श्री पंचमुख हनुमानजी उपासना
श्री पंचमुख हनुमानजी उपासना भावार्थ के साथ ।
यहां हनुमानजी के पंचमुख का रहस्य , सरल पूजा विधान ओर पंचवक्त्र स्तोत्र हिंदी भावार्थ के साथ दे रहे है । हनुमानजी की प्रसन्नता का ये सर्वोत्तम विधान है । जीवन की समस्याओं के निराकरण केलिए बाकी सारे विधान करते करते थक गए है तो ये विधान अवश्य ही फलदायी होगा । क्योंकि समस्याओ के मूल कारण कर्मदोष , देवदोष , तंत्रबाधा , पितृबाधा , भूमिदोष जैसे सभी कारणों का ये इलाज है । समस्याओ का निराकरण तो अवश्य होगा साथ साथ महावीर हनुमानजी के दर्शन भी अवश्य होंगे , पर एक शर्त सिर्फ और सिर्फ " एकोदेव हनुमंत " का भाव होगा तब ही सफल हो सकते है । ज्यादातर लोग अनेक गुरुओ के मार्गदर्शन , अनेक देव पूजन , विविध मंत्र स्तोत्र करने लगते है और फल स्वरूप किसी भी एक देव पर पूर्ण श्रद्धा नही बनती ओर बिना श्रद्धा कभी फल संभव नही है ।
" हनुमान जी का पांच मुख वाला विराट रूप यानी पंचमुखी अवतार पांच दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है। प्रत्येक स्वरूप में एक मुख, त्रिनेत्र और दो भुजाएं हैं। इन पांच मुखों में नरसिंह, गरुड़, अश्व, वानर और वराह रूप हैं। इनके पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रधान माने जाते हैं। पूर्व की तरफ जो मुंह है उसे वानर कहा गया है जिसकी चमक सैकड़ों सूर्यों के वैभव के समान है। इस मुख का पूजन करने से शत्रुओं पर विजय पाई जा सकती है।
रामायण के मुताबिक श्री हनुमान का विराट स्वरूप पांच मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है। हनुमान के पांच मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित माने गएं हैं। पौराणिक मान्यता के मुताबिक पंचमुखी हनुमान का अवतार भक्तों का कल्याण करने के लिए हुआ हैं। हनुमान के पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित हैं। पंचमुखी हनुमानजी का अवतार मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को माना जाता हैं। रुद्र के अवतार हनुमान ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। इसकी आराधना से बल, कीर्ति, आरोग्य और निर्भीकता बढती है।
पंचमुख हनुमान के पूर्व की ओर का मुख वानर का हैं जिसकी प्रभा करोडों सूर्यों के तेज समान हैं। पूर्व मुख वाले हनुमान का पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है। पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड का हैं जो भक्तिप्रद, संकट, विघ्न-बाधा निवारक माने जाते हैं। गरुड की तरह हनुमानजी भी अजर-अमर माने जाते हैं। हनुमानजी का उत्तर की ओर मुख शूकर का है और इनकी आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति,ऐश्वर्य, यश, दिर्धायु प्रदान करने वाल व उत्तम स्वास्थ्य देने में समर्थ हैं। हनुमानजी का दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान नृसिंह का है जो भक्तों के भय, चिंता, परेशानी को दूर करता हैं।
अहिरावण जिसे रावण का मायावी भाई माना जाता था, जब रावण परास्त होने कि स्थिति में था, तब उसने अपने मायावी भाई का सहारा लिया और रामजी की सेना को निंद्रा में डाल दिया। इस पर जब हनुमान जी राम और लक्ष्मण को पाताल लोक लेने गए तो उनकी भेट उनके मकरपुत्र से हुई। मकर पुत्र को परास्त करने के बाद उन्हें पाताल लोक में 5 जले हुए दिए दिखे, जिसे बुझाने पर अहिरावण का नाश होना था।
