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- गुरुवार प्रदोष व्रत ( शुक्ल )
- बुधवार निर्जला एकादशी
- शुक्रवार ज्येष्ठ अमावस्या
- बुधवार मासिक शिवरात्रि
- बुधवार प्रदोष व्रत ( कृष्ण )
- सोमवार अपरा एकादशी
- सोमवार संकष्टी चतुर्थी
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- सोमवार वृष संक्रांति
- बुधवार प्रदोष व्रत ( शुक्ल )
- सोमवार मोहिनी एकादशी
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- गुरुवार वैशाख अमावस्या
- मंगलवार मासिक शिवरात्रि
- सोमवार प्रदोष व्रत ( कृष्ण )
- रविवार वरुथिनी एकादशी
- रविवार संकष्टी चतुर्थी
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- मोनी ओर शनिचरी माघ अमावस्या
सोमवार फाल्गुन अमावस्या
सोमवार फाल्गुन अमावस्या 20-02-2023
सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। ये वर्ष में लगभग एक अथवा दो ही बार पड़ती है। इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व होता है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है। इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा दी गयी है। अश्वत्थ यानि पीपल वृक्ष। इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के चारों ओर १०८ बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान होता है। और कुछ अन्य परम्पराओं में भँवरी देने का भी विधान होता है। धान, पान और खड़ी हल्दी को मिला कर उसे विधान पूर्वक तुलसी के पेड़ को चढाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व समझा जाता है। कहा जाता है। कि महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते हुए कहा था कि, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से मुक्त होगा। ऐसा भी माना जाता है। कि स्नान करने से पितरों कि आत्माओं को शांति मिलती है।
सोमवती अमावस्या पूजन सामग्री- पुष्प, माला, अक्षत, चंदन, कलश, दीपक, घी, धूप, रोली, भोग के लिए मिठाई, धागा, सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, सुपारी, पान के पत्ते, मूंगफली 108 की संख्या में (जिससे परिक्रमा आसानी से पूरी हो जाए)।
सोमवती अमावस्या से सम्बंधित अनेक कथाएँ प्रचलित हैं।
सोमवती अमावस्या से सम्बंधित अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। परंपरा है कि सोमवती अमावस्या के दिन इन कथाओं को विधिपूर्वक सुना जाता है। एक गरीब ब्रह्मण परिवार था, जिसमे पति, पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। पुत्री धीरे धीरे बड़ी होने लगी। उस लड़की में समय के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था। लड़की सुन्दर, संस्कारवान एवं गुणवान भी थी, लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन ब्रह्मण के घर एक साधू पधारे, जो कि कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। कन्या को लम्बी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधू ने कहा की कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है। ब्राह्मण दम्पति ने साधू से उपाय पूछा कि कन्या ऐसा क्या करे की उसके हाथ में विवाह योग बन जाए। साधू ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गाँव में सोना नाम की धूबी जाती की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है। जो की बहुत ही आचार- विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधू ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन कि सेवा करने कि बात कही।
