नवरात्रि चार बार पोष, चैत्र, अश्विन
पंडित आशु बहुगुणा के अनुसार अनुसार वर्ष में चार बार पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन माह में नवरात्र आते हैं। चैत्र और आश्विन में आने वाले प्रमुख नवरात्रि होते हैं। जबकि अन्य दो महीने पौष और आषाढ़ में आने वाले नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के रूप में मनाये जाते हैं।
नवरात्रि में शक्ति पूजा का महत्व है। शक्ति के अलग-अलग रुपों में महालक्ष्मी की धन-वैभव, महासरस्वती की ज्ञान और विद्या और महादुर्गा की बल और शक्ति प्राप्ति के लिए उपासना का महत्व है। दुनिया में ताकत का पैमाना धन भी होता हैं। पुराणों में भी माता लक्ष्मी को धन, सुख, सफलता और समृद्धि देने वाली बताया गया है। नवरात्रि में देवी पूजा के विशेष काल में हर भक्त देवी के अनेक रुपों की उपासना के अलावा महालक्ष्मी की पूजा कर अपने व्यवसाय से अधिक धनलाभ, नौकरी में तरक्की और परिवार में आर्थिक समृद्धि की कामना पूरी कर सकता है। जो भक्त नौकरी या व्यवसाय के कारण अधिक समय न दे पाएं उनके लिए यहां बताई जा रही है लक्ष्मी के धनलक्ष्मी रुप की पूजा की सरल विधि। इस विधि से लक्ष्मी पूजा नवरात्रि के नौ रातों के अलावा हर शुक्रवार को कर धन की कामना पूरी कर सकते हैं - - आलस्य छोड़कर सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। क्योंकि माना जाता है कि लक्ष्मी कर्म से प्रसन्न होती है, आलस्य से रुठ जाती है। - घर के देवालय में चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर चावल या अन्न रखकर उस पर जल से भरा मिट्टी का कलश रखें। यह कलश सोने, चांदी, तांबा, पीतल का होने पर भी शुभ होता है। - इस कलश में एक सिक्का, फूल, अक्षत यानि चावल के दाने, पान के पत्ते और सुपारी डालें।- कलश को आम के पत्तों के साथ चावल के दाने से भरा एक मिट्टी का दीपक रखकर ढांक दें। जल से भरा कलश विघ्रविनाशक गणेश का आवाहन होता है। क्योंकि वह जल के देवता भी माने जाते हैं। - चौकी पर कलश के पास हल्दी का कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति और उनकी दायीं ओर भगवान गणेश की प्रतिमा बैठाएं। - पूजा में कलश बांई ओर और दीपक दाईं ओर रखना चाहिए।- माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें। - इसके अलावा सोने-चांदी के सिक्के, मिठाई, फल भी रखें। - इसके बाद माता लक्ष्मी की पंचोपचार यानि धूप, दीप, गंध, फूल से पूजा कर नैवेद्य या भोग लगाएं।- आरती के समय घी के पांच दीपक लगाएं। इसके बाद पूरे परिवार के सदस्यों के साथ पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ माता लक्ष्मी की आरती करें।- आरती के बाद जानकारी होने पर श्रीसूक्त का पाठ भी करें। - अंत में पूजा में हुई किसी भी गलती के लिए माता लक्ष्मी से क्षमा मांगे और उनसे परिवार से हर कलह और दरिद्रता को दूर कर सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करें।- आरती के बाद अपने घर के द्वार और आस-पास पूरी नवरात्रि या हर शुक्रवार को दीप जलाएं।
