धनदायक श्री कुबेर उपासना रहस्यमयी साधना

धनदायक श्री कुबेर उपासना रहस्यमयी साधना

कुबेर धन के अधिपति यानि धन के राजा हैं। पृथ्वीलोक की समस्त धन संपदा का एकमात्र उन्हें ही स्वामी बनाया गया है। कुबेर भगवान शिव के परमप्रिय सेवक भी हैं। धन के अधिपति होने के कारण इन्हे मंत्र साधना द्वारा प्रसन्न करने का विधान बताया गया है।

कुबेर साधना रहस्य

एक वार महा ऋषि पुलस्य के सिर पे बहुत बड़ी विपता आ पढ़ी और उन को उस समय में दरिद्रता का सहमना करना पड़ा जिस के चलते उस राज्य की प्रजा काल और सूखे की चपेट में या गई और धन न होने की वजह से चारो तरफ लोग भूख और गरीबी से बेहाल हो उठे तब महा ऋषि पुलस्य ने इस से उबरने के लिए कुबेर की सहायता लेनी चाही क्यू के वोह जानते थे के कुबेर के बिना धन नहीं आ सकता मगर दैवी नियमो के चलते कुबेर सीधे धन नहीं दे सकते थे ! इसलिए महा ऋषि पुलस्य ने गणपती भगवान की साधना की तो गणपती ब्पा ने कुबेर को हुकम दिया के महा ऋषि की सहायता करे तो कुबेर ने कहा के अगर आप कुबेर यंत्र का स्थापन कर मेरे नो रूप में से किसी की भी साधना करेगे तो धन की बरसात होने लगेगी इस लिए महा ऋषि ने गणपती भगवान से प्रार्थना की और गणपती भगवान ने उन्हे कुबेर के 9 दिव्य रूप के मंत्र दिये महा ऋषि ने कुबेर यंत्र स्थापन कर कुबेर के 9 दिव्य रूप की साधना संपन की और प्रजा को दरिद्रता से उबारा साधना संपन होने से धन की बरसात होने लगी और चारो तरफ खुशहाली फ़ेल गई ! इन 9 दिव्य रूपो की साधना आज भी हमारे शास्त्रो में है। और जो एक बार इन साधनयों को कर लेता है। उस के जीवन में कोई अभाव नहीं रहता ।

क्या है। यह कुबेर के 9 रूप -

1- उग्र कुबेर — यह कुबेर धन तो देते ही है। साथ में आपके सभी प्रकार के शत्रुओ का भी हनन कर देते है !

2- पुष्प कुबेर –यह धन प्रेम विवाह ,प्रेम में सफलता ,मनो वर प्राप्ति , सन्मोहन प्राप्ति ,और सभी प्रकार के दुख से निवृति के लिए की जाती है !

3-  चंद्र कुबेर — इन की साधना धन एवं पुत्र प्राप्ति के लिए की जाती है। ,योग्य संतान के लिए चंद्र कुबेर की साधना करे !

4-  पीत कुबेर — धन और वाहन सुख संपति आदि की प्राप्ति के लिए पीत कुबेर की साधना की जाती है ! इस साधना से मनो वाशित वाहन और संपति की प्राप्ति होती है !

5-  हंस कुबेर — अज्ञात आने वाले दुख और मुकदमो में विजय प्राप्ति के लिए हंस कुबेर की साधना की जाती है !

6-  राग कुबेर — भोतिक और अधियात्मक हर प्रकार की विधा संगीत ललित कलाँ और राग नृत्य आदि में न्पुनता और सभी प्रकार की परीक्षा में सफलता के लिए राग कुबेर की साधना फलदायी सिद्ध होती है !

7 -  अमृत कुबेर — हर प्रकार के स्वस्थ लाभ रोग मुक्ति ,धन और जीवन में सभी प्रकार के रोग और दुखो के छुटकारे के लिए अमृत कुबेर की साधना दिव्य और फलदायी है !

8-  प्राण कुबेर — धन है। पर कर्ज से मुक्ति नहीं मिल रही वयर्थ में धन खर्च हो रहा हो तो प्राण कुबेर हर प्रकार के ऋण से मुक्ति दिलाने में सक्षम है ! इन की साधना साधक को सभी प्रकार के ऋण से मुक्ति देती है !

