कार्य-सिद्ध भैरव शाबर मन्त्र

कार्य-सिद्ध भैरव शाबर मन्त्र 

 मन्त्रः- “ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ-कार ! ॐ गुरु भु-मसान, ॐ गुरु सत्य गुरु, सत्य नाम काल भैरव कामरु जटा चार पहर खोले चोपटा, बैठे नगर में सुमरो तोय दृष्टि बाँध दे सबकी । मोय हनुमान बसे हथेली । भैरव बसे कपाल । नरसिंह जी की मोहिनी मोहे सकल संसार । भूत मोहूँ, प्रेत मोहूँ, जिन्द मोहूँ, मसान मोहूँ, घर का मोहूँ, बाहर का मोहूँ, बम-रक्कस मोहूँ, कोढ़ा मोहूँ, अघोरी मोहूँ, दूती मोहूँ, दुमनी मोहूँ, नगर मोहूँ, घेरा मोहूँ, जादू-टोना मोहूँ, डंकणी मोहूँ, संकणी मोहूँ, रात का बटोही मोहूँ, पनघट की पनिहारी मोहूँ, इन्द्र का इन्द्रासन मोहूँ, गद्दी बैठा राजा मोहूँ, गद्दी बैठा बणिया मोहूँ, आसन बैठा योगी मोहूँ, और को देखे जले-भुने मोय देखके पायन परे। जो कोई काटे मेरा वाचा अंधा कर, लूला कर, सिड़ी वोरा कर, अग्नि में जलाय दे, धरी को बताय दे, गढ़ी बताय दे, हाथ को बताय दे, गाँव को बताय दे, खोए को मिलाए दे, रुठे को मनाय दे, दुष्ट को सताय दे, मित्रों को बढ़ाए दे । वाचा छोड़ कुवाचा चले, माता क चोंखा दूध हराम करे । हनुमान की आण, गुरुन को प्रणाम । ब्रह्मा-विष्णु साख भरे, उनको भी सलाम । लोना चमारी की आण, माता गौरा पारवती महादेव जी की आण । गुरु गोरखनाथ की आण, सीता-रामचन्द्र की आण । मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति । गुरु के वचन से चले, तो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।” 

विधिः- सर्व-कार्य सिद्ध करने वाला यह मंत्र अत्यन्त गुप्त और अत्यन्त प्रभावी है । इस मंत्र से केवल परोपकार के कार्य करने चाहिए । १॰ रविवार को पीपल के नीचे अर्द्धरात्रि के समय जाना चाहिए, साथ में उत्तम गुग्गुल, सिन्दूर, शुद्ध केसर, लौंग, शक्कर, पञ्चमेवा, शराब, सिन्दूर लपेटा नारियल, सवा गज लाल कपड़ा, आसन के लिये, चन्दन का बुरादा एवं लाल लूंगी आदि वस्तुएँ ले जानी चाहिए । लाल लूंगी पहन कर पीपल के नीचे चौका लगाकर पूजन करें, धूप देकर सब सामान अर्पित करे । साथ में तलवार और लालटेन रखनी चाहिए । प्रतिदिन १०८ बार २१ दिन तक जप करें । यदि कोई कौतुक दिखाई पड़े तो डरना नहीं चाहिए । मंत्र सिद्ध होने पर जब भी उपयोग में लाना हो, तब आग पर धूप डालकर तीन बार मंत्र पढ़ने से कार्य सिद्ध होंगे । ऊपर जहाँ चौका लगाने के बारे में बताया गया है, उसका अर्थ यह है कि पीली मिट्टी से चौके लगाओ । चार चौकियाँ अलग-अलग बनायें । पहली धूनी गुरु की, फिर हनुमान की, फिर भैरव की, फिर नरसिंह की । यह चारों चौकों में कायम करो । आग रखकर चारों में हवन करें । गुरु की पूजा में गूग्गूल नहीं डाले । नरसिंह की धूनी में नाहरी के फूल एवं शराब और भैरव की धूनी में केवल शराब डालें । २॰ उक्त मन्त्र का अनुष्ठान शनि या रविवार से प्रारम्भ करना चाहिए । एक पत्थर का तीन कोने वाला टुकड़ा लेकर उसे एकान्त में स्थापित करें । उसके ऊपर तेल-सिन्दूर का लेप करें । पान और नारियल भेंट में चढ़ाए । नित्य सरसों के तेल का दीपक जलाए । दीपक अखण्ड रहे, तो अधिक उत्तम फल होगा । मन्त्र को नित्य २७ बार जपे । चालिस दिन तक जप करें । इस प्रकार उक्त मन्त्र सिद्ध हो जाता है । नित्य जप के बाद छार, छबीला, कपूर, केसर और लौंग की आहुति देनी चाहिए । भोग में बाकला, बाटी रखनी चाहिए । जब भैरव दर्शन दें, तो डरें नहीं, भक्ति-पूर्वक प्रणाम करें और उड़द के बने पकौड़े, बेसन के लड्डू तथा गुड़ मिला कर दूध बलि में अर्पित करें । मन्त्र में वर्णित सभी कार्य सिद्ध होते हैं । 

कालभैरव सवारी (शाबर मंत्र विद्या).

आज मै आपको "कालभैरव" भगवान का सवारी शरीर मे बुलाने का गोपनीय विधी बता रहा हू,जो तंत्र के साथ शाबर मंत्र से नाथमुखी प्राप्त विधान है l सवारी आपको तो पता ही होगा क्युके आप लोग अक्सर ये देखते होगे कुछ लोगो मे भैरव का सवारी हनुमान का सवारी महाकाली जी का सवारी आता है और सवारी आने पर "भगत" (जिस इंसान मे सवारी आता है उसको भगत कहा जाता है ) को जो कुछ पुछा जाये वह उसका सटिक जवाब देता है साथ मे सभी कष्ट, पिडा, बाधा, रोग, समस्याओ से मुक्ती दिलवाता है l

आप भी सवारी को अपने शरीर मे बुलाकर जनकल्याण कर सकते है और येसा मत सोचिये के जनकल्याण करेगे तो घर का आर्थिक स्थिति कैसे मजबुत होगा ? आप थोडा ध्यान दे क्युके सुशील नरोले आपको गलत सलाह नही देगा,जब आप जनकल्याण करेगे तो लोगो का भला होगा और जब लोगो का भला होगा तो वही लोग आपको कई रुपया दान मे देगे l किसिसे रुपया माँगना गलत है परंतु दान प्राप्त करना गलत नही है मित्रो,येसा होता तो आप उन लोगो को देखिये जिनमे सवारी आता है l

