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ज्योतिष के अनुसार मुहूर्त योग
ज्योतिष के अनुसार मुहूर्त योग -
मुहूर्त के संदर्भ में वार, तिथि और नक्षत्र का अपना महत्व है । परन्तु इन तीनों के योग से जो मुहूर्त बनता है उसका विशेष महत्व है इसका कारण यह है । कि जब हम वार, तिथि और नक्षत्र में से किसी एक के पक्ष से शुभ अथवा अशुभ समय का विचार करते हैं । तो कई उत्तरदायी कारक पीछे छूट जाते हैं. परन्तु तीनों के योग के आधार पर जब विचार करते हैं । तो ऎसा नहीं होता और हम अधिकतर महत्वपूर्ण कारको को ध्यान में रखकर शुभ मुहूर्त निकाल पाते हैं। इसलिए किसी कार्यक्रम अथवा समारोह के लिए शुभ मुहूर्त का चुनाव तभी करना करना चाहिए जब वार, तिथि और नक्षत्र तीनों पक्ष में.हो ।
तिथि और वार का शुभ योग -
अमृत योग -रविवार व मंगलवार को जब नन्दा तिथि , सोमवार व शुक्रवार को भद्रा तिथि, बुधवार को जया तिथि, गुरुवार को रिक्ता तथा शनिवार को पूर्णा तिथि पड़ रही हो तो अमृ्त योग बनता है।
सिद्ध योग -जब शुक्रवार को नन्दा तिथि, बुधवार को भद्रा तिथि, मंगलवार को जया तिथि , शनिवार को रिक्ता तिथि तथा गुरुवार को पूर्णा तिथि पड़ रही हो तो सिद्ध योग बनता है।
तिथि और वार का अशुभ योग -
दुग्ध योग -जब रविवार को 12वीं तिथि पड़ रही हो, सोमवार को 11वीं तिथि पड़ रही हो, मंगलवार को 5 वीं तिथि पड़ रही हो, बुधवार को दूसरी व तीसरी तिथि हो, गुरुवार को 6 वीं तिथि हो तथातिथि को शनिवार को 9वीं तिथि पड़ रही हो तो दुग्ध योग बनता है़ ।
काक्रच योग -जब शनिवार को 6वीं तिथि हो तो करकक्षा योग बनता हैं इस योगेव्यक्ति को अच्छा फल नहीं मिलता है़ ।
समवर्तक योग - बुधवार को पहली तिथि हो तथा रविवार को 7 वीं तो समवर्तक योग बनता है. यह योग भी शुभ फल नहीं देता. ।
हुताशन योग -जब रविवार को 12 वीं तिथि , सोमवार को 6 वीं तिथि हो, मंगलवार को 7वीं तिथि , बुधवार को 8वीं तिथि, गुरुवार को 9वीं तिथि, शुक्रवार को 10 वीं तिथि तथा शनिवार को 11वीं तिथि हो तो दुग्ध योग बनता है।.
विष योग -रविवार को जब चौथी तिथि पड़ रही हो, सोमवार को 6वीं तिथि हो, मंगलवार को 7वीं तिथि हो, बुधवार दुसरी तिथि, शुक्रवार 9वीं तिथि तथा शनिवार 7वीं तिथि पडं रही हो तो विष योग बनता है़।.
तिथि और नक्षत्र का अशुभ योग -
अशुभ योग- जब 12 वीं तिथि और अस्लेशा नक्षत्र एक साथ हो, पहली और उत्तरशादा नक्षत्र एक साथ हो, दुसरी तिथि अनुराधा, पांचवीं तिथि मेघ, तीसरी तिथि उत्तरा नक्षत्र में, 11 वी रोहिणी, 13वीं स्वाति अथवा चित्रा, 7 वीं हस्त अथवा मूल, 9 वीं कृतिका, 8 वीं तिथि पूर्व भाद्रपद तथा 6 वीं तिथि रोहिणी के साथ हो तो शुभ फल नही।
वार और नक्षत्र का शुभ योग-
सिद्ध योग - अगर रविवार और उत्तर फाल्गुनी, हस्त, मूल, उत्तरशादा, श्रवण, उत्तर भाद्रपद अथवा रेवति नक्षत्र सम्बन्ध बन रहा हो, मंगलवार और अस्वनी, उत्तरफाल्गुनी, उत्तरभाद्रपद अथवा रेवति नक्षत्र का सम्बन्ध बन रहा हो, बुधवार और कृ्तिका, उत्तर फाल्गुनी, पूर्व फाल्गुनी, अनुराधा, पूर्ववैशादा , उत्तरशादा अथवा पूर्व भाद्रपद का सम्बन्ध बन रहा हो तथा शुक्रवार और उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, पूर्ववैशादा, उत्तरशादा, श्रवण, घनिष्ठा , स्थाविशक , पूर्व भाद्रपद अथवा उत्तर भाद्रपद का सम्बन्ध बन रहा हो तो सिद्ध योग बनता है।. इसी तरह रविवार के दिन मूल नक्षत्र हो, सोमवार के दिन धनिष्ठा, बुधवार के दिन कृ्तिका, गुरुवार के दिन पुनरवासु, शुक्रवार के दिन पूर्व फाल्गुनी और शनिवार के दिन स्वाति नक्षत्र हो तो दूसरे सिद्ध योग बनते हैं।.
