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ग्रह दोष स्वयं पहचाने और उपाय करें।

1-ग्रह दोष स्वयं पहचाने और उपाय करें।

सूर्य विकार-

 यह दो प्रकार से होता है। एक में यह बाधित हो जाता है, दूसरे में प्रखर।

पहले में आँखों में पानी, सोते समय मुंह से लार गिरना, निवास में सूर्य की रोशनी बाधित होना, नमक खाने की इच्छा तेज हो जाना आदि लक्षण प्रकट होते है। इसमें मन सुस्त रहता है।

उपाय – तुलसी में जल दें और पांच पत्ते प्रतिदिन सुबह पांच काली मिर्च के साथ चबा कर पानी पियें। घर में, शरीर पर , ऑफिस में ताम्बा धारण करें। ताम्बे के पात्र में रखा जल पीयें। मदार की माला या बाजूबंद पहने।

दूसरे में क्रोध अधिक आता है। , ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।, अति तीव्रता , घर में धुप की प्रखरता, नेत्रों में गर्मी, शरीर में गर्मी, कलह, झगड़े, विवाद होते हैं। अधिक नमक पसंद नहीं होता। बन्दर का उपद्रव होता है।

उपाय – शिव का मंत्र जपें। शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। तीन पत्तों वाले तीन बेल पत्र का सेवन करें। चाँदी पहने, घर में चाँदी स्थापित करें। सिरहाने में पानी रखें। दक्षिण का दरवाजा और उत्तर सिर करके सोना अशुभ है। गर्म पदार्थ मसाले आदि का सेवन न करें। कोल्ड ड्रिंक और फास्टफूड न लें। स्फटिक का माला पहने। चाँदी के मनकों एवं मोती की माला भी प्रशस्त है।

चन्द्रमा विकार-

यह भी दो प्रकार से विकृत होता है।

पहले में जल स्रोत सूखते है।, पम्प खराब होता है, सुस्ती रहती है।, बहुत नींद आती है। शरीर या हाथ-पैर ठंडे रहते है। चाँदी गुम होता है। माता बीमार पड़ती है। दूध पिने की इच्छा होती है। मानसिक तनाव, चिंता, शोक होता है। आमदनी घटती है।

उपाय – चन्द्र के दूसरे हिस्से का उपाय करें।

दूसरे में छत टपकता है।, बाढ़ आती है।, घर में पानी के नलके की टोंटी टूटती है, । पानी नियंत्रित नहीं होता, बिमारी आदि पर निरर्थक व्यय होता है। रक्त विकार और फेफड़े का विकार होता है। दूध बिखरता है। माता शोक में पड़ती है।

उपाय – दूर्गा जी के मन्त्र का जप करें। कन्या भोजन करायें। छत-नलका आदि ठीक काराएं। पानी-दूध की क्षति को रोकें। मन्दिर में सफ़ेद कपडे, दूध या चाँदी दान करें। आज्ञा चक्र पर ध्यान केन्द्रित करें। सोना पहने। प्राणायाम करें। हल्दी की माला पहने और आज्ञा चक्र पर तिलक लगायें।

मंगल विकार-

यह भी दो प्रकार से बाधित होता है।

पहले में आलस्य,  क्षुब्धता, तनाव,  खींज से भरा क्रोध , दांत किटकीटाना,  गुस्से में सामान तोड़ देना, अपशब्द बकना,  मार-पीत,  कलह,   ईर्ष्या,  आत्मा को जला देने वाले ईर्ष्या  से भरेवचन, विवाद में पराजय, पुलिस या अपराधियों का भय होता है।

उपाय – हनुमान जी की पूजा करें, मन्त्र जपें, प्राणायाम करें। लाल कपडे, मूंगा, ताम्बा प्रयुक्त करें। लाल रक्त कणों को बढ़ाने वाले भोजन अक्रें। घर में एक ताम्बे के पात्र में सिन्दूर और कुमकुम भर कर रखें। सूर्या नमस्कार करें। प्रातः कालीन सूर्या का ध्यान लगाना शुभ होगा। मूंगे की माला पहने। मीठा खाएं (गुड/शहद)।

दूसरे में आक्रामक क्रोध, मारपीट कर लेना , गन्दी गालियाँ बकना, क्रूरता की हद तक किसी पर बल प्रयोग कर देना, हाई ब्लड प्रेशर, सिर-नेत्र – शरीर में गर्मी, अत्यधिक कामभाव और जीवन साथी को शारीरिक-मानसिक यंत्रणा देना होता है।

