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रविवार दुर्गा महा अष्टमी पूजा


रविवार दुर्गा महाअष्टमी पूजा  22, अक्टूबर, 2023

नवरात्रि या दुर्गा पूजा के आठवें दिन को अष्टमी या दुर्गा अष्टमी के रूप में जाना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार इस दिन को सबसे शुभ दिन माना जाता है। सबसे महत्वपूर्ण दुर्गा अष्टमी जिसे महाष्टमी भी कहा जाता है। यह अश्विनी के महीने में नौ दिनों की नवरात्री उत्सव के दौरान मनाई जाती है। साथ ही अन्य देवों की भी पूजा की जाती है। दुर्गा अष्टमी को मासिक दुर्गा अष्टमी या मास दुर्गा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। लोग अपने मनोवांछित फल को प्राप्त करने के उदेश्य से जैसे की जीवन में चल रही किसी समस्या के समाधान के लिए या  किसी भी दुःख का निवारण करने के लिए माँ दुर्गा अष्टमी का पूजन करते है। इस दिन भक्त दिव्य आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए सख्त उपवास रखते है। हिन्दू धर्म के अनुयायीयों के लिए दुर्गा अष्टमी व्रत एक महत्वपूर्ण आराधना  है।

दुर्गा अष्टमी व्रत का उपवास स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से रख सकते है। कुछ भक्त बिना अन्न और जल के उपवास रखते है। तो कुछ भक्त दूध, फल इत्यादी का सेवन करके इस व्रत का उपवास करते है। इस दिन मांसाहारी भोजन करना या शराब का सेवन करना वर्जित होता है। व्रत करने वाले भक्तो को आराम और विलासिता से दूर रहते हुए नीचे सोना चाहिए पश्चिमी भारत के कुछ क्षेत्रों में बीज बोने की परम्परा है। जोकि मिट्टी के बर्तन में बोये जाते है। जिसमे बीज आठ दिन के पूजन तक 3 से 5 इंच तक बढ़ जाता है। अष्टमी के दिन उसको देवी को समर्पित करने के बाद में परिवार के सभी सदस्यों में इस बीज को वितरित कर दिया जाता है। इसे लोग प्रसाद स्वरूप अपने पास रखते है। ऐसा माना जाता है कि इसको रखने से समृधि आती है।

दुर्गा पूजा के दूसरे दिन महाष्टमी मनाई जाती है। इसे महा दुर्गाष्टमी भी कहते हैं। महाष्टमी के दिन देवी दुर्गा की पूजा का विधान ठीक महासप्तमी की तरह ही होता है। हालांकि इस दिन प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है। महाष्टमी के दिन महास्नान के बाद मां दुर्गा का षोडशोपचार पूजन किया जाता है।

महाष्टमी के दिन मिट्टी के नौ कलश रखे जाते हैं। और देवी दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान कर उनका आह्वान किया जाता है। महाष्टमी के दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है।

कुमारी पूजा -

महाष्टमी के दिन कुमारी पूजा भी होती है। इस अवसर पर अविवाहित लड़की या छोटी बालिका का श्रृंगार कर देवी दुर्गा की तरह उनकी आराधना की जाती है। भारत के कई राज्यों में नवरात्रि के नौ दिनों में कुमारी पूजा होती है। कुमारी पूजा को कन्या पूजा कुमारिका पूजा आदि नामों से जाना जाता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार 2 से 10 वर्ष की आयु की कन्या कुमारी पूजा के लिए उपयुक्त होती हैं। कुमारी पूजा में ये बालिकाएं देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों को दर्शाती है।

1- कुमारिका
2.- त्रिमूर्ति
3-  कल्याणी
4-  रोहिणी
5-  काली
6- चंडिका
7.  शनभावी
8-  दुर्गा
9-  भद्रा या सुभद्रा

संधि पूजा -

महाअष्टमी को दुर्गा पूजा का मुख्य दिन माना जाता है। महाअष्टमी पर संधि पूजा होती है। यह पूजा अष्टमी और नवमी दोनों दिन चलती है। संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि क्षण या काल कहते हैं। संधि काल का समय दुर्गा पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है। क्योंकि यह वह समय होता है। जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है। और नवमी तिथि का आरंभ होता है। मान्यता है। कि, इस समय में देवी दुर्गा ने प्रकट होकर असुर चंड और मुंड का वध किया था।

संधि पूजा के समय देवी दुर्गा को पशु बलि चढ़ाई जाने की परंपरा है। हालांकि अब मां के भक्त पशु बलि चढ़ाने की बजाय प्रतीक के तौर पर केला, कद्दू और ककड़ी जैसे फल व सब्जी की बलि चढ़ाते हैं। हिंदू धर्म में अब बहुत से समुदाय में पशु बलि को सही नहीं माना जाता है। पशु हिंसा रोकने के लिए बलि की परंपरा को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसके अलावा संधि काल के समय 108 दीपक जलाये जाते हैं।

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम:  श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411