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श्री राम ज्योतिष सदन ज्योतिष क्षेत्र में कई वर्षो से लगातार लोकप्रिय रहा है जिसके द्वारा कई कल्याणकारी सटीक भविष्यवाणियाँ , पूजा एवं उपाय जो हमेशा सभी के लिए सहायक होते हैं निरंतर किये जा रहे है । श्री राम ज्योतिष सदन हमेशा ज्योतिष से संबंधित सेवाओं प्रदान करता है , यह भी बताता है कि पूरे हिंदू वर्ष में व्रत और त्योहारों की तिथि, समय और संभावना क्या है। किसी भी व्यक्ति के जीवन काल में व्यवसाय, करियर से संबंधित भविष्यवाणियां भी सटीक रूप से जानने में श्री राम ज्योतिष सदन एक मुख्य संस्थान है। श्री राम ज्योतिष सदन में के माध्यम से आपको प्रतिदिन, साप्ताहिक, मासिक, वार्षिक और जीवन भर के लिए भविष्यवाणी के रूप में अपना भविष्य जानने में मदद मिलती है। आप अपनी नई जन्मपत्रिका बनवाना चाहते हैं। या अपनी जन्मपत्रिका दिखाकर उचित सलाह चाहते हैं। श्री गणपति पूजा , मां शक्ति पूजा पाठ , दस महाविद्या साधना , श्री हनुमान पूजा , श्री भैरव देव पूजा या पुरे विधि विधान से अन्य पूजा कराना चाहते है। किसी भी प्रकार के अनुष्ठान को सुसंगत एवं फलादेश रूप से संपन्न कराना चाहते है। श्री राम ज्योतिष सदन द्वारा एकमात्र ऐसा संस्थान है जो सभी सेवाएं उचित फीस/शुल्क पर आप तक पहुंचाता है।
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ॐ रां रामाय नमः श्री राम ज्योतिष सदन भारतीय ज्योतिष, अंक ज्योतिष कृपया निशुल्क: ज्योतिष-वास्तु परामर्श संबंधी फोन अथवा मैसेज ना करें।

वार फलित

ज्योतिष के अनुसार सप्ताह का हर दिन किसी किसी ग्रह से जुड़ा हुआ है। ज्योतिष शास्त्र के जानकार यह मानते हैं। कि यदि किसी व्यक्ति का जन्म जिस दिन होता है। उस दिन के कारक ग्रह संबंधित व्यक्ति के स्वास्थ्य, नजरिए, स्वभाव और अन्य बहुत सारे पहलुओं पर अपना असर डालता है। ग्रहों का यह प्रभाव जातक को जीवन भर रहता है।

आपके जन्म का वार क्या था यानी आप किस दिन पैदा हुए थे इस बात पर भी काफी हद तक यह निर्भर करता है। कि आपका स्वभाव और व्यवहार कैसा होगा। जीवन के कौन से साल सुखदायी या दुखदायी होंग।

 

सोमवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। इस दिन जन्मे व्यक्ति हमेशा समाज में चर्चा का विषय बने रहते हैं। लेकिन इनका पारिवारिक जीवन अच्छा नहीं रहता। इन्हें अक्सर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बावजूद इसके ये लोग हंसमुख होते हैं। और काफी मीठा बोलते हैं। चन्द्र से संबंध होने के कारण इनका मन चंचल रहता है। और निरंतर विचार बदलते रहते हैं। ये लोग बुद्धिमान, कला प्रेमी और बहादुर होते हैं। और सुख-दुख में एक जैसे रहते हैं। इस दिन जन्मे व्यक्तियों की याददाश्त बहुत तेज होती है। लेकिन इनमें धैर्य की बहुत कमी होती है।

1.सोमवार को जन्में लोग सौम्य प्रकृति के होते हैं। वे सभी के साथ घुल-मिल कर रहने वाले, संवदेनशील, कल्पनाशील, प्रेमी, परिस्थिति के अनुसार ढलने वालें होते हैं।
2. ऐसे लोग वाद-विवाद से दूर ही रहते हैं। बिना वजह किसी से अप्रिय बात भी नहीं करते।  
3. सोमवार को जन्में लोग दिखने में सुंदर आकर्षक होते हैं। सबका ध्यान अपनी और आकर्षित करते हैं। माता का इनके प्रति अत्यधिक स्नेह रहता है।
4. ऐसे लोग कमजोर दिल के होते हैं। ये मेहनती होने के साथ ही अपने काम को किसी भी हालत में पूरा करते हैं।
5. सोमवार को जन्में लोग धन का अपव्यय नही करते। कई बार ये कंजूस भी हो जाते हैं।
6. इन लोगों को गले छाती से जुडे रोग, चेचक या सफेद चकते बनना तथा आंखों से सम्बंधित रोग होने की संभावना रहती है।
7. ये लोग होटल, दूध, कागज, तेल, सौंदर्य सम्बंधी चीजों का बिजनेस करते हैं। इसके अलावा ये लेखक, कवि, मनोवैज्ञानिक आकंडों से सम्बंधित कार्य करते हैं।
8. इनका वैवाहिक जीवन थोड़ा निराशाजनक रह सकता है। इसका कारण इनका स्वतंत्र प्रवृति का होना हैं।जो एक जगह बंध कर नही रह सकता।

 

 

मंगलवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। मंगलवार को जन्म लेने वाले व्यक्ति क्रोधी, पराक्रमी, अनुशासनप्रिय, ऊर्जा से परिपूर्ण और नए विचारों का समर्थन करने वाले होते हैं। इस दिन जन्मे व्यक्तियों पर मंगल ग्रह का विशेष प्रभाव रहता है। इसलिए इस दिन जन्में व्यक्ति सभी बाधाओं को पार कर हमेशा प्रगति के पथ पर अग्रसर होते हैं। ऐसे लोग अपनी प्रशंसा सुनने के बहुत इच्छुक रहते हैं। इनके दांपत्य जीवन में समय-समय पर विरोधाभास की स्थिति आती रहती है। अधिक क्रोध के कारण आसपास के लोगों से इनकी ज्यादा नहीं बनती।

1. मंगलवार को जन्में लोग उग्र, गुस्सैल और बहादुर होते हैं। यह किसी भी परेशानी के आगे जल्दी घुटने नहीं टेकते और ना ही गलत बात को स्वीकार करते हैं।
2. मंगलवार को जन्में लोगों को लग्जरी लाइफ जीना अच्छा लगता है। शॉपिंग करने से यह कभी पीछे नहीं हटते, आप कह सकते हैं। कि यह बेहद खर्चीले होते हैं।
3. छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आने के कारण दूसरों लोगों से इनके संबंध अधिक दिन तक नहीं टिकते। दोस्त हों या रिश्तेदार इनके स्वभाव के कारण दूरी बनाकर ही रहते हैं।
4. पुलिस, सेना, मैकेनिक, इंजीनियर, मार्केटिंग या मशीनरी आदि में इनकी सफलता के अधिक आसार होते हैं।
5. इनका शरीर गठीला होता है। जिसकी वजह से ये सेना, पुलिस आदि में चुने जाते हैं। ये धुन के पक्के होते हैं। जो ठान लें, पूरा करके ही दम लेते हैं।
6. इनकी लव लाइफ अच्छी रहती है। इन्हें सुंदर जीवनसाथी मिलता है। ये अपने परिवार के प्रति समर्पित रहते हैं।
7. इस वार को जन्मीं लड़कियों में भी समान गुण देखने को मिलते हैं। यह भी साहसी और निडर होती हैं। अकसर यह उस रुढ़िवादी सोच को तोड़ती है। जिसके अनुसार लड़कियों को नाजुक समझा जाता है।
8. इस दिन जन्मीं लड़कियां आत्मनिर्भर और स्वाबलंबी होने का ख्वाब रखती हैं। इन्हें क्रोध भी जल्दी आता है।और शांत भी शीघ्र ही हो जाती हैं। यह अपने फैसले खुद लेती हैं।

 

 

बुधवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। बुधवार को जन्मे लोग बहुमुखी प्रतिभा के धनी और तीक्ष्ण बुद्धिवाले होते हैं। साथ ही अपनी वाकपटुता से दूसरों की बोलती बंद कर देते हैं। इनपर बुध ग्रह का विशेष प्रभाव रहता है। लोग इन्हें पसंद करते हैं। ये अपने माता-पिता और भाई-बहनों से विशेष रूप से बहुत प्यार करते हैं। भाग्य पक्ष मजबूत होने के कारण, ये लोग सभी प्रकार की विपत्तियों से जल्द ही बाहर निकल आते हैं। और धन कमाने में कामयाब होते हैं।

बुधवार को जन्मे व्यक्ति पर बुध ग्रह का प्रभाव अधिक होता है। ये बहुमुखी प्रतिभा और तेज दिमाग वाले होते हैं। सिर्फ पढ़ाई ही नहीं जीवन के हर क्षेत्र में यह काफी होशियार रहते हैं।
2. अपनी मीठी बोली और सौम्य व्यवहार से यह लोगों के फेवरेट बन जाते हैं। परिस्थितियों के अनुसार ढल जाने की आदत के कारण इन्हें जीवन में अधिक संघर्ष नही करना पड़ता।
3. आमतौर पर शांत दिखने वाले इन लोगों का गुस्सा जल्दी शांत नहीं होता। दूसरों की बुराई और जिसके साथ फायदा हो उसके साथ चलने की आदत इन्हें दूसरों की नजरों में मतलबी बना देती है।
4. ये किसी भी काम के लिए प्लानिंग नहीं करते। कभी-कभी बिना सोचे-समझे किसी कार्य को आरम्भ कर देते हैं। जिसका परिणाम बेहतर नहीं मिलता।
5. एक साथ कई काम करने की इनकी आदत की झलक प्रेम संबंधों में भी नजर आती है। इनके कई प्रेम सम्बन्ध होते हैं। पर यह जिससे सच्चा प्यार करते हैं। उसे कभी धोखा नहीं देते।
6. जब बात जीवनसाथी की आती है। तो यह समझदार जीवनसाथी की आशा रखते हैं। और इनकी मुराद पूरी भी होती है।
7. ये लोग कला, गायन, नृत्य, लेखन या कमीशन एजेंट के काम में सफलता प्राप्त करते हैं।
8. लोगों को अपनी बात मनवाने का गुण इन्हें मार्केटिंग के क्षेत्र में भी सफलता दिलवाता है।

 

 

गुरुवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। इस दिन जन्म लेने वाले लोग महत्वाकांक्षी, गंभीर स्वभाव वाले होते हैं। और किसी भी मुश्किल समय का सामना बड़ी ही समझदारी और साहस के साथ करते हैं। इनके साहस और तर्क के आगे कोई टिक नहीं पाता। अपने विचारों और भावनाओं को दूसरे के सामने अच्छी तरह से पेश करते हैं। इसी कारण लोग इनसे जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। ये दोस्ती भी अच्छी संगत वालों से करते हैं। इसलिए दोस्तों की तरफ से इन्हें हमेशा खुशी मिलती है। गुरुवार को जन्मे जातक लम्बे, साफ रंग वाले और दिखने में आकर्षक होते है। गुरुवार को जन्म लेने वाले लोग बहुत ही बुद्धिमान और साहसी होते हैं। किसी भी मुश्किल का सामना करना इन्हे बखूबी आता है। इनसे कोई भी व्यक्ति बहुत ही जल्दी प्रभावित हो जाता है। इनके दोस्त बहुत ही अच्छे और इनके प्रति समर्पित होते है। इन्हें अपनी उम्र के 7, 12, 13, 16 और 30 वें साल में समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

गुरुवार को जन्मे व्यक्ति पर बृहस्पति ग्रह का प्रभाव रहता है। ऐसा व्यक्ति गंभीर चिंतन करने वाला और धार्मिक स्वभाव से संपन्न रहता है।
2. उसके स्वभाव में मिलनसारिता और सर्वहिताय की भावना रहती है। लेकिन यदि गुरु की स्थिति ठीक नहीं है। तो ऐसा व्यक्ति ढोंगी साधु या ढोंगी बन सकता है।
3. गुरुवार को जन्मे लोग शिक्षा के क्षेत्र में बहुत आगे होते हैं। उनके दिमाग की जितनी तारीफ की जाए उतना कम है।
4. यह लोग स्वभाव से थोड़े कंजूस होते हैं। इसलिए इनके पास धन रूका रहता है। ये मार्गदर्शक के रूप एक अच्छे मित्र बनते हैं। समाज सुधारक उत्तम विचारक होते हैं।
5. इन्हें स्वास्थ्य से संबंधित कोई विशेष समस्या नहीं होती। इन्हें बस छोटी-मोटी चीजें ही प्रभावित करती है। जैसे कि मोटापा, शुगर, वसा, उदर, कफ, सूजन आदि।
6. इन लोगों को पढ़ने में विशेष रुचि होती है। इसलिए यह लोग अपना रास्ता खुद बना लेते हैं। यह लोग न्यायाधीश, वकील, मजिस्ट्रेट, ज्योतिषी, धर्मगुरू, शिक्षक, सुनार, वकालत, शेयर बाजार, शिक्षा, सामाजिक संगठनों आदि क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करते हैं।
7. गुरुवार के दिन जन्मे लोगों का विवाह सफल रहता है। ये लोग विश्वास के योग्य होते हैं। यह लोग अपने विवाहित जीवन को अच्छे से जीते हैं।

 

 

शुक्रवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। इस दिन जन्मे व्यक्ति की वाणी में मधुरता और सरलता होती है। और वाद-विवाद करने वाले से ये नफरत करते हैं। ऐसे लोग मनोरंजन के साधनों पर अधिक खर्च करते हैं। जिससे इनका आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है। ऐश्वर्य से भरा जीवन इन लोगों को काफी अच्छा लगता है। कला के क्षेत्र में ये लोग अपनी अलग जगह बना सकते हैं। प्रेम के मामले में ऐसे लोग एक जगह नहीं टिक पाते। इनके स्वभाव में ईर्ष्या अधिक होती है। इनका वैवाहिक जीवन सफल कहा जा सकता है। शुक्रवार माता लक्ष्मी का दिन है। इस दिन जन्मे इंसान बहुत जिंदादिल, बुद्धिमान, मृदुल स्वभाव वाले ,सहनशील और भावुक होते हैं। इनमे हर स्थिति को अपने अनुकूल बनाने कि अदभुत क्षमता होती है। माँ लक्ष्मी कि कृपा के कारण सामान्यता इन्हे जीवन का हर भौतिक सुख प्राप्त होता है। यह दानी प्रवृति के होते है। और दूसरों कि मदद के लिए सदैव तैयार रहते है ये लोग साहित्य, कला और संगीत के प्रेमी होते है। इन्हें 20 और 24 वर्ष की आयु में कुछ दिक्क़ते उठानी पड सकती है।

1. शुक्रवार को जन्म लेने वाले को सजना-संवरना काफी पसंद होता है। मनोरंजन में इनकी काफी रुचि रहती है। शारीरिक बनावट की बात है। तो इस दिन जन्म लेने वाले व्यक्ति का सिर बड़ा होता है। और आंखें बड़ी और रंग गोरा होता है।
2. इस दिन जन्म लेने वाले व्यक्तियों में विपरीत लिंग के प्रति विशेष आकर्षण होता है। ये काफी चतुर होते हैं। कलात्मक चीजों एवं कला से इनका लगाव रहता है।
3. संगीत, लेखन, चित्रकला, फिल्म, फैशन, ब्यूटी इंडस्ट्री में ये काफी सफल होते हैं। ऐसे व्यक्ति आमतौर पर प्रसन्न दिखाई देते हैं। इनके चेहरे पर रौनक होती है। विरोधियों को किस प्रकार से अपने पक्ष में किया जा सकता है। यह कला इनमें खूब होती है।
4. बातों-बातों में किसी को अपनी ओर आकर्षित करने की योग्यता इनमें होती है। जिससे इनकी मित्रता का दायरा बड़ा होता है। और अपने हंसी-मजाक वाले स्वभाव के कारण मित्रों में लोकप्रिय होते हैं।
5. तारीफ सुनना इन्हें काफी अच्छा लगता है। बदलते मौसम में इन्हें अधिक सजग रहने की जरूरत होती है। क्योंकि सर्दी-जुकाम इन्हें जल्दी लग जाती है। वृद्धावस्था में जोड़ों में दर्द एवं हड्डियों में पीड़ा होती है।
6. शुक्र का प्रभाव मन को चंचल बनाता है। यही कारण है। कि प्रेम के मामले में ऐसे लोग एक जगह नहीं टिक पाते। यह अपने पार्टनर कई बार बदलते हैं। लेकिन सच्चे प्यार के मिलने पर उसका साथ भी कभी नहीं छोड़ते। यही वजह है। कि इनका वैवाहिक जीवन सफल होता है।
7. अगर इनके स्वभाव के नकारात्मक पहलुओं की बात करें तो घमंड, अहंकार और संयम की कमी अहम है। यह जरूरत से ज्यादा शो-ऑफ करना पसंद करते हैं।
8. अपने शौकों को पूरा करने के चक्कर में इन्हें आर्थिक संकट से भी गुजरना पड़ता है। इनके साथ मजाक थोड़ा सोच-समझकर करना चाहिए, पता नहीं कब यह किस बात का बुरा मान जाएं। कामुकता इनके अंदर की एक और बड़ी कमी होती है।

 

 

शनिवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। वे आलसी और संकोची होते हैं। ऐसे लोग किसी भी कार्य को करने के लिए योजना तो बनाते हैं। लेकिन उन योजनाओं के अनुरूप कार्य नहीं कर पाते। इन लोगों को दोस्ती करते वक्त सावधानी बरतने की जरुरत होती है। परिवार वालों और रिश्तेदारों से भी इन्हें बहुत सुख नहीं मिलता। इनके जीवन में कितने ही कष्ट क्यों आएं, अपने हंसमुख स्वभाव के कारण ये लोग विचलित नहीं होते। शनिवार को जन्मे जातक हल्के गेंहुए,साफ रंग के अपने फन में माहिर लेकिन क्रोधी स्वभाव के होते है। इनकी बहुत जल्दी ही लोगो से अनबन हो जाती है। ये अपने धुन के पक्के होते है। इन्हे जीवन में बहुत उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। लेकिन अंत में विजय इन्ही कि होती है। इन्हे जीवन में बहुत संभल संभल कर चलने कि आदत होती है। जिससे कभी कभी ये आलसी भी हो जाते है। इनके दोस्त बहुत कम होते है। और यह अपने दोस्तों के प्रति ईमानदार होते है। परिवार वालों,रिश्तेदारों और दोस्तों से इन्हे बहुत सुख प्राप्त नहीं होता है। इनको जीवन के 20, 25 और 45 साल की आयु में कुछ दिक्क़ते हो सकती हैं।

1. शनिवार को जन्मे लोग कंजूस होते हैं। ये लोग अपनी बात के पक्के होते हैं। इन्हें अपने जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। लेकिन अंत में इनकी विजय होती है।
2. शनिवार को जन्मे लोग थोड़े क्रोधी स्वभाव के होते हैं। अपनी बात ही उनको सही लगती है। ये सामान्य कद काठी के होते हैं। ये अपनी मेहनत और लगन से पूर्ण शिक्षा प्राप्त करते हैं।
3. इनके जीवन में कितने ही कष्ट क्यों आएं, अपने हंसमुख स्वभाव के कारण ये विचलित नहीं होते, क्योंकि शनि का आशीर्वाद इन पर हमेशा रहता है। ये धोखेबाज नहीं होते, परंतु प्रेम प्रदर्शन भी नहीं करते।
4. ये लोग जिस क्षेत्र में काम करते हैं। उसी में दक्ष हो जाते हैं। वैसे ये लोग विज्ञान, टेक्निकल, कृषि, वाहन सम्बन्धी, भूगोलविद, पुरातत्व के जानकार, जज, आईटी फील्ड, जासूस या गुप्त विभाग, पत्थर-लकड़ी से सम्बंधित कामों में सफलता प्राप्त करते हैं।
5. इन लोगों को अनेक प्रकार के रोग-दोष होते है। नसों से सम्बंधित रोग, हड्डी रोग, गठिया, पथरी, जोडों का दर्द, शारीरिक कमजोरी, सूखा रोग, कर्ण रोग, कमर या पीठ दर्द तथा पांव से जुड़ी बीमारियां इन्हें परेशान करती है।
6. ये अंतर्मुखी प्रतिभा के धनी होते है। योग्य होते हुए भी ये मान-सम्मान कम पाते है। ये बुरे नहीं होते परंतु कई बार परिस्थितियां इन्हें बुरा बनने पर मजबूर कर देती है।
7. ये एकांतप्रिय, प्रकृतिप्रेमी, समाज सुधारक, दूसरों के लिये अवाज उठाने वाले और अनेक दुखों का सामना करने वाले होते है।
8. जीवन के आरंभ में अनेक कष्ट प्राप्त करते हैं। लेकिन इनका बुढ़ापा सुखमय होता है। इन लोगों की शिक्षा में अनेक बाधाएं आती हैं।

 

 

रविवार-- जो लोग शनिवार को पैदा होते हैं। रविवार का संबंध सूर्यदेव से है। सूर्य, सिंह राशि का स्वामी है। सिंह का अर्थ है। शेर और शेर को स्वतंत्रता पसंद होती है। इसलिए रविवार को जन्मे व्यक्ति किसी की अधीनता में कार्य करना पसंद नहीं करते। सामान्य तौर पर भाग्यशाली होते हैं। कम बोलते हैं। और कला एवं शिक्षा के क्षेत्र में मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। धर्म में भी रुचि रखते हैं और फैमिली मेंबर्स के साथ ही दोस्तों और रिश्तेदारों को भी खुश रखने की कोशिश करते हैं। यदि इन लोगों को नेतृत्व का कार्य सौंप दिया जाय तो किसी भी क्षेत्र में बेहतर परिणाम देते हैं। रविवार भगवान सूर्य का दिन है। इस दिन पैदा हुए लोग समान्यता तेजस्वी, भाग्यशाली और दीर्घ आयु वाले होते हैं। कम बोलते हैं। लेकिन सोच समझकर बोलते है। और उनकी बातों का अपना प्रभाव होता है। इन्हे कला, साहित्य, शिक्षा और परामर्श के क्षेत्र में सफलता आसानी से प्राप्त होती है। यह आस्थावान होते है। और परिवार , रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ हमेशा अपना सम्बन्ध बनाये रखते है। 20 से 22 साल की उम्र में इन्हें कठनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

1. रविवार भगवान सूर्य का दिन माना जाता है। इस दिन पैदा हुए लोग सामान्यता तेजस्वी, भाग्यशाली और दीर्घ आयु वाले होते हैं। इस दिन जन्में लोग कम बोलने वाले होते हैं। लेकिन सोच-समझकर बोलते हैं। और उनकी बातो का अपना अलग ही प्रभाव होता है।
2. रविवार को जन्में लोग काफी आस्थावान होते हैं। तथा साथ ही परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ हमेशा अपना अच्छा सम्बन्ध बनाये रखते हैं। इस दिन जन्में लोगों की छवि सभी लोगों से भिन्न होती है। ये दिखने में काफी आकर्षक होते हैं। सामान्यतः ये लोग सभी को पसंद आते हैं। 
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ये लोग काफी संवेदनशील होते हैं। इसलिए किसी की भी बात का अगर इनको बुरा लगता है। तो आप बहुत दिनों तक उसके बारे में सोचते रहते हैं। इनके पास पैसों की कमी नहीं रहती है। ये अपने बल पर पैसे कमाने की क्षमता रखते हैं।
4. ये लोग काफी मेहनती होते हैं। और किसी भी क्षेत्र में अपने कठिन परिश्रमों से ऊचाइयों को छूते हैं। ये लोगो के लिए मिसाल और प्रेरणा बनते हैं।
5. इस दिन जन्में लोग मुख्यत: विज्ञान, टेक्निकल, आईटी फील्ड, इंजीनियर या मेकैनिक के क्षेत्र में कार्य करते हैं।
6. रविवार को जन्म लेने वाले लोगों का दांपत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। परन्तु कभी कभी अपने साथी के कुछ कामों से ये गुस्सा हो जाते हैं। पर उनके सही कार्य में उनका पूरा साथ देते हैं।
7. रविवार को जन्में लोगों को हाई ब्लड प्रेशर, गठिया, तथा नेत्र से संबंधित रोग हो सकते हैं।

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

तिथि फलित

1-- प्रतिपदा तिथि का आध्यात्मिक एवं ज्योतिषीय महत्त्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तिथि का अपना ही एक अलग महत्व है। तिथि के आधार पर ही व्रत, त्योहार और शुभ कार्य किए जाते हैं। सही तिथि पर कार्य करने से चमत्कारी लाभ प्राप्त होते हैं। वैसे तो हर महीने में 30 तिथि होती हैं। क्योंकि एक चंद्र मास में दो पक्ष होते हैं। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष और प्रत्येक पक्ष में 15-15 तिथियां होती है। दोनों पक्षों में 14 तिथियां समान होती है। लेकिन कृष्ण पक्ष की 15वीं तिथि अमावस्या और शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि पूर्णिमा कही जाती है। वहीं हिंदू पंचाग की पहली तिथि प्रतिपदा होती है।

 

प्रतिपदा तिथि

हिंदू पंचाग की पहली तिथि प्रतिपदा है। जिसका मतलब होता है। मार्ग। इसे हिंदी में परेवा या पड़वा कहते हैं। यह तिथि आनंद देने वाली कही गई है। इस तिथि से चंद्रमा अपनी नयी यात्रा पर निकलता है। प्रतिपदा तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 0 डिग्री से 12 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 181 से 192 डिग्री अंश तक होता है। प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्निदेव माने गए हैं। इस तिथि में जन्मे लोगों को अग्निदेव का पूजन अवश्य करना चाहिए।

 

प्रतिपदा तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

यदि प्रतिपदा तिथि रविवार या मंगलवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा प्रतिपदा तिथि शुक्रवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय शुभ कार्य करने की सलाह दी जाती है। हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद माह की प्रतिपदा शून्य होती है। वहीं शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में भगवान शिव का पूजन नहीं करना चाहिए क्योंकि शिव का वास श्मशान में होता है। दूसरी ओर कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में शिव का पूजन करना चाहिए।

शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को जन्मा जातक धनी एवं बुद्धिमान होगा। उन पर माता की विशेष कृपा दृष्टि बनी रहती है। जातक चंद्रमा के बलवान होने के कारण मानसिक रूप से भी बलवान होते हैं। वहीं दूसरी ओर कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में जन्मा जातक बुरी लोगों की संगति में पड़कर बुरी आदतों के शिकार हो सकते हैं। उनके द्वारा किए गए कार्य कभी कभार उनके परिवार को ही हानि पहुंचा सकते हैं।

 

शुभ कार्य

शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि में विवाह, यात्रा, उपनयन, चौल कर्म, वास्तु कर्म गृह प्रवेश आदि मॉगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। इसके विपरीत कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में आप शुभ कार्य कर सकते हैं।

 

प्रतिपदा तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास हिंदू नववर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से ही हिंदू नववर्ष की शुरूआत होती है।

 

गोवर्धन पूजा

दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है। गोवर्धन की पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के पूजन का विधान है। साथ ही अन्नकूट के पूजन का भी विधान है।

 

नवरात्रि का प्रारंभ

साल में 4 बार नवरात्र आते हैं। जिनमें दो गुप्त नवरात्र होते हैं। लेकिन चैत्र, अश्विन, आषाढ़, और माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही नवरात्रि शुरू होती है। नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों का पूजन किया जाता है।

 

 

2-- द्वितीया तिथि का आध्यात्मिक एवं ज्योतिषीय महत्त्व

हिंदू पंचाग की दूसरी तिथि द्वितीया है। इस तिथि को सुमंगला भी कहा जाता है। क्योंकि यह तिथि मंगल करने वाली होती है। इसे हिंदी में दूज, दौज, बीया और बीज कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की दूसरी कला है। इस कला में कृष्ण पक्ष के दौरान भगवान सूर्य अमृत पीकर खुद को ऊर्जावान रखते हैं। और शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को वह चंद्रमा को लौटा देते हैं। द्वितीया तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 13 डिग्री से 24 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में द्वितीया तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 193 से 204 डिग्री अंश तक होता है। द्वितीया तिथि के स्वामी ब्रह्मा जी माने गए हैं। इस तिथि में जन्मे लोगों को ब्रह्मा जी का पूजन अवश्य करना चाहिए।


द्वितीया तिथि का ज्योतिष महत्त्व
यदि द्वितीया तिथि सोमवार या शुक्रवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा किसी माह में यदि द्वितीया तिथि दोनों पक्षों में बुधवार के दिन पड़ती है। तो यह सिद्धिदा कहलाती है। ऐसे समय शुभ कार्य करने से शुभ फल प्राप्त होता है। हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद माह की द्वितीया शून्य होती है। वहीं शुक्ल पक्ष की द्वितीया में भगवान शिव माता पार्वती के समीप होते हैं। ऐसे में शिवजी बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। दूसरी ओर कृष्ण पक्ष की द्वितीया में भगवान शिव का पूजन करना उत्तम नहीं माना जाता है।
द्वितीया तिथि में जन्मे जातक दूसरे लिंग के विपरीत बहुत जल्दी आकर्षित हो जाते हैं। यह भावनात्मक तौर पर बहुत कमजोर होते हैं। इन लोगों को लंबी यात्रा करना बहुत पसंद होता है। ये जातक प्रियजनों से ज्यादा परायों के प्रति अपना प्रेम दर्शाते हैं। ये जातक काफी मेहनती होते हैं। और उन्हें समाज में मान सम्मान भी प्राप्त होता है। इन जातकों का अपनों के साथ हमेशा मतभेद बना रहता है। इनके पास मित्रों की अधिकता होती है। जिसकी वजह से कभी कभार ये बुरी संगति में भी पड़ जाते हैं।

शुभ कार्य
कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है। इसके विपरीत शुक्ल पक्ष की द्वितीया में आप शुभ कार्य नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा किसी भी पक्ष की द्वितीया को नींबू का सेवन करना वर्जित है। साथ ही उबटन लगाना भी शुभ नहीं माना गया है।

द्वितीया तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास
भाई दूज दीपावली के तीसरे दिन भाईदूज का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन यमराज के पूजन का भी महत्व होता है। इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस पर्व पर बहन अपने भाई को तिलक करती है। और यम की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय भी समाप्त हो जाता है।

जगन्नाथपुरी रथयात्रा
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ओडिशा स्थित जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ की यात्रा पर्व मनाया जाता है। इसमें श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की शोभायात्रा निकाली जाती है।

अशून्य शयन व्रत
अशून्य शयन व्रत श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया का रखा जाता है। इस व्रत में श्रीविष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस व्रत को रखने से स्त्री को सौभाग्य प्राप्त होता है। और दांपत्य जीवन सुखी रहता है।

नारद जयंती
ब्रह्मा जी के मानस पुत्र नारद जी का ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन नारद जयंती मनाई जाती है। इस दिन नारद जी के पूजन के साथ भगवान विष्णु का भी पूजन किया जाता है।

यम द्वितीया
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को पूर्व काल में [ यमुना ] ने यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। उस दिन नारकी जीवों को यातना से छुटकारा मिला और उन्हें तृप्त किया गया। वे पाप-मुक्त होकर सब बंधनों से छुटकारा पा गये और सब के सब यहां अपनी इच्छा के अनुसार सन्तोषपूर्वक रहे। उन सब ने मिलकर एक महान् उत्सव मनाया जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इसीलिए यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से विख्यात हुई। जिस तिथि को यमुना ने यम को अपने घर भोजन कराया था, उस तिथि के दिन जो मनुष्य अपनी बहन के हाथ का उत्तम भोजन करता है। उसे उत्तम भोजन समेत धन की प्राप्ति भी होती रहती है।

पद्म पुराण में कहा गया है। कि कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को पूर्वाह्न में यम की पूजा करके यमुना में स्नान करने वाला मनुष्य यमलोक को नहीं देखता ( अर्थात उसको मुक्ति प्राप्त हो जाती है। )

फल द्वितिया महात्म्य
राजा शतानीक ने कहा- मुने कृपा कर आप फल द्वितीया का विधान कहें जिसके करने से स्त्री विधवा नहीं होती और पति-पत्नी का परस्पर वियोग भी नहीं होता।

सुमन्तु मुनि ने कहा- राजन में फल द्वितीया का विधान कहता हूं इसी का नाम अशुन्यशयना द्वितीया भी है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से स्त्री विधवा नहीं होती और स्त्री पुरुष का परस्पर वियोग भी नहीं होता। क्षीर सागर में लक्ष्मी के समान भगवान विष्णु के शयन करने के समय यह व्रत होता है। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया के दिन लक्ष्मी के साथ श्रीवत्स धारी भगवान श्री विष्णु का पूजन कर हाथ जोड़कर इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए।

श्रीवत्स धारिचरिञ्छ्कान्त श्रीवत्स श्रीपते व्यय।
गार्हस्थ्यं मा प्रनाशं में यातु धर्मार्थकामदं।।
गावश्च मा प्रणस्यन्तु मा प्रणस्यन्तु में जनाः।।
जामयो मा प्रणस्यन्तु मत्तो दाम्पत्यभेदतः।
लक्ष्म्या वियुज्येहं देव कदाचिद्दाथा भवान।।
तथा कलत्रसम्बन्धो देव मा में व्युजयतां
लक्ष्म्या शून्यं वरद यथा ते शयनं सदा।।
शय्या ममाप्यशून्यास्तु तथा तु मधुसूदन।

इस प्रकार विष्णु की प्रार्थना करके व्रत करना चाहिए जो फल भगवान को प्रिय है। उन्हें भगवान की शैया पर समर्पित करना चाहिए और स्वयं भी रात्रि के समय उन्हीं फलों को खा कर दूसरे दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिए।
राजा शतानीक ने पूछा- महामुनि भगवान विष्णु को कौन से फल प्रिय हैं। आप उन्हें बताएं दूसरे दिन ब्राह्मण को क्या दान देना चाहिए? उसे भी कहें।
सुमन्तु मुनि बोले- राजन उस ऋतु में जो भी फल हो और पक्के हो उन्हीं को भगवान विष्णु के लिए समर्पित करना चाहिए। कड़वे कच्चे तथा खट्टे फल उनकी सेवा में नहीं चढ़ाने चाहिए। भगवान विष्णु को खजूर नारीकेल मातुलङ्ग अर्थात बिजोरा आदि मधुर फलों को समर्पित करना चाहिए। भगवान मधुर फलों से प्रसन्न होते हैं। दूसरे दिन ब्राह्मणों को भी इसी प्रकार के मधुर फल वस्त्र अन्न तथा स्वर्ण का दान देना चाहिए। इस प्रकार जो पुरुष मार्च तक व्रत करता है। उसका 3 जन्मों तक गृहस्थी जीवन नष्ट नहीं होता और ना तो ऐश्वर्या की कमी होती है। जो स्त्री इस व्रत को करती है। वह 3 जन्मों तक ना विधवा होती है। ना दुर्भागा और ना पति से पृथक ही रहती है। इस व्रत के दिन अश्विनी कुमारों की भी पूजा करनी चाहिए। राजन इस प्रकार मैंने द्वितीया कल्प का वर्णन किया है।

 

 

3-- तृतीया तिथि का आध्यात्मिक एवं ज्योतिषीय महत्त्व

भारतीय ज्योतिषीय गणना के अनुसार तृतीया तिथि आरोग्यदायिनी होती है। एवं इसे सबला नाम से भी जाना जाता है।

इसकी स्वामिनी माँ गौरी है। इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति का माता गौरी की पूजा करना कल्याणकारी रहता है। इस तिथि को जया तिथि के अन्तर्गत रखा गया है। अपने नाम के अनुरुप ये तिथि कार्यों में विजय प्रदान कराने वाली होती है। ऐसे में इस तिथि के दिन किसी पर या किसी काम में आपको जीत हासिल करनी हो तो उसके लिए इस तिथि का चयन बेहद अनुकूल माना जा सकता है। इस तिथि में सैन्य, शक्ति संग्रह, कोर्ट-कचहरी के मामले निपटाना, शस्त्र खरीदना, वाहन खरीदना जैसे काम करना अच्छा माना जाता है।

 

तृतीया में वार तिथि का योग

तिथियों से सुयोग, कुयोग, शुभ-अशुभ मुहूर्त का निर्माण होता है। तृतीया तिथि बुधवार के दिन हो तो मृत्यु योग बनता है। यह योग चन्द्र के दोनों पक्षों में बनता है। इसके अतिरिक्त किसी भी पक्ष में मंगलवार के दिन तृतीया तिथि हो तो सिद्ध योग बनाता है। इस योग में सभी कार्य करने शुभ होते है। बुधवार के साथ मिलकर यह तिथि दग्ध योग बनाती है। दग्ध योग में सभी शुभ कार्य करने वर्जित होते है। तृतीया तिथि में शिव पूजन निषिद्ध होता है। दोनों पक्षों की तृतीया तिथि में भगवान शिव का पूजन नहीं करना चाहिए। यह माना जाता है। कि इस तिथि में भगवान शिव क्रीडा कर रहे होते है।

तृतीया तिथि में शिल्पकला अथवा शिल्प संबंधी अन्य कार्यों में, सीमन्तोनयन, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, राज-संबंधी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं।

 

तृतीया तिथि में जन्मे व्यक्ति के गुण

जिस व्यक्ति का जन्म तृतीया तिथि में हुआ हो, वह व्यक्ति सफलता के लिए प्रयासरहित होता है। मेहनत करने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। तथा ऎसा व्यक्ति दूसरों से द्वेष रखने वाला होता है। जातक कुछ आलसी प्रवृत्ति का भी हो सकता है। कई बार अपने ही प्रयासों की कमी के कारण मिलने वाले लाभ को पाने से भी वंचित रह जाता है।

इस तिथि में जन्मा जातक अपने विचारों पर बहुत अधिक नहीं टिक पाता है। किसी किसी कारण से मन में बदलाव लगा ही रहता है। ऎसे में जातक को यदि किसी ऎसे व्यक्ति का साथ मिल पाता है। जो उसे सही गलत के प्रति सजग कर सके तो जातक जीवन में सफलता पा सकने में सक्षम हो सकता है।

आर्थिक क्षेत्र में संघर्ष बना रहता है। इसका मुख्य कारण जातक की दूसरों पर अत्यधिक निर्भरता होना भी होता है। वह स्वयं बहुत अधिक संघर्ष की कोशिश नहीं करता आसान रास्ते खोजता है। ऎसे में कई बार कम चीजों पर भी निर्भर रहना सिख जाता है। जातक को घूमने फिरने का शौक कम ही होता है। जातक एक सफल प्रेमी होता है। अपने परिवार के प्रति भी लगाव रखता है।

 

तृतीया तिथि के पर्व

तृतीया तिथि समय भी बहुत से पर्व मनाए जाते हैं। कज्जली तृतीया, गौरी तृतीया (हरितालिका तृतीया), सौभाग्य सुंदरी इत्यादि बहुत से व्रत और पर्वों का आयोजन किसी किसी माह की तृतीया तिथि के दिन संपन्न होता है। तृतीया तिथि के दिन मनाए जाने वाले कुछ मुख्य त्यौहार इस प्रकार हैं।

अक्षय तृतीया - वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती के रुप में मना जाता है। इस दिन को एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुहूर्त के रुप में भी मान्यता प्राप्त है। इसी कारण इस दिन बिना मुहूर्त निकाले विवाह, गृह प्रवेश इत्यादि शुभ मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं। इसके साथ ही इस दिन स्नान, दान, जप, होम आदि करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है।

 

गणगौर तृतीया -चैत्र शुक्ल तृतीया को किया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रुप से सौभाग्य की कामना के लिए किया जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियां पति की मंगल कामना के लिए व्रत भी रखते हैं। इस दिन भगवान शिव-पार्वती की मूर्तियों को स्थापित करके पूजन किया जाता है। इस दिन देवी-देवताओं को झूले में झुलाने का भी विधि-विधान रहा है।

 

केदारनाथ बद्रीनाथ यात्रा का आरंभ

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन ही गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदीनाथ यात्रा का आरंभ हो जाता है। इस दिन केदारनाथ और बदीनाथ मंदिर के कपाट खुल जाते हैं। और चारधाम की यात्रा का आरंभ होता है।

 

रम्भा तृतीया - ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया के दिन रम्भा तृतीया मनाई जाती है। इसे रंभा तीज व्रत भी कहते हैं। इस दिन व्रत और पूजन विवाहित स्त्रीयां अपने पति की लम्बी आयु और संतान प्राप्ति एवं संतान के सुख हेतु करती हैं। अविवाहित कन्याएं योग्य जीवन साथी को पाने की इच्छा से ये व्रत करती हैं।

 

तीज - श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज उत्सव मनाया जाता है। तीज के समय प्रकृति में भी सुंदर छठा दिखाई देती है। इस त्यौहार में पेड़ों पर झूले डाले जाते हैं। और झूले जाते हैं। महिलाएं इस दिन विशेष रुप से व्रत रखती हैं। इसे हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है।

वराह जयंती- भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को वाराह जयंती के रुप में मनाई जाती है। भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक है। वराह अवतार। वाराह अवतार में भगवान विष्णु पृथ्वी को बचाते हैं। हरिण्याक्ष का वध करने हेतु भगवान श्री विष्णु वराह अवतार के रूप में प्रकट होते हैं।

 

 

4-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में चतुर्थी तिथि का महत्त्व

हिंदू पंचाग की चौथी तिथि चतुर्थी है। इस तिथि को खला के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इस तिथि में शुरू किए गए कार्य का विशेष फल नहीं मिलता है। इसे हिंदी में चतुर्थी, चउथि, चैथ और चडत्थी भी कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की चौथी कला है। इस कला में अमृत का पान जल के देवता वरुण करते हैं। और शुक्ल पक्ष में चंद्रमा को वापस कर देते हैं। चतुर्थी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 37 डिग्री से 48 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में चतुर्थी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 117 से 228 डिग्री अंश तक होता है। चतुर्थी तिथि के स्वामी प्रथमपूज्य गणपित माने गए हैं। जीवन में शुभता लाने के लिए इस तिथि में जन्मे लोगों को भगवान गणेश का पूजन अवश्य करना चाहिए।

 

चतुर्थी तिथि का ज्योतिष महत्त्व

यदि चतुर्थी तिथि गुरुवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा चतुर्थी तिथि शनिवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि चतुर्थी तिथि रिक्ता तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में भगवान शिव का पूजन नहीं करना चाहिए लेकिन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी में शिव का वास कैलाश पर होता है। इसलिए उनका पूजन करने से शुभ फल प्राप्त होता है।

चतुर्थी तिथि में जन्मे जातक विद्वान और ज्ञानी होते हैं। लेकिन वे भौतिक सुख-सुविधाओं के आदी भी होते हैं। उन्हें दान कार्यों में भी रुचि होती है। ऐसे लोगों को मित्रों के प्रति स्नेह भी बहुत होता है। इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति के पास धन की कमी नहीं होती है। और संतानसुख भी प्राप्त होता है।

 

चतुर्थी तिथि के शुभ कार्य

कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि में विद्युत कर्म, बन्धन, शस्त्र विषय, अग्नि आदि से सम्बन्धित कार्य करने चाहिए। इसके विपरीत शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में आप शुभ कार्य नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा किसी भी पक्ष की चतुर्थी तिथि में मूली और बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए।

चतुर्थी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास

विनायक चतुर्थी

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या या अमावस्या के बाद की चतुर्थी (chaturthi) को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। इस तिथि को गणेश जी का जन्मदिन माना जाता है। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में प्रगति और सफलता प्राप्त होती है।

संकष्टी चतुर्थी

उत्तर भारत में माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। मान्यता है। कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

अंगारकी चतुर्थी

चंद्र मास में के दोनों पक्षों में से किसी भी पक्ष में जब चतुर्थी मंगलवार के दिन पड़ती है। तो उसे अंगारकी चतुर्थी कहते हैं। इस दिन गणेश जी की पूजा करने का विधान है। यह व्रत करने से पूरे सालभर के चतुर्थी व्रत रखने का फल प्राप्त होता है।

गणेश चतुर्थी

10 दिन तक चलने वाले गणेशोत्सव की शुरुआत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से ही होती है। इस दिन को गणेश चतुर्थी के नाम भी जाना जाता है। गणेशोत्सव को धूमधाम से पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। मान्यता है। कि विघ्नहर्ता का पूजन करने से जीवन की समस्त बाधाओं का अन्त होता है। तथा गणपति अपने भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों की वर्षा करते हैं।

 

 

5--- आध्यात्म एवं ज्योतिष में पंचमी तिथि का महत्त्व

हिंदू पंचाग की पांचवी तिथि पंचमी है। इस तिथि को श्रीमती और पूर्णा तिथि के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इस तिथि में शुरू किए गए कार्य का विशेष फल प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में पंचमी तिथि को सबसे महत्वपूर्ण तिथि माना जाता है। पंचमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 49 डिग्री से 60 डिग्री अंश तक होता है। यह तिथि चंद्रमा की पांचवी कला है। इस कला में अमृत का पान वषटरकार करते हैं। वहीं कृष्ण पक्ष में पंचमी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 229 से 240 डिग्री अंश तक होता है। पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता माने गए हैं। जीवन में संकटों को दूर करने के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को नाग देवता और भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।

पंचमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

यदि पंचमी तिथि शनिवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा पंचमी तिथि गुरुवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। वहीं पौष माह के दोनों पक्षों की पंचमी तिथि शून्य फल देती है। वहीं शुक्ल पक्ष की पंचमी में भगवान शिव का वास कैलाश पर होता है। और कृष्ण पक्ष की पंचमी में शिव का वास वृषभ पर होता है। इसलिए दोनों पक्षों में शिव का पूजन करने से शुभ फल प्राप्त होता है।

पंचमी तिथि में जन्मे जातक व्यवहारकुशल और ज्ञानी होते हैं। ये लोग मातृपितृ भक्त होते हैं। इन्हें दान और धार्मिक कार्यों में रुचि होती है। ये जातक हमेशा न्याय के मार्ग पर चलते हैं। इस तिथि में जन्मे लोग कार्यों के प्रति निष्ठावान और सजग होते हैं। इन लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त होती है। और विदेश यात्रा भी करते हैं। ये अपने गुणों की वजह से समाज में मान-सम्मान भी प्राप्त करते हैं।

पंचमी तिथि में किये जाने वाले शुभ कार्य

कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि में में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है। वैसे तो पंचमी तिथि सभी प्रवृतियों के लिए यह तिथि उपयुक्त मानी गई है। लेकिन इस तिथि में किसी को ऋण देना वर्जित माना गया है। और शुक्ल पक्ष की पंचमी में आप शुभ कार्य नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा किसी भी पक्ष की पंचमी तिथि में कटहल, बेला और खटाई का सेवन नहीं करना चाहिए।

पंचमी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास

ऋषि पंचमी

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। इस दिन सप्तऋषियों की पूजा अर्चना करने का विधान है। मान्यता है। कि यदि कोई भी स्त्री शुद्ध मन से इस व्रत को करें तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। और अगले जन्म में उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

रंग पंचमी

महाराष्ट्र में खासतौर पर मनाया जाने वाला पर्व रंगपंचमी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। कहा जाता है। कि इस दिन देवी-देवताओं की होली होती है। रंगपंचमी अनिष्टकारी शक्तियों पर विजय प्राप्ति का उत्सव भी है।

नाग पंचमी

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा अर्चना की जाती है। कहा जाता है। कि इस दिन पूजा करने से कुंडली में स्थित कालसर्प दोष समाप्त हो जाता है।

विवाह पंचमी

मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को विवाह पंचमी का पर्व मनाते हैं। इस तिथि में भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था। इस पावन दिन सभी को राम-सीता की आराधना करते हुए अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।

बसंत पंचमी

माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी कहा जाता है। इस दिन बुद्धि की देवी मां सरस्वती का प्रादुर्भाव हुआ था। इसलिए इस दिन मां सरस्वती के पूजन का विधान है। गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस तिथि को शुभ माना जाता है।

सौभाग्य पंचमी

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को सौभाग्य पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। यह दिन व्यापारियों के लिए बेहद शुभ होता है।

लक्ष्मी पंचमी

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को लक्ष्मी पंचमी कहते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस तिथि को व्रत रखने से घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य से भरापूरा रहता है।

 

 

6-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में छठी तिथि का महत्त्व

हिंदू पंचाग की तिथि छठी कहलाती है। चन्द्र मास के दोनों पक्षों की छठी तिथि, षष्टी तिथि कहलाती है। शुक्ल पक्ष में आने वाली तिथि शुक्ल पक्ष की षष्टी तथा कृष्ण पक्ष में आने वाली कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि कहलाती है। षष्ठी तिथि के स्वामी भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र स्कन्द कुमार है। जिन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है।

षष्ठी तिथि वार योग

षष्टी तिथि जिस पक्ष में रविवार मंगलवार के दिन होती है। उस दिन यह मृत्युदा योग बनता है। इसके विपरीत षष्ठी तिथि शुक्रवार के दिन हो तो सिद्धिदा योग बनता है।

यह तिथि नन्दा तिथि है। तथा इस तिथि के शुक्ल पक्ष में शिव का पूजन करना अनुकुल होता है। पर कृष्ण पक्ष की षष्ठी को शिव का पूजन नहीं करना चाहिए।

षष्ठी तिथि में किए जाने वाले काम

षष्ठी तिथि को काम में सफलता दिलाने वाला कहा जाता है। इस तिथि में कठोर कर्म करने की बात भी कही जाती है। जो कठिन कार्य जैसे घर बनवाना, शिल्प के काम या युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शस्त्र बनाना इत्यादि को इस तिथि में करना अच्छा माना गया है। कोई ऎसा कठोर कार्य करने वाले हैं। जिसमें सफलता की इच्छा रखते है। तो उसे इस तिथि के दौरान किया जा सकता है।

मेहनत के कामों को भी इसी दौरान करना अच्छा होता है। वास्तुकर्म, गृहारम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे काम भी इस तिथि में किए जा सकते हैं।

षष्ठी तिथि में जन्मे व्यक्ति स्वभाव

षष्ठी तिथि में व्यक्ति का जन्म होने पर व्यक्ति घूमने फिरने का शौक रखता है। अपने इसी शौक के कारण जातक को देश-विदेश में घूमने के मौके भी मिलते हैं। नए स्थानों पर जाने और उस माहौल को समझने कि कोशिश करता है। वह स्वभाव से झगडालू प्रकृति का होता है। तथा उसे उदर रोग कष्ट दे सकते है।

इस तिथि में जन्मा जातक संघर्ष करने की हिम्मत रखता है। जातक में जोश और उत्साह रहता है। वह अपने कामों के लिए दूसरों पर निर्भर रहने की इच्छा कम ही रखता है। अपने काम को करने के लिए लगातार प्रयास करने से दूर नहीं हटता है। जातक में अपनी बात को मनवाने की प्रवृत्ति भी होती है। वह सामाजिक रुप में मेल-जोल अधिक रखता हो पर उसकी पहचान सभी के साथ होती है।

जातक में अधिक गुस्सा हो सकता है। उसके स्वभाव में मेल-जोल की भावना कम हो सकती है। वह स्वयं में अधिक रहना पसंद कर सकता है। जातक दूसरों को समझता है। तभी अपने मन की बात औरों के साथ शेयर करनी की कोशिश करता है। इन्हें मनाना आसान भी नहीं होता है।

बहुत जल्दी किसी को पसंद नही करता है। लेकिन जब पसंद करता है। तो उसके प्रति निष्ठा भाव भी रखता है। कई बार अपनी जिद के कारण कुछ बातों पर असफल होने पर निराशावादी भी हो सकता है। कई बार आत्मघाती भी बन सकता है। गुस्से के कारण दूसरे इससे परेशान रहेंगे लेकिन अपने व्यवहार में माहौल के अनुरुप ढलने की कोशिश भी करता है।

षष्ठी तिथि मे मनाए जाने वाले मुख्य पर्व

षष्ठी तिथि के दौरान बहुत से उत्सवों का नाम आता है। जिसमें स्कंद षष्ठी, छठ पर्व, हल षष्ठ, चंदन षष्ठी, अरण्य षष्ठी नामक पर्व इस षष्ठी तिथि को मनाए जाते हैं। देश के विभिन्न भागों में किसी किसी रुप में इस तिथि का संबंध प्रकृति और जीवन को प्रभवित अवश्य करता है।

हल षष्ठी

भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हल षष्ठी के रुप में मनाया जाता है। षष्ठी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था जिस कारण इस तिथि को हल षष्ठी के रुप में भी मनाया जाता है। इस दिन उनके शस्त्र हल की पूजा का भी विधान है। इस दिन संतान की प्राप्ति एवं संतान सुख की कामना के लिए स्त्रियां व्रत भी रखती हैं।

स्कंद षष्ठी

स्कंद षष्ठी पर्व के बारे में उल्लेखनीय बात है। की आषाढ़ शुक्ल पक्ष की षष्ठी और कार्तिक मास कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द-षष्ठी के नाम से मनाया जाता है। इस तिथि को भगवान शिव के पुत्र स्कंद का जन्म हुआ था. स्कंद षष्ठी के दिन व्रत और भगवान स्कंद की पूजा का विधान बताया गया है।

चंद्र षष्ठी

आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को चंद्र षष्ठी के रुप में मनाया जाता है। इस समय पर चंद्र देव की पूजा की जाती है। रात्रि समय चंद्रमा को अर्ध्य देकर व्रत संपन्न होता है।

चम्पा षष्ठी

चम्पा षष्ठी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। मान्यता है की इस व्रत को करने से पापों से मुक्ति मिलती है। और भगवान शिव का आशिर्वाद मिलता है।

सूर्य षष्ठी

सूर्य षष्ठी व्रत भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा का विधान है। भगवान सूर्य की पूजा के साथ गायत्री मंत्र का जाप करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस दिन किए गया व्रत एवं पूजा पाठ सौभाग्य और संतान, आरोग्य को प्रदान करता है। सूर्योदय के समय भगवान सूर्य की पूजा स्तूती पाठ करना चाहिए।

विशेष षष्ठी तिथि संतान के सुख और जीवन में सौभाग्य को दर्शाती है। इस तिथि में आने वाले व्रत भी इस तिथि की सार्थकता को दर्शाते हैं। यह नंदा तिथि को शुभ तिथियों में स्थान प्राप्त है। इस तिथि में मौज मस्ती से भरे काम करना भी अच्छा होता है।

 

 

7-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में सप्तमी तिथि का महत्त्व

हिंदू पंचाग की सातवी तिथि सप्तमी कहलाती है। इस तिथि को मित्रापदा भी कहते हैं। सप्तमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 73 डिग्री से 84 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में सप्तमी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 253 से 264 डिग्री अंश तक होता है। सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्यदेव माने गए हैं। मान सम्मान में व़द्धि और उत्तम व्यक्तित्व के लिए इस तिथि में जन्मे लोगों को भगवान सूर्यदेव का पूजन अवश्य करना चाहिए।

सप्तमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

यदि सप्तमी तिथि सोमवार और शुक्रवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा सप्तमी तिथि बुधवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि सप्तमी तिथि भद्र तिथियों की श्रेणी में आती है। यदि किसी भी पक्ष में सप्तमी शुक्रवार के दिन पड़ती है। तो क्रकच योग बनाती है। जो अशुभ होता है। जिसमें शुभ कार्य निषिद्ध होते हैं। वहीं शुक्ल पक्ष की सप्तमी में भगवान शिव का पूजन करना चाहिए लेकिन कृष्ण पक्ष की सप्तमी में शिव का पूजन करना वर्जित है। ज्योतिष के अनुसार सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा का दिन माना जाता है, जो संकटों का नाश करने वाली हैं।

सप्तमी तिथि में जन्मे जातक अपने कार्यों को लेकर सजग और जिम्मेदार होते हैं। जिसकी वजह से इनके द्वारा किए गए कार्य हमेशा सफल होते हैं। सूर्य स्वामी होने की वजह से इनमें नेतृत्व का गुण पाया जाता है। इन लोगों को मेल मिलाप करना पसंद नहीं होता है। लेकिन ये लोग घूमने का शौक रखते हैं। ये जातक धनवान होते हैं। और मेहनत से किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश करते रहते हैं। इन लोगों में प्रतिभा कूट-कूटकर भरी होती है। इस तिथि में जन्मे जातक कलाकार भी होते हैं। इन व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली होता है। लेकिन इन जातकों को जीवनसाथी का भरपूर सहयोग नहीं मिलता है। जिसकी वजह से तनाव झेलना पड़ता है। इन जातकों को संतान की तरफ से प्रेम और साथ जरूर मिलता है। जिसकी वजह से मन में संतोष बना रहता है।

सप्तमी में किये जाने वाले शुभ कार्य

सप्तमी तिथि में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है। इस तिथि पर किसी नए स्थान पर जाना, नई चीजों खरीदना शुभ माना गया है। इस तिथि में चूड़ाकर्म, अन्नप्राशन और उपनयन जैसे संस्कार करना उत्तम माना जाता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की सप्तमी तिथि में तेल और नीले वस्त्रों को धारण नहीं करना चाहिए। साथ ही तांबे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।

सप्तमी तिथि के प्रमुख त्यौहार एवं व्रत उपवास

शीतला सप्तमी - चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी मनाई जाती है। इस तिथि पर माता शीतला का पूजन किया जाता है। जो चिकन पॉक्स या चेचक नामक रोग दूर करने वाली माता हैं। इस दिन व्रतधारी घर पर चूल्हा नहीं जलते हैं। बल्कि बासी भोजन ग्रहण करते हैं।

संतान सप्तमी - भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को ललिता सप्तमी मनाई जाती है। इस तिथि पर सभी माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए संतान सप्तमी का व्रत रखती हैं। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है।

गंगा सप्तमी - वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा सप्तमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भागीरथ को गंगा माता को धरती पर लाने में कामयाबी मिली थी। इस  दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है।

विष्णु सप्तमी - विष्णु सप्तमी मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनायी जाती है। इस तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। इस दिन व्रत करने से अधूरे या रुके हुए काम पूरे हो जाते हैं।

रथ आरोग्य सप्तमी - माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ आरोग्य सप्तमी कहते हैं। इस दिन व्रत करने से कुष्ठ रोग नहीं होता है। और जिसको होता है उसे मुक्ति मिल जाती है। क्योंकि इस तिथि पर श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ने व्रत किया था और उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई थी।

 

 

8-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में अष्टमी तिथि का महत्त्व

हिंदू पंचाग की आठवी तिथि अष्टमी कहलाती है। इस तिथि का विशेष नाम कलावती है। क्योंकि इस तिथि में कई तरह की कलाएं और विधाएं सीखना लाभकारी होता है। इसे हिंदी में अष्टमी, अठमी और आठें भी कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की आठवी कला है। इस कला में अमृत का पान अजेकपात नाम के देवता करते हैं। अष्टमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 85 डिग्री से 96 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि का  निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 265 से 276 डिग्री अंश तक होता है। अष्टमी तिथि के स्वामी भगवान शिव माने गए हैं। लेकिन अष्टमी तिथि देवी दुर्गा की शक्ति के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। जीवन जीने की शक्ति और परेशानियों से लड़ने के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को भगवान शिव और मां दुर्गा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

 

अष्टमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

यदि अष्टमी तिथि बुधवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा अष्टमी तिथि मंगलवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि अष्टमी तिथि जया तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं शुक्ल पक्ष की अष्टमी में भगवान शिव का पूजन करना वर्जित है। लेकिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी में शिव का पूजन करना उत्तम माना गया है। चैत्र महीने के दोनों पक्षों में पड़ने वाली अष्टमी तिथि शून्य कही गई है।

अष्टमी तिथि में जन्मे जातक धार्मिक कार्यों में निपुण और दयावान भी होते हैं। इन्हें सदैव सत्य बोलना पसंद होता है। ये भौतिक सुख-सुविधाओं में विशेष रुचि लेते हैं। इस तिथि में जन्म लेने वाले लोग कई चीजों में विद्वान होते हैं। इनके मन में हमेशा समाज के कल्याण की इच्छा जागती रहती है। ये लोग किसी भी कार्य को करने के लिए मेहनत मे कमी नहीं छोड़ते हैं। इनको घूमना बहुत पसंद होता है। ये लोग उन कार्यों में भाग लेना ज्यादा पसंद करते हैं। जिनमें बल का इस्तेमाल करना पड़ता हो। ये लोग मनमौजी स्वभाव के होते हैं। अपनी मर्जी से नियम बनाते हैं। और खुद ही पालन भी करते हैं।

