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रत्नो द्वारा नव ग्रहों का समाधान करे ।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार माणिक्य रत्न के प्रभाव !
वैदिक ज्योतिष के अनुसार माणिक्य रत्न, सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है! इस रत्न पर सूर्य का स्वामित्व है! यह लाल या हलके गुलाबी रंग का होता है! यह एक मुल्वान रत्न होता है, यदि जातक की कुंडली में सूर्य शुभ प्रभाव में होता है तो माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए, इसके धारण करने से धारण करता को अच्छे स्वास्थ्य के साथ साथ पद-प्रतिष्ठा, अधिकारीयों से लाभ प्राप्त होता है! शत्रु से सुरक्षा, ऋण मुक्ति, एवं आत्म स्वतंत्रता प्रदान होती है! माणिक्य एक भहुमुल्य रत्न है और यह उच्च कोटि का मान-सम्मान एवम पद की प्राप्ति करवाता है! सत्ता और राजनीती से जुड़े लोगो को माणिक्य अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि यह रत्न सत्ता धारियों को एक उचे पद तक पहुचाने में बहुत सहायता कर सकता है!
माणिक्य धारण करने की विधि
यदि आप माणिक्य धारण करना चाहते है तो 5 से 7 कैरेट का लाल या हलके गुलाबी रंग का पारदर्शी माणिक्य ताम्बे की या स्वर्ण अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन सूर्य उदय के पश्चात् अपने दाये हाथ की अनामिका में धारण करे! अंगूठी के शुधिकरण और प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए सबसे पहले अंगूठी को दूध, गंगाजल, शहद, और शक्कर के घोल में डुबो कर रखे, फिर पांच अगरबत्ती सूर्य देव के नाम जलाए और प्रार्थना करे की हे सूर्य देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न धारण कर रहा हूँ! मुझे आशीर्वाद प्रदान करे ! तत्पश्चात अंगूठी को जल से निकालकर ॐ घ्रणिः सूर्याय नम: मन्त्र का जाप 108 बारी करते हुए अंगूठी को अगरबती के ऊपर से घुमाये और 108 बार मंत्र जाप के बाद अंगूठी को विष्णु या सूर्य देव के चरणों से स्पर्श करवा कर अनामिका में धारण करे! माणिक्य धारण तिथि से बारह दिन में प्रभाव देना प्रारंभ करता है और लगभग चार वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है फिर निषक्रिय हो जाता है! अच्छे प्रभाव के लिए बन्कोक का पारदर्शी माणिक्य 5 से 7 कैरेट वजन में धारण करे! सस्ते और भद्दे रत्नों को धारण करने से लाभ के स्थान पर हानी हो सकती है!

2..वैदिक ज्योतिष के अनुसार मोती, चन्द्र गृह का प्रतिनिधित्व करता है!
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मोती, चन्द्र गृह का प्रतिनिधित्व करता है! कुंडली में यदि चंद्र शुभ प्रभाव में हो तो मोती अवश्य धारण करना चाहिए ! चन्द्र मनुष्य के मन को दर्शाता है, और इसका प्रभाव पूर्णतया हमारी सोच पर पड़ता है! हमारे मन की स्थिरता को कायम रखने में मोती अत्यंत लाभ दायक सिद्ध होता है! इसके धारण करने से मात्री पक्ष से मधुर सम्बन्ध तथा लाभ प्राप्त होते है! मोती धारण करने से आत्म विश्वास में बढहोतरी भी होती है ! हमारे शरीर में द्रव्य से जुड़े रोग भी मोती धारण करने से कंट्रोल किये जा सकते है जैसे ब्लड प्रशर और मूत्राशय के रोग , लेकिन इसके लिए अनुभवी ज्योतिष की सलाह लेना अति आवशयक है, क्योकि कुंडली में चंद्र अशुभ होने की स्तिथि में मोती नुक्सान दायक भी हो सकता है! पागलपन जैसी बीमारियाँ भी कुंडली में स्थित अशुभ चंद्र की देंन होती है , इसलिए मोती धारण करने से पूर्व यह जान लेना अति आवशयक है की हमारी कुंडली में चंद्र की स्थिति क्या है! छोटे बच्चो के जीवन से चंद्र का बहुत बड़ा सम्बन्ध होता है क्योकि नवजात शिशुओ का शुरवाती जीवन , उनकी कुंडली में स्थित शुभ या अशुभ चंद्र पर निर्भर करता है! यदि नवजात शिशुओ की कुंडली में चन्द्र अशुभ प्रभाव में हो तो बालारिष्ठ योग का निर्माण होता है! फलस्वरूप शिशुओ का स्वास्थ्य बार बार खराब होता है, और परेशानिया उत्त्पन्न हो जाती है , इसीलिए कई ज्योतिष और पंडित जी अक्सर छोटे बच्चो के गले में मोती धारण करवाते है! द्रव्य से जुड़े व्यावसायिक और नोकरी पेशा लोगों को मोती अवश्य धारण करना चाहिए , जैसे दूध और जल पेय आदि के व्यवसाय से जुड़े लोग , लेकिन इससे पूर्व कुंडली अवश्य दिखाए !
