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बसंत पंचमी सरस्वती पूजा


बसंत पंचमी सरस्वती पूजा  26-01-2023

कड़कड़ाती ठंड के अंतिम पड़ाव के रूप में वसंत ऋतु का आगमन प्रकृति को वासंती रंग से सराबोर कर जाता है। अंगारों की तरह दिखते पलाश के फूल, आम के पेड़ों पर आए बौर, हरियाली से ढँकी धरती और गुलाबी ठंड के इस ऋतु हिंदू धर्म के लिए बहुत महत्व है। माघ के महीने की पंचमी को वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। मौसम का सुहाना होना इस मौके को और रूमानी बना देता है। परंपरागत त्योहार होने के कारण कई प्राचीन मान्यताएँ भी समाज में हैं।

विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वाग्देवी को चार भुजा युक्त आभूषणों से सुसज्जित दर्शाया गया है। स्कंद पुराण में सरस्वती जटा-जुटयुक्त, अर्धचन्द्र मस्तक पर धारण किए, कमलासन पर सुशोभित, नील ग्रीवा वाली एवं तीन नेत्रों वाली कही गई हैं। रूप मंडन में वाग्देवी का शांत, सौभ्य शास्त्रोक्त वर्णन मिलता है। संपूर्ण संस्कृति की देवी के रूप में दूध के समान श्वेत रंग वाली सरस्वती के रूप को अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है। बसंत पर्व का आरंभ बसंत पंचमी से होता है। इसी दिन श्री अर्थात विद्या की अधिष्ठात्री देवी महासरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है। सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से कैसे बचाया, इसकी एक मनोरम कथा वाल्मिकी रामायण के उत्तरकांड में आती है। कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हज़ार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की। जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों ने कहा कि यह राक्षस पहले से ही है। वर पाने के बाद तो और भी उन्मत्त हो जाएगा तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया। सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा- स्वप्न वर्षाव्यनेकानि। देव देव ममाप्सिनम। यानी मैं कई वर्षों तक सोता रहूँ, यही मेरी इच्छा है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण

ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य को ब्रह्माण्ड की आत्मा, पद, प्रतिष्ठा, भौतिक समृद्धि, औषधि तथा ज्ञान और बुद्धि का कारक ग्रह माना गया है। इसी प्रकार पंचमी तिथि किसी किसी देवता को समर्पित है। बसंत पंचमी को मुख्यतः सरस्वती पूजन के निमित्त ही माना गया है। इस ऋतु में प्रकृति को ईश्वर प्रदत्त वरदान खेतों में हरियाली एवं पौधों एवं वृक्षों पर पल्लवित पुष्पों एवं फलों के रूप में स्पष्ट देखा जा सकता है। सरस्वती का जैसा शुभ श्वेत, धवल रूप वेदों में वर्णित किया गया है। वह इस प्रकार है।

"या कुन्देन्दु-तुषार-हार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता, या वीणा-वर दण्डमण्डित करा या श्वेत पद्मासना। या ब्रह्मा-च्युत शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता, सा मां पातु सरस्वती भगवती निः शेषजाडयापहा।"

अर्थात "देवी सरस्वती शीतल चंद्रमा की किरणों से गिरती हुई ओस की बूंदों के श्वेत हार से सुसज्जित, शुभ वस्त्रों से आवृत, हाथों में वीणा धारण किये हुए वर मुद्रा में अति श्वेत कमल रूपी आसन पर विराजमान हैं। शारदा देवी ब्रह्मा, शंकर, अच्युत आदि देवताओं द्वारा भी सदा ही वन्दनीय हैं। ऐसी देवी सरस्वती हमारी बुद्धि की जड़ता को नष्ट करके हमें तीक्ष्ण बुद्धि एवं कुशाग्र मेधा से युक्त करें।"

सरस्वती व्रत का विधान और फल-

बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन और व्रत करने से वाणी मधुर होती है। स्मरण शक्ति तीव्र होती है। प्राणियों को सौभाग्य प्राप्त होता है। विद्या में कुशलता प्राप्त होती है। पति-पत्नी और बंधुजनों का कभी वियोग नहीं होता है। तथा दीर्घायु एवं निरोगता प्राप्त होती है। इस दिन भक्तिपूर्वक ब्राह्मण के द्वारा स्वस्ति वाचन कराकर गंध, अक्षत, श्वेत पुष्प माला, श्वेत वस्त्रादि उपचारों से वीणा, अक्षमाला, कमण्डल, तथा पुस्तक धारण की हुई सभी अलंकारों से अलंकृत भगवती गायत्री का पूजन करें। फिर इस प्रकार हाथ जोड़कर मंत्रोच्चार करें :-

