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कैसे प्राप्त होती है। भूतप्रेतों की योनि

कैसे प्राप्त होती है। भूतप्रेतों की योनि

 रहस्य की गुत्थियां

भूत प्रेत कैसे बनते हैं। इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। सृष्टि के चक्र से हटकर आत्मा भटकाव की स्थिति में आ जाती है। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम भूत के रूप में या फिर प्रेत के रूप में करते हैं। यही आत्मा जब सृष्टि के चक्र में फिर से प्रवेश करती है तो उसके भूत होने का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन काल में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती है, इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वे सैवे जल में डूबकर बिजली द्वारा अग्नि में जलकर लड़ाई झगड़े में प्राकृतिक आपदा से मृत्यु व दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और भूत प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है।

भूत प्रेत कौन हैं:- अस्वाभाविक व अकस्मात होने वाली मृत्यु से मरने वाले प्राणियों की आत्मा भअकती रहती है, जब तक  कि वह सृष्टि के चक्र में प्रवेश न कर जाए, तब तक ये भटकती आत्माएं ही भूत व प्रेत होते हैं। इनका सृष्टि चक्र में प्रवेश तभी संभव होता है जब वे मनुष्य रूप में अपनी स्वाभाविक आयु को प्राप्त करती है।

 क्या करें, क्या न करें:-

1. किसी निर्जन एकांत या जंगल आदि में मलमूत्र त्याग करने से पूर्व उस स्थान को भलीभांति देख लेना चाहिए कि वहां कोई ऐसा वृक्ष तो नहीं है जिस पर प्रेत आदि निवास करते हैं अथवा उस स्थान पर कोई मजार या कब्रिस्तान तो नहीं है।

2. किसी नदी तालाब कुआं या जलीय स्थान में थूकना या मल-मूत्र त्याग करना किसी अपराध से कम नहीं है क्योंकि जल ही जीवन है। जल को प्रदूषित करने स जल के देवता वरुण रूष्ट हो सकते हैं।

3. घर के आसपास पीपल का वृक्ष नहीं होना चाहिए क्योंकि पीपल पर प्रेतों का वास होता है।

4. सूर्य की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए।

5. गूलर मौलसरी, शीशम, मेहंदी आदि के वृक्षों पर भी प्रेतों का वास होता है। रात के अंधेरे में इन वृक्षों के नीचे नहीं जाना चाहिए और न ही खुशबुदार पौधों के पास जाना चाहिए।

6. सेब एकमात्र ऐसा फल है जिस पर प्रेतक्रिया आसानी से की जा सकती है। इसलिए किसी अनजाने का दिया सेब नहीं खाना चाहिए।

7. कहीं भी झरना, तालाब, नदी अथवा तीर्थों में पूर्णतया निर्वस्त्र होकर या नग्न होकर नहीं नहाना चाहिए।

8. अगर प्रेतबाधा की आशंका हो तो.घर में प्राणप्रतिष्ठा की बजरंगबलि हनुमान की सुसज्जित प्रतिमा और हनुमान चालीसा रखनी चाहिए।

9. प्रतिदिन प्रातःकाल घर में गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए।

10. प्रत्येक पूर्णमासी को घर में सत्यनारायण की कथा करवाएं।

11. सूर्यदेव को प्रतिदिन जल का अघ्र्य देना प्रेतवाधा से मुक्ति देता है।

12. घर में ऊंट की सूखी लीद की धूनी देकर भी प्रेत बाधा दूर हो जाती है।

13. घर में गुग्गल धूप की धूनी देने से प्रेतबाधा नहीं होती है।

14. नीम के सूखे पत्तों का धुआं संध्या के समय घर में देना उत्तम होता है।

 क्या करें कि भूत प्रेतों का असर न हो पाए:-

1. अपनी आत्मशुद्धि व घर की शुद्धि हेतु प्रतिदिन घर में गायत्री मंत्र से हवन करें।

2. अपने इष्ट देवी देवता के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें।

3. हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का प्रतिदिन पाठ करें।

4. जिस घर में प्रतिदिन सुन्दरकांड का पाठ होता है वहां ऊपरी हवाओं का असर नहीं होता।

5. घर में पूजा करते समय कुशा का आसन प्रयोग में लाएं।

6. मां महाकाली की उपासना करें।

7. सूर्य को तांबे के लोटे से जल का अघ्र्य दें।

8. संध्या के समय घर में धूनी अवश्य दें।

9. रात्रिकालीन पूजा से पूर्व गुरू से अनुमति अवश्य लें।

10. रात्रिकाल में 12 से 4 बजे के मध्य ठहरे पानी को न छुएं।

11. यथासंभव अनजान व्यक्ति के द्वारा दी गई चीज ग्रहण न करें।

12. प्रातःकाल स्नान व पूजा के प्श्चात ही कुछ ग्रहण करें।

13. ऐसी कोई भी साधना न करें जिसकी पूर्ण जानकारी न हो या गुरु की अनुमति न हो।

14. कभी किसी प्रकार के अंधविश्वास अथवा वहम में नहीं पड़ना चाहिए। इससे बचने का एक ही तरीका है कि आप बुद्धि से तार्किक बनें व किसी चमत्कार अथवा घटना आदि या क्रिया आदि को विज्ञान की कसौटी पर कसें, उसके पश्चात ही किसी निर्णय पर पहुंचे।

15. किसी आध्यात्मिक गुरु, साधु, संत, फकीर, पंडित आदि का अपमान न करें।

16. अग्नि व जल का अपमान न करें। अग्नि को लांघें नहीं व जल को दूषित न करें।

17. हाथ से छूटा हुआ या जमीन पर गिरा हुआ भोजन या खाने की कोई भी वस्तु स्वयं ग्रहण न करें।

 भूत-प्रेत आदि से ग्रसित व्यक्ति की पहचान कैसे करें?