मोती धारण करने की की विधि
यदि आप चंद्र देव का रत्न मोती धारण करना चाहते है, तो 5 से 8 कैरेट के मोती को चाँदी की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्लपक्ष के प्रथम सोमवार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी को दूध, गंगा जल, शक्कर और शहद के घोल में डाल दे! उसके बाद पाच अगरबत्ती चंद्रदेव के नाम जलाये और प्रार्थना करे की हे चन्द्र देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न, मोती धारण कर रहा हूँ , कृपया करके मुझे आशीर्वाद प्रदान करे! तत्पश्चात अंगूठी को निकाल कर ॐ सों सोमाय नम: का 108 बारी जप करते हुए अंगूठी को अगरबत्ती के उपर से घुमाए फिर मंत्र के पश्चात् अंगूठी को शिवजी के चरणों से लगाकर कनिष्टिका ऊँगली में धारण करे! मोती अपना प्रभाव 4 दिन में देना आरम्भ कर देता है, और लगभग 2 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है फिर निष्क्रिय हो जाता है! 2 वर्ष के पश्चात् पुनः नया मोती धारण करे! अच्छे प्रभाव प्राप्त करने के लिए साऊथ सी का 5 से 8 कैरेट का मोती धारण करे! मोती का रंग सफ़ेद और कोई काला दाग नहीं होना चाहिए !

3..मूंगा रत्नवैदिक ज्योतिष के अनुसार मुंगा रत्न मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है! बेहतरीन मुंगा जापान और इटली के समुन्द्रो में पाया जाता है! यदि जन्म कुंडली में मंगल अच्छे प्रभाव दे रहा हो तो मुंगा अवश्य धारण करना चाहिए ! कुंडली में मंगल कमज़ोर होने की स्थिति में मुंगा धारण करने से उसे बल दिया जा सकता है! मुंगा धारण करने से हमारे पराक्रम में वृद्धि होती है आलस्य में कमी आती है! मुंगा कुंडली में स्थित मांगलिक योग की अशुभता में भी कमी लता है तथा इस योग के द्वारा होने वाली हानियों को ख़त्म करता है, स्त्रियों में रक्त की कमी और मासिक धर्म, और रक्तचाप जैसी परेशानियो को नियंत्रित करने में भी मुंगा अत्यंत लाभकारी होता है! अदि आप में साहस की कमी और शत्रुओं से सामना करने की हिम्मत नहीं है तो इसमें मुंगा आपकी सहायता कर सकता है क्योकि इसके पहने से हमारे मनको बल प्राप्त होता है और फल स्वरूप हमारे भीतर निडरता आ जाती है और शत्रुओं का सामना करने की हिम्मत आ जाती है ! जिन बच्चों में आत्मविश्वास की कमी और दब्बूपन मोजूद होता है उन्हें मुंगा अवश्य धारण करना चाहिए ताकि वे दुनिया के सामने खुल कर आ सके ! पुलिस, या फोज के अधिकारिओं को मुंगा अवश्य धारण करना चाहिए! आभूषण और रेस्तरां के व्यवसाय से जुड़े लोगो के लिए मुंगा अतिआवश्यक है यह इन व्यवसायों में सफलता प्रदान करता है ! मंगल के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए उच्च कोटि का जापानी या इटालियन मुंगा ही धारण करना चाहिए ! इसका रंग सिंदूरी लाल और बिना दाग का होना चाहिए ! लेकिन सभी जातक को मुंगा धारण करने से पहले किसी अच्छे और अनुभवी ज्योतिष आचार्य की सलाह अवश्य लेनी चाहिए!