उपाय – सूर्य में दिए दूसरे हिस्से का उपाय करें।

बुध विकार – यह भी दो प्रकार से बाधित होता है।

पहले में गला फँसना , आवाज़ खराब होना,  शरीर में बिमारी,  शिक्षा में व्यवधान,  लड़की की तरफ से (बहन-बुआ भी) परेशानी,  प्रेम सम्बन्ध में बाधा,  किताब के पन्ने फटना, आवाज वाले एल्क्ट्रोनिक इंस्ट्रूमेंट का खराब होना, आदि लक्षण प्रकट होते है।

उपाय – दूर्गा जी के मंत्र का जप करें। कन्या भोजन करायें। लड़कियों को मीठा खिलायें। पन्ना पहने। हरा कपड़ा और हरे मनकों की माला पहने। अपामार्ग के भस्म का सेवन करें ।

दूसरे में बहुत बोलना,  मीन-मेख निकालना,  कटु बोलना,  जल्दी बाजी में निर्णय लेना, दूसरों को अपनी बातों से मोड़कर अपना काम निकालने की प्रवृत्ति, अपनी बुद्धि का अतिरिक्त दावा, पीता से कलह;  नास्तिकता, साधू-पंडित-देवी-देवता- परम्परा का मजाक उडाना,  बुद्धिवाद का अहंकार आदि प्रगट होते हैं।

उपाय – उपाय बृहस्पति का है। ‘ॐ मन्त्र’, गणेश या रूद्र देवता, आज्ञाचक्र ध्यान केंद्र और बुजुर्गों का सम्मान-सलाह लेना- आशीर्वाद लेना, पीपल में जल चढ़ाना आदि। मंदिर  में जाना , 15 मिनट रहना। सोना पहनना शुभ है। गंडे-ताबीज-खाली बर्त्तन-बहुत तेज आवाज वाले यंत्र, ढोल -करताल -हरमुनियम बजाना , मंदिर में घंटी बजाना, घर में घंटी लटकाना बहुत अशुभ है। माला हल्दी एवं रुद्राक्ष की पहने।

बृहस्पति विकार –

पहले में श्वांस की बिमारी, श्वांस कष्ट,  उत्साह में कमी,  आत्मबल में कमी , पिता से सम्बन्ध टूटना,  गैस्टिक, वाट का दर्द,  शरीर की त्वचा का ड्राई होना,  सिर दर्द, निर्णय में अनिश्चितता , रात की नींद बाधित, चिंता-शोक आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

उपाय – बुध दूसरे का उपाय करें।

दूसरे में अत्यधिक अहंकार , जिद, अपने सामने किसी की न सुनना, परम्पराओं के प्रति कट्टरता, लड़कियों के प्रति निष्ठुरता, पुत्र के प्रति क्रोध और उपेक्षा,  स्त्रियों से बैर, जिद में काम खराब होना आदि लक्षण प्रकट होते है।

उपाय – मंदिर में बेसन के लड्डू एवं काला जूता-सफेद धोती कुर्ता- पुजारी को दान दें। शनि की उन्गाकियों में लोहे का छल्ला पहने या कलाई में फौलादी कड़ा। रुद्राक्ष माला प्रशस्त है। ‘ॐ’ का जप करें।

शुक्रवार  विकार-

पहले प्रकार में शरीर क्षीण होता है, धातुविकार, कामुकता, पेट का बढ़ना, शरीर में दर्द, पत्नी को दुःख, संचित धन की हानि, खेतीवाली जमीं का बिकना, नामर्दी, सेक्स की कमजोरी आदि उत्पन्न होते है। भूख न लगना, कब्ज, पाचन शक्ति की कमजोरी, गर्भाशय विकार, लिकोरिया, धातुपतन भी इसके लक्षण है।

उपाय – शुक्रवर्द्धक आयुर्वेदिक दवाएं प्रयुक्त करें। बरगद में पानी देकर उसकी जड़ की मिट्टी का तिलक लगायें, हीरा या पन्ना पहने;  घर में कुछ फर्श कच्ची रखें या गमले में मिट्टी रखकर हल्दी का पौधा जमायें ।

दूसरे प्रकार में अत्यधिक भोजन की इच्छा;  शरीर मोटा होबा ; धन का आना, मगर व्यय न होना; खेत में खेती न हो पाना,  अत्यधिक कामुकता,  अय्याशी,  पर स्त्री सम्बन्ध, पत्नी का स्थूल होना आदि है।