 

अष्टमी तिथि के शुभ कार्य

अष्टमी तिथि में युद्ध, राजप्रमोद, लेखन, स्त्रियों को आभूषण, नये वस्त्र खरीदने जैसे कार्य करने चाहिए। मान्यता है कि इस तिथि में अभिनय, नृत्य, गायन कला सीखने के लिए प्रवेश लेना भी शुभ है। इस तिथि में आप वास्तुकर्म, घर बनवाना, शस्त्र बनवाने जैसे कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। इसके अलावा किसी भी पक्ष की अष्टमी तिथि में नारियल नहीं खाना चाहिए।

 

अष्टमी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी- जन्माष्टमी का त्यौहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मथुरा नगरी में असुरराज कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को पैदा हुए। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि (आधी रात) थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

अहोई अष्टमी  - अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को आता है| इस दिन अहोई माता के पूजन का विधान  है। इस तिथि पर महिलाएं पुत्र प्राप्ति और संतान सुख के लिए व्रत रखती हैं। और शाम के वक्त तारे देखकर उपवास तोड़ा जाता है।

 

शीतला अष्टमी - चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी मनाई जाती है। इस तिथि पर शीतला माता की पूजा की जाती है। जिससे चिकन पॉक्स या चेचक जैसे रोग दूर रहें। इस दिन बासी भोजन खाया जाता है।

 

दुर्गाष्टमी - नवरात्र में अष्टमी के दिन देवी दुर्गा की आठवी शक्ति माता महागौरी का पूजन किया जाता है। इस दिन घरों में कन्याभोज भी कराया जाता है।

 

सीता अष्टमी - फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सीता अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन धरती पर माता सीता का जन्म हुआ था। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए और अविवाहित कन्याओं मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं।

 

राधा अष्टमी - भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधा अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है। कि इस दिन राधा जी का जन्म हुआ था। इस तिथि पर राधारानी की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करने से आपको राधारानी के साथ भगवान कृष्ण की कृपा भी मिल जाती है।

 

 

9-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में नवमी तिथि का महत्त्व

हिंदू पंचाग की नौवीं तिथि नवमी कहलाती है। इस तिथि का नाम उग्रा भी है। क्योंकि इस तिथि में शुभ कार्य करना वर्जित होता है। इसे हिंदी में नवमी, नौवीं भी कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की नौवीं कला है। इस कला में अमृत का पान मृत्यु के देवता यमराज करते हैं। नवमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 97 डिग्री से 108 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में नवमी तिथि का  निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 277 से 288 डिग्री अंश तक होता है। नवमी तिथि की स्वामिनी देवी दुर्गा को माना गया है। इस तिथि में जन्मे जातकों को मां दुर्गा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

नवमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

यदि नवमी तिथि गुरुवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा नवमी तिथि शनिवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि नवमी तिथि रिक्त तिथियों की श्रेणी में आती है। इस तिथि में किए गए कार्यों की कार्यसिद्धि रिक्त होती है। वहीं शुक्ल पक्ष की नवमी में भगवान शिव का पूजन करना वर्जित है। लेकिन कृष्ण पक्ष की नवमी में शिव का पूजन करना उत्तम माना गया है। चैत्र महीने के दोनों पक्षों में पड़ने वाली नवमी तिथि शून्य कही गई है।

नवमी तिथि में जन्मे जातक कई विद्याओं में निपुण होते हैं। ये जातक जीवन में किसी भी तरह से सफल होने का प्रयास करते रहते हैं। और कई बार सफल भी हो जाते हैं। इनको धन कमाने की हमेशा लालसा रहती है। ये लोग विपरीत लिंग और धन दोनों के लिए महत्वाकांक्षी होते हैं। ये लोग अपने भाई-बंधुओं के प्रति प्रेम रखते हैं। इनको पिता और वरिष्ठजनों से हमेशा सहयोग मिलता रहता है। इनके अंदर कठिन कार्यों को करने की क्षमता होती है। इस तिथि में जन्म लोग त्याग और समर्पण की भावना रखते हैं। ये लोग प्रेम के मामले में सामान्य रहते हैं। और अपने साथी के प्रति निष्ठा रखते हैं। इन लोगों में हर वक्त जीतने का जुनून बना रहता है।

नवमी तिथि के शुभ कार्य

नवमी तिथि में विद्युत कर्म, बन्धन, शस्त्र विषय, अग्नि आदि से सम्बन्धित कार्य करने चाहिए। मान्यता है। कि इस तिथि में कठिन कार्य जैसे शिकार करना, वाद विवाद करना, हथियार निर्माण शुरू करने चाहिए। इसके अलावा किसी भी पक्ष की नवमी तिथि में लौकी और कद्दू नहीं खाना चाहिए।

 

नवमी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास

महानवमी - नवरात्र का नौवा दिन देवी दुर्गा की नौवीं शक्ति माता सिद्धिदात्री का होता है।  इस दिन साधना करने वाले साधकों को सभी दिव्य सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

 

महानंदा नवमी - मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानंदा नवमी मनाई जाती है। इस तिथि पर माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है। इस दिन व्रत करने से दरिद्रता दूर हो जाती है।

 

अक्षय नवमी - कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी या आंवला नवमी मनाई जाती है। इस तिथि पर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और पारिवारिक सुख के लिए व्रत रखती हैं।

 

रामनवमी - चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को भारतवर्ष में लोग रामनवमी का पर्व मनाते हैं। इस तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्म धरती पर हुआ था। इस दिन भगवान राम के पूजन का विधान है। इस दिन व्रत रखने से पारिवारिक सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।

 

 

10-- आध्यात्म एवं ज्योतिष में दशमी तिथि का महत्त्व

हिंदू पंचाग की दसवीं तिथि दशमी कहलाती है। इस तिथि का नाम धर्मिणी भी है। क्योंकि इस तिथि में शुभ कार्य करने से शुभ फल प्राप्त होता है। इसे हिंदी में द्रव्यदा भी कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की दसवीं कला है। इस कला में अमृत का पान वायुदेव करते हैं। दशमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 109 डिग्री से 120 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि का  निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 289 से 300 डिग्री अंश तक होता है। दशमी तिथि के स्वामी यमराज को माना गया है। आरोग्य और दीर्घायु प्राप्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को यमदेव की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

 

दशमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

यदि दशमी तिथि शनिवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा दशमी तिथि गुरुवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि दशमी तिथि पूर्णा तिथियों की श्रेणी में आती है। इस तिथि में किए गए कार्यों की कार्य पूर्ण होते हैं। वहीं किसी भी पक्ष की दशमी तिथि पर भगवान शिव का पूजन करना वर्जित माना जाता है। आश्विन महीने के दोनों पक्षों में पड़ने वाली दशमी तिथि शून्य कही गई है।

दशमी तिथि में जन्मे जातक को धर्म और अर्धम का ज्ञान भलीभांति होता है। उनमें देशभक्ति कूट कूटकर भरी होती है। ये लोग धार्मिक कार्यों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। ये हमेशा जोश और उत्साह से भरे होते हैं। वे अपने विचार दूसरों के सामने प्रकट करने में संकोच नहीं करते हैं। ये लोग काम करने में हठी होते हैं। लेकिन उदार भी बने रहते हैं। इन तिथि में जन्मे लोग आर्थिक रूप से संपन्न और दूसरों की भलाई करने में लगे रहते हैं। इन जातकों में कलात्मकता भी होती है। ये रंगमंच यानि थिएटर जैसी कला के प्रति जागरुक रहते हैं। ये लोग पारिवार को सदैव अपने साथ लेकर चलने वाले होते हैं।

 

दशमी तिथि के शुभ कार्य

दशमी तिथि में नए ग्रंथ का विमोचन, शपथग्रहण समारोह, उदघाटन करना आदि सम्बन्धित कार्य करने चाहिए। साथ ही इस तिथि में वाहन, वस्त्र खरीदना, यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या शिल्प आदि कार्य करना भी लाभप्रद रहता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की दशमी तिथि में उबटन लगाना और मांस, प्याज, मसूर की दाल खाना वर्जित है।

 

दशमी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास

विजयादशमी आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा के पर्व मनाया जाता है। यह त्योहार अर्धम पर धर्म की विजय का प्रतीक है। इस दिन नए व्यापार, नए वाहन, आभूषण को खरीदना शुभ माना जाता है।

 

गंगा दशहरा ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है। मान्यता है। कि इस दिन मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थी।

 

 

11-- एकादशी तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में का महत्त्व

हिंदू पंचाग की ग्यारहवीं तिथि एकादशी कहलाती है। इस तिथि का नाम ग्यारस या ग्यास भी है। यह तिथि चंद्रमा की ग्यारहवीं कला है। इस कला में अमृत का पान उमादेवी करती हैं। एकादशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 121 डिग्री से 132 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 301 से 312 डिग्री अंश तक होता है। एकादशी तिथि के स्वामी विश्वेदेवा को माना गया है। संतान, धन-धान्य और घर की प्राप्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को विश्वेदेवा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

 

एकादशी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

यदि एकादशी तिथि रविवार और मंगलवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा एकादशी तिथि शुक्रवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। यदि किसी भी पक्ष में एकादशी सोमवार के दिन पड़ती है। तो क्रकच योग बनाती है। जो अशुभ होता है। जिसमें शुभ कार्य निषिद्ध होते हैं। बता दें कि एकादशी तिथि नंदा तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं किसी भी पक्ष की एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करना शुभ माना जाता है।

एकादशी तिथि में जन्मे जातक उदार और दूसरों के प्रति प्रेमभावना रखने वाले होते हैं। लेकिन इनमें चालाकी बहुत होती है। ये धनवान होते हैं। और धार्मिक कार्यों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। ये लोग अपने से बड़ों और गुरुओं का आदर सत्कार बहुत करते हैं। ये कला के क्षेत्र में रुचि रखते हैं। इन जातकों को संतान सुख प्राप्त होता है। और न्याया के मार्ग पर चलते हैं। कूटनीति की कला में माहिर होते हैं।

 

एकादशी के शुभ कार्य

 

एकादशी तिथि के दिन व्रत उपवास, अनेक धर्मकृत्य, देवोत्सव, उद्यापन धार्मिक कथा आदि कर्म करना उत्तम रहता है। इस दिन यात्रा भी करना शुभ होता है। आप एकदशी के दिन गृहप्रवेश कर सकेत हैं। इसके अलावा इस तिथि पर चावल या अन्न खाना वर्जित हैं। साथ ही गोभी, बैंगन, लहसुन प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।

 

एकादशी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास

सफला एकादशी (पौष कृष्ण एकादशी)

पौष पुत्रदा एकादशी (पौष शुक्ल एकदशी)

षटतिला एकादशी (माघ कृष्ण एकादशी)

जया एकादशी (माघ शुक्ल एकादशी)

विजया एकादशी (फाल्गुन कृष्ण एकादशी)

आमलकी एकादशी (फाल्गुन शुक्ल एकादशी)

पाप मोचिनी एकादशी (चैत्र कृष्ण एकादशी)

कामदा एकादशी (चैत्र शुक्ल एकादशी)

वरुथिनी एकादशी (वैशाख कृष्ण एकादशी)

मोहिनी एकादशी (वैशाख शुक्ल एकादशी)

अपरा एकादशी (ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी)

निर्जला एकादशी (ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी)

योगिनी एकादशी (आषाढ़ कृष्ण एकादशी)

देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल एकादशी)

कामिका एकादशी (श्रावण कृष्ण एकादशी)

श्रावण पुत्रदा एकादशी (श्रावण शुक्ल एकादशी)

अजा एकादशी (भाद्रपद कृष्ण एकादशी)

परिवर्तिनी/पार्श्व एकादशी (भाद्रपद शुक्ल एकादशी)

इंदिरा एकादशी (आश्विन कृष्ण एकादशी)

पापांकुश एकादशी (आश्विन शुक्ल एकादशी)

रमा एकादशी (कार्तिक कृष्ण एकादशी)

प्रबोधिनी/देवउठनी/देवोत्थान एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी)

उत्पन्ना एकादशी (मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी)

मोक्षदा एकादशी (मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी)

 

 

12---द्वादशी तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व

हिंदू पंचाग की बाहरवीं तिथि द्वादशी कहलाती है। इस तिथि का नाम यशोबला भी है। क्योंकि इस दिन पूजन करने से यश और बल की प्राप्ति होती है। इसे हिंदी में बारस भी कहा जाता है। यह तिथि चंद्रमा की बारहवीं कला है। इस कला में अमृत का पान पितृगण करते हैं। द्वादशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 133 डिग्री से 144 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में द्वादशी तिथि का  निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 313 से 324 डिग्री अंश तक होता है। द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान विष्णु को माना गया है।  इस तिथि में जन्मे जातकों को श्रीहरि की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इस तिथि के दिन भगवान विष्णु के भक्त बुध ग्रह का भी जन्म हुआ था।

द्वादशी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

यदि द्वादशी तिथि सोमवार और शुक्रवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा द्वादशी तिथि बुधवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। यदि किसी भी पक्ष में द्वादशी रविवार के दिन पड़ती है तो क्रकच योग बनाती है। जो अशुभ होता है। जिसमें शुभ कार्य निषिद्ध होते हैं। बता दें कि द्वादशी तिथि भद्रा तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं किसी भी पक्ष की द्वादशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है।

द्वादशी तिथि में जन्मे जातकों को मन बहुत चंचल होता है। ये लोग घुमक्कड़ी होते हैं। इनको निर्णय लेने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ये जातक काफी भावुक स्वभाव के होते हैं। ये जातक मेहनती और परिश्रम करने वाले होते हैं। इन्हें संतान सुख और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति भी मिलती है। ये लोग खाने-पीने के शौकीन होते हैं।

द्वादशी के शुभ कार्य

द्वादशी तिथि में यात्रा छोड़कर अन्य सभी कार्य करने शुभ होते हैं। इस तिथि में विवाह, घर निर्माण और गृहप्रवेश करना भी लाभप्रद रहता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की द्वादशी तिथि में मसूर की दाल खाना वर्जित है।

 

द्वादशी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास

तिल द्वादशी / भीष्म द्वादशी / गोविंद द्वादशी

माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी या तिल द्वादशी कहते हैं। इस तिथि पर भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए थे। इस तिथि पर पूर्वजों का तर्पण करने का विधान है। इस दिन तिल से भगवान विष्णु की पूजा किया जाती है।

 

गोवत्स द्वादशी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस तिथि पर गाय और बछड़ो की पूजा की जाती है। इस तिथि पर संतान की उन्नति, सुरक्षा और सुख-शांति के लिए माताएं व्रत रखती हैं।

 

वामन द्वादशी चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामनदेव धरती पर अवतरित हुए थे। इस दिन भगवान विष्णु के पूजन और ब्राह्मणों को दान करने का विधान है।

अखण्ड द्वादशी मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को अखण्ड द्वादशी कहा जाता है। इस तिथि पर श्रीहरि की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश हो जाता है। और संतान सुख की प्राप्ति होती है।

पद्मनाभ द्वादशी आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को पद्मनाभ द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के अनंत पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करने से धन-धान्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

रुक्मिणी द्वादशी वैसाख माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को रूक्मिणी द्वादशी का पर्व मनाया जाता है।  इस दिन भगवान कृष्ण ने रूक्मिणी का हरण करके विवाह किया था। इस दिन रूक्मिणी देवी का पूजन किया जाता है। इस तिथि पर व्रत करने से अविवाहति कन्याओं को श्रीकृष्ण जैसे पति यानि योग्य वर की प्राप्ति जल्द हो जाती है।

 

 

13-- त्रयोदशी तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व

हिंदू पंचाग की तेरहवीं तिथि त्रयोदशी कहलाती है। इस तिथि का नाम जयकारा भी है। इसे हिंदी में तेरस भी कहा जाता है। यह तिथि चंद्रमा की तेरहवीं कला है। इस कला में अमृत का पान धन के देवता कुबेर करते हैं। त्रयोदशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 145 डिग्री से 156 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 313 से 336 डिग्री अंश तक होता है। त्रयोदशी तिथि के स्वामी कामदेव को माना गया है। जीवन में प्रेम और दांपत्य सुख प्राप्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को कामदेव की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

 

त्रयोदशी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

यदि त्रयोदशी तिथि बुधवार को पड़ती है। तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा त्रयोदशी तिथि मंगलवार को होती है। तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि त्रयोदशी तिथि जया तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है। लेकिन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव का पूजन वर्जित है।

त्रयोदशी तिथि में जन्मे जातक महासिद्ध और परोपकारी होते हैं। इन्हें कई विद्याओं का ज्ञान होता है। और अधिक से अधिक विद्या अर्जन करने में रुचि रखते हैं। इन लोगों को धार्मिक शास्त्रों का ज्ञान होता है। और इनको सभी इंद्रियों को जीतने वाला माना जाता है। इस तिथि में जन्मे जातक में सहनशीलता बहुत कम होती है। ये लोग आत्मविश्वास के साथ आगे तो बढ़ते हैं। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगती है। ये लोग वाद-विवाद में तेज होते हैं और अपने तर्कों के आगे दूसरों को कुछ नहीं समझते हैं। ये लोग जीवन में संघर्ष बहुत करते हैं। और तब ही उन्हें सफलता का स्वाद चखने को मिलता है।

 

त्रयोदशी के शुभ कार्य

त्रयोदशी तिथि में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की त्रयोदशी तिथि में उबटन लगाना और बैंगन खाना वर्जित है।

 

त्रयोदशी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास

प्रदोष व्रत हिंदू पंचांग के मुताबिक हर माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। कुल मिलाकर वर्ष में 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं। और इस दिन भगवान शिव की साधना और आराधना करना शुभ माना जाता है। इस तिथि पर व्रत करने से पुत्ररत्न की प्राप्ति, ऋण से मुक्ति, सुख-सौभाग्य, आरोग्य आदि की प्राप्ति होती है।

 

अनंग त्रयोदशी पर्व मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है। इसके अलावा चैत्र मास में भी आता है। इस तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही कामदेव और रति की भी पूजा का विधान है। इस तिथि पर व्रत करन से प्रेम संबंधों में मधुरता बनी रहती है। और संतान सुख की प्राप्ति होती है।

 

धन तेरस कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धनवन्तरि अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है।

 

 

14--  चतुर्दशी तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में का महत्त्व

हिंदू पंचांग की चौदवीं तिथि चतुर्दशी कहलाती है। इस तिथि का नाम करा भी है। क्योंकि इस तिथि पर शुभ कार्यों की शुरुआत करना वर्जित है। इसे हिंदी में चौदस भी कहा जाता है। यह तिथि चंद्रमा की चौदवीं कला है। इस कला में अमृत का पान भगवान शिव करते हैं। चतुर्दशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 157 डिग्री से 168 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 337 से 348 डिग्री अंश तक होता है। चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शिव को माना गया है। जीवन में सर्व कल्याण और सभी पापों से मुक्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को भगवान भोलेनाथ की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

 

चतुर्दशी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

किसी भी पक्ष की चतुर्दशी में शुभ कार्य करना वर्जित हैं। क्योंकि इसे क्रूरा कहा जाता है। इसके अलावा चतुर्दशी तिथि रिक्ता तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं दोनों पक्षों की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है। इस तिथि पर रात्रि में शिव मंत्र या जागरण करना उत्तम रहता है।

चतुर्दशी तिथि में जन्मे जातक मन से कोमल और बाहर से कठोर दिखाई देते हैं। इन लोगों को क्रोध बहुत आता है। ये जातक साहसी और कठोर कार्य करने में प्रवीण होते हैं। इन लोगों को जीवन में संघर्ष करना पड़ता है। तब कहीं सफलता हाथ लगती है। ये लोग अपने ही बनाए गए नियमों पर चलना पसंद करते हैं। इस तिथि में जन्मा जातक साधु-संतों का आदर करता है। और धार्मिक कार्यों में विश्वास रखता है। ये लोग अपना काम निकलवाने में माहिर होते हैं। और अपनी काबिलियत के दम पर काम निकलवा भी लेते हैं।

 

चतुर्दशी के शुभ कार्य

चतुर्दशी तिथि में विद्युत कर्म, बन्धन, शस्त्र विषय, अग्नि आदि से सम्बन्धित कार्य करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की चतुर्दशी तिथि में बाल काटना या शेविंग करना वर्जित है। इस तिथि पर किसी कठोर कार्य को शुरू करना उचित रहता है। जैसे हथियारों का निर्माण या उनका परीक्षण करना।

 

चतुर्दशी तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास मासिक शिवरात्रि हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस दिन शिव जी और माता पर्वती का विवाह हुआ था। इसके अलावा हिंदू पंचांग के मुताबिक हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। मान्यता है। कि इस दिन भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इस तिथि पर भोलेनाथ के लिए व्रत रखना उत्तम फलदायक होता है।

 

अनंत चतुर्दशी

यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान श्री हरि यानि भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन कलाई पर रेशम का धागा बांधा जाता है। इस तिथि पर व्रत करने से सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। और घर धन-धान्य से संपन्न रहता है।

 

नरक निवारण चतुर्दशी

दिवाली के एक दिन पहले मनाया जाने वाला पर्व नरक चतुर्दशी है। यह त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस तिथि पर मृत्यु के देवता यम की पूजा का विधान है। साथ ही शाम को दीपक जलाने का प्रावधान है।

 

बैकुंठ चतुर्दशी

बैकुंठ चौदस कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को ही मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान शिव और श्रीहरि की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से बैकुंठ की प्राप्ति होती है।

 

 

15----पूर्णिमा तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व

पूर्णिमा तिथि जिसमें चंद्रमा पूर्णरुप में मौजूद होता है। पूर्णिमा तिथि को सौम्य और बलिष्ठ तिथि कहा जाता है। इस तिथि को ज्योतिष में विशेष बल महत्व दिया गया है। पूर्णिमा के दौरान चंद्रमा का बल अधिक होता है। और उसमें आकर्षण की शक्ति भी बढ़ जाती है। वैज्ञानिक रुप में भी पूर्णिमा के दौरान ज्वार भाटा की स्थिति अधिक तीव्र बनती है। इस तिथि में समुद्र की लहरों में भी उफान देखने को मिलता है। यह तिथि व्यक्ति को भी मानसिक रुप से बहुत प्रभावित करती है। मनुष्य के शरीर में भी जल की मात्रा अत्यधिक बताई गई है। ऎसे में इस तिथि के दौरान व्यक्ति की भावनाएं और उसकी ऊर्जा का स्तर भी बहुत अधिक होता है।

पूर्णिमा को धार्मिक आयोजनों और शुभ मांगलिक कार्यों के लिए शुभ तिथि के रुप में ग्रहण किया जाता है। धर्म ग्रंथों में इन दिनों किए गए पूजा-पाठ और दान का महत्व भी मिलता है। पूर्णिमा का दिन यज्ञोपवीत संस्कार जिसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं। किया जाता है। इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है। इस प्रकार इस दिन की गई पूजा से भगवान शीघ्र प्रसन्न होते हैं। और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।

 

महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने सौभाग्य और संतान की कामना पूर्ति करती है। बच्चों की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं। पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है। और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है।

 

पूर्णिमा तिथि में जन्में जातक

जिस व्यक्ति का जन्म पूर्णिमा तिथि में हुआ हो, वह व्यक्ति संपतिवान होता है। उस व्यक्ति में बौद्धिक योग्यता होती है। अपनी बुद्धि के सहयोग से वह अपने सभी कार्य पूर्ण करने में सफल होता है। इसके साथ ही उसे भोजन प्रिय होता है। उत्तम स्तर का स्वादिष्ट भोजन करना उसे बेहद रुचिकर लगता है। इस योग से युक्त व्यक्ति परिश्रम और प्रयत्न करने की योग्यता रखता है। कभी- कभी भटक कर वह विवाह के बाद विपरीत लिंग में आसक्त हो सकता है।

 

व्यक्ति का मनोबल अधिक होता है। वह परेशानियों से आसानी से हार नही मानता है। जातक में जीवन जीने की इच्छा और उमंग होती है। वह अपने बल पर आगे बढ़ना चाहता है। व्यक्ति में दिखावे की प्रवृत्ति भी हो सकती है। जल्दबाजी में अधिक रह सकता है।

 

ऐसे व्यक्ति की कल्पना शक्ति अच्छी होती है। वह अपनी इस योग्यता से भीड़ में भी अलग दिखाई देता है। आकर्षण का केन्द्र बनता है। बली चंद्रमा व्यक्ति में भावनात्मक, कलात्मक, सौंदर्यबोध, रोमांस, आदर्शवाद जैसी बातों को विकसित करने में सहयोग करता है। व्यक्ति कलाकार, संगीतकार या ऎसी किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति को मजबूती के साथ करने की क्षमता भी रखता है।

 

मजबूत मानसिक शक्ति के कारण रुमानी भी होते हैं। कई बार उन्मादी और तर्कहीन व्यवहार भी कर सकते हैं। जो इनके लिए नकारात्मक पहलू को भी दिखाती है। और व्यक्ति अत्यधिक महत्वाकांक्षी भी होता है।

 

सत्यनारायण व्रत

पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण व्रत की पूजा की जाने का विधान होता है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि को लोग अपने सामर्थ्य अनुसार इस दिन व्रत रखते हैं। अगर व्रत नहीं रख पाते हैं। तो पूजा पाठ और कथा श्रवण जरुर करते हैं। सत्यनारायण व्रत में पवित्र नदियों में स्नान-दान की विशेष महत्ता बताई गई है। इस व्रत में सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। सारा दिन व्रत रखकर संध्या समय में पूजा तथा कथा की जाती है। चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। कथा और पूजन के बाद बाद प्रसाद अथवा फलाहार ग्रहण किया जाता है। इस व्रत के द्वारा संतान और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

 

पूर्णिमा तिथि योग

पूर्णिमा तिथि के दिन जब चन्द्र और गुरु दोनों एक ही नक्षत्र में हो, तो ऎसी पूर्णिमा विशेष रुप से कल्याणकारी कही गई है। इस योग से युक्त पूर्णिमा में दान आदि करना शुभ माना गया है। इस तिथि के स्वामी चन्द्र देव है। पूर्णिमा तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को चन्द्र देव की पूजा नियमित रुप से करनी चाहिए।

 

पूर्णिमा तिथि महत्व

इस तिथि के दिन सूर्य चन्द्र दोनों एक दूसरे के आमने -सामने होते है। अर्थात एक-दूसरे से सप्तम भाव में होते है। इसके साथ ही यह तिथि पूर्णा तिथि कहलाती है। यह तिथि अपनी शुभता के कारण सभी शुभ कार्यो में प्रयोग की जा सकती है। इस तिथि के साथ ही शुक्ल पक्ष का समापन होता है। तथा कृष्ण पक्ष शुरु होता है। एक चन्द्र वर्ष में 12 पूर्णिमाएं होती है। सभी पूर्णिमाओं में कोई कोई शुभ पर्व अवश्य आता है। इसलिए पूर्णिमा का आना किसी पर्व के आगमन का संकेत होता है।

 

पूर्णिमा तिथि में किए जाने वाले काम

पूर्णिमा तिथि के दिन गृह निर्माण किया जा सकता है।

पूर्णिमा के दिन गहने और कपड़ों की खरीदारी की जा सकती है।

किसी नए वाहन की खरीदारी भी कर सकते हैं।

यात्रा भी इस दिन की जा सकती है।

इस तिथि में शिल्प से जुड़े काम किए जा सकते हैं।

विवाह इत्यादि मांगलिक कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं।

पूजा पाठ और यज्ञ इत्यादि कर्म इस तिथि में किए जा सकते हैं।

12 माह की पूर्णिमा

चैत्र माह की पूर्णिमा, इस दिन हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है।

वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती का पर्व मनाया जाता है।

ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री और कबीर जयंती मनाई जाती है।

आषाढ़ माह की पूर्णिमा गुरू पूर्णिमा के रुप में मनाई जाती है।

श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन रक्षाबन्धन मनाया जाता है।

भाद्रपद माह की पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा श्राद्ध संपन्न होता है।

अश्विन माह की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाती है।

कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंति और गुरुनानक जयंती मनाई जाती है।

मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है।

पौष माह की पूर्णिमा को शाकंभरी जयंती मनाई जाती है।

माघ माह की पूर्णिमा को श्री ललिता जयंती मनाई जाती है।

फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है।

 

 

30--- अमावस्या तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में का महत्त्व

हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का बहुत अधिक महत्व है। हिंदू पंचांग की तीसवीं तिथि और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है। इस तिथि का नाम सिनीवाली भी है। इसे हिंदी में अमावसी भी कहते हैं। अमावस्या तिथि का निर्माण तब होता है। जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर शून्य हो जाता है। इस दिन आकाश में चांद नहीं दिखाई देता है। इस तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विधान है। मान्यता है। कि इस तिथि के दिन केतु का जन्म हुआ था।

 

अमावस्या तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

अमावस्या तिथि के स्वामी पितर माने गए हैं। इस तिथि पर चंद्रमा की 16वीं कला जल में प्रविष्ट हो जाती है। इस दिन चंद्रमा आकाश में नहीं दिखाई देता है। और इस तिथि पर वह औषधियों में रहते हैं। अमावस्या तिथि के दिन कृष्ण पक्ष समाप्त होता है। इस तिथि के दिन सूर्य और चन्द्रमा दोनों समान अंशों पर होते है।

 

अमावस्या तिथि में जन्मे जातक

अमावस्या तिथि में जन्मे जातकों की दीर्घायु होती है। ये लोग अपनी बुद्धि को कुटिल कार्यों में लगाते हैं। ये बहुत पराक्रमी होते हैं। लेकिन इन्हें ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रयत्न बहुत करना पड़ता है। इनकी आदत व्यर्थ में सलाह देने की बहुत होती है। इन जातकों को जीवन में संघर्षों का सामना बहुत करना पड़ता है। ये लोग मानसिक रूप से स्वस्थ्य नहीं होते हैं। इनमें असंतुष्टी की भावना बहुत अधिक रहती है।

 

अमावस्या के दिन क्या करें और क्या ना करें

अमावस्या तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करना शुभ माना जाता है।

इस तिथि पर पितरों का तर्पण करने का विधान है। यह तिथि चंद्रमास की आखिरी तिथि होती है।

इस तिथि पर गंगा स्नान और दान का महत्व बहुत है।

इस दिन क्रय-विक्रय और सभी शुभ कार्यों को करना वर्जित है।

अमावस्या के दिन खेतों में हल चलाना या खेत जोतने की मनाही है।

इस तिथि पर जब कोई बच्चा पैदा होता है। तो शांतिपाठ करना पड़ता है।

अमावस्या के दिन शुभ कर्म नहीं करना चाहिए।

अमावस्या तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत उपवास

 

माघ अमावस्या इस तिथि को मौनी अमावस्या के रूप में जाना जाता है। इस दिन गंगा स्नान करके मौन धारण किया जाता है।

फाल्गुन अमावस्या, अश्विन अमावस्या, चैत्र अमावस्या

इस अमावस्या को पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। इस दन दान, तर्पण और श्राद्ध किया जाता है।

वैशाख अमावस्या इस तिथि के दिन सर्पदोष से मुक्ति पाने के लिए उज्जैन में पूजा करने का विधान है।

ज्येष्ठ अमावस्या यह तिथि के दिन शनिदोष निवारण का उपाय करा सकते हैं। इस दिन वट सावित्री की पूजा का भी प्रावधान है।

आषाढ़ अमावस्या इस अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करते हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए। इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है।

श्रावण अमावस्या इस तिथि को हरियाली अमावस्या के नाम से जानते हैं। इस तिथि को पितृकार्येषु अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।

भाद्रपद अमावस्या इस तिथि को कुशाग्रहणी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन कुशा को तोड़कर रख लिया जाता है।

कार्तिक अमावस्या

इस तिथि के दिन दीपों का पर्व दीवाली मनाते हैं। इस दिन 14 वर्ष का वनवास पूरा करके श्री राम अयोध्या वापस लौटे थे।

मार्गशीर्ष अमावस्या इस तिथि को सोमवती अमावस्या के नाम से जाना जाता है।

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

नक्षत्र फलित

अश्वनी नक्षत्र

नक्षत्र देवता: अश्वनी कुमार

नक्षत्र स्वामी:  केतु

अश्वनी नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

अश्वनी नक्षत्र में जन्मे जातक सामान्यतः सुन्दर ,चतुर, सौभाग्यशाली एवं स्वतंत्र विचारों वाले होते हैं. वह पारंपरिक रूढ़ीवादी विचारधारा से विपरीत अपनी आधुनिक सोच के लिए मित्रों में प्रिसिद्ध होते हैं. आप सभी से बहुत प्रेम करने वाले होते हैं परन्तु आप अपने ऊपर किसी का भी दबाव नहीं सहते हैं. आपको स्वतंत्र कार्य करने एवं निर्णय लेने की आदत होती है इसलिए किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप आपको पसंद नहीं होता है. आपकी उन्नति भी स्वतंत्र कार्य करने और स्वतंत्र निर्णय लेने के कारण ही होती है .

आप स्वभाव से गुणी, धैर्यवान एवं प्रखर बुद्धि के स्वामी होते हैं. धन ऐश्वर्य युक्त जीवन में आपको किसी भी प्रकार का अभाव नहीं झेलना पड़ता है. अपने कार्य के प्रति रुझान और लगन के कारण आप कम उम्र में ही सफलता प्राप्त करते हैं एवं आपका यश और कीर्ति समाज में चारों और फैलता है. आप अन्तेर्मुखी एवं धैर्यवान होते हैं और जल्द ही किसी की बातों का विश्वास नहीं करते. आपको अपने मनोभाव पर नियंत्रण रखने में कभी-कभी कठिनाई महसूस होती है परन्तु यह आवश्यक भी है. क्रोध आने पर आप किसी की भी नहीं सुनते. आप आत्म नियंत्रण खो बैठते हैं और क्रोध में कई बार अपनी हानि करा बैठते हैं. आपको क्रोध जितनी शीघ्रता से आता है उतनी ही तीव्रता से उतर भी जाता है.

अश्वनी नक्षत्र में जन्मे जातक अक्सर सेक्स के मामलों में उतावले होते हैं. किसी भी स्त्री से मिलने के बाद आप उसके प्रति विशेष रुझान एवं लगाव महसूस करते हैं यही आपकी सबसे बड़ी कमजोरी है. आप अपने कार्य सज्जनता की उपेक्षा लड़ाई झगड़े से करवाने में सदा सक्षम रहते हैं.

अश्वनी नक्षत्र के जातक साज सज्जा में अधिक विश्वास रखते हैं इसलिए सदा ही आकर्षक , महंगी और आरामदायक वस्तुओं में  रूचि रखते है. अपने जीवन के 30 वर्ष तक आप कई प्रकार के उतार चढ़ाव झेलते हैं. उसके उपरान्त ही आपका आगे बढ़ने का रास्ता साफ़ और सुगम होता है.

आप अपने परिवार से बहुत जुड़े हुए रहते हैं परन्तु कुछ परिजन आपके जिद्दीपन के कारण आपको पसंद नहीं करते . पिता की उपेक्षा आपको माता से अधिक सहयोग और प्रेम प्राप्त होता है . 26 से 30 वर्ष की आयु में विवाह संभव है. संतान में पुत्र संतति की संभावना अधिक होगी.

इस नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ सुन्दर, धन-धान्य युक्ता, श्रृंगार में रूचि रखने वाली होती हैं. अश्वनी नक्षत्र में जन्मी महिलाएं मीठा बोलती हैं और बहुत अधिक सहनशील भी होती है. माता पिता की लाडली एवं आज्ञाकारी पुत्री होने के साथ-साथ ईश्वर में भी पूरी आस्था रखती हैं. सदा बड़ों का आदर एवं  गुरु का सम्मान करने वाली अश्वनी नक्षत्र  में जन्मी स्त्रियाँ मनोहर छवि एवं बुद्धिशाली होती है.

स्वभाव संकेत : समाज और मित्रों में लोकप्रिय

संभावित रोग: दिमाग से सम्बंधित रोग, मलेरिया एवं चेचक

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. इस चरण में जन्मे जातकों को दूसरों की वस्तुएं उठाने की आदत होती है. जन्म नक्षत्र स्वामी केतु लग्नेश मंगल का मित्र होने के कारण जातक की मंगल एवं केतु की दशा शुभ फल देंगी.मंगल गृह भी शुभ फल देगा.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. अश्वनी के द्वितीय चरण में जन्म होने के कारण जातक कड़ी मेहनत से कतरायेगा और छोटे छोटे अल्प अवधी वाले कार्य करने में रूचि रखेगा.  जन्म नक्षत्र स्वामी केतु लग्नेश मंगल का मित्र है और नक्षत्र चरण स्वामी शुक्र भी केतु से मित्रतापूर्वक व्यवहार रखता है इसलिए जातक की मंगल, शुक्र  एवं केतु की दशा शुभ फल देंगी.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध  हैं. शास्त्रों के अनुसार अश्वनी नक्षत्र  के तीसरे चरण में जन्मा जातक सुन्दर , धनी एवं ऐश्वर्यशाली होते हैं.  मंगल और केतु  की दशा अति उत्तम फल देगी परन्तु नक्षत्र चरण स्वामी बुध केतु से शत्रु भाव रखता है इस कारण बुध की दशा में जातक अशांत एवं विचलित रहेगा.

चतुर्थ चरण :  इस चरण का स्वामी चन्द्रमा  हैं. शास्त्रों के अनुसार अश्वनी नक्षत्र  के चौथे  चरण में जन्मे जातक भोगी एवं दीर्घायु होते है. नक्षत्र  स्वामी केतु, लग्नेश मंगल का मित्र है. नक्षत्र चरण स्वामी चन्द्रमा , केतु से शत्रु भाव रखता है अतः जातक को मंगल एवं केतु की दशा उत्तम फल देंगी परन्तु चन्द्रमा की दशा में जातक अशांत एवं उद्विग्न रहेगा.

 

 

2---भरणी नक्षत्र

नक्षत्र देवता: यम

नक्षत्र स्वामी:  शुक्र

भरणी नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म भरणी नक्षत्र में हुआ है तो आप एक दृढ़ निश्चयी, चतुर एवं सदा सत्य  बोलने वाले होंगे. शुक्र के कारण जहाँ आप सुखी एवं ऐश्वर्य पूर्ण जीवन जियेंगे वही शुक्र मंगल की राशि में आपकी काम वासना भी अधिक बढ़ाएगा. आपके अनेक मित्र होंगे और आप अपने मित्रों में बहुत अधिक लोकप्रिय भी होंगे क्योंकि आप अपने मित्रों की सहायता करने में कभी पीछे नहीं हटते हैं. मित्रता करने में आप विशेष सावधानी भी बरतते हैं. चुगलखोर और छिछोरे  मित्र आपको कतई पसंद नहीं है.

आप जल्दी ही किसी से भी घुलना मिलना पसंद नहीं करते ,स्वभाव से थोड़े स्थिर एवं योजनाबद्ध तरीके से काम करना आपको पसंद है. आप बिना सोचे समझे जीवन में कोई भी कदम नहीं उठाना चाहते हैं परन्तु जो एक बार आप ठान लेते हैं तो आप किसी  का  हस्तक्षेप या सुझाव पसंद नहीं करते हैं. जो मार्ग  आपके अनुसार सही है उससे आप कभी नहीं डगमगाते . आप अपने विचारों को प्रकट करने में नहीं हिचकिचाते चाहे उन्हें कोई पसंद करे या नहीं. आप अपना नुक्सान करा सकते हैं परन्तु चापलूसी करना आपको कतई पसंद नहीं.

आप सिद्धांतों  पर चलना पसंद करते हैं एवं नैतिक मूल्यों की रक्षा जीवन पर्यंत करतें हैं. ईश्वर ने आपको एक और विलक्षण गुण दिया हुआ है वह है दूरदर्शिता. इस  कारण आप आने वाले संकट को पहले ही भांप जाते हैं और अपने आपको भविष्य में होने वाली घटनायों के लिए तैयार भी कर लेते हैं.

खर्चे के मामले में आप करीबी मित्रों और रिश्तेदारों में कंजूस के नाम से जाने जाते हैं परन्तु यह आपका स्वभाव है . आप बिना सोचे समझे धन खर्च नहीं करना चाहते हैं. फ़िज़ूल के खर्च और व्यर्थ के दिखावे आपको कतई पसंद नहीं हैं.

आप एक हिम्मती व्यक्तित्व के स्वामी हैं छोटी मोटी घटनाएं आपके साहस को हिला नहीं पाती हैं. शारीरिक रूप से आप ऊँचे एवं मजबूत कद काठी के व्यक्ति हैं. आपकी हड्डियां काफी मज़बूत और आँखें बहुत जोशीली हैं. आपको घूमने  का बहुत  शौक है. खाने में आप तेज़, मसालेदार गर्म  और चटपटे खाना पसंद करते हैं.

आप अपने जीवन में कई बार सफलता की उंचाई पर पहुँच कर अचानक गिरते हैं. इन्ही उतार चढ़ाव के कारण जीवन 33 वर्ष तक अस्त व्यस्त रहता है परन्तु उसके पश्चात समय और स्तिथियाँ आपके पक्ष में ही रहती हैं.  भरणी नक्षत्र के जातक अपने परिवार से बहुत अधिक स्नेह रखते हैं तथा उनके बिना बहुत अधिक समय तक नहीं रह पाते हैं. विवाह उपरान्त  पारिवारिक जीवन सुखमय रहता है और एक सुंदर एवं सुशील पत्नी का साथ मिलता है. आपकी पत्नी का धन के मामले में लापरवाह होना आपके बीच मतभेद पैदा कर सकता है.

भरणी नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ निडर एवं दृढ स्वभाव वाली होती हैं. भरणी नक्षत्र में जन्मी महिलाएं सफल राजनेता या समाजिक कार्यकर्ता होती हैं. आपका मन चंचल एवं सदा भटकने वाला होता है. भरणी नक्षत्र में जन्मी महिलाएं अनायास ही पुरुषों के प्रति  आकर्षित हो जाती हैं. अन्य महिलायों की भांति आपकी रूचि साज सज्जा में नहीं होती है अपितु आप स्वभाव से कठोर होती हैं.

स्वभाव संकेत : स्वभाव से अडिग एवं स्थिर मनोवृत्ति

संभावित रोग: अग्नि द्वारा जलने से , अकस्मात गिरने से चोट का खतरा. नेत्र रोग, और स्त्रियों में गर्भ सम्बंधित समस्याएं.

विशेषताएं

प्रथम चरण:  इस चरण का स्वामी सूर्य  हैं. भरणी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने के कारण जातक स्वभाव से संकोची होते हैं . आशावादी होते हुए भी कभी कभी निराशावादी हो जाते हैं. जातक को मंगल एवं शुक्र की दशा शुभ फलदायी होगी. नक्षत्र चरण का स्वामी सूर्य शुक्र का शत्रु है इस कारण सूर्य की दशा में जातक थोडा परेशान रहेगा.

द्वितीय चरण: इस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. भरणी नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म होने के कारण जातक स्वभाव चंचल एवं खुराफाती होगा . वह जीवन में सफल तो होगा परन्तु मानसिक रूप से परेशान एवं अशांत रहेगा. जातक को मंगल एवं शुक्र की दशा ठीक रहेगी . नक्षत्र चरण का स्वामी चन्द्र शुक्र का परम शत्रु है इस कारण चन्द्र की दशा में जातक मानसिक रूप से परेशान रहेगा.

तृतीय चरण:  इस चरण का स्वामी शुक्र  हैं. भरणी नक्षत्र के तृतीय चरण में जन्म होने के कारण जातक स्वभाव से क्रूर, निर्दयी होते  हैं . साहस पूर्ण एवं झोखिम भरे कार्य करने में सदा रूचि रखते हैं. लग्न नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र चरण स्वामी शुक्र के होने के कारण जातक थोडा रंगीन मिजाज़ का भी होगा.  जातक को मंगल एवं शुक्र की दशा उत्तम  फलदायी होगी.

चतुर्थ चरण: इस  चरण का स्वामी मंगल हैं. भरणी नक्षत्र के चौथे  चरण में जन्म होने के कारण जातक बहादुर एवं साहसी होगा परन्तु  सब कुछ होते हुए भी जीवन भर धन की कमी  महसूस करता रहेगा. लग्न नक्षत्र का स्वामी शुक्र लग्नेश मंगल से समभाव रखता है  इस कारण जातक की मंगल एवं शुक्र की दशा अच्छी जाएँगी.

 

 

3----कृतिका नक्षत्र

नक्षत्र देवता: अग्नि

नक्षत्र स्वामी:  सूर्य

कृतिका नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

कृतिका नक्षत्र में जन्मा जातक सुन्दर और मनमोहक छवि वाला होता है. वह केवल सुन्दर ही नहीं अपितु गुणी भी होते हैं. आपका व्यक्तित्व किसी राजा  के समान ओजपूर्ण एवं पराक्रमी होता है. कृतिका नक्षत्र का स्वामी सूर्य है अतः आप तेजस्वी एवं तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी होते हैं. बचपन से ही आपकी विद्या प्राप्ति में अधिक रूचि रहती है और आगे चलकर कृतिका नक्षत्र का जातक विद्वान् होता है. यह सूर्य का विशेष गुण है. परन्तु शुक्र और सूर्य में शत्रुता भी है अतः सुन्दर और तेजस्वी होने पर भी विचार अस्थिर रहेंगे. सूर्य के इस नक्षत्र में चन्द्र भी रहेगा अर्थात सूर्य चन्द्र के मेल के कारण  शरीर पर तेज़ की अनुभूति होगी. चन्द्रमा से प्रभावित होने के कारण आपमें प्रभुत्व आएगा. आप की सोच और कार्य उच्च स्तरीय होंगे. आपके व्यक्तित्व में राजकीय गुण स्वाभाविक हैं. चन्द्रमा के प्रभाव के कारण ही  आपके पास धन भी आएगा.

कृतिका नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति खाने का शौक़ीन एवं अन्य स्त्रियों में आसक्त होता है. आपका रुझान गायन, नृत्यकला, सिनेमा, तथा अभिनेता और अभिनेत्रियों के प्रति अधिक रहता है.

इस  नक्षत्र में जन्मे जातक या जातिकाएं एक दूसरे के प्रति आकर्षित रहते हैं. सौन्दर्य के तेज़ के कारण प्रसिद्धि भी बहुत अधिक मिलती है एवं पुरुषों को महिलाएं एवं महिलायों को पुरुषों के प्रेम प्रस्ताव मिलते ही रहते हैं. हालाँकि किसी भी सम्बन्ध में आप बंध कर  रहना पसंद नहीं करते. जहाँ आपको बंधन महसूस होता है वहीँ आप बिना किसी की परवाह किए रिश्तों को समाप्त कर आगे बढ़ जाते हैं .  बहु भोगी होना और रोगी होना इस नक्षत्र में जन्मे जातकों का स्वभाव है. सेक्स के प्रति अधिक रुझान एवं भोजन के प्रति असावधानी रोग का कारण बन सकती है.

आप औरों के लिए एक बहुत अच्छे मार्गदर्शक साबित होते हैं परन्तु अस्थिर सोच के कारण अपने लिए सही निर्णय लेना आप के बस में नहीं . आपको पुराने या नवीन विचारों से कोई परहेज़ नहीं होता. आप केवल सत्यता और मानवता के पथ पर ही चलना चाहते हैं. कृतिका जातक पिता की उपेक्षा अपनी माता से अधिक निकट होता है, और माता से हर प्रकार का सहयोग लेने में सक्षम रहता है. विवाह उपरांत पारिवारिक जीवन सुखमय रहता है. पत्नी के साथ सम्बन्ध प्रेमपूर्वक और मधुर बना रहता है परन्तु घर परिवार से दूरी आपको अक्सर खलती है.

कृतिका नक्षत्र में जन्मे जातक का भाग्योदय अक्सर जन्म स्थान से दूर जाकर होता है . आप अपने जीवन में कई यात्राएं भी करते हैं जिनमे से अधिकतर निरर्थक साबित होती हैं. निरंतर यात्राओं के कारण कर्यक्ष्ट्र में भी बदलाव होता है. आपको सफलता प्राप्त करने के लिए जीवन पर्यंत संघर्षरत रहना पड़ता है. सुदूर देशों में जा कर ही कृतिका नक्षत्र जातक खूब धन कमाता है.

कृतिका नक्षत्र में जन्मी महिलाएं पतले दुबले शारीर और कफ प्रकृति की होती हैं. सामान्यतः अपने माता पिता की अकेली संतान होती हैं या भाई बहनों के होते हुए भी उनके सुख से वंचित रहती है. इस नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं प्रायः झगड़ालू तथा दूसरों में दोष निकलने वाली होती हैं. क्रोध सदा इनकी नाक पर रहता है. अपने इसी स्वभाव के कारण इनका अपने पति से भी प्रेमपूर्ण व्यवहार नहीं रहता है और अक्सर अलगाव की स्तिथि उत्पन्न हो जाती है.

स्वभाव संकेत : अनुशासित एवं  ओजपूर्ण

संभावित रोग: सर्दी, जुकाम और नाक से सम्बंधित रोग

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति  हैं. कृतिका नक्षत्र के पहले  चरण में जन्म होने के कारण जातक जन्मस्थान से दूर जाकर खूब धन कमाता है.  जातक की मंगल की दशा, सूर्य एवं गुरु की दशाअन्तर्दशा अत्यंत शुभ फलदायी होगी. यह जातक मंगल की रहस्मयी शक्तियों का स्वामी होगा.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि  हैं. कृतिका नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म होने के कारण जातक विज्ञान का जानकार हो सकता है सूर्य और शनि के कारण ज्ञान और अनुभव दोनों का समावेश रहेगा. जातक शास्त्रों का ज्ञाता एवं अपने क्षेत्र का तेजस्वी विद्वान् होगा. जातक लग्नबली एवं चेष्टावान होगा. सूर्य व् शनि की दशाएं अशुभ परन्तु लग्नेश शुक्र की दशा शुभ फल देंगी.

तृतीय चरण :इस चरण का स्वामी शनि  हैं. कृतिका नक्षत्र के तीसरे  चरण में जन्म होने के कारण जातक शूरवीर तथा भाग्यशाली होगा. सूर्य और शनि के कारण ज्ञान और अनुभव दोनों का समावेश रहेगा. जातक शास्त्रों का ज्ञाता एवं अपने क्षेत्र का तेजस्वी विद्वान् होगा. जातक की सूर्य व् शुक्र दोनों  की दशाएं संघर्षपूर्ण होंगी.

चतुर्थ चरण :  इस चरण का स्वामी बृहस्पति  हैं. कृतिका नक्षत्र के चौथे  चरण में जन्म होने के कारण जातक दीर्घायु एवं एक से अधिक पुत्रों वाला होगा. सूर्य और बृहस्पति जातक ज्ञानी एवं सात्विक विचारों वाला होगा. जातक की सूर्य व् बृहस्पति की दशाअन्तर्दशा में उन्नति होगी. जातक का विशेष भाग्योदय सूर्य, बृहस्पति एवं लग्न स्वामी शुक्र की दशा में होगा.

 

 

4---रोहिणी नक्षत्र

नक्षत्र देवता: ब्रह्मा

नक्षत्र स्वामी: चन्द्र

रोहिणी नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति सदा दूसरों में गलतियां ढूँढता रहता है. आप कोई भी ऐसा मौका नहीं हाथ से जाने देते जिसमे कि सामने वाले की त्रुटियों की चर्चा आप करें. आप शारीरिक रूप से कमज़ोर होते हैं इसलिए कोई भी छोटी से छोटी मौसमी बदलाव के रोग भी आपको अक्सर जकड लेते हैं. आप एक ज्ञानी परन्तु स्त्रियों में आसक्ति रखने वाले होतें हैं.

रोहिणी नक्षत्र में जन्मे जातक सुन्दर एवं मीठा बोलने वाले होते हैं. आप घर और कार्य क्षेत्र में व्यवस्थित रहना ही पसंद करते हैं. आपको गन्दगी से बेहद नफरत है. घर का सामान भी आप सुव्यवस्थित ढंग से रखना पसंद करते हैं. स्वभाव से कोमल और सौन्दर्य के प्रति लगाव आपके प्रमुख गुणों में से एक है. रोहिणी नक्षत्र का स्वामी चन्द्र है इसलिए इस नक्षत्र में जन्मे जातक स्त्रियों पर विशेष आसक्ति रखते हैं.

रोहिणी नक्षत्र में जन्मे जातक कभी बहुत ही कोमल और विनम्र स्वभाव के दीखते हैं तो कभी कठोर और अभद्र . अपने प्रियजनों की मदद के लिए सदा तत्पर रहतें हैं और कठिन से कठिन परिस्तिथियों में भी पीछे नहीं हटते. यदि आपको कोई कष्ट पहुंचाए तो आप उग्र रूप ले लेते हैं और किसी को भी अपने ऊपर हावी नहीं होने देते.

आप दिमाग की उपेक्षा दिल की सुनते हैं. अप तो योजनाबद्ध तरीके से चलते हैं और ही बहुत लम्बे समय तक एक ही राह पर चलना पसंद करते हैं. अपने इसी दृष्टिकोण के कारण आप जीवन में अनेको बार कठिनाईयों को झेलते हैं. आप मानवता में विश्वास रखते हैं परन्तु अत्यधिक संवेदनशील होने के कारण आप चोट पहुंचाने वालों को कभी क्षमा नहीं करते. स्वतंत्र सोच और धैर्य की कमी के कारण जीवन में आप बहुत बार निराशा का सामना करते हैं.

सभी प्रकार के कार्यों में भाग्य आज़माना आपके लिए संकट की स्तिथि पैदा कर सकता है. दूसरों पर आँखे बंद कर के विश्वास कर लेना आपके स्वभाव में है परन्तु व्यवसायिक क्षेत्र में यह आपको बहुत हानि पहुंचाएगा. 18 से 36 वर्ष का समय आपके लिए सामाजिक , आर्थिक और स्वास्थ्य के लिए संघर्ष लायेगा परन्तु 36 से 50 वर्ष तक का समय आपके लिए शुभ होगा.

पिता की उपेक्षा माता या मात्र पक्ष से आपका अधिक स्नेह रहेगा. वैवाहिक जीवन में  भी उतार चढ़ाव बना रहेगा.

रोहिणी नक्षत्र में जन्मी महिलाएं दुबली पतली परन्तु विशेष रूप से आकर्षक होती हैं. सदा अपने से बड़ों और माता पिता की आज्ञाकारिणी होती हैं. आप अपने रहने और खाने पीने में सदा सतर्क और सावधान  रहती हैं . पति के साथ सहमति बने रखना आपका स्वभाव है इसलिए आपके वैवाहिक सम्बन्ध मधुर ही होते हैं . आपकी संतान पुत्र और पुत्री दोनों ही  होते हैं. आप एक धनवान और ऐश्वर्यशाली जीवन व्यतीत करते हैं.

स्वभाव संकेत : विशाल आँखें

संभावित रोग: मुंह, गले, जीभ एवं गर्दन से सम्बंधित रोग

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. रोहिणी नक्षत्र के पहले चरण में जन्म होने के कारण जातक सौभाग्यशाली होगा. चन्द्रमा और मंगल की मित्रता के कारण धन व् ख्याति योग भी देगा. चन्द्रमा व् मंगल की दशा अन्तर्दशा में जातक की उन्नत्ति होगी. लग्नेश शुक्र की दशा उन्नति में विशेष सहायक होगी.

द्वितीय चरण : इस  चरण का स्वामी शुक्र हैं. रोहिणी नक्षत्र के दूसरे  चरण  में जन्म होने के कारण जातक को कुछ कुछ पीड़ा बनी रहेगी. शुक्र की दशा अन्तर्दशा में जातक की विशेष उन्नत्ति होगी.

तृतीय चरण : इस  चरण  का स्वामी बुध  हैं. रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण  में जन्म होने के कारण जातक डरपोक और भावुक होगा. चन्द्र व् बुध की दशा अशुभ  परन्तु लग्नेश शुक्र की दशा अन्तर्दशा में जातक की विशेष उन्नत्ति होगी.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. रोहिणी नक्षत्र के चौथे चरण  में जन्म होने के कारण जातक जातक सत्यवादी एवं सौन्दर्य प्रेमी होगा. चन्द्रमा की दशा शुभ फल देगी एवं शुक्र की दशा अन्तर्दशा में जातक की विशेष उन्नत्ति होगी.

 

 

5---- मृगशिरा नक्षत्र

नक्षत्र देवता: चन्द्र

नक्षत्र स्वामी: मंगल

मृगशिरा नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म मृगशिरा नक्षत्र में हुआ है तो आप स्वभाव से चतुर एवं चंचल होते हैं. आप अध्ययन में अधिक रूचि रखते हैं. माता पिता के आज्ञाकारी और सदैव साफ़ सुथरे आकर्षक वस्त्र पहनने वाले होते हैं. आपको श्वेत रंग अत्यधिक प्रिय है . मृगशिरा नक्षत्र में पैदा हुए जातकों का चेहरा बहुत ही आकर्षक एवं सुन्दर होता है. आपका झुकाव विपरीत लिंग की ओर सामान्यतः अधिक होता है. आपका मन सौम्य परन्तु कामातुर होता है.

भ्रमण करना आपको प्रिय है. आपका अधिकतर जीवन विलासितापूर्ण एवं ऐश्वर्यशाली होता है. आप आर्धिक रूप से धनि होने के साथ साथ बहुत ही सोच समझ  कर धन खर्च करने वाले होते हैं. अपने इसी स्वभाव के कारण मित्रों में आप कन्जूस भी कहलाते हैं. आपकी प्रगति में निरंतर बाधाएं आती रहती हैं तथा जीवन परिवर्तनशील रहता है. आप भी इस परिवर्तन को झेलते हुए जीवन में कई बार कार्य क्षेत्र बदलते हैं. आप किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले उसके हर एक पहलु पर अच्छी तरह सोच विचार कर  लेते हैं. स्वभाव से अक्सर गंभीर और शांत  रहने वाले मृगशिरा नक्षत्र में जन्मे जातक क्रोध कम करते हैं और यदि क्रोधित हो भी जाएँ तो शांत होने पर पश्चाताप भी करते हैं.

इस नक्षत्र में जन्मे जातकों का गायन वाद्य आदि कलाओं में अधिक रूचि होती है.

स्वभाव संकेत : बाधा रहित वैभव शाली जीवन

संभावित रोग: पेट और पाचन सम्बन्धी रोग, कन्धों में दर्द और जीवन में कोई विशेष दुर्घटना की संभावना

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य है . सूर्य और मंगल, दोनों ग्रहों का संयोग राजयोग देता है. फलस्वरूप ऐसा जातक राजतुल्य बनता है. उसके पास राजा समान ठाट बाट के सभी वस्तुएं रहती हैं. मंगल और सूर्य में मित्रता के कारण सूर्य और मंगल दोनों की दशाएं शुभ जायेंगी और शुक्र की दशा अन्तर्दशा में जातक की विशेष उन्नति होगी.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. अतः बुध और मंगल में शत्रुता के कारण जातक में झूठ बोलने एवं स्वर्ण चोरी के लक्षण आते हैं अर्थात जातक स्वर्णकार होगा . कुछ छिपाने की , चोरी की आदत स्वभाव में हे होती है. शुक्र की दशा अन्तर्दशा में जातक की उन्नति तो होगी परन्तु विशेष भाग्योदय करने में सहायक होगी.

तृतीय चरणइस चरण का स्वामी शुक्र  हैं. जो विलासप्रिय एवं भोगी हैं. अतः मृगशिरा नक्षत्र के  तृतीय चरण में पैदा होने वाला जातक ऐश्वर्या प्रिय, भोगी, कुटिल बुद्धि वाला होगा.  लग्नेश की दशा शुभ फल देगी.

चतुर्थ चरण :  इस चरण का स्वामी मंगल हैं. अतः मृगशिरा नक्षत्र के  चौथे  चरण में पैदा होने वाले जातक पर मंगल का प्रभाव अधिक रहेगा. जातक का जीवन धन धान्य से युक्त रहेगा एवं सदा लक्ष्मियुक्त रहेगा. लग्नेश बुध और मंगल  की दशा उत्तम फल देगी.