मूंगा धारण करने की विधि
यदि आप मंगल देव के रत्न, मुंगे को धारण करना चाहते है, तो 5 से 8 कैरेट के मुंगे को स्वर्ण या ताम्बे की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्ल पक्ष के किसी भी मंगलवार को सूर्य उदय होने के पश्चात् इसकी प्राण प्रतिष्ठा करे! इसके लिए सबसे पहले अंगुठी को दूध,,,गंगा जल शहद, और शक्कर के घोल में डाल दे, फिर पांच अगरबत्ती मंगल देव के नाम जलाए और प्रार्थना करे कि हे मंगल देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न मुंगा धारण कर रहा हूँ कृपया करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे ! अंगूठी को निकालकर 108 बारी अगरबत्ती के ऊपर से घुमाते हुए ॐ अं अंगारकाय नम: ११ बारी का जाप करे तत्पश्चात अंगूठी हनुमान जी के चरणों से स्पर्श कराकर अनामिका में धारण करे! मंगल के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए उच्च कोटि का जापानी या इटालियन मुंगा ही धारण करे, मुंगा धारण करने के 9 दिनों में प्रभाव देना आरम्भ कर देता है और लगभग 3 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है और फिर निष्क्रिय हो जाता है ! निष्क्रिय होने के बाद पुन: नया मुंगा धारण करे ! मुंगे का रंग लाल और दाग रहित होना चाहिए , मुंगे में कोई दोष नहीं होना चाहिए अन्यथा शुभ प्रभाओं में कमी आ सकती है !

4..पन्ना रत्नवैदिक ज्योतिष के अनुसार पन्ना, बुद्ध गृह का प्रतिनिधित्व करता है ! उच्च कोटि का पन्ना जाम्बिया तथा स्कॉट्लैंड की खानों से निकला जाता है ! इसका रंग हलके तोतिये से लेकर गाड़े हरे रंग तक हो सकता है ! असली पन्ने में काले रंग के हलके रेशे होते है ! पारदर्शी और बिना काले रेशे का पन्ना बहुत महंगा हो सकता है ! यदि ऐसा पन्ना सस्ता मिल जाए तो वह नकली हो सकता है, इसलिए पन्ने की जाच अवश्य कराए ! यदि कुंडली में बुध ग्रह शुभ प्रभाव में हो तो पन्ना अवश्य धारण करना चाहिए ! पन्ना धारण करने से दिमाग की कार्य क्षमता तीव्र हो जाती है और जातक पढ़ाई , लिखाई, व्यापार जैसे कार्यो में सफलता प्राप्त करता है! विधार्थियों को अपनी कुंडली का निरिक्षण किसी अच्छे ज्योतिषी से करवाकर पन्ना अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि हमारे शैक्षिक जीवन में बुध ग्रह की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है ! अच्छी शिक्षा बुध की कार्यकुशलता पर निर्भर है! यदि आप एक व्यापारी है और अपने व्यापार में उन्नति चाहते है तो आप पन्ना धारण कर सकते है! हिसाब किताब के कामो से जुड़े जातको को भी पन्ना अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि एक अच्छे गणितज्ञ की योग्यता बुध के बल पर निर्भर करती है! अभिनय और फ़िल्मी क्षेत्र से जुड़े जातको को भी पन्ना धारण करना चाहिए क्योकि बुध ग्रह इन क्षेत्रो से जुड़े जातको के जीवन में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाता है!पन्ना धारण करने की विधि
यदि आप बुध देव के रत्न, पन्ने को धारण करना चाहते है, तो 3 से 5 कैरेट के पन्ने को स्वर्ण या चाँदी की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्ल पक्ष के बुधवार को सूर्य उदय होने के पश्चात् इसकी प्राण प्रतिष्ठा करे! इसके लिए सबसे पहले अंगुठी को दूध,,,गंगा जल शहद, और शक्कर के घोल में डाल दे, फिर पांच अगरबत्ती बुध देव के नाम जलाए औ प्रार्थना करे कि हे बुध देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न पन्ना धारण कर रहा हूँ कृपया करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे ! अंगूठी को निकालकर 108 बारी अगरबत्ती के ऊपर से घुमाते हुए ॐ बू बुधाय नम: का जाप करे तत्पश्चात अंगूठी विष्णु जी के चरणों से स्पर्श कराकर कनिष्टिका में धारण करे! बुध के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए उच्च कोटि का जम्बियन पन्ना ही धारण करे, पन्ना धारण करने के 30 दिनों में प्रभाव देना आरम्भ कर देता है और लगभग 3 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है और फिर निष्क्रिय हो जाता है ! निष्क्रिय होने के बाद पुन: नया पन्ना धारण करे ! पन्ने का रंग हरा और दाग रहित होना चाहिए , पन्ने में कोई दोष नहीं होना चाहिए अन्यथा शुभ प्रभाओं में कमी आ सकती है !

