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माता बगलामुखी देवी साधना के मंत्र
1-माता बगलामुखी देवी साधना के मंत्र
2-महामाया बगलामुखी स्तोत्र-
माता बगलामुखी देवी की साधना के मंत्र-
विनियोग-
ओम अस्य श्री बगलामुखी महामंत्रस्य नारद ऋषि त्रिष्टुप छंद श्री बगलामुखी देवता हल्रीं बीजं स्वाहा शक्ति : हल्रीं कीलकं मम श्री बगलामुखी प्रीत्यर्थे जपे विनियोग
ऋष्यादिन्यास
नारद ऋषये (शिरसि) . त्रिष्टुप छंद से नमः (मुखे) श्री बगलामुखी देवताये नमः ( हृदि) . हल्रीं बीजाय नमः (गुह्मे) स्वाहा शक्तये नमः (पादयो;) हल्रीं कीलकाय नमः (नाभौ)., विनियोगाय नमः (सर्वांगे)
करन्यास-
ओम हल्रीं ,(अंगुष्ठाभ्यां नमः). बगलामुखी ( तर्जनिभ्याम नमः). सर्वदुष्टानां (मध्यमाभ्याम् नमः) वाचं मुखं पदं स्तम्भय ( अनामिकाभ्याम नमः) जिव्हां कीलय कीलय ( कनिष्ठिकाभ्याम् नमः) बुद्धि नाशय ,हल्रीं ओम
(करतलकरपृषठाभ्यां नमः).
ह्दयादिन्यास-
ओम हल्रीं (ह्दयाय नमः). बगलामुखी (शिरसि स्वाहा).
सर्वदुष्टानां,(शिखायै वषट्) वाचं मुखं पदं स्तम्भय (कवचाय हूम) जिव्हाम् कीलय कीलय नेत्रयाय वौषट
बुद्बिं नाशय हल्रीं स्वाहा ( अस्त्राय फट्)
ध्यान मंत्र :-
मध्येसुधाब्धि मणिममण्डपरनवेद्यां ।
सिंहासनोपरि गतां परिपीतवर्णाम ।
पीताम्बराभरणमाल्यविभूषिताङ्गीम् ।
देवी भजामि धृतमुद्गरवैरिजिह्वाम् ॥
ध्यान मंत्र हिन्दी अर्थ-
सुधासागर के मध्य मणियों से जड़ित मण्डप में रत्नों से बनी वेदी पर सुवर्ण के सिंहासन पर देवी विराजमान हैं। सिंहासन मण्डप तथा आसपास का वातावरण परिवेश सभी पीत वर्ण का है। पीले रंग के ही वस्त्र साड़ी, मुकुट, आभूषण माला पीत वर्ण के ही रत्नों से जुड़े सुवर्ण के आभूषण पहने हुए हैं। बैरी दुश्मन दानव राक्षस की जिह्वा को बाएँ हाथ से पकड़कर खींच रही हैं और दाहिने हाथ से राक्षस वैरी को मुद्गर जैसे शस्त्र से मार रही हैं, पीट रही हैं।
मंत्र इस प्रकार है।:-
1..ॐ हल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्बिं विनाशय हल्रीं ॐ स्वाहा
इस मंत्र का दूसरा रूप भी प्रचलित है।
2..ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ॥
(पहले मंत्र में माता बगलामुखी के एकाक्षरी बीजाक्षर। हल्रीं ( हल्+ रीम) का प्रयोग किया गया है।
कुछ लोग बीजाक्षर के जाप में बिन्दु का उच्चारण "म: के स्थान पर "ग', का उच्चारण करते हैं। उनका मानना है बिंदु में में म के स्थान पर ग'का उच्चारण वर्तमान समय में शीघ्र प्रभाव देता है।
ह्मीं के स्थान पर ह्मींग्
हल्रीं के स्थान पर हलरींग
ऐसा ही ऐं ह्मीं क्लीं बीजाक्षरो के उच्चारण में भी ऐसा म के स्थान पर ग का उच्चारण करते हैं।
दोनो उच्चारण अपनी जगह सही है।
साधक अपनी इच्छा अनुसार प्रयोग कर सकता है।
इन मंत्रो का जाप सवा लाख जाप करने पर मंत्र सिद्ध होता है। मंत्र जाप के लिए हल्दी के टुकड़ों से निर्मित माला से जप उत्तम माना जाता है। इसके अलावा पीला हकीक.या रूद्राक्ष माला का उपयोग कर सकते हैं। सवा लाख जाप के बाद जाप का दसवां भाग हवन से जाप करें। हवन नहीं करने की स्थिति में दसवें भाग का दुगुना अतिरिक्त जाप करें।
जाप से पहले गुरु, गणेश, हनुमान, भैरव, नवग्रह पंचदेवों आदि का स्मरण करें। और आज्ञा ले।
जाप पूरा होने पर फिर नित्य एक या दो माला जप करें।
इसके अलावा भी माता बगलामुखी देवी के अनेक मंत्र है।
जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
1- हल्रीं (हल् + रीम्)
या इसका दूसरा रूप
हल्रींग् (हल् + रींग)
यह माता बगलामुखी देवी का बीजाक्षर है
2.. ओम ह्ललीं पीतांबरायै नमः
3.. ओम ह्मीं बगलामुख्यै नमः
4. ओम हल्रीं पीताम्बरायै मम सर्व विघ्न विनाशाय महाविष्णु रूपायै ठ:ठ:
5..शत्रुनाशक मंत्र-
ओम ह्मीं ऐं श्रीं क्लीं श्री बगलानने मम रिपुन् नाशय नाशय मम ऐश्वर्याणि देही देही शीघ्रम मनोबांछित साधय साधय ह्मीं स्वाहा
6..धनदायक मंत्र-
ओम श्रीं ह्लीं ऐं भगवती बगले मम श्रियम देही देही स्वाहा
बगलामुखी गायत्री
7..ओम बगलामुख्यै च विदमहे स्तम्भिन्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात
8..ओम हल्रीम ब्रहमास्त्राय विदमहे स्तम्भबाणायै धीमहि तन्नो बगलामुखी: प्रचोदयात्
इसके अतिरिक्त बगलामुखी साधना में कुछ शाबर मंत्र भी प्रचलित है
बगलामुखी शाबर मंत्र-
9..ॐ मलयाचल बगला भगवती महाक्रूरी महाकराली राजमुख बन्धनं ग्राममुख बन्धनं ग्रामपुरुष बन्धनं कालमुख बन्धनं चौरमुख बन्धनं व्याघ्रमुख बन्धनं सर्वदुष्ट ग्रह बन्धनं सर्वजन बन्धनं वशीकुरु हुं फट् स्वाहा।
10..ॐ सौ सौ सुता समुन्दर टापू, टापू में थापा, सिंहासन पीला, सिंहासन पीले ऊपर कौन बैसे? सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बैसे। बगलामुखी के कौन संगी, कौन साथी ? कच्ची बच्ची काक कुतिआ स्वान चिड़िया ॐ बगला बाला हाथ मुदगर मार, शत्रु-हृदय पर स्वार, तिसकी जिह्ना खिच्चै । बगलामुखी मरणी-करणी, उच्चाटन धरणी, अनन्त कोटि सिद्धों ने मानी। ॐ बगलामुखीरमे ब्रह्माणी भण्डे, चन्द्रसूर फिरे खण्डे खण्डे, - बाला बगलामुखी नमो नमस्कार ।
