Predictions of days in astrology
ज्योतिष के अनुसार सप्ताह का हर दिन किसी न किसी ग्रह से जुड़ा हुआ है। ज्योतिष शास्त्र के जानकार यह मानते हैं। कि यदि किसी व्यक्ति का जन्म जिस दिन होता है। उस दिन के कारक ग्रह संबंधित व्यक्ति के स्वास्थ्य, नजरिए, स्वभाव और अन्य बहुत सारे पहलुओं पर अपना असर डालता है। ग्रहों का यह प्रभाव जातक को जीवन भर रहता है।
आपके जन्म का वार क्या था यानी आप किस दिन पैदा हुए थे इस बात पर भी काफी हद तक यह निर्भर करता है। कि आपका स्वभाव और व्यवहार कैसा होगा। जीवन के कौन से साल सुखदायी या दुखदायी होंग।
सोमवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। इस दिन जन्मे व्यक्ति हमेशा समाज में चर्चा का विषय बने रहते हैं। लेकिन इनका पारिवारिक जीवन अच्छा नहीं रहता। इन्हें अक्सर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बावजूद इसके ये लोग हंसमुख होते हैं। और काफी मीठा बोलते हैं। चन्द्र से संबंध होने के कारण इनका मन चंचल रहता है। और निरंतर विचार बदलते रहते हैं। ये लोग बुद्धिमान, कला प्रेमी और बहादुर होते हैं। और सुख-दुख में एक जैसे रहते हैं। इस दिन जन्मे व्यक्तियों की याददाश्त बहुत तेज होती है। लेकिन इनमें धैर्य की बहुत कमी होती है।
1.सोमवार को जन्में लोग सौम्य प्रकृति के होते हैं। वे सभी के साथ घुल-मिल कर रहने वाले, संवदेनशील, कल्पनाशील, प्रेमी, परिस्थिति के अनुसार ढलने वालें होते हैं।
2. ऐसे लोग वाद-विवाद से दूर ही रहते हैं। बिना वजह किसी से अप्रिय बात भी नहीं करते।
3. सोमवार को जन्में लोग दिखने में सुंदर व आकर्षक होते हैं। सबका ध्यान अपनी और आकर्षित करते हैं। माता का इनके प्रति अत्यधिक स्नेह रहता है।
4. ऐसे लोग कमजोर दिल के होते हैं। ये मेहनती होने के साथ ही अपने काम को किसी भी हालत में पूरा करते हैं।
5. सोमवार को जन्में लोग धन का अपव्यय नही करते। कई बार ये कंजूस भी हो जाते हैं।
6. इन लोगों को गले व छाती से जुडे रोग, चेचक या सफेद चकते बनना तथा आंखों से सम्बंधित रोग होने की संभावना रहती है।
7. ये लोग होटल, दूध, कागज, तेल, सौंदर्य सम्बंधी चीजों का बिजनेस करते हैं। इसके अलावा ये लेखक, कवि, मनोवैज्ञानिक व आकंडों से सम्बंधित कार्य करते हैं।
8. इनका वैवाहिक जीवन थोड़ा निराशाजनक रह सकता है। इसका कारण इनका स्वतंत्र प्रवृति का होना हैं।जो एक जगह बंध कर नही रह सकता।
मंगलवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। मंगलवार को जन्म लेने वाले व्यक्ति क्रोधी, पराक्रमी, अनुशासनप्रिय, ऊर्जा से परिपूर्ण और नए विचारों का समर्थन करने वाले होते हैं। इस दिन जन्मे व्यक्तियों पर मंगल ग्रह का विशेष प्रभाव रहता है। इसलिए इस दिन जन्में व्यक्ति सभी बाधाओं को पार कर हमेशा प्रगति के पथ पर अग्रसर होते हैं। ऐसे लोग अपनी प्रशंसा सुनने के बहुत इच्छुक रहते हैं। इनके दांपत्य जीवन में समय-समय पर विरोधाभास की स्थिति आती रहती है। अधिक क्रोध के कारण आसपास के लोगों से इनकी ज्यादा नहीं बनती।
1. मंगलवार को जन्में लोग उग्र, गुस्सैल और बहादुर होते हैं। यह किसी भी परेशानी के आगे जल्दी घुटने नहीं टेकते और ना ही गलत बात को स्वीकार करते हैं।
2. मंगलवार को जन्में लोगों को लग्जरी लाइफ जीना अच्छा लगता है। शॉपिंग करने से यह कभी पीछे नहीं हटते, आप कह सकते हैं। कि यह बेहद खर्चीले होते हैं।
3. छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आने के कारण दूसरों लोगों से इनके संबंध अधिक दिन तक नहीं टिकते। दोस्त हों या रिश्तेदार इनके स्वभाव के कारण दूरी बनाकर ही रहते हैं।
4. पुलिस, सेना, मैकेनिक, इंजीनियर, मार्केटिंग या मशीनरी आदि में इनकी सफलता के अधिक आसार होते हैं।
5. इनका शरीर गठीला होता है। जिसकी वजह से ये सेना, पुलिस आदि में चुने जाते हैं। ये धुन के पक्के होते हैं। जो ठान लें, पूरा करके ही दम लेते हैं।
6. इनकी लव लाइफ अच्छी रहती है। इन्हें सुंदर जीवनसाथी मिलता है। ये अपने परिवार के प्रति समर्पित रहते हैं।
7. इस वार को जन्मीं लड़कियों में भी समान गुण देखने को मिलते हैं। यह भी साहसी और निडर होती हैं। अकसर यह उस रुढ़िवादी सोच को तोड़ती है। जिसके अनुसार लड़कियों को नाजुक समझा जाता है।
8. इस दिन जन्मीं लड़कियां आत्मनिर्भर और स्वाबलंबी होने का ख्वाब रखती हैं। इन्हें क्रोध भी जल्दी आता है।और शांत भी शीघ्र ही हो जाती हैं। यह अपने फैसले खुद लेती हैं।
बुधवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। बुधवार को जन्मे लोग बहुमुखी प्रतिभा के धनी और तीक्ष्ण बुद्धिवाले होते हैं। साथ ही अपनी वाकपटुता से दूसरों की बोलती बंद कर देते हैं। इनपर बुध ग्रह का विशेष प्रभाव रहता है। लोग इन्हें पसंद करते हैं। ये अपने माता-पिता और भाई-बहनों से विशेष रूप से बहुत प्यार करते हैं। भाग्य पक्ष मजबूत होने के कारण, ये लोग सभी प्रकार की विपत्तियों से जल्द ही बाहर निकल आते हैं। और धन कमाने में कामयाब होते हैं।
बुधवार को जन्मे व्यक्ति पर बुध ग्रह का प्रभाव अधिक होता है। ये बहुमुखी प्रतिभा और तेज दिमाग वाले होते हैं। सिर्फ पढ़ाई ही नहीं जीवन के हर क्षेत्र में यह काफी होशियार रहते हैं।
2. अपनी मीठी बोली और सौम्य व्यवहार से यह लोगों के फेवरेट बन जाते हैं। परिस्थितियों के अनुसार ढल जाने की आदत के कारण इन्हें जीवन में अधिक संघर्ष नही करना पड़ता।
3. आमतौर पर शांत दिखने वाले इन लोगों का गुस्सा जल्दी शांत नहीं होता। दूसरों की बुराई और जिसके साथ फायदा हो उसके साथ चलने की आदत इन्हें दूसरों की नजरों में मतलबी बना देती है।
4. ये किसी भी काम के लिए प्लानिंग नहीं करते। कभी-कभी बिना सोचे-समझे किसी कार्य को आरम्भ कर देते हैं। जिसका परिणाम बेहतर नहीं मिलता।
5. एक साथ कई काम करने की इनकी आदत की झलक प्रेम संबंधों में भी नजर आती है। इनके कई प्रेम सम्बन्ध होते हैं। पर यह जिससे सच्चा प्यार करते हैं। उसे कभी धोखा नहीं देते।
6. जब बात जीवनसाथी की आती है। तो यह समझदार जीवनसाथी की आशा रखते हैं। और इनकी मुराद पूरी भी होती है।
7. ये लोग कला, गायन, नृत्य, लेखन या कमीशन एजेंट के काम में सफलता प्राप्त करते हैं।
8. लोगों को अपनी बात मनवाने का गुण इन्हें मार्केटिंग के क्षेत्र में भी सफलता दिलवाता है।
गुरुवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। इस दिन जन्म लेने वाले लोग महत्वाकांक्षी, गंभीर स्वभाव वाले होते हैं। और किसी भी मुश्किल समय का सामना बड़ी ही समझदारी और साहस के साथ करते हैं। इनके साहस और तर्क के आगे कोई टिक नहीं पाता। अपने विचारों और भावनाओं को दूसरे के सामने अच्छी तरह से पेश करते हैं। इसी कारण लोग इनसे जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। ये दोस्ती भी अच्छी संगत वालों से करते हैं। इसलिए दोस्तों की तरफ से इन्हें हमेशा खुशी मिलती है। गुरुवार को जन्मे जातक लम्बे, साफ रंग वाले और दिखने में आकर्षक होते है। गुरुवार को जन्म लेने वाले लोग बहुत ही बुद्धिमान और साहसी होते हैं। किसी भी मुश्किल का सामना करना इन्हे बखूबी आता है। इनसे कोई भी व्यक्ति बहुत ही जल्दी प्रभावित हो जाता है। इनके दोस्त बहुत ही अच्छे और इनके प्रति समर्पित होते है। इन्हें अपनी उम्र के 7, 12, 13, 16 और 30 वें साल में समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
गुरुवार को जन्मे व्यक्ति पर बृहस्पति ग्रह का प्रभाव रहता है। ऐसा व्यक्ति गंभीर चिंतन करने वाला और धार्मिक स्वभाव से संपन्न रहता है।
2. उसके स्वभाव में मिलनसारिता और सर्वहिताय की भावना रहती है। लेकिन यदि गुरु की स्थिति ठीक नहीं है। तो ऐसा व्यक्ति ढोंगी साधु या ढोंगी बन सकता है।
3. गुरुवार को जन्मे लोग शिक्षा के क्षेत्र में बहुत आगे होते हैं। उनके दिमाग की जितनी तारीफ की जाए उतना कम है।
4. यह लोग स्वभाव से थोड़े कंजूस होते हैं। इसलिए इनके पास धन रूका रहता है। ये मार्गदर्शक के रूप एक अच्छे मित्र बनते हैं। समाज सुधारक व उत्तम विचारक होते हैं।
5. इन्हें स्वास्थ्य से संबंधित कोई विशेष समस्या नहीं होती। इन्हें बस छोटी-मोटी चीजें ही प्रभावित करती है। जैसे कि मोटापा, शुगर, वसा, उदर, कफ, सूजन आदि।
6. इन लोगों को पढ़ने में विशेष रुचि होती है। इसलिए यह लोग अपना रास्ता खुद बना लेते हैं। यह लोग न्यायाधीश, वकील, मजिस्ट्रेट, ज्योतिषी, धर्मगुरू, शिक्षक, सुनार, वकालत, शेयर बाजार, शिक्षा, सामाजिक संगठनों आदि क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करते हैं।
7. गुरुवार के दिन जन्मे लोगों का विवाह सफल रहता है। ये लोग विश्वास के योग्य होते हैं। यह लोग अपने विवाहित जीवन को अच्छे से जीते हैं।
शुक्रवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। इस दिन जन्मे व्यक्ति की वाणी में मधुरता और सरलता होती है। और वाद-विवाद करने वाले से ये नफरत करते हैं। ऐसे लोग मनोरंजन के साधनों पर अधिक खर्च करते हैं। जिससे इनका आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है। ऐश्वर्य से भरा जीवन इन लोगों को काफी अच्छा लगता है। कला के क्षेत्र में ये लोग अपनी अलग जगह बना सकते हैं। प्रेम के मामले में ऐसे लोग एक जगह नहीं टिक पाते। इनके स्वभाव में ईर्ष्या अधिक होती है। इनका वैवाहिक जीवन सफल कहा जा सकता है। शुक्रवार माता लक्ष्मी का दिन है। इस दिन जन्मे इंसान बहुत जिंदादिल, बुद्धिमान, मृदुल स्वभाव वाले ,सहनशील और भावुक होते हैं। इनमे हर स्थिति को अपने अनुकूल बनाने कि अदभुत क्षमता होती है। माँ लक्ष्मी कि कृपा के कारण सामान्यता इन्हे जीवन का हर भौतिक सुख प्राप्त होता है। यह दानी प्रवृति के होते है। और दूसरों कि मदद के लिए सदैव तैयार रहते है । ये लोग साहित्य, कला और संगीत के प्रेमी होते है। इन्हें 20 और 24 वर्ष की आयु में कुछ दिक्क़ते उठानी पड सकती है।
1. शुक्रवार को जन्म लेने वाले को सजना-संवरना काफी पसंद होता है। मनोरंजन में इनकी काफी रुचि रहती है। शारीरिक बनावट की बात है। तो इस दिन जन्म लेने वाले व्यक्ति का सिर बड़ा होता है। और आंखें बड़ी और रंग गोरा होता है।
2. इस दिन जन्म लेने वाले व्यक्तियों में विपरीत लिंग के प्रति विशेष आकर्षण होता है। ये काफी चतुर होते हैं। कलात्मक चीजों एवं कला से इनका लगाव रहता है।
3. संगीत, लेखन, चित्रकला, फिल्म, फैशन, ब्यूटी इंडस्ट्री में ये काफी सफल होते हैं। ऐसे व्यक्ति आमतौर पर प्रसन्न दिखाई देते हैं। इनके चेहरे पर रौनक होती है। विरोधियों को किस प्रकार से अपने पक्ष में किया जा सकता है। यह कला इनमें खूब होती है।
4. बातों-बातों में किसी को अपनी ओर आकर्षित करने की योग्यता इनमें होती है। जिससे इनकी मित्रता का दायरा बड़ा होता है। और अपने हंसी-मजाक वाले स्वभाव के कारण मित्रों में लोकप्रिय होते हैं।
5. तारीफ सुनना इन्हें काफी अच्छा लगता है। बदलते मौसम में इन्हें अधिक सजग रहने की जरूरत होती है। क्योंकि सर्दी-जुकाम इन्हें जल्दी लग जाती है। वृद्धावस्था में जोड़ों में दर्द एवं हड्डियों में पीड़ा होती है।
6. शुक्र का प्रभाव मन को चंचल बनाता है। यही कारण है। कि प्रेम के मामले में ऐसे लोग एक जगह नहीं टिक पाते। यह अपने पार्टनर कई बार बदलते हैं। लेकिन सच्चे प्यार के मिलने पर उसका साथ भी कभी नहीं छोड़ते। यही वजह है। कि इनका वैवाहिक जीवन सफल होता है।
7. अगर इनके स्वभाव के नकारात्मक पहलुओं की बात करें तो घमंड, अहंकार और संयम की कमी अहम है। यह जरूरत से ज्यादा शो-ऑफ करना पसंद करते हैं।
8. अपने शौकों को पूरा करने के चक्कर में इन्हें आर्थिक संकट से भी गुजरना पड़ता है। इनके साथ मजाक थोड़ा सोच-समझकर करना चाहिए, पता नहीं कब यह किस बात का बुरा मान जाएं। कामुकता इनके अंदर की एक और बड़ी कमी होती है।
शनिवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। वे आलसी और संकोची होते हैं। ऐसे लोग किसी भी कार्य को करने के लिए योजना तो बनाते हैं। लेकिन उन योजनाओं के अनुरूप कार्य नहीं कर पाते। इन लोगों को दोस्ती करते वक्त सावधानी बरतने की जरुरत होती है। परिवार वालों और रिश्तेदारों से भी इन्हें बहुत सुख नहीं मिलता। इनके जीवन में कितने ही कष्ट क्यों न आएं, अपने हंसमुख स्वभाव के कारण ये लोग विचलित नहीं होते। शनिवार को जन्मे जातक हल्के गेंहुए,साफ रंग के अपने फन में माहिर लेकिन क्रोधी स्वभाव के होते है। इनकी बहुत जल्दी ही लोगो से अनबन हो जाती है। ये अपने धुन के पक्के होते है। इन्हे जीवन में बहुत उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। लेकिन अंत में विजय इन्ही कि होती है। इन्हे जीवन में बहुत संभल संभल कर चलने कि आदत होती है। जिससे कभी कभी ये आलसी भी हो जाते है। इनके दोस्त बहुत कम होते है। और यह अपने दोस्तों के प्रति ईमानदार होते है। परिवार वालों,रिश्तेदारों और दोस्तों से इन्हे बहुत सुख प्राप्त नहीं होता है। इनको जीवन के 20, 25 और 45 साल की आयु में कुछ दिक्क़ते हो सकती हैं।
1. शनिवार को जन्मे लोग कंजूस होते हैं। ये लोग अपनी बात के पक्के होते हैं। इन्हें अपने जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। लेकिन अंत में इनकी विजय होती है।
2. शनिवार को जन्मे लोग थोड़े क्रोधी स्वभाव के होते हैं। अपनी बात ही उनको सही लगती है। ये सामान्य कद काठी के होते हैं। ये अपनी मेहनत और लगन से पूर्ण शिक्षा प्राप्त करते हैं।
3. इनके जीवन में कितने ही कष्ट क्यों न आएं, अपने हंसमुख स्वभाव के कारण ये विचलित नहीं होते, क्योंकि शनि का आशीर्वाद इन पर हमेशा रहता है। ये धोखेबाज नहीं होते, परंतु प्रेम प्रदर्शन भी नहीं करते।
4. ये लोग जिस क्षेत्र में काम करते हैं। उसी में दक्ष हो जाते हैं। वैसे ये लोग विज्ञान, टेक्निकल, कृषि, वाहन सम्बन्धी, भूगोलविद, पुरातत्व के जानकार, जज, आईटी फील्ड, जासूस या गुप्त विभाग, पत्थर-लकड़ी से सम्बंधित कामों में सफलता प्राप्त करते हैं।
5. इन लोगों को अनेक प्रकार के रोग-दोष होते है। नसों से सम्बंधित रोग, हड्डी रोग, गठिया, पथरी, जोडों का दर्द, शारीरिक कमजोरी, सूखा रोग, कर्ण रोग, कमर या पीठ दर्द तथा पांव से जुड़ी बीमारियां इन्हें परेशान करती है।
6. ये अंतर्मुखी प्रतिभा के धनी होते है। योग्य होते हुए भी ये मान-सम्मान कम पाते है। ये बुरे नहीं होते परंतु कई बार परिस्थितियां इन्हें बुरा बनने पर मजबूर कर देती है।
7. ये एकांतप्रिय, प्रकृतिप्रेमी, समाज सुधारक, दूसरों के लिये अवाज उठाने वाले और अनेक दुखों का सामना करने वाले होते है।
8. जीवन के आरंभ में अनेक कष्ट प्राप्त करते हैं। लेकिन इनका बुढ़ापा सुखमय होता है। इन लोगों की शिक्षा में अनेक बाधाएं आती हैं।
रविवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। रविवार का संबंध सूर्यदेव से है। सूर्य, सिंह राशि का स्वामी है। सिंह का अर्थ है। शेर और शेर को स्वतंत्रता पसंद होती है। इसलिए रविवार को जन्मे व्यक्ति किसी की अधीनता में कार्य करना पसंद नहीं करते। सामान्य तौर पर भाग्यशाली होते हैं। कम बोलते हैं। और कला एवं शिक्षा के क्षेत्र में मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। धर्म में भी रुचि रखते हैं और फैमिली मेंबर्स के साथ ही दोस्तों और रिश्तेदारों को भी खुश रखने की कोशिश करते हैं। यदि इन लोगों को नेतृत्व का कार्य सौंप दिया जाय तो किसी भी क्षेत्र में बेहतर परिणाम देते हैं। रविवार भगवान सूर्य का दिन है। इस दिन पैदा हुए लोग समान्यता तेजस्वी, भाग्यशाली और दीर्घ आयु वाले होते हैं। कम बोलते हैं। लेकिन सोच समझकर बोलते है। और उनकी बातों का अपना प्रभाव होता है। इन्हे कला, साहित्य, शिक्षा और परामर्श के क्षेत्र में सफलता आसानी से प्राप्त होती है। यह आस्थावान होते है। और परिवार , रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ हमेशा अपना सम्बन्ध बनाये रखते है। 20 से 22 साल की उम्र में इन्हें कठनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
1. रविवार भगवान सूर्य का दिन माना जाता है। इस दिन पैदा हुए लोग सामान्यता तेजस्वी, भाग्यशाली और दीर्घ आयु वाले होते हैं। इस दिन जन्में लोग कम बोलने वाले होते हैं। लेकिन सोच-समझकर बोलते हैं। और उनकी बातो का अपना अलग ही प्रभाव होता है।
2. रविवार को जन्में लोग काफी आस्थावान होते हैं। तथा साथ ही परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ हमेशा अपना अच्छा सम्बन्ध बनाये रखते हैं। इस दिन जन्में लोगों की छवि सभी लोगों से भिन्न होती है। ये दिखने में काफी आकर्षक होते हैं। सामान्यतः ये लोग सभी को पसंद आते हैं।
3. ये लोग काफी संवेदनशील होते हैं। इसलिए किसी की भी बात का अगर इनको बुरा लगता है। तो आप बहुत दिनों तक उसके बारे में सोचते रहते हैं। इनके पास पैसों की कमी नहीं रहती है। ये अपने बल पर पैसे कमाने की क्षमता रखते हैं।
4. ये लोग काफी मेहनती होते हैं। और किसी भी क्षेत्र में अपने कठिन परिश्रमों से ऊचाइयों को छूते हैं। ये लोगो के लिए मिसाल और प्रेरणा बनते हैं।
5. इस दिन जन्में लोग मुख्यत: विज्ञान, टेक्निकल, आईटी फील्ड, इंजीनियर या मेकैनिक के क्षेत्र में कार्य करते हैं।
6. रविवार को जन्म लेने वाले लोगों का दांपत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। परन्तु कभी कभी अपने साथी के कुछ कामों से ये गुस्सा हो जाते हैं। पर उनके सही कार्य में उनका पूरा साथ देते हैं।
7. रविवार को जन्में लोगों को हाई ब्लड प्रेशर, गठिया, तथा नेत्र से संबंधित रोग हो सकते हैं।
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
Astrologer - पंडित आशु बहुगुणा
आप कुंडली ऑफलाइन दिखाना चाहते हैं। या ऑनलाइन।
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मुजफ्फरनगर UP
Tithi Result
1-- प्रतिपदा तिथि का आध्यात्मिक एवं ज्योतिषीय महत्त्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तिथि का अपना ही एक अलग महत्व है। तिथि के आधार पर ही व्रत, त्योहार और शुभ कार्य किए जाते हैं। सही तिथि पर कार्य करने से चमत्कारी लाभ प्राप्त होते हैं। वैसे तो हर महीने में 30 तिथि होती हैं। क्योंकि एक चंद्र मास में दो पक्ष होते हैं। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष और प्रत्येक पक्ष में 15-15 तिथियां होती है। दोनों पक्षों में 14 तिथियां समान होती है। लेकिन कृष्ण पक्ष की 15वीं तिथि अमावस्या और शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि पूर्णिमा कही जाती है। वहीं हिंदू पंचाग की पहली तिथि प्रतिपदा होती है।
प्रतिपदा तिथि
हिंदू पंचाग की पहली तिथि प्रतिपदा है। जिसका मतलब होता है। मार्ग। इसे हिंदी में परेवा या पड़वा कहते हैं। यह तिथि आनंद देने वाली कही गई है। इस तिथि से चंद्रमा अपनी नयी यात्रा पर निकलता है। प्रतिपदा तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 0 डिग्री से 12 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 181 से 192 डिग्री अंश तक होता है। प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्निदेव माने गए हैं। इस तिथि में जन्मे लोगों को अग्निदेव का पूजन अवश्य करना चाहिए।
प्रतिपदा तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
यदि प्रतिपदा तिथि रविवार या मंगलवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा प्रतिपदा तिथि शुक्रवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय शुभ कार्य करने की सलाह दी जाती है। हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद माह की प्रतिपदा शून्य होती है। वहीं शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में भगवान शिव का पूजन नहीं करना चाहिए क्योंकि शिव का वास श्मशान में होता है। दूसरी ओर कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में शिव का पूजन करना चाहिए।
शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को जन्मा जातक धनी एवं बुद्धिमान होगा। उन पर माता की विशेष कृपा दृष्टि बनी रहती है। जातक चंद्रमा के बलवान होने के कारण मानसिक रूप से भी बलवान होते हैं। वहीं दूसरी ओर कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में जन्मा जातक बुरी लोगों की संगति में पड़कर बुरी आदतों के शिकार हो सकते हैं। उनके द्वारा किए गए कार्य कभी कभार उनके परिवार को ही हानि पहुंचा सकते हैं।
शुभ कार्य
शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि में विवाह, यात्रा, उपनयन, चौल कर्म, वास्तु कर्म व गृह प्रवेश आदि मॉगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। इसके विपरीत कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में आप शुभ कार्य कर सकते हैं।
प्रतिपदा तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास हिंदू नववर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से ही हिंदू नववर्ष की शुरूआत होती है।
गोवर्धन पूजा
दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है। गोवर्धन की पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के पूजन का विधान है। साथ ही अन्नकूट के पूजन का भी विधान है।
नवरात्रि का प्रारंभ
साल में 4 बार नवरात्र आते हैं। जिनमें दो गुप्त नवरात्र होते हैं। लेकिन चैत्र, अश्विन, आषाढ़, और माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही नवरात्रि शुरू होती है। नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों का पूजन किया जाता है।
2-- द्वितीया तिथि का आध्यात्मिक एवं ज्योतिषीय महत्त्व
हिंदू पंचाग की दूसरी तिथि द्वितीया है। इस तिथि को सुमंगला भी कहा जाता है। क्योंकि यह तिथि मंगल करने वाली होती है। इसे हिंदी में दूज, दौज, बीया और बीज कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की दूसरी कला है। इस कला में कृष्ण पक्ष के दौरान भगवान सूर्य अमृत पीकर खुद को ऊर्जावान रखते हैं। और शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को वह चंद्रमा को लौटा देते हैं। द्वितीया तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 13 डिग्री से 24 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में द्वितीया तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 193 से 204 डिग्री अंश तक होता है। द्वितीया तिथि के स्वामी ब्रह्मा जी माने गए हैं। इस तिथि में जन्मे लोगों को ब्रह्मा जी का पूजन अवश्य करना चाहिए।
द्वितीया तिथि का ज्योतिष महत्त्व
यदि द्वितीया तिथि सोमवार या शुक्रवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा किसी माह में यदि द्वितीया तिथि दोनों पक्षों में बुधवार के दिन पड़ती है। तो यह सिद्धिदा कहलाती है। ऐसे समय शुभ कार्य करने से शुभ फल प्राप्त होता है। हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद माह की द्वितीया शून्य होती है। वहीं शुक्ल पक्ष की द्वितीया में भगवान शिव माता पार्वती के समीप होते हैं। ऐसे में शिवजी बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। दूसरी ओर कृष्ण पक्ष की द्वितीया में भगवान शिव का पूजन करना उत्तम नहीं माना जाता है।
द्वितीया तिथि में जन्मे जातक दूसरे लिंग के विपरीत बहुत जल्दी आकर्षित हो जाते हैं। यह भावनात्मक तौर पर बहुत कमजोर होते हैं। इन लोगों को लंबी यात्रा करना बहुत पसंद होता है। ये जातक प्रियजनों से ज्यादा परायों के प्रति अपना प्रेम दर्शाते हैं। ये जातक काफी मेहनती होते हैं। और उन्हें समाज में मान सम्मान भी प्राप्त होता है। इन जातकों का अपनों के साथ हमेशा मतभेद बना रहता है। इनके पास मित्रों की अधिकता होती है। जिसकी वजह से कभी कभार ये बुरी संगति में भी पड़ जाते हैं।
शुभ कार्य
कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या व शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है। इसके विपरीत शुक्ल पक्ष की द्वितीया में आप शुभ कार्य नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा किसी भी पक्ष की द्वितीया को नींबू का सेवन करना वर्जित है। साथ ही उबटन लगाना भी शुभ नहीं माना गया है।
द्वितीया तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
भाई दूज दीपावली के तीसरे दिन भाईदूज का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन यमराज के पूजन का भी महत्व होता है। इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस पर्व पर बहन अपने भाई को तिलक करती है। और यम की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय भी समाप्त हो जाता है।
जगन्नाथपुरी रथयात्रा
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ओडिशा स्थित जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ की यात्रा पर्व मनाया जाता है। इसमें श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की शोभायात्रा निकाली जाती है।
अशून्य शयन व्रत
अशून्य शयन व्रत श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया का रखा जाता है। इस व्रत में श्रीविष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस व्रत को रखने से स्त्री को सौभाग्य प्राप्त होता है। और दांपत्य जीवन सुखी रहता है।
नारद जयंती
ब्रह्मा जी के मानस पुत्र नारद जी का ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन नारद जयंती मनाई जाती है। इस दिन नारद जी के पूजन के साथ भगवान विष्णु का भी पूजन किया जाता है।
यम द्वितीया
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को पूर्व काल में [ यमुना ] ने यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। उस दिन नारकी जीवों को यातना से छुटकारा मिला और उन्हें तृप्त किया गया। वे पाप-मुक्त होकर सब बंधनों से छुटकारा पा गये और सब के सब यहां अपनी इच्छा के अनुसार सन्तोषपूर्वक रहे। उन सब ने मिलकर एक महान् उत्सव मनाया जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इसीलिए यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से विख्यात हुई। जिस तिथि को यमुना ने यम को अपने घर भोजन कराया था, उस तिथि के दिन जो मनुष्य अपनी बहन के हाथ का उत्तम भोजन करता है। उसे उत्तम भोजन समेत धन की प्राप्ति भी होती रहती है।
पद्म पुराण में कहा गया है। कि कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को पूर्वाह्न में यम की पूजा करके यमुना में स्नान करने वाला मनुष्य यमलोक को नहीं देखता ( अर्थात उसको मुक्ति प्राप्त हो जाती है। )
फल द्वितिया महात्म्य
राजा शतानीक ने कहा- मुने कृपा कर आप फल द्वितीया का विधान कहें जिसके करने से स्त्री विधवा नहीं होती और पति-पत्नी का परस्पर वियोग भी नहीं होता।
सुमन्तु मुनि ने कहा- राजन में फल द्वितीया का विधान कहता हूं इसी का नाम अशुन्यशयना द्वितीया भी है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से स्त्री विधवा नहीं होती और स्त्री पुरुष का परस्पर वियोग भी नहीं होता। क्षीर सागर में लक्ष्मी के समान भगवान विष्णु के शयन करने के समय यह व्रत होता है। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया के दिन लक्ष्मी के साथ श्रीवत्स धारी भगवान श्री विष्णु का पूजन कर हाथ जोड़कर इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए।
श्रीवत्स धारिचरिञ्छ्कान्त श्रीवत्स श्रीपते व्यय।
गार्हस्थ्यं मा प्रनाशं में यातु धर्मार्थकामदं।।
गावश्च मा प्रणस्यन्तु मा प्रणस्यन्तु में जनाः।।
जामयो मा प्रणस्यन्तु मत्तो दाम्पत्यभेदतः।
लक्ष्म्या वियुज्येहं देव न कदाचिद्दाथा भवान।।
तथा कलत्रसम्बन्धो देव मा में व्युजयतां
लक्ष्म्या न शून्यं वरद यथा ते शयनं सदा।।
शय्या ममाप्यशून्यास्तु तथा तु मधुसूदन।
इस प्रकार विष्णु की प्रार्थना करके व्रत करना चाहिए जो फल भगवान को प्रिय है। उन्हें भगवान की शैया पर समर्पित करना चाहिए और स्वयं भी रात्रि के समय उन्हीं फलों को खा कर दूसरे दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिए।
राजा शतानीक ने पूछा- महामुनि भगवान विष्णु को कौन से फल प्रिय हैं। आप उन्हें बताएं दूसरे दिन ब्राह्मण को क्या दान देना चाहिए? उसे भी कहें।
सुमन्तु मुनि बोले- राजन उस ऋतु में जो भी फल हो और पक्के हो उन्हीं को भगवान विष्णु के लिए समर्पित करना चाहिए। कड़वे कच्चे तथा खट्टे फल उनकी सेवा में नहीं चढ़ाने चाहिए। भगवान विष्णु को खजूर नारीकेल मातुलङ्ग अर्थात बिजोरा आदि मधुर फलों को समर्पित करना चाहिए। भगवान मधुर फलों से प्रसन्न होते हैं। दूसरे दिन ब्राह्मणों को भी इसी प्रकार के मधुर फल वस्त्र अन्न तथा स्वर्ण का दान देना चाहिए। इस प्रकार जो पुरुष मार्च तक व्रत करता है। उसका 3 जन्मों तक गृहस्थी जीवन नष्ट नहीं होता और ना तो ऐश्वर्या की कमी होती है। जो स्त्री इस व्रत को करती है। वह 3 जन्मों तक ना विधवा होती है। ना दुर्भागा और ना पति से पृथक ही रहती है। इस व्रत के दिन अश्विनी कुमारों की भी पूजा करनी चाहिए। राजन इस प्रकार मैंने द्वितीया कल्प का वर्णन किया है।
3-- तृतीया तिथि का आध्यात्मिक एवं ज्योतिषीय महत्त्व
भारतीय ज्योतिषीय गणना के अनुसार तृतीया तिथि आरोग्यदायिनी होती है। एवं इसे सबला नाम से भी जाना जाता है।
इसकी स्वामिनी माँ गौरी है। इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति का माता गौरी की पूजा करना कल्याणकारी रहता है। इस तिथि को जया तिथि के अन्तर्गत रखा गया है। अपने नाम के अनुरुप ये तिथि कार्यों में विजय प्रदान कराने वाली होती है। ऐसे में इस तिथि के दिन किसी पर या किसी काम में आपको जीत हासिल करनी हो तो उसके लिए इस तिथि का चयन बेहद अनुकूल माना जा सकता है। इस तिथि में सैन्य, शक्ति संग्रह, कोर्ट-कचहरी के मामले निपटाना, शस्त्र खरीदना, वाहन खरीदना जैसे काम करना अच्छा माना जाता है।
तृतीया में वार तिथि का योग
तिथियों से सुयोग, कुयोग, शुभ-अशुभ मुहूर्त का निर्माण होता है। तृतीया तिथि बुधवार के दिन हो तो मृत्यु योग बनता है। यह योग चन्द्र के दोनों पक्षों में बनता है। इसके अतिरिक्त किसी भी पक्ष में मंगलवार के दिन तृतीया तिथि हो तो सिद्ध योग बनाता है। इस योग में सभी कार्य करने शुभ होते है। बुधवार के साथ मिलकर यह तिथि दग्ध योग बनाती है। दग्ध योग में सभी शुभ कार्य करने वर्जित होते है। तृतीया तिथि में शिव पूजन निषिद्ध होता है। दोनों पक्षों की तृतीया तिथि में भगवान शिव का पूजन नहीं करना चाहिए। यह माना जाता है। कि इस तिथि में भगवान शिव क्रीडा कर रहे होते है।
तृतीया तिथि में शिल्पकला अथवा शिल्प संबंधी अन्य कार्यों में, सीमन्तोनयन, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, राज-संबंधी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं।
तृतीया तिथि में जन्मे व्यक्ति के गुण
जिस व्यक्ति का जन्म तृतीया तिथि में हुआ हो, वह व्यक्ति सफलता के लिए प्रयासरहित होता है। मेहनत न करने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। तथा ऎसा व्यक्ति दूसरों से द्वेष रखने वाला होता है। जातक कुछ आलसी प्रवृत्ति का भी हो सकता है। कई बार अपने ही प्रयासों की कमी के कारण मिलने वाले लाभ को पाने से भी वंचित रह जाता है।
इस तिथि में जन्मा जातक अपने विचारों पर बहुत अधिक नहीं टिक पाता है। किसी न किसी कारण से मन में बदलाव लगा ही रहता है। ऎसे में जातक को यदि किसी ऎसे व्यक्ति का साथ मिल पाता है। जो उसे सही गलत के प्रति सजग कर सके तो जातक जीवन में सफलता पा सकने में सक्षम हो सकता है।
आर्थिक क्षेत्र में संघर्ष बना रहता है। इसका मुख्य कारण जातक की दूसरों पर अत्यधिक निर्भरता होना भी होता है। वह स्वयं बहुत अधिक संघर्ष की कोशिश नहीं करता आसान रास्ते खोजता है। ऎसे में कई बार कम चीजों पर भी निर्भर रहना सिख जाता है। जातक को घूमने फिरने का शौक कम ही होता है। जातक एक सफल प्रेमी होता है। अपने परिवार के प्रति भी लगाव रखता है।
तृतीया तिथि के पर्व
तृतीया तिथि समय भी बहुत से पर्व मनाए जाते हैं। कज्जली तृतीया, गौरी तृतीया (हरितालिका तृतीया), सौभाग्य सुंदरी इत्यादि बहुत से व्रत और पर्वों का आयोजन किसी न किसी माह की तृतीया तिथि के दिन संपन्न होता है। तृतीया तिथि के दिन मनाए जाने वाले कुछ मुख्य त्यौहार इस प्रकार हैं।
अक्षय तृतीया - वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती के रुप में मना जाता है। इस दिन को एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुहूर्त के रुप में भी मान्यता प्राप्त है। इसी कारण इस दिन बिना मुहूर्त निकाले विवाह, गृह प्रवेश इत्यादि शुभ मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं। इसके साथ ही इस दिन स्नान, दान, जप, होम आदि करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है।
गणगौर तृतीया -चैत्र शुक्ल तृतीया को किया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रुप से सौभाग्य की कामना के लिए किया जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियां पति की मंगल कामना के लिए व्रत भी रखते हैं। इस दिन भगवान शिव-पार्वती की मूर्तियों को स्थापित करके पूजन किया जाता है। इस दिन देवी-देवताओं को झूले में झुलाने का भी विधि-विधान रहा है।
केदारनाथ बद्रीनाथ यात्रा का आरंभ
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन ही गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदीनाथ यात्रा का आरंभ हो जाता है। इस दिन केदारनाथ और बदीनाथ मंदिर के कपाट खुल जाते हैं। और चारधाम की यात्रा का आरंभ होता है।
रम्भा तृतीया - ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया के दिन रम्भा तृतीया मनाई जाती है। इसे रंभा तीज व्रत भी कहते हैं। इस दिन व्रत और पूजन विवाहित स्त्रीयां अपने पति की लम्बी आयु और संतान प्राप्ति एवं संतान के सुख हेतु करती हैं। अविवाहित कन्याएं योग्य जीवन साथी को पाने की इच्छा से ये व्रत करती हैं।
तीज - श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज उत्सव मनाया जाता है। तीज के समय प्रकृति में भी सुंदर छठा दिखाई देती है। इस त्यौहार में पेड़ों पर झूले डाले जाते हैं। और झूले जाते हैं। महिलाएं इस दिन विशेष रुप से व्रत रखती हैं। इसे हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है।
वराह जयंती- भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को वाराह जयंती के रुप में मनाई जाती है। भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक है। वराह अवतार। वाराह अवतार में भगवान विष्णु पृथ्वी को बचाते हैं। हरिण्याक्ष का वध करने हेतु भगवान श्री विष्णु वराह अवतार के रूप में प्रकट होते हैं।
4-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में चतुर्थी तिथि का महत्त्व
हिंदू पंचाग की चौथी तिथि चतुर्थी है। इस तिथि को खला के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इस तिथि में शुरू किए गए कार्य का विशेष फल नहीं मिलता है। इसे हिंदी में चतुर्थी, चउथि, चैथ और चडत्थी भी कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की चौथी कला है। इस कला में अमृत का पान जल के देवता वरुण करते हैं। और शुक्ल पक्ष में चंद्रमा को वापस कर देते हैं। चतुर्थी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 37 डिग्री से 48 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में चतुर्थी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 117 से 228 डिग्री अंश तक होता है। चतुर्थी तिथि के स्वामी प्रथमपूज्य गणपित माने गए हैं। जीवन में शुभता लाने के लिए इस तिथि में जन्मे लोगों को भगवान गणेश का पूजन अवश्य करना चाहिए।
चतुर्थी तिथि का ज्योतिष महत्त्व
यदि चतुर्थी तिथि गुरुवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा चतुर्थी तिथि शनिवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि चतुर्थी तिथि रिक्ता तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में भगवान शिव का पूजन नहीं करना चाहिए लेकिन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी में शिव का वास कैलाश पर होता है। इसलिए उनका पूजन करने से शुभ फल प्राप्त होता है।
चतुर्थी तिथि में जन्मे जातक विद्वान और ज्ञानी होते हैं। लेकिन वे भौतिक सुख-सुविधाओं के आदी भी होते हैं। उन्हें दान कार्यों में भी रुचि होती है। ऐसे लोगों को मित्रों के प्रति स्नेह भी बहुत होता है। इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति के पास धन की कमी नहीं होती है। और संतानसुख भी प्राप्त होता है।
चतुर्थी तिथि के शुभ कार्य
कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि में विद्युत कर्म, बन्धन, शस्त्र विषय, अग्नि आदि से सम्बन्धित कार्य करने चाहिए। इसके विपरीत शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में आप शुभ कार्य नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा किसी भी पक्ष की चतुर्थी तिथि में मूली और बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए।
चतुर्थी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
विनायक चतुर्थी
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या या अमावस्या के बाद की चतुर्थी (chaturthi) को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। इस तिथि को गणेश जी का जन्मदिन माना जाता है। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में प्रगति और सफलता प्राप्त होती है।
संकष्टी चतुर्थी
उत्तर भारत में माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। मान्यता है। कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
अंगारकी चतुर्थी
चंद्र मास में के दोनों पक्षों में से किसी भी पक्ष में जब चतुर्थी मंगलवार के दिन पड़ती है। तो उसे अंगारकी चतुर्थी कहते हैं। इस दिन गणेश जी की पूजा करने का विधान है। यह व्रत करने से पूरे सालभर के चतुर्थी व्रत रखने का फल प्राप्त होता है।
गणेश चतुर्थी
10 दिन तक चलने वाले गणेशोत्सव की शुरुआत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से ही होती है। इस दिन को गणेश चतुर्थी के नाम भी जाना जाता है। गणेशोत्सव को धूमधाम से पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। मान्यता है। कि विघ्नहर्ता का पूजन करने से जीवन की समस्त बाधाओं का अन्त होता है। तथा गणपति अपने भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों की वर्षा करते हैं।
5--- आध्यात्म एवं ज्योतिष में पंचमी तिथि का महत्त्व
हिंदू पंचाग की पांचवी तिथि पंचमी है। इस तिथि को श्रीमती और पूर्णा तिथि के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इस तिथि में शुरू किए गए कार्य का विशेष फल प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में पंचमी तिथि को सबसे महत्वपूर्ण तिथि माना जाता है। पंचमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 49 डिग्री से 60 डिग्री अंश तक होता है। यह तिथि चंद्रमा की पांचवी कला है। इस कला में अमृत का पान वषटरकार करते हैं। वहीं कृष्ण पक्ष में पंचमी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 229 से 240 डिग्री अंश तक होता है। पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता माने गए हैं। जीवन में संकटों को दूर करने के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को नाग देवता और भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
पंचमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
यदि पंचमी तिथि शनिवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा पंचमी तिथि गुरुवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। वहीं पौष माह के दोनों पक्षों की पंचमी तिथि शून्य फल देती है। वहीं शुक्ल पक्ष की पंचमी में भगवान शिव का वास कैलाश पर होता है। और कृष्ण पक्ष की पंचमी में शिव का वास वृषभ पर होता है। इसलिए दोनों पक्षों में शिव का पूजन करने से शुभ फल प्राप्त होता है।
पंचमी तिथि में जन्मे जातक व्यवहारकुशल और ज्ञानी होते हैं। ये लोग मातृपितृ भक्त होते हैं। इन्हें दान और धार्मिक कार्यों में रुचि होती है। ये जातक हमेशा न्याय के मार्ग पर चलते हैं। इस तिथि में जन्मे लोग कार्यों के प्रति निष्ठावान और सजग होते हैं। इन लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त होती है। और विदेश यात्रा भी करते हैं। ये अपने गुणों की वजह से समाज में मान-सम्मान भी प्राप्त करते हैं।
पंचमी तिथि में किये जाने वाले शुभ कार्य
कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि में में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या व शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है। वैसे तो पंचमी तिथि सभी प्रवृतियों के लिए यह तिथि उपयुक्त मानी गई है। लेकिन इस तिथि में किसी को ऋण देना वर्जित माना गया है। और शुक्ल पक्ष की पंचमी में आप शुभ कार्य नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा किसी भी पक्ष की पंचमी तिथि में कटहल, बेला और खटाई का सेवन नहीं करना चाहिए।
पंचमी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
ऋषि पंचमी
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। इस दिन सप्तऋषियों की पूजा अर्चना करने का विधान है। मान्यता है। कि यदि कोई भी स्त्री शुद्ध मन से इस व्रत को करें तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। और अगले जन्म में उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
रंग पंचमी
महाराष्ट्र में खासतौर पर मनाया जाने वाला पर्व रंगपंचमी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। कहा जाता है। कि इस दिन देवी-देवताओं की होली होती है। रंगपंचमी अनिष्टकारी शक्तियों पर विजय प्राप्ति का उत्सव भी है।
नाग पंचमी
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा अर्चना की जाती है। कहा जाता है। कि इस दिन पूजा करने से कुंडली में स्थित कालसर्प दोष समाप्त हो जाता है।
विवाह पंचमी
मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को विवाह पंचमी का पर्व मनाते हैं। इस तिथि में भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था। इस पावन दिन सभी को राम-सीता की आराधना करते हुए अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
बसंत पंचमी
माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी कहा जाता है। इस दिन बुद्धि की देवी मां सरस्वती का प्रादुर्भाव हुआ था। इसलिए इस दिन मां सरस्वती के पूजन का विधान है। गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस तिथि को शुभ माना जाता है।
सौभाग्य पंचमी
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को सौभाग्य पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। यह दिन व्यापारियों के लिए बेहद शुभ होता है।
लक्ष्मी पंचमी
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को लक्ष्मी पंचमी कहते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस तिथि को व्रत रखने से घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य से भरापूरा रहता है।
6-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में छठी तिथि का महत्त्व
हिंदू पंचाग की तिथि छठी कहलाती है। चन्द्र मास के दोनों पक्षों की छठी तिथि, षष्टी तिथि कहलाती है। शुक्ल पक्ष में आने वाली तिथि शुक्ल पक्ष की षष्टी तथा कृष्ण पक्ष में आने वाली कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि कहलाती है। षष्ठी तिथि के स्वामी भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र स्कन्द कुमार है। जिन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है।
षष्ठी तिथि वार योग
षष्टी तिथि जिस पक्ष में रविवार व मंगलवार के दिन होती है। उस दिन यह मृत्युदा योग बनता है। इसके विपरीत षष्ठी तिथि शुक्रवार के दिन हो तो सिद्धिदा योग बनता है।
यह तिथि नन्दा तिथि है। तथा इस तिथि के शुक्ल पक्ष में शिव का पूजन करना अनुकुल होता है। पर कृष्ण पक्ष की षष्ठी को शिव का पूजन नहीं करना चाहिए।
षष्ठी तिथि में किए जाने वाले काम
षष्ठी तिथि को काम में सफलता दिलाने वाला कहा जाता है। इस तिथि में कठोर कर्म करने की बात भी कही जाती है। जो कठिन कार्य जैसे घर बनवाना, शिल्प के काम या युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शस्त्र बनाना इत्यादि को इस तिथि में करना अच्छा माना गया है। कोई ऎसा कठोर कार्य करने वाले हैं। जिसमें सफलता की इच्छा रखते है। तो उसे इस तिथि के दौरान किया जा सकता है।
मेहनत के कामों को भी इसी दौरान करना अच्छा होता है। वास्तुकर्म, गृहारम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे काम भी इस तिथि में किए जा सकते हैं।
षष्ठी तिथि में जन्मे व्यक्ति स्वभाव
षष्ठी तिथि में व्यक्ति का जन्म होने पर व्यक्ति घूमने फिरने का शौक रखता है। अपने इसी शौक के कारण जातक को देश-विदेश में घूमने के मौके भी मिलते हैं। नए स्थानों पर जाने और उस माहौल को समझने कि कोशिश करता है। वह स्वभाव से झगडालू प्रकृति का होता है। तथा उसे उदर रोग कष्ट दे सकते है।
इस तिथि में जन्मा जातक संघर्ष करने की हिम्मत रखता है। जातक में जोश और उत्साह रहता है। वह अपने कामों के लिए दूसरों पर निर्भर रहने की इच्छा कम ही रखता है। अपने काम को करने के लिए लगातार प्रयास करने से दूर नहीं हटता है। जातक में अपनी बात को मनवाने की प्रवृत्ति भी होती है। वह सामाजिक रुप में मेल-जोल अधिक न रखता हो पर उसकी पहचान सभी के साथ होती है।
जातक में अधिक गुस्सा हो सकता है। उसके स्वभाव में मेल-जोल की भावना कम हो सकती है। वह स्वयं में अधिक रहना पसंद कर सकता है। जातक दूसरों को समझता है। तभी अपने मन की बात औरों के साथ शेयर करनी की कोशिश करता है। इन्हें मनाना आसान भी नहीं होता है।
बहुत जल्दी किसी को पसंद नही करता है। लेकिन जब पसंद करता है। तो उसके प्रति निष्ठा भाव भी रखता है। कई बार अपनी जिद के कारण कुछ बातों पर असफल होने पर निराशावादी भी हो सकता है। कई बार आत्मघाती भी बन सकता है। गुस्से के कारण दूसरे इससे परेशान रहेंगे लेकिन अपने व्यवहार में माहौल के अनुरुप ढलने की कोशिश भी करता है।
षष्ठी तिथि मे मनाए जाने वाले मुख्य पर्व
षष्ठी तिथि के दौरान बहुत से उत्सवों का नाम आता है। जिसमें स्कंद षष्ठी, छठ पर्व, हल षष्ठ, चंदन षष्ठी, अरण्य षष्ठी नामक पर्व इस षष्ठी तिथि को मनाए जाते हैं। देश के विभिन्न भागों में किसी न किसी रुप में इस तिथि का संबंध प्रकृति और जीवन को प्रभवित अवश्य करता है।
हल षष्ठी
भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हल षष्ठी के रुप में मनाया जाता है। षष्ठी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था जिस कारण इस तिथि को हल षष्ठी के रुप में भी मनाया जाता है। इस दिन उनके शस्त्र हल की पूजा का भी विधान है। इस दिन संतान की प्राप्ति एवं संतान सुख की कामना के लिए स्त्रियां व्रत भी रखती हैं।
स्कंद षष्ठी
स्कंद षष्ठी पर्व के बारे में उल्लेखनीय बात है। की आषाढ़ शुक्ल पक्ष की षष्ठी और कार्तिक मास कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द-षष्ठी के नाम से मनाया जाता है। इस तिथि को भगवान शिव के पुत्र स्कंद का जन्म हुआ था. स्कंद षष्ठी के दिन व्रत और भगवान स्कंद की पूजा का विधान बताया गया है।
चंद्र षष्ठी
आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को चंद्र षष्ठी के रुप में मनाया जाता है। इस समय पर चंद्र देव की पूजा की जाती है। रात्रि समय चंद्रमा को अर्ध्य देकर व्रत संपन्न होता है।
चम्पा षष्ठी
चम्पा षष्ठी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। मान्यता है की इस व्रत को करने से पापों से मुक्ति मिलती है। और भगवान शिव का आशिर्वाद मिलता है।
सूर्य षष्ठी
सूर्य षष्ठी व्रत भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा का विधान है। भगवान सूर्य की पूजा के साथ गायत्री मंत्र का जाप करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस दिन किए गया व्रत एवं पूजा पाठ सौभाग्य और संतान, आरोग्य को प्रदान करता है। सूर्योदय के समय भगवान सूर्य की पूजा स्तूती पाठ करना चाहिए।
विशेष षष्ठी तिथि संतान के सुख और जीवन में सौभाग्य को दर्शाती है। इस तिथि में आने वाले व्रत भी इस तिथि की सार्थकता को दर्शाते हैं। यह नंदा तिथि को शुभ तिथियों में स्थान प्राप्त है। इस तिथि में मौज मस्ती से भरे काम करना भी अच्छा होता है।
7-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में सप्तमी तिथि का महत्त्व
हिंदू पंचाग की सातवी तिथि सप्तमी कहलाती है। इस तिथि को मित्रापदा भी कहते हैं। सप्तमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 73 डिग्री से 84 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में सप्तमी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 253 से 264 डिग्री अंश तक होता है। सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्यदेव माने गए हैं। मान सम्मान में व़द्धि और उत्तम व्यक्तित्व के लिए इस तिथि में जन्मे लोगों को भगवान सूर्यदेव का पूजन अवश्य करना चाहिए।
सप्तमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
यदि सप्तमी तिथि सोमवार और शुक्रवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा सप्तमी तिथि बुधवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि सप्तमी तिथि भद्र तिथियों की श्रेणी में आती है। यदि किसी भी पक्ष में सप्तमी शुक्रवार के दिन पड़ती है। तो क्रकच योग बनाती है। जो अशुभ होता है। जिसमें शुभ कार्य निषिद्ध होते हैं। वहीं शुक्ल पक्ष की सप्तमी में भगवान शिव का पूजन करना चाहिए लेकिन कृष्ण पक्ष की सप्तमी में शिव का पूजन करना वर्जित है। ज्योतिष के अनुसार सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा का दिन माना जाता है, जो संकटों का नाश करने वाली हैं।
सप्तमी तिथि में जन्मे जातक अपने कार्यों को लेकर सजग और जिम्मेदार होते हैं। जिसकी वजह से इनके द्वारा किए गए कार्य हमेशा सफल होते हैं। सूर्य स्वामी होने की वजह से इनमें नेतृत्व का गुण पाया जाता है। इन लोगों को मेल मिलाप करना पसंद नहीं होता है। लेकिन ये लोग घूमने का शौक रखते हैं। ये जातक धनवान होते हैं। और मेहनत से किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश करते रहते हैं। इन लोगों में प्रतिभा कूट-कूटकर भरी होती है। इस तिथि में जन्मे जातक कलाकार भी होते हैं। इन व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली होता है। लेकिन इन जातकों को जीवनसाथी का भरपूर सहयोग नहीं मिलता है। जिसकी वजह से तनाव झेलना पड़ता है। इन जातकों को संतान की तरफ से प्रेम और साथ जरूर मिलता है। जिसकी वजह से मन में संतोष बना रहता है।
सप्तमी में किये जाने वाले शुभ कार्य
सप्तमी तिथि में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या व शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है। इस तिथि पर किसी नए स्थान पर जाना, नई चीजों खरीदना शुभ माना गया है। इस तिथि में चूड़ाकर्म, अन्नप्राशन और उपनयन जैसे संस्कार करना उत्तम माना जाता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की सप्तमी तिथि में तेल और नीले वस्त्रों को धारण नहीं करना चाहिए। साथ ही तांबे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।
सप्तमी तिथि के प्रमुख त्यौहार एवं व्रत व उपवास
शीतला सप्तमी - चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी मनाई जाती है। इस तिथि पर माता शीतला का पूजन किया जाता है। जो चिकन पॉक्स या चेचक नामक रोग दूर करने वाली माता हैं। इस दिन व्रतधारी घर पर चूल्हा नहीं जलते हैं। बल्कि बासी भोजन ग्रहण करते हैं।
संतान सप्तमी - भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को ललिता सप्तमी मनाई जाती है। इस तिथि पर सभी माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए संतान सप्तमी का व्रत रखती हैं। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है।
गंगा सप्तमी - वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा सप्तमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भागीरथ को गंगा माता को धरती पर लाने में कामयाबी मिली थी। इस दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है।
विष्णु सप्तमी - विष्णु सप्तमी मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनायी जाती है। इस तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। इस दिन व्रत करने से अधूरे या रुके हुए काम पूरे हो जाते हैं।
रथ आरोग्य सप्तमी - माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ आरोग्य सप्तमी कहते हैं। इस दिन व्रत करने से कुष्ठ रोग नहीं होता है। और जिसको होता है उसे मुक्ति मिल जाती है। क्योंकि इस तिथि पर श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ने व्रत किया था और उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई थी।
8-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में अष्टमी तिथि का महत्त्व
हिंदू पंचाग की आठवी तिथि अष्टमी कहलाती है। इस तिथि का विशेष नाम कलावती है। क्योंकि इस तिथि में कई तरह की कलाएं और विधाएं सीखना लाभकारी होता है। इसे हिंदी में अष्टमी, अठमी और आठें भी कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की आठवी कला है। इस कला में अमृत का पान अजेकपात नाम के देवता करते हैं। अष्टमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 85 डिग्री से 96 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 265 से 276 डिग्री अंश तक होता है। अष्टमी तिथि के स्वामी भगवान शिव माने गए हैं। लेकिन अष्टमी तिथि देवी दुर्गा की शक्ति के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। जीवन जीने की शक्ति और परेशानियों से लड़ने के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को भगवान शिव और मां दुर्गा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
अष्टमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
यदि अष्टमी तिथि बुधवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा अष्टमी तिथि मंगलवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि अष्टमी तिथि जया तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं शुक्ल पक्ष की अष्टमी में भगवान शिव का पूजन करना वर्जित है। लेकिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी में शिव का पूजन करना उत्तम माना गया है। चैत्र महीने के दोनों पक्षों में पड़ने वाली अष्टमी तिथि शून्य कही गई है।
अष्टमी तिथि में जन्मे जातक धार्मिक कार्यों में निपुण और दयावान भी होते हैं। इन्हें सदैव सत्य बोलना पसंद होता है। ये भौतिक सुख-सुविधाओं में विशेष रुचि लेते हैं। इस तिथि में जन्म लेने वाले लोग कई चीजों में विद्वान होते हैं। इनके मन में हमेशा समाज के कल्याण की इच्छा जागती रहती है। ये लोग किसी भी कार्य को करने के लिए मेहनत मे कमी नहीं छोड़ते हैं। इनको घूमना बहुत पसंद होता है। ये लोग उन कार्यों में भाग लेना ज्यादा पसंद करते हैं। जिनमें बल का इस्तेमाल करना पड़ता हो। ये लोग मनमौजी स्वभाव के होते हैं। अपनी मर्जी से नियम बनाते हैं। और खुद ही पालन भी करते हैं।
अष्टमी तिथि के शुभ कार्य
अष्टमी तिथि में युद्ध, राजप्रमोद, लेखन, स्त्रियों को आभूषण, नये वस्त्र खरीदने जैसे कार्य करने चाहिए। मान्यता है कि इस तिथि में अभिनय, नृत्य, गायन कला सीखने के लिए प्रवेश लेना भी शुभ है। इस तिथि में आप वास्तुकर्म, घर बनवाना, शस्त्र बनवाने जैसे कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। इसके अलावा किसी भी पक्ष की अष्टमी तिथि में नारियल नहीं खाना चाहिए।
अष्टमी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी- जन्माष्टमी का त्यौहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मथुरा नगरी में असुरराज कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को पैदा हुए। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि (आधी रात) थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
अहोई अष्टमी - अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को आता है| इस दिन अहोई माता के पूजन का विधान है। इस तिथि पर महिलाएं पुत्र प्राप्ति और संतान सुख के लिए व्रत रखती हैं। और शाम के वक्त तारे देखकर उपवास तोड़ा जाता है।
शीतला अष्टमी - चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी मनाई जाती है। इस तिथि पर शीतला माता की पूजा की जाती है। जिससे चिकन पॉक्स या चेचक जैसे रोग दूर रहें। इस दिन बासी भोजन खाया जाता है।
दुर्गाष्टमी - नवरात्र में अष्टमी के दिन देवी दुर्गा की आठवी शक्ति माता महागौरी का पूजन किया जाता है। इस दिन घरों में कन्याभोज भी कराया जाता है।
सीता अष्टमी - फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सीता अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन धरती पर माता सीता का जन्म हुआ था। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए और अविवाहित कन्याओं मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं।
राधा अष्टमी - भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधा अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है। कि इस दिन राधा जी का जन्म हुआ था। इस तिथि पर राधारानी की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करने से आपको राधारानी के साथ भगवान कृष्ण की कृपा भी मिल जाती है।
9-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में नवमी तिथि का महत्त्व
हिंदू पंचाग की नौवीं तिथि नवमी कहलाती है। इस तिथि का नाम उग्रा भी है। क्योंकि इस तिथि में शुभ कार्य करना वर्जित होता है। इसे हिंदी में नवमी, नौवीं भी कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की नौवीं कला है। इस कला में अमृत का पान मृत्यु के देवता यमराज करते हैं। नवमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 97 डिग्री से 108 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में नवमी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 277 से 288 डिग्री अंश तक होता है। नवमी तिथि की स्वामिनी देवी दुर्गा को माना गया है। इस तिथि में जन्मे जातकों को मां दुर्गा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
नवमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
यदि नवमी तिथि गुरुवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा नवमी तिथि शनिवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि नवमी तिथि रिक्त तिथियों की श्रेणी में आती है। इस तिथि में किए गए कार्यों की कार्यसिद्धि रिक्त होती है। वहीं शुक्ल पक्ष की नवमी में भगवान शिव का पूजन करना वर्जित है। लेकिन कृष्ण पक्ष की नवमी में शिव का पूजन करना उत्तम माना गया है। चैत्र महीने के दोनों पक्षों में पड़ने वाली नवमी तिथि शून्य कही गई है।
नवमी तिथि में जन्मे जातक कई विद्याओं में निपुण होते हैं। ये जातक जीवन में किसी भी तरह से सफल होने का प्रयास करते रहते हैं। और कई बार सफल भी हो जाते हैं। इनको धन कमाने की हमेशा लालसा रहती है। ये लोग विपरीत लिंग और धन दोनों के लिए महत्वाकांक्षी होते हैं। ये लोग अपने भाई-बंधुओं के प्रति प्रेम रखते हैं। इनको पिता और वरिष्ठजनों से हमेशा सहयोग मिलता रहता है। इनके अंदर कठिन कार्यों को करने की क्षमता होती है। इस तिथि में जन्म लोग त्याग और समर्पण की भावना रखते हैं। ये लोग प्रेम के मामले में सामान्य रहते हैं। और अपने साथी के प्रति निष्ठा रखते हैं। इन लोगों में हर वक्त जीतने का जुनून बना रहता है।
नवमी तिथि के शुभ कार्य
नवमी तिथि में विद्युत कर्म, बन्धन, शस्त्र विषय, अग्नि आदि से सम्बन्धित कार्य करने चाहिए। मान्यता है। कि इस तिथि में कठिन कार्य जैसे शिकार करना, वाद विवाद करना, हथियार निर्माण शुरू करने चाहिए। इसके अलावा किसी भी पक्ष की नवमी तिथि में लौकी और कद्दू नहीं खाना चाहिए।
नवमी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
महानवमी - नवरात्र का नौवा दिन देवी दुर्गा की नौवीं शक्ति माता सिद्धिदात्री का होता है। इस दिन साधना करने वाले साधकों को सभी दिव्य सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
महानंदा नवमी - मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानंदा नवमी मनाई जाती है। इस तिथि पर माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है। इस दिन व्रत करने से दरिद्रता दूर हो जाती है।
अक्षय नवमी - कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी या आंवला नवमी मनाई जाती है। इस तिथि पर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और पारिवारिक सुख के लिए व्रत रखती हैं।
रामनवमी - चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को भारतवर्ष में लोग रामनवमी का पर्व मनाते हैं। इस तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्म धरती पर हुआ था। इस दिन भगवान राम के पूजन का विधान है। इस दिन व्रत रखने से पारिवारिक सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
10-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में दशमी तिथि का महत्त्व
हिंदू पंचाग की दसवीं तिथि दशमी कहलाती है। इस तिथि का नाम धर्मिणी भी है। क्योंकि इस तिथि में शुभ कार्य करने से शुभ फल प्राप्त होता है। इसे हिंदी में द्रव्यदा भी कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की दसवीं कला है। इस कला में अमृत का पान वायुदेव करते हैं। दशमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 109 डिग्री से 120 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 289 से 300 डिग्री अंश तक होता है। दशमी तिथि के स्वामी यमराज को माना गया है। आरोग्य और दीर्घायु प्राप्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को यमदेव की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
दशमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
यदि दशमी तिथि शनिवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा दशमी तिथि गुरुवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि दशमी तिथि पूर्णा तिथियों की श्रेणी में आती है। इस तिथि में किए गए कार्यों की कार्य पूर्ण होते हैं। वहीं किसी भी पक्ष की दशमी तिथि पर भगवान शिव का पूजन करना वर्जित माना जाता है। आश्विन महीने के दोनों पक्षों में पड़ने वाली दशमी तिथि शून्य कही गई है।
दशमी तिथि में जन्मे जातक को धर्म और अर्धम का ज्ञान भलीभांति होता है। उनमें देशभक्ति कूट कूटकर भरी होती है। ये लोग धार्मिक कार्यों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। ये हमेशा जोश और उत्साह से भरे होते हैं। वे अपने विचार दूसरों के सामने प्रकट करने में संकोच नहीं करते हैं। ये लोग काम करने में हठी होते हैं। लेकिन उदार भी बने रहते हैं। इन तिथि में जन्मे लोग आर्थिक रूप से संपन्न और दूसरों की भलाई करने में लगे रहते हैं। इन जातकों में कलात्मकता भी होती है। ये रंगमंच यानि थिएटर जैसी कला के प्रति जागरुक रहते हैं। ये लोग पारिवार को सदैव अपने साथ लेकर चलने वाले होते हैं।
दशमी तिथि के शुभ कार्य
दशमी तिथि में नए ग्रंथ का विमोचन, शपथग्रहण समारोह, उदघाटन करना आदि सम्बन्धित कार्य करने चाहिए। साथ ही इस तिथि में वाहन, वस्त्र खरीदना, यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या व शिल्प आदि कार्य करना भी लाभप्रद रहता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की दशमी तिथि में उबटन लगाना और मांस, प्याज, मसूर की दाल खाना वर्जित है।
दशमी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
विजयादशमी आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा के पर्व मनाया जाता है। यह त्योहार अर्धम पर धर्म की विजय का प्रतीक है। इस दिन नए व्यापार, नए वाहन, आभूषण को खरीदना शुभ माना जाता है।
गंगा दशहरा ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है। मान्यता है। कि इस दिन मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थी।
11-- एकादशी तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में का महत्त्व
हिंदू पंचाग की ग्यारहवीं तिथि एकादशी कहलाती है। इस तिथि का नाम ग्यारस या ग्यास भी है। यह तिथि चंद्रमा की ग्यारहवीं कला है। इस कला में अमृत का पान उमादेवी करती हैं। एकादशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 121 डिग्री से 132 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 301 से 312 डिग्री अंश तक होता है। एकादशी तिथि के स्वामी विश्वेदेवा को माना गया है। संतान, धन-धान्य और घर की प्राप्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को विश्वेदेवा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
एकादशी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
यदि एकादशी तिथि रविवार और मंगलवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा एकादशी तिथि शुक्रवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। यदि किसी भी पक्ष में एकादशी सोमवार के दिन पड़ती है। तो क्रकच योग बनाती है। जो अशुभ होता है। जिसमें शुभ कार्य निषिद्ध होते हैं। बता दें कि एकादशी तिथि नंदा तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं किसी भी पक्ष की एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करना शुभ माना जाता है।
एकादशी तिथि में जन्मे जातक उदार और दूसरों के प्रति प्रेमभावना रखने वाले होते हैं। लेकिन इनमें चालाकी बहुत होती है। ये धनवान होते हैं। और धार्मिक कार्यों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। ये लोग अपने से बड़ों और गुरुओं का आदर सत्कार बहुत करते हैं। ये कला के क्षेत्र में रुचि रखते हैं। इन जातकों को संतान सुख प्राप्त होता है। और न्याया के मार्ग पर चलते हैं। कूटनीति की कला में माहिर होते हैं।
एकादशी के शुभ कार्य
एकादशी तिथि के दिन व्रत उपवास, अनेक धर्मकृत्य, देवोत्सव, उद्यापन व धार्मिक कथा आदि कर्म करना उत्तम रहता है। इस दिन यात्रा भी करना शुभ होता है। आप एकदशी के दिन गृहप्रवेश कर सकेत हैं। इसके अलावा इस तिथि पर चावल या अन्न खाना वर्जित हैं। साथ ही गोभी, बैंगन, लहसुन व प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।
एकादशी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
सफला एकादशी (पौष कृष्ण एकादशी)
पौष पुत्रदा एकादशी (पौष शुक्ल एकदशी)
षटतिला एकादशी (माघ कृष्ण एकादशी)
जया एकादशी (माघ शुक्ल एकादशी)
विजया एकादशी (फाल्गुन कृष्ण एकादशी)
आमलकी एकादशी (फाल्गुन शुक्ल एकादशी)
पाप मोचिनी एकादशी (चैत्र कृष्ण एकादशी)
कामदा एकादशी (चैत्र शुक्ल एकादशी)
वरुथिनी एकादशी (वैशाख कृष्ण एकादशी)
मोहिनी एकादशी (वैशाख शुक्ल एकादशी)
अपरा एकादशी (ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी)
निर्जला एकादशी (ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी)
योगिनी एकादशी (आषाढ़ कृष्ण एकादशी)
देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल एकादशी)
कामिका एकादशी (श्रावण कृष्ण एकादशी)
श्रावण पुत्रदा एकादशी (श्रावण शुक्ल एकादशी)
अजा एकादशी (भाद्रपद कृष्ण एकादशी)
परिवर्तिनी/पार्श्व एकादशी (भाद्रपद शुक्ल एकादशी)
इंदिरा एकादशी (आश्विन कृष्ण एकादशी)
पापांकुश एकादशी (आश्विन शुक्ल एकादशी)
रमा एकादशी (कार्तिक कृष्ण एकादशी)
प्रबोधिनी/देवउठनी/देवोत्थान एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी)
उत्पन्ना एकादशी (मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी)
मोक्षदा एकादशी (मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी)
12---द्वादशी तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व
हिंदू पंचाग की बाहरवीं तिथि द्वादशी कहलाती है। इस तिथि का नाम यशोबला भी है। क्योंकि इस दिन पूजन करने से यश और बल की प्राप्ति होती है। इसे हिंदी में बारस भी कहा जाता है। यह तिथि चंद्रमा की बारहवीं कला है। इस कला में अमृत का पान पितृगण करते हैं। द्वादशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 133 डिग्री से 144 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में द्वादशी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 313 से 324 डिग्री अंश तक होता है। द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान विष्णु को माना गया है। इस तिथि में जन्मे जातकों को श्रीहरि की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इस तिथि के दिन भगवान विष्णु के भक्त बुध ग्रह का भी जन्म हुआ था।
द्वादशी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
यदि द्वादशी तिथि सोमवार और शुक्रवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा द्वादशी तिथि बुधवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। यदि किसी भी पक्ष में द्वादशी रविवार के दिन पड़ती है तो क्रकच योग बनाती है। जो अशुभ होता है। जिसमें शुभ कार्य निषिद्ध होते हैं। बता दें कि द्वादशी तिथि भद्रा तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं किसी भी पक्ष की द्वादशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है।
द्वादशी तिथि में जन्मे जातकों को मन बहुत चंचल होता है। ये लोग घुमक्कड़ी होते हैं। इनको निर्णय लेने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ये जातक काफी भावुक स्वभाव के होते हैं। ये जातक मेहनती और परिश्रम करने वाले होते हैं। इन्हें संतान सुख और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति भी मिलती है। ये लोग खाने-पीने के शौकीन होते हैं।
द्वादशी के शुभ कार्य
द्वादशी तिथि में यात्रा छोड़कर अन्य सभी कार्य करने शुभ होते हैं। इस तिथि में विवाह, घर निर्माण और गृहप्रवेश करना भी लाभप्रद रहता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की द्वादशी तिथि में मसूर की दाल खाना वर्जित है।
द्वादशी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
तिल द्वादशी / भीष्म द्वादशी / गोविंद द्वादशी
माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी या तिल द्वादशी कहते हैं। इस तिथि पर भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए थे। इस तिथि पर पूर्वजों का तर्पण करने का विधान है। इस दिन तिल से भगवान विष्णु की पूजा किया जाती है।
गोवत्स द्वादशी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस तिथि पर गाय और बछड़ो की पूजा की जाती है। इस तिथि पर संतान की उन्नति, सुरक्षा और सुख-शांति के लिए माताएं व्रत रखती हैं।
वामन द्वादशी चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामनदेव धरती पर अवतरित हुए थे। इस दिन भगवान विष्णु के पूजन और ब्राह्मणों को दान करने का विधान है।
अखण्ड द्वादशी मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को अखण्ड द्वादशी कहा जाता है। इस तिथि पर श्रीहरि की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश हो जाता है। और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
पद्मनाभ द्वादशी आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को पद्मनाभ द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के अनंत पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करने से धन-धान्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
रुक्मिणी द्वादशी वैसाख माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को रूक्मिणी द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने रूक्मिणी का हरण करके विवाह किया था। इस दिन रूक्मिणी देवी का पूजन किया जाता है। इस तिथि पर व्रत करने से अविवाहति कन्याओं को श्रीकृष्ण जैसे पति यानि योग्य वर की प्राप्ति जल्द हो जाती है।
13-- त्रयोदशी तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व
हिंदू पंचाग की तेरहवीं तिथि त्रयोदशी कहलाती है। इस तिथि का नाम जयकारा भी है। इसे हिंदी में तेरस भी कहा जाता है। यह तिथि चंद्रमा की तेरहवीं कला है। इस कला में अमृत का पान धन के देवता कुबेर करते हैं। त्रयोदशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 145 डिग्री से 156 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 313 से 336 डिग्री अंश तक होता है। त्रयोदशी तिथि के स्वामी कामदेव को माना गया है। जीवन में प्रेम और दांपत्य सुख प्राप्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को कामदेव की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
त्रयोदशी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
यदि त्रयोदशी तिथि बुधवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा त्रयोदशी तिथि मंगलवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि त्रयोदशी तिथि जया तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है। लेकिन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव का पूजन वर्जित है।
त्रयोदशी तिथि में जन्मे जातक महासिद्ध और परोपकारी होते हैं। इन्हें कई विद्याओं का ज्ञान होता है। और अधिक से अधिक विद्या अर्जन करने में रुचि रखते हैं। इन लोगों को धार्मिक शास्त्रों का ज्ञान होता है। और इनको सभी इंद्रियों को जीतने वाला माना जाता है। इस तिथि में जन्मे जातक में सहनशीलता बहुत कम होती है। ये लोग आत्मविश्वास के साथ आगे तो बढ़ते हैं। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगती है। ये लोग वाद-विवाद में तेज होते हैं और अपने तर्कों के आगे दूसरों को कुछ नहीं समझते हैं। ये लोग जीवन में संघर्ष बहुत करते हैं। और तब ही उन्हें सफलता का स्वाद चखने को मिलता है।
त्रयोदशी के शुभ कार्य
त्रयोदशी तिथि में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या व शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की त्रयोदशी तिथि में उबटन लगाना और बैंगन खाना वर्जित है।
त्रयोदशी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
प्रदोष व्रत हिंदू पंचांग के मुताबिक हर माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। कुल मिलाकर वर्ष में 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं। और इस दिन भगवान शिव की साधना और आराधना करना शुभ माना जाता है। इस तिथि पर व्रत करने से पुत्ररत्न की प्राप्ति, ऋण से मुक्ति, सुख-सौभाग्य, आरोग्य आदि की प्राप्ति होती है।
अनंग त्रयोदशी पर्व मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है। इसके अलावा चैत्र मास में भी आता है। इस तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही कामदेव और रति की भी पूजा का विधान है। इस तिथि पर व्रत करन से प्रेम संबंधों में मधुरता बनी रहती है। और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
धन तेरस कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धनवन्तरि अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है।
14-- चतुर्दशी तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में का महत्त्व
हिंदू पंचांग की चौदवीं तिथि चतुर्दशी कहलाती है। इस तिथि का नाम करा भी है। क्योंकि इस तिथि पर शुभ कार्यों की शुरुआत करना वर्जित है। इसे हिंदी में चौदस भी कहा जाता है। यह तिथि चंद्रमा की चौदवीं कला है। इस कला में अमृत का पान भगवान शिव करते हैं। चतुर्दशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 157 डिग्री से 168 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 337 से 348 डिग्री अंश तक होता है। चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शिव को माना गया है। जीवन में सर्व कल्याण और सभी पापों से मुक्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को भगवान भोलेनाथ की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
चतुर्दशी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
किसी भी पक्ष की चतुर्दशी में शुभ कार्य करना वर्जित हैं। क्योंकि इसे क्रूरा कहा जाता है। इसके अलावा चतुर्दशी तिथि रिक्ता तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं दोनों पक्षों की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है। इस तिथि पर रात्रि में शिव मंत्र या जागरण करना उत्तम रहता है।
चतुर्दशी तिथि में जन्मे जातक मन से कोमल और बाहर से कठोर दिखाई देते हैं। इन लोगों को क्रोध बहुत आता है। ये जातक साहसी और कठोर कार्य करने में प्रवीण होते हैं। इन लोगों को जीवन में संघर्ष करना पड़ता है। तब कहीं सफलता हाथ लगती है। ये लोग अपने ही बनाए गए नियमों पर चलना पसंद करते हैं। इस तिथि में जन्मा जातक साधु-संतों का आदर करता है। और धार्मिक कार्यों में विश्वास रखता है। ये लोग अपना काम निकलवाने में माहिर होते हैं। और अपनी काबिलियत के दम पर काम निकलवा भी लेते हैं।
चतुर्दशी के शुभ कार्य
चतुर्दशी तिथि में विद्युत कर्म, बन्धन, शस्त्र विषय, अग्नि आदि से सम्बन्धित कार्य करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की चतुर्दशी तिथि में बाल काटना या शेविंग करना वर्जित है। इस तिथि पर किसी कठोर कार्य को शुरू करना उचित रहता है। जैसे हथियारों का निर्माण या उनका परीक्षण करना।
चतुर्दशी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास मासिक शिवरात्रि हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस दिन शिव जी और माता पर्वती का विवाह हुआ था। इसके अलावा हिंदू पंचांग के मुताबिक हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। मान्यता है। कि इस दिन भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इस तिथि पर भोलेनाथ के लिए व्रत रखना उत्तम फलदायक होता है।
अनंत चतुर्दशी
यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान श्री हरि यानि भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन कलाई पर रेशम का धागा बांधा जाता है। इस तिथि पर व्रत करने से सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। और घर धन-धान्य से संपन्न रहता है।
नरक निवारण चतुर्दशी
दिवाली के एक दिन पहले मनाया जाने वाला पर्व नरक चतुर्दशी है। यह त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस तिथि पर मृत्यु के देवता यम की पूजा का विधान है। साथ ही शाम को दीपक जलाने का प्रावधान है।
बैकुंठ चतुर्दशी
बैकुंठ चौदस कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को ही मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान शिव और श्रीहरि की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
15----पूर्णिमा तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व
पूर्णिमा तिथि जिसमें चंद्रमा पूर्णरुप में मौजूद होता है। पूर्णिमा तिथि को सौम्य और बलिष्ठ तिथि कहा जाता है। इस तिथि को ज्योतिष में विशेष बल महत्व दिया गया है। पूर्णिमा के दौरान चंद्रमा का बल अधिक होता है। और उसमें आकर्षण की शक्ति भी बढ़ जाती है। वैज्ञानिक रुप में भी पूर्णिमा के दौरान ज्वार भाटा की स्थिति अधिक तीव्र बनती है। इस तिथि में समुद्र की लहरों में भी उफान देखने को मिलता है। यह तिथि व्यक्ति को भी मानसिक रुप से बहुत प्रभावित करती है। मनुष्य के शरीर में भी जल की मात्रा अत्यधिक बताई गई है। ऎसे में इस तिथि के दौरान व्यक्ति की भावनाएं और उसकी ऊर्जा का स्तर भी बहुत अधिक होता है।
पूर्णिमा को धार्मिक आयोजनों और शुभ मांगलिक कार्यों के लिए शुभ तिथि के रुप में ग्रहण किया जाता है। धर्म ग्रंथों में इन दिनों किए गए पूजा-पाठ और दान का महत्व भी मिलता है। पूर्णिमा का दिन यज्ञोपवीत संस्कार जिसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं। किया जाता है। इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है। इस प्रकार इस दिन की गई पूजा से भगवान शीघ्र प्रसन्न होते हैं। और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने सौभाग्य और संतान की कामना पूर्ति करती है। बच्चों की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं। पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है। और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है।
पूर्णिमा तिथि में जन्में जातक
जिस व्यक्ति का जन्म पूर्णिमा तिथि में हुआ हो, वह व्यक्ति संपतिवान होता है। उस व्यक्ति में बौद्धिक योग्यता होती है। अपनी बुद्धि के सहयोग से वह अपने सभी कार्य पूर्ण करने में सफल होता है। इसके साथ ही उसे भोजन प्रिय होता है। उत्तम स्तर का स्वादिष्ट भोजन करना उसे बेहद रुचिकर लगता है। इस योग से युक्त व्यक्ति परिश्रम और प्रयत्न करने की योग्यता रखता है। कभी- कभी भटक कर वह विवाह के बाद विपरीत लिंग में आसक्त हो सकता है।
व्यक्ति का मनोबल अधिक होता है। वह परेशानियों से आसानी से हार नही मानता है। जातक में जीवन जीने की इच्छा और उमंग होती है। वह अपने बल पर आगे बढ़ना चाहता है। व्यक्ति में दिखावे की प्रवृत्ति भी हो सकती है। जल्दबाजी में अधिक रह सकता है।
ऐसे व्यक्ति की कल्पना शक्ति अच्छी होती है। वह अपनी इस योग्यता से भीड़ में भी अलग दिखाई देता है। आकर्षण का केन्द्र बनता है। बली चंद्रमा व्यक्ति में भावनात्मक, कलात्मक, सौंदर्यबोध, रोमांस, आदर्शवाद जैसी बातों को विकसित करने में सहयोग करता है। व्यक्ति कलाकार, संगीतकार या ऎसी किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति को मजबूती के साथ करने की क्षमता भी रखता है।
मजबूत मानसिक शक्ति के कारण रुमानी भी होते हैं। कई बार उन्मादी और तर्कहीन व्यवहार भी कर सकते हैं। जो इनके लिए नकारात्मक पहलू को भी दिखाती है। और व्यक्ति अत्यधिक महत्वाकांक्षी भी होता है।
सत्यनारायण व्रत
पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण व्रत की पूजा की जाने का विधान होता है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि को लोग अपने सामर्थ्य अनुसार इस दिन व्रत रखते हैं। अगर व्रत नहीं रख पाते हैं। तो पूजा पाठ और कथा श्रवण जरुर करते हैं। सत्यनारायण व्रत में पवित्र नदियों में स्नान-दान की विशेष महत्ता बताई गई है। इस व्रत में सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। सारा दिन व्रत रखकर संध्या समय में पूजा तथा कथा की जाती है। चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। कथा और पूजन के बाद बाद प्रसाद अथवा फलाहार ग्रहण किया जाता है। इस व्रत के द्वारा संतान और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
पूर्णिमा तिथि योग
पूर्णिमा तिथि के दिन जब चन्द्र और गुरु दोनों एक ही नक्षत्र में हो, तो ऎसी पूर्णिमा विशेष रुप से कल्याणकारी कही गई है। इस योग से युक्त पूर्णिमा में दान आदि करना शुभ माना गया है। इस तिथि के स्वामी चन्द्र देव है। पूर्णिमा तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को चन्द्र देव की पूजा नियमित रुप से करनी चाहिए।
पूर्णिमा तिथि महत्व
इस तिथि के दिन सूर्य व चन्द्र दोनों एक दूसरे के आमने -सामने होते है। अर्थात एक-दूसरे से सप्तम भाव में होते है। इसके साथ ही यह तिथि पूर्णा तिथि कहलाती है। यह तिथि अपनी शुभता के कारण सभी शुभ कार्यो में प्रयोग की जा सकती है। इस तिथि के साथ ही शुक्ल पक्ष का समापन होता है। तथा कृष्ण पक्ष शुरु होता है। एक चन्द्र वर्ष में 12 पूर्णिमाएं होती है। सभी पूर्णिमाओं में कोई न कोई शुभ पर्व अवश्य आता है। इसलिए पूर्णिमा का आना किसी पर्व के आगमन का संकेत होता है।
पूर्णिमा तिथि में किए जाने वाले काम
पूर्णिमा तिथि के दिन गृह निर्माण किया जा सकता है।
पूर्णिमा के दिन गहने और कपड़ों की खरीदारी की जा सकती है।
किसी नए वाहन की खरीदारी भी कर सकते हैं।
यात्रा भी इस दिन की जा सकती है।
इस तिथि में शिल्प से जुड़े काम किए जा सकते हैं।
विवाह इत्यादि मांगलिक कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं।
पूजा पाठ और यज्ञ इत्यादि कर्म इस तिथि में किए जा सकते हैं।
12 माह की पूर्णिमा
चैत्र माह की पूर्णिमा, इस दिन हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है।
वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती का पर्व मनाया जाता है।
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री और कबीर जयंती मनाई जाती है।
आषाढ़ माह की पूर्णिमा गुरू पूर्णिमा के रुप में मनाई जाती है।
श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन रक्षाबन्धन मनाया जाता है।
भाद्रपद माह की पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा श्राद्ध संपन्न होता है।
अश्विन माह की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाती है।
कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंति और गुरुनानक जयंती मनाई जाती है।
मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है।
पौष माह की पूर्णिमा को शाकंभरी जयंती मनाई जाती है।
माघ माह की पूर्णिमा को श्री ललिता जयंती मनाई जाती है।
फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है।
30--- अमावस्या तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में का महत्त्व
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का बहुत अधिक महत्व है। हिंदू पंचांग की तीसवीं तिथि और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है। इस तिथि का नाम सिनीवाली भी है। इसे हिंदी में अमावसी भी कहते हैं। अमावस्या तिथि का निर्माण तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर शून्य हो जाता है। इस दिन आकाश में चांद नहीं दिखाई देता है। इस तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विधान है। मान्यता है। कि इस तिथि के दिन केतु का जन्म हुआ था।
अमावस्या तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
अमावस्या तिथि के स्वामी पितर माने गए हैं। इस तिथि पर चंद्रमा की 16वीं कला जल में प्रविष्ट हो जाती है। इस दिन चंद्रमा आकाश में नहीं दिखाई देता है। और इस तिथि पर वह औषधियों में रहते हैं। अमावस्या तिथि के दिन कृष्ण पक्ष समाप्त होता है। इस तिथि के दिन सूर्य और चन्द्रमा दोनों समान अंशों पर होते है।
अमावस्या तिथि में जन्मे जातक
अमावस्या तिथि में जन्मे जातकों की दीर्घायु होती है। ये लोग अपनी बुद्धि को कुटिल कार्यों में लगाते हैं। ये बहुत पराक्रमी होते हैं। लेकिन इन्हें ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रयत्न बहुत करना पड़ता है। इनकी आदत व्यर्थ में सलाह देने की बहुत होती है। इन जातकों को जीवन में संघर्षों का सामना बहुत करना पड़ता है। ये लोग मानसिक रूप से स्वस्थ्य नहीं होते हैं। इनमें असंतुष्टी की भावना बहुत अधिक रहती है।
अमावस्या के दिन क्या करें और क्या ना करें
अमावस्या तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करना शुभ माना जाता है।
इस तिथि पर पितरों का तर्पण करने का विधान है। यह तिथि चंद्रमास की आखिरी तिथि होती है।
इस तिथि पर गंगा स्नान और दान का महत्व बहुत है।
इस दिन क्रय-विक्रय और सभी शुभ कार्यों को करना वर्जित है।
अमावस्या के दिन खेतों में हल चलाना या खेत जोतने की मनाही है।
इस तिथि पर जब कोई बच्चा पैदा होता है। तो शांतिपाठ करना पड़ता है।
अमावस्या के दिन शुभ कर्म नहीं करना चाहिए।
अमावस्या तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
माघ अमावस्या इस तिथि को मौनी अमावस्या के रूप में जाना जाता है। इस दिन गंगा स्नान करके मौन धारण किया जाता है।
फाल्गुन अमावस्या, अश्विन अमावस्या, चैत्र अमावस्या
इस अमावस्या को पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। इस दन दान, तर्पण और श्राद्ध किया जाता है।
वैशाख अमावस्या इस तिथि के दिन सर्पदोष से मुक्ति पाने के लिए उज्जैन में पूजा करने का विधान है।
ज्येष्ठ अमावस्या यह तिथि के दिन शनिदोष निवारण का उपाय करा सकते हैं। इस दिन वट सावित्री की पूजा का भी प्रावधान है।
आषाढ़ अमावस्या इस अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करते हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए। इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है।
श्रावण अमावस्या इस तिथि को हरियाली अमावस्या के नाम से जानते हैं। इस तिथि को पितृकार्येषु अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
भाद्रपद अमावस्या इस तिथि को कुशाग्रहणी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन कुशा को तोड़कर रख लिया जाता है।
कार्तिक अमावस्या
इस तिथि के दिन दीपों का पर्व दीवाली मनाते हैं। इस दिन 14 वर्ष का वनवास पूरा करके श्री राम अयोध्या वापस लौटे थे।
मार्गशीर्ष अमावस्या इस तिथि को सोमवती अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
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अश्वनी नक्षत्र
नक्षत्र देवता: अश्वनी कुमार
नक्षत्र स्वामी: केतु
अश्वनी नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
अश्वनी नक्षत्र में जन्मे जातक सामान्यतः सुन्दर ,चतुर, सौभाग्यशाली एवं स्वतंत्र विचारों वाले होते हैं. वह पारंपरिक रूढ़ीवादी विचारधारा से विपरीत अपनी आधुनिक सोच के लिए मित्रों में प्रिसिद्ध होते हैं. आप सभी से बहुत प्रेम करने वाले होते हैं परन्तु आप अपने ऊपर किसी का भी दबाव नहीं सहते हैं. आपको स्वतंत्र कार्य करने एवं निर्णय लेने की आदत होती है इसलिए किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप आपको पसंद नहीं होता है. आपकी उन्नति भी स्वतंत्र कार्य करने और स्वतंत्र निर्णय लेने के कारण ही होती है .