देवी आपकी राशि के लिए किस देवी की पूजा? पंचोपचार नवरात्रि आराधना का श्रेष्ठ फल पाने का अवसर होता है। हर राशि के लोगों के लिए नवरात्रि में अलग-अलग देवी की उपासना बताई गई है। जिससे वे अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए सही पूजा पाठ कर सकें। हर राशि के ग्रह और नक्षत्रों के आधार पर उनकी अलग-अलग देवियां मानी गई हैं। दश महाविद्या के मुताबिक हर राशि के लिए एक अलग महाविद्या की उपासना करने से, उनके बीज मंत्रों के जप से किसी भी काम में आसानी से सफलता पाई जा सकती है। मेष- मेष राशि के जातक शक्ति उपासना के लिए द्वितीय महाविद्या तारा की साधना करें। ज्योतिष के अनुसार इस महाविद्या का स्वभाव मंगल की तरह उग्र है। मेष राशि वाले महाविद्या की साधना के लिए इस मंत्र का जप करें। मंत्र- ह्रीं स्त्रीं हूं फट् वृषभ- वृषभ राशि वाले धन और सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्री विद्या यानि षोडषी देवी की साधना करें और इस मंत्र का जप करें। मंत्र- ऐं क्लीं सौ: मिथुन- अपना गृहस्थ जीवन सुखी बनाने के लिए मिथुन राशि वाले भुवनेश्वरी देवी की साधना करें। साधना मंत्र इस प्रकार है। मंत्र- ऐं ह्रीं कर्क- इस नवरात्रि पर कर्क राशि वाले कमला देवी का पूजन करें। इनकी पूजा से धन व सुख मिलता है। नीचे लिखे मंत्र का जप करें। मंत्र- ऊं श्रीं सिंह - ज्योतिष के अनुसार सिंह राशि वालों को मां बगलामुखी की आराधना करना चाहिए। जिससे शत्रुओं पर विजय मिलती है। मंत्र- ऊं हृी बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिहृं कीलय कीलय बुद्धिं विनाशाय हृी ऊं स्वाहा कन्या- आप चतुर्थ महाविद्या भुवनेश्वरी देवी की साधना करें आपको निश्चित ही सफलता मिलेगी। मंत्र- ऐं ह्रीं ऐं तुला- तुला राशि वालों को सुख व ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए षोडषी देवी की साधना करनी चाहिए। मंत्र- ऐं क्लीं सौ: वृश्चिक- वृश्चिक राशि वाले तारा देवी की साधना करें। इससे आपको शासकीय कार्यों में सफलता मिलेगी। मंत्र- श्रीं ह्रीं स्त्रीं हूं फट् धनु - धन और यश पाने के लिए धनु राशि वाले कमला देवी के इस मंत्र का जप करें। मंत्र- श्रीं मकर- मकर राशि के जातक अपनी राशि के अनुसार मां काली की उपासना करें। मंत्र- क्रीं कालीकाये नम: कुंभ- कुंभ राशि वाले भी काली की उपासना करें इससे उनके शत्रुओं का नाश होगा। मंत्र- क्रीं कालीकाये नम: मीन- इस राशि के जातक सुख समृद्धि के लिए कमला देवी की उपासना करें। मंत्र- श्री कमलाये नम:
नवार्ण मंत्र साधना- "
माँ दुर्गा की साधना / उपासना क्रम मे, नवार्ण मंत्र एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों के इस मंत्र मे ,नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और भगवती दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
यह महामंत्र शक्ति साधना मे सर्वोपरि तथा सभी मंत्रों स्तोत्रों मे से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है।
यह माँ आदिशक्ति के तीनों स्वरूपों - माता महासरस्वती, माता महालक्ष्मी व माता महाकाली की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है और साथ ही माता दुर्गा के नौ रूपों का संयुक्त मंत्र है।
इसी महामंत्र से नौ ग्रहों को भी शांत किया जा सकता है।
नवार्ण मंत्र-
!! ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे !!