4..पुखराज रत्नवैदिक ज्योतिष के अनुसार पुखराज, ब्रहस्पति गृह का प्रतिनिधित्व करता है! यह पीले रंग का एक बहुत मूल्यवान रत्न है, जितना यह मूल्यवान है उतनी ही इस रत्न की कार्य क्षमता प्रचलित है! इस रत्न को धारण करने से ईश्वरीय कृपया प्राप्त होती है! मेरे व्यक्तिगत अनुभव में, पुखराज धारण करने से विशेषकर आर्थिक परेशानिया खत्म हो जाती है, और धारण करता को अलग अलग रास्तो से आर्थिक लाभ मिलना प्रारम्भ हो जाता है, इसलिए मेरा यह मानना है की आर्थिक समस्याओ से निजाद प्राप्त करने और जीवन में तरक्की प्राप्त करने के लिए जातक को अवश्य अपनी कुंडली का निरक्षण करवाकर पुखराज धारण करना चाहिए! पुखराज धारण करने से अच्छा स्वास्थ्य, आर्थिक लाभ, लम्बी उम्र और मान प्रतिष्ठा प्राप्त होती है! जिन कन्याओ के विवाह में विलम्भ हो रहा हो उन्हें पुखराज अवश्य धारण करना चाहिए, मेरे अनुभव से पुखराज धारण करने से कन्याओ का विवाह अच्छे घर में होता है! जिन दम्पत्तियो को पुत्र की लालसा हो उन्हें भी पुखराज अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि ब्रहस्पति पति और पुत्र दोनों कारक होता है, लेकिन में फिर से दोहरा रहा हूँ की किसी भी रत्न को धारण करने से पहले किसी अनुभवी ज्योतिषी की सलाह अवश्य कर लें!पुखराज धारण करने की विधि
यदि आप ब्रहस्पति देव के रत्न, पुखराज को धारण करना चाहते है, तो 3 से 5 कैरेट के पुखराज को स्वर्ण या चाँदी की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्ल पक्ष के ब्रहस्पति वार को सूर्य उदय होने के पश्चात् इसकी प्राण प्रतिष्ठा करवाकर धारण करें! इसके लिए सबसे पहले अंगुठी को दूध,,,गंगा जल शहद, और शक्कर के घोल में डाल दे, फिर पांच अगरबत्ती ब्रहस्पति देव के नाम जलाए औ प्रार्थना करे कि हे ब्रहस्पति देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न पुखराज धारण कर रहा हूँ कृपया करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे ! अंगूठी को निकालकर 108 बारी अगरबत्ती के ऊपर से घुमाते हुए ॐ ब्रह्म ब्रह्स्पतिये नम: का जाप करे तत्पश्चात अंगूठी विष्णु जी के चरणों से स्पर्श कराकर तर्जनी में धारण करे! ब्रहस्पति के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए उच्च कोटि का सिलोनी पुखराज ही धारण करे, पुखराज धारण करने के 30 दिनों में प्रभाव देना आरम्भ कर देता है और लगभग 4 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है और फिर निष्क्रिय हो जाता है ! निष्क्रिय होने के बाद आप पुन: नया पुखराज धारण कर सकते है ! अच्छे प्रभाव के लिए पुखराज का रंग हल्का पीला और दाग रहित होना चाहिए , पुखराज में कोई दोष नहीं होना चाहिए अन्यथा शुभ प्रभाओं में कमी आ सकती है !