आप स्वभाव से गुणी, धैर्यवान एवं प्रखर बुद्धि के स्वामी होते हैं. धन ऐश्वर्य युक्त जीवन में आपको किसी भी प्रकार का अभाव नहीं झेलना पड़ता है. अपने कार्य के प्रति रुझान और लगन के कारण आप कम उम्र में ही सफलता प्राप्त करते हैं एवं आपका यश और कीर्ति समाज में चारों और फैलता है. आप अन्तेर्मुखी एवं धैर्यवान होते हैं और जल्द ही किसी की बातों का विश्वास नहीं करते. आपको अपने मनोभाव पर नियंत्रण रखने में कभी-कभी कठिनाई महसूस होती है परन्तु यह आवश्यक भी है. क्रोध आने पर आप किसी की भी नहीं सुनते. आप आत्म नियंत्रण खो बैठते हैं और क्रोध में कई बार अपनी हानि करा बैठते हैं. आपको क्रोध जितनी शीघ्रता से आता है उतनी ही तीव्रता से उतर भी जाता है.
अश्वनी नक्षत्र में जन्मे जातक अक्सर सेक्स के मामलों में उतावले होते हैं. किसी भी स्त्री से मिलने के बाद आप उसके प्रति विशेष रुझान एवं लगाव महसूस करते हैं यही आपकी सबसे बड़ी कमजोरी है. आप अपने कार्य सज्जनता की उपेक्षा लड़ाई झगड़े से करवाने में सदा सक्षम रहते हैं.
अश्वनी नक्षत्र के जातक साज सज्जा में अधिक विश्वास रखते हैं इसलिए सदा ही आकर्षक , महंगी और आरामदायक वस्तुओं में रूचि रखते है. अपने जीवन के 30 वर्ष तक आप कई प्रकार के उतार चढ़ाव झेलते हैं. उसके उपरान्त ही आपका आगे बढ़ने का रास्ता साफ़ और सुगम होता है.
आप अपने परिवार से बहुत जुड़े हुए रहते हैं परन्तु कुछ परिजन आपके जिद्दीपन के कारण आपको पसंद नहीं करते . पिता की उपेक्षा आपको माता से अधिक सहयोग और प्रेम प्राप्त होता है . 26 से 30 वर्ष की आयु में विवाह संभव है. संतान में पुत्र संतति की संभावना अधिक होगी.
इस नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ सुन्दर, धन-धान्य युक्ता, श्रृंगार में रूचि रखने वाली होती हैं. अश्वनी नक्षत्र में जन्मी महिलाएं मीठा बोलती हैं और बहुत अधिक सहनशील भी होती है. माता पिता की लाडली एवं आज्ञाकारी पुत्री होने के साथ-साथ ईश्वर में भी पूरी आस्था रखती हैं. सदा बड़ों का आदर एवं गुरु का सम्मान करने वाली अश्वनी नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ मनोहर छवि एवं बुद्धिशाली होती है.
स्वभाव संकेत : समाज और मित्रों में लोकप्रिय
संभावित रोग: दिमाग से सम्बंधित रोग, मलेरिया एवं चेचक
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. इस चरण में जन्मे जातकों को दूसरों की वस्तुएं उठाने की आदत होती है. जन्म नक्षत्र स्वामी केतु लग्नेश मंगल का मित्र होने के कारण जातक की मंगल एवं केतु की दशा शुभ फल देंगी.मंगल गृह भी शुभ फल देगा.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. अश्वनी के द्वितीय चरण में जन्म होने के कारण जातक कड़ी मेहनत से कतरायेगा और छोटे छोटे अल्प अवधी वाले कार्य करने में रूचि रखेगा. जन्म नक्षत्र स्वामी केतु लग्नेश मंगल का मित्र है और नक्षत्र चरण स्वामी शुक्र भी केतु से मित्रतापूर्वक व्यवहार रखता है इसलिए जातक की मंगल, शुक्र एवं केतु की दशा शुभ फल देंगी.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. शास्त्रों के अनुसार अश्वनी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मा जातक सुन्दर , धनी एवं ऐश्वर्यशाली होते हैं. मंगल और केतु की दशा अति उत्तम फल देगी परन्तु नक्षत्र चरण स्वामी बुध केतु से शत्रु भाव रखता है इस कारण बुध की दशा में जातक अशांत एवं विचलित रहेगा.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्रमा हैं. शास्त्रों के अनुसार अश्वनी नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मे जातक भोगी एवं दीर्घायु होते है. नक्षत्र स्वामी केतु, लग्नेश मंगल का मित्र है. नक्षत्र चरण स्वामी चन्द्रमा , केतु से शत्रु भाव रखता है अतः जातक को मंगल एवं केतु की दशा उत्तम फल देंगी परन्तु चन्द्रमा की दशा में जातक अशांत एवं उद्विग्न रहेगा.
2---भरणी नक्षत्र
नक्षत्र देवता: यम
नक्षत्र स्वामी: शुक्र
भरणी नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म भरणी नक्षत्र में हुआ है तो आप एक दृढ़ निश्चयी, चतुर एवं सदा सत्य बोलने वाले होंगे. शुक्र के कारण जहाँ आप सुखी एवं ऐश्वर्य पूर्ण जीवन जियेंगे वही शुक्र मंगल की राशि में आपकी काम वासना भी अधिक बढ़ाएगा. आपके अनेक मित्र होंगे और आप अपने मित्रों में बहुत अधिक लोकप्रिय भी होंगे क्योंकि आप अपने मित्रों की सहायता करने में कभी पीछे नहीं हटते हैं. मित्रता करने में आप विशेष सावधानी भी बरतते हैं. चुगलखोर और छिछोरे मित्र आपको कतई पसंद नहीं है.
आप जल्दी ही किसी से भी घुलना मिलना पसंद नहीं करते ,स्वभाव से थोड़े स्थिर एवं योजनाबद्ध तरीके से काम करना आपको पसंद है. आप बिना सोचे समझे जीवन में कोई भी कदम नहीं उठाना चाहते हैं परन्तु जो एक बार आप ठान लेते हैं तो आप किसी का हस्तक्षेप या सुझाव पसंद नहीं करते हैं. जो मार्ग आपके अनुसार सही है उससे आप कभी नहीं डगमगाते . आप अपने विचारों को प्रकट करने में नहीं हिचकिचाते चाहे उन्हें कोई पसंद करे या नहीं. आप अपना नुक्सान करा सकते हैं परन्तु चापलूसी करना आपको कतई पसंद नहीं.
आप सिद्धांतों पर चलना पसंद करते हैं एवं नैतिक मूल्यों की रक्षा जीवन पर्यंत करतें हैं. ईश्वर ने आपको एक और विलक्षण गुण दिया हुआ है वह है दूरदर्शिता. इस कारण आप आने वाले संकट को पहले ही भांप जाते हैं और अपने आपको भविष्य में होने वाली घटनायों के लिए तैयार भी कर लेते हैं.
खर्चे के मामले में आप करीबी मित्रों और रिश्तेदारों में कंजूस के नाम से जाने जाते हैं परन्तु यह आपका स्वभाव है . आप बिना सोचे समझे धन खर्च नहीं करना चाहते हैं. फ़िज़ूल के खर्च और व्यर्थ के दिखावे आपको कतई पसंद नहीं हैं.
आप एक हिम्मती व्यक्तित्व के स्वामी हैं छोटी मोटी घटनाएं आपके साहस को हिला नहीं पाती हैं. शारीरिक रूप से आप ऊँचे एवं मजबूत कद काठी के व्यक्ति हैं. आपकी हड्डियां काफी मज़बूत और आँखें बहुत जोशीली हैं. आपको घूमने का बहुत शौक है. खाने में आप तेज़, मसालेदार गर्म और चटपटे खाना पसंद करते हैं.
आप अपने जीवन में कई बार सफलता की उंचाई पर पहुँच कर अचानक गिरते हैं. इन्ही उतार चढ़ाव के कारण जीवन 33 वर्ष तक अस्त व्यस्त रहता है परन्तु उसके पश्चात समय और स्तिथियाँ आपके पक्ष में ही रहती हैं. भरणी नक्षत्र के जातक अपने परिवार से बहुत अधिक स्नेह रखते हैं तथा उनके बिना बहुत अधिक समय तक नहीं रह पाते हैं. विवाह उपरान्त पारिवारिक जीवन सुखमय रहता है और एक सुंदर एवं सुशील पत्नी का साथ मिलता है. आपकी पत्नी का धन के मामले में लापरवाह होना आपके बीच मतभेद पैदा कर सकता है.
भरणी नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ निडर एवं दृढ स्वभाव वाली होती हैं. भरणी नक्षत्र में जन्मी महिलाएं सफल राजनेता या समाजिक कार्यकर्ता होती हैं. आपका मन चंचल एवं सदा भटकने वाला होता है. भरणी नक्षत्र में जन्मी महिलाएं अनायास ही पुरुषों के प्रति आकर्षित हो जाती हैं. अन्य महिलायों की भांति आपकी रूचि साज सज्जा में नहीं होती है अपितु आप स्वभाव से कठोर होती हैं.
स्वभाव संकेत : स्वभाव से अडिग एवं स्थिर मनोवृत्ति
संभावित रोग: अग्नि द्वारा जलने से , अकस्मात गिरने से चोट का खतरा. नेत्र रोग, और स्त्रियों में गर्भ सम्बंधित समस्याएं.
विशेषताएं
प्रथम चरण: इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. भरणी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने के कारण जातक स्वभाव से संकोची होते हैं . आशावादी होते हुए भी कभी कभी निराशावादी हो जाते हैं. जातक को मंगल एवं शुक्र की दशा शुभ फलदायी होगी. नक्षत्र चरण का स्वामी सूर्य शुक्र का शत्रु है इस कारण सूर्य की दशा में जातक थोडा परेशान रहेगा.
द्वितीय चरण: इस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. भरणी नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म होने के कारण जातक स्वभाव चंचल एवं खुराफाती होगा . वह जीवन में सफल तो होगा परन्तु मानसिक रूप से परेशान एवं अशांत रहेगा. जातक को मंगल एवं शुक्र की दशा ठीक रहेगी . नक्षत्र चरण का स्वामी चन्द्र शुक्र का परम शत्रु है इस कारण चन्द्र की दशा में जातक मानसिक रूप से परेशान रहेगा.
तृतीय चरण: इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. भरणी नक्षत्र के तृतीय चरण में जन्म होने के कारण जातक स्वभाव से क्रूर, निर्दयी होते हैं . साहस पूर्ण एवं झोखिम भरे कार्य करने में सदा रूचि रखते हैं. लग्न नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र चरण स्वामी शुक्र के होने के कारण जातक थोडा रंगीन मिजाज़ का भी होगा. जातक को मंगल एवं शुक्र की दशा उत्तम फलदायी होगी.
चतुर्थ चरण: इस चरण का स्वामी मंगल हैं. भरणी नक्षत्र के चौथे चरण में जन्म होने के कारण जातक बहादुर एवं साहसी होगा परन्तु सब कुछ होते हुए भी जीवन भर धन की कमी महसूस करता रहेगा. लग्न नक्षत्र का स्वामी शुक्र लग्नेश मंगल से समभाव रखता है इस कारण जातक की मंगल एवं शुक्र की दशा अच्छी जाएँगी.
3----कृतिका नक्षत्र
नक्षत्र देवता: अग्नि
नक्षत्र स्वामी: सूर्य
कृतिका नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
कृतिका नक्षत्र में जन्मा जातक सुन्दर और मनमोहक छवि वाला होता है. वह केवल सुन्दर ही नहीं अपितु गुणी भी होते हैं. आपका व्यक्तित्व किसी राजा के समान ओजपूर्ण एवं पराक्रमी होता है. कृतिका नक्षत्र का स्वामी सूर्य है अतः आप तेजस्वी एवं तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी होते हैं. बचपन से ही आपकी विद्या प्राप्ति में अधिक रूचि रहती है और आगे चलकर कृतिका नक्षत्र का जातक विद्वान् होता है. यह सूर्य का विशेष गुण है. परन्तु शुक्र और सूर्य में शत्रुता भी है अतः सुन्दर और तेजस्वी होने पर भी विचार अस्थिर रहेंगे. सूर्य के इस नक्षत्र में चन्द्र भी रहेगा अर्थात सूर्य चन्द्र के मेल के कारण शरीर पर तेज़ की अनुभूति होगी. चन्द्रमा से प्रभावित होने के कारण आपमें प्रभुत्व आएगा. आप की सोच और कार्य उच्च स्तरीय होंगे. आपके व्यक्तित्व में राजकीय गुण स्वाभाविक हैं. चन्द्रमा के प्रभाव के कारण ही आपके पास धन भी आएगा.
कृतिका नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति खाने का शौक़ीन एवं अन्य स्त्रियों में आसक्त होता है. आपका रुझान गायन, नृत्यकला, सिनेमा, तथा अभिनेता और अभिनेत्रियों के प्रति अधिक रहता है.
इस नक्षत्र में जन्मे जातक या जातिकाएं एक दूसरे के प्रति आकर्षित रहते हैं. सौन्दर्य के तेज़ के कारण प्रसिद्धि भी बहुत अधिक मिलती है एवं पुरुषों को महिलाएं एवं महिलायों को पुरुषों के प्रेम प्रस्ताव मिलते ही रहते हैं. हालाँकि किसी भी सम्बन्ध में आप बंध कर रहना पसंद नहीं करते. जहाँ आपको बंधन महसूस होता है वहीँ आप बिना किसी की परवाह किए रिश्तों को समाप्त कर आगे बढ़ जाते हैं . बहु भोगी होना और रोगी होना इस नक्षत्र में जन्मे जातकों का स्वभाव है. सेक्स के प्रति अधिक रुझान एवं भोजन के प्रति असावधानी रोग का कारण बन सकती है.
आप औरों के लिए एक बहुत अच्छे मार्गदर्शक साबित होते हैं परन्तु अस्थिर सोच के कारण अपने लिए सही निर्णय लेना आप के बस में नहीं . आपको पुराने या नवीन विचारों से कोई परहेज़ नहीं होता. आप केवल सत्यता और मानवता के पथ पर ही चलना चाहते हैं. कृतिका जातक पिता की उपेक्षा अपनी माता से अधिक निकट होता है, और माता से हर प्रकार का सहयोग लेने में सक्षम रहता है. विवाह उपरांत पारिवारिक जीवन सुखमय रहता है. पत्नी के साथ सम्बन्ध प्रेमपूर्वक और मधुर बना रहता है परन्तु घर परिवार से दूरी आपको अक्सर खलती है.
कृतिका नक्षत्र में जन्मे जातक का भाग्योदय अक्सर जन्म स्थान से दूर जाकर होता है . आप अपने जीवन में कई यात्राएं भी करते हैं जिनमे से अधिकतर निरर्थक साबित होती हैं. निरंतर यात्राओं के कारण कर्यक्ष्ट्र में भी बदलाव होता है. आपको सफलता प्राप्त करने के लिए जीवन पर्यंत संघर्षरत रहना पड़ता है. सुदूर देशों में जा कर ही कृतिका नक्षत्र जातक खूब धन कमाता है.
कृतिका नक्षत्र में जन्मी महिलाएं पतले दुबले शारीर और कफ प्रकृति की होती हैं. सामान्यतः अपने माता पिता की अकेली संतान होती हैं या भाई बहनों के होते हुए भी उनके सुख से वंचित रहती है. इस नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं प्रायः झगड़ालू तथा दूसरों में दोष निकलने वाली होती हैं. क्रोध सदा इनकी नाक पर रहता है. अपने इसी स्वभाव के कारण इनका अपने पति से भी प्रेमपूर्ण व्यवहार नहीं रहता है और अक्सर अलगाव की स्तिथि उत्पन्न हो जाती है.
स्वभाव संकेत : अनुशासित एवं ओजपूर्ण
संभावित रोग: सर्दी, जुकाम और नाक से सम्बंधित रोग
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. कृतिका नक्षत्र के पहले चरण में जन्म होने के कारण जातक जन्मस्थान से दूर जाकर खूब धन कमाता है. जातक की मंगल की दशा, सूर्य एवं गुरु की दशा –अन्तर्दशा अत्यंत शुभ फलदायी होगी. यह जातक मंगल की रहस्मयी शक्तियों का स्वामी होगा.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. कृतिका नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म होने के कारण जातक विज्ञान का जानकार हो सकता है सूर्य और शनि के कारण ज्ञान और अनुभव दोनों का समावेश रहेगा. जातक शास्त्रों का ज्ञाता एवं अपने क्षेत्र का तेजस्वी विद्वान् होगा. जातक लग्नबली एवं चेष्टावान होगा. सूर्य व् शनि की दशाएं अशुभ परन्तु लग्नेश शुक्र की दशा शुभ फल देंगी.
तृतीय चरण :इस चरण का स्वामी शनि हैं. कृतिका नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म होने के कारण जातक शूरवीर तथा भाग्यशाली होगा. सूर्य और शनि के कारण ज्ञान और अनुभव दोनों का समावेश रहेगा. जातक शास्त्रों का ज्ञाता एवं अपने क्षेत्र का तेजस्वी विद्वान् होगा. जातक की सूर्य व् शुक्र दोनों की दशाएं संघर्षपूर्ण होंगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. कृतिका नक्षत्र के चौथे चरण में जन्म होने के कारण जातक दीर्घायु एवं एक से अधिक पुत्रों वाला होगा. सूर्य और बृहस्पति जातक ज्ञानी एवं सात्विक विचारों वाला होगा. जातक की सूर्य व् बृहस्पति की दशा –अन्तर्दशा में उन्नति होगी. जातक का विशेष भाग्योदय सूर्य, बृहस्पति एवं लग्न स्वामी शुक्र की दशा में होगा.
4---रोहिणी नक्षत्र
नक्षत्र देवता: ब्रह्मा
नक्षत्र स्वामी: चन्द्र
रोहिणी नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति सदा दूसरों में गलतियां ढूँढता रहता है. आप कोई भी ऐसा मौका नहीं हाथ से जाने देते जिसमे कि सामने वाले की त्रुटियों की चर्चा आप न करें. आप शारीरिक रूप से कमज़ोर होते हैं इसलिए कोई भी छोटी से छोटी मौसमी बदलाव के रोग भी आपको अक्सर जकड लेते हैं. आप एक ज्ञानी परन्तु स्त्रियों में आसक्ति रखने वाले होतें हैं.
रोहिणी नक्षत्र में जन्मे जातक सुन्दर एवं मीठा बोलने वाले होते हैं. आप घर और कार्य क्षेत्र में व्यवस्थित रहना ही पसंद करते हैं. आपको गन्दगी से बेहद नफरत है. घर का सामान भी आप सुव्यवस्थित ढंग से रखना पसंद करते हैं. स्वभाव से कोमल और सौन्दर्य के प्रति लगाव आपके प्रमुख गुणों में से एक है. रोहिणी नक्षत्र का स्वामी चन्द्र है इसलिए इस नक्षत्र में जन्मे जातक स्त्रियों पर विशेष आसक्ति रखते हैं.
रोहिणी नक्षत्र में जन्मे जातक कभी बहुत ही कोमल और विनम्र स्वभाव के दीखते हैं तो कभी कठोर और अभद्र . अपने प्रियजनों की मदद के लिए सदा तत्पर रहतें हैं और कठिन से कठिन परिस्तिथियों में भी पीछे नहीं हटते. यदि आपको कोई कष्ट पहुंचाए तो आप उग्र रूप ले लेते हैं और किसी को भी अपने ऊपर हावी नहीं होने देते.
आप दिमाग की उपेक्षा दिल की सुनते हैं. अप न तो योजनाबद्ध तरीके से चलते हैं और न ही बहुत लम्बे समय तक एक ही राह पर चलना पसंद करते हैं. अपने इसी दृष्टिकोण के कारण आप जीवन में अनेको बार कठिनाईयों को झेलते हैं. आप मानवता में विश्वास रखते हैं परन्तु अत्यधिक संवेदनशील होने के कारण आप चोट पहुंचाने वालों को कभी क्षमा नहीं करते. स्वतंत्र सोच और धैर्य की कमी के कारण जीवन में आप बहुत बार निराशा का सामना करते हैं.
सभी प्रकार के कार्यों में भाग्य आज़माना आपके लिए संकट की स्तिथि पैदा कर सकता है. दूसरों पर आँखे बंद कर के विश्वास कर लेना आपके स्वभाव में है परन्तु व्यवसायिक क्षेत्र में यह आपको बहुत हानि पहुंचाएगा. 18 से 36 वर्ष का समय आपके लिए सामाजिक , आर्थिक और स्वास्थ्य के लिए संघर्ष लायेगा परन्तु 36 से 50 वर्ष तक का समय आपके लिए शुभ होगा.
पिता की उपेक्षा माता या मात्र पक्ष से आपका अधिक स्नेह रहेगा. वैवाहिक जीवन में भी उतार चढ़ाव बना रहेगा.
रोहिणी नक्षत्र में जन्मी महिलाएं दुबली पतली परन्तु विशेष रूप से आकर्षक होती हैं. सदा अपने से बड़ों और माता पिता की आज्ञाकारिणी होती हैं. आप अपने रहने और खाने पीने में सदा सतर्क और सावधान रहती हैं . पति के साथ सहमति बने रखना आपका स्वभाव है इसलिए आपके वैवाहिक सम्बन्ध मधुर ही होते हैं . आपकी संतान पुत्र और पुत्री दोनों ही होते हैं. आप एक धनवान और ऐश्वर्यशाली जीवन व्यतीत करते हैं.
स्वभाव संकेत : विशाल आँखें
संभावित रोग: मुंह, गले, जीभ एवं गर्दन से सम्बंधित रोग
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. रोहिणी नक्षत्र के पहले चरण में जन्म होने के कारण जातक सौभाग्यशाली होगा. चन्द्रमा और मंगल की मित्रता के कारण धन व् ख्याति योग भी देगा. चन्द्रमा व् मंगल की दशा अन्तर्दशा में जातक की उन्नत्ति होगी. लग्नेश शुक्र की दशा उन्नति में विशेष सहायक होगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. रोहिणी नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म होने के कारण जातक को कुछ न कुछ पीड़ा बनी रहेगी. शुक्र की दशा अन्तर्दशा में जातक की विशेष उन्नत्ति होगी.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म होने के कारण जातक डरपोक और भावुक होगा. चन्द्र व् बुध की दशा अशुभ परन्तु लग्नेश शुक्र की दशा अन्तर्दशा में जातक की विशेष उन्नत्ति होगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. रोहिणी नक्षत्र के चौथे चरण में जन्म होने के कारण जातक जातक सत्यवादी एवं सौन्दर्य प्रेमी होगा. चन्द्रमा की दशा शुभ फल देगी एवं शुक्र की दशा अन्तर्दशा में जातक की विशेष उन्नत्ति होगी.
5---- मृगशिरा नक्षत्र
नक्षत्र देवता: चन्द्र
नक्षत्र स्वामी: मंगल
मृगशिरा नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म मृगशिरा नक्षत्र में हुआ है तो आप स्वभाव से चतुर एवं चंचल होते हैं. आप अध्ययन में अधिक रूचि रखते हैं. माता पिता के आज्ञाकारी और सदैव साफ़ सुथरे आकर्षक वस्त्र पहनने वाले होते हैं. आपको श्वेत रंग अत्यधिक प्रिय है . मृगशिरा नक्षत्र में पैदा हुए जातकों का चेहरा बहुत ही आकर्षक एवं सुन्दर होता है. आपका झुकाव विपरीत लिंग की ओर सामान्यतः अधिक होता है. आपका मन सौम्य परन्तु कामातुर होता है.
भ्रमण करना आपको प्रिय है. आपका अधिकतर जीवन विलासितापूर्ण एवं ऐश्वर्यशाली होता है. आप आर्धिक रूप से धनि होने के साथ साथ बहुत ही सोच समझ कर धन खर्च करने वाले होते हैं. अपने इसी स्वभाव के कारण मित्रों में आप कन्जूस भी कहलाते हैं. आपकी प्रगति में निरंतर बाधाएं आती रहती हैं तथा जीवन परिवर्तनशील रहता है. आप भी इस परिवर्तन को झेलते हुए जीवन में कई बार कार्य क्षेत्र बदलते हैं. आप किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले उसके हर एक पहलु पर अच्छी तरह सोच विचार कर लेते हैं. स्वभाव से अक्सर गंभीर और शांत रहने वाले मृगशिरा नक्षत्र में जन्मे जातक क्रोध कम करते हैं और यदि क्रोधित हो भी जाएँ तो शांत होने पर पश्चाताप भी करते हैं.
इस नक्षत्र में जन्मे जातकों का गायन वाद्य आदि कलाओं में अधिक रूचि होती है.
स्वभाव संकेत : बाधा रहित वैभव शाली जीवन
संभावित रोग: पेट और पाचन सम्बन्धी रोग, कन्धों में दर्द और जीवन में कोई विशेष दुर्घटना की संभावना
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य है . सूर्य और मंगल, दोनों ग्रहों का संयोग राजयोग देता है. फलस्वरूप ऐसा जातक राजतुल्य बनता है. उसके पास राजा समान ठाट बाट के सभी वस्तुएं रहती हैं. मंगल और सूर्य में मित्रता के कारण सूर्य और मंगल दोनों की दशाएं शुभ जायेंगी और शुक्र की दशा अन्तर्दशा में जातक की विशेष उन्नति होगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. अतः बुध और मंगल में शत्रुता के कारण जातक में झूठ बोलने एवं स्वर्ण चोरी के लक्षण आते हैं अर्थात जातक स्वर्णकार होगा . कुछ छिपाने की , चोरी की आदत स्वभाव में हे होती है. शुक्र की दशा अन्तर्दशा में जातक की उन्नति तो होगी परन्तु विशेष भाग्योदय करने में सहायक न होगी.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. जो विलासप्रिय एवं भोगी हैं. अतः मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय चरण में पैदा होने वाला जातक ऐश्वर्या प्रिय, भोगी, कुटिल बुद्धि वाला होगा. लग्नेश की दशा शुभ फल देगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. अतः मृगशिरा नक्षत्र के चौथे चरण में पैदा होने वाले जातक पर मंगल का प्रभाव अधिक रहेगा. जातक का जीवन धन धान्य से युक्त रहेगा एवं सदा लक्ष्मियुक्त रहेगा. लग्नेश बुध और मंगल की दशा उत्तम फल देगी.
6--- आद्रा नक्षत्र
नक्षत्र देवता: शिव
नक्षत्र स्वामी: राहु
आद्रा नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म आद्रा नक्षत्र में हुआ है तो आपकी रूचि अध्यन में बहुत अधिक होगी. आप सदैव ही अपने आस पास की घटनायों के बारे में जागरूक रहते हैं . किताबों से विशेष लगाव आपकी पहचान है. एक और विशेषता जो की आद्रा नक्षत्र में पैदा हुए जातकों में अक्सर देखी गयी है वह है उनकी व्यापार करने की समझ. अपनी तीक्ष्ण व्यापारिक बुद्धि के कारण आप व्यापर क्षेत्र में शीघ्र ही सफलता की उचाईयों को छू लेने में सक्षम होते है.
आपमें भविष्य में घटित होने वाली घटनायों का पूर्वाभास करने की अजब क्षमता होती है. दूसरों की मन की बात भी आप आसानी से भांप लेते हैं, इसलिए जीवन में धोखा खाने की संभावनाएं कम ही रहती है मीठी और रसीली बातें आपके व्यवहार में हैं इसलिए व्यापारिक संस्थायों में अधिकतर जनसंपर्क के पद के लिए आपको चुना जाता है. कड़े अनुशासन में रहना आप के बस की बात नहीं है .
जहाँ आप से किसी के दिल की बात छुपी नहीं रहती वहीँ आप अपने दिल की बात की किसी की भनक भी नहीं लगने देते . आप एक अन्तेर्मुखी व्यक्ति हैं जो शीघ्र ही किसी के सामने आपने दिल की बात नहीं रखते . कभी कभी आप रहस्यवादी बन जाते हैं जिसके मन की थाह पाना बहुत कठिन होता है. आप दिमाग से अधिक दिल की सुनने वाले व्यक्ति हैं. आप अक्सर सुनते सभी की हैं परन्तु करते हैं केवल अपने मन की. इस कारण आपको कभी कभी नुक्सान भी उठाना पड़ जाता है. आप धन खर्च करने से पहले सोच विचार नहीं करते इस कारण जीवन में अधिकतर आप धन की कमी महसूस करते हैं.
स्वभाव संकेत : क्रोधी एवं अभिमानी
संभावित रोग: अस्थमा, दमा, डिप्थेरिया
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. राहु और बृहस्पति की युति के कारण गुरु चंडाल योग बनता है अतः इस योग में जन्मा जातक बहुत धन खर्च करने वाला व्ययी होता है. लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी तथा आपका भाग्योदय बृहस्पति की दशा में होगा.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. जो स्वल्प धनि है, राहु भी स्वलप धनि है अतः दोनों के योग के कारन जातक अपने जीवन काल में दरिद्रता का शिकार हो जाता है. लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी तथा आपका भाग्योदय बृहस्पति और शनि की दशा में होगा.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. शास्त्रों के अनुसार आद्रा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मे जातकों की आयु सामान्यतः कम होती है. लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी. राहु भी शुभ फल देगा. तथा शनि की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. राहु और बृहस्पति की युति के कारण गुरु चंडाल योग बनता है अतः इस योग में जन्मे जातक में चोरी करने की आदत पड़ जाती है. लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी. राहु भी शुभ फल देगा.
7--- पुनर्वसु नक्षत्र
नक्षत्र देवता: अदिति
नक्षत्र स्वामी: बृहस्पति
पुनर्वसु नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति बेहद मिलन सार और दूसरों से प्रेमपूर्वक व्यवहार रखने वाले होते हैं. परन्तु बहुत कम लोग आपके स्नेहपूर्वक व्यवहार को समझ पाते हैं और प्रायः आपके व्यवहार को कायरता से जोड़ देतें हैं. आपके गुप्त शत्रुओं की संख्या अधिक होती है.
आपको अधिक संतान की प्राप्ति भी होती है परन्तु उनका आपस में या आप के साथ व्यवहार सौहार्दपूर्ण नहीं होता है. सहयोगी , पडोसी या ससुराल पक्ष में आप के प्रति षड़यंत्र बनते रहते हैं. पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातकों को सबसे अधिक भय अपने निकटतम मित्रों से होता है क्योंकि जीवन में कभी न कभी आप अपने मित्रों द्वारा ही विश्वासघात के शिकार होते हैं.
आप स्वभाव से शांत प्रकृति के व्यक्ति हैं देखने में सुन्दर और सुशील होते हैं. अपने दानी स्वभाव के कारण मित्रों और समाज में अधिक लोकप्रिय होते हैं. आजीवन धन और बल से युक्त रहते हैं . आपको समाज में मान प्रतिष्ठा की कमी नहीं रहती. आप सहनशील एवं अपनी भाई बहनों से प्रेम करने वाले होते हैं. ईश्वर में पूर्ण आस्था एवं लोक परलोक का विचार सदैव आपके मन में रहता है इसलिए आप सदा ही सात्विक आचरण का समर्थन करते हैं.
स्वभाव संकेत: सुन्दर एवं सात्विक आचरण
रोग संभावना: खांसी, निमोनिया, सुजन, फेफड़ों में दर्द, कान से सम्बंधित रोग.
विशेषताएं :
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. मंगल और बृहस्पति दोनों मित्र हैं. फलस्वरूप ऐसा जातक अपने जीवन में अनेकों सुख भोगता है. लग्नेश बुध की दशा शुभ फल देगी . शनि की दशा में भाग्योदय होगा. बृहस्पति की दशा में गृहस्थ एवं नौकरी का सुख मिलेगा.
द्वितीय चरण :इस चरण का स्वामी शुक्र हैं,जो दैत्यों के आचार्य हैं. अतः दोनों आचार्यों, बृहस्पति एवं शुक्र से सम्बन्ध रखने वाला जातक विद्वान् होगा. लग्नेश बुध की दशा माध्यम फल देगी . बृहस्पति की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. जो परस्पर विरोधी हैं. अतः पुनर्वसु नक्षत्र के तृतीय चरण में पैदा होने वाला जातक आजीवन रोगी होगा और कोई न कोई बीमारी उसे जावन भर परेशान करेगी. बृहस्पति एवं बुध की दशाएं नष्ट फल देंगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में पैदा होने वाला जातक धन बल से युक्त, कवी ह्रदय, संगीत प्रेमी , कम प्रयत्न से अधिक लाभ कमाने वाला परन्तु स्वभाव से कामुक होता है. इस नक्षत्र पर मंगल का होना जातक को स्वार्थी बना देता है और गुरु की उपस्तिथि में जातक समाज के सम्मानजनक पदों पर आसीन होता है.
8--- पुष्य नक्षत्र
नक्षत्र देवता: गुरु
नक्षत्र स्वामी: शनि
पुष्य नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ है तो आपमें नित नए काम करने की प्रवृत्ति बनी रहेगी. हर बार नए काम की खोज और परिवर्तन आपसे अधिक परिश्रम भी कराएगा. कठिन परिश्रम करने पर भी आपको सफलता आसानी से नहीं मिलेगी और फल प्राप्ति में अक्सर देरी हो जाती है. परन्तु आपको निराश होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आपकी बुद्धि बहुत तेज़ है और आगे बढ़ने के रास्ते भी खोज लेती है. आपके स्वभाव में भावुकता अधिक होने के कारण किसी भी कार्य की गहराई तक आप नहीं पहुँच पाते हैं.
अधिक भावुकता के कारण आप एक अच्छे और सच्चे प्रेमी होते हैं. किसी भी सम्बन्ध को बीच में छोड़ना आपकी प्रकृति में नहीं है. आप किसी से प्रेम करेंगे तो पूरे तन मन धन से उसके हो जायेंगे. इसी प्रकार आप दोस्ती भी निभाएंगे. मित्रों को सहयोग देने में आप कभी पीछे नहीं हटते और न हे अपने स्वार्थ की चिंता करते है. आप स्वभाव से चंचल हैं. जलप्रिय होने के कारण आपको तैरना बहुत पसंद है.
इस नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति सचेत रहता है और अथक प्रयासों द्वारा शीघ्र हे अपनी मंजिल पा लेता है. आप अति साहसी किन्तु अति भावुक होते हैं. तीव्र बुद्धिशाली और बुद्धि के मामलों में आप किसी पर विश्वास नहीं करते. वाकपटुता एवं बातों ही बातों में सामने वाले को मोहित करके अपना काम निकलवाना आपको आपको भली भाँती आता है.
चन्द्रम की चाँदनी आपको बहुत अधिक आकर्षित करती है. कल्पनाशील होने के कारण आप एक अच्छे लेखक , सुन्दर कवी, महान दार्शनिक एवं उच्च कोटि के साहित्यकार एवं भविष्यवक्ता भी हो सकते हैं.
आप मन से शांत एवं धार्मिक स्वभाव के होते हैं. अपने क्षेत्र के पंडित एवं विद्वान् होने के साथ साथ भाग्यशाली और धनि भी होते हैं. पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि है परन्तु इसके गुण गुरु तुल्य बताये गये है. इश्वर में पूर्ण आस्था , भाई बहनों से स्नेहपूर्ण सम्बन्ध एवं अपने से बड़ो का आदर सम्मान आपके स्वभाव में है.
पुष्य नक्षत्र में जन्मी महिलाएं भी बहुत धार्मिक विचारों वाली होती हैं. हर प्रकार के कार्यों में रूचि दिखाना इनके स्वभाव में हे होता है. यह विशाल ह्रदय वाली तथा दयाभाव रखने वाली होती हैं.
स्वभाव संकेत: इस नक्षत्र में जन्मे जातक हमेशा अभ्यासी पाए जाते हैं.
रोग संभावना : फेफड़ों एवं छाती से सम्बंधित रोग, काफ , पीलिया आदि
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. पुष्य नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा व्यक्ति भाग्यशाली होता है एवं यात्राओं द्वारा धन अर्जित करता है. अपनी प्रतिभा के कारण उच्च वाहन ,विशाल भवन , पद एवं प्रतिष्ठा को प्राप्त करता है.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मा व्यक्ति एक से अधिक स्रोतों से धन अर्जित करता है. अपनी वाक्पटुता के कारण पक्ष विपक्ष दोनों से ही मधुर सम्बन्ध बना कर रखता है.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. पुष्य नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मा व्यक्ति विद्यावान होता है. उच्च शिक्षा प्राप्त कर कई शैक्षणिक उपाधियाँ प्राप्त करता है. ऐसा जातक जिस भी कार्य में हाथ डालता है उसे सफलता अवश्य मिलती है.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. पुष्य नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मा व्यक्ति धार्मिक स्वभाव वाला होता है अतः जातक धार्मिक और परोपकारी कार्यों में पूर्ण रूचि दिखाते हैं. ऐसा जातक जिस भी कार्य में हाथ डालता है उसे सफलता अवश्य मिलती है.
9--- अश्लेशा नक्षत्र
नक्षत्र देवता: सर्प
नक्षत्र स्वामी: बुध
अश्लेशा नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
अश्लेशा नक्षत्र में जन्मे व्यक्तियों का प्राकृतिक गुण सांसारिक उन्नति में प्रयत्नशीलता, लज्जा व् सौदर्यौपसना है. इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति की आँखों एवं वचनों में विशेष आकर्षण होता है. लग्न स्वामी चन्द्रमा के होने के कारण ऐसे जातक उच्च श्रेणी के डॉक्टर , वैज्ञानिक या अनुसंधानकर्ता भी होते हैं क्योंकि चन्द्रमा औषधिपति हैं. इस नक्षत्र में जन्मे जातक बहुत चतुर बुद्धि के होते हैं. आप अक्सर जन्म स्थान से दूर ही रहते हैं. आपका वैवाहिक जीवन भी मधुर नहीं कहा जा सकता है. अश्लेशा नक्षत्र का स्वामी चन्द्र एवं नक्षत्र स्वामी बुध है. गंड नक्षत्र होने के कारण अश्लेशा का सर्पों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है.
अश्लेशा नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति अक्सर अपने वचनों से मुकर जाता है. क्रोध आपकी नाक पर रहता है. किसी पर भी शीघ्र क्रोधित हो जाना आपके स्वभाव में होता है. बुध और चन्द्रमा में शत्रुता के कारण इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति की विचारधारा संकीर्ण होती है और मन स्तिथि कर्तव्यविमूढ़ बन जाती है. अश्लेशा नक्षत्र का व्यक्ति स्वभाव से धूर्त ,ईर्ष्यालु, शरारती, पाप कर्म करने से न हिचकने वाला होता है. ऐसा व्यक्ति किसी भी प्रकार के नियम या आचरण को नहीं मानने वाला होता है.
अश्लेशा जातक सदैव परकार्य सेवारत रहतें हैं. भाई की सेवा एवं नौकरी करना स्वाभाविक है. स्वतंत्र होने पर परोपकारी होते हैं.
अश्लेशा नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ ऊँचे कद और सुन्दर परन्तु झगडालू प्रवृत्ति की होती हैं. यह सदा दूसरों का अहसान मानने वाली तथा उच्च कोटि की प्रेमिका साबित होती हैं. जिस से भी प्रेम करती है उसका साथ मरते दम तक निभाती हैं.
अश्लेशा के अंत में गंड है अतः व्यक्ति अल्पजीवी होता है, इसलिए अश्लेशा का विधि विधान से शांति करवाना आवश्यक होता है.
स्वभाव संकेत: जो उपकार पर उपकार करे वह अश्लेशा जातक हैं.
रोग संभावना :सर्दी, कफ, वायु रोग, पीलिया घुटनों का दर्द एवं विटामिन बी की कमी .
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी गुरु हैं. अश्लेशा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा व्यक्ति अत्यधिक धनि होता है,परन्तु आमदनी अनैतिक कार्यों से होती है. विदेशों में भाग्योदय एवं वृद्धावस्था में अंग भंग का खतरा रहता है. धार्मिक, राजनितिक और सामाजिक कार्यों में पूर्ण रूचि परन्तु सफलता के लिए अन्याय और असत्य का सहारा भी लेते हैं. सच्ची मित्रता में कतई विश्वास नहीं है.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. अश्लेशा नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मा व्यक्ति धन एकत्रित करने में सदा असफल रहता है. पद प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं होती है परन्तु उसके हिसाब से धन प्राप्ति हेतु सारे प्रयत्न विफल होते हैं.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. अश्लेशा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मा व्यक्ति धन एकत्रित करने में सदा असफल रहता है. पद प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं होती है परन्तु उसके हिसाब से धन प्राप्ति हेतु सरे प्रयत्न विफल होते हैं.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी गुरु हैं. अश्लेशा नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मे व्यक्ति की पद प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं होती है परन्तु धन का अभाव सदा रहता है.
10----- मघा नक्षत्र
नक्षत्र देवता: पितृ
नक्षत्र स्वामी: केतु
मघा नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म मघा नक्षत्र में हुआ है तो आप ठिगने कद के साथ सुदृढ वक्षस्थल और मजबूत झंघाओं के मालिक हैं. आपकी वाणी थोड़ी कर्कश एवं गर्दन थोड़ी मोटी है. मघा नक्षत्र में जन्म लेने वालों की आँखें विशेष चमक लिए हुए होती हैं. चेहरा शेर के समान भरा हुआ एवं रौबीला होता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति प्रायः अपने पौरुष और परुशार्थ के प्रदर्शन के लिए सदा ललायत रहते हैं. मघा नक्षत्र के जातकों को अपने रौबिलेपन को बढाने के लिए शानदार मूंछे रखने का शौक होता है. आप थोडा अभिमानी भी होते है और इसीलिए किसी की छोटी से छोटी बात पर भी शीघ्र ही नाराज़ भी हो जाते हैं. नाराज़गी में सामने वाले को नीचा दिखने के लिए अपनी बलशाली शक्ति और मर्दानगी का दुरूपयोग करने से भी नहीं हिचकिचाते.
मघा नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति परम तेजस्वी होता है. आप स्वभाव से बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं. देवताओं और पितरों को पूजे बिना कोई कार्य आरम्भ नहीं करते हैं
मघा नक्षत्र में जन्मी कन्याएं बहुमूल्य पकवान बनाना पसंद करती हैं. स्वादिष्ट पकवान एवं सुंदर और आकर्षक वस्त्रों की शौक़ीन मघा नक्षत्र की महिलाएं हर प्रकार के सुख सुविधा का भोग करती हैं. माता पिता और बड़ों का आदर सम्मान प्राकृतिक रूप से आपके व्यवहार में ही होता है. ईश्वर और पितरों से डरने वाली होती है.
स्वभाव संकेत: यदि आयु लम्बी हो तो मघा जातक धनवान होता है.
रोग संभावना : हार्ट अटैक, फ़ूड पोइस्निंग, पीठ का दर्द, किडनी सम्बन्धी समस्याएं
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. यहाँ लग्न स्वामी, नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र चरण स्वामी सभी में परम शत्रुता है इसलिए मघा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा व्यक्ति अल्प पुत्र संतति वाला होता है. लग्न बलि नहीं होने से जातक का विकास कार्य रुका हुआ रहता है तथा सूर्य की दशा कमज़ोर फल देगी.
द्वितीय चरण :इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. मघा नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मा व्यक्ति तेजस्वी पुत्र संतति वाला होता है. लग्नेश सूर्य की दशा उत्तम फल देगी . मंगल की दशा भाग्योदय कारक है पर शुक्र की दशा में पराक्रम बढेगा.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. मघा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मा व्यक्ति प्रायः रोगी होता है. जातक को संक्रामक रोग शीघ्र ही जकड लेते हैं. लग्नेश सूर्य की दशा उत्तम फल देगी . मंगल की दशा भाग्योदय होगा धन प्राप्ति के योग बुध की दशा में प्रबल होंगे.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. मघा नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मा व्यक्ति अपने क्षेत्र का विद्वान् पंडित होता है. लग्नेश सूर्य की दशा उत्तम फल देगी . मंगल की दशा में भाग्योदय होगा .
11--- पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र
नक्षत्र देवता: भग
नक्षत्र स्वामी: शुक्र
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हुआ है तो आप ऐसे भाग्यशाली व्यक्ति हैं जो समाज में सम्माननीय हैं और जिनका अनुसरण हर कोई करना चाहता है. आपमें आत्मविश्वास कूट कूट कर भरा है तथा नेतृत्व की क्षमता आपमें बचपन से ही है. इन्ही सब कारणों से आपके अधीनस्थ कर्मचारी आपसे भय खाते हैं . परिवार में भी आप एक मुखिया की भूमिका में रहते हैं. सभी छोटे बड़े कार्यों के लिए आपका परामर्श आवश्यक समझा जाता है तथा सभी सदस्य आपके द्वारा कहे गये वचनों को आज्ञा समझ कर पालन करते हैं.
आपको अनुशासन में रहना पसंद है तथा आप परिवार या कार्यस्थल पर दूसरों से भी अनुशासन की अपेक्षा करते हैं. आपकी अनुशासनात्मक प्रवृत्ति पूर्ण रूप से सफल कही जा सकती है. आप प्रशासनिक क्षेत्रों में बेहद सफल होते हैं .
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र शुक्र का नक्षत्र है इसका पर्याय भाग्य भी है. इस नक्षत्र में जन्मा जातक स्वभाव से चंचल एवं त्यागी होगा. दृढनिश्चयी होने के साथ साथ आप कामी भी होंगे. शुक्र एक कामुक गृह है इसमें चन्द्रमा आते ही काम एवं चपलता आप पर हावी हो जाती है.
इस नक्षत्र में जन्मा जातक मनमोहक छवि और मीठा बोलने वाला होता है. आप दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं और दान देने में भी नहीं हिचकिचाते. शुक्र के कारण आपका व्यवहार सौम्य एवं मीठा होता है. आपककी सरकारी क्षेत्र में कार्य करने की संभावनाएं अधिक होती है तथा अपने गुणों के कारण आप राज्य से घनिष्ठ सम्बन्ध भी बना लेते हैं.
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में जन्मी स्त्री सौम्य स्वभाव की होगी. दूसरों की मदद और दान करना इनका विशेष गुण है. फाल्गुनी स्त्री क्रोधी और दृढ इच्छा रखने वाली होती हैं
स्वभाव संकेत: दान पुण्य पूर्वाफाल्गुनी का सहज स्वाभाव है
रोग संभावना : प्रेम में असफलता के कारण मानसिक कष्ट, कमर का दर्द, ह्रदय रोग, वायु एवं रक्त से सम्बंधित रोग.
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक मीठा बोलने वाला एवं सुन्दर होता है. इस नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा व्यक्ति सर्वगुण संपन्न एवं समर्थ होता है. लग्नेश सूर्य की दशा विशेष फल देगी तथा मंगल की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. बुध के प्रभाव के कारण जातक वेद शास्त्रों का ज्ञाता एवं धर्म शास्त्रों का मर्मज्ञ होगा. सूर्य की दशा जातक के लिए स्वास्थ्यवर्धक होगी तथा मंगल की दशा- अन्तर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा. बुध की दशा में धन की प्राप्ति के योग बनेगे.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. लग्नेश सूर्य के साथ शुक्र का सम्बन्ध क्रूरता भरा है क्योंकि शुक्र एक दानवी ग्रह है. फलस्वरूप इस नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति क्रूर होगा. सूर्य की दशा जातक के लिए स्वास्थ्यवर्धक होगी तथा मंगल की दशा-अन्तर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा. बुध की दशा में धन की प्राप्ति के योग बनेगे.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. मंगल नक्षत्र स्वामी शुक्र का शत्रु एवं क्रूर ग्रह है. मंगल , सूर्य, शुक्र भी तेजस्वी ग्रह हैं. अतः जातक की आयु अधिक नहीं होगी. सूर्य की दशा माध्यम फल देगी एवं मंगल की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.
12---- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र
नक्षत्र देवता: अर्यमा
नक्षत्र स्वामी: सूर्य
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति युद्ध विद्या में निपुण, लड़ाकू एवं साहसी होता है. आप देश और समाज में अपने रौबीले व्यक्तित्व के कारण पहचाने जाते हैं. उत्तराफाल्गुनी जातक दूसरों का अनुसरण नहीं करते अपितु लोग उनका अनुसरण करते हैं. आपमें नेतृत्व के गुण जन्म से ही होते हैं अतः आप अपना कार्य करने में खुद ही सक्षम होते हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक दूसरों के इशारों पर चलना पसंद नहीं करता . यह लोग सिंह की भाँती अकेले ही अपना शिकार खुद करते हैं. उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र जातक राजा समान भोगी एवं पर स्त्री में रूचि रखने वाले होते हैं. चन्द्रमा के प्रभाव में यदि हो तो जातक विद्या बुद्धि से युक्त धनी एवं भाग्यवान होता है.
उत्तराफाल्गुनी जातक मित्र बनाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं. मित्रों की सहायता करने तथा उनसे सहायता प्राप्त करने में भी यह संकोच नहीं करते. हैं. आप मित्रों को बहुत महत्व देते हैं. मित्रता के सम्बन्ध में भी इनके साथ यह बातें लागू होती हैं, ये जिनसे दोस्ती करते हैं उसके साथ लम्बे समय तक मित्रता निभाते हैं। उदारता तथ दूसरों की सहायता करना आपके स्वभाव में ही है. आप अतिथितियों के आदर सत्कार में कभी कोई कमी नहीं छोड़ते हैं. आप बुद्धिमान होने के साथ साथ व्यवहार कुशल एवं हास्य प्रेमी भी हैं. अपनी इन्ही विशेषताओं के कारण आप सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में सक्षम होते हैं।
आपके लिए व्यापार एवं व्यवसाय या अन्य निजि कार्य करना लाभप्रद नहीं होता है।जो व्यक्ति उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में पैदा होते हैं वे स्थायित्व में यकीन रखते हैं, इन्हें बार बार काम बदलना पसंद नहीं होता है। ये जिस काम में एक बार लग जाते हैं उस काम में लम्बे समय तक बने रहते हैं। इनके स्वभाव की विशेषता होती है कि ये स्वयं सामर्थवान होते हुए भी दूसरों से सीखने में हिचकते नहीं हैं। अपने स्वभाव की इस विशेषता के कारण ये निरंतन प्रगति की राह पर आगे बढ़ते हैं। उत्तराफाल्गुनी जातक आर्थिक रूप से सामर्थवान होते हैं क्योंकि दृढ़विश्वास एवं लगन के साथ अपने लक्ष्य को हासिल करने हेतु तत्पर रहते हैं।पारिवारिक जीवन के सम्बन्ध में देखा जाए तो ये अपनी जिम्मेवारियों का पालन अच्छी तरह से करते हैं।
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक पंडित अर्थात अपने क्षेत्र का विद्वान् होगा इसका कारक इस चरण का नवांशेश गुरु है. नक्षत्र स्वामी एवं सूर्य दोनों ही विद्या के लिए शुभ गृह है. दोनों का चन्द्र पर प्रभाव जातक को पंडित बनाएगा. मंगल की दशा अन्तर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा . गुरु की दशा शुभ फल देगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक राजा या राजा समान वैभवशाली एवं पराक्रमी होता है. लग्नेश बुध की दशा उत्तम फल देगी. शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. इस नक्षत्र में यदि चन्द्रमा भी है तो व्यक्ति हर हाल में अपने शत्रुओं पर विजयी होगा तथा प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त करेगा. लग्नेश बुध की दशा अच्चा फल देगी, शनि अनिष्ट फल नहीं देगा अपिटी शुक्र व् शनि की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी गुरु हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक धार्मिक स्वभाव वाला, अपने संस्कारों के प्रति आस्थावान एवं सभ्य होगा. शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा एवं बृहस्पति की दशा उत्तम फल देगी.
13--- हस्त नक्षत्र
नक्षत्र देवता: सूर्य
नक्षत्र स्वामी: चन्द्र
हस्त नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म हस्त नक्षत्र में हुआ है तो आप संसार को जीतने और उसपर शासन करने का पूरा पूरा सामर्थ्य एवं शक्ति रखते हैं. आपकी दृढ़ता और विचारों की स्थिरता आपको एक आम आदमी से भिन्नता और श्रेष्ठता प्रदान करती है . आप एक स्वतंत्र विजेता हैं जो अपने ज्ञान और समृद्धि के कारण जाने जाते हैं. हस्त नक्षत्र के जातक सहृदयी और दयालु स्वभाव के होते हैं . जरुरतमंदों की निस्वार्थ मदद के लिए आप सदैव ही प्रशंसा पाते हैं. आप स्वभाव से थोड़े अध्यात्मिक और संगीत में रूचि रखने वाले होते हैं. आप अपने प्रियजनों के बीच रहना पसंद करते हैं परन्तु समय समय पर अपने कठोर निर्णयों के कारण कड़े एवं क्रूर हो जाते हैं.
हस्त नक्षत्र के जातक अपनी अंदरूनी दृढ शक्ति के कारण बाहर से कठिन व्यक्ति प्रतीत होते हैं परन्तु वास्तविकता कुछ और ही है. अपने नम्र स्वभाव के कारण आप दूसरों को शीघ्र ही अपनी और आकर्षित कर लेते हैं . आपको जीवन में दया और मानवता के बदले में केवल आलोचना और कभी कभी विद्रोह का भी सामना करना पड़ जाता है. आपका जीवन बहुत से उतार चढ़ाव से भरा हुआ है जो बहुत ही छोटे -छोटे अंतराल बाद आकर आपकी मानसिक शांति भंग कर देता हैं. आपका कठोर परिश्रम और कार्य के प्रति इमानदारी भी आपको स्थिरता नहीं दे पाती है. हस्त नक्षत्र के जातक जीवन में कभी भी बहुत अधिक धनि या बहुत अधिक निर्धन नहीं रहते हैं यही स्तिथि उनके जीवन में सुख और दुःख को लेकर भी है इसलिए आपको सदा ही संतुलित रहने का प्रयास करना चाहिए.
आप कभी किसी को भूल कर भी धोखा नहीं दे सकते क्योंकि आप इमानदारी पर विश्वास रखते हैं. यदि आपके साथ कोई विश्वासघात करता है तो आप क्रूरता और कठोरता के साथ उसका उत्तर देते हैं. समय के साथ आप अपने वास्तविक स्वभाव में आ जाते हैं और बाकि सब इश्वर पर छोड़ देते हैं. अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण आप किसी भी प्रकार के कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के योग्य हैं. आपका लक्ष्य कार्य में प्रभावी समाधान खोजना और कार्य को बिना अड़चन के पूर्ण करना होता है.
आप अपने जीवन में 17-18 की आयु से ही कमाना आरम्भ कर देते हैं परन्तु अडचने 48 वर्ष की उम्र तक आपका पीछा नहीं छोड़ती. आप अपने जीवन में समृद्धि और सुख 48 वें वर्ष के उपरान्त ही देख पाते हैं.
हस्त नक्षत्र में जन्मा जातक एक सुखी पारिवारिक जीवन व्यतीत करता है. छोटी छोटी अडचनों के बावजूद , एक अच्छे जीवन साथी के कारण पारिवारिक जीवन संतोष पूर्वक व्यतीत होता है. सर्वगुण संपन्न पत्नी के कारण आपका दाम्पत्य जीवन सुखी एवं सद्भावनापूर्ण होता है.
हस्त नक्षत्र में जन्मी जातिका कड़े स्वभाव की तथा अधिक इच्छा रखने वाली होती हैं. यह अपनी वित्तीय स्तिथि से सदा नाखुश और असंतुष्ट रहती हैं. दूसरों के धन और संपत्ति में रूचि रखना इनके स्वभाव में होता है. हस्त जातिका कार्य करने में चतुर एवं कुशल होती हैं.
स्वभाव संकेत: हस्त जातक सदैव आभार मानने वाले होते हैं.
रोग संभावना : हस्त नक्षत्र के जातकों में विटामिन बी की कमी देखने को मिलती है. गैस, अपच , अजीर्ण, हाथ तथा कंधे के जोड़ों के दर्द , सांस की तकलीफ.
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक शूरवीर एवं तर्कशास्त्र का ज्ञाता होता है. बुध की दशा हस्त जातक को उत्तम फल देगी. शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा तथा चन्द्रमा भी उत्तम फल देगा.
द्वितीय चरण :इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक आजीवन रोग से जूझता रहता है. जातक के शारीर में स्थायी बीमारी का योग बनता है. बुध की दशा अति उत्तम फल देगी . शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा तथा चन्द्रमा भी उत्तम फल देगा.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक धनी एवं संपन्न होगा. लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी . शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा तथा चन्द्रमा की दशा सामान्य रहेगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक धनी एवं संपन्न होगा. लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी . शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा तथा चन्द्रमा की दशा सामान्य रहेगी.
14--- चित्रा नक्षत्र
नक्षत्र देवता: विश्वकर्मा
नक्षत्र स्वामी: मंगल
चित्रा नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक शारीरिक रूप से मनमोहक एवं सुन्दर आँखों वाला होता है. आपको अनेक प्रकार की साज सज्जा का शौक होता है तथा अपने लिए नित नए आभूषण एवं वस्त्र आप खरीदते ही रहते हैं. आपका व्यक्तित्व आकर्षक एवं शारीरिक रूप से संतुलित होते हैं. व्यक्तित्व के यही गुण आपको भीड़ से अलग करते हैं. आपकी पसंद और सोच में अनूठापन है जिससे अक्सर महिलाएं आकर्षित हो जाती है. आप स्वभाव से कामुक एवं स्त्रियों में अधिक रूचि रखने वाले होते हैं.
आप बेहद संवेदनशील हैं तथा भावुक हैं इसलिए आपकी बुद्धि अस्थिर रहती है और आपको निर्णय लेने में कठिनाई अक्सर आती है. आप एक शांतप्रिय व्यक्ति हैं परन्तु अपनी स्पष्टवादिता के कारण विवादों में अक्सर फंस जाते हैं. आपमें सुन्दरता और गुणों का समावेश है. आप दयालु और गरीबों के मदद करने वालों में से हैं. शत्रुओं को मुंहतोड़ जवाब देने की उपेक्षा आप अपने आप को बचाना बेहतर समझते है.
चित्र नक्षत्र में जन्मा जातक परिश्रमी होता है और अपने इसी गुण के कारण अपने जीवन में आई कई कठिनाईयों को पार करते हुए उन्नति पाता है. कभी कभी आपको अपने द्वारा की गई मेहनत से अधिक भी मिल जाता है. आपका जीवन 32 वर्ष तक उथल पुथल भरा रहता है परन्तु 32 से 52 वर्ष तक का समय आपके जीवन का बेहतर समय कहा जा सकता है. आप अपने पिता से अधिक माता से निकट होंगे हालाँकि आपके पिता समाज में एक सम्मानीय व्यक्ति होंगे परन्तु किसी कारणवश आपकी उनसे दूरी आजीवन बनी रहेगी. चित्रा नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति अपने जन्म स्थान से दूर जाकर ही सफल होता है. वैवाहिक जीवन में कुछ खटास रहती है परन्तु पारिवारिक जीवन में स्थिरता रहती है.
चित्रा नक्षत्र में जन्मी महिलाएं सफ़ेद वस्त्र पहनना पसंद करती हैं. सुंदर तथा हंसमुख स्वभाव वाली चित्रा जातिकाएं ईश्वर में विश्वास रखने वाली होती हैं. आप माता पिता की प्रिय तथा आपके नेत्र विशेष रूप से सुंदर होते हैं. स्वभाव संकेत: सुंदर नेत्र
रोग संभावना : अल्सर, किडनी सम्बंधित रोग, दिमागी बुखार , अपेंडिक्स आदि.
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुए जातकों का झुकाव चोरी एवं तस्करी में अधिक होता है. लग्नेश बुध की दशा शुभ फल देगी. शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा. सूर्य की दशा अशुभ फलदायी होगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक सौंदर्य प्रेमी होता है एवं उसकी रूचि संगीत, कला, चित्रकारी या फोटोग्राफी जैसे विषयों में अधिक होती है. लग्नेश बुध की दशा माध्यम फल देगी.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. नक्षत्र स्वामी मंगल एवं लग्नेश तथा नक्षत्र चरण स्वामी शुक्र दोनों ही कामुक गृह हैं. फलतः जातक कामुक होगा तथा पराई स्त्री में रूचि रखने वाला होगा. लग्न बलि न होने के कारण जातक का विकास रुका हुआ रहेगा. लग्नेश शुक्र एवं मंगल की दशा में कोई काम नहीं बनेगा.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. नक्षत्र स्वामी मंगल एवं नक्षत्र चरण स्वामी भी मंगल होने के कारण जातक के शारीर पर चोट अथवा पीड़ा का निशान रहेगा. लग्नेश शुक्र की दशा अच्चा फल देगी. मंगल की दशा अन्तर्दशा उत्तम फल देगी.
15--- स्वाति नक्षत्र
नक्षत्र देवता: वायु
नक्षत्र स्वामी: राहु
स्वाति नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म स्वाति नक्षत्र में हुआ है तो आप एक आकर्षक चेहरे और उससे भी अधिक आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी हैं. आपका शारीर सुडौल एवं भरा हुआ है. इस कारण आप कहीं भी जाएँ भीड़ से अलग ही दिखते हैं. आप जैसा सोचते हैं वैसा करते हैं . दिखावा आपको पसंद नहीं .
आप एक स्वतंत्र आत्मा के स्वामी है जिसको किसी के भी आदेश का पालन करना कतई पसंद नहीं. आप किसी पर भी तब तक मेहरबान रहते हैं जब तक कि सामने वाला आपकी आज़ादी में दखल न दे. जो भी आपकी आजादी को नुक्सान पहुचाएगा वो आपके कोप भाजन का शिकार अवश्य होगा. वास्तविकता तो यह है कि आप या तो किसी के परम मित्र हो सकते हैं या फिर परम शत्रु.