1. ऐसे व्यक्ति के शरीर या कपड़ों से गंध आती है।

2. ऐसा व्यक्ति स्वभाव में चिड़चिड़ा हो जाता है।

3. ऐसे व्यक्ति की आंखें लाल रहती हैं व चेहरा भी लाल दिखाई देता है।

4. ऐसे व्यक्ति सिरदर्द व पेट दर्द की शिकायत अक्सर करता ही रहता है।

5. ऐसा व्यक्ति झुककर या पैर घसीट कर चलता है।

6. कंधों में भारीपन महसूस करता है।

7. कभी कभी पैरों में दर्द की शिकायत भी करता है।

8. बुरे स्वप्न उसका पीछा नहीं छोड़ते।

9. जिस घर या परिवार में भूत प्रेतों का साया होता है वहां शांति का वातावरण नहीं होता। घर में कोई न कोई सदस्य सदैव किसी न किसी रोग से ग्रस्त रहता है। अकेले रहने पर घर में डार लगता है बार-बार ऐसा लगता है कि घर के ही किसी सदस्य ने आवाज देकर पुकारा है जबकि वह सदस्य घर पर होता ही नहीं? इसे छलावा कहते हैं।

भूत-प्रेत से ग्रसित व्यक्ति का उपचार कैसे करें:-

1. भूत-प्रेतों की अनेकानेक योनियां हैं। इतना ही नहीं इनकी अपनी अपनी शक्तियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं। इसलिए सभी ग्रसित व्यक्तियों का उपचार एक ही क्रिया द्वारा संभव नहीं है। योग्य व विद्वान व्यक्ति ही इनकी योनी व शक्ति की पहचान कर इनका उपचार बतलाते हैं। अनेक बार ऐसा भी होता है कि ये उतारा या उपचार करने वाले पर ही हावी हो जाते हैं इसलिए इस कार्य के लिए अनुभव व गुरु का मार्ग दर्शन अत्यंत अनिवार्य होता है। कुछ सामान्य उपचार भी ग्रसित व्यक्ति को ठीक कर देते हैं, या भूत-प्रेतों को उनके शरीर से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर देते हैं। ये उपचार उतारा या उसारा के रूप में किया जाता है। इन्हें आजमाएं।

2. ग्रसित व्यक्ति के गले में लहसुन की कलियों की माला डाल दें। (लहसुन की गंध अधिकांशतः भूत-प्रेत सहन नहीं कर पाते इसलिए ग्रसित व्यक्ति को छोड़कर भाग जाते हैं)।

3. रात्रिकाल में ग्रसित व्यक्ति के सिरहाने लहसुन और हींग को पीसकर गोली बनाकर रखें।

4. ग्रसित व्यक्ति की शारीरिक स्वच्छता बनाए रखने का प्रयास करें।

5. ग्रसित व्यक्ति के वस्त्र अलग से धोएं व सुखाएं।

6. ग्रसित व्यक्ति के ऊपर से बूंदी का लड्डू उतारकर चैराहे या पीपल के नीचे रखें (रविवार छोड़कर)। तीन दिन लगातार करें।

7. ग्रसित व्यक्ति के सिरहाने सादा खोए वाली बर्फी (लगभग सवा किलो) रखें (रात्रिकाल में) अगले दिन प्रातः घर से दूर जाकर निर्जन स्थान पर रख दें। गाय को भी खिला सकते हैं।

8. इमरती या मोतीचूर के लड्डू से भी उतारा किया जा सकता है। ये उतारा करके घर के कुत्ते को खिलाना चाहिए।

9. पंचमेल मिठाई से उतारा करके किसी चैराहे पर या पीपल के नीचे रख दें। पीछे मुड़कर न देखें और घर आकर कुल्ला अवश्य कर लें।

10. किसी योग्य व्यक्ति से अथवा गुरू से रक्षा कवच या यंत्र आदि बनवाकर ग्रसित व्यक्ति को धारण कराना चाहिए।

11. ग्रसित व्यक्ति को अधिक से अधिक गंगाजल पिलाना चाहिए व उस स्थान विशेष पर भी प्रतिदिन गंगाजल छिड़कना चाहिए।

12. नवार्ण मंत्र (ऊं ऐं हीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) की एक माला जल करके जल को अभिमंत्रित कर लें व पीड़ित व्यक्ति को पिलाएं।

 प्रेतभूत और पिशाच आदि के निवास स्थल और अरिष्टयोग। भूत-प्रेतों का निवास नीचे दिए गए कुछ वृक्षों एवं स्थानों पर माना गया है। इन वृक्षों के नीचे एवं स्थानों पर किसी प्रकार की तेज खुशबू का प्रयोग एवं गंदगी नहीं करनी चाहिए, नहीं तो भूत-प्रेत का असर हो जाने की संभावना रहती है।

 पीपल वृक्ष:- शास्त्रों में इस वृक्ष पर देवताओं एवं भूत प्रेत दोनों का निवास माना गया है। इसी कारण हर प्रकार के कष्ट एवं दुख को दूर करने हेतु इसकी पूजा अर्चना करने का विधान है।

मौलसिरी:- इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेतों का निवास माना गया है।

 कीकर वृक्ष:- इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेत रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने इस वृक्ष में रोज पानी डालकर इस वृक्ष पर रहने वाले प्रेत को प्रसन्न कर उसकी मदद से

 हनुमान जी के दर्शन प्राप्त कर प्रभु श्रीराम से मिलने का सूत्र पाया था। यह भूत प्राणियों को लाभ पहुंचाने वाली श्रेणी का था।