11..ॐ बगलामुखी महाक्रूरी शत्रू की जिह्वा को पकड़कर मुदगर से प्रहार कर, अंग प्रत्यंग स्तम्भ कर घर बाघं व्यापार बांध तिराहा बांध चौराहा बांध चार खूँट मरघट के बांध जादू टोना टोटका बांध दुष्ट दुष्टनी कि बिध्या बांध छल कपट प्रपंचों को बांध सत्य नाम आदेश गुरू का।
उपरोक्त क्रमांक,(9.10..11.,) के बगलामुखी शाबर मंत्रो की साधना अनुष्ठान के लिए 40,, दिन तक,, एक दो या तीन माला जाप करें। अंतिम दिन एक माला हवन से करें।
फिर नित्य एक माला जप करें जप हल्दी. रूद्राक्ष या पीले हकीक से करें।
साधना काल में पीली वस्तुओं का उपयोग करें आसन वस्त्र पीले हो पीले पुष्प पीला चंदन या हल्दी का तिलक करें भोजन में कम से कम एक वस्तु बेसन की हो।
अनुष्ठान में ब्रह्मचर्य का पालन करें।
एक और शाबर मंत्र है। जो कि प्रभावशाली है उसका विधान निम्नलिखित हैं।
इस मन्त्र का विधान यह है। कि सर्वप्रथम भगवती का पूजन करके इस मन्त्र का दस हजार की संख्या में जप करने हेतु संकल्पित होना चाहिए। तदोपरान्त एक निश्चित अवधि में जप पूर्ण करके एक हजार की संख्या में इसका हवन सामग्री में 'मालकांगनी' जो एक औषधि पौधा है। उसके बीजों को हवन सामग्री में मिलाकर हवन करे करना चाहिए। तदोपरान्त तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। तर्पण गुड़ोदक से करें। इस प्रकार इस मन्त्र का अनुष्ठान पूर्ण होता है। फिर नित्य-प्रति एक माला इस मन्त्र की जपते रहना चाहिए। इस मन्त्र का प्रभाव भी अचूक है। अतः निश्चित रूप से साधक के प्रत्येक अभीष्ट की पूर्ति होती है। मन्त्र इस प्रकार है।
12..ॐ ह्रीं बगलामुखि! जगद्वशंकरी! मां बगले प्रसीद-प्रसीद मम सर्व मनोरथान पूरय-पूरय ह्रीं ॐ स्वाहा।
बगलामुखी साधना संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी।
बगलामुखी साधना का अनुष्ठान किसी गुरु अथवा विद्धान के निर्देशन में करें। गुरु दीक्षा प्राप्त साधक ही अनुष्ठान करें। अनुष्ठान काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें पीली वस्तुओं का उपयोग करें। आसन वस्त्र पीले हो पीले पुष्प पीला चंदन भोजन में एक वस्तु बेसन की या पीली हो।
सात्त्विक आहार करें।
साधना से पर्व गुरु गणपति हनुमान भैरव नवग्रह और पंच देवताओं की पूजा या स्मरण करें कुलदेवता इष्ट देवता स्थान देवता का भी स्मरण करें और आज्ञा लें।
बगलामुखी देवी के साथ हरिद्रा गणपति और स्वर्णाकर्षण भैरव भी विद्यमान रहते हैं। इन रूपों का भी स्मरण करें।
मंत्र जप के बाद शांति हेतु नारायण और शिव का स्मरण करें।
वेदों में इनका नाम बल्गामुखी दिया है। यह बगला जैसे मुख वाली देवी नहीं हैं। इस शक्ति की आराधना करने वाला साधक अ शत्रु को मनमाना कष्ट पहुँचा सकता है। और अपने ऊपर आए कष्टों का निवारण भी कर सकता है।
यों तो बगलामुखी देवी की उपासना से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। परन्तु परंतु परंतु विश्व विशेष रूप से शत्रु को वश में करने के लिए अधिकारी को अनुकूल बनाने के लिए अकारण अत्याचार कर रहा हो उसे रोकने के लिए बगलामुखी का अनुष्ठान सबसे उपयुक्त समझा जाता है। बगलामुखी मंत्रराज महान शक्तिशाली है।
बगलामुखी के हवन में दूध मिश्रित तिल एवं चावल से हवन करने से धन-सम्पत्ति ऐश्वर्य प्राप्त होता है। अशोक तथा कनेर के पत्तों द्वारा करें तो संतान सुख प्राप्त होता है। शहद चीनी से मीठा बनाया भुने चावल का लाजा द्वारा हवन से सब रोग दूर हो जाते हैं। गुग्गुल और तिल से हवन करने से जेल के बन्धन से भी मुक्त हो जाता है। साधक को चाहिए कि वे देवी के चित्र को एक चौकी पर पूर्व की ओर मुख करके स्थापित करें। विधि-विधान से पूजन करें। पवित्र स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। वस्त्र, आसन, माला, गन्ध अक्षत, पुष्प, फल, आदि सभी पीले रंग के होने चाहिए।
बगला यंत्र की स्थापना भी अवश्य करनी चाहिए। केसर चन्दन या हल्दी से तिलक करें। शांति कर्मों के लिए ईशान कोण की ओर बैठकर मंत्र जप करें, वशीकरण के लिए उत्तर की ओर, स्तम्भन के लिए पूर्व दिशा, विद्वेषण के लिए नैर्ऋत्य कोण, उच्चाटन में वायव्य कोण मारण में अग्नि कोण, धन प्राप्ति के लिए पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करना चाहिए। पुरश्चरण काल में भोजन भी पीले रंग क। ही करना होता है। केसर मिला दूध, पीले रंग के फल, बेसन के ल केसर मिली खीर, बूंदी, पूड़ी, हल्दी वाले शाक-सब्जी ग्रहण क ब्रह्मचर्य व्रत का पालन, भूमि पर शयन करें। साधना का आरंभ शुभ मुहूर्त पर्वकाल में करें।
2..श्री महामाया बगलामुखी स्तोत्रम्-
भगवती का यह एक गोपनीय स्तोत्र है। जो मानव देवी के इस मनोरथ का नित्यप्रति भक्तिपूर्वक पाठ करता है। अथवा या यंत्र की भुजा या कष्ट में धारण करता है। उसके वश में राजा, सर्प, मृगादि सकल पशु भी हो जाते हैं। पाठकर्ता साधक कि सभी शत्रुओं व दरिद्रता का नाश होकर स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
