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कब उन्नति, नौकरी व्यवसाय द्वारा कब

कब उन्नति, नौकरी व्यवसाय द्वारा कब ??

आजीविका का निर्धारण व्यक्ति की योग्यता शिक्षा, अनुभव से तो होता ही है। उसकी कुंडली में बैठे ग्रह भी प्रभाव डालते हैं। चंद्र, सूर्य या लग्न इनमें से जो भी ग्रह कुंडली में अधिक बली होता है।  उससे दशम भाव में जो भी राशि पड़ती है। उस राशि का स्वामी जिस नवमांश में है।  उस राशि के स्वामी ग्रह के गुण, स्वभाव तथा साधन से जातक धन प्राप्त करता है।

जैसे- दशम भाव की राशि का स्वामी नवमांश में यदि कर्क राशि में स्थित है। तो व्यक्ति चंद्र ग्रह से संबंधित कार्य करेगा। ऎसा भी हो सकता है। कि दशम भाव में कोई ग्रह नहीं हो, तो दशमेश ग्रह के अनुसार व्यक्ति व्यवसाय करेगा। साथ बैठे अन्य ग्रहों का प्रभाव भी व्यक्ति के व्यवसाय पर पड़ना संभव है।

व्यापार अथवा नौकरी -

जब आप कैरियर के विषय में निर्णय लेते हैं। उस समय अक्सर मन में सवाल उठता है। कि व्यापार करना चाहिए अथवा नौकरी। ज्योतिष विधान के अनुसार अगर कुण्डली में द्वितीय, पंचम, नवम, दशम और एकादश भाव और उन में स्थित ग्रह कमजोर हैं। तो आपको नौकरी करनी पड़ सकती है। इन भावों में अगर ग्रह मजबूत हैं। तो आप व्यापार सकते हैं।

 

लग्न शुभता विचार -

जातक का लग्न यदि स्थिर राशि 2, 5, 8, 11 का है। तो व्यक्ति स्थिर आमदनी वाला व्यवसाय करता है। बलवान लग्नेश शारीरिक शक्ति, हिम्मत, जोश से व्यवसाय कराता है। बलवान सूर्य आत्म विश्वास की क्षमता बढ़ाता है। बुध बलवान होकर कार्य क्षमता में उन्नति के विचार की शक्ति देता है।

जन्म राशि शुभता विचार -

स्थिर राशि का चंद्र स्थिर व्यापार कराने में विशेष सहायक होता है। चर राशि के चंद्रमा वाले लोग बार-बार व्यवसाय व्यापार में पैसा फंसाकर व्यवसाय बदलते हैं। राशि 3, 7, 11 लग्न वाले लोगों को जनसंपर्क वाले व्यवसाय नहीं करने चाहिए, क्योंकि ऎसे व्यक्ति को जल्दी गुस्सा आता है।

इसी प्रकार जल तत्व राशि 4, 8, 12 लग्न वाले व्यक्ति को भी व्यवसाय के झंझट में नहीं फंसना चाहिए, क्योंकि ऎसा व्यक्ति अपने व्यवहार के कारण व्यवसाय में नाकाम रहता है।

नवम, दशम, एकादेश, पंचमेश, सप्तमेष विचार -

व्यवसाय की सफलता तब ही संभव होती है।  जब 2, 9, 10, 11 भाव के स्वामी कुंडली में त्रिक भाव 6, 8, 12 में निर्बल, अशुभ, पापयुक्त या पापकर्लरी योग में नहीं हों। कर्म स्थान का ग्रह उच्च का हो, तो स्वतंत्र व्यवसाय से आय संभव है। बलवान सूर्य भी स्वतंत्र व्यवसाय दर्शाता है।

पंचमेश उच्च, त्रिकोण स्थान में होने पर व्यक्ति ने जिस विषय की पढ़ाई की है। उसी से संबंधित व्यवसाय करता है। पंचम स्थान में यदि उच्च का ग्रह है।  तो व्यक्ति रेस, लॉटरी, जुआ-सट्टे से धन कमाता है। लाभेश उच्च या त्रिकोण स्थान में होता है, तो विदेशी वस्तुओं से लाभ संभव है।

दशम भाव में चंद्र-शुक्र की युति होने पर व्यक्ति जवाहरात का व्यवसाय करता है। चंद्र-शनि की युति खनिज पदार्थ का व्यवसाय करना भी दर्शाता है। प्रवास कारक चंद्र, व्यवसाय कारक बुध की युति ट्रेवल संबंधी व्यवसाय कराती है।

चंद्र, बुध का संबंध 3, 7, 9 भाव से हो और गुरू बलवान हो, तो ट्रेवल एजेंसी का कार्य संभव है। उच्च का चंद्र व्यक्ति को एजेंट बनाता है। केंद्र में शनि और मंगल की युति व्यक्ति को उद्योगपति बनाती है। यदि मंगल, शनि, शुक्र कुंडली में उच्च के होते हैं।  तो सौंदर्य प्रसाधन एवं विदेशी महंगी चीजों से संबंधित उत्पादन का व्यवसाय कराती हैं।

