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बुधवार तुला संक्रांति
बुधवार तुला संक्रांति 18-10-2023
सूर्य हर महीने अपना स्थान बदल कर एक राशि से दूसरे राशि में चला जाता है। सूर्य के हर महीने राशि परिवर्तन करने की प्रक्रिया को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्म में संक्रांति का समय बहुत पुण्यकारी माना गया है। संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का काफ़ी महत्व है। इस वैदिक उत्सव को भारत के कई इलाकों में बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। संक्रांति एक सौर घटना है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पूरे वर्ष में प्रायः कुल 12 संक्रान्तियाँ होती हैं।
संक्रांति क्या है।
सूर्य हर महीने अपना स्थान बदल कर एक राशि से दूसरे राशि में चला जाता है। सूर्य के हर महीने राशि परिवर्तन करने की प्रक्रिया को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्म में संक्रांति का समय बहुत पुण्यकारी माना गया है। संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का काफ़ी महत्व है। इस वैदिक उत्सव को भारत के कई इलाकों में बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
पंचदेवों में से एक हैं। सूर्य
हिन्दू धर्म में पंचदेव बताए गए हैं। इनमें श्रीगणेश, शिवजी, विष्णुजी, देवी दुर्गा और सूर्यदेव शामिल हैं। किसी भी काम की शुरुआत में इन पांचों देवी-देवताओं की पूजा अनिवार्य रूप से की जाती है। ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है। इसी वजह से सूर्य की स्थिति महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस ग्रह के राशि परिवर्तन पर पूजा-पाठ, स्नान-दान जैसे शुभ कर्म करने की परंपरा है।
एक वर्ष में 12 संक्रांतियां आती हैं। सूर्य सभी 12 राशियों में भ्रमण करता है। जब ये ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में जाता है तो इसे संक्रांति कहते हैं। सूर्य जब जिस राशि में जाता है, तब उस राशि के नाम की संक्रांति होती है।
संक्रांति का महत्व :- अगर देखा जाये तो संक्रांति का सम्बन्ध कृषि, प्रकृति और ऋतु परिवर्तन से भी है। सूर्य देव को प्रकृति के कारक के तौर पर जाना जाता है। इसीलिए संक्रांति के दिन इनकी पूजा की जाती है। शास्त्रों में सूर्य देवता को समस्त भौतिक और अभौतिक तत्वों की आत्मा माना गया है। ऋतु परिवर्तन और जलवायु में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव इनकी स्थिति के अनुसार होता है। न केवल ऋतु में बदलाव बल्कि धरती जो अन्न पैदा करती है। और जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है। यह सब सूर्य के कारण ही संपन्न हो पाता है।
संक्रांति के दिन पूजा-अर्चना करने के बाद गुड़ और तिल का प्रसाद बांटा जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं। संक्राति एक शुभ दिन होता है। पूर्णिमा, एकादशी आदि जैसे शुभ दिनों की तरह ही संक्रांति के दिन की भी बहुत मान्यता है। इसीलिए इस दिन कुछ लोग पूजा-पाठ आदि भी करते हैं। मत्स्यपुराण में संक्रांति के व्रत का वर्णन किया गया है।
जो भी व्यक्ति ( नारी या पुरुष ) संक्रांति पर व्रत रखना चाहता हो उसे एक दिन पहले केवल एक बार भोजन करना चाहिए। जिस दिन संक्रांति हो उस दिन प्रातः काल उठकर अपने दाँतो को अच्छे से साफ़ करने के बाद स्नान करें। उपासक अपने स्न्नान के पानी में तिल अवश्य मिला लें। इस दिन दान-धर्म की बहुत मान्यता है। इसीलिए स्नान के बाद ब्राह्मण को अनाज, फल आदि दान करना चाहिए। इसके बाद उसे बिना तेल का भोजन करना चाहिए और अपनी यथाशक्ति दूसरों को भी भोजन देना चाहिए।
संक्रांति, ग्रहण, पूर्णिमा और अमावस्या जैसे दिनों पर गंगा स्नान को महापुण्यदायक माना गया है। माना जाता है कि ऐसा करने पर व्यक्ति को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। देवीपुराण में यह कहा गया है। जो व्यक्ति संक्रांति के पावन दिन पर भी स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक बीमार और निर्धन रहता है।
सूर्य पूजा की सरल विधि :-
सूर्य पूजा के लिए तांबे की थाली और तांबे के लोटे का उपयोग करना चाहिए। थाली में लाल चंदन, लाल फूल और एक दीपक रखें। लोटे में जल लेकर उसमें लाल चंदन मिलाएं, लोटे में लाल फूल डाल लें। थाली में दीपक जलाएं और ऊँ सूर्याय नमः मंत्र का जाप करते हुए सूर्य को प्रणाम करें। इसके बाद लोटे से सूर्य देवता को जल चढ़ाएं। सूर्य मंत्र का जाप करते रहें। इस प्रकार सूर्य को जल चढ़ाना अर्घ्य देना कहलाता है। ऊँ सूर्याय नमः अर्घ्यं समर्पयामि कहते हुए पूरा जल सूर्य को चढ़ाएं। अर्घ समर्पित करते समय नजरें लोटे के जल की धारा की ओर रखें। जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिंब एक बिंदु के रूप में जल की धारा में दिखाई देगा। सूर्य को जल चढ़ाते समय दोनों हाथों को इतना ऊपर उठाएं कि जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिंब दिखाई दे। इसके बाद सूर्य की आरती करें। सात परिक्रमा करें और हाथ जोड़कर प्रणाम करें। पूजा में हुई भूल के लिए क्षमायाचना करें।
संक्रांति, ग्रहण, पूर्णिमा और अमावस्या जैसे दिनों पर गंगा स्नान को महापुण्यदायक माना गया है। माना जाता है कि ऐसा करने पर व्यक्ति को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। देवीपुराण में यह कहा गया है। जो व्यक्ति संक्रांति के पावन दिन पर भी स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक बीमार और निर्धन रहता है।
ॐ राम रामाय नमः
श्री राम ज्योति सदन
पंडित आशु बहुगुणा
भारतीय वैदिक ज्योतिष और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामशॅ दाता ।
मोबाइल नंबर - 9760924411
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