कन्या तडके ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती। सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है। कि तुम तो तडके ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा कि माँजी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही ख़तम कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूँ। इस पर दोनों सास बहू निगरानी करने करने लगी कि कौन है। जो तडके ही घर का सारा काम करके चला जाता हा । कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक एक कन्या मुँह अंधेरे घर में आती है। और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है। और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं। तब कन्या ने साधू द्बारा कही गई सारी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसमे अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा। सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसके पति गया। उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भँवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी। उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्रह्मण के घर मिले पूए- पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से १०८ बार भँवरी देकर १०८ बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति को जीवन दान मिल गया। सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ को भंवरी देता है। उसके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
सोमवती अमावस्या महिमा -
पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है। अतः, सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भँवरी (परिक्रमा करना ) देता है। उसके सुख और सौभग्य में वृद्धि होती है। जो हर अमावस्या को न कर सके, वह सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन १०८ वस्तुओं कि भँवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश कि पूजा करता है। उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
सोमवती अमावस्या विधान -
ऐसी परम्परा है। कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिन्दूर और सुपाड़ी की भँवरी दी जाती है। उसके बाद की सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के हिसाब से फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने कि सामग्री इत्यादि की भँवरी दी जाती है। भँवरी पर चढाया गया सामान किसी सुपात्र ब्रह्मण, ननद या भांजे को दिया जा सकता है। अपने गोत्र या अपने से निम्न गोत्र में वह दान नहीं देना चाहिए।
सोमवती अमावस्या की कहानी -
सोमवती अमावस की कहानी :- एक साहूकार के सात बेटे, सात बहू और एक बेटी थी। साहूकार के घर एक जोगी भिक्षा मांगने आता था। जोगी को साहूकार की बहू भिक्षा देती थी तो वह ले लेता था। लेकिन जब बेटी देती थी तब वह भिक्षा नहीं लेता और कहता कि बेटी सुहागन तो है पर इसके बाद में दुहाग लिखा है। यह बात सुन सुनकर बेटी को चिंता होने लगी और उसका शरीर कमजोर होने लगा। उसकी मां ने पूछा की बेटी तुम इन दिनों इतनी कमजोर दिखाई देती हो। तब उसने बताया कि एक जोगी भिक्षा मांगने आता है जो कहता है कि बेटी है तो सुहागन लेकिन इसके नसीब में दुहाग (दुख) लिखा है। यह बात सुनकर उसकी मां ने कहा कि कल मैं सुनूंगी। अगले दिन जब जोगी भिक्षा लेने आया तो उसकी मां छुप कर बैठ गई। जब बेटी भिक्षा देने लगी तो जोगी ने वही बात फिर से बोली। इतनी बात सुनकर उसकी मां बाहर निकल कर आई और बोली एक तो हम तुम्हें भिक्षा देते हैं और तू ऊपर से हमें गाली देता है। तब जोगी बोला कि मैं गाली नहीं देता जो सच है वही बोलता हूं। जो इसके भाग में लिखा है वही कहता हूं।
मां ने जोगी से कहा कि तुम्हें यह पता है कि इसके भाग्य में दुहाग लिखा है तो यह भी बता दो कि यह कैसे दूर होगा। तब जोगी बोला कि सात समुंदर पार एक सोना धोबन रहती है जो सोमवती अमावस का व्रत करती हैं अगर वह आकर अपना फल दे दे तो इसका निवारण हो सकता है। नहीं तो विवाह है होते ही इसके पति को सर्प (सांप) डस लेगा। यह बात सुनकर मां बहुत रोने लगी और सोना धोबन की तलाश में जाने लगी।
