श्रेणियाँ
- शनिवार कजरी तीज
- बुधवार चैत्र नवरात्रि, घटस्थापना
- शनिवार महाशिवरात्रि पर्व
- रविवार प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष
- शनिवार प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष
- शनिवार प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष
- गुरुवार कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत
- बुधवार श्रावण अमावस्या अधिक
- शनिवार संकट चतुर्थी
- सोमवार संकष्टी चतुर्थी
- शनिवार आश्विन पूर्णिमा व्रत
- गुरुवार चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
- सोमवार मासिक शिवरात्रि
- गुरुवार मासिक शिवरात्रि
- सोमवार कार्तिक अमावस्या
- बुधवार बसौड़ा या शीतला अष्टमी
- गुरुवार होलाष्टक तिथि प्रारंभ
- मंगलवार प्रथम मंगला गौरी व्रत
- शुक्रवार शाकंभरी देवी जयंती
- शनिवार चैत्र पूर्णिमा व्रत
- मंगलवार श्रावण मास का पहला दिन
- गुरुवार थिरुवोणम
- सोमवार संकष्टी चतुर्थी
- शुक्रवार वृश्चिक संक्रांति
- बुधवार तुला संक्रांति
- रविवार कर्क संक्रांति
- शुक्रवार मेष संक्रांति
- बुधवार मीन संक्रांति
- सोमवार कुंभ संक्रांति
- रविवार छट पूजा
- रविवार प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष
- रविवार सफला एकादशी
- शनिवार धनु संक्रांति
- गुरुवार संकट चतुर्थी
- मंगलवार मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत
- रविवार प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष
- शनिवार मोक्षदा एकादशी
- मंगलवार मार्गशीर्ष अमावस्या
- शनिवार मासिक शिवरात्रि
- शुक्रवार प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष
- शुक्रवार उत्पन्ना एकादशी
- मंगलवार काल भैरव जयंती
- बुधवार संकट चतुर्थी
- गुरुवार कार्तिक पूर्णिमा व्रत
- शुक्रवार प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष
- गुरुवार देवुत्थान एकादशी
- बुधवार भैयादूज
- मंगलवार गोवर्धन पूजा
- रविवार दीपावली पूजन
- शुक्रवार धनतेरस त्रयोदशी
- गुरुवार प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष
- गुरुवार रमा एकादशी
- रविवार अहोई का त्यौहार
- बुधवार करवा चौथ का त्यौहार
- शुक्रवार भ्रादपद पूर्णिमा व्रत
- बुधवार प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष
- बुधवार पापांकुशा एकादशी
- मंगलवार विजयदशमी पर्व
- सोमवार महा नवमी पूजा, शरद नवरात्रि पारण
- रविवार दुर्गा महा अष्टमी पूजा
- रविवार शरद नवरात्रि, घटस्थापना
- शनिवार अश्विन महालय अमावस्या
- बुधवार मासिक शिवरात्रि
- बुधवार प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष
- मंगलवार इन्दिरा एकादशी
- रविवार कन्या संक्रांति
- रविवार संकट चतुर्थी
- गुरुवार श्रावण पूर्णिमा व्रत
- गुरुवार अनंत चतुर्दशी
- मंगलवार प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष
- सोमवार परिवर्तिनी एकादशी
- शुक्रवार संकष्टी चतुर्थी
- गुरुवार भाद्रपद अमावस्या
- सोमवार मासिक शिवरात्रि
- सोमवार प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष
- रविवार अजा एकादशी
- गुरुवार कृष्ण जन्मोत्सव जन्माष्टमी
- गुरुवार सिंह संक्रांति
- शुक्रवार संकष्टी चतुर्थी
- मंगलवार श्रावण पूर्णिमा व्रत
- गुरुवार रक्षा बंधन
- रविवार प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष
- रविवार श्रावण पुत्रदा एकादशी
- मंगलवार नाग पंचमी
- रविवार हरियाली तीज
- सोमवार श्रावण अमावस्या
- शनिवार मासिक शिवरात्रि
- शुक्रवार प्रदोष व्रत (कृष्ण)
- गुरुवार कामिका एकादशी
- गुरुवार संकष्टी चतुर्थी
- सोमवार आषाढ़ गुरु-पूर्णिमा
- शनिवार प्रदोष व्रत (शुक्ल)
- गुरुवार देवशयनी एकादशी
- मंगलवार जगन्नाथ रथ यात्रा
- रविवार आषाढ़ अमावस्या
- शुक्रवार मासिक शिवरात्रि
- गुरुवार प्रदोष व्रत (कृष्ण)
- बुधवार योगिनी एकादशी
- बुधवार संकष्टी चतुर्थी
- गुरुवार मिथुन संक्रांति
- रविवार ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत
- गुरुवार प्रदोष व्रत ( शुक्ल )
- बुधवार निर्जला एकादशी
- शुक्रवार ज्येष्ठ अमावस्या
- बुधवार मासिक शिवरात्रि
- बुधवार प्रदोष व्रत ( कृष्ण )
- सोमवार अपरा एकादशी
- सोमवार संकष्टी चतुर्थी
- शुक्रवार वैशाख पूर्णिमा व्रत
- सोमवार वृष संक्रांति
- बुधवार प्रदोष व्रत ( शुक्ल )
- सोमवार मोहिनी एकादशी
- शनिवार अक्षय तृतीया
- गुरुवार वैशाख अमावस्या
- मंगलवार मासिक शिवरात्रि
- सोमवार प्रदोष व्रत ( कृष्ण )
- रविवार वरुथिनी एकादशी
- रविवार संकष्टी चतुर्थी
- गुरुवार हनुमान जयंती
- सोमवार भारत में बैसाखी पर्व प्रदोष व्रत
- शनिवार कामदा एकादशी
- गुरुवार राम नवमी
- गुड़ी पड़वा
- मंगलवार चैत्र अमावस्या
- सोमवार मासिक शिवरात्रि
- रविवार प्रदोष व्रत ( कृष्ण )
- शनिवार पापमोचिनी एकादशी
- शनिवार संकष्टी चतुर्थी
- मंगलवार फाल्गुन पूर्णिमा व्रत
- गुरुवार होलिका दहन
- शुक्रवार आमल की एकादशी
- सोमवार फाल्गुन अमावस्या
- शनिवार मासिक शिवरात्रि
- शनिवार प्रदोष व्रत ( कृष्ण )
- गुरुवार विजया एकादशी
- गुरुवार संकष्टी चतुर्थी
- रविवार माघ पूर्णिमा व्रत
- गुरुवार प्रदोष व्रत ( शुक्ल )
- बुधवार जया एकादशी
- बसंत पंचमी सरस्वती पूजा
- शुक्रवार मासिक शिवरात्रि
- बुधवार षटतिला एकादशी
- मंगलवार संकष्टी चतुर्थी
- सोमवार पौष पूर्णिमा व्रत
- बुधवार प्रदोष व्रत (शुक्ल)
- रविवार पोंगल, उत्तरायण, मकर संक्रांति
- गुरुवार लोह़ड़ी पर्व आनंद और खुशियों का प्रतीक है।
- मोनी ओर शनिचरी माघ अमावस्या
सोमवार मोहिनी एकादशी
सोमवार मोहिनी एकादशी 01-05-2023
वैशाख मास को भी पुराणों में कार्तिक माह की तरह ही पावन बताया जाता है। इसी कारण इस माह में पड़ने वाली एकादशी भी बहुत ही पुण्य फलदायी मानी जाती है। वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत से व्रती मोह माया से ऊपर उठ जाता है। और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइये जानते हैं वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी क्यों कहा जाता है।
वैशाख शुक्ल एकादशी का नाम कैसे पड़ा मोहिनी एकादशी ?