नौ अक्षर वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की नौ शक्तियां समायी हुई है, जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है।
ऐं - सरस्वती का बीज मन्त्र है ।
ह्रीं - महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।
क्लीं - महाकाली का बीज मन्त्र है ।
* इसके साथ नवार्ण मंत्र के प्रथम बीज ” ऐं “ से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है, जिसमे सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
* नवार्ण मंत्र के द्वितीय बीज ” ह्रीं “ से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है, जिसमे चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समाहित है।
* नवार्ण मंत्र के तृतीय बीज ” क्लीं “ से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, जिसमे मंगल ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समाहित है।
* नवार्ण मंत्र के चतुर्थ बीज ” चा “ से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह को नियंत्रित किया जाता है।
* नवार्ण मंत्र के पंचम बीज ” मुं “ से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, जिसमे बृहस्पति ग्रह का नियंत्रण होता है।
* नवार्ण मंत्र के षष्ठ बीज ” डा “ से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, जिसमे शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
* नवार्ण मंत्र के सप्तम बीज ” यै “ से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की उपासना की जाती है, जिसमे शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति है।
* नवार्ण मंत्र के अष्टम बीज ” वि “ से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, जिसमे राहु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समाहित है।
* नवार्ण मंत्र के नवम बीज ” चै “ से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, जिस में केतु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति होती है।
इस मंत्र के 9 लाख जप करने व उसी अनुसार हवन, तर्पण मार्जन ब्राह्मण भोज , हवन से माँ जगदम्बा के साक्षात दर्शन संभव हैं।
अधिकांश व्यक्ति नवरात्र मे 108 माला प्रति दिन करते है और प्रभाव दृष्टि गोचर होता है, पूर्ण सिद्धि के लिए 108 माला 90 दिन करना उचित माना गया है।
कई साधकों / आचार्यों का मत है कि किसी भी मन्त्र के प्रारम्भ मे प्रणव (ॐ) या नमः लगाने से मन्त्र में नपुंसक प्रभाव आ जाता है,
बीजाक्षर प्रधान है ... तांत्रिक प्रणव “ ह्रीं ” है , अतः माला के जप के प्रारम्भ मे “ ॐ ” लगायें तथा जब माला पूरी हो जाये तो माला के अंत मे “ ॐ ” लगाये,
यही मंत्र जाग्रति है ।
नवार्ण मंत्र साधना विधि -
“ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ”
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीनवार्ण मंत्रस्य ब्रह्म-विष्णु-रुद्रा ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छन्दांसि, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतयो देवताः, रक्त-दन्तिका-दुर्गा भ्रामर्यो बीजानि, नन्दा शाकम्भरी भीमाः शक्त्यः, अग्नि-वायुसूर्यास्तत्त्वानि, ऋग्-यजुः-सामानि स्वरुपाणि, ऐं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकं, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती स्वरुपा त्रिगुणात्मिका श्री महादुर्गा देव्या प्रीत्यर्थे (यदि श्रीदुर्गा का पाठ कर रहे हो तो आगे लिखा हुआ भी उच्चारित करें) श्री दुर्गासप्तशती पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः-
ब्रह्म-विष्णु-रुद्रा ऋषिभ्यो नमः शिरसि
गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छन्देभ्यो नमः मुखे
श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतयो देवताभ्यो नमः हृदिः
ऐं बीज सहिताया रक्त-दन्तिका-दुर्गायै भ्रामरी देवताभ्यो नमः लिङ्गे (मनसा)
ह्रीं शक्ति सहितायै नन्दा-शाकम्भरी-भीमा देवताभ्यो नमः नाभौ
क्लीं कीलक सहितायै अग्नि-वायु-सूर्य तत्त्वेभ्यो नमः गुह्ये
ऋग्-यजुः-साम स्वरुपिणी श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती देवताभ्यो नमः पादौ
श्री महादुर्गा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” – नवार्ण मन्त्र पढ़कर शुद्धि करें ।
षडङ्ग-न्यास
कर-न्यास
ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः
ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां हुम्
ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्
अंग-न्यास :-
ॐ ऐं हृदयाय नमः
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा
ॐ क्लीं शिखायै वषट्
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम्
ॐ विच्चे नेत्र-त्रयाय वौषट्
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट्
अक्षर-न्यासः-
ॐ ऐं नमः शिखायां, ॐ ह्रीं नमः दक्षिण-नेत्रे, ॐ क्लीं नमः वाम-नेत्रे, ॐ चां नमः दक्षिण-कर्णे, ॐ मुं नमः वाम-कर्णे, ॐ डां नमः दक्षिण-नासा-पुटे, ॐ यैं नमः वाम-नासा-पुटे, ॐ विं नमः मुखे, ॐ च्चें नमः गुह्ये ।
व्यापक-न्यासः-
मूल मंत्र से चार बार सम्मुख दो-दो बार दोनों कुक्षि की ओर कुल आठ बार (दोनों हाथों से सिर से पैर तक) न्यास करें ।
दिङ्ग-न्यासः-
ॐ ऐं प्राच्यै नमः, ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः, ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः, ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः, ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः, ॐ क्लीं वायव्यै नमः, ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः, ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः ।
! ध्यानम् !
