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ज्योतिष ग्रह- दशा और आप

ज्योतिष ग्रह- दशा और आप

व्यक्ति की कुण्डली के योग दशाओं में जाकर फल देते है. किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर अनेक राजयोग व धन योग बन रहे है. परन्तु फिर भी वह व्यक्ति साधारण सा जीवन व्यतीत कर रहा है. तो समझ जाना चाहिए. की उस व्यक्ति को धन योग व राज योगों से जुडे ग्रहों की महादशाएं अभी तक नहीं मिली है.
जिस व्यक्ति को केन्द्र व त्रिकोण के स्वामियों की दशाएं सही समय पर मिल जाती है. उस व्यक्ति को जीवन में सरलता से सफलता के दर्शन हो जाते है. क्योकी यह दशाओं का ही खेल है की व्यक्ति राजा से रंक व रंक से राजा बन जाता है. आईये देखे की कौन से ग्रह व्यक्ति को राजा बनाते है तथा कौन से ग्रह व्यक्ति को रंक बनाते है.

सूर्य शुभ स्थानों का स्वामी  -इस समय में व्यक्ति को कठिन कामों में सफलता मिलती है. यह समय व्यक्ति को सरकार विभाव में नौकरी या सम्मान दिला सकता है. व्यक्ति को पर्यटन के क्षेत्र से भी आय की प्राप्ति हो सकती है. इस समय में व्यक्ति मेहनत व लगन से काम करता है. वह उद्धमी व उद्दोगशील रहता है. इस समय में व्यक्ति के कार्य में तेजी होती है. इसलिये उसे सफलता की प्राप्ति होती है.

सूर्य अशुभ स्थान का स्वामी -सूर्य के अशुभ ग्रह का स्वामी होने पर व्यक्ति के व्यवसायिक जीवन में कलह रहती है. उसके अपने कार्य क्षेत्र के लोगों से मतभेद व मनमुटाव रहता है. क्योकि सूर्य विच्छेदकारी ग्रह है. इसलिये इस समय में नौकरी छुटने की भी संभावना भी रहती है. इस समय में सरकारी नियमों का सही से पालन न करने के कारण कष्ट का सामना करना पड सकता है.

चन्द्र शुभ भाव का स्वामी -चन्द्र सर्वप्रथम व्यवसाय में निर्णय लेने की क्षमता की वृ्द्धि करता है. इस समय में व्यक्ति को किये गये कामों में सफलता मिलती है. यह समय धन में बढोतरी करेगा. चन्द्र की दशा में व्यक्ति को उतम भोजन की प्राप्ति होती है. यह समय वस्त्राभूषण व संतान से सुख प्राप्ति के लिये अच्छा रहता है. इस समय में व्यक्ति को भूमि, भवन के मामलों में सफलता मिलती है.

चन्द्र अशुभ भाव का स्वामी -इस समय में व्यक्ति के परिवार में कलह, कष्ट, आते है. यह समय अचानक से धन प्राप्ति के साधनों में धन लगाने से व्यक्ति को हानि देता है. सरकारी क्षेत्र से भी व्यक्ति को दण्ड की प्राप्ति होती है. व्यक्ति इस समय में आलस्य अधिक करता है तथा उसका मन मेहनत के कामों में नहीं लगता है. व्यक्ति को अनिद्रा रोग होने की संभावना बनती है. जमीन से जुडे कामों के लिये यह समय बिल्कुल सही नहीं हो सकता है.

मंगल शुभ भावों का स्वामी -मंगल की शुभ दशा में व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. यह समय व्यक्ति को भूमि, भवन के क्रय-विक्रय से लाभ देता है. अग्नि क्षेत्र से व वाहन से धन प्राप्ति होती है. यहां अग्नि से तात्पर्य है. वे फैक्टरी जहां मिल का काम होता है. वहां व्यक्ति के मालिक या नौकरी करने से लाभ होता है. व्यक्ति को पराक्रम व साहस के बल पर सफलता की प्राप्ति होती है. मंगल अपनी दशा में मेहनत के कामों से भी सफलता देता है.