भैरव को भगवान शंकर का ही अवतार माना गया है, शिव महापुराण में बताया गया है-

"भैरवः पूर्णरूपो हि शंकरः परात्मनः।

मूढ़ास्ते वै न जानन्ति मोहिता शिवमायया।"

‘तंत्रालोक’ में भैरव शब्द की उत्पत्ति भैभीमादिभिः अवतीति भैरेव अर्थात् भीमादि भीषण साधनों से रक्षा करने वाला भैरव है, ‘रुद्रयामल तंत्र’ में दस महाविद्याओं के साथ भैरव के दस रूपों का वर्णन है और कहा गया है कि कोई भी महाविद्या तब तक सिद्ध नहीं होती जब तक उनसे सम्बन्धित भैरव की सिद्धि न कर ली जाय।

भगवान भैरव की साधना वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए भैरव साधना की जाती है। भैरव साधना से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। जन्म कुण्डली में छठा भाव शत्रु का भाव होता है। लग्न में षट भाव भी शत्रु का है। इस भाव के अधिपति, भाव में स्थित ग्रह और उनकी दृष्टि से शत्रु सम्बन्धी कष्ट उत्पन्न होते हैं। षष्ठस्थ-षष्ठेश सम्बन्धियों को शत्रु बनाता है। यह शत्रुता कई कारणें से हो सकती है। आपकी प्रगति कभी-कभी दूसरों को.अच्छी नहीं लगती और आपकी प्रगति को प्रभावित करने के लिए तांत्रिक क्रियाओं का सहारा लेकर आपको प्रभावित करते हैं।

तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव से व्यवसाय, धंधे में आशानुरूप प्रगति नहीं होती। दिया हुआ रुपया नहीं लौटता, रोग या विघ्न से आप पीड़ित रहते हैं अथवा बेकार के मुकद्मेबाजी में धन और समय की बर्बादी हो सकती है। इस प्रकार के शत्रु बाधा निवारण के लिए भैरव साधना फलदायी मानी गई।

नौकरी, व्यापार, जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं कि आप चाह कर भी किसी को अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाते। ऐसे कई लोग हैं जिनको इस बात का दुःख होता है कि जीवन में उन्हें ‘चांस’ नहीं मिला। अक्सर लोग इस बात को कहते हैं कि – उसे अपनी बात कहने का अवसर ही प्राप्त नहीं हुआ, इसलिये काम नहीं हुआ। जीवन में आने वाले अवसरों अर्थात् ‘चांस’ को सुअवसर में बदलने के लिये सम्पन्न करें भगवान भैरव का यह अति विशिष्ट प्रयोग है । जिसको सम्पन्न करने के पश्चात् आप जिस किसी को भी अपनी बात को उसके सामने स्पष्ट करना चाहते हैं कर सकते हैं। यह प्रयोग बालक-वृद्ध, स्त्री-पुरुष किसी पर भी सम्पन्न किया जा सकता है। भगवान भैरव का शाबर तंत्र प्रयोग कोई टोटका नहीं बल्कि शुद्ध तंत्र प्रयोग है जिसका प्रभाव तत्काल रूप से देखा जा सकता है।

‘रुद्रयामल तंत्र’ के अनुसार दस महाविद्याएं और सम्बन्धित भैरव के नाम इस प्रकार हैं-

1. कालिका – महाकाल भैरव

2. त्रिपुर सुन्दरी – ललितेश्वर भैरव

3. तारा – अक्षभ्य भैरव

4. छिन्नमस्ता – विकराल भैरव

5. भुवनेश्वरी – महादेव भैरव

6. धूमावती – काल भैरव

7. कमला – नारायण भैरव

8. भैरवी – बटुक भैरव

9. मातंगी – मतंग भैरव

10. बगलामुखी – मृत्युंजय भैरव

भैरव से सम्बन्धित कई साधनाएं प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित हैं, जैन ग्रंथों में भी भैरव के विशिष्ट प्रयोग दिये हैं। प्राचीनकाल से अब तक लगभग सभी,ग्रंथों में एक स्वर से यह स्वीकार किया गया है कि जब तक साधक भैरव साधना सम्पन्न नहीं कर लेता, तब तक उसे अन्य साधनाओं में प्रवेश करने का अधिकार ही नहीं प्राप्त होता।'शिव पुराण’ में भैरव को शिव का ही अवतार माना है तो ‘विष्णु पुराण’ में बताया गया है कि विष्णु के अंश ही भैरव के रूप में विश्व विख्यात हैं, दुर्गा सप्तशती के पाठ के प्रारम्भ और अंत में भी भैरव की उपासना आवश्यक और महत्वपूर्ण मानी जाती है।

भैरव साधना के बारे में लोगों के मानस में काफी भ्रम और भय है, परन्तु यह साधना अत्यन्त ही सरल, सौम्य और सुखदायक है, इस प्रकार की साधना को कोई भी साधक कर सकता है। भैरव साधना के बारे में कुछ मूलभूत तथ्य साधक को जान लेने चाहिये-

1. भैरव साधना सकाम्य साधना है, अतः कामना के साथ ही इस प्रकार की साधना की जानी चाहिए।

2. भैरव साधना मुख्यतः रात्रि में ही सम्पन्न की जाती है।

3. कुछ विशिष्ट वाममार्गी तांत्रिक प्रयोग में ही भैरव को सुरा का नैवेद्य अर्पित किया जाता है।

4. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य साधना के अनुरूप बदलता रहता है। मुख्य रूप से भैरव को रविवार को दूध की खीर, सोमवार को मोदक (लड्डू), मंगलवार को घी-गुड़ से बनी हुई लापसी, बुधवार को दही-चिवड़ा, गुरुवार को बेसन के लड्डू,शुक्रवार को भुने हुए चने तथा शनिवार को उड़द के बने हुए पकौड़े का नैवेद्य लगाते हैं, इसके अतिरिक्त जलेबी, सेव, तले हुए पापड़ आदिका नैवेद्य लगाते हैं।

देवताओं ने भैरव की उपासना करते हुए बताया है कि काल की भांति रौद्र होने के कारण ही आप ‘कालराज’ हैं, भीषण होने से आप ‘भैरव’ हैं, मृत्यु भी आप से भयभीत रहती है, अतः आप काल भैरव हैं, दुष्टात्माओं का मर्दन करने में आप सक्षम हैं, इसलिए आपको ‘आमर्दक’ कहा गया है, आप समर्थ हैं और शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले हैं।