सर्वत सिद्धी योग -अगर रविवार के दिन अस्वनी, पूष, हस्त, उत्तरा फाल्गुनी, मूल, उत्तरशादा अथवा उत्तर भाद्रपद नक्षत्र हो, सोमवार के दिन रोहिणी, मृ्गशिरा, पूष, अनुराधा अथवा श्रवण नक्षत्र हो, मंगलवार के दिन अस्वनी, कृतिका, अस्लेशा अथवा रेवति नक्षत्र हो, बुधवार के दिन कृतिका, रोहिणी, मृगसिरा, अनुराधा नक्षत्र हो, गुरुवार के दिन अस्वनी, पुनरवासु, पूष, अनुराधा अथवा रेवती नक्षत्र हो, शुक्रवार के दिन अस्वनी, पुनरवासु , अनुराधा, श्रवण, अथवा रेवति तथा शनिवार के दिन रोहिणी, स्वाति अथवा श्रवण नक्षत्र हो तो सर्वत सिद्धि योग बनता है।.
अमृत योग -सोमवार के साथ रोहिणी, मृ्गसिरा, पुनरवासु, स्वाति अथवा श्रवण नक्षत्र होने से, मंगलवार के साथ मृगसिरा, पुनरवासु, पूष, अस्लेशा, मेघ, पूर्व फाल्गुनी, हस्त, चित्रा अथवा स्वाति नक्षत्र होने से, बुधवार के दिन अद्रा, पुनरवासु, पूष, अस्लेषा, मेघ, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा अथवा श्रवण नक्षत्र होने से, गुरुवार के साथ अस्वनी, पुनरवासु, पूष, मेघ, अथवा स्वाति नक्षत्र होने से, शुक्रवार के साथ अस्वनी, भरणी ,पूर्व फाल्गुनी अथवा रेवाति नक्षत्र होने से, शनिवार के साथ कृतिका, रोहिणी स्थाविशक अथवा स्वाति नक्षत्र के होने से अमृ्त योग बनता है।.
शुभ योग -बुधवार के साथ रोहिणी, ज्येष्ठ, स्थाविशक अथवा उत्तर भाद्रपद नक्षत्र होने से, गुरुवार के साथ भरणी, अस्लेशा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूल, पूर्ववैशादा उत्तरशादा, श्रवण अथवा धनिष्ठा नक्षत्र तथा शनिवार के दिन अस्वनी, भरणी, मृ्गसिरा, अद्रा, पूष, मेघ, विशाखा, अनुराधा,ज्येष्ठ, मूल, उत्तर फाल्गुनी, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्व भाद्रपद तथा उत्तर भाद्रपद नक्षत्र के होने से शुभ योग बनता है।.
शुभ माध्यम योग -रविवार के साथ भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृ्गसिरा, अद्रा, पुनरवासु, अस्लेशा, पूर्व फाल्गुनी,चित्रा, स्वाति, पूर्ववैशादा, धनिष्टा, स्थाविशक अथवा पूर्वभाद्रपद नक्षत्र होने से, मंगलवार के दिन भरणी, कृ्तिका, रोहिणी, ज्येष्ठ, मूल, पूर्ववैशादा अथवा श्रवन नक्षत्र होने से, गुरुवार के दिन हस्त, चित्रा, पूर्व भाद्रपद अथवा उत्तर भाद्रपद नक्षत्र होने से शुभ माध्यम योग बनता है।.