 

 

6--- आद्रा नक्षत्र

नक्षत्र देवता: शिव

नक्षत्र स्वामी:  राहु

आद्रा नक्षत्र  के जातकों का गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म आद्रा नक्षत्र में हुआ है तो आपकी रूचि अध्यन में बहुत अधिक होगी. आप सदैव ही अपने आस पास की घटनायों के बारे में जागरूक रहते हैं . किताबों से विशेष लगाव आपकी पहचान है. एक और विशेषता जो की आद्रा नक्षत्र में पैदा हुए जातकों में अक्सर देखी गयी है वह है उनकी व्यापार करने की समझ. अपनी तीक्ष्ण व्यापारिक बुद्धि के कारण आप व्यापर क्षेत्र में शीघ्र ही सफलता की उचाईयों को छू लेने में सक्षम होते है.

आपमें भविष्य में घटित होने वाली घटनायों का पूर्वाभास करने की अजब क्षमता होती है.  दूसरों की मन की बात भी आप आसानी से भांप लेते हैं, इसलिए जीवन में धोखा खाने की संभावनाएं कम ही रहती है  मीठी और रसीली बातें आपके व्यवहार में हैं इसलिए व्यापारिक संस्थायों में अधिकतर जनसंपर्क के पद के लिए आपको चुना जाता है. कड़े अनुशासन में रहना आप के बस की बात नहीं है .

जहाँ आप से किसी के दिल की बात छुपी नहीं रहती वहीँ आप अपने दिल की बात की किसी की भनक भी नहीं लगने देते . आप एक अन्तेर्मुखी व्यक्ति हैं जो शीघ्र ही किसी के सामने आपने दिल की बात नहीं रखते . कभी कभी आप रहस्यवादी बन जाते हैं जिसके मन की थाह पाना बहुत कठिन होता है. आप दिमाग से अधिक दिल की सुनने वाले व्यक्ति हैं. आप अक्सर सुनते सभी की हैं परन्तु करते हैं केवल अपने मन की. इस कारण आपको कभी कभी नुक्सान भी उठाना पड़ जाता है.  आप धन खर्च करने से पहले सोच विचार नहीं करते इस कारण जीवन में अधिकतर आप धन की कमी महसूस करते हैं.

स्वभाव संकेत : क्रोधी एवं अभिमानी

संभावित रोग: अस्थमा, दमा, डिप्थेरिया

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. राहु और बृहस्पति की युति के कारण गुरु चंडाल योग बनता है अतः इस योग में जन्मा जातक बहुत धन खर्च करने वाला व्ययी होता है. लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी तथा आपका भाग्योदय बृहस्पति की दशा में होगा.

द्वितीय चरण :  इस चरण का स्वामी शनि हैं. जो स्वल्प धनि है, राहु भी स्वलप धनि है अतः दोनों के योग के कारन जातक अपने जीवन काल में दरिद्रता का शिकार हो जाता है. लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी तथा आपका भाग्योदय बृहस्पति और शनि की दशा में होगा.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. शास्त्रों के अनुसार आद्रा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मे जातकों की आयु सामान्यतः कम होती है.  लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी. राहु भी शुभ फल देगा. तथा शनि की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. राहु और बृहस्पति की युति के कारण गुरु चंडाल योग बनता है अतः इस योग में जन्मे जातक में चोरी करने  की आदत पड़ जाती है. लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी. राहु भी शुभ फल देगा.

 

 

 

7--- पुनर्वसु नक्षत्र

नक्षत्र देवता: अदिति

नक्षत्र स्वामी: बृहस्पति

पुनर्वसु नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति बेहद मिलन सार और दूसरों से प्रेमपूर्वक व्यवहार रखने वाले होते हैं. परन्तु बहुत कम लोग आपके स्नेहपूर्वक व्यवहार को समझ पाते हैं और प्रायः आपके व्यवहार को कायरता से जोड़ देतें हैं. आपके गुप्त शत्रुओं की संख्या अधिक होती है.

आपको अधिक संतान की प्राप्ति भी होती है परन्तु उनका आपस में या आप के साथ  व्यवहार सौहार्दपूर्ण नहीं होता है. सहयोगी , पडोसी या ससुराल पक्ष में आप के प्रति षड़यंत्र बनते रहते हैं. पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातकों को सबसे अधिक भय अपने निकटतम मित्रों से होता है क्योंकि जीवन में कभी कभी आप अपने मित्रों द्वारा ही  विश्वासघात के शिकार होते हैं.

आप स्वभाव से शांत प्रकृति के व्यक्ति हैं देखने में सुन्दर और सुशील होते हैं. अपने दानी स्वभाव के कारण मित्रों और समाज में अधिक लोकप्रिय होते हैं. आजीवन धन और बल से युक्त रहते हैं . आपको समाज में मान प्रतिष्ठा की कमी नहीं रहती. आप सहनशील  एवं अपनी भाई बहनों से प्रेम करने वाले होते हैं. ईश्वर में पूर्ण आस्था एवं लोक परलोक का विचार सदैव आपके मन में रहता है इसलिए आप सदा ही सात्विक आचरण का समर्थन करते हैं.

स्वभाव संकेत: सुन्दर एवं सात्विक आचरण

रोग संभावना: खांसी, निमोनिया, सुजन, फेफड़ों में दर्द, कान से सम्बंधित रोग.

विशेषताएं :

प्रथम चरण : इस  चरण का स्वामी मंगल हैं. मंगल और बृहस्पति दोनों मित्र हैं. फलस्वरूप ऐसा जातक अपने जीवन में अनेकों सुख भोगता है. लग्नेश बुध की दशा शुभ फल देगी . शनि की दशा में भाग्योदय होगा. बृहस्पति की दशा में गृहस्थ एवं नौकरी का सुख मिलेगा.

द्वितीय चरण :इस चरण का स्वामी शुक्र हैं,जो दैत्यों के आचार्य हैं. अतः दोनों आचार्यों, बृहस्पति एवं शुक्र से सम्बन्ध रखने वाला जातक विद्वान् होगा. लग्नेश बुध की दशा माध्यम  फल देगी . बृहस्पति की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.  

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध  हैं. जो परस्पर विरोधी हैं. अतः पुनर्वसु नक्षत्र के तृतीय चरण में पैदा होने वाला जातक आजीवन रोगी होगा और कोई कोई बीमारी उसे जावन भर परेशान करेगी.  बृहस्पति एवं बुध  की दशाएं नष्ट फल  देंगी.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे  चरण में पैदा होने वाला जातक धन बल से युक्त, कवी ह्रदय, संगीत प्रेमी , कम प्रयत्न से अधिक लाभ कमाने वाला  परन्तु स्वभाव से कामुक होता है. इस नक्षत्र पर मंगल का होना जातक को स्वार्थी बना देता है और गुरु की उपस्तिथि में जातक समाज के सम्मानजनक पदों पर आसीन होता है.

 

 

8--- पुष्य नक्षत्र

नक्षत्र देवता: गुरु

नक्षत्र स्वामी:  शनि

पुष्य नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ है तो आपमें नित नए काम करने की प्रवृत्ति बनी रहेगी. हर बार नए काम की खोज और परिवर्तन  आपसे अधिक परिश्रम भी कराएगा. कठिन परिश्रम करने पर भी आपको सफलता आसानी से नहीं मिलेगी और फल प्राप्ति में अक्सर देरी हो जाती है. परन्तु आपको निराश होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आपकी बुद्धि बहुत तेज़ है और आगे बढ़ने के रास्ते भी खोज लेती है. आपके स्वभाव में भावुकता अधिक होने के कारण किसी भी कार्य की गहराई तक आप नहीं पहुँच पाते हैं.

अधिक भावुकता के कारण आप एक अच्छे और सच्चे प्रेमी होते हैं. किसी भी सम्बन्ध को बीच में छोड़ना आपकी प्रकृति में नहीं है. आप किसी से प्रेम करेंगे तो पूरे तन मन धन से उसके हो जायेंगे. इसी प्रकार आप दोस्ती भी निभाएंगे. मित्रों को सहयोग देने में आप कभी पीछे नहीं हटते और हे अपने स्वार्थ की चिंता करते है. आप स्वभाव से चंचल हैं. जलप्रिय होने के कारण आपको तैरना बहुत पसंद है.

इस नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति सचेत रहता है और अथक प्रयासों द्वारा शीघ्र हे अपनी मंजिल पा लेता है. आप अति साहसी किन्तु अति भावुक होते हैं. तीव्र बुद्धिशाली और बुद्धि के मामलों में आप किसी  पर विश्वास नहीं करते. वाकपटुता एवं बातों ही बातों में सामने वाले को मोहित करके अपना काम निकलवाना आपको आपको भली भाँती आता है.

चन्द्रम की चाँदनी आपको बहुत अधिक आकर्षित करती है. कल्पनाशील होने के कारण आप एक अच्छे लेखक , सुन्दर कवी, महान दार्शनिक एवं उच्च कोटि के साहित्यकार एवं भविष्यवक्ता भी हो सकते हैं.

आप मन से शांत एवं धार्मिक स्वभाव के होते हैं. अपने क्षेत्र के पंडित एवं विद्वान् होने के साथ साथ भाग्यशाली और धनि भी होते हैं. पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि है परन्तु इसके गुण गुरु तुल्य बताये गये है. इश्वर में पूर्ण आस्था , भाई बहनों से स्नेहपूर्ण सम्बन्ध एवं अपने से बड़ो का आदर सम्मान आपके स्वभाव में है.

पुष्य नक्षत्र में जन्मी महिलाएं भी बहुत धार्मिक विचारों वाली होती हैं. हर प्रकार के कार्यों में रूचि दिखाना इनके स्वभाव में हे होता है. यह विशाल ह्रदय वाली तथा दयाभाव रखने वाली होती हैं.

स्वभाव संकेत: इस नक्षत्र में जन्मे जातक हमेशा अभ्यासी पाए जाते हैं.

रोग संभावना : फेफड़ों एवं छाती से सम्बंधित रोग, काफ , पीलिया आदि

विशेषताएं

प्रथम चरण :  इस चरण का स्वामी सूर्य  हैं. पुष्य नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा व्यक्ति भाग्यशाली होता है एवं यात्राओं द्वारा धन अर्जित करता है. अपनी प्रतिभा के कारण उच्च वाहन ,विशाल भवन , पद एवं प्रतिष्ठा को प्राप्त करता है.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मा व्यक्ति एक से अधिक स्रोतों से धन अर्जित करता है. अपनी वाक्पटुता के कारण पक्ष विपक्ष दोनों से ही मधुर सम्बन्ध बना कर  रखता है.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. पुष्य नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मा व्यक्ति विद्यावान होता है. उच्च शिक्षा प्राप्त कर  कई शैक्षणिक उपाधियाँ प्राप्त करता है. ऐसा जातक जिस भी कार्य में हाथ डालता है उसे सफलता अवश्य मिलती है.

चतुर्थ चरण :  इस चरण का स्वामी मंगल हैं. पुष्य नक्षत्र के चौथे  चरण में जन्मा व्यक्ति धार्मिक स्वभाव वाला होता है अतः जातक धार्मिक और परोपकारी  कार्यों में पूर्ण रूचि दिखाते हैं. ऐसा जातक जिस भी कार्य में हाथ डालता है उसे सफलता अवश्य मिलती है.

 

 

 

9--- अश्लेशा नक्षत्र

नक्षत्र देवता: सर्प

नक्षत्र स्वामी: बुध

अश्लेशा नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

अश्लेशा नक्षत्र में जन्मे व्यक्तियों का प्राकृतिक गुण सांसारिक उन्नति में प्रयत्नशीलता, लज्जा व् सौदर्यौपसना है. इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति की आँखों एवं वचनों में विशेष आकर्षण होता है.  लग्न स्वामी चन्द्रमा के होने के कारण ऐसे जातक उच्च श्रेणी के डॉक्टर , वैज्ञानिक या अनुसंधानकर्ता भी होते हैं क्योंकि चन्द्रमा  औषधिपति हैं.  इस नक्षत्र में जन्मे जातक बहुत चतुर बुद्धि के होते हैं. आप अक्सर जन्म स्थान  से दूर ही रहते हैं. आपका वैवाहिक जीवन भी मधुर नहीं कहा जा सकता है. अश्लेशा नक्षत्र का स्वामी चन्द्र एवं नक्षत्र स्वामी बुध है. गंड नक्षत्र होने के कारण अश्लेशा का सर्पों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है.

अश्लेशा नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति अक्सर अपने वचनों से मुकर जाता है.  क्रोध आपकी नाक पर रहता है. किसी पर भी शीघ्र क्रोधित हो जाना आपके स्वभाव में होता है. बुध और चन्द्रमा में शत्रुता के कारण इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति की विचारधारा संकीर्ण होती है और मन स्तिथि कर्तव्यविमूढ़ बन जाती है. अश्लेशा नक्षत्र का व्यक्ति स्वभाव से धूर्त ,ईर्ष्यालु, शरारती, पाप कर्म करने से हिचकने वाला होता है.  ऐसा व्यक्ति किसी भी प्रकार के नियम या आचरण को नहीं मानने वाला होता है.

अश्लेशा जातक सदैव परकार्य सेवारत रहतें हैं. भाई की सेवा एवं नौकरी करना स्वाभाविक है. स्वतंत्र होने पर परोपकारी होते हैं.

अश्लेशा नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ ऊँचे कद और सुन्दर परन्तु झगडालू प्रवृत्ति की होती हैं. यह सदा दूसरों का अहसान मानने वाली तथा उच्च कोटि की प्रेमिका साबित होती हैं.  जिस से भी प्रेम करती है उसका साथ  मरते दम तक निभाती हैं.

अश्लेशा के अंत में गंड है अतः व्यक्ति अल्पजीवी होता है, इसलिए अश्लेशा का विधि विधान से शांति करवाना आवश्यक होता है.

स्वभाव संकेत: जो उपकार पर उपकार करे वह अश्लेशा जातक हैं.

रोग संभावना :सर्दी, कफ, वायु रोग, पीलिया  घुटनों का दर्द एवं विटामिन बी की कमी .

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी गुरु  हैं. अश्लेशा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा व्यक्ति अत्यधिक धनि होता है,परन्तु आमदनी अनैतिक कार्यों से होती है. विदेशों में भाग्योदय एवं वृद्धावस्था में अंग भंग का खतरा रहता है. धार्मिक, राजनितिक और सामाजिक कार्यों में पूर्ण रूचि परन्तु सफलता के लिए अन्याय और असत्य का सहारा भी लेते हैं. सच्ची मित्रता में कतई विश्वास नहीं है.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. अश्लेशा नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मा व्यक्ति धन एकत्रित करने में सदा असफल रहता है. पद प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं होती है परन्तु उसके हिसाब से धन प्राप्ति हेतु सारे  प्रयत्न विफल होते हैं.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. अश्लेशा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मा व्यक्ति धन एकत्रित करने में सदा असफल रहता है. पद प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं होती है परन्तु उसके हिसाब से धन प्राप्ति हेतु सरे प्रयत्न विफल होते हैं.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी गुरु हैं. अश्लेशा नक्षत्र के चौथे  चरण में जन्मे  व्यक्ति की पद प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं होती है परन्तु धन का अभाव सदा रहता है.

 

 

 

10----- मघा नक्षत्र

नक्षत्र देवता: पितृ

नक्षत्र स्वामी:  केतु

मघा नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म मघा नक्षत्र में हुआ है तो आप ठिगने कद के साथ सुदृढ वक्षस्थल और मजबूत झंघाओं के मालिक हैं. आपकी वाणी थोड़ी कर्कश एवं गर्दन थोड़ी मोटी है. मघा नक्षत्र में जन्म लेने वालों की आँखें विशेष चमक लिए हुए होती हैं. चेहरा शेर के समान भरा हुआ एवं रौबीला होता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति प्रायः अपने पौरुष और परुशार्थ के प्रदर्शन के लिए सदा ललायत रहते हैं. मघा नक्षत्र के जातकों को अपने रौबिलेपन को बढाने के लिए शानदार मूंछे रखने का शौक होता है. आप थोडा अभिमानी भी होते है और इसीलिए किसी की छोटी से छोटी बात पर भी शीघ्र ही  नाराज़ भी हो जाते हैं. नाराज़गी में सामने वाले को नीचा दिखने के लिए अपनी बलशाली शक्ति और मर्दानगी का दुरूपयोग करने से भी नहीं हिचकिचाते.

मघा नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति परम तेजस्वी होता है. आप स्वभाव से बहुत  धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं. देवताओं और पितरों को पूजे बिना कोई कार्य आरम्भ नहीं करते हैं

मघा नक्षत्र में जन्मी कन्याएं बहुमूल्य पकवान बनाना पसंद करती हैं. स्वादिष्ट पकवान एवं  सुंदर और आकर्षक वस्त्रों की शौक़ीन  मघा नक्षत्र की महिलाएं हर प्रकार के सुख सुविधा का भोग करती हैं. माता पिता और बड़ों का आदर सम्मान प्राकृतिक रूप से आपके व्यवहार में ही होता है. ईश्वर और पितरों से डरने वाली होती है.

स्वभाव संकेत: यदि आयु लम्बी हो तो मघा जातक धनवान होता है.

रोग संभावना : हार्ट अटैक, फ़ूड पोइस्निंग, पीठ का दर्द, किडनी सम्बन्धी समस्याएं

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. यहाँ लग्न स्वामी, नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र चरण स्वामी सभी में परम शत्रुता है इसलिए  मघा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा व्यक्ति अल्प पुत्र संतति वाला होता है. लग्न बलि नहीं होने से जातक का विकास कार्य रुका हुआ रहता है तथा सूर्य की दशा कमज़ोर फल देगी.

द्वितीय चरण :इस चरण का स्वामी शुक्र  हैं. मघा नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मा व्यक्ति तेजस्वी पुत्र संतति वाला होता है. लग्नेश सूर्य की दशा उत्तम फल देगी . मंगल की दशा भाग्योदय कारक है पर शुक्र की दशा में पराक्रम बढेगा.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. मघा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्मा व्यक्ति प्रायः रोगी होता है. जातक को संक्रामक रोग शीघ्र ही जकड लेते हैं. लग्नेश सूर्य की दशा उत्तम फल देगी . मंगल की दशा भाग्योदय होगा धन प्राप्ति के योग बुध की दशा में प्रबल होंगे.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य  हैं. मघा नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मा व्यक्ति अपने क्षेत्र का विद्वान् पंडित होता है.  लग्नेश सूर्य की दशा उत्तम फल देगी . मंगल की दशा में  भाग्योदय होगा .

 

 

 

11--- पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र

नक्षत्र देवता: भग

नक्षत्र स्वामी: शुक्र

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हुआ  है तो आप ऐसे भाग्यशाली व्यक्ति हैं जो समाज में सम्माननीय हैं और जिनका अनुसरण हर कोई करना चाहता है. आपमें आत्मविश्वास कूट कूट कर  भरा है तथा नेतृत्व की क्षमता आपमें बचपन से ही है.  इन्ही सब कारणों से आपके अधीनस्थ कर्मचारी आपसे भय खाते हैं . परिवार में भी आप एक मुखिया की भूमिका में रहते हैं. सभी छोटे बड़े कार्यों के लिए आपका परामर्श आवश्यक समझा जाता है तथा सभी सदस्य आपके द्वारा कहे गये वचनों को आज्ञा समझ कर पालन करते हैं.

आपको अनुशासन में रहना पसंद है तथा आप परिवार या कार्यस्थल पर  दूसरों से भी अनुशासन की अपेक्षा करते हैं. आपकी अनुशासनात्मक प्रवृत्ति पूर्ण रूप से सफल कही जा सकती है. आप प्रशासनिक क्षेत्रों  में बेहद सफल होते हैं .

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र शुक्र का नक्षत्र है इसका पर्याय भाग्य भी है. इस नक्षत्र में जन्मा जातक स्वभाव से चंचल एवं त्यागी होगा. दृढनिश्चयी होने के साथ साथ आप कामी भी होंगे. शुक्र एक कामुक गृह है इसमें चन्द्रमा आते ही  काम एवं चपलता आप पर हावी हो जाती है.

इस नक्षत्र में जन्मा जातक मनमोहक छवि और मीठा बोलने वाला होता है. आप दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं और दान देने में भी नहीं हिचकिचाते. शुक्र के कारण आपका व्यवहार सौम्य एवं मीठा होता है. आपककी सरकारी क्षेत्र में कार्य करने की संभावनाएं अधिक होती है तथा अपने गुणों के कारण आप राज्य से घनिष्ठ सम्बन्ध भी बना लेते हैं.

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में जन्मी स्त्री सौम्य स्वभाव की होगी. दूसरों की मदद और दान करना इनका विशेष गुण है. फाल्गुनी स्त्री क्रोधी और दृढ इच्छा रखने वाली होती हैं

स्वभाव संकेत: दान पुण्य पूर्वाफाल्गुनी का सहज स्वाभाव है

रोग संभावना : प्रेम में असफलता के कारण मानसिक कष्ट, कमर का दर्द, ह्रदय रोग, वायु एवं रक्त से सम्बंधित रोग.

विशेषताएं

प्रथम चरण :  इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक मीठा बोलने वाला एवं सुन्दर होता है.  इस नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा व्यक्ति सर्वगुण संपन्न एवं समर्थ होता है. लग्नेश सूर्य की दशा विशेष फल देगी तथा मंगल की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.

द्वितीय चरण : इस  चरण का स्वामी बुध  हैं. बुध के प्रभाव के कारण जातक वेद शास्त्रों का ज्ञाता एवं धर्म शास्त्रों का मर्मज्ञ होगा. सूर्य की दशा जातक के लिए स्वास्थ्यवर्धक होगी तथा मंगल की दशा- अन्तर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा. बुध की दशा में धन की प्राप्ति के योग बनेगे.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र  हैं.  लग्नेश सूर्य के साथ शुक्र का सम्बन्ध क्रूरता भरा है क्योंकि शुक्र एक दानवी ग्रह है. फलस्वरूप इस नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति क्रूर होगा. सूर्य की दशा जातक के लिए स्वास्थ्यवर्धक होगी तथा मंगल की दशा-अन्तर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा. बुध की दशा में धन की प्राप्ति के योग बनेगे.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं.  मंगल नक्षत्र स्वामी शुक्र का शत्रु एवं क्रूर ग्रह है. मंगल , सूर्य, शुक्र भी तेजस्वी ग्रह हैं. अतः जातक की आयु अधिक नहीं होगी. सूर्य की दशा माध्यम फल देगी एवं मंगल की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.

 

 

 

12---- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र

नक्षत्र देवता: अर्यमा

नक्षत्र स्वामी: सूर्य

उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति युद्ध विद्या में निपुण, लड़ाकू एवं साहसी होता है. आप देश और समाज में अपने रौबीले व्यक्तित्व के कारण पहचाने जाते हैं. उत्तराफाल्गुनी जातक दूसरों  का अनुसरण नहीं करते अपितु लोग उनका अनुसरण करते हैं. आपमें नेतृत्व के गुण जन्म से ही होते हैं अतः आप अपना कार्य करने में खुद ही सक्षम होते हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक दूसरों के इशारों पर चलना पसंद नहीं करता . यह लोग सिंह की भाँती अकेले ही अपना शिकार खुद करते हैं. उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र जातक राजा समान भोगी एवं पर स्त्री में रूचि रखने वाले होते हैं. चन्द्रमा के प्रभाव में यदि हो तो जातक विद्या बुद्धि से युक्त धनी एवं भाग्यवान होता है.

उत्तराफाल्गुनी  जातक मित्र बनाने के लिए  सदैव तत्पर रहते हैं.  मित्रों की सहायता करने तथा उनसे सहायता प्राप्त करने में भी यह संकोच नहीं करते. हैं. आप  मित्रों को बहुत महत्व देते हैं. मित्रता के सम्बन्ध में भी इनके साथ यह बातें लागू होती हैं, ये जिनसे दोस्ती करते हैं उसके साथ लम्बे समय तक मित्रता निभाते हैं। उदारता तथ दूसरों की सहायता करना आपके स्वभाव में ही  है.  आप अतिथितियों के आदर सत्कार में कभी कोई कमी नहीं छोड़ते हैं. आप बुद्धिमान होने के साथ साथ व्यवहार कुशल एवं हास्य प्रेमी भी हैं. अपनी इन्ही विशेषताओं के कारण आप सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में सक्षम होते हैं।

आपके लिए  व्यापार एवं व्यवसाय या अन्य निजि कार्य करना लाभप्रद नहीं होता है।जो व्यक्ति उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र  में पैदा होते हैं वे स्थायित्व में यकीन रखते हैं, इन्हें बार बार काम बदलना पसंद नहीं होता है। ये जिस काम में एक बार लग जाते हैं उस काम में लम्बे समय तक बने रहते हैं। इनके स्वभाव की विशेषता होती है कि ये स्वयं सामर्थवान होते हुए भी दूसरों से सीखने में हिचकते नहीं हैं। अपने स्वभाव की इस विशेषता के कारण ये निरंतन प्रगति की राह पर आगे बढ़ते हैं। उत्तराफाल्गुनी  जातक आर्थिक रूप से सामर्थवान होते हैं क्योंकि दृढ़विश्वास एवं लगन के साथ अपने लक्ष्य को हासिल करने हेतु तत्पर रहते हैं।पारिवारिक जीवन के सम्बन्ध में देखा जाए तो ये अपनी जिम्मेवारियों का पालन अच्छी तरह से करते हैं।

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक पंडित अर्थात  अपने क्षेत्र का विद्वान् होगा इसका कारक इस चरण का नवांशेश गुरु है. नक्षत्र स्वामी एवं सूर्य दोनों ही विद्या के लिए शुभ गृह है. दोनों का चन्द्र पर प्रभाव जातक को पंडित बनाएगा. मंगल की दशा अन्तर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा . गुरु की दशा शुभ फल देगी.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक राजा या राजा समान वैभवशाली एवं पराक्रमी होता है. लग्नेश बुध की दशा उत्तम फल देगी. शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. इस नक्षत्र में यदि चन्द्रमा भी है तो व्यक्ति हर हाल में अपने शत्रुओं पर विजयी होगा तथा प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त करेगा. लग्नेश बुध की दशा अच्चा फल देगी, शनि अनिष्ट फल नहीं देगा अपिटी शुक्र व् शनि की दशा में जातक का भाग्योदय होगा.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी गुरु हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक धार्मिक स्वभाव वाला, अपने संस्कारों के प्रति आस्थावान  एवं सभ्य होगा. शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा एवं बृहस्पति की दशा उत्तम फल देगी.

 

 

13--- हस्त नक्षत्र

नक्षत्र देवता: सूर्य

नक्षत्र स्वामी: चन्द्र

हस्त नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म हस्त नक्षत्र में हुआ है तो आप संसार को जीतने और उसपर शासन करने का पूरा पूरा सामर्थ्य एवं शक्ति रखते हैं. आपकी दृढ़ता और विचारों की स्थिरता आपको एक आम आदमी से भिन्नता और श्रेष्ठता प्रदान करती है . आप एक स्वतंत्र विजेता हैं जो अपने ज्ञान और समृद्धि के कारण जाने जाते हैं.  हस्त नक्षत्र के जातक सहृदयी और दयालु स्वभाव के होते हैं . जरुरतमंदों की निस्वार्थ मदद के लिए आप सदैव ही प्रशंसा पाते हैं. आप स्वभाव से थोड़े अध्यात्मिक और संगीत में रूचि रखने वाले होते हैं. आप अपने प्रियजनों के बीच रहना पसंद करते हैं परन्तु समय समय पर अपने कठोर निर्णयों के कारण कड़े एवं क्रूर हो जाते हैं.

 हस्त नक्षत्र के जातक अपनी अंदरूनी दृढ शक्ति के कारण बाहर से कठिन व्यक्ति प्रतीत होते हैं परन्तु वास्तविकता कुछ और ही है. अपने नम्र स्वभाव के कारण आप दूसरों को शीघ्र ही अपनी और आकर्षित कर लेते हैं . आपको जीवन में दया और मानवता के बदले में केवल आलोचना और कभी कभी विद्रोह का भी सामना करना पड़ जाता है. आपका जीवन बहुत से उतार चढ़ाव से भरा हुआ है जो बहुत ही छोटे -छोटे अंतराल बाद आकर आपकी मानसिक शांति भंग कर देता  हैं. आपका कठोर परिश्रम और कार्य के प्रति इमानदारी भी आपको स्थिरता नहीं दे पाती है.  हस्त नक्षत्र के जातक जीवन में कभी भी बहुत अधिक धनि या बहुत अधिक निर्धन नहीं रहते हैं यही स्तिथि उनके जीवन में सुख और दुःख को लेकर भी है इसलिए आपको सदा ही  संतुलित रहने का प्रयास करना चाहिए.

आप कभी किसी को भूल कर भी धोखा नहीं दे सकते क्योंकि आप इमानदारी पर विश्वास रखते हैं. यदि आपके साथ कोई विश्वासघात करता है तो आप क्रूरता और कठोरता के साथ उसका उत्तर देते हैं. समय के साथ आप अपने वास्तविक स्वभाव में जाते हैं और बाकि सब इश्वर पर छोड़ देते हैं. अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण आप किसी भी प्रकार के कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के योग्य हैं. आपका लक्ष्य कार्य में प्रभावी समाधान खोजना और कार्य को बिना अड़चन के पूर्ण करना होता है.  

आप अपने जीवन में 17-18 की आयु से ही  कमाना आरम्भ कर देते हैं परन्तु अडचने 48 वर्ष की उम्र तक आपका पीछा नहीं छोड़ती. आप अपने जीवन में समृद्धि और सुख 48 वें वर्ष के उपरान्त ही देख पाते हैं.

हस्त नक्षत्र में जन्मा जातक एक सुखी पारिवारिक जीवन व्यतीत करता है. छोटी छोटी अडचनों के बावजूद , एक अच्छे जीवन साथी के कारण पारिवारिक जीवन संतोष पूर्वक व्यतीत होता है. सर्वगुण संपन्न पत्नी के कारण आपका दाम्पत्य जीवन सुखी एवं सद्भावनापूर्ण होता है.

हस्त नक्षत्र में जन्मी जातिका कड़े स्वभाव की तथा अधिक इच्छा रखने वाली होती हैं. यह अपनी वित्तीय स्तिथि से सदा नाखुश और असंतुष्ट रहती हैं. दूसरों के धन और संपत्ति में रूचि रखना इनके स्वभाव में होता है. हस्त जातिका कार्य करने में चतुर एवं कुशल होती हैं.

स्वभाव संकेत: हस्त जातक सदैव आभार मानने वाले होते हैं.

रोग संभावना : हस्त नक्षत्र के जातकों में विटामिन बी की कमी देखने को मिलती है. गैस, अपच , अजीर्ण, हाथ तथा कंधे के जोड़ों के दर्द , सांस की तकलीफ.

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल  हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक शूरवीर एवं तर्कशास्त्र का ज्ञाता होता है. बुध की दशा हस्त जातक को उत्तम फल देगी. शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा तथा चन्द्रमा भी उत्तम फल देगा.

द्वितीय चरण :इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक आजीवन रोग से जूझता रहता है. जातक के शारीर में स्थायी बीमारी का योग बनता है. बुध की दशा अति उत्तम फल देगी . शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा तथा चन्द्रमा भी उत्तम फल देगा.

तृतीय चरण :  इस चरण का स्वामी बुध  हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक धनी एवं संपन्न होगा.  लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी . शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा तथा चन्द्रमा की दशा सामान्य रहेगी.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक धनी एवं संपन्न होगा. लग्नेश बुध की दशा अति उत्तम फल देगी . शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा तथा चन्द्रमा की दशा सामान्य रहेगी.

 

 

14--- चित्रा नक्षत्र

नक्षत्र देवता: विश्वकर्मा

नक्षत्र स्वामी: मंगल

चित्रा नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक शारीरिक रूप से मनमोहक एवं सुन्दर आँखों वाला होता है. आपको अनेक प्रकार की साज सज्जा का शौक होता है तथा अपने लिए नित नए आभूषण एवं वस्त्र आप खरीदते ही रहते हैं. आपका व्यक्तित्व आकर्षक एवं शारीरिक रूप से संतुलित होते हैं. व्यक्तित्व के यही गुण आपको भीड़ से अलग करते हैं.  आपकी पसंद  और सोच में अनूठापन है जिससे अक्सर महिलाएं आकर्षित हो जाती  है. आप स्वभाव से कामुक एवं स्त्रियों में अधिक रूचि रखने वाले होते हैं.

आप बेहद संवेदनशील हैं तथा भावुक हैं इसलिए आपकी बुद्धि अस्थिर रहती है और आपको निर्णय लेने में कठिनाई अक्सर आती है.  आप एक शांतप्रिय व्यक्ति हैं परन्तु अपनी स्पष्टवादिता के कारण विवादों में अक्सर फंस जाते हैं.  आपमें सुन्दरता और गुणों का समावेश है. आप दयालु और गरीबों के मदद करने वालों में से हैं. शत्रुओं को मुंहतोड़ जवाब देने की उपेक्षा आप अपने आप को बचाना बेहतर समझते है.

चित्र नक्षत्र में जन्मा जातक परिश्रमी होता है और अपने इसी गुण के कारण अपने जीवन में आई कई कठिनाईयों को पार करते हुए उन्नति पाता है.  कभी कभी आपको अपने द्वारा की गई मेहनत से अधिक भी मिल जाता है.  आपका जीवन 32 वर्ष तक उथल पुथल भरा रहता है परन्तु 32 से 52 वर्ष तक का समय आपके जीवन का बेहतर समय कहा जा सकता है. आप अपने पिता से अधिक माता से निकट होंगे हालाँकि आपके पिता समाज में एक सम्मानीय व्यक्ति होंगे परन्तु किसी कारणवश आपकी उनसे दूरी आजीवन बनी रहेगी. चित्रा नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति अपने जन्म स्थान से दूर जाकर ही सफल होता है. वैवाहिक जीवन में कुछ खटास रहती है परन्तु पारिवारिक जीवन में स्थिरता रहती है.

चित्रा नक्षत्र में जन्मी महिलाएं सफ़ेद वस्त्र पहनना पसंद करती हैं. सुंदर तथा हंसमुख स्वभाव वाली चित्रा जातिकाएं ईश्वर में विश्वास रखने वाली होती हैं. आप माता पिता की प्रिय तथा आपके  नेत्र विशेष रूप से सुंदर होते हैं. स्वभाव संकेत: सुंदर नेत्र

रोग संभावना : अल्सर, किडनी सम्बंधित रोग, दिमागी बुखार , अपेंडिक्स आदि.

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य  हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुए जातकों का झुकाव  चोरी एवं तस्करी में अधिक होता है. लग्नेश बुध की दशा शुभ फल देगी. शुक्र की दशा में जातक का भाग्योदय होगा. सूर्य की दशा अशुभ फलदायी होगी.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक सौंदर्य प्रेमी  होता है एवं उसकी रूचि संगीत, कला, चित्रकारी या फोटोग्राफी जैसे विषयों में अधिक होती है. लग्नेश बुध की दशा माध्यम फल देगी.

तृतीय चरण : इस  चरण का स्वामी शुक्र  हैं. नक्षत्र स्वामी मंगल एवं लग्नेश तथा नक्षत्र चरण स्वामी शुक्र दोनों  ही कामुक गृह हैं. फलतः जातक कामुक होगा तथा पराई स्त्री में रूचि रखने वाला होगा. लग्न बलि होने के कारण जातक का विकास रुका हुआ रहेगा. लग्नेश शुक्र एवं मंगल की दशा में कोई काम नहीं बनेगा.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल  हैं. नक्षत्र स्वामी मंगल एवं नक्षत्र चरण स्वामी भी मंगल होने के कारण जातक के शारीर पर चोट अथवा पीड़ा का निशान रहेगा. लग्नेश शुक्र की दशा अच्चा फल देगी. मंगल की दशा अन्तर्दशा उत्तम फल देगी.

 

 

 

15--- स्वाति नक्षत्र

नक्षत्र देवता: वायु

नक्षत्र स्वामी: राहु

स्वाति नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म स्वाति नक्षत्र में हुआ है तो आप एक आकर्षक चेहरे और उससे भी अधिक आकर्षक  व्यक्तित्व के स्वामी हैं. आपका शारीर सुडौल एवं भरा हुआ है. इस कारण आप कहीं भी जाएँ भीड़ से अलग ही दिखते हैं. आप जैसा सोचते हैं वैसा करते हैं . दिखावा आपको पसंद नहीं .

आप एक स्वतंत्र आत्मा के स्वामी है जिसको किसी के भी आदेश का पालन करना कतई पसंद नहीं. आप किसी पर भी तब तक मेहरबान रहते हैं जब तक कि सामने वाला आपकी आज़ादी में दखल दे. जो भी आपकी आजादी को नुक्सान पहुचाएगा वो आपके कोप भाजन का शिकार अवश्य होगा. वास्तविकता तो यह है कि आप या तो किसी के परम मित्र हो सकते हैं या फिर परम शत्रु.

आप स्वभाव से बहुत ही स्वाभिमानी और उच्च विचार धारा के व्यक्ति हैं . तो आपको किसी की संपत्ति में रूचि है और ही अपनी संपत्ति में किसी की हिस्सेदारी आपको पसंद है. आपको अपने कार्यों पर किसी की टिप्पणी कतई पसंद नहीं है. यदि आपकी नज़र में सामने वाला दोषी है तो बदला लेने में आप किसी भी हद तक जा सकते हैं . आप अपने कार्यों को पूरे मन लगा कर मेहनत और इमानदारी के साथ करते है.  आप अपने जीवन के शरुआती 25 वर्षों में व्यवसायिक रूप से बहुत कठिनाईयां झेलेंगे. परिश्रम  के अनुरूप फल प्राप्त नहीं होगा परन्तु 30 वर्ष के उपरान्त आपको अपने किये हुए कार्यों का ब्याज समेत भुगतान मिलेगा. स्वाति नक्षत्र के जातकों के लिए न्यायिक व्यवस्था में कार्य करना सबसे अधिक लाभप्रद है. सैन्य क्षेत्र में आप अधिक तरक्की करते है.

आपका वैवाहिक जीवन बहुत सुखमय नहीं होगा क्योंकि आपसी वैचारिक  मतभेदों के कारण घर में शांति नहीं रहेगी फिर भी स्तिथि स्थिर रहेगी और बिगड़ेगी नहीं.

स्वाति नक्षत्र की जातिका कभी आलस करने वाली होती हैं. दिखने में साधारण शक्ल सूरत किन्तु बुद्धि से चपल एवं किसी भी स्तिथि में अपने मनोरथ पूरे करने वाली होती हैं. इस नक्षत्र में जन्मी जातिका जिद्दी होने के कारण कभी कभी अच्छे बुरे कार्य में भेद नहीं कर  पाती है.

स्वभाव संकेत: स्वाति नक्षत्र का जातक अपने स्वभाव से प्रसन्नता देता है.

रोग संभावना : यौन रोग , मूत्र से सम्बंधित रोग

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी गुरु  हैं. इस नक्षत्र में पैदा हुआ जातक चोर प्रवृत्ति का होता है . नक्षत्र स्वामी राहु गुरु को बिगाड़ कर अपना फल देता है अतः जातक चोर प्रवृत्ति का होगा.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि  हैं.  राहु व् शनि दो पाप ग्रहों के प्रभाव में आने से जातक अल्पायु  होता है. लग्नेश शुक्र की दशा अच्छी जाएगी. राहु और शनि की मित्रता के कारण दोनों की दशाओं में  जातक को  स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना होगा .

तृतीय चरण :  इस चरण का स्वामी शनि  हैं. इस नक्षत्र में जन्मे जातक पर शनि और राहु के प्रभाव के कारण वैराग्य आएगा अतः जातक धार्मिक प्रवृत्ति का होगा. राहु और शनि की मित्रता के कारण दोनों की दशाओं में  जातक को  स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना होगा .

चतुर्थ चरण :  इस चरण का स्वामी गुरु  हैं. इस नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति राजा समान होता है तथा बहुत अधिक भू संपत्ति का स्वामी होता है. राहु एवं गुरु की दशाएं अशुभ फल देंगी.

 

 

16--- विशाखा नक्षत्र

नक्षत्र देवता: इन्द्राग्नी

नक्षत्र स्वामी: गुरु

विशाखा नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म विशाखा नक्षत्र में हुआ है तो आप शारीरिक श्रम के स्थान पर मानसिक कार्यों को अधिक वरियता देते हैं. शारीरिक श्रम करना आपके बस की बात नहीं है और इससे आपका भाग्योदय भी नहीं होगा. मानसिक रूप से आप सक्षम व्यक्ति है और कठिन से कठिन  कार्य को भी अपनी  समझ बूझ  से शीघ्र ही  निबटा लेते हैं. स्वभाव से ईर्ष्यालु परन्तु बोल चाल से अपना काम निकलने का गुण अपमे स्वाभाविक रूप से ही है. वाक् पटुता आपका सहज गुण है. मार्केटिंग और सेल्स मैन शिप का कार्य आपके लिए विशेष लाभप्रद है. ब्लैक मार्केटिंग से भी आपका सम्बन्ध हो सकता है.  आपका व्यक्तित्व सुंदर एवं आकर्षक है इसलिए लड़के/लड़कियां  हमेश ही आपकी और खिचे चले आते हैं जिसका आप लाभ उठाने से नहीं चूकते. सेक्स के मामले में आप बहुत ही रंगीले व्यक्ति हैं.

विशाखा नक्षत्र में जन्मे जातक को क्रोध शीघ्र ही  जाता है. विपरीत बात आपसे सहन नहीं होती है और बिना सोचे समझे या परिणाम की चिंता किये बिना आप सामने वाले से टकरा जाते हैं. हालाँकि मन मन ही मन घबराते  भी हैं परन्तु अपनी घबराहट बाहर प्रकट नहीं होने देते हैं. क्रोधित होने पर अपशब्द कहना और बाद में पछताना आपके व्यवहार में है.

यदि आपका जन्म 17 अक्टूबर से 13  नवम्बर के बीच हुआ है तो आपका आत्मबल बेहद कमज़ोर होगा. हालाँकि दिमाग में रात दिन कुछ कुछ चलता रहता है या यूँ कहे ख्याली पुलाव पकते रहते हैं.  आप कला और विज्ञान के क्षेत्र में भी रूचि रखते हैं. बचपन से ही पिता के साथ आपका मन मुटाव चलता रहता है. किशोरावस्था तक जीवन में लापरवाही रहती है. एवं उद्देश्य की कमी के कारण भटकाव भी होते हैं.

विशाखा नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ धार्मिक प्रवृत्ति की होती हैं. विशाखा नक्षत्र की जातिका उद्यमी परन्तु स्वभाव की कोमल एवं नम्र ह्रदय की होती हैं. धन ,ऐश्वर्ययुक्त एवं सत्य का साथ देने वाली होती हैं. अपने इन्ही गुणों के कारण विशाखा नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ समाज में मान सम्मान तथा पूजनीय स्थान प्राप्त करती हैं.

स्वभाव संकेत: ईर्ष्यालु प्रवृत्ति

रोग संभावना : चमड़ी के रोग, मधुमेह, पेशाब और स्त्रियों में गर्भाशय से सम्बंधित रोग, टी बी  इत्यादि

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल  हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक तर्कशील एवं नीतिशास्त्र में निपुण होता है. लग्न नक्षत्र स्वामी गुरु एवं नक्षत्र चरण स्वामी मंगल में परस्पर शत्रुता होने से गुरु एवं धनेश मंगल  दोनों की दशाएं अशुभ फल देंगी.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. गुरु व् शुक्र के प्रभाव से जातक धार्मिक शास्त्रों का ज्ञाता, दार्शनिक एवं शास्त्रवेत्ता होता है. गुरु एवं शुक्र की परस्पर शत्रुता के कारण गुरु की दशा अशुभ  फल देगी. गुरु में शुक्र या शुक्र में गुरु का अन्तर भी अशुभ फल देगा.

तृतीय चरण :  इस चरण का स्वामी बुध हैं. गुरु ज्ञान एवं बुध तर्क का प्रतीक है. ऐसे जातक में वाद विवाद और तर्क करने की प्रखरता आती है. शुक्र की दशा माध्यम फल देगी. गुरु एवं बुध में शत्रुता होने से गुरु एवं बुध दोनों की ही दशा अशुभ फल देगी.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र  है. चन्द्र मंगल तथा बृहस्पति दोनों का ही मित्र है फलतः चन्द्रमा की दशा में जातक का भाग्योदय होगा. मंगल की दशा भी शुभ फल देगी. जातक लग्न बलि एवं चेष्टावान होगा. विशाखा नक्षत्र के चौथे चरण में जन्म लेने वाला जातक लम्बी आयु भोगने वाला होता है.

 

 

 

17--- अनुराधा नक्षत्र

नक्षत्र देवता: मित्र

नक्षत्र स्वामी:  शनि

अनुराधा नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म अनुराधा नक्षत्र में हुआ है तो आपका अधिकाँश जीवन विदेशों में ही बीतेगा परन्तु अच्छी बात यह है कि विदेशों में रहकर आप अधिक धन कमाएंगे और समाज में मान सम्मान प्राप्त करेंगे. आप बहुत साहसी एवं कर्मठ व्यक्तित्व के स्वामी हैं. परिस्थितियों की मार के सामने आप झुकने वालों में से नहीं हैं. आप चुपचाप बिना रुके और बिना थके निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं.

आप बहुत दृढ इच्छाशक्ति एवं तीक्ष्ण बुद्धि के मालिक हैं.  इस नक्षत्र में जन्मा जातक भ्रमणशील प्रवृत्ति का होता है . आप खाने पीने के बहुत अधिक शौक़ीन हैं इसलिए अधिकतर समय आप स्वादिष्ट व्यंजनों की ही खोज में रहते हैं.

सब कुछ होते हुए भी जीवन में कभी कभी ऐसा समय भी आएगा की आप धन की कमी महसूस करेंगे. जन्म स्थान से पृथक होने का दुःख भी यदा कदा सताता रहेगा. परन्तु आप बहुत मेहनती हैं और शारीरिक श्रम से कभी नहीं घबराते इसलिए बहुत जल्द ही घटनायों से उबरने की कोशिश करते है.

अनुराधा नक्षत्र में जन्मी महिलाएं भी खाने की बेहद शौक़ीन होती हैं और सामान्य से अधिक भोजन करने और पचाने में सक्षम होती है. स्वभाव से भ्रमणशील परन्तु झगडालू प्रवृत्ति होने के कारण कभी कभी क्रूरतापूर्वक व्यवहार भी करती हैं.

स्वभाव संकेत: सुंदर बाल अनुराधा नक्षत्र के संकेत हैं.

रोग संभावना : पेट और गले से सम्बंधित रोग एवं स्त्रियों में मासिक धर्म से जुडी समस्याएं.

विशेषताएं

प्रथम चरण :  इस चरण का स्वामी सूर्य  हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक उतावले स्वभाव का होता है. सूर्य लग्न स्वामी मंगल का मित्र है परन्तु लग्न नक्षत्र स्वामी का शत्रु है अतः सूर्य की दशा मिश्रित फल देगी. शनि की दशा में भौतिक रूप से उन्नति होगी. लग्नेश मंगल की दशा अत्यंत शुभ फल देगी.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध  हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक धार्मिक स्वभाव  का होता है. बुध लग्न स्वामी मंगल का शत्रु  है . बुध में शनि का अंतर एवं शनि में बुध का अंतर शुभ फलदायी होगा.  परन्तु शनि में मंगल या मंगल में शनि का अंतर अशुभ फल देगा. मंगल की दशा में जातक उन्नति करेगा.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र  हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक दीर्घायु प्राप्त करता है . अनुराधा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है जो शनि का शत्रु परन्तु मंगल का मित्र है फलतः शुक्र की दशा माध्यम फल देगी . शनि की दशा में पराक्रम बढेगा तथा भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति होगी. मंगल की दशा अत्यंत उत्तम फल देगी.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक प्रायः नपुंसक होता है. अनुराधा नक्षत्र के चौथे  चरण का स्वामी मंगल  है तथा लग्न स्वामी भी मंगल है अतः मंगल की दशा- अनार्दशा जातक को उत्तम फल देगी. शनि की दशा माध्यम फल देगी क्योंकि शनि और मंगल में शत्रुता है.

 

 

 

18--- ज्येष्ठ नक्षत्र

नक्षत्र देवता: इंद्र

नक्षत्र स्वामी:  बुध

ज्येष्ठ नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म ज्येष्ठ नक्षत्र में हुआ है तो आप दृढ निश्चयी और मज़बूत व्यक्तित्व के स्वामी है. आप नियम से जीवन व्यतीत करना पसंद करते हैं. आपकी दिनचर्या सैनिकों की तरह अनुशासित और सुव्यवस्थित होती है. आप शारीरिक रूप से गठीले और मज़बूत होते हैं तथा कार्य करने में सैनिकों के समान फुर्तीले होते हैं. किसी के बारे में आपके विचार शीघ्र नहीं बदलते और दूसरों को आप हठी प्रतीत होतें है. आप एक बुद्धिमान और बौधिक विचारधारा पर चलने वाले व्यक्ति हैं. आप बुद्धिमान व्यक्तियों का सम्मान करते हैं और सदैव सच्चे लोगो के बीच रहना पसंद करते हैं.

आप अपने हठीले स्वभाव के कारण जीवन में कई बार कठिनाईयों का सामना करते हैं. आप अपने विचारों पर इतना दृढ रहते हैं की आपको बदलते हुए समय और स्तिथियों के अनुसार ढालना बहुत कठिन कार्य है.  आप अपने साथ बहुत साजो सामान रखना पसंद नहीं करते जबकि ओरों को आप घमंडी प्रतीत होते है  वास्तिविकता इसके बिलकुल उलट है आप ह्रदय से एकदम सच्चे और पवित्र होते है. आपकी सबसे बड़ी कमी है किसी भी राज़ को आप राज़ नहीं रहने देते, चाहे फिर वह आपका अपना हो या किसी और का. ज्येष्ठा नक्षत्र के जातकों को अक्सर शराब या नशीले पदार्थों का सेवन करते हुए देखा गया है क्योंकि आपमें स्तिथियों से निबटने की अंदरूनी ताकत नहीं होती है. दिखावे में आपका विश्वास नहीं है इसलिए आपके मित्र भी बहुत कम होते हैं.

आप बहुत कम उम्र से ही कमाने लग जाते हैं और आजीवन किसी की मदद लेना पसंद नहीं करते हैं . करियर के कारण आप अपने घर से दूर रहते हैं और 18 से 26 वर्ष तक बहुत से व्यवसाय बदलते हुए आगे बड़ते हैं. अधिक बदलाव के कारण धन की कमी भी आपको अति है. 27 वर्ष के बाद कुछ स्थिरता आती है और आप अपनी मेहनत और लगन के कारण तरक्की पाते हैं.

ज्येष्ठ नक्षत्र के जातक अपने जीवन साथी के कारण सुख और ख़ुशी का अनुभव करते हैं परन्तु पति/पत्नी के रोगी होने पर उनसे दूरी बनाना इनके लिए मजबूरी बन जाता है.

ज्येष्ठ नक्षत्र की जातिका स्वभाव से झगडालू एवं जिद्दी होती है. घात लगाकर सामने वाले से बदला लेना उसके स्वभाव में होता है. अपनी कर्कश जुबान और तीखे व्यक्तित्व के कारण समाज में अक्सर इनकी निंदा की जाती है.

स्वभाव संकेत: दूसरों को मुसीबत में देख आनंद उठाने वाला ज्येष्ठा नक्षत्र का जातक होता है.

रोग संभावना : हाथ और कन्धों के जोड़ों का दर्द, आंत से सम्बंधित रोग, खांसी जुकाम

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक क्रूर होता है. बृहस्पति लग्नेश मंगल का शत्रु है तथा नक्षत्र स्वामी बुध का भी शत्रु है. अतः बुध या मंगल की दशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा अशुभ फल देगी. बृहस्पति की अपनी दशा शुभ फलदायी होगी. मंगल की दशा अन्तर्दशा शुभ फलों से परिपूर्ण होगी.

द्वितीय चरण :  इस चरण का स्वामी बुध हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक भोग और विलासितापूर्ण जीवन जीता है. . इस चरण का स्वामी बुध है तथा नक्षत्र स्वामी भी बुध होने के कारण बुध की दशा उत्तम फल देगी. बुध में मंगल का अंतर या मंगल में बुध का अंतर कष्टदायी होगा.

तृतीय चरण :  इस  चरण का स्वामी शनि हैं. इस नक्षत्र में जन्मा जातक विद्वान् व्यक्ति होगा. शनि लग्नेश मंगल का शत्रु है परन्तु बुध का मित्र है अतः शनि में बुध का अंतर या बुध में शनि का अंतर शुभ फल देगा. लग्नेश मंगल की दशा अन्तर्दशा शुभ फल देगी.

चतुर्थ चरण :  इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. इस नक्षत्र में जन्मे जातक को पुत्र सुख अवश्य प्राप्त होता है. शुक्र लग्नेश मंगल का मित्र है परन्तु बुध का शत्रु अतः शुक्र की दशा मिश्रित फल देगी और बुध की दशा अत्यंत शुभ फल देगी. मंगल की दशा भी शुभ फलदायी होगी.

 

19--- मूल नक्षत्र

नक्षत्र देवता: नैऋति

नक्षत्र स्वामी:  केतु

मूल नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है तो आपका जीवन सुख समृद्धि के साथ बीतेगा. धन की कमी आपको कभी नहीं आएगी और आप अपने कार्यों द्वारा अपने परिवार का नाम और सम्मान और बढ़ाएंगे. आप कोमल हृदयी परन्तु अस्थिर दिमाग के व्यक्ति है. कभी आप बहुत दयालु और कभी अत्यधिक नुक्सान पहुंचाने वाले होते है. ऐश्वर्य पूर्ण जीवन के कारण आपका उठना बैठना समाज के धनि एवं उच्च वर्ग के व्यक्तियों के साथ ही होता है, इस कारण आपके व्यक्तित्व में घमंड आना स्वाभाविक है. आपका व्यवहार बहुत ही अनिश्चित होता हैसमय और स्थान के साथ ये परिवर्तित हो जाता है.

अपनी आकर्षक आँखों और सम्मोहक व्यक्तित्व के कारण आप अनायास ही लोगों के आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं. आप शांतिप्रिय और एक सकारत्मक सोच वाले व्यक्ति हैं जो भविष्य की चिंता छोड़ केवल आज में जीना पसंद करते हैं. मूल नक्षत्र में जन्मे जातक सिद्धांतों और नैतिकता में बहुत अधिक विश्वास करते हैं परन्तु अपनी अस्थिर सोच के कारण कभी कभी आपके व्यवहार को समझना बेहद कठिन हो जाता है. आपमें गंभीरता  की कमी है परन्तु ईश्वर पर आपका विश्वास अटूट है.

मूल नक्षत्र के जातक आपने कार्य के प्रति मेहनती और निष्ठावान होतें हैं व् अधिकतर कला, लेखन, प्रशासनिक, मेडिकल या हर्बल क्षेत्र में सफल माने जाते हैं. आप एक प्रभावशाली, बुद्धिमान और नेतृत्व के गुणों से भरपूर व्यक्ति हैं इसलिए यदि आप सामाजिक या राजनीतिक क्षेत्रों में भाग्य अजमाए तो आप शीघ्र ही उच्चस्थ पद प्राप्त कर लेंगे.

अपनी अस्थिर सोच के कारण जीवन में कई बार आप अपने कार्यक्षेत्र बदलते हैं. आप एक अच्छे वित्तीय सलाहकार होते हैं परन्तु केवल दूसरों के लिए. आप बिना सोचे समझे धन खर्च करने वालों में से हैं इसलिए जीवन में कई बार आपको आर्थिक संकट से सामना करना पड़ सकता है.

आपको विदेश में कार्य का प्रस्ताव कभी ठुकराना नहीं चाहिए क्योंकि विदेश में आपका भाग्योदय निश्चित है. जीवन के शरुआती वर्षों में आपको पिता या भाई-बहन का सहयोग के बराबर मिलने के कारण आप स्वयं संघर्ष कर जीवन में सफल होते हैं.

मूल नक्षत्र जातकों का दांपत्य जीवन बेहद सुखमय एवं संतोषजनक होता है. आपकी पत्नी के कारण आप जीवन में शांति और आनंद का अनुभव करते हैं.

मूल नक्षत्र की जातिका सामान्य से अधिक कद वाली होती हैं. यह अच्छे और बुरे कार्यों में भेद नहीं करती इसलिए पाप कर्मों में रूचि लेने लगती हैं.

स्वभाव संकेत: किसी को मूर्ख बना कर घमंड करना मूल जातकों की निशानी है.

रोग संभावना : कमर और कुल्हे का दर्द, टी बी और लकवा

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल  हैं. नक्षत्र चरण स्वामी मंगल की गुरु एवं केतु से शत्रुता के कारण इस नक्षत्र में जन्मा जातक जीवन भर भौतिक सुखों के प्राप्ति हेतु संघर्षरत रहता है. लगन्बली होने के कारण विकास रुका हुआ रहेगा परन्तु सूर्य की दशा अच्छी जाएगी.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र  हैं. लग्नेश गुरु की नक्षत्र स्वामी केतु से शत्रुता है परन्तु नक्षत्र चरण स्वामी शुक्र की केतु से मित्रता के कारण जातक में त्याग अथवा दान  की प्रवृत्ति अधिक होगी. सूर्य की दशा में जातक का भाग्योदय होगा. शुक्र की दशा भी ख़राब नहीं जाएगी और केतु की दशा शुभ फल देगी.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी बुध  हैं. मूल नक्षत्र के तीसरे चरण में जनम लेने वाले जातक के अधिक मित्र होंगे एवं सभी सुयोग्य होंगे. लग्नेश गुरु की दशा अति उत्तम फल देगी. सूर्य की दशा में जातक का भाग्योदय होगा. केतु एवं बुध की दशाएं भी शुभ फल देंगी.

चतुर्थ चरणइस चरण का स्वामी चन्द्र हैं. लग्नेश गुरु और चन्द्रमा की मित्रता के कारण मूल नक्षत्र के चौथे  चरण में जन्म लेने वाला जातक राजा के समान सम्मान एवं ऐश्वर्य प्राप्त करता है. लग्नेश गुरु की दशा अति उत्तम फल देगी. सूर्य की दशा में जातक का भाग्योदय होगा. शुक्र की दशा भी ख़राब नहीं जाएगी.

 

 

 

20---- पूर्वाषाढा नक्षत्र

नक्षत्र देवता: उदक

नक्षत्र स्वामी: शुक्र

पूर्वाषाढा  नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

पूर्वाषाढा में जन्म लेने वाला जातक थोडा नकचढ़ा और उग्र स्वभाव के होने बावजूद कोमल हृदयी और दूसरों से स्नेह रखने वाला होता है. आप जीवन में सकारत्मक विचारधारा से आगे बढ़ते हुए अपने लक्ष्य प्राप्त करते हैं. आपका व्यक्तित्व दूसरों पर हावी रहता है परन्तु आप एक संवेदनशील व्यक्ति हैं जो दूसरों की मदद के लिए सदैव तैयार रहतें है . अपने इन्ही गुणों के कारण आप को बहुत अधिक प्रेम व् सम्मान भी मिलता है परन्तु अपनी चंचल बुद्धि के कारण आप अधिक वफादार नहीं होते हैं और कभी कभी अनैतिक कार्यों में भी लिप्त हो जाते हैं. कुल मिलकर आप एक जटिल व्यक्ति हैं जिसे समझाना मुश्किल है. इस नक्षत्र में जन्मे जातक बुद्धिजीवी होते हैं और अपनी मेहनत और सत्यनिष्ठा के कारण आगे बढ़ते हैं. जीवन में कई बार जहाँ आपको असंभावित व्यक्तियों से मदद मिलती है वहीँ करीबी और मित्रों से धोखा.

आप बेहद हिम्मती व्यक्ति हैं परन्तु कभी कभी निर्णायक स्तिथि में पहुँचने के लिए किसी दूसरे का मार्गदर्शन आपके लिए आवश्यक हो जाता है. किसी निर्णय पर पहुंचकर आपको हिलाना संभव नहीं है इसी कारण आप कभी कभी जिद्दी भी समझे जाते हैं. आपको अपने कार्यों में किसी का हस्तक्षेप कतई पसंद नहीं है चाहे आप कितने भी गलत क्यों हों.