साधना के लिए आवश्यक:-

ऊपर लिखे गये नियमों के अलावा कुछ अन्य नियमों की जानकारी साधक के लिए आवश्यक है, जिनका पालन किये बिना भैरव साधना पूरी नहीं हो पाती।

1. भैरव की पूजा में अर्पित नैवेद्य प्रसाद को उसी स्थान पर पूजा के कुछ समय बाद ग्रहण करना चाहिए, इसे पूजा स्थान से बाहर नहीं ले जाया जा सकता, सम्पूर्ण प्रसाद उसी समय पूर्ण कर देना चाहिए।

2. भैरव साधना में केवल तेल के दीपक का ही प्रयोग किया जाता है, इसके अतिरिक्त गुग्गुल, धूप-अगरबत्ती जलाई जाती है।

3. इस महत्वपूर्ण साधना हेतु ‘चित्र’ आवश्यक है, भैरव चित्र को स्थापित कर साधना क्रम प्रारम्भ करना चाहिए।

4. भैरव साधना में केवल ‘काली हकीक

माला’ का ही प्रयोग किया जाता है।

यह प्रयोग किसी भी रविवार, मंगलवार अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सम्पन्न किया जा सकता है। भैरव साधना मुख्यतः रात्रि काल में ही सम्पन्न की जाती है परन्तु इस प्रयोग को आप अपनी सुविधानुसार दिन में भी सम्पन्न कर सकते हैं। साधना काल में साधक स्नान कर स्वच्छ लाल वस्त्र धारण कर, दक्षिणाभिमुख होकर बैठ जाए। अपने सामने एक बाजोट पर सर्वप्रथम गीली मिट्टी की ढेरी बनाकर उस पर ‘काल भैरव कंगण’ स्थापित करें। उसके चारों ओर तिल की आठ ढेरियां बना लें तथा प्रत्येक पर एक- एक सुपारी स्थापित करें। बाजोट पर तेल का दीपक प्रज्वलित करें तथा गुग्गल धूप तथा अगरबत्ती जला दें।

सर्वप्रथम निम्न मंत्र बोलकर भैरव का आह्वान करें –

आह्वान मंत्र:-

आयाहि भगवन् रुद्रो भैरवः भैरवीपते।

प्रसन्नोभव देवेश नमस्तुभ्यं कृपानिधि॥

भैरव आह्वान के पश्चात् साधक भैरव

का ध्यान करते हुए अपने शरीर मे सवारी प्राप्त करने हेतु कालभैरव से प्रार्थना करें तथा हाथ में जल लेकर निम्न संकल्प करें-

संकल्प:-

मैं अपने शरीर मे "कालभैरवजी" का सवारी प्राप्त करने हेतु काल भैरव प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूं।

जल को जमीन पर छोड दिजिये और दीये हुए शाबर मंत्र का इमानदारी से जाप करे l

मंत्र:-

ll जय काली कंकाली महाकाली के पुत कालभैरव,हुक्म है-हाजिर रहे,मेरा कहा काज तुरंत करे,काला-भैरव किल-किल करके चली आयी सवारी,इसी पल इसी घडी यही भगत मे रुके,ना रुके तो दुहाई काली माई की, दुहाई कामरू कामाक्षा की,गुरू गोरखनाथ बाबा की आण,छु वाचापुरी ll

 

मै यहा कितना मंत्र जाप करना है? और कितने दिन करना है? मंत्र सिद्धी के बाद सवारी को कैसे शरीर मे बुलाना है ? इसके बारे मे यहा पर नही लिख रहा क्युके यह साधना अच्छे लोगो को प्राप्त होना जरुरी है lगलत लोगो के हाथ मे लग जाये तो वो लोग शरीर मे सवारी बुलाकर लोगो को लुटना शुरू कर देगे जिससे जनसमाज का भारी नुकसान होगा,जिसका कारण सुशील नरोले नही बनना चाहेगा l

"कालभैरव कंगण"

अब बात करते है "कालभैरव कंगण" जो अष्टधातु से निर्मित है और जिसका निर्माण वही कर सकता है जो कालभैरव का भगत हो जिसमे सवारी आता हो क्युके सवारी बुलाने से ज्यादा किसिके देने से जल्दी आता है l जैसे आप अगर उन लोगो से पूछे जिनमे सवारी आता है तो वो लोग आपको बता देगे के "उनको दैविय कृपा से या फिर उनके घर के किसी पुराने सदस्य से उनको सवारी मिला है",जब किसिको सवारी छोडना होता है तो वह व्यक्ती अपना सवारी किसिको भी देवता का आग्या लेकर दे सकता है,इसलिये प्रत्येक व्यक्ती मे सवारी नही आता है l इस कंगण से सवारी जल्दी आता है,नही तो आप कुछ लोगो को देखिये उनको सवारी तो आता है परंतु आने मे 4-5 घंटा लगता है और उसमे भी 5-10 मिनिट के लिये आता है l यह कंगण सवारी मे आये हुए कालभैरव भगवान से आग्या लेकर बनवाया जाता है ताकी आपको पूर्ण सफलता मिले l अमवस्या/पूर्णिमा को सवारी मे बहोत शक्ती होता है और उसी समय उसी दिन निर्मित किया हुआ कंगण उनके सामने रखकर उनको कंगण से "सवारी मिले और रक्षा हेतु प्रार्थना करे