आप स्वभाव से बहुत ही स्वाभिमानी और उच्च विचार धारा के व्यक्ति हैं . न तो आपको किसी की संपत्ति में रूचि है और न ही अपनी संपत्ति में किसी की हिस्सेदारी आपको पसंद है. आपको अपने कार्यों पर किसी की टिप्पणी कतई पसंद नहीं है. यदि आपकी नज़र में सामने वाला दोषी है तो बदला लेने में आप किसी भी हद तक जा सकते हैं . आप अपने कार्यों को पूरे मन लगा कर मेहनत और इमानदारी के साथ करते है. आप अपने जीवन के शरुआती 25 वर्षों में व्यवसायिक रूप से बहुत कठिनाईयां झेलेंगे. परिश्रम के अनुरूप फल प्राप्त नहीं होगा परन्तु 30 वर्ष के उपरान्त आपको अपने किये हुए कार्यों का ब्याज समेत भुगतान मिलेगा. स्वाति नक्षत्र के जातकों के लिए न्यायिक व्यवस्था में कार्य करना सबसे अधिक लाभप्रद है. सैन्य क्षेत्र में आप अधिक तरक्की करते है.
आपका वैवाहिक जीवन बहुत सुखमय नहीं होगा क्योंकि आपसी वैचारिक मतभेदों के कारण घर में शांति नहीं रहेगी फिर भी स्तिथि स्थिर रहेगी और बिगड़ेगी नहीं.
स्वाति नक्षत्र की जातिका कभी न आलस करने वाली होती हैं. दिखने में साधारण शक्ल सूरत किन्तु बुद्धि से चपल एवं किसी भी स्तिथि में अपने मनोरथ पूरे करने वाली होती हैं. इस नक्षत्र में जन्मी जातिका जिद्दी होने के कारण कभी कभी अच्छे बुरे कार्य में भेद नहीं कर पाती है.
स्वभाव संकेत: स्वाति नक्षत्र का जातक अपने स्वभाव से प्रसन्नता देता है.
रोग संभावना : यौन रोग , मूत्र से सम्बंधित रोग
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी गुरु हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक चोर प्रवृत्ति का होता है . नक्षत्र स्वामी राहु गुरु को बिगाड़ कर अपना फल देता है अतः जातक चोर प्रवृत्ति का होगा.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. राहु व् शनि दो पाप ग्रहों के प्रभाव में आने से जातक अल्पायु होता है. लग्नेश शुक्र की दशा अच्छी जाएगी. राहु और शनि की मित्रता के कारण दोनों की दशाओं में जातक को स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना होगा .
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. इस नक्षत्र में जन्मे जातक पर शनि और राहु के प्रभाव के कारण वैराग्य आएगा अतः जातक धार्मिक प्रवृत्ति का होगा. राहु और शनि की मित्रता के कारण दोनों की दशाओं में जातक को स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना होगा .
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी गुरु हैं. इस नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति राजा समान होता है तथा बहुत अधिक भू संपत्ति का स्वामी होता है. राहु एवं गुरु की दशाएं अशुभ फल देंगी.
16--- विशाखा नक्षत्र
नक्षत्र देवता: इन्द्राग्नी
नक्षत्र स्वामी: गुरु
विशाखा नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म विशाखा नक्षत्र में हुआ है तो आप शारीरिक श्रम के स्थान पर मानसिक कार्यों को अधिक वरियता देते हैं. शारीरिक श्रम करना आपके बस की बात नहीं है और इससे आपका भाग्योदय भी नहीं होगा. मानसिक रूप से आप सक्षम व्यक्ति है और कठिन से कठिन कार्य को भी अपनी समझ बूझ से शीघ्र ही निबटा लेते हैं. स्वभाव से ईर्ष्यालु परन्तु बोल चाल से अपना काम निकलने का गुण अपमे स्वाभाविक रूप से ही है. वाक् पटुता आपका सहज गुण है. मार्केटिंग और सेल्स मैन शिप का कार्य आपके लिए विशेष लाभप्रद है. ब्लैक मार्केटिंग से भी आपका सम्बन्ध हो सकता है. आपका व्यक्तित्व सुंदर एवं आकर्षक है इसलिए लड़के/लड़कियां हमेश ही आपकी और खिचे चले आते हैं जिसका आप लाभ उठाने से नहीं चूकते. सेक्स के मामले में आप बहुत ही रंगीले व्यक्ति हैं.
विशाखा नक्षत्र में जन्मे जातक को क्रोध शीघ्र ही आ जाता है. विपरीत बात आपसे सहन नहीं होती है और बिना सोचे समझे या परिणाम की चिंता किये बिना आप सामने वाले से टकरा जाते हैं. हालाँकि मन मन ही मन घबराते भी हैं परन्तु अपनी घबराहट बाहर प्रकट नहीं होने देते हैं. क्रोधित होने पर अपशब्द कहना और बाद में पछताना आपके व्यवहार में है.
यदि आपका जन्म 17 अक्टूबर से 13 नवम्बर के बीच हुआ है तो आपका आत्मबल बेहद कमज़ोर होगा. हालाँकि दिमाग में रात दिन कुछ न कुछ चलता रहता है या यूँ कहे ख्याली पुलाव पकते रहते हैं. आप कला और विज्ञान के क्षेत्र में भी रूचि रखते हैं. बचपन से ही पिता के साथ आपका मन मुटाव चलता रहता है. किशोरावस्था तक जीवन में लापरवाही रहती है. एवं उद्देश्य की कमी के कारण भटकाव भी होते हैं.
विशाखा नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ धार्मिक प्रवृत्ति की होती हैं. विशाखा नक्षत्र की जातिका उद्यमी परन्तु स्वभाव की कोमल एवं नम्र ह्रदय की होती हैं. धन ,ऐश्वर्ययुक्त एवं सत्य का साथ देने वाली होती हैं. अपने इन्ही गुणों के कारण विशाखा नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ समाज में मान सम्मान तथा पूजनीय स्थान प्राप्त करती हैं.
स्वभाव संकेत: ईर्ष्यालु प्रवृत्ति
रोग संभावना : चमड़ी के रोग, मधुमेह, पेशाब और स्त्रियों में गर्भाशय से सम्बंधित रोग, टी बी इत्यादि
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक तर्कशील एवं नीतिशास्त्र में निपुण होता है. लग्न नक्षत्र स्वामी गुरु एवं नक्षत्र चरण स्वामी मंगल में परस्पर शत्रुता होने से गुरु एवं धनेश मंगल दोनों की दशाएं अशुभ फल देंगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. गुरु व् शुक्र के प्रभाव से जातक धार्मिक शास्त्रों का ज्ञाता, दार्शनिक एवं शास्त्रवेत्ता होता है. गुरु एवं शुक्र की परस्पर शत्रुता के कारण गुरु की दशा अशुभ फल देगी. गुरु में शुक्र या शुक्र में गुरु का अन्तर भी अशुभ फल देगा.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. गुरु ज्ञान एवं बुध तर्क का प्रतीक है. ऐसे जातक में वाद विवाद और तर्क करने की प्रखरता आती है. शुक्र की दशा माध्यम फल देगी. गुरु एवं बुध में शत्रुता होने से गुरु एवं बुध दोनों की ही दशा अशुभ फल देगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र है. चन्द्र मंगल तथा बृहस्पति दोनों का ही मित्र है फलतः चन्द्रमा की दशा में जातक का भाग्योदय होगा. मंगल की दशा भी शुभ फल देगी. जातक लग्न बलि एवं चेष्टावान होगा. विशाखा नक्षत्र के चौथे चरण में जन्म लेने वाला जातक लम्बी आयु भोगने वाला होता है.
17--- अनुराधा नक्षत्र
नक्षत्र देवता: मित्र
नक्षत्र स्वामी: शनि
अनुराधा नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म अनुराधा नक्षत्र में हुआ है तो आपका अधिकाँश जीवन विदेशों में ही बीतेगा परन्तु अच्छी बात यह है कि विदेशों में रहकर आप अधिक धन कमाएंगे और समाज में मान सम्मान प्राप्त करेंगे. आप बहुत साहसी एवं कर्मठ व्यक्तित्व के स्वामी हैं. परिस्थितियों की मार के सामने आप झुकने वालों में से नहीं हैं. आप चुपचाप बिना रुके और बिना थके निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं.
आप बहुत दृढ इच्छाशक्ति एवं तीक्ष्ण बुद्धि के मालिक हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक भ्रमणशील प्रवृत्ति का होता है . आप खाने पीने के बहुत अधिक शौक़ीन हैं इसलिए अधिकतर समय आप स्वादिष्ट व्यंजनों की ही खोज में रहते हैं.
सब कुछ होते हुए भी जीवन में कभी कभी ऐसा समय भी आएगा की आप धन की कमी महसूस करेंगे. जन्म स्थान से पृथक होने का दुःख भी यदा कदा सताता रहेगा. परन्तु आप बहुत मेहनती हैं और शारीरिक श्रम से कभी नहीं घबराते इसलिए बहुत जल्द ही घटनायों से उबरने की कोशिश करते है.
अनुराधा नक्षत्र में जन्मी महिलाएं भी खाने की बेहद शौक़ीन होती हैं और सामान्य से अधिक भोजन करने और पचाने में सक्षम होती है. स्वभाव से भ्रमणशील परन्तु झगडालू प्रवृत्ति होने के कारण कभी कभी क्रूरतापूर्वक व्यवहार भी करती हैं.
स्वभाव संकेत: सुंदर बाल अनुराधा नक्षत्र के संकेत हैं.
रोग संभावना : पेट और गले से सम्बंधित रोग एवं स्त्रियों में मासिक धर्म से जुडी समस्याएं.
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक उतावले स्वभाव का होता है. सूर्य लग्न स्वामी मंगल का मित्र है परन्तु लग्न नक्षत्र स्वामी का शत्रु है अतः सूर्य की दशा मिश्रित फल देगी. शनि की दशा में भौतिक रूप से उन्नति होगी. लग्नेश मंगल की दशा अत्यंत शुभ फल देगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक धार्मिक स्वभाव का होता है. बुध लग्न स्वामी मंगल का शत्रु है . बुध में शनि का अंतर एवं शनि में बुध का अंतर शुभ फलदायी होगा. परन्तु शनि में मंगल या मंगल में शनि का अंतर अशुभ फल देगा. मंगल की दशा में जातक उन्नति करेगा.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक दीर्घायु प्राप्त करता है . अनुराधा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है जो शनि का शत्रु परन्तु मंगल का मित्र है फलतः शुक्र की दशा माध्यम फल देगी . शनि की दशा में पराक्रम बढेगा तथा भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति होगी. मंगल की दशा अत्यंत उत्तम फल देगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक प्रायः नपुंसक होता है. अनुराधा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है तथा लग्न स्वामी भी मंगल है अतः मंगल की दशा- अनार्दशा जातक को उत्तम फल देगी. शनि की दशा माध्यम फल देगी क्योंकि शनि और मंगल में शत्रुता है.
18--- ज्येष्ठ नक्षत्र
नक्षत्र देवता: इंद्र
नक्षत्र स्वामी: बुध
ज्येष्ठ नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म ज्येष्ठ नक्षत्र में हुआ है तो आप दृढ निश्चयी और मज़बूत व्यक्तित्व के स्वामी है. आप नियम से जीवन व्यतीत करना पसंद करते हैं. आपकी दिनचर्या सैनिकों की तरह अनुशासित और सुव्यवस्थित होती है. आप शारीरिक रूप से गठीले और मज़बूत होते हैं तथा कार्य करने में सैनिकों के समान फुर्तीले होते हैं. किसी के बारे में आपके विचार शीघ्र नहीं बदलते और दूसरों को आप हठी प्रतीत होतें है. आप एक बुद्धिमान और बौधिक विचारधारा पर चलने वाले व्यक्ति हैं. आप बुद्धिमान व्यक्तियों का सम्मान करते हैं और सदैव सच्चे लोगो के बीच रहना पसंद करते हैं.
आप अपने हठीले स्वभाव के कारण जीवन में कई बार कठिनाईयों का सामना करते हैं. आप अपने विचारों पर इतना दृढ रहते हैं की आपको बदलते हुए समय और स्तिथियों के अनुसार ढालना बहुत कठिन कार्य है. आप अपने साथ बहुत साजो सामान रखना पसंद नहीं करते जबकि ओरों को आप घमंडी प्रतीत होते है वास्तिविकता इसके बिलकुल उलट है आप ह्रदय से एकदम सच्चे और पवित्र होते है. आपकी सबसे बड़ी कमी है किसी भी राज़ को आप राज़ नहीं रहने देते, चाहे फिर वह आपका अपना हो या किसी और का. ज्येष्ठा नक्षत्र के जातकों को अक्सर शराब या नशीले पदार्थों का सेवन करते हुए देखा गया है क्योंकि आपमें स्तिथियों से निबटने की अंदरूनी ताकत नहीं होती है. दिखावे में आपका विश्वास नहीं है इसलिए आपके मित्र भी बहुत कम होते हैं.
आप बहुत कम उम्र से ही कमाने लग जाते हैं और आजीवन किसी की मदद लेना पसंद नहीं करते हैं . करियर के कारण आप अपने घर से दूर रहते हैं और 18 से 26 वर्ष तक बहुत से व्यवसाय बदलते हुए आगे बड़ते हैं. अधिक बदलाव के कारण धन की कमी भी आपको अति है. 27 वर्ष के बाद कुछ स्थिरता आती है और आप अपनी मेहनत और लगन के कारण तरक्की पाते हैं.
ज्येष्ठ नक्षत्र के जातक अपने जीवन साथी के कारण सुख और ख़ुशी का अनुभव करते हैं परन्तु पति/पत्नी के रोगी होने पर उनसे दूरी बनाना इनके लिए मजबूरी बन जाता है.
ज्येष्ठ नक्षत्र की जातिका स्वभाव से झगडालू एवं जिद्दी होती है. घात लगाकर सामने वाले से बदला लेना उसके स्वभाव में होता है. अपनी कर्कश जुबान और तीखे व्यक्तित्व के कारण समाज में अक्सर इनकी निंदा की जाती है.
स्वभाव संकेत: दूसरों को मुसीबत में देख आनंद उठाने वाला ज्येष्ठा नक्षत्र का जातक होता है.
रोग संभावना : हाथ और कन्धों के जोड़ों का दर्द, आंत से सम्बंधित रोग, खांसी जुकाम
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक क्रूर होता है. बृहस्पति लग्नेश मंगल का शत्रु है तथा नक्षत्र स्वामी बुध का भी शत्रु है. अतः बुध या मंगल की दशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा अशुभ फल देगी. बृहस्पति की अपनी दशा शुभ फलदायी होगी. मंगल की दशा अन्तर्दशा शुभ फलों से परिपूर्ण होगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक भोग और विलासितापूर्ण जीवन जीता है. . इस चरण का स्वामी बुध है तथा नक्षत्र स्वामी भी बुध होने के कारण बुध की दशा उत्तम फल देगी. बुध में मंगल का अंतर या मंगल में बुध का अंतर कष्टदायी होगा.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक विद्वान् व्यक्ति होगा. शनि लग्नेश मंगल का शत्रु है परन्तु बुध का मित्र है अतः शनि में बुध का अंतर या बुध में शनि का अंतर शुभ फल देगा. लग्नेश मंगल की दशा अन्तर्दशा शुभ फल देगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. इस नक्षत्र में जन्मे जातक को पुत्र सुख अवश्य प्राप्त होता है. शुक्र लग्नेश मंगल का मित्र है परन्तु बुध का शत्रु अतः शुक्र की दशा मिश्रित फल देगी और बुध की दशा अत्यंत शुभ फल देगी. मंगल की दशा भी शुभ फलदायी होगी.
19--- मूल नक्षत्र
नक्षत्र देवता: नैऋति
नक्षत्र स्वामी: केतु
मूल नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है तो आपका जीवन सुख समृद्धि के साथ बीतेगा. धन की कमी आपको कभी नहीं आएगी और आप अपने कार्यों द्वारा अपने परिवार का नाम और सम्मान और बढ़ाएंगे. आप कोमल हृदयी परन्तु अस्थिर दिमाग के व्यक्ति है. कभी आप बहुत दयालु और कभी अत्यधिक नुक्सान पहुंचाने वाले होते है. ऐश्वर्य पूर्ण जीवन के कारण आपका उठना बैठना समाज के धनि एवं उच्च वर्ग के व्यक्तियों के साथ ही होता है, इस कारण आपके व्यक्तित्व में घमंड आना स्वाभाविक है. आपका व्यवहार बहुत ही अनिश्चित होता है, समय और स्थान के साथ ये परिवर्तित हो जाता है.
अपनी आकर्षक आँखों और सम्मोहक व्यक्तित्व के कारण आप अनायास ही लोगों के आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं. आप शांतिप्रिय और एक सकारत्मक सोच वाले व्यक्ति हैं जो भविष्य की चिंता छोड़ केवल आज में जीना पसंद करते हैं. मूल नक्षत्र में जन्मे जातक सिद्धांतों और नैतिकता में बहुत अधिक विश्वास करते हैं परन्तु अपनी अस्थिर सोच के कारण कभी कभी आपके व्यवहार को समझना बेहद कठिन हो जाता है. आपमें गंभीरता की कमी है परन्तु ईश्वर पर आपका विश्वास अटूट है.
मूल नक्षत्र के जातक आपने कार्य के प्रति मेहनती और निष्ठावान होतें हैं व् अधिकतर कला, लेखन, प्रशासनिक, मेडिकल या हर्बल क्षेत्र में सफल माने जाते हैं. आप एक प्रभावशाली, बुद्धिमान और नेतृत्व के गुणों से भरपूर व्यक्ति हैं इसलिए यदि आप सामाजिक या राजनीतिक क्षेत्रों में भाग्य अजमाए तो आप शीघ्र ही उच्चस्थ पद प्राप्त कर लेंगे.
अपनी अस्थिर सोच के कारण जीवन में कई बार आप अपने कार्यक्षेत्र बदलते हैं. आप एक अच्छे वित्तीय सलाहकार होते हैं परन्तु केवल दूसरों के लिए. आप बिना सोचे समझे धन खर्च करने वालों में से हैं इसलिए जीवन में कई बार आपको आर्थिक संकट से सामना करना पड़ सकता है.
आपको विदेश में कार्य का प्रस्ताव कभी ठुकराना नहीं चाहिए क्योंकि विदेश में आपका भाग्योदय निश्चित है. जीवन के शरुआती वर्षों में आपको पिता या भाई-बहन का सहयोग न के बराबर मिलने के कारण आप स्वयं संघर्ष कर जीवन में सफल होते हैं.
मूल नक्षत्र जातकों का दांपत्य जीवन बेहद सुखमय एवं संतोषजनक होता है. आपकी पत्नी के कारण आप जीवन में शांति और आनंद का अनुभव करते हैं.
मूल नक्षत्र की जातिका सामान्य से अधिक कद वाली होती हैं. यह अच्छे और बुरे कार्यों में भेद नहीं करती इसलिए पाप कर्मों में रूचि लेने लगती हैं.
स्वभाव संकेत: किसी को मूर्ख बना कर घमंड करना मूल जातकों की निशानी है.
रोग संभावना : कमर और कुल्हे का दर्द, टी बी और लकवा
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. नक्षत्र चरण स्वामी मंगल की गुरु एवं केतु से शत्रुता के कारण इस नक्षत्र में जन्मा जातक जीवन भर भौतिक सुखों के प्राप्ति हेतु संघर्षरत रहता है. लगन्बली न होने के कारण विकास रुका हुआ रहेगा परन्तु सूर्य की दशा अच्छी जाएगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. लग्नेश गुरु की नक्षत्र स्वामी केतु से शत्रुता है परन्तु नक्षत्र चरण स्वामी शुक्र की केतु से मित्रता के कारण जातक में त्याग अथवा दान की प्रवृत्ति अधिक होगी. सूर्य की दशा में जातक का भाग्योदय होगा. शुक्र की दशा भी ख़राब नहीं जाएगी और केतु की दशा शुभ फल देगी.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. मूल नक्षत्र के तीसरे चरण में जनम लेने वाले जातक के अधिक मित्र होंगे एवं सभी सुयोग्य होंगे. लग्नेश गुरु की दशा अति उत्तम फल देगी. सूर्य की दशा में जातक का भाग्योदय होगा. केतु एवं बुध की दशाएं भी शुभ फल देंगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. लग्नेश गुरु और चन्द्रमा की मित्रता के कारण मूल नक्षत्र के चौथे चरण में जन्म लेने वाला जातक राजा के समान सम्मान एवं ऐश्वर्य प्राप्त करता है. लग्नेश गुरु की दशा अति उत्तम फल देगी. सूर्य की दशा में जातक का भाग्योदय होगा. शुक्र की दशा भी ख़राब नहीं जाएगी.
20---- पूर्वाषाढा नक्षत्र
नक्षत्र देवता: उदक
नक्षत्र स्वामी: शुक्र
पूर्वाषाढा नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
पूर्वाषाढा में जन्म लेने वाला जातक थोडा नकचढ़ा और उग्र स्वभाव के होने बावजूद कोमल हृदयी और दूसरों से स्नेह रखने वाला होता है. आप जीवन में सकारत्मक विचारधारा से आगे बढ़ते हुए अपने लक्ष्य प्राप्त करते हैं. आपका व्यक्तित्व दूसरों पर हावी रहता है परन्तु आप एक संवेदनशील व्यक्ति हैं जो दूसरों की मदद के लिए सदैव तैयार रहतें है . अपने इन्ही गुणों के कारण आप को बहुत अधिक प्रेम व् सम्मान भी मिलता है परन्तु अपनी चंचल बुद्धि के कारण आप अधिक वफादार नहीं होते हैं और कभी कभी अनैतिक कार्यों में भी लिप्त हो जाते हैं. कुल मिलकर आप एक जटिल व्यक्ति हैं जिसे समझाना मुश्किल है. इस नक्षत्र में जन्मे जातक बुद्धिजीवी होते हैं और अपनी मेहनत और सत्यनिष्ठा के कारण आगे बढ़ते हैं. जीवन में कई बार जहाँ आपको असंभावित व्यक्तियों से मदद मिलती है वहीँ करीबी और मित्रों से धोखा.
आप बेहद हिम्मती व्यक्ति हैं परन्तु कभी कभी निर्णायक स्तिथि में पहुँचने के लिए किसी दूसरे का मार्गदर्शन आपके लिए आवश्यक हो जाता है. किसी निर्णय पर पहुंचकर आपको हिलाना संभव नहीं है इसी कारण आप कभी कभी जिद्दी भी समझे जाते हैं. आपको अपने कार्यों में किसी का हस्तक्षेप कतई पसंद नहीं है चाहे आप कितने भी गलत क्यों न हों.
यदि पूर्वाषाढा जातक व्यवसाय में हो तो अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के चुनाव में अधिक सतर्क रहें क्योंकि उनकी सफलता इन्ही करमचारियों पर निर्भर करती है. वैसे आपके लिए मेडिकल, कला , दर्शन शास्त्र और विज्ञान से सम्बंधित क्षेत्र सर्वोत्तम हैं.
आपका जिद्दी और कठोर स्वभाव ही आपके लिए जीवन में रुकावटें लता है. 32 वर्ष तक आप संघर्षरत हैं रहते हैं और 50 वर्ष तक आते आते आप अपने करियर में चमकते हैं.
जीवन में पता पिता का सहयोग न के बराबर रहता है परन्तु भाई बहनों के प्रेम और सहयोग के कारण आप सफलता प्राप्त करते हैं. व्यवसायिक दाईत्व के कारण आपको अपने जन्म स्थल से दूर जाना पद सकता है.
आपका विवाह थोडा विलम्ब से होता है परन्तु एक अच्छे जीवन साथी के कारण आपका दांपत्य जीवन सुखमय एवं आनंददायक होता है. आपका अपनी पत्नी और ससुराल पक्ष से बेहद लगाव रहेगा. आपकी संतान बुद्धिमान एवं आपका नाम रोशन करने वाली होगी.
पूर्वाषाढा में जन्मी जातिका धार्मिक , शील और बहुत ही नम्र स्वभाव की होगी. झूठ से नफरत करने वाली एवं ईश्वर में पूर्ण आस्था रखने वाली होगी. दया भाव एवं दान पुण्य करना इनके स्वभाव में ही होता है.
स्वभाव संकेत: पूर्वाषाढा जातकों की ऊँचाई औसतन व्यक्ति से अधिक होती है.
रोग संभावना : कमर और कुल्हे का दर्द, टी बी , मधुमेह , रक्त विकार और कैंसर
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. दोनों ग्रह परस्पर शत्रु होते हुए भी तेजस्वी हैं इसलिए इस चरण में जन्मा जातक अपनी जाती का तेजस्वी एवं श्रेष्ठ व्यक्ति होता है. गुरु की दशा शुभ फल देगी. सूर्य की दशा में जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा. शुक्र की दशा सामान्य जाएगी.
द्वितीय चरण :इस चरण का स्वामी बुध हैं. गुरु एवं शुक्र दोनों आचार्य एवं बुद्धि प्रधान ग्रह हैं. परस्पर शत्रु होते हुए भी तेजस्वी हैं . बुध और शुक्र की मित्रता के कारण व्यक्ति राजा तुल्य पराक्रमी एवं बुद्धिशाली होगा. गुरु की दशा उत्तम फल देगी. सूर्य की दशा में जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा. बुध की दशा भी श्रेष्ठ फल देगी. शुक्र की दशा सामान्य जाएगी.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. दोनों ग्रह गुरु और शुक्र परस्पर शत्रु होते हुए भी तेजस्वी हैं इसलिए इस चरण में जन्मा जातक प्रिय , मीठी एवं हितकर वाणी बोलेगा. गुरु की दशा शुभ फल देगी. शुक्र की दशा में जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा. शुक्र की दशा कभी भी अशुभ फल नहीं देगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. दोनों ग्रह गुरु और शुक्र परस्पर शत्रु हैं. मंगल से भी शुक्र की शत्रुता है इसलिए इस चरण में जन्मा जातक संघर्ष करता हुआ धनी होगा. गुरु की दशा शुभ फल देगी. सूर्य की दशा में जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा. मंगल की दशा विदेशों की यात्रा या तीर्थ कराएगी शुक्र की दशा सामान्य जाएगी.
21--- उत्तराषाढा नक्षत्र
नक्षत्र देवता: विश्वेदेवता
नक्षत्र स्वामी: सूर्य
उत्तराषाढा नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म उत्तराषाढा नक्षत्र में हुआ है तो आप एक सफल एवं स्वतंत्र व्यक्ति हैं. आप ईश्वर में आस्था रखते हुए जीवन में प्रसन्नता और मैत्री के साथ आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं. विवाह उपरान्त आपके जीवन में और अधिक सफलता एवं प्रसन्नता आती है. उत्तराषाढा में जन्मा जातक ऊँचे कद और गठीले शारीर के मालिक होते हैं. चमकदार आँखे और चौड़ा माथा आपके व्यक्तित्व में चार चाँद लगाते हैं. गौर वर्ण के साथ आपकी आंखे थोड़ी लालिमा लिए हुए होती हैं. आप मृदुभाषी हैं और सभी से प्रेम पूर्वक व्यवहार आपमें स्वाभाविक है.
आप सादी जीवन शैली में विश्वास रखते हैं और अधिक ताम झाम से दूरी बनाये रखते हैं. धन की अधिकता भी आपके इन विचारों को प्रभावित नहीं करती. कोमल हृदयी होने के कारण आप कभी भी किसी को हानि पहुंचाने के बारे में नहीं सोच सकते क्योंकि दूसरों की भलाई करना आपके स्वभाव में ही है. नम्र स्वभाव होते हुए भी आप किसी के सामने घुटने नहीं टेकते हैं और न ही किसी भी प्रकार की कठिनाई आपको हिला सकती है.
आपको जीवन में किसी पर भी निर्भरता पसंद नहीं है. सकारात्मक और स्थिर सोच के कारण आप अपने जीवन से सम्बंधित अधिकतर निर्णय स्वयं लेते हैं और वो सही भी होते हैं. जलदबाज़ी में निर्णय लेना आपके स्वभाव में नहीं है. आप सभी को आदर और सम्मान देना पसंद करते हैं विशेषतः स्त्रियों को.
आप अपने विचारों को व्यक्त करने से कभी नहीं हिचकिचाते. किसी के विरोध में भी यदि आपको बोलना हो तो आप अवश्य बोलेंगे परन्तु बेहद विनम्रता के साथ. अपने इसी स्वभाव के कारण आप माफ़ी मांगने से भी नहीं झिझकते.
बहुत ही कम आयु से अपने ऊपर सभी जिम्मेदारियों के आ जाने के कारण आप कभी-कभी मानसिक अशांति भी महसूस करते हैं. जीवन को हर पहलु से और अधिक सफल बनाने के लिए आप सदैव प्रयासरत रहते हैं. इन्ही प्रयासों में विफल होने पर आप अपने आपको असहाय समझने लगते हैं परन्तु वास्तविकता में ऐसा नहीं है आप एक सक्षम और जुझारू व्यक्ति हैं और कठिन से कठिन स्तिथि में से निकलने में सक्षम है. अपने बौधिक विचारों और सकारात्मक सोच के कारण आप सृजनात्मक और कलात्मक या यूँ कहें विज्ञान और कला दोनों ही क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करते हैं . आपकी इमानदारी , अथक परिश्रम और मजबूत इरादे जीवन में आपको सदैव सफलता दिलाते हैं. रुकावटों के कारण थक कर बैठ जाना आपके स्वभाव में नहीं है.
अपने कार्यक्षेत्र में आप अपने करीबी सहयोगियों के सन्दर्भ में अति कुशलता एवं सजगता के साथ रहते हैं. जीवन के 38वें वर्ष के उपरान्त आप स्थिरता और समृद्धि प्राप्त करते हैं वैवाहिक जीवन सुखमय और प्रसन्नता से भरा रहेगा यद्यपि जीवन साथी के स्वस्थ्य के कारण आप परेशान हो सकते हैं. संतान पक्ष से सुख संतोषजनक रहेगा.
उत्तराषाढा नक्षत्र में जन्मी स्त्री पतिव्रता एवं मधुर वाणी वाली होती हैं. अतिथियों की आवभगत और सेवा करना इनके स्वभाव में ही होता है.
स्वभाव संकेत: उत्तराषाढा जातक जहाँ रहता है वहां का प्रख्यात व्यक्ति होता है .
रोग संभावना : घुटने या कूल्हों के जोड़ों से सम्बंधित रोग, सूजन, छाती या फेफड़े का दर्द. अक्समात चोट या जलने के संभावना भी प्रबल.
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी गुरु हैं. दोनों गृह परस्पर मित्र हैं . लग्नेश भी गुरु होने के कारण गुरु ग्रह का प्रभाव अधिक है. इस नक्षत्र में जन्मा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्यशाली एवं पराक्रमी होगा. गुरु की दशा में जातक का सर्वांगीण विकास होगा और सूर्य की दशा अन्तर्दशा में जातक का प्रबल भाग्योदय होगा.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. उत्तराषाढा के दुसरे चरण में जन्मा जातक आजीवन अपने मित्रों का विरोध सहता है. लग्नेश शनि सूर्य का शत्रु है अतः शनि की दशा धनदायक होगी परन्तु सूर्य की दशा अशुभ फलदायक होगी. लग्नेश शनि की दशा भी अपेक्षित लाभ नहीं देगी.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. उत्तराषाढा के तीसरे चरण में जन्मा जातक अपने जीवन में सदैव मान सम्मान चाहने वाला होता है. शनि लग्नेश भी है अतः लग्नेश शनि की दशा उत्तम फल देगी. शनि की दशा आपके लिए उन्नतिदायक एवं धनदायक होगी परन्तु सूर्य की दशा अशुभ फलदायक होगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. उत्तराषाढा के चौथे चरण में जन्मा जातक स्वभाव से धार्मिक एवं आध्यात्मिकता में रूचि रखने वाला होता है. उत्तराषाढा के चौथे चरण का स्वामी बृहस्पति है जो लग्नेश शनि का शत्रु है परन्तु लग्न नक्षत्र स्वामी सूर्य का मित्र . अतः सूर्य और बृहस्पति की दशा समान्य रहेगी और शनि की दशा लाभप्रद रहेगी.
22--- श्रवण नक्षत्र
नक्षत्र देवता: विष्णु
नक्षत्र स्वामी: चन्द्र
श्रवण नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म श्रवण नक्षत्र में हुआ है तो आप एक माध्यम कद काठी परन्तु प्रभावी और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी है. बचपन से ही सीखने की लालसा होने के कारण आप आजीवन ज्ञान प्राप्त करते हैं और समाज के बुद्धिजीवियों में आप की गिनती होती है. आप एक स्थिर सोच वाले निश्छल और पवित्र व्यक्ति है. मानवता ही आपकी प्राथमिकता है और आपका दृष्टिकोण सदा ही सकारात्मक रहता है. आप दूसरों के प्रति बहुत अधिक स्नेह की भावना रखते हैं इसलिए औरों से भी उतना ही स्नेह व सम्मान प्राप्त करते हैं. श्रवण नक्षत्र के जातक एक अच्छे वक्ता होते हैं. एकान्तप्रिय होते हुए भी आपके मित्र अधिक होते हैं. आपके शत्रुओं की संख्या भी कुछ कम नहीं होती परन्तु अंत में शत्रुओं पर विजय आपकी ही होती हैं.
आप एक इमानदार और सच्चाई के रास्ते पर चलने वालों में से हैं. झूठ और कपट न तो आपको आता है और न ही जीवन में कभी आप इसका सहारा लेते हैं. आप अपने जीवन में कई बार दूसरों द्वारा किये गये धोखे का शिकार होते हैं फिर भी आप अपने आदर्शों पर ही चलना पसंद करते हैं.
आप बहुत मृदुभाषी और कोमल हृदयी व्यक्ति हैं और अपनी हर चीज़ सुव्यवस्थित और साफ़ ही पसंद करते है. गन्दगी और अवव्स्था के कारण ही आपको बहुत अधिक क्रोध आ जाता है और आप अपने मूल स्वभाव को भी भूल जाते हैं.
आप दिखने में सीधे-सादे परन्तु आकर्षक व्यक्ति हैं. आप प्राकृतिक रूप से सुंदर होते हैं. आप अपना सारा जीवन ज्ञान प्राप्ति में ही व्यतीत करते हैं अतः आप एक अच्छे सलाहकार होते हैं. किसी भी विवाद या समस्या को न्यायिक दृष्टि से देखने की क्षमता आपमें होती है. जीवन में अनेक समस्याओं से जूझते हुए और अपना दायित्व निभाते हुए आप आगे बढ़ते हैं और संतुलित और संतुष्ट जीवन व्यतीत करते हैं.
श्रवण नक्षत्र के जातक अधिक ज्ञान अर्जन के कारण अपने जीवन में करियर के चुनाव में परेशानी नहीं झेलते हैं . 30 वर्ष तक कुछ उथल पुथल सहते हुए 45वें वर्ष तक अपने कार्यक्षेत्र में चमकने लगते हैं. 65 वर्ष के बाद भी यदि कार्यरत हों तो अपने करियर की ऊंचाईयों को छूते हैं. वैसे तो सभी प्रकार के कार्यों के लिए सक्षम हैं परन्तु तकनीकी और मशीनरी कार्य, , इंजीनियरिंग, तेल और पेट्रोलियम सम्बंधित क्षेत्र आपके लिए विशेष लाभदायक हैं.
आपका वैवाहिक जीवन द्वारा आपके जीवन की शरुआती मुश्किलों और अस्थिरता समाप्त होगी. एक आज्ञाकारी और आपसे बहुत प्रेम करने वाली पत्नी के कारण आप सुखमय दाम्पत्य जीवन का अनुभव करेगे.
श्रवण नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ भी विनम्र और सदाचारी होती हैं. अपने इन्ही गुणों के कारण श्रवण जातिकाएं परिवार और समाज में आदर प्राप्त करती हैं.
स्वभाव संकेत: श्रवण नक्षत्र के जातक विनम्र व्यक्ति के रूप में ख्याति प्राप्त करते हैं.
रोग संभावना : चमड़ी के रोग, अपच आदि
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. श्रवण नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक मान सम्मान का इच्छुक एवं आशा वादी होता है. श्रवण नक्षत्र के प्रथम चरण का स्वामी मंगल, शनि का शत्रु है परन्तु चन्द्र का मित्र अतः चन्द्र और मंगल की दशा शुभ फल देगी. शनि की दशा उन्नतिदायक और धन के मामले में सहायक होगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. श्रवण नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्मा जातक गुणी एवं सकारात्मक सोच वाला होता है. श्रवण नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शुक्र, शनि और चन्द्र दोनों का शत्रु है. अतः शुक्र को जितना शुभ फल देना चाहिए उतना नहीं दे पायेगा. शनि की दशा- अन्तर्दशा में जातक उन्नति करेगा , धन अर्जित करेगा एवं स्वस्थ रहेगा.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. श्रवण नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मा जातक समाज के विद्वान् व्यक्तियों में गिना जाता है. श्रवण नक्षत्र के तृतीय चरण का स्वामी बुध, शनि का शत्रु है और चन्द्रमा की दोनों से ही शत्रुता है अतः बुध को जितना शुभ फल देना चाहिए उतना नहीं दे पायेगा. शनि की दशा- अन्तर्दशा में जातक को मान सम्मान मिलेगा एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. श्रवण नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मा जातक धार्मिक एवं आध्यात्मिक प्रवृत्ति का होता है. श्रवण नक्षत्र के चतुर्थ चरण का स्वामी और नक्षत्र स्वामी भी चन्द्र है अतः चन्द्रमा की दशा अशुभ फल नहीं देगी. शनि की दशा- अन्तर्दशा में जातक उन्नति करेगा , धन अर्जित करेगा एवं स्वस्थ रहेगा.
23---- धनिष्ठा नक्षत्र
नक्षत्र देवता: वसु
नक्षत्र स्वामी: मंगल
धनिष्ठा नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मा जातक सभी गुणों से समृद्ध होकर जीवन में सम्मान और प्रतिष्ठा पाता है. आप स्वभाव से बहुत ही नरम दिल एवं संवेदनशील व्यक्ति होते हैं. आप दानी और अध्यात्मिक व्यक्ति हैं परन्तु अपनी इच्छाओं के विरुद्ध जाना आपके बस में नहीं है. आपका रवैया अपने प्रियजनों के प्रति बेहद सुरक्षात्मक होता है किन्तु फिर भी आप दूसरों के लिए जिद्दी और गुस्सैल ही रहते हैं.
आप एक ज्ञानी व्यक्ति हैं जो किसी भी आयु में ज्ञान अर्जन करने में संकोच नहीं करते है.अपने इसी गुण के कारण आप किसी भी प्रकार के कार्य को निपुणता के साथ पूर्ण करने में सक्षम रहते हैं. आप संवेदनशील तो हैं परन्तु कमज़ोर नहीं. आप मानवता में विश्वास रखने वाले व्यक्ति हैं जो दूसरों को कडवे वचन कभी नहीं बोल ससकते . धनिष्ठा जातक कभी विरोध की भावना नहीं रखते परन्तु अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को कभी भूलते भी नहीं. आप सही समय आने पर अपने तरीके से बदला लेते हैं.
अत्यधिक ज्ञान और तीक्ष्ण बुद्धि के कारण आप जीवन में नयी ऊचाईयों को छूते हैं. अधिकतर घनिष्ठा जातकों को इतिहास या विज्ञान के क्षेत्रों में कार्यरत देखा गया है. रिसर्च और वकालत के क्षेत्रों में आप तरक्की करते हैं. घनिष्ठा नक्षत्र में जन्मे जातक किसी भी बात को छुपा कर रखने में सक्षम होते हैं. यह अपने भेद जल्दी ही किसी को नहीं बताते.
आप अपने कार्य के प्रति बेहद सजग एवं वफादार होते हैं . अपने जीवन के 24 वर्ष के बाद आपको अपने करियर में स्थिरता मिलेगी. आप अपने कार्य को लग्न और निष्ठापूर्वक करने में विश्वास रखते हैं परन्तु व्यवसायिक कार्यक्षेत्र में अपने अधिनस्त कर्मचारियों से आपको सावधान रहने की आवश्यकता है.
धनिष्ठा जातकों का बचपन सभी सुख सुविधायों से परिपूर्ण होता है. आप अपने भाई बहनों से बेहद लगाव रखते हैं. समाज और परिवार में आप का स्थान अति सम्मानीय होता है परन्तु जीवन में कई बार आपको अपने रिश्तेदारों द्वारा परेशानी और रुकावटें झेलनी पड़ती हैं. आपको अपने पूर्वजों की धन सम्पदा भी प्राप्त होती है.
आपको अपने जीवन में ससुराल पक्ष से अधिक सहयोग प्राप्त नहीं होता है और न ही आपके सम्बन्ध उनसे मधुर होते हैं परन्तु एक गुणी एवं सुयोग्य पत्नी के कारण आपका दांपत्य जीवन ठीक चलता है.
धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मी जातिका को साज श्रृंगार में अधिक रूचि होती है परन्तु जीवन में धन की कमी को झेलने के कारण इनमे सन्यासियों जैसी प्रवृत्ति जन्म ले लेती है. धनिष्ठा जातिकाओं का वैवाहिक जीवन दुःख से भरा होता है.
स्वभाव संकेत: धनिष्ठा जातक किसी से नहीं घबराते
रोग संभावना : हाथ पैर की हड्डी टूटना, रक्तचाप अथवा ह्रदय से सम्बंधित रोग
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक लम्बी आयु वाला होता है. धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण का स्वामी सूर्य शनि का शत्रु है परन्तु मंगल का मित्र अतः सूर्य की दशा अशुभ फल देगी शनि की दशा में जातक को उत्तम स्वस्थ्य व धन की प्राप्ति होगी. मंगल की दशा में जातक को भौतिक उपलब्धियां प्राप्त होंगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मे जातक की गिनती समाज के विद्वानों में होती है. धनिष्ठा नक्षत्र के द्वितीय चरण का स्वामी बुध शनि का शत्रु है और मंगल का भी . अतः बुध की दशा जातक को अपेक्षित फल नहीं दे पाएगी परन्तु शनि की दशा उत्तम फलदायी होगी.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. धनिष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मा जातक थोडा डरपोक होता है. धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र शनि का शत्रु है और मंगल का भी . अतः शुक्र की दशा जातक को अपेक्षित फल नहीं दे पाएगी परन्तु शनि की दशा अन्तर्दशा उत्तम फलदायी होगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. धनिष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मा जातक महान नारी का पति होता है. धनिष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है और नक्षत्र स्वामी भी मंगल . अतः मंगल की दशा जातक को राजयोग प्रदान करेगी. शनि की दशा में जातक को उत्तम स्वस्थ्य व धन की प्राप्ति होगी.
24--- शतभिषा नक्षत्र
नक्षत्र देवता: वरुण
नक्षत्र स्वामी: राहु
शतभिषा नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
शतभिषा नक्षत्र में जन्मा जातक बहुत साहसी एवं मजबूत विचारों वाला होता है. अत्यधिक सामर्थ्य एवं स्थिर बुद्धि के होते हुए भी कभी कभी जिद्दी और संवेदनहीन प्रतीत होते हैं. सभी प्रकार से ज्ञानी होते हुए भी आप आत्म केन्द्रित होते हैं. आप अधिक संतान वाले एवं दीर्घायु होते हैं. शतभिषा जातक रहस्यमय एवं समृद्धशाली व्यक्ति होते हैं, जिनको अपने आस पास के लोगों से सम्मान प्राप्त होता है.
यदि आपका जन्म शतभिषा नक्षत्र में हुआ है तो आप अत्यंत आकर्षक और मजबूत व्यक्तित्व के स्वामी हैं. आपकी उपस्थिति गरिमामय और प्रभावशाली होती है जो कि दूसरों को आपकी ओर आकर्षित होने को विवश कर देती हैं. चौड़ा माथा , तीखी नाक और सुंदर नेत्रों के कारण आप और भी आकर्षक दिखते हैं. तेज़ स्मरण शक्ति आप के व्यक्तित्व को और मजबूती देती है. शतभिषा जातक में सकारात्मक और नकारात्मक पहलू का संतुलित समावेश रहता है. आप अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हैं और किसी भी कीमत पर उनसे समझौता नहीं करते. जिस कार्य को आप उचित नहीं समझते वह कार्य करने के लिए आपको कोई बाध्य नहीं कर सकता.
आप सहृदय व्यक्ति हैं जो कोमल स्वभाव के कारण सदा ही दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते हैं. आप किसी को हानि नहीं पहुंचाते जब तक की सामने वाला आपको नुक्सान न पहुंचाए. आप एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं जो इश्वर में पूर्ण आस्था रखते हैं. आप सादा रहने में ही विश्वास रखते हैं परन्तु आपके व्यक्तितिव से आकर्षित हुए बिना कोई नहीं रह सकता. आप जीवन में खूब प्रशंसा और सम्मान पाते हैं.
अपने कार्यक्षेत्र में आप पूरी लग्न और मेहनत के साथ काम करते हैं और निरंतर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते हैं. अच्छी शिक्षा के कारण आप जीवन में बहुत पहले ही अपने करियर का आरंभ कर लेते हैं. 34 वर्ष तक आप संघर्षरत रहते हैं परन्तु उसके बाद का समय बिना किसी बड़ी रुकावट के आपकी उन्नत्ति देता है. आपका पारिवारिक जीवन आपके व्यावसायिक जीवन की भांति सुखपूर्वक नहीं होता है. आप अपने परिजनों के कारण जीवन में बहुत कठिनाइयाँ झेलते हैं हालाँकि आप का व्यवहार उनके प्रति प्रेमपूर्वक ही रहता है. इस कारण शतभिषा नक्षत्र के जातक मानसिक रूप से अशांत रहते हैं. पिता की अपेक्षा माता से आपको अधिक लगाव रहता है और आपको भी उनसे बहुत स्नेह मिलता है. शतभिषा जातकों का दांपत्य जीवन सुखमय नहीं होता है . सब कुछ होते हुए भी आपका अपने जीवन साथी के साथ सदा ही मतभेद रहता है.
शतभिषा जातिका कर्मपरायण एवं परोपकारी होती हैं. सादे किन्तु आकर्षक व्यक्तित्व के कारण आप को लम्बे अरसे तक स्मरण किया जाता है.
स्वभाव संकेत: बिगड़े हुए काम को बड़े सूझ बूझ के साथ बना देना शतभिषा जातक की विशेषता है.
रोग संभावना: ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप, मुख से सम्बंधित अथवा गुप्त रोग
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. शतभिषा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक कुशल वक्ता होता है. शतभिषा नक्षत्र के प्रथम चरण का स्वामी बृहस्पति शनि का शत्रु है और राहु का भी. अतः बृहस्पति की दशा अपेक्षित फल नहीं देगी. बृहस्पति में राहु व् शनि का अंतर कष्टदायी होगा. राहु की दशा उत्तम फल देगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. शतभिषा नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मा जातक अपने समाज के अग्रगण्य धनवानों में गिने जाते हैं. शतभिषा नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शनि लग्नेश भी है अतः शनि की दशा शुभ फल देगी. राहु की स्वतंत्र दशा उत्तम फल देगी, परन्तु राहु में शनि या शनि में राहु की अन्तर्दशा शत्रु तुल्य कष्ट देगी.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. शतभिषा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मा जातक अपने समाज में सुखी एवं संपन्न व्यक्ति होता है. शतभिषा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शनि लग्नेश भी है अतः शनि की दशा शुभ फल देगी. राहु की स्वतंत्र दशा उत्तम फल देगी, परन्तु राहु में शनि या शनि में राहु की अन्तर्दशा शत्रु तुल्य कष्ट देगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. शतभिषा नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मे जातक का पुत्र योग प्रबल होता है . शतभिषा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी बृहस्पति शनि का शत्रु है और राहु का भी. अतः बृहस्पति की दशा अपेक्षित फल नहीं देगी. लग्नेश शनि की दशा अन्तर्दशा जातक को उत्तम स्वस्थ्य व् उन्नत्ति देगी.
25--- पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र
नक्षत्र देवता: अजपाद
नक्षत्र स्वामी: बृहस्पति
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र मे हुआ है तो आप मानवता में विश्वास रखते हुए केवल दूसरों के भले के बारे में ही सोचते हैं. आप एक दयालु और नेक दिल होने के साथ-साथ खुले विचारों वाले व्यक्ति हैं. आप बहुत साहसी हैं तथा दूसरों की मदद करने में सदा आगे रहते हैं.
आप वाणी और विचारों से नम्र अवश्य होते हैं परन्तु व्यक्तित्व से नहीं. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्मे जातक अपने आदर्शो और सिद्धांतों पर ही आजीवन चलना पसंद करते हैं. आप जीवन में कभी पथभ्रष्ट नहीं होते क्योंकि आपका दृष्टिकोण सही और साफ़ होता है. आप एक शांति प्रिय व्यक्ति हैं परन्तु शीघ्र ही किसी छोटी से छोटी बात पर भी क्रोध कर लेते हैं. आपको क्रोध जितनी जल्दी आता है उतनी जल्दी चला भी जाता है.
दूसरों के साथ आपका व्यवहार स्नेही और प्रेमपूर्वक रहता है. आप एक संवेदनशील व्यक्ति हैं जो शीघ्र ही प्रभावित हो जाते है परन्तु न तो आप डरपोक हैं और न ही जल्दी हार मानते हैं.
पूर्वाभाद्रपद जातक अध्यात्मिक स्वभाव वाले होते हैं परन्तु बंद आँखों से किसी भी बात को मान लेना और उनका अनुसरण करना इनके स्वभाव में नहीं होता है. आप सही और गलत में निर्णय लेने के बाद ही दूसरों का अनुसरण करते हैं. आप धन के मामलों में कंजूस कहे जाते हैं. आप जीवन में कई कठिनाईयों को झेलते हुए समाज में आदर एवं सम्मान प्राप्त करते हैं.
अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण आप किसी भी प्रकार के कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के योग्य हैं. आप केवल स्वभाव से हे नहीं अपितु सामाजिक और आर्थिक रूप से भी स्वतंत्र जीवन पसंद करते हैं. व्यावसायिक रूप से 24 से 33 वर्ष की आयु में आप अपने जीवन में सर्वाधिक सफलता प्राप्त करेंगे. 40 से 54 वर्ष के आयु में अपने करियर की ऊँचाईयों को छुएंगे पूर्वाभाद्रपद के जातकों को सरकारी नौकरी , बैंक, शिक्षा और लेखन, व्यापार , ज्योतिष एवं अभिनय के क्षेत्र में कार्य करते देखा गया है.
इस नक्षत्र में जन्मा जातक अपनी माता के स्नेह से वंचित रहता है , कारण जो भी हो. पिता का संरक्षण और प्रेम आपको सदा प्राप्त होता है . पिता की उच्च एवं सम्माननीय स्तिथि के कारण आप सदा गौरवान्वित रहेंगे परन्तु कुछ वैचारिक मतभेदों के कारण आपसी तनाव रहेगा. पूर्वाभाद्रपद में जन्मा जातक अक्सर स्त्रियों के वश में रहता है.
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्मी जातिका जादू टोने में विश्वास रखती हैं
स्वभाव संकेत: निराशा और शोक मग्न चेहरा पूर्वाभाद्रपद की निशानी है.
रोग संभावना: पैर की हड्डी का दर्द, पैर का टूटना, मधुमेह और लकवा.
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक शूरवीर होता है, तथा जो वस्तु विनम्रता , प्रार्थना व् खरीद से प्राप्त नहीं हो पाती उसे हरण करने में रूचि रखता है. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी बृहस्पति शनि का शत्रु है परन्तु मंगल का मित्र . अतः मंगल की दशा शुभ फल एवं भौतिक सम्पन्नता देगी परन्तु बृहस्पति की दशा में अपेक्षित शुभ फल नहीं मिल पाएंगे. शनि की दशा अन्तर्दशा शुभ फल देगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्मा जातक अति बुद्धिमान होता है. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी बृहस्पति शुक्र का शत्रु है तथा शुक्र शनि का भी शत्रु है . अतः शुक्र की दशा अपेक्षित शुभ फल नहीं दे पाएगी. बृहस्पति की स्वतंत्र दशा में पराक्रम बढेगा. शनि की दशा में जातक की उन्नत्ति होगी.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के तृतीय चरण में जन्मा जातक का विकास और उन्नत्ति बड़े शहर में रहने के कारण होती है. छोटे गाँव कस्बों में जातक उन्नत्ति नहीं कर पायेगा. बुध की नक्षत्र स्वामी बृहस्पति से शत्रुता है परन्तु लग्नेश शनि से मित्रता अतः बुध की दशा शुभ फलदायी होगी . बृहस्पति की स्वतंत्र दशा में पराक्रम बढेगा. शनि की दशा में जातक की उन्नत्ति होगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्रमा हैं. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मा जातक भोगी होता है. लग्न नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र चरण स्वामी में परस्पर मित्रता है अतः लग्नेश गुरु की दशा अति उत्तम फल देगी. गुरु की दशा में जातक को रोजगार के शुभ अवसर प्राप्त होंगे. चन्द्रमा की दशा धार्मिक यात्राएं एवं भाग्योदय के उत्तम अवसर प्रदान करेंगी. लग्न बलि न होने के कारण जातक के विकास में अडचने आएँगी.
26--- उत्तराभाद्रपद नक्षत्र
नक्षत्र देवता: अहिर्बुध्नय
नक्षत्र स्वामी: शनि
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हुआ है तो आप स्वभाव से एक दयालु व्यक्ति हैं. आप धार्मिक होने के साथ साथ वैरागी भी हैं. आप समाज में एक धार्मिक नेता , प्रसिद्द शास्त्र विद एवं मानव प्रेमी के रूप में प्रख्यात हैं. आप कोमल हृदयी हैं एवं दूसरों के साथ सदैव सद्भावना रखते हैं. यदि आपके साथ कोई दुर्व्यवहार भी करता है तो आप उसे क्षमा कर देते हैं. आप अपने दिल में भी किसी के प्रति कोई द्वेष नहीं रखते. आप महत्वाकांक्षी व्यक्ति नहीं हैं परन्तु इच्छाएं बढ़ी-चढ़ी होती हैं व् मन ही मन आप उन्नत्ति के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच जाते हैं. देश भक्ति एवं इमानदारी आपके प्रमुख गुण हैं. आप मनमौजी परन्तु मजबूत विचारों वाले व्यक्ति हैं.
आप उन गिने चुने व्यक्तियों में से हैं जिन्हें आम लोग आदर की दृष्टि से देखते हैं. उत्तराभाद्रपद जातक निष्पक्ष व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं . आप किसी को भी उसकी आर्थिक व् सामाजिक सम्पन्नता के आधार पर नहीं अपितु मानवता के आधार पर तौलते है. आप बहुत बुद्धिमान एवं विवेकशील व्यक्ति है. एक प्रखर वक्ता होने के कारण अनायास ही लोग आपकी और खिचाव महसूस करते हैं. आपकी सबसे बड़ी कमी आपका क्रोध है जो किसी भी छोटी से छोटी बात पर आ जाता है. आप विपरीत लिंगियों के प्रति विशेष आकर्षण महसूस करते हैं और उनका साथ आपको बेहद प्रिय है.
उत्तराभाद्रपद जातक किसी भी कार्यक्षेत्र में उच्च पद को प्राप्त करने में सक्षम होते हैं. आप अपनी शैक्षिक योग्यता के आधार पर नहीं अपितु अपने गुणों के कारण सफल होते हैं. आप अक्सर अपने से अधिक शिक्षित लोगों से भी अधिक सफलता पाते हैं. आप कठोर परिश्रमी एवं कार्य के प्रति बहुत अधिक समर्पित व्यक्ति हैं जो कभी भी किसी कार्य को बीच में छोड़ना पसंद नहीं करते. आप अपने करियर में बहुत मान सम्मान और प्रशंसा पाते हैं. आप अधिक समय तक निचले पदों पर कार्यरत नहीं रहते हैं अपनी लग्न और मेहनत के कारण आपकी उच्च पदों के लिए तरक्की शीघ्र ही हो जाती है.
आप अपने जीवन के 18वें या 19 वें वर्ष से ही जीवन यापन में लग जाते हैं. जीवन के 19, 21, 28., 30, 35 और 42वां वर्ष आपके करियर में महतवपूर्ण बदलाव लायेगा.
उत्तराभाद्रपद जातक का बचपन कठिनाईयों में बीतता है. आपको अपने माता पिता से अपेक्षित स्नेह नहीं प्राप्त होता है, हालाँकि पिता के कारण आप समाज में गौरवान्वित होते हैं परन्तु पिता से आपको अपने जीवन में किसी भी प्रकार का कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है और सदा ही अपने जन्म स्थान से दूर रहना पड़ता है. आपका विवाह एक सुंदर और आज्ञाकारी स्त्री से होता है , इस कारण आपका दाम्पत्य जीवन बहुत सुखी एवं समृद्ध होता है. आपकी आज्ञाकारी संतान आपकी प्रसन्नता का कारण बनती है.
उत्तराभाद्रपद में जन्मी जातिका बुद्धिमान और धर्म के प्रति रूचि रखने वाली होती हैं. आप धैर्यवान एवं गुणवान होती हैं. आप जीवन में सदा मान सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करती हैं.
स्वभाव संकेत: उत्तराभाद्रपद जातकों का प्रमुख लक्षण है बातूनी होना
रोग संभावना: पैरों से सम्बंधित रोग या चोट, हर्निया, बवासीर
विशेषताएं
प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक राजा के समान पराक्रमी होता है, लग्न स्वामी शनि व् चरण स्वामी स्वामी सूर्य में परस्पर शत्रुता है. अतः सूर्य की दशा अशुभ फल देगी. शनि की दशा भी प्रतिकूल फल देगी. शनि में सूर्य या सूर्य में शनि की अन्तर्दशा मारक दशा का फल देगी. गुरु की दशा उत्तम , स्वस्थ्य प्रद एवं राजयोग देने वाली होगी.
द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के दूसरेचरण में जन्मा जातक तस्करी में रूचि रखता है. लग्न नक्षत्र स्वामी शनि बुध का मित्र है. अतः शनि की दशा माध्यम ,परन्तु बुध की दशा अति शुभ फल देगी. बुध की दशा में गृहस्थ सुख एवं भौतिक उपलब्धियां प्राप्त होंगी. गुरु की दशा भी जातक को उत्तम फल देगी.
तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मा जातक पुत्रवान होता है, तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है जो नक्षत्र स्वामी का मित्र है. अतः शनि की दशा माध्यम परन्तु शुक्र की दशा शुभ फल देगी. शुक्र की दशा में पराक्रम बढेगा . लग्नेश गुरु की दशा अति उत्तम फल देगी.
चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मा जातक संपूर्ण सुखी होता है, लग्नेश गुरु की शनि से शत्रुता है तथा लग्न नक्षत्र स्वामी शनि की नक्षत्र चरण स्वामी मंगल से शत्रुता है. अतः शनि की दशा अशुभ फल देगी एवं मंगल की दशा मध्यम फल देगी. जो लाभ मंगल की दशा में जातक को मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पायेगा. गुरु की दशा राजयोग प्रदाता है.
27---- रेवती नक्षत्र
नक्षत्र देवता: पूषा
नक्षत्र स्वामी : बुध
श्रवण रेवती के जातकों का गुण एवं स्वभाव
यदि आपका जन्म रेवती नक्षत्र में हुआ है तो आप एक माध्यम कद और गौर वर्ण के व्यक्ति हैं. रेवती जातकों के व्यक्तित्व में संरक्षण, पोषण और प्रदर्शन प्रमुख है. आप एक निश्चल प्रकृति के व्यक्ति हैं जो किसी के साथ छल कपट करने में स्वयं डरता है. आप को क्रोध शीघ्र ही आ जाता है. किसी की ज़रा सी विपरीत बात आपसे सहन नहीं होती है. क्रोध में आप आत्म नियंत्रण भी खो देते हैं, परन्तु क्रोध जितनी जल्दी आता है उतनी जल्दी चला भी जाता है. साहसिक कार्य और पुरुषार्थ प्रदर्शन की आपको ललक सदा ही रहती है.
आध्यात्मिक होते हुए भी आपका दृष्टिकोण व्यवहारिक है. आप किसी भी बात को मानने से पहले भली भाँती जांचते हैं. यही दृष्टिकोण आपका अपने मित्रों और सम्बन्धियों के साथ भी है. आप आँख बंद करके किसी पर भी भरोसा नहीं करते हैं. आप एक बुद्धिमान परन्तु मनमौजी व्यक्ति हैं जो स्वतंत्र विचारधारा में विश्वास रखता है. आप परिवार से जुड़े हुए व्यक्ति हैं जो दूसरों की मदद के लिए सदा तैयार रहते हैं. आपके जीवनकाल में विदेश यात्राओं की संभावनाएं प्रबल हैं.
रेवती नक्षत्र में पैदा हुए जातक संवेदनशील होते हैं इसलिए शीघ्र ही भावुक हो जाते हैं. आप सिद्धांतों और नैतिकता पर चलने वाले व्यक्ति हैं जो सबसे अधिक अपनी आत्मा की सुनना और उसी पर चलना भी पसंद करता है. आप किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले सभी तथ्यों के बारे में जान लेना आवश्यक समझते हैं ,और निर्णय लेने के उपरान्त बदलते नहीं हैं. बाहरी दुनिया के लिए आप एक जिद्दी और कठोर स्वभाव के व्यक्ति हैं परन्तु जीवन में कई बार आप कठिनाईयों से घबराए एवं हारे हैं. इश्वर में पूर्ण आस्था के कारण आप जीवन में सभी अडचनों को साहस के साथ पार कर लेते हैं. अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण आप किसी भी प्रकार के कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के योग्य हैं. रेवती नक्षत्र के जातकों को सरकारी नौकरी , बैंक, शिक्षा, लेखन, व्यापार , ज्योतिष एवं कला के क्षेत्र में कार्य करते देखा गया है. अपने जीवन के 23वें वर्ष से 26वें वर्ष तक आप अनेक सकारात्मक परिवर्तन देखेंगे. परन्तु 26वें वर्ष के बाद का समय कुछ रुकावटों भरा है जो कि 42वें वर्ष तक चलेगा. 50 वर्ष के उपरान्त आप जीवन में स्थिरता, संतुष्टि एवं शांति का अनुभव करेंगे.
अपने स्वतंत्र विचारों और स्वभाव के कारण अपने कार्यों में किसी का हस्तक्षेप आपको कतई पसंद नहीं है और न ही आप किसी क्षेत्र में स्थिर होकर कर कार्य कर पाते हैं . अपने बदलते कार्यक्षेत्रों के कारण आपको अपने परिवार से भी दूर रहना पड़ता है. अपने कार्यों के प्रति निष्ठा और परिश्रम के कारण आप करियर की ऊँचाईयों तक पहुंचाते हैं. परन्तु मेहनत के अनुरूप जीवन में अपेक्षित मान सम्मान और पहचान नहीं मिल पाती है.
अपने जीवन में रेवती नक्षत्र के जातकों को माता पिता का सहयोग कभी नहीं प्राप्त होता है. यही नहीं आपके करीबी मित्र या रिश्तेदार भी कष्ट के समय आपके साथ नहीं होते हैं परन्तु आपका दाम्पत्य जीवन बहुत खुशहाल होगा. विवाह उपरान्त आपका जीवन साथी आपके साथ हर प्रकार से सहयोग करेगा तथा आपका जीवन सुखमय और आनंदित रहेगा.
स्वभाव संकेत: रेवती नक्षत्र के जातकों का प्रमुख लक्षण है साहस एवं सद्व्यवहार .
रोग संभावना: बुखार, मुख, कान और आंतड़ियों से सम्बंधित रोग
विशेष: रेवती नक्षत्र के देवता पूषा हैं तथा नक्षत्र स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के प्रथम चरण का स्वामी गुरु हैं. रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक ज्ञानी होता है, लग्न नक्षत्र स्वामी बुध नक्षत्र चरण स्वामी से शत्रुता रखता है. अतः गुरु की दशा अत्यंत शुभ फल देगी. गुरु की दशा में जातक को पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी एवं यह दशा जातक के लिए स्वास्थ्य वर्धक रहेगी. बुध की दशा माध्यम फल देगी.
विशेष: रेवती नक्षत्र के देवता पूषा हैं तथा नक्षत्र स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शनि हैं. रेवती नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मे जातक की रूचि तस्करी में होती है, नक्षत्र चरण के स्वामी शनि से लग्नेश गुरु शत्रुता रखता है तथा नक्षत्र स्वामी बुध की भी गुरु से शत्रुता है . अतः गुरु और शनि की दशा माध्यम फल देगी तथा बुध की दशा अत्यंत शुभ फल देगी. बुध की दशा में गृहस्थ सुख एवं भौतिक उपलब्धियां प्राप्त होंगी.
विशेष: रेवती नक्षत्र के देवता पूषा हैं तथा नक्षत्र स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शनि हैं. रेवती नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मा जातक कोर्ट कचेहरी के मकदमे अथवा वाद विवाद में सदैव विजयी होता है. नक्षत्र चरण स्वामी शनि लग्नेश गुरु का शत्रु है परन्तु बुध से शनि की मित्रता है अतः गुरु की दशा माध्यम परन्तु शनि की दशा उत्तम फल देगी. बुध की दशा में गृहस्थ सुख एवं भौतिक उपलब्धियां प्राप्त होंगी.
विशेष: रेवती नक्षत्र के देवता पूषा हैं तथा नक्षत्र स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी गुरु हैं. रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मा जातक सदैव गृह कलेश में हे उलझा रहता है. लग्नेश और नक्षत्र चरण स्वामी दोनों ही गुरु हैं अतः गुरु की दशा में जातक को अति उत्तम फलों की प्राप्ति होगी. गुरु की दशा में जातक पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति करेगा. गुरु की नक्षत्र स्वामी बुध में परस्पर शत्रुता है अतः बुध की दशा जातक के लिए माध्यम फलदायी होगी.
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
Result of Yoga
27 जन्म योग फल
27 जन्म योग फल हर एक योग का प्रभाव जातक पर पड़ता है। मगर साधक अपने जीवन मे उपयोगी ज्योतिष, नक्षत्र, योग, जानकारी का सम्मिलित ध्यान रखना महत्वपूर्ण होता है। ज्योतिष में 27 नक्षत्र ओर उसी के अनुरूप योग बनते है। इन योग में जन्म लेने वाले जातक का उसके दैनिक जीवन में बड़ा प्रभाव होता है..!
1. विश्वकुंभ योग
विश्वकुंभ योग वाले व्यक्ति पारिवारिक होते है। और एक आकर्षक उपस्थिति रखते है। आपको आपके व्यावसायिक प्रयासों में बड़ी धनराशि प्राप्त होने की संभावना है। और आप अपनी नेतृत्व की कुशलता के साथ अपने लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम होंगे।
2. प्रीति योग
यदि आप प्रीति योग के साथ पैदा हुए है। तो आप अपने मृदुभाषी कौशल और बातों से लोगों को प्रभावित करेंगे। आप साहसी है। और एक नेक रास्ते पर चलना पसंद करते है। आपको धन और संपत्ति हासिल करने के साथ-साथ संतुलित जीवन जीने की इच्छाशक्ति का सौभाग्य प्राप्त है।
3. आयुष्मान योग
आयुष्मान योग के साथ जन्म लेने वाला व्यक्ति खाने का शौकीन होता है। जो नई जगहों की यात्रा करना और विभिन्न व्यंजनों का आनंद लेना पसंद करता है। आप एक कार्य-उन्मुख व्यक्ति है।जो किसी भी पेशे में मानदंडों का पालन करते हैं। आप कला और साहित्य के क्षेत्र में पहचान हासिल करने की इच्छा रखते हैं।
4. सौभाग्य योग
यदि आप सौभाग्य योग में जन्म लेते हैं। तो आप एक बातूनी व्यक्ति हैं। आप अपने भाव, विचार और बातचीत से दूसरों को प्रभावित करते हैं। वित्तीय मोर्चे पर, आपको आर्थिक लाभ और वृद्धि प्राप्त होने की संभावना है। आप अपने परिवार को आरामदायक जीवन देने के लिए प्रयास करते हैं।
5. शोभन योग
यदि आप शोभना योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप उच्च बुद्धिमत्ता वाले व्यक्ति हैं। आप एक नरम दिल के व्यक्ति हैं। जो प्रभावशाली बातचीत और बौद्धिक कौशल के साथ दूसरों को प्रभावित करते हैं।
6. अतिगंड योग
अतिगंड योग में जन्मा व्यक्ति साहसी और परोपकारी होता है। हालाँकि, ऐसा कोई भी व्यक्ति खुद को बचाने के लिए दूसरों पर दोष लगा सकता है। आपको अपनी माँ से परेशानी हो सकती है। आप एक जल्द चिड़चिड़ा होने वाले स्वभाव वाले व्यक्ति हैं।
7. सुकर्मा योग
यदि आप सुकर्मा योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आपके एक धनी व्यक्ति होने की संभावना है। जो उत्कृष्ट व्यापारिक अंतर्दृष्टि रखता है। आप बुद्धिमान, साहसी और आपका झुकाव आध्यात्म की ओर हैं।
8. धृति योग
धृति योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति बेचैन रहता है। और हर समय परेशान रहता है। आप विपरीत लिंग के प्रति झुकाव रखते हैं। आप एक धैर्यवान, विश्लेषणात्मक और सहायता करने वाला व्यक्तित्व रखते हैं। आपके पास कुशल निर्णय लेने की क्षमता है।
9. शूल योग
यदि आप शूल योग में पैदा हुए हैं। तो आप भरोसेमंद और भाग्यशाली हैं। आपका झुकाव समाज सेवा की ओर है। और आप आध्यात्मिक ज्ञान भी प्राप्त करना चाहते हैं। आप भौतिक सुख-सुविधाओं की भी इच्छा रखते हैं। शूल योग उपाय के बारे आप हमारे ज्योतिष विद्वानों से जान सकते है।
10 गंड योग
यदि आप गंडा योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप बहुत बातूनी हैं। आप अपने जीवन में कई कठिनाइयों का अनुभव कर सकते हैं। आप आलीशान संपत्ति का अधिग्रहण करने के इच्छुक हैं।
11. वृद्धि योग
यदि आप वृद्धि योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप एक शुद्ध, दयालु और बुद्धिमान व्यक्ति हैं। आपके पास शक्ति और अधिकार की स्थिति होने की संभावना है। आप प्रकृति-प्रेमी हैं।
12. ध्रुव योग
ध्रुव योग के साथ जन्म लेने वाला व्यक्ति शातिर कामों और बुरे कामों की ओर आकर्षित होता है। गुप्त शत्रुओं द्वारा आपके खिलाफ साजिश रचने के कारण आपको जीवन में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। आप बुद्धि की स्वाभाविकता के साथ एक बुद्धिजीवी व्यक्ति हैं।
13. व्याघात योग
यदि आप व्याघात योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आपमें एक साथ कई कार्य करने की क्षमता होगी। आपके कई दुश्मन होने की संभावना है। आक्रामक और अहंकारी व्यवहार के कारण आप अपनी प्रतिष्ठा को खराब कर सकते हैं। आपके पास मजबूत शिक्षण कौशल है। जो आपको एक बहुमुखी व्यक्ति बनाता है।
14. हर्षण योग
यदि आप हर्षण योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आपकी प्रवृति हावी होने वाली और आधिकारिक होने वाली है। आपके पास एक गतिशील व्यक्तित्व है। आप रचनात्मकता, साहित्य और कला से संबंधित विषयों में रुचि रखते हैं। आप उत्साह के साथ अपने सभी प्रयासों को पूरा करने की संभावना रखते हैं।
15. वज्र योग
यदि आपने वज्र योग के साथ जन्म लिया है। तो आपका व्यवहार सहायकता और देखभाल करने वाला है। आप दान में लिप्त और वंचितों की मदद करना पसंद करते हैं। आप भारी धन प्राप्त करेंगे और एक मजबूत सामाजिक प्रतिष्ठा का आनंद लेंगे। आपका बोलने में कठोर है। आप संदेहपूर्ण गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं।
16. सिद्धि योग में जन्म
यदि आप सिद्धि योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप भौतिक संपत्ति में रुचि रखते हैं। सिद्धि योग में जन्म, आप महान कौशल रखते हैं। और धन प्राप्त करते हैं। अपने दृढ़ संकल्प के कारण अपने काम में उत्कृष्टता प्राप्त करने की संभावना है।
17. व्यतिपात योग में जन्म*
व्यतिपात योग के साथ जन्म लेने वाले लोग वाद-विवाद और तर्क-वितर्क में शामिल हो जाते हैं। व्यतिपात योग में जन्म से आप एक भव्य और असाधारण रूप् से पैसा खर्च करने की प्रवृत्ति प्रदर्शित करते हैं। आप स्वभाव से अस्थिर, चिंतित और कठोर होंगे।
18. वरियान योग
अगर आप वरियान योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप अपने आस-पास हर किसी को खुश करना पसंद करते हैं। लोग आमतौर पर आपके कौशल, ज्ञान और धन की प्रशंसा करते हैं। आप अपने शानदार व्यक्तित्व के साथ दूसरों को मोहित करते हैं। आप संगीत और कला में रुचि रखते हैं।
19 परिघ योग
परिघ योग क्या है? यदि आप परिघ योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप ज्ञानी हैं। और कई विषयों में निपुण हैं। आपके गलत और खराब व्यवहार के कारण आपको बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। आप यात्रा करने के शौकीन हैं। और नई जगहों पर जाना और नए रास्ते तलाशना पसंद करते हैं।
20. शिव योग
यदि आप शिव योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप एक दयालु और सच्चे व्यक्ति हैं। आप लोगों का कल्याण चाहते हैं। आप मानवता की सेवा करना और जरूरतमंदों की सहायता करना पसंद करते हैं। आपका आध्यात्मिकता की ओर झुकाव है। और परंपराओं और अनुष्ठानों में दृढ़ विश्वास है।
21. सिद्ध योग
सिद्ध योग वाले व्यक्ति दूसरों को परामर्श सेवाएं प्रदान करने में अच्छे होते हैं। आप एक अच्छे कानूनी और संबंध सलाहकार प्रतीत होते हैं। आपका धर्म के प्रति झुकाव है। और ईश्वर में अटूट विश्वास भी है।
22. साध्य योग
यदि आप साध्य योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप एक मेहनती, कूटनीतिक और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हैं। आप अपने काम में विश्वास रखते हैं। और आपको भारी वित्तीय लाभ प्राप्त होने और सामाजिक मान्यता प्राप्त होने की संभावना है।
23. शुभ योग
यदि आप शुभ योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप स्वभाव से सच्चे, नरम दिल वाले और नरम स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। आप अपने सिद्धांतों के साथ जीवन जीते हैं। आप अपनी जिम्मेदारी के रूप में अपने द्वारा किए गए कामों को पूरा करने में बहुत प्रयास करते हैं। आप अत्यधिक भाग्यशाली हैं। और आपके पास विशाल संपत्ति है।
24. शुक्ल योग
यदि आप शुक्ल योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप वफादार और बौद्धिक हैं। आपको हिंदू वेदों के बारे में जानने की लालसा है। आप स्वभाव से रचनात्मक और कलात्मक हैं। आप साहसी हैं। और उच्च शिक्षा के प्रति झुकाव रखते हैं।
25. ब्रह्म योग
ब्रह्म योग में पैदा हुए लोग बहादुर और साहसिक कार्य करने वाले होते हैं। आप आध्यात्मिक पुस्तकों में रुचि रखने वाले धार्मिक व्यक्ति हैं। आप पवित्र शिक्षाओं और धार्मिक शास्त्रों में विश्वास रखते हैं।
26. इंद्र योग
यदि आप इंद्र योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप एक देखभाल करने वाला रवैया रखते हैं। आप मानदंडों के अनुसार काम करते हैं। और जीवन में एक धार्मिक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ते हैं। आपके पास भरपूर नेतृत्व कौशल हैं। और आपके कार्यों में उत्कृष्टता प्राप्त करने की संभावना है।
27. वैधृति योग के अनुसार अपने व्यक्तित्व को जानें
यदि आप वैधृति योग के साथ पैदा हुए हैं। तो आप एक गतिशील, बहुमुखी होने के साथ एक अप्रत्याशित व्यक्तित्व रखते हैं। आपको अपना काम पूरा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। आपके पास हंसमुख स्वभाव होने की संभावना है। लेकिन फिर भी सामाजिक पहचान प्राप्त करने में असमर्थ हैं।
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
Karan Result
करण पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग है।
करण
करण पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो चंद्रमा पर आधारित है ! एक तारीख में दो करण होते हैं, पहली करण तिथि के पूर्वार्ध में और दूसरा करण उतरा हुआ होता है! सूर्य और चंद्रमा का अंतर 6 होने पर एक करण होता है! कुल मिलाकर 11 करणों की मान्यता है जिसमें से सात करण (बालव, तैतिल, वनिज, बव, कौलव, गर, और दृष्टिकोण) चर प्रकृति के, अर्थात इन करणों की पुनरावृति एक महीने में कई बार होती है! और शेष चार करण किन्सतुन्न, शकुनि, चतुष्पद, और नाग, प्रकृति के होते हैं! स्थिर करणों में पहला करण किंस्तुघ्न सबसे पहले शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को आता है, और शेष तीन स्थिर करण में शकुनि नामक करण कृष्णपक्ष की चतुर्दशी का अंतिम अर्धभाग में होता है, इसके बाद इसके अमावस के पहले अर्धभाग में चतुष्पद एवं दुसरे अर्धभाग में नाग करण होता है। !