बसंत पंचमी के दिन करें इन मंत्रों का जाप, विद्या बुद्धि देगी मां सरस्वती

बसंत पंचमी भारतीय त्यौहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन को मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। इस दिन मां सरस्वती के मंत्रों का जाप करने से ज्ञान, विद्या, बल, बुद्धि और तेज की प्राप्ति होती है।

'ऎं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां। सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।'

एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र : ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।

'वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। मंगलानां कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ॥'

'सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:

वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।

विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।'

मां शारदे मंत्र :- नमो भगवती सरस्वती परमेश्वरी वाक्य वादिनी है विद्या देही भगवती हंसवाहिनी बुद्धि में देही प्रज्ञा देही,देही विद्या देही देही परमेश्वरी सरस्वती स्वाहा।

विधी :- यह मंत्र अत्यन्त तीव्र एवं प्रभावी होता है। बसंत पंचमी के दिन या किसी भी रविवार को सरस्वती माता के चित्र के समक्ष दूध से बना प्रसाद चढ़ाकर उक्त मंत्र का विधि पूर्वक 11माला जप करें तथा खीर का भोजन करें तो यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। फिर जब भी पढ़ने बैठे इस मंत्र का 7 बार जप करें तो पढ़ा हुआ तुरंत याद हो जाता है। और बुद्धि तीव्र हो जाती है।

"यथा वु देवि भगवान ब्रह्मा लोकपितामहः।

त्वां परित्यज्य नो तिष्ठंन, तथा भव वरप्रदा।।

वेद शास्त्राणि सर्वाणि नृत्य गीतादिकं चरेत्।

वादितं यत् त्वया देवि तथा मे सन्तुसिद्धयः।

लक्ष्मीर्वेदवरा रिष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभामतिः।

एताभिः परिहत्तनुरिष्टाभिर्मा सरस्वति।।

अर्थात् "देवि! जिस प्रकार लोकपितामह ब्रह्मा आपका कभी परित्याग नहीं करते, उसी प्रकार आप भी हमें वर दीजिए कि हमारा भी कभी अपने परिवार के लोगों से वियोग हो। हे देवि वेदादि सम्पूर्ण शास्त्र तथा नृत्य गीतादि जो भी विद्याएँ हैं। वे सभी आपके अधिष्ठान में ही रहती हैं। वे सभी मुझे प्राप्त हों। हे भगवती सरस्वती देवि! आप अपनी- लक्ष्मी, मेधा, वरारिष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा तथा मति- इन आठ मूर्तियों के द्वारा मेरी रक्षा करें।"

उपरोक्त विधि :- से पूजन कर मौन होकर भोजन करना चाहिए। प्रत्येक मास की पंचमी को सुवासिनी स्त्रियों का भी पूजन करें, उन्हें यथाशक्ति तिल, चावल, दुग्ध घृत पात्र प्रदान करें और 'गायत्री में प्रीयताम्' ऐसा बोलें। इस प्रकार वर्ष भर व्रत करें। व्रत की समाप्ति पर ब्राह्मण को चावलों से भरा पात्र, श्वेत वस्त्र, श्वेत चंदन, घंटा, अन्न आदि पदार्थ भी दान करें। यदि हो तो अपने गुरु देव का भी वस्त्र, धन, धान्य और माला आदि से पूजन करें। इस विधि से जो भी सरस्वती पूजन करता है। वह विद्वान, धनी और मधुर वाणी से युक्त हो जाता है। भगवती सरस्वती की कृपा से उसे महर्षि वेदव्यास के समान ज्ञान प्राप्त हो जाता है। स्त्रियाँ यदि इस प्रकार सरस्वती पूजन करती हैं। तो उनका अपने पति से कभी वियोग नहीं होता।