त्रिकाल इस स्तोत्र का पाठ करने वाला साधक भगवती के अनुग्रह से परमसिद्धि को प्राप्त करता है। तथा उस साधक की देवगण भी बन्दना पूजा करते हैं। इस पाठ को नित्य करने पर समस्त प्राप्य-अप्राप्य वस्तुएं सहज ही सुलभ हो जाती है। यह स्तोत्र त्रिलोक्य में परम दुर्लभ है। अतः पात्र एवं योग्य शिष्य को ही यह स्तोत्र बताना चाहिए गुरुद्रोही एवं अपात्र व्यक्ति के समक्ष इस रहस्यमय स्तोत्र को कदापि प्रकट नहीं करना चाहिए। श्रीवल्गा के यंत्र व चित्र का सम्यक् षोडशोपचार पूजन करने के उपरांत ही इस स्तोत्र का पाठ करें, स्मरण रखें कि पाठ भक्तिभाव एवं मधुरता से ही करना है।
विनियोग
ॐ अस्य श्रीबगलामुखी स्तोत्र मन्त्रस्य भगवान नारदऋषिः, महामाया बगलामुखी देवता ह्रीं बीजं, स्वाहा शक्तिः मम सम्मुखानां विमुखानां वाङ् मुख-स्तम्भनार्थं महामाया बगलामुखी प्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
ध्यानम्-
गंभीरां च मदोन्मत्तांस्वर्णकांतिसमप्रभाम्
चतुर्भुजांत्रिनयनांकमलासनसंस्थिताम् ।।
मुद्गर दक्षिणे पाशं वामे जिह्वां च कीलकम् ।
पीताम्बरधरांसान्द दृड़पीनपयोधराम्।।
हेम कुण्डलभूषां च पीत चन्द्रार्धशेखराम्।
पीतभूषण भूषांगीं स्वर्ण सिंहासनेस्थिताम्
ब्रह्मास्त्र स्तोत्रम्-
एवं ध्यात्वा तु देवेशीमरि स्तम्भनकारिणीम्।
महाविद्या महामाया साधकस्य वरप्रदाम् ।।
यस्याः स्मरण मात्रेण त्रैलोक्यं स्तम्भयेत् क्षणात्।
पीतवस्त्रां सुनेत्रां च द्विभुजां दाहकोज्ज्वलाम् ।।
शिल्प पर्वत हस्तां च रिपुकम्पां मदोत्कटाम्।
वैरि निर्दलनार्थाय स्मरेत् तां बगलामुखीम् ।।
मध्ये सुधाब्धि मणिमण्डप रत्नवेद्याम
सिंहासन-उपरिगतां परिपत वर्णाम
पीताम्बर आभरण माल्यं विभूषितांगीम्।
देवीं भजामि धृत मुद्गर वैरि जिह्वाम्।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं वामेन् शत्रून् परिपीडयन्तीम् । गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।
त्रिशूल धारिणीं अम्बां सर्वसौभाग्य दायिनीम् ।
सर्वश्रृंगार वेषाढ्यां देवीं ध्यायेत् प्रपूजयेत् ।।
चलत् कनक कुण्डल उल्लसित चारु गण्डस्थलां ।
लसत् कनक चम्पक द्युतिं इन्दु बिम्बाननाम् ।।
गदाहत विपक्षकां कलित लोलजिह्वां चलाम् ।
स्मरामि बगलामुखीं विमुख वाङ्-मुखस्तम्भिनीम्॥
पीयूषोदधि मध्य चारु विलसत् रत्न उज्ज्वले मण्डपे । यत् सिंहासन मौलि पातित रिपुं प्रेतासना ध्यासिनीम् ॥
स्वर्णाभां परिपीडितारि रसनां भ्राम्यद् गदां बिभ्रमां
इत्थं पश्यति यान्ति तस्य विलयं सद्योऽथ सर्वापदः ।।
देवि! त्वत् चरणाम्बुजे वितनुते यः पीत पुष्पांजलिम्।
मुद्रां वामकरे निधाय च पुनमन्त्री मनोज्ञाक्षरम् ।।
पीतध्यान परोऽथ कुंभक वशाद बीजं स्मरेत् पार्थिवं । तस्य अमित्रमुखस्य वाक्-गति-मति स्तम्भो भवेत्क्षणात्।।
मंत्रस्तावदलं विपक्षदलने स्तोत्रं पवित्रं च ते
यन्त्रं वादि नियन्त्रणं त्रिजगतां जैत्रं पवित्रं च तत्
मातः! श्रीबगलेति नाम ललितं यस्याऽस्ति जन्तोर्मुखे। तत्नाम ग्रहणेन संसदि मुखस्तम्भो भवेद् वादिनाम् ।।
वादी मूकतिरङ्कति क्षितिपतिः वैश्वानरः शीतति
क्रोधी शाम्यति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खञ्जति ।
गर्वी खर्वति सर्वविच्च जडति त्वत् यन्त्रणो यन्त्रितः। श्रीनित्ये! बगलामुखी! प्रतिदिनं कल्याणि! तुभ्यं नमः ॥
दुष्ट स्तम्भनं उग्रविघ्न शमनं दारिद्रय विद्रावण
भूभृत्-संगमनं च यत् मृगदृशां चेतः समाकर्षणम्
सौभाग्य एक निकेतनं मम दृशो कारुण्यपूर्णे क्षणे । मृत्योर्मारण माविरस्तु पुरतो मातः त्वदीयं वपुः ॥
मातः भञ्जय मत् विपक्ष वदनं जिह्वां च कीलय
ब्राह्मीं मुद्रय मुद्रया सुवदने! गौरांगी! पीताम्बरे
विघ्नौघं बगले! हर प्रतिदिनं कारुण्यपूर्णे क्षणे! |
त्वं विद्या परमा त्रिलोक जननी विघ्नौध-विच्छेदिनी ।।
योषाकर्षण कारिणी च समहत्-बंधैकसंच्छेदि
दुष्ट उच्चाटन कारिणी जनमतः सम्मोह संधायिनी
जिह्वा कीलन वैभवा विजयते बन्धने वारिमध्ये ।
विद्यावादे विवादे प्रकुपित नृपतौ दिव्यकाले निशायाम् ।।
वश्यत्वे स्तंभने वा रिपुवधसमये निर्विषत्वे रणे वा गच्छंस्तिष्ठस्त्रिकालं तव पठति शिवं प्राप्नुयादाशु धीर:
मात: भैरवी भद्रकाली विजये वाराही विश्वाश्रय
श्रीनित्ये त्रिगुणे महेशि। बगले कामेशि वामे रमे ।।
मातंगि। त्रिपुरे। परात्परे। स्वर्ग अपवर्ग प्रदे
दासोऽहं शरणागतः करुणया विश्वेश्वरि त्राहिमाम् ॥
यत् श्रुतं जप जप संख्यान चिन्तन परमेश्वरि ।
शत्रूणां स्तम्भनार्थाय तद्गृहाण नमोऽस्तु ते ।।
नित्यं स्तोत्र इद मनोरमतर देव्याः पठेत् सादरं
धृत्याय इदं तथैव समरे बाहवोर्गले वा करे ।।
राजानो वरघोषितोऽथ करिणः सर्प मृगेन्द्राः खलाः ।
ते ये यान्ति विमोहिता रिपुगणा लक्ष्मीः स्थिरा सर्वदा।।
अनुदिन-अभिरामं साधको यः त्रिकालम् पठति। भुवनमातुः पूज्यते देववर्यः भवति परमकृत्या ।।
तस्य तुष्टयैव लोके भवति परमसिद्धा लोकमाता पराम्बा विद्या लक्ष्मी सर्वसौभाग्यता च पुत्रा: सम्पत्-राज्यं इष्टार्थ सिद्धिः ।।
मानः श्रेयो वश्यता सर्वलोकेप्राप्ताऽप्राप्ता भूतले त्वत्परेण
वामे पाशांकुशा शक्तिं तस्याधस्तात् वरदं परशुं च ॥
एवं दक्षिणपाणि क्रमतः पद्माभयाक्ष-सूत्र-गदा-रसनानि ।
केयूरंगद कुण्डलभूषां बालहिमद्युति-रज्जित-मुकुटाम् ।।
तरुण आदित्य प्रतिकौशेयां प्रमुदित चित्तोल्ल सत्कान्तिम् पंच-प्रेत-समारूढां भक्तजनविविधकामवितरण-शीलाम्
इदं ब्रह्मास्त्र आख्यातं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् ।
गुरु-भक्ताय दातव्यं न देयं यस्य कस्यचित् ।।