ऋण मुक्ति भैरव साधना:-

: हर व्यक्ति के जीवन में ऋण एक अभिशाप है !एक वार व्यक्ति इस में फस गया तो धस्ता चला जाता है ! सूत की चिंता धीरे धीरे मष्तश पे हावी होती चली जाती है जिस का असर स्वस्थ पे होना भी स्वाभिक है ! प्रत्येक व्क्यती पे छ किस्म का ऋण होता है जिस में पित्र ऋण मार्त ऋण भूमि ऋण गुरु ऋण और भ्राता ऋण और ऋण जिसे ग्रह ऋण भी कहते है !संसारी ऋण (कर्ज )व्यक्ति की कमर तोड़ देता है मगर हजार परयत्न के बाद भी व्यक्ति छुटकारा नहीं पाता तो मेयूस हो के ख़ुदकुशी तक सोच लेता है !मैं जहां एक बहुत ही सरल अनुभूत साधना प्रयोग दे रहा हु आप निहचिंत हो कर करे बहुत जल्द आप इस अभिशाप से मुक्ति पा लेंगे ! विधि – शुभ दिन जिस दिन रवि पुष्य योग हो जा रवि वार हस्त नक्षत्र हो शूकल पक्ष हो तो इस साधना को शुरू करे वस्त्र --- लाल रंग की धोती पहन सकते है ! माला – काले हकीक की ले ! दिशा –दक्षिण ! सामग्री – भैरव यन्त्र जा चित्र और हकीक माला काले रंग की ! मंत्र संख्या – 12 माला 21 दिन करना है ! पहले गुरु पूजन कर आज्ञा ले और फिर श्री गणेश जी का पंचौपचार पूजन करे तद पहश्चांत संकल्प ले ! अपने जीवन में स्मस्थ ऋण मुक्ति के लिए यह साधना कर रहा हु हे भैरव देव मुझे ऋण मुक्ति दे !जमीन पे थोरा रेत विशा के उस उपर कुक्म से तिकोण बनाए उस में एक पलेट में स्वास्तिक लिख कर उस पे लाल रंग का फूल रखे उस पे भैरव यन्त्र की स्थापना करे उस यन्त्र का जा चित्र का पंचौपचार से पूजन करे तेल का दिया लगाए और भोग के लिए गुड रखे जा लड्डू भी रख सकते है ! मन को स्थिर रखते हुये मन ही मन ऋण मुक्ति के लिए पार्थना करे और जप शुरू करे 12 माला जप रोज करे इस प्रकार21 दिन करे साधना के बाद स्मगरी माला यन्त्र और जो पूजन किया है वोह समान जल प्रवाह कर दे साधना के दोरान रवि वार जा मंगल वार को छोटे बच्चो को मीठा भोजन आदि जरूर कराये ! शीघ्र ही कर्ज से मुक्ति मिलेगी और कारोबार में प्रगति भी होगी ! मंत्र—ॐ ऐं क्लीम ह्रीं भम भैरवाये मम ऋणविमोचनाये महां महा धन प्रदाय क्लीम स्वाहा !!

समस्त प्रकार की बाधाओं से मुक्ति और समस्त कार्यों में सफलता प्रदान करने वाला “श्रीबटुकभैरव-अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ” अत्यंत चमत्कारी प्रभाव से युक्त है | इसकी विधिवत साधना व्यक्ति को जीवन में पूर्ण ऐश्वर्य, सफलता और उन्नति प्रदान करती है | यहाँ सिर्फ सात्विक ध्यान दिया गया है। वैसे कामना भेद से इनका राजसिक एवं तामसिक ध्यान भी है। उच्च स्तर के साधक " त्रिगुणात्मक ध्यान " भी करते हैं । सामान्यतया रात्री में ५१ पाठ करना चाहिए और यह सम्भव न हो तो १२ पाठ अवश्य करे। कुलमार्गी पाठ के बाद - " ॐॐॐ एह्येहि देवीपुत्र वटुकनाथ कपिल-जटा-भार-भास्वर पिंगल त्रिनेत्र ज्वालामुख सर्वविघ्नान् नाशय नाशय इमं सर्वोपचारसहितं बलिमिमं गृह्ण गृह्ण स्वाहा । एष बलिर्वटुकभैरवाय नम: " - इस मन्त्र से पंचमकार से वटुक-बलि अवश्य निकालें ।

श्री आपदुद्धारक-बटुकभैरव-अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र

सात्विक ध्यान:

वन्दे बालं स्फटिक सदृशं कुन्तल्लाे्लासी वक्त्रम् ,

दिव्या कल्पैर्णव मणिमयै: किंकिणी नूपुराढ्यै ।

दीप्ता-कारं विशद-वदनं सुप्रसन्नं त्रिनेत्रं ,

हस्ताब्जाभ्यां वटुकमनिशं शूलदण्डौदधानम् ।।

ॐ भैरवो भूतनाथश्च भूतात्मा भूतभावन:|

क्षेत्रज्ञः क्षेत्रपालश्च क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट् ||१||

श्मशानवासी मांसाशी खर्पराशी स्मरांतकः|

रक्तपः पानपः सिद्धः सिद्धिदः सिद्धिसेवित ||२||

कंकालः कालशमनः कलाकाष्ठातनु: कविः |

त्रिनेत्रो बहुनेत्रश्च तथा पिंगल-लोचनः ||३||

शूलपाणिः खङ्गपाणिः कंकाली धूम्रलोचनः|

अभीरूर्भैरवीनाथो भूतपो योगिनीपतिः ||४||

धनदो ऽधनहारी च धनवान् प्रतिभागवान्|

नागहारो नागपाशो व्योमकेशः कपालभृत् ||५||

कालः कपालमाली च कमनीयः कलानिधिः|

त्रिलोचनो ज्वलन्नेत्रः त्रिशिखी च त्रिलोकप: ||६||

त्रिवृतत्तनयो डिम्भ: शान्तः शान्तजनप्रियः|

बटुको बहुवेशश्च खट्वांगवरधारकः ||७||

भूताध्यक्षः पशुपतिः भिक्षुकः परिचारकः|

धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पांडुलोचनः ||८||

प्रशांतः शांतिदः शुद्धः शंकर-प्रियबांधवः|

अष्टमूर्तिः निधीशश्च ज्ञान-चक्षुः तपोमयः ||९||

अष्टाधारः षडाधारः सर्पयुक्तः शिखिसखः |

भूधरो भुधराधीशो भूपतिरभूधरात्मजः ||१०||

कंकालधारी मुण्डी च नागयज्ञोपवीतवान्|

जृम्भणो मोहनः स्तम्भी मारणः क्षोभणस्तथा ||११||

शुद्धनीलांजन प्रख्यो दैत्यहा मुण्डभूषितः|

बलिभुग् बलिभुङ्नाथो बालोबालपराक्रमः ||१२||

सर्वापत्तारणो दुर्गो दुष्टभूत-निषेवितः|

कामी कलानिधि कान्तः कामिनी वशकृद्वशी |१३||

जगद् रक्षाकरो ऽनन्तो मायामंत्रौषधीमयः |

सर्वसिद्धिप्रदो वैद्यः प्रभविष्णुरितीव हि ||१४||

|| श्री बटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् ||

तंत्रोक्त भैरव कवच

ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः |

पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||

पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा |

आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||

नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे |

वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ||

भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा |

संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||

ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः |

सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ||

रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु |

जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||

डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः |

हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ||

पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः |

मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा |

वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ||

श्री महाकाल-भैरव-स्तोत्र

ॐ महा-काल महाकाय, महा-काल जगत्-पते !