शोभन योग -सोमवार के साथ अस्वनी, भरणी, कृ्तिका, अद्रा, पुष, अस्लेशा, मेघ, पूर्व फाल्गुनी, हस्त, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूल, धनिष्ठा, स्थाविशक, पूर्व भाद्रपद अथवा रेवती नक्षत्र होने से शोभन योग बनता है।.
श्री योग -शुक्रवार के साथ भरणी, कृ्तिका, मृ्गसिरा, अद्रा अथवा पुनरवासु नक्षत्र के होने से श्री योग बनता है।.
इस तरह के संयोजन से जो मुहूर्त योग बनता है वह अत्यधिक शक्तिशाली होता है तथा तमाम तरह की परेशानियों को खत्म कर देता है।.
वार और नक्षत्र का अशुभ योग -
दग्ध योग -जब रविवार को भरणी नक्षत्र हो, सोमवार को चित्रा नक्षत्र हो, मंगलवार को उत्तरशादा नक्षत्र, बुधवार को धनिष्ठा, गुरुवार को उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र हो, शुक्रवार को ज्येष्ठ नक्षत्र हो तथा शनिवार को रेवाति नक्षत्र हो तो दग्धयोग बनता है।.
इसी तरह गुरुवार के दिन अगर कृतिका, रोहिणी तथा मृगसिरा, अद्रा, उत्तर फाल्गुनी और स्थाविशक नक्षत्र हो तो दुर्घटना का दग्ध योग बनता है।.
यमगंड योग -अगर रविवार के दिन मेघ नक्षत्र हो, सोमवार के दिन विशाखा, मंगलवार के दिन अद्रा, बुधवार के दिन मूल , गुरुवार के दिन कृ्तिका, शुक्रवार के दिन रोहिणी तथा शनिवार के दिन हस्त नक्षत्र हो तो यमगंड योग बनता है।.
अटपटा योग -अगर रविवार को विशाखा, सोमवार को पूर्ववैशादा, मंगलवार को धनिष्टा, बुधवार को रेवाति, गुरूवार को रोहिणी, शुक्रवार को पूष तथा शनिवार को उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र हो तो अटपटा योग बनता है।.
मृ्त्यु योग -अगर रविवार को अनुराधा, सोमवार को उत्तरशादा, मंगलवार को स्थाविशक, बुधवार को अस्वनी, गुरुवार को मृ्गसिरा, शुक्रवार को अस्लेशा, और शनिवार को हस्त नक्षत्र हो तो मृत्यु योग बनता है। . इसी तरह रविवार के दिन वैशाखा, सोमवार को पूर्ववैशादा, मंगलवार को धनिष्टा, बुधवार को अनुराधा, गुरुवार के साथ मृ्गसिरा, शुक्रवार के साथ स्वाति अथवा रोहिणी तथा शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र हो तो दुसरा मृत्यु योग बनता है जो आपदा का कारक होता है।. शनिवार के साथ पुनरवासु, अस्लेशा, पूर्व फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, पूर्ववैशादा, उत्तरशादा तथा अथवा रेवाति के संयोग से भी मृ्त्यु योग बनता है।.
अर्धदृष्टी योग -अगर शनिवार के दिन ज्येष्ठ नक्षत्र हो, सोमवार के दिन श्रवण नक्षत्र हो, मंगलवार के दिन पूर्व भाद्रपद, बुधवार के दिन भरणी, गुरुवार के दिन अद्रा, शुक्रवार के दिन मेघ, शनिवार के दिन चित्रा नक्षत्र हो तो अर्धदृष्टी योग बनता है।.
नाश योग -जब रविवार के साथ अस्वनी, मेघ, विशाखा, अनुराधा अथवा ज्येष्ठ नक्षत्र हो, सोमवार के साथ कृ्तिका, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, पूर्ववैशादा, उत्तरशादा, उत्तर भाद्रपद नक्षत्र हो, मंगलवार के दिन मृ्गसिरा, अद्रा, विशाखा, उत्तरशादा, धनिष्ठा. स्थाविशक, पूर्व भाद्रपद नक्षत्र हो, बुधवार के साथ अस्वनी, भरणी, मूल, धनिष्ठा अथवा रेवति नक्षत्र हो, गुरुवार के साथ उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र हो, शुक्रवार के साथ रोहिणी, पूष, अस्लेशा, मेघ, विशाखा, ज्येष्ठ तथा शनिवार के साथ रेवति नक्षत्र हो तो नाश योग बनता है।.