9-  धन कुबेर — सभी प्रकार की कुबेर साधनयों में सर्व श्रेष्ठ है। जीवन में हम जो भी कर्म करे उनके फल की प्राप्ति और धन आदि की प्राप्ति के लिए और मनोकामना की पूर्ति हेतु और भाग्य अगर साथ न दे रहा हो तो धन कुबेर की साधना सर्व श्रेष्ठ कही गई है !

नमस्तुभ्यम् महा मन्त्रम् दायिने शिव रुपिणे, ब्रह्म ज्ञान प्रकाशाय संसार दु:ख तारिणे ।

अती सौम्याय विध्याय वीराया ज्ञान हारिने, नमस्ते कुल नाथाय कुल कौलिन्य दायिने ।।

शिव तत्व प्रकाशाय ब्रह्म तत्व प्रकाशइने, नमस्ते गुरुवे तुभ्यम् साधकाभय दायिने ।

अनाचाराचार भाव बोधाय भाव हेतवे, भावाभाव विनिर्मुक्त मुक्ती दात्रे नमो नम: ।।

नमस्ते सम्भवे तुभ्यम् दिव्य भाव प्रकाशइने, ज्ञानआनन्द स्वरूपाय विभ्वाय नमो नम: ।

शिवाय शक्ति नाथाय सच्चीदानन्द रुपिणे, कामरूप कामाय कामकेलीकलात्मने ।।

कुल पूजोपदेशाय कुलाचारस्वरुपिने, आरक्थ नीजतत्शक्ति वाम भाग विभूतये ।

नमस्तेतु महेशाय नमस्तेतु नमो नम:, यह एदम पठत् स्तोत्रम सधाको गुरु दिङ मुख

प्रातरुथाय देवेशी ततोविध्या प्रशिदति, कुल सम्भव पूजा मादौ योन: पठेएदम ।

विफला तश्य पूजाश्यात विचारआय कल्प्यते, एती श्री कुब्जिका तन्त्रे गुरु स्तोत्रम साम्पूर्णम ।।

महाराज वैश्रवण कुबेर की उपासना से संबंधित मंत्र, यंत्र, ध्यान एवं उपासना आदि की सारी प्रक्रियाएं श्रीविद्यार्णव, मन्त्रमहार्णव, मन्त्रमहोदधि, श्रीतत्वनिधि तथा विष्णुधर्मोत्तरादि पुराणों में निर्दिष्ट हैं। तदनुसार इनके अष्टाक्षर, षोडशाक्षर तथा पंचत्रिंशदक्षरात्मक छोटे−बड़े अनेक मंत्र प्राप्त होते हैं। मंत्रों के अलग−अलग ध्यान भी निर्दिष्ट हैं। इनके एक मुख्य ध्यान−श्लोक में इन्हें मनुष्यों के द्वारा पालकी पर अथवा श्रेष्ठ पुष्पक विमान पर विराजित दिखाया गया है। इनका वर्ण गारुडमणि या गरुणरत्न के समान दीप्तिमान पीतवर्णयुक्त बताया गया है। और समस्त निधियां इनके साथ मूर्तिमान होकर इनके पार्श्वभाग में निर्दिष्ट हैं। ये किरीट−मुकुटादि आभूषणों से विभूषित हैं।

इनके एक हाथ में श्रेष्ठ गदा तथा दूसरे हाथ में धन प्रदान करने की वरमुद्रा सुशोभित है। ये उन्नत उदरयुक्त स्थूल शरीर वाले हैं। ऐसे भगवान शिव के परम सुहृद भगवान कुबेर का ध्यान करना चाहिए−

कुबेर का ध्यान यह मंत्र पढ़कर लगाएं-

मनुजवाहम्विमानवरस्थितं गरुडरत्ननिभं निधिनायकम्।

शिवसखं मुकुटादिविभूषितं वरगदे दधतं भज तुन्दिलम्।।

मंत्र महार्णव तथा मंत्र महोदधि आदि में निर्दिष्ट महाराज कुबेर के कुछ मंत्र इस प्रकार हैं।−

1. अष्टाक्षरमंत्र-  ओम वैश्रवणाय स्वाहा।

2. षोडशाक्षरमंत्र-  ओम श्री ओम ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः।

3. पंचत्रिंशदक्षरमंत्र-  ओम यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।

