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- व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं।
- ज्योतिष अनुसार साधना चयन
- कन्या का विवाह कहां होगा, कब होगा
- कब उन्नति, नौकरी व्यवसाय द्वारा कब
- प्रमुख 9 श्राप जिसके कारण नहीं होती संतान की प्राप्ति
- मंगल’ लाइफ में कैसे लाता है। अमंगल
- ज्योतिष योग, योगफल, जीवन उद्देश्य
- स्वप्न और जीवन पर इसका प्रभाव
- जातक वर्षकुंडली मुंथा राशि का जीवन पर प्रभाव
- शनि प्रदत्त सुखदायक योगकारक स्थितियां
- लम्बे समय से बीमार व्यक्ति के लिए ज्योतिषीय
- कन्या का शीघ्र विवाह कराने के लिए उपाय
- जीवन के लक्षणों से पता चलता है। ग्रहों की
- प्रेम-विवाह में सफलता के लिए क्या करें
- ज्योतिष मे शकुन शास्त्र
- चंचल नटखट जिद्दी -बच्चे और ज्योतिष सम्बन्ध
- कैंसर रोग और ज्योतिष का सम्बंध
- जैमिनी ज्योतिष एवं राजयोग
- ज्योतिष ग्रह- दशा और आप
- जैमिनी ज्योतिष शुभता एवं अशुभ का विचार
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- ज्योतिष के अनुसार मुहूर्त योग
- यक्ष कुबेर साधना रहस्य
- २७ नक्षत्रों के सप्तवारादि युक्त नाडी मुहूर्त
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- चमत्कारिक तान्त्रिक वनस्पतियों का रहस्य
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- इन छोटे-छोटे उपायो से सुख-समृद्धि लाएं ।
- कारोबारी अपनी समस्या का समाधान पाएं ।
- चावल के 21 दानें रखें --पैसों की तंगी होगी खत्म
- शीघ्र ही लाभ होगा इन उपायो के करने पर ।
- धन समृद्धि के अचूक टोटके अपना कर लाभ उठाएं ।
- नवग्रह के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए उपाय करें ।
- शादी करने के अद्भुत अनुभूत उपाय इस प्रकार हैं ।
- क्यों बदल जाती है। लाइफ पार्टनर की सोच ।
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- ऋण मुक्ति के अचूक उपाय इस प्रकार हैं ।
- बंधी हुई दुकान को खोलने के अचूक उपाय ।
- जीवन की विभिन्न समस्याओं का समाधान पाएं ।
- लाल किताब के अचूक अद्भुत टोटके ।
- वास्तु द्वारा उपाय करने पर कष्ट का निवारण ।
- अंक ज्योतिष द्वारा समस्या का समाधान पाएं ।
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- भारतीय वैदिक ज्योतिष द्वारा समाधान
- रत्नो द्वारा नव ग्रहों का समाधान करे ।
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- श्री हनुमंत वडवानल स्तोत्र
- श्री हनुमान जी की स्तुति
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- हनुमान बाहुक :हिन्दी भावार्थ सहित
- श्रीविचित्र-वीर-हनुमन्-माला-मन्त्र
- बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग
- बैरि-नाशक हनुमान ग्यारहवाँ
- ज्योतिष में ग्रहों का फल
- ज्योतिष में ध्यान रखने योग्य खास बातें
- कुंडली से सर्व दोष हटाने निष्फल करने वाले
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- वशीकरण के अचूक उपाय
- धन प्रदान और कार्य सिद्ध वस्तुऐ
- माता बगलामुखी देवी साधना के मंत्र
- ग्रह दोष स्वयं पहचाने और उपाय करें।
- श्री कार्तवीर्यार्जुन मन्त्र – प्रयोग
- कैसे प्राप्त होती है। भूतप्रेतों की योनि
- यदि जीवन में निरंतर समस्याए आ रही है।
- दुर्गा सप्तशती पाठ-अद्भुत शक्तियां प्रदान करता है।
- जैमिनी ज्योतिष पद्धति
- मंत्र जाप करने के भी कुछ नियम होते हैं।
- बटुक भैरव साधना
- बगलामुखी देवी दश महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या का नाम से उल्लेखित है।
- सभी राशियों के लिये शनि साढेसाती उपाय
- शकुन हमारे भविष्य में होने वाली घटना का संकेत देते हैं।
- शत्रु नाशक प्रमाणिक प्रयोग
- पंचमुखी हनुमान साधना
- वैदिक शिव पूजन पद्धति
- यदि व्यवसाय अगर आपके व्यापार में मंदी आ गयी है।
- तंत्र में समस्याओं का समाधान
- ज्योतिष क्यों ? Why Astrology ?