11 करण एवं स्वामी क्रमशः इस प्रकार हैं!
करण स्वामी
1 बव इंद्र
2 बालव ब्रह्मा
3 कौलव सूर्य
4 तैतिल सूर्य
5 गर पृथ्वी
6 वणिज लक्ष्मी
7 विष्टि यम
8 शकुनि कलयुग
9 चतुष्पद रुद्र
10 नाग सर्प
11 किंस्तुघ्न वायु
बव करण
बव करण के बारे में मान्यता है कि ये बाल राज्य का करण है, श्वेत वस्त्र धारण करने वाला है, बव करण का वाहन सिंह है, इसी व्यवहार में समानता रखने वाला है!
बव करण में पैदा हुए लोग समाज में अपने कार्यों द्वारा सम्मान प्राप्त करते हैं! बव करण में उत्पन्न व्यक्ति का स्वभाव आशावादी होता है,एवं ये शुभ एवं धार्मिक कार्यों को करने में विशेष रुचि ग्रहण करते हैं! बव करण में उत्पन्न लोगों के स्वभाव में बालपन उल्लेख विद्दमान रहता है, अन्य शब्दों में किसी भी कार्य के प्रति समीक्षा के आभाव में कार्य के प्रति रुचि रखते हैं एवं स्थिर भाव से कार्य के प्रति समर्पित रहते हैं! बव करण में पैदा हुए व्यक्ति के शुभ कार्यों के प्रति आस्था एवं नौकरी कार्यों के प्रति नकारात्मक भाव रखते हैं! बव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति प्रतापी होता है!
एक और आदत बव करण में पैदा हुए लोग का किसी नशे के लिए प्रति चौक हो सकते हैं या ये किसी प्रकार के नशे की आदत से आसानी से हो सकते हैं!
बव करण होने पर यात्रा के लिए प्रस्थान एवं प्रवेश शुभ है!
बालव करण
बालव करण के बारे में मान्यता है, कि ये कुमार राज्य का करण है, पीले वस्त्रों को धारण करने वाला है, एवं बालव करण का वाहन टाइगर है!
बालव करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति अत्यधिक जिज्ञासु प्रवृति के होते हैं और इस प्रकार ये कई विषयों में ज्ञान वन भी होते हैं! बालव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति धार्मिक रूप से अधिक आस्थावान होता है, धार्मिक स्थानों के निर्माण कार्य के लिए योगदान करने का परम दृष्टिकोण होता है, तथा धार्मिक क्षेत्र में उच्च ज्ञान रखने वालों का सत्संग करता है! बालव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति कई तीर्थ स्थानों की यात्रा करता है! शिक्षा ज्ञान एवं धर्म से जुड़े क्षेत्रों में सम्मान प्राप्त करने का एक विशेष गुण बालव करण में उत्पन्न लोगों में होता है !
कौलव करण
कौलव करण के बारे में मान्यता है कि ये करणों में ऊपर की स्थिति प्राप्त करने वाला करण है, हरे रंग के वस्त्रों को धारण करने वाला कौलव करण आयु में अधिक है एवं इस करण का वाहन प्रारंभ है!
कौलव करण में जन्म लेने वाले लोग स्वभाव स्वभाव के होते हैं, और जिनके मित्रों की संख्या भी अधिक होती है, और आवश्यकता होती है उन पर आपके मित्रों से सहयोग प्राप्त होता है!
कौलव करण में पैदा हुआ व्यक्ति का परिवार बड़ा होता है! इस करण में जन्म लेने वाला कई प्रकार के भिन्न से युक्त और अच्छे कार्यों को करने के लिए तत्पर होता है, सम्मान की इच्छा में कई प्रकार के यत्न करता है, स्वाभिमानी भी होता है, एवं समाज में निम्न स्तर के लोगों से इस करण में पैदा हुआ व्यक्ति को विशेष सहयोग प्राप्त होता है!
अन्य मतानुसार कौलव करण में पैदा हुए लोग आदत स्वभाव वाले होते हुए स्वभाव स्वभाव, एक से अधिक संख्या में जीवन साथी के अतिरिक्त सम्बन्ध रखने वाले,
अपने समाज की धारणा से विपरीत अन्य समाज एवं धर्मों के प्रति अधिक आकर्षण रखने वाला स्वभाव होता है, खेल तमाशा दिखने वाला स्वभाव एवं लोगों का मनोरंजन करने में तत्पर, आक्रोश,एवं गति हीन से अनुपयोगी होता है!
कौलव करण मित्रता से संबंधित अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला, मान सम्मान एवं कार्यों में सफलता देने वाला है!
तैतिल करण
तैतिल करण के बारे में मान्यता है कि ये निष्क्रिय अवस्था में रहने वाला, पीत परिधान धारण करने वाला, युवा एवं वाहन करण है!
तैतिल करण में जन्म लेने वाले लोग भाग्यशाली होते हैं और अपने जीवन में सुख प्राप्त करते हैं, सौभाग्य से होने के कारण इस कारण से जन्मे लोगों को पुरुषार्थ के आभाव में भी अपने सौभाग्य से धन प्राप्त करते हैं!
तैतिल करण में दिए गए व्यक्ति को सभी से स्नेह भाव रखते हैं, और अपने निकटजनों से भी इन सभी खातों में स्मार्टफोन की मात्रा में स्नेह प्राप्त होता है!
तैतिल करण में जन्मा व्यक्ति वाणी वाणी का प्रयोग करने वाला, अपने कार्यों के प्रति चतुर होता है, और उन कार्यों को सिद्ध करने वाला होता है, तैतिल करण में उत्पन्न लोग, सत्यवक्त, स्वभाव, स्थिर स्वभाव एवं आवश्यकता के अनुसार उग्र स्वभाव क्रोधी और नाइट पुण्यशील एवं शुभ आचरण एवं स्वभाव वाला होता है!
अन्य मतानुसार तैतिल करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति के जीवन में आलस्य कि अधिकता चुगली आदि करने का स्वभाव उचः स्वभाव एवं जीवन में प्राप्त सौभाग्य का दुरूपयोग क्षतिग्रस्त कार्यों के लिए करना भी दृष्टिगत होता है!
गर करण
गर करने के बारे में मान्यता है कि ये नीचे आसीन स्थिति में रहने वाला, लाल वस्त्रों को धारण करने वाला, प्रौढ़ अवस्था का एवं वाहन गज है!
गर करण में जन्म लेने वाले लोग जीवन में कर्मवादी होते हैं, अपने जीवन काल में कर्म सिद्धांत को ही मान्यता देते हैं, कृषि एवं भूमि से जुडी वस्तुओं के व्यापार से लाभ प्राप्त करते हैं! गर करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने जीवन में सभी प्रकार की अभिलाषाओं को अपने श्रम से पूर्ण करने में सक्षम होता है, श्रम और वैज्ञानिक सोच वाले प्रमुख जीवन सिद्धांत होते हैं! इस कारण जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने जुड़ाव की अधिक समय धारण करने से अपने परिवार से दूर हो जाता है!
इस करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति यांत्रिकी एवं विज्ञान का ज्ञान रखते हैं!
अन्य मतानुसार गर करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति मन्त्र शास्त्रों का ज्ञाता होता है, शत्रु शत्रुता शुभ व्यवहार और स्वभाव वाला न्यायप्रिय स्वभाव, चतुर, निर्बल, मुखर एवं जंग झगडा करने में आनंद प्राप्त करने वाला होता है!
गर करण में गृह प्रवेश आदि अर्थात वास्तु से जुड़े सभी कार्य एवं देखने से जुड़े कार्य शुभ माने जाते हैं!
वणिज करण
वणिज करण के बारे में मान्यता है कि ये नीचे आसीन स्थिति में रहने वाला, लाली का आलेपन करने वाला, पूर्ण आयु का एवं वाहन बफ़ेलो है!
वणिज करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति तीव्र बुद्धि युक्त, वाणिज्यिक एवं व्यवसायिक कार्यों में अनुबंध लेने वाला एवं व्यवसाय और व्यापार से ही लाभ प्राप्त करने वाला होता है, विदेश यात्रा एवं विदेश से जुड़े व्यापार से लाभ प्राप्त करने वाला होता है!
वणिज करण में पैदा हुए लोग अपने जीवन में नौकरी की प्रतिबद्धता गतिविधियों को ही अधिक मान्यता देते हैं ये व्यापार से लाइसेंस ज्ञान स्वतः एवं सहज रूप से प्राप्त करते हैं!
अन्य मत के अनुसार वणिज करण में जन्म लेने वाला कई बार विपरीत होने के कारण प्रति आसक्त चित होता है!
वणिज करण व्यवसायी एवं व्यापार करने वालों के लिए कार्यों को समाप्त करने एवं अन्य व्यवसायिक आवश्यकताओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है वणिज करण एक शुभ एवं प्रेग्नेंसी है!
अवलोकन करण
दृष्टि करण के बारे में मत है कि नीचे आसीन स्थिति में रहने वाला, काले वस्त्रों को धारण करने वाला, वृद्धा अवस्था का एवं वाहन घोड़ा है!
दृष्टि करण में जन्म लेने वाले लोग समाज द्वारा अस्वीकृत कार्यों के प्रति अधिक अधिकार ग्रहण करते हैं! सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी योजनाओं में अधिकता के कारण ये जीवन में कई बार मान सम्मान में कमी और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है!
इस करण में जन्म का एक अशुभ प्रभाव इस करण में पैदा हुए लोगों पर निर्दिष्ट द्रष्टिगत होता है एवं इस प्रकार इस करण में उत्पन्न लोगों का व्यवहार एवं आचरण संशय संशय पूर्ण ही होता है!
दृष्टि करण में दिए गए व्यक्ति विपरीत लिंग के प्रति अधिक आकृष्ट होते हैं एवं इन विषयों में दुराचारी और स्वछंद प्रवृति के भी देखे जाते हैं! धन के प्रति लालच और अत्यधिक महत्व भी व्यवहार व्यवहार में सामान्य है!
इस करण में लाए गए लोग औषधि निर्माण एवं चिकित्सा आदि से जुड़े कार्यों में धन एवं मान सम्मान कि प्राप्त करते हैं शत्रु से प्रतिशोध प्राप्त करने के लिए बुरे से बुरा निर्णय लेने से भी ये कोई दोहरी भावना नहीं करते!
इस कारण से व्यक्ति समाज का विरोध करने में अग्रणी स्वछंद प्रवृति के स्वामी अपने आस पास के लोगों से सम्मान प्राप्त करने के लिए ऐसा नहीं मान रहे हैं! एवं किसी भी विषय में अतिवादी हो सकते हैं!
शकुनि करण
शकुनि करण ऊपर की स्थिति प्राप्त करने वाला करण है! हल्दी का आलेपन करने वाला, वंध्या राज्य का एवं वाहन स्वान है!
शकुनि करण में जन्म लेने वाले लोग कनेक्शन को तर्कसंगत में कुशल होते हैं ये बहुत अधिक बुद्धिमान एवं स्वयं के सहज प्राप्त ज्ञान से शुभ एवं अशुभ समय के भी ज्ञात होते हैं! शकुनि करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति को कालज्ञ भी कहा जा सकता है अर्थात जो अपने सहज ज्ञान से अच्छे व् बुरे को परिचित में सक्षम हो सकता है!
इस करण में जन्म लेने वाले लोग सदा किसी न किसी प्रकार से कर्मशील रहते हैं! समय का सदुपयोग करना इन्हें भली तरह दिखता है!
इस करण में दिए गए लोगों को औषधि उत्पन्न आदि का ज्ञान होता है एवं चिकित्सा क्षेत्र में कार्य कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं!
अन्य मत शुकुनि करण में उत्पन्न लोग अपने सहज ज्ञान एवं बौद्धिक क्षमता का दुरूपयोग धन एवं मान सम्मान आदि की धारणा के लिए प्रयोग करते हैं ऐसी स्थिति में इन्हें अपने जीवन की समस्त अभिलाषाओं को प्राप्त करने के लिए कई बार बहुत अधिक विकट स्थिति और अनायास संघर्ष का सामना करना पड़ता है !
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शकुनि करण होने पर युद्ध सम्बन्धी कार्य, स्वास्थ्य लाभ की इच्छा से औषधि सेवन, एवं शत्रुओं के विरुद्ध कार्य श्रेष्ठ रहते हैं!
चतुष्पद करण
चतुष्पद करण निष्क्रिय अवस्था का करण, लोई आदि का परिधान धारण करने वाला, वंध्या राज्य का एवं वाहन भेड़ है!
चतुष्पद करण में जन्म लेने वाले लोग शुभ संस्कारों से युक्त एवं धर्म कर्म आदि के प्रति आस्थावान होते हैं, ये सर्व शाष्त्र विषारद होते हैं अर्थात ज्ञान की कई विधाओं में पारंगत होते हैं! गुरुजनों एवं श्रेष्ठ जनों के ज्ञान एवं अनुभव से लाभ प्राप्त करते हैं! भाग्य का साथ होने से इन्हें धन, ज्ञान एवं यश सहजता से प्राप्त होता है!
चतुष्पद करण में पैदा हुए लोग चतुष्पद अर्थात चार मांस वाले पशु एवं सभी पेट से सुख प्राप्त करते हैं, इनसे एक से अधिक कठोर का सुख भी प्राप्त होता है!
चतुष्पद करण में उत्पन्न व्यक्ति कृषि कार्य एवं व्यापार से भी लाभ प्राप्त करते हैं! इस करण में नागरिकता रोक आलस से हीन एवं बली होते हैं
अमावस्या को चतुष्पद करण होने पर तंत्र शास्त्रों के ज्ञाता, तामसिक एवं तंत्र की मारण कर्म युक्ति का प्रयोग रोक लगाते हैं!
चतुष्पद करण में चार पैर वाले व्यक्तियों से जुड़े सभी कार्य शुभ एवं मान्य हैं!
श्राद्ध कर्म यानी त्रयस्थ आदि यदि चतुष्पद करण में जायें तो विशेष रूप से शुभ एवं मान्य हैं!
नाग करण
नाग करण के बारे में मत है कि ये निष्क्रिय अवस्था का करण है, निर्वस्त्र है, पुत्र संतति आदि से पूर्ण एवं वाहन बैल है!
नाग करण में जन्म लेने वाले लोग धातु का विशेष ज्ञान रखने वाले अर्थात धातु विज्ञान के विषय में जानकारी रखने वाले होते हैं! ज़ोन क्षेत्र से चक्र प्राप्त करने वाले, एवं कर्म पर अधिक विशवास धारण करने वाले होते हैं, अर्थात कर्म सिद्धांत को भाग्य की वृत्ति अधिक ज्ञापित होते हैं! जीवन में स्वयं के श्रम से विशेष लाभ प्राप्त करते हैं
नाग करण में उत्पन्न व्यक्ति का जीवन संघर्ष एवं विकट स्थितिओं से होता है और उन्हें अपने अभीष्ट कार्यों में सफलता प्राप्त करने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है!
नाग करण में जन्म लेने वाले मन एवं आंखों से चंचल प्रवृति के होते हैं और स्थिरता के आभाव में संतुष्टि अधिक हानिकारक होती है!
नाग करण का प्रयोग गारुणी विद्या (विषहर विद्या) का ज्ञान रखने वाले लोग पकड़ते हैं!
इस करण की समय अवधि में किसी भी नए कार्य का प्रारंभ नहीं करना चाहिए क्योंकि ये करण नए कार्यों का प्रारंभ करने के लिए शुभ एवं मान्य नहीं है!
किस्तुघ्न करण
किंस्तुघ्न करण ऊपर की ओर स्थिति प्राप्त करने वाला होता है! धानी रंग के कपड़ों को धारण करने वाला एवम वाहन है!
किस्तुघ्न करण में जन्म लेने वाले लोग निरंतर शुभ कार्यों को करने वाले, श्रेष्ठ ज्ञान को प्राप्त करने वाले, श्रम से जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने वाले एवं सुखी जीवन वनवासी होते हैं! मौसम एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता के भाव भी इनमे दृष्टिगत होते हैं! इस करण में बनाए गए लोग श्रेष्ठ भाग्यशाली होते हैं, एवं सभी प्रकार के लौकिक सुखों को प्राप्त करते हैं! किंस्तुघ्न करण में किसी व्यक्ति के जीवन में नए सिरे से सभी उद्यम और प्रस्ताव भाग्यवश विकास प्राप्त करते हैं!
किंस्तुघन करण में उत्पन्न लोग अपने वंश विशेषतः पितृ वंश को सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान करने वाले होते हैं, अपने परिवार से विच्छिन्न या पृथकता की स्थिति में निष्प्रभाव हो जाते हैं, आध्यात्म से जुड़े कार्यों को करना एवं पिता का आशीर्वाद प्राप्त करना जीवन में सभी प्रकार की अभिलाषाओं को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है!
किंस्तुघ्न करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने कार्य की तरह दुसरो के कार्य को करने वाला, अल्पायु, अभोगी, और एकांतवासी होता है!
जब शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को किस्तुघ्न करण हो, ऐसी अवस्था में सभी प्रकार के सख्त एवं दु:खदायक कार्यों को सरलता से प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है!
किस्तुघ्न करण सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए मान्य है!
हिंदू पंचांग के पंचांग अंग है:- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। उचित तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण को देखकर ही कोई शुभ या मंगल कार्य किया जाता है। इसके अलावा मुहुर्त का भी इसमें महत्व है। करण को छोड़कर आप सभी से परिचित होंगे। तो आओ जानते हैं कि करण कितने प्रकार के होते हैं और कौन सा करण में मंगल कार्य करना या नहीं करना चाहिए।
करण क्या है?
तिथि का आधा भाग करण कहलाता है। चन्द्रमा जब 6 अंश पूर्ण कर लेता है तब एक करण पूर्ण होता है। एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
किस्तुघ्न, चतुष्पद, शकुनि तथा नाग ये चार करण हर माह में आते हैं और इन्हें स्थिर करण कहा जाता है। अन्य सात करण चर करण कहलाते हैं। ये एक स्थिर गति में एक दूसरे के पीछे आते हैं। इनके नाम हैं: बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि जिसे भद्रा भी कहा जाता है।
करणों के गुण स्वभाव निम्न प्रकार हैं:-
किस्तुघ्न:- यह स्थिर करण है। इसके प्रतीक माने जाते हैं कृमि, कीट और कीड़े। इसका फल सामान्य है तथा इसकी अवस्था ऊर्ध्वमुखी मानी जाती है।
बव:- यह चर करण है। इसका प्रतीक सिंह है। इसका गुण समभाव है तथा इसकी अवस्था बालावस्था है।
बालव:- यह भी चर करण है। इसका प्रतीक है चीता। यह कुमार माना जाता है तथा इसकी अवस्था बैठी हुई मानी गई है।
कौलव:- चर करण। इसका प्रतीक शूकर को माना गया है। यह श्रेष्ठ फल देने वाला ऊर्ध्व अवस्था का करण माना जाता है।
तैतिल:- यह भी चर करण है। इसका प्रतीक गधा है। इसे अशुभ फलदायी सुप्त अवस्था का करण माना जाता है।
गर:- यह चर करण है तथा इसका प्रतीक हाथी है। इसे प्रौढ़ माना जाता है तथा इसकी अवस्था बैठी हुई मानी गई है।
वणिज:- यह भी चर करण है। इसका प्रतीक गौ माता को माना गया है तथा इसकी अवस्था भी बैठी हुई मानी गई है।
विष्टि अर्थात भद्रा:- यह चर करण है। इसका प्रतीक मुर्गी को माना गया है। इसे मध्यम फल देने वाला बैठी हुई स्थिति का करण माना जाता है।
शकुनि:- स्थिर करण। इसका प्रतीक कोई भी पक्षी है। यद्यपि इसकी अवस्था ऊर्ध्वमुखी है फिर भी इसे सामान्य फल देने वाला करण माना जाता है।
चतुष्पद:- यह भी स्थिर करण है। इसका प्रतीक है चार पैर वाला पशु। इसका भी फल सामान्य है तथा इसकी अवस्था सुप्त मानी जाती है।
नाग:- यह भी स्थिर करण है। इसका प्रतीक नाग या सर्प को माना गया है। इसका फल सामान्य है तथा इसकी अवस्था सुप्त मानी गई है।
उक्त करणों में विष्टि करण अथवा भद्रा को सबसे अधिक अशुभ माना जाता है। किसी भी नवीन कार्य का आरम्भ इस करण में नहीं किया जा सकता। कुछ धार्मिक कार्यों में भी भद्रा का त्याग किया जाता है। सुप्त और बैठी हुई स्थितियां उत्तम नहीं होतीं। ऊर्ध्व अवस्था उत्तम होती हैं।
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
Muhoort Vichaar
अभिजीत मुहूर्त
हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है। कि यदि कोई भी काम शुभ मुहूर्त देखकर किया जाए तो वो ज़्यादा शुभ और फलदायी होता है। यही वजह है। कि हिंदू धर्म में जितने भी शुभ और मांगलिक कार्य होते हैं। जैसे विवाह, गृह प्रवेश, अन्नप्राशन, मुंडन, कर्णवेध संस्कार, इत्यादि या कोई पूजा पाठ इसके लिए हम शुभ मुहूर्त की गणना अवश्य करवाते हैं।
शुभ मुहूर्त को लेकर अलग-अलग विश्वास वाले लोगों के बीच तर्क वितर्क और धारणाओं का मतभेद देखने को मिलता है। हालांकि यह शुभ मुहूर्त एक व्यक्ति के जीवन में क्या महत्व रखता है। यह स्वयं उस व्यक्ति की सोच और विश्वास पर निर्भर करता है। और करना चाहिए। जो लोग शुभ मुहूर्त में विश्वास करते हैं। वह जानते और मानते हैं। कि शुभ मुहूर्त वह विशेष समय होता है। जब ग्रह और नक्षत्रों के प्रभाव से हमें सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। ऐसे में इस दौरान यदि कोई भी कार्य शुरू किया जाए, या शुभ कार्य संपन्न किया जाए तो यह निर्विघ्न रुप से और सफल होता है।
एक दिन में कितने मुहूर्त होते हैं।
1 दिन में कुल 30 मुहूर्त होते हैं। हालांकि यहां यह जानना बेहद आवश्यक है कि मुहूर्त शुभ भी होते हैं। और अशुभ मुहूर्त भी होते हैं। जहां शुभ कार्य करने के लिए हम शुभ मुहूर्त की गणना करते हैं वहीं कोई भी शुभ या नया कार्य करने के लिए यह बेहद आवश्यक होता है। कि आपको पता हो कि दिन आज का अशुभ मुहूर्त क्या है। ताकि आप उस समय में कोई भी नया काम ना शुरू करें।
दिन के सभी मुहूर्तों के नाम: रुद्र, आहि, मित्र, पितॄ, वसु, वाराह, विश्वेदेवा, विधि, सतमुखी, पुरुहूत, वाहिनी, नक्तनकरा, वरुण, अर्यमा, भग, गिरीश, अजपाद, अहिर, बुध्न्य, पुष्य, अश्विनी, यम, अग्नि, विधातॄ, कण्ड, अदिति, जीव/अमृत, विष्णु, युमिगद्युति, ब्रह्म और समुद्रम।
शुभ मुहूर्त महत्व
हिंदू धर्म में प्राचीन काल से मुहूर्त को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। आज का शुभ निकालने के लिए ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति की गणना की जाती है और उसके बाद दिन का शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। सनातन धर्म में शुभ कार्य, मांगलिक कार्य, या कोई भी नया कार्य शुरू करने से पहले उस दिन का शुभ मुहूर्त देखने की परंपरा है। और यही वजह है। कि लोग मांगलिक कार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त ना मिले तो महीनों तक इंतजार भी कर लेते हैं।
ऐसा सिर्फ इसलिए होता है। क्योंकि लोगों के मन में यह धारणा है। और ऐसे हमारे सामने कई उदाहरण भी हैं। जिन्हें देखकर यकीन होता है। कि यदि कथित दिन का शुभ मुहूर्त देखकर कोई भी शुभ या मंगल कार्य किया जाए तो इससे हमारे जीवन में खुशहाली आती है। काम बिना विघ्न के संपन्न होता है। और हमें जीवन में सफलता मिलती है।
जैसा कि हमने पहले भी बताया कि जब हम शुभ मुहूर्त की गणना करवाकर कोई नया कार्य मांगलिक कार्य शुभ कार्य करते हैं तो इसमें हमें सफलता मिलती है। हालांकि इन मुहूर्त में अगर कोई चूक हो जाए या गलती हो जाए तो कई बार इसके विपरीत परिणाम भी हमें झेलने पड़ते हैं। ऐसे में बेहद जरूरी हो जाता है कि जब भी आप आज का शुभ मुहूर्त निकलवाए तो यह आप किसी जानकार पंडित या ज्योतिषी से ही करवाएं। विशेष तौर पर अगर आप शादी विवाह, मुंडन, और गृह प्रवेश जैसे शुभ और बड़े कार्यो के लिए मुहूर्त की तलाश में है तो इसके लिए आपको ज्योतिषी से परामर्श करने की सलाह दी जाती है।
मौजूदा समय में आज के शुभ मुहूर्त की उपयोगिता और महत्व
हम जैसे-जैसे मॉर्डनाइजेशन यानी आधुनिकता की तरफ बढ़ते जा रहे हैं वैसे-वैसे हम अपनी संस्कृति, अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में आपने अक्सर देखा होगा कि आज का शुभ मुहूर्त में विश्वास करने वाले लोगों को पिछड़ी सोच का माना जाता है। हालांकि अतीत में शुभ मुहूर्त में किए गए कामों की सफलता को कोई भी नकार नहीं सकता है। यही वजह है कि हम कितने भी मॉडर्न क्यों ना हो जाए हमें कुछ चीजों पर विश्वास बनाए रखने और उन पर आजीवन अमल करने की आवश्यकता होती है।
आज का शुभ मुहूर्त भी उन्हीं कुछ चीजों में से एक है। शायद यही वजह है। कि आज भी जहां अधिकांश लोग मॉडर्न होकर मुहूर्त और आज के शुभ मुहूर्त को नकार चुके हैं वहीं बहुत से लोग अभी भी महत्वपूर्ण मांगलिक कार्यों और नया काम को शुरू करने के लिए शुभ मुहूर्त की गणना कराने की सलाह देते हैं क्योंकि यह हमारा विश्वास है। कि आज के शुभ मुहूर्त के अनुसार यदि कोई भी नया काम किया जाए तो वह हमारे जीवन में तमाम खुशियां, सफलता, और समृद्धि लेकर आएगा।
अभिजीत मुहूर्त
अभिजीत का अर्थ है “विजेता” और मुहूर्त अर्थात “समय”। हमारे सनातन धर्म में समय को अत्यंत ही महत्व दिया गया है और ऐसा माना जाता है कि यदि कार्य को सही समय पर किया जाये तो सफलता निश्चित है।सामान्यतः मुहूर्त के लिए दिन, तिथि, नक्षत्र, योग और दिनमान का योग देखा जाता है, और उसके आधार पर निर्णय लिया जाता है कि कौन-सा कार्य कब करें कि सफलता सुनिश्चित हो। परन्तु ये गणनाएँ कुछ जटिल होती हैं और इन्हें कोई पंचांग का विशेषज्ञ ही बता सकता है। ऐसी स्थिति में जनसामान्य के लिए जिन्हें पंचांग की जानकारी न भी हो तो अभिजीत मुहूर्त सर्वोत्तम है। अभिजीत मुहूर्त प्रत्येक दिन में आने वाला एक ऐसा समय है जिसमे आप लगभग सभी शुभ कर्म कर सकते हैं। यहाँ एक बात स्पष्ट करने योग्य है। कि अभिजीत मुहूर्त और अभिजीत नक्षत्र का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता। परन्तु यदि अभिजीत मुहूर्त और अभिजीत नक्षत्र एक साथ पड़ जाएँ तो अत्यंत ही शुभ माना जाता है।
अभिजीत मुहूर्त का समय
हिन्दू मान्यता के अनुसार हमारा पूरा दिन अर्थात सूर्योदय से लेकर अगले सूर्योदय तक का समय कुल 30 मुहूर्तों में विभक्त है, जिनमें से 15 सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक तथा 15 सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक के हैं। इन 30 मुहूर्तों में से कुछ शुभ कर्मों के लिए ग्राह्य है, तो कुछ शुभ कर्मों के लिए वर्जित। अभिजीत मुहूर्त इन सभी मुहूर्तों में अत्यंत ही शुभ तथा फलदायी माना जाता है। अभिजीत मुहूर्त प्रत्येक दिन मध्यान्ह से करीब 24 मिनट पहले प्रारम्भ होकर मध्यान्ह के 24 मिनट बाद समाप्त हो जाता है। अर्थात यदि सूर्योदय ठीक 6 बजे हो तो दोपहर 12 बजे से ठीक 24 मिनट पहले प्रारम्भ होकर यह दोपहर 12:24 पर समाप्त होगी। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अभिजीत मुहूर्त का वास्तविक समय सूर्योदय के अनुसार परिवर्तित होता रहता है।
अभिजीत मुहूर्त में किये जाने वाले कर्म
अभिजीत मुहूर्त लगभग सभी शुभ कर्मों में ग्राह्य हैं जैसे - पहली बार किसी कार्य से यात्रा प्रारम्भ करना, किसी नए कार्य को प्रारम्भ करना, दूकान या व्यापार का प्रारम्भ करना, ऋण को चुकाना या धन संग्रह करना या पूजा का प्रारम्भ करना इत्यादि। कुछ विद्वान इस समय गृह प्रवेश, मुंडन कार्य, विवाह इत्यादि की भी मान्यता देते हैं। परन्तु, ऐसी भी मान्यता है कि सामान्य शुभ कार्य के लिए तो यह अत्यंत उत्तम है, परन्तु मांगलिक कार्य तथा ग्रह प्रवेश जैसे प्रमुख कार्यों के लिए और भी योगों को देखना आवश्यक है।
अभिजीत मुहूर्त में क्या नहीं करें
अभिजीत मुहूर्त में दक्षिण दिशा की यात्रा को निषेध किया गया है। साथ ही बुधवार को अभिजीत मुहूर्त में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र हैं। इनमें 8वें स्थान पर पुष्य नक्षत्र आता है, जो बेहद ही शुभ एवं कल्याणकारी नक्षत्र है, इसलिए इसे नक्षत्रों का सम्राट भी कहा जाता है। जब यह नक्षत्र रविवार के दिन होता है तो इस नक्षत्र एवं वार के संयोग से रवि पुष्य योग बनता है। इस योग में ग्रहों की सभी बुरी दशाएँ अनुकूल हो जाती हैं, जिसका परिणाम सदैव आपके लिए शुभकारी होता है। रवि पुष्य योग को रवि पुष्य नक्षत्र योग भी कहा जाता है।
रवि पुष्य योग में इन कार्यों को करना माना जाता है बेहद शुभ
रवि पुष्य योग समस्त शुभ और मांगलिक कार्यों के शुभारंभ के लिए उत्तम माना गया है। यदि ग्रहों की स्थिति प्रतिकूल हो अथवा कोई अच्छा मुहूर्त नहीं भी हो, ऐसी स्थिति में भी रवि पुष्य योग सभी कार्यों के लिए परम लाभकारी होता है लेकिन विवाह को छोड़कर। इस योग में सोने के आभूषण, प्रॉपर्टी और वाहन आदि की खरीददारी करना लाभदायक होता है। रवि पुष्य योग में नए व्यापार और व्यवसाय की शुरुआत करना भी श्रेष्ठ बताया जाता है। इसके अलावा यह योग तंत्र-मंत्र की सिद्धि एवं जड़ी-बूटी ग्रहण करने में विशेष रूप से उपयोगी होता है।
1. इस दिन साधना करने से उसमें निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है।
2. कार्य की गुणवत्ता एवं उसके प्रभाव में वृद्धि होती है।
3. धन वैभव में वृद्धि होती है।
4. यंत्र सिद्धि के लिए यह शुभ दिन होता है।
5. जन्मकुंडली में स्थित सूर्य के दुष्प्रभाव दूर होते हैं।
6. सूर्य का आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन सुर्ख लाल वस्त्र पहनना शुभ होता है।
7. जीवन में आर्थिक समृद्धि आती है।
रवि पुष्य योग पर करें ये धार्मिक कर्म और उपाय
● रविवार के दिन गाय को गुड़ खिलाने से आर्थिक लाभ होता है।
● रविवार के दिन मंदिर में दीपक जलाने से कार्य में आने वाली बाधा समाप्त होती है।
● तांबे के लोटे में जल में दूध, लाल पुष्प और लाल चंदन डालकर सूर्य को अर्घ्य देने से शत्रु कमजोर होते हैं।
गुरु पुष्य योग
जिस प्रकार शेर समस्त जानवरों का राजा होता है, ठीक उसी प्रकार गुरु पुष्य योग भी सभी योगों में प्रधान माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस शुभ योग में किए गए कार्य सफल होते हैं। इसलिए लोग गुरु पुष्य योग में अपने नए कार्य का श्रीगणेश करना शुभ मानते हैं। वे इस अवसर पर अपना नए व्यापार का आरंभ, नई प्रॉपर्टी अथवा नया वाहन आदि ख़रीदते हैं।
वैसे तो चंद्रमा का राशि के चौथे, आठवें एवं 12वें भाव में उपस्थित होना अशुभ माना जाता है। परंतु यह पुष्य नक्षत्र की ही अनुकंपा है जो अशुभ घड़ी को भी शुभ घड़ी में परिवर्तित कर देती है। इसी कारण 27 नक्षत्रों में इसे शुभ नक्षत्र माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार यह माना गया है कि इसी नक्षत्र में धन व वैभव की देवी लक्ष्मी जी का जन्म हुआ था। जब पुष्य नक्षत्र गुरुवार एवं रविवार के दिन पड़ता है तो क्रमशः इसे गुरु पुष्यामृत योग और रवि पुष्यामृत योग कहते हैं। ये दोनों योग धनतेरस, चैत्र प्रतिपदा के समान ही शुभ हैं।
ग्रहों की विपरीत दशा से बावजूद भी यह योग बेहद शक्तिशाली है। इसके प्रभाव में आकर सभी बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं, परंतु ऐसा कहते हैं कि इस योग में विवाह जैसा शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। शास्त्रो में उल्लेखित है कि एक श्राप के अनुसार इस दिन किया हुआ विवाह कभी भी सुखकारक नहीं हो सकता |
वाहन खरीद मुहूर्त
हिन्दू धर्म में शुभ कार्यों की शुरुआत सदैव मुहूर्त देखकर की जाती है। विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन समेत वाहनों को खरीदने के लिए हिन्दू पंचांग में विशेष तिथि, नक्षत्र और लग्न निर्धारित किये गये हैं। वाहन खरीदने का शुभ मुहूर्त देखकर खरीदे गये वाहनों से घर में सुख-शांति आती है और दुर्घटनाओं का भय कम होता है। कार, बाइक, ट्रक और अन्य सभी तरह के कमर्शियल और नॉन कमर्शियल वाहनों की खरीद के लिए मुहूर्त होते हैं। इनमें वार, तिथि और नक्षत्रों का विशेष महत्व होता है।
वाहन खरीदने के मुहूर्त में तिथि, नक्षत्र, लग्न और वार विचार
चर नक्षत्र- कार और अन्य वाहनों को खरीदने के लिए पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण,धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र विशेष रूप से शुभ माने गये हैं क्योंकि इन्हें चर नक्षत्र कहा जाता है। इसके अलावा अन्य नक्षत्र भी उत्तम माने जाते हैं, साथ ही ये नक्षत्र पहली बार वाहन चलाने के लिए शुभ कहे गये हैं।
शुभ दिन- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और रविवार वाहन खरीदने के लिए शुभ दिन माने जाते हैं। हालांकि इनमें शुक्रवार को सबसे अच्छा बताया गया है।
शुभ तिथि- समस्त प्रकार के वाहनों को खरीदने के लिए प्रथमा, तृतीया, पंचमी, षष्टी, अष्टमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी और पूर्णिमा की तिथि शुभ मानी जाती है। अमावस्या की तिथि में वाहन नहीं खरीदना चाहिये।
शुभ लग्न- मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु और मीन लग्न में वाहन खरीदना श्रेष्ठ माना गया है।
चर और द्विस्वभाव लग्न- चर और द्विस्वभाव लग्न वाहन चलाने और नया वाहन खरीदने के लिए शुभ माने जाते हैं। इनमें मेष, कर्क, तुला और मकर चर लग्न हैं और मिथुन, कन्या, धनु व मीन द्विस्वभाव वाले लग्न हैं।
चंद्रमा की स्थिति- जिस दिन आप वाहन खरीदने जा रहे हैं उस दिन चंद्रमा षष्टम, अष्टम और द्वादश भाव में नहीं होना चाहिए। इसके अलावा चतुर्थ भाव के स्वामी और कुंडली में शुक्र की स्थिति का अवलोकन भी अवश्य करना चाहिए।
वाहन खरीद के लिए शुभ तिथि, नक्षत्र, लग्न और वार के अलावा भी ऐसे कई शुभ मुहूर्त आते हैं, जब बिना मुहूर्त देखे वाहनों की खरीद की जाती है। इनमें अक्षय तृतीया, सर्वार्थ सिद्धि योग, गुरु पुष्य योग, रवि पुष्य योग, अमृत सिद्धि योग आदि प्रमुख हैं। हिन्दू धर्म और वैदिक ज्योतिष में इन मुहूर्तों का विशेष महत्व है। इन मुहूर्तों में कई मांगलिक और शुभ कार्य बिना मुहूर्त देखे आरंभ किये जा सकते हैं। हालांकि विवाह के विषय में यह पूर्ण रूप से लागू नहीं होते हैं।
राहु काल में वाहन न खरीदें
वैदिक ज्योतिष में राहु को क्रूर व पापी ग्रह की संज्ञा दी गई है, इसलिए यह बुरे फल प्रदान करता है। शुभ कार्य में समस्या और अड़चन उत्पन्न करना राहु का स्वभाव है अतः राहु काल में शुभ कार्यो की शुरुआत करने से बचना चाहिए।
● राहु काल में शुरू किया गया कार्य बिना परेशानी के पूरा नहीं होता है। इस दौरान कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
● राहु काल में कार, बाइक या अन्य वाहन और मकान, आभूषण आदि भूलकर भी नहीं खरीदना चाहिए।
● इस अवधि में वाहन की खरीदी और बिक्री दोनों से बचना चाहिए।
इसलिए यदि आप वाहन खरीदने का मन बना रहे हैं तो राहु काल के बारे में विचार अवश्य कर लें।
राशि के अनुसार वाहनों के शुभ रंग
हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि शुभ मुहूर्त में कार, बाइक या अन्य वाहन खरीदा जाये, ताकि उस मुहूर्त विशेष में ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति का उसे लाभ मिले। इसके अलावा राशि के अनुसार भी वाहनों के रंगों का विशेष ज्योतिषीय महत्व होता है।
मेष- इस राशि के लोगों के लिए नीला या उससे मिलते-जुलते रंग के वाहन शुभ होते हैं। वहीं काले और भूरे रंग का वाहन लेने से बचना चाहिए।
वृषभ- सफेद और क्रीम कलर के वाहन वृषभ राशि के जातकों के लिए अच्छे माने जाते हैं। वहीं पीले और गुलाबी रंग के वाहनों को खरीदने से बचना चाहिए।
मिथुन- इस राशि के लोगों के लिए हरा या क्रीम कलर का वाहन लाभदायक माना गया है।
कर्क- इस राशि के जातकों को काले, पीले और लाल रंग के वाहन खरीदने चाहिये। क्योंकि ये रंग उनके लिए शुभ माने गये हैं।
सिंह- ग्रे और स्लेटी रंग के वाहन सिंह राशि के लोगों के लिए शुभ साबित होते हैं।
कन्या- सफेद और नीले रंग के वाहन कन्या राशि के लोगों के लिए शुभ माने गये हैं। हालांकि लाल रंग के वाहन कन्या राशि वाले जातकों को नहीं लेना चाहिए।
तुला- इस राशि के लोगों के लिए काले अथवा भूरे रंग का वाहन शुभ माना गया है।
वृश्चिक- इन लोगों को सफेद रंग के वाहन खरीदने चाहिये। वहीं काले रंग के वाहन को खरीदने से बचें।
धनु- सिल्वर और लाल रंग के वाहन धनु राशि के लोगों के लिए विशेष फलदायी माने गये हैं। वहीं काले और नीले रंग के वाहन नहीं लेना चाहिए।
मकर- सफेद, ग्रे और स्लेटी रंग के वाहन इन राशि वालों के लिए अच्छे माने जाते हैं।
कुंभ- इस राशि के लोगों को सफेद, ग्रे या नीले रंग के वाहन खरीदने चाहिए।
मीन- पीला, नारंगी या गोल्डन रंग का वाहन मीन राशि के जातकों के लिए लाभकारी होता है।
घर के साथ-साथ वाहन खरीदना भी हर व्यक्ति का सपना होता है इसलिए यह जरूरी है कि जिस प्रकार शुभ मुहूर्त में गृह प्रवेश किया जाता है, ठीक उसी प्रकार एक अच्छे मुहूर्त में वाहनों की खरीद की जाये। क्योंकि वाहन आपके जीवन की बड़ी जरुरतों में से एक है, इसलिए वाहन को खरीदने के बाद उसकी पूजा की जाती है ताकि आपके जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहे।
गृह प्रवेश मुहूर्त
हर व्यक्ति के जीवन में गृह प्रवेश एक महत्वपूर्ण क्षण होता है। क्योंकि कड़ी मेहनत और प्रयासों के बाद घर का सपना साकार होता है, इसलिए शुभ मुहूर्त में गृह प्रवेश का विशेष महत्व है। शुभ घड़ी और तिथि पर गृह प्रवेश करने से घर में शांति,समृद्धि और खुशहाली आती है। गृह प्रवेश के मुहूर्त का निर्धारण तिथि, नक्षत्र, लग्न और वार आदि के आधार पर किया जाता है।
गृह प्रवेश के लिए शास्त्रोक्त नियम
●शास्त्रों में माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ माह गृह प्रवेश के लिये सबसे उत्तम माह मनाये गये हैं।
●चातुर्मास अर्थात आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन के महीनों में गृह प्रवेश करना निषेध होता है। क्योंकि यह अवधि भगवान विष्णु समेत समस्त देवी-देवताओं के शयन का समय होता है। इसके अतिरिक्त पौष मास भी गृह प्रवेश के लिए शुभ नहीं माना जाता है।
●मंगलवार को छोड़कर अन्य सभी दिनों में गृह प्रवेश किया जाता है। हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों में रविवार और शनिवार के दिन भी गृह प्रवेश करना वर्जित होता है।
●अमावस्या व पूर्णिमा की तिथि को छोड़कर शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथि गृह प्रवेश के लिए शुभ मानी जाती है।
●गृह प्रवेश स्थिर लग्न में करना चाहिए। गृह प्रवेश के समय आपके जन्म नक्षत्र से सूर्य की स्थिति पांचवे में अशुभ, आठवें में शुभ, नौवें में अशुभ और छठवे में शुभ है।
गृह प्रवेश के प्रकार
सामान्यतः यह धारणा रही है कि गृह प्रवेश हमेशा नये घर में रहने के लिए किया जाता है लेकिन यह धारणा सही नहीं है। वास्तु शास्त्र के अनुसार गृह प्रवेश 3 प्रकार के होते हैं-
●अपूर्व: जब नये घर में रहने के लिए जाते हैं, तो यह ‘अपूर्व’ गृह प्रवेश कहलाता है।
●सपूर्व: यदि किन्ही कारणों से हम किसी दूसरे स्थान पर रहने चले जाते हैं और अपना घर खाली छोड़ देते हैं। इसके बाद जब हम पुनः घर में लौटते हैं, तो इसे सपूर्व गृह प्रवेश कहते हैं।
●द्वान्धव: प्राकृतिक आपदा अथवा किसी और परेशानी की वजह से जब मजबूरी में घर छोड़ना पड़ता है। इसके बाद दोबारा घर में रहने के लिए पूजा-पाठ किया जाता है, तो इसे द्वान्धव गृह प्रवेश कहा जाता है।
वास्तु शांति का महत्व
वास्तु शास्त्र प्राचीन भारतीय विज्ञान है। इसमें दिशाओं के महत्व को दर्शाया गया है। वास्तु से तात्पर्य है एक ऐसा स्थान जहाँ भगवान और मनुष्य एक साथ रहते हैं। मानव शरीर पांच तत्वों से बना है और वास्तु का सम्बन्ध भी इन पाँचों ही तत्वों से माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार प्रत्येक दिशा में देवताओं का वास होता है। हर दिशा से मिलने वाली ऊर्जा हमारे जीवन में सकारात्मक वातावरण, सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करती है, इसलिए गृह प्रवेश से पूर्व वास्तु पूजा और वास्तु शांति अवश्य करनी चाहिए।
निर्माण कार्य पूरा होने के बाद करें गृह प्रवेश
कभी-कभी हम आधे-अधूरे बने घर में ही प्रवेश कर लेते हैं लेकिन यह सही नहीं माना जाता है। शास्त्रों में गृह प्रवेश के कुछ विधान बताये गये हैं, जिनका पालन अवश्य करना चाहिए।
●जब तक घर में दरवाजे नहीं लग जाते हैं, विशेष रूप मुख्य द्वार पर, और घर की छत पूरी तरह से नहीं बन जाती है, तब तक गृह प्रवेश करने से बचना चाहिए।
●गृह प्रवेश के बाद कोशिश करें कि घर के मुख्य द्वार पर ताला नहीं लगाएँ। क्योंकि ऐसा करना अशुभ माना गया है।
विशेष: गृह प्रवेश के संबंध में दिये गये ये सभी विचार धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। हालांकि गृह प्रवेश से पूर्व वास्तु शांति और अन्य कार्यों के लिए विद्वान ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें।
ऐसी कहावत है कि, जिंदगी जीने के लिए तीन चीज़ें ख़ासा महत्वपूर्ण होती हैं, “रोटी”, “कपड़ा” और “मकान”। ये जिंदगी गुज़ारने के लिए मनुष्य की मौलिक जरूरतें होती हैं। इन प्राथमिक जरूरतों के बिना एक मनुष्य जीवन की शुरुआत कभी नहीं की जी सकती है। भोजन भूख को मिटाकर मनुष्य शरीर को पोषक तत्व प्रदान करता है, कपड़े की आवश्यकता शरीर ढँकने के साथ ही साथ शरीर को सर्द, गर्म से बचाने के लिए होती है। अब बात करें घर या मकान की तो, ये मनुष्य को धूप और बारिश से बचाने के साथ ही सुरक्षा और आश्रय देता है।
हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग नए घर में प्रवेश से पहले शुभ मुहूर्त के अंतर्गत पूजा और हवन करवाने के बाद ही प्रवेश करते हैं। यहाँ तक की नयी संपत्ति की नीव रखने या खरीदने से पहले भी विशेष रूप से शुभ मुहूर्त में पूजा तथा यज्ञ करवाया जाता है। किसी भी शुभ कार्य या आयोजन को करने से पूर्व लोग विशेष रूप से शुभ मुहूर्त और दिन निकलवाते हैं, इसके बाद ही उस कार्य को संपन्न किया जाता है। एक बच्चे के जन्म के बाद नाम रखने के लिए विशेष रूप से (नामकरण मुहूर्त) शुभ मुहूर्त निकलवाने से लेकर उसकी शादी का शुभ मुहूर्त (विवाह मुहूर्त) वैदिक हिन्दू पंचांग से प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार से कोई भी संपत्ति खरीदने से पहले संपत्ति खरीदने के मुहूर्त की जानकारी अवश्य ले लेनी चाहिए। इससे संपत्ति खरीदने के शुभ मुहूर्त और अनुकूल समय की जानकारी मिल जाती है। इन शुभ मुहूर्त में घर या संपत्ति खरीदने से व्यक्ति को फलदायी परिणाम मिलते हैं और व्यक्ति को उस संपत्ति का भरपूर आनंद मिल पाता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार संपत्ति क्रय
वैदिक ज्योतिष विभिन्न योग और दशाओं की जानकारी देता है और ग्रहों एवं नक्षत्रों को एक साथ संरेखित करता है। कुंडली का चौथा भाव खासतौर से सही समय पर संपत्ति पर मालिकाना हक़ प्राप्त करने और संपत्ति खरीदने के समय के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुंडली में “सुख स्थान” के नाम से जान जाने वाला ये भाव विशेष रूप से घर, समृद्धि, भूमि, चल तथा चल संपत्ति और वाहन आदि का कारक होता है। ज्योतिषीय आधारों पर इस घर का विश्लेषण करने से ख़ासतौर से इस बात की जानकारी मिलती है की किस संपत्ति या जमीन को खरीदने में निवेश करना है और कब करना है।
इस श्रेणी को नियंत्रित करने के लिए जो ग्रह जिम्मेदार हैं वो निम्नलिखित हैं।
● मंगल: मंगल ग्रह को विशेष रूप से नैसर्गिक कारक ग्रह के रूप में जाना जाता है, जो संपत्ति, भूमि और उस स्थान को दर्शाता है जहाँ आप रहते हैं।
● शुक्र: शुक्र ग्रह को सौंदर्य और विलासिता का प्रतीक माना जाता है, इसलिए कुंडली में इस ग्रह का स्थान दर्शाता है की आपका घर कितना सुन्दर, आरामदेह और विलासिता पूर्ण होगा।
● शनि: इस ग्रह को भी निर्माण, भूमि और संपत्ति का कारक माना जाता है।
संपत्ति क्रय हेतु शुभ मुहूर्त का महत्व
जिस तरह से हम किसी नए कार्य की शुरुआत के लिए और शुभ मुहूर्त की गणना करने के लिए किसी ज्योतिषी से सलाह लेते हैं, वैसे ही किसी अचल संपत्ति, ज़मीन, संपत्ति की खरीदारी या निवेश करने से पहले भी ऐसा जरूर करना चाहिए। मुहूर्त का विशेष अर्थ है “शुभ समय”, जो कि किसी भी धार्मिक और भविष्य के लिए किये जाने वाले महत्वपूर्ण कार्यों को करने के लिए उपयुक्त और शुभ समय की जानकारी देता है। शुभ मुहूर्त में किसी भी कार्य को करने से हमेशा उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। इस तरह से, इस दौरान किसी भी संपत्ति या भूमि का अधिकार प्राप्त करना या उसे क्रय करना भविष्य के लिए ख़ासा फलदायी साबित हो सकता है। घर या संपत्ति खरीदने के लिए इस विचार के साथ आगे बढ़ने के लिए इस पृष्ठ पर उल्लिखित मुहूर्त को देखें।
घर या संपत्ति खरीदने से पहले इन ज्योतिषीय संयोजनों का अवश्य ध्यान रखें
किसी भी चल अचल संपत्ति, भूमि या जमीन जायदाद में निवेश करने से पहले, यहाँ निम्नलिखित ग्रहों के संयोजन का पालन जरूर करना चाहिए ।
● जब किसी की कुंडली का मूल्यांकन किया जाता है, तो सही समय की पहचान करने के लिए महादशा को अवश्य देखा जाना चाहिए।
● दूसरे, चौथे, नवें और ग्यारहवें भाव की महादशा को घर, संपत्ति आदि खरीदने के लिए विशेष लाभकारी माना जाता है।
● कुंडली में चंद्रमा, शुक्र और राहु की दशा कम उम्र में घर खरीदने के लिए जिम्मेदार मानी जाती है।
● इस प्रकार से, कुंडली में बृहस्पति की स्थिति जातक को 30 वर्ष की आयु के अंतर्गत संपत्ति का मालिकाना हक़ दिलाने के लिए जिम्मेदार होती है।
● कुंडली में बुध की स्थिति जातक को 32 से 36 वर्ष की आयु में गृह सुख प्राप्त करने के लिए अनुकूल होती है।
● कुंडली में सूर्य और मंगल की स्थिति अधेड़ उम्र में संपत्ति सुख प्रदान करने का कारक मानी जाती है।
● यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि और केतु की स्थिति एक साथ होती है तो उसे 44 से 52 वर्ष की आयु में घर का सुख प्राप्त होता है।
संपत्ति के चौथे भाव में ग्रहों की स्थिति
संकेत निधि के अनुसार, जब कुंडली के चौथे भाव या संपत्ति भाव में बुध की स्थिति होती है, तो जातक को एक कलात्मक रूप से निर्मित सुन्दर घर की प्राप्ति होती है। दूसरी तरफ यदि कुंडली के इस भाव में चंद्रमा की स्थिति हो तो जातक एक नया घर खरीद सकता है। कुंडली में बृहस्पति की स्थिति घर को मजबूत और टिकाऊ बनाती है, वहीं कुंडली में शनि और केतु की स्थिति घर को कमजोर बनाती है। दूसरी तरफ कुंडली में मंगल की मजबूत स्थिति घर को आग से सुरक्षित रखती है और लाभकारी शुक्र ग्रह के प्रभाव से घर की खूबसूरती में वृद्धि होती है। अंत में, कुंडली में शनि और राहु की उपस्थिति के कारण व्यक्ति को पुराने घर पर अधिपत्य मिलता है।
जातक तत्व संपत्ति के बारे में टिप्पणियों को प्रकट करता है, जो कहता है कि:
● जब किसी व्यक्ति की कुंडली के चौथे भाव में शुक्र या चंद्रमा उच्च स्थिति में होता है, तो व्यक्ति को बहु-मंजिला इमारत या घर प्राप्त होता है।
● कुंडली के चौथे भाव में मंगल और केतु की उपस्थिति होने से व्यक्ति को ईंट का घर मिलता है।
● इसी प्रकार से जब किसी की कुंडली में सूर्य का प्रभाव होता है तो व्यक्ति को लकड़ी का घर और बृहस्पति के प्रभाव से घास का घर नसीब होता है।
कुंडली में योग का मूल्यांकन
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चौथा भाव पैतृक लाभ का विश्लेषण और निर्धारण करने के लिए जिम्मेवार होता है। यहाँ हम कुछ ऐसे ग्रह योगों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके कुंडली में बनने पर, व्यक्ति भूमि या संपत्ति खरीदने के लिए सक्षम होता है।
● भूमि या संपत्ति खरीदने के लिए किसी भी व्यक्ति की कुंडली का चौथा भाव और मंगल की स्थिति उच्च एवं मजबूत होनी चाहिये।
● यदि कुंडली में चौथे भाव का स्वामी आरोही ग्रह के साथ चौथे भाव में स्थित हो तो, ऐसे में व्यक्ति भूमि और वाहन खरीदने में सक्षम होता है।
● यदि कुंडली में चतुर्थ और 10 वें घर के स्वामी ग्रह द्वारा त्रीणि या चतुर्थांश का निर्माण किया जाता है, तो व्यक्ति इत्मीनान से आनंद लेता है और घर के चारों ओर एक चारदीवारी बनाता है।
● यदि व्यक्ति की कुंडली के चौथे भाव में केवल मंगल की उपस्थिति रहती है तो, व्यक्ति को संपत्ति का सुख तो जरूर मिलता है लेकिन वो संपत्ति हमेशा कानूनी मामलों में संलिप्त रहती है।
● जब चौथे घर का स्वामी दशा या अंर्तदशा के दौरान मंगल या शनि के साथ संबंध स्थापित करता है, तो व्यक्ति मालिकाना अधिकार हासिल करने के लिए बाध्य होता है।
● जब बृहस्पति कुंडली में आठवें घर से संबंधित होता है, जो कि उम्र और दीर्घायु का प्रतिनिधित्व करता है, तो व्यक्ति को पैतृक संपत्ति की प्राप्ति होती है।
● जब चौथे, आठवें और ग्यारहवें घर का एक साथ जुड़ाव होता है, तो किसी की अपनी संपत्ति हासिल करने की संभावना बढ़ जाती है।
● एक व्यक्ति दूर या विदेशों में एक संपत्ति खरीदने या निवेश करने में सक्षम हो जाता है, जब चौथे भाव का बारहवें घर के साथ जुड़ाव होता है।
● जब चतुर्थ भाव में मंगल,शुक्र और शनि की स्थिति बनती है, तो व्यक्ति बहुत सारे सौंदर्य से परिपूर्ण घरों को प्राप्त करता है।
वैदिक ज्योतिष के अंतर्गत किसी भी शुभ कार्य का मुहूर्त जानने के लिए हमें पंचांग की आवश्यकता होती है। पंचांग के द्वारा ही विभिन्न प्रकार के वार, तिथि, नक्षत्र, करण तथा योग की जानकारी प्राप्त होती है। इसी पंचांग के अंतर्गत मुहूर्त का ध्यान करते समय हमें पंचक का विशेष ध्यान रखना होता है क्योंकि पंचक लगने का समय मुहूर्त शास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
पंचक क्या है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार 5 ऐसे नक्षत्र हैं जिनके विशेष संयोग से बनने वाले योग को पंचक कहा जाता है। यह पांच नक्षत्र शुभ कार्यों के लिए दूषित माने जाते हैं इसी कारण कुछ विशेष कार्यों को पूर्ण करने से पहले पंचक का विशेष ध्यान रखा जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र चक्र में 27 नक्षत्रों का वर्णन किया गया है। इन नक्षत्रों के आधार पर ही सभी 12 राशियों में सभी 27 नक्षत्रों को विभक्त किया गया है। जिसके अनुसार एक राशि में लगभग सवा दो नक्षत्र आते हैं। एक नक्षत्र का मान 13 अंश 20 मिनट होता है और प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं जिसमें प्रत्येक चरण 3 अंश 20 मिनट का होता है। एक राशि का मान 30 अंश का होता है। जब चंद्रमा अपनी गति करते हुए कुंभ और मीन राशि में गोचर करते हैं तो उसी समय पंचक लगते हैं।
कौन से हैं पंचक नक्षत्र?
जैसे ही चंद्र देव कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं। धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण का प्रारंभ होता है। उसके बाद शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती से होकर चंद्र देव आगे बढ़ जाते हैं। इस प्रकार इन पांचों नक्षत्र में गति करते हुए चंद्र देव को लगभग 5 दिन का समय लगता है यही 5 दिन और यही पांच नक्षत्र पंचक कहलाते हैं। चूँकि 27 दिन में चंद्र देव सभी राशियों में भ्रमण करते हुए दोबारा उसी राशि में प्रवेश कर जाते हैं। इसलिए 27 दिन की आवृत्ति के बाद पुनः पंचक लगते हैं।
पंचक का महत्व
हिंदू संस्कृति में सभी कार्यों को मुहूर्त देखकर करने का विधान है। शुभ मुहूर्त में किए गए कार्य आसानी से तथा सफलता दायक होते हैं तथा मुहूर्त के बिना किए गए कार्यों में सफलता मिलने में संदेह होता है। इसी मुहूर्त का ध्यान रखते हुए कुछ विशेष कार्यों के निमित्त पंचक को विशेष महत्व दिया गया है।
पंचक के अनुसार कार्य की आवृत्ति
पंचक में पांच नक्षत्र का योग होता है इसलिए माना जाता है कि पंचक के समय में यदि कोई अशुभ कार्य हो जाए तो वह 5 बार पुनः होता है। अर्थात उसके बाद पांच बार उसकी पुनरावृत्ति होती है। इसलिए पंचक के दौरान हुए अशुभ कार्य का निवारण करना अति आवश्यक हो जाता है। विशेष रुप से यदि पंचक के दौरान किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो घर परिवार में पांच लोगों पर मृत्यु के समान संकट मंडराता रहता है। इसलिए उसकी मृत्यु के उपरांत दाह संस्कार के समय आटे और चावल के 5 पुतले बनाकर मृतक के साथ में उनका भी दाह संस्कार कर दिया जाता है ताकि परिवार के अन्य सदस्यों पर से पंचक के संकट की समाप्ति हो जाए और उन्हें किसी प्रकार का कोई कष्ट न उठाना पड़े।
पंचक के प्रकार
प्रत्येक दिन के हिसाब से पंचकों का वर्गीकरण किया गया है, अर्थात किसी खास दिन शुरू होने वाले पंचक एक अलग नाम से जाने जाते हैं और उनका अलग-अलग प्रभाव भी होता है।आइए जानते हैं विभिन्न प्रकार के पंचक के बारे में:
1. रोग पंचक
जब पंचक का प्रारंभ रविवार के दिन होता है तो ऐसे पंचक को रोग पंचक कहते हैं। रोग पंचक के कारण आने वाले 5 दिन विशेष रुप से सर्व कष्ट और मानसिक परेशानियों को देने वाले होते हैं। इस पंचक में शुभ कार्यों को सर्वथा त्यागना चाहिए क्योंकि यह हर तरह के शुभ कार्यों में अशुभ माने जाते हैं।
2. राज पंचक
जब पंचक सोमवार के दिन से शुरू होते हैं तो ऐसे पंचक को राज पंचक कहा जाता है। आमतौर पर यह पंचक शुभ माने जाते हैं और उनके प्रभाव से आने वाले सभी 5 दिन कार्य में सफलता और सरकारी कामकाज से लाभ दिलाते हैं तथा संपत्ति से जुड़े काम करने के लिए भी राज पंचक काफी उपयुक्त होता है।
3. अग्नि पंचक
मंगलवार के दिन से शुरू होने वाले पंचक अग्नि पंचक के नाम से जाने जाते हैं। इस दौरान आप कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फ़ैसलों पर अपना हक प्राप्त करने के लिए अनेक कार्य कर सकते हैं। यह पंचक अशुभ माना जाता है इसी वजह से इस पंचक में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य तथा मशीनरी और औजार के काम की शुरुआत करना अशुभ होता है। क्योंकि ये देखा जाता है कि इस पंचक पर इन कार्यों को करने से नुकसान होने की पूरी संभावना रहती है।
4. चोर पंचक
शुक्रवार के दिन से शुरू होने वाले पंचक चोर पंचक कहलाते हैं। चोर पंचक विशेष रूप से यात्रा करने के उद्देश्य से त्याज्य माने जाते हैं। इसके अलावा इस पंचक पर किसी भी प्रकार का व्यापार, लेन-देन तथा किसी भी प्रकार का सौदा नहीं करना चाहिए। यदि आप ऐसे कार्य करते हैं तो आपको विशेष रूप से धन की हानि हो सकती है।
5. मृत्यु पंचक
इसी क्रम में जब पंचक की शुरुआत शनिवार के दिन से होती है तो ऐसा पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है। इस पंचक के दौरान मृत्यु तुल्य कष्टों की प्राप्ति हो सकती है और यह पूरी तरह से अशुभ माना जाता है। इस दौरान आपको किसी भी प्रकार के कष्टकारी कार्य और किसी भी प्रकार के जोखिम भरे कामों को करने से बचना चाहिए, क्योंकि इस पंचक के प्रभाव से आपको किसी प्रकार की चोट लग सकती है अथवा आपके साथ कोई दुर्घटना भी हो सकती है। साथ ही अपने लोगों तथा अन्य लोगों से भी विवाद की स्थिति बन सकती है।
विशेष नोट: इसके अतिरिक्त जब कोई पंचक बुधवार या बृहस्पतिवार को शुरू होता है तो उनमें उपरोक्त किसी भी प्रकार की बात का पालन करना आवश्यक नहीं होता। इन 2 दिनों में शुरू होने वाले पंचक के दौरान उपरोक्त बताए गए कार्यों के अलावा किसी भी तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
पंचक के दौरान न किए जाने वाले कार्य
हिंदू धर्म में शास्त्रों के अनुसार पंचक के समय के दौरान कुछ ऐसे कार्य बताए गए हैं जिन्हें नहीं करना चाहिए क्योंकि इनका समय अनुकूल नहीं होता।
● इनमें विशेष रूप से दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना वर्जित माना जाता है।
● साथ ही यदि आपका घर का निर्माण हो रहा है तो पंचक के समय में घर की छत नहीं बनानी चाहिए। अर्थात लेंटर नहीं डालना चाहिए।
● इसके अलावा पंचक के दौरान लकड़ी, कण्डा या अन्य प्रकार के ईंधन का भंडारण नहीं करना चाहिए।
● इनके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे कार्य है जो पंचक के समय में नहीं करनी चाहिए उनमें विशेष रूप से किसी भी प्रकार का पलंग खरीदना अथवा पलंग बनवाना, बिस्तर खरीदना या बिस्तर का दान करना भी कष्टदायक माना जाता है।
इसी लिए इस दौरान यह सभी कार्य नहीं किए जाते। हालांकि इन सभी कार्यों के अतिरिक्त अन्य कोई भी कार्य आप पंचक के दौरान कर सकते हैं।
पंचक के दौरान किए जाने वाले कार्य
जैसा कि हमने पहले भी बताया की पंचक सभी कार्यों के लिए अशुभ नहीं होते बल्कि कई कार्यों को करने के लिए पंचक अत्यंत शुभकारी माने जाते हैं। आइए जानते हैं कि कौन से हैं वे कार्य जो पंचक के दौरान किए जा सकते हैं:
पंचक के दौरान जो नक्षत्र होते हैं उनमें कुछ विशेष योगों का निर्माण भी होता है। जैसे कि धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र यात्रा करने, मुंडन कार्य, तथा व्यापार आदि शुभ कार्यो के लिए प्रशस्त माने गए हैं।
इसके अलावा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र वार के साथ मिलकर सर्वार्थ सिद्धि योग बनाता है। हालांकि हम पंचक को अशुभ की संज्ञा देते हैं लेकिन पंचक के दौरान अन्य शुभ कार्य जैसे कि सगाई समारोह, विवाह आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं।
पंचक के तीन नक्षत्र पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद तथा रेवती यदि रविवार के दिन पड़े तो विभिन्न प्रकार के शुभ योग बनाते हैं जिनमें चर, स्थिर और प्रवर्ध मुख्य हैं। इन योग के कारण व्यक्ति को सफलता की प्राप्ति होती है व उसे धन लाभ भी होता है।
मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ मुहूर्त के बारे में विशेष रूप से प्रकाश डालता है। इसके अनुसार यदि पंचक के नक्षत्रों में से धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र चल संज्ञक माने जाते हैं। इसलिए नक्षत्रों के दौरान कोई भी चलने वाला काम अर्थात गति वाला काम करना अत्यंत अशुभ होता है। जैसे कि किसी प्रकार की यात्रा करना, वाहन खरीदना, कल पुर्जे और मशीनरी आदि से संबंधित काम करना आदि। वहीं दूसरी ओर उत्तरभाद्र पद नक्षत्र स्थिर संज्ञक नक्षत्र होता है। इसलिए इस नक्षत्र के दौरान ऐसे कार्य किए जाते हैं जिनमें स्थिरता की आवश्यकता होती है। इनमें मुख्य रूप से गृह प्रवेश करना, शांति पूजन कराना, बीज बोना तथा जमीन से जुड़े स्थिर प्रकृति के कार्य किए जा सकते हैं।
अंतिम नक्षत्र रेवती मैत्री संज्ञक नक्षत्र होता है। इसलिए इस नक्षत्र के दौरान किसी भी प्रकार के वाद विवाद का निपटारा करना, व्यापार अथवा कपड़े से संबंधित सौदा करना, नए आभूषण खरीदना आदि संबंधित शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
पंचक के दौरान इन बातों का रखें विशेष ध्यान
शास्त्रों में कुछ ऐसी बातें बताई गई हैं जिन्हें पंचक के दौरान विशेष रुप से ध्यान में रखा जाता है।
1. इनमें प्रत्येक पंचक के लिए विशेष रूप से अलग अलग बातें बताई गई हैं, जैसे कि जिस समय धनिष्ठा नक्षत्र का पंचक हो, उस समय किसी प्रकार की लकड़ी, ईंधन, घास आदि एकत्रित नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से आग लगने का भय होता है।
2. यदि पंचक के दौरान किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो पंचक के समय में उसके शव का अंतिम संस्कार करने से पूर्व किसी विशेष और योग्य पंडित से पूरी जानकारी लेनी चाहिए और पंचक के समय में शव का अंतिम संस्कार करने से बचना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो गरुड़ पुराण के अनुसार उसके साथ आटे और कुश के 5 पुतलों का भी दाह संस्कार पूरे विधि विधान के अनुसार किया जाना चाहिए अन्यथा मृतक के कुटुंब और निकट के लोगों पर मृत्यु का संकट मंडराता रहता है।
3. पंचक के दौरान दक्षिण दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा को मृत्यु के देवता यम की दिशा माना जाता है। ऐसे में पंचक के दौरान दक्षिण दिशा की यात्रा हानिकारक और कष्टदायक हो सकती है।
4. पंचक के दौरान रेवती नक्षत्र चल रहा हो तो घर की छत नहीं बनानी चाहिए अर्थात लेंटर नहीं डालना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से धन की हानि होती है और परिवार में कलेश की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
5. पंचक के दौरान किसी भी प्रकार का पलंग बनवाना भी बड़े से बड़े संकट को निमंत्रण दे सकता है। विशेष रुप से धनिष्ठा नक्षत्र के पंचक में अग्नि का भय होता है और शतभिषा नक्षत्र में कलह होने की संभावना होती है।
6. पूर्वाभाद्रपद के पंचक में रोग होने की संभावना काफी होती है तथा उत्तरा भाद्रपद के पंचक में धन हानि और कष्ट मिलने की संभावना होती है।
7. इसके अलावा रेवती नक्षत्र के पंचक में मानसिक कष्ट होने की प्रबल संभावना होती है। इसलिए पंचक के दौरान जो कार्य निषेध माने जाते हैं उनका त्याग कर अन्य शेष शुभ कार्यों का संपादन किया जा सकता है।
हम आशा करते हैं कि पंचक के बारे में दी गई जानकारी को पढ़कर आपके ज्ञान में वृद्धि हुई होगी और अब आप पंचक के बारे में सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के बाद अपने जीवन में सफलता पा सकेंगे।
राहु काल को कई बार राहुकाल भी लिखा जाता है। जो लोग ज्योतिष के सिद्धान्तों में विश्वास करते हैं, वे इसे बहुत अधिक महत्व प्रदान करते हैं। विशेषतः- दक्षिण भारत में लोगों का यह मत है। कि दैनिक जीवन की गतिविधियों में राहु काल का विचार अत्यन्त आवश्यक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आख़िरकार राहुकाल है। क्या और इसका क्या उपयोग है? यदि नहीं, तो आइए जानते हैं इस रहस्यपूर्ण समयावधि के बारे में–जिसे “राहु काल” के नाम से जाना जाता है।
राहु काल क्या है।
क्या आप जानते हैं। कि वस्तुतः राहु काल है। क्या? यदि आम भाषा में कहा जाए तो यह प्रतिदिन आने वाला वह काल-खण्ड है जो वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुभ नहीं माना जाता है। इस काल पर राहु का स्वामित्व होता है। इस समय-अवधि में कोई भी महत्वपूर्ण कार्य न करने का विधान है। यदि इस समय में किसी काम को शुरू किया जाता है तो मान्यता है कि वह काम कभी सकारात्मक परिणाम नहीं देता है। यद्यपि वे गतिविधियाँ जो राहुकाल से पहले ही आरम्भ कर दी गई हों, उन्हें करते रहने से कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है।
सोमवार को दूसरा, मंगलवार को सातवाँ, बुधवार को पाँचवाँ, गुरुवार को छठा, शुक्रवार को चौथा, शनिवार को तीसरा और रविवार को आठवाँ हिस्सा राहु काल कहलाता है।
उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि किसी क्षेत्र में हर रोज़ सूर्योदय का समय प्रातः ६ बजे और सूर्यास्त का समय शाम ६ बजे है।
सोम – प्रातः 7:30 - प्रातः 9:00
मंगल – सांय 3:00 - सायं 4:30
बुध – प्रातः 12:00 - सायं 1:30
बृहस्पति – सायं 1:30 - सायं 2:00
शुक्र – प्रातः 10:30 - प्रातः 12:00
शनि – प्रातः 9:00 - प्रातः 10:30
रवि – सायं 4:30 - सायं 6:00
यह राहुकाल गणना करने की विधि को ठीक तरह से समझने के लिए एक उदाहरण मात्र है। इसे उपयोग में नहीं लिया जा सकता है, क्योंकि विभिन्न स्थानों में प्रतिदिन सूर्यास्त व सूर्योदय का समय भिन्न-भिन्न होता है।
राहु काल के दौरान क्या न करें।
कोई भी वह कार्य जिसे महत्वपूर्ण या शुभ माना जाता है, उसे राहु काल में न करना ही उचित समझा गया है। जो लोग इस सिद्धान्त में विश्वास रखते हैं वे इस दौरान नए कार्य का आरम्भ, विवाह, गृह-प्रवेश, कोई चीज़ ख़रीदना और व्यापार आदि नहीं करने की चेष्टा करते हैं। हालाँकि जो काम पहले शुरू हो चुके हों उनके राहु काल के दौरान जारी रहने से कोई हानि नहीं होती है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अमृत सिद्धि योग को अत्यंत शुभ योग माना गया है। यह योग नक्षत्र एवं वार के संयोग से बनता है। ऐसा कहा जाता है कि इस योग में किए गए सभी कार्य पूर्ण रूप से सफल होते हैं, इसलिए समस्त मांगलिक कार्य के शुभ मुहूर्त के लिए इस योग को प्राथमिकता दी जाती है। इस योग में किसी नए कार्य को प्रारंभ करना भी शुभ माना जाता है। जैसे- व्यापार संबंधी समझौता, नौकरी के लिए आवेदन, ज़मीन, वाहन, एवं स्वर्ण की ख़रीदारी, विदेशगमन आदि।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन कारणों से अमृत सिद्धि योग बनता है-
1. हस्त नक्षत्र यदि रविवार के दिन हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
2. मृगशिरा नक्षत्र यदि सोमवार के दिन पड़े तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
3. अश्विनी नक्षत्र मंगलवार के दिन हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
4. अनुराधा नक्षत्र बुधवार के दिन हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
5. पुष्य नक्षत्र यदि गुरुवार के दिन हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
6. रेवती नक्षत्र यदि शुक्रवार के दिन पड़े तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
7. शनिवार के दिन रोहिणी नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
अमृत सिद्धि योग इस दिन पड़े तो इन कार्यों से करें परहेज़
अमृत सिद्धि योग मंगलवार के दिन पड़े तो गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों को करना अशुभ माना गया है। इसी प्रकार यदि यह योग बृहस्पतिवार के दिन पड़े तो शादी-विवाह करना वर्जित माना गया है और शनिवार के दिन इस योग में यात्रा करना उपयुक्त नहीं माना गया है।
हिन्दू धर्म के सभी 16 संस्कारों में नामकरण संस्कार को बेहद अहम माना जाता है। वैसे तो आजकल आधुनिक युग में माँ बाप अपने बच्चों का नाम यूँ ही किसी भी दिन रख देते हैं। लेकिन हमारी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर किसी भी नवजात शिशु का नाम बाक़ायदा नामकरण संस्कार के दौरान ही सभी बड़े बुजुर्गों की निगरानी में रखना चाहिए। किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसके नाम का महत्व सबसे ख़ास होता है। क्योंकि उसे उसकी पहचान उसके नाम से ही मिलती है। आज इस लेख के जरिये हम आपको नामकरण संस्कार के लाभ और साथ ही इस साल इसके विशेष मुहूर्त के बारे में भी बताने जा रहे हैं। नामकरण संस्कार का विशेष मुहूर्त पर होना भी ख़ासा मायने रखता है। जिस प्रकार से अन्य अहम् कार्यों और प्रयोजनों के लिए मुहूर्त देखकर ही उसे संपन्न करवाया जाता है, ठीक उसी प्रकार से शिशु का नाम भी शुभ मुहूर्त में ही रखना चाहिए। धार्मिक आधारों पर ही नहीं बल्कि ज्योतिषीय आधारों पर भी नामकरण संस्कार को अहम माना गया है। आईये जानते हैं। इस साल नामकरण संस्कार के लिए कौन से मुहूर्त हैं। ख़ास और क्या है इसकी अहमियत।
नामकरण मुहूर्त के लिए तिथि, नक्षत्र और मास विचार
1. शिशु के जन्म के ग्यारहवें या बारहवें दिन के बाद नामकरण संस्कार करवा लेना चाहिए।
2. ये संस्कार बच्चे के जन्म के दस दिन के सूतक की अवधि उपरान्त करवाना बेहतर रहता है।
3. बालक के जन्म से 10वें दिन जब सूतिका का शुद्धिकरण यज्ञ संपन्न कराया जाता है, तभी नामकरण संस्कार कराना चाहिए।
4. ध्यान रखें की चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी पर इस संस्कार को ना करवाएं। अमावस्या तिथि को त्यागना भी बेहतर रहता है।
5. यदि हम वार की बात करें तो नामकरण संस्कार किसी भी शुभ दिन जैसे सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार के दिन करवाया जा सकता है।
6. नक्षत्रों में अश्वनी, शतभिषा, स्वाति, चित्रा, रेवती, हस्त, पुष्य, रोहिणी, मृगशिरा और अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, उत्तराफ़ाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, श्रवण नक्षत्रों को नामकरण संस्कार के लिए बेहद शुभ माना जाता है।
7. व्यक्ति विशेष की कुल परंपरा के आधार पर नवजात शिशु का नामकरण संस्कार साल भर के बाद भी करवाया जा सकता है।
8. ज्योतिषीय मान्यताओं के आधार पर नामकरण के समय बच्चे के दो नाम रखे जाते हैं, एक गुप्त नाम और दूसरा प्रचलित नाम।
9. नामकरण संस्कार के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है। कि बच्चे का नाम उस नक्षत्र के अनुसार ही रखा जाए जिस नक्षत्र में उसका जन्म हुआ है। हालाँकि ज्योतिषीय मार्गदर्शन में इसको संपन्न करवाना बेहतर रहता है।
नामकरण संस्कार के लिए इस प्रकार से निकालें शुभ मुहूर्त
किसी भी संस्कार के लिए मुहूर्त लोग ज्योतिषाचार्य या किसी कुशल पंडित से ही निकलवाते हैं। इसलिए शिशु के जन्म के बाद विशेष रूप से किसी पंडित को बुलाकर नामकरण संस्कार के लिए शुभ मुहूर्त निकलवाया जाता है। इस दौरान पंडित जी पंचांग की मदद से शुभ मुहूर्त की गणना करते हैं।
नामकरण संस्कार के विशेष लाभ
हिन्दू धर्म के पवित्र 16 संस्कारों में नामकरण एक महत्वपूर्ण संस्कार है। जैसा की आप सभी इस बात को भली भांति समझते होंगें की किसी भी व्यक्ति के जीवन में नाम की क्या अहमियत होती है। समाज में व्यक्ति को पहचान उसके नाम से ही मिलती है। जाहिर है। कि नामकरण संस्कार का महत्व इस प्रकार से अपने आप ही बढ़ जाता है। हालांकि जन्म के बाद शिशु को अक्सर माँ बाप या रिश्तेदार स्वयं ही किसी ना किसी नाम से पुकारने लगते हैं। लेकिन हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जन्म के ग्यारहवें या बारहवें दिन ही सम्पूर्ण विधि विधान के साथ शुभ मुहूर्त में नामकरण संस्कार का समापन होना चाहिए। इस संस्कार के दौरान पंडित या पुरोहित शिशु की जन्मकुंडली के आधार पर और ग्रह नक्षत्रों की गणना करने के बाद ही उसका नाम रखते हैं। इस संस्कार को करवाने से शिशु को ना केवल बाहरी बल्कि आंतरिक लाभ भी मिलता है। नामकरण संस्कार अवश्य करवाना चाहिए क्योंकि इससे शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास में भी मदद मिलती है। इसके अलावा इस संस्कार को करवाने का एक लाभ ये भी है की इससे शिशु की आयु और बुद्धि में भी वृद्धि होती है। विशेष रूप से नामकरण संस्कार के द्वारा शिशु को एक नयी पहचान मिलती है, जो उसके भविष्य के लिए विशेष अहम होती है।
नामकरण संस्कार के दौरान बरती जाने वाली विशेष सावधानियां
1. नामकरण संस्कार हमेशा ही किसी पवित्र और साफ़ सुथरे स्थान पर ही करना चाहिए। वैसे तो इसे घर पर ही कराएं लेकिन यदि संभव ना हो तो किसी धार्मिक स्थल या मंदिर में भी इस संस्कार का आयोजन किया जा सकता है।
2. इस संस्कार के दौरान शिशु का नाम उसकी राशि के अनुसार ही रखें। ऐसा ना करने से भविष्य में बच्चे को हानि होने की संभावना रहती है। नामकरण मुहूर्त का निर्धारण शिशु की ग्रह दशा और भविष्य फल के आधार पर भी की जा सकती है।
3. नामकरण संस्कार हमेशा शुभ मुहूर्त देखकर ही कराना चाहिये।
4. इस बात का ख़ास ध्यान रखें की नामकरण संस्कार के दिन घर पर मीट, मछली, अंडे जैसे तामसी भोजन सहित मदिरापान भूलकर भी ना करें।
5. नामकरण संस्कार के दिन सुबह के वक़्त यदि संभव हो तो गौ माता को रोटी खिलाएं।
6. इस दिन बच्चे के पिता भूलकर भी दाढ़ी और बाल ना कटवाएं।
7. इस दिन घर आये किसी भी मेहमान के साथ बुरा बर्ताव ना करें।
8. परिवार के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद बच्चे को जरूर दिलाएँ।
9. नामकरण संस्कार के दौरान शिशु के माता पिता के साथ ही परिवार के अन्य बड़े बुजुर्गों का शामिल होना भी अनिवार्य है।
10. इस दिन भूखों को खाना खिलाने से शिशु को विशेष लाभ प्राप्त होता है।
भद्रा
जब भी मुहूर्त की बात करते हैं। तो सबसे पहले हमारे मन में भद्रा का नाम आता है। मुहूर्त के अंतर्गत भद्रा का विचार मुख्य रूप से किया जाता है क्योंकि यह वास्तव में स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक में अपना प्रभाव दिखाती है। इसलिए किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए भद्रा वास का विचार किया जाता है।
कौन है भद्रा?