मान्यता है। कि वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था। भगवान विष्णु ने सुमुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुए अमृत को देवताओं में वितरीत करने के लिये मोहिनी का रूप धारण किया था। कहा जाता है। कि जब समुद्र मंथन हुआ तो अमृत प्राप्ति के बाद देवताओं व असुरों में आपाधापी मच गई थी। चूंकि ताकत के बल पर देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे इसलिये चालाकि से भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोहपाश में बांध लिया और सारे अमृत का पान देवताओं को करवा दिया जिससे देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया। वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन चूंकि यह सारा घटनाक्रम हुआ इस कारण इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा गया।
मोहिनी एकादशी व्रत कथा
मोहिनी एकादशी की व्रत कथा इस प्रकार है। कहते हैं किसी समय में भद्रावती नामक एक बहुत ही सुंदर नगर हुआ करता था जहां धृतिमान नामक राजा राज किया करते थे। राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे। उनके राज में प्रजा भी धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर भाग लेती। इसी नगर में धनपाल नाम का एक वैश्य भी रहता था। धनपाल भगवान विष्णु के परम भक्त और एक पुण्यकारी सेठ थे। भगवान विष्णु की कृपा से ही इनकी पांच संतान थी। इनके सबसे छोटे पुत्र का नाम था धृष्टबुद्धि। उसका यह नाम उसके धृष्टकर्मों के कारण ही पड़ा। बाकि चार पुत्र पिता की तरह बहुत ही नेक थे। लेकिन धृष्टबुद्धि ने कोई ऐसा पाप कर्म नहीं छोड़ा जो उसने न किया हो।
तंग आकर पिता ने उसे बेदखल कर दिया। भाईयों ने भी ऐसे पापी भाई से नाता तोड़ लिया। जो धृष्टबुद्धि पिता व भाइयों की मेहनत पर ऐश करता था अब वह दर-दर की ठोकरें खाने लगा। ऐशो आराम तो दूर खाने के लाले पड़ गये। किसी पूर्वजन्म के पुण्यकर्म ही होंगे कि वह भटकते-भटकते कौण्डिल्य ऋषि के आश्रम में पंहुच गया। जाकर महर्षि के चरणों में गिर पड़ा। पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए वह कुछ-कुछ पवित्र भी होने लगा था। महर्षि को अपनी पूरी व्यथा बताई और पश्चाताप का उपाय जानना चाहा। उस समय ऋषि मुनि शरणागत का मार्गदर्शन अवश्य किया करते और पातक को भी मोक्ष प्राप्ति के उपाय बता दिया करते। ऋषि ने कहा कि वैशाख शुक्ल की एकादशी बहुत ही पुण्य फलदायी होती है। इसका उपवास करो तुम्हें मुक्ति मिल जायेगी। धृष्टबुद्धि ने महर्षि की बताई विधिनुसार वैशाख शुक्ल एकादशी यानि मोहिनी एकादशी का उपवास किया। इसके बाद उसे पापकर्मों से छुटकारा मिला और मोक्ष की प्राप्ति हुई।
मोहिनी एकादशी व्रत महत्व व पूजा विधि :-
मोहिनी एकादशी का माहात्म्य बहुत अधिक माना जाता है।
मान्यता है कि माता सीता के विरह से पीड़ित भगवान श्री राम ने, और महाभारत काल में युद्धिष्ठिर ने भी अपने दु:खों से छुटकारा पाने के लिये इस एकादशी का व्रत विधि विधान से किया था।
एकादशी व्रत के लिये व्रती को दशमी तिथि से ही नियमों का पालन करना चाहिये।
दशमी तिथि को एक समय ही सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिये।
ब्रह्मचर्य का पूर्णत: पालन करना चाहिये।
एकादशी से दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिये।
इसके पश्चात लाल वस्त्र से सजाकर कलश स्थापना कर भगवान विष्णु को चंदन, अक्षत, पंचामृत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और फल अर्पित करना चाहिए।
तत्पश्चात विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके भगवान विष्णु की आरती करनी चाहिए।
दिन में व्रती को मोहिनी एकादशी की व्रत कथा का सुननी या पढ़नी चाहिये।
रात्रि के समय श्री हरि का स्मरण करते हुए, भजन कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिये।
द्वादशी के दिन एकादशी व्रत का पारण किया जाना चाहिए।
सर्वप्रथम भगवान की पूजा कर किसी योग्य ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को भोजनादि करवाकर दान दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिये।
इसके पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिये।
एकादशी में वर्जित हैं। ये कार्य
एकादशी के दिन तुलसी की पत्ती नहीं तोड़नी चाहिए बल्कि तुलसी के नीचे दीपक जलाना चाहिए।
इस दिन चावल का सेवन करना वर्जित है, जो लोग सेवन करते हैं वे अगले जन्म में रेंगने वाले जीव बनते हैं।
एकादशी के दिन, दिन में सोना वर्जित माना गया है।
इसके अलावा अपने बुजुर्गो का अनादर करने से बचना चाहिए।
हो सके तो एकादशी के दिन मसूर, उड़द, चने, गोभी, गाजर, शलजम, पालक का साग इत्यादि के सेवन से बचें।
एकादशी व्रत कथा हर व्रत को मनाये जाने के पीछे कोई न कोई धार्मिक वजह या कथा छुपी होती है। एकादशी व्रत मनाने के पीछे भी कई कहानियां है। एकादशी व्रत कथा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसा कि हम सब जानते हैं। एकादशी प्रत्येक महीने में दो बार आती है। जिन्हें हम अलग-अलग नामों से जानते हैं। सभी एकादशियों के पीछे अपनी अलग कहानी छुपी है। एकादशी व्रत के दिन उससे जुड़ी व्रत कथा सुनना अनिवार्य होता है। शास्त्रों के अनुसार बिना एकादशी व्रत कथा सुने व्यक्ति का उपवास पूरा नहीं होता है।
जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411