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- इन छोटे-छोटे उपायो से सुख-समृद्धि लाएं ।
- कारोबारी अपनी समस्या का समाधान पाएं ।
- चावल के 21 दानें रखें --पैसों की तंगी होगी खत्म
- शीघ्र ही लाभ होगा इन उपायो के करने पर ।
- धन समृद्धि के अचूक टोटके अपना कर लाभ उठाएं ।
- नवग्रह के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए उपाय करें ।
- शादी करने के अद्भुत अनुभूत उपाय इस प्रकार हैं ।
- क्यों बदल जाती है। लाइफ पार्टनर की सोच ।
- कुछ लक्षणों को देखते ही व्यक्ति के मन में आशंका हो जाती है ।
- ऋण मुक्ति के अचूक उपाय इस प्रकार हैं ।
- बंधी हुई दुकान को खोलने के अचूक उपाय ।
- जीवन की विभिन्न समस्याओं का समाधान पाएं ।
- लाल किताब के अचूक अद्भुत टोटके ।
- वास्तु द्वारा उपाय करने पर कष्ट का निवारण ।
- अंक ज्योतिष द्वारा समस्या का समाधान पाएं ।
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- ज्योतिष में ग्रहों का फल
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- ग्रह दोष स्वयं पहचाने और उपाय करें।
- श्री कार्तवीर्यार्जुन मन्त्र – प्रयोग
- कैसे प्राप्त होती है। भूतप्रेतों की योनि
- यदि जीवन में निरंतर समस्याए आ रही है।
- दुर्गा सप्तशती पाठ-अद्भुत शक्तियां प्रदान करता है।
- जैमिनी ज्योतिष पद्धति
- मंत्र जाप करने के भी कुछ नियम होते हैं।
- बटुक भैरव साधना
- बगलामुखी देवी दश महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या का नाम से उल्लेखित है।
- सभी राशियों के लिये शनि साढेसाती उपाय
- शकुन हमारे भविष्य में होने वाली घटना का संकेत देते हैं।
- शत्रु नाशक प्रमाणिक प्रयोग
- पंचमुखी हनुमान साधना
- वैदिक शिव पूजन पद्धति
- यदि व्यवसाय अगर आपके व्यापार में मंदी आ गयी है।
- तंत्र में समस्याओं का समाधान
- ज्योतिष क्यों ? Why Astrology ?
- भैरव-सर्वस्व’ / ‘काल-संकर्षण तन्त्र’ से उद्धृत)
- महाकाली भगवती कालिका
- कालसर्प दोष निवारण उपाय
क्यों बदल जाती है। लाइफ पार्टनर की सोच ।
क्यों बदल जाती है लाइफ पार्टनर की सोच, राहु हैv इसके लिए जिम्मेदार
आमतौर पर माना जाता है कि प्रेम प्रकरण के लिए शुक्र स्वराशि में, बारहवें भाव का बलवान होना या शुक्र से संबंध तथा पंचम भाव का बलवान होना ही पर्याप्त है परन्तु राहु भी इसके लिए जिम्मेदार होता है। राहु प्रेम संबंधों के पनपने के लिए उत्तरदायी होता है।
प्रेम संबंध भी उस प्रकार के जिसमें दो व्यक्ति समाज से नजरें बचाकर एक-दूसरे से मिलते हैं राहु उनके लिए उत्तरदायी होता है।
राहु रहस्य का कारक ग्रह है और तमाम रहस्य की परतें राहु की ही देन होती हैं। राहु झूठ का वह रूप है जो झूठ होते हुए भी सच जैसे प्रतीत होता है। जो प्रेम संबंध असत्य की डोर से बंधे होते हैं या जो संबंध दिखावे के लिए होते हैं वे राहु के ही बनावटी सत्य हैं। राहु व्यक्ति को झूठ बोलना सिखाता है। बातें छिपाना, बात बदलना, किसी के विश्वास को सफलता पूर्वक जीतने की कला राहु के अलावा कोई और ग्रह नहीं दे सकता।
राहु एकतरफा प्रेम का वह रूप है जिसमें व्यक्ति कभी अपने प्यार के सामने नहीं आता और फिर भी चुपचाप सब कुछ देखता रह जाता है, क्योंकि परिस्थितियां, ग्रह गोचर अनुकूल नहीं हैं बलवान नहीं हैं। राहु वह लालच है जिसमें व्यक्ति को कुछ अच्छा-बुरा दिखाई नहीं देता केवल अपना स्वार्थ ही दिखाई देता है। मांस मदिरा का सेवन, बुरी लत, चालाकी और क्रूरता, अचानक आने वाला गुस्सा, पीठ पीछे की बुराई यह सब राहु की विशेषताएं हैं। असलियत को सामने न आने देना ही राहु की खासियत है और हर तरह के झूठ का पर्दाफाश करना केतु का धर्म है।