आइये अब हम भद्रा के बारे में जानते हैं। कि वास्तव में भद्रा कौन हैं। और इनका इतना महत्व क्यों माना गया है? यदि हम धार्मिक दृष्टिकोण की बात करें तो इसके अनुसार भद्रा भगवान शनिदेव की बहन और सूर्य देव की पुत्री हैं। यह बहुत सुंदर थी लेकिन इनका स्वभाव काफी कठोर था। उनके उस स्वभाव को सामान्य रूप से नियंत्रित करने हेतु उन्हें पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण के रूप में मान्यता दी गई। जब कभी भी किसी शुभ तथा मांगलिक कार्य के लिए शुभ मुहूर्त देखा जाता है तो उसमें भद्रा का विचार विशेष रूप से किया जाता है और भद्रा का समय त्यागकर अन्य मुहूर्त में ही कोई शुभ कार्य किया जाता है। लेकिन यह देखा गया है। कि भद्रा सदैव ही अशुभ नहीं होती बल्कि कुछ विशेष प्रकार के कार्यों में इसका वास अच्छे परिणाम भी देता है।
भद्रा की गणना
तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण मुहूर्त के अंतर्गत पंचांग के मुख्य भाग हैं। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है। कुल मिलाकर 11 करण होते हैं, जिनमें से चार करण शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न अचर होते हैं और शेष सात करण बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि चर होते हैं। इनमें से विष्टि करण को ही भद्रा कहा जाता है। चर होने के कारण ये सदैव गतिशील होती है। जब भी पंचांग की शुद्धि की जाती है तो उस समय भद्रा को विशेष महत्व दिया जाता है।
ऐसे जानें भद्रा वास
अब आइये जानते हैं कि भद्रा का वास कैसे ज्ञात किया जाता है।
कुम्भ कर्क द्वये मर्त्ये स्वर्गेऽब्जेऽजात्त्रयेऽलिंगे।
स्त्री धनुर्जूकनक्रेऽधो भद्रा तत्रैव तत्फलं।।
जब चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में होता है तो भद्रा स्वर्ग लोक में मानी जाती है और उर्ध्वमुखी होती है। जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में होता है तो भद्रा का वास पाताल में माना जाता है और ऐसे में भद्रा अधोमुखी होती है। वहीं जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में स्थित होता है तो भद्रा का निवास भूलोक अर्थात पृथ्वी लोक पर माना जाता है और ऐसे में भद्रा सम्मुख होती है। उर्ध्वमुखी होने के कारण भद्रा का मुंह ऊपर की ओर होगा तथा अधोमुखी होने के कारण नीचे की तरफ। लेकिन दोनों ही परिस्थितियों में भद्रा शुभ प्रभाव लेगी। इसके साथ ही सम्मुख होने पर भद्रा पूर्ण रूप से प्रभाव दिखाएगी।
पौराणिक ग्रथ मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार भद्रा का वास जिस लोक में भी होता है वहां भद्रा का विशेष रूप से प्रभाव माना जाता है। ऐसी स्थिति में जब चंद्रमा कर्क राशि, सिंह राशि, कुंभ राशि और मीन राशि में होगा तो भद्रा का वास भूलोक में होने से भद्रा सम्मुख होगी और पूर्ण रूप से पृथ्वी लोक पर अपना प्रभाव दिखाएगी। यही अवधि पृथ्वी लोक पर किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए वर्जित मानी जाती है, क्योंकि ऐसे में किए गए कार्य या तो पूर्ण नहीं होते या उनके पूर्ण होने में बहुत अधिक विलंब और रुकावटें आती हैं।
स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले च धनागम।
मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी ।।
संस्कृत ग्रंथ पियूष धारा के अनुसार जब भद्रा का वास स्वर्ग लोक पाताल लोक में होगा तब वह पृथ्वी लोक पर शुभ फल प्रदान करने में सक्षम होगी।
स्थिताभूर्लोस्था भद्रा सदात्याज्या स्वर्गपातालगा शुभा।
मुहूर्त मार्तण्ड के अनुसार जब भी भद्रा भूलोक में होगी तो उसका सदैव त्याग करना चाहिए और जब वह स्वर्ग तथा पाताल लोक में हो तो शुभ फल प्रदान करने वाली होगी।
अर्थात जब भी चंद्रमा का गोचर कर्क राशि, सिंह, कुंभ राशि तथा मीन राशि में होगा तो भद्रा पृथ्वी लोक पर होगी और कष्टकारी होगी। ऐसी भद्रा का त्याग करना श्रेयस्कर होगा।
भद्रा मुख तथा भद्रा पुच्छ
भद्रा के वास्तु के अनुसार ही उसका फल मिलता है। इस संबंध में निम्नलिखित मुक्ति पठनीय है।
भद्रा यत्र तिष्ठति तत्रैव तत्फलं भवति।
अर्थात भद्रा जिस समय जहां स्थित होती है। उसी प्रकार वहां पर फल देती है। तो आइये अब जानते हैं। कि कैसे होता है। भद्रा मुख और भद्रा पुच्छ का ज्ञान?
शुक्ल पूर्वार्धेऽष्टमीपञ्चदशयो भद्रैकादश्यांचतुर्थ्या परार्द्धे।
कृष्णेऽन्त्यार्द्धेस्या तृतीयादशम्योः पूर्वे भागे सप्तमीशंभुतिथ्योः।।
अर्थात शुक्ल पक्ष की अष्टमी तथा पूर्णिमा के पूर्वार्ध में और एकादशी कथा चतुर्थी के उत्तरार्ध में भद्रा होती है। कृष्ण पक्ष की तृतीया तथा दशमी के उत्तरार्ध में और सप्तमी तथा चतुर्थी के पूर्वार्ध में भद्रा होती है।
विशेष नोट: यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि एक पहर 3 घंटे का होता है। जिसके अनुसार एक दिन और एक रात में कुल मिलाकर आठ पहर होते हैं यानी कि 24 घंटे। उपरोक्त तालिका में बताए हुए पहर के पहले 2 घंटे अर्थात 5 घड़ी भद्रा का मुख होता है तथा उसे शुभ माना जाता है। दूसरी ओर ऊपरी तालिका में ही बताए हुए पहर के अंत का एक घंटा 15 मिनट यानि कि तीन घड़ी भद्रा की पुच्छ होती है।
दूसरे शब्दों में कहें तो मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार चंद्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की पांचवें प्रहर की 5 घड़ियों में भद्रा मुख होता है, अष्टमी तिथि के दूसरे प्रहर के कुल मान आदि की 5 घटियाँ, एकादशी के सातवें प्रहर की प्रथम 5 घड़ियाँ तथा पूर्णिमा के चौथे प्रहर के शुरुआत की 5 घड़ियों में भद्रा का मुख होता है। इसी प्रकार चंद्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया के 8वें प्रहर आदि की 5 घड़ियाँ भद्रा मुख होती है, कृष्ण पक्ष की सप्तमी के तीसरे प्रहर में आरंभ की 5 घड़ी में भद्रा मुख होता है। इसी प्रकार कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि का 6 प्रहर और चतुर्दशी तिथि का प्रथम प्रहर की 5 घड़ी में भद्रा मुख व्याप्त रहता है।
भद्रा की पुच्छ शुभ होने के कारण इसमें किसी भी प्रकार का शुभ कार्य कर सकते हैं। तिथि के उत्तरार्ध में होने वाली भद्रा यदि दिन में हो और किसी के पूर्वार्ध में होने वाली भद्रा यदि रात में हो तो शुभ मानी जाती है।
भद्रा के दौरान न किये जाने वाले कार्य
भद्रा को प्राय सभी शुभ और मांगलिक कार्यों में त्याज्य माना जाता है और जब भी भद्रा लग रही होती है तो उस समय शुभ कार्य संपादित नहीं किए जाते।
कार्येत्वाश्यके विष्टेरमुख, कण्ठहृदि मात्रं परित्येत।
अर्थात बहुत अधिक आवश्यक होने पर पृथ्वीलोक की भद्रा, कंठ, ह्रदय और भद्रा मुख को त्याग कर भद्रा पुच्छ में शुभ एवं मांगलिक कार्य संपन्न किये जा सकते हैं।
ईयं भद्रा शुभ-कार्येषु अशुभा भवति।
अर्थात किसी भी शुभ कार्य में भद्रा अशुभ मानी जाती है। हमारे ऋषि मुनियों ने भी भद्रा काल को अशुभ तथा दुखदायी बताया है।
न कुर्यात मंगलं विष्ट्या जीवितार्थी कदाचन।
कुर्वन अज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत।। ---महर्षि कश्यप
महर्षि कश्यप के अनुसार जो कोई भी प्राणी अपना जीवन सुखी बनाना चाहता है और आनंद पूर्वक जीवन बिताना चाहता है। उसे भद्रा काल के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यदि भूलवश कोई ऐसा कार्य हो जाए तो उसका शुभ फल नष्ट हो जाता है।
भद्रा काल के दौरान मुख्य रूप से मुंडन संस्कार, विवाह संस्कार, गृहारंभ, कोई नया व्यवसाय आरंभ करना, गृह प्रवेश, शुभ यात्रा, शुभ उदेश्य से किए जाने वाले सभी कार्य तथा रक्षाबंधन आदि मांगलिक कार्यों को नहीं करना चाहिए।
भद्रा के दौरान किये जाने वाले कार्य
लगभग सभी शुभ कार्यों के लिए भद्रा का निषेध माना गया है। लेकिन कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनकी प्रकृति अशुभ होती है। ऐसे कार्य भद्रा काल के दौरान किए जा सकते हैं। इनमें मुख्य रूप से शत्रु पर आक्रमण करना, अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करना, ऑपरेशन करना, किसी पर मुकदमा आरंभ करना, आग जलाना, भैंस, घोड़ा, ऊँट आदि से संबंधित कार्य तथा किसी वस्तु को काटना, यज्ञ करना तथा स्त्री प्रसंग करना आदि कार्य इसमें सम्मिलित हैं। यदि इन कार्यों को भद्र काल के दौरान किया जाए तो इनमें मनोवांछित सफलता मिल सकता हैं।
भद्रा का परिहार करने का तरीका
हमारे ज्योतिष शास्त्र की मुख्य विशेषता यह है। कि आम जीवन में आने वाली समस्याओं को दूर करने की दिशा में कुछ ऐसे उपाय सुझाए जाते है। जो मानव जीवन को पुष्पित और पल्लवित कर सकें। इसी क्रम में भद्रा के परिहार के उपाय बताए गए हैं।
सर्वप्रथम यह ज्ञात किया जाता है। कि भद्रा का वास कहां है। यदि भद्रा स्वर्ग लोक अथवा पाताल लोक में है तो परिहार की आवश्यकता नहीं होती केवल मृत्यु लोक में अर्थात पृथ्वी लोक पर भद्रा का वास होने पर विशेष रूप से हानिकारक माना जाता है और इसीलिए इसका परिहार किया जाता है। साथ ही साथ भद्रा के मुख और पुच्छ का विचार भी किया जाता है। भद्रा के परिहार के लिए सबसे अधिक प्रभावी भगवान शिव की आराधना करना माना जाता है। इसलिए यदि अत्यंत आवश्यक कोई कार्य आपको भद्रा वास के दौरान करना हो तो भगवान शिव की अराधना अवश्य करें।
इस संबंध में निम्नलिखित तथ्यों पर विचार किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में पीयूष धारा तथा मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार: —
दिवा भद्रा रात्रौ रात्रि भद्रा यदा दिवा।
न तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी।।
इसका तात्पर्य यह है कि यदि दिन के समय की भद्रा रात्रि में और रात्रि के समय की भद्रा दिन में आ जाए, तो ऐसी स्थिति में भद्रा का दोष नहीं लगता है। विशेष रुप से हंसी भद्रा का दोष पृथ्वी लोक पर नहीं माना जाता है। इस प्रकार की भद्रा को भद्रदायिनी अर्थात शुभ फल देने वाली भद्रा माना जाता है।
इसके अतिरिक्त निम्नलिखित बात भी विचारणीय है।
रात्रि भद्रा यदा अहनि स्यात दिवा दिवा भद्रा निशि।
न तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी।।
इस संबंध में एक और बात भी विचारणीय मानी जाती है।
तिथे पूर्वार्धजा रात्रौ दिन भद्रा परार्धजा।
भद्रा दोषो न तत्र स्यात कार्येsत्यावश्यके सति।।
अर्थात यदि आपको कोई अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य करना है। तो ऐसी स्थिति में उत्तरार्ध के समय की भद्रा दिन में तथा पूर्वार्ध के समय की भद्रा रात्रि में हो तब इसे शुभ ही माना गया है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है। कि यदि कभी भी आपको भद्रा के दौरान कोई शुभ कार्य करना आवश्यक हो जाए तो पृथ्वी लोक की भद्रा तथा भद्रा मुख-काल को छोड़कर तथा स्वर्ग व पाताल की भद्रा के पुच्छ काल में शुभ तथा मांगलिक कार्य संपन्न किए जा सकते हैं क्योंकि ऐसी स्थिति में भद्रा का परिणाम शुभ फलदायी होता है।
एक अन्य मत के अनुसार यदि आप भद्रा के दुष्प्रभावों से बचना चाहते हैं। तो आपको प्रातः काल उठकर भद्रा के निम्नलिखित 12 नामों का स्मरण तथा जाप करना चाहिए:
भद्रा के यह बारह नाम इस प्रकार हैं।
● धन्या
● दधिमुखी
● भद्रा
● महामारी
● खरानना
● कालरात्रि
● महारुद्रा
● विष्टि
● कुलपुत्रिका
● भैरवी
● महाकाली
● असुरक्षयकारी
यदि आप पूरी निष्ठा तथा विधि पूर्वक भद्रा का पूजन करते हैं। और भद्रा के उपरोक्त 12 नामों का स्मरण कर उनकी पूजा करते हैं। तो भद्रा का कष्ट आपको नहीं लगता और आपके सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं। हमारा मानना है। कि आपको किसी भी कार्य करने से पूर्व उचित एवं शुभ मुहूर्त का ही चुनाव करना चाहिए तथा उनसे संबंधित हर उन उपायों को अवश्य करना चाहिए जिससे आपका कार्य निर्विघ्न संपन्न हो सके।
शुभ होरा
मंगल:भूमि एवं कृषि, भाई, इंजीनियरिंग, खेल
सूर्य: राजनीति, सरकार का व्यवहार, सरकारी नौकरियां, अदालत, साहस
शुक्र: प्रेम, विवाह, गहने, मनोरंजन, नृत्य
बुध: व्यापार, शिक्षा, ज्योतिष, पढ़ना और लिखना
चंद्रमा: यात्रा, रोमांस, गहने, कला
शनि: श्रम, लोहा, तेल, नौकर, त्याग
बृहस्पति: सबकुछ के लिए शुभकामनाएं: काम, नौकरियां, व्यवसाय
होरा11 क्या है।
होरा ज्योतिष शास्त्र का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। शुभ मुहूर्त के अभाव में कोई मंगल कार्य न रुके इसके लिए ज्योतिष में होरा चक्र की व्यवस्था बनाई गई है। ऐसा कहा जाता है। कि होरा काल में किया गया कार्य शुभ मुहुर्त में किए गए कार्य की भांति सिद्ध होता है इसलिए होरा शास्त्र को कार्य सिद्धि का अचूक माध्यम माना गया है। सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक 24 होरा होती हैं और एक सूर्योदय से एक सूर्यास्त तक होरा की संख्या 12 होती है। प्रत्येक दिन के प्रारंभ में प्रथम होरा उस ग्रह की होती है जिसका वह वार होता है। जबकि अगली होरा उसी दिन से छठे दिन की होगी और यही क्रम आगे बढ़ता जाएगा।
उदाहरणः सोमवार के दिन किसी भी ग्रह की होरा देखनी हो तो हम उसे इस प्रकार से देखेंगेः
पहली होरा - चंद्र ग्रह की होगी
दूसरी होरा - शनि ग्रह की होगी
तीसरी होरा - गुरु ग्रह की होगी
चौथी होरा - मंगल ग्रह की होगी
पाँचवीं होरा - सूर्य ग्रह की होगी
छठी होरा - शुक्र ग्रह की होगी
सातवीं होरा - बुध ग्रह की होगी
आठवीं होरा फिर से चंद्र की होगी और यह क्रम ऐसे ही चलता रहेगा। इस प्रकार जो भी वार हो उसी वार की होरा से आगे की होरा निकाली जा सकती हैं और अपने कार्य को सफल बनाने के लिए उसका प्रारंभ किया सकता है। प्रत्येक होरा किसी विशेष कार्य के लिए शुभ होती है। जो इस प्रकार है।
सूर्य की होरा
सूर्य की होरा में सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करना, पदभार संभालना, उच्च अधिकारियों से भेंटवार्ता करना, टेंडर के लिए आवेदन एवं माणिक रत्न धारण करना शुभ माना जाता है।
चंद्र की होरा
चंद्र की होरा को सभी कार्य के लिए शुभ माना गया है अतः आप किसी भी कार्य का श्रीगणेश कर सकते हैं। इसके अलावा चंद्र की होरा में बागवानी, खाद्य संबंधी क्रियाएँ, समुद्र व चांदी से संबंधित कार्य एवं मोती धारण करने के लिए बहुत शुभ मानी जाती है।
मंगल की होरा
मंगल की होरा में पुलिस व अदालती मामलों से संबंधित कार्य करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस होरा में नौकरी ज्वॉइन करना, सट्टा लगाना, उधार देना, किसी सभा-समिति में हिस्सा लेना, मूंगा एवं लहसुनिया रत्न धारण करना शुभ फलदायी होता है।
बुध की होरा
बुध की होरा में नए व्यापार शुरू करना लाभकारी होता है। इसके अलावा इस होरा में लेखन व प्रकाशन का कार्य करना, प्रार्थना पत्र देना, विद्यारंभ करना, कोष संग्रह करना और पन्ना रत्न धारण करना भी शुभ माना जाता है।
गुरु की होरा
इस होरा में उच्च अधिकारियों भेंट करना, शिक्षा विभाग में जाना व शिक्षक से मिलना, विवाह संबंधी कार्य करना और पुखराज रत्न धारण करना शुभ माना जाता है अर्थात इन कार्यों को करने में आपको सफलता मिलेगी।
शुक्र की होरा
इस होरा काल में जातकों के लिए नए वस्त्र पहनना, आभूषण ख़रीदना अथवा उसे धारण करना, फ़िल्म जगत से संबंधित कार्य करना, मॉडलिंग करना, यात्रा पर जाना एवं हीरा व ओपल रत्न धारण करना शुभ माना जाता है।
शनि की होरा
शनि की होरा में मकान की नींव रखना अच्छा माना जाता है। इसके साथ इस होरा काल में कारखाना शुरू करना, वाहन अथवा भूमि ख़रीदना और नीलम व गोमेद रत्न को धारण करने से जातकों को कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है।
सर्वार्थ सिद्धि योग
सर्वार्थ सिद्धि योग अत्यंत शुभ योग माना जाता है। यह तीन शब्दों से मिलकर बना है। सर्वार्थ यानि सभी, सिद्धि यानि लाभ व प्राप्ति एवं योग से तात्पर्य संयोजन, अत: हर प्रकार से लाभ की प्राप्ति को ही सर्वार्थ सिद्धि योग कहा गया है। यह एक शुभ योग है इसलिए इस योग में संपन्न होने वाले कार्यों से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
सर्वार्थ सिद्धि योग एक निश्चित वार और निश्चित नक्षत्र के संयोग से बनता है। यह योग शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए विशेष फलदायी होता है और समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। वार और नक्षत्र के ये संयोग हमेशा निर्धारित रहते हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग सभी शुभ कार्यों के शुभारंभ के लिए उपयुक्त समय होता है।
नक्षत्र और वार के संयोग जिनमें सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होते हैं:
1. रविवार- अश्विनी, हस्त, पुष्य, मूल, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद
2. सोमवार- श्रवण, रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा
3. मंगलवार- अश्विनी, उत्तरा भाद्रपद, कृतिका, अश्लेषा
4. बुधवार- रोहिणी, अनुराधा, हस्त, कृतिका, मृगशिरा
5. गुरुवार- रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य
6. शुक्रवार- रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु, श्रवण
7. शनिवार- श्रवण, रोहिणी, स्वाति
सर्वार्थ सिद्धि योग किसी भी नए तरह का करार करने का सबसे अच्छा समय होता है। इस योग के प्रभाव से नौकरी, परीक्षा, चुनाव, खरीदी-बिक्री से जुड़े कार्यों में सफलता मिलती है। भूमि, गहने और कपड़ों की ख़रीददारी में सर्वार्थ सिद्धि योग अत्यंत लाभकारी है। इसके प्रभाव से मृत्यु योग जैसे कष्टकारी योग के दुष्प्रभाव भी नष्ट हो जाते हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग में हर वस्तु की खरीददारी शुभ मानी जाती है लेकिन मंगलवार के दिन नए वाहन और शनिवार के दिन इस योग में लोहे का सामान खरीदना अशुभ माना जाता है। सर्वार्थ सिद्धि योग को एक शुभ योग की संज्ञा दी गई है। यह योग एक ऐसा सुनहरा अवसर लेकर आता है जिसके प्रभाव से आपकी समस्त इच्छा और सपने पूर्ण होते हैं।
हिन्दू धर्म में जन्म के बाद हर शिशु के गर्भकाल के बाल उतारने की परंपरा है, इसे ही मुंडन संस्कार कहा जाता है। बालकों का मुण्डन 3, 5 और 7 आदि विषम वर्षों में किया जाता है। वहीं बालिकाओं का चौल कर्म (मुण्डन) संस्कार सम वर्षों में किया जाता है। हालांकि कुल परंपरा के अनुसार बच्चों का मुण्डन 1 वर्ष की आयु में भी किया जाता है।
मुंडन को लेकर हिन्दू धार्मिक मान्यता है कि पूर्व जन्मों के ऋणों से मुक्ति के उद्देश्य से जन्मकालीन केश काटे जाते हैं। वहीं वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार जब बच्चा माँ के पेट में होता है तो उसके सिर के बालों में बहुत से हानिकारक बैक्टीरिया लग जाते हैं जो जन्म के बाद धोने से भी नहीं निकल पाते हैं इसलिए बच्चे के जन्म के 1 साल के भीतर एक बार मुंडन अवश्य कराना चाहिए।
मुंडन मुहूर्त के लिए तिथि, नक्षत्र और मास विचार
● हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ (बड़े बच्चे का मुंडन इस माह में न करें, साथ ही इस माह में जन्म लेने वाले बच्चे का मुंडन भी न करें), आषाढ़ (मुंडन आषाढ़ी एकादशी से पहले करें), माघ और फाल्गुन मास में बच्चों का मुण्डन संस्कार कराना चाहिए।
● तिथियां में द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी मुंडन संस्कार के लिए शुभ मानी जाती है।
● मुंडन के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार शुभ दिन माने गये हैं। वहीं शुक्रवार के दिन बालिकाओं को मुंडन नहीं करना चाहिए।
● नक्षत्रों में अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, पुनर्वसु, चित्रा, स्वाति, ज्येष्ठ, श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा मुंडन संस्कार के लिए शुभ माने गये हैं।
● कुछ विद्वानों के अनुसार जन्म मास व जन्म नक्षत्र और चंद्रमा के चतुर्थ, अष्टम, द्वादश और शत्रु भाव में स्थित होने पर मुंडन निषेध माना गया है। वहीं कुछ विद्वान जन्म नक्षत्र या जन्म राशि को मुंडन के लिए शुभ मानते हैं।
● द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, षष्टम, सप्तम, नवम या द्वादश राशियों के लग्न या इनके नवांश में मुंडन शुभ होते हैं।
मुंडन संस्कार के लाभ
● मुण्डन के बाद बच्चों के शरीर का तापमान सामान्य हो जाता है। इससे मस्तिष्क स्थिर रहता है, साथ ही बच्चों को शारीरिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ नहीं होती हैं।
● मुण्डन के प्रभाव से बच्चों को दांतों के निकलते समय होने वाला दर्द अधिक परेशान नहीं करता है।
● जन्मकालीन केश उतारे जाने के बाद सिर पर धूप पड़ने से विटामिन डी मिलता है। इससे कोशिकाओं में रक्त का प्रवाह अच्छी तरह से होता है और इसके प्रभाव से भविष्य में आने वाले बाल बेहतर होते हैं.
● मुंडन के संदर्भ में यजुर्वेद में उल्लेख है कि, मुंडन संस्कार बल, आयु, आरोग्य तथा तेज की वृद्धि के लिए किया जाने वाला अति महत्वपूर्ण संस्कार है।
विशेष: मुंडन संस्कार का शुभ मुहूर्त में संपन्न होना शिशु के लिए लाभदायक और कल्याणकारी होता है, इसलिए मुंडन संबंधी मुहूर्त के लिए विद्वान ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें या अपनी कुल परंपरा के अनुसार बच्चों का मुण्डन कराएँ।
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
Kalsarpa Yoga
भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह मन जाता है। इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। लेकिन यह व्यक्ति के जीवन पर व्यापक असर डालते हैं।
राहु और केतु ऐसे ग्रह हैं। जो हमेशा एक दूसरे के सामने रहते हैं। या यूँ कहें की एक दूसरे के सापेक्ष हमेशा 180 डिग्री पर होते हैं। यदि राहु कुंडली के पहले भाव में स्थित है। तो केतु हमेशा सातवें भाव में होगा, यदि केतु ग्यारहवें भाव में है तो राहु हमेशा पांचवे भाव में स्थित होगा।
अब यदि किसी की कुंडली में बाकी सारे ग्रह राहु और केतु के axis के एक तरफ ही आ जाएँ तो यह एक योग का निर्माण करेगा जिसे हम कालसर्प योग के नाम से जानते हैं। उदहारण के लिए मान लेते हैं की किसी की कुंडली में राहु पंचम भाव में और केतु ग्यारहवें भाव में स्थित है। अब यदि बाकी सारे ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि) राहु-केतु axis के एक ही तरफ यानी छठे, सातवें, आठवें, नौवें और दसवें भाव या फिर बारहवें, पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे भाव में ही स्थित हो जाएँ तो उस कुण्डली में कालसर्प योग माना जायेगा।
जब कुंडली में राहु और केतु के मध्य में सारे ग्रह आ जाते हैं। तब कुंडली में कालसर्प योग बनता है। कालसर्प योग दो शब्दों को मिलाकर बना है। इसमें पहला शब्द है। काल, यानि मृत्यु और दूसरा शब्द है।- सर्प, जिसका तात्पर्य सांप से है । कुंडली में कालसर्प योग के प्रभाव से व्यक्ति को मानसिक कष्ट सहना पड़ता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक मनुष्य की कुंडली के आधार पर ही उसका भाग्य तय होता है। कुंडली में बन रहे कई ऐसे योग हैं। जो व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक के योग बनाता है। इन्हीं योग में से एक है। कालसर्प योग । कालसर्प योग का कुप्रभाव पड़ने से व्यक्ति को आर्थिक समस्या, दाम्पत्य जीवन में अनबन, यहां तक अकाल मृत्यु का भय भी होता है। इस योग के कारण जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ता है। कुंडली में कालसर्प योग के प्रभाव से व्यक्ति को मानसिक कष्ट सहना पड़ता है। इसके साथ ही कई तरह की परेशानियां जातकों को सहना पड़ता है। यह योग हमेशा कष्ट कारक नहीं होते, कभी-कभी यह अनुकूल फल देते हैं। और व्यक्ति को विश्वस्तर पर प्रसिद्ध बनाते हैं। आइए जानते हैं। कालसर्प योग क्या है। और इसके कितने प्रकार हैं।
फलित ज्योतिष में कहा गया है। कि राहु का प्रभाव शनि के जैसा और केतु का प्रभाव मंगल के जैसा होता है। राहु व केतु छाया ग्रह हैं । और ऐसा माना जाता है। कि वे जिस भाव में होते हैं। अथवा जहां दृष्टि डालते हैं। उस राशि एवं भाव में स्थित ग्रह को अपनी विचार शक्ति से प्रभावित कर क्रिया करने को प्रेरित करता है। केतु जिस भाव में बैठता है। उस राशि, उसके भावेश, केतु पर दृष्टिपात करने वाले ग्रह के प्रभाव में क्रिया करता है। जब कुंडली में राहु और केतु के मध्य में सारे ग्रह आ जाते हैं । तब कुंडली में कालसर्प योग बनता है ।
कालसर्प दोष
कालसर्प को दोष मानता है बल्कि इसे योग मानता है। राहु और केतु विभिन्न खानों में बैठकर 12 तरह के विशेष योग बनाते हैं। जिस प्रकार अन्य ग्रह अलग अलग खानो में बैठकर शुभ और अशुभ फल देते हैं। उसी प्रकार राहु केतु भी शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के फल देते हैं। ज्योतिष की इस विधा में राहु को सांप का सिर और केतु को उसका दुम माना गया है। कुण्डली में सूर्य से लेकर शनि तक सभी सात ग्रह जब राहु और केतु के बीच होते हैं। तब कालसर्प योग बनता है।
जब मंगल और शनि जन्म कुण्डली में एक साथ हों अथवा द्वादश में और चन्द्रमा चतुर्थ भाव में तब राहु अशुभ फल नहीं देता है। एवं कालसर्प बाधक नहीं होता है। राहु के अशुभ होने पर दक्षिण की ओर अगर घर का मुख्यद्वारा हो तो आर्थिक परेशानी बनी रहती है। आर्थिक नुकसान और कई प्रकार की उलझनें एक के बाद एक आती रहती है। कालसर्प में इस प्रकार की स्थिति में व्यक्ति को मसूर की दाल अथवा कुछ धन सफाई कर्मी को देना चाहिए ।
ग्रहों के उपाय और टोटकों को विशेष रूप से बताया गया है|
राहु केतु से पीड़ित होने पर स्वास्थ्य लाभ हेतु रात को सोते समय सिरहाने में जौ रखकर सोना चाहिए और इसे सुबह पंक्षियों को देना चाहिए.सरकारी पक्ष से परेशानी होने पर एवं रोजी रोजगार और व्यापार में कठिनाई आने पर अपने वजन के बराबर लकड़ी का कोयला चलते पानी में प्रवाहित करना चाहिए.केतु के अशुभ स्थिति से बचाव हेतु दूध में अंगूठा डालकर उसे चूसना चाहिए । सूर्य और चन्द्र की वस्तु यथा स्वेत वस्त्र, चांदी और तांबा दान करना चाहिए ।
कालसर्प के उपाय
कालसर्प योग में राहु खाना नम्बर एक में हो और केतु खाना नम्बर सात में तब अपने पास चांदी की ठोस गोली रखनी चाहिए.राहु दो में और केतु आठ में तब दो रंगा का कम्बल दान करना चाहिए.तीन और नौ में क्रमश: राहु केतु हो तो चने की दाल नदी अथवा तलाब में प्रवाहित करना चाहिए.सोना धारण करने से भी लाभ मिलता है। चतुर्थ भाव में राहु हो और दशम भाव में केतु तब चांदी की डिब्बी में शहद भरकर घर के बाहर ज़मीन में दबाना लाभप्रद होता है। खाना नम्बर पांच में राहु हो और केतु खाना नम्बर ग्यारह में और सभी ग्रह इनके बीच में तब घर में चांदी का ठोस हाथी रखने से कालसर्प का विपरीत प्रभाव कम होता है। षष्टम में राहु और द्वादश में केतु होने पर कुत्ता पालने एवं बहन की सेवा करने से लाभ मिलता है। सप्तम में राहु हो और प्रथम में केतु तब लाल रंग की लोहे की गोली सदैव साथ रखना चाहिए एवं चांदी की डिब्बी में नदी का जल भरकर उसमें चांदी का एक टुकड़ा डालकर घर में रखना चाहिए.नवम में राहु हो और खाना नम्बर तीन में केतु हो तब चने की दाल बहते पानी में प्रवाहित करना चाहिए.
जिनकी कुण्डली में दसम खाने में राहु हो और केतु चौथे खाने में उन्हें पीतल के बर्तन में नदी या तालब का जल भरकर घर के अंधेरे कोने में रखना चाहिए.एकादश और पंचम में क्रमश: इस प्रकार की स्थिति हो तो 43 दिनों तक देव स्थान में मूली दान करना चाहिए.द्वादश खाने में राहु हो और षष्टम में केतु हो तो स्वर्ण धारण करने से लाभ होता है।
तक्षक कालसर्प:--
यह कालसर्प योग पारिवारिक एवं गृहस्थ सुख के सम्बन्ध में विशेष रूप से अशुभ फल देने वाला होता है.तक्षक कालसर्प योग कुण्डली में तब बनता है जबकि राहु सप्तम भाव में स्थित हो और केतु लग्न में विराजमान हो एवं अन्य ग्रह इन दोनों ग्रहों के मध्य स्थित हों तब यह योग बनता है। तक्षक कालसर्प योग से पीड़ित होने पर शुभ ग्रहों का प्रभाव कम हो जाता है। जिससे व्यक्ति को कुण्डली में स्थिति शुभ ग्रह योग का फल अपूर्ण रह जाता है। और व्यक्ति को कालसर्प योग का नीच परिणाम भुगतना पड़ता है।
तक्षक कालसर्प योग का परिणाम:--
जिनकी कुण्डली में तक्षक कालसर्प योग बनता है। वे स्त्री वर्ग के साथ सामंजस्य पूर्ण सम्बन्ध नहीं बना पाते हैं। जीवनसाथी के प्रति उदासीनता के कारण गृहस्थ जीवन का सुख बाधित होता है। यह योग गुप्तांग सम्बन्धी रोग भी देता है। जो संतान के सम्बन्ध में शुभ नहीं होता है। संभव है। कि इस योग से पीड़ित व्यक्ति संतान सुख के सम्बन्ध में भाग्यशाली नहीं हों.तक्षक कालसर्प चारित्रिक दोष भी देता है। जिसके कारण अगर मन पर संयम नहीं रखें तो इस योग वाले व्यक्ति के विवाहेत्तर सम्बन्ध भी हो सकते हैं।
इस योग से प्रभावित व्यक्ति को सदा सावधान और सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। क्योंकि यह योग मित्रों द्वारा मिलने वाले विश्वासघात की संभावना को प्रबल करता है। धन सम्पत्ति के सम्बन्ध में भी यह योग अशुभ फलदायी है। यह योग पैतृक सम्पत्ति से मिलने वाले सुख में कमी लाता है। व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशान होता है। और इन्हें जेल की यात्रा भी करनी पड़ती है। जीवन में उतार चढ़ाव और संघर्षमय स्थिति बनी रहती है।
कर्कोटक कालसर्प योग:--
कार्कोटक कालसर्प योग भी अशुभ कालसर्प योगों में से एक है। यह अशुभ योग तब निर्मित होता है। जब केतु द्वितीय में होता है। और राहु अष्टम में स्थित होकर शेष ग्रहों को निगल लेता है। अर्थात इनके बीच में सभी ग्रह होने पर यह योग बनता है। इस योग का अशुभ प्रभाव जीवन में समय समय पर दृष्टिगोचर होता रहता है। व्यक्ति मानसिक तौर पर परेशान रहता है।
कार्कोटक कालसर्प योग का परिणाम:--
जिनकी कुण्डली में कार्कोटक कालसर्प योग होता है। उन्हें किसी भी कार्य में जल्दी सफलता नहीं मिलती है क्योंकि इनका भाग्य कमज़ोर होता है.इन्हें जो कुछ भी प्राप्त होता है अपनी मेहनत से मिलता है.अगर इन्हें भाग्य का फल मिलता भी है तो काफी उम्र गुजर जाने के बाद जबकि अवसर सिमित हो जाते हैं.इनका जीवन संघर्षमय रहता है और बार बार असफलता का स्वाद चखना होता है.इनके मित्रों की संख्या सीमित होती है और जो भी मित्र होते हैं वे अवसर का लाभ उठाने की ताक में रहते हैं जिसके कारण मित्रों से भी इन्हें सहयोग एवं समर्थन नहीं मिल पाता है.आर्थिक विषयों में भी यह योग अशुभ फलदायी होता है.रोजी रोजगार में नुकसान और परेशानी बनी रहती है.पैतृक सम्पत्ति से मिलने वाले सुख में भी यह कमी लाता है.इनके साथ दुर्घटना होने की संभावना भी प्रबल रहती है।
शंखनाद कालसर्प:
शंखनाद कालसर्प योग को शंखचूड़ कालसर्प योग के नाम से भी जाना जाता है.कुण्डली में यह योग तब उपस्थित होता है जबकि राहु नवम भाव में होता है और केतु तृतीय भाव में स्थित होता है एवं शेष ग्रह इनके मध्य स्थित होते हैं.इस योग को दुर्भाग्य सूचक माना जाता है क्योकि राहु केतु की इस स्थिति से भाग्य को ग्रहण लगता है.यह योग कामयाबी के सफर में बाधक होता है.
शंखनाद कालसर्प योग का परिणाम:
शंखनाद कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति गृहस्थ जीवन में असंतुष्ट और दु:खी रहता है.भाग्य से इन्हें लाभ नहीं मिल पाता है, कार्यों में बार बार असफलता और अपमान भी इन्हें झेलना पड़ता है.कारोबार एवं नौकरी के सम्बन्ध में भी यह योग विपरीत प्रभाव देता है जिसके कारण व्यक्ति को अपनी मेहनत के अनुरूप लाभ नहीं मिल पाता है.शत्रुओं का भय बना रहता है.शुभ ग्रह योग से अगर ये उच्च स्थिति को प्राप्त कर भी लेते हैं तो इस अशुभ योग के कारण इन्हें अवनति का मुंह देखना होता है.
कितने प्रकार के होते हैं काल सर्प दोष
साढ़े साती और काल सर्प योग का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं. इनके प्रति लोगों के मन में जो भय बना हुआ है इसका फायदा उठाकर बहुत से ज्योतिषी लोगों को लूट रहे हैं. बात करें काल सर्प योग की तो इसके भी कई रूप और नाम हैं. काल सर्प को दोष नहीं बल्कि योग कहना चाहिये
काल सर्प का सामान्य अर्थ यह है कि जब ग्रह स्थिति आएगी तब सर्प दंश के समान कष्ट होगा. पुराने समय राहु तथा अन्य ग्रहों की स्थिति के आधार पर काल सर्प का आंकलन किया जाता था. आज ज्योतिष शास्त्र को वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करने के लिए नये नये शोध हो रहे हैं. इन शोधो से कालसर्प योग की परिभाषा और इसके विभिन्न रूप एवं नाम के विषय में भी जानकारी मिलती है. वर्तमान समय में कालसर्प योग की जो परिभाषा दी गई है उसके अनुसार जन्म कुण्डली में सभी ग्रह राहु केतु के बीच में हों या केतु राहु के बीच में हों तो काल सर्प योग बनता है.
कालसर्प योग के नाम
ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक भाव के लिए अलग अलग कालसर्प योग के नाम दिये गये हैं. इन काल सर्प योगों के प्रभाव में भी काफी कुछ अंतर पाया जाता है जैसे प्रथम भाव में कालसर्प योग होने पर अनन्त काल सर्प योग बनता है.
अनन्त कालसर्प योग
जब प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु होता है तब यह योग बनता है. इस योग से प्रभावित होने पर व्यक्ति को शारीरिक और, मानसिक परेशानी उठानी पड़ती है साथ ही सरकारी व अदालती मामलों में उलझना पड़ता है. इस योग में अच्छी बात यह है कि इससे प्रभावित व्यक्ति साहसी, निडर, स्वतंत्र विचारों वाला एवं स्वाभिमानी होता है.
कुलिक काल सर्प योग
द्वितीय भाव में जब राहु होता है और आठवें घर में केतु तब कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है. इस कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक काष्ट भोगना होता है. इनकी पारिवारिक स्थिति भी संघर्षमय और कलह पूर्ण होती है. सामाजिक तौर पर भी इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं रहती.
वासुकि कालसर्प योग
जन्म कुण्डली में जब तृतीय भाव में राहु होता है और नवम भाव में केतु तब वासुकि कालसर्प योग बनता है. इस कालसर्प योग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का जीवन संघर्षमय रहता है और नौकरी व्यवसाय में परेशानी बनी रहती है. इन्हें भाग्य का साथ नहीं मिल पाता है व परिजनों एवं मित्रों से धोखा मिलने की संभावना रहती है.
शंखपाल कालसर्प योग
राहु जब कुण्डली में चतुर्थ स्थान पर हो और केतु दशम भाव में तब यह योग बनता है. इस कालसर्प से पीड़ित होने पर व्यक्ति को आंर्थिक तंगी का सामना करना होता है. इन्हें मानसिक तनाव का सामना करना होता है. इन्हें अपनी मां, ज़मीन, परिजनों के मामले में कष्ट भोगना होता है.
पद्म कालसर्प योग
पंचम भाव में राहु और एकादश भाव में केतु होने पर यह कालसर्प योग बनता है. इस योग में व्यक्ति को अपयश मिलने की संभावना रहती है. व्यक्ति को यौन रोग के कारण संतान सुख मिलना कठिन होता है. उच्च शिक्षा में बाधा, धन लाभ में रूकावट व वृद्धावस्था में सन्यास की प्रवृत होने भी इस योग का प्रभाव होता है.
महापद्म कालसर्प योग
जिस व्यक्ति की कुण्डली में छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु होता है वह महापद्म कालसर्प योग से प्रभावित होता है. इस योग से प्रभावित व्यक्ति मामा की ओर से कष्ट पाता है एवं निराशा के कारण व्यस्नों का शिकार हो जाता है. इन्हें काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है. प्रेम के ममलें में ये दुर्भाग्यशाली होते हैं.
तक्षक कालसर्प योग
तक्षक कालसर्प योग की स्थिति अनन्त कालसर्प योग के ठीक विपरीत होती है. इस योग में केतु लग्न में होता है और राहु सप्तम में. इस योग में वैवाहिक जीवन में अशांति रहती है. कारोबार में साझेदारी लाभप्रद नहीं होती और मानसिक परेशानी देती है.
शंखचूड़ कालसर्प योग
तृतीय भाव में केतु और नवम भाव में राहु होने पर यह योग बनता है. इस योग से प्रभावित व्यक्ति जीवन में सुखों को भोग नहीं पाता है. इन्हें पिता का सुख नहीं मिलता है. इन्हें अपने कारोबार में अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है.
घातक कालसर्प योग
कुण्डली के चतुर्थ भाव में केतु और दशम भाव में राहु के होने से घातक कालसर्प योग बनता है. इस योग से गृहस्थी में कलह और अशांति बनी रहती है. नौकरी एवं रोजगार के क्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना होता है.
विषधर कालसर्प योग
केतु जब पंचम भाव में होता है और राहु एकादश में तब यह योग बनता है. इस योग से प्रभावित व्यक्ति को अपनी संतान से कष्ट होता है. इन्हें नेत्र एवं हृदय में परेशानियों का सामना करना होता है. इनकी स्मरण शक्ति अच्छी नहीं होती. उच्च शिक्षा में रूकावट एवं सामाजिक मान प्रतिष्ठा में कमी भी इस योग के लक्षण हैं.
शेषनाग कालसर्प योग
व्यक्ति की कुण्डली में जब छठे भाव में केतु आता है तथा बारहवें स्थान पर राहु तब यह योग बनता है. इस योग में व्यक्ति के कई गुप्त शत्रु होते हैं जो इनके विरूद्ध षड्यंत्र करते हैं. इन्हें अदालती मामलो में उलझना पड़ता है. मानसिक अशांति और बदनामी भी इस योग में सहनी पड़ती है. इस योग में एक अच्छी बात यह है कि मृत्यु के बाद इनकी ख्याति फैलती है. अगर आपकी कुण्डली में है तो इसके लिए अधिक परेशान होने की आवश्यक्ता नहीं है. काल सर्प योग के साथ कुण्डली में उपस्थित अन्य ग्रहों के योग का भी काफी महत्व होता है. आपकी कुण्डली में मौजूद अन्य ग्रह योग उत्तम हैं तो संभव है कि आपको इसका दुखद प्रभाव अधिक नहीं भोगना पड़े और आपके साथ सब कुछ अच्छा हो.
कालसर्प योग भी शुभ फल देता है
कुण्डली में राहु और केतु की उपस्थिति के अनुसार व्यक्ति को कालसर्प योग लगता है. कालसर्प योग को अत्यंत अशुभ योग माना गया है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है उसका पतन होता है.यह इस योग का एक पक्ष है जबकि दूसरा पक्ष यह भी है कि यह योग व्यक्ति को अपने क्षेत्र में सर्वक्षेष्ठ बनता है।
कालसर्प योग का प्राचीन ज्योतिषीय ग्रंथों में विशेष जिक्र नहीं आया है.तकरीबन सौ वर्ष पूर्व ज्योर्तिविदों ने इस योग को ढूंढ़ा.इस योग को हर प्रकार से पीड़ादायक और कष्टकारी बताया गया.आज बहुत से ज्योतिषी इस योग के दुष्प्रभाव का भय दिखाकर लोगों से काफी धन खर्च कराते हैं.ग्रहों की पीड़ा से बचने के लिए लोग खुशी खुशी धन खर्च भी करते हैं.परंतु सच्चाई यह है कि जैसे शनि महाराज सदा पीड़ा दायक नहीं होते उसी प्रकार राहु और केतु द्वारा निर्मित कालसर्प योग हमेंशा अशुभ फल ही नहीं देते.
अगर आपकी कुण्डली में कालसर्प योग है और इसके कारण आप भयभीत हैं तो इस भय को मन से निकाल दीजिए.कालसर्प योग से भयाक्रात होने की आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि इस योग ने व्यक्तियों को सफलता की ऊँचाईयों पर पहुंचाया है.कालसर्प योग से ग्रसित होने के बावजूद बुलंदियों पर पहुंचने वाले कई जाने माने नाम हैं जैसे धीरू भाई अम्बानी, सचिन तेंदुलकर, ऋषिकेश मुखर्जी, पं. जवाहरलाल नेहरू, लता मंगेशकर आदि.
ज्योतिषशास्त्र कहता है कि राहु और केतु छाया ग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवें भाव में होते हैं.जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तब यह योग बनता है. राहु केतु शनि के समान क्रूर ग्रह माने जाते हैं और शनि के समान विचार रखने वाले होते हैं.राहु जिनकी कुण्डली में अनुकूल फल देने वाला होता है उन्हें कालसर्प योग में महान उपलब्धियां हासिल होती है.जैसे शनि की साढ़े साती व्यक्ति से परिश्रम करवाता है एवं उसके अंदर की कमियों को दूर करने की प्रेरणा देता है इसी प्रकार कालसर्प व्यक्ति को जुझारू, संघर्षशील और साहसी बनाता है.इस योग से प्रभावित व्यक्ति अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करता है और निरन्तर आगे बढ़ते जाते हैं.
कालसर्प योग में स्वराशि एवं उच्च राशि में स्थित गुरू, उच्च राशि का राहु, गजकेशरी योग, चतुर्थ केन्द्र विशेष लाभ प्रदान करने वाले होते है.अगर सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो कालसर्प योग वाले व्यक्ति असाधारण प्रतिभा एवं व्यक्तित्व के धनी होते हैं.हो सकता है कि आपकी कुण्डली में मौजूद कालसर्प योग आपको भी महान हस्तियों के समान ऊँचाईयों पर ले जाये अत: निराशा और असफलता का भय मन से निकालकर सतत कोशिश करते रहें आपको कामयाबी जरूरी मिलेगी.इस योग में वही लोग पीछे रह जाते हैं जो निराशा और अकर्मण्य होते हैं परिश्रमी और लगनशील व्यक्तियों के लिए कलसर्प योग राजयोग देने वाला होता है.
कालसर्प योग में त्रिक भाव एवं द्वितीय और अष्टम में राहु की उपस्थिति होने पर व्यक्ति को विशेष परेशानियों का सामना करना होता है परंतु ज्योतिषीय उपचार से इन्हें अनुकूल बनाया जा सकता है.
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
Navagraha Remedy
सूर्य ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय
वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह को नवग्रहों का राजा कहा जाता है। सूर्य के प्रभाव से मनुष्य को सम्मान और सफलता मिलती है। सूर्य ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गए हैं। सूर्य मंत्र, सूर्य यंत्र और सूर्य नमस्कार समेत कई उपायों को करने से लाभ मिलता है। हर दिन नियमित रूप से सूर्य मंत्र उच्चारित करने और सूर्य नमस्कार करने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। सूर्य ग्रह सरकारी एवं विभिन्न क्षेत्रों में उच्च सेवा का कारक माना गया है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में सूर्य की शुभ स्थिति व्यक्ति को जीवन में उन्नति प्रदान करती है लेकिन यदि सूर्य अशुभ प्रभाव देता है, तो सम्मान की हानि, पिता को कष्ट, उच्च पद प्राप्ति में बाधा, ह्रदय और नेत्र संबंधी रोग होते हैं। जन्म कुंडली में सूर्य से संबंधित किसी भी परेशानी के समाधान के लिए करें सूर्य ग्रह से जुड़े विभिन्न उपाय।
वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े सूर्य ग्रह शांति के उपाय
लाल और केसरिया रंग के वस्त्र धारण करें।
पिता जी, सरकार एवं उच्च अधिकारियों का सम्मान करें।
प्रातः सूर्योदय से पहले उठें और अपनी नग्न आँखों से उगते हुए सूरज का दर्शन करें।
विशेषतः सुबह किये जाने वाले सूर्य के उपाय
भगवान विष्णु की पूजा करें।
सूर्य देव की पूजा करें।
भगवान राम की पूजा करें।
आदित्य हृदय स्तोत्र का जाप करें।
सूर्य देव के लिये व्रत
सूर्य देव का आशीर्वाद पाने हेतु रविवार को व्रत धारण किया जाता है।
सूर्य ग्रह शांति के लिये दान करें
सूर्य ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान रविवार को सूर्य की होरा और सूर्य के नक्षत्रों (कृतिका, उत्तरा-फाल्गुनी, उत्तरा षाढ़ा) में प्रातः 10 बजे से पूर्व किया जाना चाहिए।
दान करने वाली वस्तुएँ: गुड़, गेहूँ, तांबा, माणिक्य रत्न, लाल पुष्प, खस, मैनसिल आदि।
सूर्य ग्रह के लिए रत्न
वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह के लिए रूबी माणिक्य को धारण किया जाता है। यदि किसी जातक की सूर्य प्रधान राशि सिंह है तो उसे माणिक्य रत्न को पहनना चाहिए।
श्री सूर्य यंत्र
सूर्य ग्रह शांति के लिए रविवार के दिन सूर्य यंत्र को सूर्य की होरा एवं इसके नक्षत्र में धारण करना चाहिए।
सूर्य के लिये जड़ी
सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए बेल मूल धारण करें। इस जड़ को रविवार के दिन सूर्य की होरा अथवा सूर्य के नक्षत्र में धारण करना चाहिए।
सूर्य के लिये रुद्राक्ष
सूर्य के लिए 1 मुखी रुद्राक्ष / 12 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लिए मंत्र:
ॐ ह्रीं नमः।
ॐ यें हं श्रों ये।।
तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ क्लीं नमः।
ॐ रें हूं ह्रीं हूं।।
बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ क्रों श्रों रों नमः।
ॐ ह्रीं श्रीं घृणि श्रीं।।
सूर्य मंत्र
सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए आप सूर्य बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं। मंत्र - ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।
वैसे तो सूर्य बीज मंत्र को 7000 बार जपना चाहिए परंतु देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र का (7000x4) 28000 बार उच्चारण करना चाहिए।
आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - ॐ घृणि सूर्याय नमः!
सूर्य ग्रह शांति के उपाय करने से जातकों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। चूंकि सूर्य आत्मा, राजा, कुलीनता, उच्च पद, सरकारी नौकरी का कारक है। अतः सूर्य ग्रह शांति मंत्र का जाप अथवा सूर्य यंत्र को स्थापित करने से जातक एक राजा के समान जीवन व्यतीत करता है। वह सरकारी क्षेत्र में प्रशासनिक स्तर का पद पाता है। इस लेख में दिए गए सूर्य दोष के उपाय वैदिक ज्योतिष पर आधारित हैं, जो बहुत ही कारगर और सरल हैं।
वैदिक ज्योतिष में सूर्य को एक क्रूर ग्रह माना गया है। इसके नकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति अहंकारी, आत्म केन्द्रित, ईर्ष्यालु और क्रोधी स्वभाव का हो जाता है और स्वास्थ्य जीवन पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। ऐसे में सूर्य शांति के उपाय करने से जातकों को लाभ होता है। सूर्य सिंह राशि का स्वामी है। अतः सिंह राशि वाले जातकों के लिए सूर्य मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। सूर्य ग्रह के उच्च होने पर भी आपको सूर्य को मजबूत करने के उपाय करने चाहिए। इससे आपको दोगुना लाभ होगा।
चंद्र ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय
वैदिक ज्योतिष में चंद्र ग्रह मन, मॉं और सुंदरता का कारक होता है। चंद्र ग्रह शांति से संबंधित कई उपाय हैं। इनमें सोमवार का व्रत, चंद्र यंत्र, चंद्र मंत्र, चंद्र ग्रह से संबंधित वस्तु का दान, खिरनी की जड़ और दो मुखी रुद्राक्ष धारण करना समेत कई उपाय हैं। कुंडली में चंद्रमा की शुभ स्थिति से जीवन में प्रसन्नता, सुख, माता का बेहतर स्वास्थ्य और अच्छा जीवन साथी प्राप्त होता है। वहीं चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से मानसिक विकार, मन का भटकना, माता को कष्ट आदि परेशानी आती है। यदि कुंडली में चंद्रमा किसी बुरे ग्रह से पीड़ित है, तो चंद्र ग्रह से संबंधित कार्यों को अवश्य करना चाहिए। इन उपायों को करने से चंद्रमा से शुभ फल की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा से संबंधित वस्त्र और उत्पाद आदि को ग्रहण और धारण करना भी चंद्र ग्रह से जुड़े अहम उपाय हैं।
वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े चंद्र ग्रह शांति के उपाय
सफेद रंग के वस्त्र धारण करें।
माता जी, सास एवं बुजुर्ग महिलाओं का सम्मान करें।
रात को दूध का सेवन करें।
चाँदी के बर्तनों का प्रयोग करें।
विशेषतः सुबह किये जाने वाले चंद्र ग्रह के उपाय
माँ दुर्गा की पूजा करें।
भगवान शिव की आराधना करें।
भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें।
शिव चालिसा/दुर्गा चालिसा का जाप करें।
चंद्र ग्रह के लिये व्रत
शुभ चंद्र सुख, शांति, समृद्धि और दयालुता का द्यौतक है। चंद्र ग्रह की कृपा दृष्टि पाने के लिए सोमवार को उपवास रखें।
चंद्र ग्रह शांति के लिये दान करें
चंद्र ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान सोमवार को चंद्र की होरा और चंद्र के नक्षत्रों (रोहिणी, हस्त, श्रवण) में प्रातः किया जाना चाहिए।
दान करने वाली वस्तुएँ- दूध, चावल, चांदी, मोती, सफेद कपड़े, सफेद पुष्प एवं शंख आदि।
चंद्रमा के लिए रत्न
ज्योतिष में चंद्र ग्रह के लिए मोती रत्न को धारण करने का विधान है। यदि किसी जातक की कर्क राशि है तो उसे मोती को धारण करना चाहिए। इससे जातक को चंद्रमा के अच्छे फल प्राप्त होंगे।
श्री चंद्र यंत्र
चंद्र ग्रह शांति के लिए चंद्र यंत्र को सोमवार को चंद्र की होरा और चंद्र के नक्षत्रों के समय धारण करें।
चंद्र के लिये जड़ी
खिरनी की जड़ को धारण करने से आप चंद्र ग्रह से शुभ परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। इस जड़ को सोमवार के दिन चंद्र की होरा एवं चंद्र के नक्षत्रों में धारण करें।
चंद्र के लिये रुद्राक्ष
चंद्र के लिए 2 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं क्षौं व्रीं।।
चंद्र मंत्र
चंद्र देव की कृपा दृष्टि पाने के लिए आपको चंद्र बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र - ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः!
11000 बार चंद्र मंत्र का उच्चारण करें। हालाँकि देश-काल-पात्र के सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को (11000X4) 44000 बार जपने की सलाह दी गई है।
आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - ॐ सों सोमाय नमः!
इस आलेख में दिए गए चंद्र ग्रह शांति के उपाय वैदिक ज्योतिष पर आधारित हैं, जो कि बहुत ही कारगर और आसान हैं। यदि आप चंद्र को मजबूत करने के उपाय को विधि पूर्वक करते हैं तो इससे आपको मानसिक शांति का अनुभव होगा। चंद्र ग्रह शांति मंत्र मन में सकारात्मक विचारों को जन्म देता है जिससे व्यक्ति सही दिशा में सोचकर आगे की ओर क़दम बढ़ाता है। चंद्र दोष के उपाय से जातक को माता का सुख प्राप्त होता है। चंद्रमा मजबूत होने से माता को स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, चंद्र ग्रह को कर्क राशि का स्वामी कहा जाता है। अतः इस राशि के जातक चंद्र ग्रह के उपाय कर सकते हैं। कई बार लोगों को यह लगता है कि कुंडली में ग्रह के कमज़ोर होने पर ही ग्रह शांति के उपाय करने चाहिए। लेकिन यदि आपकी कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत है तो इसके शुभ फलों में वृद्धि करने के लिए आप चंद्र ग्रह शांति के उपाय भी कर सकते हैं। इस लेख में चंद्र ग्रह के उपाय जैसे चंद्र ग्रह का मंत्र जाप, चंद्र ग्रह के लिए दान, चंद्र व्रत आदि को करने की विधि भी बहुत सरल तरीके से बतायी गई है।
मंगल ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय
मंगल ग्रह को पराक्रम और साहस का कारक माना जाता है। मंगल ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गए हैं। इनमें मंगलवार का व्रत, हनुमान जी की आराधना और सुंदर कांड का पाठ आदि प्रमुख है। कुंडली में मंगल की शुभ स्थिति से शारीरिक और मानसिक शक्ति मिलती है। वहीं मंगल के अशुभ प्रभाव से मांस, रक्त और अस्थि जनित रोग होते हैं। यदि मंगल अशुभ फल दे रहा है तो मंगल से संबंधित उपाय करना चाहिए। मंगल ग्रह शांति के लिए मंगल यंत्र की स्थापना, मंगलवार को मंगल से संबंधित वस्तु का दान, अनंत मूल की जड़ धारण करना चाहिए। इनके अलावा भी वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह से संबंधित कई उपाय बताये गये हैं। इन कार्यों को करने से मंगल ग्रह से शुभ फल की प्राप्ति होती है और अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।
वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े मंगल ग्रह शांति के उपाय
लाल एवं कॉपर शेड कलर के वस्त्र धारण करें।
अपनी मातृभूमि एवं सेना का सम्मान करें।
भाई, साले एवं दोस्तों के साथ मधुर व्यवहार बनाए रखें।
मंगलवार के दिन पैसे उधार न लें।
विशेषतः सुबह किये जाने वाले मंगल ग्रह के उपाय
हनुमान जी की आराधना करें।
नरसिंह देव की पूजा करें।
भगवान कार्तिकेय की आराधना करें।
सुंदर कांड का पाठ करें।
मंगल के लिये व्रत
मंगल दोष दूर करने के लिए और मंगल देव की शुभ दृष्टि पाने के लिए मंगलवार के दिन उपवास रखें।
मंगल शांति के लिये दान करें
मंगल ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान मंगलवार को मंगल की होरा एवं मंगल ग्रह के नक्षत्रों (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) में किया जाना चाहिए।
दान करने वाली वस्तुएँ- लाल मसूर, खांड, सौंफ, मूंग, गेहूँ, लाल कनेर का पुष्प, तांबे के बर्तन एवं गुड़ आदि।
मंगल के लिए रत्न
मंगल ग्रह के लिए मूंगा रत्न को धारण किया जाता है। मूंगा रत्न को पहनने से मंगल ग्रह के सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। मेष और वृश्चिक राशि के जातकों के लिए यह रत्न बहुत लाभकारी होता है।
मंगल यंत्र
कुंडली में मांगलिक दोष की वजह से जीवन में शादी-ब्याह, संतान प्राप्ति आदि की समस्याएं आती हैं। इन सभी समस्याओं को मंगल यंत्र की स्थापना करके दूर किया जा सकता है। मंगल यंत्र को मंगलवार के दिन मंगल की होरा एवं मंगल के नक्षत्र के समय धारण करें।
मंगल के लिये जड़ी
मंगल ग्रह शांति के लिए अनंत मूल जड़ी धारण करें। इस जड़ी को मंगलवार को मंगल की होरा और मंगल के नक्षत्र में धारण करें।
मंगल के लिये रुद्राक्ष
मंगल के लिए 3 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
छः मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ ह्रीं हूं नमः।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सौं।।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ ह्रीं हूं नमः।
ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं।
मंगल मंत्र
मंगल ग्रह से मनवांछित फल पाने के लिए मंगल बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः!
मंगल मंत्र का जाप 1000 बार करना चाहिए। हालाँकि देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को 40000 बार जपने के लिए कहा गया है।
आप इस मंत्र का जाप भी कर सकते हैं - ॐ भौं भौमाय नमः अथवा ॐ अं अंगराकाय नमः!
मंगल ग्रह शांति के उपाय को विधि अनुसार करने से आपको निश्चित ही मंगल देवता का आशीर्वाद प्राप्त होगा और आपके साहस, ऊर्जा और पराक्रम में वृद्धि होगी। ज्योतिष में मंगल को पापी ग्रह की श्रेणी में अवश्य रखा गया है। परंतु मंगल का प्रभाव सदैव ही अशुभ नहीं होता है। यह बात ठीक है कि मंगल ग्रह के कारण कुंडली में मंगल दोष पैदा होता है जो वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है। मंगल ग्रह लाल होने के कारण इसका नाता लाल रंग से जुड़ा है।
वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी होता है। अतः इन राशि वाले जातकों को मंगल को प्रसन्न करने के लिए मंगल ग्रह के टोटके या उपाय ज़रुर करने चाहिए। यदि आप मंगल शांति के उपाय करते हैं तो आपको इससे न केवल मंगल के द्वारा मिलने वाले कष्टों से मुक्ति मिलेगी। बल्कि ये उपाय आपके लिए बहुत लाभकारी साबित होंगे। मंगल व्रत, मंगल ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान, मंगल यंत्र की पूजा तथा मंगल शांति मंत्र का उच्चारण आदि करने से जातकों के मंगल से संबंधित कष्ट दूर होते हैं।
बुध ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय
बुध ग्रह को बुद्धि, संचार और त्वचा का कारक कहा जाता है। बुध एक शुभ ग्रह है लेकिन क्रूर ग्रह के संगम से यह अशुभ फल देता है। बुध ग्रह शांति के लिए कई उपाय हैं। इनमें बुध यंत्र की स्थापना, बुधवार का व्रत, बुधवार को भगवान विष्णु का पूजन और विधारा की जड़ धारण करना आदि प्रमुख उपाय हैं। कुंडली में बुध की खराब स्थिति से त्वचा संबंधी विकार, शिक्षा में एकाग्रता की कमी, गणित विषय में कमजोरी और लेखन कार्य में परेशानी आती है। वहीं बुध के शुभ प्रभाव से बुद्धि, व्यापार, संचार और शिक्षा में उन्नति मिलती है। यदि आप बुध के अशुभ प्रभाव से पीड़ित हैं तो तुरंत बुध ग्रह शांति के लिए ये उपाय करें। इन कार्यों को करने से बुध ग्रह से शुभ फल की प्राप्ति होती है और अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।
वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े बुध ग्रह शांति के उपाय
हरा रंग अथवा ग्रीन कलर के सभी शेड्स के कपड़े पहन सकते हैं।
बहन, बेटी अथवा छोटी कन्या का सम्मान करें।
बहन को उपहार भेंट करें।
व्यापार में ईमानदार रहें।
विशेषतः सुबह किये जाने वाले बुध ग्रह के उपाय
भगवान विष्णु की पूजा करें।
भगवान बुध की आराधना करें।
श्री विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र का जाप करें।
बुध के लिये व्रत
व्यापार में धन लाभ अथवा गृह क्लेश निवारण के लिए बुधवार के दिन व्रत धारण करें।
बुध ग्रह शांति के लिये दान करें
बुध ग्रह से संबंधित वस्तुओं को बुधवार के दिन बुध की होरा एवं इसके नक्षत्रों (अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) में सुबह अथवा शाम को करना चाहिए।
दान करने वाली वस्तुएँ- हरी घास, साबुत मूंग, पालक, कांस्य के बर्तन, नीले रंग के पुष्प, हरे व नीले रंग के कपड़े, हाथी के दांतों से बनी वस्तुएँ इत्यादि।
बुध के लिए रत्न
ज्योतिष में बुध ग्रह शांति के लिए पन्ना रत्न धारण किया जाता है। पन्ना को पहनने से जातक को अच्छे फल प्राप्त होते हैं। बुध प्रधान राशि मिथुन और कन्या राशि के जातकों के लिए पन्ना रत्न शुभ होता है।
श्री बुध यंत्र
जिनकी बुध की महादशा चल रही हो उनको अभिमंत्रित बुध यंत्र को बुध की होरा और बुध के नक्षत्र के समय धारण करना चाहिए।
बुध के लिये जड़ी
बुध ग्रह के कुप्रभाव को कम करने के लिए विधारा की जड़ पहनें। इस जड़ को बुधवार के दिन बुध की होरा के समय अथवा बुध के नक्षत्र में धारण करें।
बुध ग्रह के लिये रुद्राक्ष
बुध ग्रह की शुभता के लिए 4 मुखी रुद्राक्ष / 10 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ ह्रीं नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्रीं।।
बुध मंत्र
बुध ग्रह से शुभ फल पाने के लिए बुध बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः!
सामान्य रूप से बुध मंत्र को 9000 बार जपना चाहिए। हालाँकि देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को 36000 बार जपने के लिए कहा गया है।
बुध ग्रह को प्रसन्न करने के लिए आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - ॐ बुं बुधाय नमः अथवा ॐ ऐं श्रीं श्रीं बुधाय नमः!
बुध ग्रह शांति के उपाय करने से निश्चित ही आपको बुध ग्रह के शुभ फल प्राप्त होंगे और आपकी बौद्धिक, तार्किक एवं गणना शक्ति में वृद्धि होगी। इसके साथ ही आपकी संवाद शैली में निखार आएगा। इस लेख में दिए गए मजबूत बुध के टोटके पूर्ण रूप से वैदिक ज्योतिष पर आधारित हैं। जैसा कि आपने देखा है कि इस लेख में बुध दोष के उपाय के साथ उनको करने की भी विधि बतायी गई है और इसी विधि और नियम के साथ आपको बुध ग्रह शांति मंत्र का जाप, संबंधित रुद्राक्ष, रत्न तथा जड़ी को धारण करना चाहिए।
ज्योतिष में बुध ग्रह को एक तटस्थ ग्रह माना गया है, यह दूसरे ग्रहों की संगति के अनुसार ही फल देता है। वैदिक शास्त्रों में बुध ग्रह का संबंध भगवान विष्णु जी से है। अतः बुध शांति के उपाय करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। बुध ग्रह का वर्ण हरा है इसलिए बुध ग्रह शांति के लिए हरे रंग के कपड़ों को धारण अथवा दान किया जाता है। बुध ग्रह मिथुन और कन्या राशि का अधिपति है। इसलिए इन राशि के जातकों को बुध ग्रह शांति के उपाय को अवश्य ही करना चाहिए।
बृहस्पति ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को देव गुरु कहा गया है। गुरु को धर्म, दर्शन, ज्ञान और संतान का कारक माना जाता है। बृहस्पति ग्रह शांति से संबंधित कई उपाय हैं, जिन्हें करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। जन्म कुंडली में बृहस्पति की अनुकूल स्थिति से धर्म, दर्शन और संतान की प्राप्ति होती है। गुरु को वैदिक ज्योतिष में आकाश तत्व का कारक माना गया है। इसका गुण विशालता, विकास और व्यक्ति की कुंडली और जीवन में विस्तार का संकेत होता है। गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव से संतान प्राप्ति में बाधा, पेट से संबंधित बीमारी और मोटापा आदि परेशानी होती है। अगर आप बृहस्पति के अशुभ प्रभाव से पीड़ित हैं तो बृहस्पति ग्रह शांति के लिए ये उपाय करें। इन कार्यों को करने से शुभ फल की प्राप्ति होगी और अशुभ प्रभाव दूर होंगे।
वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े बृहस्पति ग्रह शांति के उपाय
पीला, क्रीम कलर और ऑफ़ व्हाइट रंग उपयोग में लाया जा सकता है।
गुरु ब्राह्मण एवं अपने से बड़े लोगों का सम्मान करें। यदि आप महिला हैं तो अपने पति का सम्मान करें।
अपने बच्चे और बड़े भाई से अच्छे संबंध बनाएँ।
किसी से झूठ न बोलें।
ज्ञान का वितरण करें।
विशेषतः सुबह किये जाने वाले बृहस्पति ग्रह के उपाय
भगवान शिव की आराधना करें।
वामन देव की पूजा करें।
शिव सहस्रनाम स्तोत्र का जाप करें।
श्रीमद् भागवत पुराण का पाठ करें।
बृहस्पति के लिये व्रत
शीघ्र विवाह, धन, विद्या आदि की प्राप्ति के लिए गुरुवार के दिन व्रत धारण करें।
बृहस्पति शांति के लिये दान करें
बृहस्पति ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान गुरुवार के दिन बृहस्पति के होरा और गुरु के नक्षत्रों (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व भाद्रपद) में शाम को करना चाहिए।
दान की जाने वाली वस्तुएँ हैं- केसरिया रंग, हल्दी, स्वर्ण, चने की दाल, पीत वस्त्र, कच्चा नमक, शुद्ध घी, पीले पुष्प, पुखराज रत्न एवं किताबें।
बृहस्पति के लिए रत्न
ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह शांति के लिए पुखराज रत्न को धारण किया जाता है। गुरु धनु और मीन राशि का स्वामी है। अतः धनु और मीन राशि के जातकों के लिए पुखराज रत्न शुभ होता है।
श्री गुरु यंत्र
बृहस्पति के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए गुरु यंत्र को गुरुवार के दिन बृहस्पति की होरा एवं इसके नक्षत्र के समय धारण करें।
बृहस्पति के लिये जड़ी
गुरु ग्रह (बृहस्पति) के शुभ परिणाम प्राप्त करने के लिए पीपल की जड़ धारण करें। इस जड़ को गुरु की होरा और गुरु के नक्षत्र में धारण करें।
बृहस्पति के लिये रुद्राक्ष
गुरु ग्रह (बृहस्पति) की शुभता के लिए 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
पाँच मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लिए मंत्र:
ॐ ह्रीं नमः।
ॐ ह्रां आं क्षंयों सः ।।
बृहस्पति मंत्र
बृहस्पति देव से शुभ आशीष पाने के लिए गुरु बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः!
