महामृत्युंजय मंत्र का अद्भुत प्रयोग ।
महामृत्युञ्जय मंत्र प्रयोग:- मूल मंत्र में संपुट लगा देने से यह मंत्र महामृत्युञ्जय हो जाता है।लघु मृत्युंजय तथा बहुत से ऐसे मंत्र है,जिसका जप किया जाता है।जीव को मृत्यु मुख से खींच लाते है।,मृत्युंजय।आज तो हमेशा भय लगा रहता है। कि कब क्या हो जाय। ग्रह के अशुभ दशा या दैविक,दैहिक प्रभाव,तंत्र या कोई भी अनिष्टकारी प्रभाव को दूर कर देते है। पल में।पुरा परिवार सुरक्षित रहता है। छोटा रोग हो या असाध्य बिमारी,आपरेशन हो या महामारी,कोई खो जाय या कोई भी संकट आन पड़े मृत्युंजय की कृपा से सब कुछ अच्छा हो जाता हैं। मृत्युंजय मंत्र ३२ अक्षर का "त्र्यम्बक मंत्र" भी कहलाता हैं। "ॐ" लगा देने से यह ३३ अक्षर का हो जाता हैं। इस मंत्र में संपुट लगा देने से मंत्र का कई रूप प्रकट हो जाता है। गायत्री मंत्र के साथ प्रयोग करने पर यह "मृतसंजीवनी मंत्र" हो जाता हैं। मंत्र प्रयोग के लिए "शिव वास" देखकर ही जप शुरू करें।शिव मंदिर में मंत्र जप करने पर कोई नियम की पाबन्दी नहीं हैं। यदि घर में पूजन करते है तो पहले पार्थिव शिव पूजन करके या चित्र का पूजन कर घी का दीपक अर्पण कर,पुष्प,प्रसाद के साथ कामना के लिए दायें हाथ में जल,अक्षत लेकर संकल्प कर ले। कितनी संख्या में जप करना है। यह निर्णय कर ले साथ ही जप माला रूद्राक्ष का ही हो। एक निश्चित संख्या में ही जप होना चाहिए। हवन के दिन "अग्निवास" देख लेना चाहिए। आज मै "मृत्युंजय प्रयोग" दे रहा हूँ। विधि संक्षिप्त हैं पूरी श्रद्धा के साथ प्रयोग करे,और शिव कृपा देखे। साथ ही शिव पार्थिव पूजन विधि श्रावण में दे दूंगा। गुरू,गणेश पूजन के बाद शिव पूजन कर,पूर्व दिशा में ऊनी आसन पर बैठ एकाग्र चित जप करना चाहिये। आचमनी निम्न मंत्र से कर संकल्प कर ले। दाएँ हाथ मे जल लेकर मंत्र बोले मंत्र १.ॐ केशवाय नमः।जल पी जाए। २.ॐ नारायणाय नमः।जल पी जाए। ३.ॐ माधवाय नमः।जल पी लें। अब हाथ इस मंत्र से धो ले।४.ॐ हृषिकेषाय नमः।
अब संकल्प करे।संकल्प अपने कामना अनुसार छोटा,बड़ा कर सकते है। दाएँ हाथ में जल,अक्षत,बेलपत्र,द्रव्य,सुपारी रख संकल्प करें। संकल्प। "ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापूरूषस्य,विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्माणोऽहनि द्वितीये परार्धे श्री श्वेत वाराहकल्पे,वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते अमुक संवतसरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे अमुक मासे अमुकपक्षे,अमुकतिथौःअमुकवासरे,अमुक गोत्रोत्पन्नोहं अमुक शर्माहं,या वर्माहं ममात्मनःश्रुति स्मृति,पुराणतन्त्रोक्त फलप्राप्तये मम जन्मपत्रिका ग्रहदोष,दैहिक,दैविक,भौतिक ताप सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं मनसेप्सित फल प्राप्ति पूर्वक,दीर्घायु,विपुलं,बल,धन,धान्य,यश,पुष्टि,प्राप्तयर्थम सकल आधि,व्याधि,दोष परिहार्थम सकलाभीष्टसिद्धये श्री शिव मृत्युंजय प्रीत्यर्थ पूजन,न्यास,ध्यान यथा संख्याक मंत्र जप करिष्ये।" गणेश प्रार्थना गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थजम्बू फलचारूभक्षणम्।उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय,गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥ ॐ श्री गणेशाय नमः। गुरू प्रार्थना गुरूर्ब्रह्मा,गुरूर्विष्णु,गुरूर्देवो महेश्वरः।गुरू साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥ गौरी प्रार्थना ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्मताम्॥