यदि पूर्वाषाढा जातक व्यवसाय में हो तो अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के चुनाव में अधिक सतर्क रहें क्योंकि उनकी सफलता इन्ही करमचारियों पर निर्भर करती है. वैसे आपके लिए मेडिकल, कला , दर्शन शास्त्र और विज्ञान से सम्बंधित क्षेत्र सर्वोत्तम हैं.

आपका जिद्दी और कठोर स्वभाव ही  आपके लिए जीवन में रुकावटें लता है. 32 वर्ष तक आप संघर्षरत हैं रहते हैं और 50 वर्ष तक आते आते आप अपने करियर में चमकते हैं.

जीवन में पता पिता का सहयोग के बराबर रहता है परन्तु भाई बहनों के प्रेम और सहयोग के कारण आप सफलता प्राप्त करते हैं. व्यवसायिक दाईत्व के कारण आपको अपने जन्म स्थल से दूर जाना पद सकता है.

आपका विवाह थोडा विलम्ब से होता है परन्तु एक अच्छे जीवन साथी के कारण आपका दांपत्य जीवन सुखमय एवं आनंददायक होता है. आपका  अपनी पत्नी और ससुराल पक्ष से बेहद लगाव रहेगा. आपकी संतान बुद्धिमान एवं आपका नाम रोशन करने वाली होगी.

पूर्वाषाढा में जन्मी जातिका धार्मिक , शील और बहुत ही नम्र स्वभाव की होगी. झूठ से नफरत करने वाली एवं ईश्वर में पूर्ण आस्था रखने वाली होगी. दया भाव एवं दान पुण्य करना इनके स्वभाव में ही  होता है.

स्वभाव संकेत: पूर्वाषाढा जातकों की ऊँचाई औसतन व्यक्ति से अधिक होती है.

रोग संभावना : कमर और कुल्हे का दर्द, टी बी , मधुमेह , रक्त विकार और कैंसर

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी सूर्य  हैं. दोनों ग्रह परस्पर शत्रु होते हुए भी तेजस्वी हैं इसलिए इस चरण में जन्मा जातक अपनी जाती का तेजस्वी एवं श्रेष्ठ व्यक्ति होता है. गुरु की दशा शुभ फल देगी. सूर्य की दशा में जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा. शुक्र की दशा सामान्य जाएगी.

द्वितीय चरण :इस चरण का स्वामी बुध  हैं. गुरु एवं शुक्र दोनों आचार्य एवं बुद्धि प्रधान ग्रह हैं. परस्पर शत्रु होते हुए भी तेजस्वी हैं . बुध और शुक्र की मित्रता के कारण व्यक्ति राजा तुल्य पराक्रमी एवं बुद्धिशाली होगा. गुरु की दशा उत्तम फल देगी. सूर्य की दशा में जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा. बुध की दशा भी श्रेष्ठ फल देगी. शुक्र की दशा सामान्य जाएगी.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र  हैं. दोनों ग्रह गुरु और शुक्र  परस्पर शत्रु होते हुए भी तेजस्वी हैं इसलिए इस चरण में जन्मा जातक प्रिय , मीठी एवं हितकर वाणी बोलेगा. गुरु की दशा शुभ फल देगी. शुक्र की दशा में जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा. शुक्र की दशा कभी भी अशुभ फल नहीं देगी.

चतुर्थ चरण :  इस चरण का स्वामी मंगल  हैं. दोनों ग्रह गुरु और शुक्र परस्पर शत्रु हैं. मंगल से भी शुक्र की शत्रुता है इसलिए इस चरण में जन्मा जातक संघर्ष करता हुआ धनी होगा.  गुरु की दशा शुभ फल देगी. सूर्य की दशा में जातक का सम्पूर्ण भाग्योदय होगा. मंगल की दशा विदेशों की यात्रा या तीर्थ  कराएगी शुक्र की दशा सामान्य जाएगी.

 

 

21--- उत्तराषाढा नक्षत्र

नक्षत्र देवता: विश्वेदेवता

नक्षत्र स्वामी: सूर्य

उत्तराषाढा  नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म उत्तराषाढा नक्षत्र में हुआ है तो आप एक सफल एवं स्वतंत्र व्यक्ति हैं. आप ईश्वर में आस्था रखते हुए जीवन में प्रसन्नता और मैत्री के साथ आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं. विवाह उपरान्त आपके जीवन में और अधिक सफलता एवं प्रसन्नता आती है.  उत्तराषाढा में जन्मा जातक ऊँचे कद और गठीले शारीर के मालिक होते हैं. चमकदार आँखे और चौड़ा माथा आपके व्यक्तित्व में चार चाँद लगाते हैं. गौर वर्ण के साथ आपकी आंखे थोड़ी लालिमा लिए हुए होती हैं. आप मृदुभाषी हैं और सभी से प्रेम पूर्वक व्यवहार आपमें स्वाभाविक है.

आप सादी जीवन शैली में विश्वास रखते हैं और अधिक ताम झाम से दूरी बनाये रखते हैं. धन की अधिकता भी आपके इन विचारों को प्रभावित नहीं करती. कोमल हृदयी होने के कारण आप कभी भी किसी को हानि पहुंचाने के बारे में नहीं सोच सकते क्योंकि दूसरों की भलाई करना आपके स्वभाव में ही है. नम्र स्वभाव होते हुए भी आप किसी के सामने घुटने नहीं टेकते हैं और ही किसी भी प्रकार की कठिनाई आपको हिला सकती है.

आपको जीवन में किसी पर भी निर्भरता पसंद नहीं है. सकारात्मक और स्थिर सोच के कारण आप अपने जीवन से सम्बंधित अधिकतर निर्णय स्वयं लेते हैं और वो सही भी होते हैं. जलदबाज़ी में निर्णय लेना आपके स्वभाव में नहीं है. आप सभी को आदर और सम्मान देना पसंद करते हैं विशेषतः स्त्रियों को.

 आप अपने विचारों को व्यक्त करने से कभी नहीं हिचकिचाते. किसी के विरोध में भी यदि आपको बोलना हो तो आप अवश्य बोलेंगे परन्तु बेहद विनम्रता के साथ. अपने इसी स्वभाव के कारण आप माफ़ी मांगने से भी नहीं झिझकते.

बहुत ही कम आयु से अपने ऊपर सभी जिम्मेदारियों के जाने के कारण आप कभी-कभी मानसिक अशांति भी महसूस करते हैं. जीवन को हर पहलु से और अधिक सफल बनाने के लिए आप सदैव प्रयासरत रहते हैं. इन्ही प्रयासों में विफल होने पर आप अपने आपको असहाय समझने लगते हैं परन्तु वास्तविकता में ऐसा नहीं है आप एक सक्षम और जुझारू व्यक्ति हैं और कठिन से कठिन स्तिथि में से निकलने में सक्षम है. अपने बौधिक विचारों और सकारात्मक सोच के कारण आप सृजनात्मक और कलात्मक या यूँ कहें विज्ञान और कला दोनों ही  क्षेत्रों में  उत्कृष्ट कार्य करते हैं . आपकी इमानदारी , अथक परिश्रम और मजबूत इरादे जीवन में आपको सदैव सफलता दिलाते हैं. रुकावटों के कारण थक कर बैठ जाना आपके स्वभाव में नहीं है.

अपने कार्यक्षेत्र में आप अपने करीबी सहयोगियों के सन्दर्भ  में अति कुशलता एवं सजगता के साथ रहते हैं. जीवन के 38वें वर्ष के उपरान्त आप स्थिरता और समृद्धि प्राप्त करते हैं वैवाहिक जीवन सुखमय और प्रसन्नता से भरा रहेगा यद्यपि जीवन साथी के स्वस्थ्य के कारण आप परेशान हो सकते हैं. संतान पक्ष से सुख संतोषजनक रहेगा.

उत्तराषाढा नक्षत्र में जन्मी स्त्री पतिव्रता एवं मधुर वाणी वाली होती हैं. अतिथियों की आवभगत और  सेवा करना इनके स्वभाव में ही  होता है.

स्वभाव संकेत: उत्तराषाढा जातक जहाँ रहता है वहां का प्रख्यात व्यक्ति होता है .

रोग संभावना : घुटने या कूल्हों के जोड़ों से सम्बंधित रोग, सूजन, छाती या फेफड़े का दर्द. अक्समात चोट या जलने के संभावना भी प्रबल.

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस  चरण का स्वामी गुरु हैं. दोनों गृह परस्पर मित्र हैं . लग्नेश भी गुरु होने के कारण गुरु ग्रह का प्रभाव अधिक है. इस नक्षत्र में जन्मा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्यशाली एवं पराक्रमी होगा. गुरु की दशा में जातक का सर्वांगीण विकास होगा और सूर्य की दशा अन्तर्दशा में जातक का प्रबल भाग्योदय होगा.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि  हैं. उत्तराषाढा के दुसरे चरण में जन्मा जातक आजीवन अपने मित्रों का विरोध सहता है. लग्नेश शनि सूर्य का शत्रु है अतः शनि की दशा धनदायक होगी परन्तु सूर्य की दशा अशुभ फलदायक होगी. लग्नेश शनि की दशा भी अपेक्षित लाभ नहीं देगी.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. उत्तराषाढा के तीसरे चरण में जन्मा जातक अपने जीवन में सदैव मान सम्मान चाहने वाला होता है. शनि लग्नेश भी है अतः लग्नेश शनि की दशा उत्तम फल देगी. शनि की दशा आपके लिए उन्नतिदायक एवं धनदायक होगी परन्तु सूर्य की दशा अशुभ फलदायक होगी.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. उत्तराषाढा के चौथे चरण में जन्मा जातक स्वभाव से धार्मिक एवं आध्यात्मिकता में रूचि रखने वाला होता है. उत्तराषाढा के चौथे चरण का स्वामी बृहस्पति है जो लग्नेश शनि का शत्रु है परन्तु लग्न नक्षत्र स्वामी सूर्य का मित्र . अतः सूर्य और बृहस्पति की दशा समान्य रहेगी और शनि की दशा लाभप्रद रहेगी.

 

 

 

22--- श्रवण नक्षत्र

नक्षत्र देवता: विष्णु

नक्षत्र स्वामी: चन्द्र

श्रवण  नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म श्रवण नक्षत्र में हुआ है तो आप एक माध्यम कद काठी परन्तु प्रभावी और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी है. बचपन से ही सीखने की लालसा होने के कारण आप आजीवन ज्ञान प्राप्त करते हैं और समाज के बुद्धिजीवियों में आप की गिनती होती है. आप एक स्थिर सोच वाले  निश्छल और पवित्र व्यक्ति है. मानवता ही  आपकी प्राथमिकता है और आपका दृष्टिकोण सदा ही सकारात्मक रहता है. आप दूसरों के प्रति बहुत अधिक स्नेह की भावना रखते हैं इसलिए औरों से भी उतना ही स्नेह सम्मान प्राप्त करते हैं. श्रवण नक्षत्र के जातक एक अच्छे वक्ता होते हैं. एकान्तप्रिय होते हुए भी आपके मित्र अधिक होते हैं. आपके शत्रुओं की संख्या भी कुछ कम नहीं होती परन्तु अंत में शत्रुओं पर विजय आपकी ही होती हैं.

आप एक इमानदार और सच्चाई के रास्ते पर चलने वालों में से हैं. झूठ और कपट तो आपको आता है और ही जीवन में कभी आप इसका सहारा लेते हैं. आप अपने जीवन में कई बार दूसरों द्वारा किये गये धोखे का शिकार होते हैं फिर भी आप अपने आदर्शों पर ही चलना पसंद करते हैं.

आप बहुत मृदुभाषी और कोमल हृदयी व्यक्ति हैं और अपनी हर चीज़ सुव्यवस्थित और साफ़ ही पसंद करते है. गन्दगी और अवव्स्था के कारण ही आपको बहुत अधिक क्रोध जाता है और आप अपने मूल स्वभाव को भी भूल जाते हैं.

आप दिखने में सीधे-सादे परन्तु आकर्षक व्यक्ति हैं. आप प्राकृतिक रूप से सुंदर होते हैं. आप अपना सारा जीवन ज्ञान प्राप्ति में ही व्यतीत करते  हैं अतः आप एक अच्छे सलाहकार होते हैं. किसी भी विवाद या समस्या को न्यायिक दृष्टि से देखने की क्षमता आपमें होती है. जीवन में अनेक समस्याओं से जूझते हुए और अपना दायित्व निभाते हुए आप आगे बढ़ते हैं और संतुलित और संतुष्ट जीवन व्यतीत करते हैं.

श्रवण नक्षत्र के जातक अधिक ज्ञान अर्जन के कारण अपने जीवन में करियर के चुनाव में परेशानी नहीं झेलते हैं . 30 वर्ष तक कुछ उथल पुथल सहते हुए 45वें वर्ष तक अपने कार्यक्षेत्र में चमकने लगते हैं. 65 वर्ष के बाद भी यदि कार्यरत हों तो अपने करियर की ऊंचाईयों को छूते हैं. वैसे तो सभी प्रकार के कार्यों के लिए सक्षम हैं परन्तु तकनीकी और मशीनरी कार्य, , इंजीनियरिंग, तेल और पेट्रोलियम सम्बंधित क्षेत्र आपके लिए विशेष लाभदायक हैं.

आपका वैवाहिक जीवन द्वारा आपके जीवन की शरुआती मुश्किलों और अस्थिरता समाप्त होगी. एक आज्ञाकारी और आपसे बहुत प्रेम करने वाली पत्नी के कारण आप सुखमय दाम्पत्य जीवन का अनुभव करेगे.

श्रवण नक्षत्र में जन्मी स्त्रियाँ भी विनम्र और सदाचारी होती हैं. अपने इन्ही गुणों के कारण श्रवण जातिकाएं परिवार और समाज में आदर प्राप्त करती हैं.

स्वभाव संकेत: श्रवण नक्षत्र के जातक विनम्र व्यक्ति के रूप में ख्याति प्राप्त करते हैं.

रोग संभावना : चमड़ी के रोग, अपच आदि

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी मंगल  हैं. श्रवण नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक मान सम्मान का इच्छुक एवं आशा वादी होता है. श्रवण नक्षत्र के प्रथम चरण का स्वामी मंगल, शनि का शत्रु है परन्तु चन्द्र का मित्र अतः चन्द्र और मंगल की दशा शुभ फल देगी. शनि की दशा उन्नतिदायक और धन के मामले में सहायक होगी.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र  हैं. श्रवण नक्षत्र के द्वितीय  चरण में जन्मा जातक गुणी एवं सकारात्मक सोच वाला होता है.  श्रवण नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शुक्र, शनि और चन्द्र दोनों का शत्रु है. अतः शुक्र को जितना शुभ फल देना चाहिए उतना नहीं दे पायेगा. शनि की दशा- अन्तर्दशा  में जातक  उन्नति करेगा , धन अर्जित करेगा एवं स्वस्थ रहेगा.

तृतीय चरण :  इस चरण का स्वामी बुध  हैं. श्रवण नक्षत्र के तीसरे  चरण में जन्मा जातक समाज के विद्वान् व्यक्तियों में गिना जाता है.  श्रवण नक्षत्र के तृतीय चरण का स्वामी बुध, शनि का शत्रु है और चन्द्रमा की दोनों से ही शत्रुता है अतः बुध को जितना शुभ फल देना चाहिए उतना नहीं दे पायेगा. शनि की दशा- अन्तर्दशा  में जातक  को मान सम्मान मिलेगा एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी चन्द्र  हैं. श्रवण नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मा जातक धार्मिक एवं आध्यात्मिक प्रवृत्ति का होता है.   श्रवण नक्षत्र के चतुर्थ  चरण का स्वामी और नक्षत्र स्वामी भी चन्द्र है अतः चन्द्रमा की दशा अशुभ फल नहीं देगी. शनि की दशा- अन्तर्दशा  में जातक  उन्नति करेगा , धन अर्जित करेगा एवं स्वस्थ रहेगा.

 

 

 

23---- धनिष्ठा नक्षत्र

नक्षत्र देवता: वसु

नक्षत्र स्वामी: मंगल

धनिष्ठा नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मा जातक सभी गुणों से समृद्ध होकर जीवन में सम्मान और प्रतिष्ठा पाता है. आप स्वभाव से बहुत ही नरम दिल एवं संवेदनशील व्यक्ति होते हैं. आप दानी और अध्यात्मिक व्यक्ति हैं परन्तु अपनी इच्छाओं के विरुद्ध जाना आपके बस में नहीं है. आपका रवैया अपने प्रियजनों के प्रति बेहद सुरक्षात्मक होता है किन्तु फिर भी आप दूसरों के लिए जिद्दी और गुस्सैल ही रहते हैं.

आप एक ज्ञानी व्यक्ति हैं जो किसी भी आयु में ज्ञान अर्जन करने में संकोच नहीं करते  है.अपने इसी गुण के कारण आप किसी भी प्रकार के कार्य को निपुणता के साथ पूर्ण करने में सक्षम रहते हैं. आप संवेदनशील तो हैं परन्तु कमज़ोर नहीं. आप मानवता में विश्वास रखने वाले व्यक्ति हैं जो दूसरों को कडवे वचन कभी नहीं बोल ससकते . धनिष्ठा जातक कभी विरोध की भावना नहीं रखते परन्तु अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को कभी भूलते भी नहीं. आप सही समय आने पर अपने तरीके से बदला लेते हैं.

अत्यधिक ज्ञान और तीक्ष्ण बुद्धि के कारण आप जीवन में नयी ऊचाईयों को छूते हैं. अधिकतर घनिष्ठा जातकों  को इतिहास या विज्ञान के क्षेत्रों में कार्यरत देखा गया है. रिसर्च और वकालत के क्षेत्रों में आप तरक्की करते हैं. घनिष्ठा नक्षत्र में जन्मे जातक किसी भी बात को छुपा कर  रखने में सक्षम होते हैं. यह अपने भेद जल्दी ही किसी को नहीं बताते.

आप अपने कार्य के प्रति बेहद सजग एवं वफादार होते हैं . अपने जीवन के 24 वर्ष के बाद आपको अपने करियर में स्थिरता मिलेगी. आप अपने कार्य को लग्न और निष्ठापूर्वक करने में विश्वास रखते हैं परन्तु व्यवसायिक कार्यक्षेत्र में अपने  अधिनस्त कर्मचारियों से आपको सावधान रहने की आवश्यकता है.

धनिष्ठा जातकों का बचपन सभी सुख सुविधायों से परिपूर्ण होता है. आप अपने भाई बहनों से बेहद लगाव रखते हैं. समाज और परिवार में आप का स्थान अति सम्मानीय होता है परन्तु जीवन में कई बार आपको अपने रिश्तेदारों द्वारा परेशानी और रुकावटें झेलनी पड़ती हैं. आपको अपने पूर्वजों की धन सम्पदा भी प्राप्त होती है.

आपको अपने जीवन में ससुराल पक्ष से अधिक सहयोग प्राप्त नहीं होता है और ही आपके सम्बन्ध उनसे मधुर होते हैं परन्तु एक गुणी एवं सुयोग्य पत्नी के कारण आपका दांपत्य जीवन ठीक चलता है.

धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मी जातिका को साज श्रृंगार में अधिक रूचि होती है परन्तु जीवन में धन की कमी को  झेलने के कारण इनमे सन्यासियों जैसी प्रवृत्ति जन्म ले लेती है. धनिष्ठा जातिकाओं का वैवाहिक जीवन दुःख से भरा होता है.

स्वभाव संकेत: धनिष्ठा जातक किसी से नहीं घबराते

रोग संभावना : हाथ पैर की हड्डी टूटना, रक्तचाप अथवा ह्रदय से सम्बंधित रोग

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस  चरण का स्वामी सूर्य हैं. धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक लम्बी आयु वाला होता है.  धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण का स्वामी सूर्य  शनि का शत्रु है परन्तु मंगल का मित्र अतः सूर्य की दशा अशुभ फल देगी शनि की दशा में जातक को उत्तम स्वस्थ्य धन  की प्राप्ति होगी. मंगल की दशा में जातक को भौतिक उपलब्धियां प्राप्त होंगी.

द्वितीय चरण :  इस चरण का स्वामी बुध हैं. धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मे जातक की गिनती समाज के विद्वानों में होती है.   धनिष्ठा नक्षत्र के द्वितीय चरण का स्वामी बुध  शनि का शत्रु है और  मंगल का भी . अतः बुध की दशा जातक को अपेक्षित फल नहीं दे पाएगी परन्तु शनि की दशा उत्तम फलदायी होगी.  

तृतीय चरण :  इस चरण का स्वामी शुक्र हैं. धनिष्ठा नक्षत्र के चौथे  चरण में जन्मा जातक थोडा डरपोक होता है. धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे  चरण का स्वामी शुक्र   शनि का शत्रु है और  मंगल का भी . अतः शुक्र  की दशा जातक को अपेक्षित फल नहीं दे पाएगी परन्तु शनि की दशा अन्तर्दशा उत्तम फलदायी होगी.

चतुर्थ चरण :  इस चरण का स्वामी मंगल  हैं. धनिष्ठा नक्षत्र के चौथे  चरण में जन्मा जातक महान नारी का पति होता है.  धनिष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है और नक्षत्र स्वामी भी मंगल . अतः मंगल   की दशा जातक को राजयोग प्रदान करेगी. शनि की दशा में जातक को उत्तम स्वस्थ्य धन की प्राप्ति होगी.

 

 

 

24--- शतभिषा नक्षत्र

नक्षत्र देवता: वरुण

नक्षत्र स्वामी: राहु

शतभिषा नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

शतभिषा नक्षत्र में जन्मा जातक बहुत साहसी एवं मजबूत विचारों वाला होता है. अत्यधिक सामर्थ्य एवं स्थिर बुद्धि के होते हुए भी कभी कभी जिद्दी और संवेदनहीन प्रतीत होते हैं. सभी प्रकार से ज्ञानी होते हुए भी आप आत्म केन्द्रित होते हैं. आप अधिक संतान वाले एवं दीर्घायु होते हैं. शतभिषा जातक रहस्यमय एवं समृद्धशाली व्यक्ति होते हैं, जिनको अपने आस पास के लोगों से सम्मान प्राप्त होता है.

यदि आपका जन्म शतभिषा नक्षत्र में हुआ है तो आप अत्यंत आकर्षक और मजबूत व्यक्तित्व के स्वामी हैं. आपकी उपस्थिति गरिमामय और प्रभावशाली होती है जो कि दूसरों को आपकी ओर आकर्षित होने को विवश कर देती हैं. चौड़ा माथा , तीखी नाक और सुंदर नेत्रों के कारण आप और भी आकर्षक दिखते हैं.  तेज़ स्मरण शक्ति आप के व्यक्तित्व को और मजबूती देती है.  शतभिषा जातक में सकारात्मक और नकारात्मक पहलू का संतुलित समावेश रहता है. आप अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हैं और किसी भी कीमत पर उनसे समझौता नहीं करते. जिस कार्य को आप उचित नहीं समझते वह कार्य करने के लिए आपको कोई बाध्य नहीं कर सकता.

आप सहृदय व्यक्ति हैं जो कोमल स्वभाव के कारण सदा ही दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते हैं. आप किसी को हानि नहीं पहुंचाते जब तक की सामने वाला आपको नुक्सान पहुंचाए. आप एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं जो इश्वर में पूर्ण आस्था रखते हैं. आप सादा रहने में ही विश्वास रखते हैं परन्तु आपके व्यक्तितिव से आकर्षित हुए बिना कोई नहीं रह सकता. आप जीवन में खूब प्रशंसा और सम्मान पाते हैं.

अपने कार्यक्षेत्र में आप पूरी लग्न और मेहनत के साथ काम करते हैं और निरंतर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते हैं. अच्छी शिक्षा के कारण आप जीवन में बहुत पहले ही अपने करियर का आरंभ कर लेते हैं.  34 वर्ष तक आप संघर्षरत रहते हैं परन्तु उसके बाद का समय बिना किसी बड़ी रुकावट के आपकी उन्नत्ति देता है. आपका पारिवारिक जीवन आपके व्यावसायिक जीवन की भांति सुखपूर्वक नहीं होता है. आप अपने परिजनों के कारण जीवन में बहुत कठिनाइयाँ झेलते हैं हालाँकि आप का व्यवहार उनके प्रति प्रेमपूर्वक ही रहता है. इस कारण शतभिषा नक्षत्र के जातक मानसिक रूप से अशांत रहते हैं.  पिता की अपेक्षा माता से आपको अधिक लगाव रहता है और आपको भी उनसे बहुत स्नेह मिलता है. शतभिषा जातकों का दांपत्य जीवन सुखमय नहीं होता है . सब कुछ होते हुए भी आपका अपने जीवन साथी के साथ सदा ही मतभेद रहता है.

शतभिषा जातिका कर्मपरायण एवं परोपकारी होती हैं. सादे किन्तु आकर्षक व्यक्तित्व के कारण आप  को लम्बे अरसे तक स्मरण किया जाता है.

स्वभाव संकेत: बिगड़े हुए काम को बड़े सूझ बूझ के साथ बना देना शतभिषा जातक की विशेषता है.

रोग संभावना: ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप, मुख से सम्बंधित अथवा गुप्त रोग

विशेषताएं

प्रथम चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. शतभिषा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक कुशल वक्ता होता है.  शतभिषा नक्षत्र के प्रथम चरण का स्वामी बृहस्पति शनि का शत्रु है और राहु का भी.  अतः बृहस्पति की दशा अपेक्षित फल नहीं देगी. बृहस्पति में राहु व् शनि का अंतर कष्टदायी होगा. राहु की दशा उत्तम फल देगी.

द्वितीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. शतभिषा नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मा जातक अपने समाज के अग्रगण्य धनवानों में गिने जाते हैं.  शतभिषा नक्षत्र के दूसरे  चरण का स्वामी शनि लग्नेश भी है अतः शनि की दशा शुभ फल देगी. राहु की स्वतंत्र दशा उत्तम फल देगी, परन्तु राहु में शनि या शनि में राहु की अन्तर्दशा शत्रु तुल्य कष्ट देगी.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शनि हैं. शतभिषा नक्षत्र के तीसरे  चरण में जन्मा जातक अपने समाज में सुखी एवं संपन्न व्यक्ति होता है.  शतभिषा नक्षत्र के तीसरे  चरण का स्वामी शनि लग्नेश भी है अतः शनि की दशा शुभ फल देगी. राहु की स्वतंत्र दशा उत्तम फल देगी, परन्तु राहु में शनि या शनि में राहु की अन्तर्दशा शत्रु तुल्य कष्ट देगी.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी बृहस्पति हैं. शतभिषा नक्षत्र के चौथे  चरण में जन्मे जातक का पुत्र योग प्रबल होता है . शतभिषा नक्षत्र के चौथे  चरण का स्वामी बृहस्पति शनि का शत्रु है और राहु का भी.  अतः बृहस्पति की दशा अपेक्षित फल नहीं देगी. लग्नेश शनि की दशा अन्तर्दशा जातक को उत्तम स्वस्थ्य व् उन्नत्ति देगी.

 

 

 

25--- पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र

नक्षत्र देवता: अजपाद

नक्षत्र स्वामी: बृहस्पति

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र मे हुआ है तो आप मानवता में विश्वास रखते हुए केवल दूसरों के भले के बारे में ही सोचते हैं. आप एक दयालु और नेक दिल होने के साथ-साथ खुले विचारों वाले व्यक्ति हैं. आप बहुत साहसी हैं तथा दूसरों की मदद करने में सदा आगे रहते हैं.

आप वाणी और विचारों से नम्र अवश्य होते हैं परन्तु व्यक्तित्व से नहीं. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्मे जातक अपने आदर्शो और सिद्धांतों पर ही आजीवन चलना पसंद करते हैं. आप जीवन में कभी पथभ्रष्ट नहीं होते क्योंकि आपका दृष्टिकोण सही और साफ़ होता है. आप एक शांति प्रिय व्यक्ति हैं परन्तु शीघ्र ही किसी छोटी से छोटी बात पर भी क्रोध कर लेते हैं.  आपको क्रोध जितनी जल्दी आता है उतनी जल्दी चला भी जाता है.

दूसरों के साथ आपका व्यवहार स्नेही और प्रेमपूर्वक रहता है. आप एक संवेदनशील व्यक्ति हैं जो शीघ्र ही प्रभावित हो जाते है परन्तु तो आप डरपोक हैं और ही जल्दी हार मानते हैं.

पूर्वाभाद्रपद जातक अध्यात्मिक स्वभाव वाले होते हैं परन्तु बंद आँखों से किसी भी बात को मान लेना और उनका अनुसरण करना इनके स्वभाव में नहीं होता है. आप सही और गलत में निर्णय लेने के बाद ही दूसरों का अनुसरण करते हैं. आप धन के मामलों में कंजूस कहे जाते हैं. आप जीवन में कई कठिनाईयों को झेलते हुए समाज में आदर एवं सम्मान प्राप्त करते हैं.

अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण आप किसी भी प्रकार के कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के योग्य हैं. आप केवल स्वभाव से हे नहीं अपितु सामाजिक और आर्थिक रूप से भी स्वतंत्र  जीवन पसंद करते हैं. व्यावसायिक रूप से  24 से 33 वर्ष की आयु में आप अपने जीवन में सर्वाधिक सफलता प्राप्त करेंगे. 40 से 54 वर्ष के आयु में अपने करियर की ऊँचाईयों को छुएंगे पूर्वाभाद्रपद के जातकों को सरकारी नौकरी , बैंक, शिक्षा और लेखन, व्यापार , ज्योतिष एवं अभिनय के क्षेत्र में कार्य करते देखा गया है.

इस नक्षत्र में जन्मा जातक अपनी माता के स्नेह से वंचित रहता है , कारण जो भी हो. पिता का संरक्षण और प्रेम आपको सदा प्राप्त होता है . पिता की उच्च एवं सम्माननीय स्तिथि के कारण आप सदा गौरवान्वित रहेंगे परन्तु कुछ वैचारिक मतभेदों के कारण आपसी तनाव रहेगा. पूर्वाभाद्रपद में जन्मा जातक अक्सर स्त्रियों के वश में रहता है.

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्मी जातिका जादू टोने में विश्वास रखती हैं

स्वभाव संकेत: निराशा और शोक मग्न चेहरा पूर्वाभाद्रपद की निशानी है.

रोग संभावना: पैर की हड्डी का दर्द, पैर का टूटना, मधुमेह और लकवा.

विशेषताएं

प्रथम चरण :   इस चरण का स्वामी मंगल हैं. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक शूरवीर  होता है, तथा जो वस्तु विनम्रता , प्रार्थना व् खरीद से प्राप्त नहीं हो पाती उसे हरण करने में रूचि रखता है.  पूर्वाभाद्रपद  नक्षत्र का स्वामी बृहस्पति शनि का शत्रु है परन्तु मंगल का मित्र . अतः मंगल  की दशा शुभ फल एवं भौतिक सम्पन्नता देगी परन्तु बृहस्पति की दशा में अपेक्षित शुभ फल नहीं मिल पाएंगे. शनि की दशा अन्तर्दशा शुभ फल देगी.

द्वितीय चरण : इस  चरण का स्वामी शुक्र हैं. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्मा जातक अति बुद्धिमान होता है. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी बृहस्पति शुक्र का शत्रु है तथा शुक्र शनि का भी शत्रु है . अतः  शुक्र की दशा अपेक्षित शुभ फल नहीं दे पाएगी.  बृहस्पति की स्वतंत्र दशा में  पराक्रम बढेगा. शनि की दशा में जातक की उन्नत्ति होगी.

तृतीय चरण :  इस चरण का स्वामी बुध  हैं. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के तृतीय  चरण में जन्मा जातक का विकास और उन्नत्ति बड़े शहर में रहने के कारण होती है. छोटे गाँव कस्बों में जातक उन्नत्ति नहीं कर पायेगा.  बुध की नक्षत्र स्वामी बृहस्पति से शत्रुता है परन्तु लग्नेश शनि से मित्रता अतः बुध की दशा शुभ फलदायी होगी . बृहस्पति  की स्वतंत्र दशा में  पराक्रम बढेगा. शनि की दशा में जातक की उन्नत्ति होगी.

चतुर्थ चरण :  इस चरण का स्वामी चन्द्रमा हैं. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के चौथे चरण में जन्मा जातक भोगी होता है. लग्न नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र चरण स्वामी में परस्पर मित्रता है अतः लग्नेश गुरु की दशा अति उत्तम फल देगी. गुरु की दशा में जातक को रोजगार के शुभ अवसर प्राप्त होंगे. चन्द्रमा की दशा धार्मिक यात्राएं एवं भाग्योदय के उत्तम अवसर प्रदान करेंगी. लग्न बलि होने के कारण जातक के विकास में अडचने आएँगी.

 

 

 

26--- उत्तराभाद्रपद नक्षत्र

नक्षत्र देवता: अहिर्बुध्नय

नक्षत्र स्वामी: शनि

उत्तराभाद्रपद  नक्षत्र  के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

यदि आपका जन्म उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हुआ है तो आप स्वभाव से एक दयालु व्यक्ति हैं. आप धार्मिक होने के साथ साथ वैरागी भी हैं.  आप समाज में एक धार्मिक नेता , प्रसिद्द शास्त्र विद एवं मानव प्रेमी के रूप में प्रख्यात हैं. आप कोमल हृदयी हैं एवं दूसरों के साथ सदैव सद्भावना रखते हैं. यदि आपके साथ कोई दुर्व्यवहार भी करता है तो आप उसे क्षमा कर  देते हैं. आप अपने दिल में भी किसी के प्रति कोई द्वेष नहीं रखते. आप महत्वाकांक्षी व्यक्ति नहीं हैं परन्तु इच्छाएं बढ़ी-चढ़ी होती हैं व् मन ही मन आप उन्नत्ति के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच जाते हैं.  देश भक्ति एवं इमानदारी आपके प्रमुख गुण हैं. आप मनमौजी परन्तु मजबूत विचारों वाले व्यक्ति हैं.

आप उन गिने चुने व्यक्तियों में से हैं जिन्हें आम लोग आदर की दृष्टि से देखते हैं. उत्तराभाद्रपद जातक निष्पक्ष व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं . आप किसी को भी उसकी आर्थिक व् सामाजिक सम्पन्नता के आधार पर नहीं अपितु मानवता के आधार पर तौलते है. आप बहुत बुद्धिमान एवं विवेकशील व्यक्ति है. एक प्रखर वक्ता होने के कारण अनायास ही लोग आपकी और खिचाव महसूस करते हैं. आपकी सबसे बड़ी कमी आपका क्रोध है जो किसी भी छोटी से छोटी बात पर जाता है. आप विपरीत लिंगियों के प्रति विशेष आकर्षण महसूस करते हैं और उनका साथ आपको बेहद प्रिय है.

उत्तराभाद्रपद जातक किसी भी कार्यक्षेत्र में उच्च पद को प्राप्त करने में सक्षम होते हैं. आप अपनी शैक्षिक योग्यता के आधार पर नहीं अपितु अपने गुणों के कारण सफल होते हैं. आप अक्सर अपने से अधिक शिक्षित लोगों से भी अधिक सफलता पाते हैं. आप कठोर परिश्रमी एवं कार्य के प्रति बहुत अधिक समर्पित व्यक्ति हैं जो कभी भी किसी कार्य को बीच में छोड़ना पसंद नहीं करते. आप अपने करियर में बहुत मान सम्मान और प्रशंसा पाते हैं. आप अधिक समय तक निचले पदों पर कार्यरत नहीं रहते हैं अपनी लग्न और मेहनत के कारण आपकी उच्च पदों के लिए तरक्की शीघ्र ही हो जाती है.

आप अपने जीवन के 18वें या 19 वें वर्ष से ही जीवन यापन में लग जाते हैं. जीवन के 19, 21, 28., 30, 35 और  42वां वर्ष आपके करियर में महतवपूर्ण बदलाव लायेगा.

उत्तराभाद्रपद जातक का बचपन कठिनाईयों में बीतता है. आपको अपने  माता पिता से अपेक्षित स्नेह नहीं प्राप्त होता है, हालाँकि पिता के कारण आप समाज में गौरवान्वित होते हैं परन्तु पिता से आपको अपने जीवन में किसी भी प्रकार का कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है और सदा ही अपने जन्म स्थान से दूर रहना पड़ता है. आपका विवाह एक सुंदर और आज्ञाकारी स्त्री से होता है , इस कारण आपका दाम्पत्य जीवन बहुत सुखी एवं समृद्ध होता है. आपकी आज्ञाकारी संतान आपकी प्रसन्नता का कारण बनती है.

उत्तराभाद्रपद में जन्मी जातिका बुद्धिमान और धर्म के प्रति रूचि रखने वाली होती हैं. आप धैर्यवान एवं गुणवान होती हैं. आप जीवन में सदा मान सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करती हैं.

स्वभाव संकेत: उत्तराभाद्रपद जातकों का प्रमुख लक्षण है बातूनी होना

रोग संभावना: पैरों से सम्बंधित रोग या चोट, हर्निया, बवासीर

विशेषताएं

प्रथम चरण :  इस चरण का स्वामी सूर्य हैं. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक राजा के समान पराक्रमी होता है, लग्न स्वामी शनि व् चरण स्वामी स्वामी सूर्य में परस्पर शत्रुता है. अतः सूर्य की दशा अशुभ फल देगी. शनि की दशा भी प्रतिकूल फल देगी. शनि में सूर्य या सूर्य में शनि की अन्तर्दशा मारक दशा का फल देगी. गुरु की दशा उत्तम , स्वस्थ्य प्रद एवं राजयोग देने वाली होगी.

द्वितीय चरण :  इस चरण का स्वामी बुध  हैं. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के दूसरेचरण में जन्मा जातक तस्करी में रूचि रखता है.  लग्न नक्षत्र  स्वामी शनि बुध का मित्र है. अतः शनि की दशा माध्यम ,परन्तु बुध की दशा अति शुभ फल देगी. बुध की दशा में गृहस्थ सुख एवं भौतिक उपलब्धियां प्राप्त होंगी. गुरु की दशा भी जातक को उत्तम फल देगी.

तृतीय चरण : इस चरण का स्वामी शुक्र  हैं. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के तीसरे  चरण में जन्मा जातक पुत्रवान  होता है, तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है जो नक्षत्र स्वामी का मित्र है. अतः शनि की दशा माध्यम परन्तु शुक्र की दशा शुभ फल देगी. शुक्र की दशा में पराक्रम बढेगा . लग्नेश गुरु की दशा अति उत्तम फल देगी.

चतुर्थ चरण : इस चरण का स्वामी मंगल हैं. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के चौथे  चरण में जन्मा जातक संपूर्ण सुखी होता है, लग्नेश गुरु की शनि से शत्रुता है तथा लग्न नक्षत्र स्वामी शनि की नक्षत्र चरण स्वामी मंगल से शत्रुता है. अतः शनि की दशा अशुभ फल देगी एवं मंगल की दशा मध्यम फल देगी. जो लाभ मंगल की दशा में जातक को मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पायेगा. गुरु की दशा राजयोग प्रदाता है.

 

 

27---- रेवती नक्षत्र

नक्षत्र देवता: पूषा

नक्षत्र स्वामी : बुध

श्रवण  रेवती के जातकों का  गुण एवं स्वभाव

 

यदि आपका जन्म रेवती नक्षत्र में हुआ है तो आप एक माध्यम कद और गौर वर्ण के व्यक्ति हैं. रेवती जातकों के व्यक्तित्व में संरक्षण, पोषण और प्रदर्शन प्रमुख है. आप एक निश्चल प्रकृति के व्यक्ति हैं जो किसी के साथ छल कपट करने में स्वयं डरता है. आप को क्रोध शीघ्र ही   जाता है. किसी की ज़रा सी विपरीत बात आपसे सहन नहीं होती है. क्रोध में आप आत्म नियंत्रण भी खो देते हैं, परन्तु क्रोध जितनी जल्दी आता है उतनी जल्दी चला भी जाता है. साहसिक कार्य और पुरुषार्थ प्रदर्शन की आपको ललक सदा ही रहती है.

आध्यात्मिक होते हुए भी आपका दृष्टिकोण व्यवहारिक है. आप किसी भी बात को मानने से पहले भली भाँती जांचते हैं. यही दृष्टिकोण आपका अपने मित्रों और सम्बन्धियों के साथ भी है. आप आँख बंद करके किसी पर  भी भरोसा नहीं करते हैं. आप एक बुद्धिमान परन्तु मनमौजी व्यक्ति हैं जो स्वतंत्र विचारधारा में विश्वास रखता है. आप परिवार से जुड़े हुए व्यक्ति हैं जो दूसरों की मदद के लिए सदा तैयार रहते हैं. आपके जीवनकाल में विदेश यात्राओं की संभावनाएं प्रबल हैं.

रेवती नक्षत्र में पैदा हुए जातक संवेदनशील होते हैं इसलिए शीघ्र ही भावुक हो जाते हैं. आप सिद्धांतों और नैतिकता पर चलने वाले व्यक्ति हैं जो सबसे अधिक अपनी आत्मा की सुनना और उसी पर चलना भी पसंद करता है. आप किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले सभी तथ्यों के बारे में जान लेना आवश्यक समझते हैं ,और निर्णय लेने के उपरान्त बदलते नहीं हैं. बाहरी दुनिया के लिए आप एक जिद्दी और कठोर स्वभाव के व्यक्ति हैं परन्तु जीवन में कई बार आप कठिनाईयों से घबराए एवं हारे हैं. इश्वर में पूर्ण आस्था के कारण आप जीवन में सभी अडचनों को साहस के साथ पार कर लेते हैं. अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण आप किसी भी प्रकार के कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के योग्य हैं.  रेवती नक्षत्र  के जातकों को सरकारी नौकरी , बैंक, शिक्षा, लेखन, व्यापार , ज्योतिष एवं कला के क्षेत्र में कार्य करते देखा गया है. अपने जीवन के 23वें वर्ष से 26वें  वर्ष तक  आप अनेक सकारात्मक परिवर्तन देखेंगे. परन्तु 26वें  वर्ष के बाद का समय कुछ रुकावटों भरा है जो कि 42वें वर्ष तक चलेगा. 50 वर्ष के उपरान्त आप जीवन में स्थिरता, संतुष्टि  एवं शांति का अनुभव करेंगे.

अपने स्वतंत्र विचारों और स्वभाव के कारण अपने कार्यों में किसी का हस्तक्षेप आपको कतई पसंद नहीं है और ही आप किसी क्षेत्र में स्थिर होकर  कर कार्य कर पाते हैं . अपने बदलते कार्यक्षेत्रों के कारण आपको अपने परिवार से भी दूर रहना पड़ता है. अपने कार्यों के प्रति निष्ठा और परिश्रम के कारण आप करियर की ऊँचाईयों तक पहुंचाते हैं. परन्तु मेहनत के अनुरूप जीवन में अपेक्षित मान सम्मान और पहचान नहीं मिल पाती  है.

अपने जीवन में रेवती नक्षत्र के जातकों को माता पिता का सहयोग कभी नहीं प्राप्त होता है. यही नहीं आपके करीबी मित्र या रिश्तेदार भी कष्ट के समय आपके साथ नहीं होते हैं परन्तु आपका दाम्पत्य जीवन बहुत खुशहाल होगा. विवाह उपरान्त आपका जीवन साथी आपके साथ हर प्रकार से सहयोग करेगा तथा आपका जीवन सुखमय और आनंदित रहेगा.

स्वभाव संकेत: रेवती नक्षत्र के जातकों का प्रमुख लक्षण है साहस एवं सद्व्यवहार .

रोग संभावना: बुखार, मुख, कान और आंतड़ियों से सम्बंधित रोग

विशेष: रेवती नक्षत्र के देवता पूषा  हैं तथा नक्षत्र स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के प्रथम चरण का स्वामी गुरु  हैं. रेवती  नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्मा जातक ज्ञानी होता है, लग्न नक्षत्र  स्वामी बुध  नक्षत्र चरण स्वामी से शत्रुता रखता है.  अतः गुरु की दशा  अत्यंत शुभ फल देगी. गुरु की दशा में जातक को पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी एवं यह दशा जातक के लिए स्वास्थ्य वर्धक रहेगी. बुध की दशा माध्यम फल देगी.

विशेष: रेवती नक्षत्र के देवता पूषा  हैं तथा नक्षत्र स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शनि हैं. रेवती  नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मे जातक की रूचि तस्करी में होती  हैनक्षत्र चरण के स्वामी शनि  से लग्नेश  गुरु  शत्रुता रखता है तथा नक्षत्र स्वामी बुध की भी गुरु से शत्रुता है . अतः गुरु और शनि की दशा माध्यम फल देगी तथा बुध की दशा अत्यंत शुभ फल देगी.  बुध की दशा में गृहस्थ सुख एवं भौतिक उपलब्धियां प्राप्त होंगी.

विशेष: रेवती नक्षत्र के देवता पूषा  हैं तथा नक्षत्र स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शनि  हैं. रेवती  नक्षत्र के तीसरे  चरण में जन्मा जातक कोर्ट कचेहरी के मकदमे अथवा वाद विवाद में सदैव विजयी  होता है.  नक्षत्र चरण स्वामी शनि लग्नेश गुरु का शत्रु है परन्तु बुध से शनि की मित्रता है  अतः गुरु  की दशा माध्यम परन्तु शनि की दशा उत्तम फल देगी. बुध की दशा में गृहस्थ सुख एवं भौतिक उपलब्धियां प्राप्त होंगी.

विशेष: रेवती नक्षत्र के देवता पूषा  हैं तथा नक्षत्र स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के चौथे  चरण का स्वामी गुरु  हैं. रेवती  नक्षत्र के चौथे  चरण में जन्मा जातक सदैव गृह कलेश में हे उलझा रहता है.  लग्नेश और नक्षत्र चरण स्वामी दोनों ही गुरु हैं अतः गुरु की दशा में जातक को अति उत्तम फलों की प्राप्ति होगी. गुरु की दशा में जातक  पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति करेगा. गुरु की नक्षत्र स्वामी बुध में परस्पर शत्रुता है अतः बुध की दशा जातक के लिए माध्यम फलदायी होगी.

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

योग फलित

27 जन्म योग फल

27 जन्म योग फल हर एक योग का प्रभाव जातक  पर पड़ता है मगर साधक अपने जीवन मे उपयोगी ज्योतिष, नक्षत्र, योग, जानकारी का सम्मिलित ध्यान रखना महत्वपूर्ण होता हैज्योतिष में 27 नक्षत्र ओर उसी के अनुरूप योग बनते हैइन योग में जन्म लेने वाले जातक का उसके दैनिक जीवन में बड़ा प्रभाव होता है..!

 

1. विश्वकुंभ योग

विश्वकुंभ योग वाले व्यक्ति पारिवारिक होते है और एक आकर्षक उपस्थिति रखते है। आपको आपके व्यावसायिक प्रयासों में बड़ी धनराशि प्राप्त होने की संभावना है और आप अपनी नेतृत्व की कुशलता के साथ अपने लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम होंगे।

 

2. प्रीति योग

यदि आप प्रीति योग के साथ पैदा हुए है तो आप अपने मृदुभाषी कौशल और बातों से लोगों को प्रभावित करेंगे। आप साहसी है और एक नेक रास्ते पर चलना पसंद करते है आपको धन और संपत्ति हासिल करने के साथ-साथ संतुलित जीवन जीने की इच्छाशक्ति का सौभाग्य प्राप्त है।

 

3. आयुष्मान योग

आयुष्मान योग के साथ जन्म लेने वाला व्यक्ति खाने का शौकीन होता हैजो नई जगहों की यात्रा करना और विभिन्न व्यंजनों का आनंद लेना पसंद करता है। आप एक कार्य-उन्मुख व्यक्ति हैजो किसी भी पेशे में मानदंडों का पालन करते हैं। आप कला और साहित्य के क्षेत्र में पहचान हासिल करने की इच्छा रखते हैं।

 

4. सौभाग्य योग

यदि आप सौभाग्य योग में जन्म लेते हैं तो आप एक बातूनी व्यक्ति हैं। आप अपने भाव, विचार और बातचीत से दूसरों को प्रभावित करते हैं। वित्तीय मोर्चे पर, आपको आर्थिक लाभ और वृद्धि प्राप्त होने की संभावना है। आप अपने परिवार को आरामदायक जीवन देने के लिए प्रयास करते हैं।

 

5. शोभन योग

यदि आप शोभना योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप उच्च बुद्धिमत्ता वाले व्यक्ति हैं। आप एक नरम दिल के व्यक्ति हैं जो प्रभावशाली बातचीत और बौद्धिक कौशल के साथ दूसरों को प्रभावित करते हैं।

 

6. अतिगंड योग

अतिगंड योग में जन्मा व्यक्ति साहसी और परोपकारी होता है। हालाँकि, ऐसा कोई भी व्यक्ति खुद को बचाने के लिए दूसरों पर दोष लगा सकता है। आपको अपनी माँ से परेशानी हो सकती है। आप एक जल्द चिड़चिड़ा होने वाले स्वभाव वाले व्यक्ति हैं।

 

7. सुकर्मा योग

यदि आप सुकर्मा योग के साथ पैदा हुए हैं तो आपके एक धनी व्यक्ति होने की संभावना है जो उत्कृष्ट व्यापारिक अंतर्दृष्टि रखता है। आप बुद्धिमान, साहसी और आपका झुकाव आध्यात्म की ओर हैं।

 

8. धृति योग

धृति योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति बेचैन रहता है और हर समय परेशान रहता है। आप विपरीत लिंग के प्रति झुकाव रखते हैं। आप एक धैर्यवान, विश्लेषणात्मक और सहायता करने वाला व्यक्तित्व रखते हैं। आपके पास कुशल निर्णय लेने की क्षमता है।

 

9. शूल योग

यदि आप शूल योग में पैदा हुए हैं तो आप भरोसेमंद और भाग्यशाली हैं। आपका झुकाव समाज सेवा की ओर है और आप आध्यात्मिक ज्ञान भी प्राप्त करना चाहते हैं। आप भौतिक सुख-सुविधाओं की भी इच्छा रखते हैं। शूल योग उपाय के बारे आप हमारे ज्योतिष विद्वानों से जान सकते है।

 

10 गंड योग

यदि आप गंडा योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप बहुत बातूनी हैं। आप अपने जीवन में कई कठिनाइयों का अनुभव कर सकते हैं। आप आलीशान संपत्ति का अधिग्रहण करने के इच्छुक हैं।

 

11. वृद्धि योग

यदि आप वृद्धि योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप एक शुद्ध, दयालु और बुद्धिमान व्यक्ति हैं। आपके पास शक्ति और अधिकार की स्थिति होने की संभावना है। आप प्रकृति-प्रेमी हैं।

 

12. ध्रुव योग

ध्रुव योग के साथ जन्म लेने वाला व्यक्ति शातिर कामों और बुरे कामों की ओर आकर्षित होता है। गुप्त शत्रुओं द्वारा आपके खिलाफ साजिश रचने के कारण आपको जीवन में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। आप बुद्धि की स्वाभाविकता के साथ एक बुद्धिजीवी व्यक्ति हैं।

 

13. व्याघात योग

यदि आप व्याघात योग के साथ पैदा हुए हैं तो आपमें एक साथ कई कार्य करने की क्षमता होगी। आपके कई दुश्मन होने की संभावना है। आक्रामक और अहंकारी व्यवहार के कारण आप अपनी प्रतिष्ठा को खराब कर सकते हैं। आपके पास मजबूत शिक्षण कौशल है जो आपको एक बहुमुखी व्यक्ति बनाता है।

 

14. हर्षण योग

यदि आप हर्षण योग के साथ पैदा हुए हैं तो आपकी प्रवृति हावी होने वाली और आधिकारिक होने वाली है। आपके पास एक गतिशील व्यक्तित्व है। आप रचनात्मकता, साहित्य और कला से संबंधित विषयों में रुचि रखते हैं। आप उत्साह के साथ अपने सभी प्रयासों को पूरा करने की संभावना रखते हैं।

 

15. वज्र योग

यदि आपने वज्र योग के साथ जन्म लिया है तो आपका व्यवहार सहायकता और देखभाल करने वाला है। आप दान में लिप्त और वंचितों की मदद करना पसंद करते हैं। आप भारी धन प्राप्त करेंगे और एक मजबूत सामाजिक प्रतिष्ठा का आनंद लेंगे। आपका बोलने में कठोर है। आप संदेहपूर्ण गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं।

 

16. सिद्धि योग में जन्म

यदि आप सिद्धि योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप भौतिक संपत्ति में रुचि रखते हैं। सिद्धि योग में जन्म, आप महान कौशल रखते हैं और धन प्राप्त करते हैं। अपने दृढ़ संकल्प के कारण अपने काम में उत्कृष्टता प्राप्त करने की संभावना है।

 

17. व्यतिपात योग में जन्म*

व्यतिपात योग के साथ जन्म लेने वाले लोग वाद-विवाद और तर्क-वितर्क में शामिल हो जाते हैं। व्यतिपात योग में जन्म से आप एक भव्य और असाधारण रूप् से पैसा खर्च करने की प्रवृत्ति प्रदर्शित करते हैं। आप स्वभाव से अस्थिर, चिंतित और कठोर होंगे।

 

18. वरियान योग

अगर आप वरियान योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप अपने आस-पास हर किसी को खुश करना पसंद करते हैं। लोग आमतौर पर आपके कौशल, ज्ञान और धन की प्रशंसा करते हैं। आप अपने शानदार व्यक्तित्व के साथ दूसरों को मोहित करते हैं। आप संगीत और कला में रुचि रखते हैं।

 

19 परिघ योग

परिघ योग क्या है? यदि आप परिघ योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप ज्ञानी हैं और कई विषयों में निपुण हैं। आपके गलत और खराब व्यवहार के कारण आपको बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। आप यात्रा करने के शौकीन हैं और नई जगहों पर जाना और नए रास्ते तलाशना पसंद करते हैं।

 

20. शिव योग

यदि आप शिव योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप एक दयालु और सच्चे व्यक्ति हैं। आप लोगों का कल्याण चाहते हैं। आप मानवता की सेवा करना और जरूरतमंदों की सहायता करना पसंद करते हैं। आपका आध्यात्मिकता की ओर झुकाव है और परंपराओं और अनुष्ठानों में दृढ़ विश्वास है।

 

21. सिद्ध योग

सिद्ध योग वाले व्यक्ति दूसरों को परामर्श सेवाएं प्रदान करने में अच्छे होते हैं। आप एक अच्छे कानूनी और संबंध सलाहकार प्रतीत होते हैं। आपका धर्म के प्रति झुकाव है और ईश्वर में अटूट विश्वास भी है।

 

22. साध्य योग

यदि आप साध्य योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप एक मेहनती, कूटनीतिक और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हैं। आप अपने काम में विश्वास रखते हैं और आपको भारी वित्तीय लाभ प्राप्त होने और सामाजिक मान्यता प्राप्त होने की संभावना है।

 

23. शुभ योग

यदि आप शुभ योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप स्वभाव से सच्चे, नरम दिल वाले और नरम स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। आप अपने सिद्धांतों के साथ जीवन जीते हैं। आप अपनी जिम्मेदारी के रूप में अपने द्वारा किए गए कामों को पूरा करने में बहुत प्रयास करते हैं। आप अत्यधिक भाग्यशाली हैं और आपके पास विशाल संपत्ति है।

 

24. शुक्ल योग

यदि आप शुक्ल योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप वफादार और बौद्धिक हैं। आपको हिंदू वेदों के बारे में जानने की लालसा है। आप स्वभाव से रचनात्मक और कलात्मक हैं। आप साहसी हैं और उच्च शिक्षा के प्रति झुकाव रखते हैं।

 

25. ब्रह्म योग

ब्रह्म योग में पैदा हुए लोग बहादुर और साहसिक कार्य करने वाले होते हैं। आप आध्यात्मिक पुस्तकों में रुचि रखने वाले धार्मिक व्यक्ति हैं। आप पवित्र शिक्षाओं और धार्मिक शास्त्रों में विश्वास रखते हैं।

 

26. इंद्र योग

यदि आप इंद्र योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप एक देखभाल करने वाला रवैया रखते हैं। आप मानदंडों के अनुसार काम करते हैं और जीवन में एक धार्मिक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ते हैं। आपके पास भरपूर नेतृत्व कौशल हैं और आपके कार्यों में उत्कृष्टता प्राप्त करने की संभावना है।

 

27. वैधृति योग के अनुसार अपने व्यक्तित्व को जानें

यदि आप वैधृति योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप एक गतिशील, बहुमुखी होने के साथ एक अप्रत्याशित व्यक्तित्व रखते हैं। आपको अपना काम पूरा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। आपके पास हंसमुख स्वभाव होने की संभावना है लेकिन फिर भी सामाजिक पहचान प्राप्त करने में असमर्थ हैं।

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

करण फलित

करण पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग है।

करण

करण पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो चंद्रमा पर आधारित है ! एक तारीख में दो करण होते हैं, पहली करण तिथि के पूर्वार्ध में और दूसरा करण उतरा हुआ होता है! सूर्य और चंद्रमा का अंतर 6 होने पर एक करण होता है! कुल मिलाकर 11 करणों की मान्यता है जिसमें से सात करण (बालव, तैतिल, वनिज, बव, कौलव, गर, और दृष्टिकोण) चर प्रकृति के, अर्थात इन करणों की पुनरावृति एक महीने में कई बार होती है! और शेष चार करण किन्सतुन्न, शकुनि, चतुष्पद, और नाग, प्रकृति के होते हैं! स्थिर करणों में पहला करण किंस्तुघ्न सबसे पहले शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को आता है, और शेष तीन स्थिर करण में शकुनि नामक करण कृष्णपक्ष की चतुर्दशी का अंतिम अर्धभाग में होता है, इसके बाद इसके अमावस के पहले अर्धभाग में चतुष्पद एवं दुसरे अर्धभाग में नाग करण होता है। !

11 करण एवं स्वामी क्रमशः इस प्रकार हैं!

करण स्वामी

1 बव इंद्र

2 बालव ब्रह्मा

3 कौलव सूर्य

4 तैतिल सूर्य

5 गर पृथ्वी

6 वणिज लक्ष्मी

7 विष्टि यम

8 शकुनि कलयुग

9 चतुष्पद रुद्र

10 नाग सर्प

11 किंस्तुघ्न वायु

बव करण

बव करण के बारे में मान्यता है कि ये बाल राज्य का करण है, श्वेत वस्त्र धारण करने वाला है, बव करण का वाहन सिंह है, इसी व्यवहार में समानता रखने वाला है!

बव करण में पैदा हुए लोग समाज में अपने कार्यों द्वारा सम्मान प्राप्त करते हैं! बव करण में उत्पन्न व्यक्ति का स्वभाव आशावादी होता है,एवं ये शुभ एवं धार्मिक कार्यों को करने में विशेष रुचि ग्रहण करते हैं! बव करण में उत्पन्न लोगों के स्वभाव में बालपन उल्लेख विद्दमान रहता है, अन्य शब्दों में किसी भी कार्य के प्रति समीक्षा के आभाव में कार्य के प्रति रुचि रखते हैं एवं स्थिर भाव से कार्य के प्रति समर्पित रहते हैं! बव करण में पैदा हुए व्यक्ति के शुभ कार्यों के प्रति आस्था एवं नौकरी कार्यों के प्रति नकारात्मक भाव रखते हैं! बव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति प्रतापी होता है!

एक और आदत बव करण में पैदा हुए लोग का किसी नशे के लिए प्रति चौक हो सकते हैं या ये किसी प्रकार के नशे की आदत से आसानी से हो सकते हैं!

बव करण होने पर यात्रा के लिए प्रस्थान एवं प्रवेश शुभ है!

बालव करण

बालव करण के बारे में मान्यता है, कि ये कुमार राज्य का करण है, पीले वस्त्रों को धारण करने वाला है, एवं बालव करण का वाहन टाइगर है!

बालव करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति अत्यधिक जिज्ञासु प्रवृति के होते हैं और इस प्रकार ये कई विषयों में ज्ञान वन भी होते हैं! बालव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति धार्मिक रूप से अधिक आस्थावान होता है, धार्मिक स्थानों के निर्माण कार्य के लिए योगदान करने का परम दृष्टिकोण होता है, तथा धार्मिक क्षेत्र में उच्च ज्ञान रखने वालों का सत्संग करता है! बालव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति कई तीर्थ स्थानों की यात्रा करता है! शिक्षा ज्ञान एवं धर्म से जुड़े क्षेत्रों में सम्मान प्राप्त करने का एक विशेष गुण बालव करण में उत्पन्न लोगों में होता है !