ॐ खड्गं चक्रगदेषुचाप परिधाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः,
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् ।
नीलाश्मद्युतिमास्य पाददशकां सेवे महाकालिकाम्,
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् ।। १।।
ॐ अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां,
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् ।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ।। २।।
घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दशतीं घनान्तविलसच्छितांशुतुल्य प्रभाम् ।।
गौरीदेहसमुद्भुवां त्रिजगतामाधारभूतां महापूर्वामत्र
सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ।। ३।।
माला-पूजन -
माला स्फटिक की हो ,लाल मुंगे की या रुद्राक्ष की
माला के गन्धाक्षत करें
तथा “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” इस मंत्र से पूजा करके प्रार्थना करें -
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्ति स्वरुपिणि ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तः तस्मान्मे सिद्धिदाभव ।।
ॐ अविघ्नं कुरुमाले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे ।
जपकाले च सिद्धयर्थं प्रसीद मम सिद्धये ।।
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ साधिनि साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।
इसके बाद “ऐ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इस मंत्र का 1,25.000 बार जप करें ।
जप दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राहमण भोज करावें।
! पाठ-समर्पण !
ॐ गुह्याति-गुह्य-गोप्त्री त्वं, गृहाणास्मत्-कृतं जपम् ।
सिद्धिर्मे भवतु देवि ! त्वत्-प्रसादान्महेश्वरि !
उक्त श्लोक पढ़कर देवी के वाम हस्त में जप समर्पित करें।
नवार्ण मंत्र की सिद्धि 9 दिनो मे 1,25,000 मंत्र जप से होती है,
परंतु कोई साधक न कर पाये तो नित्य 1, 3, 5, 7, 11 या 21 माला मंत्र जप करना उत्तम होगा ,
इस विधि से सम्पूर्ण इच्छायें पूर्ण होती है,समस्त दुख समाप्त होते है और धन का आगमन भी सहज रूप से होता है।
यदि मंत्र सिद्ध नहीं हो रहा हो तो “ ऐं ”, “ ह्रीं ”, “ क्लीं ” तथा “ चामुण्डायै विच्चे ” के पृथक पृथक सवा लाख जप करें फिर नवार्ण का पुनश्चरण करें।
नव दुर्गा जी के 108 नाम
महारानी जग कल्याणी तेरी वाहन कमाल है शेर की सवारी माँ तुम्हारी बे मिसाल है
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ॠषिः, अनुष्टुप
छन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः,
सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ।
1 - ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ १ ॥
2 - दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥ २ ॥
3 - सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ३ ॥
4 - शरणागतदीनार्तपरित्राणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ४ ॥
5 - सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥ ५ ॥
6 - रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
7 - त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्र्यन्ति ॥ ६ ॥
सर्वबाधाप्रश्मनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ७ ॥
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
1. सती : अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली
2. साध्वी : आशावादी
3. भवप्रीता : भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली
4. भवानी : ब्रह्मांड की निवास
5. भवमोचनी : संसार बंधनों से मुक्त करने वाली
6. आर्या : देवी
7. दुर्गा : अपराजेय
8. जया : विजयी
9. आद्य : शुरूआत की वास्तविकता
10. त्रिनेत्र : तीन आँखों वाली
11. शूलधारिणी : शूल धारण करने वाली
12. पिनाकधारिणी : शिव का त्रिशूल धारण करने वाली
13. चित्रा : सुरम्य, सुंदर
14. चण्डघण्टा : प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली, घंटे की आवाज निकालने वाली
15. महातपा : भारी तपस्या करने वाली
16. मन : मनन- शक्ति
17. बुद्धि : सर्वज्ञाता
18. अहंकारा : अभिमान करने वाली
19. चित्तरूपा : वह जो सोच की अवस्था में है
20. चिता : मृत्युशय्या
21. चिति : चेतना
22. सर्वमन्त्रमयी : सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली
23. सत्ता : सत्-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है
24. सत्यानन्दस्वरूपिणी : अनन्त आनंद का रूप
25. अनन्ता : जिनके स्वरूप का कहीं अन्त नहीं
26. भाविनी : सबको उत्पन्न करने वाली, खूबसूरत औरत
27. भाव्या : भावना एवं ध्यान करने योग्य
28. भव्या : कल्याणरूपा, भव्यता के साथ