महा-काल महायोगिन्, महा-काल! नमोऽस्तु ते !

महा-काल महादेव, महा-काल महाप्रभो !

महा-काल महारुद्र, महा-काल! नमोऽस्तु ते !

महा-काल महाज्ञान, महा-काल तमोऽपहन् !

महा-काल महा-काल, महा-काल नमोऽस्तु ते !

भवाय च नमस्तुभ्यं, शर्वाय च नमो नम: !

रुद्राय च नमस्तुभ्यं, पशूनां पतये नम: !

उग्राय च नमस्तुभ्यं, महदेवाय वै नम: !

भीमाय च नमस्तुभ्यं, ईशानाय नमो नम: !

ईशानाय नमस्तुभ्यं, तत्पुरुषाय वै नम: !

सद्योजात नमस्तुभ्यं, शुक्लवर्णे नमो नम: !

अध: कालाग्निरुद्राय, रुद्र-रूपाय वै नम: !

स्थित्युत्पत्ति-लयानां च, हेतु-रूपाय वै नम: !

परमेश्वर-रूपस्त्वं, नील एवं नमोऽस्तु ते !

पवनाय नमस्तुभ्यं, हुताशन नमोऽस्तु ते !

सोम-रूप नमस्तुभ्यं, सूर्य-रूप नमोऽस्तु ते !

यजमान नमस्तुभ्यं, आकाशाय नमो नम: !

सर्व-रूप नमस्तुभ्यं, विश्व-रूप नमोऽस्तु ते !

ब्रह्म-रूप नमस्तुभ्यं, विष्णु-रूप नमोऽस्तु ते !

रुद्र-रूप नमस्तुभ्यं, महाकाल नमोऽस्तु ते !

स्थावराय नमस्तुभ्यं, जंगमाय नमो नम: !

नम: स्थावर-जंगमाभ्यां, शाश्वताय नमो नम: !

हुं हुंकार नमस्तुभ्यं निष्कलाय नमो नम: !

अनाद्यन्त महाकाल, निर्गुणाय नमो नमो: !

प्रसीद मे नमो नित्यं, मेघ-वर्ण नमोऽस्तु ते !

प्रसीद मे महेशान, दिग्-वासाय नमो नम: !

ॐ ह्रीं माया-स्वरूपाय, सच्चिदानन्द-तेजसे !

स्वाहा सम्पूर्ण-मन्त्राय, सोऽहं हंसाय ते नम: !

॥ फल-श्रुति ॥

इत्येवं देव-देवस्य, महा-कालस्य भैरवि !

कीर्तितं पूजनं सम्यक्, साधकानां सुखावहम् ॥

श्री बटुक-भैरव शापोद्धार व शापविमोचन

श्री बटुक-भैरव के मन्त्र एवं स्तोत्र के 'शाप-विमोचन' एवं शापोद्धार के लिए एक 'मन्त्र' और एक 'स्तव' है जो निम्मन है:

मन्त्र:-

'ॐ ह्रीं बटुक शापं विमोचय विमोचय ह्रीं क्लीं " - इस मन्त्र का मूल-मन्त्र या स्तोत्र के पूर्व कम से कम १० बार जप कर निम्मन स्तव का १ बार पाठ करने से मन्त्र या स्तोत्र का शापोद्धार हो जाता है

स्तव:-

ॐ वृन्दारक-प्रकर-वन्दित-पाद-पद्मम्,

चञ्चत-प्रभा-पटल-निर्जित-नील-पद्मम्॥

सर्वार्थ-साधकमगाध-दया-समुद्रम्,

वन्दे विभुं बटुक-नाथमनाथ-बन्धुम ॥

मुण्डमालाधरं शान्तं, कुण्डल-प्रभयाऽन्वितम्,

भुजंग-मेखलं दिव्यं बटुकाख्यं नमाम्यहम्॥

चतुर्बाहुं कलामूर्त्तिं, युगान्त-दहनोपमम्,

सर्वार्थ-साधकं देवं, भैरवं प्रणमाम्यहम्॥

ज्वलदग्नि-प्रतीकाशं, खट्वांग-वरधारकम्,

श्वगणै: सर्वतो व्याप्तं, भैरवं प्रणमाम्यहम्॥

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च, मरीच्याद्या महर्षय:,

बटुकं प्रणमन्ते तं, सदासम्पन्न-मानसम्॥

पञ्चवक्त्रं कृपासिन्धुं, नानाऽऽभरणभूषितम्,

धर्मार्थ-काम-मोक्षाणां, दातारं प्रणमाम्यहम्॥

विद्यावन्तं दयावन्तं, शंकर-प्रिय-बान्धवम्,

उत्पत्ति-स्थिति-संहारं, भैरव् प्रणमाम्यहम्॥

॥फल-श्रुति॥

य इदं पठते नित्यं, बटुक-स्तव पूर्वकं ।

सर्वाबाधा-विनिर्मुक्त:,स सर्वेप्सितभाग् भवेत॥

बटुकभैरव-उत्कीलन-मन्त्र

पूर्व में बटुकभैरव शापोद्धार व शाप विमोचन की विधि का वर्णन हुआ था अब उत्कीलन की विधि बतायी जा रही है।

विनियोग:

ॐ अस्य श्रीबटुक-भैरवोत्कीलन-मन्त्रस्य, उग्र-भैरवो ऋषि: अनुष्टुप छन्द:, श्री भैरवो देवता, वं बीजं, ह्रीं शक्ति:, क्लीं कीलकं, मम सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे बटुकभैरवोत्कीलन-मन्त्र जपे विनियोग: ।

ऋष्यादिन्यास:

उग्र-भैरवो ऋषये नम: शिरसि।

अनुष्टुप छन्दसे नम: मुखे।

श्री भैरव देवतायै नम: हृदि।

वं बीजाय नम: गुह्ये।

ह्रीं शक्तये नम: पादयो:।

क्लीं कीलकाय नम: नाभौ।

मम सर्वाभीष्टसिद्धयर्थे बटुकभैरवोत्कीलनमन्त्र जपे विनियोगाय नम: सर्वांगे।

करन्यास:

ॐ अंगुष्ठाभ्यां नम:।

ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा।

क्लीं मध्यमाभ्यां वषट्।

ऐं अनामिकाभ्यां हुम्।

ह्रूं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्।

म्रां करतल-करपृष्ठाभ्यां फट्।

हृदयादिन्यास:

ॐ हृदयाय नम:।

ह्रीं शिरसे स्वाहा।

क्लीं शिखायै वषट्।

ऐं कवचाय हुम्।

ह्रूं नेत्र-त्रयाय वौषट्।

म्रां अस्त्राय फट्।

अंगन्यास:

रं दक्ष-हस्ते।

ब्रां वाम-हस्ते।

त्र्यं दक्ष-कर्णे।

रं वाम कर्णे।

ब्रां दक्ष नेत्रे।

त्र्यं वाम नेत्रे।

रं दक्षांसे।

ब्रां वामांसे।

त्र्यं सर्वांगे।

मन्त्र(किसी एक मन्त्र को २१ बार या प्रत्येक को ७ बार जपे):

(१) ॐ ह्रीं क्लीं एें ह्रुं भ्रों भ्रों भ्रों श्रं श्रं श्रं श्रं श्रं ह्रीं श्रीं बटुकाय कुरु कुरु स्वाहा

(२) ॐ ह्रीं क्लीं ऐं ह्रुं ॐ श्रं श्रीं बटुकाय

पुन: निम्मन स्तोत्र पाठ करे।

स्तोत्र:

भैरवो बटुको देव आपदुद्धारणस्तथा, देवदेवो महारुद्रो भैरव: प्राणवल्लभ: ।

क्रोध उन्मत्तमातंगसंहारभैरवस्तथा, काल: कपालमाली च भीषणोभैरवस्तथा।

कात्यायनीमहागौरी हैमवत्यंशकामिनी,योगिभैरवमाता च भैरवीप्राणवल्लभा।

कालभैरव भार्या च काममोक्ष पुरन्दरी, वीरभैरव-रोमांगी शत्रुसंकट नाशिनी।

योगिनी योगमाया च सर्वभैरव-मोहिनी, सर्ववीर्य महातेजा: सर्वत्र शुभदायिनी।

!!फल-श्रुति!!

पञ्च-रत्नं पठेद् देवि! सर्वत्र विजयी भवेत् ।

पुत्र-पौत्र-धनं-धान्यं, सर्व-रोग-निवारणम् ॥

श्री क्षेत्रपाल-भैरवाष्टक-स्तोत्र

विश्वसार-तन्त्र का यह स्तोत्र भावपूर्वक पाठ करने मात्र से प्रभाव दिखाता है। 

यं यं यं यक्ष-रूपं दश-दिशि-वदनं भूमि-कम्पाय-मानम्।

सं सं सं संहार-मूर्ति शिर-मुकुट-जटा-जूट-चन्द्र-बिम्बम्॥

दं दं दं दीर्घ-कायं विकृत-नख-मुखं ऊर्ध्व-रोम-करालं।

पं पं पं पाप-नाशं प्रणमत-सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥१॥

रं रं रं रक्त-वर्णं कट-कटि-तनुं तीक्ष्ण-दंष्ट्रा-करालम् ।

घं घं घं घोष-घोषं घघ-घघ-घटितं घर्घरा-घोर-नादं॥

कं कं कं काल-रूपं धिग-धिग-धृगितं ज्वालित-काम-देहं।

दं दं दं दिव्य-देहं प्रणमत-सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥२॥

लं लं लं लम्ब-दन्तं लल-लल-लुलितं दीर्घ-जिह्वा-करालं।

धूं धूं धूं धूम्र-वर्णं स्फुट-विकृत-मुखं भासुरं भीम-रूपं॥

रुं रुं रुं रुण्ड-मालं रुधिर-मय-मुखं ताम्र-नेत्रं विशालं।

नं नं नं नग्न-रूपं प्रणमत-सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥३॥

वं वं वं वायु-वेगं प्रलय-परिमितं ब्रह्म-रूपं-स्वरूपम्।

खं खं खं खङ्ग-हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करं भीमरूपं॥

चं चं चं चालयन्तं चल-चल-चलितं चालितं भूत-चक्रं।

मं मं मं माया-रूपं प्रणमत-सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥४॥

शं शं शं शङ्ख-हस्तं शशि-कर-धवलं यक्ष-सम्पूर्ण-तेजं।

मं मं मं माय-मायं कुलमकुल-कुलं मन्त्र-मूर्ति स्व-तत्वं॥

भं भं भं भूत-नाथं किल-किलित-वचश्चारु-जिह्वालुलंतं।

अं अं अं अंतरिक्षं प्रणमत-सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥५॥

खं खं खं खङ्ग-भेदं विषममृत-मयं काल-कालांधकारं।

क्षीं क्षीं क्षीं क्षिप्र-वेगं दह दह दहनं गर्वितं भूमि-कम्पं॥

शं शं शं शान्त-रूपं सकल-शुभ-करं देल-गन्धर्व-रूपं।

बं बं बं बाल-लीलां प्रणमत-सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥६॥

सं सं सं सिद्धि-योगं सकल-गुण-मयं देव-देव-प्रसन्नम्।

पं पं पं पद्म-नाभं हरि-हर-वरदं चन्द्र-सूर्याग्नि-नेत्रं ।

जं जं जं यक्ष-नागं प्रणमत-सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥७॥

हं हं हं हस-घोषं हसित-कहकहा-राव-रुद्राट्टहासम्।

यं यं यं यक्ष-सुप्तं शिर-कनक-महाबद्-खट्वाङ्गनाशं॥

रं रं रं रङ्ग-रङ्ग-प्रहसित-वदनं पिङ्गकस्याश्मशानं।

सं सं सं सिद्धि-नाथं प्रणमत-सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥८॥

॥फल-श्रुति॥

एवं यो भाव-युक्तं पठति च यत: भैरवास्याष्टकं हि ।

निर्विघ्नं दु:ख-नाशं असुर-भय-हरं शाकिनीनां विनाश:॥

दस्युर्न-व्याघ्र-सर्प: घृति विहसि सदा राजशस्त्रोस्तथाज्ञातं।

सर्वे नश्यन्ति दूराद् ग्रह-गण-विषमाश्चेति तांश्चेष्टसिद्धि:॥

काल भैरव का नाम सुनते ही एक अजीब-सी भय मिश्रित अनुभूति होती है। एक हाथ में ब्रह्माजी का कटा हुआ सिर और अन्य तीनों हाथों में खप्पर, त्रिशूल और डमरू लिए भगवान शिव के इस रुद्र रूप से लोगों को डर भी लगता है, लेकिन ये बड़े ही दयालु-कृपालु और जन का कल्याण करने वाले हैं।