कौलव करण

कौलव करण के बारे में मान्यता है कि ये करणों में ऊपर की स्थिति प्राप्त करने वाला करण है, हरे रंग के वस्त्रों को धारण करने वाला कौलव करण आयु में अधिक है एवं इस करण का वाहन प्रारंभ है!

कौलव करण में जन्म लेने वाले लोग स्वभाव स्वभाव के होते हैं, और जिनके मित्रों की संख्या भी अधिक होती है, और आवश्यकता होती है उन पर आपके मित्रों से सहयोग प्राप्त होता है!

कौलव करण में पैदा हुआ व्यक्ति का परिवार बड़ा होता है! इस करण में जन्म लेने वाला कई प्रकार के भिन्न से युक्त और अच्छे कार्यों को करने के लिए तत्पर होता है, सम्मान की इच्छा में कई प्रकार के यत्न करता है, स्वाभिमानी भी होता है, एवं समाज में निम्न स्तर के लोगों से इस करण में पैदा हुआ व्यक्ति को विशेष सहयोग प्राप्त होता है!

अन्य मतानुसार कौलव करण में पैदा हुए लोग आदत स्वभाव वाले होते हुए स्वभाव स्वभाव, एक से अधिक संख्या में जीवन साथी के अतिरिक्त सम्बन्ध रखने वाले,

अपने समाज की धारणा से विपरीत अन्य समाज एवं धर्मों के प्रति अधिक आकर्षण रखने वाला स्वभाव होता है, खेल तमाशा दिखने वाला स्वभाव एवं लोगों का मनोरंजन करने में तत्पर, आक्रोश,एवं गति हीन से अनुपयोगी होता है!

कौलव करण मित्रता से संबंधित अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला, मान सम्मान एवं कार्यों में सफलता देने वाला है!

तैतिल करण

तैतिल करण के बारे में मान्यता है कि ये निष्क्रिय अवस्था में रहने वाला, पीत परिधान धारण करने वाला, युवा एवं वाहन करण है!

तैतिल करण में जन्म लेने वाले लोग भाग्यशाली होते हैं और अपने जीवन में सुख प्राप्त करते हैं, सौभाग्य से होने के कारण इस कारण से जन्मे लोगों को पुरुषार्थ के आभाव में भी अपने सौभाग्य से धन प्राप्त करते हैं!

तैतिल करण में दिए गए व्यक्ति को सभी से स्नेह भाव रखते हैं, और अपने निकटजनों से भी इन सभी खातों में स्मार्टफोन की मात्रा में स्नेह प्राप्त होता है!

तैतिल करण में जन्मा व्यक्ति वाणी वाणी का प्रयोग करने वाला, अपने कार्यों के प्रति चतुर होता है, और उन कार्यों को सिद्ध करने वाला होता है, तैतिल करण में उत्पन्न लोग, सत्यवक्त, स्वभाव, स्थिर स्वभाव एवं आवश्यकता के अनुसार उग्र स्वभाव क्रोधी और नाइट पुण्यशील एवं शुभ आचरण एवं स्वभाव वाला होता है!

अन्य मतानुसार तैतिल करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति के जीवन में आलस्य कि अधिकता चुगली आदि करने का स्वभाव उचः स्वभाव एवं जीवन में प्राप्त सौभाग्य का दुरूपयोग क्षतिग्रस्त कार्यों के लिए करना भी दृष्टिगत होता है!

गर करण

गर करने के बारे में मान्यता है कि ये नीचे आसीन स्थिति में रहने वाला, लाल वस्त्रों को धारण करने वाला, प्रौढ़ अवस्था का एवं वाहन गज है!

गर करण में जन्म लेने वाले लोग जीवन में कर्मवादी होते हैं, अपने जीवन काल में कर्म सिद्धांत को ही मान्यता देते हैं, कृषि एवं भूमि से जुडी वस्तुओं के व्यापार से लाभ प्राप्त करते हैं! गर करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने जीवन में सभी प्रकार की अभिलाषाओं को अपने श्रम से पूर्ण करने में सक्षम होता है, श्रम और वैज्ञानिक सोच वाले प्रमुख जीवन सिद्धांत होते हैं! इस कारण जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने जुड़ाव की अधिक समय धारण करने से अपने परिवार से दूर हो जाता है!

इस करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति यांत्रिकी एवं विज्ञान का ज्ञान रखते हैं!

अन्य मतानुसार गर करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति मन्त्र शास्त्रों का ज्ञाता होता है, शत्रु शत्रुता शुभ व्यवहार और स्वभाव वाला न्यायप्रिय स्वभाव, चतुर, निर्बल, मुखर एवं जंग झगडा करने में आनंद प्राप्त करने वाला होता है!

गर करण में गृह प्रवेश आदि अर्थात वास्तु से जुड़े सभी कार्य एवं देखने से जुड़े कार्य शुभ माने जाते हैं!

वणिज करण

वणिज करण के बारे में मान्यता है कि ये नीचे आसीन स्थिति में रहने वाला, लाली का आलेपन करने वाला, पूर्ण आयु का एवं वाहन बफ़ेलो है!

वणिज करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति तीव्र बुद्धि युक्त, वाणिज्यिक एवं व्यवसायिक कार्यों में अनुबंध लेने वाला एवं व्यवसाय और व्यापार से ही लाभ प्राप्त करने वाला होता है, विदेश यात्रा एवं विदेश से जुड़े व्यापार से लाभ प्राप्त करने वाला होता है!

वणिज करण में पैदा हुए लोग अपने जीवन में नौकरी की प्रतिबद्धता गतिविधियों को ही अधिक मान्यता देते हैं ये व्यापार से लाइसेंस ज्ञान स्वतः एवं सहज रूप से प्राप्त करते हैं!

अन्य मत के अनुसार वणिज करण में जन्म लेने वाला कई बार विपरीत होने के कारण प्रति आसक्त चित होता है!

वणिज करण व्यवसायी एवं व्यापार करने वालों के लिए कार्यों को समाप्त करने एवं अन्य व्यवसायिक आवश्यकताओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है वणिज करण एक शुभ एवं प्रेग्नेंसी है!

अवलोकन करण

दृष्टि करण के बारे में मत है कि नीचे आसीन स्थिति में रहने वाला, काले वस्त्रों को धारण करने वाला, वृद्धा अवस्था का एवं वाहन घोड़ा है!

दृष्टि करण में जन्म लेने वाले लोग समाज द्वारा अस्वीकृत कार्यों के प्रति अधिक अधिकार ग्रहण करते हैं! सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी योजनाओं में अधिकता के कारण ये जीवन में कई बार मान सम्मान में कमी और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है!

इस करण में जन्म का एक अशुभ प्रभाव इस करण में पैदा हुए लोगों पर निर्दिष्ट द्रष्टिगत होता है एवं इस प्रकार इस करण में उत्पन्न लोगों का व्यवहार एवं आचरण संशय संशय पूर्ण ही होता है!

दृष्टि करण में दिए गए व्यक्ति विपरीत लिंग के प्रति अधिक आकृष्ट होते हैं एवं इन विषयों में दुराचारी और स्वछंद प्रवृति के भी देखे जाते हैं! धन के प्रति लालच और अत्यधिक महत्व भी व्यवहार व्यवहार में सामान्य है!

इस करण में लाए गए लोग औषधि निर्माण एवं चिकित्सा आदि से जुड़े कार्यों में धन एवं मान सम्मान कि प्राप्त करते हैं शत्रु से प्रतिशोध प्राप्त करने के लिए बुरे से बुरा निर्णय लेने से भी ये कोई दोहरी भावना नहीं करते!

इस कारण से व्यक्ति समाज का विरोध करने में अग्रणी स्वछंद प्रवृति के स्वामी अपने आस पास के लोगों से सम्मान प्राप्त करने के लिए ऐसा नहीं मान रहे हैं! एवं किसी भी विषय में अतिवादी हो सकते हैं!

शकुनि करण

शकुनि करण ऊपर की स्थिति प्राप्त करने वाला करण है! हल्दी का आलेपन करने वाला, वंध्या राज्य का एवं वाहन स्वान है!

शकुनि करण में जन्म लेने वाले लोग कनेक्शन को तर्कसंगत में कुशल होते हैं ये बहुत अधिक बुद्धिमान एवं स्वयं के सहज प्राप्त ज्ञान से शुभ एवं अशुभ समय के भी ज्ञात होते हैं! शकुनि करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति को कालज्ञ भी कहा जा सकता है अर्थात जो अपने सहज ज्ञान से अच्छे व् बुरे को परिचित में सक्षम हो सकता है!

इस करण में जन्म लेने वाले लोग सदा किसी किसी प्रकार से कर्मशील रहते हैं! समय का सदुपयोग करना इन्हें भली तरह दिखता है!

इस करण में दिए गए लोगों को औषधि उत्पन्न आदि का ज्ञान होता है एवं चिकित्सा क्षेत्र में कार्य कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं!

अन्य मत शुकुनि करण में उत्पन्न लोग अपने सहज ज्ञान एवं बौद्धिक क्षमता का दुरूपयोग धन एवं मान सम्मान आदि की धारणा के लिए प्रयोग करते हैं ऐसी स्थिति में इन्हें अपने जीवन की समस्त अभिलाषाओं को प्राप्त करने के लिए कई बार बहुत अधिक विकट स्थिति और अनायास संघर्ष का सामना करना पड़ता है !

कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शकुनि करण होने पर युद्ध सम्बन्धी कार्य, स्वास्थ्य लाभ की इच्छा से औषधि सेवन, एवं शत्रुओं के विरुद्ध कार्य श्रेष्ठ रहते हैं!

चतुष्पद करण

चतुष्पद करण निष्क्रिय अवस्था का करण, लोई आदि का परिधान धारण करने वाला, वंध्या राज्य का एवं वाहन भेड़ है!

चतुष्पद करण में जन्म लेने वाले लोग शुभ संस्कारों से युक्त एवं धर्म कर्म आदि के प्रति आस्थावान होते हैं, ये सर्व शाष्त्र विषारद होते हैं अर्थात ज्ञान की कई विधाओं में पारंगत होते हैं! गुरुजनों एवं श्रेष्ठ जनों के ज्ञान एवं अनुभव से लाभ प्राप्त करते हैं! भाग्य का साथ होने से इन्हें धन, ज्ञान एवं यश सहजता से प्राप्त होता है!

चतुष्पद करण में पैदा हुए लोग चतुष्पद अर्थात चार मांस वाले पशु एवं सभी पेट से सुख प्राप्त करते हैं, इनसे एक से अधिक कठोर का सुख भी प्राप्त होता है!

चतुष्पद करण में उत्पन्न व्यक्ति कृषि कार्य एवं व्यापार से भी लाभ प्राप्त करते हैं! इस करण में नागरिकता रोक आलस से हीन एवं बली होते हैं

अमावस्या को चतुष्पद करण होने पर तंत्र शास्त्रों के ज्ञाता, तामसिक एवं तंत्र की मारण कर्म युक्ति का प्रयोग रोक लगाते हैं!

चतुष्पद करण में चार पैर वाले व्यक्तियों से जुड़े सभी कार्य शुभ एवं मान्य हैं!

श्राद्ध कर्म यानी त्रयस्थ आदि यदि चतुष्पद करण में जायें तो विशेष रूप से शुभ एवं मान्य हैं!

नाग करण

नाग करण के बारे में मत है कि ये निष्क्रिय अवस्था का करण है, निर्वस्त्र है, पुत्र संतति आदि से पूर्ण एवं वाहन बैल है!

नाग करण में जन्म लेने वाले लोग धातु का विशेष ज्ञान रखने वाले अर्थात धातु विज्ञान के विषय में जानकारी रखने वाले होते हैं! ज़ोन क्षेत्र से चक्र प्राप्त करने वाले, एवं कर्म पर अधिक विशवास धारण करने वाले होते हैं, अर्थात कर्म सिद्धांत को भाग्य की वृत्ति अधिक ज्ञापित होते हैं! जीवन में स्वयं के श्रम से विशेष लाभ प्राप्त करते हैं

नाग करण में उत्पन्न व्यक्ति का जीवन संघर्ष एवं विकट स्थितिओं से होता है और उन्हें अपने अभीष्ट कार्यों में सफलता प्राप्त करने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है!

नाग करण में जन्म लेने वाले मन एवं आंखों से चंचल प्रवृति के होते हैं और स्थिरता के आभाव में संतुष्टि अधिक हानिकारक होती है!

नाग करण का प्रयोग गारुणी विद्या (विषहर विद्या) का ज्ञान रखने वाले लोग पकड़ते हैं!

इस करण की समय अवधि में किसी भी नए कार्य का प्रारंभ नहीं करना चाहिए क्योंकि ये करण नए कार्यों का प्रारंभ करने के लिए शुभ एवं मान्य नहीं है!

किस्तुघ्न करण

किंस्तुघ्न करण ऊपर की ओर स्थिति प्राप्त करने वाला होता है! धानी रंग के कपड़ों को धारण करने वाला एवम वाहन है!

किस्तुघ्न करण में जन्म लेने वाले लोग निरंतर शुभ कार्यों को करने वाले, श्रेष्ठ ज्ञान को प्राप्त करने वाले, श्रम से जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने वाले एवं सुखी जीवन वनवासी होते हैं! मौसम एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता के भाव भी इनमे दृष्टिगत होते हैं! इस करण में बनाए गए लोग श्रेष्ठ भाग्यशाली होते हैं, एवं सभी प्रकार के लौकिक सुखों को प्राप्त करते हैं! किंस्तुघ्न करण में किसी व्यक्ति के जीवन में नए सिरे से सभी उद्यम और प्रस्ताव भाग्यवश विकास प्राप्त करते हैं!

किंस्तुघन करण में उत्पन्न लोग अपने वंश विशेषतः पितृ वंश को सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान करने वाले होते हैं, अपने परिवार से विच्छिन्न या पृथकता की स्थिति में निष्प्रभाव हो जाते हैं, आध्यात्म से जुड़े कार्यों को करना एवं पिता का आशीर्वाद प्राप्त करना जीवन में सभी प्रकार की अभिलाषाओं को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है!

किंस्तुघ्न करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने कार्य की तरह दुसरो के कार्य को करने वाला, अल्पायु, अभोगी, और एकांतवासी होता है!

जब शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को किस्तुघ्न करण हो, ऐसी अवस्था में सभी प्रकार के सख्त एवं दु:खदायक कार्यों को सरलता से प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है!

किस्तुघ्न करण सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए मान्य है!

हिंदू पंचांग के पंचांग अंग है:- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। उचित तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण को देखकर ही कोई शुभ या मंगल कार्य किया जाता है। इसके अलावा मुहुर्त का भी इसमें महत्व है। करण को छोड़कर आप सभी से परिचित होंगे। तो आओ जानते हैं कि करण कितने प्रकार के होते हैं और कौन सा करण में मंगल कार्य करना या नहीं करना चाहिए।

 

 

करण क्या है?

तिथि का आधा भाग करण कहलाता है। चन्द्रमा जब 6 अंश पूर्ण कर लेता है तब एक करण पूर्ण होता है। एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

 

 

किस्तुघ्न, चतुष्पद, शकुनि तथा नाग ये चार करण हर माह में आते हैं और इन्हें स्थिर करण कहा जाता है। अन्य सात करण चर करण कहलाते हैं। ये एक स्थिर गति में एक दूसरे के पीछे आते हैं। इनके नाम हैं: बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि जिसे भद्रा भी कहा जाता है।

 

करणों के गुण स्वभाव निम्न प्रकार हैं:-

किस्तुघ्न:- यह स्थिर करण है। इसके प्रतीक माने जाते हैं कृमि, कीट और कीड़े। इसका फल सामान्य है तथा इसकी अवस्था ऊर्ध्वमुखी मानी जाती है।

 

 

बव:- यह चर करण है। इसका प्रतीक सिंह है। इसका गुण समभाव है तथा इसकी अवस्था बालावस्था है।

 

बालव:- यह भी चर करण है। इसका प्रतीक है चीता। यह कुमार माना जाता है तथा इसकी अवस्था बैठी हुई मानी गई है।

 

कौलव:- चर करण। इसका प्रतीक शूकर को माना गया है। यह श्रेष्ठ फल देने वाला ऊर्ध्व अवस्था का करण माना जाता है।

 

 

तैतिल:- यह भी चर करण है। इसका प्रतीक गधा है। इसे अशुभ फलदायी सुप्त अवस्था का करण माना जाता है।

 

गर:- यह चर करण है तथा इसका प्रतीक हाथी है। इसे प्रौढ़ माना जाता है तथा इसकी अवस्था बैठी हुई मानी गई है।

 

वणिज:- यह भी चर करण है। इसका प्रतीक गौ माता को माना गया है तथा इसकी अवस्था भी बैठी हुई मानी गई है।

 

 

विष्टि अर्थात भद्रा:- यह चर करण है। इसका प्रतीक मुर्गी को माना गया है। इसे मध्यम फल देने वाला बैठी हुई स्थिति का करण माना जाता है।

 

शकुनि:- स्थिर करण। इसका प्रतीक कोई भी पक्षी है। यद्यपि इसकी अवस्था ऊर्ध्वमुखी है फिर भी इसे सामान्य फल देने वाला करण माना जाता है।

 

चतुष्पद:- यह भी स्थिर करण है। इसका प्रतीक है चार पैर वाला पशु। इसका भी फल सामान्य है तथा इसकी अवस्था सुप्त मानी जाती है।

 

नाग:- यह भी स्थिर करण है। इसका प्रतीक नाग या सर्प को माना गया है। इसका फल सामान्य है तथा इसकी अवस्था सुप्त मानी गई है।

 

उक्त करणों में विष्टि करण अथवा भद्रा को सबसे अधिक अशुभ माना जाता है। किसी भी नवीन कार्य का आरम्भ इस करण में नहीं किया जा सकता। कुछ धार्मिक कार्यों में भी भद्रा का त्याग किया जाता है। सुप्त और बैठी हुई स्थितियां उत्तम नहीं होतीं। ऊर्ध्व अवस्था उत्तम होती हैं।

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
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मुहूर्त विचार

अभिजीत मुहूर्त

हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है। कि यदि कोई भी काम शुभ मुहूर्त देखकर किया जाए तो वो ज़्यादा शुभ और फलदायी होता है। यही वजह है। कि हिंदू धर्म में जितने भी शुभ और मांगलिक कार्य होते हैं। जैसे विवाह, गृह प्रवेश, अन्नप्राशन, मुंडन, कर्णवेध संस्कार, इत्यादि या कोई पूजा पाठ इसके लिए हम शुभ मुहूर्त की गणना अवश्य करवाते हैं।

शुभ मुहूर्त को लेकर अलग-अलग विश्वास वाले लोगों के बीच तर्क वितर्क और धारणाओं का मतभेद देखने को मिलता है। हालांकि यह शुभ मुहूर्त एक व्यक्ति के जीवन में क्या महत्व रखता है। यह स्वयं उस व्यक्ति की सोच और विश्वास पर निर्भर करता है। और करना चाहिए। जो लोग शुभ मुहूर्त में विश्वास करते हैं। वह जानते और मानते हैं। कि शुभ मुहूर्त वह विशेष समय होता है। जब ग्रह और नक्षत्रों के प्रभाव से हमें सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। ऐसे में इस दौरान यदि कोई भी कार्य शुरू किया जाए, या शुभ कार्य संपन्न किया जाए तो यह निर्विघ्न रुप से और सफल होता है।

एक दिन में कितने मुहूर्त होते हैं।

1 दिन में कुल 30 मुहूर्त होते हैं। हालांकि यहां यह जानना बेहद आवश्यक है कि मुहूर्त शुभ भी होते हैं। और अशुभ मुहूर्त भी होते हैं। जहां शुभ कार्य करने के लिए हम शुभ मुहूर्त की गणना करते हैं वहीं कोई भी शुभ या नया कार्य करने के लिए यह बेहद आवश्यक होता है। कि आपको पता हो कि दिन आज का अशुभ मुहूर्त क्या है। ताकि आप उस समय में कोई भी नया काम ना शुरू करें।

दिन के सभी मुहूर्तों के नाम: रुद्र, आहि, मित्र, पितॄ, वसु, वाराह, विश्वेदेवा, विधि, सतमुखी, पुरुहूत, वाहिनी, नक्तनकरा, वरुण, अर्यमा, भग, गिरीश, अजपाद, अहिर, बुध्न्य, पुष्य, अश्विनी, यम, अग्नि, विधातॄ, कण्ड, अदिति, जीव/अमृत, विष्णु, युमिगद्युति, ब्रह्म और समुद्रम।

शुभ मुहूर्त महत्व

हिंदू धर्म में प्राचीन काल से मुहूर्त को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। आज का शुभ निकालने के लिए ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति की गणना की जाती है और उसके बाद दिन का शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। सनातन धर्म में शुभ कार्य, मांगलिक कार्य, या कोई भी नया कार्य शुरू करने से पहले उस दिन का शुभ मुहूर्त देखने की परंपरा है। और यही वजह है। कि लोग मांगलिक कार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त ना मिले तो महीनों तक इंतजार भी कर लेते हैं।

ऐसा सिर्फ इसलिए होता है। क्योंकि लोगों के मन में यह धारणा है। और ऐसे हमारे सामने कई उदाहरण भी हैं। जिन्हें देखकर यकीन होता है। कि यदि कथित दिन का शुभ मुहूर्त देखकर कोई भी शुभ या मंगल कार्य किया जाए तो इससे हमारे जीवन में खुशहाली आती है। काम बिना विघ्न के संपन्न होता है। और हमें जीवन में सफलता मिलती है।

जैसा कि हमने पहले भी बताया कि जब हम शुभ मुहूर्त की गणना करवाकर कोई नया कार्य मांगलिक कार्य शुभ कार्य करते हैं तो इसमें हमें सफलता मिलती है। हालांकि इन मुहूर्त में अगर कोई चूक हो जाए या गलती हो जाए तो कई बार इसके विपरीत परिणाम भी हमें झेलने पड़ते हैं। ऐसे में बेहद जरूरी हो जाता है कि जब भी आप आज का शुभ मुहूर्त  निकलवाए तो यह आप किसी जानकार पंडित या ज्योतिषी से ही करवाएं। विशेष तौर पर अगर आप शादी विवाह, मुंडन, और गृह प्रवेश जैसे शुभ और बड़े कार्यो के लिए मुहूर्त की तलाश में है तो इसके लिए आपको ज्योतिषी से परामर्श करने की सलाह दी जाती है।

मौजूदा समय में आज के शुभ मुहूर्त की उपयोगिता और महत्व

हम जैसे-जैसे मॉर्डनाइजेशन यानी आधुनिकता की तरफ बढ़ते जा रहे हैं वैसे-वैसे हम अपनी संस्कृति, अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में आपने अक्सर देखा होगा कि आज का शुभ मुहूर्त में विश्वास करने वाले लोगों को पिछड़ी सोच का माना जाता है। हालांकि अतीत में शुभ मुहूर्त में किए गए कामों की सफलता को कोई भी नकार नहीं सकता है। यही वजह है कि हम कितने भी मॉडर्न क्यों ना हो जाए हमें कुछ चीजों पर विश्वास बनाए रखने और उन पर आजीवन अमल करने की आवश्यकता होती है।

आज का शुभ मुहूर्त भी उन्हीं कुछ चीजों में से एक है। शायद यही वजह है। कि आज भी जहां अधिकांश लोग मॉडर्न होकर मुहूर्त और आज के शुभ मुहूर्त को नकार चुके हैं वहीं बहुत से लोग अभी भी महत्वपूर्ण मांगलिक कार्यों और नया काम को शुरू करने के लिए शुभ मुहूर्त की गणना कराने की सलाह देते हैं क्योंकि यह हमारा विश्वास है। कि आज के शुभ मुहूर्त के अनुसार यदि कोई भी नया काम किया जाए तो वह हमारे जीवन में तमाम खुशियां, सफलता, और समृद्धि लेकर आएगा।

अभिजीत मुहूर्त

अभिजीत का अर्थ हैविजेताऔर मुहूर्त अर्थातसमय हमारे सनातन धर्म में समय को अत्यंत ही महत्व दिया गया है और ऐसा माना जाता है कि यदि कार्य को सही समय पर किया जाये तो सफलता निश्चित है।सामान्यतः मुहूर्त के लिए दिन, तिथि, नक्षत्र, योग और दिनमान का योग देखा जाता है, और उसके आधार पर निर्णय लिया जाता है कि कौन-सा कार्य कब करें कि सफलता सुनिश्चित हो। परन्तु ये गणनाएँ कुछ जटिल होती हैं और इन्हें कोई पंचांग का विशेषज्ञ ही बता सकता है। ऐसी स्थिति में जनसामान्य के लिए जिन्हें पंचांग की जानकारी भी हो तो अभिजीत मुहूर्त सर्वोत्तम है। अभिजीत मुहूर्त प्रत्येक दिन में आने वाला एक ऐसा समय है जिसमे आप लगभग सभी शुभ कर्म कर सकते हैं। यहाँ एक बात स्पष्ट करने योग्य है। कि अभिजीत मुहूर्त और अभिजीत नक्षत्र का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता। परन्तु यदि अभिजीत मुहूर्त और अभिजीत नक्षत्र एक साथ पड़ जाएँ तो अत्यंत ही शुभ माना जाता है।

अभिजीत मुहूर्त का समय

हिन्दू मान्यता के अनुसार हमारा पूरा दिन अर्थात सूर्योदय से लेकर अगले सूर्योदय तक का समय कुल 30 मुहूर्तों में विभक्त है, जिनमें से 15 सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक तथा 15 सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक के हैं। इन 30 मुहूर्तों में से कुछ शुभ कर्मों के लिए ग्राह्य है, तो कुछ शुभ कर्मों के लिए वर्जित। अभिजीत मुहूर्त इन सभी मुहूर्तों में अत्यंत ही शुभ तथा फलदायी माना जाता है। अभिजीत मुहूर्त प्रत्येक दिन मध्यान्ह से करीब 24 मिनट पहले प्रारम्भ होकर मध्यान्ह के 24 मिनट बाद समाप्त हो जाता है। अर्थात यदि सूर्योदय ठीक 6 बजे हो तो दोपहर 12 बजे से ठीक 24 मिनट पहले प्रारम्भ होकर यह दोपहर 12:24 पर समाप्त होगी। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अभिजीत मुहूर्त का वास्तविक समय सूर्योदय के अनुसार परिवर्तित होता रहता है।

अभिजीत मुहूर्त में किये जाने वाले कर्म

अभिजीत मुहूर्त लगभग सभी शुभ कर्मों में ग्राह्य हैं जैसे - पहली बार किसी कार्य से यात्रा प्रारम्भ करना, किसी नए कार्य को प्रारम्भ करना, दूकान या व्यापार का प्रारम्भ करना, ऋण को चुकाना या धन संग्रह करना या पूजा का प्रारम्भ करना इत्यादि। कुछ विद्वान इस समय गृह प्रवेश, मुंडन कार्य, विवाह इत्यादि की भी मान्यता देते हैं। परन्तु, ऐसी भी मान्यता है कि सामान्य शुभ कार्य के लिए तो यह अत्यंत उत्तम है, परन्तु मांगलिक कार्य तथा ग्रह प्रवेश जैसे प्रमुख कार्यों के लिए और भी योगों को देखना आवश्यक है।

अभिजीत मुहूर्त में क्या नहीं करें

अभिजीत मुहूर्त में दक्षिण दिशा की यात्रा को निषेध किया गया है। साथ ही बुधवार को अभिजीत मुहूर्त में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।

 

वैदिक ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र हैं। इनमें 8वें स्थान पर पुष्य नक्षत्र आता है, जो बेहद ही शुभ एवं कल्याणकारी नक्षत्र है, इसलिए इसे नक्षत्रों का सम्राट भी कहा जाता है। जब यह नक्षत्र रविवार के दिन होता है तो इस नक्षत्र एवं वार के संयोग से रवि पुष्य योग बनता है। इस योग में ग्रहों की सभी बुरी दशाएँ अनुकूल हो जाती हैं, जिसका परिणाम सदैव आपके लिए शुभकारी होता है। रवि पुष्य योग को रवि पुष्य नक्षत्र योग भी कहा जाता है।

रवि पुष्य योग में इन कार्यों को करना माना जाता है बेहद शुभ

रवि पुष्य योग समस्त शुभ और मांगलिक कार्यों के शुभारंभ के लिए उत्तम माना गया है। यदि ग्रहों की स्थिति प्रतिकूल हो अथवा कोई अच्छा मुहूर्त नहीं भी हो, ऐसी स्थिति में भी रवि पुष्य योग सभी कार्यों के लिए परम लाभकारी होता है लेकिन विवाह को छोड़कर। इस योग में सोने के आभूषण, प्रॉपर्टी और वाहन आदि की खरीददारी करना लाभदायक होता है। रवि पुष्य योग में नए व्यापार और व्यवसाय की शुरुआत करना भी श्रेष्ठ बताया जाता है। इसके अलावा यह योग तंत्र-मंत्र की सिद्धि एवं जड़ी-बूटी ग्रहण करने में विशेष रूप से उपयोगी होता है।

1.  इस दिन साधना करने से उसमें निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है।
2.  कार्य की गुणवत्ता एवं उसके प्रभाव में वृद्धि होती है।
3.  धन वैभव में वृद्धि होती है।
4.  यंत्र सिद्धि के लिए यह शुभ दिन होता है।
5.  जन्मकुंडली में स्थित सूर्य के दुष्प्रभाव दूर होते हैं।
6.  सूर्य का आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन सुर्ख लाल वस्त्र पहनना शुभ होता है।
7.  जीवन में आर्थिक समृद्धि आती है।

रवि पुष्य योग पर करें ये धार्मिक कर्म और उपाय

●  रविवार के दिन गाय को गुड़ खिलाने से आर्थिक लाभ होता है।
●  रविवार के दिन मंदिर में दीपक जलाने से कार्य में आने वाली बाधा समाप्त होती है।
●  तांबे के लोटे में जल में दूध, लाल पुष्प और लाल चंदन डालकर सूर्य को अर्घ्य देने से शत्रु कमजोर होते हैं।

 

गुरु पुष्य योग

जिस प्रकार शेर समस्त जानवरों का राजा होता है, ठीक उसी प्रकार गुरु पुष्य योग भी सभी योगों में प्रधान माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस शुभ योग में किए गए कार्य सफल होते हैं। इसलिए लोग गुरु पुष्य योग में अपने नए कार्य का श्रीगणेश करना शुभ मानते हैं। वे इस अवसर पर अपना नए व्यापार का आरंभ, नई प्रॉपर्टी अथवा नया वाहन आदि ख़रीदते हैं।

वैसे तो चंद्रमा का राशि के चौथे, आठवें एवं 12वें भाव में उपस्थित होना अशुभ माना जाता है। परंतु यह पुष्य नक्षत्र की ही अनुकंपा है जो अशुभ घड़ी को भी शुभ घड़ी में परिवर्तित कर देती है। इसी कारण 27 नक्षत्रों में इसे शुभ नक्षत्र माना गया है।

शास्त्रों के अनुसार यह माना गया है कि इसी नक्षत्र में धन वैभव की देवी लक्ष्मी जी का जन्म हुआ था। जब पुष्य नक्षत्र गुरुवार एवं रविवार के दिन पड़ता है तो क्रमशः इसे गुरु पुष्यामृत योग और रवि पुष्यामृत योग कहते हैं। ये दोनों योग धनतेरस, चैत्र प्रतिपदा के समान ही शुभ हैं।

ग्रहों की विपरीत दशा से बावजूद भी यह योग बेहद शक्तिशाली है। इसके प्रभाव में आकर सभी बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं, परंतु ऐसा कहते हैं कि इस योग में विवाह जैसा शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। शास्त्रो में उल्लेखित है कि एक श्राप के अनुसार इस दिन किया हुआ विवाह कभी भी सुखकारक नहीं हो सकता |

 

वाहन खरीद मुहूर्त

हिन्दू धर्म में शुभ कार्यों की शुरुआत सदैव मुहूर्त देखकर की जाती है। विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन समेत वाहनों को खरीदने के लिए हिन्दू पंचांग में विशेष तिथि, नक्षत्र और लग्न निर्धारित किये गये हैं। वाहन खरीदने का शुभ मुहूर्त देखकर खरीदे गये वाहनों से घर में सुख-शांति आती है और दुर्घटनाओं का भय कम होता है। कार, बाइक, ट्रक और अन्य सभी तरह के कमर्शियल और नॉन कमर्शियल वाहनों की खरीद के लिए मुहूर्त होते हैं। इनमें वार, तिथि और नक्षत्रों का विशेष महत्व होता है।

वाहन खरीदने के मुहूर्त में तिथि, नक्षत्र, लग्न और वार विचार

चर नक्षत्र- कार और अन्य वाहनों को खरीदने के लिए पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण,धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र विशेष रूप से शुभ माने गये हैं क्योंकि इन्हें चर नक्षत्र कहा जाता है। इसके अलावा अन्य नक्षत्र भी उत्तम माने जाते हैं, साथ ही ये नक्षत्र पहली बार वाहन चलाने के लिए शुभ कहे गये हैं।

शुभ दिन- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और रविवार वाहन खरीदने के लिए शुभ दिन माने जाते हैं। हालांकि इनमें शुक्रवार को सबसे अच्छा बताया गया है।

शुभ तिथि- समस्त प्रकार के वाहनों को खरीदने के लिए प्रथमा, तृतीया, पंचमी, षष्टी, अष्टमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी और पूर्णिमा की तिथि शुभ मानी जाती है। अमावस्या की तिथि में वाहन नहीं खरीदना चाहिये।

शुभ लग्न- मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु और मीन लग्न में वाहन खरीदना श्रेष्ठ माना गया है।

चर और द्विस्वभाव लग्न- चर और द्विस्वभाव लग्न वाहन चलाने और नया वाहन खरीदने के लिए शुभ माने जाते हैं। इनमें मेष, कर्क, तुला और मकर चर लग्न हैं और मिथुन, कन्या, धनु मीन द्विस्वभाव वाले लग्न हैं।

चंद्रमा की स्थिति- जिस दिन आप वाहन खरीदने जा रहे हैं उस दिन चंद्रमा षष्टम, अष्टम और द्वादश भाव में नहीं होना चाहिए। इसके अलावा चतुर्थ भाव के स्वामी और कुंडली में शुक्र की स्थिति का अवलोकन भी अवश्य करना चाहिए।

 

वाहन खरीद के लिए शुभ तिथि, नक्षत्र, लग्न और वार के अलावा भी ऐसे कई शुभ मुहूर्त आते हैं, जब बिना मुहूर्त देखे वाहनों की खरीद की जाती है। इनमें अक्षय तृतीया, सर्वार्थ सिद्धि योग, गुरु पुष्य योग, रवि पुष्य योग, अमृत सिद्धि योग आदि प्रमुख हैं। हिन्दू धर्म और वैदिक ज्योतिष में इन मुहूर्तों का विशेष महत्व है। इन मुहूर्तों में कई मांगलिक और शुभ कार्य बिना मुहूर्त देखे आरंभ किये जा सकते हैं। हालांकि विवाह के विषय में यह पूर्ण रूप से लागू नहीं होते हैं।

राहु काल में वाहन खरीदें

वैदिक ज्योतिष में राहु को क्रूर पापी ग्रह की संज्ञा दी गई है, इसलिए यह बुरे फल प्रदान करता है। शुभ कार्य में समस्या और अड़चन उत्पन्न करना राहु का स्वभाव है अतः राहु काल में शुभ कार्यो की शुरुआत करने से बचना चाहिए।

●  राहु काल में शुरू किया गया कार्य बिना परेशानी के पूरा नहीं होता है। इस दौरान कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
●  राहु काल में कार, बाइक या अन्य वाहन और मकान, आभूषण आदि भूलकर भी नहीं खरीदना चाहिए।
●  इस अवधि में वाहन की खरीदी और बिक्री दोनों से बचना चाहिए।

इसलिए यदि आप वाहन खरीदने का मन बना रहे हैं तो राहु काल के बारे में विचार अवश्य कर लें।

राशि के अनुसार वाहनों के शुभ रंग

हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि शुभ मुहूर्त में कार, बाइक या अन्य वाहन खरीदा जाये, ताकि उस मुहूर्त विशेष में ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति का उसे लाभ मिले। इसके अलावा राशि के अनुसार भी वाहनों के रंगों का विशेष ज्योतिषीय महत्व होता है।

 

मेष- इस राशि के लोगों के लिए नीला या उससे मिलते-जुलते रंग के वाहन शुभ होते हैं। वहीं काले और भूरे रंग का वाहन लेने से बचना चाहिए।

वृषभ- सफेद और क्रीम कलर के वाहन वृषभ राशि के जातकों के लिए अच्छे माने जाते हैं। वहीं पीले और गुलाबी रंग के वाहनों को खरीदने से बचना चाहिए।

मिथुन- इस राशि के लोगों के लिए हरा या क्रीम कलर का वाहन लाभदायक माना गया है।

कर्क- इस राशि के जातकों को काले, पीले और लाल रंग के वाहन खरीदने चाहिये। क्योंकि ये रंग उनके लिए शुभ माने गये हैं।

सिंह- ग्रे और स्लेटी रंग के वाहन सिंह राशि के लोगों के लिए शुभ साबित होते हैं।

कन्या- सफेद और नीले रंग के वाहन कन्या राशि के लोगों के लिए शुभ माने गये हैं। हालांकि लाल रंग के वाहन कन्या राशि वाले जातकों को नहीं लेना चाहिए।

तुला- इस राशि के लोगों के लिए काले अथवा भूरे रंग का वाहन शुभ माना गया है।

वृश्चिक- इन लोगों को सफेद रंग के वाहन खरीदने चाहिये। वहीं काले रंग के वाहन को खरीदने से बचें।

धनु- सिल्वर और लाल रंग के वाहन धनु राशि के लोगों के लिए विशेष फलदायी माने गये हैं। वहीं काले और नीले रंग के वाहन नहीं लेना चाहिए।

मकर- सफेद, ग्रे और स्लेटी रंग के वाहन इन राशि वालों के लिए अच्छे माने जाते हैं।

कुंभ- इस राशि के लोगों को सफेद, ग्रे या नीले रंग के वाहन खरीदने चाहिए।

मीन- पीला, नारंगी या गोल्डन रंग का वाहन मीन राशि के जातकों के लिए लाभकारी होता है।

घर के साथ-साथ वाहन खरीदना भी हर व्यक्ति का सपना होता है इसलिए यह जरूरी है कि जिस प्रकार शुभ मुहूर्त में गृह प्रवेश किया जाता है, ठीक उसी प्रकार एक अच्छे मुहूर्त में वाहनों की खरीद की जाये। क्योंकि वाहन आपके जीवन की बड़ी जरुरतों में से एक है, इसलिए वाहन को खरीदने के बाद उसकी पूजा की जाती है ताकि आपके जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहे।

 

गृह प्रवेश मुहूर्त

हर व्यक्ति के जीवन में गृह प्रवेश एक महत्वपूर्ण क्षण होता है। क्योंकि कड़ी मेहनत और प्रयासों के बाद घर का सपना साकार होता है, इसलिए शुभ मुहूर्त में गृह प्रवेश का विशेष महत्व है। शुभ घड़ी और तिथि पर गृह प्रवेश करने से घर में शांति,समृद्धि और खुशहाली आती है। गृह प्रवेश के मुहूर्त का निर्धारण तिथि, नक्षत्र, लग्न और वार आदि के आधार पर किया जाता है।

 

गृह प्रवेश के लिए शास्त्रोक्त नियम

शास्त्रों में माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ माह गृह प्रवेश के लिये सबसे उत्तम माह मनाये गये हैं।
चातुर्मास अर्थात आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन के महीनों में गृह प्रवेश करना निषेध होता है। क्योंकि यह अवधि भगवान विष्णु समेत समस्त देवी-देवताओं के शयन का समय होता है। इसके अतिरिक्त पौष मास भी गृह प्रवेश के लिए शुभ नहीं माना जाता है।
मंगलवार को छोड़कर अन्य सभी दिनों में गृह प्रवेश किया जाता है। हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों में रविवार और शनिवार के दिन भी गृह प्रवेश करना वर्जित होता है।
अमावस्या पूर्णिमा की तिथि को छोड़कर शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथि गृह प्रवेश के लिए शुभ मानी जाती है।
गृह प्रवेश स्थिर लग्न में करना चाहिए। गृह प्रवेश के समय आपके जन्म नक्षत्र से सूर्य की स्थिति पांचवे में अशुभ, आठवें में शुभ, नौवें में अशुभ और छठवे में शुभ है।

गृह प्रवेश के प्रकार

सामान्यतः यह धारणा रही है कि गृह प्रवेश हमेशा नये घर में रहने के लिए किया जाता है लेकिन यह धारणा सही नहीं है। वास्तु शास्त्र के अनुसार गृह प्रवेश 3 प्रकार के होते हैं-

अपूर्व: जब नये घर में रहने के लिए जाते हैं, तो यहअपूर्वगृह प्रवेश कहलाता है।
सपूर्व: यदि किन्ही कारणों से हम किसी दूसरे स्थान पर रहने चले जाते हैं और अपना घर खाली छोड़ देते हैं। इसके बाद जब हम पुनः घर में लौटते हैं, तो इसे सपूर्व गृह प्रवेश कहते हैं।
द्वान्धव: प्राकृतिक आपदा अथवा किसी और परेशानी की वजह से जब मजबूरी में घर छोड़ना पड़ता है। इसके बाद दोबारा घर में रहने के लिए पूजा-पाठ किया जाता है, तो इसे द्वान्धव गृह प्रवेश कहा जाता है।

 

वास्तु शांति का महत्व

वास्तु शास्त्र प्राचीन भारतीय विज्ञान है। इसमें दिशाओं के महत्व को दर्शाया गया है। वास्तु से तात्पर्य है एक ऐसा स्थान जहाँ भगवान और मनुष्य एक साथ रहते हैं। मानव शरीर पांच तत्वों से बना है और वास्तु का सम्बन्ध भी इन पाँचों ही तत्वों से माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार प्रत्येक दिशा में देवताओं का वास होता है। हर दिशा से मिलने वाली ऊर्जा हमारे जीवन में सकारात्मक वातावरण, सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करती है, इसलिए गृह प्रवेश से पूर्व वास्तु पूजा और वास्तु शांति अवश्य करनी चाहिए।

 

निर्माण कार्य पूरा होने के बाद करें गृह प्रवेश

कभी-कभी हम आधे-अधूरे बने घर में ही प्रवेश कर लेते हैं लेकिन यह सही नहीं माना जाता है। शास्त्रों में गृह प्रवेश के कुछ विधान बताये गये हैं, जिनका पालन अवश्य करना चाहिए।

जब तक घर में दरवाजे नहीं लग जाते हैं, विशेष रूप मुख्य द्वार पर, और घर की छत पूरी तरह से नहीं बन जाती है, तब तक गृह प्रवेश करने से बचना चाहिए।
गृह प्रवेश के बाद कोशिश करें कि घर के मुख्य द्वार पर ताला नहीं लगाएँ। क्योंकि ऐसा करना अशुभ माना गया है।

विशेष: गृह प्रवेश के संबंध में दिये गये ये सभी विचार धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। हालांकि गृह प्रवेश से पूर्व वास्तु शांति और अन्य कार्यों के लिए विद्वान ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें।

ऐसी कहावत है कि, जिंदगी जीने के लिए तीन चीज़ें ख़ासा महत्वपूर्ण होती हैं, “रोटी”, “कपड़ाऔरमकान ये जिंदगी गुज़ारने के लिए मनुष्य की मौलिक जरूरतें होती हैं। इन प्राथमिक जरूरतों के बिना एक मनुष्य जीवन की शुरुआत कभी नहीं की जी सकती है। भोजन भूख को मिटाकर मनुष्य शरीर को पोषक तत्व प्रदान करता है, कपड़े की आवश्यकता शरीर ढँकने के साथ ही साथ शरीर को सर्द, गर्म से बचाने के लिए होती है। अब बात करें घर या मकान की तो, ये मनुष्य को धूप और बारिश से बचाने के साथ ही सुरक्षा और आश्रय देता है।

हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग नए घर में प्रवेश से पहले शुभ मुहूर्त के अंतर्गत पूजा और हवन करवाने के बाद ही प्रवेश करते हैं। यहाँ तक की नयी संपत्ति की नीव रखने या खरीदने से पहले भी विशेष रूप से शुभ मुहूर्त में पूजा तथा यज्ञ करवाया जाता है। किसी भी शुभ कार्य या आयोजन को करने से पूर्व लोग विशेष रूप से शुभ मुहूर्त और दिन निकलवाते हैं, इसके बाद ही उस कार्य को संपन्न किया जाता है। एक बच्चे के जन्म के बाद नाम रखने के लिए विशेष रूप से (नामकरण मुहूर्त) शुभ मुहूर्त निकलवाने से लेकर उसकी शादी का शुभ मुहूर्त (विवाह मुहूर्त) वैदिक हिन्दू पंचांग से प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार से कोई भी संपत्ति खरीदने से पहले संपत्ति खरीदने के मुहूर्त की जानकारी अवश्य ले लेनी चाहिए। इससे संपत्ति खरीदने के शुभ मुहूर्त और अनुकूल समय की जानकारी मिल जाती है। इन शुभ मुहूर्त में घर या संपत्ति खरीदने से व्यक्ति को फलदायी परिणाम मिलते हैं और व्यक्ति को उस संपत्ति का भरपूर आनंद मिल पाता है।

 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार संपत्ति क्रय

वैदिक ज्योतिष विभिन्न योग और दशाओं की जानकारी देता है और ग्रहों एवं नक्षत्रों को एक साथ संरेखित करता है। कुंडली का चौथा भाव खासतौर से सही समय पर संपत्ति पर मालिकाना हक़ प्राप्त करने और संपत्ति खरीदने के समय के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुंडली मेंसुख स्थानके नाम से जान जाने वाला ये भाव विशेष रूप से घर, समृद्धि, भूमि, चल तथा चल संपत्ति और वाहन आदि का कारक होता है। ज्योतिषीय आधारों पर इस घर का विश्लेषण करने से ख़ासतौर से इस बात की जानकारी मिलती है की किस संपत्ति या जमीन को खरीदने में निवेश करना है और कब करना है।

 

इस श्रेणी को नियंत्रित करने के लिए जो ग्रह जिम्मेदार हैं वो निम्नलिखित हैं।

●  मंगल: मंगल ग्रह को विशेष रूप से नैसर्गिक कारक ग्रह के रूप में जाना जाता है, जो संपत्ति, भूमि और उस स्थान को दर्शाता है जहाँ आप रहते हैं।
●  शुक्र: शुक्र ग्रह को सौंदर्य और विलासिता का प्रतीक माना जाता है, इसलिए कुंडली में इस ग्रह का स्थान दर्शाता है की आपका घर कितना सुन्दर, आरामदेह और विलासिता पूर्ण होगा।
●  शनि: इस ग्रह को भी निर्माण, भूमि और संपत्ति का कारक माना जाता है।

 

संपत्ति क्रय हेतु शुभ मुहूर्त का महत्व

जिस तरह से हम किसी नए कार्य की शुरुआत के लिए और शुभ मुहूर्त की गणना करने के लिए किसी ज्योतिषी से सलाह लेते हैं, वैसे ही किसी अचल संपत्ति, ज़मीन, संपत्ति की खरीदारी या निवेश करने से पहले भी ऐसा जरूर करना चाहिए। मुहूर्त का विशेष अर्थ हैशुभ समय”, जो कि किसी भी धार्मिक और भविष्य के लिए किये जाने वाले महत्वपूर्ण कार्यों को करने के लिए उपयुक्त और शुभ समय की जानकारी देता है। शुभ मुहूर्त में किसी भी कार्य को करने से हमेशा उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। इस तरह से, इस दौरान किसी भी संपत्ति या भूमि का अधिकार प्राप्त करना या उसे क्रय करना भविष्य के लिए ख़ासा फलदायी साबित हो सकता है। घर या संपत्ति खरीदने के लिए इस विचार के साथ आगे बढ़ने के लिए इस पृष्ठ पर उल्लिखित मुहूर्त को देखें।

घर या संपत्ति खरीदने से पहले इन ज्योतिषीय संयोजनों का अवश्य ध्यान रखें

किसी भी चल अचल संपत्ति, भूमि या जमीन जायदाद में निवेश करने से पहले, यहाँ निम्नलिखित ग्रहों के संयोजन का पालन जरूर करना चाहिए

●  जब किसी की कुंडली का मूल्यांकन किया जाता है, तो सही समय की पहचान करने के लिए महादशा को अवश्य देखा जाना चाहिए।
●  दूसरे, चौथे, नवें और ग्यारहवें भाव की महादशा को घर, संपत्ति आदि खरीदने के लिए विशेष लाभकारी माना जाता है।
●  कुंडली में चंद्रमा, शुक्र और राहु की दशा कम उम्र में घर खरीदने के लिए जिम्मेदार मानी जाती है।
●  इस प्रकार से, कुंडली में बृहस्पति की स्थिति जातक को 30 वर्ष की आयु के अंतर्गत संपत्ति का मालिकाना हक़ दिलाने के लिए जिम्मेदार होती है।
●  कुंडली में बुध की स्थिति जातक को 32 से 36 वर्ष की आयु में गृह सुख प्राप्त करने के लिए अनुकूल होती है।
●  कुंडली में सूर्य और मंगल की स्थिति अधेड़ उम्र में संपत्ति सुख प्रदान करने का कारक मानी जाती है।
●  यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि और केतु की स्थिति एक साथ होती है तो उसे 44 से 52 वर्ष की आयु में घर का सुख प्राप्त होता है।

संपत्ति के चौथे भाव में ग्रहों की स्थिति

संकेत निधि के अनुसार, जब कुंडली के चौथे भाव या संपत्ति भाव में बुध की स्थिति होती है, तो जातक को एक कलात्मक रूप से निर्मित सुन्दर घर की प्राप्ति होती है। दूसरी तरफ यदि कुंडली के इस भाव में चंद्रमा की स्थिति हो तो जातक एक नया घर खरीद सकता है। कुंडली में बृहस्पति की स्थिति घर को मजबूत और टिकाऊ बनाती है, वहीं कुंडली में शनि और केतु की स्थिति घर को कमजोर बनाती है। दूसरी तरफ कुंडली में मंगल की मजबूत स्थिति घर को आग से सुरक्षित रखती है और लाभकारी शुक्र ग्रह के प्रभाव से घर की खूबसूरती में वृद्धि होती है। अंत में, कुंडली में शनि और राहु की उपस्थिति के कारण व्यक्ति को पुराने घर पर अधिपत्य मिलता है।

जातक तत्व संपत्ति के बारे में टिप्पणियों को प्रकट करता है, जो कहता है कि:

●  जब किसी व्यक्ति की कुंडली के चौथे भाव में शुक्र या चंद्रमा उच्च स्थिति में होता है, तो व्यक्ति को बहु-मंजिला इमारत या घर प्राप्त होता है।
●  कुंडली के चौथे भाव में मंगल और केतु की उपस्थिति होने से व्यक्ति को ईंट का घर मिलता है।
●  इसी प्रकार से जब किसी की कुंडली में सूर्य का प्रभाव होता है तो व्यक्ति को लकड़ी का घर और बृहस्पति के प्रभाव से घास का घर नसीब होता है।

कुंडली में योग का मूल्यांकन

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चौथा भाव पैतृक लाभ का विश्लेषण और निर्धारण करने के लिए जिम्मेवार होता है। यहाँ हम कुछ ऐसे ग्रह योगों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके कुंडली में बनने पर, व्यक्ति भूमि या संपत्ति खरीदने के लिए सक्षम होता है।

●  भूमि या संपत्ति खरीदने के लिए किसी भी व्यक्ति की कुंडली का चौथा भाव और मंगल की स्थिति उच्च एवं मजबूत होनी चाहिये।
●  यदि कुंडली में चौथे भाव का स्वामी आरोही ग्रह के साथ चौथे भाव में स्थित हो तो, ऐसे में व्यक्ति भूमि और वाहन खरीदने में सक्षम होता है।
●  यदि कुंडली में चतुर्थ और 10 वें घर के स्वामी ग्रह द्वारा त्रीणि या चतुर्थांश का निर्माण किया जाता है, तो व्यक्ति इत्मीनान से आनंद लेता है और घर के चारों ओर एक चारदीवारी बनाता है।
●  यदि व्यक्ति की कुंडली के चौथे भाव में केवल मंगल की उपस्थिति रहती है तो, व्यक्ति को संपत्ति का सुख तो जरूर मिलता है लेकिन वो संपत्ति हमेशा कानूनी मामलों में संलिप्त रहती है।
●  जब चौथे घर का स्वामी दशा या अंर्तदशा के दौरान मंगल या शनि के साथ संबंध स्थापित करता है, तो व्यक्ति मालिकाना अधिकार हासिल करने के लिए बाध्य होता है।
●  जब बृहस्पति कुंडली में आठवें घर से संबंधित होता है, जो कि उम्र और दीर्घायु का प्रतिनिधित्व करता है, तो व्यक्ति को पैतृक संपत्ति की प्राप्ति होती है।
●  जब चौथे, आठवें और ग्यारहवें घर का एक साथ जुड़ाव होता है, तो किसी की अपनी संपत्ति हासिल करने की संभावना बढ़ जाती है।
●  एक व्यक्ति दूर या विदेशों में एक संपत्ति खरीदने या निवेश करने में सक्षम हो जाता है, जब चौथे भाव का बारहवें घर के साथ जुड़ाव होता है।
●  जब चतुर्थ भाव में मंगल,शुक्र और शनि की स्थिति बनती है, तो व्यक्ति बहुत सारे सौंदर्य से परिपूर्ण घरों को प्राप्त करता है।

वैदिक ज्योतिष के अंतर्गत किसी भी शुभ कार्य का मुहूर्त जानने के लिए हमें पंचांग की आवश्यकता होती है। पंचांग के द्वारा ही विभिन्न प्रकार के वार, तिथि, नक्षत्र, करण तथा योग की जानकारी प्राप्त होती है। इसी पंचांग के अंतर्गत मुहूर्त का ध्यान करते समय हमें पंचक का विशेष ध्यान रखना होता है क्योंकि पंचक लगने का समय मुहूर्त शास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

 

पंचक क्या है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार 5 ऐसे नक्षत्र हैं जिनके विशेष संयोग से बनने वाले योग को पंचक कहा जाता है। यह पांच नक्षत्र शुभ कार्यों के लिए दूषित माने जाते हैं इसी कारण कुछ विशेष कार्यों को पूर्ण करने से पहले पंचक का विशेष ध्यान रखा जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र चक्र में 27 नक्षत्रों का वर्णन किया गया है। इन नक्षत्रों के आधार पर ही सभी 12 राशियों में सभी 27 नक्षत्रों को विभक्त किया गया है। जिसके अनुसार एक राशि में लगभग सवा दो नक्षत्र आते हैं। एक नक्षत्र का मान 13 अंश 20 मिनट होता है और प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं जिसमें प्रत्येक चरण 3 अंश 20 मिनट का होता है। एक राशि का मान 30 अंश का होता है। जब चंद्रमा अपनी गति करते हुए कुंभ और मीन राशि में गोचर करते हैं तो उसी समय पंचक लगते हैं।

 

कौन से हैं पंचक नक्षत्र?