विनियोग-- अस्य त्र्यम्बक मन्त्रस्य वसिष्ठ ऋषिःअनुष्टुप छन्दःत्र्यम्बक पार्वतीपतिर्देवता,त्र्यं बीजम्,वं शक्तिः,कं कीलकम्,सर्वेष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः। ऋष्यादिन्यास ॐ वसिष्ठर्षये नमःशिरसि। अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। त्र्यम्बकपार्वतीपति देवतायै नमः हृदि। त्र्यं बीजाय नमः गुह्ये।वं शक्तये नमः पादयोः। कं कीलकाय नमः नाभौ। विनियोगाय नमःसर्वागें। करन्यास त्र्यम्बकम् अंगुष्ठाभ्यां नमः।यजामहे तर्जनीभ्यां नमः। सुगंधिं पुष्टिवर्द्धनं मध्यमाभ्यां नमः। उर्वारूकमिव बन्धनात् अनामिकाभ्यां नमः। मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। मामृतात् करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। हृदयादिन्यास ॐ त्र्यम्बकं हृदयाय नमः।यजामहे शिरसे स्वाहा। सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं शिखायै वषट्। उर्वारूकमिव बन्धनात् कवचाय हुं। मृत्योर्मुक्षीय नेत्रत्रयाय वौषट्।मामृतात् अस्त्राय फट्।
ध्यान-- हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैराप्लावयन्तं शिरो द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां बहन्तं परम्। अंकन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवं स्वच्छाम्भोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे। मंत्र ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
हवन विधि-- जप के समापन के दिन हवन के लिए। बिल्वफल ,तिल,चावल,चन्दन ,पंचमेवा ,जायफल ,गुगुल, करायल, गुड़, सरसों धूप ,घी मिलाकर हवन करे। रोग शान्ति के लिए,दूर्वा,गुरूच का चार इंच का टुकड़ा,घी मिलाकर हवन करे। श्री प्राप्ति के लिए बिल्वफल,कमलबीज,तथा खीर का हवन करे। ज्वरशांति में अपामार्ग, मृत्युभय में जायफल एवं दही, शत्रुनिवारण में पीला सरसों का हवन करें। हवन के अंत में सुखा नारियल गोला में घी भरकर खीर के साथ पुर्णाहुति दें। इसके बाद तर्पण,मार्जन करे। एक कांसे,पीतल की थाली में जल,गो दूध मिलाकर अंजली से तर्पण करे। मंत्र के दशांश हवन,उसका दशांश तर्पण,उसका दशांश मार्जन,उसका दशांश का शिवभक्त और ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।तर्पण,मार्जन में मूल मंत्र के अंत मे तर्पण में "तर्पयामी" तथा मार्जन मे "मार्जयामी" लगा लें। अब इसके दशांश के बराबर या १,३,५,९,११ ब्राह्मणों और शिव भक्तों को भोजन कर आशिर्वाद ले। जप से पूर्व कवच का पाठ भी किया जा सकता है।,या नित्य पाठ करने से आयु वृद्धि के साथ रोग से छुटकारा मिलता है।