1-श्री बगलामुखी पन्जर न्यास स्तोत्र
2-श्री श्री विश्वविजय बगलामुखी कवच
3-श्री बगलामुखी माला मंत्र कवच
4-श्री बगलामुखी वज्र पंजर कवच
5-श्री त्रैलोक्य विजय बगलामुखी कवच
1-श्रीबगलामुखी पन्जर न्यास स्तोत्र-
इस पञ्जर न्यास स्तोत्र का पाठ बगलामुखी देवी के किसी भी पाठ स्तोत्र जपादि से पूर्व करना चाहिए। इस स्तोत्र का पाठ करने पर साधक के चारों ओर साक्षात् माँ भगवती पीताम्बरा का अभेद्य कवच बन जाता है। उसके स्मरण मात्र से ही शत्रुओं की गति, मति, वाचा और बुद्धि) स्तम्भित हो जाते हैं।
अथ पञ्जरन्यासस्तोत्रम्
बगला पूर्वतो रक्षेद् आग्नेय्यां च गदाधरी। ।
वायव्ये च मदोन्मत्ता कौवेयां च त्रिशूलिनी !!१ ॥
ब्रह्मास्त्रदेवता पातु ऐशान्यां सततं मम ।
संरक्षेन् मां तु सततं पाताले स्तब्धमातृका ॥२॥
ऊर्ध्वं रक्षेन्महादेवी जिह्वास्तम्भनकारिणी।
पीताम्बरा दक्षिणे च स्तम्भिनी चैव नैर्ऋते ॥ ३ ॥
जिह्वाकीलिन्यतो रक्षेत् पश्चिमे सर्वदा हि माम्।
एवं दश दिशो रक्षेद् बगला सर्वसिद्धिदा ॥४॥
एवं न्यासविधिं कृत्वा यत् किञ्चिज्जपमाचरेत् ।
2-श्री बगलामुखी माला मंत्र कवच
विनियोग-
अस्य श्री ब्रह्मास्त्र विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नमः शिरसि । त्रिष्टुप छन्दसे नमो मुखे । श्री बगलामुखी देवतायै नमो हृदये। ह्रीं बीजाय नमो गुह्य स्वाहा शक्तये नमः पादयोः । ॐ नमः सर्वांग श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्ध यर्थ न्यासे विनियोगः ।
आवाहन-
ऊं ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल – मनो रिणि अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरु सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा ।
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम् हेमांबांगरुचि शशांकमुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम् हस्तैर्मुद्गर पाशवचरसना सम्बिभ्रती भूषणे व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनो चिन्तयेत् ।
ऊं ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वांकीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।
मन्त्र-
ओम् नमो भगवति ओम् नमो वीरप्रतापविजयमंगभवति • बगलामुखी मम सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय ब्लीमुद्रय मुद्रय बुद्धिं विनाशय विनाशय अपरबुद्धि कुरु कुरु आत्मविरोधिनां शत्रुणां शिरो, ललाट मुख, नेत्र, कर्ण नासिकोरु, पद अणअण, दन्तोष्ठ, जिह्वा, तुल गुह्मा, गुदा, कटि, जानु, सर्वांगिषु केशादिपादपर्यन्तं पादादिकेशपर्यन्तं स्तम्भय स्तम्भय खें खीं मार मारय, परमन्त्र, परयन्त्र, परतन्त्राणि छेदय, छेदय आत्ममन्त्रतन्त्राणि रक्ष रक्ष, ग्रहं निवारय, व्याधि विनाशय विनाशय दुःख हर हर दारिद्र्यं निवारय निवारय सर्वमन्त्रस्वरूपिणि, दुष्टग्रह, भूतग्रह, पाषाणग्रह, सर्वचाण्डालग्रह, किन्नरकिम्पुरुषग्रह भूतप्रेत, पिशाच, शाकिनी, डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशां बन्धव बन्धय, वार्तालि मां रक्ष रक्ष, दक्षिण दिशां बन्धय बन्धय, किरातवार्तालि मां रक्ष रक्ष पश्चिमदिशां बन्धय बन्धय, स्वप्नवार्तालि मां रक्ष रक्ष उर्ध्वदिशां बन्धय बन्धय उग्रकालि मां रक्ष रक्ष, पाताल दिशां बन्धय बन्धय बगला परमेश्वरी मां रक्ष रक्ष सकल रोगान् विनाशय विनाशय, शत्रु पलायनाम् जप प्रयोजनमध्ये राजजनस्त्रीवशां कुरु, कुरु, शत्रुन् दह दह, पच पच, स्तम्भय, स्तम्भय मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, मम शत्रून् उच्चाटय उच्चाटय हुं फट् स्वाहा ।
यह बगलामुखी माला मंत्र अपने आप में पूर्ण हैं। जो साधक नित्य इसका पाठ करता है उसके जीवन में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती।
3-विश्वविजय बगलामुखी कवच-पाठ
शिरो मेंपातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातुं ललाटकम । सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्रीबगलानने ।। १
श्रुतौ मम रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् ।
पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।। २
देहिद्वन्द्वं सदा जिह्वां पातु शीघ्रं वचो मम ।
कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।। ३
कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम ।
मायायुक्ता तथा स्वाहा, हृदयं पातु सर्वदा ।। ४
अष्टाधिक चत्वारिंशदण्डाढया बगलामुखी ।
रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेरण्ये सदा मम ।। ५
ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु ।
मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।। ६
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलावतु ।
मुखिवर्णद्वयं पातु लिंग मे मुष्क-युग्मकम् ।। ७
जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम् ।
वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी ।। ८
जंघायुग्मे सदा पातु बगला रिपुमोहिनी ।
स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रयं मम ।। ९
जिह्वावर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च ।
पादोर्ध्व सर्वदा पातु बुद्धिं पाद तले मम् !!१० !!