जैसे ही चंद्र देव कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं। धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण का प्रारंभ होता है। उसके बाद शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती से होकर चंद्र देव आगे बढ़ जाते हैं। इस प्रकार इन पांचों नक्षत्र में गति करते हुए चंद्र देव को लगभग 5 दिन का समय लगता है यही 5 दिन और यही पांच नक्षत्र पंचक कहलाते हैं। चूँकि 27 दिन में चंद्र देव सभी राशियों में भ्रमण करते हुए दोबारा उसी राशि में प्रवेश कर जाते हैं। इसलिए 27 दिन की आवृत्ति के बाद पुनः पंचक लगते हैं।

 

पंचक का महत्व

हिंदू संस्कृति में सभी कार्यों को मुहूर्त देखकर करने का विधान है। शुभ मुहूर्त में किए गए कार्य आसानी से तथा सफलता दायक होते हैं तथा मुहूर्त के बिना किए गए कार्यों में सफलता मिलने में संदेह होता है। इसी मुहूर्त का ध्यान रखते हुए कुछ विशेष कार्यों के निमित्त पंचक को विशेष महत्व दिया गया है।

पंचक के अनुसार कार्य की आवृत्ति

पंचक में पांच नक्षत्र का योग होता है इसलिए माना जाता है कि पंचक के समय में यदि कोई अशुभ कार्य हो जाए तो वह 5 बार पुनः होता है। अर्थात उसके बाद पांच बार उसकी पुनरावृत्ति होती है। इसलिए पंचक के दौरान हुए अशुभ कार्य का निवारण करना अति आवश्यक हो जाता है। विशेष रुप से यदि पंचक के दौरान किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो घर परिवार में पांच लोगों पर मृत्यु के समान संकट मंडराता रहता है। इसलिए उसकी मृत्यु के उपरांत दाह संस्कार के समय आटे और चावल के 5 पुतले बनाकर मृतक के साथ में उनका भी दाह संस्कार कर दिया जाता है ताकि परिवार के अन्य सदस्यों पर से पंचक के संकट की समाप्ति हो जाए और उन्हें किसी प्रकार का कोई कष्ट उठाना पड़े।

पंचक के प्रकार

प्रत्येक दिन के हिसाब से पंचकों का वर्गीकरण किया गया है, अर्थात किसी खास दिन शुरू होने वाले पंचक एक अलग नाम से जाने जाते हैं और उनका अलग-अलग प्रभाव भी होता है।आइए जानते हैं विभिन्न प्रकार के पंचक के बारे में:

1.  रोग पंचक

जब पंचक का प्रारंभ रविवार के दिन होता है तो ऐसे पंचक को रोग पंचक कहते हैं। रोग पंचक के कारण आने वाले 5 दिन विशेष रुप से सर्व कष्ट और मानसिक परेशानियों को देने वाले होते हैं। इस पंचक में शुभ कार्यों को सर्वथा त्यागना चाहिए क्योंकि यह हर तरह के शुभ कार्यों में अशुभ माने जाते हैं।

2.  राज पंचक

जब पंचक सोमवार के दिन से शुरू होते हैं तो ऐसे पंचक को राज पंचक कहा जाता है। आमतौर पर यह पंचक शुभ माने जाते हैं और उनके प्रभाव से आने वाले सभी 5 दिन कार्य में सफलता और सरकारी कामकाज से लाभ दिलाते हैं तथा संपत्ति से जुड़े काम करने के लिए भी राज पंचक काफी उपयुक्त होता है।

3.  अग्नि पंचक

मंगलवार के दिन से शुरू होने वाले पंचक अग्नि पंचक के नाम से जाने जाते हैं। इस दौरान आप कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फ़ैसलों पर अपना हक प्राप्त करने के लिए अनेक कार्य कर सकते हैं। यह पंचक अशुभ माना जाता है इसी वजह से इस पंचक में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य तथा मशीनरी और औजार के काम की शुरुआत करना अशुभ होता है। क्योंकि ये देखा जाता है कि इस पंचक पर इन कार्यों को करने से नुकसान होने की पूरी संभावना रहती है।

4.  चोर पंचक

शुक्रवार के दिन से शुरू होने वाले पंचक चोर पंचक कहलाते हैं। चोर पंचक विशेष रूप से यात्रा करने के उद्देश्य से त्याज्य माने जाते हैं। इसके अलावा इस पंचक पर किसी भी प्रकार का व्यापार, लेन-देन तथा किसी भी प्रकार का सौदा नहीं करना चाहिए। यदि आप ऐसे कार्य करते हैं तो आपको विशेष रूप से धन की हानि हो सकती है।

5.  मृत्यु पंचक

इसी क्रम में जब पंचक की शुरुआत शनिवार के दिन से होती है तो ऐसा पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है। इस पंचक के दौरान मृत्यु तुल्य कष्टों की प्राप्ति हो सकती है और यह पूरी तरह से अशुभ माना जाता है। इस दौरान आपको किसी भी प्रकार के कष्टकारी कार्य और किसी भी प्रकार के जोखिम भरे कामों को करने से बचना चाहिए, क्योंकि इस पंचक के प्रभाव से आपको किसी प्रकार की चोट लग सकती है अथवा आपके साथ कोई दुर्घटना भी हो सकती है। साथ ही अपने लोगों तथा अन्य लोगों से भी विवाद की स्थिति बन सकती है।

विशेष नोट: इसके अतिरिक्त जब कोई पंचक बुधवार या बृहस्पतिवार को शुरू होता है तो उनमें उपरोक्त किसी भी प्रकार की बात का पालन करना आवश्यक नहीं होता। इन 2 दिनों में शुरू होने वाले पंचक के दौरान उपरोक्त बताए गए कार्यों के अलावा किसी भी तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

पंचक के दौरान किए जाने वाले कार्य

हिंदू धर्म में शास्त्रों के अनुसार पंचक के समय के दौरान कुछ ऐसे कार्य बताए गए हैं जिन्हें नहीं करना चाहिए क्योंकि इनका समय अनुकूल नहीं होता।

●  इनमें विशेष रूप से दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना वर्जित माना जाता है।
●  साथ ही यदि आपका घर का निर्माण हो रहा है तो पंचक के समय में घर की छत नहीं बनानी चाहिए। अर्थात लेंटर नहीं डालना चाहिए।
●  इसके अलावा पंचक के दौरान लकड़ी, कण्डा या अन्य प्रकार के ईंधन का भंडारण नहीं करना चाहिए।
●  इनके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे कार्य है जो पंचक के समय में नहीं करनी चाहिए उनमें विशेष रूप से किसी भी प्रकार का पलंग खरीदना अथवा पलंग बनवाना, बिस्तर खरीदना या बिस्तर का दान करना भी कष्टदायक माना जाता है।

इसी लिए इस दौरान यह सभी कार्य नहीं किए जाते। हालांकि इन सभी कार्यों के अतिरिक्त अन्य कोई भी कार्य आप पंचक के दौरान कर सकते हैं।

पंचक के दौरान किए जाने वाले कार्य

जैसा कि हमने पहले भी बताया की पंचक सभी कार्यों के लिए अशुभ नहीं होते बल्कि कई कार्यों को करने के लिए पंचक अत्यंत शुभकारी माने जाते हैं। आइए जानते हैं कि कौन से हैं वे कार्य जो पंचक के दौरान किए जा सकते हैं:

पंचक के दौरान जो नक्षत्र होते हैं उनमें कुछ विशेष योगों का निर्माण भी होता है। जैसे कि धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र यात्रा करने, मुंडन कार्य, तथा व्यापार आदि शुभ कार्यो के लिए प्रशस्त माने गए हैं।

इसके अलावा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र वार के साथ मिलकर सर्वार्थ सिद्धि योग बनाता है। हालांकि हम पंचक को अशुभ की संज्ञा देते हैं लेकिन पंचक के दौरान अन्य शुभ कार्य जैसे कि सगाई समारोह, विवाह आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं।

पंचक के तीन नक्षत्र पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद तथा रेवती यदि रविवार के दिन पड़े तो विभिन्न प्रकार के शुभ योग बनाते हैं जिनमें चर, स्थिर और प्रवर्ध मुख्य हैं। इन योग के कारण व्यक्ति को सफलता की प्राप्ति होती है उसे धन लाभ भी होता है।

मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ मुहूर्त के बारे में विशेष रूप से प्रकाश डालता है। इसके अनुसार यदि पंचक के नक्षत्रों में से धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र चल संज्ञक माने जाते हैं। इसलिए नक्षत्रों के दौरान कोई भी चलने वाला काम अर्थात गति वाला काम करना अत्यंत अशुभ होता है। जैसे कि किसी प्रकार की यात्रा करना, वाहन खरीदना, कल पुर्जे और मशीनरी आदि से संबंधित काम करना आदि। वहीं दूसरी ओर उत्तरभाद्र पद नक्षत्र स्थिर संज्ञक नक्षत्र होता है। इसलिए इस नक्षत्र के दौरान ऐसे कार्य किए जाते हैं जिनमें स्थिरता की आवश्यकता होती है। इनमें मुख्य रूप से गृह प्रवेश करना, शांति पूजन कराना, बीज बोना तथा जमीन से जुड़े स्थिर प्रकृति के कार्य किए जा सकते हैं।

अंतिम नक्षत्र रेवती मैत्री संज्ञक नक्षत्र होता है। इसलिए इस नक्षत्र के दौरान किसी भी प्रकार के वाद विवाद का निपटारा करना, व्यापार अथवा कपड़े से संबंधित सौदा करना, नए आभूषण खरीदना आदि संबंधित शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

पंचक के दौरान इन बातों का रखें विशेष ध्यान

शास्त्रों में कुछ ऐसी बातें बताई गई हैं जिन्हें पंचक के दौरान विशेष रुप से ध्यान में रखा जाता है।

1.  इनमें प्रत्येक पंचक के लिए विशेष रूप से अलग अलग बातें बताई गई हैं, जैसे कि जिस समय धनिष्ठा नक्षत्र का पंचक हो, उस समय किसी प्रकार की लकड़ी, ईंधन, घास आदि एकत्रित नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से आग लगने का भय होता है।
2.  यदि पंचक के दौरान किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो पंचक के समय में उसके शव का अंतिम संस्कार करने से पूर्व किसी विशेष और योग्य पंडित से पूरी जानकारी लेनी चाहिए और पंचक के समय में शव का अंतिम संस्कार करने से बचना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो गरुड़ पुराण के अनुसार उसके साथ आटे और कुश के 5 पुतलों का भी दाह संस्कार पूरे विधि विधान के अनुसार किया जाना चाहिए अन्यथा मृतक के कुटुंब और निकट के लोगों पर मृत्यु का संकट मंडराता रहता है।
3.  पंचक के दौरान दक्षिण दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा को मृत्यु के देवता यम की दिशा माना जाता है। ऐसे में पंचक के दौरान दक्षिण दिशा की यात्रा हानिकारक और कष्टदायक हो सकती है।
4.  पंचक के दौरान रेवती नक्षत्र चल रहा हो तो घर की छत नहीं बनानी चाहिए अर्थात लेंटर नहीं डालना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से धन की हानि होती है और परिवार में कलेश की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
5.  पंचक के दौरान किसी भी प्रकार का पलंग बनवाना भी बड़े से बड़े संकट को निमंत्रण दे सकता है। विशेष रुप से धनिष्ठा नक्षत्र के पंचक में अग्नि का भय होता है और शतभिषा नक्षत्र में कलह होने की संभावना होती है।
6.  पूर्वाभाद्रपद के पंचक में रोग होने की संभावना काफी होती है तथा उत्तरा भाद्रपद के पंचक में धन हानि और कष्ट मिलने की संभावना होती है।
7.  इसके अलावा रेवती नक्षत्र के पंचक में मानसिक कष्ट होने की प्रबल संभावना होती है। इसलिए पंचक के दौरान जो कार्य निषेध माने जाते हैं उनका त्याग कर अन्य शेष शुभ कार्यों का संपादन किया जा सकता है।

हम आशा करते हैं कि पंचक के बारे में दी गई जानकारी को पढ़कर आपके ज्ञान में वृद्धि हुई होगी और अब आप पंचक के बारे में सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के बाद अपने जीवन में सफलता पा सकेंगे।

 

राहु काल को कई बार राहुकाल भी लिखा जाता है। जो लोग ज्योतिष के सिद्धान्तों में विश्वास करते हैं, वे इसे बहुत अधिक महत्व प्रदान करते हैं। विशेषतः- दक्षिण भारत में लोगों का यह मत है। कि दैनिक जीवन की गतिविधियों में राहु काल का विचार अत्यन्त आवश्यक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आख़िरकार राहुकाल है। क्या और इसका क्या उपयोग है? यदि नहीं, तो आइए जानते हैं इस रहस्यपूर्ण समयावधि के बारे मेंजिसेराहु कालके नाम से जाना जाता है।

 

राहु काल क्या है।

क्या आप जानते हैं। कि वस्तुतः राहु काल है। क्या? यदि आम भाषा में कहा जाए तो यह प्रतिदिन आने वाला वह काल-खण्ड है जो वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुभ नहीं माना जाता है। इस काल पर राहु का स्वामित्व होता है। इस समय-अवधि में कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करने का विधान है। यदि इस समय में किसी काम को शुरू किया जाता है तो मान्यता है कि वह काम कभी सकारात्मक परिणाम नहीं देता है। यद्यपि वे गतिविधियाँ जो राहुकाल से पहले ही आरम्भ कर दी गई हों, उन्हें करते रहने से कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है।

 

सोमवार को दूसरा, मंगलवार को सातवाँ, बुधवार को पाँचवाँ, गुरुवार को छठा, शुक्रवार को चौथा, शनिवार को तीसरा और रविवार को आठवाँ हिस्सा राहु काल कहलाता है।

उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि किसी क्षेत्र में हर रोज़ सूर्योदय का समय प्रातः बजे और सूर्यास्त का समय शाम बजे है।

सोमप्रातः 7:30 - प्रातः 9:00

मंगलसांय 3:00 - सायं 4:30

बुधप्रातः 12:00 - सायं 1:30

बृहस्पतिसायं 1:30 - सायं 2:00

शुक्रप्रातः 10:30 - प्रातः 12:00

शनिप्रातः 9:00 - प्रातः 10:30

रविसायं 4:30 - सायं 6:00

यह राहुकाल गणना करने की विधि को ठीक तरह से समझने के लिए एक उदाहरण मात्र है। इसे उपयोग में नहीं लिया जा सकता है, क्योंकि विभिन्न स्थानों में प्रतिदिन सूर्यास्त सूर्योदय का समय भिन्न-भिन्न होता है।

राहु काल के दौरान क्या करें।

कोई भी वह कार्य जिसे महत्वपूर्ण या शुभ माना जाता है, उसे राहु काल में करना ही उचित समझा गया है। जो लोग इस सिद्धान्त में विश्वास रखते हैं वे इस दौरान नए कार्य का आरम्भ, विवाह, गृह-प्रवेश, कोई चीज़ ख़रीदना और व्यापार आदि नहीं करने की चेष्टा करते हैं। हालाँकि जो काम पहले शुरू हो चुके हों उनके राहु काल के दौरान जारी रहने से कोई हानि नहीं होती है।

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अमृत सिद्धि योग को अत्यंत शुभ योग माना गया है। यह योग नक्षत्र एवं वार के संयोग से बनता है। ऐसा कहा जाता है कि इस योग में किए गए सभी कार्य पूर्ण रूप से सफल होते हैं, इसलिए समस्त मांगलिक कार्य के शुभ मुहूर्त के लिए इस योग को प्राथमिकता दी जाती है। इस योग में किसी नए कार्य को प्रारंभ करना भी शुभ माना जाता है। जैसे- व्यापार संबंधी समझौता, नौकरी के लिए आवेदन, ज़मीन, वाहन, एवं स्वर्ण की ख़रीदारी, विदेशगमन आदि।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन कारणों से अमृत सिद्धि योग बनता है-

1.  हस्त नक्षत्र यदि रविवार के दिन हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
2.  मृगशिरा नक्षत्र यदि सोमवार के दिन पड़े तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
3.  अश्विनी नक्षत्र मंगलवार के दिन हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
4.  अनुराधा नक्षत्र बुधवार के दिन हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
5.  पुष्य नक्षत्र यदि गुरुवार के दिन हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
6.  रेवती नक्षत्र यदि शुक्रवार के दिन पड़े तो अमृत सिद्धि योग बनता है।
7.  शनिवार के दिन रोहिणी नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है।

अमृत सिद्धि योग इस दिन पड़े तो इन कार्यों से करें परहेज़

अमृत सिद्धि योग मंगलवार के दिन पड़े तो गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों को करना अशुभ माना गया है। इसी प्रकार यदि यह योग बृहस्पतिवार के दिन पड़े तो शादी-विवाह करना वर्जित माना गया है और शनिवार के दिन इस योग में यात्रा करना उपयुक्त नहीं माना गया है।

हिन्दू धर्म के सभी 16 संस्कारों में नामकरण संस्कार को बेहद अहम माना जाता है। वैसे तो आजकल आधुनिक युग में माँ बाप अपने बच्चों का नाम यूँ ही किसी भी दिन रख देते हैं। लेकिन हमारी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर किसी भी नवजात शिशु का नाम बाक़ायदा नामकरण संस्कार के दौरान ही सभी बड़े बुजुर्गों की निगरानी में रखना चाहिए। किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसके नाम का महत्व सबसे ख़ास होता है। क्योंकि उसे उसकी पहचान उसके नाम से ही मिलती है। आज इस लेख के जरिये हम आपको नामकरण संस्कार के लाभ और साथ ही इस साल इसके विशेष मुहूर्त के बारे में भी बताने जा रहे हैं। नामकरण संस्कार का विशेष मुहूर्त पर होना भी ख़ासा मायने रखता है। जिस प्रकार से अन्य अहम् कार्यों और प्रयोजनों के लिए मुहूर्त देखकर ही उसे संपन्न करवाया जाता है, ठीक उसी प्रकार से शिशु का नाम भी शुभ मुहूर्त में ही रखना चाहिए। धार्मिक आधारों पर ही नहीं बल्कि ज्योतिषीय आधारों पर भी नामकरण संस्कार को अहम माना गया है। आईये जानते हैं। इस साल नामकरण संस्कार के लिए कौन से मुहूर्त हैं। ख़ास और क्या है इसकी अहमियत।

नामकरण मुहूर्त के लिए तिथि, नक्षत्र और मास विचार

1.  शिशु के जन्म के ग्यारहवें या बारहवें दिन के बाद नामकरण संस्कार करवा लेना चाहिए।
2.  ये संस्कार बच्चे के जन्म के दस दिन के सूतक की अवधि उपरान्त करवाना बेहतर रहता है।
3.  बालक के जन्म से 10वें दिन जब सूतिका का शुद्धिकरण यज्ञ संपन्न कराया जाता है, तभी नामकरण संस्कार कराना चाहिए।
4.  ध्यान रखें की चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी पर इस संस्कार को ना करवाएं। अमावस्या तिथि को त्यागना भी बेहतर रहता है।
5.  यदि हम वार की बात करें तो नामकरण संस्कार किसी भी शुभ दिन जैसे सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार के दिन करवाया जा सकता है।
6.  नक्षत्रों में अश्वनी, शतभिषा, स्वाति, चित्रा, रेवती, हस्त, पुष्य, रोहिणी, मृगशिरा और अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, उत्तराफ़ाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, श्रवण नक्षत्रों को नामकरण संस्कार के लिए बेहद शुभ माना जाता है।
7.  व्यक्ति विशेष की कुल परंपरा के आधार पर नवजात शिशु का नामकरण संस्कार साल भर के बाद भी करवाया जा सकता है।
8.  ज्योतिषीय मान्यताओं के आधार पर नामकरण के समय बच्चे के दो नाम रखे जाते हैं, एक गुप्त नाम और दूसरा प्रचलित नाम।
9.  नामकरण संस्कार के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है। कि बच्चे का नाम उस नक्षत्र के अनुसार ही रखा जाए जिस नक्षत्र में उसका जन्म हुआ है। हालाँकि ज्योतिषीय मार्गदर्शन में इसको संपन्न करवाना बेहतर रहता है।

नामकरण संस्कार के लिए इस प्रकार से निकालें शुभ मुहूर्त

किसी भी संस्कार के लिए मुहूर्त लोग ज्योतिषाचार्य या किसी कुशल पंडित से ही निकलवाते हैं। इसलिए शिशु के जन्म के बाद विशेष रूप से किसी पंडित को बुलाकर नामकरण संस्कार के लिए शुभ मुहूर्त निकलवाया जाता है। इस दौरान पंडित जी पंचांग की मदद से शुभ मुहूर्त की गणना करते हैं।

 

नामकरण संस्कार के विशेष लाभ

हिन्दू धर्म के पवित्र 16 संस्कारों में नामकरण एक महत्वपूर्ण संस्कार है। जैसा की आप सभी इस बात को भली भांति समझते होंगें की किसी भी व्यक्ति के जीवन में नाम की क्या अहमियत होती है। समाज में व्यक्ति को पहचान उसके नाम से ही मिलती है। जाहिर है। कि नामकरण संस्कार का महत्व इस प्रकार से अपने आप ही बढ़ जाता है। हालांकि जन्म के बाद शिशु को अक्सर माँ बाप या रिश्तेदार स्वयं ही किसी ना किसी नाम से पुकारने लगते हैं। लेकिन हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जन्म के ग्यारहवें या बारहवें दिन ही सम्पूर्ण विधि विधान के साथ शुभ मुहूर्त में नामकरण संस्कार का समापन होना चाहिए। इस संस्कार के दौरान पंडित या पुरोहित शिशु की जन्मकुंडली के आधार पर और ग्रह नक्षत्रों की गणना करने के बाद ही उसका नाम रखते हैं। इस संस्कार को करवाने से शिशु को ना केवल बाहरी बल्कि आंतरिक लाभ भी मिलता है। नामकरण संस्कार अवश्य करवाना चाहिए क्योंकि इससे शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास में भी मदद मिलती है। इसके अलावा इस संस्कार को करवाने का एक लाभ ये भी है की इससे शिशु की आयु और बुद्धि में भी वृद्धि होती है। विशेष रूप से नामकरण संस्कार के द्वारा शिशु को एक नयी पहचान मिलती है, जो उसके भविष्य के लिए विशेष अहम होती है।

नामकरण संस्कार के दौरान बरती जाने वाली विशेष सावधानियां

1.  नामकरण संस्कार हमेशा ही किसी पवित्र और साफ़ सुथरे स्थान पर ही करना चाहिए। वैसे तो इसे घर पर ही कराएं लेकिन यदि संभव ना हो तो किसी धार्मिक स्थल या मंदिर में भी इस संस्कार का आयोजन किया जा सकता है।
2.  इस संस्कार के दौरान शिशु का नाम उसकी राशि के अनुसार ही रखें। ऐसा ना करने से भविष्य में बच्चे को हानि होने की संभावना रहती है। नामकरण मुहूर्त का निर्धारण शिशु की ग्रह दशा और भविष्य फल के आधार पर भी की जा सकती है।
3.  नामकरण संस्कार हमेशा शुभ मुहूर्त देखकर ही कराना चाहिये।

4.  इस बात का ख़ास ध्यान रखें की नामकरण संस्कार के दिन घर पर मीट, मछली, अंडे जैसे तामसी भोजन सहित मदिरापान भूलकर भी ना करें।
5.  नामकरण संस्कार के दिन सुबह के वक़्त यदि संभव हो तो गौ माता को रोटी खिलाएं।
6.  इस दिन बच्चे के पिता भूलकर भी दाढ़ी और बाल ना कटवाएं।
7.  इस दिन घर आये किसी भी मेहमान के साथ बुरा बर्ताव ना करें।
8.  परिवार के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद बच्चे को जरूर दिलाएँ।
9.  नामकरण संस्कार के दौरान शिशु के माता पिता के साथ ही परिवार के अन्य बड़े बुजुर्गों का शामिल होना भी अनिवार्य है।
10.  इस दिन भूखों को खाना खिलाने से शिशु को विशेष लाभ प्राप्त होता है।

 

भद्रा

जब भी मुहूर्त की बात करते हैं। तो सबसे पहले हमारे मन में भद्रा का नाम आता है। मुहूर्त के अंतर्गत भद्रा का विचार मुख्य रूप से किया जाता है क्योंकि यह वास्तव में स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक में अपना प्रभाव दिखाती है। इसलिए किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए भद्रा वास का विचार किया जाता है।

 

कौन है भद्रा?

आइये अब हम भद्रा के बारे में जानते हैं। कि वास्तव में भद्रा कौन हैं। और इनका इतना महत्व क्यों माना गया है? यदि हम धार्मिक दृष्टिकोण की बात करें तो इसके अनुसार भद्रा भगवान शनिदेव की बहन और सूर्य देव की पुत्री हैं। यह बहुत सुंदर थी लेकिन इनका स्वभाव काफी कठोर था। उनके उस स्वभाव को सामान्य रूप से नियंत्रित करने हेतु उन्हें पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण के रूप में मान्यता दी गई। जब कभी भी किसी शुभ तथा मांगलिक कार्य के लिए शुभ मुहूर्त देखा जाता है तो उसमें भद्रा का विचार विशेष रूप से किया जाता है और भद्रा का समय त्यागकर अन्य मुहूर्त में ही कोई शुभ कार्य किया जाता है। लेकिन यह देखा गया है। कि भद्रा सदैव ही अशुभ नहीं होती बल्कि कुछ विशेष प्रकार के कार्यों में इसका वास अच्छे परिणाम भी देता है।

 

भद्रा की गणना

तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण मुहूर्त के अंतर्गत पंचांग के मुख्य भाग हैं। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है। कुल मिलाकर 11 करण होते हैं, जिनमें से चार करण शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न अचर होते हैं और शेष सात करण बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि चर होते हैं। इनमें से विष्टि करण को ही भद्रा कहा जाता है। चर होने के कारण ये सदैव गतिशील होती है। जब भी पंचांग की शुद्धि की जाती है तो उस समय भद्रा को विशेष महत्व दिया जाता है।

 

ऐसे जानें भद्रा वास

अब आइये जानते हैं कि भद्रा का वास कैसे ज्ञात किया जाता है।

कुम्भ कर्क द्वये मर्त्ये स्वर्गेऽब्जेऽजात्त्रयेऽलिंगे।
स्त्री धनुर्जूकनक्रेऽधो भद्रा तत्रैव तत्फलं।।

जब चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में होता है तो भद्रा स्वर्ग लोक में मानी जाती है और उर्ध्वमुखी होती है। जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में होता है तो भद्रा का वास पाताल में माना जाता है और ऐसे में भद्रा अधोमुखी होती है। वहीं जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में स्थित होता है तो भद्रा का निवास भूलोक अर्थात पृथ्वी लोक पर माना जाता है और ऐसे में भद्रा सम्मुख होती है। उर्ध्वमुखी होने के कारण भद्रा का मुंह ऊपर की ओर होगा तथा अधोमुखी होने के कारण नीचे की तरफ। लेकिन दोनों ही परिस्थितियों में भद्रा शुभ प्रभाव लेगी। इसके साथ ही सम्मुख होने पर भद्रा पूर्ण रूप से प्रभाव दिखाएगी।

पौराणिक ग्रथ मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार भद्रा का वास जिस लोक में भी होता है वहां भद्रा का विशेष रूप से प्रभाव माना जाता है। ऐसी स्थिति में जब चंद्रमा कर्क राशि, सिंह राशि, कुंभ राशि और मीन राशि में होगा तो भद्रा का वास भूलोक में होने से भद्रा सम्मुख होगी और पूर्ण रूप से पृथ्वी लोक पर अपना प्रभाव दिखाएगी। यही अवधि पृथ्वी लोक पर किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए वर्जित मानी जाती है, क्योंकि ऐसे में किए गए कार्य या तो पूर्ण नहीं होते या उनके पूर्ण होने में बहुत अधिक विलंब और रुकावटें आती हैं।

स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले धनागम।
मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी ।।

संस्कृत ग्रंथ पियूष धारा के अनुसार जब भद्रा का वास स्वर्ग लोक पाताल लोक में होगा तब वह पृथ्वी लोक पर शुभ फल प्रदान करने में सक्षम होगी।

स्थिताभूर्लोस्था भद्रा सदात्याज्या स्वर्गपातालगा शुभा।

मुहूर्त मार्तण्ड के अनुसार जब भी भद्रा भूलोक में होगी तो उसका सदैव त्याग करना चाहिए और जब वह स्वर्ग तथा पाताल लोक में हो तो शुभ फल प्रदान करने वाली होगी।

अर्थात जब भी चंद्रमा का गोचर कर्क राशि, सिंह, कुंभ राशि तथा मीन राशि में होगा तो भद्रा पृथ्वी लोक पर होगी और कष्टकारी होगी। ऐसी भद्रा का त्याग करना श्रेयस्कर होगा।

भद्रा मुख तथा भद्रा पुच्छ

भद्रा के वास्तु के अनुसार ही उसका फल मिलता है। इस संबंध में निम्नलिखित मुक्ति पठनीय है।

भद्रा यत्र तिष्ठति तत्रैव तत्फलं भवति।

अर्थात भद्रा जिस समय जहां स्थित होती है। उसी प्रकार वहां पर फल देती है। तो आइये अब जानते हैं। कि कैसे होता है। भद्रा मुख और भद्रा पुच्छ का ज्ञान?

शुक्ल पूर्वार्धेऽष्टमीपञ्चदशयो भद्रैकादश्यांचतुर्थ्या परार्द्धे।
कृष्णेऽन्त्यार्द्धेस्या तृतीयादशम्योः पूर्वे भागे सप्तमीशंभुतिथ्योः।।

अर्थात शुक्ल पक्ष की अष्टमी तथा पूर्णिमा के पूर्वार्ध में और एकादशी कथा चतुर्थी के उत्तरार्ध में भद्रा होती है। कृष्ण पक्ष की तृतीया तथा दशमी के उत्तरार्ध में और सप्तमी तथा चतुर्थी के पूर्वार्ध में भद्रा होती है।

विशेष नोट: यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि एक पहर 3 घंटे का होता है। जिसके अनुसार एक दिन और एक रात में कुल मिलाकर आठ पहर होते हैं यानी कि 24 घंटे। उपरोक्त तालिका में बताए हुए पहर के पहले 2 घंटे अर्थात 5 घड़ी भद्रा का मुख होता है तथा उसे शुभ माना जाता है। दूसरी ओर ऊपरी तालिका में ही बताए हुए पहर के अंत का एक घंटा 15 मिनट यानि कि तीन घड़ी भद्रा की पुच्छ होती है।

दूसरे शब्दों में कहें तो मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार चंद्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की पांचवें प्रहर की 5 घड़ियों में भद्रा मुख होता है, अष्टमी तिथि के दूसरे प्रहर के कुल मान आदि की 5 घटियाँ, एकादशी के सातवें प्रहर की प्रथम 5 घड़ियाँ तथा पूर्णिमा के चौथे प्रहर के शुरुआत की 5 घड़ियों में भद्रा का मुख होता है। इसी प्रकार चंद्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया के 8वें प्रहर आदि की 5 घड़ियाँ भद्रा मुख होती है, कृष्ण पक्ष की सप्तमी के तीसरे प्रहर में आरंभ की 5 घड़ी में भद्रा मुख होता है। इसी प्रकार कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि का 6 प्रहर और चतुर्दशी तिथि का प्रथम प्रहर की 5 घड़ी में भद्रा मुख व्याप्त रहता है।

भद्रा की पुच्छ शुभ होने के कारण इसमें किसी भी प्रकार का शुभ कार्य कर सकते हैं। तिथि के उत्तरार्ध में होने वाली भद्रा यदि दिन में हो और किसी के पूर्वार्ध में होने वाली भद्रा यदि रात में हो तो शुभ मानी जाती है।

भद्रा के दौरान किये जाने वाले कार्य

भद्रा को प्राय सभी शुभ और मांगलिक कार्यों में त्याज्य माना जाता है और जब भी भद्रा लग रही होती है तो उस समय शुभ कार्य संपादित नहीं किए जाते।

कार्येत्वाश्यके विष्टेरमुख, कण्ठहृदि मात्रं परित्येत।

अर्थात बहुत अधिक आवश्यक होने पर पृथ्वीलोक की भद्रा, कंठ, ह्रदय और भद्रा मुख को त्याग कर भद्रा पुच्छ में शुभ एवं मांगलिक कार्य संपन्न किये जा सकते हैं।

ईयं भद्रा शुभ-कार्येषु अशुभा भवति।

अर्थात किसी भी शुभ कार्य में भद्रा अशुभ मानी जाती है। हमारे ऋषि मुनियों ने भी भद्रा काल को अशुभ तथा दुखदायी बताया है।

कुर्यात मंगलं विष्ट्या जीवितार्थी कदाचन।
कुर्वन अज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत।। ---महर्षि कश्यप

महर्षि कश्यप के अनुसार जो कोई भी प्राणी अपना जीवन सुखी बनाना चाहता है और आनंद पूर्वक जीवन बिताना चाहता है। उसे भद्रा काल के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यदि भूलवश कोई ऐसा कार्य हो जाए तो उसका शुभ फल नष्ट हो जाता है।

भद्रा काल के दौरान मुख्य रूप से मुंडन संस्कार, विवाह संस्कार, गृहारंभ, कोई नया व्यवसाय आरंभ करना, गृह प्रवेश, शुभ यात्रा, शुभ उदेश्य से किए जाने वाले सभी कार्य तथा रक्षाबंधन आदि मांगलिक कार्यों को नहीं करना चाहिए।

 

भद्रा के दौरान किये जाने वाले कार्य

लगभग सभी शुभ कार्यों के लिए भद्रा का निषेध माना गया है। लेकिन कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनकी प्रकृति अशुभ होती है। ऐसे कार्य भद्रा काल के दौरान किए जा सकते हैं। इनमें मुख्य रूप से शत्रु पर आक्रमण करना, अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करना, ऑपरेशन करना, किसी पर मुकदमा आरंभ करना, आग जलाना, भैंस, घोड़ा, ऊँट आदि से संबंधित कार्य तथा किसी वस्तु को काटना, यज्ञ करना तथा स्त्री प्रसंग करना आदि कार्य इसमें सम्मिलित हैं। यदि इन कार्यों को भद्र काल के दौरान किया जाए तो इनमें मनोवांछित सफलता मिल सकता हैं।

 

भद्रा का परिहार करने का तरीका

हमारे ज्योतिष शास्त्र की मुख्य विशेषता यह है। कि आम जीवन में आने वाली समस्याओं को दूर करने की दिशा में कुछ ऐसे उपाय सुझाए जाते है। जो मानव जीवन को पुष्पित और पल्लवित कर सकें। इसी क्रम में भद्रा के परिहार के उपाय बताए गए हैं।

सर्वप्रथम यह ज्ञात किया जाता है। कि भद्रा का वास कहां है। यदि भद्रा स्वर्ग लोक अथवा पाताल लोक में है तो परिहार की आवश्यकता नहीं होती केवल मृत्यु लोक में अर्थात पृथ्वी लोक पर भद्रा का वास होने पर विशेष रूप से हानिकारक माना जाता है और इसीलिए इसका परिहार किया जाता है। साथ ही साथ भद्रा के मुख और पुच्छ का विचार भी किया जाता है। भद्रा के परिहार के लिए सबसे अधिक प्रभावी भगवान शिव की आराधना करना माना जाता है। इसलिए यदि अत्यंत आवश्यक कोई कार्य आपको भद्रा वास के दौरान करना हो तो भगवान शिव की अराधना अवश्य करें।

इस संबंध में निम्नलिखित तथ्यों पर विचार किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में पीयूष धारा तथा मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार: —

दिवा भद्रा रात्रौ रात्रि भद्रा यदा दिवा।
तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी।।

इसका तात्पर्य यह है कि यदि दिन के समय की भद्रा रात्रि में और रात्रि के समय की भद्रा दिन में जाए, तो ऐसी स्थिति में भद्रा का दोष नहीं लगता है। विशेष रुप से हंसी भद्रा का दोष पृथ्वी लोक पर नहीं माना जाता है। इस प्रकार की भद्रा को भद्रदायिनी अर्थात शुभ फल देने वाली भद्रा माना जाता है।

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित बात भी विचारणीय है।

रात्रि भद्रा यदा अहनि स्यात दिवा दिवा भद्रा निशि।
तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी।।

इस संबंध में एक और बात भी विचारणीय मानी जाती है।

तिथे पूर्वार्धजा रात्रौ दिन भद्रा परार्धजा।
भद्रा दोषो तत्र स्यात कार्येsत्यावश्यके सति।।

अर्थात यदि आपको कोई अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य करना है। तो ऐसी स्थिति में उत्तरार्ध के समय की भद्रा दिन में तथा पूर्वार्ध के समय की भद्रा रात्रि में हो तब इसे शुभ ही माना गया है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है। कि यदि कभी भी आपको भद्रा के दौरान कोई शुभ कार्य करना आवश्यक हो जाए तो पृथ्वी लोक की भद्रा तथा भद्रा मुख-काल को छोड़कर तथा स्वर्ग पाताल की भद्रा के पुच्छ काल में शुभ तथा मांगलिक कार्य संपन्न किए जा सकते हैं क्योंकि ऐसी स्थिति में भद्रा का परिणाम शुभ फलदायी होता है।

एक अन्य मत के अनुसार यदि आप भद्रा के दुष्प्रभावों से बचना चाहते हैं। तो आपको प्रातः काल उठकर भद्रा के निम्नलिखित 12 नामों का स्मरण तथा जाप करना चाहिए:

भद्रा के यह बारह नाम इस प्रकार हैं।

●  धन्या
●  दधिमुखी
●  भद्रा
●  महामारी
●  खरानना
●  कालरात्रि
●  महारुद्रा
●  विष्टि
●  कुलपुत्रिका
●  भैरवी
●  महाकाली
●  असुरक्षयकारी

यदि आप पूरी निष्ठा तथा विधि पूर्वक भद्रा का पूजन करते हैं। और भद्रा के उपरोक्त 12 नामों का स्मरण कर उनकी पूजा करते हैं। तो भद्रा का कष्ट आपको नहीं लगता और आपके सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं। हमारा मानना है। कि आपको किसी भी कार्य करने से पूर्व उचित एवं शुभ मुहूर्त का ही चुनाव करना चाहिए तथा उनसे संबंधित हर उन उपायों को अवश्य करना चाहिए जिससे आपका कार्य निर्विघ्न संपन्न हो सके।

 

शुभ होरा

मंगल:भूमि एवं कृषि, भाई, इंजीनियरिंग, खेल

सूर्य: राजनीति, सरकार का व्यवहार, सरकारी नौकरियां, अदालत, साहस

शुक्र: प्रेम, विवाह, गहने, मनोरंजन, नृत्य

बुध: व्यापार, शिक्षा, ज्योतिष, पढ़ना और लिखना

चंद्रमा: यात्रा, रोमांस, गहने, कला

शनि: श्रम, लोहा, तेल, नौकर, त्याग

बृहस्पति: सबकुछ के लिए शुभकामनाएं: काम, नौकरियां, व्यवसाय

होरा11 क्या है।

होरा ज्योतिष शास्त्र का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। शुभ मुहूर्त के अभाव में कोई मंगल कार्य रुके इसके लिए ज्योतिष में होरा चक्र की व्यवस्था बनाई गई है। ऐसा कहा जाता है। कि होरा काल में किया गया कार्य शुभ मुहुर्त में किए गए कार्य की भांति सिद्ध होता है इसलिए होरा शास्त्र को कार्य सिद्धि का अचूक माध्यम माना गया है। सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक 24 होरा होती हैं और एक सूर्योदय से एक सूर्यास्त तक होरा की संख्या 12 होती है। प्रत्येक दिन के प्रारंभ में प्रथम होरा उस ग्रह की होती है जिसका वह वार होता है। जबकि अगली होरा उसी दिन से छठे दिन की होगी और यही क्रम आगे बढ़ता जाएगा।

उदाहरणः सोमवार के दिन किसी भी ग्रह की होरा देखनी हो तो हम उसे इस प्रकार से देखेंगेः

पहली होरा - चंद्र ग्रह की होगी

दूसरी होरा - शनि ग्रह की होगी

तीसरी होरा - गुरु ग्रह की होगी

चौथी होरा - मंगल ग्रह की होगी

पाँचवीं होरा - सूर्य ग्रह की होगी

छठी होरा - शुक्र ग्रह की होगी

सातवीं होरा - बुध ग्रह की होगी

आठवीं होरा फिर से चंद्र की होगी और यह क्रम ऐसे ही चलता रहेगा। इस प्रकार जो भी वार हो उसी वार की होरा से आगे की होरा निकाली जा सकती हैं और अपने कार्य को सफल बनाने के लिए उसका प्रारंभ किया सकता है। प्रत्येक होरा किसी विशेष कार्य के लिए शुभ होती है। जो इस प्रकार है।

सूर्य की होरा

सूर्य की होरा में सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करना, पदभार संभालना, उच्च अधिकारियों से भेंटवार्ता करना, टेंडर के लिए आवेदन एवं माणिक रत्न धारण करना शुभ माना जाता है।

चंद्र की होरा

चंद्र की होरा को सभी कार्य के लिए शुभ माना गया है अतः आप किसी भी कार्य का श्रीगणेश कर सकते हैं। इसके अलावा चंद्र की होरा में बागवानी, खाद्य संबंधी क्रियाएँ, समुद्र चांदी से संबंधित कार्य एवं मोती धारण करने के लिए बहुत शुभ मानी जाती है।

मंगल की होरा

मंगल की होरा में पुलिस अदालती मामलों से संबंधित कार्य करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस होरा में नौकरी ज्वॉइन करना, सट्टा लगाना, उधार देना, किसी सभा-समिति में हिस्सा लेना, मूंगा एवं लहसुनिया रत्न धारण करना शुभ फलदायी होता है।

बुध की होरा

बुध की होरा में नए व्यापार शुरू करना लाभकारी होता है। इसके अलावा इस होरा में लेखन प्रकाशन का कार्य करना, प्रार्थना पत्र देना, विद्यारंभ करना, कोष संग्रह करना और पन्ना रत्न धारण करना भी शुभ माना जाता है।

गुरु की होरा

इस होरा में उच्च अधिकारियों भेंट करना, शिक्षा विभाग में जाना शिक्षक से मिलना, विवाह संबंधी कार्य करना और पुखराज रत्न धारण करना शुभ माना जाता है अर्थात इन कार्यों को करने में आपको सफलता मिलेगी।

शुक्र की होरा

इस होरा काल में जातकों के लिए नए वस्त्र पहनना, आभूषण ख़रीदना अथवा उसे धारण करना, फ़िल्म जगत से संबंधित कार्य करना, मॉडलिंग करना, यात्रा पर जाना एवं हीरा ओपल रत्न धारण करना शुभ माना जाता है।

शनि की होरा

शनि की होरा में मकान की नींव रखना अच्छा माना जाता है। इसके साथ इस होरा काल में कारखाना शुरू करना, वाहन अथवा भूमि ख़रीदना और नीलम गोमेद रत्न को धारण करने से जातकों को कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है।

सर्वार्थ सिद्धि योग

सर्वार्थ सिद्धि योग अत्यंत शुभ योग माना जाता है। यह तीन शब्दों से मिलकर बना है। सर्वार्थ यानि सभी, सिद्धि यानि लाभ प्राप्ति एवं योग से तात्पर्य संयोजन, अत: हर प्रकार से लाभ की प्राप्ति को ही सर्वार्थ सिद्धि योग कहा गया है। यह एक शुभ योग है इसलिए इस योग में संपन्न होने वाले कार्यों से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

सर्वार्थ सिद्धि योग एक निश्चित वार और निश्चित नक्षत्र के संयोग से बनता है। यह योग शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए विशेष फलदायी होता है और समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। वार और नक्षत्र के ये संयोग हमेशा निर्धारित रहते हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग सभी शुभ कार्यों के शुभारंभ के लिए उपयुक्त समय होता है।

नक्षत्र और वार के संयोग जिनमें सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होते हैं:

1.  रविवार- अश्विनी, हस्त, पुष्य, मूल, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद
2.  सोमवार- श्रवण, रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा
3.  मंगलवार- अश्विनी, उत्तरा भाद्रपद, कृतिका, अश्लेषा
4.  बुधवार- रोहिणी, अनुराधा, हस्त, कृतिका, मृगशिरा
5.  गुरुवार- रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य
6.  शुक्रवार- रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु, श्रवण
7.  शनिवार- श्रवण, रोहिणी, स्वाति

सर्वार्थ सिद्धि योग किसी भी नए तरह का करार करने का सबसे अच्छा समय होता है। इस योग के प्रभाव से नौकरी, परीक्षा, चुनाव, खरीदी-बिक्री से जुड़े कार्यों में सफलता मिलती है। भूमि, गहने और कपड़ों की ख़रीददारी में सर्वार्थ सिद्धि योग अत्यंत लाभकारी है। इसके प्रभाव से मृत्यु योग जैसे कष्टकारी योग के दुष्प्रभाव भी नष्ट हो जाते हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग में हर वस्तु की खरीददारी शुभ मानी जाती है लेकिन मंगलवार के दिन नए वाहन और शनिवार के दिन इस योग में लोहे का सामान खरीदना अशुभ माना जाता है। सर्वार्थ सिद्धि योग को एक शुभ योग की संज्ञा दी गई है। यह योग एक ऐसा सुनहरा अवसर लेकर आता है जिसके प्रभाव से आपकी समस्त इच्छा और सपने पूर्ण होते हैं।

 

हिन्दू धर्म में जन्म के बाद हर शिशु के गर्भकाल के बाल उतारने की परंपरा है, इसे ही मुंडन संस्कार कहा जाता है। बालकों का मुण्डन 3, 5 और 7 आदि विषम वर्षों में किया जाता है। वहीं बालिकाओं का चौल कर्म (मुण्डन) संस्कार सम वर्षों में किया जाता है। हालांकि कुल परंपरा के अनुसार बच्चों का मुण्डन 1 वर्ष की आयु में भी किया जाता है।

मुंडन को लेकर हिन्दू धार्मिक मान्यता है कि पूर्व जन्मों के ऋणों से मुक्ति के उद्देश्य से जन्मकालीन केश काटे जाते हैं। वहीं वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार जब बच्चा माँ के पेट में होता है तो उसके सिर के बालों में बहुत से हानिकारक बैक्टीरिया लग जाते हैं जो जन्म के बाद धोने से भी नहीं निकल पाते हैं इसलिए बच्चे के जन्म के 1 साल के भीतर एक बार मुंडन अवश्य कराना चाहिए।

मुंडन मुहूर्त के लिए तिथि, नक्षत्र और मास विचार

●  हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ (बड़े बच्चे का मुंडन इस माह में करें, साथ ही इस माह में जन्म लेने वाले बच्चे का मुंडन भी करें), आषाढ़ (मुंडन आषाढ़ी एकादशी से पहले करें), माघ और फाल्गुन मास में बच्चों का मुण्डन संस्कार कराना चाहिए।
●  तिथियां में द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी मुंडन संस्कार के लिए शुभ मानी जाती है।
●  मुंडन के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार शुभ दिन माने गये हैं। वहीं शुक्रवार के दिन बालिकाओं को मुंडन नहीं करना चाहिए।
●  नक्षत्रों में अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, पुनर्वसु, चित्रा, स्वाति, ज्येष्ठ, श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा मुंडन संस्कार के लिए शुभ माने गये हैं।
●  कुछ विद्वानों के अनुसार जन्म मास जन्म नक्षत्र और चंद्रमा के चतुर्थ, अष्टम, द्वादश और शत्रु भाव में स्थित होने पर मुंडन निषेध माना गया है। वहीं कुछ विद्वान जन्म नक्षत्र या जन्म राशि को मुंडन के लिए शुभ मानते हैं।
●  द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, षष्टम, सप्तम, नवम या द्वादश राशियों के लग्न या इनके नवांश में मुंडन शुभ होते हैं।

मुंडन संस्कार के लाभ

●  मुण्डन के बाद बच्चों के शरीर का तापमान सामान्य हो जाता है। इससे मस्तिष्क स्थिर रहता है, साथ ही बच्चों को शारीरिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ नहीं होती हैं।
●  मुण्डन के प्रभाव से बच्चों को दांतों के निकलते समय होने वाला दर्द अधिक परेशान नहीं करता है।
●  जन्मकालीन केश उतारे जाने के बाद सिर पर धूप पड़ने से विटामिन डी मिलता है। इससे कोशिकाओं में रक्त का प्रवाह अच्छी तरह से होता है और इसके प्रभाव से भविष्य में आने वाले बाल बेहतर होते हैं.
●  
मुंडन के संदर्भ में यजुर्वेद में उल्लेख है कि, मुंडन संस्कार बल, आयु, आरोग्य तथा तेज की वृद्धि के लिए किया जाने वाला अति महत्वपूर्ण संस्कार है।

विशेष: मुंडन संस्कार का शुभ मुहूर्त में संपन्न होना शिशु के लिए लाभदायक और कल्याणकारी होता है, इसलिए मुंडन संबंधी मुहूर्त के लिए विद्वान ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें या अपनी कुल परंपरा के अनुसार बच्चों का मुण्डन कराएँ।

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

कालसर्प योग

भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह मन जाता है। इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। लेकिन यह व्यक्ति के जीवन पर व्यापक असर डालते हैं।

राहु और केतु ऐसे ग्रह हैं। जो हमेशा एक दूसरे के सामने रहते हैं। या यूँ कहें की एक दूसरे के सापेक्ष हमेशा 180 डिग्री पर होते हैं। यदि राहु कुंडली के पहले भाव में स्थित है। तो केतु हमेशा सातवें भाव में होगा, यदि केतु ग्यारहवें भाव में है तो राहु हमेशा पांचवे भाव में स्थित होगा।

अब यदि किसी की कुंडली में बाकी सारे ग्रह राहु और केतु के axis के एक तरफ ही जाएँ तो यह एक योग का निर्माण करेगा जिसे हम कालसर्प योग के नाम से जानते हैं। उदहारण के लिए मान लेते हैं की किसी की कुंडली में राहु पंचम भाव में और केतु ग्यारहवें भाव में स्थित है। अब यदि बाकी सारे  ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि) राहु-केतु axis के एक ही तरफ यानी छठे, सातवें, आठवें, नौवें और दसवें भाव या फिर बारहवें, पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे भाव में ही स्थित हो जाएँ तो उस कुण्डली में कालसर्प योग माना जायेगा।

जब कुंडली में राहु और केतु के मध्य में सारे ग्रह जाते हैं। तब कुंडली में कालसर्प योग बनता है। कालसर्प योग दो शब्दों को मिलाकर बना है। इसमें पहला शब्द है। काल, यानि मृत्यु और दूसरा शब्द है।- सर्प, जिसका तात्पर्य सांप से है कुंडली में कालसर्प योग के प्रभाव से व्यक्ति को मानसिक कष्ट सहना पड़ता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक मनुष्य की कुंडली के आधार पर ही उसका भाग्य तय होता है। कुंडली में बन रहे कई ऐसे योग हैं। जो व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक के योग बनाता है। इन्हीं योग में से एक है। कालसर्प योग कालसर्प योग का कुप्रभाव पड़ने से व्यक्ति को आर्थिक समस्या, दाम्पत्य जीवन में अनबन, यहां तक अकाल मृत्यु का भय भी होता है। इस योग के कारण जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ता है। कुंडली में कालसर्प योग के प्रभाव से व्यक्ति को मानसिक कष्ट सहना पड़ता है। इसके साथ ही कई तरह की परेशानियां जातकों को सहना पड़ता है। यह योग हमेशा कष्ट कारक नहीं होते, कभी-कभी यह अनुकूल फल देते हैं। और व्यक्ति को विश्वस्तर पर प्रसिद्ध बनाते हैं। आइए जानते हैं। कालसर्प योग क्या है। और इसके कितने प्रकार हैं।

फलित ज्योतिष में कहा गया है। कि राहु का प्रभाव शनि के जैसा और केतु का प्रभाव मंगल के जैसा होता है। राहु केतु छाया ग्रह हैं और ऐसा माना जाता है। कि वे जिस भाव में होते हैं। अथवा जहां दृष्टि डालते हैं। उस राशि एवं भाव में स्थित ग्रह को अपनी विचार शक्ति से प्रभावित कर क्रिया करने को प्रेरित करता है। केतु जिस भाव में बैठता है। उस राशि, उसके भावेश, केतु पर दृष्टिपात करने वाले ग्रह के प्रभाव में क्रिया करता है। जब कुंडली में राहु और केतु के मध्य में सारे ग्रह जाते हैं तब कुंडली में कालसर्प योग बनता है

कालसर्प दोष

कालसर्प को दोष मानता है बल्कि इसे योग मानता है। राहु और केतु विभिन्न खानों में बैठकर 12 तरह के विशेष योग बनाते हैं। जिस प्रकार अन्य ग्रह अलग अलग खानो में बैठकर शुभ और अशुभ फल देते हैं। उसी प्रकार राहु केतु भी शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के फल देते हैं। ज्योतिष की इस विधा में राहु को सांप का सिर और केतु को उसका दुम माना गया है। कुण्डली में सूर्य से लेकर शनि तक सभी सात ग्रह जब राहु और केतु के बीच होते हैं। तब कालसर्प योग बनता है।

जब मंगल और शनि जन्म कुण्डली में एक साथ हों अथवा द्वादश में और चन्द्रमा चतुर्थ भाव में तब राहु अशुभ फल नहीं देता है। एवं कालसर्प बाधक नहीं होता है। राहु के अशुभ होने पर दक्षिण की ओर अगर घर का मुख्यद्वारा हो तो आर्थिक परेशानी बनी रहती है। आर्थिक नुकसान और कई प्रकार की उलझनें एक के बाद एक आती रहती है। कालसर्प में इस प्रकार की स्थिति में व्यक्ति को मसूर की दाल अथवा कुछ धन सफाई कर्मी को देना चाहिए

ग्रहों के उपाय और टोटकों को विशेष रूप से बताया गया है|

राहु केतु से पीड़ित होने पर स्वास्थ्य लाभ हेतु रात को सोते समय सिरहाने में जौ रखकर सोना चाहिए और इसे सुबह पंक्षियों को देना चाहिए.सरकारी पक्ष से परेशानी होने पर एवं रोजी रोजगार और व्यापार में कठिनाई आने पर अपने वजन के बराबर लकड़ी का कोयला चलते पानी में प्रवाहित करना चाहिए.केतु के अशुभ स्थिति से बचाव हेतु दूध में अंगूठा डालकर उसे चूसना चाहिए सूर्य और चन्द्र की वस्तु यथा स्वेत वस्त्र, चांदी और तांबा दान करना चाहिए

कालसर्प के उपाय

कालसर्प योग में राहु खाना नम्बर एक में हो और केतु खाना नम्बर सात में तब अपने पास चांदी की ठोस गोली रखनी चाहिए.राहु दो में और केतु आठ में तब दो रंगा का कम्बल दान करना चाहिए.तीन और नौ में क्रमश: राहु केतु हो तो चने की दाल नदी अथवा तलाब में प्रवाहित करना चाहिए.सोना धारण करने से भी लाभ मिलता है। चतुर्थ भाव में राहु हो और दशम भाव में केतु तब चांदी की डिब्बी में शहद भरकर घर के बाहर ज़मीन में दबाना लाभप्रद होता है। खाना नम्बर पांच में राहु हो और केतु खाना नम्बर ग्यारह में और सभी ग्रह इनके बीच में तब घर में चांदी का ठोस हाथी रखने से कालसर्प का विपरीत प्रभाव कम होता है। षष्टम में राहु और द्वादश में केतु होने पर कुत्ता पालने एवं बहन की सेवा करने से लाभ मिलता है। सप्तम में राहु हो और प्रथम में केतु तब लाल रंग की लोहे की गोली सदैव साथ रखना चाहिए एवं चांदी की डिब्बी में नदी का जल भरकर उसमें चांदी का एक टुकड़ा डालकर घर में रखना चाहिए.नवम में राहु हो और खाना नम्बर तीन में केतु हो तब चने की दाल बहते पानी में प्रवाहित करना चाहिए.

जिनकी कुण्डली में दसम खाने में राहु हो और केतु चौथे खाने में उन्हें पीतल के बर्तन में नदी या तालब का जल भरकर घर के अंधेरे कोने में रखना चाहिए.एकादश और पंचम में क्रमश: इस प्रकार की स्थिति हो तो 43 दिनों तक देव स्थान में मूली दान करना चाहिए.द्वादश खाने में राहु हो और षष्टम में केतु हो तो स्वर्ण धारण करने से लाभ होता है।

तक्षक कालसर्प:--

यह कालसर्प योग पारिवारिक एवं गृहस्थ सुख के सम्बन्ध में विशेष रूप से अशुभ फल देने वाला होता है.तक्षक कालसर्प योग कुण्डली में तब बनता है जबकि राहु सप्तम भाव में स्थित हो और केतु लग्न में विराजमान हो एवं अन्य ग्रह इन दोनों ग्रहों के मध्य स्थित हों तब यह योग बनता है। तक्षक कालसर्प योग से पीड़ित होने पर शुभ ग्रहों का प्रभाव कम हो जाता है। जिससे व्यक्ति को कुण्डली में स्थिति शुभ ग्रह योग का फल अपूर्ण रह जाता है। और व्यक्ति को कालसर्प योग का नीच परिणाम भुगतना पड़ता है।

तक्षक कालसर्प योग का परिणाम:--

जिनकी कुण्डली में तक्षक कालसर्प योग बनता है। वे स्त्री वर्ग के साथ सामंजस्य पूर्ण सम्बन्ध नहीं बना पाते हैं। जीवनसाथी के प्रति उदासीनता के कारण गृहस्थ जीवन का सुख बाधित होता है। यह योग गुप्तांग सम्बन्धी रोग भी देता है। जो संतान के सम्बन्ध में शुभ नहीं होता है। संभव है। कि इस योग से पीड़ित व्यक्ति संतान सुख के सम्बन्ध में भाग्यशाली नहीं हों.तक्षक कालसर्प चारित्रिक दोष भी देता है। जिसके कारण अगर मन पर संयम नहीं रखें तो इस योग वाले व्यक्ति के विवाहेत्तर सम्बन्ध भी हो सकते हैं।

इस योग से प्रभावित व्यक्ति को सदा सावधान और सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। क्योंकि यह योग मित्रों द्वारा मिलने वाले विश्वासघात की संभावना को प्रबल करता है। धन सम्पत्ति के सम्बन्ध में भी यह योग अशुभ फलदायी है। यह योग पैतृक सम्पत्ति से मिलने वाले सुख में कमी लाता है। व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशान होता है। और इन्हें जेल की यात्रा भी करनी पड़ती है। जीवन में उतार चढ़ाव और संघर्षमय स्थिति बनी रहती है।

कर्कोटक कालसर्प योग:--

कार्कोटक कालसर्प योग भी अशुभ कालसर्प योगों में से एक है। यह अशुभ योग तब निर्मित होता है। जब केतु द्वितीय में होता है। और राहु अष्टम में स्थित होकर शेष ग्रहों को निगल लेता है। अर्थात इनके बीच में सभी ग्रह होने पर यह योग बनता है। इस योग का अशुभ प्रभाव जीवन में समय समय पर दृष्टिगोचर होता रहता है। व्यक्ति मानसिक तौर पर परेशान रहता है।

कार्कोटक कालसर्प योग का परिणाम:--

जिनकी कुण्डली में कार्कोटक कालसर्प योग होता है। उन्हें किसी भी कार्य में जल्दी सफलता नहीं मिलती है क्योंकि इनका भाग्य कमज़ोर होता है.इन्हें जो कुछ भी प्राप्त होता है अपनी मेहनत से मिलता है.अगर इन्हें भाग्य का फल मिलता भी है तो काफी उम्र गुजर जाने के बाद जबकि अवसर सिमित हो जाते हैं.इनका जीवन संघर्षमय रहता है और बार बार असफलता का स्वाद चखना होता है.इनके मित्रों की संख्या सीमित होती है और जो भी मित्र होते हैं वे अवसर का लाभ उठाने की ताक में रहते हैं जिसके कारण मित्रों से भी इन्हें सहयोग एवं समर्थन नहीं मिल पाता है.आर्थिक विषयों में भी यह योग अशुभ फलदायी होता है.रोजी रोजगार में नुकसान और परेशानी बनी रहती है.पैतृक सम्पत्ति से मिलने वाले सुख में भी यह कमी लाता है.इनके साथ दुर्घटना होने की संभावना भी प्रबल रहती है।

शंखनाद कालसर्प:

शंखनाद कालसर्प योग को शंखचूड़ कालसर्प योग के नाम से भी जाना जाता है.कुण्डली में यह योग तब उपस्थित होता है जबकि राहु नवम भाव में होता है और केतु तृतीय भाव में स्थित होता है एवं शेष ग्रह इनके मध्य स्थित होते हैं.इस योग को दुर्भाग्य सूचक माना जाता है क्योकि राहु केतु की इस स्थिति से भाग्य को ग्रहण लगता है.यह योग कामयाबी के सफर में बाधक होता है.

शंखनाद कालसर्प योग का परिणाम:

शंखनाद कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति गृहस्थ जीवन में असंतुष्ट और दु:खी रहता है.भाग्य से इन्हें लाभ नहीं मिल पाता है, कार्यों में बार बार असफलता और अपमान भी इन्हें झेलना पड़ता है.कारोबार एवं नौकरी के सम्बन्ध में भी यह योग विपरीत प्रभाव देता है जिसके कारण व्यक्ति को अपनी मेहनत के अनुरूप लाभ नहीं मिल पाता है.शत्रुओं का भय बना रहता है.शुभ ग्रह योग से अगर ये उच्च स्थिति को प्राप्त कर भी लेते हैं तो इस अशुभ योग के कारण इन्हें अवनति का मुंह देखना होता है.

कितने प्रकार के होते हैं काल सर्प दोष

साढ़े साती और काल सर्प योग का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं. इनके प्रति लोगों के मन में जो भय बना हुआ है इसका फायदा उठाकर बहुत से ज्योतिषी लोगों को लूट रहे हैं. बात करें काल सर्प योग की तो इसके भी कई रूप और नाम हैं. काल सर्प को दोष नहीं बल्कि योग कहना चाहिये

काल सर्प का सामान्य अर्थ यह है कि जब ग्रह स्थिति आएगी तब सर्प दंश के समान कष्ट होगा. पुराने समय राहु तथा अन्य ग्रहों की स्थिति के आधार पर काल सर्प का आंकलन किया जाता था. आज ज्योतिष शास्त्र को वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करने के लिए नये नये शोध हो रहे हैं. इन शोधो से कालसर्प योग की परिभाषा और इसके विभिन्न रूप एवं नाम के विषय में भी जानकारी मिलती है. वर्तमान समय में कालसर्प योग की जो परिभाषा दी गई है उसके अनुसार जन्म कुण्डली में सभी ग्रह राहु केतु के बीच में हों या केतु राहु के बीच में हों तो काल सर्प योग बनता है.

कालसर्प योग के नाम

ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक भाव के लिए अलग अलग कालसर्प योग के नाम दिये गये हैं. इन काल सर्प योगों के प्रभाव में भी काफी कुछ अंतर पाया जाता है जैसे प्रथम भाव में कालसर्प योग होने पर अनन्त काल सर्प योग बनता है.

अनन्त कालसर्प योग

जब प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु होता है तब यह योग बनता है. इस योग से प्रभावित होने पर व्यक्ति को शारीरिक और, मानसिक परेशानी उठानी पड़ती है साथ ही सरकारी अदालती मामलों में उलझना पड़ता है. इस योग में अच्छी बात यह है कि इससे प्रभावित व्यक्ति साहसी, निडर, स्वतंत्र विचारों वाला एवं स्वाभिमानी होता है.

कुलिक काल सर्प योग

द्वितीय भाव में जब राहु होता है और आठवें घर में केतु तब कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है. इस कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक काष्ट भोगना होता है. इनकी पारिवारिक स्थिति भी संघर्षमय और कलह पूर्ण होती है. सामाजिक तौर पर भी इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं रहती.

वासुकि कालसर्प योग

जन्म कुण्डली में जब तृतीय भाव में राहु होता है और नवम भाव में केतु तब वासुकि कालसर्प योग बनता है. इस कालसर्प योग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का जीवन संघर्षमय रहता है और नौकरी व्यवसाय में परेशानी बनी रहती है. इन्हें भाग्य का साथ नहीं मिल पाता है परिजनों एवं मित्रों से धोखा मिलने की संभावना रहती है.

शंखपाल कालसर्प योग

राहु जब कुण्डली में चतुर्थ स्थान पर हो और केतु दशम भाव में तब यह योग बनता है. इस कालसर्प से पीड़ित होने पर व्यक्ति को आंर्थिक तंगी का सामना करना होता है. इन्हें मानसिक तनाव का सामना करना होता है. इन्हें अपनी मां, ज़मीन, परिजनों के मामले में कष्ट भोगना होता है.

पद्म कालसर्प योग

पंचम भाव में राहु और एकादश भाव में केतु होने पर यह कालसर्प योग बनता है. इस योग में व्यक्ति को अपयश मिलने की संभावना रहती है. व्यक्ति को यौन रोग के कारण संतान सुख मिलना कठिन होता है. उच्च शिक्षा में बाधा, धन लाभ में रूकावट वृद्धावस्था में सन्यास की प्रवृत होने भी इस योग का प्रभाव होता है.