वैसे तो गुरु मंत्र को कम से कम 19000 बार इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए, परंतु देश-काल-पात्र पद्धति के अनुसार कलयुग में इसे 76000 बार करने की सलाह दी गई है।
गुरु की कृपा दृष्टि पाने के लिए आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - ॐ बृं बृहस्पतये नमः!
ऊपर दिए गए बृहस्पति शांति के उपाय बहुत ही कारगर हैं। ये गुरु ग्रह शांति के उपाय वैदिक ज्योतिष पर आधारित हैं, जिन्हें जातक आसानी से कर सकते हैं। यदि कोई जातक विधि अनुसार बृहस्पति को मजबूत करने के उपाय को करता है तो उसे न केवल बृहस्पति के बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है, बल्कि उसे गुरु और स्वयं ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस लेख में आपको बृहस्पति दोष के उपाय के साथ-साथ उन्हें करने की विधि भी बतायी गई है जिसके अनुसार, आप गुरु मंत्र या गुरु यंत्र को स्थापित कर सकते हैं।
ज्योतिष में गुरु को शुभ ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। हालाँकि किसी क्रूर ग्रह से पीड़ित होने पर अथवा अपनी नीच राशि मकर में होने पर गुरु के फल नकारात्मक भी हो सकते हैं। यदि आपका गुरु शुभ स्थिति में है अथवा अपनी उच्च राशि (कर्क) में बैठा है तो आप गुरु ग्रह शांति के उपाय कर सकते हैं। इससे आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और धर्म कर्म के कार्यों में आपकी रुचि बढ़ेगी। बृहस्पति मंत्र का जाप करने से जातकों को संतान सुख एवं अपने गुरुजनों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
शुक्र ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय
वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को लाभदाता ग्रह कहा जाता है। यह प्रेम, जीवनसाथी, सांसारिक वैभव, प्रजनन और कामुक विचारों का कारक है। शुक्र ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गये हैं। जिन लोगों की कुंडली में शुक्र उच्च भाव में रहता है उन्हें जीवन में भौतिक संसाधनों का आनंद प्राप्त होता है। वहीं कुंडली में शुक्र की स्थिति कमजोर होने से आर्थिक कष्ट, स्त्री सुख में कमी, डायबिटीज़ और सांसारिक सुखों में कमी आने लगती है। ज्योतिष में शुक्र ग्रह शांति के लिए दान, पूजा-पाठ और रत्न धारण किये जाते हैं। शुक्र से जुड़े इन उपायों में शुक्रवार का व्रत, दुर्गाशप्तशी का पाठ, चावल और श्वेत वस्त्र का दान आदि करने का विधान है। अगर आपकी कुंडली में शुक्र की स्थिति कमजोर है, तो उन उपायों को अवश्य करें। इन कार्यों को करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल की प्राप्ति होगी और अशुभ प्रभाव दूर होंगे।
वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े शुक्र ग्रह शांति के उपाय
चमकदार सफेद एवं गुलाबी रंग का प्रयोग करें।
प्रियतम एवं अन्य महिलाओं का सम्मान करें। यदि आप पुरुष हैं तो अपनी पत्नी का आदर करें।
कलात्मक क्रियाओं का विकास करें।
चरित्रवान बनें।
विशेषतः सुबह किये जाने वाले शुक्र ग्रह के उपाय
माँ लक्ष्मी अथवा जगदम्बे माँ की पूजा करें।
भगवान परशुराम की आराधना करें।
श्री सूक्त का पाठ करें।
शुक्र के लिये व्रत
अशुभ शुक्र की शांति के लिए शुक्रवार के दिन उपवास रखें।
शुक्र शांति के लिये दान करें
पीड़ित शुक्र को मजबूत करने के लिए शुक्र ग्रह से संबंधित वस्तुओं को शुक्रवार के दिन शुक्र की होरा एवं इसके नक्षत्रों (भरानी, पूर्व फाल्गुनी, पूर्व षाढ़ा) के समय दान करना चाहिए।
दान करने वाली वस्तुएँ- दही, खीर, ज्वार, इत्र, रंग-बिरंगे कपड़े, चांदी, चावल इत्यादि।
शुक्र के लिए रत्न
शुक्र ग्रह के लिए हीरा धारण किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार वृषभ और तुला दोनों शुक्र की राशि हैं। अतः इन राशि के जातकों के लिए हीरा पहनना शुभ होता है।
शुक्र यंत्र
शुक्र यंत्र की पूजा से प्रेम जीवन, व्यापार और धनलाभ में वृद्धि होती है। शुक्र यंत्र को शुक्रवार को शुक्र की होरा एवं शुक्र के नक्षत्र के समय धारण करें।
शुक्र ग्रह के लिये जड़ी
शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए अरंड मूल अथवा सरपंखा मूल धारण करें। अरंड मूल/सरपंखा मूल को शुक्रवार के दिन शुक्र की होरा अथवा शुक्र के नक्षत्र में धारण किया जा सकता है।
शुक्र के लिये रुद्राक्ष
शुक्र के लिये 6 मुखी रुद्राक्ष / 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ ह्रीं नमः।
ॐ रं मं यं ॐ।
शुक्र मंत्र
जीवन में आर्थिक संपन्नता, प्रेम और आकर्षण में बढ़ोत्तरी के लिए शुक्र बीज मंत्र "ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः" का उच्चारण करना चाहिए।
इस मंत्र को कम से कम 16000 बार उच्चारण करना चाहिए और देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को 64000 बार जपने के लिए कहा गया है।
आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - ॐ शुं शुक्राय नमः।
वैदिक ज्योतिष में दिए गए शुक्र शांति के उपाय को नियम के अनुसार करने से जातकों को भौतिक सुखों का आनंद प्राप्त होता है। इसके साथ ही जातकों के जीवन में ऐश्वर्य, धन, एवं समृद्धि का आगमन होता है और व्यक्ति के कलात्मक गुणों का विकास होता है। चूंकि ज्योतिष में शुक्र का संबंध कला से जोड़ा गया है। अतः जो व्यक्ति कला की विभिन्न विधाओं से जुड़ा है तो ऐसे लोगों को शुक्र दोष के उपाय करने चाहिए। इससे उन्हें इस क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त होगी। इस आलेख में मजबूत शुक्र के टोटके बहुत ही सरल रूप में बताए गए हैं जिन्हें आप आसानी से कर सकते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र ग्रह को वृषभ और तुला का स्वामी कहा जाता है। अर्थात इन राशियों के जातकों को शुक्र ग्रह के आसान उपाय करने चाहिए। शास्त्रो में कहा गया है कि शुक्र ग्रह माँ लक्ष्मी जी का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए जो व्यक्ति शुक्र व्रत का पालन करता है उसे माता लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शनि ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय
वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह को क्रूर ग्रह बताया जाता है, लेकिन शनि शत्रु नहीं बल्कि मित्र है। शनि देव कलयुग के न्यायाधीश हैं और लोगों को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। शनि ग्रह शांति के लिए कई उपाय किये जाते हैं। इनमें शनिवार का व्रत, हनुमान जी की आराधना, शनि मंत्र, शनि यंत्र, छायापात्र दान करना आदि प्रमुख उपाय हैं। शनि कर्म भाव का स्वामी है इसलिए शनि के शुभ प्रभाव से नौकरी और व्यवसाय में तरक्की मिलती है। वहीं कुंडली में शनि के कमजोर होने से बिजनेस में परेशानी, नौकरी का छूटना, अनचाही जगह पर ट्रांसफर, पदोन्नति में बाधा और कर्ज आदि समस्या आती हैं। यदि आप इस तरह की समस्या से परेशान हैं, तो आपको शनि ग्रह शांति के लिए उपाय अवश्य करना चाहिए। क्योंकि इन कार्यों को करने से शनि देव से शुभ फल की प्राप्ति होगी और अशुभ प्रभाव समाप्त होंगे।
वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े शनि ग्रह शांति के उपाय
काले रंग के वस्त्रों का प्रयोग करें।
मामा एवं बुजुर्ग लोगों का सम्मान करें।
कर्मचारिओं अथवा नौकरों को हमेशा ख़ुश रखें।
शराब एवं मांस का सेवन न करें।
रात को दूध न पिएँ।
शनिवार को रबर, लोहा से संबंधित चीज़ें न ख़रीदें।
विशेषतः सुबह किये जाने वाले शनि ग्रह के उपाय
शनि देव की पूजा करें।
श्री राधे-कृष्ण की आराधना करें।
हनुमान जी की पूजा करें।
कूर्म देव की पूजा करें।
शनिदेव के लिये व्रत
दंडाधिकारी शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार का व्रत करके शनिदेव की विशेष पूजा, शनि प्रदोष व्रत, शनि मंदिर में जाकर दीप भेंट करना आदि विधि विधान से करें।
शनि शांति के लिये दान करें
शनि ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान शनिवार के दिन शनि की होरा एवं शनि ग्रह के नक्षत्रों (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद) में दोपहर अथवा शाम को करना चाहिए।
दान करने वाली वस्तुएँ- साबुत उड़द, लोहा, तेल, तिल के बीज, पुखराज रत्न, काले कपड़े आदि।
शनि के लिए रत्न
शनि के लिए नीलम रत्न को पहना जाता है। इस रत्न को मकर और कुंभ राशि के जातक धारण कर सकते हैं। यह रत्न शनि के नकारात्मक प्रभावों से बचाता है।
शनि यंत्र
जीवन में शांति, कार्य सिद्धि और समृद्धि के लिए शुभ शनि यंत्र की पूजा करें। शनि यंत्र को शनिवार के दिन शनि की होरा एवं शनि के नक्षत्र में धारण करें।
शनि के लिये जड़ी
शनि शांति के लिए बिच्छू जड़ अथवा धतूरे की जड़ को शनिवार के दिन शनि होरा अथवा शनि के नक्षत्र में धारण करें।
शनि के लिये रुद्राक्ष
शनि के लिये 7 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
सात मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ हूं नमः।
ॐ ह्रां क्रीं ह्रीं सौं।।
शनि मंत्र
शनि दोष निवारण के लिए शनि बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः!
23000 बार इस शनि मंत्र का जाप करें। देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र का 92000 बार उच्चारण करना चाहिए।
शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं- ॐ शं शनिश्चरायै नमः!
इस आलेख में बताए गए शनि ग्रह शांति के उपाय बहुत ही कारगर हैं। यदि आप मजबूत शनि के उपाय विधि पूर्वक करते हैं तो आपको इससे बहुत लाभ प्राप्त होगा। यदि आप शनि बीज मंत्र का उच्चारण और शनि यंत्र की स्थापना के पश्चात पूजा करेंगे तो आप स्वयं में एक अद्भुत परिवर्तन का अनुभव करेंगे। विविध क्षेत्रों में आपको सफल परिणाम प्राप्त होंगे। शनि शांति के टोटके आपको शनि की बुरी नज़र से बचाएंगे।
ज्योतिष में शनि को एक अशुभ ग्रह माना जाता है। परंतु इसके परिणाम सदैव बुरे नहीं होते हैं। यह जातकों को उनके कर्मों के आधार पर फल देता है। हालाँकि शनि की चाल बहुत धीमी है। इसलिए जातकों को इसके परिणाम देरी से प्राप्त होते हैं। शनि ग्रह मकर और कुंभ राशि का स्वामी होता है। अतः इन राशियों के जातकों को शनि दोष के उपाय अवश्य करने चाहिए। यदि आपकी कुंडली में शनि उच्च का है तो भी आप शनि मंत्र का जाप कर सकते हैं। इससे शनि के शुभ फलों में वृद्धि होगी।
राहु ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय
वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु ग्रह एक क्रूर ग्रह है। कुंडली में राहु दोष होने से मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान, तालमेल की कमी होने लगती है। किसी समय विशेष पर हर कोई ग्रह अशुभ प्रभाव देने लगता है। ऐसी स्थिति में ग्रह शांति के लिए उपाय किये जाते हैं। राहु ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गये हैं। इनमें राहु से संबंधित वस्तु का दान, रत्न, राहु यंत्र, राहु मंत्र और जड़ी धारण करना प्रमुख उपाय हैं। ऐसी मान्यता है कि राहु के शुभ प्रभाव से व्यक्ति रातों रात रंक से राजा बन जाता है, वहीं अशुभ फल मिलने से राजा से रंक बन जाता है। यदि आपकी कुंडली में राहु कमजोर है तो राहु ग्रह शांति के लिए इन उपायों को अवश्य करें। क्योंकि इन कार्यों के प्रभाव से राहु शुभ फल प्रदान करेगा और आपके कष्टों में कमी आने लगेगी।
वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े राहु ग्रह शांति के उपाय
नीले रंग के कपड़े पहनें।
अपने ससुर, नाना-नानी एवं मरीज़ लोगों का सम्मान करें।
शराब एवं मांस का सेवन न करें।
कुत्तों की देखभाल करें।
विशेषतः सुबह किये जाने वाले राहु ग्रह के उपाय
माँ दुर्गा की पूजा करें।
वराह देव की आराधना करें।
भैरव देव की पूजा करें।
दुर्गा चालिसा का पाठ करें।
राहु शांति के लिये दान करें
राहु की अशुभ दशा से बचने के लिये राहु ग्रह से संबंधित वस्तुओं को बुधवार के दिन राहु के नक्षत्र (आर्द्र, स्वाति, शतभिषा) में शाम और रात में दान करें।
दान करने वाली वस्तुएँ- जौ, सरसो, सिक्का, सात प्रकार के अनाज (जौ, तिल, चावल, साबूत मूंग, कंगुनी, चना, गेहूँ ), गोमेद रत्न, नीले अथवा भूरें रंग के कपड़े, कांच निर्मित वस्तुएँ आदि।
राहु के लिए रत्न
राहु के लिए गोमेद रत्न है। इस रत्न को धारण करने से जातकों को राहु दोष से मुक्ति मिलती है तथा जातक को बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
राहु यंत्र
जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह, वैभव वृद्धि, अचानक आने वाली बाधाओं और बीमारियों से बचने के लिए राहु यंत्र का पूजन करें। राहु यंत्र को बुधवार के दिन राहु के नक्षत्र में धारण करें।
राहु ग्रह के लिये जड़ी
राहु ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए बुधवार के दिन नागरमोथा की जड़ को राहु के नक्षत्र के दौरान धारण करें।
राहु के लिये रुद्राक्ष
राहु दोष निवारण के लिए 8 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ हूं नमः।
ॐ ह्रां ग्रीं लुं श्री।।
राहु मंत्र
राहु महादशा निवारण के लिए राहु बीज मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। मंत्र - ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः!
राहु मंत्र का 18000 बार जाप करें जबकि देश-काल-पात्र पद्धति के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को अधिकतम 72000 बार जपना चाहिए।
आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - ॐ रां राहवे नमः!
राहु ग्रह शांति के उपाय करने से जातकों को राहु दोष से मुक्ति मिलती है। राहु एक छाया ग्रह है, जिसका कोई भौतिक रूप नहीं है। हिन्दू शास्त्रो के अनुसार राहु ग्रह भगवान भैरव देव का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, राहु को एक पापी ग्रह माना गया है। इसके प्रभाव से जातकों को कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। हालाँकि यह जातकों को शुभ और अशुभ दोनों ही परिणाम देता है। परंतु इसके अशुभ परिणामों से बचने के लिए राहु मंत्र का विधि अनुसार जाप करना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु और केतु के कारण कुंडली में काल सर्प दोष उत्पन्न होता है। इस दोष से बचने के लिए राहु शांति के उपाय कारगर हैं। राहु यंत्र की स्थापना तथा उसकी आराधना करने से जातकों को शिक्षा, व्यवसाय, कैरियर में आ रही परेशानियाँ दूर होती हैं। राहु दोष के उपाय छिपे हुए शत्रुओं, गुप्त रूप से आ रही बाधाओं, छल- कपट, गुप्त रोगों, सामाजिक असम्मान और भेदभाव से बचाता है।
केतु ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय
वैदिक ज्योतिष में राहु की तरह केतु ग्रह को भी क्रूर ग्रह माना गया है। इसे तर्क, कल्पना और मानसिक गुणों आदि का कारक कहा जाता है। केतु ग्रह शांति के लिए अनेक उपाय बताये गये हैं। इनमें केतु यंत्र, केतु मंत्र, केतु जड़ी और भगवान गणेश की आराधना करना प्रमुख उपाय है। केतु हानिकारक और लाभकारी दोनों तरह के प्रभाव देता है। एक ओर जहां यह हानि और कष्ट देता है वहीं दूसरी ओर व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति के शिखर तक लेकर जाता है। यदि आप केतु के अशुभ प्रभाव से पीड़ित हैं या कुंडली में केतु की स्थिति कमजोर है, तो केतु ग्रह शांति के लिए यह उपाय अवश्य करें। इन कार्यों को करने से केतु से शुभ फल की प्राप्ति होगी।
वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े केतु ग्रह शांति के उपाय
ग्रे, भूरा या विविध रंग का प्रयोग करें।
पुत्र, भतीजा एवं छोटे लड़कों के साथ अच्छे संबंध बनाए।
शॉवर में स्नान करें।
कुत्तों की सेवा करें।
विशेषतः सुबह किये जाने वाले केतु ग्रह के उपाय
गणेश जी की पूजा करें।
मतस्य देव की पूजा करें।
श्री गणपति अथर्वशीर्ष का जाप करें।
केतु शांति के लिये दान करें
केतु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए केतु से संबंधित वस्तुओं को बुधवार के दिन केतु के नक्षत्र (अश्विनी, मघा, मूल) में देर शाम को दान किया जाना चाहिए।
दान की जाने वाली वस्तुएँ- केला, तिल के बीज, काला कंबल, लहसुनिया रत्न एवं काले पुष्प आदि।
केतु के लिए रत्न
ज्योतिष में केतु ग्रह के लिए लहसुनिया रत्न को बताया गया है। यह रत्न केतु के बुरे प्रभावों से रक्षा करता है।
केतु यंत्र
व्यापार लाभ, शारीरिक स्वास्थ्य व पारिवारिक मामले आदि के लिए केतु यंत्र के साथ माँ लक्ष्मी और गणपति की अराधना करें। केतु यंत्र को बुधवार के दिन केतु के नक्षत्र में धारण करें।
केतु के लिये जड़ी
केतु ग्रह के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए बुधवार को बुध के नक्षत्र में अश्वगंधा अथवा अस्गंध मूल धारण करें।
केतु ग्रह के लिये रुद्राक्ष
केतु ग्रह के लिये 9 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ॐ ह्रीं हूं नमः।
ॐ ह्रीं व्यं रूं लं।।
केतु मंत्र
केतु की अशुभ दशा से बचने के लिए केतु बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः!
केतु मंत्र का 17000 बार उच्चारण करें। देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को 68000 बार जपने के लिए कहा गया है।
आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - ॐ कें केतवे नमः!
वैदिक ज्योतिष में केतु ग्रह शांति के उपाय को बड़ा महत्व है। दरअसल, केतु ग्रह का कोई भौतिक स्वरूप नहीं है। बल्कि यह एक छाया ग्रह है। इसके स्वभाव के कारण इसे पापी ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि केतु के कारण जातकों को सदैव परेशानी का सामना करना पड़ता है। बल्कि इसके शुभ प्रभावों से जातकों को मोक्ष भी प्राप्त हो सकता है। मिथुन राशि में यह नीच भाव में होता है और नीच भाव में होने के कारण जातकों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे जातक के जीवन में अचानक कोई बाधा आ जाती है, पैरों और जोड़ों में दर्द, रीड़ की हड्डी से संबंधित परेशानी आदि रहती हैं। इन सबसे बचने के लिए केतु दोष के उपाय बहुत ही कारगर हैं। केतु मंत्र का जाप करने से जातक को केतु से संबंधित बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है। वहीं केतु यंत्र की स्थापना करने से जातकों को कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
Pitr Dosh
घर के प्रेत या पितर रुष्ट होने के लक्षण और उपाय
बहुत जिज्ञासा होती है। आखिर ये पितृदोष है। क्या? पितृ -दोष शांति के सरल उपाय पितृ या पितृ गण कौन हैं। आपकी जिज्ञासा को शांत करती विस्तृत प्रस्तुति।
पितृ गण हमारे पूर्वज हैं। जिनका ऋण हमारे ऊपर है। क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है। मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है। पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है। एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।
आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है। वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं। अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं। तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है।
वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं। तो आत्मा सूर्य लोक को भेज कर स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है। लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है। जो परमात्मा में समाहित होती है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।
पितृ दोष क्या होता है।
हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है।
पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं ,आपके आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।
इसके अलावा मानसिक अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना , विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते,कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए ,उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।
पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है।
1.अधोगति वाले पितरों के कारण
2.उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण
अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण,की अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं ,परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।
उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं।
इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता। पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले ये जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ?
जन्म पत्रिका और पितृ दोष जन्म पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, शनि और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है।
इनमें से भी गुरु ,शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है।
अधिकाँश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ,इसलिए विभिन्न उपायों को करने के साथ साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी ,सातमुखी और आठ मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर ले , तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता है।
पितृ दोष निवारण के लिए इन रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है।
विभिन्न ऋण और पितृ दोष
हमारे ऊपर मुख्य रूप से 5 ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित रूप से श्राप मिलता है। ये ऋण हैं। मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण।
मातृ ऋण माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं। ,क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है। तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है।
पितृ ऋण पिता पक्ष के लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है। और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है।
पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ?पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है ,इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विभिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि।
देव ऋण माता-पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने |इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज भी भी अपने अपने कुल देवताओं को मानते थे , लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं।
ऋषि ऋण जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए ,वंश वृद्धि की ,उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है ,उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं,इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है।
मनुष्य ऋण माता -पिता के अतिरिक्त जिन अन्य मनुष्यों ने हमें प्यार दिया ,दुलार दिया ,हमारा ख्याल रखा ,समय समय पर मदद की गाय आदि पशुओं का दूध पिया जिन अनेक मनुष्यों ,पशुओं ,पक्षियों ने हमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद की ,उनका ऋण भी हमारे ऊपर हो गया।
लेकिन लोग आजकल गरीब ,बेबस ,लाचार लोगों की धन संपत्ति हरण करके अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं। इसी कारण देखने में आया है कि ऐसे लोगों का पूरा परिवार जीवन भर नहीं बस पाता है,वंश हीनता ,संतानों का गलत संगति में पड़ जाना,परिवार के सदस्यों का आपस में सामंजस्य न बन पाना ,परिवार कि सदस्यों का किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहना इत्यादि दोष उस परिवार में उत्पन्न हो जाते हैं।
ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है रामायण में श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है।
पितृों के रूष्ट होने के लक्षण
पितरों के रुष्ट होने के कुछ असामान्य लक्षण जो मैंने अपने निजी अनुभव के आधार एकत्रित किए है वे क्रमशः इस प्रकार हो सकते है।
खाने में से बाल निकलना
अक्सर खाना खाते समय यदि आपके भोजन में से बाल निकलता है। तो इसे नजरअंदाज न करें।
बहुत बार परिवार के किसी एक ही सदस्य के साथ होता है कि उसके खाने में से बाल निकलता है, यह बाल कहां से आया इसका कुछ पता नहीं चलता। यहां तक कि वह व्यक्ति यदि रेस्टोरेंट आदि में भी जाए तो वहां पर भी उसके ही खाने में से बाल निकलता है और परिवार के लोग उसे ही दोषी मानते हुए उसका मजाक तक उडाते है।
बदबू या दुर्गंध
कुछ लोगों की समस्या रहती है कि उनके घर से दुर्गंध आती है, यह भी नहीं पता चलता कि दुर्गंध कहां से आ रही है। कई बार इस दुर्गंध के इतने अभ्यस्त हो जाते है कि उन्हें यह दुर्गंध महसूस भी नहीं होती लेकिन बाहर के लोग उन्हें बताते हैं कि ऐसा हो रहा है अब जबकि परेशानी का स्रोत पता ना चले तो उसका इलाज कैसे संभव है।
पूर्वजों का स्वप्न में बार बार आना
मेरे एक मित्र ने बताया कि उनका अपने पिता के साथ झगड़ा हो गया है और वह झगड़ा काफी सालों तक चला पिता ने मरते समय अपने पुत्र से मिलने की इच्छा जाहिर की परंतु
पुत्र मिलने नहीं आया, पिता का स्वर्गवास हो गया हुआ। कुछ समय पश्चात मेरे मित्र मेरे पास आते हैं। और कहते हैं। कि उन्होंने अपने पिता को बिना कपड़ों के देखा है ऐसा स्वप्न पहले भी कई बार आ चुका है।
शुभ कार्य में अड़चन
कभी-कभी ऐसा होता है कि आप कोई त्यौहार मना रहे हैं या कोई उत्सव आपके घर पर हो रहा है ठीक उसी समय पर कुछ ना कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि जिससे रंग में भंग डल जाता है। ऐसी घटना घटित होती है कि खुशी का माहौल बदल जाता है। मेरे कहने का तात्पर्य है कि शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों की असंतुष्टि का संकेत है।
घर के किसी एक सदस्य का कुंवारा रह जाना
बहुत बार आपने अपने आसपास या फिर रिश्तेदारी में देखा होगा या अनुभव किया होगा कि बहुत अच्छा युवक है, कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी शादी नहीं हो रही है। एक लंबी उम्र निकल जाने के पश्चात भी शादी नहीं हो पाना कोई अच्छा संकेत नहीं है। यदि घर में पहले ही किसी कुंवारे व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है तो उपरोक्त स्थिति बनने के आसार बढ़ जाते हैं। इस समस्या के कारण का भी पता नहीं चलता।
मकान या प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में दिक्कत आना
आपने देखा होगा कि कि एक बहुत अच्छी प्रॉपर्टी, मकान, दुकान या जमीन का एक हिस्सा किन्ही कारणों से बिक नहीं पा रहा यदि कोई खरीदार मिलता भी है तो बात नहीं बनती। यदि कोई खरीदार मिल भी जाता है और सब कुछ हो जाता है तो अंतिम समय पर सौदा कैंसिल हो जाता है। इस तरह की स्थिति यदि लंबे समय से चली आ रही है तो यह मान लेना चाहिए कि इसके पीछे अवश्य ही कोई ऐसी कोई अतृप्त आत्मा है जिसका उस भूमि या जमीन के टुकड़े से कोई संबंध रहा हो।
संतान ना होना
मेडिकल रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य होने के बावजूद संतान सुख से वंचित है हालांकि आपके पूर्वजों का इस से संबंध होना लाजमी नहीं है परंतु ऐसा होना बहुत हद तक संभव है जो भूमि किसी निसंतान व्यक्ति से खरीदी गई हो वह भूमि अपने नए मालिक को संतानहीन बना देती है।
उपरोक्त सभी प्रकार की घटनाएं या समस्याएं आप में से बहुत से लोगों ने अनुभव की होंगी इसके निवारण के लिए लोग समय और पैसा नष्ट कर देते हैं परंतु समस्या का समाधान नहीं हो पाता। क्या पता हमारे इस लेख से ऐसे ही किसी पीड़ित व्यक्ति को कुछ प्रेरणा मिले इसलिए निवारण भी स्पष्ट कर रहा हूं।
पितृ-दोष कि शांति के उपाय
1- सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ,ब्राह्मण को गौ -दान ,कन्या -दान,कुआं ,बावड़ी ,तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल ,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना ,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए।
2- वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र ,स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो ,शांत हो जाती है अगर नित्य पठन संभव ना हो , तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए।
वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है।
3- भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है |मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं :
मंत्र :- "ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।
4- अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा ,घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है।
5- अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।
6- पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए "हरिवंश पुराण " का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।
7- प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।
8- सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः " मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।
9- अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
10- पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें अगर १०८ परिक्रमा लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा।
विशिष्ट उपाय :-
1- किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं।
2- यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी मजबूर व्यक्ति की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें।
3- पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए।
एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें।
इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें उसे थोड़े जल में मिलाकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों में डाल दें इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे 5 अगरबत्ती ,एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा।
4- घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है।
5- अगर पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर अथवा शिवालय में पितृ गायत्री मंत्र का सवा लाख विधि से जाप कराएं जाप के उपरांत दशांश हवन के बाद संकल्प ले की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंके उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है।
6- पितृ दोष की शांति हेतु ये उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है,वोह ये कि- किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना |(लेकिन ये सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए ,केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं )|इस से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि इसके परिणाम स्वरुप मिलने वाले पुण्य फल से पितरों को बल और तेज़ मिलता है ,जिस से वह ऊर्ध्व लोकों की ओरगति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होते हैं|
7- अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए "गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र " का पाठ करना चाहिए।
8- पितृ दोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय :- इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण (N -W )में नित्य सरसों का तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्य लगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है ,दीपक कम से कम 10 मिनट नित्य जलना आवश्यक है।
इन उपायों के अतिरिक्त वर्ष की प्रत्येक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को आंध्र होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में साड़ी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ कि जद में रख कर आ जाएँ,पीछे मुड़कर न देखें। नित्य प्रति घर में देसी कपूर जाया करें। ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं। और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन किसी भी प्रयोग की सफलता आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा के ऊपर निर्भर करती है।
पितृदोष निवारण के लिए करें विशेष उपाय (नारायणबलि-नागबलि)
अक्सर हम देखते हैं कि कई लोगों के जीवन में परेशानियां समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती। वे चाहे जितना भी समय और धन खर्च कर लें लेकिन काम सफल नहीं होता। ऐसे लोगों की कुंडली में निश्चित रूप से पितृदोष होता है।
यह दोषी पीढ़ी दर पीढ़ी कष्ट पहुंचाता रहता है। जब तक कि इसका विधि-विधानपूर्वक निवारण न किया जाए। आने वाली पीढ़ीयों को भी कष्ट देता है। इस दोष के निवारण के लिए कुछ विशेष दिन और समय तय हैं जिनमें इसका पूर्ण निवारण होता है। श्राद्ध पक्ष यही अवसर है जब पितृदोष से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दोष के निवारण के लिए शास्त्रों में नारायणबलि का विधान बताया गया है। इसी तरह नागबलि भी होती है।
क्या है नारायणबलि और नागबलि
नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।
इन कारणों से की जाती है नारायणबलि पूजा
जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए।प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है।परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो। आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है।
क्यों की जाती है यह पूजा...?
शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है। यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है। यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं।संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है।यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।
कब नहीं की जा सकती है नारायणबलि-नागबलि
नारायणबलि गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है।धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है।
पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय
नारायणबलि- नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए। यह कर्म गंगा तट अथवा अन्य किसी नदी सरोवर के किनारे में भी संपन्न कराया जाता है। संपूर्ण पूजा तीन दिनों की होती है।
पितृ गायत्री मंत्र :- यह मंत्र के जाप से दूर होगा पितृ दोष:-
पितृ पक्ष का पावन पर्व प्रारम्भ होने वाला है। बुधवार दो सितंबर से, सूर्योदयनी पूर्णिमा... पूर्णिमा से अमावस्या तक यह पर्व सभी के लिए एक नई आशा की किरण लेकर आता है। जब हम अपने सभी बढ़े - बुजुर्गों को याद कर उनसे विशेष कृपा प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते है। पितृ आशीर्वाद से वो सब प्राप्त होता है जो हमें चाहिए, वह सब जिनके बिना हमारा जीवन अधूरा होता है।
पितृ हमारे जन्म का कारण होते है और हमें समय समय पर गलत मार्ग से हटा कर सही दिशा देते है। इसलिए जीवन को सही दिशा में बनाये रखने के लिए समय-समय पर हमें अपने पितरों के लिए पूजा-पाठ व दान धर्म जरुर करना चाहिए पितृ दोष को शान्त करने के लिए और पितरों का आर्शिवाद प्राप्त करने के लिए पितृ गायत्री मंत्र सबसे श्रेष्ठ है। पितृ पक्ष में इस मंत्र का जाप करने से रुष्ट पितृ तृप्त होकर अपनी कृपा मंत्र जाप करने या कराने वाले के ऊपर जरुर करते है।
पितृ गायत्री मंत्र:-
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च.!
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः
यह मंत्र का जाप पितृ पक्ष और अमावस्या के दिन करने से तत्काल पितृ शान्ति होती है। इस मंत्र का जाप करते समय भगवान विष्णु के चरणों का ध्यान करना चाहिए।
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
वर्षफल वर्षफल Tajik Scriptures
ताजिक शास्त्र में लग्न का आपकी कुंडली पर असर
वर्षफल कैसे तैयार किया जाता है। और मुंथा की कौन सी स्थिति कैसी होती है।
आज जानिए मेरे साथ की वर्षफल कैसे तैयार किया जाता है। और मुंथा की कौन सी स्थिति कैसी होती है।
जातक के लिए आने वाले वर्ष का फलादेश करने हेतु वर्षफल द्वारा आने वाले वर्ष का फलादेश: वर्षफल में संपूर्ण जीवन की घटनाओं का वर्णन न होकर, किसी एक या दो विशेष वर्ष की मुख्य एवं आकस्मिक घटनाओं, स्वास्थ्य रोगादि का विचार, पदोन्नति, स्त्री एवं संतान सुख, परीक्षा में सफलता, व्यापार में उतार-चढ़ाव या स्थानांतरण आदि मुख्य विषयों का समावेश रहता है। वर्षफल द्वारा फलादेश करने हेतु किसी जातक का इष्टकालीन सूर्य आगामी वर्ष जब ठीक उसी राशि, अंश, कला, विकला पर आ जाता है, तो तत्कालीन वार, तिथि, नक्षत्र एवं इष्टकाल पर आधारित जो वर्ष कुंडली बनाई जाती है, उस समय की कुंडली को वर्ष प्रवेश कुंडली कहा जाता है। वर्ष कुंडली में ग्रहों की स्थिति एवं मुंथा या मुंथेश ग्रह की स्थिति अशुभ हो, तो जन्म के दिन संबद्ध ग्रहों की पूजा, जप एवं दानादि करने से ग्रह-जनित दोषों की शांति हो जाती है तथा वर्ष में संभावित बाधाएं दूर होकर अभीष्ट कार्यों में सफलता एवं सिद्धि प्राप्त होती है। वर्षफल में मुंथा का विशेष महत्व होता है। वर्ष कुंडली में चैथे, छठे, सातवें, आठवें एवं 12वें भावों में स्थित मुंथा अशुभ फलदायक होती है। जैसे यदि वर्ष कुंडली में मुंथा छठे या आठवें भाव में हो, तो शत्रु, रोग एवं ऋण में वृद्धि, शारीरिक कष्ट, कलह आदि का कारक होती है। इसी तरह द्वादश भाव में मुंथा स्थान हानि एवं व्यय कारक होती है। मुंथा यदि पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, तो शुभ स्थानों में होने पर भी अशुभ फल देती है। यदि दुःस्थान पाप ग्रस्त हो, तो और भी अधिक अनिष्टकारक होती है। किंतु यदि मुंथा शुभ ग्रह के साथ या दृष्ट हो, तो शुभ फलदायक होती है। यदि भाव 4, 6, 7, 8 या 12 में शुभ ग्रह युक्त हो, तो अधिक अनिष्टकारी नहीं होती है। मुंथा जिस राशि में स्थित होती है, उस राशि के स्वामी को मुंथेश कहा जाता है। मुंथा की तरह मुंथेश फल का भी विचार करना चाहिए। यदि मुंथेश और अष्टमेश वर्ष कुंडली में एक साथ स्थित हों, तो वर्ष में मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। यदि मुंथा या मुंथेश को अष्टमेश या अन्य कोई पाप ग्रह 4, 7, 10 दृष्टि से देखता हो, तो धन हानि एवं शारीरिक कष्ट होता है। द्वादश भावों में मुंथेश की श्रेष्ठ स्थिति लग्न, द्वितीय, तृतीय, पंचम, नवम, दशम तथा एकादश भाव में होती है। तृतीय, चतुर्थ, षष्ठ, सप्तम, अष्टम या द्वादश में स्थित मुंथेश अनिष्ट फल प्रदान करता है। पंचाधिकारी निर्णय: जैसा कि नीचे उल्लिखित है, वर्ष कुंडली में पांच ग्रह पंचाधिकारी कहलाते हैं तथा इनमें से जो ग्रह पंचवर्गीय बल में सर्वाधिक बली है और लग्न को देखता हो वर्षेश कहलाता है। जन्म लग्न का स्वामी: जन्म कुंडली में जो ग्रह लग्न राशि का स्वामी हो, वही लग्न का स्वामी कहलाता है। वर्ष लग्नपति: वर्ष कुंडली में जो ग्रह वर्ष लग्न राशि का स्वामी हो, वह वर्ष लग्नपति कहलाता है। मुंथाधिपति: वर्ष
कुंडली में मुंथा जिस राशि में हो, उस राशि का स्वामी ग्रह मुंथाधिपति कहलाता है। राशिपति: दिन में वर्ष प्रवेश होने की स्थिति में सूर्य जिस राशि में हो, उस राशि का स्वामी तथा रात्रि में वर्ष प्रवेश होने की स्थिति में चंद्र जिस राशि में हो, उस राशि का स्वामी राशिपति कहलाता है। त्रिराशिपति: नीचे चित्रित चक्र में देखते हुए दिन में वर्ष लग्न प्रवेश हुआ तो दिवात्रिराशिपति ग्रह तथा यदि रात्रि को वर्ष प्रवेश हुआ हो, तो तदनुसार रात्रि त्रिराशिपति ग्रह मानना चाहिए। उदाहरणार्थ यदि किसी जातक का लग्न कुंभ है ओर रात्रिकालीन जन्म है तो कुंभ राशि के नीचे और रात्रि त्रिराशिपति के आगे बृहस्पति लिखा है तो बृहस्पति त्रिराशिपति होगा जन्म लग्न से वर्ष लग्न का विचार वर्षफल की दृष्टि से वर्ष कुंडली का लग्न भी विशेष महत्व रखता है। यदि किसी जातक का वर्ष लग्न जन्म कुंडली के प्रथम, छठे, अष्टम अथवा बारहवें भावस्थ की राशि का उदित हो, तो अशुभ फलदायी होता है। द्वितीय भावस्थ राशि का लग्न हो, तो मिश्रित फलदायी होता है। अगर किसी जातक का जन्म लग्न कन्या हो और उसका आगामी वर्ष लग्न कन्या आ जाए, तो वह द्विजन्मा लग्न कहलाता है। इसी प्रकार जन्म कुंडली के द्वादश भावों की राशियां अगर वर्ष लग्न में लग्न बनकर प्रकट हों, तो वह अपना अलग-अलग प्रभाव देती हैं। वर्ष लग्न जन्म कुंडली का प्रथम भाव उदित हो, तो वह द्विजन्मा लग्न कहलाता है। द्विजन्मा वर्ष लग्न होने की स्थिति में शारीरिक कष्ट, अनावश्यक व्यय, गुप्त चिंताओं, स्वास्थ्य हानि एवं बनते कार्यों में विघ्न की संभावना रहती है। वर्ष लग्न जन्म कुंडली का द्वितीय भाव हो, तो जातक को उस वर्ष आकस्मिक आय एवं धन लाभ, वाहन सुख आदि की प्राप्ति की संभावना रहती है, परंतु उसका स्वास्थ्य प्रतिकूल रहता है। वर्ष लग्न जन्म कुंडली के तृतीय भाव की राशि का हो, तो जातक को उस वर्ष भाई-बंधुओं एवं मित्रों का सहयोग मिलता है। बिगडे काम बनत है और धन की प्राप्ति होती है, परतं साथ ही खर्च एवं आकस्मिक यात्राओं और पराक्रम में वृद्धि होती है। वर्ष लग्न जन्म कुंडली की चतुर्थ भावस्थ राशि का हो, तो उस वर्ष आय में वृद्धि के साथ-साथ वाहन सुख की प्राप्ति होती है। साथ ही भूमि, भवन आदि की प्राप्ति के अवसर प्राप्त होते हैं। वर्ष लग्न जन्म कुंडली की पंचमस्थ राशि का हो, तो उस वर्ष पूर्व से चल रही योजनाओं में आंशिक सफलता प्राप्त होती है। विद्या में सफलता तथा स्त्री एवं संतान सुख की प्राप्ति होती है। घर में कोई न कोई मंगल कार्य होता है। कार्य व्यवसाय संबंधी गुप्त योजनाएं बनती हैं। वर्ष लग्न कुंडली की छठी राशि का हो, तो उस वर्ष जातक को संघर्ष अधिक करना पड़ता है। रोग आदि के कारण शारीरिक कष्ट तथा ऋण की संभावना एवं शत्रु का भय रहता है। इसके अतिरिक्त आय कम तथा खर्च अधिक होते हैं। साथ ही गृह-कलह, मानसिक तनाव एवं धन हानि होती है। वर्ष लग्न जन्म
कुंडली की सातवीं राशि का हो, तो घर परिवार में विवाह आदि मांगलिक कार्य होते हैं। विद्या या विवाद आदि में सफलता अथवा पूर्व से चल रही योजनाओं में कामयाबी मिलती है। स्त्री सुख एवं विलासादि कार्यों पर अधिक खर्च होते हैं। वर्ष लग्न जन्म कुंडली की आठवीं राशि का हो, तो उस वर्ष रोग, एवं शारीरिक कष्ट या दुर्घटना का डर रहता है। आय में रुकावटें एवं धन हानि तथा खर्च भी आशा के विपरीत अधिक होते हैं। पारिवारिक उलझने बढ़ती हैं। वर्ष लग्न यदि जन्म कुंडली का नवम भाव हो, तो उस वर्ष धन लाभ के अवसर प्राप्त होते हैं। धार्मिक कार्यों में अभिरुचि बढ़ती है। भाग्योन्नति एवं मान-सम्मान में वृद्धि होती है। वर्ष लग्न यदि जन्म कुंडली का दशम भाव हो, तो कार्य व्यवसाय में लाभ व उन्नति के अवसर मिलते हैं। सरकारी क्षेत्र में या सर्विस में उन्नति के अवसर बनते हैं तथा मान-सम्मान में वृद्धि होती है। वर्ष लग्न यदि जन्मकुंली का ग्यारहवां भाव हो, तो उस वर्ष जातक को धन प्राप्ति व प्रगति के विशेष अवसर प्राप्त होते हैं। बिगड़े हुए कार्य बनते हैं। पारिवारिक सुख एवं आकस्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। वर्ष लग्न यदि जन्मकुंडली का बारहवां भाव हो, तो उस वर्ष जातक को अधिक संघर्ष करना पड़ता है। आय कम व खर्च अधिक होता है। शारीरिक कष्ट एवं गुप्त चिंताओं के कारण वह मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है। उसके अपने भी परायों जैसा व्यवहार करते हैं। वर्षफल में विभिन्न ग्रहों की दशाओं का फल: वर्षफल बनाने के उपरांत मुद्दा दशा निकालने हेतु गत वर्ष में जन्मकालीन नक्षत्र को जोड़कर उसमें से 2 घटाकर तथा 9 से भाग देने पर जो शेष अंक बचता है, उसी अंक क अनुरूप विभिन्न ग्रहों की दशा जाननी चाहिए। इस तरह, यदि 1 शेष बचे तो सूर्य की, 2 बचे तो चंद्र की, 3 बचे तो मंगल की, 4 बचे तो राहु की, 5 बचे तो गुरु की, 6 बचे तो शनि की, 7 बचे तो बुध की, 8 बचे तो केतु की और 9 अथवा 0 बचे तो शुक्र की दशा जाननी चाहिए। वर्ष कुंडली में फलादेश करने हेतु जरूरी नियम: वर्ष कुंडली एवं जन्म कुंडली में छठे, आठवें और द्वादश भावों में क्रूर, शुभ तथा सौम्य ग्रह अशुभ फलदायी माने जाते हैं। यदि वर्ष लग्न जन्म लग्न से अष्टम या षष्ठ हो, तो उस वर्ष जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है तथा धन की हानि होती है। वर्ष लग्नेश तथा मुंथेश दोनों ग्रह अस्त, वक्री या नीच राशिगत हों, तो उस वर्ष शारीरिक कष्ट, मानसिक तनाव, संतान संबंधी चिंता और धन की हानि होती है। यदि जन्म कुंडली का अष्टमेश ग्रह वर्ष में लग्नस्थ हो या लग्नेश हो, तो उस वर्ष जातक को बहुत अधिक संघर्ष एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जन्म कुंडली में जो ग्रह शुभ भावों के स्वामी हों, वे यदि वर्ष कुंडली में केंद्र, त्रिकोण या शुभ भाव में हों, तो वर्ष में उन भावो के फलों की वृद्धि होती है। वर्ष कुंडली में सूर्य और चंद्र एक ही राशि में हों, या दोनों छठे, आठवें या बाहरवें भाव में हों, तो वह वर्ष अनिष्टकारी होता है। यदि वर्ष लग्नेश निर्बल हो तथा मुन्थेश सूर्य, मंगल या बुध पाप युक्त हो, तो कार्य हानि, नेत्र रोग, एवं नजदीकी भाई-बंधुओं या मित्रों के कारण दुःख होता है। चंद्र या शुक्र पाप युक्त हो तो स्त्री, माता या पुत्री के कारण चिंता, गुरु पाप युक्त हों, तो पति, ज्येष्ठ भाई या संतान की चिंता होती है। शनि पापाक्रांत हो, तो बुरे कार्यों में अभिरुचि, धन की कमी, रोग व शत्रु भय की संभावना रहती है तथा कर्मचारियों के कारण परेशानियां पैदा होती हैं। यदि वर्ष कुंडली में चंद्र छठे, आठवें या द्वादश भाव अथवा लग्न में हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो, तो शस्त्र से भय या दुर्घटना से चोट, शनि की दृष्टि हो, तो रोग भय, सूर्य की दृष्टि हो तो शत्रु भय तथा बुध, गुरु या शुक्र की दृष्टि हो, तो धन लाभ के साथ-साथ रोग व शारीरिक कष्ट होता है। जन्म लग्नेश, वर्ष लग्नेश, अष्टमेश, वर्षेश और मुंथेश बलवान हों तथा पांचवें, छठे, आठवें और बारहवें भावों में न हों, तो उस वर्ष शुभ फल घटित होते हैं तथा जातक को धन एवं सुख के साधन प्राप्त होते रहते हैं। यदि उक्त ग्रह बल रहित हों और इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि भी न हो, तो जातक को धन हानि, दुख, पीड़ा एवं रोग या शत्रु भय देते हैं। वर्ष कुंडली में वर्ष लग्नेश, जन्म लग्नेश, मुंथा या मुंथेश तथा वर्षेश का विशेष महत्व होता है। ये सब अपने बल के अनुसार अपनी दशा में फल देते हैं। ये सभी अथवा इनमें से अधिकांश ग्रह षष्ठ, अष्टम या व्यय भाव में हों, अथवा इन पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो या ये पाप ग्रहों से युक्त हों, तो उस वर्ष जातक को मृत्युतुल्य कष्ट होता है एवं उसे अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है। जिस भाव का स्वामी अपने भाव में शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, उस भाव के फल की वृद्धि होती है। जैसे यदि वर्ष लग्न का स्वामी नवम भाव में पड़कर लग्न भाव को पंचम मित्र दृष्टि से देखता हो, तो उस वर्ष जातक के भाग्य में उन्नति होती है और उसे धन लाभ के अवसर प्राप्त होते हैं। इसी तरह, जो भाव पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, उस भाव के फल की हानि होती है। शुभ एवं पापी दोनों प्रकार के ग्रहों से युक्त अथवा शुभ ग्रह से युक्त व क्रूर ग्रह से दृष्ट हो, तो मिश्रित फल मिलते हैं। यो यो भाव, स्वामि सौम्यैः दृष्टो युक्तोऽमेद्यते। पाप दृष्ट युतैर्नाशो मिश्रैः मिश्रफल वदेत्।। वर्ष लग्न, मुंथा, मुंथेश, वर्ष लग्नेश ये सब पाप ग्रहों के मध्य में हों, तो उस वर्ष जातक को रोग होने का भय रहता है। नीच राशि का एवं शत्रु के घर स्थित ग्रह, उस भाव के फल का नाश करता है। समराशि में मध्यम फलदायी होता है। मित्र राशिगत या स्वराशिगत, अथवा त्रिकोण भाव में स्थित ग्रह उच्च राशिस्थ हो या मित्र ग्रह से दृष्ट हो, तो उस भाव की वृद्धि अवश्य करता है। वर्ष कुंडली संबंधी 16 विशेष योग ताजिक ग्रंथों में वर्ष कुंडली संबंधी सोलह योगों को विशेष महत्व दिया गया है। इन योगों के आधार पर किया गया फलादेश सटीक व चमत्कारिक होता है। वर्ष कुंडली के समान इन योगों का प्रयोग जन्म कुंडली तथा प्रश्न कुंडली में भी किया जा सकता है। इन योगों के नाम इस प्रकार से हैं: • इक्कबाल योग• इन्दुवार योग• इत्थशाल योग• ईशराफ योग• नक्त योग• यमया योग• मणऊ योग• कम्बूल योग• गैरी कम्बूल योग• खल्लासर योग• रद्द योग• दुष्फाली योग • कुत्थ योग• दुत्थकुत्थीर योग• ताम्बीर योग• कुत्थ योग• दुरुफ योग
ऊपर वर्णित सभी 16 योग प्रायः फारसी भाषा से प्रभावित लगते हैं, परंतु इनका उपयोग भारतीय ज्योतिष प्रणाली में ही हुआ है। इक्कबाल योग: वर्ष कुंडली में यदि सभी ग्रह केंद्र तथा पणफर भावों में अर्थात 1, 4, 7, 10 तथा 2, 5, 8, 12वें भावों में स्थित हों, तो इक्कबाल नामक योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप वर्ष में व्यवसाय में तरक्की, सर्विस में पदोन्नति, स्त्री या संतान सुख के साथ-साथ भूमि, भवन, वाहन आदि के सुखों की प्राप्ति तथा सौभाग्य में वृद्धि होती है। इंदुवार योग: वर्ष कुंडली में यदि सभी ग्रह आपोक्लिम भाव 3, 6, 9, 12 में हों, तो इंदुवार नामक योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप वर्ष में आय कम तथा खर्च अधिक होता है। स्त्री, संतान एवं व्यवसाय संबंधी चिंता, अवांछित स्थान पर स्थानांतरण, मानसिक तनाव व शारीरिक कष्ट, शत्रु भय आदि अशुभ फल घटित होते हैं। इत्थशाल योग: वर्ष कुंडली में लग्नेश और कार्येश ग्रहों का परस्पर दृष्टि संबंध दीप्तांशों के भीतर हो, तो इत्थशाल योग बनता है। फलस्वरूप वर्ष भर भाग्य में उन्नति के योग बनते हैं तथा अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है। इशराफ योग: इसे मुशरिफ योग भी कहते हैं। यह इत्थशाल योग के विपरीत है। जब शीघ्रगामी ग्रह मंदगामी ग्रह से आगे हो, तब इशराफ नामक योग बनता है। इस योग में लग्नेश और कार्येश परस्पर कभी नहीं मिल पाते हैं। फलस्वरूप वर्ष में हानि एवं कार्य निष्फल होता है तथा अनेकानेक विघ्न उत्पन्न होते हैं। परंतु यदि दोनों शुभ ग्रह हों, तो अशुभ फल नहीं होता है। नक्त योग: जब वर्ष कुंडली में लग्नेश और कार्येश की परस्पर एक दूसरे पर दृष्टि न हो, परंतु दोनों ग्रहों के मध्य दीप्तांशों के अभ्यंतर तीव्र गति वाला कोई अन्य ग्रह हो, जो लग्नेश और कार्येश दोनों पर दृष्टि डालता हो अथवा अन्य प्रकार से संबंध रखता हो, तब वह ग्रह शीघ्र गति वाले ग्रह का तेज मंद गति वाले ग्रह को देता है। नक्त योग में किसी अन्य व्यक्ति की सहायता से कार्य सिद्ध होता है। यमया योग: जब लग्नेश और कार्येश (जिस भाव के फल का ज्ञात करना हो, उसके स्वामी को कार्येश कहते हैं।) ग्रहों के परस्पर दृष्टि न हो और अन्य कोई मंद गति का ग्रह दीप्तांशों के भीतर ही दोनों ग्रहों को देखता हो, तब वह शीघ्रगामी ग्रह की शक्ति (तेज) मंद ग्रह को देता है। इसी का नाम यमया योग है। इस योग के कारण उस वर्ष जातक के कार्य की सिद्धि तो होती है, किंतु उसे विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। मणऊ योग: यदि लग्नेश व कार्येश ग्रहों में इत्थशाल हो रहा हो, परंतु कोई पाप ग्रह मंगल और शनि दोनों को अथवा किसी एक को भी शत्रु दृष्टि 1, 4, 7 या 10 से देखता हो और यह दृष्टि संबंध दीप्तांशों के भीतर हो, तो मणऊ योग बनता है। यह योग कार्य का नाश करने वाला एक अशुभ योग है। कंबूल योग: लग्नेश और कार्येश ग्रहों में परस्पर इत्थशाल हो और चंद्र इन दोनों में से किसी एक से भी इत्थशाल करता हो, तो कंबूल नामक योग बनता है। यदि लग्नेश, कार्येश और चंद्र तीनों उच्च राशिस्थ या स्वराशिगत हों, तो अति उत्तम कंबूल योग बनता है। यह अत्यंत शुभ फलदायक एवं कार्य सिद्धि कारक योग है। यदि लग्नेश, कार्येश तथा चंद्र नीचस्थ, शत्रु राशिस्थ या अस्त हों, तो निर्बल कंबूल योग बनता है। उत्तम कंबूल योग से वर्ष में संतान सुख की प्राप्ति होती है। गैरी कंबूल योग: यदि लग्नेश और कार्येश दोनों ग्रहों का परस्पर इत्थशाल हो और चंद्र की इन पर दृष्टि न हो, परंतु चंद्र अग्रिम राशि में जाकर किसी अन्य बलवान या शुभ ग्रह के साथ परिवर्तन करे, तो गैरी कंबूल योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप वर्ष में जातक किसी गैर व्यक्ति की सहायता से काम करता है। खल्लासर योग: जब लग्नेश और कार्येश ग्रहों का परस्पर इत्थशाल हो, परंतु शून्य मार्गी चंद्र स्वराशि, उच्च अथवा किसी ग्रह द्वारा दृष्ट न हो और दोनों में से किसी से भी इत्थशाल न करता हो, तो खल्लासर नाम का अशुभ योग बनता है। यह कार्य में बाधा उत्पन्न करने वाला एक विनाशक योग है। इस योग के कारण कंबूल योग नष्ट हो जाता है। यह पुत्र संतान की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करता है। रद्द योग: यदि लग्नेश या कार्येश नीच, अस्त, शत्रु क्षेत्री अथवा भाव 6, 8 या 12 में हो और वह परस्पर इत्थशाल करते हुए किसी क्रूर ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, तब रद्द नामक योग होता है। यह योग कार्यों में बाधक तथा हानिकारक होता है। कई बार कार्य सिद्ध होकर भी निष्फल हो जाता है। दुफालि कुत्थयोग: यदि लग्नेश और कार्येश ग्रहों में इत्थशाल हो तथा इनमें से मंद गति वाला ग्रह स्वराशि, स्वोच्च या स्वद्रेष्काण में बली हो तथा शीघ्रगामी ग्रह स्वराशि या उच्च राशि में स्थित न हो, तो दुफालि कुत्थ नामक योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप कठिनाई एवं अड़चनों के साथ कार्य की सिद्धि होती है। दुत्थकुत्थीर योग: यदि लग्नेश और कार्येश ग्रह निर्बल (शत्रु क्षेत्री) पाप ग्रहों से युक्त होकर इत्थशाल करें और उनमें से एक ग्रह किसी अन्य उच्चस्थ, स्वक्षेत्री या बली ग्रह के साथ इत्थशाल करे, तो दुत्थकुत्थीर नामक योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप कार्य का सिद्ध होना किसी दूसरे व्यक्ति की सहायता से मुमकिन होता है। तंबीर योग: जब लग्नेश और कार्येश ग्रहों में परस्पर दृष्टि न हो, परंतु दोनों में से एक ग्रह राशि के अंत में स्थित हो और आगामी राशि में स्थित ग्रह स्वगृही और उच्चादि बल से युक्त हो तथा राश्यंत वाला ग्रह निकट भविष्य में बली ग्रह से मिलकर कार्येश और लग्नेश के साथ इत्थशाल करे, तो तंबीर नामक योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप पूर्व निर्धारित कार्य की सिद्धि होती है। कुत्थ योग: जब वर्ष कुंडली में लग्नेश और कार्येश ग्रह बली (सर्वोच्च, स्वगृही, स्वनवांश, शत्रु-युत, उदयी) हों, तो कुत्थ नामक योग बनता है। कुत्थ योग होने से कार्य-व्यवसाय में विशेष सफलता तथा उन्नति व सुख साधनों में वृद्धि होती है। दुरुफ (निर्बली) योग: यह कुत्थ योग का विपरीत है। इसके फलस्वरूप शारीरिक कष्ट, विपरीत मानसिक तनाव, धन-हानि, कलह-क्लेश आदि होते हैं। यदि वर्ष कुंडली में लग्नेश एवं अन्य ग्रह निर्बल हों, तब यह योग होता है। जातक के लिए आने वाले वर्ष के फलोदश के लिए गोचरीय ग्रहों का फल जन्मकालिक नक्षत्र, राशि एवं लग्न कुंडली को आधार मानकर वर्तमान कालिक नव ग्रहों के उस वर्ष में विभिन्न राशियों के भ्रमण के अनुसार गोचर फल का विचार किया जाता है। जातक पर चल रहे वर्तमान समय की शुभाशुभ जानकारी के लिए गोचरफल का विचार अत्यंत सुगम्य एवं उपयोगी साधन है। गोचर ग्रहों के प्रभाव उनकी राशि एवं नक्षत्र परिवर्तन के साथ-साथ बदलते रहते हैं। सामान्यतः गोचर विभिन्न ग्रहों का गोचरीय फल सूर्य: जन्म राशि से सूर्य गोचरवश प्रथम भाव में हानि, द्वितीय में रोग भय, तृतीय में धन लाभ, चैथे में मान हानि, पांचवें में धन का नाश, छठे में शत्रु नाश, सातवें में धन हानि, व्यर्थ यात्रा, आठवें में रोग भय, नौवें में मान हानि, दसवें में कार्य सिद्धि, ग्यारहवें में धन लाभ एवं बारहवें में धन का नाश होता है। चंद्र: जन्म राशि से लग्न, द्वितीय, तृतीय, षष्ठ, सप्तम, दशम या एकादश भाव में स्थित चंद्र धन लाभ कराता है। मित्रों से साहचर्य और बुद्धि का विकास कराता है। जन्म राशि से चतुर्थ, पंचम, अष्टम, नवम या द्वादश में स्थित चंद्र के फलस्वरूप धन की हानि, चोरी, अग्नि आदि का भय एवं प्रिय व्यक्ति का वियोग, कष्ट आदि होते हैं। मंगल: जन्म राशि से तीसरे, छठे एवं ग्यारहवें भाव में मंगल हो, तो भूमि और धन लाभ, भ्रातृ सुख, शत्रुओं पर विजय और राज्य कृपा, आरोग्य आदि की प्राप्ति हाती है। इसके अलावा लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम, दशम या द्वादश में स्थित मंगल क्रमशः भय, कष्ट, धनहानि, नेत्र पीड़ा, कष्ट, अस्वस्थता, रोग भय, पाप-वृद्धि, कष्ट, फिजूल खर्च आदि का कारक होते है। बुध: जन्म राशि से द्वितीय, चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, दशम या एकादश में स्थित बुध लाभ, भाग्य वृद्धि, सुख, प्रसन्नता, आय एवं आकस्मिक लाभ का कारक होता है। अन्य राशियों में होने से धन-सुख का नाश, भाइयों से विरोध, शोक, शारीरिक कष्ट, शत्रु भय और चिंताएं पैदा करता है। गुरु: गुरु जन्म राशि से द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम या एकादश भाव में हो, तो मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि, धन-हानि, विवाह, संतान सुख की प्राप्ति और व्यापार में वृद्धि होती है। राशि 3, 4, 8, 10 या 12 में हो, तो व्याधि और विदेश यात्रा तथा पदोन्नति में बाधा आदि अशुभ फल होते हैं। शुक्र: शुक्र जन्म से प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ, अष्टम, नवम, एकादश या द्वादश में हो, तो जातक को धन, ऐश्वर्य, वाहन सुख, मित्रों से सहयोग आदि की प्राप्ति होती है। इसके जन्म से षष्ठ, सप्तम या दशम भाव में स्थित होने से धन, ऐश्वर्य, वाहन आदि सुखों की हानि होती है। इसके अतिरिक्त कार्यों में बाधाएं आती हैं एवं स्त्री से विरोध उत्पन्न होता है। शनि: शनि जन्म राशि से तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में हो, तो धन का लाभ और सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त अभीष्ट कार्य की सिद्धि, व्यापार में लाभ, अधिकारी वर्ग से मेल-मिलाप और शत्रुओं का नाश होता है। शनि जन्म राशि से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम, दशम या द्वादश राशि में हो, तो जातक को अपने परिवारजनों से कष्ट मिलता है, उसके धन की हानि होती है और शत्रु भय बना रहता है। जन्म से चैथी, आगामी राशि में स्थित शनि व्याधि, बंधुओं से विरोध, कष्ट, और चिंता पैदा करता है। जन्मराशि से प्रथम, द्वितीय या द्वादश में स्थित होने पर शनि मानसिक संताप, शारीरिक कष्ट, धन हानि, स्त्री, पुत्रादि के कारण कष्ट और प्रयत्नों में विफलता का कारक होता है। शनि के जन्म राशि से प्रथम, द्वितीय और बारहवें में गोचर को ही शनि की साढ़ेसाती का नाम दिया गया है। इसके प्रभावस्वरूप जातक को धन हानि, कलह-क्लेश, शत्रु व रोग भय एवं शारीरिक कष्ट आदि अशुभ फल भोगने पड़ते हैं। जन्म राशि पर शनि की चतुर्थ, अष्टम संचार गति को शनि की ढैया कहा जाता है। इसके प्रभावस्वरूप जातक को लगभग ढाई वर्ष तक मानसिक संताप, वृथा खर्च, भाई-बंधुओं से वियोग, धन हानि व शरीर कष्ट आदि अशुभ फल भोगने पड़ते हैं। राहु: राहु जन्म राशि से तृतीय, छठे, दसवें या ग्यारहवें जन्म राशि तथा नवम भाव में हो, तो पुत्र तथा स्त्री सुख की प्राप्ति और धन लाभ होता है। यदि जन्म राशि से भाव 2, 4, 5, 7, 8 या 12 में हो, तो धन की हानि होती है और शत्रु एवं रोग भय तथा अनेक प्रकार की विपत्तियां पैदा होते हैं। केतु: केतु जन्म राशि से तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में हो, तो धन का लाभ, सुख- संपत्ति की प्राप्ति, अभीष्ट कार्य की सिद्धि, व्यापार में उन्नति तथा शत्रुओं का नाश होता है। इसके विपरीत लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम, नवम, दशम या द्वादश भाव में होने पर कुटुंब से कष्ट मिलता है, प्रयत्नों एवं धन की हानि होती है और शत्रु भय बना रहता है। जन्म राशि से चतुर्थ या अष्टम राशि में स्थित केतु व्याधि, भाई-बंधुओं से विरोध, कष्ट और चिंता उत्पन्न करता है। जन्म राशि से भाव 1, 2 या 12 में होने पर केतु मानसिक संताप, शारीरिक कष्ट, धन हानि और स्त्री, पुत्रादि के कारण कष्ट पैदा करता है।
वर्षफल में मुंथा विचार
अक्सर जब भी नववर्ष आता है और कैलेंडर का साल बदलता है तो विभिन्न न्यूज़ चैनलों एवं पत्र-पत्रिकाओं में समस्त 12 राशियों के जातकों का वार्षिक भविष्यफल बताने की होड़ सी लग जाती है। जनमानस भी नववर्ष में अपने भाग्य के अनुसार लाभ-हानि का गणित बिठाने लग जाता है किंतु क्या आप जानते हैं कि नववर्ष के आगमन पर आपके वार्षिक भविष्यफल के बारे में कहना एक मिथ्याभाषण एवं भ्रामक बात है।
ऐसा इसलिए क्योंकि प्रत्येक जातक की वर्षकुंडली उसके स्वयं के जन्मदिवस की दिनांक से परिवर्तित होती है ना कि कैलेंडर के वर्ष बदलने से। वर्ष कुंडली का भी प्रत्येक जातक के जीवन में उतना ही महत्त्व है जितना अन्य ज्योतिषीय कारकों का।
आइए आज आपको वर्ष कुंडली के एक और महत्वपूर्ण पहलू मुंथा के बारे में जानकारी देने का प्रयास करें. मुंथा का उपयोग वर्ष कुंडली में किया जाता है. जन्म के समय मुंथा लग्न भाव में मौजूद होती है और एक वर्ष तक वही रहती है. उसके बाद एक भाव आगे बढ़ जाती है और इस प्रकार जब बच्चा बारहवें साल में प्रवेश करता है तब वह जन्म कुण्डली के बारहवें भाव में होती है. माना जन्म के समय लग्न में कन्या राशि उदय होती है तो मुंथा लग्न में कन्या राशि में होगी. अगले वर्ष की जब वर्ष कुण्डली बनाई जाएगी उसमें मुंथा एक भाव आगे अर्थात जन्म कुण्डली के दूसरे भाव तुला राशि में होगी. वर्ष कुण्डली में तुला राशि जिस भाव में पड़ेगी मुंथा उसी भाव में मानी जाएगी.
मुंथा का विचार वर्षफल में किया जाता है. वर्षफल के चतुर्थ, छठे, सप्तम, अष्टम और बारहवें भाव में मुंथा की स्थिति को अच्छा नहीं माना गया है. इन भावों में मुंथा जीवन में कुछ ना कुछ परेशानी पैदा करती है. वर्ष कुंडली में मुंथा के साथ मुंथा स्वामी का भी विचार किया जाता है कि वह कुण्डली में किस हालत में है. आइए वर्ष कुण्डली के विभिन्न भावों में मुंथा फल का विचार करें.
प्रथम भाव में मुंथा फल -
वर्ष कुंडली के यदि पहले भाव अर्थात लग्न में ही मुंथा स्थित होती है तब उसका फल ना तो बहुत अच्छा होता है और ना ही बहुत खराब होता है. वर्ष सामान्य सा ही रहता है. व्यक्ति यदि परिश्रम करता है तो कुछ लाभ उसे हो जाता है और कुछ धन लाभ मिल जाता है. लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से लग्न की मुंथा को अच्छा नही माना गया है. लग्न में होने से यह बेकार की चिन्ताएँ और क्लेश पैदा करति है.
मुंथा फल दूसरे भाव में -
यदि वर्ष कुण्डली के दूसरे भाव में मुंथा स्थित है तब व्यक्ति नए उद्योग अथवा व्यवसायों में धन का निवेश करता है. जातक पूरे वर्ष अत्यधिक परिश्रम व कठोर मेहनत करता है. व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने परिश्रम से अपने अनुकूल बनाने में सफलता पाता है. धन प्राप्ति में बहुत सी बाधाओं और संकटो का सामना करना पड़ता है.
मुंथा फल तीसरे भाव में -
वर्ष कुण्डली के तीसरे भाव में अगर मुंथा स्थित है तब व्यक्ति अपनी नवीन योजनाओं से आगे बढ़ता है और सफलता पाता है. समाज में उसे मान-सम्मान मिलता है और आदर की दृष्टि से देखा जाता है. व्यक्ति ऎसा कुछ काम करता है कि उसे समाज में प्रसिद्धि मिलती है. लेकिन तीसरे भाव की मुंथा निजी जीवन के लिए शुभ नहीं मानी जाती है. पारीवारिक कलह पैदा होता है. भाई से मतभेद होता है और कलह इतना बढ़ सकता है कि भाईयों में तनाव होकर घर का बंटवारा तक हो सकता है. पारीवारिक कलह के कारण मुकदमा आदि भी हो सकता है.
मुंथा फल चतुर्थ भाव में -
चतुर्थ भाव की मुंथा को ज्यादा शुभ नही माना गया है. यह मिश्रित फल प्रदान कर सकती है. मन व्याकुल तथा बेचैन रह सकता है. घर में कलह क्लेश बने रह सकते हैं. साल भर आपको अनिष्ट फलों का सामना करना पड़ सकता है. स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ भी व्यक्ति को घेरे रह सकती है. शरीर में दर्द की शिकायत, हड्डियों में दर्द, वायु संबंधी विकार, शत्रुओं से चिन्ता आदि बातों से परेशानी होने की संभावना बनती है. इस वर्ष व्यक्ति को झूठी बदनामी का भी खतरा बना रह सकता है.
चतुर्थ भाव की मुंथा नौकरी अथवा व्यापार में भी अड़चने अटकाने का काम कर सकती है. मुंथा के इस स्थान में होने से स्थान परिवर्तन भी हो सकता है जिसे व्यक्ति नहीं चाहता है. बिना मन के स्थान परिवर्तन से दुख और अधिक बढ़ जाते हैं.
मुंथा फल पंचम भाव में -
वर्ष कुण्डली के पांचवें भाव की मुंथा को शुभ माना गया है. इस वर्ष व्यक्ति को सुख शांति मिलती है, वह उन्नति प्राप्त करता है. विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता मिलती है. संतान प्राप्ति होती है अथवा संतान की उन्नति होती है. इस भाव में मुंथा की स्थिति से व्यक्ति को आर्थिक लाभ होता है. नौकरी तथा व्यापार में उन्नति के अवसर मिलते हैं. मान प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है. पंचम भाव को धर्म त्रिकोण भी कहा गया है इसलिए जिस वर्ष पंचम भाव में मुंथा होती है उस वर्ष व्यक्ति को धर्म संबंधी कामों में रुचि रह सकती है, व्यक्ति तीर्थ यात्राएँ करता है. विवाह अथवा अन्य शुभ मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं. सुख सौभाग्य में वृद्धि भी होती है.
छठे भाव में मुंथा फल -
वर्ष कुण्डली के छठे भाव में मुंथा का स्थित होना शुभ नही माना गया है. छठे भाव की मुंथा व्यक्ति को बुरे काम की ओर प्रेरित करती है. व्यक्ति बुरे व्यसनो और दुष्कर्म में लिप्त हो सकता है. लड़ाई झगड़े कर सकता है और इस कारण मुकदमें आदि में भी फंस सकता है. मन में बुरे ख्याल पनप सकते हैं. बुरी आदतों का शिकार होने से बदनामी भी हो सकती है. व्यक्ति के स्वभाव में चिड़चिड़ापन समा सकता है. हर छोटी बात पर वह परेशान हो जाएगा. मन में हर समय उत्तेजना व अशांति बनी रहेगी. शरीर में आलस्य की मात्रा बढ़ सकती है और अकसर सिरदर्द की शिकायत भी बनी रह सकती है. इस वर्ष व्यक्ति अनैतिक संबंधो में भी फंस सकता है और उनके कारण बदनामी होने की भी संभावना बनती है.
सप्तम भाव में मुंथा फल -
जिस वर्ष कुण्डली के सप्तम भाव में मुंथा होती है उस वर्ष स्त्री को रोग होने की संभावना बनती है यदि स्त्री की कुण्डली है तब उसके पति को बीमारी होने की संभावना बनती है. इस वर्ष व्यर्थ के व्यय बने रह सकते हैं. भाईयों से परेशानी अथवा हानि की संभावना बनती है. परिवार में आपस में विरोध तथा वैर की भावना बढ़ सकती है. व्यक्ति झूठे मुकदमों में फंस सकता है. मान हानि का सामना करना पड़ सकता है. मन में उद्वेग्निता बनी रह सकती है. अधर्म की ओर रुचि बढ़ सकती है. उत्साह की कमी रह सकती है. व्यक्ति जुए और सट्टे अदि जैसी बातों में भी संलग्न रह सकता है. इस वर्ष भाग्य आपसे रूष्ट रह सकता है और आपके बने हुए काम बिगड़ सकते हैं.
अष्टम भाव में मुंथा फल -
वर्ष कुण्डली के आठवें भाव में भी मुंथा की स्थिति को शुभ नहीं माना गया है. आठवें भाव की मुंथा व्यक्ति को बिना उद्देश्य भटकाने का काम करती है. सम्पत्ति का नुकसान हो सकता है या व्यापार में हानि होने की भी संभावना बनती है. बुरे कार्यों की ओर रुझान हो सकता है और इस कारण आर्थिक हानि भी होती है और बाद में आपको इस बात का पश्चाताप भी हो सकता है. व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक पीड़ा दोनो ही बनी रह सकती हैं. व्यक्ति शरीर से दुर्बल हो सकता है और रोगों की बढ़ोतरी हो सकती है. स्थान परिवर्तन हो सकता है.
नवम भाव में मुंथा फल -
नवम भाव की मुंथा को शुभ माना गया है. वर्ष कुण्डली के जिस वर्ष में मुंथा नवम भाव में होती है उस वर्ष व्यक्ति का भाग्योदय होने की संभावना बनती है. इस वर्ष इच्छाएँ पूरी होने की संभावना भी बनती है. यदि व्यक्ति अपना व्यवसाय करता है तो उस वर्ष उसका व्यवसाय फलता-फूलता है. यदि व्यक्ति नौकरी करता है तब उस वर्ष व्यक्ति को नौकरी में प्रमोशन व तरक्की मिलती है. व्यक्ति शुभ तथा मांगलिक कार्यों में संलग्न रह सकता है. तीर्थ यात्राएँ भी कर सकता है. श्रेष्ठ पद की प्राप्ति भी होती है और समाज में सम्मानित भी होता है.