उपाय – प्राणायाम, व्यायाम, योगासन –करें। मुटापा नाशक दवाओं का प्रयोग करें। गरीबों को वस्त्र दान दें। छात्राओं को पुस्तक दान दें। साली को घर में न लाये।(रहने के लिए) पर स्त्री की जिम्मेदारी न उठाएं। अनाज का दान करें।

शनि विकार –

 पहले प्रकार में लाल रक्त कणों की कमी, शरीर का पिला पड़ना, पीलिया, कामला, उत्साह हीनता,   मानसिक दुर्बलता उत्पन्न होती है। मुकदमों में हार, खेत में अनाज का बर्बाद होना। हड्डी में दर्द, नसों में दर्द, नखों की कमजोरी, बालों का झड़ना आदि। व्यवसाय में हानि, पौरुष एवं रति शक्ति की दुर्बलता होती है। जूते टूटना, वाहन खराब होना, लोह के समान में जंग लगना।

उपाय – लोहे का कड़ा, लोहे की अंगूठी, लौह तत्वों से युक्त दवाएं, लाल कपड़ा आदि प्रयुक्त करें। भैरव जी का मंत्र जाप करें और उनके मंदिर में तेल जलायें।

दूसरे प्रकार में अत्यधिक कठोरता की उत्पत्ति,  हड्डियों का बढ़ना , कड़ा होना। बालों का कड़ा होना। ढेर सारे मुकदमें लगना,  शरीर में तैलीय एवं लौह तत्वों का बढ़ना, कठोरता का स्वभाव होना, आवाज कर्कश होना, सिर में चोट, नसों में तनाव,  पथरी, मूत्र रोग आदि होता है।

उपाय – दूध-पानी का प्रयोग अधिक करें। लोहा-तेल दान करें। काला-नीला रंग से बचें।नीलम या लोहे की अंगूठी न पहने। ताम्बा पहनें। सूर्या नमस्कार करें। प्राणायाम करें। घर में धूप आये ऐसी व्यवस्था करें। हनुमान जी के मन्त्रों का जप करें।

राहु विकार—

 इसमें पहले प्रकार में अवसाद, निराशा, चिंता, क्षोभ, भय की उत्पत्ति होती है। रात की नींद चली जाती है। , बहुत नुक्सान होता है। आमदनी बाधित होती है। घर में झगडा-कलह होता है। , इससे आत्महत्या करने का आवेग उत्पन्न होता है। जेलखाना,  पागलखाना,  बिजली का शॉक,  पुलिस द्वारा यातना,  हवालात,  इसके गुण है। गर्भपात भी होता है। भूत-प्रेत प्राकोप होता है।

उपाय – चन्द्रमा को मजबूत कीजिये। सिर पर बेल पत्रों को पीसकर लेप लगायें। घिक्वार का गूदा 50 ग्राम प्रतिदिन चीनी के साथ खाएं। नील, जालीदार, काली और वर्दीनुमा कपड़ो से बचे। बिजली का काम न करें। सिर पर पिली या सगेद टोपी पहने। माता का आशीर्वाद लें।

दूसरे प्रकार में झगड़े करना, आक्रामक हो जाना, काम में उन्मत्त हो जाना, तरह-तरह के ख्याली पुलाव पकाना, अति उत्साहित हो जाना, छत टपकना, बाढ़ आना, घर में पानी की बर्बादी, अत्यधिक खर्चे, रक्त विकार, मानसिक रोग, होते है।

उपाय – लोगों को पानी – दूध मुफ्त पिलायें। सिर में तेल लागायें। जालीदार, नील, वर्दीवाले कपड़ों से बचे। नीलम न पहने। चन्द्रमा की वस्तुओं का दान करें। नदी-नाले में जौ बहायें।

केतु विकार-

पैर में चोट, पैरों की गड़बड़ी, वाहन खराब होना,  किसी मशीन का बंद हो जाना या खराब हो जाना , पालतू कुत्ते का मरना, सन्तान पर कष्ट,  आमदनी रुकना , काम में व्यवधान , कमर दर्द,  रीढ़ में दर्द।

उपाय – मन्दिर में जाएँ। मंदिर में काला-सफ़ेद सूती या उनी कपड़ा दान करें। सोना पहने। क्फ्राब इलेक्ट्रॉनिक सामान बेच दें या पानी में बहायें।

दूसरे प्रकार में अत्यधिक चंचलता, लालच,  भूख,  कामावेग होता है। नाचने, दौड़ने का मन करता है। वाहन आउट ऑफ़ आर्डर हो जाते है। ब्रेक फेल कर सकता है।  काम तेज़ी से चलता – बंद हो जाता है।