शमशान या कब्रिस्तान:- इन स्थानों पर भी भूत-प्रेत निवास करते है।

भूत-प्रेत से सावधानी:- जल में भूत-प्रेतों का निवास होता है, इसलिए किसी भी स्त्री पुरुष को नदी तालाब में चाहे वह कितने ही निर्जन स्थान में क्यों न हों निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए क्योंकि भूतप्रेत गंदगी से रुष्ट होकर मनुष्यों को नुकसान पहुंचाते हैं। कुएं में भी किसी प्रकार की गंदगी नहीं डालनी चाहिए क्योंकि कुंए में भी विशेष प्रकार के जिन्न रहते हैं जो कि रुष्ट होने पर व्यक्ति को बहुत कष्ट देते हैं।

 शमशान या कब्रिस्तान में भी कभी कुछ नहीं खाना चाहिए और न ही वहां पर कोई मिठाई या सफेद व्यंजन या शक्कर या बूरा लेकर जाना चाहिए क्योंकि इनसे भी भूत प्रेत बहुत जल्दी आकर्षित होते हैं। ऐसे स्थानों में रात में कोई तीव्र खुशबू लेकर भी नहीं जाना चाहिए तथा मलमूल त्याग भी नहीं करना चाहिए। किसी भी अनजान व्यक्ति से या विशेष रूप से दी गई इलायची, सेब, केला, लौंग आदि नहीं खानी चाहिए क्योंकि यह भूतप्रेत से प्रभावित करने के विशेष साधन माने गए हैं।

 भूत-प्रेत से बचाव:- यदि अनुभव हो कि भूत प्रेत का असर है तो घर में नियमित रूप से सुन्दरकाण्ड या हनुमान चालीसा का पाठ करें तथा सूर्य देव को जल चढ़ाएं। 

1. यदि किसी मनुष्य पर भूतप्रेत का असर अनुभव हो, तो उसकी चारपाई के नीचे नीम की सूखी पत्ती जलाएं।

2. मंगल या शनिवार को एक समूचा नींबू लेकर भूत प्रेत ग्रसित व्यक्ति के सिर से पैर तक 7 बार उतारकर घर से बाहर आकर उसके चार टुकड़े कर चारों दिशाओं में फेंक दें। यह ध्यान रहे कि जिस चाकू से नींबू काटा है उसे भी फेंक देना चाहिए।

कतिपय योग:- कुंडली में बनने वाले कुछ प्रेत अरिष्ट योग इस प्रकार हैं:-

 1. सूर्य अथवा चन्द्र यदि तृतीय भाव में पापी ग्रहों के साथ हैं तो बच्चा बीमार रहेगा अथवा कुछ समय पश्चात उसकी मृत्यु हो जाती है।

2. यदि चंद्र अष्टम भाव के स्वामी के साथ केंद्रस्थ है तथा अष्टम भाव में भी पापी ग्रह हैं तो शीघ्र मृत्यु होती है।

3. यदि चंद्र से सप्तम भाव में मंगल एवं शनि हैं तथा राहु लग्नस्थ है तो जन्म के कुछ दिनों के अन्दर ही मृत्यु हो जाती है।

 इस प्रकार कुंडली में अनने वाले कुछ भूत-प्रेत बाधा योग यह हैं:-

1. यदि कुंडली में चंद्रमा अथवा लग्न लग्नेश पर राहु केतु का प्रभाव है तो उस जातक पर ऊपरी हवा जादू टोने इत्यादि का असर अति शीघ्र होता है।

2. कुंडली में सप्तम भाव में अथवा अष्टम भाव में क्रूर ग्रह राहु केतु मंगल शनि पीड़ित अवस्था में हैं तो ऐसा जातक भूत प्रेत जादू टोने तथा ऊपरी हवा आदि जैसी परेशानियां से अति शीघ्र प्रभावित होता है।

 बालारिष्ट एवं भूत-प्रेत बाधाओं का पारस्परिक संबंध:-

जन्म कुंडली में लग्न भाव, आयु भाव अथवा मारक भाव पर यदि पाप प्रभाव होता है तो जातक का स्वास्थ्य प्राय निर्बल रहता है अथवा उसे दीर्घायु की प्राप्ति नहीं होती है। साथ ही चन्द्रम, लग्नेश तथा अष्टमेश का अस्त होना, पीड़ित होना अथवा निर्बल होना भी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि जातक अस्वस्थ रहेगा या उसकी कुंडली में अल्पायु योग है। ठीक इसी प्रकार चंद्रमा लग्न, लग्नेश अष्टमेश पर पाप प्रभाव इन ग्रहों की पाप ग्रहों के साथ युति अथवा कुंडली में कहीं कहीं पर चंद्र की राहु-केतु के साथ युति यह दर्शाती है कि जातक पर भूत-प्रेत का प्रकोप हो सकता है। मुख्यतः चंद्र केतु की युति यदि लग्न में हो तथा मंचमेश और नवमेश भी राहु के साथ सप्तम भाव में है तो यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि जातक ऊपरी हवा इत्यादि से ग्रस्त होगा। फलतः उसके शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, स्वास्थ्य तथा आयु पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ेगा।

 उपर्युक्त ग्रह योगों से प्रभावित कुंडली वाले जातक प्रायः मानसिक अवसाद से ग्रस्त रहते हैं। उन्हें नींद भी ठीक से नहीं आती है। एक अनजाना भय प्रति क्षण सताता रहता है तथा कभी कभी तो वे आत्महत्या करने की स्थिति तक पहुंच जाते हैं।

 जो ग्रह भाव तथा भावेश बालारिष्ट का कारण होते हैं, लगभग उन्हीं ग्रहों पर पाप प्रभाव भावेशों का पीड़ित, अस्त अथवा निर्बल होना इस बात का भी स्पष्ट संकेत करता है कि जातक की कुंडली में भूत-प्रेत बाधा योग भी है। अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि बालाश्रिष्ट तथा भूत प्रेत बाधा का पारस्परिक संबंध अवश्य होता है।

