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रविवार पोंगल, उत्तरायण, मकर संक्रांति


रविवार पोंगल, उत्तरायण, मकर संक्रांति 15-01-23

मकर संक्रांति पर इस साल लोग दो तिथियों को लेकर असमंजस में हैं।अपने संशय को दूर करने के लिए यह जान लें कि मकर संक्रांति तब शुरू होती है। जब सूर्य देव राशि परिवर्तन कर मकर राशि में पहुंचते हैं।

इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी. मकर संक्रांति की शुरुआत 14 जनवरी 2023 को रात 08 बजकर 43 मिनट पर होगी. मकर संक्रांति का पुण्य काल मुहूर्त 15 जनवरी को सुबह 06 बजकर 47 मिनट पर शुरू होगा और इसका समापन शाम 05 बजकर 40 मिनट पर होगा. वहीं महापुण्य काल सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 06 मिनट तक रहेगा. उदयातिथि के अनुसार, इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी 2023 को ही मनाई जाएगी. पुण्यकाल और महापुण्यकाल में स्नान-दान करना शुभ होता है।

रविवार 15 जनवरी को मकर संक्रांति है। सूर्य के उत्तरायण का दिन। शुभ कार्यों की शुरुआत। इस दिन नदियों में स्नान और दान का बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन से देश में दिन बड़े और रातें छोटी हो जाती हैं। शीत ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है। मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व भी खूब है। मान्यता है। कि सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। भगवान विष्णु ने असुरों का संहार भी इसी दिन किया था। महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक प्रतीक्षा की थी।

मकर संक्रांति भारतवर्ष का एक बड़ा ही प्रसिद्ध त्यौहार है। जो अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना और मनाया जाता है। इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य ज़रूरतमंद लोगों को भिन्न-भिन्न वस्तुओं का दान करना सूर्य की उपासना करना होता है। जब सूर्य देव अपने गोचर भ्रमण के दौरान मकर राशि में प्रवेश करते हैं। उस दिन मकर संक्रांति के त्योहार के रूप में जाना और मनाया जाता है। सामान्यतय यह दिन 14 जनवरी को ही आता है। मकर संक्रांति का शुभ क्षण क्या है। और इस दिन दान का इतना महत्व क्यों बताया गया है।

मकर संक्रांति 2023: शुभ मुहूर्त:- पुण्य काल मुहूर्त :- 07:15:13 से 12:30:00 तक

महापुण्य काल मुहूर्त:- 07:15:13 से 09:15:13 तक

ऐसी मान्यता है कि जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलता है, इस दौरान सूर्य की किरणों को खराब माना गया है, लेकिन जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है, तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। इस वजह से साधु-संत और वे लोग जो आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े हैं उन्हें शांति और सिद्धि प्राप्त होती है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो पूर्व के कड़वे अनुभवों को भुलकर मनुष्य आगे की ओर बढ़ता है। स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि, उत्तरायण के 6 माह के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, तब पृथ्वी प्रकाशमय होती है, अत: इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्मा को प्राप्त होता है। महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था।

मकर संक्रांति पर दान में काशी का बर्तन , नए बर्तन पीतल, स्टील, इत्यादि।। लोकर का वस्त्र, गर्म कपड़े भी , हल्दी, कुंकू, नारियल, चीनी ,चावल, शक्करका दान कर सकते हैं।

दूध , घी, चावल, शक्कर ,मोती ,चांदी ,सफेद चीज महंगी होगी। केसर चंदन हल्दी तुवर दाल चना दाल यह महंगे होंगे। सोना,गरम मसाला,चाय,तंबाकू यह महंगे होंगे। राजकीय स्थिरता रहेगी राजकीय वर्ग में कलह रहेगी। विद्वानों का सत्कार होगा।

