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गुरुवार होलिका दहन


मंगलवार होलिका दहन  07-03-2023

होलिका दहन मुहूर्त :-होलिका दहन 2023 का शुभ मुहूर्त शाम 18.24.31सेकंड से शुरू होकर 20.51.30 सेकंड तक होलिका दहन किस समय रहेगी। होलिका दहन फागुन महीना की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

भद्रा पुँछा :- 01.02.09 से 02.19.29 तक

भद्रा मुखा :- 02.19.29 से 04.28.23 तक

होलिका दहन, होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है।

होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम –

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक  होलाष्टक माना जाता  है। जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -
    1.   पहला, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है। जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।
    2.   दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।
होलिका दहन ( जिसे छोटी होली भी कहते हैं। ) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है। यह त्यौहार कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं। वहाँ भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है। जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे प्रमुखतः धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम हैं। लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं। ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं। और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं। और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं। गले मिलते हैं। और मिठाइयाँ खिलाते हैं।

राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है।  राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं। ही पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।  गुझिया होली का प्रमुख पकवान है। जो कि मावा (खोया) और मैदा से बनती है। और मेवाओं से युक्त होती है। इस दिन कांजी के बड़े खाने व खिलाने का भी रिवाज है। नए कपड़े पहन कर होली की शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते है। जहाँ उनका स्वागत गुझिया,नमकीन व ठंडाई से किया जाता है। होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है।

होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है। इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इनमें प्रमुख हैं, जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र। नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है। संस्कृत साहित्य में वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव अनेक कवियों के प्रिय विषय रहे हैं।

होली के पर्व की तरह इसकी परंपराएँ भी अत्यंत प्राचीन हैं और इसका स्वरूप और उद्देश्य समय के साथ बदलता रहा है। प्राचीन काल में यह विवाहित महिलाओं द्वारा परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता था और पूर्ण चंद्र की पूजा करने की परंपरा थी। वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। उस समय खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला कहते हैं, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र शुदी प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है। इस उत्सव के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादितिथि कहते हैं। होली का पहला काम झंडा या डंडा गाड़ना होता है। इसे किसी सार्वजनिक स्थल या घर के आहाते में गाड़ा जाता है। इसके पास ही होलिका की अग्नि इकट्ठी की जाती है। होली से काफ़ी दिन पहले से ही यह सब तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। पर्व का पहला दिन होलिका दहन का दिन कहलाता है। इस दिन चौराहों पर व जहाँ कहीं अग्नि के लिए लकड़ी एकत्र की गई होती है, वहाँ होली जलाई जाती है। इसमें लकड़ियाँ और उपले प्रमुख रूप से होते हैं। कई स्थलों पर होलिका में भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है। भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए। लकड़ियों व उपलों से बनी इस होली का दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहाँ भोग लगाया जाता है। दिन ढलने पर ज्योतिषियों द्वारा निकाले मुहूर्त पर होली का दहन किया जाता है। इस आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है। होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। गाँवों में लोग देर रात तक होली के गीत गाते हैं तथा नाचते हैं।

होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है। इस दिन लोग रंगों से खेलते हैं। सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं। गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस दिन जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं। बच्चे पिचकारियों से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है। रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।

होली के दिन घरों में खीर, पूरी और पूड़े आदि विभिन्न व्यंजन (खाद्य पदार्थ) पकाए जाते हैं। इस अवसर पर अनेक मिठाइयाँ बनाई जाती हैं जिनमें गुझियों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। बेसन के सेव और दहीबड़े भी सामान्य रूप से उत्तर प्रदेश में रहने वाले हर परिवार में बनाए व खिलाए जाते हैं।

होलिका दहन की पौराणिक कथा -

पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत -- होलिका जलकर भस्म हो गयी और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।