केतु ही है जो संबंधों में दरार डालता है क्योंकि केतु ही दरार है। घर की दीवार में यदि दरार आ जाए तो समझ लीजिए यह केतु का बुरा प्रभाव है और यदि संबंधों में भी दरार आ जाए, घर का बंटवारा हो जाए या रिश्तों की परिभाषा बदल जाए तो यह केतु का काम समझें। दुविधा में राहु का हाथ होता है। किसी भी प्रकार की अप्रत्याशित घटना का कारक राहु ही होता है। यदि आप मन से जानते हैं की आप झूठ की राह पर हैं परन्तु आपका भ्रम है कि आप सही कर रहे हैं तो यह धारणा आपको देने वाला राहु ही है।
किसी को धोखा देने की प्रवृत्ति राहु पैदा करता है यदि आप पकडे जाए तो इसमें भी आपके राहु का दोष है क्योंकि वह आपकी कुंडली में आपके भाग्य में निर्बल है और यह स्थिति बार बार होगी। इसलिए राहु का अनुसरण करना बंद करें क्योंकि यह जब बोलता है तो कुछ और सुनाई नहीं देता। जिस तरह कर्ण पिशाचिनी आपको गुप्त बातों की जानकारी देती है उसी तरह यदि राहु आपकी कुंडली में बलवान होगा तो आपको सभी तरह की गुप्त बातें बैठे बिठाए ही पता चल जाएंगी। यदि आपको लगता है की सब कुछ गुप्त है और आपसे कुछ छुपाया जा रहा है या आपके पीठ पीछे बोलने वाले लोग बहुत अधिक हैं तो यह भी राहु की ही करामात है।
कुण्डली में ग्रहों की स्थिति व व्यक्ति का स्वभाव
कुछ लोगों में यह आकर्षण इतना अधिक होता है कि वह मर्यादा की रेखा पार कर जाता है। ऐसे व्यक्ति भंवरे की तरह होते हैं जो एक कली से दूसरी कली पर मंडराता रहता है।ठीक इसी तरह ऐसा पुरुष एक स्त्री के प्रति पूरी तरह ईमानदार और समर्पित नहीं हो पाता। इनमें पत्नी के अलावा दूसरी स्त्रियों से नजदीकी बढ़ाने की चाहत रहती है।
ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि व्यक्ति का ऐसा स्वभाव उनकी कुण्डली में मौजूद ग्रहों की कुछ खास स्थितियों के कारण होता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की कुण्डली में शनि और शुक्र एक साथ एक घर में होते हैं उनके वैवाहिक जीवन में कलह की संभावना अधिक रहती है।
इसका कारण यह है कि व्यक्ति का दूसरी स्त्रियों में रुझान रहता है। शुक्र अगर मंगल के मेष या वृश्चिक राशि में बैठा हो तब तो परायी स्त्री से निकटता की संभावना काफी ज्यादा रहती है।
कुछ लोगों की सुंदर सुंदर प्रेमिका होती है। ऐसे लोगों को देखकर दूसरे लोग सोचते हैं कि पता नहीं इसमें क्या है जो इसकी इतनी गर्लफ्रैंड है। अगर आप भी किसी के बारे में ऐसा सोचते हैं तो यह जान लीजिए कि वह व्यक्ति अपनी कुण्डली में पर्वत योग लेकर आया है।
यह योग तब बनता है जब पहले, चौथे, सातवें या दसवें घर में कोई शुभ ग्रह बैठा हो। इसके अलावा छठे और आठवें घर में भी शुभ ग्रह बैठा हो या फिर इन दोनों घरों में कोई ग्रह मौजूद नहीं हो। ज्योतिषशास्त्र कहता है कि जिनकी कुण्डली ऐसी होती है उनके कई सुंदर प्रेमिकाएं होती हैं।
क्यों नहीं मिलता है पारिवारिक सुख
.पारिवारिक सुख व्यक्ति की महती आवश्यकता है। एक स्नेहिल परिवार के बिना मनुष्य का जीवन अत्यन्त नीरस व दुष्कर हो जाता है। कभी-कभी प्रारब्ध कर्मानुसार व्यक्ति पारिवारिक सुख से वंचित हो जाता है। आइए जानते हैं कि जन्मपत्रिका में वे कौन से ऐसी ग्रहस्थितियां होती हैं जब व्यक्ति को पारिवारिक सुख प्राप्त नहीं होता।
