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सोमवार मोहिनी एकादशी


सोमवार मोहिनी एकादशी  01-05-2023

वैशाख मास को भी पुराणों में कार्तिक माह की तरह ही पावन बताया जाता है। इसी कारण इस माह में पड़ने वाली एकादशी भी बहुत ही पुण्य फलदायी मानी जाती है। वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत से व्रती मोह माया से ऊपर उठ जाता है। और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइये जानते हैं वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी क्यों कहा जाता है।

वैशाख शुक्ल एकादशी का नाम कैसे पड़ा मोहिनी एकादशी ? 

मान्यता है। कि वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था। भगवान विष्णु ने सुमुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुए अमृत को देवताओं में वितरीत करने के लिये मोहिनी का रूप धारण किया था। कहा जाता है। कि जब समुद्र मंथन हुआ तो अमृत प्राप्ति के बाद देवताओं व असुरों में आपाधापी मच गई थी। चूंकि ताकत के बल पर देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे इसलिये चालाकि से भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोहपाश में बांध लिया और सारे अमृत का पान देवताओं को करवा दिया जिससे देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया। वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन चूंकि यह सारा घटनाक्रम हुआ इस कारण इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा गया।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा 

मोहिनी एकादशी की व्रत कथा इस प्रकार है। कहते हैं किसी समय में भद्रावती नामक एक बहुत ही सुंदर नगर हुआ करता था जहां धृतिमान नामक राजा राज किया करते थे। राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे। उनके राज में प्रजा भी धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर भाग लेती। इसी नगर में धनपाल नाम का एक वैश्य भी रहता था। धनपाल भगवान विष्णु के परम भक्त और एक पुण्यकारी सेठ थे। भगवान विष्णु की कृपा से ही इनकी पांच संतान थी। इनके सबसे छोटे पुत्र का नाम था धृष्टबुद्धि। उसका यह नाम उसके धृष्टकर्मों के कारण ही पड़ा। बाकि चार पुत्र पिता की तरह बहुत ही नेक थे। लेकिन धृष्टबुद्धि ने कोई ऐसा पाप कर्म नहीं छोड़ा जो उसने न किया हो।

तंग आकर पिता ने उसे बेदखल कर दिया। भाईयों ने भी ऐसे पापी भाई से नाता तोड़ लिया। जो धृष्टबुद्धि पिता व भाइयों की मेहनत पर ऐश करता था अब वह दर-दर की ठोकरें खाने लगा। ऐशो आराम तो दूर खाने के लाले पड़ गये। किसी पूर्वजन्म के पुण्यकर्म ही होंगे कि वह भटकते-भटकते कौण्डिल्य ऋषि के आश्रम में पंहुच गया। जाकर महर्षि के चरणों में गिर पड़ा। पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए वह कुछ-कुछ पवित्र भी होने लगा था। महर्षि को अपनी पूरी व्यथा बताई और पश्चाताप का उपाय जानना चाहा। उस समय ऋषि मुनि शरणागत का मार्गदर्शन अवश्य किया करते और पातक को भी मोक्ष प्राप्ति के उपाय बता दिया करते। ऋषि ने कहा कि वैशाख शुक्ल की एकादशी बहुत ही पुण्य फलदायी होती है। इसका उपवास करो तुम्हें मुक्ति मिल जायेगी। धृष्टबुद्धि ने महर्षि की बताई विधिनुसार वैशाख शुक्ल एकादशी यानि मोहिनी एकादशी का उपवास किया। इसके बाद उसे पापकर्मों से छुटकारा मिला और मोक्ष की प्राप्ति हुई।

मोहिनी एकादशी व्रत महत्व व पूजा विधि :-

मोहिनी एकादशी का माहात्म्य बहुत अधिक माना जाता है।

मान्यता है कि माता सीता के विरह से पीड़ित भगवान श्री राम ने, और महाभारत काल में युद्धिष्ठिर ने भी अपने दु:खों से छुटकारा पाने के लिये इस एकादशी का व्रत विधि विधान से किया था।

एकादशी व्रत के लिये व्रती को दशमी तिथि से ही नियमों का पालन करना चाहिये।

दशमी तिथि को एक समय ही सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिये।

ब्रह्मचर्य का पूर्णत: पालन करना चाहिये।

एकादशी से दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिये।

इसके पश्चात लाल वस्त्र से सजाकर कलश स्थापना कर भगवान विष्णु को चंदन, अक्षत, पंचामृत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और फल अर्पित करना चाहिए।

तत्पश्चात विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके भगवान विष्णु की आरती करनी चाहिए।

दिन में व्रती को मोहिनी एकादशी की व्रत कथा का सुननी या पढ़नी चाहिये।

रात्रि के समय श्री हरि का स्मरण करते हुए, भजन कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिये।

द्वादशी के दिन एकादशी व्रत का पारण किया जाना चाहिए।

सर्वप्रथम भगवान की पूजा कर किसी योग्य ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को भोजनादि करवाकर दान दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिये।

इसके पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिये।

एकादशी में वर्जित हैं। ये कार्य

एकादशी के दिन तुलसी की पत्ती नहीं तोड़नी चाहिए बल्कि तुलसी के नीचे दीपक जलाना चाहिए।

इस दिन चावल का सेवन करना वर्जित है, जो लोग सेवन करते हैं वे अगले जन्म में रेंगने वाले जीव बनते हैं।

एकादशी के दिन, दिन में सोना वर्जित माना गया है।

इसके अलावा अपने बुजुर्गो का अनादर करने से बचना चाहिए।

हो सके तो एकादशी के दिन मसूर, उड़द, चने, गोभी, गाजर, शलजम, पालक का साग इत्यादि के सेवन से बचें।

एकादशी व्रत कथा  हर व्रत को मनाये जाने के पीछे कोई न कोई धार्मिक वजह या कथा छुपी होती है। एकादशी व्रत मनाने के पीछे भी कई कहानियां है। एकादशी व्रत कथा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसा कि हम सब जानते हैं। एकादशी प्रत्येक महीने में दो बार आती है। जिन्हें हम अलग-अलग नामों से जानते हैं। सभी एकादशियों के पीछे अपनी अलग कहानी छुपी है। एकादशी व्रत के दिन उससे जुड़ी व्रत कथा सुनना अनिवार्य होता है। शास्त्रों के अनुसार बिना एकादशी व्रत कथा सुने व्यक्ति का उपवास पूरा नहीं होता है।

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम:  श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411