29. अभव्या : जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं
30. सदागति : हमेशा गति में, मोक्ष दान
31. शाम्भवी : शिवप्रिया, शंभू की पत्नी
32. देवमाता : देवगण की माता
33. चिन्ता : चिन्ता
34. रत्नप्रिया : गहने से प्यार
35. सर्वविद्या : ज्ञान का निवास
36. दक्षकन्या : दक्ष की बेटी
37. दक्षयज्ञविनाशिनी : दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली
38. अपर्णा : तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली
39. अनेकवर्णा : अनेक रंगों वाली
40. पाटला : लाल रंग वाली
41. पाटलावती : गुलाब के फूल या लाल परिधान या फूल धारण करने वाली
42. पट्टाम्बरपरीधाना : रेशमी वस्त्र पहनने वाली
43. कलामंजीरारंजिनी : पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली
44. अमेय : जिसकी कोई सीमा नहीं
45. विक्रमा : असीम पराक्रमी
46. क्रूरा : दैत्यों के प्रति कठोर
47. सुन्दरी : सुंदर रूप वाली
48. सुरसुन्दरी : अत्यंत सुंदर
49. वनदुर्गा : जंगलों की देवी
50. मातंगी : मतंगा की देवी
51. मातंगमुनिपूजिता : बाबा मतंगा द्वारा पूजनीय
52. ब्राह्मी : भगवान ब्रह्मा की शक्ति
53. माहेश्वरी : प्रभु शिव की शक्ति
54. इंद्री : इन्द्र की शक्ति
55. कौमारी : किशोरी
56. वैष्णवी : अजेय
57. चामुण्डा : चंड और मुंड का नाश करने वाली
58. वाराही : वराह पर सवार होने वाली
59. लक्ष्मी : सौभाग्य की देवी
60. पुरुषाकृति : वह जो पुरुष धारण कर ले
61. विमिलौत्त्कार्शिनी : आनन्द प्रदान करने वाली
62. ज्ञाना : ज्ञान से भरी हुई
63. क्रिया : हर कार्य में होने वाली
64. नित्या : अनन्त
65. बुद्धिदा : ज्ञान देने वाली
66. बहुला : विभिन्न रूपों वाली
67. बहुलप्रेमा : सर्व प्रिय
68. सर्ववाहनवाहना : सभी वाहन पर विराजमान होने वाली
69. निशुम्भशुम्भहननी : शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली
70. महिषासुरमर्दिनि : महिषासुर का वध करने वाली
71. मधुकैटभहंत्री : मधु व कैटभ का नाश करने वाली
72. चण्डमुण्ड विनाशिनि : चंड और मुंड का नाश करने वाली
73. सर्वासुरविनाशा : सभी राक्षसों का नाश करने वाली
74. सर्वदानवघातिनी : संहार के लिए शक्ति रखने वाली
75. सर्वशास्त्रमयी : सभी सिद्धांतों में निपुण
76. सत्या : सच्चाई
77. सर्वास्त्रधारिणी : सभी हथियारों धारण करने वाली
78. अनेकशस्त्रहस्ता : हाथों में कई हथियार धारण करने वाली
79. अनेकास्त्रधारिणी : अनेक हथियारों को धारण करने वाली
80. कुमारी : सुंदर किशोरी
81. एककन्या : कन्या
82. कैशोरी : जवान लड़की
83. युवती : नारी
84. यति : तपस्वी
85. अप्रौढा : जो कभी पुराना ना हो
86. प्रौढा : जो पुराना है
87. वृद्धमाता : शिथिल
88. बलप्रदा : शक्ति देने वाली
89. महोदरी : ब्रह्मांड को संभालने वाली
90. मुक्तकेशी : खुले बाल वाली
91. घोररूपा : एक भयंकर दृष्टिकोण वाली
92. महाबला : अपार शक्ति वाली
93. अग्निज्वाला : मार्मिक आग की तरह
94. रौद्रमुखी : विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा
95. कालरात्रि : काले रंग वाली
96. तपस्विनी : तपस्या में लगे हुए
97. नारायणी : भगवान नारायण की विनाशकारी रूप
98. भद्रकाली : काली का भयंकर रूप
99. विष्णुमाया : भगवान विष्णु का जादू
100. जलोदरी : ब्रह्मांड में निवास करने वाली
101. शिवदूती : भगवान शिव की राजदूत
102. करली : हिंसक
103. अनन्ता : विनाश रहित
104. परमेश्वरी : प्रथम देवी
105. कात्यायनी : ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय
106. सावित्री : सूर्य की बेटी
107. प्रत्यक्षा : वास्तविक
108. ब्रह्मवादिनी :
नवरात्री मे १०८ देवी का जाप करने से मंगल कारी है।
नवरात्रि में करें राशि अनुसार उपाय
इस बार नवरात्रि का प्रारंभ 5 अक्टूबर, शनिवार हुआ है, इसका समापन 13 अक्टूबर, रविवार को होगा। इन नौ दिनों में हर कोई अपने-अपने तरीके से माता की आराधना करता है लेकिन उद्देश्य केवल एक होता है माता की कृपा प्राप्त करना। कोई नौ दिन तक उपवास रखता है तो कोई नौ दिनों तक चप्पल नहीं पहनता।
यदि इस नवरात्रि में आप माता को प्रसन्न करना चाहते हैं तो अपनी राशि के अनुसार मां दुर्गा की पूजा
मेष- इस राशि के लोगों को स्कंदमाता की विशेष उपासना करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें। स्कंदमाता करुणामयी हैं, जो वात्सल्यता का भाव रखती हैं।
वृषभ- वृषभ राशि के लोगों को महागौरी स्वरूप की उपासना से विशेष फल प्राप्त होते हैं। ललिता सहस्र नाम का पाठ करें। जन-कल्याणकारी है। अविवाहित कन्याओं को आराधना से उत्तम वर की प्राप्ति होती है।
मिथुन- इस राशि के लोगों को देवी यंत्र स्थापित कर ब्रह्मचारिणी की उपासना करनी चाहिए साथ ही तारा कवच का रोज पाठ करें। मां ब्रह्मचारिणी ज्ञान प्रदाता व विद्या के अवरोध दूर करती हैं।