मंगल अशुभ भावों का स्वामी -अशुभ मंगल की दशा में उसका अपने मित्रों व अपने जीवन साथी से विरोध रहता है. वह अपने भाईयों, संतान से मतभेद रखता है. इस समय में व्यक्ति बहुत महत्वकाक्षी बन जाता है. मंगल को क्योकि रक्त का कारक कहा गया है इसलिये इस समय में व्यकि को रक्त से जुडे रोग होने की संभावना अधिक रहती है. समय के विपरीत होने पर व्यक्ति को सत्य बोलने का प्रयास करना चाहिए. इस समय में व्यक्ति अपने गुरुओं के सम्मान में कमी करता है.

बुध शुभ भावों का स्वामी -इस दशा में व्यक्ति को मित्रों के सहयोग से लाभ होता है. यह समय व्यापार करने के लिये अच्छा कहा गया है. व्यक्ति को सरकारी पक्ष से आय की प्राप्ति होती है. वाहन, भूमि के कामों में सफलता मिलती है. यह समय व्यक्ति को यश दिलाता है. बुध की शुभ दशा व्यक्ति की सुख सुविधाओं में वृ्द्धि करती है.व्यक्ति अपनी बुद्धि के बल पर अनेक कामों को पूरा करने में सफलत होता है. व्यक्ति की इस समय विशेष में धर्म में आस्था बढती है. वह धर्म की गतिविधियों के लिये समय निकालता है. वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है. यह दशा लेखन के पक्ष से भी अच्छी मानी जाती है.

बुध अशुभ भावों का स्वामी -अशुभ भावों के स्वामी अशुभ फल देते है. इसलिये यह दशा व्यक्ति को मानसिक चिन्ताएं देती है. इस समय में व्यक्ति अपनी बुद्धि का सही उपयोग नहीं कर पाता है. व्यक्ति को अपने छोटे भाई बहनों का सहयोग नहीं मिल पाता है. उसे बेवजह निन्दा का कारण बनना पडता है. उसे अपने गुरुओं के आशिर्वाद का सौभाग्य नहीं मिल पाता है. व्यक्ति को अपने मित्रो, संतान व जीवन साथी से स्नेह, सौहार्द व सहयोग मिलता है. इस दशा में व्यक्ति को कोई नया व्यापार शुरु नहीं करना चाहिए.

गुरु शुभ भावों का स्वामी -इस दशा में व्यक्ति की धार्मिक आस्था जाग्रत होती है. वह उपासनाओं व धार्मिक गतिविधियों मे अपना समय व्यतीत करता है. यह समय संतान के पक्ष से भी शुभ फल देता है. संतान से सुख व सहयोग मिलता है. समाज में प्रतिष्टा व कीर्ति मिलती है. सम्मानित लोगों में व्यक्ति जाना जाता है. गुरु की दशा में अच्छे वाहनों का सुख भी मिलता है. व्यक्ति इस समय में अपने रिश्तेदारों से संबध मधुर बनता है. व्यवसाय के पक्ष से यह समय उतम फल देता है.

गुरु अशुभ भावों का स्वामी -अशुभ दशा में व्यक्ति को सरकारी क्षेत्रों से कष्ट की प्राप्ति होती है. व्यक्ति के साह्स में भी कमी होती है. उसे मानसिक क्लेश प्राप्त होते है. गुरु की अशुभ भावों की दशा व्यक्ति के धैर्य में कमी करता है. इस समय में व्यक्ति के धन की हानि होती है. व्यक्ति के अपने पिता व अपने गुरुओं से संबध खराब रहते है. इस दशा में व्यक्ति को भोजन के दुषित होने से जल्द रोग होने की संभावना बनती है. व्यक्ति के लिये यह समय अपने क्रोध पर नियन्त्रण रखने का होता है. स्वास्थय में कमी रहती है.

शुक्र शुभ भावों का स्वामी -शुक्र शुभ होकर अपनी दशा में व्यक्ति को भौतिक सुख-सुविधाएं देता है. वह सौभाग्य में बढोतरी करता है. व्यक्ति को उच्च पद की प्राप्ति होती है. उसे उतम वाहनों का सुख मिलता है. धर्म के कामों में वह बढ चढ कर हिस्सा लेता है. व्यक्ति की इस समय में संगीत व कला के क्षेत्रों में भी रुचि जाग्रत होती है. इन क्षेत्रों में वह अपना समय बिताना पसन्द करता है. उसे स्त्रियों के सहयोग से लाभ की प्राप्ति होती है.