इस स्थिति में हनुमान जी ने, उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को उस से मुक्त किया। इस प्रकार हनुमान जी को पंचमुखी कहलाया जाने लगा।
ऊँ पंचवक्त्र वीर हनुमते नमः
हनुमान जी का पूजन और साधना विभिन्न रूपों और स्वरूपों में की जाती है जो कमोबेश सभी भक्त प्रेमी जानते हैं। हनुमानजी के बालरूप और संकटमोचन रूप की वैसे तो ज्यादा ही भक्तों के मध्य महत्ता है पर 'एक मुखी' और 'पंचमुखी' स्वरूप के साथ हनुमानजी के काफी चमत्कारी रूप और अद्भुत शक्ति का दृष्टांत देखने व सुनने को मिलता हैं।
कहते है कि पंचमुखी हनुमानजी की पूजा करने पर भक्तों को बेजोड़ और रहस्यमयी गूढ़ शक्तियां प्राप्त होती हैं।
इनके पांच मुख क्रमशः पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और उर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित हैं।
रूद्र अवतार, ऊर्जस्वित, बल और कीर्ति को बढ़ाने वाले तथा निर्भयता प्रदान करने वाले हैं।
इनके पांच मुख - नृसिंह, गरुड़, अश्व, वानर और वराह रूप के परिचायक हैं।
पंचमुखी हनुमानजी का वानर मुख जो पूर्व की ओर है उसे पूजने से शत्रुओं का नाश होता हैं क्योंकि पूर्वमुख वाले हनुमानजी की आभा करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं।
पश्चिम दिशा की ओर जो गरुड़ मुख है जिसे हनुमानजी के सदृश ही अजर-अमर होने का वरदान मिला है। इस मुख के पूजन से सर्व विघ्न बाधाएं कटती हैं, भक्ति, शक्ति का वरदान मिलता हैं।
उत्तर दिशा की ओर शूकर मुख है जिसे आरोग्य, धन, ऐश्वर्य का दानी माना गया है। इसकी आराधना से भक्त दीर्घायु, यश, मान, संपत्ति से परिपूर्ण हो जाता हैं।
दक्षिण मुखी स्वरूप नृसिंह का है जो भक्तों को चिंतारहित, भयरहित जीवनयापन करने का अभयदान देते हैं।
ब्रह्माजी के कारण उत्पन्न हुए उर्ध्व मुख घोड़े के समान है जिसका भक्तों के समस्त दुःखों को दूर करने व उनका हर तरह से कल्याण करने के लिए अवतरण हुआ हैं।
पूजन विधि-
हनुमानजी का पूजन करते समय सबसे पहले कंबल या ऊन के आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। इसके पश्चात हाथ में चावल व फूल लें व इस मंत्र से हनुमानजी का ।
ध्यान करें। -
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
ऊँ हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि।।
इसके बाद हाथ में लिया हुआ चावल व फूल हनुमानजी को अर्पित कर दें।
आवाह्नं-
हाथ में फूल लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए श्री हनुमानजी का आवाह्न करें एवं उन फूलों को हनुमानजी को अर्पित कर दें।
उद्यत्कोट्यर्कसंकाशं जगत्प्रक्षोभकारकम्।
श्रीरामड्घ्रिध्याननिष्ठं सुग्रीवप्रमुखार्चितम्।।
विन्नासयन्तं नादेन राक्षसान् मारुतिं भजेत्।।
ऊँ हनुमते नम: आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।।
आसन-
नीचे लिखे मंत्र से हनुमानजी को आसन अर्पित करें (आसन के लिए कमल अथवा गुलाब का फूल अर्पित करें।) अथवा चावल या पत्ते आदि का भी उपयोग हो सकता है |
तप्तकांचनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
इसके बाद इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए हनुमानजी के सामने किसी बर्तन अथवा भूमि पर तीन बार जल छोड़ें।
ऊँ हनुमते नम:, पाद्यं समर्पयामि।।
अध्र्यं समर्पयामि। आचमनीयं समर्पयामि।।
इसके बाद हनुमानजी को गंध, सिंदूर, कुंकुम, चावल, फूल व हार अर्पित करें।
अब इस मंत्र के साथ हनुमानजी को धूप-दीप दिखाएं-