उपाय – तेल लगायें। लोहे का कड़ा पहने। मन्दिर में जाएँ। कुत्तों को रोटी दें। कौवों को दाना खिलायें। गाय पालें और गौमूत्र सेवन करें।

2-जन्मकुंडली के अशुभ योग और उसके उपाय

जन्म कुंडली में 2 या उससे ज्यादा ग्रहों की युति, दृष्टि, भाव आदि के मेल से योग का निर्माण होता है। ग्रहों के योगों को ज्योतिष फलादेश का आधार माना गया है। अशुभ योग के कारण व्यक्ति को जिंदगीभर दु:ख झेलना पड़ता है। आओ जानते हैं कि कौन-कौन से अशुभ योग होते हैं और क्या है उनका निवारण?

1. चांडाल योग- कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु या केतु का होना या दृष्टि आदि होना चांडाल योग बनाता है।

इस योग का बुरा असर शिक्षा, धन और चरित्र पर होता है। जातक बड़े-बुजुर्गों का निरादर करता है और उसे पेट एवं श्वास के रोग हो सकते हैं।

इस योग के निवारण हेतु उत्तम चरित्र रखकर पीली वस्तुओं का दान करें। माथे पर केसर, हल्दी या चंदन का तिलक लगाएं।

संभव हो तो एक समय ही भोजन करें और भोजन में बेसन का उपयोग करें। अन्यथश प्रति गुरुवार को कठिन व्रत रखें।

 2. अल्पायु योग- जब जातक की कुंडली में चन्द्र ग्रह पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है।

अल्पायु योग में जातक के जीवन पर हमेशा हमेशा संकट मंडराता रहता है, ऐसे में खानपान और व्यवहार में सावधानी रखनी चाहिए।

अल्पायु योग के निदान के लिए प्रतिदिन हनुमान चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र पढ़ना चाहिए और जातक को हर तरह के बुरे कार्यों से दूर रहना चाहिए।

3. ग्रहण योग- ग्रहण योग मुख्यत: 2 प्रकार के होते हैं- सूर्य और चन्द्र ग्रहण। यदि चन्द्रमा पाप ग्रह राहु या केतु के साथ बैठे हों तो चन्द्रग्रहण और सूर्य के साथ राहु हो तो सुर्यग्रहण होता है।

चन्द्रग्रहण से मानसिक पीड़ा और माता को हानि पहुंचती है। सूर्यग्रहण से व्यक्ति कभी भी जीवन में स्टेबल नहीं हो पाता है, हड्डियां कमजोर हो जाती है।, पिता से सुख भी नहीं मिलता।

ऐसी स्थिति में 6 नारियल अपने सिर पर से वार कर जल में प्रवाहित करें। आदित्यहृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करें। सूर्य को जल चढ़ाएं। एकादशी और रविवार का व्रत रखें। दाढ़ी और चोटी न रखें।

4. वैधव्य योग-वैधव्य योग बनने की कई स्थितियां हैं। वैधव्य योग का अर्थ है विधवा हो जाना। सप्तम भाव का स्वामी मंगल होने व शनि की तृतीय, सप्तम या दशम दृष्टि पड़ने से भी वैधव्य योग बनता है। सप्तमेश का संबंध शनि, मंगल से बनता हो व सप्तमेश निर्बल हो तो वैधव्य का योग बनता है।

जातिका को विवाह के 5 साल तक मंगला गौरी का पूजन करना चाहिए, विवाह पूर्व कुंभ विवाह करना चाहिए और यदि विवाह होने के बाद इस योग का पता चलता है। तो दोनों को मंगल और शनि के उपाय करना चाहिए।

5. दारिद्रय योग- यदि किसी जन्म कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दारिद्रय योग बन जाता है।

दारिद्रय योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवनभर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है।

6. षड्यंत्र योग- यदि लग्नेश 8वें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है।

जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग होता है। वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है। इससे उसे धन-संपत्ति व मान-सम्मान आदि का नुकसान उठाना पड़ सकता है।

इस दोष को शांत करने के लिए प्रत्येक सोमवार भगवान शिव और शिव परिवार की पूजा करनी चाहिए। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करते रहना चाहिए।

7. कुज योग- यदि किसी कुंडली में मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं।

जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो, उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधू की कुंडली मिलाना आवश्यक है। यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए।