विनाशयपदं पातु पादांगुल्योर्नखानि मे ।
ह्मीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिान्द्रयवचासिम ।। ११
सर्वांगं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मेवतु ।
ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।। १२
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेवतु ।
कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।। १३
वाराही चोत्तरे पातु नारसिंही शिवेवतु ।
ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदावतु ।। १४
इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः ।
राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः ।। १५
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु ।
द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरण।।16
योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम ।
इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।। १७
4-श्री बगला मुखी वज्र पंजर स्तोत्र-
विनियोग:- ॐ अस्य श्रीमद् बगलामुखी पीताम्बरा पञ्जररूप स्तोत्र मन्त्रस्य भगवान नारद ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, जगदूवश्यकरी श्री पीताम्बरा बगलामुखी देवता, हल्रीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, क्लीं कीलकं मम परसैन्य मन्त्र-तन्त्र यन्त्रादि कृत्य क्षयार्थं श्री पीताम्बरा बगलामुखी देवता प्रीत्यर्थे च जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यास-
भगवान नारद ऋषये नमः शिरसि ।
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे।
जगवश्यकरी श्री पीताम्बरा बगलामुखी देवतायै नमः हृदये।
हल्रीं बीजाय नमः दक्षिणस्तने ।
स्वाहा शक्तिये नमः वामस्तने ।
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ ।
करन्यास*
लां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
हलीं तर्जनीभ्यां स्वाहा।
हलूं मध्यमाभ्यां वषट् ।
हलैं अनामिकाभ्यां हूं।
हल्रौंं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् ।
हलृं करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्
अंगन्यास-
हलां हृदयाय नमः ।
हलीं शिरसे स्वाहा ।
हळू शिखायै वषट् ।
हलैं कवचाय हुं
हलौं नेत्र त्रयाय वौषट् ।
हलृं । ह्लं अस्त्राय फट् ।
व्यापक न्यास : ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ बगलामुखि तर्जनीभ्यां स्वाहा । ॐ सर्व दुष्टानां मध्यमाभ्यां वषट् । ॐ वाचं मुखं पदं स्तम्भय अनामिकाभ्यां हु। ॐ जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् । ॐ बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा करतल कर पृष्ठाभ्यां फट्।
इसी प्रकार मूल मन्त्र से अंगन्यास करें ॐ ह्लीं हृदयाय नमः।
ॐ बगलामुखि शिरसे स्वाहा।
ॐ सर्वदुष्टानां शिखायै वषट् ।
ॐ वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम्
ॐ जिह्वां कीलय नेत्र-त्रयाय वौषट् ।
ॐ बुद्धिं विनाशय स्त्रीं ॐ स्वाहा, अस्त्राय फट् ।
ध्यान-
मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्नवेद्यां,
सिंहासनों परिगतां परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरण- माल्य-विभूषितांगी,
देवीं स्मरामि धृत-मुद्गर-वैरि-जिह्वां ।
इसके उपरान्त मानस पूजा करें -
श्री पीताम्बरायै नमः लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि।
श्री पीताम्बरायै नमः हं आकाशात्मक पुष्पंपरिकल्पयामि।
श्री पीताम्बरायै नमः यं वायव्यात्मकं धूपं परिकल्पयामि।
श्री पीताम्बरायै नमः वं अमृतात्मकं नैवेद्यं परिकल्पयामि
इसके उपरान्त महामाया को योनिमुद्रा से प्रणाम करके स्तोत्र का पाठ करें
बगलामुखी बज्रपञ्जर स्तोत्र-
पञ्जरं तत्प्रवक्ष्यामि देव्याः पापप्रणाशनम् ।
यं प्रविश्य न बाधन्ते बाणैरपि नराः क्वचित ॥१॥
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं श्रीमत् पीताम्बरा देवी, बगला बुद्धि वर्द्धिनी । पातु मामनिशं साक्षात् सहस्रार्क समद्युति ॥२॥
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं शिखादि-पाद - पर्यन्तं, वज्र-पञ्जर-धारिणी। ब्रह्मास्त्र - संज्ञा या देवी, पीताम्बरा विभूषिता ॥३॥
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं श्री बगला यवत्वत्र, चोधर्व- भागं महेश्वरी । कामांकुशाकला पातु, बगला शास्त्र बोधिनी ॥ ४ ॥
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं पीताम्बरा सहस्राक्षा ललाटं कामितार्थदा । पातु मां बगला नित्यं, पीताम्बर सुधारिणी ॥५॥
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं कर्णयोश्चैव युग पदति-रत्न प्रपूजिता ।
पातु मां बगला देवी, नासिकां मे गुणाकर ॥६॥
ॐ ऐं ह्ललीं श्रीं पीतपुष्पै पीतवस्त्रै पूजिता वेददायिनी
पातु मामले बगला नित्यं ब्रहम विष्णवादि सेवियां !!७!!
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं पीताम्बरा प्रसन्नास्या, नेत्रयोर्युग-पद्- ध्रुवौ । पातु मां बगला नित्यं, बलदा पीत वस्त्र धृक् ॥ ८ ॥
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं अधरोष्ठौ तथा दन्तान्, जिह्वां च मुखगां मम । पातु मां बगला देवी, पीताम्बर सुधारिणी ॥९॥
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं गले हस्ते तथा वाह्वोः, युग पद्- बुद्धिदा- सताम् ।
पातु मां बगला देवी, दिव्य-स्रगनुलेपना ॥१०॥
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं हृदये च स्तनौ नाभौ करावपि कृशोदरी । पातु मां बगला नित्यं, पीत वस्त्र घनावृता ॥ ११ ॥
जङ्घायां च तथा चोर्वोः गुल्फयोश्चाति-वेगिनी। अनुक्तमपि यत् स्थानं, त्वक् - केश- नख लोमकम् ॥ १२
असृङ मांस तथाऽस्थीनी, सन्धयश्चापि मे परा।
ताः सर्वाः बगला देवी, रक्षेन्मे च मनोहरा ॥१३॥
इत्येतद् वरदं गोप्यं कलावपि विशेषतः पञ्जरं बगला देव्याः घोर दारिद्र्य नाशनम् ।
पञ्जरं यः पठेत् भक्त्या स विघ्नैर्नाभिभूतये ॥ १४॥
अव्याहत गतिश्चास्य ब्रह्मविष्णवादि सत्पुरे ।
स्वर्गे मर्त्ये च पाताले नाऽरयस्तं कदाचन ॥ १५ ॥
न बाधन्ते नरव्याघ्र पञ्जरस्थं कदाचन ।
अतो भक्तैः कौलिकैश्च स्वरक्षार्थं सदैव हि ॥ १६ ॥
पठनीयं प्रयत्नेन सर्वानर्थ विनाशनम्।
महा दारिद्र्य शमनं सर्वमांगल्यवर्धनम्॥१७॥
विद्या विनय सत्सौख्यं महासिद्धिकरं परम् ।
इदं ब्रह्मास्त्रविद्यायाः पञ्जरं साधु गोपितम् ॥ १८ ॥
पठेत् स्मरेत् ध्यानसंस्थः स जयेन्मरणं नरः ।
यः पञ्जरं प्रविश्यैव मन्त्रं जपति वै भुवि ॥ १९ ॥
कौलिकोऽकौलिको वापि व्यासवद् विचरेद् भुवि । चन्द्रसूर्य समोभूत्वा वसेत् कल्पायुतं दिवि ॥२०॥
श्री सूत उवाच-
इति कथितमशेषं श्रेयसामादिबीजम् । भवशत दुरितघ्नं ध्वस्तमोहान्धकारकम् । स्मरणमतिशयेन प्राप्तिरेवात्र मर्त्यः | पञ्जरन्यासस्तोत्रम्
यदि विशति सदा वै पञ्जर पण्डितः स्यात् ॥ २१ ॥ || इति परम रहस्याति रहस्ये पीताम्बरा पञ्जर स्तोत्रम् ॥
5-श्रीत्रैलोक्य विजय बगलामुखी कवच स्तोत्र-
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि स्व-रहस्यं च कामदम् ।
श्रुत्वा गोप्यं गुप्ततमं कुरु गुप्तं सुरेश्वरि ॥ १ ॥
कवचं बगलामुख्याः सकलेष्टप्रदं कलौ ।
तत्सर्वस्वं परं गुह्यं गुप्तं च शरजन्मना ॥ २ ॥
त्रैलोक्य-विजयं नाम कवचेशं मनोरमम् ।
मन्त्र - गर्भं ब्रह्ममयं सर्व- विद्या विनायकम् ॥ ३ ॥
रहस्यं परमं ज्ञेयं साक्षाद्-मृतरुपकम् ।
ब्रह्मविद्यामयं वर्म सर्व विद्या विनायकम् ।। ४ ।।
पूर्णमेकोनपञ्चाशद् वर्णैरुक्त महेश्वरि ।
त्वद्भक्त्या वच्मि देवेशि गोपनीयं स्वयोनिवत् ॥ ५
।। श्री देव्युवाच ।।
भगवन् करुणासार विश्वनाथ सुरेश्वर ।
कर्मणा मनसा वाचा न वदामि कदाचन् ।। १ ।।
।। श्री भैरव उवाच ॥
त्रैलोक्य विजयाख्यस्य कवचास्यास्य पार्वति ।
मनुगर्भस्य गुप्तस्य ऋषिर्देवोऽस्य भैरवः ।। १ ।। उष्णिक्-छन्दः समाख्यातं देवी श्रीबगलामुखी ।
बीजं ह्रीं ॐ शक्तिः स्यात् स्वाहा कीलकमुच्यते ॥ २॥
विनियोगः समाख्यातः त्रिवर्ग-फल-प्राप्तये ।
देवि त्वं पठ वर्मैतन्मन्त्र-गर्भं सुरेश्वरि ॥ ३ ॥
बिनाध्यानं कुतः सिद्धि सत्यमेतच्च पार्वति । चन्द्रोद्भासितमूर्धजां रिपुरसां मुण्डाक्षमालाकराम्,!!४!!