मकर संक्रांति पर दान का महत्व

मकर संक्रांति पर विशेषतौर पर दान क्यों दिया जाता है। इसके पीछे कारण यह है। कि मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं। जो सूर्य को अपना शत्रु मानते हैं। जबकि सूर्य देव शनि को अपना शत्रु नहीं मानते हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश होने से शनि प्रभावित होते हैं। जिसका सीधा-उल्टा असर जनजीवन पर अवश्य ही पड़ता है। जिन लोगों की कुंडली में शनिदेव की स्थिति अच्छी होती है। उनको इसका असर कम देखने को मिलता है। लेकिन इसके विपरीत जिन लोगों की कुंडली में शनि कमज़ोर या दुर्बल स्थिती में होते हैं। उनको इसके दुष्परिणाम कार्य घातक दिखाई देते हैं। गरीब एवं मजदूर वर्ग को शनि का कारक माना जाता है। जिस वजह से सूर्य एवं शनि से संबंधित वस्तुएं जैसे गुड़, रेवड़ी, खिचड़ी, बाजरा, मूंगफली, कपड़े, कंबल आदि वस्तुओं का दान करना बेहद शुभ और फलदायी होता है। मकर संक्रांति पर इन वस्तुओं का दान करने से सूर्य एवं शनि के शुभ परिणाम प्राप्त किए जा सके लेकिन इस दिन के दान में खिचड़ी का विशेष महत्व माना जाता है। क्योंकि खिचड़ी बाजरा, मूंग ,उड़द एवं चावल की बनाई जाती है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी दान का महत्व उड़द- शनि का कारक होते हैं। मूंग- बुध का कारक होते हैं। बाजरा- राहु/केतु के कारक होते हैं।

चावल- शुक्र एवं चंद्रमा के कारक होते हैं।

उड़द एवं बाजरे के दान से शनि-राहु के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है। राहु सदैव शनि के इशारों पर कार्य करता है। कुंडली में शनि का कमजोर होना सीधे राहु को प्रभावित करता है। और कमजोर राहु सदैव चकमा देकर दुर्घटना कर देता है। इसलिए खिचड़ी में बाजरा उड़द का होना शनि-राहु के दुष्परिणामों से बचाने में मदद करता है। साथ ही यदि शनि के मित्र ग्रह बुध एवं शुक्र को बलवान किया जाए तो इसका सीधा-सीधा असर शनि के शुभ परिणामों में मिलता है। इसलिए खिचड़ी में मूंग चावल भी मिलाया जाता है ताकि शनि के मित्र ग्रहों को बलवान बनाकर शनि को शुभ बनाया जा सके।

मकर संक्रांति पर सूर्य-शनि युति का प्रभाव इस वर्ष मकर संक्रांति पर शनि देव पहले से ही मकर राशि में गोचर कर रहे हैं। साथ ही 14 जनवरी को सूर्य देव का मकर राशि में गोचर से सूर्य-शनि की युति बन रही है। जिससे आगे आने वाला समय अधिक संघर्षशील हो सकता है। इस बार मकर संक्रांति पर सूर्य-शनि से संबंधित वस्तुओं जैसे:- गुड, मूंगफली, रेवड़ी, खिचड़ी, कंबल आदि गरीब एवं मजदूर वर्ग के लोगों में जरूर दान करें। ताकि सूर्य शनि की युक्ति के दुष्परिणामों से बचा जा सके।

पोंगल दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जाने वाला एक अहम हिंदू पर्व है। उत्तर भारत में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं तो मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है ठीक उसी प्रकार तमिलनाडु में पोंगल का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। पोंगल पर्व से ही तमिलनाडु में नव वर्ष का शुभारंभ होता है। पोंगल पर्व का इतिहास करीब एक हजार साल पुराना है। तमिलनाडु के अलावा श्रीलंका, कनाडा और अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में रहने वाले तमिल भाषी लोग इस पर्व को उत्साह के साथ मनाते हैं।