इसी प्रकार वहां बालरक्षाकर मंत्र−यंत्र भी निर्दिष्ट हैं। जिसमें ‘अया ते अग्ने समिधा’ आदि का प्रयोग होता है। यह मंत्र बालकों के दीर्घायुष्य, आरोग्य, नैरुज्यादि के लिए बहुत उपयोगी है। इस प्रकार बालकों के आरोग्य लाभ के लिए भी भगवान कुबेर की उपासना विशेष फलवती होती है। प्रायरू सभी यज्ञ−यागादि, पूजा−उत्सवों तथा दस दिक्पालों के पूजन में उत्तर दिशा के अधिपति के रूप में कुबेर की विधिपूर्वक पूजा होती है। यज्ञ−यागादि तथा विशेष पूजा आदि के अंत में षोडशोपचार पूजन के अनन्तर आर्तिक्य और पुष्पांजलि का विधान होता है। पुष्पांजलि में तथा राजा के अभिषेक के अंत में ‘ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने। नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे। स मस कामान् काम कामाय मह्यं। कामेश्र्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय। महाराजाय नम: । इस मंत्र का विशेष पाठ होता है। जो महाराज कुबेर की ही प्रार्थना का मंत्र है। महाराज कुबेर राजाओं के भी अधिपति हैं। धनों के स्वामी हैं। अतः सभी कामना फल की वृष्टि करने में वैश्रवण कुबेर ही समर्थ हैं।

व्रतकल्पद्रुम आदि व्रत ग्रंथों में कुबेर के उपासक के लिए फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी से वर्ष भर प्रतिमास शुक्ल त्रयोदशी को कुबेर व्रत करने के अनेक विधान निर्दिष्ट हैं। इससे उपासक धनाढ्य तथा सुख−समृद्धि से संपन्न हो जाता है। और परिवार में आरोग्य प्राप्त होता है। सारांश में कहा जा सकता है। कि कुबेर की उपासना ध्यान से मनुष्य का दुःख दारिद्रय दूर होता है। और अनन्त ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शिव के अभिन्न मित्र होने से कुबेर के भक्त की सभी आपत्तियों से रक्षा होती है। और उनकी कृपा से साधक में आध्यात्मिक ज्ञान−वैराग्य आदि के साथ उदारता, सौम्यता, शांति तथा तृप्ति आदि सात्विक गुण भी स्वाभाविक रूप से संनिविष्ट हो जाते हैं।

अब सब प्रकार की सिद्धि देन वाले कुबेर के मन्त्र को कहता हूँ।

‘यक्षाय’ पद बोलकर, ‘कुबेराय’, फिर ‘वैश्रवणाय धन’ इन पदों का उच्चारण कर ‘धान्याधिपतये धनधान्य समृद्धिम में देहि दांपय’, फिर ठद्वय (स्वाहा) लगासे से यह ३५ अक्षरों का कुबेर मन्त्र निष्पन्न होता है ॥

इस मन्त्र के विश्रवा ऋषि हैं। बृहती छन्द है। तथा शिव के मित्र कुबेर इसके देवता ॥

विमर्श - कुबेरमन्त्र का स्वरुप इस प्रकार है। – यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिम मे देहि दापय स्वाहा।

विनियोग - अस्य श्रीकुबेरमन्त्रस्य विश्रवाऋषिर्बृहतीच्छन्दः शिवमित्रं धनेश्वरो देवताऽत्मनोऽभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥

मन्त्र के 3, 4, 5, 7, 8, वर्णों से षडङ्गन्यास करे । फिर अलकापुरी में विराजमान कुबेर का इस प्रकार ध्यान करे ॥

विमर्श - न्यास विधि – यक्षाय हृदयाय नमः, कुबेराय शिरसे स्वाहा,

वैश्रवणाय शिखायै वषट्, धनधान्यधिपतये कवचाय हुम्,

धनधान्यसमृद्धिम मे नेत्रत्रयाय वौषट्, देहि दापय स्वाहा अस्त्राय फट् ॥

अब अलकापुरी में विराजमान कुबेर का ध्यान कहते हैं। – मनुष्य श्रेष्ठ, सुन्दर विमान पर बैठे हुये, गारुडमणि जैसी आभा वाले, मुकुट आदि आभूषणों से अलंकृत, अपने दोनो हाथो में क्रमशः वर और गदा धारण किए हुये, तुन्दिल शरीर वाले, शिव के मित्र निधीश्वर कुबेर का मैं ध्यान करता हूँ ॥

इस मन्त्र का एक लाख जप करना चाहिए । तिलों से उसका दशांश होम करना चाहिए तथा धर्मादि वाले पूर्वोक्त पीठ पर षडङ्ग दिक्पाल एवं उनके आयुधों का पूजन करना चाहिए ॥