भैरव शब्द का अर्थ ही होता है भरण-पोषण करने वाला, जो भरण शब्द से बना है। काल भैरव की चर्चा रुद्रयामल तंत्र और जैन आगमों में भी विस्तारपूर्वक की गई है। शास्त्रों के अनुसार कलियुग में काल भैरव की उपासना शीघ्र फल देने वाली होती है। उनके दर्शन मात्र से शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों का भी कुप्रभाव समाप्त हो जाता है। काल भैरव की सात्त्विक, राजसिक और तामसी तीनों विधियों में उपासना की जाती है।

इनकी पूजा में उड़द और उड़द से बनी वस्तुएं जैसे इमरती, दही बड़े आदि शामिल होते हैं। चमेली के फूल इन्हें विशेष प्रिय हैं। पहले भैरव को बकरे की बलि देने की प्रथा थी, जिस कारण मांस चढ़ाने की प्रथा चली आ रही थी, लेकिन अब परिवर्तन आ चुका है। अब बलि की प्रथा बंद हो गई है।

शराब इस लिए चढ़ाई जाती है क्योंकि मान्यता है कि भैरव को शराब चढ़ाकर बड़ी आसानी से मन मांगी मुराद हासिल की जा सकती है। कुछ लोग मानते हैं कि शराब ग्रहण कर भैरव अपने उपासक पर कुछ उसी अंदाज में मेहरबान हो जाते हैं जिस तरह आम आदमी को शराब पिलाकर अपेक्षाकृत अधिक लाभ उठाया जा सकता है। यह छोटी सोच है।

आजकल धन की चाह में स्वर्णाकर्षण भैरव की भी साधना की जा रही है। स्वर्णाकर्षण भैरव काल भैरव का सात्त्विक रूप हैं, जिनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है। यह हमेशा पाताल में रहते हैं, जैसे सोना धरती के गर्भ में होता है। इनका प्रसाद दूध और मेवा है। यहां मदिरा-मांस सख्त वर्जित है। भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं। इस कारण इनकी साधना का समय मध्य रात्रि यानी रात के 12 से 3 बजे के बीच का है। इनकी उपस्थिति का अनुभव गंध के माध्यम से होता है। शायद यही वजह है कि कुत्ता इनकी सवारी है। कुत्ते की गंध लेने की क्षमता जगजाहिर है।

देवी महाकाली, काल भैरव और शनि देव ऐसे देवता हैं जिनकी उपासना के लिए बहुत कड़े परिश्रम, त्याग और ध्यान की आवश्यकता होती है। तीनों ही देव बहुत कड़क, क्रोधी और कड़ा दंड देने वाले माने जाते है। धर्म की रक्षा के लिए देवगणों की अपनी-अपनी विशेषताएं है। किसी भी अपराधी अथवा पापी को दंड देने के लिए कुछ कड़े नियमों का पालन जरूरी होता ही है। लेकिन ये तीनों देवगण अपने उपासकों, साधकों की मनाकामनाएं भी पूरी करते हैं। कार्यसिद्धि और कर्मसिद्धि का आशीर्वाद अपने साधकों को सदा देते रहते हैं।

भगवान भैरव की उपासना बहुत जल्दी फल देती है। इस कारण आजकल उनकी उपासना काफी लोकप्रिय हो रही है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि भैरव की उपासना क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करती है। शनि की पूजा बढ़ी है। अगर आप शनि या राहु के प्रभाव में हैं तो शनि मंदिरों में शनि की पूजा में हिदायत दी जाती है कि शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। मान्यता है कि 40 दिनों तक लगातार काल भैरव का दर्शन करने से मनोकामना पूरी होती है। इसे चालीसा कहते हैं। चन्द्रमास के 28 दिनों और 12 राशियां जोड़कर ये 40 बने हैं।

पूजा में शराब, मांस ठीक नहीं हमारे यहां तीन तरह से भैरव की उपासना की प्रथा रही है। राजसिक, सात्त्विक और तामसिक। हमारे देश में वामपंथी तामसिक उपासना का प्रचलन हुआ, तब मांस और शराब का प्रयोग कुछ उपासक करने लगे। ऐसे उपासक विशेष रूप से श्मशान घाट में जाकर मांस और शराब से भैरव को खुश कर लाभ उठाने लगे।

लेकिन भैरव बाबा की उपासना में शराब, मांस की भेंट जैसा कोई विधान नहीं है। शराब, मांस आदि का प्रयोग राक्षस या असुर किया करते थे। किसी देवी-देवता के नाम के साथ ऐसी चीजों को जोड़ना उचित नहीं है। कुछ लोगों के कारण ही आम आदमी के मन में यह भावना जाग उठी कि काल भैरव बड़े क्रूर, मांसाहारी और शराब पीने वाले देवता हैं। किसी भी देवता के साथ ऐसी बातें जोड़ना पाप ही कहलाएगा।

गृहस्थ के लिए इन दोनों चीजों का पूजा में प्रयोग वर्जित है। गृहस्थों के लिए काल भैरवाष्टक स्तोत्र का नियमित पाठ सर्वोत्तम है, जो अनेक बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। काल भैरव तंत्र के अधिष्ठाता माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि तंत्र उनके मुख से प्रकट होकर उनके चरणों में समा जाता है। लेकिन, भैरव की तांत्रिक साधना गुरुगम्य है। योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही यह साधना की जानी चाहिए।

काल भैरव की उत्पत्ति और काशी से संबंध

कथा-एक पहली कथा है कि ब्रह्मा जी ने पूरी सृष्टि की रचना की। ऐसा मानते हैं कि उस समय प्राणी की मृत्यु नहीं होती थी। पृथ्वी के ऊपर लगातार भार बढ़ने लगा। पृथ्वी परेशान होकर ब्रह्मा के पास गई। पृथ्वी ने ब्रह्मा जी से कहा कि मैं इतना भार सहन नहीं कर सकती। तब ब्रह्मा जी ने मृत्यु को लाल ध्वज लिए स्त्री के रूप में उत्पन्न किया और उसे आदेश दिया कि प्राणियों को मारने का दायित्त्व ले। मृत्यु ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि मैं ये पाप नहीं कर सकती। ब्रह्माजी ने कहा कि तुम केवल इनके शरीर को समाप्त करोगी लेकिन जीव तो बार-बार जन्म लेते रहेंगे। इस पर मृत्यु ने ब्रह्माजी की बात स्वीकार कर ली और तब से प्राणियों की मृत्यु शुरू हो गई।