पोंगल का महत्व पोंगल पर्व का मूल कृषि है। सौर पंचांग के अनुसार यह त्यौहार तमिल माह की पहली तारीख यानि 14 या 15 जनवरी को आता है। जनवरी तक तमिलनाडु में गन्ना और धान की फसल पक कर तैयार हो जाती। प्रकृति की असीम कृपा से खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर किसान खुश हो जाते हैं और प्रकृति का आभार प्रकट करने के लिए इंद्र, सूर्य देव और पशु धन यानि गाय बैल की पूजा करते हैं। पोंगल उत्सव करीब 3 से 4 दिन तक चलता है। इस दौरान घरों की साफ-सफाई और लिपाई-पुताई शुरू हो जाती है। मान्यता है कि तमिल भाषी लोग पोंगल के अवसर पर बुरी आदतों को त्याग करते हैं। इस परंपरा को पोही कहा जाता है।

पोंगल पर होने वाले धार्मिक कर्म कांड और अन्य आयोजन

1.  पोंगल पर्व का पहला दिन देवराज इंद को समर्पित होता है इसे भोगी पोंगल कहते हैं। देवराज इंद वर्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं इसलिए अच्छी बारिश के लिए उनकी पूजा की जाती है और खेतों में हरियाली जीवन में समृद्धता की कामना की जाती है। इस दिन लोग घरों में पुराने हो चुके सामानों की होली जलाते हैं। इस दौरान महिलाएं और लड़कियां अग्नि के चारों ओर लोक गीत पर नृत्य करती हैं। इस परंपरा को भोगी मंटालू कहते हैं।
2.  सूर्य के उत्तरायण होने के बाद दूसरे दिन सूर्य पोंगल पर्व मनाया जाता है। इस दिन पोंगल नाम की विशेष खीर बनाई जाती है। इस मौके पर लोग खुले आंगन में हल्दी की गांठ को पीले धागे में पिरोकर पीतल या मिट्टी की हांडी के ऊपर बांधकर उसमें चावल और दाल की खिचड़ी पकाते हैं। खिचड़ी में उबाल आने पर दूध और घी डाला जाता है। खिचड़ी में उबाल या उफान आना सुख और समृद्धि का प्रतीक है। पोंगल तैयार होने के बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है। इस मौके पर लोग गाते-बजाते हुए एक-दूसरे की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
3.  पोंगल पर्व के तीसरे दिन यानि मात्तु पोंगल पर कृषि पशुओं जैसे गाय, बैल और सांड की पूजा की जाती है। इस मौके पर गाय और बैलों को सजाया जाता है और उनके सींगों को रंगकर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन बैलों की रेस यानि जली कट्टू का आयोजन भी होता है। मात्तु पोंगल को केनू पोंगल के नाम से भी जाना जाता है। जिसमें बहनें अपने भाइयों की खुशहाली के लिए पूजा करती हैं।
4.  चार दिवसीय पोंगल त्यौहार के आखिरी दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है, इसे तिरुवल्लूर के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घर को फूलों से सजाया जाता है। दरवाजे पर आम और नारियल के पत्तों से तोरण बनाया जाता है। इस मौके पर महिलाएं आंगन में रंगोली बनाती हैं। चूंकि इस दिन पोंगल पर्व का समापन होता है इसलिए लोग एक-दूसरे को बधाई और मिठाई देते हैं। यह त्यौहार मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है लेकिन इस पर्व का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व मानव समुदाय के लिए बेहद अहम है। इस त्योहार पर गाय के दूध में उफान या उबाल को महत्व दिया जाता है मान्यता है कि जिस तरह दूध का उबलना शुभ है ठीक उसी तरह हर मनुष्य का मन भी शुद्ध संस्कारों से उज्ज्वल होना चाहिए।

राम रामाय नमः

श्री राम ज्योति सदन

पंडित आशु बहुगुणा

भारतीय वैदिक ज्योतिष और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामशॅ दाता

मोबाइल नंबर - 9760924411

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