अब काम्य प्रयोग कहते हैं। धन की वृद्धि के लिए शिव मन्दिर में इस मन्त्र का दश हजार जप करना चाहिए । बेल के वृक्ष के नीचे बैठ कर इस मन्त्र का एक लाख जप करने से धन-धान्य रुप समृद्धि प्राप्त होती है ॥

कुबेर मंत्र को दक्षिण की और मुख करके ही सिद्ध किया जाता है।

अति दुर्लभ कुबेर मंत्र इस प्रकार है। मंत्र :- "ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:।"

मन्त्र जप से पहले विनियोग करें ।:- "अस्य श्री कुबेर मंत्रस्य विश्वामित्र ऋषि:वृहती छन्द: शिवमित्र धनेश्वरो देवता समाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोग:"

हवन :- तिलों का दशांस हवन करने से प्रयोग सफल होता है। यह प्रयोग शिव मंदिर में करना उत्तम रहता है। यदि यह प्रयोग बिल्वपत्र वृक्ष की जड़ों के समीप बैठ कर हो सके तो अधिक उत्तम होगा। प्रयोग सूर्योदय के पूर्व संपन्न करें।

"मनुजवाह्य विमानवरस्थितं गुरूडरत्नानिभं निधिनाकम्।

शिव संख युक्तादिवि भूषित वरगदे दध गतं भजतांदलम्।।"

कुबेर के अन्य सिद्ध विलक्षण मंत्र :-

अष्टाक्षर मंत्र :- "ॐ वैश्रवणाय स्वाहा:"

षोडशाक्षर मंत्र :- "ॐ श्री ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:।"

पंच त्रिंशदक्षर मंत्र :- "ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये धनधान्या समृद्धि देहि दापय स्वाहा।"

श्री कुबेर पूजन जाप संक्षिप्त विधि:-

श्रीधनदायक कुबेर यंत्र को लाल कपड़ा बिछाकर चौकी पर स्थापित करें इसके बाद शरीर और पूजन सामग्री एवं भूमि पवित्रीकरण के पश्चात सर्वप्रथम हाथ मे पुष्प लेकर ध्यान मंत्र बोले और यंत्र के ऊपर छोड़ दें इसके बाद घी का दीपक जलाकर आगे की प्रक्रिया करें।

ध्यान मंत्र :-

मनुज बाह्य विमान स्थितम्, गरूड़ रत्न निभं निधि नायकम्।

शिव सखं मुकुटादि विभूषितम्, वर गदे दधतं भजे तुन्दिलम्।।

इसके बाद यथा सामर्थ्य पंचोपचार अथवा षोडशोपचार से पूजन कर यथा कामना मानसिक संकल्प से संकल्प के बाद हाथ या आचमनी में जल लेकर विनियोग मंत्र पढ़ भूमि पर गिरा दें।

कुबेर मन्त्र-  विनियोग - ॐ अस्य मन्त्रस्य विश्रवा ऋषि:, वृहती छन्द:, कुबेर: देवता, सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोग:। ऋष्यादि-न्यास - विश्रवा-ऋषये नम: शिरसि, वृहती-छन्दसे नम: मुखे, कुबेर-देवतायै नम: हृदि। सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोगाय नम:

सर्वांगे षडग्-न्यास:-

कर-न्यास

अग्-न्यास

ॐ यक्षाय

अंगुष्ठाभ्यां नम:

हृदयाय नम:

ॐ कुबेराय

तर्जनीभ्यां स्वाहा

शिरसे स्वाहा

ॐ वैश्रवणाय

मध्यमाभ्यां वषट्

शिखायै वषट्

ॐ धन-धान्यधिपतये

अनामिकाभ्यां हुं

कवचाय हुं

ॐ धन-धान्य-समृद्धिं मे

कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्

नेत्र-त्रयाय वौषट्

ॐ देही दापय स्वाहा

करतल करपृष्ठाभ्यां फट्

अस्त्राय फट्

 न्यास की प्रक्रिया पूर्ण करने के बाद इन तीनों में से किसी भी एक मंत्र का जप आज से ही आरम्भ करें तथा दस हजार होने पर दशांश हवन करें या एक हजार मंत्र अधिक जपें। इससे यंत्र भी सिद्ध हो जाता है। वैसे सवालाख जप करके दशांश हवन करके कुबेर यंत्र को सिद्ध करने से तो अनंत वैभव की प्राप्ति हो जाती है।