मृत्युञ्जय कवच विनियोग-- अस्य मृत्युञ्जय कवचस्य वामदेव ऋषिःगायत्रीछन्दः मृत्युञ्जयो देवता साधकाभीष्टसिद्धर्यथ जपे विनियोगः। ऋष्यादिन्यास वामदेव ऋषये नमःशिरसि,गायत्रीच्छन्दसे नमःमुखे,मृत्युञ्जय देवतायै नमःहृदये,विनियोगाय नमःसर्वांगे। करन्यास ॐ जूं सःअगुष्ठाभ्यां नमः।ॐ जूं सः तर्जनीभ्यां नमः।ॐजूं सः मध्याभ्यां नमः।ॐजूं सःअनामिकाभ्यां नमः।ॐजूं सःकनिष्ठिकाभ्यां नमः।ॐजूं सःकरतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। हृदयादिन्यास ॐजूं सः हृदयाय नमः।ॐजूं सःशिरसे स्वाहा।ॐजूं सःशिखायै वषट्।ॐजूं सःकवचाय हुं।ॐजूंसःनेत्रत्रयाय वौषट्।ॐजूं सःअस्त्राय फट्।
ध्यान हस्ताभ्यां--उपरोक्त ध्यान ही पढ ले। शिरो मे सर्वदा पातु मृत्युञ्जय सदाशिवः। स त्र्यक्षरस्वरूपो मे वदनं च महेश्वरः॥ पञ्चाक्षरात्मा भगवान् भुजौ मे परिरक्षतु। मृत्युञ्जयस्त्रिबीजात्मा ह्यायू रक्षतु मे सदा॥ बिल्ववृक्षसमासीनो दक्षिणामूर्तिरव्ययः। सदा मे सर्वदा पातु षट्त्रिंशद् वर्णरूपधृक्॥ द्वाविंशत्यक्षरो रूद्रः कुक्षौ मे परिरक्षतु। त्रिवर्णात्मा नीलकण्ठः कण्ठं रक्षतु सर्वदा॥ चिन्तामणिर्बीजपूरे ह्यर्द्धनारीश्वरो हरः। सदा रक्षतु में गुह्यं सर्वसम्पत्प्रदायकः॥ स त्र्यक्षर स्वरूपात्मा कूटरूपो महेश्वरः। मार्तण्डभैरवो नित्यं पादौ मे परिरक्षतु॥ ॐ जूं सः महाबीज स्वरूपस्त्रिपुरान्तकः। ऊर्ध्वमूर्घनि चेशानो मम रक्षतु सर्वदा॥ दक्षिणस्यां महादेवो रक्षेन्मे गिरिनायकः। अघोराख्यो महादेवःपूर्वस्यां परिरक्षतु॥ वामदेवः पश्चिमायां सदा मे परिरक्षतु। उत्तरस्यां सदा पातु सद्योजातस्वरूपधृक्॥
इस कवच को विधि विधान से अभिमंत्रित कर धारण करने का विशेष लाभ हैं। महामृत्युञ्जय मंत्र का बड़ा महात्मय है। शिव के रहते कैसी चिन्ता ये अपने भक्तों के सारे ताप शाप भस्म कर देते है। शिव है तो हम है,यह सृष्टि है तथा जगत का सारा विस्तार है।,शिव भोलेभाले है और उनकी शक्ति है। भोली शिवा,यही लीला हैं।
2- मैं आज यहाँ पार्थिव पूजन की विधि दे रहा हूँ। इसे कोई भी कम समय में कर शिव की कृपा प्राप्त कर सकता है। शिव सबके अराध्य है। एक बार भी दिल से कोई बस कहे। "ॐ नमः शिवाय" फिर शिव भक्त के पास क्षण भर में चले आते है। पार्थिव शिव लिंग पूजा विधि:- पार्थिव शिवलिंग पूजन से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। इस पूजन को कोई भी स्वयं कर सकता है। ग्रह अनिष्ट प्रभाव हो या अन्य कामना की पूर्ति सभी कुछ इस पूजन से प्राप्त हो जाता है। सर्व प्रथम किसी पवित्र स्थान पर पुर्वाभिमुख या उतराभिमुख ऊनी आसन पर बैठकर गणेश स्मरण आचमन ,प्राणायाम पवित्रिकरण करके संकल्प करें। दायें हाथ में जल, अक्षत,सुपारी, पान का पता पर एक द्रव्य के साथ निम्न संकल्प करें।
संकल्प:- "ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्री मद् भगवतो महा पुरूषस्य विष्णोराज्ञया पर्वतमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽहनि द्वितिये परार्धे श्री श्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तेक देशान्तर्गते बौद्धावतारे अमुक नामनि संवत सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुक तिथौ अमुकवासरे अमुक नक्षत्रे शेषेशु ग्रहेषु यथा यथा राशि स्थानेषु स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायां अमुक गोत्रोत्पन्नोऽमुक नामाहं मम कायिक वाचिक,मानसिक ज्ञाताज्ञात सकल दोष परिहार्थं श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्तयर्थं श्री मन्महा महामृत्युञ्जय शिव प्रीत्यर्थं सकल कामना सिद्धयर्थं शिव पार्थिवेश्वर शिवलिगं पूजनमह करिष्ये।"