चलते चलते रास्ते में तेज धूप पड़ने लगी तो साहूकारनी एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गई। उस पीपल के पेड़ में एक गरुड़ पक्षी का घोंसला था जिसमें गरुड़ का छोटा बच्चा था। साहूकारनी को घोसले के पास एक सर्प(सांप)जाता दिखाई दिया। तो उसने उस गरुड़ के बच्चे को बचाने के लिए उस सांप को मारकर ढाल के नीचे रख दिया। जब गरुड़ और पंखनी आए तो घोंसले के पास खून देखकर क्रोधित हो उठे और साहूकारनी को चोंच मारने लगे। तब साहूकारनी बोली की मैंने तो तुम्हारे बच्चे की जान बचाई है। यह सर्प तुम्हारे बच्चे को डसने वाला था तो मैंने इसे मार कर गिरा दिया। गरुड़ ने सर्प की ओर देखकर कहा तुमने हमारे बच्चे की जान बचाई है अब तुम्हें जो मांगना है मांगो। तब साहूकारनी बोली कि मुझे सात समुंदर पार सोना धोबन के घर छोड़ कर आओ।
गरुड़ ने साहूकारनी को अपनी पीठ पर बैठाकर सात समुंदर पार सोना धोबन के घर छोड़ आया। वहां जाकर साहूकारनी ने सोचा कि सोना धोबन को कैसे राजी किया जाए। सोना धोबन के सात बेटे बहू थे। उसकी सातों बहुएं काम को लेकर रोज लड़ाई करती थी और काम भी नहीं करती थी। रात को जब सब सो जाते तो साहूकारनी सोना धोबन के घर जाती और घर का सारा काम करती। गायों को नहलाती, घर की सफाई करती, रसोई का काम करती, चौका बर्तन करती, आटा पीसती, कपड़े धोती, पानी भरती और दिन होने से पहले चली जाती।
बहूऐ सोचती कि यह सारा काम कौन कर रहा है। लेकिन कभी एक दूसरे से पूछती नहीं कि यह सब काम कौन कर रहा है। एक दिन धोबन ने का है कि तुम आजकल लड़ती भी नहीं हो काम भी ठीक कर रही हो तो बहुओ ने कहा कि सासूजी काम तो हमें ही करना पड़ता है चाहे हम लड़कर करें या राजी से करें इसलिए लड़ाई करने का क्या फायदा। सोना धोबन ने सोचा कि आज देखा जाए कि कौन सी बहू काम करती है और वह रात को सोई नहीं। उसने देखा कि रात को एक स्त्री आई और पूरा काम करके जाने लगी। तो सोना धोबन ने बोला कि तुम कौन हो और तुम्हें ऐसी क्या जरूरत है जो तुम इतना काम कर रही हो। साहूकारनी ने कहा कि जरूरत है तभी तो इतना काम कर रही हूं। सोना धोबन ने पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए। साहूकारनी बोली कि पहले मुझे वचन दो तब बताऊं। सोना धोबन ने वचन दे कर कहा कि अब बताइए।
साहूकारनी बोली कि मेरी बेटी के भाग्य में दुहाग लिखा हुआ है इसलिए आप चल कर उसे सुहाग दे और सोमवती करें। सोना धोबन अपने बेटे बहू से बोली कि मैं तो साहूकारनी के साथ जा रही हूं यदि पीछे से तुम्हारे पिताजी खत्म हो जाए तो तेल ,घी के कूप में डाल कर छोड़ देना। फिर दोनों जनी साहूकारनी के घर चली जाती है। साहूकार की बेटी का ब्याह होने लगा दूल्हा फेरों में बैठ गया सोना धोबन दूल्हे के घुटने के पास कच्चा करवा रखा। उसमें दूध डाला और तात का तार लेकर बैठ गई। थोड़ी देर बाद सांप दूल्हे को डसने के लिए आया। सोना धोबन ने करवा आगे रखा और तार से बांध दिया लेकिन दुला डर के मारे मर गया तब सोना धोबन ने टीके में से रोली निकाली, मांग में सिंदूर निकाला, कोया(आंख) में से काजल निकाला, और मेहंदी निकालकर छोटी अंगुली से छींटे मारे और बोली कि आज दिन तक मेने जितनी सोमवती अमावस करी उनका फल तो साहूकार के बेटी को लग जाए। और आगे जो मैं सोमवती अमावस करूं वह मेरे बेटे को लगे।
इतना कहते ही दूल्हा जीवित हो गया और सब सोमवती की जय जय बोलने लगे। सोना धोबन वापस जाने लगी तब साहूकारनी बोली कि तुमने मेरे जवांई को नया जीवनदान दिया है इसलिए कुछ भी मांगो। वह बोली कि मुझे तो कुछ नहीं चाहिए सिर्फ एक हांडी दे दो। वह हांडी ले कर चली जाती है रास्ते में सोमवती आती है तो हांडी का एक सौ आठ परिक्रमा लगाकर पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ कर घर आ जाती है। घर आकर देखती हैं तो उसका पति मरा हुआ तेल और घी के रूप में पड़ा है। तब वह टीका में से रोली निकाली, मांग में से सिंदूर निकाला, कोया में से काजल निकाली, नुंबा में से मेहंदी निकालकर चिटली अंगुली से छींटे दिए और बोली। मेने जो रास्ते मे सोमवती की है उसका फल मेरे पति को लगे। इतना कहते ही उसका पति उठ कर बैठ गया घर का ज्योतिषी आया और बोला कि जजमान सोमवती अमावस को मेरा क्या है तो दक्षिणा दे।सोना धोबन बोली कि मुझे तो सोमवती रास्ते में आई थी तो कुछ भी नहीं किया जो कुछ भी किया वह सब पीपल के नीचे ही गाड़ दिया। ज्योतिषी ब्राह्मण ने जाकर खोदकर देखा तो एक सौ आठ और 13 सोने के चक्कर मिले। ज्योतिषी ब्राह्मण सबको घर ले आया और बोला कि ऐसी फेरी की है और मुझे बोल दिया कि कुछ भी नहीं किया।