कुबेर देव को धन का देवता माना जाता है। वे देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं, इनकी कृपा से किसी को भी धन प्राप्ति के योग बन जाते हैं। कुबेर को प्रसन्न करने का सुप्रसिद्ध मंत्र इस प्रकार है-

कुबेर देव का मंत्र-  "ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।"

यह देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का अमोघ मंत्र एवं स्तोत्र है। इस मंत्र का तीन माह तक रोज 108 बार या इससे अधिक जप करें स्तोत्र पाठ को भी कम से कम 3,5  या 11 पर बढ़े। जप, पाठ करते समय अपने सामने एक कौड़ी (धनलक्ष्मी कौड़ी) रखें। तीन माह के बाद प्रयोग पूरा होने पर इस कौड़ी को अपनी तिजोरी या लॉकर में रख दें। ऐसा करने पर कुबेर देव की कृपा से आपका लॉकर कभी खाली नहीं होगा। हमेशा उसमें धन भरा रहेगा।

अब मन को एकाग्र करके हनुमान चालीसा का पाठ करें। यदि हनुमान चालीसा का पूर्ण पाठ नहीं कर पा रहे हों तो इन पंक्तियों का पाठ करें :-

"जम कुबेर दिगपाल जहां ते।

कवि कोबिद कहि सके कहां ते।।"

इन पंक्तियों के निरंतर जप से हनुमानजी तो प्रसन्न होंगे ही साथ ही यम, कुबेर आदि देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होगी।

दैनिक जाप एवं पाठ पूर्ण होने पर भूमि पर जल गिरा कर माथे से लगाये तथा प्रणाम कर उठ जाए साधना काल मे प्रत्येक दिन यही प्रक्रिया दोहराए।