पीले रंग का महत्व -

वसंत पंचमी के दिन उत्तर भारत के कई भागों में पीले रंग के पकवान बनाए जाते हैं। वसम्त ऋतु में चारों ओर अधिकतर पीले फूल दिखाई देते हैं। इस समय सरसों पक जाती है। और उस पर पीले फूल खिले दिखाई देते हैं। बसंत का अर्थ है मादकता. बसंत का रंग भी बसंती रंग अर्थात पीला रंग माना गया है। यह रंग पीले रंग और नारंगी रंग के बीच का रंग होता है। इसलिए इस दिन इस पीले रंग का महत्व मानते हुए कई लोग पीले रंग का भोजन इस दिन करते हैं। पीले वस्त्र धारण करते हैं। हर तरफ उत्साह तथा खुशी का माहौल छाया रहता है। इस समय धरती पर उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है। वृक्षों में नई कोंपलें आति है। पौधों पर नए फूल आते हैं. इस ऋतु को फूलों का मौसम भी कहा जा सकता है। इस समय ना तो ठण्ड होती है। और ना ही गरमी होती है। इस समय तक आमों के वृक्षों पर आम के लिए मंजरी आनी आरम्भ हो जाती है। जिन व्यक्तियों को डायबिटीज, अतिसार, रक्त विकार की समस्या है। उन्हें आम की मंजरी के सेवन से इन समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। इसलिए वसंत पंचमी के दिन आम की मंजरी अथवा आम के फूलों को हाथों पर मलना चाहिए. इससे उन्हें उपरोक्त समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। इस दिन बच्चों को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। पितृ तर्पण किया जाता है। कामदेव की पूजा की जाती है। और सबसे महत्वपूर्ण विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। पहनावा भी परंपरागत होता है। पुरुष कुर्ता-पाजामा में और स्त्रियाँ पीले या वासंती रंग की साड़ी पहनती हैं। गायन और वादन सहित अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। जो सरस्वती माँ को अर्पित किए जाते हैं।

वसंत पंचमी को श्री पंचमी तथा ज्ञान पंचमी भी कहते हैं। अमेरिका में रहने वाले बंगाली समुदाय के लोग इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन वे सरस्वती पूजा का विशेष और वृहद आयोजन करते हैं। जिसमें वहाँ का भारतीय समुदाय शामिल होता है।

श्रीकृष्ण ने की प्रथम पूजा :- विद्या की अभिलाषा रखने वाले व्यक्ति के लिए ये दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। सबसे पहले माँ सरस्वती की पूजा के बाद ही विद्यारंभ करते हैं। ऐसा करने पर माँ प्रसन्न होती है। और बुद्घि तथा विवेकशील बनने का आशीर्वाद देती है। विद्यार्थी के लिए माँ सरस्वती का स्थान सबसे पहले होता है।

इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के पीछे भी पौराणिक कथा है। इनकी सबसे पहले पूजा श्रीकृष्ण और ब्रह्माजी ने ही की है। देवी सरस्वती ने जब श्रीकृष्ण को देखा तो उनके रूप पर मोहित हो गईं और पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं। भगवान कृष्ण को इस बात का पता चलने पर उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं। परंतु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने वरदान दिया कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखनेवाला माघ मास की शुक्ल पंचमी को तुम्हारा पूजन करेगा।

यह वरदान देने के बाद स्वयं श्रीकृष्ण ने पहले देवी की पूजा की। सृष्टि निर्माण के लिए मूल प्रकृति के पाँच रूपों में से सरस्वती एक है। जो वाणी, बुद्घि, विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। वसंत पंचमी का अवसर इस देवी को पूजने के लिए पूरे वर्ष में सबसे उपयुक्त है। क्योंकि इस काल में धरती जो रूप धारण करती है। वह सुंदरतम होता है।

ब्रह्माजी की रचना सरस्वती :- सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्माजी ने जब धरती को मूक और नीरस देखा तो अपने कमंडल से जल लेकर छिटका दिया। इससे सारी धरा हरियाली से आच्छादित हो गई पर साथ ही देवी सरस्वती का उद्भव हुआ जिसे ब्रह्माजी ने आदेश दिया कि वीणा पुस्तक से इस सृष्टि को आलोकित करें। तभी से देवी सरस्वती के वीणा से झंकृत संगीत में प्रकृति विहंगम नृत्य करने लगती है। देवी के ज्ञान का प्रकाश पूरी धरा को प्रकाशमान करता है। जिस तरह सारे देवों और ईश्वरों में जो स्थान श्रीकृष्ण का है। वही स्थान ऋतुओं में वसंत का है। यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया है।