सोना धोबन बोली यह तो तुम्हारे भाग से ही हुआ है इसलिए इसे तुम ही ले जाओ। ब्राह्मण बोला कि मेरी तो इसमें चौथी पाती है। बाकी आपका मन हो उसे दे देना सारी नगरी में बोल दिया गया कि सब सोमवती अमावस का व्रत कीजिए। हे सोमवती अमावस। जैसा साहूकार की बेटी को सुहाग दिया। वैसा सबको देना। सोमवती अमावस की कहानी कहने वाले को, सोमवती अमावस की कहानी सुनने वाले को, हांमी भरने वाले को और अपने पूरे परिवार को देना।
सोमवती अमावस्या के दिन क्या करना चाहिए -
इस दिन पीपल के वृक्ष का पूजन करना चाहिए। माना जाता है करोड़ो देवी देवता पीपल के पेड़ में निवास करते हैं। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस पेड़ का पूजन बहुत शुभ माना गया है।
इस दिन यदि संभव हो तो पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। यदि इन तीर्थ स्थानों पर जाना आपके लिए मुश्किल हो तो अपने स्नान करने वाले जल में गंगाजल को मिला लेना चाहिए।
पीपल के वृक्ष के पूजन के बाद पीले रंग के पवित्र धागे को 108 बार परिक्रमा करके बांधना चाहिए।
इस दिन शनि मंत्र का पाठ करना बहुत फलदायी होता है।
इस दिन जरूरतमंदों और गरीबों को भोजन कराना चाहिए और उनको वस्त्र और धन का दान देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। जिससे पुण्य प्राप्त होता है और सभी कष्टों का निवारण हो जाता है।
पितृ तर्पण के लिए सोमवती अमावस्या का दिन बहुत ही शुभ होता है इसलिए दोपहर के समय पितरों की शांति के लिए पूजा करनी चाहिए।
सोमवती अमावस्या के दिन किए जाने वाले टोटके
नौकरी से संबंधित बाधाएं आने पर इस दिन ओंकार मंत्र का जाप करना चाहिए। इसी के साथ रात के समय रोटी पर सरसों का तेल लगाकर उसे काले कुत्ते को खिलाना चाहिए। इससे नौकरी मिलने में आने वाली और नौकरी के दौरान चल रही समस्याएं दूर हो जाती हैं।
हजार गौ दान का फल प्राप्त करने के सोमवती अमावस्या के दिन मौन व्रत का पालन करना चाहिए। अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए पीपल के वृक्ष का पूजन कर उसने नीचे बैठ कर भगवान शंकर की आराधना करनी चाहिए।
धन धान्य की प्राप्ति के लिए पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करके उसे सूत लपेटने के उपरांत ब्राह्मणों को आदर सत्कार सहित भोजन कराना चाहिए। अंत में उनके पांव छूकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
यदि किसी जातक का धन व्यर्थ के खर्च में व्यय हो रहा हो तो इस दिन तुलसी मां की पूजा करनी चाहिए और श्री हरि के मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। पूजा के बाद तुलसी के पौधे की 108 बार परिक्रमा करनी चाहिए।इस दिन शाम के समय उपले के ऊपर घी और गुड़ को लगाकर उसे जलाना चाहिए इसे धन लाभ होता है।
यदि किसी जातक को व्यापार में धन हानि हो रही हो तो उसे किसी कुएं में दूध का एक चम्मच डालकर पानी एक रुपए के सिक्के को डालना चाहिए। इससे व्यापार में लाभ होना आरंभ हो जाएगा।
कालसर्प दोष से प्रभावित जातकों को इस दिन भगवान शिव के मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाकर बिल्वपत्र को अर्पित करना चाहिए। इसके बाद पूरा दिन भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए।
सुबह उठकर चांदी से बने नाग नागिन की पूजा के बाद उनकी प्रतिमा को बहते जल में विसर्जित करने से भी कालसर्प दोष का निवारण हो जाता है।