 ऊपरी हवा और प्रेत बाधा के लक्षण प्रत्येक रोग के समान ही प्रेत बाधा भी अकारण नहीं होती। वस्तुतः ये आंतरिक और बाहय कारण जीवन में अनेक रूपों में व्यक्त होते हैं और समुचित जयोतिषीय योगों द्वारा  व्यक्ति के प्रेत बाधा से ग्रस्त होने के बारे में जाना जा सकता है। आइए जानें, ऐसे ज्योतिषीय योगों के बारे में।

प्रेतबाधा के सूचक ज्योतिषीय योग इस प्रकार हैं:-

1. नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो।

2. पंचम भाव में सूर्य तथा शनि हो, निर्बल चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तथा बृहस्पति बारहवें भाव में हो।

3. जन्म समय चन्द्रग्रहण हो और लग्न, पंचम तथा नवम भाव में पाप ग्रह हों तो जन्मकाल से ही पिशाच बाधा का भय होता है।

4. षष्ठ भाव में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट राहु तथा केतु की स्थिति भी पैशाचिक बाधा उत्पन्न करती है।

5. लग्न में शनि, राहु की युति हो अथवा दोनों में से कोई भी एक ग्रह स्थिति हो अथवा लग्नस्थ राहु पर शनि की दृष्टि हो।

6. लग्नस्थ केतु पर कई पाप ग्रहों की दृष्टि हो।

7. निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ अष्टम में हो तो पिशाच, भूत-प्रेत मशान आदि का भय।

8. निर्बल चन्द्रमा षष्ठ अथवा बाहरहवें में मंगल, राहु या केतु के साथ हो तो भी पिशाच भय।

9. चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) के लग्न पर यदि षष्ठेश की दृष्टि हो।

10. एकादश भाव में मंगल हो तथा नवम भाव में स्थिर राशि (वृष, सिंह,वृश्चिक, कुंभ) और सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि(मिथुन, कन्या, धनु मीन) हो।

11. लग्न भाव मंगल से दृष्ट हो तथा षष्ठेश, दशम, सप्तम या लग्न भाव में स्थिति हों।

12. मंगल यदि लग्नेश के साथ केंद्र या लग्न भाव में स्थिति हो तथा छठे भाव का स्वामी लग्नस्त हो।

13. पापग्रहों से युक्त या दृष्ट केतु लग्नगत हो।

14. शनि राहु केतु या मंगल में से कोई भी एक ग्रह सप्तम स्थान में हो।

15. जब लग्न में चन्द्रमा के साथ राहु हो और त्रिकोण भावों में क्रूर ग्रह हों।

16. अष्टम भाव में शनि के साथ निर्बल चन्द्रमा स्थित हो।

17. राहु शनि से युक्त होकर लग्न में स्थित हो।

18. लग्नेश एवं राहु अपनी नीच राशि का होकर अष्टम भाव या अष्टमेश से संबंध करे।

19. राहु नीच राशि का होकर अष्टम भाव में हो तथा लग्नेश शनि के साथ द्वादश भाव में स्थित हो।

20. द्वितीय में राहु द्वादश मं शनि षष्ठ मं चंद्र तथा लग्नेश भी अशुभ भावों में हो।

21. चन्द्रमा तथा राहु दोनों ही नीच राशि के होकर अष्टम भाव में हो।

22. चतुर्थ भाव में उच्च का राहु हो वक्री मंगल द्वादश भाव में हो तथा अमावस्या तिथि का जन्म हो।

23. नीचस्थ सूर्य के साथ केतु हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तथा लग्नेश भी नची राशि का हो।

24. जिन जातकों की कुण्डली में उपरोक्त योग हों, उन्हें विशेष सावधानीपूर्वक रहना चाहिए तथा संयमित जीवन शैली का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। जिन बाहय परिस्थितियों के कारण प्रेत बाधा का प्रकोप होता है उनसे विशेष रूप से बचें। जातक को प्रेतबाधा से मुक्त रखने में अधोलिखित उपाय भी सहायक सिद्ध हो सकते हैं:-

25. शारीरिक सुचिता के साथ-साथ मानसिक पवित्रता का भी ध्यान रखें।

26. नित्य हनुमान चालीसा तथा बजरंग बाण का पाठ करें।

27. मंगलवार का व्रत रखें तथा सुन्दरकांड का पाठ करें।

28. पुखराज रत्न से प्रेतात्माएं दूर भागती हैं, अतः पुखराज रत्न धारण करें।

29. घर में नित्य शंख बजाएं।

30. नित्य गायत्री मंत्र की एक माला का जाप करें।

 कुंडली से पितृ दोष का मूल रहस्य:-

ज्योतिष में पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप वर्तमान समय में कुंडली में वर्णित ग्रह दिशा प्रदान करते हैं। तभी तो हमारे धर्मशास्त्र सकारात्मक कर्मों को महत्व देते हैं। यदि हमारे कर्म अच्छे होते हैं तो अगले जन्म में ग्रह सकारात्मक परिणाम देते हैं। इसी क्रम में पितृदोष का भी निर्माण होता है। यदि हम इस जन्म में पिता की हत्या पिता का अपमान बड़े बुजुर्गों का अपमान आदि करते हैं तो अगले जन्म में निश्चित तौर पर हमारी कुंडली में पितृदोष आ जाता है। कहा जाता है कि पितृदोष वाले जातक से पूर्वज दुखी रहते हैं।

कैसे जानें कि कुंडली में पितृ या प्रेतदोष?