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।।
त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोस्तु ते।।
ऊँ हनुमते नम:, दीपं दर्शयामि।।
इसके बाद केले के पत्ते पर या किसी कटोरी में पान के पत्ते के ऊपर प्रसाद रखें और हनुमानजी को अर्पित कर दें तत्पश्चात ऋतुफल अर्पित करें। (प्रसाद में चूरमा, भीगे हुए चने या गुड़ चढ़ाना उत्तम रहता है।)
इसके बाद एक थाली में कर्पूर एवं घी का दीपक जलाकर हनुमानजी की आरती करें। इस प्रकार पूजन करने से हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं तथा साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
॥श्री पंचमुख-हनुमत्-कवच
॥अथ श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचम् ॥
श्रीगणेशाय नम:| ॐ अस्य श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषि:| गायत्री छंद:| पञ्चमुख-विराट् हनुमान् देवता| ह्रीम् बीजम्| श्रीम् शक्ति:| क्रौम् कीलकम्| क्रूम् कवचम्| क्रैम् अस्त्राय फट् | इति दिग्बन्ध:|
इस स्तोत्र के ऋषि ब्रह्मा हैं, छंद गायत्री है, देवता पंचमुख-विराट-हनुमानजी हैं, ह्रीम् बीज है, श्रीम् शक्ति है, क्रौम् कीलक है, क्रूम् कवच है और ‘क्रैम् अस्त्राय फट्’ यह दिग्बन्ध है|
॥श्री गरुड उवाच ॥
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि शृणु सर्वांगसुंदर|
यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत: प्रियम् ॥१॥
गरुडजी ने कहा – हे सर्वांगसुंदर, देवाधिदेव के द्वारा, उन्हें प्रिय रहने वाला जो हनुमानजी का ध्यान किया गया, उसे स्पष्ट करता हूँ, सुनो|
पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम्|
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ॥२॥
पाँच मुख वाले, अत्यन्त विशाल रहने वाले, तीन गुना पाँच यानी पंद्रह नेत्र (त्रि-पञ्च-नयन) रहने वाले ऐसे ये पंचमुख-हनुमानजी हैं| दस हाथों से युक्त, सकल काम एवं अर्थ इन पुरुषार्थों की सिद्धि कराने वाले ऐसे वे हैं|
पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्|
दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटिकुटिलेक्षणम्॥३॥
इनका पूर्व दिशा का या पूर्व दिशा की ओर देखने वाला जो मुख है, वह वानरमुख है, जिसकी प्रभा (तेज) कोटि (करोडों) सूर्यों के जितनी है|
उनका यह मुख कराल (कराल = भयकारक) दाढ़ें रहने वाला मुख है| भ्रुकुटि यानी भौंह और कुटिल यानी टेढी| भौंह टेढी करके देखने वाला ऐसा यह मुख है|
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्|
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥४॥
वक्त्र यानी चेहरा, मुख, वदन. इनका दक्षिण दिशा का या दक्षिण दिशा की तरफ देखने वाला जो मुख है, वह नारसिंहमुख है और वह बहुत ही अद्भुत है|
अत्यधिक उग्र ऐसा तेज रहने वाला वपु (वपु = शरीर) जिनका है, ऐसे हनुमानजी (अत्युग्रतेजोवपुषं) का यह मुख भय उत्पन्न करने वाला (भीषणं) और भय नष्ट करने वाला मुख है| (हनुमानजी का मुख एक ही समय पर बुरे लोगों के लिए भीषण और भक्तों के लिए भयनाशक है|)
पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् |
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्॥५॥
पश्चिम दिशा का अथवा पश्चिम दिशा में देखने वाला जो मुख है, वह गरुडमुख है| वह गरुडमुख वक्रतुण्ड है| साथ ही वह मुख महाबल है, बहुत ही सामर्थ्यवान है|