स्वर्णाकर्षण भैरवस्तोत्रम्
ॐ नमस्ते भैरवाय ब्रह्मविष्णु शिवात्मने । नमस्त्रैलोक्य वन्द्याय वरदाय वरात्मने ।।
रत्नसिंहासनस्थाय दिव्याभरण शोभिने । दिव्यमाल्य विभूषाय नमस्ते दिव्यमूर्तये ।।
नमस्तेअनेकहस्ताय अनेक शिरसे नमः । नमस्तेअनेकनेत्राय अनेक विभवे नमः ।।
नमस्तेअनेक कण्ठाय अनेकांशाय ते नमः । नमस्तेअनेक पार्श्वाय नमस्ते दिव्य तेजसे ।।
अनेकायुधयुक्ताय अनेक सुर सेविने । अनेकगुण युक्ताय महादेवाय ते नमः ।।
नमो दारिद्रयकालाय महासम्पद प्रदायिने । श्री भैरवी सयुंक्ताय त्रिलोकेशाय ते नमः ।।
दिगम्बर नमस्तुभ्यं दिव्यांगाय नमो नमः । नमोअस्तु दैत्यकालाय पापकालाय ते नमः ।।
सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं नमस्ते दिव्य चक्षुषे । अजिताय नमस्तुभ्यं जितामित्राय ते नमः ।।
नमस्ते रुद्ररूपाय महावीराय ते नमः । नामोअस्तवनन्तवीर्याय महाघोराय ते नमः ।।
नमस्ते घोर घोराय विश्वघोराय ते नमः । नमः उग्रायशान्ताय भक्तानांशान्तिदायिने ।।
गुरवे सर्वलोकानां नमः प्रणवरुपिणे । नमस्ते वाग्भवाख्याय दीर्घकामाय ते नमः ।।
नमस्ते कामराजाययोषित कामाय ते नमः । दीर्घमायास्वरुपाय महामाया ते नमः ।।
सृष्टिमाया स्वरूपाय विसर्गसमयाय ते । सुरलोक सुपूज्याय आपदुद्धारणाय च ।।
नमो नमो भैरवाय महादारिद्रय नाशिने । उन्मूलने कर्मठाय अलक्ष्म्याः सर्वदा नमः ।।
नमो अजामिलबद्धाय नमो लोकेश्वराय ते । स्वर्णाकर्षणशीलाय भैरवाय नमो नमः ।।
ममदारिद्रय विद्वेषणाय लक्ष्याय ते नमः । नमो लोकत्रयेशाय स्वानन्द निहिताय ते ।।
नमः श्रीबीजरुपाय सर्वकाम प्रदायिने । नमो महाभैरवाय श्रीभैरव नमो नमः ।।
धनाध्यक्ष नमस्तुभ्यं शरण्याय नमो नमः । नमः प्रसंनरुपाय सुवर्णाय नमो नमः ।।
नमस्ते मंत्ररुपाय नमस्ते मंत्ररुपिणे । नमस्ते स्वर्णरूपाय सुवर्णाय नमो नमः ।।
नमः सुवर्णवर्णाय महापुण्याय ते नमः । नमः शुद्धाय बुद्धाय नमः संसार तारिणे ।।
नमो देवाय गुह्माय प्रचलाय नमो नमः । नमस्ते बालरुपाय परेशां बलनाशिने ।।
नमस्ते स्वर्ण संस्थाय नमो भूतलवासिने । नमः पातालवासाय अनाधाराय ते नमः ।।
नमो नमस्ते शान्ताय अनन्ताय नमो नमः । द्विभुजाय नमस्तुभ्यं भुजत्रयसुशोभिने ।।
नमोअनमादी सिद्धाय स्वर्णहस्ताय ते नमः । पूर्णचन्द्र प्रतीकाशवदनाम्भोज शोभिने ।।
मनस्तेअस्तु स्वरूपाय स्वर्णालंकार शोभिने । नमः स्वर्णाकर्षणाय स्वर्णाभाय नमो नमः ।।
नमस्ते स्वर्णकण्ठाय स्वर्णाभाम्बर धारिणे । स्वर्णसिंहासनस्थाय स्वर्णपादाय ते नमः ।।
नमः स्वर्णाभपादय स्वर्णकाञ्ची सुशोभिने । नमस्ते स्वर्णजन्घाय भक्तकामदुधात्मने ।।
नमस्ते स्वर्णभक्ताय कल्पवृक्ष स्वरूपिणे । चिंतामणि स्वरूपाय नमो ब्रह्मादी सेविने ।।
कल्पद्रुमाद्यः संस्थाय बहुस्वर्ण प्रदायिने । नमो हेमाकर्षणाय भैरवाय नमो नमः ।।
स्तवेनान संतुष्टो भव लोकेश भैरव । पश्यमाम करुणादृष्टाय शरणागतवत्सल ।।
फलश्रुतिः
श्री महाभैरवस्येदं स्तोत्रमुक्तं सुदुर्लभम । मन्त्रात्मकं महापुण्यं सर्वैश्वर्यप्रदायकम ।।
यः पठेन्नित्यमेकाग्रं पातकैः स प्रमुच्यते । लभते महतीं लक्ष्मीमष्टएश्वर्यमवाप्नुयात ।।
चिंतामणिमवाप्नोति धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम । स्वर्णराशिं वाप्नोति शीघ्रमेव स मानवः ।।
त्रिसंध्यं यः पठेत स्तोत्रं दशावृत्या नरोत्तमः । स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य साक्षाद भूत्वा जगदगुरुः ।।
स्वर्णाराशिं ददात्यस्मै तत्क्षणं नास्ति संशयः । अष्टावृत्या पठेत यस्तु संध्यायां वा नरोत्तमः ।।
सर्वदा यः पठेत स्तोत्रं भैरवश्य महात्मनः ।।
लोकत्रयं वाशिकुर्यादचलां श्रियमाप्नुयात । न भयं विद्यते नवापि विषभूतादी सम्भवम ।।
अष्ट पञ्चाशद वर्णाढयो मन्त्रराजः प्रकीर्तितः । दारिद्रय दुःख शमनः स्वर्णाकर्षण कारकः ।।
य एन सन्जपेद धीमान स्तोत्रं वा प्रयठेत सदा । महाभैरव सायुज्यं सो अन्तकाले लभेद ध्रुवम ।।
स्वर्णाकर्षण मंत्र:-
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आपदुध्दरणाय ह्रां ह्रीं ह्रूं अजामिलबध्दाय लोकेश्वराय स्वार्णाकर्षणभैरवाय ममदारिद्रय विद्वेषणाय महाभैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐं।
यह श्री स्वर्ण भैरव तंत्र है। इस त्रान्त्रिक क्रिया के द्वारा स्वयं श्री भैरव स्वप्न में आकर आपका मार्ग प्रदर्शन करते है। एवं दरिद्रता नाश कर लक्ष्मी प्रदान करते है।

ॐ रां रामाय नमः

श्रीराम ज्योतिष सदन

पंडित आशु बहुगुणा

मोबाइल नं-9760924411

मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश