जब उठते है तो अतम्भित,कम्पित एवं विह्वल होते है!!
इसके पश्चात महादेव,क्रोध भैरव से बार-बार कहने लगे! वज्रपाणि क्रोध भैरव आप के अलावा दुसरा त्राण कर्ता और कोई भी नही है!!
इसके पश्चात वज्रपाणि क्रोध भैरव,महादेव जी कहने लगे,
भयभीत मत होना,तुम्हारा तथा अन्य सभी देवतागणों का तथा जम्बुद्विपस्थ मनुष्यों के हितों के लिये कलियुग में भूतनिग्रह करुँगा!
प्रमथ गण,अपसरा,नागिणी,यक्षिणि,आदि अंगणागण क्रोधभैरव को प्रनाम करके पुन: कहने लगे-अब हम लोगों की रक्षा किजिए!!
इस्के बाद कुलिशपाणि लोमहर्षण क्रोध भैरव कहने लगे- सुन्दरि! त्रिपुरे! भद्रकालि! भैरवचण्डिके !तुम सभी मेरे जापक नरगणों की उपासना करो तथा उन सब को कान्चन,अभिलशित भक्ष्य द्रव्य वस्तु आदि प्रदान करो!!
यक्षिणि,अप्स्रा,देवकन्या तथा नागकन्याए कहने लगी-हे देवेदेवेश!
हम सभी आपके उपासक वर्गों की उपासना करेगे एवं उन सभी को प्रार्थित धन भी प्रदान करेगे !
हे प्रभु यदि हम सभी आपके वचन की अन्यथा करते है तो कुल समेत हम लोग नष्ट हो जाये! जो लोग क्रोध भैरव मंत्र की उपास्ना करते है !
हम सब उनसभी के दासि हो कर सभी कार्य साधन करेगें!!
हम यदि आपके वचन का अन्यथा आचरण करते है ,तो आप हम सभी के मस्तक क्रोध व्ज्र के द्वारा सतधा विदिर्ण कर दे !! अथवा हम सब को नरक में निपातित कर दे !
अस्निधर क्रोध भैरव देवगणौ के प्रति कहने लगे,तुम सब साधु,नायिका गण जो सब मनुषय क्रोध भैरव का मन्त्र जप करते है तुम सब उन सबो की अपासना करो एवं निलकांतादी मणि तथा कनक मौक्तिक इत्यादि द्रवय सभि द्रव्य अन सभी को अर्पण करो!
यक्षि गण “इसि प्रकार हो कहकर सुरासुरादिध्वंशकारी क्रोध भैरव को नमस्कार करके उनके आदेश मस्तक में धारण करके स्व स्थान में प्रस्थान करने लगे!!
इसप्रकार कलिकाल मे जम्बु द्विप में नायिका गण अष्ट सिद्धि प्रदायनी हुये है!!
जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411