कामदेव की 'मार' : वसंत कामदेव का मित्र है। इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वरविहीन होती है। यानी जब कामदेव जब कमान से तीर छोड़ते हैं। तो उसकी आवाज नहीं होती है। कामदेव का एक नाम 'अनंग' है। यानी बिना शरीर के यह प्राणियों में बसते हैं। एक नाम 'मार' है। यानी यह इतने मारक हैं कि इनके बाणों का कोई कवच नहीं है। वसंत ऋतु को प्रेम की ही ऋतु माना जाता रहा है। इसमें फूलों के बाणों से आहत हृदय प्रेम से सराबोर हो जाता है।

गुनगुनी धूप, स्नेहिल हवा, मौसम का नशा प्रेम की अगन को और भड़काता है। तापमान अधिक ठंडा, अधिक गर्म। सुहाना समय चारों ओर सुंदर दृश्य, सुगंधित पुष्प, मंद-मंद मलय पवन, फलों के वृक्षों पर बौर की सुगंध, जल से भरे सरोवर, आम के वृक्षों पर कोयल की कूक ये सब प्रीत में उत्साह भर देते हैं। यह ऋतु कामदेव की ऋतु है। यौवन इसमें अँगड़ाई लेता है। दरअसल वसंत ऋतु एक भाव है जो प्रेम में समाहित हो जाता है।

दिल में चुभता प्रेमबाण :- जब कोई किसी से प्रेम करने लगता है। तो सारी दुनिया में हृदय के चित्र में बाण चुभाने का प्रतीक उपयोग में लाया जाता है। 'मार' का बाण यदि आपके हृदय में चुभ जाए तो आपके हृदय में पीड़ा होगी। लेकिन वह पीड़ा ऐसी होगी कि उसे आप छोड़ना नहीं चाहोगे, वह पीड़ा आनंद जैसी होगी। काम का बाण जब हृदय में चुभता है तो कुछ-कुछ होता रहता है।

इसलिए तो बसंत का 'मार' से संबंध है। क्योंकि काम बाण का अनुकूल समय वसंत ऋतु होता है। प्रेम के साथ ही बसंत का आगमन हो जाता है। जो प्रेम में है। वह दीवाना हो ही जाता है। प्रेम का गणित मस्तिष्क की पकड़ से बाहर रहता है। इसलिए प्रेम का प्रतीक हृदय के चित्र में बाण चुभा बताना है।

वसंत पंचमी एक नजर में -

- यह दिन वसंत ऋतु के आरंभ का दिन होता है।

- देवी सरस्वती और ग्रंथों का पूजन किया जाता है।

- नव बालक-बालिका इस दिन से विद्या का आरंभ करते हैं।

- संगीतकार अपने वाद्ययंत्रों का पूजन करते हैं।

- स्कूलों और गुरुकुलों में सरस्वती और वेद पूजन किया जाता है।

वसंत पंचमी मुहूर्त वसंत पंचमी का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। वसंत पंचमी से पांच दिन पहले से वसंत ऋतु का आरम्भ माना जाता है। चारों ओर हरियाली और खुशहाली का वातावरण छाया रहता है। इस दिन को विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इसलिए विद्यार्थियों के लिए विद्या आरम्भ का मुहूर्त बहुत ही श्रेष्ठ मुहूर्त होता है। जिन व्यक्तियों को गृह प्रवेश के लिए कोई मुहूर्त ना मिल रहा हो वह इस दिन गृह प्रवेश कर सकते हैं। कोई व्यक्ति अपने नए व्यवसाय को आरम्भ करने के लिए शुभ मुहूर्त को तलाश रहा हो तब वह वसंत पंचमी के दिन अपना नया व्यवसाय आरम्भ कर सकता है। अन्य कोई भी कार्य जिनके लिए किसी को कोई उपयुक्त मुहूर्त ना मिल रहा हो तब वह वसंत पंचमी के दिन वह कार्य कर सकता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार वसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त माना जाता है। इस दिन बिना मुहूर्त जाने शुभ और मांगलिक कार्य किए जाते हैं।

राम रामाय नमः

श्री राम ज्योति सदन

पंडित आशु बहुगुणा

भारतीय वैदिक ज्योतिष और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामशॅ दाता

मोबाइल नंबर - 9760924411

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