बालांसत्स्रकचञ्चलां मधुमदां रक्तां जटाजूटिनीम्
शत्रु-स्तम्भन-कारिणीं शशिमुखींपीताम्बरोद्भासिनीम् ॥ ५
॥ प्रेतस्थां बगलामुखीं भगवतीं कारुण्यरुपां भजे ।
ॐ ह्लीं मम शिरः पातु देवी श्रीबगलामुखी ॥ ६ ॥
ॐ ऐं क्लीं पातु मे भालं देवी स्तम्भनकारिणी ।
ॐ अं इं हं भ्रुवौ पातु क्लेशहारिणी ॥ ७ ॥
ॐ हं पातु मे नेत्रे नारसिंही शुभंकरी ।
ॐ ह्लीं श्रीं पातु मे गण्डौ अं आं इं भुवनेश्वरी ।। ८ ।
ॐ ऐं क्लीं सौः श्रुतौ पातु इं ईं ऊं च परेश्वरी।
ॐ ह्रीं ह्रूं ह्नीं सदाव्यान्मे नासां ह्नीं सरस्वती ॥ ९
ॐ ह्रां ह्रीं मे मुखं पातु लीं इं ईं छिन्नमस्तिका ।
ॐ श्री वं मेऽधरौ पातु ओं औं दक्षिणकालिका ।१० ।।
ॐ क्लीं श्रीं शिरसः पातु कं खं गं घं च सारिका ।
ॐ ह्रीं हूं भैरवी पातु ङं अं अः त्रिपुरेश्वरी ।। ११ ।।
ॐ ऐं सौः मे हनुं पातु चं छं जं च मनोन्मनी ।
ॐ श्रीं श्रीं मे गलं पातु झं जं टं ठं गणेश्वरी ।। १२ ।।
ॐ स्कन्धौ मेऽव्याद् डं ढं णं हूं हूं चैव तु तोतला ।
ॐ ह्रीं श्रीं मे भुजौ पातु तं थं दं वर-वर्णिनी ।। १३ ।।
ऐं क्लीं सौः स्तनौ पातु धं नं पं परमेश्वरी ।
क्रों क्रों मे रक्षयेद् वक्षः फं बं भं भगवासिनी ॥ १४
ॐ ह्रीं रां पातु कक्षि मे मं यं रं वह्नि-वल्लभा ।
ॐ श्रीं हूं पातु मे पार्श्वों लं बं लम्बोदर प्रसूः ।। १५ ।।
ॐ श्रीं ह्रीं हूं पातु मे नाभि शं षं षण्मुख-पालिनी ।
ॐ ऐं सौः पातु मे पृष्ठं सं हं हाटक-रुपिणी ॥ १६ ॥
ॐ क्लीं ऐं कटि पातु पञ्चाशद्-वर्ण-मालिका ।
ॐ ऐं क्लीं पातु मे गुह्यं अं आं कं गुह्यकेश्वरी ।। १७
ॐ श्रीं ऊं ऋ सदाव्यान्मे इं ईं खं खां स्वरुपिणी ।
ॐ जूं सः पातु मे जंघे रुं रुं धं अघहारिनी ।। १८ ।।
श्रीं ह्रीं पातु मे जानू उं ऊं गं गण-वल्लभा ।
ॐ श्रीं सः पातु मे गुल्फौ लिं लीं ऊं चं च चण्डिका।। १९ ।।
ॐ ऐं ह्रीं पातु मे वाणी एं ऐं छं जं जगत्प्रिया ।
ॐ श्रीं क्लीं पातु पादौ मे झं जं टं ठं भगोदरी ।। २०
ॐ ह्रीं सर्वं वपुः पातु अं अः त्रिपुर-मालिनी ।
ॐ ह्रीं पूर्वे सदाव्यान्मे झं झां डं ढं शिखामुखी ॥२१ ।।
ॐ सौः याम्यं सदाव्यान्मे इं ईं णं तं च तारिणी ।
ॐ वारुण्यां च वाराही ऊं थं दं धं च कम्पिला ॥ २२
ॐ श्रीं मां पातु चैशान्यां पातु ॐ नं जनेश्वरी ।
ॐ श्रीं मां चाग्नेयां ॠभं मं धंच यौगिनी ।। २३ ।।
ॐ ऐं मां नैऋत्यां लूं लां राजेश्वरी तथा
ॐ श्रीं पातु वायव्यां लूं लं वीतकेशिनी ।
ॐ प्रभाते च मो पातु लीं लं वागीश्वरी सदा ।। २४ ।।
ॐ मध्याह्ने च मां पातु ऐं क्षं शंकर-वल्लभा ।
श्रीं ह्रीं क्लीं पातु सायं ऐ आं शाकम्भरी सदा ।। २५ ॥
ॐ ह्रीं निशादौ मां पातु ॐ सं सागरवासिनी ।
क्लीं निशीथे च मां पातु ॐ हं हरिहरेश्वरी ॥ २६ ।।
क्लीं ब्राह्मे मुहूर्तेऽव्याद लं लां त्रिपुर-सुन्दरी ।
विसर्गा तु यत्स्थानं वर्जित कवचेन तु ।। २७ ।।
क्लीं तन्मे सकलं पातु अं क्षं ह्नीं बगलामुखी ।
इतीदं कवचं दिव्यं मन्त्राक्षरमय परम् ।। २८ ।।
त्रैलोक्यविजयं नाम सर्व-वर्ण-मयं स्मृतम् ।
अप्रकाश्यं सदा देवि श्रोतव्यं च वाचिकम् ।। २९ ।।
दुर्जनायाकुलीनाय दीक्षाहीनाय पार्वति ।
न दातव्यं न दातव्यमित्याज्ञा परमेश्वरी ॥ ३० ॥
दीक्षाकार्य विहीनाय शक्ति-भक्ति विरोधिने ।
कवचस्यास्य पठनात् साधको दीक्षितो भवेत् ॥३१ ।।
कवचेशमिदं गोप्यं सिद्ध-विद्या-मयं परम् ।
ब्रह्मविद्यामयं गोप्यं यथेष्टफलदं शिवे ।। ३२ ।।
न कस्य कथितं चैतद् त्रैलोक्य विजयेश्वरम् ।
अस्य स्मरण-मात्रेण देवी सद्योवशी भवेत् । ३३ ।।
पठनाद् धारणादस्य कवचेशस्य साधकः ।
कलौ विचरते वीरो यथा श्रीबगलामुखी ।। ३४ ।।
इदं वर्म स्मरन् मन्त्री संग्रामे प्रविशेद् यदा |
युयुत्सुः पठन् कवचं साधको विजयी भवेत् ।। ३५
शत्रुं काल-समानं तु जित्वा स्वगृहमेति सः ।
मूर्ध्नि धृत्वा यः कवचं मन्त्र-गर्भं सुसाधकः ।। ३६ ।।
ब्रह्माद्यमरान् सर्वान् सहसा वशमानयेत् ।
धृत्वा गले तु कवचं साधकस्य महेश्वरि ।। ३७ ।।
वशमायान्ति सहसा रम्भाद्यप्सरसां गणाः ।
उत्पातेषु घोरेषु भयेषु विवधेषु च ।। ३८ ।।
रोगेषु च कवचेशं मन्त्रगर्भं पठेन्नरः ।
कर्मणा मनसा वाचा तद्भयं शान्तिमेष्यति ॥ ३९ ॥
श्रीदेव्या बगलामुख्याः कवचेशं मयोदितम् ।