मंगल और राहु की युति शुभ भाव में हो, तो व्यक्ति कम समय में अकल्पित कमाई शीघ्रता से करता है। कुंडली में बुध, शनि ग्रह उच्च के हों और मंगल रूचक योग बने, तो व्यक्ति अच्छा लेखक, मंत्री, पत्रकार बन सकता है। उच्च का शुक्र और नेपच्युन मेडिकल, विदेशी वस्तु, ब्यूटी पार्लर, संगीत, सिनेमा, नाटक जैसे कार्य कराता है।

 पैत्रक व्यवसाय -

दशम भाव में ग्रह और आजीविका एवं आय -

कुण्डली के दशम भाव में चन्द्रमा सूर्य होने पर पिता अथवा पैतृक सम्पत्ति से लाभ मिलता है। इस सूर्य की स्थिति से यह भी पता चलता है। कि आप पैतृक कार्य करेंगे अथवा नहीं. चन्द्रमा अगर इस भाव में हो तो माता एवं मातृ पक्ष से लाभ की संभावना बनती है। चन्द्रमा से सम्बन्धित क्षेत्र में कामयाबी की प्रबल संभावना रहती है। मंगल की उपस्थिति दशम भाव में होने पर विरोधी पक्ष से लाभ मिलता है।

रक्षा विभाग अथवा अस्त्र शस्त्र के कारोबार से लाभ होता है। बुध दशम भाव में होने पर मित्रों से लाभ एवं सहयोग मिलता है। बृहस्पति की उपस्थिति होने पर भाईयों से सुख एवं सहयोग मिलता है। बृहस्पति से सम्बन्धित क्षेत्र में अनुकूल लाभ मिलता है। शुक्र सौन्दर्य एवं कला के क्षेत्र में तरक्की देता है। शनि की स्थिति दशम में होने पर परिश्रम से कार्य में सफलता मिलती है। टूरिज्म के कारोबार में कामयाबी मिलती है। लोहा, लकड़ी, सिमेंट, रसायन के काम में सफलता मिलती है।

पाराशर शास्त्र अनुसार -

महर्षि पाराशर ने व्यापार एवं आर्थिक स्थिति का विचार बड़े ही तर्कसंगत ढंग से किया है। उनका मानना है। कि जन्मकुंडली में लग्न, पंचम एवं नवम भाव लक्ष्मी के स्थान होने के कारण धनदायक होते हैं। यथा –

‘लक्ष्मीस्थानं त्रिकोणं स्यात्’ तथा ।

‘प्रथमं नवमं चैव धनमित्युच्यते बुधै: ।।

अर्थात कुंडली में चतुर्थ एवं दशम स्थान इच्छाशक्ति एवं कर्मठता के सूचक होने के कारण धन कमाने में सहायक होते हैं। दूसरी ओर षष्ठ, अष्टम एवं व्यय भाव, जो कर्ज, अनिष्ट एवं हानि के सूचक हैं।  व्यापार में हानि और परेशानी देने वाले होते हैं।

कारोबार में परेशानी सूचक योग -

महर्षि पाराशर ने अपनी कालजयी रचना ‘मध्यपाराशरी’ में व्यापार में हानि एवं परेशानी के सूचक निम्न योग बताए हैं।

लग्नेश एवं चंद्रमा, दोनों केतु के साथ हों और मारकेश से युत या दृष्ट हों।

लग्नेश पाप ग्रह के साथ छठे, आठवें या 12 वें स्थान में मौजूद हो।

पंचमेश एवं नवमेश षष्ठ या अष्टम भाव में हों।

लग्नेश, पंचमेश या नवमेश का त्रिकेश के साथ परिवर्तन हो।

लग्नेश जिस नवांश में हो, उसका स्वामी त्रिक स्थान में मारकेश के साथ हो।

कुंडली में भाग्येश ही अष्टमेश या पंचमेश ही षष्ठेश हो और वह व्ययेश से युत या दृष्ट हो।

जातक की कुंडली में केमद्रुम, रेका, दरिद्री, या भिक्षुक योग हो।

लग्नेश षष्ठभाव में और षष्ठेश लग्न या सप्तम भाव में हो तथा वह मारकेश से दृष्ट हो।

परेशानी से बचने का उपाय -

वैदिक चिंतनधारा में व्यक्ति के विचार एवं निर्णयों को विकृत करने वाला तत्व ‘विघ्न’ तथा उसके काम-धंधे में रुकावटें डालने वाला तत्व 'बाधा' कहलाता है। इन विघ्न-बाधाओं को दूर करने की क्षमता भगवान के हाथो में ही है। सभी ज्योतिष शास्त्रों में नवग्रहों एवं निहितउर्जा को देव की संज्ञा दी गयी है। जन्म पत्रिका सम्पूर्ण विश्लेषण द्वारा विघ्न बाधा के पीछे असंतुलित उर्जा चक्र के मूल कारण का ही अध्धयन परम्परा वैदिक काल से है। मूल कारण निहित ग्रहदोष या राजयोग कारक ग्रह दुर्बलता को उपाय द्वारा उर्जा संतुलन में परिवर्तित कर मनवांछित सफलता को बिना समय नष्ट किये ही पाया जा सकता है।

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411