5..हीरा वैदिक ज्योतिष के अनुसार हीरा रत्न, शुक्र गृह का प्रतिनिधित्व करता है
वैदिक ज्योतिष के अनुसार हीरा रत्न, शुक्र गृह का प्रतिनिधित्व करता है ! यह एक अत्यंत प्रभावशाली रत्न होता है और इसका बहुत छोटा आकार भी बाज़ार में काफी कीमत रखता है ! ज्यदातर हीरा स्त्री वर्ग का पसंदीदा रत्न है ! और हो भी क्यों न, ज्योतिष के अनुसार शुक्र को भी सुन्दरता और स्त्री वर्ग के साथ जोड़ा गया है ! इसीलिए सीधे तोर पर हीरे का गहरा सम्बन्ध स्त्री वर्ग से स्थापित होता है ! शुक्र गृह सुन्दरता, वैभव और एश्वर्य तथा भोग विलास का गृह है ! सुखी ववाहिक जीवन के लिए भी शुक्र गृह का शुभ स्थिति में होना आवश्यक है ! और हीरे का सम्बन्ध सीधे तोर पर शुक्र से होने पर इन सभी प्रकार के सुख और वैभव की प्राप्ति हीरा धारण करने से होती है ! क्योकि हीरा धारण करने से हम शुक्र को बलि करते है है, फल स्वरूप शुक्र हमें उससे जड़े सभी वैभव और सुख प्रदान करता है ! विवाह सुख की प्राप्ति के लिए हीरा अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि इसके धारण करने से वर वधु के बिच मधुर सम्बन्ध स्थापित होता है और वे आजीवन ववाहिक जीवन का सुख प्राप्त करते है ! स्त्री वर्ग से जुड़े व्यापारियों के लिए भी हीरा शुभ फलदायक होता है जैसे आभूषण, कपडे, साज सज्जा का सामान आदि ! फ़िल्मी क्षेत्र अथवा टेलीविजन क्षेत्र से जुड़े लोगो को भी हीरा अवश्य धारण करना चाहिए क्योकि इन व्यवसायों में शुक्र गृह की बहुत बड़ी भूमिका होती है ! शुक्र की शुभता को प्राप्त किये बिना फ़िल्मी क्षेत्र, टेलीविजन क्षेत्र और मोडलिंग में सफलता प्राप्त करना नामुमकिन है ! जिन जातको की कुंडली में शुक्र गृह शुभ स्थिति में तथा शुभ प्रभाव दे रहा हो उन्हें हीरा अवश्य धारण करना चाहिए और यदि शुक्र की स्थिति ठीक न हो और शुक्र से जुड़े क्षेत्रों में परेशानिया उत्त्पन्न हो रही हो तो शुक्र के उपायों द्वारा अपनी परेशानियों का हल करें ! शुक्र रत्न हीरा धारण करने से पहले अनुभवी ज्योतिष की सलाह अवश्य लें अन्यथा अशुभ होने की स्थिति में यह फायदा देने की बजाय नुक्सान दे सकता है !हीरा रत्न धारण करने की विधि :
यदि आप शुक्र देव का रत्न हीरा धारण करना चाहते है, तो 0.50 से 2 कैरेट तक के हीरे को चाँदीया सोने की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्लपक्ष के शुक्रवार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी को दूध, गंगा जल, शक्कर और शहद के घोल में डाल दे! उसके बाद पाच अगरबत्ती शुक्रदेव के नाम जलाये और प्रार्थना करे की हे शुक्र देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न,हीरा धारण कर रहा हूँ , कृपया करके मुझे आशीर्वाद प्रदान करे! तत्पश्चात अंगूठी को निकाल कर ॐ शं शुक्राय नम: का 108 बारी जप करते हुए अंगूठी को अगरबत्ती के उपर से घुमाए फिर मंत्र के पश्चात् अंगूठी को लक्ष्मी जी के चरणों से लगाकर कनिष्टिका या मध्यमा ऊँगली में धारण करे! हीरा अपना प्रभाव 25 दिन में देना आरम्भ कर देता है, और लगभग 7 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है फिर निष्क्रिय हो जाता है! 7 वर्ष के पश्चात् पुनः नया हीरा धारण करे! अच्छे प्रभाव प्राप्त करने के लिए हीरे का रंग सफ़ेद और कोई काला दाग नहीं होना चाहिए !