होली के दिन क्या करें और क्या न करें :- सबसे पहली बात तो यह है कि रंग जरुर खेले इस दिन रंग खेलने से जीवन में खुशियों के रंग आते है और मनहूसियत दूर भाग जाती है | अगर आप घर से बाहर जा कर होली नहीं खेलना चाहते हैं तो घर पर ही होली खेलिये लेकिन खेलिये जरुर |
(2) सुबह सुबह पहले भगवान को रंग चढ़ा कर ही होली खेलना शुरू कीजिये |
(3) एक दिन पहले जब होली जलाई जाये तो उसमे जरुर भाग लें | अगर किसी वजह से आप रात में होलीं जलाने के वक्त शामिल न हो पायें तो अगले दिन सुबह सूरज निकलने से पहले जलती हुई होली के निकट जाकर तीन परिक्रमा करें | होली में अलसी , मटर ,चना गेंहू कि बालियाँ और गन्ना इनमे से जो कुछ भी मिल जाये उसे होली की आग में जरुर डालें |
(4) परिवार के सभी सदस्यों के पैर के अंगूठे से लेकर हाथ को सिर से ऊपर पूरा ऊँचा करके कच्चा सूत नाप कर होली में डालें |
(5) होली की विभूति यानि भस्म (राख) घर जरुर लायें पुरुष इस भस्म को मस्तक पर और महिला अपने गले में , इससे एश्वर्य बढ़ता है |
(6) घर के बीच में एक चौकोर टुकड़ा साफ कर के उसमे कामदेव का पूजन करें |
(7) होली के दिन दाम्पत्य भाव से अवश्य रहें |
(8) होली के दिन मन में किसी के प्रति शत्रुता का भाव न रखें, इससे साल भर आप शत्रुओं पर विजयी होते रहेंगे |
(9) घर आने वाले मेहमानों को सौंफ और मिश्री जरुर खिलायें, इससे प्रेम भाव बढ़ता है |
होली के मौके पर क्या कर के आप फायदा उठा सकते है| :-
(1) व्यापार में फायदा उठाने के लिये :- छ: बाली अलसी और तीन बाली गेंहू को होली की आग में जला लें - आधी जली हुई बालियों को लाल कपड़े में लपेट कर अपनी शॉप या शो रूम में ले जाकर रखने से business बढ़ता है |
(2) अचानक धन लाभ के लिये :- पत्तियों सहित गन्ना ले जा कर होली की आग में इस तरह डाल दें कि गन्ने कि पत्तियां आग में जल जायें | बचे हुये गन्ने को लाकर घर के साउथ वेस्ट कार्नर में खड़ा कर दीजिये | जल्दी ही आपको धन लाभ होगा |

(1) - बॉस वशीकरण - बॉस की फोटो लेकर उसपर घी और शहद लगाकर मिट्टी के कुल्हड़ में रखें इसके ऊपर दही भर दें और उस पर थोड़ी सी होली की भस्म दाल दें | उस कुल्हड़ का मुंह लाल कपड़े से बांध कर किसी ऊँची जगह पर रख दें | ऐसा करने से बॉस आपके वश में हो जायेंगे | लेकिन खबरदार ; बॉस को अपने वश में करना तो ठीक है लेकिन अगर आपने अपनी स्थिति का दुरूपयोग किया तो इसके भयंकर परिणाम हो सकतें हैं |
(2) - मुकदमा जीतने के लिये - होली की आग लाकर उसके कोयले से स्याही बनाकर लोहे की सलाई से मुकदमा नम्बर और शत्रु पक्ष का नाम सात कागजों पर लिख कर पुन: होली की अग्नि के पास जायें और सात परिक्रमा करें, हर परिक्रमा पर एक कागज़ होली की आग में दाल दें तो शत्रु स्वयं समझौता कर लेता है और मुक़दमे में सफलता मिलती है |
(3) - दूसरे के तंत्र मंत्र से बचने के लिये - काली नजर से बचाव :- होली की आग से अंगारे लाकर उसे पीस कर उससे स्याही बनावें एक सफ़ेद कपड़े पर एक मनुष्य की आकृति बना कर उसमे काले तिल भर कर पुन: होली में डाल दें तो दूसरे का किया धरा नष्ट हो जाता है |
(4) - बुरी नजर से बचाव :- एक मुट्ठी काले तिल, छः काली मिर्च, छः लौंग, एक टुकड़ा कपूर बच्चे या बड़े के ऊपर से उतार कर होली में डाल दें, पुरानी बुरी नजर उतर जायेगी और आगे भी बचाव होगा |
(5) अपने बिजनेस को बुरी नज़र से बचाने के लिये :-एक दिन पहले फिटकरी के छ:टुकड़े अपनी दुकान , शोरुम या office में रात में छोड़ दे | होली की शाम उन्हें ले जाकर कपूर , अलसी , गन्ने के टुकड़े और गेहूं के साथ मिला कर होली में डाल दें तो आपके बिजनेस को दूसरों की नज़र नहीं लगेगी |
(6) बच्चे का मन पढाई में मन लगाने के लिये :- एक 4 मुखी और एक ६ मुखी रुद्राक्ष के बीच में गणेश रुद्राक्ष लगवा कर बच्चे को पहनायें फिर उसे होली की अग्नि के करीब ले जाकर सात चक्कर लगवायें |हर बार बच्चा एक मुट्ठी गुलाल होली की ओर उछालता जाये इससे विद्या प्राप्ति की बाधा दूर होगी और पढ़ाई में ध्यान लगेगा |

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम:  श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411