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ज्योतिष में ग्रहों का फल

ज्योतिष में ग्रहों का फल-

जब कुंडली में शनि व राहु की युति होने से नंदी योग बन रहा हो। यदि यही नंदी योग जातक के लग्न में बन रहा हो तो उसे लाइलाज रोग होने की संभावना रहती है। शनि व राहु जन्य योग (युति/ दृष्टि) शनि व राहु जब लग्नस्थ होते हैं तब जातक लाइलाज रोग से ग्रस्त होता है। कुंडली में चतुर्थ भाव में शनि व राहु की युति हो तो जातक की माता को कष्ट होता है। जब शनि व राहु पंचम भाव में स्थित हों तो संतान से महान कष्ट मिलता है। जब शनि व राहु सप्तम भाव में स्थित हों तो जीवन साथी से कष्ट मिलता है। जब शनि व राहु नवम भाव में स्थित हों तो पिता को कष्ट होता है। जब शनि व राहु दशम भाव में स्थित हों तो व्यवसाय या कार्य में स्थिरता नहीं रहती। यह योग व्यवसाय में हानि कराता है। नोट: यदि उपर्युक्त अंतिम दोनों योगों में राहु के स्थान पर केतु हो तो शुभत्व योग होता है क्योंकि राहु और केतु नैसर्गिक मैत्री चक्र में आपस में शत्रु होते हैं। जब गुरु लग्नस्थ हो और द्वितीय भाव में शनि तथा तीसरे में राहु हो तो जन्म के पश्चात जल्द ही बालक माता से बिछड़ जाता है। या तो माता बालक को छोड़ देती है या बालक के जन्म के पश्चात मर जाती है। चंद्र व मंगल के साथ राहु या केतु चतुर्थ घर में स्थित हो तो जातक की 40 वर्ष की आयु में उसकी माता का देहांत होता है ऐसा एक ऋषि का मत है। यदि किसी स्त्री की कुंडली में अष्टम भाव में मंगल व राहु की युति से गंदर्भ योग हो तो वैधव्य योग होता है। जातका विवाह के एक निश्चित समय बाद विधवा हो जाती है। अतः जातका की शादी विलंब से करनी चाहिए। जितने विलंब से उसकी शादी की जाएगी, वैधव्य योग उतना ही टलता जाएगा। मेष, वृष या कर्क लग्न में पहले, दूसरे, तीसरे, चैथे, पांचवें, छठे, सातवंे या बारहवें घर में राहु हो तो परमसुख योग होता है और यदि कोई अन्य लग्न हो तो महान कष्टदायक योग होता है। मेष, वृष या कर्क लग्न में बारहवें घर में राहु हो तो दूसरों से सम्मान दिलाता है और विदेश यात्रा योग बनाता है। मेष, कर्क या वृश्चिक लग्न में राहु नवम, दशम या एकादश भाव में हो तो परमसुख योग होता है। इस योग के फलस्वरूप जातक को यश, सम्मान, धन, कीर्ति और समृद्धि प्राप्त होती है। राहु जन्य विशेष सुख योग: राहु छठे भाव में और शुक्र केंद्र में स्थित हो तो प्रबल धन योग होता है। राहु लग्न, तीसरे, छठे या ग्यारहवें घर में हो और चंद्र, बुध, गुरु और शुक्र में से कोई भी ग्रह राहु को देख रहा हो तो धन योग होता है। दशम भाव में राहु और लग्नेश स्थित हों तो भाग्यवान योग होता है। अतः जातक जिस चीज की कामना करता है वह उसे मिल जाती है और जो नहीं चाहता वह नहीं मिलती। यदि कुंडली में किसी भी भाव में राहु शनि से युत हो तो सर्वसुखशाली योग होता है। जातक धन, यश, सुख व समृद्धि का स्वामी होता है। जब स्थिर लग्न (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) में सूर्य और राहु त्रिकोण, पंचम या नवम में स्थित हों तो ग्रहण योग होता है। इस योग के फलस्वरूप यश, मान सम्मान, प्रसिद्धि व धन की प्राप्ति होती है। राहु निर्मित कुछ कुयोग: राहु निर्मित निम्नलिखित कुयोग जातक की विचारधारा बदल देते हैं। चतुर्थ भाव में शनि व द्व ादश भाव में राहु हो तो उस भाव में नंदी योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप जातक कपटी, धूर्त, चालबाज व दुश्चरित्र होता है। चंद्र व शनि का कुंडली में संबंध विष योग बनाता है। चंद्र व राहु लग्न में हो तो जातक को भूत-प्रेत बाधाओं का सामना करना होता है।

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम:  श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411