पारिवारिक सुख का विचार जन्मपत्रिका के दूसरे भाव से किया जाता है। यदि दूसरे भाव का अधिपति (द्वितीयेश) अशुभ स्थानों में हो एवं द्वितीय भाव पर शनि,राहु-केतु जैसे क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति पारिवारिक सुख से वंचित रहता है। उसे अपने घर से दूर निवास करना पड़ता है। द्वितीयेश पर पाप ग्रहों के प्रभाव से पारिवारिक सुख बाधित होता है।
दाम्पत्य जीवन में बाधा डालने वाले योग
.1 . यदि सप्तम भाव पर राहु,शनि व सूर्य की दृष्टि हो एवं सप्तमेश अशुभ स्थानों में हो एवं शुक्र पीड़ित व निर्बल हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख नहीं मिलता।
2. यदि सूर्य-शुक्र की युति हो व सप्तमेश निर्बल व पीड़ित हो एवं सप्तम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
3. यदि सप्तम भाव में मकर या कुंभ राशि स्थित हो, सप्तमेश सूर्य,शनि व राहु के साथ हो एवं शुक्र पीड़ित व निर्बल हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख नहीं मिलता।
4. यदि सप्तमेश निर्बल व पीड़ित हो एवं सप्तम भाव पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
5. यदि द्वादश भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, शुक्र पीड़ित व निर्बल हो और सप्तम भाव
पर सूर्य,राहु व शनि का प्रभाव हो व सप्तमेश अशुभ स्थानों में हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
6. यदि लग्न में राहु स्थित हो एवं जन्मपत्रिका में सूर्य व शुक्र की युति हो तो जातक को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
7. यदि लग्न में शनि स्थित हो और सप्तमेश अस्त, निर्बल या अशुभ स्थानों में हो तो जातक का
विवाह विलम्ब से होता है व जीवनसाथी से उसका मतभेद रहता है।
8. यदि सप्तम भाव में राहु स्थित हो और सप्तमेश पाप ग्रहों के साथ छ्ठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो जातक के तलाक की संभावना होती है।
9. यदि लग्न में मंगल हो व सप्तमेश अशुभ भावों में स्थित हो व द्वितीयेश पर मारणात्मक ग्रहों का प्रभाव हो तो पत्नी की मृत्यु के कारण व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख से वंचित होना पड़ता है।
10. यदि किसी स्त्री की जन्मपत्रिका में गुरु पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, सप्तमेश पाप ग्रहों से युत हो एवं सप्तम भाव पर सूर्य,शनि व राहु की दृष्टि हो तो ऐसी स्त्री को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
( जन्मपत्रिका में उपर्युक्त ग्रहस्थितियां निर्मित होने पर अशुभ ग्रहों की विधिवत् शान्ति करवाकर दुष्प्रभावों को कम करना श्रेयस्कर रहता है।)
क्यों बदल जाती है लाइफ पार्टनर की सोच, राहु है इसके लिए जिम्मेदार
आमतौर पर माना जाता है कि प्रेम प्रकरण के लिए शुक्र स्वराशि में, बारहवें भाव का बलवान होना या शुक्र से संबंध तथा पंचम भाव का बलवान होना ही पर्याप्त है परन्तु राहु भी इसके लिए जिम्मेदार होता है। राहु प्रेम संबंधों के पनपने के लिए उत्तरदायी होता है।
प्रेम संबंध भी उस प्रकार के जिसमें दो व्यक्ति समाज से नजरें बचाकर एक-दूसरे से मिलते हैं राहु उनके लिए उत्तरदायी होता है।