6..नीलम रत्ननीलम रत्न शनि गृह का प्रतिनिधि रत्न है, यह एक अत्तयंत प्रभावशाली रत्न होता है ! कहते है की यदि नीलम किसी भी व्यक्ति को रास आ जाए तो वारे न्यारे कर देता है , लेकिन आखिर इस तथ्य की पीछे क्या सिद्धांत है ? क्या वाक्य में नीलम धारण करने से वारे न्यारे हो सकते है और यदि हाँ तो कैसे ? दरअसल नीलम शनि गृह का रत्न है इसलिए शनि गृह सम्बंधित सभी विशेषताए इसमें विद्यमान होती है, वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि का सम्बन्ध श्रम और मेहनत से होता है, ऐसा कहना बिलकुल गलत होगा की शनि किसी जातक को बैठे बिठाए शोहरत दे देता है बल्कि जो जातक आलसी होता है उसे शनि का रत्न नीलम कभी भी रास नहीं आता यह रत्न तो मेहनती जातको के लिए है जो अपनी मेहनत और लगन से कामयाबी हासिल करते है! यदि आप आलसी है तो आपका नीलम धारण करना व्यर्थ होगा क्योकि शनि के द्वारा कामयाबी तभी मिलती है जब जातक अत्यंत मेहनती होता है! यदि आप मेहनत करने से नहीं कतराते तो आप नीलम धारण कर सकते है और शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है! लेकिन नीलम धारण करने से पहले कुंडली का निरिक्षण अत्यंत आवश्यक है क्योकि मेरे अनुभव से केवल 5 से 10 प्रतिशत जातको को ही नीलम रत्न रास आता है! मेरे अनुभव से यह कहना भी ठीक नहीं होगा की नीलम धारण करने के कुछ क्षणों में शुभ या अशुभ प्रभाव दे देता है क्योकि शनि एक अत्यंत धीमा गृह है यह लगभग 2.5 वर्ष तक एक ही राशि में भ्रमण करता है और 12 राशियों का चक्कर पूरा करने में इसे लगभग 30 वर्ष लगते है और किसी जातक के पूर्ण जीवन में अत्यधिक केवल 3 बार सभी राशियों का भ्रमण करता है जो की सभी ग्रहों की अपेक्षा सबसे कम है, अब आप स्वयं ही बताये की इतनी धीमी गति से चलने वाला गृह , कुछ क्षणों में कैसे प्रभाव दे सकता है! बेहतरीन नीलम जम्मू और कश्मीर की खानों में पाया जाता है जो आज के दौर में लगभग मिलना नामुमकिन है और यदि मिल भी जाये तो उसकी कीमत अदा करना हर किसी के बस की बात नहीं है! श्री लंका का नीलम भी बेहतरीन होता है और यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है लेकिन यह भी एक महंगा रत्न होता है! इसकी कीमत 1000 रु कैरेट से लेकर 100000 रु कैरेट तक हो सकती है! अच्छे प्रभाव के लिए कम से कम 3000 रु कैरेट तक का नीलम धारण करना चाहिए !नीलम धारण करने की विधि
यदि आप नीलम धारण करना चाहते है तो 3 से 6 कैरेट के नीलम रत्न को स्वर्ण या पाच धातु की अंगूठी में लगवाये! और किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम शनि वार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी की प्राण प्रतिष्ठा करे! इसके लिए अंगूठी को सबसे पहले गंगा जल, दूध, केसर और शहद के घोल में 15 से 20 मिनट तक दाल के रखे, फिर नहाने के पश्चात किसी भी मंदिर में शनि देव के नाम 5 अगरबत्ती जलाये, अब अंगूठी को घोल से निलाल कर गंगा जल से धो ले, अंगूठी को धोने के पश्चात उसे 11 बारी ॐ शं शानिश्चार्ये नम: का जाप करते हुए अगरबत्ती के उपर से घुमाये, तत्पश्चात अंगूठी को शिव के चरणों में रख दे और प्रार्थना करे हे शनि देव में आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न धारण कर रहा हूँ किरपा करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे! फिर अंगूठी को शिव जी के चरणों के स्पर्श करे और मध्यमा ऊँगली में धारण करे!