दशम भाव में मुंथा फल -
यदि दशम भाव में मुंथा हो तब उस वर्ष व्यक्ति को पद लाभ मिलता है, प्रमोशन मिलती है और सरकार की ओर से सम्मान भी मिलता है. व्यक्ति तरक्की पाता है. मन में जिन कार्यों को करने की ईच्छा होती है वह पूरे होते हैं. व्यवसाय उन्नति की ओर अग्रसर होता है. व्यक्ति को सुयश व सम्मान मिलता है. इस भाव की मुंथा व्यक्ति को ऎश्वर्य और पूरा सुख उपभोग प्रदान करती है.
एकादश भाव में मुंथा फल -
वर्ष कुण्डली के एकादश भाव में अगर मुंथा होती है तब वह वर्ष आर्थिक दृष्टि से श्रेष्ठ रहता है. इस वर्ष व्यक्ति को आकस्मिक धन लाभ होने की संभावना बनती है. साथ ही विभिन्न अन्य स्त्रोतो से भी आय के साधन बनने की संभावना बनती है. सरकार से लाभ मिल सकता है. रुका हुआ पैसा वापिस मिलने की संभावना बनती है. व्यक्ति के आमोद-प्रमोद में वृद्धि होती है. व्यक्ति सभी प्रकार के मनोरथ सिद्ध होने की संभावना बनती है.
द्वादश भाव में मुंथा फल -
बारहवें भाव की मुंथा को शुभफलदायी नही माना गया है. इस वर्ष यह व्यक्ति को अनिष्टकारी फल प्रदान करने वाली हो सकती है. इस वर्ष आपके व्यय अधिक हो सकते हैं और आपका संचित धन भी खर्च हो सकता है. कार्य बनने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इस भाव की मुंथा दुष्ट लोगो का संग करा सकती है. चित्त में चंचलता बनी रह सकती है. व्यक्ति धर्म विरुद्ध काम कर सकता है और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ भी परेशानी उत्पन्न करती है.
आइए जानते हैं कि वर्ष कुंडली के महत्वपूर्ण कारक कौन से हैं जो आपके जीवन पर अपना प्रभाव डालते हैं।
1. मुंथा राशि- वर्ष कुंडली में मुंथा राशि का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। लग्न संख्या में जातक की वर्तमान आयु के वर्ष जोड़कर 12 से भाग देने पर जो शेष बचे वही मुंथा राशि होती है।
2. मुंथा की अशुभ स्थिति- वर्ष लग्न कुंडली में यदि मुंथा वर्षलग्न से 4,6,7,8,12 वें स्थित हो तो यह अशुभ होती है। यदि मुंथा राशि पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो यह विशेष अशुभ व हानिकारक होती है।
3. राहु-केतु युक्त मुंथा- यदि मुंथा राहु-केतु से युक्त तो अशुभ फ़लदायक होती है।
4. मुंथेश- वर्ष कुंडली में मुंथा राशि का स्वामी ग्रह मुंथेश कहलाता है। मुंथेश यदि 4,6,8,12 भाव में अस्त, वक्री या पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो यह अशुभ होता है। मुंथेश यदि वर्षलग्न से अष्टमेश से युत व दृष्ट हो तो यह विशेष हानिकारक होता है।
5. वर्षकुंडली में जन्म लग्नेश की स्थिति- वर्षकुंडली में यदि जन्मकुंडली का लग्नेश निर्बल, अष्टम या सूर्य आदि क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो तो उस वर्ष जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।
-मुंथेश यदि वर्ष कुंडली में अस्त होकर शनि द्वारा दृष्ट हो तो उस वर्ष जातक का सर्वनाश, मानसिक कष्ट व भयंकर रोग से ग्रस्त होने की संभावना होती है।
6. वर्षलग्न- वर्षलग्न यदि जन्मलग्न या जन्मराशि से अष्टम राशि का हो तो उस वर्ष जातक को भीषण कष्ट व रोग होने की संभावना होती है।
7. वर्षकुंडली में चन्द्र की स्थिति- वर्षकुंडली में यदि चन्द्र 1,6,7,8,12 भाव में पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो उस वर्ष जातक का प्रबल अरिष्ट होता है। जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट या मृत्यु होने की संभावना होती है।
-यदि वर्षकुंडली में चन्द्र मंगल से दृष्ट हो अग्नि के द्वारा, यदि राहु-केतु से दृष्ट हो तो शत्रुओं के द्वारा, सूर्य से दृष्ट हो तो आर्थिक हानि के कारण जातक को कष्ट होता है।
-यदि वर्षकुंडली में चन्द्र गुरु से दृष्ट हो तो शुभफलदायक होकर अशुभता में कमी करता है।
मुंथा कैसे वर्ष कुण्डली में प्रवेश करती है जन्म कुण्डली में कहाँ रहती कब आती है।
वर्ष कुण्डली में गणना के संदर्भ में मुंथा का अत्यधिक उपयोग किया जाता है. जन्म कुण्डली में मुन्था सदैव लग्न में स्थित रहती है और हर वर्ष यह एक राशि आगे बढ़ जाती है. उदाहरण के लिए यदि किसी का जन्म मेष लग्न में हो तो जातक के जन्म समय मुन्था मेष राशि में होगी तथा आने वाले वर्ष में यह मुंथा वृष राशि में और इससे आगे आने वाले वर्ष में यह मिथुन में स्थित होगी इस तरह से प्रत्येक वर्ष मुंथा एक राशि आगे बढ़ जाती है।
मुंथा कोई ग्रह नहीं है लेकिन यह नवग्रहों के समान ही महत्व रखती है और इसके विचार द्वारा कुण्डली के अनेक प्रभावों का वर्णन किया जा सकता है. मुन्था के शुभ और अशुभ प्रभाव जातक के जीवन को पूर्ण रुप से प्रभावित करते हैं। ज्योतिष के अनेक शास्त्रों में हमें मुन्था के विषय में बहुत कुछ जानने को मिलता है जिसके द्वारा मुंथा का महत्व परिलक्षित होता है और मुथा की गणना को वर्ष कुण्डली में करके जातक के जीवन में घटने वाली घटनाओं को बताया जा सकता है।
मुंथा की गणना
मुंथा की गणना के लिए चाहिए की जन्म कुण्डली में लग्न की राशि संख्या ज्ञात करनी चाहिए जैसे यदि वह संख्या पांच है तो लग्न की राशि सिंह होगी.
जिन वर्षों के लिए मुंथा की गणना करनी होती है जन्म से उन पूरे वर्षों की संख्या को लग्न की संख्या से जोड़ देना होता है. यदि यह जोड़ 12 वर्ष से अधिक आता है तो इसे 12 से भाग दिजिए और जो शेष संख्या आए उसी में मुंथा स्थित होगी. यदि शेष संख्या शून्य आती है तो इसे बारहवीं राशि कहेंगे.
मुंथा का प्रभाव
वर्ष कुण्डली में जन्म कुण्डली के लग्न की भांति मुंथा अत्याधिक महत्वपूर्ण होती है. वर्ष के फल तभी शुभ होंगे जब मुंथेश उच्च युक्त या स्वराशि से युक्त हो.
मुन्थेश शुभ ग्रहों से युक्त या उनसे प्रभावित है तो परिणाम अच्छे प्राप्त हो सकते हैं.
मुन्था 2, 9 10, 11 भाव में स्थित होने पर आर्थिक पक्ष की मजबूती को दर्शाती है. यह अच्छी व्यवसायिक स्थिति को दर्शाता है.
मुन्था की विपरित स्थिति
भाव 4, 6, 8, 12 और सप्तम भाव में मुन्था अच्छी नहीं मानी जाती यह अशुभ परिणामदायक हो सकती है. इस प्रकार यदि मुन्था षष्ठेश, अष्टमेश अथवा द्वादशेश युक्त हो तो शुभ परिणाम प्रदान करने वाली होती है.
मुन्थेश यदि नीच का हो या नीचता से युक्त हो अथवा पिड़ित, निर्बल या शत्रु भाव में स्थित हो तो यह शुभ परिणाम प्रदान नहीं करता है.
मुन्था यदि क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो तो विपरित फल प्रदान करती है.
वर्ष कुण्डली में मुन्था महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. मुन्था को ग्रह के जैसा ही महत्वपूर्ण माना जाता है. वर्ष कुण्डली में जिस भाव में मुन्था स्थित होती है उस भाव तथा भाव के स्वामी कि स्थिति को देखा जाता है. बली हैं या निर्बल है. 4,6,7,8,12 भाव में मुन्था का स्थित होना शुभ नहीं माना जाता है. इसी प्रकार हम वर्ष कुण्डली में वर्षेश तथा पंचाधिकारियों की स्थिति को भी देखा जाता है. वर्षेश की स्थिति कुण्डली में यदि कमजोर है तो शुभ नहीं है.इसके आधार पर वर्ष कुण्डली का फलित काफी हद तक निर्भर
वर्ष फल पद्धति अपने आप में एक महत्वपूर्ण पद्धति है। वर्ष फल के द्वारा हम एक वर्ष में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगा सकते हैं।
वर्ष फल कुण्डली में ग्रहों की आपसी दृष्टियाँ पराशरी दृष्टि से भिन्न होती हैं। यहाँ हम ताजिक दृष्टियों का प्रयोग करते हैं। वर्ष कुण्डली में 3,5,9,11 भावों में स्थित ग्रहों की आपसी दृष्टि मित्र दृष्टि कहलाती है। 2,6,8,12 भावों में स्थित ग्रहों की आपसी दृष्टि सम दृष्टि कहलाती है। 1,4,7,10 भावों में स्थित ग्रहों की आपसी दृष्टि शत्रु दृष्टि कहलाती है।
वर्ष फल में ताजिक योगों का बहुत ज्यादा महत्व है। यह ताजिक योग शुभ और अशुभ दोनों प्रकार से बनते हैं। योग तो बहुत से हैं लेकिन सोलह योगों का महत्व अधिक है। जो निम्न लिखित हैं -
• इक्कबाल योग
• इन्दुवार योग
• इत्थशाल योग
• ईशराफ योग
• नक्त योग
• यमया योग
• मणऊ योग
• कम्बूल योग
• गैरी कम्बूल योग
• खल्लासर योग
• रद्द योग
• दुष्फाली कुत्थ योग
• दुत्थकुत्थीर योग
• ताम्बीर योग
• कुत्थ योग
• दुरुफ योग
वर्ष कुण्डली में मुन्था का भी महत्व काफी है। मुन्था को हम ग्रह के जैसे मानते हैं। वर्ष कुण्डली में जिस भाव में मुन्था स्थित होती है उस भाव तथा भाव के स्वामी कि स्थिति को देखा जाता है। बली हैं या निर्बल है। 4,6,7,8,12 भाव में मुन्था का स्थित होना शुभ नहीं माना जाता है। इसी प्रकार हम वर्ष कुण्डली में वर्षेश तथा पंचाधिकारियों की स्थिति को भी देकहते हैं। वर्षेश की स्थिति कुण्डली में यदि कमजोर है तो शुभ नहीं है। इनके अलावा त्रिपताकी चक्र का निर्माण भी किया जाता है। इसके आधार पर भी वर्ष कुण्डली का फलित किया जाता है। वर्ष कुण्डली में सहम का भी महत्व है। यदि अच्छे सहम बन रहें हैं तो फल अच्छे मिल सकते हैं।
वर्ष कुण्डली में तीन प्रकार की दशाओं का प्रयोग किया जाता है। प्रथम दशा विंशोत्तरी मुद्दा दशा है। द्वितीय दशा विंशोत्तरी योगिनी दशा है। तृ्तीय दशा सबसे महत्वपूर्ण दशा है जो पात्यायनी दशा कहलाती है। मुद्दा दशा और योगिनी दशा की गणना पराशरी गणना के जैसी है लेकिन पात्यायनी दशा की गणना इनसे भिन्न है, इस दशा में वर्ष कुण्डली में ग्रहों के भोगांश के आधार पर दशा क्रम निश्चित किया जाता है।
वर्ष कुण्डली में विंशोपक बल या विश्व बल की गणना का भी महत्व होता है। यह बल राहु/केतु को छोड़कर सात ग्रहों पर आधारित होता है। इस बल को हम गणितीय विधि से निकालते हैं। इस बल के अधिकतम अंक 20 होते हैं। जिस ग्रह के 15 से 20 के मध्य बल है वह बहुत बली हो जाता है। जो ग्रह 10 से 15 के मध्य बल पाता है वह बली होता है। जो 5 से 10 के मध्य बल पाता है वह ग्रह निर्बल होता है। 5 से नीचे बल प्राप्त करने वाला बहुत अधिक कमजोर होता है।
उपरोक्त नियमों के आधार पर वर्ष वर्ष कुण्डली का निर्माण होता है। वर्ष फल कुण्डली का अपना स्वतंत्र रूप से कोई महत्व नहीं है। यदि व्यक्ति की जन्म कुण्डली में कोई अच्छा योग नहीं है और वर्ष कुण्डली उस वर्ष में अच्छे योग दिखा रही है तो वर्ष कुण्डली के अच्छे फलों का कोई महत्व नहीं होगा।
किसी भी भाव के वर्षफल कुंडली में लग्न बनए का फल
वर्ष कुंडली को हर वर्ष के लिए देखा जाता है. वर्षफल कुंडली में प्रत्येक वर्ष का भविष्यफल देखा जाता है. वर्ष फल कुंडली को ताजिक शास्त्र में उपयोग किया जाता है. वर्ष कुंडली अनुसार इस समय पर भविष्यफल कथन करने से काफी सटीक भविष्यवाणी करता है. किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को निर्धारित करने के लिए वर्षा कुंडली या वार्षिक राशिफल को देख कर स्थिति का विश्लेषण किया जाता है. इस प्रकार की कुंडली का ज्योतिष के क्षेत्र में काफी महत्व रहा है. वर्ष कुंडली को देखने ओर उसके अध्ययन के दौरान जन्म कुंडली की दशा और योगों के निर्माण को ध्यान में रखा जाता है.
वर्ष कुंडली के द्वारा सूक्षम विचार से फलकथन करना काफी अच्छे परिणाम दिखाता है. वर्ष की कुंडली में जिस लग्न का निर्माण होता है उसी के द्वारा आगे की बातों को देखा जाता है. भाव का विश्लेषण करके हम उस साल मिलने वाले फलों को देख पाते हैं. इन भविष्यवाणियों में कार्यक्षेत्र, संबंध, रोग, धन लाभ एवं जीवन में होने वाले बदलावों को समझ पाना आसान होता है. वर्ष की शुरुआत में लग्न बनने वाला भाव उस विशिष्ट अवधि के दौरान व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाने के लिए विशेष रुप से जिम्मेदार होता है.
पहला भाव
यदि किसी व्यक्ति का लग्न किसी विशेष वर्ष में वर्ष कुंडली का लग्न हो जाता है तो उसे "द्विवर्ष लग्न" कहा जाता है, कुछ लोग इसे "पुनर्जन्म वर्ष कुंडली" के रूप में भी परिभाषित किया जाता है. इस लग्न को व्यक्ति के लिए ज्यादा शुभ नहीं माना जाता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से यह वर्ष कुछ कमजोर स्थिति को दिखा सकता है. व्यक्ति को अपने जीवन के कई पहलूओं में बहुत उतार-चढ़ाव से गुजर सकता है. करियर और व्यवसाय क्षेत्र में बाधाओं और अटकाव की स्थिति परेशान कर सकती है.
इस समय पर व्यक्ति अधिक परेशानी का अनुभव कर सकता है. इस समय पर व्यक्ति को कुछ चीजौं पर ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना आवश्यक होता है. इस वर्ष कोई नया कार्य प्रारंभ नहीं करना चाहिए. जो लोग सेवा काम में लगे होते हैं उन्हें नौकरी बदलने के बारे में सोचने से बचना चाहिए. व्यवसाय में कई बदलाव आप कर सकते हैं. व्यक्ति लगातार बाधाओं के कारण काफी मानसिक तनाव से गुजर सकता है. इस समय के दौरान धैर्य एवं शांति के साथ आगे बढ़ना ही उपयुक्त होता है.
दूसरा भाव
वर्ष कुंडली में लग्न के रूप में अगर जन्म कुंडली का दूसर अभाव उदय होता है तो यह मिलेजुले फलों को दर्शाता है. द्वितीय भाव में अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के असर देखने पड़ते हैं. व्यक्ति संपत्ति से कुछ लाभ प्राप्त कर सकता है या आय के नए स्रोत से वित्तीय लाभ प्राप्त कर सकते हैं. धन और वित्त के मामले में यह एक अनुकूल वर्ष बना हुआ है. दुर्घटनाओं और अप्रत्याशित घटनाओं की बड़ी संभावनाओं का समय होता है. इस समय के दौरान परिवार और धन को लेकर अधिक परिणाम प्रभावित करते हैं. नए सदस्यों का आगमन हो सकता है. कुछ सामान्य स्वास्थ्य बीमारियों और कुछ मानसिक चिंताओं से भी प्रभावित होना पड़ सकता है.
तीसरा भाव
जिस वर्ष तृतीय भाव वर्ष कुंडली का लग्न होता है. इस समय के दौरान व्यक्ति का परिश्रम अधिक रहता है. परिश्रम के द्वारा ही काम की प्राप्ति होती है. इस वर्ष कुंडली के दौरान व्यक्ति को चीजों के लिए अधिक भागदौड़ करनी पड़ सकती है. काम में व्यक्ति को शक्ति का अनुभव होता है वृद्धि का अनुभव मिलता है. भाई बंधुओं के साथ रिश्ते प्रभावित होंगे. अपनों को प्रसिद्धि और धन की प्राप्ति होती है. व्यक्ति स्वयं भी ऐसे कार्य करता है जिससे समाज में उसकी स्थिति मजबूती को पाती है. इस समय पर जन संपर्क भी बढ़ता है. मान सम्मान प्राप्ति भी इस समय पर होती है.
चौथा भाव
जन्म कुण्डली के चतुर्थ भाव का वर्ष कुण्डली में लग्न रुप से उदित होना अनुकूल माना गया है. इस समय पर व्यक्ति को जीवन में सुख की प्राप्ति होती है. इस समय पर कुछ नया वाहन या अन्य प्रकार के सामान खरीद सकते हैं. भौतिक सुविधाओं की खरीदारी अधिक कर सकते हैं. इस समय धन खर्च भी बना रह सकता है. आराम और खुशी बनी रह सकती है. इस समय के दौन आमदनी का ज्यादातर हिस्सा घर की साज-सज्जा पर खर्च हो जाता है. धन प्रसिद्धि, मान्यता और सम्मान के मामले में यह समय अनुकूल रहता है.
पंचम भाव
कुंडली का पंचम भाव वर्ष फल कुंडली के लिए अनुकूल कहा जाता है. जन्म कुंडली का पंचम भाव जब वर्ष कुंडली का लग्न बनता है उस वर्ष व्यक्ति को काफी बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. व्यक्ति जीवन के हर पहलू में सुखद परिणाम प्राप्त कर सकता है. इस समय पर प्रेम संबंधों, शिक्षा एवं संतान से जुड़े मसले मुख्य होते हैं. अपने जीवन में शिक्षा एवं संबंधों के मामले में बेहतर लाभ प्राप्त कर सकते हैं. कार्य अच्छे स्तर की सफलता के साथ पूरे होते हैं. परीक्षा में सफलता मिलती है. इस समय के दौरान काम में किए गए प्रयासों के अनुसार ही सफलता भी मिलती है.
छठा भाव
जन्म कुंडली का छठा भाव अगर वर्षफल कुंडली के लग्न के रूप में आता है तो समय मिश्रित रहता है. इस समय के दौरान चिंताएं अधिक बनी रह सकती हैं. कानूनी मामलों में ये समय तनाव दे सकता है. इस अवधि में व्यक्ति को काफी शत्रुता का सामना करना पड़ सकता है. काम पर बहुत प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है. व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और काम में बाधाओं का भी सामना करना पड़ सकता है. धन की हानि, शत्रुओं से परेशानी, घर में विवाद जैसी दिक्कतें अधिक बनी रह सकती हैं.
सातवां भाव
जन्म कुण्डली का सप्तम भाव जब वर्ष कुण्डली का लग्न बनता है तब यह स्थिति जीवन के संबंधों को अधिक प्रभावित करने वाली होती है. इस समय पर विवाह, संतान, साझेदारी के काम आदि मसलों पर शुभ कार्य सिद्ध होते हैं. जो लोग अविवाहित हैं उनके इस साल विवाह बंधन में बंधने की प्रबल संभावना भी दिखाई दे सकती है. व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है और वह अपने काम के लिए सम्मान प्राप्त करता है.
आठवां भाव
जन्म कुंडली का अष्टम भाव वर्ष कुण्डली में लग्न होने पर व्यक्ति को एक वर्ष में बहुत सारी समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है. उसके जीवन में कई अप्रत्याशित घटनाएं घट सकती हैं. स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ सकती हैं. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में काफी असफलताओं का सामना करना पड़ता है. इस वर्ष मान-सम्मान में कमी के भी संकेत मिल सकते हैं.
नौवां भाव
जिस वर्ष जन्म कुंडली का नवम भाव वर्ष कुंडली का लग्न बनता है, तो इसे "भाग्योदय वर्ष" यानि भाग्य का वर्ष भी कहा जाता है. व्यक्ति को व्यापार और कार्यक्षेत्र में अपार सफलता मिलती है. वह विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करता है. उसके द्वारा किए गए सभी कार्य सफलतापूर्वक पूरे होते हैं. व्यक्ति विभिन्न आध्यात्मिक और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेता है.
दसवां भाव
जब जन्म कुंडली का दशम भाव वर्ष कुंडली का लग्न हो जाता है, तो वर्ष को सफलता का वर्ष कहा जाता है. इस वर्ष के दौरान व्यक्ति को सरकारी सेवाओं में भाग लेने का अवसर मिलता है. यदि व्यक्ति सरकारी सेवाओं के लिए कार्य करने में सक्षम नहीं है तो उसे अपने वर्तमान कार्यस्थल पर ही सफलता, प्रसिद्धि और मान्यता प्राप्त होती है.
ग्यारहवां भाव
जन्म कुण्डली का एकादश भाव जब वर्ष कुण्डली का लग्न हो जाता है तो इस वर्ष व्यवसायी व्यक्तिों को अपने कार्यक्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त होती है. नौकरी के अवसर मिलते हैं. इस साल की शुरुआत के साथ व्यक्ति की ज्यादातर चिंताएं दूर हो जाती हैं. सभी प्रकार के ऋण समाप्त होने के अच्छे मौके बनते हैं.
बारहवां भाव
जन्म कुण्डली का बारहवाँ भाव जब वर्ष कुण्डली का लग्न हो जाता है तो व्यक्ति को बहुत अधिक खर्चों का सामना करना पड़ता है. उसकी इच्छाएं बढ़ जाती हैं, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स भी उत्पन्न हो सकते हैं. कर्ज लेने या दूसरे से पैसे उधार लेने की जरूरत महसूस होती है. मानसिक और आर्थिक तनाव का सामना करना पड़ता है।
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
Dream idea
स्वप्न फल और स्वप्न विचार क्या है। नींद के समय जब हमें सपने दिखाई देते है। और हमें उस सपने में जो कुछ भी दिखाई देता है। ज्योतिष विद्या में उसको ही स्वप्न फल कहा जाता है। स्वप्न ज्योतिष के अनुसार स्वप्न हमें भविष्य में घटने वाली घटनाओं का संकेत पहले ही दे देते है। नींद के समय जब हमें सपने आते हैं। और हमें उस सपने में जो कुछ भी दिखाई देता है। ज्योतिष विद्या में उसका सपना फल ( स्वप्न फल ) कहा जाता है।
रात में नींद के समय हमें हर सपना अलग-अलग समय में दिखाई देता है। प्रत्येक स्वप्न के अलग-अलग समय काल में दिखाई देने के कारण हम उस स्वप्न के फल को नहीं देख पाते हैं।
मत्स्य पुराण के 242वें अध्याय के अनुसार स्वप्न फल का निश्चित समय बताया गया है।
उसके अनुसार आप भी अपना स्वप्न फल बहुत ही आसानी से जान सकते हैं। सपने फल प्राप्त करने की अवधि व समय की सारणी नीचे दी गई है।
रात के पहले पहर में दिखाई देने वाले सपने फल एक वर्ष की अवधि व समय में वर्ण प्राप्त होते हैं।
रात के दूसरे पहर में दिखाई देने वाले सपने सपने छह माह की अवधि व समय में विशेषता प्राप्त होती है।
रात के पहले पहर में दिखाई देने वाले सपने फल तीन माह की अवधि व समय में वर्ण प्राप्त होते हैं।
रात के पहले पहर में दिखाई देने वाले सपने फल एक माह की अवधि व समय में विशेषता प्राप्त होती है।
सूर्य के समय में दिखाई देने वाले स्वप्नों का फल केवल 10 दिनों की अवधि व समय में ही प्राप्त हो जाता है।
यहाँ नीचे आप सभी प्रकार के स्वप्न सन व स्वप्न स्वप्न को उनके अर्थ व् मतलब सहित समना गया है।
स्वप्न फल – सपनो का मतलब
1. यदि रोगी सिर मुंडाएं ,लाल या काले वस्त्र धारण किए किसी स्त्री या पुरूश को सपने में देखता है या अंग भंग व्यक्ति को देखता है तो रोगी की दशा अच्छी नही है ।
2. यदि रोगी सपने मे किसी ऊँचे स्थान से गिरे या पानी में डूबे या गिर जाए तो समझे कि रोगी का रोग अभी और बड़ सकता है।
3. यदि सपने में ऊठ,शेर या किसी जंगली जानवर की सवारी करे या उस से भयभीत हो तो समझे कि रोगी अभी किसी और रोग से भी ग्र्स्त हो सकता है।
4. यदि रोगी सपने मे किसी ब्राह्मण,देवता राजा गाय,याचक या मित्र को देखे तो समझे कि रोगी जल्दी ही ठीक हो जाएगा ।
5. यदि कोई सपने मे उड़ता है तो इस का अभिप्राय यह लगाया जाता है कि रोगी या सपना देखने वाला चिन्ताओं से मुक्त हो गया है ।
6. यदि सपने मे कोई मास या अपनी प्राकृति के विरूध भोजन करता है तो ऐसा निरोगी व्यक्ति भी रोगी हो सकता है ।
स्वप्न फल ज्योतिष – जानिए 251 सपनों के फल
1. अखरोट देखना – भरपुर भोजन मिले तथा धन वृद्धि हो
2. अनाज देखना -चिंता मिले
3. अनार खाना (मीठा ) – धन मिले
4. अजनबी मिलना – अनिष्ट की पूर्व सूचना
5. अजवैन खाना – स्वस्थ्य लाभ
6. अध्यापक देखना – सफलता मिले
7. अँधेरा देखना – विपत्ति आये
8. अँधा देखना – कार्य में रूकावट आये
9. अप्सरा देखना – धन और मान सम्मान की प्राप्ति
10. अर्थी देखना – धन लाभ हो
11. अमरुद खाना – धन मिले
12. अनानास खाना – पहले परेशानी फिर राहत मिले
13. अदरक खाना – मान सम्मान बढे
14. अनार के पत्ते खाना – शादी शीघ्र हो
15. अमलतास के फूल – पीलिया या कोढ़ का रोग होना
16. अरहर देखना – शुभ
17. अरहर खाना – पेट में दर्द
18. अरबी देखना – सर दर्द या पेट दर्द
19. अलमारी बंद देखना – धन प्राप्ति हो
20. अलमारी खुली देखना – धन हानि हो
21. अंगूर खाना – स्वस्थ्य लाभ
22. अंग रक्षक देखना – चोट लगने का खतरा
23. अपने को आकाश में उड़ते देखना – सफलता प्राप्त हो
24. अपने पर दूसरौ का हमला देखना – लम्बी उम्र
25. अंग कटे देखना – स्वास्थ्य लाभ
26. अंग दान करना – उज्जवल भविष्य , पुरस्का
27. अंगुली काटना – परिवार में कलेश
28. अंगूठा चूसना – पारवारिक सम्पति में विवाद
29. अन्तेस्ति देखना – परिवार में मांगलिक कार्य
30. अस्थि देखना – संकट टलना
31. अंजन देखना – नेत्र रोग
32. अपने आप को अकेला देखना – लम्बी यात्रा
33. अख़बार पढ़ना, खरीदना – वाद विवाद
34. अचार खाना , बनाना – सिर दर्द, पेट दर्द
35. अट्हास करना – दुखद समाचार मिले
36. अध्यक्ष बनना – मान हानि
37. अध्यन करना -असफलता मिले
38. अपहरण देखना – लम्बी उम्र
39. अभिमान करना – अपमानित होना
40. अध्र्चन्द्र देखना – औरत से सहयोग मिले
41. अमावस्या होना – दुःख संकट से छुटकारा
42. अगरबत्ती देखना – धार्मिक अनुष्ठान हो
43. अगरबत्ती जलती देखना – दुर्घटना हो
44. अगरबत्ती अर्पित करना – शुभ
45. अपठनीय अक्षर पढना – दुखद समाचार मिले
46. अंगीठी जलती देखना – अशुभ
47. अंगीठी बुझी देखना – शुभ
48. अजीब वस्तु देखना – प्रियजन के आने की सूचना
49. अजगर देखना – शुभ
50. अस्त्र देखना – संकट से रक्षा
51. अंगारों पर चलना – शारीरिक कष्ट
52. अंक देखना सम – अशुभ
53. अंक देखना विषम – शुभ
54. अस्त्र से स्वयं को कटा देखना – शीघ्र कष्ट मिले
55. अपने दांत गिरते देखना – बंधू बांधव को कष्ट हो
56. आंसू देखना – परिवार में मंगल कार्य हो
57. आवाज सुनना – अछा समय आने वाला है
58. आंधी देखना – संकट से छुटकारा
59. आंधी में गिरना – सफलता मिलेगी
सपनों का मतलब और उनका फल
1. आइना देखना – इच्छा पूरण हो , अछा दोस्त मिले
2. आइना में अपना मुहं देखना – नौकरी में परेशानी , पत्नी में परेशानी
3. आसमान देखना – ऊचा पद प्राप्त हो
4. आसमान में स्वयं को देखना – अच्छी यात्रा का संकेत
5. आसमान में स्वयं को गिरते देखना – व्यापार में हानि
6. आग देखना – गलत तरीके से धन की प्राप्ति हो
7. आग जला कर भोजन बनाना – धन लाभ , नौकरी में तरक्की
8. आग से कपडा जलना – अनेक दुख मिले , आँखों का रोग
9. आजाद होते देखना – अनेक चिन्ताओ से मुक्ति
10. आलू देखना – भरपूर भोजन मिले
11. आंवला देखना – मनोकामना पूर्ण न होना
12. आंवला खाते देखना – मनोकामना पूर्ण होना
13. आरू देखना – प्रसनता की प्राप्ति
14. आक देखना – शारारिक कष्ट
15. आम खाते देखना – धन और संतान का सुख
16. आलिंगन देखना पुरुष का औरत से – काम सुख की प्राप्ति
17. आलिंगन देखना औरत का पुरुष से – पति से बेवफाई की सूचना
18. आलिंगन देखना पुरुष का पुरुष से- शत्रुता बढ़ना
19. आलिंगन देखना औरत का औरत से – धन प्राप्ति का संकेत
20. आत्महत्या करना या देखना – लम्बी आयु
21. आवारागर्दी करना – धन लाभ हो नौकरी मिले
22. आँचल देखना – प्रतियोगिता में विजय
23. आँचल से आंसू पोछना – अछा समय आने वाला है
24. आँचल में मुँह छिपाना – मान समान की प्राप्ति
25. आरा चलता हुआ देखना – संकट शीघ्र समाप्त होगे
26. आरा रूका हुआ देखना- नए संकट आने का संकेत
27. आवेदन करना या लिखना – लम्बी यात्रा हो
28. आश्रम देखना – व्यापार में घाटा
29. आट्टा देखना – कार्य पूरा हो
30. आइसक्रीम खाना – सुख शांति मिले
31. इमली खाते देखना – औरत के लिए शुभ ,पुरुष के लिए अशुभ
32. इडली साम्भर खाते देखना – सभी से सहयोग मिले
33. इष्ट देव की मूर्ति चोरी होना – मृत्युतुल्य कष्ट आये
34. इश्तहार पढना – धोखा मिले, चोरी हो
35. इत्र लगाना – अछे फल की प्राप्ति, मान सम्मान बढेगा
36. इमारत देखना – मान सम्मान बढे, धन लाभ हो
37. ईंट देखना – कष्ट मिलेगा
38. इंजन चलता देखना – यात्रा हो , शत्रु से सावधान
39. इन्द्रधनुष देखना – संकट बढे , धन हानि हो
40. इक्का देखना हुकम का – दुःख व् निराशा मिले
41. इक्का देखना ईंट का -कष्टकारक स्तिथि
42. इक्का देखना पान का -पारवारिक क्लेश
43. इक्का देखना चिड़ी का – गृह क्लेश ,अतिथि आने की सूचना
उ
1. उजाड़ देखना – दूर स्थान की यात्रा हो
2. उस्तरा प्रयोग करना – यात्रा में धन लाभ हो
3. उपवन देखना – बीमारी की पूर्व सूचना
4. उदघाटन देखना – अशुभ संकेत
5. उदास देखना – शुभ समाचार मिले
6. उधार लेना या देना – धन लाभ का संकेत
7. स्वयं को उड़ते देखना – गंभीर दुर्घटना की पूर्व सूचना
8. उछलते देखना -दुखद समाचार मिलने का संकेत
9. उल्लू देखना -दुखों का संकेत
10. उबासी लेना – दुःख मिले
11. उल्टे कपडे पहनना – अपमान हो
12. उजाला देखना – भविष्य में सफलता का संकेत
13. उजले कपडे देखना -इज्जत बढे , विवाह हो
14. उठना और गिरना – संघर्ष बढेगा
15. उलझे बाल या धागे देखना – परेशानिया बढेगी
16. उस्तरा देखना – धन हानि , चोरी का भय
ऊ— सपने का अर्थ
1. ऊंघना – धन हानि , चोरी का भय
2. ऊंचाई पर अपने को देखना – अपमानित होना
3. ऊन देखना – धन लाभ हो
4. ऊंचे पहाड़ देखना – काफी मेहनत के बाद कार्य सिद्ध होना
5. ऊंचे वृक्ष देखना – मनोकामना पूरी होने में समय लगना
औ — सपने का अर्थ
औषधी देखना – गलत संगति देखना
ऐनक लगते देखना – विद्या मिले, ख़ुशी इज्जत मिले
कब्र खोदना – धन पाए , मकान बनाये
कत्ल करना स्वयं का – अच्छा सपना है , बुरे काम से बचे
कद अपना छोटा देखना – अपमान सहना , परेशानी उठाना
कद अपना बड़ा देखना – भारी संकट आना
कसम खाते देखना – संतान का दुःख भोगना
कलम देखना – विद्या धन की प्राप्ति
कर्जा देना – खुशहाली आये
कर्जा लेना – व्यापार में हानि
कला कृतिया देखना – मान समान बढे
कपूर देखना – व्यापार में लाभ
कबाडी देखना – अच्छे दिनों की शुरूआत
कबूतर देखना – प्रेमिका से मिलना
कबूतरों का झुंड – शुभ समाचार मिले
कमल का फूल – ज्ञान की प्राप्ति
कपास देखना – सुख समृधि हो
कंगन देखना – अपमान हो
कदू देखना – पेट दर्द
कन्या देखना – धन वृद्धि हो
कफन देखना – लम्बी उम्र
कली देखना – स्वास्थ्य खराब हो
कछुआ देखना – शुभ समाचार मिले
कलश देखना – सफलता
कम्बल देखना – बीमारी आये
कपडा धोना – पहले रूकावट , फिर लाभ
कटा सिर देखना – शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी
कब्रिस्तान देखना – निराशा हो
कंघी देखना – चोट लगना , दांत या कान में दर्द
कसरत – बीमारी आने की सूचना
काली आँखे देखना – व्यापार में लाभ
काला रंग देखना – शुभ फल
काजू खाना – नया व्यापार शुरू हो
कान देखना – शुभ समाचार
कान साफ करना – अच्छी बातो का ज्ञान
काउंटर देखना – लेने देने में लाभ हो
कारखाना देखना – दुर्घटना में फसने की सूचना
काली बिल्ली देखना – लाभ हो
कुंडल पहने देखना – संकट हो
कुबडा देखना – कार्य में विघ्न
कुमकुम देखना – कार्य में सफलता
कुल्हाडी देखना – परिश्रम अधिक, लाभ कम
कुत्ता भोंकना – लोगो द्वारा मजाक उड़ना
कुत्ता झपटे – शत्रु की हार
कुर्सी खाली देखना – नौकरी मिले
कूड़े का ढेर देखना – कठिनाई के बाद धन मिले
किला देखना – ख़ुशी प्राप्त हो
कील देखना / ठोकना – परिवार में बटवारा हो
केश संवारना – तीर्थ यात्रा
केला खाना / देखना – ख़ुशी हो
केक देखना – अच्छी वस्तु मिले
कैमरा देखना – अपने भेद छिपा कर रखे
कोढ़ी देखना – धन का लाभ
कोहरा – संकट समाप्त हो
कोठी देखना – दुःख मिले
कोयल देखना / सुनना – शुभ समाचार
कोया देखना – शुभ संकेत
किसी ऊंचे स्थान से कूदना – असफलता
नर कंकाल देखना – उम्र बढने का संकेत
जप करना – विजय
कद लम्बा देखना – मृत्युतुल्य कष्ट हो
कद घटना – अपमान हो
कटोरा देखना – बनते काम बिगढ़ना
कनस्तर खाली देखना – शुभ
कनस्तर भरा देखना – अशुभ
कमंडल देखना – परिवार के किसी सदस्य से वियोग
करवा चौथ – औरत देखे तो आजीवन सधवा, पुरुष देखे तो धन धान्य संपूरण
कागज कोरा – शुभ
कागज लिखा देखना – अशुभ
सफेद कुरता देखना – शुभ
अन्य रंग का कुरता देखना – अशुभ
कुर्सी पर स्वयं को बैठे देखना – नया पद, पदोनती
कुर्सी पर अन्य को बैठे देखना – अपमान
कब्र खोदना – मकान का निर्माण करना
कपूर देखना – व्यापार नौकरी में लाभ
कबूतर देखना – प्रेमिका से मिलन
कपडा बेचते देखना – व्यापार में लाभ
कपडे पर खून के दाग – व्यर्थ बदनामी
कछुआ देखना – धन आशा से अधिक मिलना
कमल ककडी देखना – सात्विक भोजन में आनंद, ख़ुशी मिले
कपास देखना – सुख, समृधि घर आये
करी खाना – विधवा से विवाह, विधुर से विवाह
कृपाण – धरम कार्य पूर्ण होने की सूचना
कान देखना – शुभ समाचार
कान कट जाना – अपनों से वियोग
काला कुत्ता देखना – कार्य मे सफलता
काउंटर देखना – लेन देन में लाभ
काली बिल्ली देखना – शुभ समाचार
पीली बिल्ली देखना – अशुभ समाचार
काना व्यक्ति देखना – अनकूल समय नहीं
कीडा देखना – शक्ति का प्रतीक
कुम्हार देखना – शुभ समाचार
केतली देखना – दांपत्य जीवन में शांति हो
केला देखना या खाना – शुभ समाचार
कैंची – अकारण किसी से वाद- विवाद होना
कोठी देखना – दुःख मिले
कोयला देखना – प्रेम के जाल में फँस कर दुःख पाए
कुरान- सुख शांति की भावना बढे
ख— सपने का अर्थ
1. खरोंच लगना -शरीर स्वस्थ हो
2. खटमल देखना – जीवन में संघर्ष
3. खटमल मारना – कठिनाई से छुटकारा
4. खरबूजा देखना -सफलता मिले
5. ख़त पढ़ना – शुभ समाचार
6. खरगोश देखना – औरत से बेवफाई
7. खलिहान देखना – सम्मान बडे
8. खटाई खाना – धन हानि हो
9. खाली खाट देखना -बीमार पड़ने की सूचना
10. खाली बर्तन देखना – काम में हानि
11. खिलखिलाना – दुखद समाचार मिलने का संकेत
12. खिल्ली उडाना -लोगो से निराशा मिले
13. खिलौना देखना – आँखों को सुख मिले
14. खुजली होना – रोग से छुटकारा पाने का संकेत
15. ख़ुशी देखना – परेशानी बढे
16. खुशबू लगाना – सम्मान बढे
17. खून खराबा -सौभाग्य वृद्धि
18. खून देखना – धन मिले
19. खून की वर्षा देखना – देश में अकाल पड़े
20. खून में लोटना – धन-सम्पति प्राप्त होने का संकेत
21. खेल कूद में भाग लेना – भाग्यौनात्ति होना
22. खेत देखना -यात्रा हो , विद्या व् धन की वृद्धि
23. खेत काटते देखना – पत्नी से मन मुटाव होना
24. खोपडी देखना – बौधिक कार्यो में सफलता
ग— सपने का अर्थ
1. गधा देखना -प्यार मिले
2. गधा लदा हुआ देखना – व्यापार में लाभ हो
3. गधे की चीख सुनना – दुख हो
4. गधे की सवारी करना – शुभ समाचार मिले
5. गाय देखना – धन लाभ हो
6. गाय या बैल पीले रंग की देखना – महामारी आने के लक्षण
7. गरम पानी देखना – बुखार या अन्य बीमारी आये
8. गंजा सिर देखना – परीक्षा में पास हो, सम्मान बड़े
9. गली देखना – सुनसान गली देखने से लाभ , भीड़ वाली गली देखने से मृत्यु का समाचार
10. गवाही देना -अपराध में फंसना
11. गमला देखना – खाली देखने पर झंझट , फूल खिले देखने पर शुभ
12. गलीचा देखना या उस पर बैठना – शोक में शामिल होना
13. ग्वाला /ग्वालिन देखना – शुभ फल
14. गाजर देखना – फसल अच्छी हो
15. गाड़ी देखना – यात्रा सार्थक हो
16. गलिया देते देखना – बदनामी हो
17. गायत्री पाठ करना – दुर्लभ स्वप्न मान सम्मान बड़े
18. गिलास देखना – घरेलू खर्चो में कमी होगी
19. गिनती करना – काम में हानि
20. गिरगिट देखना – झगडे में फसने का संकेत
21. गिलहरी देखना – बहुत शुभ
22. गीदढ़ देखना – शत्रु से भय मिले
23. गीली वस्तु देखना – लम्बी बीमारी आने के संकेत
24. गीता देखना – दुर्लभ समय
25. गुलाब देखना – सम्मान में वृद्धि
26. गुढ खाना – सफलता मिले
27. गुडिया देखना – जल्दी विवाह का संकेत
28. गुठली खाना या फेंकना – काफी धन आने की सूचना
29. गेंहू देखना – काफी मेहनत कर के कमाई होना
30. गेंद देखना – परेशानी होना
31. गेंदे का फूल देखना – मानसिक अशांति
32. गेरुआ वस्त्र देखना – समय शुभ है
33. गीता – कष्ट दूर हो
34. ग्रन्थ साहिब – धार्मिक कार्यो में रूचि हो
घ— सपने का अर्थ
1. घडी देखना – यात्रा पर जाना
2. घडी गुम हो जाना – यात्रा का कार्यकर्म स्थगित होना
3. घर देखना (सजा हुआ ) – संपत्ति में हानि
4. घर देखना (खंडहर ) – संपत्ति में लाभ
5. घर में किसी और का प्रवेश देखना – शत्रु पर विजय
6. घर में आग देखना – सरकार से लाभ हो
7. घर सोने का देखना – घर में आग लगने का संकेत
8. घर लोहे का देखना – मान सम्मान बढेगा
9. घडा भरा देखना – धन लाभ हो
10. घंटे की आवाज़ सुनना – चोरी होने का संकेत
11. घंटाघर देखना – अशुभ समाचार
12. घाट देखना – तीर्थ यात्रा पर जाने का संकेत
13. घायल देखना – संकट से छुटकारा
14. घास देखना – लाभ होगा
15. घी देखना – धन दौलत बढे
16. घुटने टेकना – वाद विवाद में सफलता मिले
17. घुंघरू की आवाज सुनना – मान सम्मान बढेगा
18. घूंघट देखना – नया व्यापार शुरू हो
19. घोड़ा सजा हुआ देखना – कार्य में हानि
20. घोड़ा काला देखना -मान सम्मान बढेगा
21. घोड़ा या हाथी पर चड़ना – उन्नत्ति हो
च— सपने का अर्थ
1. चलता पहिया देखना – कारोबार में उन्नत्ति हो
2. चप्पल पहनना – यात्रा पर जाना
3. चक्की देखना – मान सम्मान बढेगा
4. चमडा देखना – दुःख हो
5. चबूतरा देखना -मान सम्मान बढेगा
6. चट्टान देखना (काली ) – शुभ
7. चट्टान देखना (सफेद ) – अशुभ
8. चपत मारना – धन हानि हो
9. चपत खाना – शुभ फल की प्राप्ति
10. चरबी देखना – आग लगने का संकेत
11. चलना जमीन पर -नया रोजगार मिले
12. चलना पानी पर – कारोबार में हानि
13. चलना आसमान पर – बीमारी आने का संकेत
14. चन्द्र ग्रहण देखना – सभी कार्य बिगडे
15. चमगादर उड़ता देखना – लम्बी यात्रा हो
16. चमगादर लटका देखना – अशुभ संकेत
17. चम्मच देखना – नजदीकी व्यक्ति धोखा दे
18. चप्पल देखना – यात्रा पर जाना
19. चटनी खाना – दुखो में वृद्धि
20. चरखा चलाना – मशीनरी खराब हो
21. चश्मा खोना – चोरी के संकेत
22. चांदी के बर्तन में दूध पीना – संम्पत्ति में वृद्धि हो
23. चारपाई देखना – हानि हो
24. चादर शरीर पर लपेटना -गृह क्लेश बढे
25. चादर मैली देखना – धन लाभ हो
26. चादर समेट कर रखना – चोरी होने का संकेत
27. चंचल आँखे देखना – बीमारी आने की सूचना
28. चांदी का सामान देखना – गृह क्लेश बढे
29. चोकलेट खाना -अच्छा समय आने वाला है
30. चाय देखना – धन वृद्धि हो
31. चावल देखना – कठिनाई से धन मिले
32. चाकू देखना – अंत में विजय
33. चित्र देखना – पुराने मित्र से मिलन हो
34. चिडिया देखना – मेहमान आने का संकेत
35. चींटी देखना – धन लाभ हो
36. चींटिया बहुत अधिक देखना – परेशानी आये
37. चील देखना – बदनामी हो
38. चींटी मारना – तुंरत सफलता मिले
39. चुम्बन लेना – आर्थिक समृधि हो
40. चुम्बन देना – मित्रता बढे
41. चुटकी काटना – परिवार में कलेश
42. चुंगी देना – चलते काम में रूकावट
43. चुंगी लेना – आर्थिक लाभ
44. चुडैल देखना -धन हानि हो
45. चूहा देखना -औरत से धोखा
46. चूहा फंसा देखना – शरीर को कष्ट
47. चूहा चूहे दानी से निकलते देखना – कष्ट से मुक्ति
48. चूहा मरा देखना – धन लाभ
49. चूहा मारना – धन हानि
50. चूडिया तोड़ना – पति दीर्घायु हो (औरत के लिए )
सपने का अर्थ
1. सफेद चूडिया देखना – धन लाभ हो
2. चूल्हा देखना – उत्तम भोजन प्राप्त हो
3. चूरन खाना – बीमारी में लाभ
4. चेचक निकलना – धन की प्राप्ति
5. चोर पकड़ना – धन आने की सूचना
6. चोटी पर स्वयं को देखना – हानि हो
7. चोराहा देखना – यात्रा में सफलता
8. चौकीदार देखना – अचानक धन आये
9. चौथ का चाँद देखना – बहुत अशुभ
सपने का अर्थ
1. छत देखना -मकान बने
2. छड़ी देखना – संतान से लाभ हो
3. छतरी लगाकर चलना – मुसीबतों से छुटकारा मिलना
4. छत्र देखना – राज दरबार में सम्मान मिले
5. छलनी देखना – व्यापार में हानि
6. छल्ला पहनना – शिक्षा में वृद्धि
7. छलांग लगाना – असफलता हाथ लगे
8. छम छम की आवाज़ आये – मेहमान आये
9. छाज देखना – सम्मान बढे
10. छाछ पीना -धन लाभ हो
11. छापाखाना देखना – धन लाभ
12. छात्रो का समूह देखना – शिक्षा में लाभ
13. छिपकली देखना – दुश्मन से कष्ट
14. छींक आना – अशुभ लक्षण
15. छुआरा खाना – धन लाभ हो
16. छुरा देखना – दुश्मन से भय हो
17. छोटे बच्चे देखना – इच्छा पूरण हो
सपने का अर्थ
1. जमघट देखना – कार्य की प्रशंषा मिलेगी
2. जयकार सुनना- संकट में पड़ना
3. जलना – मान सम्मान की प्राप्ति
4. ज्योतिष देखना – संतान को कष्ट
5. जटाधारी साधु देखना – शुभ लक्षण
6. जहाज देखना – दुर्घटना में फंसने का सूचक
7. खाली जंजीर देखना – इल्जाम लगेगा
8. स्वयं को जंजीर में जकडे देखना – समस्याओ से छुटकारा
9. जल देखना – संकट आएगा
10. जड़े देखना -शुभ स्वप्न
11. ज्वालामुखी देखना – स्थान परिवर्तन की पूर्व सूचना
12. जमीन खोदना – कठिनाई से लाभ हो
13. जंगल देखना – कष्ट दूर हो
14. जलेबी खाना – सुख सुविधाय बढे
15. जलता घर देखना -बीमारी परेशानी बढे
16. जलता मुर्दा देखना – शुभ समाचार
17. जादू देखना या करना -धन हानि
18. जाल देखना (मकडी का ) – शुभ लक्षण
19. जाल देखना ( मचली का ) -संकट का संकेत
20. जामुन खाना या देखना – यात्रा पर जाना पड़े
21. जलूस देखना -नौकरी में उनत्ति हो
22. जूए देखना या मारना – मानसिक चिंता
23. जूते से पीटना – मान सम्मान बढे
24. जूते से स्वयं पीटना – मान सम्मान मिलेगा
25. जेब खाली देखना -अशुभ है
26. जेब भरी देखना -खर्च अधिक होने का सूचक
27. जेल देखना – जग हँसी हो
28. जेल से छूटना – कार्य में सफलता
29. जोकर देखना – समय बर्बाद हो
सपने का अर्थ
1. झगडा देखना -शुभ समाचार
2. झरना देखना (ठंडे पानी का ) – शुभ है
3. झरना देखना (गर्म पानी का ) – बीमारी आये
4. झंडा देखना सफेद या मंदिर का -शुभ समाचार
5. झंडा देखना हरा – यात्रा में कष्ट
6. झंडा देखना पीला – बीमारी आये
7. झाडू लगाना – घर में चोरी हो
8. झुनझुना देखना – परिवार में ख़ुशी हो
सपने का अर्थ
1. टंकी खाली देखना – शुभ लक्षण
2. टंकी भरी देखना – अशुभ घटना का संकेत
3. टाई सफेद देखना – अशुभ
4. टाई रंगीन देखना – शुभ
5. टेलेफोन करना – मित्रो की संख्या में वृद्धि
6. टोकरी खाली देखना – शुभ लक्षण
7. टोकरी भरी देखना – अशुभ घटना का संकेत
8. टोपी उतारना – मान सम्मान बढे
9. टोपी सिर पर रखना – अपमान हो
सपने का अर्थ
1. ठण्ड में ठिठुरना – सुख मिले
2. डंडा देखना – दुश्मन से सावधान रहे
3. डफली बजाना – घर में उत्सव की सूचना
4. डाक खाना देखना – बुरा समाचार मिले
5. डाकिया देखना – शुभ सूचना मिले
6. डॉक्टर देखना – निराशा मिले
7. डाकू देखना – धन वृद्धि हो
सपने का अर्थ
1. तरबूज देखना – धन लाभ
2. तराजू देखना – कार्य निष्पक्ष पूर्ण हो
3. तबला बजाना – जीवन सुखपूर्वक गुजरे
4. तकिया देखना – मान सम्मान बढे
5. तलवार देखना – शत्रु पर विजय
6. तपस्वी देखना -मन शांत हो
7. तला पकवान खाना – शुभ समाचार मिले
8. तलाक देना – धन वृद्धि हो
9. तमाचा मारना -शत्रु पर विजय
10. तराजू में तुलना – भयंकर बीमारी हो
11. तवा खाली देखना – अशुभ लक्षण
12. तवे पर रोटी सेकना – संपत्ति बढे
13. तहखाना देखना या उसमे प्रवेश करना – तीर्थ यात्रा पर जाने का संकेत
14. ताम्बा देखना – सरकार से लाभ मिले
15. तालाब में तैरना – स्वस्थ्य लाभ
16. ताला देखना -चलते काम में रूकावट
17. ताली देखना – बिगडे काम बनेगे
18. तांगा देखना – सुख मिले, सवारी का लाभ हो
19. ताबीज बांधना – काम में हानि हो
20. ताबीज़ देखना – शुभ समय का आगमन
21. ताश देखना – मित्र अथवा पडोसी से लडाई हो
22. तारा देखना – अशुभ
23. तितली देखना – विवाह हो या प्रेमिका मिले
24. तितली उड़ कर दूर जाना – दांपत्य जीवन में क्लेश हो
25. तिल देखना – कारोबार में लाभ
26. तिराहा देखना – लडाई झगडा हो
27. त्रिशूल देखना – अच्छा मार्ग दर्शन मिले
28. त्रिमूर्ति देखना – सरकारी नौकरी मिले
29. तितली पकड़ना – नई संतान हो
30. तिजोरी बंद करना – धन वृद्धि हो
31. तिजोरी टूटती देखना – कारोबार में बढोतरी
32. तिलक करना – व्यापार बढे
33. तूफान देखना या उसमे फँसना – संकट से छुटकारा मिले
34. तेल या तेली देखना – समस्या बढे
35. तोलना – महंगाई बढे
36. तोप देखना -शत्रु पर विजय
37. तोता देखना – ख़ुशी मिले
38. तोंद बढ़ी देखना – पेट में परेशानी हो
39. तोलिया देखना – स्वस्थ्य लाभ हो
सपने का अर्थ
1. थप्पर खाना – कार्य में सफलता
2. थप्पर मारना – झगडे में फँसना
3. थक जाना – कार्य में सफलता मिले
4. थर थर कंपना -मान सम्मान बढे
5. थाली भरी देखना – अशुभ
6. थाली खाली देखना – सफलता मिले
7. थूकना – मान सम्मान बढे
8. थैली भरी देखना – जमीन जायदाद में वृद्धि
9. थैली खाली देखना – जमीन जायदाद में झगडा हो
1. दरवाजा बंद देखना – चिंता बढे
2. दही देखना -धन लाभ हो
3. दलिया खाना या देखना – स्वस्थ्य कुछ समय के लिए ख़राब हो
4. दरार देखना – घर में फूट
5. दलदल देखना – काम में आलस्य हो
6. दरवाजा खोलना – नया कार्य शुरू हो
7. दरवाजा गिरना – अशुभ संकेत
8. दक्षिणा लेना या देना – व्यापार में घाटा
9. दमकल चलाना – धन वृद्धि हो
10. दर्पण देखना – मानसिक अशांति
11. दस्ताना पहनना – शुभ समाचार
12. दहेज़ लेना या देना – चोरी की सम्भावना
13. दरजी को काम करते देखना – कोर्ट से छुटकारा
14. दवा खाना या खिलाना – अच्छा मित्र मिले
15. दवा गिरना – बीमारी दूर हो
16. दांत टूटना – शुभ
17. दांत में दर्द देखना -नया कार्य शुरू हो
18. दाडी देखना – मानसिक परेशानी हो
19. दादा या दादी देखना जो मृत हो – मान सम्मान बढे
20. दान लेना – धन वृद्धि हो
21. दान देना – धन हानि हो
22. दाह क्रिया देखना – सोचा हुआ कार्य बनने के संकेत
23. दातुन करना -कष्ट मिटे
24. दाना डालना पक्षियो को – व्यापार में लाभ हो
25. दाग देखना – चोरी हो
26. दामाद देखना -पुत्री को कष्ट हो
27. दाल कपड़ो पर गिरना -शुभ लक्षण
28. दाल पीना – कार्य में रूकावट
29. दाढ़ी सफेद देखना – काम में रूकावट
30. दाढ़ी काली देखना – धन वृद्धि हो
31. दियासिलाई जलाना – दुश्मनी बढे
32. दीपक बुझा देना – नया कार्य शुरू हो
33. दीपक जलाना – अशुभ समाचार मिले
34. दीवाली देखना – व्यापार में घाटा हो
35. दीपक देखना – मान सम्मान बढे
36. दुल्हन देखना – सुख मिले
37. दुकान करना – मान सम्मान बढे
38. दुकान बेचना – मानहानि हो
39. दुकान खरीदना – धन का लाभ होना
40. दुकान बंद होना – कष्टों में वृद्धि हो
41. दुपट्टा देखना – स्वस्थ्य में सुधार हों
42. दूल्हा /दुल्हन बनना – मानहानि हों
43. दूल्हा /दुल्हन बारात सहित देखना -बीमारी आये
44. दूरबीन देखना – मान सम्मान में हानि हों
45. दूध देखना – आर्थिक लाभ मिले
46. दुकान पर बैठना – प्रतिष्ट बढे,धन लाभ हों
47. देवता से मंत्र प्राप्त होना – नए कार्य में सफलता
48. देवी देवता देखना – सुख संपत्ति की वृद्धि होना
49. दोना देखना – धन संपत्ति प्राप्त होना
50. दोमुहा सांप देखना – दुर्घटना हों, मित्र द्वारा विश्वासघात मिले
51. दौड़ना – कार्य में असफलता हों
52. देवी देवता देखना – कृष्ण – प्रेम संबंधो में वृद्धि
53. देवी देवता देखना – राम – सफलता मिले
54. देवी देवता देखना – शिव – मानसिक शांति बढे
55. देवी देवता देखना – विष्णु – सफलता मिले
56. देवी देवता देखना – ब्रह्मा – अच्छा समय आने वाला है
57. देवी देवता देखना – हनुमान -शत्रु का नाश हो
58. देवी देवता देखना – दुर्गा – रोग दूर हो
59. देवी देवता देखना – सीता – पहले कष्ट मिले फिर समृधि हो
60. देवी देवता देखना – राधा – शारीरिक सुख मिले
61. देवी देवता देखना – लक्ष्मी – धन धन्य की प्राप्ति हो
62. देवी देवता देखना – सरस्वती -भविष्य सुखद हो
63. देवी देवता देखना – पार्वती – सफलता मिले
64. देवी देवता देखना – नारद -दूर से शुभ समाचार मिले
सपने का अर्थ
1. धमाका सुनना – कष्ट बढे
2. धतूरा खाना – संकट से बचना
3. धनिया हरा देखना – यात्रा पर जाना पढ़े
4. धनुष देखना – सभी कर्मो में सफलता मिले
5. धब्बे देखना – शुभ संकेत
6. धरोहर लाना या देखना – व्यापार में हानि हों
7. धार्मिक आयोजना देखना – शुभ संकेत
8. धागा देखना – कार्य में वृद्धि हों
9. धुरी देखना – मान सम्मान में वृद्धि हों
10. धुआ देखना – कष्ट बढे , परेशानी में फंसना पढ़े
11. धुंध देखना – शुभ समाचार मिले
12. धुन सुनना – परेशानी बढे
13. धूमधाम देखना – परेशानी बढे
14. धूल देखना – यात्रा हों
15. धोबी देखना – काम में सफलता मिले
16. धोती देखना – यात्रा पर जाना पड़े
सपने का अर्थ
1. नल खुला देखना – काम शीघ्र होगा
2. नल बंद देखना – काम कठिनाई से होगा
3. नरक देखना- कठिनाइयाँ बढे
4. नगीना देखना – सरकार से लाभ हों , शुभ समाचार मिले
5. नगाडा देखना – धन लाभ , प्रसिधी मिले
6. नमाज़ पढ़ते देखना – कष्ट दूर हों , शान्ति मिलेगी
7. नमक खाना – झगडे में फँसना
8. नमक देखना – बीमारी दूर हों , व्यापार में लाभ हों
9. नमकदानी देखना – गृहस्थी का सुख मिले
10. नशे में स्वयं को देखना – धन वृद्धि हों परन्तु परिशानिया बढे
11. नरगिस का फूल देखना – पारिवारिक सुख मिले
12. नदी नाले में गिरते देखना – अनेक संकट आने का संकेत
13. नक्कता मनुष्य देखना – धन तथा मान सम्मान बढे
14. नक़ल करना – काम में असफलता मिले
15. नक़ल करते देखना – यात्रा में रुकावट , काम बिगडे
16. नक्शा बनाना – नई योजनाये शुरू हों
17. नकसीर बहना – दिमागी परेशानिया आये
18. नकाब लगाना – गंभीर बीमारी आये
19. नट देखना – पारिवारिक सुख शाति मिले
20. नसवार सूंघना – मानसिक परिशानिया बढे
21. नदी देखना – भविष्य सुखद हों
22. नदी में स्नान करना – काम में सफलता मिले
23. नदी में गिरना – संकट के बाद सुख मिले
24. नहर खोदना – कार्य सम्बन्धी योजनाये मिले
25. नंगा होना – विलासिता बढे
26. नदी , वृक्ष, या पर्वत देखना – दुःख दूर हो , धन मिले
27. नाटक देखना – भविष्य अनिश्चित हो
28. नाखून टूटना – सफलता देरी से मिले
29. नाक बहुत बड़ी देखना – मान सम्मान बढे , प्रमोशन हो
30. नाखून देखना – काम में परेशानी हो
31. नाक से खून बहना – धन में वृद्धि हो
32. नाटक देखना – गृहस्थी का सुख मिले
33. नाटक में भाग लेना – धोखा मिले
34. नारियल देखना – धन लाभ हो , अच्छा भोजन मिले
35. नाक पर चोट लगना -मान सम्मान में हानि हो
36. नासूर देखना – बीमारी से छुटकारा मिले
37. नापतोल करना – व्यापार में हानि हो
38. नाग के बिल में जाते देखना – धन संग्रह हो
39. नाग के बिल से बाहर निकलते देखना – धन हानि हो
40. नाग का डंग मारना – मान सम्मान बढे
41. नाग का घर में देखना – देखे गए स्थान की पवित्रता का संकेत
42. नाग उठाये देखना – – संपत्ति प्राप्त का संकेत
43. नाना नानी देखना – पारिवारिक सुख बढे
44. नाडा बंधना या टूटना – पारिवारिक कलेश बढे
45. नाला देखना – गहरा संकट आये
46. नाव देख्ना – गृहस्थी का सुख मिले
47. नाव में बैठना – अनेक संकट आये
48. नाई से हजामत बनवाना – धोखा मिले
49. नारियल देख्ना – शुभ संकेत , धार्मिक आयोजना हो
50. नाला देख्ना – कार्य में सफलता मिले
51. नारद देख्ना – धन लाभ परन्तु लड़ाई झगडा हो
52. नाभि देख्ना – प्रगति तथा धन लाभ हो
53. निरादर देख्ना – मान सम्मान बढे
54. निशाना लगाना – पुरानी इच्छा पूर्ण हो
55. नितम्ब देख्ना – गृहस्थी का सुख मिले
56. नीम का व्रक्ष देख्ना -बिमारी दूर होना
57. नीलम देख्ना -शुभ समाचार मिले , दुश्मन परस्त हो
58. नींद में सोना या नींद से उठाना – धन लाभ हो
59. नीलकंठ देख्ना – मान सम्मान बढे , विवाह हो
60. नींबू काटना या निचोड़ना – धार्मिक कार्य हो
61. नुकीली चीज़ से चोट लगना – वाद विवाद में फसना
62. नुकीला जूता देखना – मान सम्मान बढे
63. नेवला देखना – संकट समाप्त हो , स्वर्णाभूषण मिले
सपने का अर्थ
1. धमाका होना – संकटों में वृद्धि हो
2. धार्मिक स्थल देखना -मंदिर – शुभ कार्य में धन लगे
3. धार्मिक स्थल देखना -गुरुद्वारा – ज्ञान की प्राप्ति हो
4. धार्मिक स्थल देखना -मस्जिद – समस्या का समाधान मिले
5. धार्मिक स्थल देखना -चर्च – मानसिक शांति बढे
6. धर्म ग्रन्थ देखने का फल – रामायण – संघर्ष के बाद सफलता मिले
सपने का अर्थ
1. परी देखना – सफलता मिले , स्वस्थ्य लाभ हो , मान सम्मान में वृद्धि हो , धन बढे
2. पहाड़ देख्ना – शत्रु पर विजय हो
3. पम्प से पानी निकालना – व्यवसाय में रुकावट आये
4. प्रसाद बाँटना – रोग कम हो , समृध्धि बढे
5. पहाड़ पर चढ़ना – मान सम्मान तथा धन बढे
6. पहाड़ से उतरना -व्यापार में मंदा हो
7. परदेशी देखना – मनोकामना पूरण हो
8. पटका बांधना – मान सम्मान तथा धन बढे
9. पटाखा देखना – ख़ुशी मिले
10. पलंग देखना – अपमानित होना पड़े
11. पनघट सूना देखना – कही से निमंत्रण आये
12. पनघट पर भीड़ देखना – परिवार में उत्सव हो
13. परिवार देखना – शुभ फल मिले
14. पनीर खाना – धन वृद्धि हो
15. पपीता खाना – पेट खराब हो
16. पहरेदार देखना – चोरी की सम्भावना
17. पंजीरी खाना – बीमारी आने की सूचना
18. परछाई देखना अशुभ समाचार
19. पगड़ी देखना – धन हानि हो
20. पर्दा सफेद देखना – मान – सम्मान में हानि
21. पर्दा काला देखना – धन वृद्धि हो
22. पर्स देखना – गुप्त कार्य पूरा हो
23. पहिया देखना – प्रगति तेज हो
24. पंडाल देखना – किसी बड़े उत्सव में शामिल होना
25. पत्तल देखना या उसमें खाना -शुभ लक्षण
26. पत्थर देखना या मारना – सरकार से लाभ हो
27. पत्र लिखना – परेशानी हो
28. प्याज खाना या खिलाना – दुर्भाग्य पूर्ण घटना घटे
29. प्रशंसा सुनना – अशुभ संकेत
30. प्रसाद बाँटना – शुभ फल मिले
31. प्याऊ बनवाना – धन वृद्धि हो
32. परीक्षा में बैठना – कार्य में असफलता
33. पतंग उडाना – लम्बी यात्रा हो
34. पढ़ना या पढाना – काम में सफलता
35. पकवान खाना या बनाना – दुखो में वृद्धि हो
36. पहिया देखना – यात्रा सफल हो
37. पानी देखना – सुख समृधि बढे
38. पानी पीते देखना – धन वृद्धि हो
39. पोलिश करना -नौकरी में तरक्की हो
40. पान का वृक्ष देखना – संतान की समृधि हो
41. पागल देखना – शुभ कार्य में वृद्धि हो
42. पानदान देखना – मित्रता में वृद्धि हो
43. पाउडर लगाना – मान सम्मान बढे
44. पार्वती माता देखना – सुख समृधि बढे
45. पायल बजते देखना – स्त्री से वियोग हो
46. पारितोषिक मिलना – अपमानित होना पढ़े
47. पालकी पर बैठना – स्वस्थ्य खराब हो
48. पालना देखना – पारिवारिक सुख मिले
49. पालना झुलाना – संतान के लिए कष्ट बढे
50. पार्सल लेना – अचानक लाभ मिले
51. पाताल देखना – मान सम्मान बढे , प्रशंसा मिले
52. पाद मरना या अनुभव करना – व्यापार में लाभ हो व्यवसायिक यात्रा
53. पार करना (तैरकर) – मान सम्मान बढे
54. पिटारा देखना – धन लाभ हो
55. पिजरा देखना – स्वस्थ्य खराब हो
56. पिजरा खाली देखना – धन वृद्धि हो
57. पिजरे में पक्षी देखना – गृह कलेश हो
58. पीपल देखना – शुभ सन्देश मिले
59. पीला रंग देखना स्वास्थ्य खराब हो
60. पीठ देखना – मित्र से लाभ हो
61. पीतल के बर्तन देखना – धन लाभ हो , व्यापार बढे
62. पीली सरसों देखना – सब प्रकार से शुभ हो
63. पुस्तकालय देखना – समृधि बढे
64. पुस्तक खोना – मानहानि हो
65. पुस्तक मिलना – मान सम्मान में वृद्धि हो
66. पुजारी बनना – जीवन में उन्नति हो
67. पुडिया बंधना – शारीरिक कष्ट बढे
68. पुरस्कार मिलना – हानि हो
69. पुल पार करना – धन लाभ हो
70. पुल टूटते देखना – संकट से छुटकारा हो
71. पूजा पाठ करना – सुख शान्ति तथा समृद्धि की सूचना
72. पूर्वज देखना – शुभ स्वप्ना , समृद्धि बढे
73. पूजा या प्रार्थना करना – मानसिक शान्ति मिले
74. प्रेम प्रस्ताव रखना – विवाह में विलंभ हो
75. पेड़ पौधे देखना – कार्य में लाभ हो
76. पेटी खोलना – चोरी की संभावना
77. पेशाब करना – संकट दूर हो , धनप्राप्ति हो
78. पेढा खाना – मुह में रोग हो
79. पैर कटे देखना – शत्रु पर विजय हो
80. पैर खुजलाना – यात्रा शीघ्र हो
81. पैबंद लगाना – कष्ट के पूर्व सूचना
82. पैसा मिलना – मुफ्त का धन मिले
83. पेन पेंसिल देखना – परीक्षा में उत्तीरण हो
84. पोचा लगाना – स्थान परिवर्तन हो
85. पोशाक पहनना – बीमारी आने का संकेत
सपने का अर्थ
1. फलाहार करना – सुख समृद्धि बढे
2. फटे कपडे देखना – धनहानि हो , चिंताए बढे
3. फ़कीर देखना – काम में सफलता मिले
4. फ़रिश्ता देखना – मनोकामना पूर्ण हो
5. फंदा लगाना या देखना – मुसीबतों से छुटकारा मिले
6. फफोला टूटना – मुसीबतें समाप्त हो
7. फवारा देखना – सभी मुसीबते दूर हो ,प्रसन्नता बढे
8. फाखता देखना – पत्नी की ओर से कष्ट मिले , मानसिक ग्लानी हो
9. फाटक देखना – मुकदमा समाप्त हो
10. फाटक पार करना –सफलता मिले
11. फिटकरी देखना – धन लाभ हो
12. फांसी लगाना – जीवन में दिशा परिवर्तन हो
13. फिरोजा रत्न देखना – शत्रुओं पर विजय हो
14. फूलवारी देखना – मनपसंद विवाह होना , ख़ुशी मिले
15. फुल्का खाते देखना – आर्थिक समृद्धि हो , परन्तु शोक समाचार मिले
16. फुलझडी छूटते देखना – विवाह में सम्मिलित हो
17. फुहार पढ़ते देखना – धन संमृद्धि बढे
18. फूलदान देखना – मान सम्मान बढे
19. फूटी आँख देखना – शारीरिक व् आर्थिक कष्ट बढे
20. फूंक मारना – सामाजिक कार्यो में मान सम्मान बढे
21. फूल खिलते देखना – प्रसन्नता बढे , संतान हो
22. फूल जलते देखना – प्रिय व्यक्ति की मृत्यु देखना
सपने का अर्थ
1. बतक पानी में देखना – शुभ समाचार मिले
2. बतख ज़मीन पर देखना -धन हानि हो
3. बन्दर देखना – धन वृद्धि हो , अच्छा भोजन मिले
4. बटन लगाना – संकट आने की सूचना
5. बटन देखना – धन बढे
6. बरसात देखना शहर पर – खुशहाली बढे
7. बरसात देखना अपने घर पर – संकट आये
8. बरसात में छत्री लगाकर चलना – संकट दूर हो
9. बकरी चुराना या खोना – लडाई हो
10. बर्फ खाना – चिंताए दूर हो
11. बर्फ गिरते देखना – आर्थिक समृद्धि हो
12. बनिए को दरवाज़े पर देखना – क़र्ज़ बढे
13. बटुआ देखना – धन लाभ हो , रोग दूर हो
14. बनयान पेहेनना – धन बढे , सुख शान्ति मिले
15. बगुला देखना – सफ़ेद देखने पर लाभ , काला देखने पर हानि हो
16. बधाई का सन्देश मिलना – दुखद सूचना मिले
17. बछिया देखना – शुभ समाचार मिले
18. बाल गिरते देखना – आर्थिक कष्ट बढे
19. बाजू काटना – अपमानित होना पढ़े
20. बाजू पर चोट लगाना – माता पिता के लिए अनिष्टकारक
21. बाजू कटी देखना – शत्रु पर विजय मिले
22. बांस देखना – लगातार उन्नति हो
23. बाज़ देखना – दुर्घटना में फँसना पढ़े
24. बाज़ द्वारा झपट्टा मारना – पहाड़ से गिरने के लक्षण
25. बरात में जाना – अशुभ समाचार मिले
26. बाघ देखना – शत्रु पर विजय हो
27. बारहसिंघा देखना – दूर स्थान की यात्रा हो
28. बाढ़ देखना – संकटों से छुटकारा हो
29. बाढ़ में घिरना – वातावरण सुखद हो
30. बाढ़ में फंसे आदमियों को बचाना – गृह कलेश बढ़ना
31. बाढ़ के पानी में तैरना –व्यापार में सफलता मिले
32. बाढ़ में लोगों को डूबते देखना – लम्बी यात्रा हो
33. बादल बरसते देखना –पारिवारिक सुख शान्ति या समृद्धि
34. बादल से बिजली गिरते देखना -अशुभ समाचार मिले
35. बादल को छूना – धन वृद्धि हो
36. बाज़ार में स्वयं घूमना – अच्छे समाचार मिले
37. बाज़ार देखना – धन हानि हो , व्यापार में घाटा हो
38. बाजीगरी देखना – षडयंत्र में फसना पढ़े
39. बादाम खाना – स्वस्थ्य खराब हो , अस्पताल में भर्ती होना पढ़े
40. बादाम देखना – धन वृद्धि हो
41. बादशाह देखना – धन वृद्धि हो , मान सम्मान बढे
42. बाल कटे देखना सर के – क़र्ज़ से छुटकारा मिले
43. बाल काले देखना(अपने सर के) – अधिक धन मिले
44. बाल सफ़ेद देखना (अपने) – समाज में उच्च स्थान मिले
45. बाल कटे देखना – गृह कलेश बढे
46. बाल देखना (हथेली या तलुओं में) – क़र्ज़ में फसना पढ़े
47. बाल देखना (बगल के या नाभि के नीचे के) – अपमानित होना पढ़े
48. बातें बहुत करना – काम में वृद्धि हो , मान सम्मान बढे
49. बालू देखना – धन लाभ हो
50. बालू छानते देखना – आर्थिक परेशानी बढे
51. बिछु , सांप या भयानक जीव देखना – धन मिले
52. बौना देखना – शुभ समय नज़दीक है
53. बाइबल – ज्ञान में वृद्धि हो
सपने का अर्थ
1. भण्डार देखना – काफी धन लाभ हो
2. भटठा देखना – भूमि तथा भवन में वृद्धि हो
3. भभूत लगाना – शीघ्र विवाह हो तथा गृहस्थी का सुख मिले
4. भाई देखना – भाई की आयु वृद्धि हो तथा ,रोग दूर हो
5. भाभी देखना – स्वयं को कष्ट मिले , भतीजा जन्मे
6. भागते देखना – कष्ट मिटे , अच्छा समय आने वाला है
7. भंग का नशा करना – अपमानित होना पढ़े
8. भांड देखना -लडाई झगडा अथवा वाद विवाद में फँसना पड़े
9. भाला लेकर चलना – शत्रु पर विजय हो
10. भाला मारना – अपमानित होना पढ़े
11. भाले के खेल का प्रदर्शन करना – संकट या दुर्घटना आये
12. भीड़ का छठा देखना – काफी लाभ मिले
13. भीड़ का काटना – दुःख आये
14. भिन्डी देखना – सुखो में वृद्धि हो , आलस्य बढे
15. भिखारी देखना – कार्य के अच्छे परिणाम मिले
16. भीगते देखना – सुख समृद्धि में वृद्धि हो
17. भीख मांगना या देना – पारिवारिक सुख – संपत्ति तथा समृद्धि बढे
18. भीड़ देखना या उसमे चलना – कार्य अधूरा हो
19. भीड़ को उग्र रूप में देखना – कार्य में सफलता मिले
20. भूचाल देखना – तबाही आये , जनता पर संकट पढ़े
21. भूसा देखना – पशुओं से लाभ मिले
22. भूमिगत स्वयं को देखना – भयंकर बीमारी आये या विपत्ति बढे
23. भेडिया देखना – विश्वाश घात हो खतरे की सूचना
24. भेड़ अकेली देखना – अशुभ हो
25. भेड़ो को समूह देखना – लाभ हो
26. भैंसा देखना – संघर्ष करने से सफलता मिलेगी
27. भैस देखना – अच्छा भोजन मिले
सपने का अर्थ
1. मछर देखना – अपमानित होना पड़े
2. मछली देखना – गृहस्थी का सुख मिले
3. मखी देखना – धन हानि हो
4. मकडी देखना – बहुत अधिक मेहनत करनी पड़े
5. मकान बनते देखना – मान सम्मान में वृद्धि हो
6. मलाई खाना – धन वृद्धि हो
7. मंदिर या मस्जिद देखना – खुशहाली बढे
8. मंदिर में पुजारी देखना – गृह कलेश बढे
9. मर जाना – धन वृद्धि हो
10. मखमल पर बैठना – लम्बी बीमारी आये
11. मगरमच देखना – शुभ समाचार मिले
12. मंत्री देखना – मान सम्मान में वृद्धि हो
13. माला ( पूजा वाली ) शुभ समय आने का संकेत
14. माला फूलों की पहनाना- मान सम्मान में वृद्धि हो
15. मातम करना – खुशहाली बढे
16. माली देखना – घर में समृधि बढे
17. मिर्च खाना – काम में सफलता मिले
18. मिर्गी से पीड़ित होना या देखना – बुद्दि तेज हो
19. मिठाई खाना या बाँटना – बिगडे काम बने
20. मीट खाना – मनोकामना पूरण हो
21. मुर्दा उठा कर ले जाते देखना – बिना कमाया माल मिले
22. मुर्दे को जिन्दा देखना – चिंता दूर हो
23. मुर्दा शारीर से आवाज़ आना – बना काम बिगड़ जाना
24. मुर्दों का समूह देखना – गलत सोसाइटी में काम करना पड़े
25. मुर्दे को नहलाना – धन वृद्धि हो
26. मुर्दे को कुछ देना – शुभ समाचार
27. मुर्दे के साथ खाना -अच्छा समय आये
28. मुर्गा देखना -विदेश व्यापार बढे
29. मुर्गी देखना -गृहस्थी का सुख मिले
30. मोहर लगाना – धन वृद्धि हो
31. मुरझाये फूल देखना – संतान को कष्ट हो
32. मुंडन कराना या होते देखना -गृहस्थी का तनाव दूर हो
33. मुहर्रम देखना – कारोबार में उन्नत्ति हो
34. मूंगा पहनना या देखना – कारोबार में उन्नत्ति हो
35. मूंग मसूर या मोठ देखना – अनेक परेशानी हो
36. मोची देखना -यात्रा लाभदायक हो
37. मोम देखना – झगडे या विवाद में समझोता हो
38. मोर नाचते देखना – शुभ समाचार मिले
39. मोर मोरनी देखना – दांपत्य सुख में वृद्धि हो
40. मोजा पहनना – पति पत्नी में प्रेम बड़े
41. मोमबत्ती देखना – विवाह हो
सपने का अर्थ
1. यन्त्र बनाना या देखना – अशुभ फल हो
2. यग करना या देखना – धन वृद्धि हो
3. यमराज देखना – बीमारी दूर हो
4. योजना बनाना -अशुभ फल
5. योगासन करना – शुभ फल
सपने का अर्थ
1. रजाई ओड़ना – धन मिले
2. रजाई नई बनवाना – स्थान परिवर्तन हो
3. रजाई फटी पुरानी देखना – शुभ कार्य के लिए निमंत्रण हो
4. रस्सी लपेटना – सफलता मिले
5. रथ देखना -यात्रा करनी पड़े
6. रसभरी खाना – विवाह हो
7. रसगुल्ला खाना – धन वृद्धि हो
8. रद्दी देखना – रुका हुआ धन मिले
9. रंग करना – सम्बंधित वास्तु की हानि हो
10. रक्षा करना – मान सम्मान में वृद्धि हो
11. रफू करना – नई वस्त्रो या आभूषनो की प्राप्ति हो
12. रक्षा बंधन देखना – धन वृद्धि हो
13. रसोई घर गन्दा देखना – अच्छा भोजन मिले
14. रसोई घर स्वछ देखना -धन का संकट आये
15. रास्ता देखना (साफ) -तरक्की मिले
16. रास्ता देखना (टेड़ा मेडा ) परेशानी हो
17. राख देखना – धन नाश हो
18. रॉकेट देखना – धन संपत्ति में वृद्धि हो
19. रात देखना -परेशानी आये
20. राइ देखना – काम में रूकावट आये
21. राक्षश देखना – संकट आये
22. रामलीला देखना – सुख सौभाग्य में वृद्धि
23. रिश्वत लेना – सावधान रहे
24. रिवाल्वर चलाना – शत्रुता समाप्त हो
25. रिक्शा देखना या उसमे बैठना – प्रसन्त्ता बढे
26. रेलवे स्टेशन देखना -लाभदायक यात्रा हो
27. रेल देखना – कष्ट दायक यात्रा हो
28. रेडियो बजता देखना – प्रगति में रूकावट हो
29. रेफ्रिजिरटर देखना – आर्थिक लाभ हो
30. रेगिस्तान देखना – धन सम्पदा में वृद्धि
31. रोजा रखना – आर्थिक संकट आने का संकेत
32. रोना – मान सम्मान में वृद्धि हो
33. रोशनदान से देखना – विदेश से धन की प्राप्ति हो
34. रोटी खाना या पकाना – बीमारी आने का संकेत
35. रोटी बाँटना – धन लाभ हो
36. रोटी फैंकना या गिरी हुई देखना – देश में मन न लगे , विदेश की यात्रा शीघ्र हो
सपने का अर्थ
1. लंगर खाना या देखना -धन वृद्धि हो ,व्यवसाय में तेजी आये
2. लंगूर देखना -शुभ समाचार मिले
3. लंगोटी देखना -आर्थिक कठिनाईया बढे
4. लकीर खींचना -गृह कलेश बढे , अनावश्यक झगडे हो
5. लटकना या लटकते हुए देखना -सोचा हुआ काम शीघ्र बने , आर्थिक समृद्धि बढे
6. लड़का गोद में देखना (अपना) – धन वृद्धि हो , व्यवसाय में तेजी आये
7. लड़का गोद में देखना (अनजान) – परेशानी बढे ,घर में कलेश हो
8. लड़ना – विद्रोहियों के साथ – देश तथा समाज में अशांति फैले
9. लगाम देखना -मान सम्मान बढे , धन वृद्धि हो
10. लक्ष्मी का चित्र देखना -धन तथा सुख सौभाग्य की वृद्धि हो
11. लहसुन देखना – धन वृद्धि हो परन्तु अन्न व् सब्जी के व्यापार में हानि हो
12. लक्कड़ बाघ देखना – नयी मुसीबतें आने का संकेत