सारे नागों का प्रशमन करने वाला, विष और भूत आदि का (विषबाधा, भूतबाधा आदि बाधाओं का) कृन्तन करने वाला (उन्हें पूरी तरह नष्ट कर वशने वाला) ऐसा यह (पंचमुख-हनुमानजी का) गरुडानन है|
उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम्|
पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥६ ॥
उत्तर दिशा का या उत्तर दिशा में देखने वाला मुख यह वराहमुख है| वह कृष्ण वर्ण का (काले रंग का) है, तेजस्वी है, जिसकी उपमा आकाश के साथ की जा सकती है ऐसा है|
पातालनिवासियों का प्रमुख रहने वाला वेताल और भूलोक में कष्ट पहुँचाने वालीं बीमारियों का प्रमुख रहने वाला ज्वर (बुखार) इनका कृन्तन करने वाला, इन्हें समूल नष्ट करने वाला ऐसा यह उत्तर दिशा का वराहमुख है|
ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्|
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥
जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम्|
ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥८॥
ऊर्ध्व दिशा का या ऊर्ध्व दिशा में देखने वाला जो मुख है, वह अश्वमुख है| हय यानी घोडा = अश्व| यह दानवों का नाश करने वाला ऐसा श्रेष्ठ मुख है|
हे विप्रेन्द्र (श्रेष्ठ गायत्री उपासक), तारकाख्य नाम के प्रचंड असुर को नष्ट कर देने वाला यह अश्वमुख है| सारे शत्रुओं का हरण करने वाले श्रेष्ठ पंचमुख-हनुमानजी की तुम शरण में रहो|
रुद्र और दयानिधि इन दोनों रूपों में रहने वाले हनुमानजी का ध्यान करें और (अब गरुडजी पंचमुख-हनुमानजी के दस आयुधों के बारे में बता रहे हैं|)
खड़्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् |
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम्|
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्॥१०॥
पंचमुख-हनुमानजी के हाथों में तलवार, त्रिशूल, खट्वाङ्ग नाम का आयुध, पाश, अंकुश, पर्वत है| साथ ही मुष्टि नाम का आयुध, कौमोदकी गदा, वृक्ष और कमंडलु इन्हें भी पंचमुख-हनुमानजी ने धारण किया है|
पंचमुख-हनुमानजी ने भिंदिपाल भी धारण किया है| (भिंदिपाल यह लोहे से बना विलक्षण अस्त्र है| इसे फेंककर मारा जाता है, साथ ही इसमें से बाण भी चला सकते हैं| पंचमुख-हनुमानजी का दसवाँ आयुध है, ‘ज्ञानमुद्रा’| इस तरह दस आयुध और इन आयुधों के जाल उन्होंने धारण किये हैं| ऐसे इन मुनिपुंगव (मुनिश्रेष्ठ) पंचमुख-हनुमानजी की मैं (गरुड) स्वयं भक्ति करता हूँ|
प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम्|
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्॥११॥
वे प्रेतासन पर बैठे हैं (प्रेतासनोपविष्ट) (उपविष्ट यानी बैठे हुए), वे सारे आभरणों से भूषित हैं (आभरण यानी अलंकार, गहने), सारे अलंकारों से सुशोभित ऐसे (सारे अलंकारों से = सकल ऐश्वर्यों से विभूषित) हैं|
दिव्य मालाओं एवं दिव्य वस्त्र (अंबर) को उन्होंने धारण किया है| साथ ही दिव्यगंध का लेप उन्होंने बदन पर लगाया है|
सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतो मुखम् ॥
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं
शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम्|
पीताम्बरादिमुकुटैरुपशोभिताङ्गं
पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि॥१२॥
सकल आश्चर्यों से भरे हुए, आश्चर्यमय ऐसे ये हमारे प्रभु हैं| विश्व में सर्वत्र जिन्होंने मुख किया है, ऐसे ये पंचमुख-हनुमानजी हैं|ऐसे ये पॉंच मुख रहने वाले (पञ्चास्य), अच्युत और अनेक अद्भुत वर्णयुक्त (रंगयुक्त) मुख रहने वाले हैं|