कुंडली में पितृदोष का सृजन दो ग्रहों सूर्य व मंगल के पीड़ित होने से होता है क्योंकि सूर्य का संबंध पिता से व मंगल का संबंध रक्त से होता है। सूर्य के लिए पाप ग्रह शनि राहु व केतु माने गए हैं। अतः जब सूर्य का इन ग्रहों के साथ दृष्टि या युति संबंध हो तो सूर्यकृत पितृदोष का निर्माण होता है। इसी प्रकार मंगल यदि राहु या केतु के साथ हो या इनसे दृष्ट हो तो मंगलकृत पितृ दोष का निर्माण होता है। सामान्यतः यह देखा जाता है कि सूर्यकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुंटुंब में अपने से बड़े व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। वहीं मंगलकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुम्ब में अपने छोटे व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। सूर्य व मंगल की राहु से युति अत्यन्त विषम स्थिति पैदा कर देती है क्योंकि राहु एक पृथकताकारी ग्रह है तथा सूर्य व मंगल को उनके कारकों से पृथक कर देता है।

 सूर्यकृत पितृदोष निवारण

1. शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन घर में विध विधान से सूर्ययंत्र स्थापित करें। सूर्य को नित्य तांबे के पात्र में जल लेकर अघ्र्य दें। जल में कोई लाल पुष्प चावल व रोली अवश्य मिश्रित कर लें। जब घर से बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन जरूर करें।

2. निम्न मंत्र का एक माला नित्य जप करें। ध्यान रहे आपका मुख पूर्व दिशा में हो। ऊं आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय, धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।।

3. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारंभ कर कम से कम 12 व अधिक से अधिक 30 रविवार व्रत रखें। सूर्यास्त के पूर्व गेहूं गुड घी आदि से बनी कोई सामग्री खा कर व्रतपूर्ण करें। व्रत के दिन सूर्य स्तोत्र का पाठ भी करें।

4. लग्नानुसार सोने या तांबे में 5 रत्ती के ऊपर का माणिक्य रविवार के दिन विधि विधान से धारण कर लें।

5. पांच मुख रूद्राक्ष धारण करें। तथा नित्य द्वादश ज्योतिर्लिंगो के नामों का स्मरण करें।

6. पिता का अपमान न करें। बड़े बुजुर्गों को सम्मान दें।

7. रविवार के दिन गाय को गेहूं व गुउ़ खिलाएं। स्वयं घर से बाहर जाते समय गुड़ खाकर निकला करें।

8. दूध में शहद मिलाकर पिया करें।

9. सदैव लाल रंग का रूमाल अपने पास अवश्य रखें।

 मंगलकृत पितृदोष निवारण:

1. शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार के दिन घर में मंगल यंत्र पूर्ण विधि विधान से स्थापित करें । जब घर के बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन अवश्य करके जाएं।

2. नित्य प्रातःकाल उगते हुए सूर्य को अघ्र्य दें।

3. निम्य एक माला जप निम्न मंत्र का करें। ऊं अंगारकाय विद्महे, शक्तिहस्ताय, धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्।।

4. शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार से आरंभ करके 11 मंगलवार व्रत करें। हनुमान जी व शिवजी की उपासना करें। जमीन पर सोएं।

5. मंगलवार के दिन 5 रत्ती से अधिक वनज का मूंगा सोने या तांबे में विधि विधान से धारण करें।

6. तीनमुखी रूद्राख धारण करें तथा नित्य प्रातःकाल द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें।

7. बहनों का भूलकर भी अपमान न करें।

8. लालमुख वाले बंदरों को गुड़ व चना खिलाएं।

9. जब भी अवसर मिले रक्तदान अवश्य करें।

10. 100 ग्राम मसूर की दाल जल में प्रवाहित कर दें।

11. सुअर को मसूर की दाल व मछलियों को आटे की गोलियां खिलाया करें।

 विशेष:- हो सकता है कि कुंडली में सूर्य व मंगलकृत दोनों ही पितृदोष हो। यह स्थिति अत्यंत घातक हो सकती है। यदि ऐसी स्थिति है तो जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सूर्य मंगल राहु की युति विशेष रूप से कष्टकारी हो सकती है। अतः अनिष्टकारी प्रभावों से बचने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए।

1. शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को सांय काल पानी वाला नारियल अपने ऊपर से 7 बार उतार कर तीव्र प्रवाह वाले जल में प्रवाहित कर दें तथा पितरों से आशीर्वाद का निवेदन करें।

2. अष्टमुखी रूद्राक्ष धारण करें। घर में 21 मोर के पंख अवश्य रखें तथा शिवलिंग पर जलमिश्रित दूध अर्पित करें। प्रयोग अनुभूत है अवश्य लाभ मिलेगा।

3. जब राहु की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो कंबल का प्रयोग कतई न करें।

4. सफाईकर्मी को दान दक्षिणा दे दिया करें।

उपरोक्त प्रयोग पूर्ण श्रद्धा लगन व विश्वास के साथ करने पर पितृदोष के दुष्प्रभावों का शमन होता है।

 भूतप्रेत निवारण के लिए हनुमानजी की भक्ति श्रीराम भक्त हनुमान को केसरीनन्दन पवनसुत अंजनीपुत्र आदि नामों से पुकारा जाता है। हनुमान जी आठ तरह की सिद्धियों और नौ तरह की निधियों के दाता हैं। हनुमान जी के प्रत्येक पाठ इतने चमत्कारी हैं कि उनके मात्र एक बार स्मरण से ही व्यक्ति मुसीबत से पार हो जाता है। चाहे वह चालीसा हो सुन्दरकांड हो कवच हो या स्तोत्र हो इनमें से किसी का भी पाठ कर लेने से बाधाओं में धंसा हुआ व्यक्ति जैसे तुरंत ही भवसागर तर जाता है।

 प्रत्येक मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान मंदिर पर भक्तों का आकर्षण इस बात का परिचायक है कि प्रभु श्री राम के साथ हनुमान भी सभी के हृदय में विराजे हैं।