विवाह होने के बाद इस योग का पता चला है तो पीपल और वटवृक्ष में नियमित जल अर्पित करें। मंगल के जाप या पूजा करवाएं। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें।

8. केमद्रुम योग- यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा के अगले और पिछले दोनों ही घरों में कोई ग्रह न हो तो या कुंडली में जब चन्द्रमा द्वितीय या द्वादश भाव में हो और चन्द्र के आगे और पीछे के भावों में कोई अपयश ग्रह न हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है।

इस योग के चलते जातक जीवनभर धन की कमी, रोग, संकट, वैवाहिक जीवन में भीषण कठिनाई आदि समस्याओं से जूझता रहता है।

इस योग के निदान हेतु प्रति शुक्रवार को लाल गुलाब के पुष्प से गणेश और महालक्ष्मी का पूजन करें। मिश्री का भोग लगाएं। चन्द्र से संबंधित वस्तुओं का दान करें।

9. अंगारक योग- यदि किसी कुंडली में मंगल का राहु या केतु में से किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो अंगारक योग का निर्माण हो जाता है।

इस योग के कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है। तथा ऐसा जातक अपने भाई, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ कभी भी अच्छे संबंध नहीं रखता। उसका कोई कार्य शांतिपूर्वक नहीं निपटता।

इसके निदान हेतु प्रतिदिन हनुमानजी की उपासना करें। मंगलवार के दिन लाल गाय को गुड़ और प्रतिदिन पक्षियों को गेहूं या दाना आदि डालें। अंगारक दोष निवारण यंत्री भी स्थापित कर सकते हैं।

 10-.विष योग -शनि और चंद्र की युति या शनि की चंद्र पर दृष्टि से विष योग बनता है। कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चंद्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र में हो अथवा चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों अपने-अपने स्थान से एक दूसरे को देख रहे हों तो तब भी विष योग बनता है। यदि 8वें स्थान पर राहु मौजूद हो और शनि मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक लग्न में हो तो भी यह योग बनता है।

इस योग से जातक को जिंदगीभर कई प्रकार की विष के समान कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पूर्ण विष योग माता को भी पीड़ित करता है।

इस योग के निदान हेतु संकटमोचक हनुमानजी की उपासना करें और प्रति शनिवार को छाया दान करते रहें। सोमवार को शिव की आराधना करें या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।

3-पीपल द्वारा नवग्रह दोष दूर करने के उपाय वैदिक दृष्टिकोण से:-

भारतीय संस्कृतिमें पीपल देववृक्ष है, इसके सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अन्त: चेतना पुलकित और प्रफुल्लित होती है।स्कन्द पुराणमें वर्णित है कि अश्वत्थ (पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं।पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप है। भगवानकृष्णकहते हैं- समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूँ।

स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्व को व्यक्त

किया है। शास्त्रों में वर्णित है कि पीपल की सविधि पूजा-अर्चना करने से सम्पूर्णदेवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं।पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश परम्परा कभी विनष्ट नहीं होती। पीपल की सेवा करने वाले सद्गति प्राप्त करते हैं।

अश्वत्थ सुमहाभागसुभग प्रियदर्शन।

इष्टकामांश्चमेदेहिशत्रुभ्यस्तुपराभवम्॥

प्रत्येक नक्षत्र वाले दिन भी इसका विशिष्ट गुण भिन्नता लिए हुए होता है।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में कुल मिला कर 28 नक्षत्रों कि गणना है, तथा प्रचलित

केवल 27 नक्षत्र है उसी के आधार पर प्रत्येक मनुष्य के जन्म के समय नामकरण होता है। अर्थात मनुष्य का नाम का प्रथम अक्षर किसी ना किसी नक्षत्र के अनुसार ही होता है।

तथा इन नक्षत्रों के स्वामी भी अलग अलग ग्रह होते है।विभिन्न नक्षत्र एवं उनके स्वामी निम्नानुसार है यहां नक्षत्रों के स्वामियों के नाम कोष्ठक में है जिससे आपको जनलाभार्थ ज्ञान वृद्धि हो-