तत्पश्चात त्रिपुण्ड और रूद्राक्ष माला धारण करे और शुद्ध की हुई मिट्टी इस मंत्र से अभिमंत्रित करे। "ॐ ह्रीं मृतिकायै नमः।" फिर "वं"मंत्र का उच्चारण करते हुए मिटी् में जल डालकर "ॐ वामदेवाय नमःइस मंत्र से मिलाए। १.ॐ हराय नमः, २.ॐ मृडाय नमः, ३.ॐ महेश्वराय नमः बोलते हुए शिवलिंग,माता पार्वती,गणेश,कार्तिक,एकादश रूद्र का निर्माण करे।अब पीतल,तांबा या चांदी की थाली या बेल पत्र,केला पता पर यह मंत्र बोल स्थापित करे, ॐ शूलपाणये नमः। अब "ॐ"से तीन बार प्राणायाम कर न्यास करे।
संक्षिप्त न्यास विधि:- विनियोगः- ॐ अस्य श्री शिव पञ्चाक्षर मंत्रस्य वामदेव ऋषि अनुष्टुप छन्दःश्री सदाशिवो देवता ॐ बीजं नमःशक्तिःशिवाय कीलकम मम साम्ब सदाशिव प्रीत्यर्थें न्यासे विनियोगः। ऋष्यादिन्यासः- ॐ वामदेव ऋषये नमः शिरसि। ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। ॐ साम्बसदाशिव देवतायै नमः हृदये। ॐ ॐ बीजाय नमः गुह्ये। ॐ नमः शक्तये नमः पादयोः। ॐ शिवाय कीलकाय नमः नाभौ। ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे। शिव पंचमुख न्यासः ॐ नं तत्पुरूषाय नमः हृदये। ॐ मम् अघोराय नमःपादयोः ।ॐ शिं सद्योजाताय नमः गुह्ये। ॐ वां वामदेवाय नमः मस्तके। ॐ यम् ईशानाय नमःमुखे। कर न्यासः- ॐ ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ नं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ मं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ शिं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ वां कनिष्टिकाभ्यां नमः। ॐ यं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः। हृदयादिन्यासः- ॐ ॐ हृदयाय नमः। ॐ नं शिरसे स्वाहा। ॐ मं शिखायै वषट्। ॐ शिं कवचाय हुम। ॐ वाँ नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ यं अस्त्राय फट्।
"ध्यानम्-- ध्यायेनित्यम महेशं रजतगिरि निभं चारू चन्द्रावतंसं,रत्ना कल्पोज्जवलागं परशुमृग बराभीति हस्तं प्रसन्नम। पदमासीनं समन्तात् स्तुतम मरगणै वर्याघ्र कृतिं वसानं,विश्वाधं विश्ववन्धं निखिल भय हरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।
प्राण प्रतिष्ठा विधिः- विनियोगः- ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा ऋषयःऋञ्यजुः सामानिच्छन्दांसि प्राणख्या देवता आं बीजम् ह्रीं शक्तिः कौं कीलकं देव प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः। ऋष्यादिन्यासः- ॐ ब्रह्मा विष्णु रूद्र ऋषिभ्यो नमः शिरसि।ॐ ऋग्यजुः सामच्छन्दोभ्यो नमःमुखे। ॐ प्राणाख्य देवतायै नमःहृदये। ॐआं बीजाय नमःगुह्ये। ॐह्रीं शक्तये नमः पादयोः। ॐ क्रौं कीलकाय नमः नाभौ। ॐ
विनियोगाय-- नमःसर्वांगे अब न्यास के बाद एक पुष्प या बेलपत्र से शिवलिंग का स्पर्श करते हुए प्राणप्रतिष्ठा मंत्र बोलें।