राहु रहस्य का कारक ग्रह है और तमाम रहस्य की परतें राहु की ही देन होती हैं। राहु झूठ का वह रूप है जो झूठ होते हुए भी सच जैसे प्रतीत होता है। जो प्रेम संबंध असत्य की डोर से बंधे होते हैं या जो संबंध दिखावे के लिए होते हैं वे राहु के ही बनावटी सत्य हैं। राहु व्यक्ति को झूठ बोलना सिखाता है। बातें छिपाना, बात बदलना, किसी के विश्वास को सफलता पूर्वक जीतने की कला राहु के अलावा कोई और ग्रह नहीं दे सकता।
राहु एकतरफा प्रेम का वह रूप है जिसमें व्यक्ति कभी अपने प्यार के सामने नहीं आता और फिर भी चुपचाप सब कुछ देखता रह जाता है, क्योंकि परिस्थितियां, ग्रह गोचर अनुकूल नहीं हैं बलवान नहीं हैं। राहु वह लालच है जिसमें व्यक्ति को कुछ अच्छा-बुरा दिखाई नहीं देता केवल अपना स्वार्थ ही दिखाई देता है। मांस मदिरा का सेवन, बुरी लत, चालाकी और क्रूरता, अचानक आने वाला गुस्सा, पीठ पीछे की बुराई यह सब राहु की विशेषताएं हैं। असलियत को सामने न आने देना ही राहु की खासियत है और हर तरह के झूठ का पर्दाफाश करना केतु का धर्म है।
केतु ही है जो संबंधों में दरार डालता है क्योंकि केतु ही दरार है। घर की दीवार में यदि दरार आ जाए तो समझ लीजिए यह केतु का बुरा प्रभाव है और यदि संबंधों में भी दरार आ जाए, घर का बंटवारा हो जाए या रिश्तों की परिभाषा बदल जाए तो यह केतु का काम समझें। दुविधा में राहु का हाथ होता है। किसी भी प्रकार की अप्रत्याशित घटना का कारक राहु ही होता है। यदि आप मन से जानते हैं की आप झूठ की राह पर हैं परन्तु आपका भ्रम है कि आप सही कर रहे हैं तो यह धारणा आपको देने वाला राहु ही है।
किसी को धोखा देने की प्रवृत्ति राहु पैदा करता है यदि आप पकडे जाए तो इसमें भी आपके राहु का दोष है क्योंकि वह आपकी कुंडली में आपके भाग्य में निर्बल है और यह स्थिति बार बार होगी। इसलिए राहु का अनुसरण करना बंद करें क्योंकि यह जब बोलता है तो कुछ और सुनाई नहीं देता। जिस तरह कर्ण पिशाचिनी आपको गुप्त बातों की जानकारी देती है उसी तरह यदि राहु आपकी कुंडली में बलवान होगा तो आपको सभी तरह की गुप्त बातें बैठे बिठाए ही पता चल जाएंगी। यदि आपको लगता है की सब कुछ गुप्त है और आपसे कुछ छुपाया जा रहा है या आपके पीठ पीछे बोलने वाले लोग बहुत अधिक हैं तो यह भी राहु की ही करामात है।
कुण्डली में ग्रहों की स्थिति व व्यक्ति का स्वभाव
कुछ लोगों में यह आकर्षण इतना अधिक होता है कि वह मर्यादा की रेखा पार कर जाता है। ऐसे व्यक्ति भंवरे की तरह होते हैं जो एक कली से दूसरी कली पर मंडराता रहता है।ठीक इसी तरह ऐसा पुरुष एक स्त्री के प्रति पूरी तरह ईमानदार और समर्पित नहीं हो पाता। इनमें पत्नी के अलावा दूसरी स्त्रियों से नजदीकी बढ़ाने की चाहत रहती है।
ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि व्यक्ति का ऐसा स्वभाव उनकी कुण्डली में मौजूद ग्रहों की कुछ खास स्थितियों के कारण होता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की कुण्डली में शनि और शुक्र एक साथ एक घर में होते हैं उनके वैवाहिक जीवन में कलह की संभावना अधिक रहती है।
इसका कारण यह है कि व्यक्ति का दूसरी स्त्रियों में रुझान रहता है। शुक्र अगर मंगल के मेष या वृश्चिक राशि में बैठा हो तब तो परायी स्त्री से निकटता की संभावना काफी ज्यादा रहती है।
कुछ लोगों की सुंदर सुंदर प्रेमिका होती है। ऐसे लोगों को देखकर दूसरे लोग सोचते हैं कि पता नहीं इसमें क्या है जो इसकी इतनी गर्लफ्रैंड है। अगर आप भी किसी के बारे में ऐसा सोचते हैं तो यह जान लीजिए कि वह व्यक्ति अपनी कुण्डली में पर्वत योग लेकर आया है।