(१)अश्विनी(केतु), (१०)मघा(केतु), (१९)मूल(केतु),

(२)भरणी(शुक्र), (११)पूर्व फाल्गुनी(शुक्र), (२०)पूर्वाषाढा(शुक्र),

(३)कृतिका(सूर्य), (१२)उत्तराफाल्गुनी(सूर्य), (२१)उत्तराषाढा(सूर्य),

(४)रोहिणी(चन्द्र), (१३)हस्त(चन्द्र), (२२)श्रवण(चन्द्र),

(५)मृगशिर(मंगल), (१४)चित्रा(मंगल), (२३)धनिष्ठा(मंगल),

(६)आर्द्रा(राहू), (१५)स्वाति(राहू), (२४)शतभिषा(राहू),

(७)पुनर्वसु(वृहस्पति), (१६)विशाखा(वृहस्पति), (२५)पूर्वाभाद्रपद(वृहस्पति),

(८)पुष्य(शनि), (१७)अनुराधा(शनि), (२६)उत्तराभाद्रपद(शनि)

(९)आश्लेषा(बुध), (१८)ज्येष्ठा(बुध), (२७)रेवती(बुध)

ज्योतिष शास्त्र अनुसार प्रत्येक ग्रह 3, 3 नक्षत्रों के स्वामी होते है।

कोई भी व्यक्ति जिस भी नक्षत्र में जन्मा हो वह उसके स्वामी ग्रह से सम्बंधित दिव्य पीपल के प्रयोगों को करके लाभ प्राप्त कर सकता है।

अपने जन्म नक्षत्र के बारे में अपनी जन्मकुंडली को देखें या अपनी जन्मतिथि और

समय व् जन्म स्थान लिखकर भेजे,या अपने विद्वान ज्योतिषी से संपर्क कर जन्म का नक्षत्र ज्ञात कर के यह सर्व सिद्ध प्रयोग करके लाभ उठा सकते है।

सूर्य:-

जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान सूर्य देव है, उन व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है।

(अ) रविवार के दिन प्रातःकाल पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा करें।

(आ) व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में हुआ हो उस दिन (जो कि प्रत्येक माह में अवश्य आता है) भी पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा अनिवार्य करें।

(इ) पानी में कच्चा दूध मिला कर पीपल पर अर्पण करें।

(ई) रविवार और अपने नक्षत्र वाले दिन 5 पुष्प अवश्य चढ़ाए। साथ ही अपनी कामना की प्रार्थना भी अवश्य करे तो जीवन की समस्त बाधाए दूर होने लगेंगी।

चन्द्र:-

जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान चन्द्र देव है, उन व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है।

(अ) प्रति सोमवार तथा जिस दिन जन्म नक्षत्र हो उस दिन पीपल वृक्ष को सफेद

पुष्प अर्पण करें लेकिन पहले 4 परिक्रमा पीपल की अवश्य करें।

(आ) पीपल वृक्ष की कुछ सुखी टहनियों को स्नान के जल में कुछ समय तक रख

कर फिर उस जल से स्नान करना चाहिए।

(इ) पीपल का एक पत्ता सोमवार को और एक पत्ता जन्म नक्षत्र वाले दिन तोड़ कर

उसे अपने कार्य स्थल पर रखने से सफलता प्राप्त होती है और धन लाभ के मार्ग प्रशस्त होने लगते है।

(ई) पीपल वृक्ष के नीचे प्रति सोमवार कपूर मिलकर घी का दीपक लगाना चाहिए।

मंगल:-

जिन नक्षत्रो के स्वामी मंगल है. उन नक्षत्रों के व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है।

(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और प्रति मंगलवार को एक ताम्बे के लोटे में जल लेकरपीपल वृक्ष को अर्पित करें।

(आ) लाल रंग के पुष्प प्रति मंगलवार प्रातःकाल पीपल देव को अर्पण करें।

(इ) मंगलवार तथा जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 8 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।

(ई) पीपल की लाल कोपल को (नवीन लाल पत्ते को) जन्म नक्षत्र के दिन स्नान के

जल में डाल कर उस जल से स्नान करें।

(उ) जन्म नक्षत्र के दिन किसी मार्ग के किनारे १ अथवा 8 पीपल के वृक्ष रोपण करें।

(ऊ) पीपल के वृक्ष के नीचे मंगलवार प्रातः कुछ शक्कर डाले।

(ए) प्रति मंगलवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन अलसी के तेल का दीपक पीपल के वृक्ष के नीचे लगाना चाहिए।

बुध:-

जिन नक्षत्रों के स्वामी बुध ग्रह है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए।

(अ) किसी खेत में जंहा पीपल का वृक्ष हो वहां नक्षत्र वाले दिन जा कर, पीपल के

नीचे स्नान करना चाहिए।

(आ) पीपल के तीन हरे पत्तों को जन्म नक्षत्र वाले दिन और बुधवार को स्नान के

जल में डाल कर उस जल से स्नान करना चाहिए।

(इ) पीपल वृक्ष की प्रति बुधवार और नक्षत्र वाले दिन 6 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।

