गुरुमंत्र की शक्ति को जानें गुरु मंत्र
गुरुमंत्र की शक्ति को जानें गुरु मंत्र रक्षाकवच का काम करता है।
गुरुमुख मंत्र की शक्ति और कवच के विषय मे कुछ लिखे इनसे पहले आम लोगों में रही भ्रामक मान्यता के विषय मे थोड़ी बात । जीव की यात्रा में सद्गुरु की आवश्यकता के विषयमे पहले लिख चुके है । यहां बहोत लोग गुरु इसलिए करना चाहते है ताकि कोई भी समस्या या कामना पूर्ण करने का एक मशीन मिल जाय । व्यक्तिगत जीवन की सामान्य जरूरतों के लिए भी गुरुजी दया करो, कृपा करो की गुहार । इसमे से कितने लोग है जो परोपकार के कार्य भी करते हो ? बस थोड़ा कुत्रिम पूजा पाठ कर लिया और मशीन की तरह माला जाप कर लिया और समझते है। अब तो देव को कृपा करनी ही चाहिए ।
भावहीन भक्ति और कपट्युक्त जीवन शैली फिर भी देव कृपा के अभिलाषी । आये दिन देव , मंत्र , विधान , गुरु बदलते रहना और फिर भी खुदको बड़े धार्मिक , ज्ञानी समझना ये ही मूर्खता है । देव और गुरुकृपा तो पूर्ण समर्पण भाव और सद्कर्म से होती है । देव और गुरु आपके मनोभाव को तुरंत ही समज लेते है । अगर उनकी आज्ञानुसार पूर्ण श्रद्धासे उपासना करते है। और परोपकार कार्य करते हो तो उनकी कृपा अवश्य ही होती है बस धीरज ओर जो मीले वही दीर्घजीवन केलिए कल्याणकारी है। ऐसा विश्वास होना चाहिए । हरेक मंत्र मे प्रणव ॐ ही गुरुकवच है ।
ॐ सहित मंत्र का जप करते हैं। तो वह हमारे जप तथा पुण्य की रक्षा करता है। किसी नामदान के लिए हुए साधक पर यदि कोई आपदा आनेवाली है,कोई दुर्घटना घटने वाली है। तो मंत्र भगवान उस आपदा को शूली में से काँटा कर देते हैं। साधक का बचाव कर देते हैं। ऐसा बचाव तो एक नहीं, हजारों साधकों के जीवन में चमत्कारिक ढंग से महसूस होता है।
गाड़ी उलट गयी,तीन गुलाटी खा गयी किंतु हमको खरोंच तक नहीं आयी ! हमारी नौकरी छूट गयी थी, ऐसा हो गया था, वैसा हो गया था किंतु बाद में उसी साहब ने हमको बुलाकर हमसे माफी माँगी और हमारी पुनर्नियुक्ति कर दी। पदोन्नति भी कर दी इस प्रकार की न जाने कैसी-कैसी अनुभूतियाँ लोगों को होती हैं। ये अनुभूतियाँ समर्थ भगवान की सामर्थ्यता प्रकट करती हैं।
जिस योग में,ज्ञान में,ध्यान में आप फिसल गये थे, उदासीन हो गये ,किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये थे उसमें मंत्र दीक्षा लेने के बाद गति आने लगती है। मंत्र दीक्षा के बाद आपके अंदर गति शक्ति कार्य में आपको मदद करने लगती है। मंत्रजाप से जापक के कुकर्मों के संस्कार नष्ट होने लगते हैं। और उसका चित्त उज्जवल होने लगता है। उसकी आभा उज्जवल होने लगती है।, उसकी मति-गति उज्जवल होने लगती है और उसके व्यवहार में उज्जवलता आने लगती है।। इसका मतलब ऐसा नहीं है। कि आज मंत्र लिया और कल सब छूमंतर हो जायेगा धीरे-धीरे होगा। एक दिन में कोई स्नातक नहीं होता, एक दिन में कोई एम.ए. नहीं पढ़ लेता, ऐसे ही एक दिन में सब छूमंतर नहीं हो जाता।
मंत्र लेकर ज्यों-ज्यों आप श्रद्धा से, एकाग्रता से और पवित्रता से जप करते जायेंगे त्यों-त्यों विशेष लाभ होता जायेगा। ज्यों-ज्यों आप मंत्र जपते जायेंगे त्यों-त्यों मंत्र के देवता के प्रति,मंत्र के ऋषि,मंत्र के सामर्थ्य के प्रति आपकी प्रीति बढ़ती जायेगी। ज्यों-ज्यों आप मंत्र जपते जायेंगे त्यों-त्यों आपकी अंतरात्मा में तृप्ति बढ़ती जायेगी, संतोष बढ़ता जायेगा।
जिन्होंने नियम लिया है। और जिस दिन वे मंत्र नहीं जपते,उनका वह दिन कुछ ऐसा ही जाता है। जिस दिन वे मंत्र जपते हैं,उस दिन उन्हें अच्छी तृप्ति और संतोष होता है। जिनको गुरुमंत्र सिद्ध हो गया है। उनकी वाणी में सामर्थ्य आ जाता है। नेता भाषण करता है तो लोग इतने तृप्त नहीं होते, किंतु जिनका गुरुमंत्र सिद्ध हो गया है। ऐसे महापुरुष बोलते हैं तो लोग बड़े तृप्त हो जाते हैं।
मंत्रजाप से दूसरों के मनोभावों को जानने की शक्ति विकसित हो जाती है। दूसरे के मनोभावों को आप अंतर्यामी बनकर जान सकते हो। कोई व्यक्ति कौन सा भाव लेकर आया है। दो साल पहले उसका क्या हुआ था या अभी उसका क्या हुआ है। उसकी तबीयत कैसी है।