7..कौन सा रत्न धारण करेंआज कल सभी लोग अपना लक्की रत्न धारण करना चाहते है ताकि वे जीवन में अधिक से अधिक तरक्की कर सकें! लेकिन सबकी यही समस्या है की आखिर कौन सा रत्न तरक्की देगा ? रत्न धारण करने के लिए हमेशा कुंडली का सही निरिक्षण अति आवश्यक है ! कुंडली के सही निरिक्षण के बिना रत्न धारण करना नुक्सान दायक हो सकता है! आप हमेशा इसी दुविधा में रहते है की क्या में पुखराज धारण कर सकता हूँ अथवा क्या मे नीलम धारण कर सकता हूँ ? यदि मुझे कोई समस्या का समाधान चहिये तो कौन सा रत्न धारण करूँ ! चलो आज हम यह जानने की कोशिश करते है की रत्न धारण करने के पीछे आखिर क्या तथ्य है!
वैदिक ज्योतिष के अनुसार हर ग्रह का सम्बन्ध किसी न किसी रत्न से है, और हर रत्न का सम्बन्ध किसी न किसी ग्रह से ! जैसे सूर्य का सम्बन्ध माणिक्य रत्न से, चन्द्र का मोती से, बुध का पन्ने से, गुरु का पुखराज से शुक्र का हीरे से, शनि का नीलं से, राहू का गोमेद से और केतु का लह्सुनिये से! इस प्रकार हमारे नौ ग्रहों का सम्बन्ध नौ रत्नों से है!
रत्नों के धारण करने के पीछे सामान्य तथ्य यही है की यदि आप किसी भी गृह का प्रतिनिधि रत्न धारण करते है तो आप उस गृह की कार्य शमता को बड़ा देते है! चाहे वह गृह आपके लिए नुक्सान दायक है अथवा फायदेमंद इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता! क्योकि यदि गृह फायदेमंद होगा तो रत्न धारण के पश्चात् अधिक फायदा देगा लेकिन यदि गृह नुक्सान दायक होगा तो रत्न धारण से वह अधिक नुक्सान करेगा! अब यदि आप कोई रत्न धारण करना चाहते है तो आपको यह अवश्य ज्ञात होना चाहिए की आपकी कुंडली के अनुसार आपका कौन सा गृह फायदेमंद अथवा नुक्सान दायक है! इसीलिए की भी रत्न धारण करने से पहले किसी अनुभवी ज्योतिषी की सलाह लेनी अति आवश्यक है!
एक अनुभवी ज्योतिषी किस प्रकार जान सकता है की कौन सा रत्न आपको धारण करना चाहिए! हमारी कुंडली में सामान्यता दिखाई देने वाले आछे गृह कई बार अच्छा फल देने की बजाय नुक्सान करते है और नुक्सान देने वाले गृह अच्छा फल दे जाते है! यह भी जरुरी नहीं है की फायदा देने वाले गृह की दशा आपके जीवन आएगी, और यदि आती है तो कब ? बचपन में, जवानी मे या बुढ़ापे में, क्योकि बचपन या बुढ़ापे में इन दशाओं का अधिक महत्व न होगा, क्योकि यदि जवानी में यह दशा आती है तो जातक सामान्य से अधिक तरक्की करता है! अब यदि आपके अच्छे गृह की दशा आपके जीवन में नहीं आती या फिर ऐसे समय में आती है जब उसका ज्यादा महत्व न हो , तो उस गृह के अच्छे फलों से आप वंचित रह जायेगे ! और यही कारन है की हमें अछे गृह के रत्नों को धारण करना चाहिए, फलस्वरूप यदि उस गृह की दशा न हो तो भी रत्न द्वारा उस गृह के प्रभाव को हम कायम रख सकते है !