समय के साथ मानव समाज में पाप बढ़ता गया। तब शंकर भगवान ने ब्रह्मा जी से पूछा कि इस पाप को समाप्त करने का आपके पास क्या उपाय है। ब्रह्माजी ने इस विषय में अपनी असमर्थता जताई। शंकर भगवान शीघ्र कोपी हैं। उन्हें क्रोध आ गया और उनके क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई थी। इससे काल भैरव को ब्रह्म हत्या लग गयी।

काल भैरव तीनों लोकों में भ्रमण करते रहे लेकिन ब्रह्म हत्या से वे मुक्त नहीं हो पाए। ऐसी मान्यता है कि जब काल भैरव काशी पहुंचे, तब ब्रह्म हत्या ने उनका पीछा छोड़ा। उसी समय आकाशवाणी हुई कि तुम यहीं निवास करो और काशीवासियों के पाप-पुण्य के निर्णय का दायित्त्व संभालो। तब से भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए।

कथा-दो दूसरी कथा यह भी है कि एक बार देवताओं की सभा हुई थी। उसमें ब्रह्मा जी के मुख से शंकर भगवान के प्रति कुछ अपमानजनक शब्द निकल गए। तब शंकर भगवान ने क्रोध में हुंकार भरी और उस हुंकार से काल भैरव प्रकट हुए और ब्रह्मा जी के उस सिर को काट दिया जिससे ब्रह्मा जी ने शंकर भगवान की निंदा की थी। काल भैरव को ब्रह्म हत्या दोष लगने और काशी में वास करने तक की आगे की कथा पहली कथा जैसी ही है।

यह भी मान्यता है कि धर्म की मर्यादा बनाएं रखने के लिए भगवान शिव ने अपने ही अवतार काल भैरव को आदेश दिया था कि हे भैरव, तुमने ब्रह्माजी के पांचवें सिर को काटकर ब्रह्म हत्या का जो पाप किया है, उसके प्रायश्चित के लिए तुम्हें पृथ्वी पर जाकर माया जाल में फंसना होगा और विश्व भ्रमण करना होगा। जब ब्रह्मा जी का कटा हुआ सिर तुम्हारे हाथ से गिर जाएगा, उसी समय तुम ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे और उसी स्थान पर स्थापित हो जाओगे। काल भैरव की यह यात्रा काशी में समाप्त हुई थी।

सर्व -मनोकामना पूर्ति हेतू भैरव साबर मंत्र प्रयोग दिन :- कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुरु करे (७ दिन की साधना है ) समय :- रात्रि (९;35) पर दिशा :- दक्षिण आसन:- कम्बल का होना चाहिए पूजन सामग्री :- कनेर या गेंदे के फूल ,,बेसन के लड्डू ,,सिंदूर ,,दो लौंग ,,चौमुखा तेल का दीपक,,ताम्बे की प्लेट ,,लोबान ,,गाय का कच्चा दूध ,,गंगाजल ,, साधना सामग्री :- भैरव यन्त्र ,, साफल्य माला या काले हकीक की माला मंत्र :-""ॐ ह्रीं बटुक भैरव ,बालक वेश ,भगवान वेश ,सब आपत को काल ,भक्त जन हट को पाल ,कर धरे सिर कपाल,दूजे करवाला त्रिशक्ति देवी को बाल ,भक्त जन मानस को भाल ,तैतीस कोटि मंत्र का जाल ,प्रत्यक्ष बटुक भैरव जानिए ,मेरी भक्ति गुरु की शक्ति ,फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा "" विधि :- सर्व प्रथम गुरु पूजन कर के गुरुदेव से प्रयोग की आज्ञा ले ले ,,फिर अपनी मनोकामना एक कागज में लिख कर गुरु यन्त्र के नीचे रख दे ,,और मन ही मन गुरुदेव से साधना की सफलता के लिए विनती करे ,, फिर ताम्बे की प्लेट में भैरव यन्त्र स्थापित करे उसे दूध से स्नान कराए ,,फिर गंगाजल से स्नान कराकर यन्त्र को पोछ ले ,,इस के बाद यन्त्र में सिंदूर से तिलक लगाये ,,और यन्त्र के सामने दो लौंग स्थापित करे,,और उस यन्त्र को लोबान का धुप दे ,,तेल का दीपक अपने बायीं ओर जला के रख ले ,,साधना काल तक दीपक अखंड जलना चाहिए ,,फिर साफल्य माला या काले हकीक की माला से निम्न मंत्र का दो माला जप करे,,यह प्रक्रम सात दिन तक करना है ,,आठवे दिन यन्त्र और माला को जल में प्रवाहित कर दे।

श्री बटुक-बलि-मन्त्रः- घर के बाहर दरवाजे के बायीं ओर दो लौंग तथा गुड़ की डली रखें । निम्न तीनों में से किसी एक मन्त्र का उच्चारण करें - १॰ “ॐ ॐ ॐ एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारण-बटुक-भैरव-नाथ, सर्व-विघ्नान् नाशय नाशय, इमं स्तोत्र-पाठ-पूजनं सफलं कुरु कुरु सर्वोपचार-सहितं बलि मिमं गृह्ण गृह्ण स्वाहा, एष बलिर्वं बटुक-भैरवाय नमः।” २॰ “ॐ ह्रीं वं एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारक-बटुक-भैरव-नाथ कपिल-जटा-भारभासुर ज्वलत्पिंगल-नेत्र सर्व-कार्य-साधक मद्-दत्तमिमं यथोपनीतं बलिं गृह्ण् मम् कर्माणि साधय साधय सर्वमनोरथान् पूरय पूरय सर्वशत्रून् संहारय ते नमः वं ह्रीं ॐ ।।” ३॰ “ॐ बलि-दानेन सन्तुष्टो, बटुकः सर्व-सिद्धिदः। रक्षां करोतु मे नित्यं, भूत-वेताल-सेवितः।।”

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम:  श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा ,संपर्क सूत्र- 9760924411