 किसी भी प्रकार की बाधा हो चाहे व्यक्ति आर्थिक संकट से ग्रस्त हो या भूतपिशाच जैसे ऊपरी बाधाओं से परेशान तथा मारण सम्मोहन उच्चाटन आदि से ग्रस्त व्यक्ति को हनुमान आराधना से बहुत ही अच्छा लाभ मिलता है। यदि कोर्ट कचहरी लड़ाई मुकदमों से ग्रस्त व्यक्ति भी हनुमान जी की शरण में आएं तो उसे लाभ अवश्य मिलता है।

हनुमान साधना के नियम

शास्त्रों में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन व्रत करने से और इसी दिन हनुमान पाठ जप अनुष्ठान आदि प्रारंभ करने से त्वरित फल प्राप्त होता है।

 1. हनुमान-साधना में लाल चीजों का प्रयोग अधिक हो।

2. जप पाठ अनुष्ठान आदि प्रारंभ करने से पूर्व किसी भी हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान जी से आज्ञा मांग लेनी चाहिए।

3. जातक को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके लाल आसन का प्रयोग करते हुए हनुमान साधना प्रारंभ कर लेनी चाहिए व जप मूंगे की माला से भी कर सकते हैं।

4. साधना के दौरान ब्रहमचर्य का पालन आहार विहार पर नियंत्रण रखना चाहिए।

 कुछ अन्य टिप्स

1. बच्चों को महीने या दो महीने में हनुमान मंदिर ले जाकर झाड़ा लगवाना चाहिए जिससे बच्चों पर नजर दोष भूत प्रेत का दबाव न रहे।

2. हनुमान जी के चरणों के सिंदूर को चांदी के ताबीज में बंधवाकर गले में धारण करने से भी भूत प्रेत व टोने टोटके आदि का भय समाप्त होता है।

3. प्रतिदिन अपडाउन करने वाले पैसेन्जर को हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए ताकि दुर्घटना से उनकी रक्षा हो सके।

4. साक्षात्कार देने से पूर्व विद्यार्थियों को बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए जिससे इन्टरव्यू में सफलता प्राप्त होती है।

5. फैक्ट्री या व्यवसाय स्थान आदि पर भूत प्रेतों का साया न पड़े इसके लिए इन्हें अपने अपने प्रतिष्ठानों के ऊपर हनुमान ध्वज (झंडा) लगा देना चाहिए। यह ध्वज लाल कलर का हो।

6. बुरी आत्माओं का प्रवेश हमारे घर में ना हो, इसके लिए द्वार पर सिंदूर से राम-राम  लिखकर 7 बिंदु लगा दें जिससे हमारा घर सुरक्षित रहे।

मानस हवन

मानस हवन में हम चाहें तो सुन्दरकाण्ड के सभी दोाहों से हवन कर सकते हैं। इस हवन में कोई भी गलती रहने पर अंत में चालीसा का पाठ कर लेना चाहिए। इस हवन के प्रभाव से ऊपरी बाधाओं का शमन होता है।

1. घर में हनुमान यंत्र की स्थापना करने से भी हमारा घर सुरक्षित रहता है।

2. मकान के आस पास श्मशान हो या कोई खंडहर भवन हो तो ऐसे में हमारे मकान के ऊपर हमें हनुमत ध्वज की स्थापना कर देनी चाहिए और ध्वज पर हनुमत यंत्र सिंदूर से बना लें या बना बनाया खरीद कर लगा दें ।

क्या है जीवन और मृत्यु का शाश्वत रहस्य?

जीवन जितना सत्य है उतनी ही मृत्यु भी और उतना ही सत्य है मृत्युके बाद का जीवन। भारतीय चिन्तन धरा के मूल स्रोतों जेसे वेद उपनिषद् महाभारत आदि में इस विषय पर बड़ी ही विस्तृत चर्चा की गई है। मनुष्य मृत्युपरान्त आंक्षाओं के पीछे भागता रहता है और मृत्यु के बाद इन्हीं अधूरी इच्छाओं के कारण वह प्रेतयोनि को प्राप्त होता है।

 मानव की मृत्यु के बाद सूक्ष्म शरीर का इस पार्थिव शरीर से अलगाव हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि सूक्ष्त शरीर निराश्रय नहीं रह सकता-

‘न तिष्ठति निराश्रयं लिंड्गम’ अतः अगला स्थूल शरीर प्राप्त करने तक वह सूक्ष्म शरीर अपनी वासनाओं के अनुसार प्रेत शरीर को ग्रहण कर लेता है । इन्हीं प्रेत शरीरों द्वारा यदा कदा मनुष्य को आवेशित कर लेने के कारण विकट परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है और यही घटना प्रेतबाधा के नाम से जानी जाती है। ऐसा नहीं है कि केवल प्रेतात्माओं के द्वारा ही मनुष्यों को कष्ट पहुंचाया जाता है। कभी कभी विभिन्न देव योनियां जैसे देव यक्ष किन्नर गंधर्व नागादि भी कुपित होकर कष्टकारक हो जाते हैं। व्यक्ति के शरीर के तापमान में अत्यधिक वृद्धि उन्माद की अवस्था शरीर के वनज में अधिक वृद्धि या कमी आदि अनेक ऐसे संकेत हैं जिनसे ऊपरी बाधा का प्रकोप प्रकट हो जाता है।

 क्यों?:- एक बात तो स्पष्ट ही है कि दुर्बल रोगी कात आत्मबल से हीन तथा कमजोर इच्छाशक्ति वाले लोगों पर यह ऊपरी बाधा प्रभाव अधिक होता हुआ देखा गया है। कभी कभी दुष्ट तान्त्रों द्वारा भी धन के लालच में आकर निकृष्ट प्रेतात्माओं द्वारा मनुष्य को प्रेतबाधा से पीड़ित करने का दुष्कर्म किया जाता है। तीर्थ स्थलों तथा सिद्ध पीठों पर अपवित्र आचरण के कारण भी वहां उपस्थिति दिव्यात्माएं क्रोधित होकर कभी कभी कष्ट पहुंचाने लगती हैं।