त्रैलोक्य - विजयं नाम पुत्रपौत्र धनप्रदम् ।। ४० ।
ऋणं च हस्ते सम्यक् लक्ष्मीर्भोगविवर्धिनी ।
बन्ध्या जनयते कुक्षौ पुत्र-रत्नं न चान्यथा ।। ४१ ।।
मृतवत्सा च विभृयात् कवचं च गले सदा । दीर्घायुर्व्याधिहीनश्च तत्पुत्रो वर्धतेऽनिशम् ।। ४२ ।।
इतीदं बगलामुख्याः कवचेशं सुदुर्लभम् ।
त्रैलोक्य-विजयं नाम न देयं यस्यकस्यचित् ।। ४३ ||
अकुलीनाय मूढाय भक्तिहीनायदम्भिने ।
लोभयुक्ताय देवेशि न दातव्यं कदाचन् ।। ४४ ।।
लोभ-दम्भ-विहीनाय कवचेशं प्रदीयताम् ।
अभक्तेभ्यो अपुत्रेभ्यो दत्वा कुष्ठी भवेन्नरः ।। ४५ ।।
रवौ रात्रौ च सुस्नातः पूजागृहगतः सुधीः ।
दीपमुज्ज्वाल्य मूलेन पठेद्वर्मेदमुत्तमम् ।। ४६ ।।
प्राप्तौ सत्यां त्रिरात्रौ हि राजा तद्-गृहमेष्यति ।
मण्डलेशो महेशानि देवि सत्यं न संशय ।। ४७ ।।
इदं तु कवचेशं तु मया प्रोक्त नगात्मजे ।
गोप्यं गुह्यतरं देवि गोपनीयं स्वयोनिवत् ।। ४८ ।।
।।श्री विश्वयामले बगलामुख्यास्त्रैलोक्यविजयं।।
बगलामुखी चालीसा पाठ-
॥ दोहा ||
सिर नवाइ बगलामुखी,लिखूं चालीसा आज ॥
कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय श्री बगला माता ।
आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥
बगला सम तब आनन माता ।
एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥
शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी ।
असतुति करहिं देव नर-नारी ॥
पीतवसन तन पर तव राजै ।
हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ॥ 4 ॥
तीन नयन गल चम्पक माला ।
अमित तेज प्रकटत है भाला ॥
रत्न-जटित सिंहासन सोहै ।
शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥
आसन पीतवर्ण महारानी ।
भक्तन की तुम हो वरदानी ॥
पीताभूषण पीतहिं चन्दन ।
सुर नर नाग करत सब वन्दन ॥ 8 ॥
एहि विधि ध्यान हृदय में राखै ।
वेद पुराण संत अस भाखै ॥
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा ।
जाके किये होत दुख-नाशा ॥
प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै ।
पीतवसन देवी पहिरावै ॥
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन ।
अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ॥ 12 ॥
माल्य हरिद्रा अरु फल पाना ।
सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ॥
धूप दीप कर्पूर की बाती ।
प्रेम-सहित तब करै आरती ॥
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे ।
पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ॥
मातु' भगति तब सब सुख खानी ।
करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥ 16 ॥
तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ॥
बार-बार मैं बिनवडुं तोहीं ।
अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ॥
पूजनांत में हवन करावै ।
त्रिविध ताप सब दुख नशावहु ।
सा नर मनवांछित फल पावै ॥
सर्षप होम करै जो कोई ।
ताके वश सचराचर होई ॥ 20 ॥
तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै ।
भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥
दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई ।
निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥
फूल अशोक हवन जो करई ।
ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ॥
फल सेमर का होम करीजै ।
निश्चय वाको रिपु सब छीजै ॥ 24 ॥
गुग्गुल घृत होमै जो कोई ।
तेहि के वश में राजा होई ॥
गुग्गुल तिल संग होम करावै ।
ताको सकल बंध कट जावै ॥
बीजाक्षर का पाठ जो करहीं ।
बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ॥
एक मास निशि जो कर जापा ।
तेहि कर मिटत सकल संतापा ॥ 28 ॥
घर की शुद्ध भूमि जहं होई ।
साध्का जाप करै तहं सोई ॥
सेइ इच्छित फल निश्चय पावै ।
यामै नहिं कदु संशय लावै ॥
अथवा तीर नदी के जाई ।
साधक जाप करै मन लाई ॥
दस सहस्र जप करै जो कोई ।
सक काज तेहि कर सिधि होई ॥ 32 ॥
जाप करै जो लक्षहिं बारा ।
ताकर होय सुयशविस्तारा ॥
जो तव नाम जपै मन लाई ।
अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ॥