पीपल के पेड़ पर घी का दिया जलाकर पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है।
इस दिन गंगा में स्नान करने से सभी कष्टों का नाश हो जाता है और आने वाली बाधाओं से जीवन मुक्त हो जाता है। गंगा स्नान के साथ-साथ अन्य पवित्र नदियों में किए गए स्नान का भी समान महत्व है। पितृ तर्पण के लिए अमावस्या का दिन बहुत उत्तम माना गया है, इस दिन पूर्वजों के आशीर्वाद और उनकी आत्मा की शांति के लिए पूजन किया जाता है। पितृ दोष से ग्रसित जातक इस दिन विशेष पूजा का आयोजन करते हैं। भगवान शिव के उपासकों के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है।
हिन्दू कैलेंडर से अनुसार वह तिथि जब चन्द्रमा लुप्त हो जाता है। उसे अमावस्या के नाम से जाना जाता है। कई लोग अमावस्या को अमावस भी कहते हैं। अमावस्या वाली रात को चांद लुप्त हो जाता है। जिसकी वजह से चारों ओर घना अंधेरा छाया रहता है। यह पखवाड़ा कृष्ण पक्ष कहलाता है। शास्त्रों के अनुसार अमावस्या के दिन पूजा-पाठ करने का खास महत्व होता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार महीने के 30 दिनों को चंद्र कला के अनुसार 15-15 दिनों के दो पक्षों में विभाजित किया जाता है। जिस भाग में चन्द्रमा बढ़ते रहता है। उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं। और जिस भाग में चन्द्रमा घटते-घटते पूरी तरह लुप्त हो जाए वह कृष्ण पक्ष कहलाता है। शुक्ल पक्ष में चांद बढ़ते-बढ़ते अपने पूर्ण रूप में आ जाता है। मतलब शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को हम पूर्णिमा कहते हैं। इसके विपरीत कृष्ण पक्ष में चांद धीरे-धीरे घटने लगता है। और एक दिन पूरी तरह लुप्त हो जाता है उस अंतिम दिन को हम अमावस्या कहते हैं।
दिन के अनुसार पड़ने वाली अमावस्या के अलग-अलग नाम होते हैं। जैसे सोमवार को पड़ने वाले अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। जो कि बहुत फलदायक होता है। उसी तरह शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या को शनि अमावस्या कहते हैं। जो कि किसी व्यक्ति के लिए बहुत भाग्यशाली रहता है। पितृदेव को अमावस्या का स्वामी माना जाता है। इसीलिए इस दिन पितरों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म या पूजा -पाठ करना अनुकूल माना जाता है। बहुत से लोग अपने पूर्वजों के नाम से हवन करते है और प्रसाद आदि चढ़ाते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो अमावस्या को पृथ्वी के चक्र में होने वाली एक सामान्य घटना माना जाता है। लेकिन अलग-अलग जगह के लोगों की अपनी मान्यताओं के अनुसार इसे शुभ और अशुभ रूप में देखा जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार माघ के महीने में आने वाली मौनी अमावस्या को बहुत ही शुभ माना जाता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष में 12 अमावस्याएँ होती हैं। जो लोग इस तिथि में विश्वास रखते हैं उनको इस दिन का बहुत इंतज़ार रहता है। वे यह जानने में इच्छुक रहते हैं कि अमावस्या कब है। क्यूंकि इस दिन के लिए उन लोगों को कई सारी तैयारियां करनी होती हैं।
अमावस्या के दिन किए जाने वाले उपाय
अमावस्या के दिन आटे की छोटी-छोटी गोलियां बना लें और किसी तालाब में मछलियों को खिलाएं। ऐसा करने से आपको पुण्य मिलेगा और धन लाभ होगा। यदि आप यह काम घर के बच्चे से करवाते हैं। तो आपके लिए यह और भी फलदायक सिद्ध होगा।
2- अगर संभव हो तो अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी में जा कर स्नान करें या फिर अपने नहाने के पानी में गंगा जल मिलाएं।
3- अमावस्या के दिन सुबह समय पर उठ जाएं और स्नान आदि करने के बाद हनुमान जी का पाठ करें और उन्हें लड्डू का भोग लगाएं। यदि आप पाठ नहीं कर पा रहे तो हनुमान बीज मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। आप पूजा करते समय हनुमान जी के सामने चमेली के तेल का दिया जलाएं।