यह योग तब बनता है जब पहले, चौथे, सातवें या दसवें घर में कोई शुभ ग्रह बैठा हो। इसके अलावा छठे और आठवें घर में भी शुभ ग्रह बैठा हो या फिर इन दोनों घरों में कोई ग्रह मौजूद नहीं हो। ज्योतिषशास्त्र कहता है कि जिनकी कुण्डली ऐसी होती है उनके कई सुंदर प्रेमिकाएं होती हैं।
क्यों नहीं मिलता है पारिवारिक सुख
.पारिवारिक सुख व्यक्ति की महती आवश्यकता है। एक स्नेहिल परिवार के बिना मनुष्य का जीवन अत्यन्त नीरस व दुष्कर हो जाता है। कभी-कभी प्रारब्ध कर्मानुसार व्यक्ति पारिवारिक सुख से वंचित हो जाता है। आइए जानते हैं कि जन्मपत्रिका में वे कौन से ऐसी ग्रहस्थितियां होती हैं जब व्यक्ति को पारिवारिक सुख प्राप्त नहीं होता।
पारिवारिक सुख का विचार जन्मपत्रिका के दूसरे भाव से किया जाता है। यदि दूसरे भाव का अधिपति (द्वितीयेश) अशुभ स्थानों में हो एवं द्वितीय भाव पर शनि,राहु-केतु जैसे क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति पारिवारिक सुख से वंचित रहता है। उसे अपने घर से दूर निवास करना पड़ता है। द्वितीयेश पर पाप ग्रहों के प्रभाव से पारिवारिक सुख बाधित होता है।
दाम्पत्य जीवन में बाधा डालने वाले योग
.1 . यदि सप्तम भाव पर राहु,शनि व सूर्य की दृष्टि हो एवं सप्तमेश अशुभ स्थानों में हो एवं शुक्र पीड़ित व निर्बल हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख नहीं मिलता।
2. यदि सूर्य-शुक्र की युति हो व सप्तमेश निर्बल व पीड़ित हो एवं सप्तम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
3. यदि सप्तम भाव में मकर या कुंभ राशि स्थित हो, सप्तमेश सूर्य,शनि व राहु के साथ हो एवं शुक्र पीड़ित व निर्बल हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख नहीं मिलता।
4. यदि सप्तमेश निर्बल व पीड़ित हो एवं सप्तम भाव पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
5. यदि द्वादश भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, शुक्र पीड़ित व निर्बल हो और सप्तम भाव
पर सूर्य,राहु व शनि का प्रभाव हो व सप्तमेश अशुभ स्थानों में हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
6. यदि लग्न में राहु स्थित हो एवं जन्मपत्रिका में सूर्य व शुक्र की युति हो तो जातक को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
7. यदि लग्न में शनि स्थित हो और सप्तमेश अस्त, निर्बल या अशुभ स्थानों में हो तो जातक का
विवाह विलम्ब से होता है व जीवनसाथी से उसका मतभेद रहता है।
8. यदि सप्तम भाव में राहु स्थित हो और सप्तमेश पाप ग्रहों के साथ छ्ठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो जातक के तलाक की संभावना होती है।
9. यदि लग्न में मंगल हो व सप्तमेश अशुभ भावों में स्थित हो व द्वितीयेश पर मारणात्मक ग्रहों का प्रभाव हो तो पत्नी की मृत्यु के कारण व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख से वंचित होना पड़ता है।
10. यदि किसी स्त्री की जन्मपत्रिका में गुरु पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, सप्तमेश पाप ग्रहों से युत हो एवं सप्तम भाव पर सूर्य,शनि व राहु की दृष्टि हो तो ऐसी स्त्री को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता।
( जन्मपत्रिका में उपर्युक्त ग्रहस्थितियां निर्मित होने पर अशुभ ग्रहों की विधिवत् शान्ति करवाकर दुष्प्रभावों को कम करना श्रेयस्कर रहता है।)
जय श्री राम ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा ,संपर्क सूत्र- 9760924411