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शनिवार मोक्षदा एकादशी


शनिवार मोक्षदा एकादशी  23-12-2023

एकादशी उपवास का हिंदुओं में बहुत अधिक महत्व माना जाता है। सभी एकादशियां पुण्यदायी मानी जाती है। मनुष्य जन्म में जाने-अंजाने कुछ पापकर्म हो जाते  हैं। यदि आप इन पापकर्मों का प्रायश्चित करना चाहते हैं। तो एकादशी उपवास आपको जरुर करना चाहिया।

मोक्षदा। मार्गशीर्ष मास की शुक्ल एकादशी का नाम मोक्षदा है। मोक्षदा एकादशी व्रत की खासियत यह है। कि यही वो दिन है। जब भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर मानव जीवन को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश दिया था। यानि मोक्षदा एकादशी के दिन ही गीता जयंती का पर्व  भी मनाया जाता है। आइये जानते हैं। मोक्षदा एकादशी व्रत के महत्व व इसकी पौराणिक कथा को।

मोक्षदा एकादशी पौराणिक कथा

मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है। एक समय की बात है। गोकुल नगर पर वैखानस नाम के राजा राज किया करते थे। ये बहुत ही धार्मिक प्रकृति के राजा थे। प्रजा भी सुखचैन से अपने दिन बिता रही थी। राज्य में किसी भी तरह का कोई संकट नहीं था। एक दिन क्या हुआ कि राजा वैखानस अपने शयनकक्ष में आराम फरमा रहे थे। तभी क्या हुआ कि उन्होंने एक विचित्र स्वपन देखा जिसमें वे देख रहे हैं। कि उनके पिता ( जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे ) नरक में बहुत कष्टों को झेल रहे हैं। अपने पिता को इन कष्टों में देखकर राजा बेचैन हो गये और उनकी निंद्रा भंग हो गई। अपने स्वपन के बारे में रात भर राजा विचार करते रहे लेकिन कुछ समझ नहीं आया। तब उन्होंनें प्रात:काल ही ब्राह्मणों को बुलवा भेजा। ब्राह्मणों के आने पर राजा ने उन्हें अपने स्वपन से अवगत करवाया। ब्राह्मणों को राजा के स्वपन से यह तो आभास हुआ कि उनके पिता को मृत्युपर्यन्त कष्ट झेलने पड़ रहे हैं। लेकिन इनसे वे कैसे मुक्त हो सकते हैं। इस बारे में कोई उपाय सुझाने में अपनी असमर्थता जताई। उन्होंनें राजा वैसानख को सुझाव दिया। आपकी इस शंका का समाधन पर्वत नामक मुनि कर सकते हैं। वे बहुत पंहुचे हुए मुनि हैं। अत: आप अतिशीघ्र उनके पास जाकर इसका उद्धार पूछें।

अब राजा वैसानख ने वैसा ही किया और अपनी शंका को लेकर पर्वत मुनि के आश्रम में पंहुच गये। मुनि ने राजा के स्वपन की बात सुनी तो वे भी एक बार तो अनिष्ट के डर से चिंतित हुए। फिर उन्होंने अपनी योग दृष्टि से राजा के पिता को देखा। वे सचमुच नरक में पीड़ाओं को झेल रहे थे। उन्हें इसका कारण भी भान हो गया। तब उन्होंनें राजा से कहा कि हे राजन आपके पिता को अपने पूर्वजन्म पापकर्मों की सजा काटनी पड़ रही है। उन्होंने सौतेली स्त्री के वश में होकर दूसरी स्त्री को सम्मान नहीं दिया  उन्होंनें रतिदान का निषेध किया था। तब राजा ने उनसे पूछा हे मुनिवर मेरे पिता को इससे छुटकारा कैसे मिल सकता है। तब पर्वत मुनि ने उनसे कहा कि राजन यदि आप मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का विधिनुसार व्रत करें और उसके पुण्य को अपने पिता को दान कर दें तो उन्हें मोक्ष मिल सकता है। राजा ने ऐसा ही किया। विधिपूर्वक मार्गशीर्ष एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य को अपने पिता को दान करते ही आकाश से मंगल गान होने लगा। राजा ने प्रत्यक्ष देखा कि उसके पिता बैकुंठ में जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हे पुत्र मैं कुछ समय स्वर्ग का सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त हो जाऊंगा। यह सब तुम्हारे उपवास से संभव हुआ, तुमने नारकीय जीवन से मुझे छुटाकर सच्चे अर्थों में पुत्र होने का धर्म निभाया है। तुम्हारा कल्याण हो पुत्र।

राजा द्वारा एकादशी का व्रत रखने से उसके पिता के पापों का क्षय हुआ और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई इसी कारण इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा गया। चूंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश भी दिया था इसलिये यह एकादशी और भी अधिक शुभ फलदायी हो जाती है।

मोक्षदा एकादशी का महत्व

पौराणिक ग्रंथों में मोक्षदा एकादशी को बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप नैवेद्य आदि से भगवान दामोदर का पूजन करने, उपवास रखने व रात्रि में जागरण कर श्री हरि का कीर्तन करने से महापाप का भी नाश हो जाता है। यह एकादशी मुक्तिदायिनी तो है ही साथ ही इसे समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली भी माना जाता है। कि मोक्षदा एकादशी व्रतकथा पढ़ने-सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।

एकादशी व्रत कथा  हर व्रत को मनाये जाने के पीछे कोई न कोई धार्मिक वजह या कथा छुपी होती है। एकादशी व्रत मनाने के पीछे भी कई कहानियां है। एकादशी व्रत कथा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसा कि हम सब जानते हैं। एकादशी प्रत्येक महीने में दो बार आती है। जिन्हें हम अलग-अलग नामों से जानते हैं। सभी एकादशियों के पीछे अपनी अलग कहानी छुपी है। एकादशी व्रत के दिन उससे जुड़ी व्रत कथा सुनना अनिवार्य होता है। शास्त्रों के अनुसार बिना एकादशी व्रत कथा सुने व्यक्ति का उपवास पूरा नहीं होता है।

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम:  श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411