वार, तिथि और नक्षत्र का शुभ योग -
सूत योग -रविवार् के साथ पूष, हस्त अथवा मूल नक्षत्र हो और 5वीं अथवा 7वीं तिथि से सम्बन्ध बना रहा हो, सोमवार के साथ मृगसिरा, स्वाति अथवा श्रवण नक्षत्र हो और 5वीं अथवा 7वीं तिथि से सम्बन्ध बना रहा हो, मंगलवार के साथ अस्वनी, रोहिणी, उत्तर फाल्गुनी, उत्तरशादा, पूर्व भाद्रपद, अथवा उत्तर भाद्रपद 5वीं अथवा 7वीं तिथि से सम्बन्ध बना रहा हो, बुधवार के साथ अस्वनी, पूर्व फाल्गुनी, पूर्ववैशादा अथवा पूर्वभाद्रपद, 5वीं अथवा 7वीं तिथि से सम्बन्ध बना रहा हो, गुरुवार के साथ पुनरवासु, पूर्वशाठा, अथवा रेवाति 13वीं तिथि के साथ सम्बन्ध बना रही हो, शुक्रवार के साथ उत्तर फाल्गुनी, स्वाति अथवा स्थाविशक पहली, दूसरी अथवा तेरहवीं तिथि से सम्पर्क बना रही हो, शनिवार के साथ रोहिणी, स्वाति अथवा धनिष्ठा दुसरी, तीसरी अथवा 12वीं तिथि से सम्बन्ध बना रहा हो तो सूत योग बनतै. है।
सिद्ध योग -रविवार और पहली, चौथी, छ्ठवीं,सातवीं अथवा बारहवीं तिथि पूष, हस्त, उत्तर फाल्गुनी, मूल उत्तरशादा, श्रवन अथवा उत्तर भाद्रपद नक्षत्र से सम्पर्क बना रही हो. सोमवार और भद्रा तिथि रोहिणी, मृ्गसिरा, पुनर्वासु, चित्रा, श्रवण, धनिष्ठा, स्थाविशक अथवा पूर्व भाद्रपद नक्षत्र के साथ सम्पर्क बना रही हो, मंगलवार और नन्दा अथवा भद्रा तिथि अस्वनी, मृ्गसिरा, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, मूल,धनिष्ठा अथवा पूर्व भाद्रपद नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बना रही हो, बुधवार और भद्रा अथवा जया तिथि रोहिणी, मृगसिरा, अद्रा, उत्तर फाल्गुनी, अनुराधा अथवा उत्तरशादा के साथ सम्बन्ध बना रही हो. गुरूवार और चौथी तिथि 5वीं, 7वीं, 9वीं,13वीं तिथि अस्वनी, पुनरवासु, पूष, मेघ, स्वाति, पूर्ववैशादा, पूर्वभाद्रपद, अथवा रेवाति से सम्बन्ध बना रही हो, शुक्रवार और नन्दा अथवा भद्रा तिथि अस्वनी, भरणी, अद्रा, उत्तर फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, पुर्ववैशादा, अथवा रेवति नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बना रही हो, शनिवार और भद्रा अथवा रिक्ता तिथि रोहिणी, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, धनिष्टा अथवा स्थाविशक नक्षत्र से सम्बन्ध बना रही हो तो सिद्ध योग बनता है।.
वार, तिथि और नक्षत्र का अशुभ योग -
विष योग -जब रविवार और पांचवी तिथि कृ्तिका नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बना रही हो, जब सोमवार और दुसरी तिथि चित्रा नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बना रही हो, जब मंगलवार और पूर्णमा तिथि रोहिणी नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बना रही हो, जब बुधवार और 7 वीं तिथि भरणी नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बना रही हो, जब गुरुवार और 13वीं तिथि अनुराधा नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बना रही हो, जब शुक्रवार और 6वीं तिथि श्रवण नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बना रही हो, जब शनिवार और 8वीं तिथि का रेवाति नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बन रही हो तो विष योग बनता है।.