शश यानी खरगोश| शश जिसकी गोद में है ऐसा चन्द्र यानी शशांक| ऐसे शशांक को यानी चन्द्र को जिन्होंने माथे (शिखर) पर धारण किया है, ऐसे ये (शशांकशिखर) हनुमानजी हैं| कपियों में सर्वश्रेष्ठ रहने वाले ऐसे ये हनुमानजी हैं| पीतांबर, मुकुट आदि से जिनका अंग सुशोभित है, ऐसे ये हैं|
पिङ्गाक्षं, आद्यम् और अनिशं ये तीन शब्द यहाँ पर हैं| गुलाबी आभायुक्त पीत वर्ण के अक्ष (इंद्रिय/आँखें) रहने वाले ऐसे ये हैं| ये आद्य यानी पहले हैं| ये अनिश हैं
यानी निरंतर हैं अर्थात् शाश्वत हैं| ऐसे इन पंचमुख-हनुमानजी का हम मनःपूर्वक स्मरण करते हैं|
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम्|
शत्रुं संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर॥
वानरश्रेष्ठ, प्रचंड उत्साही हनुमानजी सारे शत्रुओं का नि:पात करते हैं| हे श्रीमन् पंचमुख-हनुमानजी, मेरे शत्रुओं का संहार कीजिए| मेरी रक्षा कीजिए| संकट में से मेरा उध्दार कीजिए|
ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले|
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता॥
ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा|
महाप्राण हनुमानजी के बाँये पैर के तलवे के नीचे ‘ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा’ यह जो लिखेगा, उसके केवल शत्रु का ही नहीं बल्कि शत्रुकुल का नाश हो जायेगा| वाम यह शब्द यहाँ पर वाममार्ग का यानी कुमार्ग का प्रतिनिधित्व करता है| वाममार्ग पर जाने की प्रवृत्ति, खिंचाव यानी वामलता| (जैसे कोमल-कोमलता, वैसे वामल-वामलता|) इस वामलता को यानी दुरितता को, तिमिरप्रवृत्ति को हनुमानजी समूल नष्ट कर देते हैं|
अब हर एक वदन को ‘स्वाहा’ कहकर नमस्कार किया है|
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा|
सकल शत्रुओं का संहार करने वाले पूर्वमुख को, कपिमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार|
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा|
दुष्प्रवृत्तियों के प्रति भयानक मुख रहने वाले (करालवदनाय), सारे भूतों का उच्छेद करने वाले, दक्षिणमुख को, नरसिंहमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार|
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा|
सारे विषों का हरण करने वाले पश्चिममुख को, गरुडमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार|
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा|
सकल संपदाएँ प्रदान करने वाले उत्तरमुख को, आदिवराहमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार|
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा|
सकल जनों को वश में करने वाले, ऊर्ध्वमुख को, अश्वमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार|
ॐ श्रीपञ्चमुखहनुमन्ताय आञ्जनेयाय नमो नम:॥
आञ्जनेय श्री पञ्चमुख-हनुमानजी को पुन: पुन: नमस्कार|
पूजन स्तोत्र के बाद भगवान श्री राम की धुन अवश्य करे । हनुमान चालीसा ओर सीताराम गुणगान से हनुमान जी शीघ्र ही प्रसन्न होते है । पूजा के अन्तमे क्षमापर्ण पढ़े :-
"मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं l यत पूजितं मया देव, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव l
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं l पूजा चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं "
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