सप्तरात्रि जो पापहिं नामा ।
वाको पूरन हो सब कामा ॥
नव दिन जाप करे जो कोई ।
व्याधि रहित ताकर तन होई ॥ 36 ॥
करै जो बन्ध्या नारी ।
पावै पुत्रादिक फल चारी ॥
प्रातः सायं अरु मध्याना ।
धरे ध्यान होवैकल्याना ॥
कहं लगि महिमा कहौं तिहारी ।
नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥
पाठ करै जो नित्या चालीसा ।
तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥ 40 ॥
॥ दोहा ||
सन्तशरण को तनय हूं,
कुलपति मिश्र सुनाम । हरिद्वार मण्डल बसूं, धाम हरिपुर ग्राम ॥ उन्नीस सौ पिचानबे सन् की, श्रावण शुक्ला मास । चालीसा रचना कियौ, तव चरणन को दास ॥
श्री पीताम्बरा बगलामुखी अष्टोत्तरशतनाम
( माता बगलामुखी देवी के 108 नाम)
१ ॐ बगलायै नमः ।
२ ॐ विष्णुवनितायै नमः ।
३ ॐ विष्णुशङ्करभामिन्यै नमः ।
४ ॐ बहुलायै नमः ।
५ ॐ वेदमात्रे नमः ।
६ ॐ महाविष्णुप्रसूत्यै नमः
७ ॐ महामत्स्यायै नमः ।
८ ॐ महाकूर्मायै नमः ।
९ ॐ महावाराहरूपिण्यै नमः ।
१० ॐ नरसिंहप्रियायै नमः ।
११ ॐ रम्यायै नमः ।
१२ ॐ वामनायै नमः ।
१३ ॐ बटुरूपिण्यै नमः ।
१४ ॐ जामदग्न्यस्वरूपायै नमः ।
१५ ॐ रामायै नमः ।
१६ ॐ रामप्रपूजितायै नमः ।
१७ ॐ कृष्णायै नमः ।
१८ ॐ कपर्दिन्यै नमः ।
१९ ॐ कृत्यायै नमः ।
२० ॐ कलहायै नमः ।
२१ ॐ कलकारिण्यै नमः ।
२२ ॐ बुद्धिरूपायै नमः ।
२३ ॐ बुद्धभार्यायै नमः ।
२४ ॐ बौद्धपाखण्डखण्डिन्यै नमः
२५ ॐ कल्किरूपायै नमः ।
२६ ॐ कलिहरायै नमः ।
२७ ॐ कलिदुर्गतिनाशिन्यै नमः ।
२८ ॐ कोटिसूर्यप्रतीकाशायै नमः ।
२९ ॐ कोटीकन्दर्प मोहिन्यै नमः
३० ॐ केवलायै नमः । नमः।
३१ ॐ कठिनायै नमः ।
३२ ॐ काल्यै नमः ।
३३ ॐ कलायै नमः ।
३४. ॐ कैवल्यदायिन्यै नमः
३५ ॐ केशव्यै नमः ।
३६ ॐ केशवाराध्यायै नमः ।
३७ ॐ किशोर्यै नमः ।
३८ ॐ केशवस्तुतायै नमः
३९ ॐ रुद्ररूपायै नमः ।
४० ॐ रुद्रमूर्त्यै नमः ।
४१ ॐ रुद्राण्यै नमः ।
४२ ॐ रुद्रदेवतायै नमः ।
४३ ॐ नक्षत्ररूपायै नमः ।
४४ ॐ नक्षत्रायै नमः ।
४५ ॐ नक्षत्रेशप्रपूजितायै नमः । ।
४६ ॐ नक्षत्रेशप्रियायै नमः
४७ ॐ नित्यायै नमः ।
४८ ॐ नक्षत्रपतिवन्दितायै
४९ ॐ नागिन्यै नमः ।
५० ॐ नागजनन्यै नमः ।
५१ ॐ नागराजप्रवन्दितायै नमः
५२ ॐ नागेश्वर्यै नमः ।
५३ ॐ नागकन्यायै नमः
५४ ॐ नागर्यै नमः ।
५५ ॐ नगात्मजायै नमः ।
५६ ॐ नगाधिराजतनयायै नमः ।
५७ ॐ नगराजप्रपूजितायै नमः।
५८ ॐ नवीननीरजायै नमः ।
५९ ॐ पीतायै नमः ।
६०ॐ श्यामायै नमः ।
६१ ॐ सौन्दर्यकारिण्यै नमः।
६२ ॐ रक्तायै नमः ।
६३ ॐ नीलायै नमः ।
६४ ॐ घनायै नमः ।
६५ ॐ शुभायै नमः ।
६६ ॐ श्वेताये नमः ।
६७ ॐ, सौभाग्यदायिन्यै नमः ।
६८ ॐ सुन्दर्यै
६९ ॐ सौभगायै नमः ।
७० ॐ सौम्यायै नमः ।
७१ ॐ स्वर्णभायै नमः ।
७२ ॐ स्वर्गतिप्रदायै नमः ।
७३ ॐ रिपुत्रासकर्यै नमः ।
७४ ॐ रेखायै नमः ।
७५ ॐ शत्रुसंहारकारिण्यै नमः ।
७६ ॐ भामिन्यै नमः ।
७७ ॐ मायायै नमः ।
७८ ॐ स्तम्भिन्यै नमः ।
७९ ॐ मोहिन्यै नमः ।
८० ॐ शुभायै नमः ।
८१ ॐ रागद्वेषकर्यै नमः ।
८२ ॐ रात्र्यै नमः ।
८३ ॐ रौरवध्वंसकारिण्यै नमः ।
८४ ॐ यक्षिण्यै नमः ।
८५ ॐ सिद्धनिवहायै नमः ।
८६ ॐ सिद्धेशायै नमः ।
८७ ॐ सिद्धिरूपिण्यै नमः ।
८८..ॐ लंकापतिध्वंसकर्यै नमः ।
८९ ॐ लंकेशरिपुवन्दितायै नमः ।
९० ॐ लंकानाथकुलहरायै नमः ।
९१ ॐ महारावणहारिण्यै नमः।
९२ ॐ देवदानवसिद्धौध पूजितायै नमः ।
९३ ॐ परमेश्वर्यै नमः ।
९४ ॐ पराणुरूपायै नमः ।
९५ ॐ परमायै नमः ।
९६ ॐ परतन्त्रविनाशिन्यै नमः ।
९७ॐ वरदायै नमः ।
९८ ॐ वरदाराध्यायै नमः ।
९९ ॐ वरदानपरायणायै नमः ।
१०० ॐ वरदेशप्रियायै नमः ।
१०१ ॐ वीरायै नमः ।
१०२ ॐ वीरभूषणभूषितायै नमः ।
१०३ ॐ वसुदायै नमः ।
१०४ ॐ बहुदायै नमः ।
१०५ ॐ वाण्यै नमः ।
१०६ ॐ ब्रह्मरूपायै नमः ।
१०७ ॐ वराननायै नमः ।
१०८ ॐ बलदायै नमः ।
१०९ ॐ पीतवसनायै नमः ।
११० ॐ पीतभूषणभूषितायै नमः ।
१११ ॐ पीतपुष्पप्रियायै नमः ।
११२ ॐ पीतहारायै नमः ।
११३ ॐ पीतस्वरूपिण्यै नमः ।
११४ॐ पीत लक्ष्म्यै नमः।
११५ ॐ पीताम्बरा वैष्णव्यै नमः।
॥श्रीबगलाष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णा ॥
जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411