(ई) पीपल वृक्ष के नीचे बुधवार और जन्म, नक्षत्र वाले दिन चमेली के तेल का दीपक लगाना चाहिए।

(उ) बुधवार को चमेली का थोड़ा सा इत्र पीपल पर अवश्य लगाना चाहिए अत्यंत

लाभ होता है।

वृहस्पति:-

जिन नक्षत्रो के स्वामी वृहस्पति है. उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें।

(अ) पीपल वृक्ष को वृहस्पतिवार के दिन और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन पीले पुष्प

अर्पण करने चाहिए।

(आ) पिसी हल्दी जल में मिलाकर वृहस्पतिवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन

पीपल वृक्ष पर अर्पण करें।

(इ) पीपल के वृक्ष के नीचे इसी दिन थोड़ा सा मावा शक्कर मिलाकर डालना या

कोई भी मिठाई पीपल पर अर्पित करें।

(ई) पीपल के पत्ते को स्नान के जल में डालकर उस जल से स्नान करें।

(उ) पीपल के नीचे उपरोक्त दिनों में सरसों के तेल का दीपक जलाएं।

शुक्र:-

जिन नक्षत्रो के स्वामी शुक्र है. उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग

करने चाहियें।

(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष के नीचे बैठ कर स्नान करना।

(आ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और शुक्रवार को पीपल पर दूध चढाना।

(इ) प्रत्येक शुक्रवार प्रातः पीपल की 7 परिक्रमा करना।

(ई) पीपल के नीचे जन्म नक्षत्र वाले दिन थोड़ासा कपूर जलाना।

(उ) पीपल पर जन्म नक्षत्र वाले दिन 7 सफेद पुष्प अर्पित करना।

(ऊ) प्रति शुक्रवार पीपल के नीचे आटे की पंजीरी सालना।

शनि:'

जिन नक्षत्रों के स्वामी शनि है. उस नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए।

शनिवार के दिन पीपल पर थोड़ा सा सरसों का तेल चडाना।

शनिवार के दिन पीपल के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाना।

शनिवार के दिन और जन्म नक्षत्र के दिन पीपल को स्पर्श करते हुए उसकी एक परिक्रमा करना।

जन्म नक्षत्र के दिन पीपल की एक कोपल चबाना।

पीपल वृक्ष के नीचे कोई भी पुष्प अर्पण करना। पीपल के वृक्ष पर मोलि बंधन।

राहू:-

जिन नक्षत्रों के स्वामी राहू है उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए।

(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 21 परिक्रमा करना।

(आ) शनिवार वाले दिन पीपल पर शहद चडाना।

(इ) पीपल पर लाल पुष्प जन्म नक्षत्र वाले दिन चडाना।

(ई) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल के नीचे गौमूत्र मिले हुए जल से स्नान करना।

(उ) पीपल के नीचे किसी गरीब को मीठा भोजन दान करना।

केतु:-

जिन नक्षत्रों के स्वामी केतु है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न उपाय

कर अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहिए।

(अ) पीपल वृक्ष पर प्रत्येक शनिवार मोतीचूर का एक लड्डू या इमरती चडाना।

(आ) पीपल पर प्रति शनिवार गंगाजल मिश्रित जल अर्पित करना।

(इ) पीपल पर तिल मिश्रित जल जन्म नक्षत्र वाले दिन अर्पित करना।

(ई) पीपल पर प्रत्येक शनिवार सरसों का तेल चडाना।

(उ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की एक परिक्रमा करना।

(ऊ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की थोडीसी जटा लाकर उसे धूप दीप दिखा कर

अपने पास सुरक्षित रखना।

अथर्ववेदके उपवेद आयुर्वेद में पीपल :-

के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। पीपल के वृक्ष के नीचे

मंत्र, जप और ध्यान तथा सभी प्रकार के संस्कारों को शुभ माना गया है। श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापर युग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। यज्ञ में प्रयुक्त किए जाने वाले 'उपभृत पात्र' (दूर्वी, स्त्रुआ आदि) पीपल-काष्ट से ही बनाए जाते हैं। पवित्रता की दृष्टि से यज्ञ में

उपयोग की जाने वाली समिधाएं भी आम या पीपल की ही होती हैं। यज्ञ में अग्नि

स्थापना के लिए ऋषिगण पीपल के काष्ठ और शमी की लकड़ी की रगड़ से अग्नि

प्रज्वलित किया करते थे।ग्रामीण संस्कृति में आज भी लोग पीपल की नयी कोपलों

में निहित जीवनदायी गुणों का सेवन कर उम्र के अंतिम पडाव में भी सेहतमंद बने रहते हैं।