 कब?:- प्रेतात्माओं का आवेश विशेष रूप से दोपहर सांयकाल तथा मध्यरात्रि के समय होता है। निर्जन स्थान श्मशान लम्बे समय से खाली पड़े घर आदि भी प्रेतों के वासस्थान माने गए हैं इसलिए यहां आने से बचें। स्त्रियों को बाल खुले रखने से बचना चाहिए विशेष रूप से सांयकाल में। छोटे बच्चों के अकेले रहने पर भी प्रेतों का आवेश हो जाता है।

 ऊपरी बाधा निवारण:- जहां तक ऊपरी बाधा के निवारण का प्रश्न है हनुमान जी की उपासना इस समस्या से मुक्ति के लिए अत्यन्त श्रेष्ठ मानी गई है । प्रसद्धि ही है – ‘भूत  पिशाच निकट नहीं आवै। महावीर जब नाम सुनावै।’

 भूत प्रेत पिशाच आदि निकृष्ट अशरीरी आत्माओं से मुक्ति के उपायों पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं इनसे संबंधति मंत्रों का एक बड़ा भाग हनुमान जी को ही समर्पित है। ऊपरी बाधा दूर करने वाले शाबर मन्त्रों से लेकर वैदिक मंत्रों में हनुमान जी का नाम बार बार आता है। वैसे तो हनुमान जी के कई रूपों का वर्णन तंत्रशास्त्र में मिलता है जैसे एक मुखी हनुमान पंचमुख हनुमान सप्तमुखी हनुमान तथा एकादशमुखी हनुमान। परन्तु ऊपरी बाधा निवारण की दृष्टि से पंचमुखी हनुमान की उपासना चमत्कारिक और शीघ्रफलदायक मानी गई है। पंचमुखी हनुमान जी के स्वरूप में वानर सिंह गरूड वराह तथा अश्व मुख सम्मिलित हैं और इनसे ये पांचों मुख तंत्रशास्त्र की समस्त क्रियाओं यथा मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण आदि के साथ साथ सभी प्रकार की ऊपरी बाधा होने की शंका होने पर पंचमुखी हनुमान यन्त्र तथा पंचमुखी हनुमान लॉकेट को प्राणप्रतिष्ठित कर धारण करने से समस्या से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है।

 प्राणप्रतिष्ठा:- पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र यंत्र तथा लॉकेट का पंचोपचार पूजन करें तथा इसके बाद समुचित विधि द्वारा उपरोक्त सामग्री को प्राणप्रतिष्ठित कर लें।

 प्राणप्रतिष्ठित यंत्र को पूजन स्थान पर रखें तथा लॉकेट को धारण करें। उपरोक्त अनुष्ठान को किसी भी मंगलवार के दिन किया जा सकता है। उपरोक्त विधि अपने चमत्कारपूर्ण

 प्रभाव तथा अचूकता के लिए तंत्रशास्त्र में दीर्घकाल से प्रतिष्ठित है। श्रद्धापूर्वक किया गया उपरोक्त अनुष्ठान हर प्रकार की ऊपरी बाधा से मुक्ति प्रदान करता है।

भूत प्रेत बाधा निवारण उपाय

इसके लक्षण और उपायों के बारे में चरक संहिता में विस्तार से वर्णन किया गया है, तो ज्योतिष के दूसरे ग्रंथों में इसका कारण ज्योतिषीय योग और ग्र्रहों की बिगड़ी चाल व दशा-दिशा बताई गई है। इसी के साथ अथर्ववेद में भूतों या दुष्ट प्रेतात्माओं के भगाने के कई उपाए दिए गए हैं। उन्हीं में से कुछ इस प्रकार महत्वपूर्ण उपाय इस प्रकार हैं-

नजर उतारनाः भूत-प्रेत की बाधा को दूर करने के लिए शनिवार के दिन नजर उतारने का एक टोटका बहुत ही सरल उपाय है, जिसके करने से समुचित लाभ तुरंत मिलता है। उसके लिए दोपहर में सवा किलो बाजरे का दलिया पका लें। उसमें थोड़ा गुड़ मिला दें। उसे एक मिट्टी की हांडी में रखकर उससे सूर्यास्त के बाद प्रेत से प्रभावित व्यक्ति के पूरे शरीर पर घड़ी की विपरीत दिशा में अर्थात बाएं से दाएं सात बार घुमाते हुए नजर उतारें। लोगों की नजर बचाकर हांडी को किसी सुनसान चैराहे पर रख दें और वापस घर लाटते  समय न तो पीछे मुड़कर देखें और न ही किसी के रास्ते में कोई बात करें।

अभिमंत्रित लाॅकेटः जिस किसी व्यक्ति पर प्रेत की साया हो उसके गले में ओम या रुद्राक्ष का अभिमंत्रित लाॅकेट पहनाएं। इसी के साथ उसके सिर पर चंदन, केसर या भभूत का तिलक लगाएं और हाथ में घर के पूजास्थल या हनुमान मंदिर से लेकर मौली बांध दें। शनिवार और मंगलवार को हनुमान चालिसा का पाठ अवश्य करें।