13. लपटें देखना (आग की ) – परिवार में शान्ति बढे , झगडा ख़तम हो
14. लाल आँखे देखना – शुभ फल की प्राप्ति
15. लालटेन जलना – चलते हुए काम में रोड़ा अटके
16. लालटेन बुझाना – अनेक समस्या स्वयं निपट जाये
17. लाट या मीनार देखना -आयु वृद्धि हो , सुख शान्ति बढे
18. लाठी देखना -सुख शांति में वृद्धि हो ,अच्छे सहयोगी मिले
19. लाल टीका देखना -सत्संग से लाभ हो, कामो में सफलता मिले
20. लाल वस्त्र दिखाई देना – धन नाश हो ,खतरा बढे
21. लाल आकाश में देखना -लडाई झगडा व् आतंक में वृद्धि ,धन तथा देश की हानि हो
22. लिबास (अपने कपडे)सफ़ेद देखना – सुख , शान्ति तथा समृद्धि में वृद्धि हो
23. लिबास हरा देखना – धन दौलत बढे , स्वस्थ्य अच्चा हो
24. लिबास पीला देखना -स्वस्थ्य में खराबी आये ,चोरी हो
25. लिबास मैला देखना -धन हानि हो ,खराब समय आने वाला है
26. लिफाफा खोलना -समाज में मानहानि हो , गुप्त बात सामने आये
27. लोहा देखना – काफी मेहनत करने के बाद सफलता मिले
28. लोहार देखना – मान सम्मान बढे , शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो
29. लोबिया खाना – धन तथा व्यवसाय में वृद्धि हो
30. लौकी देखना या खाना -शुभ समाचार मिले , धन वृद्धि हो ,नौकरी में पदोंनिती हो
सपने का अर्थ
1. वकील देखना – कठिनाई बढे , झगडा हो
2. वजीफा पाना -काम में असफलता मिले , धनहानि हो
3. वरमाला देखना या डालना -घर में कलेश हो मित्र से लडाई हो
4. वसीयत करना -भूमि सम्बन्धी विवाद हो , घर में तनाव बढे
5. वायदा करना – झूठ बोलने की आदत पढ़े
6. वाह वाह करके हसना -मान सम्मान का ध्यान रखे , शत्रु बदनाम करेंगे
7. वार्निश करना (घर की वस्तुओं पर)- परिवार पर संकट आये, स्वस्थ्य खराब हो
8. वाष्प उड़ते देखना – धनहानि हो , दुर्घटना तथा शारीरिक कष्ट हो
9. विदाई समारोह में भाग लेना – व्यापार में तेजी आये , धन वृद्धि हो
10. विमान देखना – धन हानि हो
11. विस्फोट देखना या सुनना – नया कारोबार शुरू हो , बड़े व्यक्तियों से मुलाकात हो
12. वीणा बजाना (स्वयं द्वारा) – धन धान्य तथा समृद्धि प्राप्त हो
13. वीणा बजाना – शोक समारोह में शामिल होना पड़े , (दूसरो द्वारा)मानसिक कष्ट हो
14. वृद्धा देखना – अशुभ समाचार मिले
सपने का अर्थ
1. शंख बजाना, देखना, सुनना – शुभ समाचार
2. शंकरजी को देखना – सुखो में वृद्धि
3. शरबत देखना – बीमारी दूर हो
4. शतरंज देखना – समय व्यर्थ में बर्बाद हो
5. शराब देखना – बिना कमाया धन मिले
6. शराब पीना – धन वृद्धि हो
7. शमा (दीपक )देखना – मान सम्मान में वृद्धि हो
8. शमा दान देखना – बीमारी दूर हो
9. शहद की मक्खी देखना – धन वृद्धि हो
10. शहद देखना – शुभ कार्यो में रूचि बढे
11. शरीफा खाना या देखना – स्वस्थ्य में लाभ हो
12. शहतूत देखना – अच्छा भोजन मिले
13. शहनाई बजाना या देखना – दुखद समाचार मिले
14. शमशान पर जाना – आयु वृद्धि हो
15. शहर को जाना – धन वृद्धि हो
16. शहर का विनाश देखना – अपना निवास स्थान खाली करना पड़े
17. शव के साथ चलना – भाग्य वृद्धि
18. शरीर की मालिश करना – रोग बढे
19. शमियाना देखना – धन वृद्धि हो
20. श्राद्ध करना – अच्छा समय आने की सूचना
21. शाल ओड़ना -अपयश मिले
22. शार्क मछली देखना – विदेश यात्रा हो
23. शिकार करना – परिवार पर संकट आये
24. शीशा देखना – लम्बी बीमारी आये
25. शीशा तोड़ना – परेशानी आये
26. शेर देखना – शत्रु पर विजय हो
27. शोक मगन होना – घर में उत्सव का आयोजन हो
सपने का अर्थ
1. श्रंगार करना – प्रेम प्रसंगों में वृद्धि हो
2. श्रंगार दान टूटना – दांपत्य जीवन में सुख व् सफलता मिले
3. स्याही देखना – सरकार से सम्मान मिले
4. स्टोव जलाना – भोजन अच्छा मिले
5. संडास देखना – धन वृद्धि हो
6. संगीत देखना या सुनना – कष्ट बढे
7. संदूक देखना – पत्नी सेवा करे , अचानक धन मिले
8. सगाई देखना या उसमे शामिल होना –
9. सजा पाना – संकटों से छुटकारा मिलाना
10. सट्टा खेलना – धोखा होने का संकेत
11. सलाद खाते देखना – धन वृद्धि हो
12. सर्कस देखना – बहुत मेहनत करनी पड़े
13. सलाई देखना – मान सम्मान बढे
14. सरसों का साग खाना – बीमारी दूर हो
15. सरसों देखना – व्यापार में लाभ हो
16. ससुर देखना – शुभ समाचार मिले
17. सर कटा देखना – विदेश यात्रा हो
18. सर फटा देखना – कारोबार में हानि हो
19. सर मुंडाना – गृह कलेश में वृद्धि हो
20. सर के बाल झड़ते देखना – क़र्ज़ से मुक्ति मिले
21. ससुराल जाना – गृह कलेश में वृद्धि हो
22. समुद्र पार करना – उनत्ति मिले
23. साइकिल देखना -सफलता मिले
24. साइकिल चलाना – काम में तरक्की मिले
25. साइन बोर्ड देखना – व्यापार में लाभ हो
26. सावन देखना – जीवन में ख़ुशी मिले
27. साडी देखना – विवाह हो , दाम्पत्य जीवन में सुख मिले
28. सारस देखना – धन वृद्धि हो
29. साला या साली देखना – दाम्पत्य जीवन में सुख हो , मेहमान आये , धनवृद्धि हो
30. सागर सूखता देखना -बीमारी आये , अकाल पड़े
31. सारंगी बजाना – अपयश मिले , धन हानि हो
32. साग देखना – अचानक विवाद हो , सावधान रहे
33. साबुन देखना – स्वस्थ्य लाभ हो , बीमारी दूर हो
34. सांप मारना या पकड़ना – दुश्मन पर विजय हो , अचानक धन मिले
35. सांप से डर जाना -नजदीकी मित्र से विश्वासघात मिले
36. सांप से बातें करना -शत्रु से लाभ मिले
37. सांप नेवले की लडाई देखना – कोर्ट कचेहरी जाना पड़े
38. सांप के दांत देखना -नजदीकी रिश्तेदार हानि पहुंचाएंगे
39. सांप छत्त से गिरना – घर में बीमारी आये तथा कोर्ट कचहरी में हानि हो
40. सांप का मांस देखना या खाना – अपार धन आये परन्तु घर में धन रुके नहीं
41. सिपाही देखना – कानून के विपरीत काम कारनेका संकेत
42. सिनेमा देखना – समय व्यर्थ में नष्ट हो
43. सिगरेट पीते देखना -व्यर्थ में धन बर्बाद हो
44. सिलाई मशीन देखना – पति पत्नी में झगडा हो
45. सिलाई करना – बिगडा काम बन जाये
46. सियार देखना -धन हानि हो , बीमारी आये
47. सिन्दूर देखना – दुर्घटना की सम्भावना
48. सिन्दूर देवता पर चडाना – मनोकामना पूर्ण हो
49. सीताफल देखना -कुछ समय के बाद गरीबी दूर होगी
50. सीता जी को देखना -मान सम्मान बढे
51. सीमा पार करना -विदेश व्यापार में लाभ हो
52. सिप्पी देखना – उसे देखने पर हानि , उठाने पर लाभ
53. सीना चौडा होना – लोकप्रियता में वृद्धि हो
54. सीड़ी पर चढ़ना – काम में असफलता मिले
55. सुनहार देखना – साथी से धोखा मिले
56. सुटली कमर में बंधना -गरीबी आये , संघर्ष करना पढ़े
57. सुम्भा देखना (लोहे का)- कार्य में सफलता मिले , विवाह हो
58. सुदर्शन चक्र देखना – बईमानी का दंड शीघ्र मिले
59. सुपारी देखना -विवाह शीघ्र हो , मित्रों की संख्या में वृद्धि हो
60. सुनहरी रंग देखना – रुका हुआ धन मिले
61. सुरंग देखना या सुरंग में प्रवेश करना – नया कार्य आरंभ हो
62. सूई देखना – एक देखने पर सुख तथा अनेक देखने पर कष्ट में वृद्धि हो
63. सुलगती आग देखना – शोक समाचार मिले
64. सुन्दर स्त्री देखना – मान सम्मान में हानि हो
65. सुनहरी धूप देखना – सरकार से धन लाभ हो , मान सम्मान बढे
66. सुराही देखना – गृहस्थी में तनाव हो , पति या पत्नी का चरित्र ख़राब हो , रोग दूर हो
67. सुगंध महसूस करना – चमड़ी की बीमारी आये
68. सुनसान जगह देखना – बलवृद्धि हो
69. सूद लेते देखना – मुफ्त का धन मिले
70. सूद देते देखना -धन नाश हो , गरीबी आये
71. सूली पर चढ़ना – चिन्ताओ से मुक्ति हो , शुभ समाचार मिले
72. सूर्य देखना – धन संपत्ति तथा मान सम्मान बढे
73. सूर्य की तरह अपना चेहरा चमकता देखना – पुरस्कार मिले , मान सम्मान बढे
74. सूअर देखना – बुरे कामों में फँसना पड़े , बुरे लोगों से दोस्ती हो तथा मानहानि हो
75. सूअर का दूध पीना – चरित्र खराब हो , जेल जाना पढ़े
76. सूरजमुखी का फूल देखना – संकट आने की सूचना
77. सूर्य चन्द्र आदि का विनाश देखना – मृत्यु तुल्य कष्ट मिले
78. सेम की फली देखना – धन हानि हो परन्तु अच्छा भोजन मिले
79. सेब का फल देखना – दुःख व् सुख में बराबर वृद्धि हो
80. सेंध लगाना – प्रिये वस्तु गुम होना
81. सेवा करना – मेहनत का फल मिलेगा
82. सेवा करवाना – स्वस्थ्य खराब होने के लक्षण है
83. सेहरा बंधना – दाम्पत्य जीवन में कलेश की संभावना
84. सैनिक देखना – साहस में वृद्धि हो
85. सोंठ खाना – धन हानि हो , स्वस्थ्य में सुधार हो
86. सोना देखना – परिवार में बीमारी बढे , धन हानि हो
87. सोना मिलना – धन वृद्धि हो
88. सोना दुसरे को देना – अपनी मुर्खता से दूसरों को लाभ पहुंचाना
89. सोना लुटाना – परेशानिया बढे , अपमान सहना पढ़े
90. सोना गिरवी रखना – बईमानी करे और अपमान हो
91. सोते हुए शेर को देखना – निडरता से कार्य करे , सफलता मिलेगी
92. सोलह श्रृंगार देखना -स्वस्थ्य खराब होने का संकेत
93. स्वप्न में मानिक रत्न देखना – शक्ति तथा अधिकारों में वृद्धि
94. स्वप्न में मोती रत्न देखना – मानसिक शांति मिले
95. स्वप्न में मूंगा रत्न देखना – शत्रु पर विजय मिले
96. स्वप्न में पन्ना रत्न देखना – व्यवसाय में वृद्धि हो
97. स्वप्न में पुखराज रत्न देखना -वैर विरोध की भावना बढे
98. स्वप्न में हीरा रत्न देखना – आर्थिक प्रगति हो
99. स्वप्न में नीलम रत्न देखना – उन्नत्ति हो
00. स्वप्न में गोमेद रत्न देखना – समस्या अचानक आये
01. स्वप्न में लहसुनिया रत्न देखना – मान सम्मान बढे
02. स्वप्न में फेरोज़ा रत्न देखना – व्यवसाय में वृद्धि
सपने का अर्थ
1. हड्डी देखना – शुभ समाचार मिले , स्वस्थ्य में लाभ
2. हरियाली देखना – मन प्रसन्न रहेगा
3. हल्दी की गाँठ देखना – आर्थिक प्रगति हो
4. हल्दी पीसी देखना – परेशानी आये
5. हवा में उड़ते देखना – यात्रा में कष्ट आये
6. हवा तेजी से चलते देखना – दुखो में वृद्धि हो
7. हवा माध्यम चलते देखना -शत्रु हानि पहुंचाए
8. हथकडी देखना – परेशानियां बढे
9. हथेली देखना (पुरुष का) – शत्रुता बढे
10. हथेली देखना (स्त्री का ) – प्यार बढे
11. हवेली देखना – किसी नजदीकी व्यक्ति की मृत्यु का समाचार मिले
12. हकीम देखना – बीमारी आये परन्तु ज्ञान भी बढे
13. हत्या होते देखना – दीर्घायु हो , दुश्मनों से सावधान रहे
14. हत्या करना – लडाई झगडा शान्ति होने के लक्षण
15. हरा रंग देखना – सुख शान्ति में वृद्धि हो
16. हथौडा देखना – सम्मान मिले परन्तु परिश्रम अधिक हो
17. हशीश पीते देखना – कष्टों में वृद्धि हो
18. हजामत बनते देखना – ठगे जाने की संभावना
19. हज करना – मनोकामना पूर्ण हो
20. हमला होना – दुर्घटना की पूर्व समाचार
21. हलवाई की दूकान देखना – इच्छाए बहुत बढे परन्तु अपूर्ण रहे
22. हवाई जहाज़ देखना – व्यापार में अधिक झूठ बोलना पढ़े , लाभ हो
23. हँसना – अकारण परेशानी बढे
24. हसती स्त्री देखना – गृह कलेश बढे
25. हसाना (दूसरों के द्वारा ) – मनोकामना पूर्ण हो
26. हसुली देखना – जीवन में आनंद बढे
27. हाथ देखना – अच्चे मित्रों से मुलाकात हो
28. हाथ कटा हुआ देखना – लडाई में हानि हो
29. हाथ पर चित्रकारी देखना – आजीविका के लिए संघर्ष करना पढ़े
30. हाथ धोना – काम अपूर्ण रहे , नाकामयाबी मिले
31. हाथ से आसमान छूना – मनोकामना पूर्ण हो , काम में तरक्की मिले
32. हाथ बंधे देखना – बुरे काम का बुरा नतीजा भुगतना पढ़े
33. हाथी देखना – संतान हो , नया कार्य शुरू हो
34. हाथी की सवारी करना – मान सम्मान बढे , सरकार से लाभ हो
35. हाथी मस्त देखना – धनवृद्धि हो
36. हिसाब किताब लगाना – अपव्यय हो , काम में सावधानी बरते
37. हिरन देखना – सफलता मिले , शीघ्र विवाह हो , धन लाभ हो
38. हिमपात देखना – बिगडे काम बने , काफी धन की प्राप्ति हो
39. हिमखंड देखना – किसी नजदीकी मित्र से धोखा मिलने की संभावना है
40. हीरा देखना – धन वृद्धि हो परन्तु संघर्ष अधिक हो
41. हुंकार सुनना – शत्रु से पराजय होना पड़े
42. हुक्का पीना या पिलाना – मित्रता बढे
43. हुक्का पीते देखना – व्यर्थ में समय खराब हो
44. हुकुम का इक्का देखना – चलते हुए काम में रुकावट आएगी , निराशा बढे
45. होटल देखना – काम में तंगी आये , धन की कमी हो
सपने का अर्थ
1. आकाश की ओर उड़ना ……लम्बी यात्रा हो
2. सुर्य को देखना ………किसी महात्मा के दर्शन होना
3. बादल देखना ………तरक्की हो
4. घोड़े पर चढ़ना . ……….व्यापार मे उन्नति होना
5. शीशा मे मुह देखना ………..स्त्री से प्रेम देखना
6. उँचे से गिरना ………हानि हो, कष्ट होना
7. बाग फुलवारी देखना …………खुशी प्राप्त हो
8. बारात देखना ………..रंज हो, स्त्री देखे तो दुख हो
9. पानी बरसता देखना ……..अनाज मन्दा
10. सिर के कटे बाल देखना ………………कर्ज से छुटकारा मिले
11. पखाना देखना ………….धन का लाभ हो
12. सफेद बाल देखना ………आयु बढ़े
13. पहाड़ चढ़ना …………उन्नति प्राप्त हो
14. शरीर मे पखाना लगना ……….काफी धन मिले
15. पखाना खाना ………पुर्ण धनवान होना, खजाना मिले
16. पखाना करना ………….धन प्राप्त हो
17. फूल देखना ……..प्रेमी मिले
18. छाती देखना ………….स्त्री वश मे हो
19. पानी पीना ………….व्यापार मे लाभ होना
20. पान खाना …………..सुन्दर स्त्री मिले
21. पानी मे डुबना …………अच्छे काम करें
22. हरी तरकारी देखना …………… ……प्रसन्नता प्राप्त हो
23. हंसता देखना…………..रंज प्राप्त हो
24. रोते देखना …………..प्रसन्नता मिले
25. जहाज देख्नना ………दूर की यात्रा हो
26. झण्डा देखना ……….धर्म की वृद्धि हो
27. जवाहरात देखना ………..आशायें पूर्ण हो
28. स्त्री प्रसंग ………..धन की प्राप्ति हो
29. लड़ाई करना ………प्रसन्नता प्राप्त हो
30. जुआ खेलना …………व्यापार मे लाभ हो
31. चन्द्रमा देखना………..प्रतिष्ठा प्राप्त होना
32. नदी मे तैरता देखना …………. कष्ट दूर हो
33. आकाश की ओर उड़ना ………लम्बी यात्रा हो
34. सुर्य को देखना ………किसी महात्मा के दर्शन होना
35. बादल देखना ………तरक्की हो
36. घोड़े पर चढ़ना . …….व्यापार मे उन्नति होना
37. शीशा मे मुह देखना ………..स्त्री से प्रेम देखना
38. उँचे से गिरना ………हानि हो, कष्ट होना
39. बाग फुलवारी देखना …………खुशी प्राप्त हो
40. बारात देखना ………..रंज हो, स्त्री देखे तो दुख हो
41. पानी बरसता देखना ………..अनाज मन्दा
42. सिर के कटे बाल देखना ………कर्ज से छुटकारा मिले
43. पखाना देखना ……….धन का लाभ हो
44. सफेद बाल देखना ………आयु बढ़े
45. पहाड़ चढ़ना …………उन्नति प्राप्त हो
46. शरीर मे पखाना लगना ……………….काफी धन मिले
47. पखाना खाना …………पुर्ण धनवान होना, खजाना मिले
48. पखाना करना ………….धन प्राप्त हो
49. फूल देखना ………..प्रेमी मिले
50. छाती देखना ……….स्त्री वश मे हो
51. पानी पीना ……….व्यापार मे लाभ होना
52. पान खाना …………..सुन्दर स्त्री मिले
53. पानी मे डुबना ………अच्छे काम करें
54. हरी तरकारी देखना ………प्रसन्नता प्राप्त हो
55. हंसता देखना………..रंज प्राप्त हो
56. रोते देखना ……………………..प्रसन्नता मिले
57. जहाज देख्नना ………..दूर की यात्रा हो
58. झण्डा देखना ………….धर्म की वृद्धि हो
59. जवाहरात देखना ………..आशायें पूर्ण हो
60. स्त्री प्रसंग ………..धन की प्राप्ति हो
61. लड़ाई करना ………प्रसन्नता प्राप्त हो
62. जुआ खेलना …………व्यापार मे लाभ हो
63. चन्द्रमा देखना……..प्रतिष्ठा प्राप्त होना
64. नदी मे तैरता देखना …………. कष्ट दूर हो
सपने में गुलाब का फूल देखना
स्वप्न शास्त्र के अनुसार अगर आप अपने सपने में गुलाब का फूल देखते हैं। तो ये आपके लिए शुभ माना जाता है। ये आपके जीवन में आने वाली सकारात्मकता का संकेत है। ऐसे सपनों का ये अर्थ भी होता है। कि जल्द ही आपके मन की कोई इच्छा पूरी होने वाली है।
समुद्र का पानी होता अशुभ संकेत
अगर आप सपने में समुद्र का पानी देखते हैं। तो ये अशुभ माना जाता है। स्वप्न शास्त्र के अनुसार इस तरह के सपने देखने के बाद मनुष्य को वाहन सावधानी पूर्वक चलाना चाहिए और ऊंचाई वाली जगहों पर सावधानी से जाना चाहिए। ये सपना भविष्य में सावधानी बरतने की तरफ इशारा करता है।
सपने में डूब जाना
स्वप्न शास्त्र के अनुसार अगर आप ऐसा सपना देखते हैं। जिसमें आप गहरे पानी में डूब रहे हैं। ये इस बात का संकेत है। कि आप किसी डर या दुख में हैं। सपने में अपने आपको उस व्यक्ति को उन घटनाओं के बारे में सोचना बंद करना चाहिए जो गुजर चुकी हैं। आपको किसी भी तरह की चिंता नहीं करनी चाहिए और अपने मन को शांत करने का प्रयास करना चाहिए।
खुद को दरिद्र रूप में देखना
आप सपने में खुद को गरीब दरिद्र देखते हैं। तो आपके लिए ये स्वप्न अच्छा है। आपको इससे परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे स्वप्न का मतलब आपके धन में वृद्धि होना है। ये अटके हुए धन के वापस मिलने का भी संकेत है।
सपने में तोता देखना
अगर आपको सपने में तोता नजर आता है। तो इसका मतलब है। कि आपको कोई अच्छा समाचार मिलने वाला है। आपके जीवन में सुख की शुरूआत होने वाली है। तोता हमेशा से सौभाग्य का प्रतीक माना गया है।
सपने में नेवले का दिखना
सपनों में नेवले का दिखना शुभ माना जाता है। धर्म शास्त्रों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नेवला नजर आने का मतलब है। हमारे आर्थिक पक्ष का मजबूत होना।
सपने में नेवले का दिखना
सपनों में नेवले का दिखना शुभ माना जाता है। धर्म शास्त्रों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नेवला नजर आने का मतलब है। हमारे आर्थिक पक्ष का मजबूत होना।
झाड़ू का दिखना
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, सपने में झाड़ू का दिखाई देने शुभ संकेत होता है। झाड़ू को लक्षमी का प्रतीक माना जाता है। इसका सीधा संकेत है। आपको धन लाभ होने वाला है।
भवन का निर्माण देखना
सपनों में भवन का निर्माण दिखाई देने का मलतब है। आपके जीवन में उन्नति होने वाली है। आपको धन की प्राप्ति होने वाली है।
शिव पार्वती को देखना
भगवान शिव-पार्वती जिन्हें सपनों में एक साथ दिखाई देते हैं। उनके लिए शुभ माना जाता है। खास तौर पर ऐसे लोगों के लिए जिनका विवाह नहीं हो रहा है। सपने में शिव-पार्वती के दर्शन होना जल्दी विवाह होने का संकेत है।
मृत्यु देखना
अगर आप सपनों में अपने किसी भी परिजन की मृत्यु होते हुए देखते हैं। तो समझिए उनकी आयु में वृद्धि हो गई है। हिन्दू शास्त्रों में इस तरह के सपनों को गलत नहीं माना जाता।
सपने में फलों का पेड़ दिखाई देना
अगर आप सपनों में फलों से लदा हुआ वृक्ष देखते हैं। तो ये आपके जीवन में आने वाली ढेर सारी खुशियों की ओर इशारा करता है। फल-फूल खुशी का प्रतीक माने गए हैं। फूलों से लदा पेड़ खुशियों के आगमन का ही संकेत माना जाता है।
सपने में पहाड़ पर चढ़ना
सपनों में पहाड़ चढ़ने का मतलब आप जीवन में उन्नति करने वाले हैं। इस तरह के सपने हमेशा सफलता के शिखर पर जाने की ओर इशारा करते हैं।
सपने में मंदिर देखना
स्वप्न शास्त्र कहता है। कि यदि कोई व्यक्ति सपने में मंदिर देखता है। तो यह सपना आपको व्यापार में मुनाफा और धन प्राप्ति का संकेत देता है। ऐसे सपने जीवन में उन्नति के प्रतीत होते हैं।
यदि किसी व्यक्ति ने सपने में साफ पानी देखा है। तो यह सपना एक शुभ सपना माना जाता है। इसका अर्थ है नौकरी पेशा लोगों को उन्नति मिलने वाली है। घर में किसी तरह के धार्मिक या मांगलिक कार्य का आयोजन होने वाला है।
दर्पण में मुख देखना
अगर आपने रात की नींद में कोई ऐसा सपना देखा है। कि आप दर्पण में अपने चेहरे को निहार रहे हैं। तो ऐसे सपनों का परिणाम बहुत ही शुभ होता है। माना जाता है। कि आपकी लव लाइफ में प्यार की मिठास और भी ज्यादा घुलने वाली है। ऐसा सपना किसी स्त्री से प्रेम बढ़ने का प्रतीक माना जाता है।
सपने में भगवान दिखना शुभ माना जाता है। और यह सपना आपके जीवन में आशा की एक नई किरण लेकर आता है। इसका मतलब है। कि यदि आप किसी परेशानी में हैं। तो हिम्मत रखें जल्द ही आपको सही रास्ता मिलेगा. सपने में भगवान दिखने का मतलब है। भगवान का आशीर्वाद मिलना और अगर आपने भी ऐसा सपना देखा है। तो आपको भगवान ने आशीर्वाद दिया है।
सपने में भगवान विष्णु देखना
अगर आप सपने में सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु को देखते हैं इसका अर्थ है। कि आपके भाग्य का उदय होने वाला है। साथ ही आपके सभी कष्ट दूर होने वाले हैं। और धन-धान्य की पूर्ति के साथ ऐशवर्य की भी प्राप्ति होने वाली है।
यदि आप सपने में स्वयं को घोड़े से गिरते देखते हैं। तो यह सपना आपके करियर में परेशानियां आने का संकेत माना जाता है। इसी तरह से सपने में बंद नाला देखना, बिल्ली देखना, सूखे जंगल या सूखे पेड़ देखना भी आपके करियर या बिजनेस के लिए अच्छा नहीं माना जाता है।
सपने में खुद को कैंची चलाते देखना, या कैंची चलते देखना, किसी को थप्पड़ मारते हुए देखना दांपत्य जीवन और रिश्तों के लिए शुभ नहीं माना जाता है। इन सपनों को प्रेमी जीवन और दांपत्य जीवन के लिए बेहद अशुभ माना जाता है। ऐसे सपने आने पर व्यक्ति को संयम से काम लेना चाहिए।
अशुभ सपनों के प्रभाव को दूर करने के उपाय-
यदि आपको कोई अशुभ स्वप्न दिखाई देता है। तो प्रातः उठकर शिव मंदिर जाना चाहिए और भगवान शिव का पूजन व अभिषेक करना चाहिए। किसी भी तरह की अप्रिय घटना से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके अलावा सपनों के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ करना चाहिए। मान्यता है। कि इससे आपके जीवन के कष्ट दूर होते हैं। और ईश्वर आपकी रक्षा करते हैं।
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
Marriage Astrology
Love Marriage in Astrology
Numerology A To Z
A To Z: नाम के 1st अक्षर से जानिए अपनी और दूसरों की बातें
ज्योतिष की ही एक अन्य शाखा है अंक ज्योतिष। अंक ज्योतिष के अनुसार नाम के अक्षर का भी कारक अंक होता है। A से Z तक के सभी अल्फाबेट्स के लिए अलग-अलग अंक बताए गए हैं। हर एक अंक का अलग महत्व है। अलग ग्रह स्वामी है। हमारे नाम का पहला अक्षर जिस अंक से संबंधित होता है, हमारा स्वभाव और भविष्य उसी के अनुसार रहता है।
अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार अंक
A- 1, B- 2, C- 3, D- 4, E- 5
F- 8, G- 3, H- 5, I- 1, J- 1
B- 2, L- 3, M- 4, N- 5, O- 7
P- 8, Q- 1, R- 2, S- 3, T- 4
U- 6, V- 6, W- 6, X- 5, Y- 1, Z- 7.
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘A’ है।
जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर इंग्लिश अक्षर ए से शुरू होता है। उन लोगों में जन्म से ही कई गुण होते हैं। इन गुणों के कारण ये लोग समाज में खास मुकाम हासिल करते हैं। और घर-परिवार में भी इन्हें पूरा मान-सम्मान मिलता है। ए अक्षर वाले लोग बहुत भावुक होते हैं। और जल्दी ही आवेश में भी आ जाते हैं। इन लोगों की इच्छा होती है। कि घर-परिवार और समाज में सभी सही ढंग से रहें और लोग इनका कहना भी मानें। जब इनकी बात पूरी नहीं हो पाती है। तो इन्हें बुरा लगता है। और इस कारण ये लोग निराश भी हो सकते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘B’ है।
यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर इंग्लिश के बी से शुरू होता है। तो वे वैचारिक स्तर पर काफी प्रभावी होते हैं। ये लोग अपने विचारों और सोच से सभी का दिल जीत लेते हैं। इन लोगों से बहस में जीत पाना बहुत मुश्किल होता है। कई बार छोटी-छोटी बातों पर भी ये लोग बहस कर सकते हैं। सामान्यत: इस प्रकार के लोग अंतर्मुखी होते हैं और अपने विचारों में ही डूबे रहते हैं। ये लोग हर किसी पर आसानी से भरोसा भी नहीं करते हैं। और इनके दोस्तों की संख्या भी कम ही रहती है। अपने आत्मविश्वास के बल पर इन्हें जीवन में कई महत्वपूर्ण उपब्धियां हासिल होती हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘C’ है।
वे लोग बहुत ही अस्थिर विचारों वाले होते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर C है। इस अक्षर के लोग अधिक समय तक एक ही बात पर अडिग नहीं रह पाते हैं। और विचार बदलते रहते हैं। ये लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अंतिम क्षण तक पूरा प्रयास करते हैं। किसी भी नए वातावरण में स्वयं को आसानी से बदल नहीं पाते हैं। इस कारण नए स्थान पर या नए काम में इन्हें कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनके दिमाग में विचार बदलते रहते हैं। लेकिन भविष्य की योजनाओं को लेकर विजन क्लिकर रहता है।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘D’ है।
जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर डी है। वे हर काम को पूरे विश्वास के साथ करते हैं। और अंतिम क्षण तक सफलता पाने का प्रयास करते हैं। साथ ही, इन लोगों का खुद पर नियंत्रण भी अच्छा रहता है। किसी भी परिस्थिति में खुद को आसानी से बदल लेते हैं। इन बातों के कारण जीवन में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल करते हैं। और मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। इनका दिमाग रचनात्मक होता है। और इनके पास योग्यता भी होती है। कि अपने आइडियाज को कैसे लागू करेंगे।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘E’ है।
वे लोग खुले विचारों वाले और बिंदास होते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर ई है। ये लोग सच बोलने में कभी भी हिचकते नहीं हैं और ना ही इस बात की परवाह करते हैं। कि सच बोलने पर दूसरों को कितना कष्ट सहन करना पड़ सकता है। इनकी योजनाएं बहुत ही रचनात्मक होती हैं। और इन योजनाओं पर ये लोग आसानी से काम भी कर लेते हैं। कार्यों में सफलता पाने के लिए पूरी मेहनत करते हैं। और जब तक सफल नहीं हो जाते, इन्हें शांति नहीं मिलती है। इन लोगों की काम करने की क्षमता गजब की होती है। शारीरिक रूप से भी ये लोग शक्तिशाली होते हैं। इनकी सहनशक्ति भी बहुत अधिक होती है।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘F’ है।
यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर इंग्लिश के एफ से शुरू होता है। तो वे लोग अपने घर-परिवार से पूरी तरह अटैच रहते हैं। इनके लिए परिवार ही पहली प्राथमिकता होता है। और सदस्यों के लिए कुछ भी कर सकने का जुनून भी होता है। कभी भी ये लोग बच्चों की तरह व्यवहार करते हैं। लेकिन इससे वातावरण खुशनुमा हो जाता है। और परिवार का मनोरंजन करते हैं। समाज में भी अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को पूरा करने का प्रयास करते हैं। सच के साथ रहना इन्हें पसंद होता है। इन लोगों में दूसरों की मदद करने की इच्छा काफी अधिक होती है।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘G’ है।
ऐसे लोग अपनी ईमानदारी और निष्ठा के कारण समाज में मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर जी होता है। ये लोग किसी भी बात को घुमा-फिराकर बोलना पसंद नहीं करते हैं। जो भी बात होती है, उसे सीधे बोल देते हैं। इनका व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक होता है। और इस कारण इनके आसपास कई लोग सदैव रहते हैं। जी अक्षर वाले लोग अपने सिद्धांतों पर जीना पसंद करते हैं। इन्हीं के बल पर खास उपलब्धियां हासिल करते हैं। इनका बौद्धिक स्तर भी काफी ऊंचा रहता है।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘H’ है।
यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर एच है। तो वह स्वार्थी हो सकता है। ऐसे लोग बहुत ही चतुर होते हैं। और चतुराई के बल पर अपने स्वार्थ को सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं। चतुरता के कारण सफलता भी प्राप्त करते हैं। और जीवन अपने स्तर पर ऐश-आराम के साथ व्यतीत करते हैं। इनकी महत्वकांक्षाएं काफी अधिक होती हैं। और उन्हें पूरा करने के लिए योजनाएं भी बनाते रहते हैं। घर-परिवार के सदस्यों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए कोशिश करते हैं। कभी-कभी कार्यों में सफलता न मिलने पर निराश भी हो जाते हैं। लेकिन थोड़े समय के बाद नई ऊर्जा के साथ पुन: कार्यों में जुट जाते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘I’ है।
ऐसे लोग कड़ी मेहनत करने वाले होते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर आई होता है। इन्हें आलस्य से नफरत होती है। ये खुद भी सदैव चुस्त रहते हैं। और चाहते हैं। कि सभी इन्हीं की तरह आलस्य का त्याग करें। घर-परिवार के सदस्यों को भी यही सलाह देते हैं कि कार्यों में देरी नहीं होनी चाहिए। इनके सामने जो भी काम आता है, उसे फटाफट निपटने के लिए जुट जाते हैं। किसी भी बात को बहुत गहराई से सोचते हैं। और पूरा मंथन करने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचते हैं। वैचारिक स्तर पर भी ये लोग काफी प्रभावशाली होते हैं। इनका शब्दकोश भी विस्तृत होता है।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘J’ है।
ऐसे लोगों की सोच बहुत व्यापक होती है, जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर जे होता है। ये लोग पुराने समय से चली आ रही रूढ़ीवादी परंपराओं का पालन नहीं करते हैं। खुद भी पूरी तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं। और दूसरों को भी स्वतंत्र रहने की सलाह देते हैं। किसी भी प्रकार के पारंपरिक बंधन इन्हें पसंद नहीं होते हैं। जे अक्षर वाले लोग सदैव सजग रहते हैं। और इस बात की जानकारी रखते हैं। कि उनके आसपास क्या हो रहा है। इन्हें समाज की पूरी जानकारी होती है। लेकिन सही मामलों में ही अपनी सहभागिता दर्शाते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘K’ है।
ऐसे लोग जीवन में बहुत संघर्ष करते हैं, जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर के होता है। इन लोगों को जीवन के अलग-अलग चरणों में कठिन परिश्रम करना पड़ता है। लेकिन अंतत: सफलता प्राप्त करते हैं। कड़ी मेहनत के बाद प्राप्त की हुई सफलता लंबे समय तक इनका साथ देती है। कभी-कभी ये लोग खुद अपने भाग्य पर विश्वास नहीं कर पाते हैं। कि इतने कठिन समय के बाद एकाएक सफलता कैसे मिल गई। के अक्षर वाले लोग एक पल में सुखी तो दूसरे ही पल में दुखी भी हो सकते हैं। क्योंकि इनका जीवन अनिश्चित तौर पर ही चलता रहता है। इन विपरीत परिस्थितियों के चलते कई बार निराश भी हो जाते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘L’ है।
वे लोग जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर एल है। वे बहुत ही संवेदनशील होते हैं। इस स्वभाव के कारण दूसरों के दुख दूर करने का प्रयास भी करते हैं। इनकी सोच दार्शनिक होती है। और हर बात को अलग ही अंदाज से सोचते हैं। इनकी बातों में बहुत गहराई होती है और इन लोगों को आसानी से समझा नहीं जा सकता है। धर्म के मामले में भी ये लोग अग्रणी रहते हैं। और ईश्वर पर आस्था रखते हैं। ये लोग अपने अनुभव के आधार पर कार्यों में सफलता प्राप्त करते हैं। अतीत की बातों को पीछे छोड़कर वर्तमान में जीते हैं। अधिकांश समय खुद के लिए और अपने परिवार के सुख के लिए प्रयास करते रहते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘M’ है।
जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर एम होता है। वे अपने नैतिक मूल्यों पर जीवन व्यतीत करते हैं। गलत काम को और गलत काम करने वाले लोगों को कभी भी बढ़ावा नहीं देते हैं। सामान्यत: इनकी सोच यही होती है। कि सादा जीवन और उच्च विचार, लेकिन इनकी सादगी ही कई बार इन्हें परेशानियों में फंसा देती है। किसी भी बात को घुमा-फिराकर नहीं बोलते, सीधे-सीधे बोल देते हैं। इस कारण अन्य लोगों को इनकी बातें चूभती हैं। और वे इनसे शत्रुता का भाव रखने लग जाते हैं। इन लोगों की यही कोशिश होती है। समाज में इन्हें मान-सम्मान मिले। इसके लिए ये लोग सही प्रयास भी करते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘N’ है।
जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर एन है, वे जीवन में कई बार कठिन समय का सामना करते हैं। इनके कार्यों में बाधाएं आती हैं। आसानी से सफलता प्राप्त नहीं हो पाती है। जीवन में लगातार परेशानियों का सामना करते हुए ये लोग मजबूत और शक्तिशाली बन जाते हैं। अपने अनुभव के आधार पर समस्याओं को निपटा लेते हैं। और आगे बढ़ जाते हैं। ये लोग बहुत अच्छे मित्र भी होते हैं। अपने मित्रों के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। और उनकी मदद करते रहते हैं। समय के साथ इनके व्यक्तित्व में आकर्षण बढऩे लगता है और इस कारण इनकी ख्याति भी बढ़ती है।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘O’ है।
जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर ओ होता है। वे स्वार्थी हो सकते हैं। ओ अक्षर वाले लोगों का अंदाज बोल्ड होता है, पुरानी परंपराओं को पीछे छोड़कर आगे बढ़ते हैं। इन्हें आधुनिक जीवन अधिक पसंद आता है। ये लोग जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखते हैं। लेकिन विपरीत परिस्थितियों के कारण कभी हार नहीं मानते हैं। इसी विशेषता के कारण ये लोग दूसरों से अलग नजर आते हैं। ओ अक्षर वाले लोगों के मित्रों की संख्या बहुत अधिक होती है। लेकिन इनके शत्रु भी अधिक होते हैं। इन्हें कई बार अन्य लोगों द्वारा छला भी जाता है और इसी कारण कई परिस्थितियों में ये स्वार्थी बन जाते हैं। इनकी महत्वकांक्षाओं के कारण जीवन में कई उपलब्धियां हासिल करते हैं। और समाज में एक खास मुकाम बनाते हैं। इन लोगों को जीवन में हर चीज कुछ विलंब के बाद हासिल होती है।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘P’ है।
वे लोग अंदर से बहुत अशांत रहते हैं, जिनके नाम का पहला इंग्लिश पी है। पी अक्षर वाले लोगों के मन में कई प्रकार की उथल-पुथल चलती रहती है। लेकिन वे बाहर स्वयं शांत ही दिखाते हैं। आंतरिक स्थिति के विषय में किसी से बात करना पसंद नहीं करते हैं। इनके मन की स्थिति चाहे जैसी हो, लेकिन दूसरों को खुश रखने का प्रयास करते हैं। इनके विचारों में भी पवित्रता होती है। और ईश्वर पर आस्था रखते हैं। अपने भविष्य के प्रति लगातार विचार मंथन करते रहते हैं। ये लोग सदैव शांतिपूर्ण तरीके से जीवन जीना पसंद करते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘Q’ है।
यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर क्यू है। तो वह व्यक्ति जीवन को सही ढंग से व्यतीत करने वाला होता है। इन लोगों की इच्छा होती है। कि वे हमेशा सही तरीके से कार्य करें और दूसरों की मदद करते रहे। क्यू अक्षर वाले लोग अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। दृढ़ता के साथ परेशानियों को दूर करते हैं। ये लोग झूठा अहंकार नहीं दिखाते हैं। और इन्हें ऐसे ही लोग पसंद होते हैं जो अहंकार रहित होते हैं। घर-परिवार के मामलों में सदैव सजग रहते हैं। और सदस्यों की इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास भी करते रहते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘R’ है।
यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर आर है। तो वह व्यक्ति वैचारिक रूप से शक्तिशाली होता है। ऐसे लोग किसी बात को गहराई से मंथन करते हैं। और उसके बाद निर्णय करते हैं। जो कि अधिकांश परिस्थितियों में सही सिद्ध होता है। ये लोग आसानी से मित्र बना लेते हैं। इस वजह से इनके मित्रों की संख्या काफी अधिक होती है। अपने सिद्धांतों और व्यवहार के कारण इनकी समाज में सराहना भी होती है। आर अक्षर वाले लोग जिस क्षेत्र में भी काम करते हैं। अपनी मेहनत के बल पर वहां सफलता प्राप्त करते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘S’ है।
इस इंग्लिश नाम अक्षर वाले लोग बहुत ही रचनात्मक होते हैं। किसी भी काम को अपने अलग अंदाज से करना पसंद करते हैं। इन्हें भीड़ के साथ चलना पसंद नहीं होता है। अपनी बुद्धिमानी से परेशानियों को दूर कर लेते हैं। ये लोग अपने आसपास हो रही गतिविधियों की जानकारी भी रखते हैं। इनके जीवन में कई बार ऐसी स्थितियां आ जाती हैं। जब ये लोग कोई निर्णय नहीं ले पाते हैं। ऐसे में इन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार कुछ अलग करने के चक्कर में गलत निर्णय भी ले लेते हैं। मित्रों के प्रति वफादार रहते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘T’ है।
वे लोग अपने जीवन से संतुष्ट रहते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर टी है। इनके विचार मंथन का स्तर काफी ऊंचा होता है और अपनी बुद्धिमानी के बल पर समाज में ऊंचा मुकाम हासिल करते हैं। ये लोग कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए काफी दिमागी कसरत करते हैं। टी अक्षर वाले लोग ना तो पूरी तरह आस्तिक होते हैं। और ना ही पूरी तरह नास्तिक। इन्हें कार्य क्षमता पर बहुत अधिक विश्वास होता है और अपने निर्णयों के संबंध में इन्हें पूरी स्वतंत्रता चाहिए। कई बार अपने निर्णयों पर अडिग रहते हैं। और इस वजह से कभी नुकसान भी हो सकता है।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘U’ है।
जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर यू है। वे लोग सदैव नए आइडियाज पर काम करने के लिए तैयार रहते हैं। ये लोग अपने ग्रुप में नए विचारों के लिए खास पहचान रखते हैं। यू अक्षर वाले लोग किसी भी मौके को हाथ से जाने नहीं देते हैं। जैसे ही कोई सही मौका इन्हें नजर आता है। उसे फौरन प्राप्त लेते हैं। ये लोग सदैव सच के साथ रहते हैं। और सच पसंद करने वाले लोग इन्हें विशेष प्रिय होते हैं। ये लोग अपने कार्यों और विचारों के बल पर उज्जवल भविष्य का निर्माण करते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘V’ है।
वी- इस इंग्लिश अक्षर वाले लोग इस बात को गहराई से अपने जीवन पर लागू करते हैं। कि हम दूसरों को सम्मान देंगे तो हमें भी सम्मान मिलेगा। इस कारण ये सभी को सम्मान देते हैं। और दूसरों से भी पूरा सम्मान चाहते हैं। इनकी बुद्धि बहुत तेज होती है। और किसी भी बात को कभी भूलते नहीं हैं। ये लोग बातचीत में पारंगत होते हैं। और इस कारण अपने निर्णय पर दूसरों को भी आसानी से राजी कर लेते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘W’ है।
ऐसे लोग जोखिम भरे काम अधिक पसंद करते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर डब्ल्यू होता है। ये लोग कड़ी मेहनत करने वाले होते हैं। और ईमानदारी के साथ काम में लगे रहते हैं। साहसभरे काम इन्हें आकर्षित करते हैं। ये लोग विनम्र स्वभाव रखते हैं। और सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहते हैं। सामान्यत: इन लोगों को बुढ़ापे में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘X’ है।
जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर एक्स होता है। वे लोग शांतिप्रिय होते हैं। एक्स अक्षर वाले लोग संगीत प्रिय होते हैं। और कला संबंधी कार्यों में भी इनकी विशेष रुचि रहती है। अपने कार्यों में पूरी मेहनत के साथ लगे रहते हैं। और इस कारण इन्हें सफलता भी प्राप्त होती है। कभी-कभी इनके जीवन में परेशानियां भी आती हैं। लेकिन धीरे-धीरे ये उन परेशानियों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘Y’ है।
यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला इंग्लिश वाय है तो वे लोग स्वयं में डूबे रहने वाले होते हैं। ऐसे लोग अपने निर्धारित लक्ष्यों को पाने के लिए निरंतर विचार मंथन करते हैं। और नई योजनाएं बनाकर उन पर काम भी शुरू कर देते हैं। वाय अक्षर वाले लोग कार्यों का विश्लेषण करते हैं। और अन्य लोगों की कार्य प्रणाली पर भी ध्यान रखते हैं।
जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘Z’ है।
जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर झेड होता है। वे लोग बहुत जिद्दी हो सकते हैं। ऐसे लोग कई बार कोई खतरनाक काम भी कर देते हैं। जोखिम उठाने में इन्हें बिल्कुल भी संकोच नहीं होता है। यदि ये लोग किसी से शत्रुता रखते हैं। तो शत्रु के प्रति हिंसक भी हो सकते हैं। इन विशेषताओं के कारण कभी-कभी ये लोग परेशानियों का सामना भी करते हैं।
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
Birth horoscope and child happiness
जन्म कुंडली एवम संतान सुख
जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
स्त्री और पुरुष संतान प्राप्ति की कामना के लिए विवाह करते हैं | वंश परंपरा की वृद्धि के लिए एवम परमात्मा को श्रृष्टि रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी है | पुरुष पिता बन कर तथा स्त्री माता बन कर ही पूर्णता का अनुभव करते हैं | धर्म शास्त्र भी यही कहते हैं कि संतान हीन व्यक्ति के यज्ञ,दान ,तप व अन्य सभी पुण्यकर्म निष्फल हो जाते हैं | महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है कि पुत्र ही पिता को पुत् नामक नर्क में गिरने से बचाता है | मुनिराज अगस्त्य ने संतानहीनता के कारण अपने पितरों को अधोमुख स्थिति में देखा और विवाह करने के लिए प्रवृत्त हुए |प्रश्न मार्ग के अनुसार संतान प्राप्ति कि कामना से ही विवाह किया जाता है जिस से वंश वृद्धि होती है और पितर प्रसन्न होते हैं|
जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
ज्योतिष के प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया है | भाग्य में संतान सुख है या नहीं ,पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा ,संतान कैसी निकलेगी ,संतान सुख कब मिलेगा और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है , इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत व गहन विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है |
जन्म कुंडली के किस भाव से विचार करें
जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो ,उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है | भाव ,भाव स्थित राशि व उसका स्वामी ,भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली, इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है |पति एवम पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए |पंचम भाव से प्रथम संतान का ,उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए | उस से आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है |
संतान सुख प्राप्ति के योग
पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु ,शुक्र ,बुध ,शुक्ल पक्ष का चन्द्र स्व मित्र उच्च राशि – नवांश में स्थित हों या इनकी पूर्ण दृष्टि भाव या भाव स्वामी पर हो , भाव स्थित राशि का स्वामी स्व ,मित्र ,उच्च राशि – नवांश का लग्न से केन्द्र ,त्रिकोण या अन्य शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो , संतान कारक गुरु भी स्व ,मित्र ,उच्च राशि – नवांश का लग्न से शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो , गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त –दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती है | शनि मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि पंचम भाव में स्व ,मित्र ,उच्च राशि – नवांश के हों तो संतान प्राप्ति करातें हैं | पंचम भाव ,पंचमेश तथा कारक गुरु तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों तो संतान सुख उत्तम ,दो बलवान हों तो मध्यम ,एक ही बली हो तो सामान्य सुख होता है |सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में बलवान हो ,शुभ स्थान पर हो तथा सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की अनुभूति होती है | प्रसिद्ध फलित ग्रंथों में वर्णित कुछ प्रमुख योग निम्नलिखित प्रकार से हैं जिनके जन्मकुंडली में होने से संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है | :-
१ जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति,दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो |
२ लग्नेश पंचम भाव में मित्र ,उच्च राशि नवांश का हो |
३ पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो |
४ पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो |
५ जन्म कुंडली में गुरु स्व ,मित्र ,उच्च राशि नवांश का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो |
६ एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर स्थित हों |
७ गुरु से पंचम भाव में शुभ ग्रह स्थित हो |
८ गुरु के अष्टक वर्ग में पंचम स्थान में बलवान ग्रहों द्वारा प्रदत्त पांच या अधिक शुभ बिंदु हों |
९ सप्तमांश लग्न का स्वामी बलवान हो कर जन्म कुंडली में शुभ भाव में स्थित हो |
संतान सुख हीनता के योगलग्न एवम चंद्रमा से पंचम भाव में निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में स्थित हों ,पंचम भाव पाप कर्तरी योग से पीड़ित हो , पंचमेश और गुरु अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , गुरु से पंचम में पाप ग्रह हो , षष्टेश अष्टमेश या द्वादशेश का सम्बन्ध पंचम भाव या उसके स्वामी से होता हो , सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में 6,8 12 वें भाव में अस्त ,शत्रु –नीच राशि नवांश में स्थित हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है | जितने अधिक कुयोग होंगे उतनी ही अधिक कठिनाई संतान प्राप्ति में होगी |
पंचम भाव में अल्पसुत राशि ( वृष ,सिंह कन्या ,वृश्चिक ) हो तथा उपरोक्त योगों में से कोई योग भी घटित होता हो तो कठिनता से संतान होती है |
गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पंचम स्थान शुभ बिंदु से रहित हो तो संतानहीनता होती है |
सप्तमेश निर्बल हो कर पंचम भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है |
गुरु ,लग्नेश ,पंचमेश ,सप्तमेश चारों ही बलहीन हों तो अन्पतत्यता होती है |
गुरु ,लग्न व चन्द्र से पांचवें स्थान पर पाप ग्रह हों तो अन्पतत्यता होती है |
पुत्रेश पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पुत्र स्थान पर पाप ग्रह हो ,शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अन्पतत्यता होती है |
पुत्र या पुत्री योग
सूर्य ,मंगल, गुरु पुरुष ग्रह हैं | शुक्र ,चन्द्र स्त्री ग्रह हैं | बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं | संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र तथा स्त्री ग्रह होने पर पुत्री का सुख मिलता है | शनि और बुध योग कारक हो कर विषम राशि में हों तो पुत्र व सम राशि में हो तो पुत्री प्रदान करते हैं | सप्तमान्शेष पुरुष ग्रह हो तो पुत्र तथा स्त्री ग्रह हो तो कन्या सन्तिति का सुख मिलता है | गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पांचवें स्थान पर पुरुष ग्रह बिंदु दायक हों तो पुत्र ,स्त्री ग्रह बिंदु दायक हो तो पुत्री का सुख प्राप्त होता है |पुरुष और स्त्री ग्रह दोनों ही योग कारक हों तो पुत्र व पुत्री दोनों का ही सुख प्राप्त होता है | पंचम भाव तथा पंचमेश पुरुष ग्रह के वर्गों में हो तो पुत्र व स्त्री ग्रह के वर्गों में हो तो कन्या सन्तिति की प्रधानता रहती है |
पंचमेश के भुक्त नवांशों में जितने पुरुष ग्रह के नवांश हों उतने पुत्र और जितने स्त्री ग्रह के नवांश हों उतनी पुत्रियों का योग होता है | जितने नवांशों के स्वामी कुंडली में अस्त ,नीच –शत्रु राशि में पाप युक्त या दृष्ट होंगे उतने पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी |
संतान बाधा के कारण व निवारण के उपाय
सर्वप्रथम पति और पत्नी की जन्म कुंडलियों से संतानोत्पत्ति की क्षमता पर विचार किया जाना चाहिए | जातकादेशमार्ग तथा फलदीपिका के अनुसार पुरुष की कुंडली में सूर्य स्पष्ट ,शुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट का योग करें | राशि का योग 12 से अधिक आये तो उसे 12 से भाग दें | शेष राशि ( बीज )तथा उसका नवांश दोनों विषम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमता,एक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों सम हों तो अक्षमता होती है | इसी प्रकार स्त्री की कुंडली से चन्द्र स्पष्ट ,मंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट से विचार करें |शेष राशि( क्षेत्र ) तथा उसका नवांश दोनों सम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमता,एक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों विषम हों तो अक्षमता होती है | बीज तथा क्षेत्र का विचार करने से अक्षमता सिद्ध होती हो तथा उन पर पाप युति या दृष्टि भी हो तो उपाय करने पर भी लाभ की संभावना क्षीण होती है ,शुभ युति दृष्टि होने पर शान्ति उपायों से और औषधि उपचार से लाभ होता है | शुक्र से पुरुष की तथा मंगल से स्त्री की संतान उत्पन्न करने की क्षमता का विचार करें | पुरुष व स्त्री जिसकी अक्षमता सिद्ध होती हो उसे किसी कुशल वैद्य से परामर्श करना चाहिए |
सूर्यादि ग्रह नीच ,शत्रु आदि राशि नवांश में,पाप युक्त दृष्ट ,अस्त ,त्रिक भावों का स्वामी हो कर पंचम भाव में हों तो संतान बाधा होती है | योग कारक ग्रह की पूजा ,दान ,हवन आदि से शान्ति करा लेने पर बाधा का निवारण होता है और सन्तिति सुख प्राप्त होता है | फल दीपिका के अनुसार :-
एवं हि जन्म समये बहुपूर्वजन्मकर्माजितं दुरितमस्य वदन्ति तज्ज्ञाः |
ततद ग्रहोक्त जप दान शुभ क्रिया भिस्तददोषशान्तिमिह शंसतु पुत्र सिद्धयै ||
अर्थात जन्म कुंडली से यह ज्ञात होता है | कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतान हीनता है | बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप ,दान ,हवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र प्राप्ति होती है | सूर्य संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पितृ पीड़ा है | पितृ शान्ति के लिए गयाजी में पिंड दान कराएं | हरिवंश पुराण का श्रवण करें | सूर्य रत्न माणिक्य धारण करें | रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहु,गुड ,केसर ,लाल चन्दन ,लाल वस्त्र ,ताम्बा, सोना तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें | सूर्य के बीज मन्त्र ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः के 7000 की संख्या में जाप करने से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है | गायत्री जाप से , रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र में जल में लाल चन्दन ,लाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य देने पर भी शुभ फल प्राप्त होता है | विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ को रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते हैं |
चन्द्र संतान प्राप्ति में बाधक है | तो कारण मामा का शाप ,तुलसी या भगवान विष्णु की अवज्ञा है जिसकी शांति के लिए विष्णु पुराण का श्रवण ,विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें |हरे रंग का पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में आश्लेषा,ज्येष्ठा ,रेवती नक्षत्रों में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की कनिष्टिका अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , लाल पुष्प, गुड ,अक्षत आदि से पूजन कर लें | बुधवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र का ९००० संख्या में जाप करें | बुधवार को कर्पूर,घी, खांड, ,हरे रंग का वस्त्र और फल ,कांसे का पात्र ,साबुत मूंग इत्यादि का दान करें | तुलसी को जल व दीप दान करना भी शुभ रहता है |
बृहस्पति संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गुरु ,ब्राह्मण का शाप या फलदार वृक्ष को काटना है | जिसकी शान्ति के लिए पीत रंग का पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु ,विशाखा ,पूर्व भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , पीले पुष्प, हल्दी ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |पुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं | केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें |गुरूवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र का १९००० की संख्या में जाप करें | गुरूवार को घी, हल्दी, चने की दाल ,बेसन पपीता ,पीत रंग का वस्त्र ,स्वर्ण, इत्यादि का दान करें |फलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने और गुरु की पूजा सत्कार से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं |
शुक्र संतान प्राप्ति में बाधक है | तो कारण गौ -ब्राह्मण ,किसी साध्वी स्त्री को कष्ट देना या पुष्प युक्त पौधों को काटना है जिसकी शान्ति के लिए गौ दान ,ब्राह्मण दंपत्ति को वस्त्र फल आदि का दान ,श्वेत रंग का हीरा प्लैटिनम या चांदी की अंगूठी में पूर्व फाल्गुनी ,पूर्वाषाढ़ व भरणी नक्षत्रों में जड़वा कर शुक्रवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , श्वेत पुष्प, अक्षत आदि से पूजन कर लें |
हीरे की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न श्वेत जरकन भी धारण कर सकते हैं | शुक्रवार के नमक रहित व्रत रखें , ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र का १६ ००० की संख्या में जाप करें | शुक्रवार को आटा ,चावल दूध ,दही, मिश्री ,श्वेत चन्दन ,इत्र, श्वेत रंग का वस्त्र ,चांदी इत्यादि का दान करें |
शनि संतान प्राप्ति में बाधक है | तो कारण पीपल का वृक्ष काटना या प्रेत बाधा है | जिसकी शान्ति के लिए पीपल के पेड़ लगवाएं,रुद्राभिषेक करें ,शनि की लोहे की मूर्ती तेल में डाल कर दान करें | नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य ,अनुराधा ,उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , नीले पुष्प, काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लें |
नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली , लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं | काले घोड़े कि नाल या नाव के नीचे के कील का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है | शनिवार के नमक रहित व्रत रखें | ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र का २३००० की संख्या में जाप करें | शनिवार को काले उडद ,तिल ,तेल ,लोहा,काले जूते ,काला कम्बल , काले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें | श्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है |
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च |नमः कालाग्नि रूपाय कृतान्ताय च वै नमः ||
नमो निर्मोसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च | नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ||
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः | नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुते||
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमः| नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने ||
नमस्ते सर्व भक्षाय बलि मुख नमोस्तुते|सूर्य पुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ||
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुते| नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते ||
तपसा दग्धदेहाय नित्यम योगरताय च| नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः||
ज्ञानचक्षुर्नमस्ते ऽस्तु कश्यपात्मजसूनवे |तुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात ||
देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा | त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः||
प्रसादं कुरु में देव वराहोरऽहमुपागतः || पद्म पुराण में वर्णित शनि के दशरथ को दिए गए वचन के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक शनि की लोह प्रतिमा बनवा कर शमी पत्रों से उपरोक्त स्तोत्र द्वारा पूजन करके तिल ,काले उडद व लोहे का दान प्रतिमा सहित करता है तथा नित्य विशेषतः शनिवार को भक्ति पूर्वक इस स्तोत्र का जाप करता है उसे दशा या गोचर में कभी शनि कृत पीड़ा नहीं होगी और शनि द्वारा सदैव उसकी रक्षा की जायेगी |
राहु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण सर्प शाप है जिसकी शान्ति के लिए नाग पंचमी में नाग पूजा करें ,गोमेद पञ्च धातु की अंगूठी में आर्द्रा,स्वाती या शतभिषा नक्षत्र में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , नीले पुष्प, काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लें|रांगे का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है | ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र का १८००० की संख्या में जाप करें | शनिवार को काले उडद ,तिल ,तेल ,लोहा,सतनाजा ,नारियल , रांगे की मछली ,नीले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें | मछलियों को चारा देना भी राहु शान्ति का श्रेष्ठ उपाय है |
केतु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण ब्राह्मण को कष्ट देना है जिसकी शान्ति के लिए ब्राह्मण का सत्कार करें , सतनाजा व नारियल का दान करें और ॐ स्रां स्रीं स्रों सः केतवे नमः का १७००० की संख्या में जाप करें |
संतान बाधा दूर करने के कुछ शास्त्रीय उपाय
जन्म कुंडली में अन्पत्तयता दोष स्थित हो या संतान भाव निर्बल एवम पीड़ित होने से संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो निम्नलिखित पुराणों तथा प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित शास्त्रोक्त उपायों में से किसी एक या दो उपायों को श्रद्धा पूर्वक करें | आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी |
1. संकल्प पूर्वक शुक्ल पक्ष से गुरूवार के १६ नमक रहित मीठे व्रत रखें | केले की पूजा करें तथा ब्राह्मण बटुक को भोजन करा कर यथा योग्य दक्षिणा दें | १६ व्रतों के बाद उद्यापन कराएं ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं गुरुवे नमः का जाप करें |
2. पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी में गुरु रत्न पुखराज स्वर्ण में विधिवत धारण करें |
3. यजुर्वेद के मन्त्र दधि क्राणों ( २३/३२) से हवन कराएं |
4. अथर्व वेद के मन्त्र अयं ते योनि ( ३/२०/१) से जाप व हवन कराएं |
5 संतान गोपाल स्तोत्र
ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः |
उपरोक्त मन्त्र की १००० संख्या का जाप प्रतिदिन १०० दिन तक करें | तत्पश्चात १०००० मन्त्रों से हवन,१००० से तर्पण ,१०० से मार्जन तथा १० ब्राह्मणों को भोजन कराएं |
6 संतान गणपति स्तोत्र
श्री गणपति की दूर्वा से पूजा करें तथा उपरोक्त स्तोत्र का प्रति दिन ११ या २१ की संख्या में पाठ करें |
7. संतान कामेश्वरी प्रयोग
उपरोक्त यंत्र को शुभ मुहूर्त में अष्ट गंध से भोजपत्र पर बनाएँ तथा षोडशोपचार पूजा करें तथा ॐ क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवति संतान कामेश्वरी गर्भविरोधम निरासय निरासय सम्यक शीघ्रं संतानमुत्पादयोत्पादय स्वाहा ,मन्त्र का नित्य जाप करें | ऋतु काल के बाद पति और पत्नी जौ के आटे में शक्कर मिला कर ७ गोलियाँ बना लें तथा उपरोक्त मन्त्र से २१ बार अभिमन्त्रित करके एक ही दिन में खा लें तो लाभ होगा | |
8.पुत्र प्रद प्रदोष व्रत ( निर्णयामृत )शुक्ल पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार हो उस दिन से साल भर यह प्रदोष व्रत करें|प्रातःस्नान करके पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत का संकल्प करें | सूर्यास्त के समय शिवलिंग की भवाय भवनाशाय मन्त्र से पूजा करें जौ का सत्तू ,घी ,शक्कर का भोग लगाएं | आठ ठ दिशाओं में दीपक रख कर आठ -आठ बार प्रणाम करें | नंदी को जल व दूर्वा अर्पित करें तथा उसके सींग व पूंछ का स्पर्श करें | अंत में शिव पार्वती की आरती पूजन करें |
9. पुत्र व्रत (वराह पुराण )
भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को उपवास करके विष्णु का पूजन करें | अगले दिन ओम् क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी जन वल्लभाय स्वाहा मन्त्र से तिलों की १०८ आहुति दे कर ब्राह्मण भोजन कराएं | बिल्व फल खा कर षडरस भोजन करें | वर्ष भर प्रत्येक मास की सप्तमी को इसी प्रकार व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति होगी
स्त्री की कुंडली में जो ग्रह निर्बल व पीड़ित होता है उसके महीने में गर्भ को भय रहता है अतः उस महीने के अधिपति ग्रह से सम्बंधित पदार्थों का निम्न लिखित सारणी के अनुसार दान करें जिस से गर्भ को भय नहीं रहेगा
गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनका दान
गर्भाधान से नवें महीने तक प्रत्येक मास के अधिपति ग्रह के पदार्थों का उनके वार में दान करने से गर्भ क्षय का भय नहीं रहता | गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनके दान निम्नलिखित हैं |——
प्रथम मास — – शुक्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा शुक्रवार को )
द्वितीय मास —मंगल ( गुड ,ताम्बा ,सिन्दूर ,लाल वस्त्र , लाल फल व दक्षिणा मंगलवार को )
तृतीय मास — गुरु ( पीला वस्त्र ,हल्दी ,स्वर्ण , पपीता ,चने कि दाल , बेसन व दक्षिणा गुरूवार को )
चतुर्थ मास — सूर्य ( गुड , गेहूं ,ताम्बा ,सिन्दूर ,लाल वस्त्र , लाल फल व दक्षिणा रविवार को )
पंचम मास —- चन्द्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को )
षष्ट मास — –-शनि ( काले तिल ,काले उडद ,तेल ,लोहा ,काला वस्त्र व दक्षिणा शनिवार को )
सप्तम मास —– बुध ( हरा वस्त्र ,मूंग ,कांसे का पात्र ,हरी सब्जियां व दक्षिणा बुधवार को )
अष्टम मास —- गर्भाधान कालिक लग्नेश ग्रह से सम्बंधित दान उसके वार में |यदि पता न हो तो अन्न ,वस्त्र व फल का दान अष्टम मास लगते ही कर दें |
नवं मास —- चन्द्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को )
संतान सुख की प्राप्ति के समय का निर्धारण
पति और पत्नी दोनों की कुंडली का अवलोकन करके ही संतानप्राप्ति के समय का निर्धारण करना चाहिए |पंचम भाव में स्थित बलवान और शुभ फलदायक ग्रह ,पंचमेश और उसका नवांशेश ,पंचम भाव तथा पंचमेश को देखने वाले शुभ फलदायक ग्रह,पंचमेश से युक्त ग्रह ,सप्तमान्शेष ,बृहस्पति ,लग्नेश तथा सप्तमेश अपनी दशा अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा में संतान सुख की प्राप्ति करा सकते हैं |
दशा के अतिरिक्त गोचर विचार भी करना चाहिए | गुरु गोचर वश लग्न ,पंचम भाव ,पंचमेश से युति या दृष्टि सम्बन्ध करे तो संतान का सुख मिलता है | लग्नेश तथा पंचमेश के राशि अंशों का योग करें | प्राप्त राशि अंक से सप्तम या त्रिकोण स्थान पर गुरु का गोचर संतान प्राप्ति कराता है | गोचर में लग्नेश और पंचमेश का युति , दृष्टि या राशि सम्बन्ध हो तो संतानोत्पत्ति होती है | पंचमेश लग्न में जाए या लग्नेश पंचम भाव में जाए तो संतान सम्बन्धी सुख प्राप्त होता है | बृहस्पति से पंचम भाव का स्वामी जिस राशि नवांश में है उस से त्रिकोण (पंचम ,नवम स्थान ) में गुरु का गोचर संतान प्रद होता है |लग्नेश या पंचमेश अपनी राशि या उच्च राशि में भ्रमण शील हों तो संतान प्राप्ति हो सकती है | लग्नेश ,सप्तमेश तथा पंचमेश तीनों का का गोचरवश युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध बन रहा हो तो संतान लाभ होता है |
स्त्री की जन्म राशि से चन्द्र 1 ,2 ,4 ,5 ,7 ,9 ,1 2 वें स्थान पर हो तथा मंगल से दृष्ट हो और पुरुष जन्म राशि से चन्द्र 3 ,6 10 ,11 वें स्थान पर गुरु से दृष्ट हो तो स्त्री -पुरुष का संयोग गर्भ धारण कराने वाला होता है | आधान काल में गुरु लग्न ,पंचम या नवम में हो और पूर्ण चन्द्र व् शुक्र अपनी राशि के हो तो अवश्य संतान लाभ होता है |
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
Astrologer - पंडित आशु बहुगुणा
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मुजफ्फरनगर UP
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