कर्क- कर्क राशि के लोगों को शैलपुत्री की पूजा-उपासना करनी चाहिए। लक्ष्मी सहस्रनाम का पाठ करें। भगवती की वरद मुद्रा अभय दान प्रदान करती हैं।
सिंह- सिंह राशि के लिए मां कूष्मांडा की साधना विशेष फल करने वाली है। दुर्गा मंत्रों का जप करें। ऐसा माना जाता है कि देवी मां के हास्य मात्र से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। देवी बलि प्रिया हैं, अत: साधक नवरात्र की चतुर्थी को आसुरी प्रवृत्तियों यानी बुराइयों का बलिदान देवी के चरणों में निवेदित करते हैं।
कन्या- इस राशि के लोगों को मां ब्रह्मचारिणी का पूजन करना चाहिए। लक्ष्मी मंत्रों का साविधि जप करें। ज्ञान प्रदान करती हुई विद्या मार्ग के अवरोधों को दूर करती हैं। विद्यार्थियों हेतु देवी की साधना फलदाई है।
तुला- तुला राशि के लोगों को महागौरी की पूजा-आराधना से विशेष फल प्राप्त होते हैं। काली चालीसा या सप्तशती के प्रथम चरित्र का पाठ करें। जन-कल्याणकारी हैं। अविवाहित कन्याओं को आराधना से उत्तम वर की प्राप्ति होती है।
वृश्चिक- वृश्चिक राशि के लोगों को स्कंदमाता की उपासना श्रेष्ठ फल प्रदान करती है। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
धनु- इस राशि वाले मां चंद्रघंटा की उपासना करें। संबंधित मंत्रों का यथाविधि अनुष्ठान करें। घंटा प्रतीक है उस ब्रह्मनाद का, जो साधक के भय एवं विघ्नों को अपनी ध्वनि से समूल नष्ट कर देता है।
मकर- मकर राशि के लोगों के लिए कालरात्रि की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। नर्वाण मंत्र का जप करें। अंधकार में भक्तों का मार्गदर्शन और प्राकृतिक प्रकोप, अग्निकांड आदि का शमन करती हैं। शत्रु संहारक है।
कुंभ- कुंभ राशि वाले व्यक्तियों के लिए कालरात्रि की उपासना लाभदायक है। देवी कवच का पाठ करें। अंधकार में भक्तों का मार्गदर्शन और प्राकृतिक प्रकोपों का शमन करती हैं।
मीन- मीन राशि के लोगों को मां चंद्रघंटा की उपासना करनी चाहिए। हरिद्रा (हल्दी) की माला से यथासंभव बगलामुखी मंत्र का जप करें। घंटा उस ब्रह्मनाद का प्रतीक है, जो साधक के भय एवं विघ्नों को अपनी ध्वनि से समूल नष्ट कर देता है।
माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र
१॰ बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये
“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥” (अ॰१२,श्लो॰१३)
अर्थ :- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
२॰ बन्दी को जेल से छुड़ाने हेतु
“राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा।
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे।।” (अ॰१२, श्लो॰२७)
३॰ सब प्रकार के कल्याण के लिये
“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१०)
अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।
४॰ दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये
“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥” (अ॰४,श्लो॰१७)
अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दयार्द्र रहता हो।
४॰ वित्त, समृद्धि, वैभव एवं दर्शन हेतु
“यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।।
संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः।
यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने।।
तस्य वित्तर्द्धिविभवैर्धनदारादिसम्पदाम्।
वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके।। (अ॰४, श्लो॰३५,३६,३७)
५॰ समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये
“विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति :॥” (अ॰११, श्लो॰६)
अर्थ :- देवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे एवं परा वाणी हो।
६॰ शास्त्रार्थ विजय हेतु
“विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेष्वाद्येषु च का त्वदन्या।
ममत्वगर्तेऽति महान्धकारे, विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम्।।” (अ॰११, श्लो॰ ३१)
७॰ संतान प्राप्ति हेतु
“नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” (अ॰११, श्लो॰४२)
८॰ अचानक आये हुए संकट को दूर करने हेतु
“ॐ इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्ॐ।।” (अ॰११, श्लो॰५५)
९॰ रक्षा पाने के लिये
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥
अर्थ :- देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।
१०॰ शक्ति प्राप्ति के लिये
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थ :- तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।
११॰ प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥
अर्थ :- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीया परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।
१२॰ विविध उपद्रवों से बचने के लिये
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥
अर्थ :- जहाँ राक्षस, जहाँ भयंकर विषवाले सर्प, जहाँ शत्रु, जहाँ लुटेरों की सेना और जहाँ दावानल हो, वहाँ तथा समुद्र के बीच में भी साथ रहकर तुम विश्व की रक्षा करती हो।
१३॰ बाधा शान्ति के लिये
“सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥” (अ॰११, श्लो॰३८)
अर्थ :- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।
१४॰ सर्वविध अभ्युदय के लिये
ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्ग:।
धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥
अर्थ :- सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली आप जिन पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं।
१५॰ सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिये
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥
अर्थ :- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।
१६॰ आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
अर्थ :- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।
१७॰ महामारी नाश के लिये
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
अर्थ :- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।
१८॰ रोग नाश के लिये
“रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥” (अ॰११, श्लो॰ २९)
अर्थ :- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाञ्छित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।
१९॰ विपत्ति नाश के लिये
“शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१२)
अर्थ :- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।
२०॰ पाप नाश के लिये
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥
अर्थ :- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है।
१७॰ भय नाश के लिये
“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ ” (अ॰११, श्लो॰ २४,२५,२६)
अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।
२१॰ विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।
अर्थ :- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।
२२॰ विश्व की रक्षा के लिये
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥
अर्थ :- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये।
२३॰ विश्व के अभ्युदय के लिये
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्वाश्रया ये त्वयि भक्ति नम्रा:॥
अर्थ :- विश्वेश्वरि! तुम विश्व का पालन करती हो। विश्वरूपा हो, इसलिये सम्पूर्ण विश्व को धारण करती हो। तुम भगवान् विश्वनाथ की भी वन्दनीया हो। जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे सम्पूर्ण विश्व को आश्रय देनेवाले होते हैं।
२४॰ विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
अर्थ :- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो।
२५॰ विश्व के पाप-ताप निवारण के लिये
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥
अर्थ :- देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो।
२६॰ विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये
यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥
अर्थ :- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें।
२७॰ सामूहिक कल्याण के लिये
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥
अर्थ :- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें।
२८॰ भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
२९॰ पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये
नतेभ्यः सर्वदा भक्तया चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
३०॰ स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये
सर्वभूता यदा देवि स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥
३१॰ स्वर्ग और मुक्ति के लिये
“सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य ह्रदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोस्तुऽते॥” (अ॰११, श्लो८)
३२॰ मोक्ष की प्राप्ति के लिये
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः॥
३३॰ स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥
३४॰ प्रबल आकर्षण हेतु
“ॐ महामायां हरेश्चैषा तया संमोह्यते जगत्,
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।” (अ॰१, श्लो॰५५)
जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा ,संपर्क सूत्र- 9760924411