शुक्र अशुभ भावों का स्वामी -यह दशा व्यक्ति को वाहनों से दुर्घटनाओं से कष्ट होने की संभावनाएं बनाती है. इस समय में व्यक्ति को स्त्रियों से व्यवसाय में हानि हो सकती है. व्यक्ति अपना समय गलत कामों में व्यतीत करता है. व्यक्ति को अपने शत्रुओं से हार का सामना करना पडता है. उसे भूमि, भवन के क्षेत्रों में भी सफलता नहीं मिलती है. व्यक्ति को अपने गुरुओ के विरोध का सामना करना पडता है. शुक्र व्यक्ति के मित्रों से भी संबन्धों में तनाव देता है.

शनि शुभ भावों का स्वामी -शनि अपनी दशा में व्यकि को वैभव व प्रखर बुद्धि देता है. व्यक्ति को जमीन से जुडे मामलों में सफलता व लाभ देता है. व्यक्ति को मेहनत व संघर्ष से सफलता की प्राप्ति होती है. यह समय व्यक्ति को समाज में सम्मान दिलाता है. शनि अपनी दशा में व्यक्ति को लोहे, तिल व खेती के कामों से लाभ होने की संभावनाएं देता है. शनि व्यक्ति को उत्साह व प्रेरणात्मक कामों में सफलता देता है.

शनि अशुभ भावों का स्वामी -इस दशा में व्यक्ति को धन की हानि होती है. उसके स्वास्थय में कमी रहती है. व्यक्ति कानूनी नियमों का अच्छे से पालन नहीं करता है. जिसके कारण उसे दण्ड का पात्र बनना पडता है. व्यक्ति गलत कामों में रहता है. तथा उसके जीवन लक्ष्य से भटकने की संभावनाएं अधिक बनती है. व्यक्ति निराशावादी व आलसी बन जाता है. उसे वाहनों से कष्ट होता है. अपने परिजनों से भी मतभेद रखता है. शनि अशुभ भावों का स्वामी हो तो व्यक्ति को अपने नौकरों पर अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए.

राहु के शुभ फल -राहु की दशा में व्यक्ति के सम्मान में वृ्द्धि होती है. व्यक्ति की सभी योजनाएं पूरी होती है. उसे भूमि , भवन की प्राप्ति होती है. व्यक्ति अपनी नितियों की सफलता के फलस्वरुप धन का संचय करने में सफल रहता है. व्यक्ति को राजनिति में रुचि होने पर इस क्षेत्र में भी सफलता की प्राप्ति होती है.

राहु के अशुभ फल -अशुभ राहु की दशा व्यक्ति को सरकार से लाभ प्राप्त होता है. व्यक्ति को संतान से कष्टों की प्राप्ति होती है. मानसिक अशान्ति व चिन्ताएं मिलती है. व्यक्ति से ऎसा कोई काम होता है जिससे उसे अपयश मिलता है. अर्थात व्यक्ति को अपयश मिलता है. व्यक्ति को अपना घर बदलना पड सकता है. उसकी नौकरी में भी परिवर्तन होता है. अपनी मेहनत के अनुरुप उसे सफलता नहीं मिलती है.

केतु के शुभ फल -इस दशा में व्यक्ति को अपने प्रतियोगियों पर विजय प्राप्त होती है. उसे कठोर कामों से लाभ की प्राप्ति होती है. विदेशों में सम्मान की प्राप्ति होती है. एसे व्यक्ति को घर से दूर रहकर भाग्य का सहयोग मिलता है. केतु की दशा को लेखन व अध्ययन के लिये उतम कहा गया है. इस समय विशेष में व्यक्ति को रिसर्च का काम करना भी रुचिकर लगता है.

केतु के अशुभ फल -यह समय व्यक्ति के स्वास्थय में कमी करता है. बहुत मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिलती है. व्यक्ति जिस भी योजना पर काम करना शुरु करता है उसे हानि का सामना करना पडता है. केतु की अशुभ दशा में गुरुओं की नाराजगी मिलती है. व्यक्ति के साहस में भी कमी होती है. इस समय में उसे अपनी वाणी पर नियन्त्रण रखना चाहिए.

 

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411