4- घर में पूजा करने के अलावा आप मंदिर जाएं और अन्न का दान करें। अन्न दान को हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा पुण्य माना गया है। और यदि इस कार्य को अमावस्या के दिन किया जाए तो यह और भी शुभ होता है।
5- इस दिन शनि देव को तेल का दान करें। साथ में आप काली उड़द और लोहा भी दान कर सकते है।
अमावस्या के दिन करें इन चीजों का दान
1-गौ दान को महादान माना गया है। अगर आप आर्थिक रूप से सबल हैं। तो अमावस्या के दिन गौ दान करें इससे सौ यज्ञों के समतुल्य की प्राप्ति होती है। दैविक काल में अमावस्या के दिन ब्राह्मणों को गौ दान किया जा सकता है।
2-शास्त्रों में अन्न दान को भी विशेष महत्व दिया गया है। पौष अमावस्या के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न दान कर सकते हैं। अगर संभव हो तो भोजन भी करवा सकते हैं। यह भी अन्न दान की श्रेणी में आता है।
3-अमावस्या के दिन अन्न, जल और वस्त्र आदि भी गरीबों और जरूरतमंदों को दान किया जा सकता है। पौष माह में ज्यादा ठंड होने के कारण गरीबों को कंबल और गर्म कपड़े दान भी किए जा सकते हैं।
4-अमावस्या के दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मणों को भोजन जरूर कराएं. ऐसा करने से पितर प्रसन्न होतर वंशजों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
अमावस्या का महत्व
ज्योतिष शास्त्र और धार्मिक दृष्टिकोण से अमावस्या बहुत महत्वपूर्ण होती है। पुराणों के अनुसार इस दिन का पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए विशेष महत्व होता है। क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि यह दिन तर्पण, स्नान, दान आदि के लिए बहुत पुण्य और फलदायी होता है। दीपावली जो कि हमारे देश का प्रसिद्ध त्यौहार है। उसे भी अमावस्या के दिन ही मनाया जाता है। अमावस्या की तिथि को ही सूर्य पर ग्रहण लगता है। यह तिथि कालसर्प दोष से पीड़ित जातक की मुक्ति के उपाय के लिए भी असरदार मानी जाती है।
आमतौर पर देखा जाए तो अमावस्या को किसी भी अच्छे कार्य को करने के लिए शुभ नहीं माना जाता है। लेकिन वहीं अगर हम आध्यात्मिक तौर पर देखें तो अमावस्या का खास महत्व होता है। पुराणों में ऐसा कहा गया है। कि इस दिन अपने पूर्वजों को याद कर पूजा करने और गरीबों को दान देने से मनुष्य के पापों का नाश होता है। कई श्रद्धालु अमावस्या के दिन पवित्र जल से स्नान कर उपवास भी रखते है।
वैसे तो सभी अमावस्या को एक समान माना जाता है। लेकिन सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या जिसे हम सोमवती अमावस्या कहते हैं वो अन्य अमावस्या की तुलना में इस विशेष महत्व रखता है।
धन संबंधी समस्याएं होगी दूर
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, अमावस्या के दिन पानी में गंगाजल डालकर स्नान कर लें। इसके बाद तुलसी मां की 108 बार परिक्रमा करने से दरिद्रता दूर होती है। अमावस्या की संध्या काल में शिवलिंग पर कच्चे दूध और दही से अभिषेक करने से विशेष लाभ होता है। मान्यता है कि इससे सारे बिगड़े काम बनने लगते हैं और धन संबंधी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
नारियल के उपाय
अमावस्या की रात एक पानी का नारियल के पांच बराबर टुकड़े कर लीजिये। इन टुकड़ों को शिव की किसी तस्वीर के सामने शाम के समय रख दीजिये और अपनी समस्या शिव को बतायें। रात के समय इन नारियल को खिड़की पर रख दें। सुबह उठते ही इन नारियल को घर से दूर कहीं रख आयें। आपको धन संबंधी लाभ मिलेगा।
सारी परेशानी होगी दूर
महीने की शुरुआत में आप एक लाल धागा अपने गले में पहन लें। ध्यान रहे कि इसमें कोई भी ताबीज ना हो। इस धागे को महीनेभर गले में रखें और अमावस्या की रात के समय कहीं सुनसान जगह पर एक गड्ढा खोदकर दबा दें। आपकी सारी परेशानी दूर होने लगेंगी, ऐसा हर माह करें।
जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411