अभिमंत्रित अंजनः मायावी शक्ति को दूर करने का एक और सरल उपाय अभिमंत्रित अंजन यानि काजल का उपयोग है। ग्रहण काल या होली, दीपावली की रात्री में ‘‘मंत्र ओम नमः श्मशानवासिने भूतादिनां पलायन कुरु कुरु स्वाहा।’’ का 11 माला का जापकर सिद्ध कर लें। उसके बाद इसी मंत्र को 108 बार जाप के साथ लहसुन और हींग को अभिमंत्रित कर लें। उसे पीसकर बनाए गए अर्क का प्रेत-ग्रस्त व्यक्ति की नाक और आंख में सावधानी से लगाएं। इसका प्रभाव तुरंत और अचूक होता है। दुष्ट से दुष्ट प्रेतात्मा शरीर को छोड़कर तुरंत चला जाता है।

सिद्ध ताबीजः अभिमंत्रित ताबीज से भी प्रेत-बाधा को खत्म किया जा सकता है। बहेड़े का साबुत पत्ता या उसकी जड़ लाएं। धूप, दीप और नवैद्य के साथ उसकी विधिवत पूजा करें। उसके बाद 108 बार निम्नलिखित मंत्र का जाप करें। इस तरह का अनुष्ठान कुल 21 दिनों तक सूर्यादय से पहले करें। जाप किया जाने वाला मंत्र हैः– ओम नमः सर्वभूतधिपत्ये ग्रसग्रस शोषय भैरवी चाजायति स्वाहा।।

जाप की पूर्णाहुति के बाद अभिमंत्रित हो चुके पत्ते या जड़ से प्रेतबाधा दूर करने की एक ताबीज बनाएं। उसे गले में पहनाने से जादूटोना और प्रतबाधा का असर नहीं होता है। यह उपाय विशेषकर बच्चों के लिए किया जाता है।

घर की प्रेत-बाधाः कई बार पूरा घर ही प्रेतात्मा की चपेट में आ जाता है और इससे घर के कई सदस्य अज्ञात परेशानियों से घिर जाते हैं। उसे दूर करने के लिए जलते हुए गोबर के उपले के साथ गुग्गल की धूनी जलाने से प्रेत-बाधा खत्म हो जाती है। परिवार के सभी सदस्य इसके भभूत का तिलक लगाएं। घर को प्रेत-बाधा से मुक्त करने के लिए ओम के प्रतीक का त्रिशूल दरवाजे पर लगाना भी एक अचूक उपाय है।

हनुमत मंत्रः प्रेतात्माओं से छुटकारा पाने या उनसे बचाव के लिए हिंदू शास्त्र में बहुत ही कारगर साबित होने वाला हनुमत मंत्र बताया गया है, जिसका प्रतिदिन कम से कम पांच और अधिक से अधिक 11 या 21 बार जाप करने का अचूक लाभ मिलता है। वह मंत्र हैः-

ओम ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रंू ह्रैं ओम नमो भगवते महाबल पराक्रमाय

भूत-प्रेत पिशाच-शाकिनी-डाकिनी-यक्षिणी-पूतना मारी-महामारी,

यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम् क्षणेन

हन हन भंजय भंजय मारय मारय

शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर रुद्रावतारहुं फट् स्वाहा।

इसी के साथ हनुमान चालिसा और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करना चाहिए। मंगलवार या शनिवार के दिन डर और भय को खत्म करने वाला बजरंग वाण पाठ करे

देह-रक्षा मंत्रः ओम नमः वज्र का कोठा, जिसमें पिंड हमारा बैठा।

ईश्वर कुंजी ब्रह्मा का ताला, मेरे आठों धाम का यती हुनुमंत रखवाला।

इसे प्रयोग में लाने से पहले होली, दीपावली या ग्रहण काल में सि़द्ध किया जाता है। उसके बाद प्रेत से ग्रसित व्यक्ति के शरीर पर मंत्र पढ़कर फूंक मारने से उसे प्रेतात्मा से मुक्ति मिल जाती है। इसकी सिद्धि के लिए श्मशान में भौरव की विधि-विधान से पूजा किसी तांत्रिक की देखरेख में की जाती है। पूजा, भोग और बलि जैसे अनुष्ठान के बाद मंत्र का सवा लाख जाप किया जाता है।

प्रेतबाधा निवारण उपाय/मंत्र : भूत-प्रेत बाधा से बचने का एक बहुत ही सरल उपाय की साधना है, जिसे रविपुष्य योग या शनिवार को किया जाता है। इस शुभ घड़ी में उल्लू की दाईं ओर के डैने के कुछ पंख की जरूरत होती है। सूर्योदय से पहले किए जाने वाले अनुष्ठान की शुरूआत से पहले स्नान आदि के बाद पंख को गंगाजल में धोकर पवित्र बना लिया जाता है। पूजन एवं मंत्र जाप के लिए कंबल के आसन पर इस प्रकार से बैठा जाता है ताकि मुंह पूरब की दिशा में हो। दिए गए मंत्र का जाप कर पंख पर फूंक मारा जाता है। इस प्रक्रिया को 2100 बार जाप के साथ किया जाता है। अनुष्ठान की पूर्णहुति के बाद पंख को जलाकर राख को सुरक्षित रख लिया जाता है। उसके बाद आवश्यकता के अनुसार प्रेत बधा से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर 108 बार उसी मंत्र को पढ़कर झाड़ दिया जाता है। इससे भी बात बनती नहीं दिखे तो राख की ताबीज बनाकर वाहं में बांध देने से दुष्ट प्रेतात्मा से मुक्ति सुनिश्चित है। ध्यान रहे ताबीज पुरुष की दाहिनी और स्त्री की बाईं वाहं पर बांधा जाए।

मंत्रः ओम नमः रुद्राय, नमः कालिकाये नमः चंचलायै नमः कामाक्ष्यै नमः पक्षिराजाय, नमः लक्ष्मीवाहनाय, भूत-प्रेतादीनां निवारणं कुरु करु ठं ठं ठं स्वाहा।

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम:  श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा ,संपर्क सूत्र- 9760924411