- भैरव-सर्वस्व’ / ‘काल-संकर्षण तन्त्र’ से उद्धृत)
- महाकाली भगवती कालिका
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ज्योतिष में ग्रहों का फल
ज्योतिष में ग्रहों का फल-
जब कुंडली में शनि व राहु की युति होने से नंदी योग बन रहा हो। यदि यही नंदी योग जातक के लग्न में बन रहा हो तो उसे लाइलाज रोग होने की संभावना रहती है। शनि व राहु जन्य योग (युति/ दृष्टि) शनि व राहु जब लग्नस्थ होते हैं तब जातक लाइलाज रोग से ग्रस्त होता है। कुंडली में चतुर्थ भाव में शनि व राहु की युति हो तो जातक की माता को कष्ट होता है। जब शनि व राहु पंचम भाव में स्थित हों तो संतान से महान कष्ट मिलता है। जब शनि व राहु सप्तम भाव में स्थित हों तो जीवन साथी से कष्ट मिलता है। जब शनि व राहु नवम भाव में स्थित हों तो पिता को कष्ट होता है। जब शनि व राहु दशम भाव में स्थित हों तो व्यवसाय या कार्य में स्थिरता नहीं रहती। यह योग व्यवसाय में हानि कराता है। नोट: यदि उपर्युक्त अंतिम दोनों योगों में राहु के स्थान पर केतु हो तो शुभत्व योग होता है क्योंकि राहु और केतु नैसर्गिक मैत्री चक्र में आपस में शत्रु होते हैं। जब गुरु लग्नस्थ हो और द्वितीय भाव में शनि तथा तीसरे में राहु हो तो जन्म के पश्चात जल्द ही बालक माता से बिछड़ जाता है। या तो माता बालक को छोड़ देती है या बालक के जन्म के पश्चात मर जाती है। चंद्र व मंगल के साथ राहु या केतु चतुर्थ घर में स्थित हो तो जातक की 40 वर्ष की आयु में उसकी माता का देहांत होता है ऐसा एक ऋषि का मत है। यदि किसी स्त्री की कुंडली में अष्टम भाव में मंगल व राहु की युति से गंदर्भ योग हो तो वैधव्य योग होता है। जातका विवाह के एक निश्चित समय बाद विधवा हो जाती है। अतः जातका की शादी विलंब से करनी चाहिए। जितने विलंब से उसकी शादी की जाएगी, वैधव्य योग उतना ही टलता जाएगा। मेष, वृष या कर्क लग्न में पहले, दूसरे, तीसरे, चैथे, पांचवें, छठे, सातवंे या बारहवें घर में राहु हो तो परमसुख योग होता है और यदि कोई अन्य लग्न हो तो महान कष्टदायक योग होता है। मेष, वृष या कर्क लग्न में बारहवें घर में राहु हो तो दूसरों से सम्मान दिलाता है और विदेश यात्रा योग बनाता है। मेष, कर्क या वृश्चिक लग्न में राहु नवम, दशम या एकादश भाव में हो तो परमसुख योग होता है। इस योग के फलस्वरूप जातक को यश, सम्मान, धन, कीर्ति और समृद्धि प्राप्त होती है। राहु जन्य विशेष सुख योग: राहु छठे भाव में और शुक्र केंद्र में स्थित हो तो प्रबल धन योग होता है। राहु लग्न, तीसरे, छठे या ग्यारहवें घर में हो और चंद्र, बुध, गुरु और शुक्र में से कोई भी ग्रह राहु को देख रहा हो तो धन योग होता है। दशम भाव में राहु और लग्नेश स्थित हों तो भाग्यवान योग होता है। अतः जातक जिस चीज की कामना करता है वह उसे मिल जाती है और जो नहीं चाहता वह नहीं मिलती। यदि कुंडली में किसी भी भाव में राहु शनि से युत हो तो सर्वसुखशाली योग होता है। जातक धन, यश, सुख व समृद्धि का स्वामी होता है। जब स्थिर लग्न (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) में सूर्य और राहु त्रिकोण, पंचम या नवम में स्थित हों तो ग्रहण योग होता है। इस योग के फलस्वरूप यश, मान सम्मान, प्रसिद्धि व धन की प्राप्ति होती है। राहु निर्मित कुछ कुयोग: राहु निर्मित निम्नलिखित कुयोग जातक की विचारधारा बदल देते हैं। चतुर्थ भाव में शनि व द्व ादश भाव में राहु हो तो उस भाव में नंदी योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप जातक कपटी, धूर्त, चालबाज व दुश्चरित्र होता है। चंद्र व शनि का कुंडली में संबंध विष योग बनाता है। चंद्र व राहु लग्न में हो तो जातक को भूत-प्रेत बाधाओं का सामना करना होता है।
जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411