आयु: प्रजांधनंधान्यंसौभाग्यंसर्व संपदं।

देहिदेवि महावृक्षत्वामहंशरणंगत:॥

१__ गाय को प्रतिदिन तेल लगाकर रोटियां अवश्य खिलाएं प्रत्येक बुधवार को गाय को हरा चारा खिलाएं इससे आपके धन आने के रास्ते में जो बाधाएं हैं। वह दूर हो जाएंगे।

२__ प्रतिदिन अपने माता-पिता का आशीर्वाद लें एवं घर के बड़े बुजुर्गों की सेवा करें उन को प्रसन्न रखें और उनका आशीर्वाद लें।

३__ सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय 48 मिनट के अंदर एक माला गायत्री मंत्र का जाप करें। एवं दीपक जलाएं सभी कष्टों से छुटकारा मिलेगा।

४__ अपने जन्मदिन पर रुद्राभिषेक करवाएं, अपने जन्म नक्षत्र का उपाय करके घर से बाहर निकलने से आपको सभी कामों में सफलता मिलेगी।

५__ एक तांबे का सिक्का लंबी यात्रा के दौरान बहते हुए जल में प्रवाहित करें। कहीं घर से बाहर जाना हो काम के सिलसिले में तो घर के बड़े बुजुर्गों को प्रणाम करके चरण स्पर्श करके घर से बाहर निकलें उनका आशीर्वाद लेकर।

६__ किसी विशेष काम से घर से निकलना हो तो हींग हाथ में लेकर अपने ऊपर से उतारकर उत्तर दिशा में फेंक दें फिर घर से बाहर जाएं आपका कार्य सिद्ध हो जाएगा।

७__ यात्रा के समय एक लाल धागा अपने पास अवश्य रखें लौटने के बाद में उसको तुलसी के पेड़ में

८__ यात्रा में जाते समय नाभि में शहद लगाकर जाएं कार्य सिद्ध होगा।

९__ विशेष कार्य के लिए जाने पर सफेद धागे पर तुलसी के रस को लगा कर ले जाएं।

१०__ कठिन कार्य सिद्धि के लिए जाते समय एक सुपारी में कलावा लपेट कर उसकी पूजा करके साथ में लेकर जाएं कार्य सिद्ध होगा।

११__ गुड़ और सफेद इलायची वाली चाय पीकर जाने से आकर्षण बढ़ता है।

१२_ निर्जन एवं सुनसान स्थानों पर बैठकर शांति मन से अपने पूर्वजों को याद कर प्रार्थना करें एवम पंचतत्वों वायु जल अग्नि आकाश पृथ्वी से प्रार्थना करें अपनी समस्या के समाधान के लिए मन ही मन निवेदन करें ऐसा करते हुए 5 अगरबत्तियां चलाएं जब तक कार्य सिद्ध ना हो जाए तब तक यह प्रयोग करते रहे।

१३__ महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से सूर्यादि नवग्रह सभी देवी देवता प्रसन्न होते हैं। जाप करने से बहुत सी परेशानियां स्वता ही समाप्त हो जाती हैं।

१४__ धन प्राप्ति के लिए जल में शहद मिलाकर अभिषेक करें एवं महामृत्युंजय का नियमित जाप करें।

१५__ शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए काले घोड़े की नाल का छल्ला बनवाएं एवं सिद्ध करके मध्यमा अंगुली में धारण करने से शनिदेव के कोप शांत होते हैं।

१६__ काले रंग के 11 कंबल दान करने से सभी परेशानियां खत्म हो जाती है। इन उपायों से सभी परेशानियां 1 वर्ष में समाप्त होना शुरू हो जाती है।

नवग्रहों की शांति के लिए उपयोग होने वाली लकड़ियों के नाम।

1. सूर्य के लिए आर्क की लकड़िया।

2. राहु के लिए दुर्वा की लकड़िया।

3. केतु के लिए कुशा की लकड़िया।

4. शनि के लिए शमि की लकड़िया।

5. शुक्र के लिए औदुम्बर की लकड़िया।

6. गुरु के लिए पीपल की लकड़िया।

7. बुध के लिए अपामार्ग की लकड़िया।

8. मंगल के लिए खदिर की लकड़िया।

9. चंद्र के लिए पलाश की लकड़िया।