लोगों को आश्चर्य होगा किंतु आप तुरंत बोल दोगे कि 'आपको छाती में जरा दर्द है। आपको रात्रि में ऐसा स्वप्न आता है। कोई कहे कि 'महाराज ! आप तो अंतर्यामी हैं।' वास्तव में यह भगवत्शक्ति के विकास की बात है। अर्थात् सबके अंतरतम की चेतना के साथ एकाकार होने की शक्ति। अंतःकरण के सर्व भावों को तथा पूर्वजीवन के भावों को और भविष्य की यात्रा के भावों को जानने की शक्ति कई योगियों में होती है।
वे कभी-कभार मौज में आ जायें तो बता सकते हैं। कि आपकी यह गति थी, आप यहाँ थे, फलाने जन्म में ऐसे थे,अभी ऐसे हैं। जैसे दीर्घतपा के पुत्र पावन को माता-पिता की मृत्यु पर उनके लिए शोक करते देखकर उसके बड़े भाई पुण्यक ने उसे उसके पूर्वजन्मों के बारे में बताया था। यह कथा योगवाशिष्ठ महारामायण में आती है। मंत्रजाप के प्रभाव से जापक सूक्ष्मतम,गुप्ततम शब्दों का श्रोता बन जाता है।जैसे,शुकदेवजी महाराज ने जब परीक्षित के लिए सत्संग शुरु किया तो देवता आये। शुकदेवजी ने उन देवताओं से बात की। माँ आनंदमयी का भी देवलोक के साथ सीधा सम्बन्ध था। और भी कई संतो का होता है। दूर देश से भक्त पुकारता है कि गुरुजी ! मेरी रक्षा करो तो गुरुदेव तक उसकी पुकार पहुँच जाती है !
स्वाम्यर्थ शक्तिः-
अर्थात् नियामक और शासन का सामर्थ्य। नियामक और शासक शक्ति का सामर्थ्य विकसित करता है। प्रणव का जाप।
याचन शक्तिः-
अर्थात् याचना की लक्ष्यपूर्ति का सामर्थ्य देनेवाला मंत्र ।
क्रिया शक्तिः-
अर्थात् निरन्तर क्रियारत रहने की क्षमता, क्रियारत रहनेवाली चेतना का विकास।
इच्छित अवति शक्तिः-
अर्थात् वह ॐ स्वरूप परब्रह्म परमात्मा स्वयं तो निष्काम है। किंतु उसका जप करने वाले में सामने वाले व्यक्ति का मनोरथ पूरा करने का सामर्थ्य आ जाता है।
इसीलिए संतों के चरणों में लोग मत्था टेकते हैं।, कतार लगाते हैं,प्रसाद धरते हैं। आशीर्वाद माँगते हैं। आदि आदि।
इच्छित अवन्ति शक्ति:-
अर्थात् निष्काम परमात्मा स्वयं शुभेच्छा का प्रकाशक बन जाता है।
दीप्ति शक्तिः-
अर्थात् ओंकार जपने वाले के हृदय में ज्ञान का प्रकाश बढ़ जायेगा। उसकी दीप्ति शक्ति विकसित हो जायेगी।
वाप्ति शक्तिः-
अणु-अणु में जो चेतना व्याप रही है। उस चैतन्यस्वरूप ब्रह्म के साथ आपकी एकाकारता हो जायेगी।
आलिंगन शक्तिः-
अर्थात् अपनापन विकसित करने की शक्ति। ओंकार के जप से पराये भी अपने होने लगेंगे तो अपनों की तो बात ही क्या ?जिनके पास जप-तप की कमाई नहीं है। उनको तो घरवाले भी अपना नहीं मानते,किंतु जिनके पास ओंकार के जप की कमाई है। उनको घरवाले, समाज वाले, गाँववाले, नगरवाले, राज्य वाले, राष्ट्रवाले तो क्या विश्ववाले भी अपना मानकर आनंद लेने से इनकार नहीं करते।
हिंसा शक्तिः-
ओंकार का जप करने वाला हिंसक बन जायेगा ?हाँ,हिँसक बन जायेगा किंतु कैसा हिंसक बनेगा दुष्ट विचारों का दमन करने वाला बन जायेगा और दुष्टवृत्ति के लोगों के दबाव में नहीं आयेगा। उसके अन्दर अज्ञान को और दुष्ट सरकारों को मार भगाने का प्रभाव विकसित हो जायेगा।
दान शक्तिः-
अर्थात् वह पुष्टि और वृद्धि का दाता बन जायेगा। फिर वह माँगनेवाला नहीं रहेगा,देने की शक्तिवाला बन जायेगा। वह देवी-देवता से,भगवान से माँगेगा नहीं, स्वयं देने लगेगा।
भोग शक्तिः-
प्रलयकाल स्थूल जगत को अपने में लीन करता है।, ऐसे ही तमाम दुःखों को, चिंताओं को, भयों को अपने में लीन करने का सामर्थ्य होता है। प्रणव का जप करने वालों में। जैसे दरिया में सब लीन हो जाता है।, ऐसे ही उसके चित्त में सब लीन हो जायेगा और वह अपनी ही लहरों में फहराता रहेगा,मस्त रहेगा।
वृद्धि शक्तिः-
अर्थात् प्रकृतिवर्धक, संरक्षक शक्ति। गुरुदेव का जप करने वाले में प्रकृतिवर्धक और सरंक्षक सामर्थ्य आ जाता है।
ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411