प्राणप्रतिष्ठा मंत्रः- ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं शिवस्य प्राणा इह प्राणाःॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं शिवस्य जीव इह स्थितः। ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं शिवस्य सर्वेन्द्रियाणि,वाङ् मनस्त्वक् चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण पाणिपाद पायूपस्थानि इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा। अब नीचे के मंत्र से आवाहन करें। आवाहन मंत्रः- ॐ भूः पुरूषं साम्ब सदाशिवमावाहयामि, ॐ भुवः पुरूषं साम्बसदाशिवमावाहयामि, ॐ स्वः पुरूषं साम्बसदाशिवमावाहयामि।अब शिद्ध जल ,मधु,गो घृत,शक्कर,हल्दीचूर्ण, रोली चंदन,जायफल,गुलाबजल ,दही, एक, एक कर स्नान कराये",नमःशिवाय"मंत्र का जप करता रहे, फिर चंदन, भस्म,अभ्रक ,पुष्प, भांग, धतुर, बेलपत्र से श्रृंगार कर नैवेद्य अर्पण करें। तथा मंत्र जप या स्तोत्र का पाठ,भजन करें। अंत में कपूर का आरती दिखा क्षमा प्रार्थना का मनोकामना निवेदन कर अक्षत लेकर निम्न मंत्र से विसर्जन करे,फिर पार्थिव को नदी,कुआँ,या तालाब में प्रवाहित करें। विसर्जन मंत्रः- गच्छ गच्छ गुहम गच्छ स्वस्थान महेश्वर पूजा अर्चना काले पुनरगमनाय च।
3-रोग एवं अपमृत्यु-निवारक प्रयोग ।। श्री अमृत-मृत्युञ्जय-मन्त्र प्रयोग ।। किसी प्राचीन शिवालय में जाकर गणेश जी की “ॐ गं गणपतये नमः” मन्त्र से षोडशोपचार पूजन करे । तदनन्तर “ॐ नमः शिवाय” मन्त्र से महा-देव जी की पूजा कर हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़े –
विनियोगः- ॐ अस्य श्री अमृत-मृत्युञ्जय-मन्त्रस्य श्री कहोल ऋषिः, विराट् छन्दः, अमृत-मृत्युञ्जय सदा-शिवो देवता, अमुक गोत्रोत्पन्न अमुकस्य-शर्मणो मम समस्त-रोग-निरसन-पूर्वकं अप-मृत्यु-निवारणार्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- श्री कहोल ऋषये नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे, अमृत-मृत्युञ्जय सदा-शिवो देवतायै नमः हृदि, मम समस्त-रोग-निरसन-पूर्वकं अप-मृत्यु-निवारणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
कर-न्यासः- ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः, जूं तर्जनीभ्यां नमः, सः मध्यमाभ्यां नमः, मां अनामिकाभ्यां नमः, पालय कनिष्ठिकाभ्यां नमः, पालय कर-तल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः । षडङ्ग-न्यासः- ॐ हृदयाय नमः, जूं शिरसे स्वाहा, सः शिखायै वषट्, मां कवचाय हुं, पालय नेत्र-त्रयाय वोषट्, पालय अस्त्राय फट् ।
ध्यानः- स्फुटित-नलिन-संस्थं, मौलि-बद्धेन्दु-रेखा-स्रवदमृत-रसार्द्र चन्द्र-वन्ह्यर्क-नेत्रम् । स्व-कर-लसित-मुद्रा-पाश-वेदाक्ष-मालं, स्फटिक-रजत-मुक्ता-गौरमीशं नमामि ।। मूल-मन्त्रः- “ॐ जूं सः मां पालय पालय ।” पुरश्चरणः- सवा लाख मन्त्र-जप के लिए पाँच हजार जप प्रतिदिन करना चाहिए । जप के बाद न्यास आदि करके पुनः ध्यान करे । फिर जल लेकर - ‘अनेन-मत् कृतेन जपेन श्री-अमृत-मृत्युञ्जयः प्रीयताम्’ कहकर जल छोड़ दे । जप का दशांश हवनादिक करे । ‘हवन’ हेतु ‘तिलाज्य’ में ‘गिलोय’ भी डालनी चाहिए । हवनादि न कर सकने पर ‘चतुर्गुणित जप’ करने से अनुष्ठान पूर्ण होता है एवं आरोग्यता मिलती है, अप-मृत्यु-निवारण होता है।
जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411