रत्न और ज्योतिष :
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में कमजोर ग्रहों से शुभ प्रभाव लेने के लिए हम उन्हें रत्न द्वारा बल देते है .. रत्न मुख्यतः नौ प्रकार के होते है जैसे सूर्य के लिए माणिक, चन्द्र के लिए मोती, मंगल के लिए मूँगा, बुध के लिए पन्ना, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद, केतु के लिए लहसुनियाँ सभी रत्नों का उप रत्न भी होता है जितना अच्छा रत्न होता है उसका प्रभाव भी उतना अधिक होता है , सभी रत्नों का उनके ग्रहों के अनुसार दिन और अंगुलिया निर्धारित की गई है, रत्नों को शुभ समय में धारण करे , इसके अन्दर दैवीय शक्तिया होती है .. आज कई लोग इसे पाखंड मानते है अगर ऐसा है तो मूंगा नीलम और मानिक एक ही हाँथ में पहन कर देखे . इन्शान अपने आप समझ जायेगा की कुछ तो है इसके अन्दर .. बस रत्नों के प्रति आदर सत्कार और सम्मान होना चाहिए .. मानो तो य
े गंगा जल है ना मानो तो बहता पानी .. कभी भी राशियों के हिसाब से रत्न ना पहने हमेशा कुंडली के द्वारा शुभ ग्रहों की स्थिति को देखते हुए रत्न का चुनाव करे ..
सामान्यत: रत्नों के बारे में भ्रांति होती है जैसे विवाह न हो रहा हो तो पुखराज पहन लें, मांगलिक हो तो मूँगा पहन लें, गुस्सा आता हो तो मोती पहन लें। मगर कौन सा रत्न कब पहना जाए इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म निरीक्षण जरूरी होता है। लग्न कुंडली, नवमांश, ग्रहों का बलाबल, दशा-महादशाएँ आदि सभी का अध्ययन करने के बाद ही रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। लग्न कुंडली के अनुसार कारकर ग्रहों के (लग्न, पंचम, नवम,) रत्न पहने जा सकते हैं .रत्न पहनने के लिए दशा-महादशाओं का अध्ययन भी जरूरी है। केंद्र या त्रिकोण के स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है।
3, 6, 8, 12 के स्वामी ग्रहों के रत्न नहीं पहनने चाहिए। इनको शांत रखने के लिए दान-मंत्र जाप का सहारा लेना चाहिए। किसी भी लग्न के तीसरे, छठे, सातवें, आठवें और व्यय भाव यानी बारहवें भाव के स्वामी के रत्न नहीं पहनने चाहिए।
कौन सा रत्न किस धातु में पहने इसका भी बड़ा प्रभाव होता है जैसे
मोती -- चांदी में , हीरा, पन्ना , माणिक्य , नीलम , पुखराज -सोने में , और लहसुनिया -गोमेद - पंचधातु में पहनने से अधिक लाभ होता है ,
आज कल बाजार में नकली रत्न बहुत सारे आ रहे है, इसलिए रत्न लेने से पहले उसे पहले जाँच या परख कर के ही ख़रीदे ,रत्नों में अद्भूत शक्ति होती है. रत्न अगर किसी के भाग्य को आसमन पर पहुंचा सकता है तो किसी को आसमान से ज़मीन पर लाने की क्षमता भी रखता है. रत्न के विपरीत प्रभाव से बचने के लिए सही प्रकर से जांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए. ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करना चाहिए. रत्न शरीर से टच होने चाहिए , क्योंकी रत्नों का काम सूर्य से उर्जा लेकर उसे शरीर में प्रवाहित करना होता है ,
रत्न को धारण करने से पूर्व उसे पहले गंगाजल अथवा पंचामृत से स्नान करायें.उसके बाद रत्न को स्थापित करें. शुद्ध घी का दीपक जलाकर रत्न के अधिष्ठाता ग्रह के मन्त्र का पूर्ण संख्या में जाप करने के पश्चात उस रत्न को धारण करें।

जय श्री राम ॐ रां रामाय नम:  श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411