विनाश योग -रविवार और तीसरी, चौथी, आठवीं, नौवीं, तेरहवीं अथवा बारहवीं तिथि भरणी, मृगसिरा, अस्लेशा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठ अथवा धनिष्ठा नक्षत्र से सम्बन्ध बना रही हो. सोमवार और 7वीं, 6वीं, 11वीं तिथि कृतिका, भरणी मेघ, अनुराधा, पूर्ववैशादा, उत्तरशादा अथवा उत्तर भाद्रपद नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बना रही हो, मंगलवार और पहली, दुसरी, 7वीं, 8वीं अथवा 10वीं तिथि अद्रा, पुनर्वासु, पूर्ववैशादा, उत्तरशादा, श्रवण, धनिष्ठा, स्थाविशक अथवा ज्येष्ठ नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बना रही हो, बुधवार और दुसरी, तीसरी, आठवीं अथवा नौवीं तिथि अस्वनी, भरणी, पूष, अस्लेशा, मेघ, मूल, धनिष्ठा अथवा पूर्वभाद्रपद के साथ सम्बन्ध बना रही हो. गुरूवार और 6वीं, 8वीं, 9वीं,12वीं अथवा 13वीं तिथि कृ्तिका, रोहिणी मृगसिरा, अद्रा, उत्तरफाल्गुनी, अनुराधा, विशाखा अथवा स्थाविशक से सम्पर्क बना रही हो, शुक्रवार और दूसरी, तीसरी, 6वीं, 8वीं, 10वीं अथवा 11वीं तिथि रोहिणी, पुनर्वासु, मेघ, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठ, श्रवण अथवा धनिष्ठा नक्षत्र के साथ सम्बन्ध बना रही हो, शनिवार और तीसरी, 7वीं, 9वीं अथवा 11वीं तिथि भरणी, पुनर्वासु, पूष, पूर्व फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, हस्त, पूर्ववैशादा, श्रवण अथवा उत्तरशादा नक्षत्र हो तो विनाश योग बनता है।.
वार,तिथि और नक्षत्र के कार्यक्रम को दोहराने वाले योग -
वार, तिथि और नक्षत्र से बनने वाले कुछ योग ऎसे होते हैं जो किसी भी कार्यक्रम को दोहराते है।. यह योग उन कार्यो को करने के लिए उप युक्त होते हैं जिन्हें हम एक से अधिक बार करना चाह्ते हैं. परन्तु यह सभी तरह के कार्यो के लिए शुभ नहीं होते जैसे- शादी.
त्रीपुष्कर योग दिन शुभ होता है जब भद्रा तिथि त्रिपद नक्षत्रों के साथ सम्बन्ध बना रही हो तो त्रिपुष्कर योग बनता. इस योग के बनने से यह सं केत मिलता है कि हम कोई भी कार्य तीन बार कर सकते हैं।.
द्विपुष्कर योग दिन शुभ होता है जब भद्रा तिथि द्विपद नक्षत्रों के साथ सम्बन्ध बना रही हो तो द्विपुष्कर योग बनता. इस योग के बनने से यह संकेत मिलता है कि हम कोई भी कार्य दो बार कर सकते हैं।.
वार,तिथि, नक्षत्र योग के सम्बन्धित शक्तियां -
अगर हम वार, तिथि, नक्षत्र के सम्बन्ध में शक्ति की बात करें तो वार और नक्षत्र योग वार तिथि योग से तीन गुना शक्तिशाली होता है. वार तिथि नक्षत्र योग वार नक्षत्र योग से तीन गुना शक्तिशाली होता है. तिथि नक्षत्र योग इन सभी से कम शक्तिशाली होता है. ।
वार, तिथि और नक्षत्र योग का प्रभाव -
भारत में विभिन्न प्रकार के वार,तिथि और नक्षत्र के योग पाये जाते हैं तथा वैश्विक स्तर पर भी इसका महत्व है, क्योंकि इन्हीं के आधार पर मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है, मुहूर्त निकालने के लिए ज्योतिष ही एक आधार है. अगर सभी कारकों को ध्यान में रखकर सही मुहूर्त निकाला गया हो तो कोई भी इसके प्रभाव को चुनौती नहीं दे सकता. ।
अच्छे सम्बन्ध का लाभ -
अगर वार, तिथि नक्षत्र का अच्छा सम्बन्ध होने से भविष्य के सन्दर्भ में कार्य करना लाभप्रद और शुभ होता है, किसी भी शुभ योग के होने से व्यक्ति को अच्छी सफलता मिलती है. अगर वार,तिथि का योग पक्ष में नहीं है तो व्यक्ति को कार्य नहीं करना चाहिए।
जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411