महापद्म कालसर्प योग

जिस व्यक्ति की कुण्डली में छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु होता है वह महापद्म कालसर्प योग से प्रभावित होता है. इस योग से प्रभावित व्यक्ति मामा की ओर से कष्ट पाता है एवं निराशा के कारण व्यस्नों का शिकार हो जाता है. इन्हें काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है. प्रेम के ममलें में ये दुर्भाग्यशाली होते हैं.

तक्षक कालसर्प योग

तक्षक कालसर्प योग की स्थिति अनन्त कालसर्प योग के ठीक विपरीत होती है. इस योग में केतु लग्न में होता है और राहु सप्तम में. इस योग में वैवाहिक जीवन में अशांति रहती है. कारोबार में साझेदारी लाभप्रद नहीं होती और मानसिक परेशानी देती है.

शंखचूड़ कालसर्प योग

तृतीय भाव में केतु और नवम भाव में राहु होने पर यह योग बनता है. इस योग से प्रभावित व्यक्ति जीवन में सुखों को भोग नहीं पाता है. इन्हें पिता का सुख नहीं मिलता है. इन्हें अपने कारोबार में अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है.

घातक कालसर्प योग

कुण्डली के चतुर्थ भाव में केतु और दशम भाव में राहु के होने से घातक कालसर्प योग बनता है. इस योग से गृहस्थी में कलह और अशांति बनी रहती है. नौकरी एवं रोजगार के क्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना होता है.

विषधर कालसर्प योग

केतु जब पंचम भाव में होता है और राहु एकादश में तब यह योग बनता है. इस योग से प्रभावित व्यक्ति को अपनी संतान से कष्ट होता है. इन्हें नेत्र एवं हृदय में परेशानियों का सामना करना होता है. इनकी स्मरण शक्ति अच्छी नहीं होती. उच्च शिक्षा में रूकावट एवं सामाजिक मान प्रतिष्ठा में कमी भी इस योग के लक्षण हैं.

शेषनाग कालसर्प योग

व्यक्ति की कुण्डली में जब छठे भाव में केतु आता है तथा बारहवें स्थान पर राहु तब यह योग बनता है. इस योग में व्यक्ति के कई गुप्त शत्रु होते हैं जो इनके विरूद्ध षड्यंत्र करते हैं. इन्हें अदालती मामलो में उलझना पड़ता है. मानसिक अशांति और बदनामी भी इस योग में सहनी पड़ती है. इस योग में एक अच्छी बात यह है कि मृत्यु के बाद इनकी ख्याति फैलती है. अगर आपकी कुण्डली में है तो इसके लिए अधिक परेशान होने की आवश्यक्ता नहीं है. काल सर्प योग के साथ कुण्डली में उपस्थित अन्य ग्रहों के योग का भी काफी महत्व होता है. आपकी कुण्डली में मौजूद अन्य ग्रह योग उत्तम हैं तो संभव है कि आपको इसका दुखद प्रभाव अधिक नहीं भोगना पड़े और आपके साथ सब कुछ अच्छा हो.

कालसर्प योग  भी शुभ फल देता है

कुण्डली में राहु और केतु की उपस्थिति के अनुसार व्यक्ति को कालसर्प योग लगता है. कालसर्प योग को अत्यंत अशुभ योग माना गया है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है उसका पतन होता है.यह इस योग का एक पक्ष है जबकि दूसरा पक्ष यह भी है कि यह योग व्यक्ति को अपने क्षेत्र में सर्वक्षेष्ठ बनता है।

कालसर्प योग का प्राचीन ज्योतिषीय ग्रंथों में विशेष जिक्र नहीं आया है.तकरीबन सौ वर्ष पूर्व ज्योर्तिविदों ने इस योग को ढूंढ़ा.इस योग को हर प्रकार से पीड़ादायक और कष्टकारी बताया गया.आज बहुत से ज्योतिषी इस योग के दुष्प्रभाव का भय दिखाकर लोगों से काफी धन खर्च कराते हैं.ग्रहों की पीड़ा से बचने के लिए लोग खुशी खुशी धन खर्च भी करते हैं.परंतु सच्चाई यह है कि जैसे शनि महाराज सदा पीड़ा दायक नहीं होते उसी प्रकार राहु और केतु द्वारा निर्मित कालसर्प योग हमेंशा अशुभ फल ही नहीं देते.

अगर आपकी कुण्डली में कालसर्प योग है और इसके कारण आप भयभीत हैं तो इस भय को मन से निकाल दीजिए.कालसर्प योग से भयाक्रात होने की आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि इस योग ने व्यक्तियों को सफलता की ऊँचाईयों पर पहुंचाया है.कालसर्प योग से ग्रसित होने के बावजूद बुलंदियों पर पहुंचने वाले कई जाने माने नाम हैं जैसे धीरू भाई अम्बानी, सचिन तेंदुलकर, ऋषिकेश मुखर्जी, पं. जवाहरलाल नेहरू, लता मंगेशकर आदि.

ज्योतिषशास्त्र कहता है कि राहु और केतु छाया ग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवें भाव में होते हैं.जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच जाते हैं तब यह योग बनता है. राहु केतु शनि के समान क्रूर ग्रह माने जाते हैं और शनि के समान विचार रखने वाले होते हैं.राहु जिनकी कुण्डली में अनुकूल फल देने वाला होता है उन्हें कालसर्प योग में महान उपलब्धियां हासिल होती है.जैसे शनि की साढ़े साती व्यक्ति से परिश्रम करवाता है एवं उसके अंदर की कमियों को दूर करने की प्रेरणा देता है इसी प्रकार कालसर्प व्यक्ति को जुझारू, संघर्षशील और साहसी बनाता है.इस योग से प्रभावित व्यक्ति अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करता है और निरन्तर आगे बढ़ते जाते हैं.

कालसर्प योग में स्वराशि एवं उच्च राशि में स्थित गुरू, उच्च राशि का राहु, गजकेशरी योग, चतुर्थ केन्द्र विशेष लाभ प्रदान करने वाले होते है.अगर सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो कालसर्प योग वाले व्यक्ति असाधारण प्रतिभा एवं व्यक्तित्व के धनी होते हैं.हो सकता है कि आपकी कुण्डली में मौजूद कालसर्प योग आपको भी महान हस्तियों के समान ऊँचाईयों पर ले जाये अत: निराशा और असफलता का भय मन से निकालकर सतत कोशिश करते रहें आपको कामयाबी जरूरी मिलेगी.इस योग में वही लोग पीछे रह जाते हैं जो निराशा और अकर्मण्य होते हैं परिश्रमी और लगनशील व्यक्तियों के लिए कलसर्प योग राजयोग देने वाला होता है.

कालसर्प योग में त्रिक भाव एवं द्वितीय और अष्टम में राहु की उपस्थिति होने पर व्यक्ति को विशेष परेशानियों का सामना करना होता है परंतु ज्योतिषीय उपचार से इन्हें अनुकूल बनाया जा सकता है.

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

सूर्यादि नवग्रह उपाय

सूर्य ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय

वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह को नवग्रहों का राजा कहा जाता है। सूर्य के प्रभाव से मनुष्य को सम्मान और सफलता मिलती है। सूर्य ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गए हैं। सूर्य मंत्र, सूर्य यंत्र और सूर्य नमस्कार समेत कई उपायों को करने से लाभ मिलता है। हर दिन नियमित रूप से सूर्य मंत्र उच्चारित करने और सूर्य नमस्कार करने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। सूर्य ग्रह सरकारी एवं विभिन्न क्षेत्रों में उच्च सेवा का कारक माना गया है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में सूर्य की शुभ स्थिति व्यक्ति को जीवन में उन्नति प्रदान करती है लेकिन यदि सूर्य अशुभ प्रभाव देता है, तो सम्मान की हानि, पिता को कष्ट, उच्च पद प्राप्ति में बाधा, ह्रदय और नेत्र संबंधी रोग होते हैं। जन्म कुंडली में सूर्य से संबंधित किसी भी परेशानी के समाधान के लिए करें सूर्य ग्रह से जुड़े विभिन्न उपाय।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े सूर्य ग्रह शांति के उपाय

लाल और केसरिया रंग के वस्त्र धारण करें।
पिता जी, सरकार एवं उच्च अधिकारियों का सम्मान करें।
प्रातः सूर्योदय से पहले उठें और अपनी नग्न आँखों से उगते हुए सूरज का दर्शन करें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले सूर्य के उपाय

भगवान विष्णु की पूजा करें।
सूर्य देव की पूजा करें।
भगवान राम की पूजा करें।
आदित्य हृदय स्तोत्र का जाप करें।

सूर्य देव के लिये व्रत

सूर्य देव का आशीर्वाद पाने हेतु रविवार को व्रत धारण किया जाता है।

सूर्य ग्रह शांति के लिये दान करें

सूर्य ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान रविवार को सूर्य की होरा और सूर्य के नक्षत्रों (कृतिका, उत्तरा-फाल्गुनी, उत्तरा षाढ़ा) में प्रातः 10 बजे से पूर्व किया जाना चाहिए।

दान करने वाली वस्तुएँ: गुड़, गेहूँ, तांबा, माणिक्य रत्न, लाल पुष्प, खस, मैनसिल आदि।

सूर्य ग्रह के लिए रत्न

वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह के लिए रूबी माणिक्य को धारण किया जाता है। यदि किसी जातक की सूर्य प्रधान राशि सिंह है तो उसे माणिक्य रत्न को पहनना चाहिए।

श्री सूर्य यंत्र

सूर्य ग्रह शांति के लिए रविवार के दिन सूर्य यंत्र को सूर्य की होरा एवं इसके नक्षत्र में धारण करना चाहिए।

सूर्य के लिये जड़ी

सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए बेल मूल धारण करें। इस जड़ को रविवार के दिन सूर्य की होरा अथवा सूर्य के नक्षत्र में धारण करना चाहिए।

सूर्य के लिये रुद्राक्ष

सूर्य के लिए 1 मुखी रुद्राक्ष / 12 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।

एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लिए मंत्र:
ह्रीं नमः।
यें हं श्रों ये।।

तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
क्लीं नमः।
रें हूं ह्रीं हूं।।

बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
क्रों श्रों रों नमः।
ह्रीं श्रीं घृणि श्रीं।।

सूर्य मंत्र

सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए आप सूर्य बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं। मंत्र - ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।

वैसे तो सूर्य बीज मंत्र को 7000 बार जपना चाहिए परंतु देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र का (7000x4) 28000 बार उच्चारण करना चाहिए।

आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - घृणि सूर्याय नमः!

सूर्य ग्रह शांति के उपाय करने से जातकों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। चूंकि सूर्य आत्मा, राजा, कुलीनता, उच्च पद, सरकारी नौकरी का कारक है। अतः सूर्य ग्रह शांति मंत्र का जाप अथवा सूर्य यंत्र को स्थापित करने से जातक एक राजा के समान जीवन व्यतीत करता है। वह सरकारी क्षेत्र में प्रशासनिक स्तर का पद पाता है। इस लेख में दिए गए सूर्य दोष के उपाय वैदिक ज्योतिष पर आधारित हैं, जो बहुत ही कारगर और सरल हैं।

वैदिक ज्योतिष में सूर्य को एक क्रूर ग्रह माना गया है। इसके नकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति अहंकारी, आत्म केन्द्रित, ईर्ष्यालु और क्रोधी स्वभाव का हो जाता है और स्वास्थ्य जीवन पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। ऐसे में सूर्य शांति के उपाय करने से जातकों को लाभ होता है। सूर्य सिंह राशि का स्वामी है। अतः सिंह राशि वाले जातकों के लिए सूर्य मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। सूर्य ग्रह के उच्च होने पर भी आपको सूर्य को मजबूत करने के उपाय करने चाहिए। इससे आपको दोगुना लाभ होगा।

 

 

चंद्र ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय

वैदिक ज्योतिष में चंद्र ग्रह मन, मॉं और सुंदरता का कारक होता है। चंद्र ग्रह शांति से संबंधित कई उपाय हैं। इनमें सोमवार का व्रत, चंद्र यंत्र, चंद्र मंत्र, चंद्र ग्रह से संबंधित वस्तु का दान, खिरनी की जड़ और दो मुखी रुद्राक्ष धारण करना समेत कई उपाय हैं। कुंडली में चंद्रमा की शुभ स्थिति से जीवन में प्रसन्नता, सुख, माता का बेहतर स्वास्थ्य और अच्छा जीवन साथी प्राप्त होता है। वहीं चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से मानसिक विकार, मन का भटकना, माता को कष्ट आदि परेशानी आती है। यदि कुंडली में चंद्रमा किसी बुरे ग्रह से पीड़ित है, तो चंद्र ग्रह से संबंधित कार्यों को अवश्य करना चाहिए। इन उपायों को करने से चंद्रमा से शुभ फल की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा से संबंधित वस्त्र और उत्पाद आदि को ग्रहण और धारण करना भी चंद्र ग्रह से जुड़े अहम उपाय हैं।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े चंद्र ग्रह शांति के उपाय

सफेद रंग के वस्त्र धारण करें।
माता जी, सास एवं बुजुर्ग महिलाओं का सम्मान करें।
रात को दूध का सेवन करें।
चाँदी के बर्तनों का प्रयोग करें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले चंद्र ग्रह के उपाय

माँ दुर्गा की पूजा करें।
भगवान शिव की आराधना करें।
भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें।
शिव चालिसा/दुर्गा चालिसा का जाप करें।

चंद्र ग्रह के लिये व्रत

शुभ चंद्र सुख, शांति, समृद्धि और दयालुता का द्यौतक है। चंद्र ग्रह की कृपा दृष्टि पाने के लिए सोमवार को उपवास रखें।

चंद्र ग्रह शांति के लिये दान करें

चंद्र ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान सोमवार को चंद्र की होरा और चंद्र के नक्षत्रों (रोहिणी, हस्त, श्रवण) में प्रातः किया जाना चाहिए।

दान करने वाली वस्तुएँ- दूध, चावल, चांदी, मोती, सफेद कपड़े, सफेद पुष्प एवं शंख आदि।

चंद्रमा के लिए रत्न

ज्योतिष में चंद्र ग्रह के लिए मोती रत्न को धारण करने का विधान है। यदि किसी जातक की कर्क राशि है तो उसे मोती को धारण करना चाहिए। इससे जातक को चंद्रमा के अच्छे फल प्राप्त होंगे।

श्री चंद्र यंत्र

चंद्र ग्रह शांति के लिए चंद्र यंत्र को सोमवार को चंद्र की होरा और चंद्र के नक्षत्रों के समय धारण करें।

चंद्र के लिये जड़ी

खिरनी की जड़ को धारण करने से आप चंद्र ग्रह से शुभ परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। इस जड़ को सोमवार के दिन चंद्र की होरा एवं चंद्र के नक्षत्रों में धारण करें।

चंद्र के लिये रुद्राक्ष

चंद्र के लिए 2 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
नमः।
श्रीं ह्रीं क्षौं व्रीं।।

चंद्र मंत्र

चंद्र देव की कृपा दृष्टि पाने के लिए आपको चंद्र बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र - श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः!

11000 बार चंद्र मंत्र का उच्चारण करें। हालाँकि देश-काल-पात्र के सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को (11000X4) 44000 बार जपने की सलाह दी गई है।

आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - सों सोमाय नमः!

इस आलेख में दिए गए चंद्र ग्रह शांति के उपाय वैदिक ज्योतिष पर आधारित हैं, जो कि बहुत ही कारगर और आसान हैं। यदि आप चंद्र को मजबूत करने के उपाय को विधि पूर्वक करते हैं तो इससे आपको मानसिक शांति का अनुभव होगा। चंद्र ग्रह शांति मंत्र मन में सकारात्मक विचारों को जन्म देता है जिससे व्यक्ति सही दिशा में सोचकर आगे की ओर क़दम बढ़ाता है। चंद्र दोष के उपाय से जातक को माता का सुख प्राप्त होता है। चंद्रमा मजबूत होने से माता को स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, चंद्र ग्रह को कर्क राशि का स्वामी कहा जाता है। अतः इस राशि के जातक चंद्र ग्रह के उपाय कर सकते हैं। कई बार लोगों को यह लगता है कि कुंडली में ग्रह के कमज़ोर होने पर ही ग्रह शांति के उपाय करने चाहिए। लेकिन यदि आपकी कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत है तो इसके शुभ फलों में वृद्धि करने के लिए आप चंद्र ग्रह शांति के उपाय भी कर सकते हैं। इस लेख में चंद्र ग्रह के उपाय जैसे चंद्र ग्रह का मंत्र जाप, चंद्र ग्रह के लिए दान, चंद्र व्रत आदि को करने की विधि भी बहुत सरल तरीके से बतायी गई है।

 

 

मंगल ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय

मंगल ग्रह को पराक्रम और साहस का कारक माना जाता है। मंगल ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गए हैं। इनमें मंगलवार का व्रत, हनुमान जी की आराधना और सुंदर कांड का पाठ आदि प्रमुख है। कुंडली में मंगल की शुभ स्थिति से शारीरिक और मानसिक शक्ति मिलती है। वहीं मंगल के अशुभ प्रभाव से मांस, रक्त और अस्थि जनित रोग होते हैं। यदि मंगल अशुभ फल दे रहा है तो मंगल से संबंधित उपाय करना चाहिए। मंगल ग्रह शांति के लिए मंगल यंत्र की स्थापना, मंगलवार को मंगल से संबंधित वस्तु का दान, अनंत मूल की जड़ धारण करना चाहिए। इनके अलावा भी वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह से संबंधित कई उपाय बताये गये हैं। इन कार्यों को करने से मंगल ग्रह से शुभ फल की प्राप्ति होती है और अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े मंगल ग्रह शांति के उपाय

लाल एवं कॉपर शेड कलर के वस्त्र धारण करें।
अपनी मातृभूमि एवं सेना का सम्मान करें।
भाई, साले एवं दोस्तों के साथ मधुर व्यवहार बनाए रखें।
मंगलवार के दिन पैसे उधार लें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले मंगल ग्रह के उपाय

हनुमान जी की आराधना करें।
नरसिंह देव की पूजा करें।
भगवान कार्तिकेय की आराधना करें।
सुंदर कांड का पाठ करें।

मंगल के लिये व्रत

मंगल दोष दूर करने के लिए और मंगल देव की शुभ दृष्टि पाने के लिए मंगलवार के दिन उपवास रखें।

मंगल शांति के लिये दान करें

मंगल ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान मंगलवार को मंगल की होरा एवं मंगल ग्रह के नक्षत्रों (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) में किया जाना चाहिए।

दान करने वाली वस्तुएँ- लाल मसूर, खांड, सौंफ, मूंग, गेहूँ, लाल कनेर का पुष्प, तांबे के बर्तन एवं गुड़ आदि।

मंगल के लिए रत्न

मंगल ग्रह के लिए मूंगा रत्न को धारण किया जाता है। मूंगा रत्न को पहनने से मंगल ग्रह के सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। मेष और वृश्चिक राशि के जातकों के लिए यह रत्न बहुत लाभकारी होता है।

मंगल यंत्र

कुंडली में मांगलिक दोष की वजह से जीवन में शादी-ब्याह, संतान प्राप्ति आदि की समस्याएं आती हैं। इन सभी समस्याओं को मंगल यंत्र की स्थापना करके दूर किया जा सकता है। मंगल यंत्र को मंगलवार के दिन मंगल की होरा एवं मंगल के नक्षत्र के समय धारण करें।

मंगल के लिये जड़ी

मंगल ग्रह शांति के लिए अनंत मूल जड़ी धारण करें। इस जड़ी को मंगलवार को मंगल की होरा और मंगल के नक्षत्र में धारण करें।

मंगल के लिये रुद्राक्ष

मंगल के लिए 3 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
छः मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ह्रीं हूं नमः।
ह्रीं श्रीं क्लीं सौं।।

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ह्रीं हूं नमः।
ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं।

मंगल मंत्र

मंगल ग्रह से मनवांछित फल पाने के लिए मंगल बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः!

मंगल मंत्र का जाप 1000 बार करना चाहिए। हालाँकि देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को 40000 बार जपने के लिए कहा गया है।

आप इस मंत्र का जाप भी कर सकते हैं - भौं भौमाय नमः अथवा अं अंगराकाय नमः!

मंगल ग्रह शांति के उपाय को विधि अनुसार करने से आपको निश्चित ही मंगल देवता का आशीर्वाद प्राप्त होगा और आपके साहस, ऊर्जा और पराक्रम में वृद्धि होगी। ज्योतिष में मंगल को पापी ग्रह की श्रेणी में अवश्य रखा गया है। परंतु मंगल का प्रभाव सदैव ही अशुभ नहीं होता है। यह बात ठीक है कि मंगल ग्रह के कारण कुंडली में मंगल दोष पैदा होता है जो वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है। मंगल ग्रह लाल होने के कारण इसका नाता लाल रंग से जुड़ा है।

वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी होता है। अतः इन राशि वाले जातकों को मंगल को प्रसन्न करने के लिए मंगल ग्रह के टोटके या उपाय ज़रुर करने चाहिए। यदि आप मंगल शांति के उपाय करते हैं तो आपको इससे केवल मंगल के द्वारा मिलने वाले कष्टों से मुक्ति मिलेगी। बल्कि ये उपाय आपके लिए बहुत लाभकारी साबित होंगे। मंगल व्रत, मंगल ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान, मंगल यंत्र की पूजा तथा मंगल शांति मंत्र का उच्चारण आदि करने से जातकों के मंगल से संबंधित कष्ट दूर होते हैं।

 

 

बुध ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय

बुध ग्रह को बुद्धि, संचार और त्वचा का कारक कहा जाता है। बुध एक शुभ ग्रह है लेकिन क्रूर ग्रह के संगम से यह अशुभ फल देता है। बुध ग्रह शांति के लिए कई उपाय हैं। इनमें बुध यंत्र की स्थापना, बुधवार का व्रत, बुधवार को भगवान विष्णु का पूजन और विधारा की जड़ धारण करना आदि प्रमुख उपाय हैं। कुंडली में बुध की खराब स्थिति से त्वचा संबंधी विकार, शिक्षा में एकाग्रता की कमी, गणित विषय में कमजोरी और लेखन कार्य में परेशानी आती है। वहीं बुध के शुभ प्रभाव से बुद्धि, व्यापार, संचार और शिक्षा में उन्नति मिलती है। यदि आप बुध के अशुभ प्रभाव से पीड़ित हैं तो तुरंत बुध ग्रह शांति के लिए ये उपाय करें। इन कार्यों को करने से बुध ग्रह से शुभ फल की प्राप्ति होती है और अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े बुध ग्रह शांति के उपाय

हरा रंग अथवा ग्रीन कलर के सभी शेड्स के कपड़े पहन सकते हैं।
बहन, बेटी अथवा छोटी कन्या का सम्मान करें।
बहन को उपहार भेंट करें।
व्यापार में ईमानदार रहें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले बुध ग्रह के उपाय

भगवान विष्णु की पूजा करें।
भगवान बुध की आराधना करें।
श्री विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र का जाप करें।

बुध के लिये व्रत

व्यापार में धन लाभ अथवा गृह क्लेश निवारण के लिए बुधवार के दिन व्रत धारण करें।

बुध ग्रह शांति के लिये दान करें

बुध ग्रह से संबंधित वस्तुओं को बुधवार के दिन बुध की होरा एवं इसके नक्षत्रों (अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) में सुबह अथवा शाम को करना चाहिए।

दान करने वाली वस्तुएँ- हरी घास, साबुत मूंग, पालक, कांस्य के बर्तन, नीले रंग के पुष्प, हरे नीले रंग के कपड़े, हाथी के दांतों से बनी वस्तुएँ इत्यादि।

बुध के लिए रत्न

ज्योतिष में बुध ग्रह शांति के लिए पन्ना रत्न धारण किया जाता है। पन्ना को पहनने से जातक को अच्छे फल प्राप्त होते हैं। बुध प्रधान राशि मिथुन और कन्या राशि के जातकों के लिए पन्ना रत्न शुभ होता है।

श्री बुध यंत्र

जिनकी बुध की महादशा चल रही हो उनको अभिमंत्रित बुध यंत्र को बुध की होरा और बुध के नक्षत्र के समय धारण करना चाहिए।

बुध के लिये जड़ी

बुध ग्रह के कुप्रभाव को कम करने के लिए विधारा की जड़ पहनें। इस जड़ को बुधवार के दिन बुध की होरा के समय अथवा बुध के नक्षत्र में धारण करें।

बुध ग्रह के लिये रुद्राक्ष

बुध ग्रह की शुभता के लिए 4 मुखी रुद्राक्ष / 10 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ह्रीं नमः।
श्रीं ह्रीं क्लीं ग्रीं।।

बुध मंत्र

बुध ग्रह से शुभ फल पाने के लिए बुध बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः!

सामान्य रूप से बुध मंत्र को 9000 बार जपना चाहिए। हालाँकि देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को 36000 बार जपने के लिए कहा गया है।

बुध ग्रह को प्रसन्न करने के लिए आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - बुं बुधाय नमः अथवा ऐं श्रीं श्रीं बुधाय नमः!

बुध ग्रह शांति के उपाय करने से निश्चित ही आपको बुध ग्रह के शुभ फल प्राप्त होंगे और आपकी बौद्धिक, तार्किक एवं गणना शक्ति में वृद्धि होगी। इसके साथ ही आपकी संवाद शैली में निखार आएगा। इस लेख में दिए गए मजबूत बुध के टोटके पूर्ण रूप से वैदिक ज्योतिष पर आधारित हैं। जैसा कि आपने देखा है कि इस लेख में बुध दोष के उपाय के साथ उनको करने की भी विधि बतायी गई है और इसी विधि और नियम के साथ आपको बुध ग्रह शांति मंत्र का जाप, संबंधित रुद्राक्ष, रत्न तथा जड़ी को धारण करना चाहिए।

ज्योतिष में बुध ग्रह को एक तटस्थ ग्रह माना गया है, यह दूसरे ग्रहों की संगति के अनुसार ही फल देता है। वैदिक शास्त्रों में बुध ग्रह का संबंध भगवान विष्णु जी से है। अतः बुध शांति के उपाय करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। बुध ग्रह का वर्ण हरा है इसलिए बुध ग्रह शांति के लिए हरे रंग के कपड़ों को धारण अथवा दान किया जाता है। बुध ग्रह मिथुन और कन्या राशि का अधिपति है। इसलिए इन राशि के जातकों को बुध ग्रह शांति के उपाय को अवश्य ही करना चाहिए।

 

 

 

 

बृहस्पति ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय

वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को देव गुरु कहा गया है। गुरु को धर्म, दर्शन, ज्ञान और संतान का कारक माना जाता है। बृहस्पति ग्रह शांति से संबंधित कई उपाय हैं, जिन्हें करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। जन्म कुंडली में बृहस्पति की अनुकूल स्थिति से धर्म, दर्शन और संतान की प्राप्ति होती है। गुरु को वैदिक ज्योतिष में आकाश तत्व का कारक माना गया है। इसका गुण विशालता, विकास और व्यक्ति की कुंडली और जीवन में विस्तार का संकेत होता है। गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव से संतान प्राप्ति में बाधा, पेट से संबंधित बीमारी और मोटापा आदि परेशानी होती है। अगर आप बृहस्पति के अशुभ प्रभाव से पीड़ित हैं तो बृहस्पति ग्रह शांति के लिए ये उपाय करें। इन कार्यों को करने से शुभ फल की प्राप्ति होगी और अशुभ प्रभाव दूर होंगे।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े बृहस्पति ग्रह शांति के उपाय

पीला, क्रीम कलर और ऑफ़ व्हाइट रंग उपयोग में लाया जा सकता है।
गुरु ब्राह्मण एवं अपने से बड़े लोगों का सम्मान करें। यदि आप महिला हैं तो अपने पति का सम्मान करें।
अपने बच्चे और बड़े भाई से अच्छे संबंध बनाएँ।
किसी से झूठ बोलें।
ज्ञान का वितरण करें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले बृहस्पति ग्रह के उपाय

भगवान शिव की आराधना करें।
वामन देव की पूजा करें।
शिव सहस्रनाम स्तोत्र का जाप करें।
श्रीमद् भागवत पुराण का पाठ करें।

बृहस्पति के लिये व्रत

शीघ्र विवाह, धन, विद्या आदि की प्राप्ति के लिए गुरुवार के दिन व्रत धारण करें।

बृहस्पति शांति के लिये दान करें

बृहस्पति ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान गुरुवार के दिन बृहस्पति के होरा और गुरु के नक्षत्रों (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व भाद्रपद) में शाम को करना चाहिए।

दान की जाने वाली वस्तुएँ हैं- केसरिया रंग, हल्दी, स्वर्ण, चने की दाल, पीत वस्त्र, कच्चा नमक, शुद्ध घी, पीले पुष्प, पुखराज रत्न एवं किताबें।

बृहस्पति के लिए रत्न

ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह शांति के लिए पुखराज रत्न को धारण किया जाता है। गुरु धनु और मीन राशि का स्वामी है। अतः धनु और मीन राशि के जातकों के लिए पुखराज रत्न शुभ होता है।

श्री गुरु यंत्र

बृहस्पति के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए गुरु यंत्र को गुरुवार के दिन बृहस्पति की होरा एवं इसके नक्षत्र के समय धारण करें।

बृहस्पति के लिये जड़ी

गुरु ग्रह (बृहस्पति) के शुभ परिणाम प्राप्त करने के लिए पीपल की जड़ धारण करें। इस जड़ को गुरु की होरा और गुरु के नक्षत्र में धारण करें।

बृहस्पति के लिये रुद्राक्ष

गुरु ग्रह (बृहस्पति) की शुभता के लिए 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
पाँच मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लिए मंत्र:
ह्रीं नमः।
ह्रां आं क्षंयों सः ।।

बृहस्पति मंत्र

बृहस्पति देव से शुभ आशीष पाने के लिए गुरु बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः!

वैसे तो गुरु मंत्र को कम से कम 19000 बार इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए, परंतु देश-काल-पात्र पद्धति के अनुसार कलयुग में इसे 76000 बार करने की सलाह दी गई है।

गुरु की कृपा दृष्टि पाने के लिए आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - बृं बृहस्पतये नमः!

ऊपर दिए गए बृहस्पति शांति के उपाय बहुत ही कारगर हैं। ये गुरु ग्रह शांति के उपाय वैदिक ज्योतिष पर आधारित हैं, जिन्हें जातक आसानी से कर सकते हैं। यदि कोई जातक विधि अनुसार बृहस्पति को मजबूत करने के उपाय को करता है तो उसे केवल बृहस्पति के बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है, बल्कि उसे गुरु और स्वयं ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस लेख में आपको बृहस्पति दोष के उपाय के साथ-साथ उन्हें करने की विधि भी बतायी गई है जिसके अनुसार, आप गुरु मंत्र या गुरु यंत्र को स्थापित कर सकते हैं।

ज्योतिष में गुरु को शुभ ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। हालाँकि किसी क्रूर ग्रह से पीड़ित होने पर अथवा अपनी नीच राशि मकर में होने पर गुरु के फल नकारात्मक भी हो सकते हैं। यदि आपका गुरु शुभ स्थिति में है अथवा अपनी उच्च राशि (कर्क) में बैठा है तो आप गुरु ग्रह शांति के उपाय कर सकते हैं। इससे आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और धर्म कर्म के कार्यों में आपकी रुचि बढ़ेगी। बृहस्पति मंत्र का जाप करने से जातकों को संतान सुख एवं अपने गुरुजनों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

 

 

 

शुक्र ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय

वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को लाभदाता ग्रह कहा जाता है। यह प्रेम, जीवनसाथी, सांसारिक वैभव, प्रजनन और कामुक विचारों का कारक है। शुक्र ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गये हैं। जिन लोगों की कुंडली में शुक्र उच्च भाव में रहता है उन्हें जीवन में भौतिक संसाधनों का आनंद प्राप्त होता है। वहीं कुंडली में शुक्र की स्थिति कमजोर होने से आर्थिक कष्ट, स्त्री सुख में कमी, डायबिटीज़ और सांसारिक सुखों में कमी आने लगती है। ज्योतिष में शुक्र ग्रह शांति के लिए दान, पूजा-पाठ और रत्न धारण किये जाते हैं। शुक्र से जुड़े इन उपायों में शुक्रवार का व्रत, दुर्गाशप्तशी का पाठ, चावल और श्वेत वस्त्र का दान आदि करने का विधान है। अगर आपकी कुंडली में शुक्र की स्थिति कमजोर है, तो उन उपायों को अवश्य करें। इन कार्यों को करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल की प्राप्ति होगी और अशुभ प्रभाव दूर होंगे।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े शुक्र ग्रह शांति के उपाय

चमकदार सफेद एवं गुलाबी रंग का प्रयोग करें।
प्रियतम एवं अन्य महिलाओं का सम्मान करें। यदि आप पुरुष हैं तो अपनी पत्नी का आदर करें।
कलात्मक क्रियाओं का विकास करें।
चरित्रवान बनें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले शुक्र ग्रह के उपाय

माँ लक्ष्मी अथवा जगदम्बे माँ की पूजा करें।
भगवान परशुराम की आराधना करें।
श्री सूक्त का पाठ करें।

शुक्र के लिये व्रत

अशुभ शुक्र की शांति के लिए शुक्रवार के दिन उपवास रखें।

शुक्र शांति के लिये दान करें

पीड़ित शुक्र को मजबूत करने के लिए शुक्र ग्रह से संबंधित वस्तुओं को शुक्रवार के दिन शुक्र की होरा एवं इसके नक्षत्रों (भरानी, पूर्व फाल्गुनी, पूर्व षाढ़ा) के समय दान करना चाहिए।

दान करने वाली वस्तुएँ- दही, खीर, ज्वार, इत्र, रंग-बिरंगे कपड़े, चांदी, चावल इत्यादि।

शुक्र के लिए रत्न

शुक्र ग्रह के लिए हीरा धारण किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार वृषभ और तुला दोनों शुक्र की राशि हैं। अतः इन राशि के जातकों के लिए हीरा पहनना शुभ होता है।

शुक्र यंत्र

शुक्र यंत्र की पूजा से प्रेम जीवन, व्यापार और धनलाभ में वृद्धि होती है। शुक्र यंत्र को शुक्रवार को शुक्र की होरा एवं शुक्र के नक्षत्र के समय धारण करें।

शुक्र ग्रह के लिये जड़ी

शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए अरंड मूल अथवा सरपंखा मूल धारण करें। अरंड मूल/सरपंखा मूल को शुक्रवार के दिन शुक्र की होरा अथवा शुक्र के नक्षत्र में धारण किया जा सकता है।

शुक्र के लिये रुद्राक्ष

शुक्र के लिये 6 मुखी रुद्राक्ष / 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ह्रीं नमः।
रं मं यं ॐ।

शुक्र मंत्र

जीवन में आर्थिक संपन्नता, प्रेम और आकर्षण में बढ़ोत्तरी के लिए शुक्र बीज मंत्र " द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः" का उच्चारण करना चाहिए।

इस मंत्र को कम से कम 16000 बार उच्चारण करना चाहिए और देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को 64000 बार जपने के लिए कहा गया है।

आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - शुं शुक्राय नमः।

वैदिक ज्योतिष में दिए गए शुक्र शांति के उपाय को नियम के अनुसार करने से जातकों को भौतिक सुखों का आनंद प्राप्त होता है। इसके साथ ही जातकों के जीवन में ऐश्वर्य, धन, एवं समृद्धि का आगमन होता है और व्यक्ति के कलात्मक गुणों का विकास होता है। चूंकि ज्योतिष में शुक्र का संबंध कला से जोड़ा गया है। अतः जो व्यक्ति कला की विभिन्न विधाओं से जुड़ा है तो ऐसे लोगों को शुक्र दोष के उपाय करने चाहिए। इससे उन्हें इस क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त होगी। इस आलेख में मजबूत शुक्र के टोटके बहुत ही सरल रूप में बताए गए हैं जिन्हें आप आसानी से कर सकते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र ग्रह को वृषभ और तुला का स्वामी कहा जाता है। अर्थात इन राशियों के जातकों को शुक्र ग्रह के आसान उपाय करने चाहिए। शास्त्रो में कहा गया है कि शुक्र ग्रह माँ लक्ष्मी जी का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए जो व्यक्ति शुक्र व्रत का पालन करता है उसे माता लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

 

 

 

शनि ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय

वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह को क्रूर ग्रह बताया जाता है, लेकिन शनि शत्रु नहीं बल्कि मित्र है। शनि देव कलयुग के न्यायाधीश हैं और लोगों को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। शनि ग्रह शांति के लिए कई उपाय किये जाते हैं। इनमें शनिवार का व्रत, हनुमान जी की आराधना, शनि मंत्र, शनि यंत्र, छायापात्र दान करना आदि प्रमुख उपाय हैं। शनि कर्म भाव का स्वामी है इसलिए शनि के शुभ प्रभाव से नौकरी और व्यवसाय में तरक्की मिलती है। वहीं कुंडली में शनि के कमजोर होने से बिजनेस में परेशानी, नौकरी का छूटना, अनचाही जगह पर ट्रांसफर, पदोन्नति में बाधा और कर्ज आदि समस्या आती हैं। यदि आप इस तरह की समस्या से परेशान हैं, तो आपको शनि ग्रह शांति के लिए उपाय अवश्य करना चाहिए। क्योंकि इन कार्यों को करने से शनि देव से शुभ फल की प्राप्ति होगी और अशुभ प्रभाव समाप्त होंगे।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े शनि ग्रह शांति के उपाय

काले रंग के वस्त्रों का प्रयोग करें।
मामा एवं बुजुर्ग लोगों का सम्मान करें।
कर्मचारिओं अथवा नौकरों को हमेशा ख़ुश रखें।
शराब एवं मांस का सेवन करें।
रात को दूध पिएँ।
शनिवार को रबर, लोहा से संबंधित चीज़ें ख़रीदें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले शनि ग्रह के उपाय

शनि देव की पूजा करें।
श्री राधे-कृष्ण की आराधना करें।
हनुमान जी की पूजा करें।
कूर्म देव की पूजा करें।

शनिदेव के लिये व्रत

दंडाधिकारी शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार का व्रत करके शनिदेव की विशेष पूजा, शनि प्रदोष व्रत, शनि मंदिर में जाकर दीप भेंट करना आदि विधि विधान से करें।

शनि शांति के लिये दान करें

शनि ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान शनिवार के दिन शनि की होरा एवं शनि ग्रह के नक्षत्रों (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद) में दोपहर अथवा शाम को करना चाहिए।

दान करने वाली वस्तुएँ- साबुत उड़द, लोहा, तेल, तिल के बीज, पुखराज रत्न, काले कपड़े आदि।

शनि के लिए रत्न

शनि के लिए नीलम रत्न को पहना जाता है। इस रत्न को मकर और कुंभ राशि के जातक धारण कर सकते हैं। यह रत्न शनि के नकारात्मक प्रभावों से बचाता है।

शनि यंत्र

जीवन में शांति, कार्य सिद्धि और समृद्धि के लिए शुभ शनि यंत्र की पूजा करें। शनि यंत्र को शनिवार के दिन शनि की होरा एवं शनि के नक्षत्र में धारण करें।

शनि के लिये जड़ी

शनि शांति के लिए बिच्छू जड़ अथवा धतूरे की जड़ को शनिवार के दिन शनि होरा अथवा शनि के नक्षत्र में धारण करें।

शनि के लिये रुद्राक्ष

शनि के लिये 7 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
सात मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
हूं नमः।
ह्रां क्रीं ह्रीं सौं।।

शनि मंत्र

शनि दोष निवारण के लिए शनि बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः!

23000 बार इस शनि मंत्र का जाप करें। देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र का 92000 बार उच्चारण करना चाहिए।

शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं- शं शनिश्चरायै नमः!

इस आलेख में बताए गए शनि ग्रह शांति के उपाय बहुत ही कारगर हैं। यदि आप मजबूत शनि के उपाय विधि पूर्वक करते हैं तो आपको इससे बहुत लाभ प्राप्त होगा। यदि आप शनि बीज मंत्र का उच्चारण और शनि यंत्र की स्थापना के पश्चात पूजा करेंगे तो आप स्वयं में एक अद्भुत परिवर्तन का अनुभव करेंगे। विविध क्षेत्रों में आपको सफल परिणाम प्राप्त होंगे। शनि शांति के टोटके आपको शनि की बुरी नज़र से बचाएंगे।

ज्योतिष में शनि को एक अशुभ ग्रह माना जाता है। परंतु इसके परिणाम सदैव बुरे नहीं होते हैं। यह जातकों को उनके कर्मों के आधार पर फल देता है। हालाँकि शनि की चाल बहुत धीमी है। इसलिए जातकों को इसके परिणाम देरी से प्राप्त होते हैं। शनि ग्रह मकर और कुंभ राशि का स्वामी होता है। अतः इन राशियों के जातकों को शनि दोष के उपाय अवश्य करने चाहिए। यदि आपकी कुंडली में शनि उच्च का है तो भी आप शनि मंत्र का जाप कर सकते हैं। इससे शनि के शुभ फलों में वृद्धि होगी।

 

 

 

 

राहु ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय

वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु ग्रह एक क्रूर ग्रह है। कुंडली में राहु दोष होने से मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान, तालमेल की कमी होने लगती है। किसी समय विशेष पर हर कोई ग्रह अशुभ प्रभाव देने लगता है। ऐसी स्थिति में ग्रह शांति के लिए उपाय किये जाते हैं। राहु ग्रह शांति के लिए कई उपाय बताये गये हैं। इनमें राहु से संबंधित वस्तु का दान, रत्न, राहु यंत्र, राहु मंत्र और जड़ी धारण करना प्रमुख उपाय हैं। ऐसी मान्यता है कि राहु के शुभ प्रभाव से व्यक्ति रातों रात रंक से राजा बन जाता है, वहीं अशुभ फल मिलने से राजा से रंक बन जाता है। यदि आपकी कुंडली में राहु कमजोर है तो राहु ग्रह शांति के लिए इन उपायों को अवश्य करें। क्योंकि इन कार्यों के प्रभाव से राहु शुभ फल प्रदान करेगा और आपके कष्टों में कमी आने लगेगी।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े राहु ग्रह शांति के उपाय

नीले रंग के कपड़े पहनें।
अपने ससुर, नाना-नानी एवं मरीज़ लोगों का सम्मान करें।
शराब एवं मांस का सेवन करें।
कुत्तों की देखभाल करें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले राहु ग्रह के उपाय

माँ दुर्गा की पूजा करें।
वराह देव की आराधना करें।
भैरव देव की पूजा करें।
दुर्गा चालिसा का पाठ करें।

राहु शांति के लिये दान करें

राहु की अशुभ दशा से बचने के लिये राहु ग्रह से संबंधित वस्तुओं को बुधवार के दिन राहु के नक्षत्र (आर्द्र, स्वाति, शतभिषा) में शाम और रात में दान करें।

दान करने वाली वस्तुएँ- जौ, सरसो, सिक्का, सात प्रकार के अनाज (जौ, तिल, चावल, साबूत मूंग, कंगुनी, चना, गेहूँ ), गोमेद रत्न, नीले अथवा भूरें रंग के कपड़े, कांच निर्मित वस्तुएँ आदि।

राहु के लिए रत्न

राहु के लिए गोमेद रत्न है। इस रत्न को धारण करने से जातकों को राहु दोष से मुक्ति मिलती है तथा जातक को बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।

राहु यंत्र

जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह, वैभव वृद्धि, अचानक आने वाली बाधाओं और बीमारियों से बचने के लिए राहु यंत्र का पूजन करें। राहु यंत्र को बुधवार के दिन राहु के नक्षत्र में धारण करें।

राहु ग्रह के लिये जड़ी

राहु ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए बुधवार के दिन नागरमोथा की जड़ को राहु के नक्षत्र के दौरान धारण करें।

राहु के लिये रुद्राक्ष

राहु दोष निवारण के लिए 8 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।
आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
हूं नमः।
ह्रां ग्रीं लुं श्री।।

राहु मंत्र

राहु महादशा निवारण के लिए राहु बीज मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। मंत्र - भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः!

राहु मंत्र का 18000 बार जाप करें जबकि देश-काल-पात्र पद्धति के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को अधिकतम 72000 बार जपना चाहिए।

आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - रां राहवे नमः!

राहु ग्रह शांति के उपाय करने से जातकों को राहु दोष से मुक्ति मिलती है। राहु एक छाया ग्रह है, जिसका कोई भौतिक रूप नहीं है। हिन्दू शास्त्रो के अनुसार राहु ग्रह भगवान भैरव देव का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, राहु को एक पापी ग्रह माना गया है। इसके प्रभाव से जातकों को कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। हालाँकि यह जातकों को शुभ और अशुभ दोनों ही परिणाम देता है। परंतु इसके अशुभ परिणामों से बचने के लिए राहु मंत्र का विधि अनुसार जाप करना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु और केतु के कारण कुंडली में काल सर्प दोष उत्पन्न होता है। इस दोष से बचने के लिए राहु शांति के उपाय कारगर हैं। राहु यंत्र की स्थापना तथा उसकी आराधना करने से जातकों को शिक्षा, व्यवसाय, कैरियर में रही परेशानियाँ दूर होती हैं। राहु दोष के उपाय छिपे हुए शत्रुओं, गुप्त रूप से रही बाधाओं, छल- कपट, गुप्त रोगों, सामाजिक असम्मान और भेदभाव से बचाता है।

 

 

 

 

केतु ग्रह शांति, मंत्र एवं उपाय

वैदिक ज्योतिष में राहु की तरह केतु ग्रह को भी क्रूर ग्रह माना गया है। इसे तर्क, कल्पना और मानसिक गुणों आदि का कारक कहा जाता है। केतु ग्रह शांति के लिए अनेक उपाय बताये गये हैं। इनमें केतु यंत्र, केतु मंत्र, केतु जड़ी और भगवान गणेश की आराधना करना प्रमुख उपाय है। केतु हानिकारक और लाभकारी दोनों तरह के प्रभाव देता है। एक ओर जहां यह हानि और कष्ट देता है वहीं दूसरी ओर व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति के शिखर तक लेकर जाता है। यदि आप केतु के अशुभ प्रभाव से पीड़ित हैं या कुंडली में केतु की स्थिति कमजोर है, तो केतु ग्रह शांति के लिए यह उपाय अवश्य करें। इन कार्यों को करने से केतु से शुभ फल की प्राप्ति होगी।

वेश-भूषा एवं जीवन शैली से जुड़े केतु ग्रह शांति के उपाय

ग्रे, भूरा या विविध रंग का प्रयोग करें।
पुत्र, भतीजा एवं छोटे लड़कों के साथ अच्छे संबंध बनाए।
शॉवर में स्नान करें।
कुत्तों की सेवा करें।

विशेषतः सुबह किये जाने वाले केतु ग्रह के उपाय

गणेश जी की पूजा करें।
मतस्य देव की पूजा करें।
श्री गणपति अथर्वशीर्ष का जाप करें।

केतु शांति के लिये दान करें

केतु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए केतु से संबंधित वस्तुओं को बुधवार के दिन केतु के नक्षत्र (अश्विनी, मघा, मूल) में देर शाम को दान किया जाना चाहिए।

दान की जाने वाली वस्तुएँ- केला, तिल के बीज, काला कंबल, लहसुनिया रत्न एवं काले पुष्प आदि।

केतु के लिए रत्न

ज्योतिष में केतु ग्रह के लिए लहसुनिया रत्न को बताया गया है। यह रत्न केतु के बुरे प्रभावों से रक्षा करता है।

केतु यंत्र

व्यापार लाभ, शारीरिक स्वास्थ्य पारिवारिक मामले आदि के लिए केतु यंत्र के साथ माँ लक्ष्मी और गणपति की अराधना करें। केतु यंत्र को बुधवार के दिन केतु के नक्षत्र में धारण करें।

केतु के लिये जड़ी

केतु ग्रह के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए बुधवार को बुध के नक्षत्र में अश्वगंधा अथवा अस्गंध मूल धारण करें।

केतु ग्रह के लिये रुद्राक्ष

केतु ग्रह के लिये 9 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक होता है।

नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करने हेतु मंत्र:
ह्रीं हूं नमः।
ह्रीं व्यं रूं लं।।

केतु मंत्र

केतु की अशुभ दशा से बचने के लिए केतु बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः!

केतु मंत्र का 17000 बार उच्चारण करें। देश-काल-पात्र सिद्धांत के अनुसार कलयुग में इस मंत्र को 68000 बार जपने के लिए कहा गया है।

आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - कें केतवे नमः!

वैदिक ज्योतिष में केतु ग्रह शांति के उपाय को बड़ा महत्व है। दरअसल, केतु ग्रह का कोई भौतिक स्वरूप नहीं है। बल्कि यह एक छाया ग्रह है। इसके स्वभाव के कारण इसे पापी ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि केतु के कारण जातकों को सदैव परेशानी का सामना करना पड़ता है। बल्कि इसके शुभ प्रभावों से जातकों को मोक्ष भी प्राप्त हो सकता है। मिथुन राशि में यह नीच भाव में होता है और नीच भाव में होने के कारण जातकों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे जातक के जीवन में अचानक कोई बाधा जाती है, पैरों और जोड़ों में दर्द, रीड़ की हड्डी से संबंधित परेशानी आदि रहती हैं। इन सबसे बचने के लिए केतु दोष के उपाय बहुत ही कारगर हैं। केतु मंत्र का जाप करने से जातक को केतु से संबंधित बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है। वहीं केतु यंत्र की स्थापना करने से जातकों को कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

पितृ दोष

घर के प्रेत या पितर रुष्ट होने के लक्षण और उपाय

बहुत जिज्ञासा होती है। आखिर ये पितृदोष है। क्या? पितृ -दोष शांति के सरल उपाय पितृ या पितृ गण कौन हैं। आपकी जिज्ञासा को शांत करती विस्तृत प्रस्तुति।

पितृ गण हमारे पूर्वज हैं। जिनका ऋण हमारे ऊपर है। क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है। मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है। पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है। एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।

 आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है। वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं। अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं। तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है।

वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं। तो आत्मा सूर्य लोक को भेज कर स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है। लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है। जो परमात्मा में समाहित होती है  जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता  मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।

पितृ दोष क्या होता है।

 हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है।

पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं ,आपके आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।

इसके अलावा मानसिक अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना , विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते,कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए ,उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।

पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है।

1.अधोगति वाले पितरों के कारण

2.उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण

अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण,की अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं ,परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।

उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं।

इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता। पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले ये जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ?

जन्म पत्रिका और पितृ दोष जन्म पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, शनि और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है।

इनमें से भी गुरु ,शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है।

अधिकाँश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ,इसलिए विभिन्न उपायों को करने के साथ साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी ,सातमुखी और आठ मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर ले , तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता है।

पितृ दोष निवारण के लिए इन रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है।

विभिन्न ऋण और पितृ दोष

हमारे ऊपर मुख्य रूप से 5 ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित रूप से श्राप मिलता है। ये ऋण हैं। मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण।

मातृ ऋण  माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं। ,क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है। तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है।

पितृ ऋण  पिता पक्ष के लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है। और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है।

पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ?पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है ,इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विभिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि।

देव ऋण माता-पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने |इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज भी भी अपने अपने कुल देवताओं को मानते थे , लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं।

ऋषि ऋण जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए ,वंश वृद्धि की ,उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है ,उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है  इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं,इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है।

मनुष्य ऋण  माता -पिता के अतिरिक्त जिन अन्य मनुष्यों ने हमें प्यार दिया ,दुलार दिया ,हमारा ख्याल रखा ,समय समय पर मदद की गाय आदि पशुओं का दूध पिया जिन अनेक मनुष्यों ,पशुओं ,पक्षियों ने हमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद की ,उनका ऋण भी हमारे ऊपर हो गया।

लेकिन लोग आजकल गरीब ,बेबस ,लाचार लोगों की धन संपत्ति हरण करके अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं। इसी कारण देखने में आया है कि ऐसे लोगों का पूरा परिवार जीवन भर नहीं बस पाता है,वंश हीनता ,संतानों का गलत संगति में पड़ जाना,परिवार के सदस्यों का आपस में सामंजस्य न बन पाना ,परिवार कि सदस्यों का किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहना इत्यादि दोष उस परिवार में उत्पन्न हो जाते हैं।

ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है रामायण में श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है।

पितृों के रूष्‍ट होने के लक्षण

पितरों के रुष्ट होने के कुछ असामान्‍य लक्षण जो मैंने अपने निजी अनुभव के आधार एकत्रित किए है वे क्रमशः इस प्रकार हो सकते है।

खाने में से बाल निकलना

अक्सर खाना खाते समय यदि आपके भोजन में से बाल निकलता है। तो इसे नजरअंदाज न करें।

बहुत बार परिवार के किसी एक ही सदस्य के साथ होता है कि उसके खाने में से बाल निकलता है, यह बाल कहां से आया इसका कुछ पता नहीं चलता। यहां तक कि वह व्यक्ति यदि रेस्टोरेंट आदि में भी जाए तो वहां पर भी उसके ही खाने में से बाल निकलता है और परिवार के लोग उसे ही दोषी मानते हुए उसका मजाक तक उडाते है।

बदबू या दुर्गंध

कुछ लोगों की समस्या रहती है कि उनके घर से दुर्गंध आती है, यह भी नहीं पता चलता कि दुर्गंध कहां से आ रही है। कई बार इस दुर्गंध के इतने अभ्‍यस्‍त हो जाते है कि उन्हें यह दुर्गंध महसूस भी नहीं होती लेकिन बाहर के लोग उन्हें बताते हैं कि ऐसा हो रहा है अब जबकि परेशानी का स्रोत पता ना चले तो उसका इलाज कैसे संभव है।

पूर्वजों का स्वप्न में बार बार आना

मेरे एक मित्र ने बताया कि उनका अपने पिता के साथ झगड़ा हो गया है और वह झगड़ा काफी सालों तक चला पिता ने मरते समय अपने पुत्र से मिलने की इच्छा जाहिर की परंतु

पुत्र मिलने नहीं आया, पिता का स्वर्गवास हो गया हुआ। कुछ समय पश्चात मेरे मित्र मेरे पास आते हैं। और कहते हैं। कि उन्होंने अपने पिता को बिना कपड़ों के देखा है ऐसा स्‍वप्‍न पहले भी कई बार आ चुका है।

शुभ कार्य में अड़चन

कभी-कभी ऐसा होता है कि आप कोई त्यौहार मना रहे हैं या कोई उत्सव आपके घर पर हो रहा है ठीक उसी समय पर कुछ ना कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि जिससे रंग में भंग डल जाता है। ऐसी घटना घटित होती है कि खुशी का माहौल बदल जाता है। मेरे कहने का तात्‍पर्य है कि शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों की असंतुष्टि का संकेत है।

घर के किसी एक सदस्य का कुंवारा रह जाना

बहुत बार आपने अपने आसपास या फिर रिश्‍तेदारी में देखा होगा या अनुभव किया होगा कि बहुत अच्‍छा युवक है, कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी शादी नहीं हो रही है। एक लंबी उम्र निकल जाने के पश्चात भी शादी नहीं हो पाना कोई अच्‍छा संकेत नहीं है। यदि घर में पहले ही किसी कुंवारे व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है तो उपरोक्त स्थिति बनने के आसार बढ़ जाते हैं। इस समस्‍या के कारण का भी पता नहीं चलता।

मकान या प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में दिक्कत आना

आपने देखा होगा कि कि एक बहुत अच्छी प्रॉपर्टी, मकान, दुकान या जमीन का एक हिस्सा किन्ही कारणों से बिक नहीं पा रहा यदि कोई खरीदार मिलता भी है तो बात नहीं बनती। यदि कोई खरीदार मिल भी जाता है और सब कुछ हो जाता है तो अंतिम समय पर सौदा कैंसिल हो जाता है। इस तरह की स्थिति यदि लंबे समय से चली आ रही है तो यह मान लेना चाहिए कि इसके पीछे अवश्य ही कोई ऐसी कोई अतृप्‍त आत्‍मा है जिसका उस भूमि या जमीन के टुकड़े से कोई संबंध रहा हो।

संतान ना होना

मेडिकल रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य होने के बावजूद संतान सुख से वंचित है हालांकि आपके पूर्वजों का इस से संबंध होना लाजमी नहीं है परंतु ऐसा होना बहुत हद तक संभव है जो भूमि किसी निसंतान व्यक्ति से खरीदी गई हो वह भूमि अपने नए मालिक को संतानहीन बना देती है।

उपरोक्त सभी प्रकार की घटनाएं या समस्याएं आप में से बहुत से लोगों ने अनुभव की होंगी इसके निवारण के लिए लोग समय और पैसा नष्ट कर देते हैं परंतु समस्या का समाधान नहीं हो पाता। क्या पता हमारे इस लेख से ऐसे ही किसी पीड़ित व्यक्ति को कुछ प्रेरणा मिले इसलिए निवारण भी स्पष्ट कर रहा हूं।

पितृ-दोष कि शांति के उपाय 

1- सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ,ब्राह्मण को गौ -दान ,कन्या -दान,कुआं ,बावड़ी ,तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल ,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना ,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए।

2- वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र ,स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो ,शांत हो जाती है  अगर नित्य पठन संभव ना हो , तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए।

वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है।

3- भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है |मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं :

मंत्र :- "ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।

4- अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा ,घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है।

5- अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।

6- पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए "हरिवंश पुराण " का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।

7-  प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।

8- सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः " मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।

9- अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।

10- पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें अगर १०८ परिक्रमा लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा।

विशिष्ट उपाय :-

1- किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं।

2- यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी मजबूर व्यक्ति की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें।

3- पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए।

एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें। 

इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें उसे थोड़े  जल में मिलाकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों में डाल दें इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे 5 अगरबत्ती ,एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा।

4- घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है  इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है।

5- अगर पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर अथवा शिवालय में पितृ गायत्री मंत्र का सवा लाख विधि से जाप कराएं जाप के उपरांत दशांश हवन के बाद संकल्प ले की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंके उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है।

6- पितृ दोष की शांति हेतु ये उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है,वोह ये कि- किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना |(लेकिन ये सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए ,केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं )|इस से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि इसके परिणाम स्वरुप मिलने वाले पुण्य फल से पितरों को बल और तेज़ मिलता है ,जिस से वह ऊर्ध्व लोकों की ओरगति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होते हैं|

7- अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए "गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र " का पाठ करना चाहिए।

8- पितृ दोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय :- इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण (N -W )में नित्य सरसों का तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्य लगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है ,दीपक कम से कम 10 मिनट नित्य जलना आवश्यक है।

इन उपायों के अतिरिक्त वर्ष की प्रत्येक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को आंध्र होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में साड़ी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ कि जद में रख कर आ जाएँ,पीछे मुड़कर न देखें। नित्य प्रति घर में देसी कपूर जाया करें। ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं। और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन किसी भी प्रयोग की सफलता आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा के ऊपर निर्भर करती है।

पितृदोष निवारण के लिए करें विशेष उपाय (नारायणबलि-नागबलि)

अक्सर हम देखते हैं कि कई लोगों के जीवन में परेशानियां समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती। वे चाहे जितना भी समय और धन खर्च कर लें लेकिन काम सफल नहीं होता। ऐसे लोगों की कुंडली में निश्चित रूप से पितृदोष होता है।

यह दोषी पीढ़ी दर पीढ़ी कष्ट पहुंचाता रहता है। जब तक कि इसका विधि-विधानपूर्वक निवारण न किया जाए। आने वाली पीढ़ीयों को भी कष्ट देता है। इस दोष के निवारण के लिए कुछ विशेष दिन और समय तय हैं जिनमें इसका पूर्ण निवारण होता है। श्राद्ध पक्ष यही अवसर है जब पितृदोष से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दोष के निवारण के लिए शास्त्रों में नारायणबलि का विधान बताया गया है। इसी तरह नागबलि भी होती है।

क्या है नारायणबलि और नागबलि

नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।

इन कारणों से की जाती है नारायणबलि पूजा

जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए।प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है।परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो। आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है।

क्यों की जाती है यह पूजा...?

शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है। यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है। यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं।संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है।यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।

कब नहीं की जा सकती है नारायणबलि-नागबलि

नारायणबलि गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है।धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है।

पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय

नारायणबलि- नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए। यह कर्म गंगा तट अथवा अन्य किसी नदी सरोवर के किनारे में भी संपन्न कराया जाता है। संपूर्ण पूजा तीन दिनों की होती है।

 पितृ गायत्री मंत्र :- यह मंत्र के जाप से दूर होगा पितृ दोष:-

पितृ पक्ष का पावन पर्व प्रारम्भ होने वाला है। बुधवार दो सितंबर से, सूर्योदयनी पूर्णिमा... पूर्णिमा से अमावस्या तक यह पर्व सभी के लिए एक नई आशा की किरण लेकर आता है। जब हम अपने सभी बढ़े - बुजुर्गों को याद कर उनसे विशेष कृपा प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते है। पितृ आशीर्वाद से वो सब प्राप्त होता है जो हमें चाहिए, वह सब जिनके बिना हमारा जीवन अधूरा होता है। 

पितृ हमारे जन्म का कारण होते है और हमें समय समय पर गलत मार्ग से हटा कर सही दिशा देते है। इसलिए जीवन को सही दिशा में बनाये रखने के लिए समय-समय पर हमें अपने पितरों के लिए पूजा-पाठ व दान धर्म जरुर करना चाहिए  पितृ दोष को शान्त करने के लिए और पितरों का आर्शिवाद प्राप्त करने के लिए पितृ गायत्री मंत्र सबसे श्रेष्ठ है। पितृ पक्ष में इस मंत्र का जाप करने से रुष्ट पितृ तृप्त होकर अपनी कृपा मंत्र जाप करने या कराने वाले के ऊपर जरुर करते है।

पितृ गायत्री मंत्र:-

ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च.!

नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः

यह मंत्र का जाप पितृ पक्ष और अमावस्या के दिन करने से तत्काल पितृ शान्ति होती है। इस मंत्र का जाप करते समय भगवान विष्णु के चरणों का ध्यान करना चाहिए। 

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

मासिक राशिफल

चन्द्रराशिः मेष का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, है।उनकी राशि मेष होती है। इस राशि का स्वरूप मेंढा जैसा होता है। राशि का स्वामी मंगल है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार, यह महीना मेष राशि के जातकों के लिए शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के परिणाम लेकर आएगा। आपकी आमदनी अच्छी होगी लेकिन खर्चे भी साथ-साथ बढ़ेंगे इसलिए आपको आर्थिक तौर पर थोड़ी चिंताएं परेशान करेंगी। स्वास्थ्य में गिरावट आपकी परेशानी की सबसे बड़ी वजह बन सकती है। आपकी मानसिक क्षमता बढ़ेगी। बड़े-बड़े निर्णय भली प्रकार से ले पाएंगे। व्यापार में सफलता मिलेगी। नौकरी में मेहनत का लाभ मिलेगा। किसी से कहासुनी हो सकती है। प्रेम संबंधों के लिए समय तनावपूर्ण रहेगा जबकि वैवाहिक जीवन में प्रेम भरे पलों की प्राप्ति होगी और जीवनसाथी से निकटता का एहसास होगा। विदेश जाने में कामयाब हो सकते है। खर्च अधिक होगा जो पहले से ही विदेश में है।  उन्हें वहां पर अच्छी सफलता प्राप्त होगी। पारिवारिक जीवन सुकून से भरा रहेगा। हालांकि किसी से कहासुनी भी हो सकती है।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना अनुकूल रहने की संभावना है। दशम भाव के स्वामी शनि महाराज एकादश भाव में विराजमान रहकर आपको अपने कार्य क्षेत्र में मजबूत स्थिति प्रदान करेंगे। आप मन‌ लगा‌कर मेहनत करेंगे और मेहनत करने से पीछे नहीं हटेंगे। इसका आपको यह लाभ होगा कि नौकरी में आप की स्थिति प्रबल होगी। आप जिस काम को भी करेंगे, पूरी मेहनत और ईमानदारी से अंजाम तक पहुंचाएंगे। छठे भाव के स्वामी बुध महाराज आप के प्रथम भाव में महीने की शुरुआत में रहेंगे और वहां से वक्री होकर 9 तारीख को मीन राशि में द्वादश भाव में चले जाएंगे जिससे आपके कुछ विरोधी आपको परेशान कर सकते है।  लेकिन आप अपनी मेहनत से अपनी जगह बनाने में सफल रहेंगे। आपको अपने कार्यक्षेत्र में अपने वरिष्ठ अधिकारियों से अच्छा व्यवहार करना चाहिए क्योंकि उनसे कहासुनी होने की संभावना बन रही है। और यदि ऐसा हो जाता है। तो इसका नकारात्मक प्रभाव आपके काम को प्रभावित करेगा और कार्यक्षेत्र में आपको समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। व्यापार करने वाले जातकों को विदेशी संपर्कों का लाभ मिलेगा जिससे व्यापार में उन्नति होगी और नए-नए अवसर आपके सामने आएँगे, जिन्हें अपनाकर आप अपने व्यापार को एक सही दिशा में उन्नति प्रदान कर सकते है।यदि व्यापार में विस्तार करने की इच्छा हो तो देव गुरु बृहस्पति की कृपा मिल रही है। उसके फल स्वरूप आप अपने व्यापार में विस्तार करने में कामयाब हो सकते है।

आर्थिक

यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो यह महीना आर्थिक तौर पर मिश्रित परिणाम देने वाला साबित होगा। एक तरफ तो एकादश भाव में बैठकर मंगल और शनि आपके लिए आमदनी के प्रबल द्वार खोलेंगे और एक से ज्यादा माध्यमों से आपके पास धन आने के योग बनेंगे जो आपकी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाएंगे। देव गुरु बृहस्पति और बुध महाराज की कृपा से भी आर्थिक स्थिति प्रबल होगी और धन प्रचुर मात्रा में आएगा लेकिन दूसरी तरफ सूर्य, राहु और शुक्र द्वादश भाव में बैठकर अप्रत्याशित खर्चों के योग भी बना रहे है। जिससे आपके खर्चे दिन पर दिन बढ़ते जाएंगे। यह स्थिति महीने के उत्तरार्ध में ज्यादा बिगड़ सकती है। जब मंगल भी द्वादश भाव में चले जाएंगे और खर्च बढ़ने लगेंगे। किसी के स्वास्थ्य पर भी आपको अच्छा खर्च करना पड़ सकता है। हालांकि महीने के उत्तरार्ध में आपको पूर्व में किए गए शेयर बाजार के निवेश से बड़ा लाभ मिल सकता है।

स्वास्थ्य

यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कुछ कमज़ोर रहने की संभावना है। राशि स्वामी मंगल एकादश भाव में बैठकर अच्छे तो है। लेकिन शनि के साथ स्थित होने के कारण कुछ कमज़ोर भी है।इससे स्वास्थ्य पीड़ित हो सकता है। और कमर में दर्द या पेट में समस्या हो सकती है। द्वादश भाव में शुक्र, सूर्य और राहु के एक साथ होने के कारण नेत्र पीड़ा परेशान कर सकती है। मंगल के भी द्वादश भाव में जाने से दुर्घटना या किसी प्रकार की शल्य चिकित्सा की स्थिति बन सकती है। इसलिए अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखें। बराबर मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें जिससे शरीर में पानी की कमी हो और आप स्वस्थ रह सकें।

प्रेम वैवाहिक

यदि आपके प्रेम जीवन की बात करें तो यह महीना कुछ कमज़ोर नज़र रहा है। एक तरफ तो शुक्र महाराज राहु के साथ द्वादश भाव में स्थित होकर आपके अंतरंग संबंधों में बढ़ोतरी दिखाते है।  और देव गुरु बृहस्पति पंचम भाव और सप्तम भाव पर दृष्टि डालकर आपके प्रेम जीवन को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे लेकिन दूसरी ओर विपरीत प्रकृति के ग्रह मंगल और शनि एकादश भाव में बैठकर महीने की शुरुआत से ही पंचम भाव को पीड़ित करेंगे जिससे हो सकता है। कि आप और आपके प्रियतम के बीच सब कुछ सामान्य हो। अनेक प्रकार की कहासुनी, लड़ाई झगड़े की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। हालांकि 23 अप्रैल को जब मीन राशि में मंगल गोचर करके आपके द्वादश भाव में चले जाएंगे तो इन स्थितियों में कुछ कमी आएगी और आप अपने प्रेम को एक सही दिशा देने में कामयाब रहेंगे। आप चाहें तो अपने-अपने विवाह की बात भी कर सकते है।अविवाहित जातकों की बात आगे बढ़ सकती है। और उनका विवाह हो सकता है। जबकि पहले से ही विवाहित जातकों की बात करें तो आपके लिए यह महीना शुरुआत में बहुत अच्छा रहेगा और बुध और बृहस्पति देव आपके सप्तम भाव पर अपनी पूर्ण दृष्टि डालकर आपके वैवाहिक जीवन की रक्षा करेंगे। जीवन साथी से आपसी प्रेम बढ़ेगा और आपसी सामंजस्य भी बहुत बेहतर रहेगा लेकिन 23 तारीख से मंगल के आपके सप्तम भाव पर दृष्टि डालने और सूर्य के 13 तारीख से प्रथम भाव से सप्तम भाव पर दृष्टि डालने के कारण आप और आपके जीवनसाथी के व्यवहार में कुछ बदलाव सकता है। जो आपके भी झगड़े की वजह बन सकता है। समय रहते इस स्थिति को संभालने से आप अपने वैवाहिक जीवन को आराम से व्यतीत कर सकते है।

पारिवारिक

यह महीना पारिवारिक तौर पर वैसे तो शांत दिखाई देता है। लेकिन मंगल महाराज महीने के पूर्वार्ध में एकादश भाव से द्वितीय भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे जिससे कुटुंब के मामलों में कुछ कड़वी बातें और कहासुनी हो सकती है। हालांकि द्वितीय भाव के स्वामी शुक्र महाराज महीने की शुरुआत में द्वादश भाव में राहु और सूर्य के साथ पीड़ित अवस्था में रहेंगे लेकिन 24 अप्रैल को आपके प्रथम भाव में गोचर करेंगे जिससे परिवार के लोगों का सहयोग आपको प्राप्त होने लगेगा और परिवार में थोड़ी समरसता लौटेगी। मंगल भी 23 तारीख को द्वादश भाव में चले जाएंगे, जिससे आपके परिवार में चल रही समस्याएं कम होंगी। इसके अतिरिक्त भाई बहनों का सहयोग आपको महीने भर प्राप्त होता रहेगा। आर्थिक, शारीरिक और मानसिक हर तरीके से वे आपकी मदद करेंगे और एक अच्छे भाई बहन होने का फर्ज निभाएंगे। माता पिता खुश रहेंगे जबकि पिताजी को महीने की शुरुआत में कुछ शारीरिक समस्याएं परेशान कर सकती है। इसलिए उन्हें तवज्जों दें और ज़रूरत पड़ने पर चिकित्सक से संपर्क करें।

सरल उपाय

मंगल

1 लाल कपड़े में सौंफ बाँधकर अपने शयनकक्ष में रखनी चाहिए।
2 ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाये तो उसे घर में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए।
3 बन्धुजनों को मिष्ठान्न का सेवन कराने से भी मंगल शुभ बनता है।
4 लाल वस्त्र लिकर उसमें दो मुठ्ठी मसूर की दाल बाँधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिय।
5 मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिन्दूर लिकर उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए।
6 बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।
7 अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
8 मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, मंगल के नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते है।

 

चन्द्रराशिः वृष का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर इस राशि के नाम अक्षर , , , , वा, वी, वू, वे, वो है। राशि स्वरूप बैल जैसा होता है।वृषभ राशि का स्वामी शुक्र होता है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार, यह महीना आपके लिए आर्थिक दृष्टिकोण से अनुकूल महीना रहने वाला है। आपके पास धन प्रबल और प्रचुर मात्रा में आएगा जिससे आप अपने सभी कामों को अंजाम तक पहुंचा पाएंगे। कोई भी कार्य, जो आपने कभी मन में सोचा था, वह इस दौरान पूरा हो सकता है। मन की इच्छा पूरी होने के योग बनेंगे। शिक्षा में व्यवधान भी उत्पन्न हो सकते है। आपका मन एक से ज्यादा चीजों की ओर आकर्षित होगा और आप बहुत कुछ करना चाहेंगे। बहुत कुछ खरीदना चाहेंगे और बहुत जगहों पर घूमने जाना पसंद करेंगे। यात्राओं से आपको लाभ होगा। कार्यक्षेत्र में किसी से कहासुनी करने से बचें क्योंकि इससे आपका करियर प्रभावित हो सकता है। और नौकरी में समस्या सकती है। व्यापार करने वाले जातकों को लाभ के योग भी बनेंगे। विदेश यात्रा की स्थिति भी बन सकती है। या आप एक शहर से दूसरे शहर भी यात्रा कर सकते है। स्वास्थ्य में गिरावट महीने के उत्तरार्ध में देखने को मिल सकती है। आपके मन में कुछ नया और अज्ञात जानने की इच्छा उत्पन्न होगी जो आपको एक अच्छा और जिज्ञासु विद्यार्थी बनाएगी और यदि आपकी शंकाओं का समाधान हो जाए तो आप अपनी शिक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे। पारिवारिक जीवन उतार-चढ़ाव के बीच गुजरेगा। भाग्य का साथ मिलने से कार्यक्षेत्र में स्थिति आपके पक्ष में रहेगी।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना वैसे तो अनुकूल रहेगा क्योंकि नवम और दशम भाव के स्वामी शनि महाराज दशम भाव में उपस्थित होकर प्रबल राजयोग निर्मित कर रहे है। और आपको खूब मेहनती बना रहे है। आपकी मेहनत सफल होगी। आपको कार्यक्षेत्र में समझा और माना जाएगा लेकिन महीने की शुरुआत में द्वादश और सप्तम भाव के स्वामी मंगल महाराज भी दशम भाव में शनिदेव के साथ युति करते रहेंगे जिसके परिणाम स्वरूप कार्यक्षेत्र में किसी से कहासुनी होने के प्रबल योग बनेंगे। यह झगड़ा आपके करियर पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। और आपकी नौकरी में समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। इसलिए आपको अपनी सहनशीलता को बढ़ाना होगा और अपने व्यवहार पर ध्यान देना होगा, नहीं तो स्थितियां आपके हाथ से निकल सकती है। छठे भाव के स्वामी शुक्र महाराज एकादश भाव में स्थित होने के कारण आपको अपनी नौकरी में अच्छी पदोन्नति भी मिल सकती है। बस आप अपना व्यवहार अच्छा रखें। इस महीने आपकी तनख्वाह में वृद्धि के संकेत मिल रहे है।  इसलिए अभी आप का तनख्वाह वृद्धि का समय है। तो आप मान कर चलिए कि आपको सफलता मिल सकती है। और अच्छी तनख्वाह प्राप्त हो सकती है। व्यापार करने वाले जातकों के लिए यह महीना शुरुआत में कुछ तनावपूर्ण रहेगा। मंगल महाराज के दशम भाव में होने से शनि के साथ युति करने से व्यापार पर कुछ गर्म मिजाजी हावी होगी और आप तथा आपके व्यवसायिक साझेदार के बीच कुछ बातों को लेकर हितों का टकराव हो सकता है। लेकिन मंगल के 23 तारीख को एकादश भाव में जाने से व्यापार लाभ मिलने लगेगा। आपके व्यापार की गति तेजी से बढ़ेगी और आप उन्नति करेंगे। व्यापार में अपार सफलता मिलने से आप गदगद हो उठेंगे और आपके आसपास के लोगों को भी आप पर विश्वास होने लगेगा बाजार में आप की छवि मजबूत होगी जिसका आपके व्यापार में लाभ होगा।

आर्थिक

यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो महीने की शुरुआत में ही राहु, सूर्य और शुक्र आपके एकादश भाव में रहकर आपकी आमदनी को अच्छे से बढ़ाएंगे। आप यदि एक से ज्यादा काम करते है। तो सभी कामों से आपको धन प्राप्ति के योग बनेंगे और आपकी आय में बढ़ोतरी होगी। हालांकि दूसरी तरफ देखें तो दूसरे भाव के स्वामी बुध महाराज द्वादश भाव में बृहस्पति के साथ बैठे है। जिससे कुछ खर्चे भी होंगे और आप अपने संचित धन को भी किसी किसी काम में लगा कर उसे खर्च कर डालेंगे। उसके बाद मंगल के एकादश भाव में 23 तारीख को पहुंच जाने से और सूर्य के द्वादश भाव में 13 तारीख को पहुंच जाने से खर्च और आमदनी का यह सिलसिला लगातार जारी रहेगा। आपको अपनी आय और व्यय के बीच सामंजस्य बैठना पड़ेगा, नहीं तो आपकी आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है।

स्वास्थ्य

यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से मध्यम रहने वाला है। मासिक राशिफल 2024 बताता है। कि राहु, सूर्य, शुक्र और केतु तथा मंगल के पंचम भाव पर प्रभाव के कारण आमाशय में समस्या हो सकती है। पाचन तंत्र में गड़बड़ी या फिर एसिडिटी जैसी समस्याएं आपको परेशान कर सकती है।आपको पेट में अल्सर की समस्या का सामना भी करना पड़ सकता है। इसलिए आप यदि किसी शारीरिक समस्या को हल्का सा भी महसूस करें तो बिना समय गवाएं उसे सही डॉक्टर से दिखा लें ताकि बाद में आपको कोई परेशानी झेलनी पड़े, अन्यथा यह महीना आपको शारीरिक तौर पर परेशान कर सकता है। आपको थकान और कमज़ोरी का भी एहसास होगा जो आपकी दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। इसलिए काम के बीच में आराम के लिए भी समय अवश्य निकालें।

प्रेम वैवाहिक

यदि आपके प्रेम जीवन की बात करें तो यह महीना बहुत ही ज्यादा मानसिक उथल-पुथल देने वाला है। केतु महाराज पंचम भाव में रहेंगे और उन पर शुक्र, सूर्य और राहु की स्थिति तथा मंगल का प्रभाव रहेगा। इस कारण से आपके रिश्ते में बीच-बीच में रोमांस के छींटे भी पड़ेंगे लेकिन अधिकांश समय कहासुनी और आग उगलने जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। आप और आपके प्रियतम एक दूसरे को समय नहीं दे पाएंगे और एक दूसरे पर मिथ्या आरोप प्रत्यारोप लगा सकते है। जिससे आपके रिश्ते को बहुत पीड़ा होगी। आपको इन सब से बचना है। तो आपको अपने प्रियतम से अपने संबंध में विशेष रूप से बात करनी होगी ताकि मामलों को सुलझा सकें। यदि आप इस महीने को शांतिपूर्वक बिता लेते है।  तो महीने का उत्तरार्ध कुछ हद तक सांत्वना देने वाला रहेगा। अविवाहित जातकों की बात करें तो वैवाहिक संबंधों में उतार-चढ़ाव रहेगा। शनि की दृष्टि सप्तम भाव पर होने से वैवाहिक संबंधों में तनाव रह सकता है। आप और आपके जीवनसाथी के बीच काम को लेकर कहासुनी हो सकती है। आपके जीवन साथी भी कामकाजी हो सकते है। और आशंका है। कि‌ इस कारण वह आपको और आपके परिवार को समय दे पा रहे हों। उनकी समस्या को समझने की कोशिश करें अन्यथा आपका झगड़ा उनसे हो सकता है। जो आप दोनों के लिए ही हितकारी नहीं होगा। महीने के उत्तरार्ध में 23 तारीख को मंगल के एकादश भाव में चले जाने से स्थिति में थोड़ा बदलाव होगा और आपके बीच समरसता बढ़ेगी।

पारिवारिक

यह महीना पारिवारिक तौर पर उथल-पुथल से भरा प्रतीत हो रहा है। द्वितीय भाव के स्वामी बुध महाराज द्वादश भाव में बृहस्पति देव के साथ स्थित रहेंगे और उन पर दशम भाव में बैठे शनि देव की दृष्टि होगी तथा शनि और मंगल एक साथ आपके दशम भाव में बैठकर चतुर्थ भाव को देखेंगे। इससे पारिवारिक जीवन में कुछ अशांति का माहौल हो सकता है। बात-बात में लोगों के बीच सामंजस्य का अभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देगा। एक दूसरे की बातों को सुनने और समझने में समस्या होगी। इससे वाद विवाद बढ़ सकते है। आपके पिताजी और माताजी को स्वास्थ्य समस्याएं भी इस युति के कारण झेलनी पड़ सकती है।  इसलिए आपको समय रहते ही उनके इलाज की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वह किसी बड़ी समस्या के चक्कर में फंस जाएं। जहां तक आपके भाई बहनों की बात है। तो बड़े भाई-बहनों से अच्छा सहयोग भी मिलेगा लेकिन वे अपनी बात मनवाना भी चाहेंगे। छोटे भाई बहन आपके लिए सहयोगात्मक रवैया अपनाएंगे।

सरल उपाय

शुक्र

1 काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।
2 शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
3 किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।
4 किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय 10 वर्ष से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए।
5 अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।
6 किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।
7 शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।
8 शुक्र के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शुक्रवार का दिन, शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में अधिक शुभ होते है।

 

चन्द्रराशिः मिथुन का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर मिथुन राशि नाम के आरंभ के अक्षर '', '' और '' होते है। मिथुन राशि के चिन्ह में जुड़वां दिखाए गए है। जिसका मतलब  है। कि इस राशि वाले लोग दोहरे स्वभाव की होते है। ये उनके लिए कभी कभी सकारात्मक रूप से काम करता है। तो कभी नकारात्मक प्रभाव भी डालता है।मिथुन राशि का स्वामी बुध होता है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार, यह महीना आपके लिए मध्यम रूप से फलदायक रहनेवाला है। आपके दशम भाव में राहु, सूर्य, शुक्र उपस्थित रहेंगे। यहां राहु और सूर्य ग्रहण दोष निर्मित करेंगे जो आपके करियर के लिए ज्यादा अनुकूल स्थिति नहीं है। इसलिए आपको सावधानी रखनी होगी अन्यथा कार्य क्षेत्र में मुसीबतें बढ़ सकती है।देव गुरु बृहस्पति वक्री बुध महाराज के साथ आपके एकादश भाव में रहकर आमदनी को बढ़ाने में मुख्य योगदान देंगे लेकिन 9 अप्रैल को बुध महाराज वक्री अवस्था में आपके दशम भाव में जाएंगे जिससे कार्य क्षेत्र की मुश्किलें और पारिवारिक जीवन में असंतोष बढ़ सकता है। पारिवारिक सदस्यों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ने की संभावना है। आपको किसी से भी कहासुनी करने या झगड़ा करने से बचना चाहिए क्योंकि हाथापाई की नौबत सकती है। इससे बचने के लिए खुद को शांत रखें और वाद-विवाद को बढ़ने से रोकें। वैवाहिक जीवन के लिए यह महीना बढ़िया रहने वाला है। और यदि आपके प्रेम संबंधों की बात करें तो आपको उनमें मिले-जुले परिणामों की प्राप्ति होगी। आपके बीच प्रेम की भावना तो रहेगी लेकिन बाहरी तौर पर आप एक दूसरे को समझ पाने में कुछ परेशानियां महसूस करेंगे। यदि आप विदेश जाने का सपना पाले है।  तो आपको थोड़ी सी प्रतीक्षा और करनी पड़ सकती है। विद्यार्थियों के लिए महीने की शुरुआत अनुकूल रहेगी। बड़े भाई बहनों का सहयोग मिलने से आपके कार्यों में सफलता मिलेगी और आप फूले नहीं समाएंगे। स्वास्थ्य को लेकर कुछ समस्याएं सामने सकती है।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना उतार-चढ़ाव से भरा रहने वाला हो सकता है। महीने की शुरुआत में राहु और सूर्य निकटतम अंशों में होंगे जिससे राहु-सूर्य ग्रहण दोष बनेगा। इसके साथ ही शुक्र भी वहीं पर विराजमान रहेंगे और 9 अप्रैल को वक्री अवस्था में बुध महाराज भी और उसके बाद 23 अप्रैल को मंगल महाराज भी दशम भाव में जाएंगे। इन ग्रह स्थितियों के अनुसार आपको अपने कार्य क्षेत्र में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। हो सकता है। कि आपके काम को तवज्जों कम मिले और आपको हीन भावना का शिकार होना पड़े लेकिन आपको हिम्मत नहीं हारनी है। और अपने काम पर फोकस बनाए रखना है। क्योंकि उसी के दम पर आप आगे बढ़ पाएंगे। हालांकि इस दौरान एक प्रसन्नता की बात यह होगी कि आप के वरिष्ठ अधिकारी आपके लिए अनुकूल बने रहेंगे, जिसकी बदौलत आपको कार्यक्षेत्र में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी अपने आप को बेहतर बनाने में सफलता मिलेगी और चुनौतियों से बाहर निकलने में आप सफल हो पाएंगे। छठे भाव के स्वामी मंगल महाराज के नवम भाव में होने से कठिन संघर्ष के बाद आपको अच्छी सफलता मिल सकती है। जहां तक व्यापार करने वाले जातकों का सवाल है। तो आपको महीने की शुरुआत से ही अपने व्यापार में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद करनी चाहिए। आप का प्रदर्शन दिन प्रतिदिन सुधरेगा जिससे आपके व्यापार की गतिशीलता भी बढ़ेगी और व्यापार में उन्नति के योग बनेंगे। आपको कुछ महत्वपूर्ण रसूखदार और उम्रदराज लोगों का सहयोग मिल सकता है। जो आपके व्यापार के लिए एक बहुत बड़ी संपदा बनेंगे और आपके व्यापार को आगे बढ़ाने में आपकी मदद करेंगे। उनके साथ आपके संबंध मधुर रहेंगे और आप अपने व्यापार में उन्नति होती हुई महसूस करेंगे।

आर्थिक

मासिक राशिफल 2024 भविष्यवाणी करता है। कि यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो महीने की शुरुआत में बृहस्पति और बुध एकादश भाव में रहेंगे और नवम भाव में बैठे शनि महाराज की दृष्टि भी आपके एकादश भाव पर रहेगी जिसके परिणामस्वरूप आपकी आमदनी में अच्छी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। देव गुरु बृहस्पति तो पूरे महीने इसी भाव में बने रहेंगे जिससे आपकी आर्थिक स्थिति में सुंदर इजाफा होने की संभावना है। हालांकि ग्रहों के प्रभाव के कारण कार्यक्षेत्र में आपको कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जिससे आपकी आमदनी प्रभावित हो सकती है। लेकिन आप यदि प्रयास करेंगे तो अपने काम से अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते है। व्यापार में प्रबल लाभ के योग बनेंगे। महीने के उत्तरार्ध में सरकारी क्षेत्र से प्रबल लाभ प्राप्त हो सकता है।

स्वास्थ्य

यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से मिश्रित परिणाम देने वाला साबित होगा। नवम भाव में मंगल और शनि के एक साथ विराजमान होने, दशम भाव में राहु, सूर्य और शुक्र की उपस्थिति होने के कारण शारीरिक समस्याएं आपको परेशान कर सकती है।आपको जंघाओं में या पिंडलियों में दर्द या किसी प्रकार की चोट लगने की संभावना बन सकती है। कमर में दर्द भी आपको परेशान कर सकता है। इसलिए काम के बीच में कुछ समय आराम के लिए भी निकालें जिससे शारीरिक थकान से बचा जा सके और आपका स्वास्थ्य उत्तम रहे। हालांकि महीने के उत्तरार्ध में इसमें कुछ हद तक आपको सफलता भी मिल सकती है। लेकिन 23 अप्रैल से महीने के अंत तक आपको अपने रक्तचाप का भी ध्यान रखना चाहिए जो कि अनियमित होने की संभावना है। स्वास्थ्य पर नजर बनाकर रखेंगे तो अच्छा स्वास्थ्य बना पाएंगे क्योंकि सावधानी में ही बचाव है।

प्रेम वैवाहिक

यदि आप किसी प्रेम संबंध में है। तो महीने की शुरुआत बहुत अच्छी रहेगी। बुध और बृहस्पति पंचम भाव को देखेंगे जिससे आप अपनी संप्रेषण कला का पूरा लाभ उठाएंगे और अपने दिल को अपने प्रियतम के सामने खोल कर रख देंगे। अपनी हर भावना को उनके साथ साझा करेंगे जिससे उन पर बहुत ही ज्यादा अनुकूल प्रभाव पड़ेगा और वे दिल से आपको प्यार करने लगेंगे लेकिन 23 अप्रैल से मंगल के दशम में आकर पंचम भाव पर दृष्टि डालने से प्रेम संबंधों में कुछ टकराव की स्थिति भी बन सकती है। आप दोनों के बीच सब कुछ सही होने के बावजूद उग्रता बढ़ने और बार-बार लड़ाई होने की नौबत सकती है। इसलिए थोड़ा धैर्य रखें और अपने रिश्ते को सुचारू रूप से चलाने के लिए कई बातों को नज़रअंदाज़ करना सीखें। इसी से आप इन समस्याओं से बच पाएंगे। यदि विवाहित जातकों की बात करें तो आपके लिए यह महीना बढ़िया रहेगा। महीने की शुरुआत में ही आपके जीवन साथी को कोई बढ़िया लाभ मिल सकता है। और वह आपके काम में सकता है। यदि आप उनके नाम से या उनके साथ मिलकर कोई व्यवसाय करते है। तो यह महीना आपको और भी अधिक लाभ प्रदान कर सकता है। आपके सामाजिक दायरे में बढ़ोतरी होगी और आपके जीवन साथी आपका सहयोग करते नजर आएंगे। इससे आप दोनों के बीच का रिश्ता बहुत ज्यादा परिपक्व होगा और आप अपनी जिम्मेदारियों को भी भली प्रकार निभाएंगे।

पारिवारिक

यह महीना पारिवारिक तौर पर उथल-पुथल से भरा रहने वाला है। दशम भाव में राहु, सूर्य, शुक्र और चतुर्थ भाव में केतु की उपस्थिति होने के कारण और 9 तारीख से वक्री बुध के भी दशम में आकर सभी ग्रहों के चतुर्थ को देखने के कारण पारिवारिक जीवन में तनाव अपने चरम पर हो सकता है। आपके पिताजी को स्वास्थ्य समस्याएं बार-बार परेशान कर सकती है।  और उसके लिए आप भी चिंतित होंगे। ऐसा भी हो सकता है। कि उन्हें अस्पताल भी लेकर जाना पड़े इसलिए अपनी तरफ से सावधानी रखें और उनके स्वास्थ्य पर नजर बनाए रखें। 9 अप्रैल को वक्री बुध के भी दशम भाव में आकर चतुर्थ को देखने से पारिवारिक जुबानी जंग बढ़ने की संभावनाएं बन‌ रही‌ है। आपसी विचारों में मतभेद के कारण परिवार में जुबानी जंग हो सकती है। एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास हो सकता है। 23 अप्रैल को मंगल के भी दशम भाव में जाने से यह स्थिति और विकट हो सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि कुछ समय के लिए सबसे नियंत्रण में रहकर बात की जाए अथवा कुछ समय के लिए घर से दूर जाकर कुछ समय बिताया जाए ताकि मानसिक शांति प्राप्त हो सके। भाई-बहनों का सहयोगात्मक रवैया जब महीने के उत्तरार्ध में सूर्य देव जी 13 तारीख को मेष राशि में चले जाएंगे, तब आपको दिखाई देगा और उनकी सहायता से आपको अच्छे आर्थिक लाभ देखने को मिलेंगे।

सरल उपाय

बुध

1 अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए।
2 बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
3 बुधवार के दिन हरे रंग की चूड़ियाँ हिजड़े को दान करनी चाहिए।
4 हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।
5 बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
6 घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।
7 अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए।
8 फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
9 तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
10 बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते।

 

चन्द्रराशिः कर्क का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर कर्क राशि के लोग कल्पनाशील होते है। अक्षर ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो है।वे कर्क राशि के होते है। कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा होता है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार, यह महीना कर्क राशि के जातकों के लिए कुछ चुनौतीपूर्ण रहने की संभावना है। आपको अपनी विद्वता का परिचय देते हुए इन चुनौतियों से बाहर निकलने का रास्ता खोजना होगा और आप आसानी से इन से बाहर निकल भी जाएंगे लेकिन महीने की शुरुआत आपको इनकी वजह से मानसिक तनाव और परेशानी दे सकती है। धन का व्यर्थ खर्च होना और शारीरिक समस्याएं आपको परेशान कर सकती है।करियर को लेकर आप अनिश्चितता के माहौल में रहेंगे लेकिन शीघ्र ही इससे बाहर निकलने में भी कामयाब हो सकते है।आप विदेश जाने में सफलता प्राप्त कर सकते है। और इस‌ चक्कर में आपका बहुत ज्यादा धन भी खर्च हो सकता है। कार्य क्षेत्र में स्थितियां आपके पक्ष में रहेंगी लेकिन इस दौरान आपके संबंध आपके पिताजी से बिगड़ सकते है। और आपको कुछ बहुत ही बड़े महत्वपूर्ण निर्णय लेने से बचना चाहिए। भाग्य स्थान के स्वामी देव गुरु बृहस्पति के कर्म स्थान में विराजमान होने से बनने वाले राजयोग के कारण आपको करियर में शानदार परिणाम मिलेंगे। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी आप अपने करियर में बेहतरीन प्रदर्शन कर पाएंगे जिससे माहौल आपके पक्ष में बना रहेगा। आप लोकप्रिय बनेंगे। समाज में आपको इज्जत भरी नज़रों से देखा जाएगा और आपकी आमदनी में लगातार वृद्धि होने के योग बनेंगे। इससे आपकी बहुत सारी समस्याएं सुलझ जाएंगी। वैवाहिक जीवन में तनाव बढ़ सकता है। जीवन साथी को स्वास्थ्य समस्याएं पीड़ित कर सकती है। अथवा आपके ससुराल में किसी की तबीयत बिगड़ सकती है। प्रेम जीवन में कुछ कठिनाइयां सकती है।  और आपके प्रियतम से आपके संबंध बिगड़ सकते है। इसलिए सावधानी रखें। पारिवारिक माहौल अच्छा रहने की संभावना है।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना शानदार रहने की संभावना है। देव गुरु बृहस्पति बुध के साथ आपके दशम भाव में महीने की शुरुआत में विराजमान रहकर आपको एक स्पष्टवादी, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के तौर पर स्थापित करेंगे। इससे कार्यक्षेत्र में आपकी स्थितियां बहुत अनुकूल रहेंगी। आप अपने अनुभव का पूरा फायदा उठाएंगे और अपनी मेहनत और अपने ज्ञान तथा बुद्धि के बल पर अपने कार्य क्षेत्र में अपनी धाक जमाने में कामयाब रहेंगे। आपका काम बहुत बढ़िया रहेगा। उसमें किसी भी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं आने से आपका हौसला भी बढ़ेगा और आप के वरिष्ठ अधिकारी भी आपसे बहुत ज्यादा प्रसन्न रहेंगे। इस महीने आपको कोई अच्छा तनख्वाह वृद्धि का समाचार भी सुनने को मिल सकता है। व्यापार करने वाले जातकों के लिए यह महीना मध्यम रहेगा। आपको बहुत सोच समझकर व्यवसायिक निवेश करना चाहिए क्योंकि उसमें कुछ समस्या सकती है। आप और आपके व्यवसायिक साझेदार के मध्य संबंध बिगड़ सकते है। इस बात का भी आपको ध्यान रखना होगा क्योंकि ऐसा करना आपके व्यापार की गति को शिथिल कर सकता है। लेकिन नौकरी करने वाले लोगों के लिए यह महीना खुशियां लेकर आने वाला है। जबकि व्यापार करने वाले जातकों को चुनौतियों के साथ आगे बढ़ने में धीरे-धीरे सफलता मिल पाएगी और वह अपना मुकाम बना पाएंगे।

आर्थिक

यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो आर्थिक तौर पर यह महीना उतार-चढ़ाव से भरा हो सकता है। भाग्य स्थान कमज़ोर होने के कारण आप को किए गए कार्य में सफलता मिलने में कुछ संदेह रहेगा। हालांकि मासिक राशिफल 2024 संकेत दे रहा कि भाग्य स्थान के स्वामी के कर्म भाव में जाने से कुछ समस्याएं दूर भी होंगी और आप अपने कार्य क्षेत्र में अच्छे प्रदर्शन के बल पर कुछ अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते है। व्यापार करने वाले जातकों को सावधानी रखनी होगी। किसी तरह का व्यवसायिक निवेश करना आपके लिए खतरे से खाली नहीं होगा इसलिए जोखिम उठाने से पूर्व उसके सही और गलत पक्ष को भली भांति पहचान लें। महीने के उत्तरार्ध में कुछ धन लाभ के योग बनेंगे लेकिन महीने का पूर्वार्ध कुछ कमजोर रहने की संभावना है। बेहतर तो यही होगा कि किस तरह से अपने काम को बेहतर बना पाएं, यह आप देखें और उसी के अनुसार आचरण करें।

स्वास्थ्य

यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कमज़ोर रहने की संभावना है। अष्टम भाव में शनि और मंगल के महीने की शुरुआत में उपस्थित होने के कारण किसी भी प्रकार की चोट लगने या शल्य चिकित्सा होने की संभावना बन सकती है। यदि आप पहले से किसी बीमारी से ग्रसित है। तो थोड़ी सावधानी रखें और वाहन सावधानी पूर्वक चलाएं। आपको शरीर में गांठ होने या फिर अनियमित रक्तचाप या रक्त संबंधी अशुद्धियों का सामना करने जैसी शारीरिक समस्याएं इस दौरान परेशान कर सकती है। इसलिए अपनी ओर से अच्छे से अच्छा भोजन करें और अपने शरीर को भी कुछ समय दें। ध्यान और योग करना भी आपके लिए लाभदायक रहेगा। नवम भाव में राहु, सूर्य, शुक्र और फिर महीने के उत्तरार्ध में मंगल और बुध के भी नवम भाव में जाने से आपके साथ-साथ आपके पिताजी को भी स्वास्थ्य कष्ट परेशान कर सकते है। और आपको टांगों में दर्द परेशान कर सकता है। कमर में दर्द का सामना कर रहे लोगों को तत्काल अपने चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

प्रेम वैवाहिक

यदि आपके प्रेम जीवन की बात की जाए तो महीने की शुरुआत कुछ कमज़ोर हो सकती है। पंचम भाव के स्वामी मंगल महाराज अष्टम भाव में है।वह भी शनि के साथ जिससे आपको प्रेम जीवन में पीड़ा उठानी पड़ सकती है। आपके प्रियतम का व्यवहार कुछ तीखा हो सकता है। उनके व्यवहार में आए बदलाव आपको परेशान कर सकते है।  जबकि आपके प्रियतम को स्वास्थ्य समस्याएं या किसी प्रकार की चोट लगने की संभावना भी बन रही है। इसलिए उनका बराबर ध्यान रखें और अपने प्रियतम को खुश रखने की कोशिश करें तथा उनका ध्यान रखें। यही आपके लिए उत्तम होगा। विवाहित जातकों की बात करें तो सप्तम भाव के स्वामी शनि महाराज अष्टम भाव में मंगल के साथ विराजमान होकर कुछ परेशानियां उत्पन्न कर रहे है।इसकी वजह से जीवनसाथी को स्वास्थ्य कष्ट परेशान कर सकते है। उनकी वाणी और व्यवहार में बदलाव भी आएंगे जो आपको परेशान कर सकते है। ससुराल पक्ष में भी किसी की सेहत बिगड़ने से कुछ समस्या हो सकती है। हालांकि महीने का उत्तरार्ध अपेक्षाकृत अधिक अनुकूल रहेगा और तब इन परेशानियों में कमी आने के योग बनेंगे।

पारिवारिक

यह महीना पारिवारिक तौर पर बहुत अनुकूल रहने की संभावना है। देव गुरु बृहस्पति और बुध महाराज आपके साथ दशम भाव में बैठकर चतुर्थ भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे जिससे पारिवारिक माहौल अनुकूल रहेगा। माताजी के स्वास्थ्य में सुधार होगा। आपके मन की इच्छाएं पूरी होंगी और घर की साज-सज्जा भी व्यवस्थित होगी। हालांकि अष्टम भाव में बैठे शनि और मंगल की पूर्ण दृष्टि आपके दूसरे भाव पर होगी तथा मंगल आपके तीसरे भाव को भी देखेंगे जिससे भाई-बहनों से कुछ कहासुनी या टकराव हो सकता है। इसलिए थोड़ी सी सावधानी बरतें और उन्हें उल्टा सीधा कहने से बचें। आपके कुटुंब के लोग आपस में किसी बात को लेकर लड़ाई झगड़ा कर सकते है। जो कि महीने के उत्तरार्ध में ठीक हो जाएगा और आपको प्रसन्नता होगी। देव गुरु बृहस्पति की पंचम दृष्टि द्वितीय भाव पर होने से चुनौतियां कम ही रहेंगी इसलिए आपको बहुत ज्यादा परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है। नवम भाव में राहु, सूर्य, शुक्र के एक साथ विराजमान होने और महीने के उत्तरार्ध में वक्री बुध के साथ मंगल के नवम भाव में चले जाने से पिताजी को स्वास्थ्य समस्याएं विशेष रूप से पीड़ित कर सकते है।  और उनके स्वास्थ्य खराब होने की संभावना बन रही है। इसलिए उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

सरल उपाय

चन्द्रमा

1 व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए।
2 रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए।
3 रात्रि में ऐसे स्थान पर सोना चाहिए जहाँ पर चन्द्रमा की रोशनी आती हो।
4 ऐसे व्यक्ति के घर में दूषित जल का संग्रह नहीं होना चाहिए।
5 वर्षा का पानी काँच की बोतल में भरकर घर में रखना चाहिए।
6 वर्ष में एक बार किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान अवश्य करना चाहिए। सोमवार के दिन मीठा दूध नही खाना चाहिए।
7 सफेद सुगंधित पुष्प वाले पौधे घर में लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
8 चन्द्रमा के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु सोमवार का दिन, चन्द्रमा के नक्षत्र (रोहिणी, हस्त तथा श्रवण) तथा चन्द्रमा की होरा में अधिक शुभ होते है।

 

चन्द्रराशिः सिंह का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर पांचवीं राशि है। सिंह। इस राशि के नाम अक्षर मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे है। इस राशि का स्वरूप शेर जैसा है। सिंह राशि का स्वामी सूर्य होता है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार, यह महीना आपके लिए उलझन से भरा रहने वाला है। लेकिन नवम भाव में बैठे देव गुरु बृहस्पति पूरे महीने आपका मार्गदर्शन करते रहेंगे और आपको इन चुनौतियों से कैसे बाहर निकलना है। यह समझाने में आपकी मदद करेंगे। आप के निर्णय बड़े महत्वपूर्ण होंगे। आप जीवन के कठिन और महत्वपूर्ण निर्णय ले सकते है। नौकरी में बदलाव की संभावना हो सकती है। जबकि व्यापार करने वाले जातकों को बहुत सावधानी रखनी होगी क्योंकि आप के व्यवसायिक साझेदार से संबंध बिगड़ सकते है। महीने का उत्तरार्ध अनुकूल रहेगा। लंबी यात्राएं आपके लिए लाभदायक साबित होंगी। धर्म-कर्म के मामलों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे। इससे समाज में आपकी ख्याति बढ़ेगी। आप लोकप्रिय बनेंगे और आपको धन लाभ भी होगा। आप धार्मिक क्रियाकलापों के लिए परिवार वालों के साथ तीर्थ यात्रा पर भी जा सकते है। वैवाहिक जीवन में तनाव बढ़ सकता है। जीवन साथी का व्यवहार और स्वास्थ्य आपकी चिंता का कारण बन सकते है। ससुराल पक्ष में भी कुछ ऐसी स्थिति निर्मित हो सकती है। जिसकी‌ वजह से आपको ससुराल जाना पड़े और परिजनों का ध्यान रखना पड़ेगा। वैवाहिक जीवन वैसे शांतिपूर्ण रहेगा लेकिन किसी संपत्ति को लेकर वाद विवाद बढ़ सकता है। प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी और प्रेम संबंध घनिष्ठ बनेंगे। आप किसी भी तरह का निवेश सोच समझकर कर सकते है। पूर्व में किए गए निवेश से लाभ मिलेगा लेकिन अचानक से आपको कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ेगा जिसमें आर्थिक हानि शामिल है। स्वास्थ्य कमजोर रहने से आपको कुछ चिंताएं रहेंगी। लंबी यात्राओं के योग बनेंगे।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना आपके लिए मिले-जुले परिणाम लेकर सकता है। दशम भाव के स्वामी शुक्र महाराज महीने की शुरुआत में अष्टम भाव में राहु और सूर्य के साथ पीड़ित अवस्था में होंगे। इसके परिणाम स्वरूप नौकरी में उतार-चढ़ाव की स्थितियां रहेंगी। आपको ऐसा लगेगा कि आप की उपेक्षा हो रही है। और आपके काम को देखा नहीं जा रहा है। इससे आपका मन व्यथित होगा और काम से आपका फोकस हट सकता है। इस महीने आपको नौकरी में बदलाव करने में सफलता मिल सकती है। यदि आप कोई ऐसी नौकरी करते है। जहां आपका तबादला हो सकता है। तो इस दौरान तबादले की संभावना भी बन रही है। छठे भाव के स्वामी शनि महाराज सप्तम भाव में मंगल के साथ स्थित है।  जिससे पता लगता है। कि नौकरी में कठिन परिश्रम के बाद आपको अच्छी सफलता मिलने की स्थिति बन सकती है। लेकिन कार्यस्थल पर किसी से भी झगड़ा या वाद-विवाद करने से आपको बचना चाहिए। व्यापार करने वाले जातकों के लिए यह महीना कुछ कठिन रहने वाला है। शनि और मंगल के महीने के पूर्वार्ध में आपके सप्तम भाव में रहने से आप और आपके व्यवसायिक साद के बीच कुछ चुनौतियां बढ़ सकती है। और आपके संबंध बिगड़ सकते है। इससे आपका व्यापार प्रभावित हो सकता है। यदि आप एकल व्यवसाय करते है। तो बहुत मेहनत और तकनीक का इस्तेमाल करके आप अपने व्यापार को सही दिशा में आगे बढ़ाकर अच्छा लाभ प्राप्त कर पाएंगे और व्यापार में उन्नति होगी।

आर्थिक

यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो महीने की शुरुआत कमज़ोर रहने की प्रबल संभावना है। शुक्र, राहु और सूर्य अष्टम भाव में बैठकर आपके व्यर्थ के खर्चों को बढ़ावा दे रहे है। मासिक राशिफल 2024 संकेत दे रहा कि आपके खर्चे बहुत जल्दी-जल्दी और बहुत ज्यादा होंगे और कुछ छुपे हुए खर्चे भी होंगे जिसकी वजह से आप की आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है। 9 मई को वक्री बुध के भी अष्टम भाव में जाने से इस स्थिति में और ज्यादा परेशानी का माहौल उत्पन्न हो सकता है। जबकि दूसरे भाव में बैठे केतु महाराज के कारण धन संचय करने में भी कुछ समस्या हो सकती है। हालांकि आपके पास महीने के उत्तरार्ध में कुछ गुप्त माध्यमों से भी धन प्राप्त हो सकता है। यह अप्रत्याशित धन होगा जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी। 13 तारीख को सूर्य के मेष राशि में आपके नवम भाव में जाने से सरकारी क्षेत्र से लाभ का मार्ग खुलेगा और आपकी आर्थिक स्थिति थोड़ी अनुकूल होने लगेगी। इस महीने धन का निवेश करना बहुत जोखिम भरा होगा इसलिए सावधानी रखना भी अपेक्षित होगा।

स्वास्थ्य

यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से उतार-चढ़ाव से भरा रहने की संभावना है। राशि स्वामी सूर्य, राहु के साथ सूर्य ग्रहण योग बना रहे है।  और शुक्र भी उनके साथ है।  और ये सभी अष्टम भाव में बैठकर स्वास्थ्य को पीड़ित कर रहे है। शनि, मंगल भी प्रथम भाव को देख रहे है। और सप्तम भाव में विराजमान है। इससे यह भी रोग देने में सक्षम है। इसके अतिरिक्त 9 अप्रैल से वक्री बुध और 23 अप्रैल से मंगल भी मीन राशि में अष्टम भाव में चले जाएंगे जिससे स्वास्थ्य समस्याएं इस पूरे महीने बनी रहने की संभावना है। आपको अपने स्वास्थ्य का भरपूर ध्यान रखना होगा। बाहर का खाना खाने से बचें और घर पर बना सुपाच्य भोजन ही करें। इससे कुछ हद तक आप समस्याओं से बच सकते है। हालांकि आपको समस्या होने पर तुरंत चिकित्सक से मिलना ही बेहतर रहेगा। अपने भोजन में चावल को कम करें और मोटापा देने वाले वसा युक्त भोजन से भी परहेज बनाए रखें। इससे आपकी काफी समस्याएं हल हो सकती है।

प्रेम वैवाहिक

यदि आपके प्रेम जीवन की बात की जाए तो देव गुरु बृहस्पति की कृपा से आपका प्रेम जीवन सुचारू रूप से चलता रहेगा। आप और आपके परिजनों के बीच प्रेम बढ़ेगा और एक दूसरे को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। धार्मिक रूप से भी आप जुड़े रहेंगे और परिवार की मान्यताओं का भी ध्यान रखेंगे। इससे आपका रिश्ता एक सही तरीके से आगे बढ़ने लगेगा। आपको अपने दिल की बात अपने प्रियतम से कहने में बिल्कुल भी विलंब नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से हो सकता है। कि उन्हें आपकी बात गलत लगे। विवाहित जातकों की बात करें तो सप्तम भाव में बैठे मंगल और शनि महीने की शुरुआत में गृहस्थ जीवन में तनाव का ताना-बाना बुनेंगे जिससे आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य तो बिगड़ेगा ही लेकिन आप दोनों के व्यवहार और आप दोनों के रिश्ते के बीच तनाव बढ़ने की स्पष्ट आशंका दिखाई दे रही है। इसके बाद 23 तारीख को मंगल अष्टम भाव में चले जाएंगे और 9 अप्रैल से वक्री बुध भी आपके अष्टम भाव में जाएंगे तो इससे उनके स्वास्थ्य पर कुछ विपरीत प्रभाव ही पड़ेंगे इसलिए आपको ध्यान देना होगा। उनकी वाणी में भी बदलाव आएगा। व्यवहार आप को आश्चर्यचकित कर सकता है। हो सकता है। कि ससुराल वालों से आपकी कहासुनी भी हो जाए लेकिन अपने रिश्ते को सामंजस्यपूर्ण बनाए रखने की कोशिश करें। इसी में सबका हित होगा।

पारिवारिक

यह महीना पारिवारिक तौर पर उतार-चढ़ाव से भरा साबित हो सकता है। दूसरे भाव में केतु महाराज उपस्थित होंगे और उनके ऊपर सप्तम भाव में बैठे मंगल और अष्टम भाव में बैठक शुक्र, राहु और सूर्य का प्रभाव दिखेगा जिससे कुटुंब के मामलों में आपका‌ हस्तक्षेप करना लोगों को अच्छा नहीं लगेगा। आप कुछ ऐसी बातें भी कर सकते है। जिनके दो अर्थ हो सकते है। और यह बात हर किसी को पसंद नहीं आएगी। इससे आपके संबंध बिगड़ सकते है।  इसलिए बेहतर यही होगा कि महत्वपूर्ण मामलों में शांति और चुप्पी से काम चलाया जाए। चतुर्थ भाव के स्वामी मंगल महाराज सप्तम भाव में शनि के साथ स्थित है। और शनि की दृष्टि चतुर्थ भाव पर भी है। जिसके परिणाम स्वरूप पारिवारिक जीवन में थोड़ी बहुत शांति बनी रहने की संभावना है। और यह लंबे समय तक चल सकती है। दशम भाव के स्वामी शुक्र अष्टम भाव में है।  और मंगल भी 23 अप्रैल को अष्टम भाव में चले जाएंगे जिससे आपके पिताजी को स्वास्थ्य समस्याएं घेर सकती है। इसलिए आप को उनका ध्यान रखना चाहिए। बृहस्पति की दृष्टि आप के तीसरे भाव पर रहने से भाई बहनों का व्यवहार सहयोगात्मक रहेगा। वे आपके कार्य में आपकी मदद करेंगे और उनसे आपके संबंध अच्छे बने रहेंगे।

सरल उपाय

सूर्य

1 सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय के समय उठकर लाल पूष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए
2 रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन प्रातःकाल उसे पीना चाहिए।
3 ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है।
4 लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ भरकर खिलाने चाहिए।
5 गेहूँ को जमीन पर नहीं डालना चाहिए।
6 किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर जाते समय घर से मीठी वस्तु खाकर निकलना चाहिए।
7 हाथ में मोली (कलावा) छः बार लपेटकर बाँधना चाहिए।
8 लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए।
सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु रविवार का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ होते है।

 

चन्द्रराशिः कन्या राशि का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर है। ढो, पा, पी, पू, , , , पे और पो। ज्योतिष चक्र की छठी राशि कन्या है। कन्या राशि का स्वामी बुध होता है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार, कन्या राशि में जन्मे जातकों के लिए यह महीना कुछ उतार-चढ़ाव से भरा रहने वाला है। आपके व्यापार में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के बदलाव देखने को मिलेंगे इसलिए आपको अपने कार्यक्षेत्र में बहुत सावधानी रखनी होगी क्योंकि आपकी एक जरा सी भूल आपको परेशानी में डाल सकती है। वैवाहिक जीवन में भी तनाव और संकट रहेगा। छोटी-छोटी बातों पर कहासुनी होने से घर की शांति भंग हो सकती है। प्रेम संबंधों के लिए महीने की शुरुआत कमज़ोर रहेगी। उसके बाद धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य होने लगेंगी। नौकरी करने वाले जातकों को मेहनत के साथ-साथ अनुशासन का पालन करना बेहतर रहेगा। निजी जीवन में प्रेम रहेगा लेकिन किसी घर वाले की सेहत चिंता का कारण बन सकती है। आपका स्वास्थ्य कमज़ोर रहने की संभावना है। इसलिए आपको इस महीने अपने स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा ध्यान देना चाहिए ताकि किसी बड़ी समस्या को आने से रोका जा सके। विदेश जाने की इच्छा पूरी हो सकती है। हालांकि चुनाव भी सकती है।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना मिले-जुले परिणाम देने वाला रहेगा। जो लोग नौकरी करते है। उन्हें महीने की शुरुआत में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। दशम भाव के स्वामी बुध महाराज वक्री अवस्था में अष्टम भाव में रहेंगे जिससे आपको क्षमता के अनुसार कार्य नहीं मिलेगा और आप काफ़ी परेशान रहेंगे। इसी वक्री अवस्था में बुध महाराज 9 अप्रैल को आपके सप्तम भाव में चले जाएंगे, जहां पर पहले से ही राहु, सूर्य और शुक्र विराजमान होंगे। इससे कुछ राहत कुछ समय के लिए आपको मिल सकती है। आपको अपनी नौकरी में अनुशासन का पालन करना होगा। अपने काम पर ज्यादा ध्यान दें बाकी बातों से दूर रहेंगे तो आपका काम पर आप का प्रदर्शन सुधरेगा जिससे आपको आने वाले समय में अच्छे परिणाम मिलेंगे। छठे भाव में मंगल और शनि के प्रभाव के कारण कार्य क्षेत्र में आपके विरोधी आपको परेशान करने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे। हालांकि 23 अप्रैल को मंगल के छठे भाव से निकलकर सप्तम भाव में जाने से इन समस्याओं में कमी आएगी और आप अपने विरोधियों पर भारी पड़ने लगेंगे तब आपको राहत मिलेगी। व्यापार करने वाले जातकों को सावधानी रखनी होगी। राहु, सूर्य ग्रहण दोष के रूप में महीने की शुरुआत में ही आपके सप्तम भाव में शुक्र के साथ विराजमान होंगे और बुध भी इसी भाव में जाएंगे। यहां शुक्र और बुध पीड़ित अवस्था में तथा शुक्र भी अस्त अवस्था में होने के कारण आपको व्यापार में कोई भी बड़ा निर्णय लेने से बचना चाहिए। अपने व्यवसायिक से किसी भी तरह से बचना चाहिए और व्यापार के संबंध में यह ध्यान रखना चाहिए कि बाजार में कोई भी ऐसा काम ना करें जिससे आपको मानहानि का सामना करना पड़े क्योंकि उससे बाजार में आपका नाम खराब हो सकता है। कानून विरुद्ध जाकर भी कोई काम करना आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है। महीने के अंतिम सप्ताह में कुछ सुकून भरे फलों की प्राप्ति होगी और तब व्यापार धीरे-धीरे उन्नति करेगा।

आर्थिक

यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो यह महीना आर्थिक तौर पर उतार-चढ़ाव को स्पष्ट रूप से दिखा रहा है। दूसरे भाव के स्वामी शुक्र महाराज उच्च राशिगत  होकर आपके सप्तम भाव में रहेंगे जिससे व्यापार में धन लाभ होगा। जीवन साथी के माध्यम से भी लाभ हो सकता है। लेकिन यह शुक्र महाराज राहु और सूर्य के कारण तथा 23 अप्रैल को मंगल के भी सप्तम भाव में आने के कारण पीड़ित हो जाएंगे जिससे धन प्राप्ति के मार्ग में बाधाएं आएंगी। शुक्र देव आपके भाग्य स्थान के स्वामी भी है। यह 28 अप्रैल को अपनी अस्त अवस्था में जाएंगे जिससे भाग्य का साथ मिलने में कुछ समस्याएं आएंगी और आपके कार्यों में रुकावट सकती है। जिससे धन लाभ के योग भी कुछ क्षीण हो सकते है।  इसलिए आपको भरसक प्रयास करना चाहिए कि अपनी आमदनी को बढ़ा सकें। हालांकि आपकी दैनिक आमदनी अच्छी रहेगी और दैनिक आवश्यकता के कार्यों की पूर्ति होती रहेगी। मंगल और शनि के छठे भाव में तथा बृहस्पति और बुध के अष्टम भाव में होने के कारण खर्चों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी के योग बनेंगे जिसका प्रभाव आपकी आर्थिक स्थिति के लिए प्रतिकूल हो सकता है। इसलिए इस महीने आपको बहुत सावधान रहना चाहिए। आप अपनी बुद्धि से कुछ धन अवश्य ही अर्जित करेंगे जो आपके काम आएगा लेकिन उसे पूर्ण रूप से खर्च करने से बचेंगे तो ही आर्थिक लाभ होगा।

स्वास्थ्य

यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कुछ कमज़ोर रहने की संभावना दिखाई देती है। क्योंकि आपकी राशि में पूरे महीने केतु महाराज विराजमान रहेंगे। उससे छठे भाव में मंगल और शनि, सप्तम भाव में राहु, सूर्य, शुक्र और अष्टम भाव में बृहस्पति और बुध की उपस्थिति होने के कारण इस पूरे महीने स्वास्थ्य कुछ नासाज़ ही रहेगा और आपको अपने स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान देना पड़ेगा। यह ग्रह स्थितियां आपको अपने स्वास्थ्य समस्याओं को हल करने में मदद करने की बजाय उन्हें बढ़ाने पर जोर देंगी इसलिए आपको खुद ही अपना ध्यान रखना होगा और एक संतुलित दिनचर्या को अपनाना होगा जिससे आप बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के घेरे में आने से बच जाएं। आपको आमाशय के अतिरिक्त कमर में दर्द, जोड़ों में दर्द, बदन दर्द, बुखार जैसी समस्याएं विशेष रूप से प्रभावित कर सकती है। इन्हें नजर अंदाज़ करने से बचें।

प्रेम वैवाहिक

यदि आप किसी प्रेम संबंध में है। तो महीने की शुरुआत कुछ कमज़ोर रहेगी। पंचम भाव के स्वामी शनि महाराज छठे भाव में मंगल के साथ विराजमान रहेंगे जिससे आप और आपके प्रियतम के बीच कहासुनी होने और झगड़े होने की स्थिति बन सकती है। आपको बहुत सावधानी रखनी होगी। बातचीत संभलकर करें कि कोई भी ऐसी बात ना हो जाए जो आपके प्रियतम के दिल को चुभ जाए और उन्हें बुरी लगे इसलिए अच्छा बर्ताव करना आपके लिए सबसे ज्यादा लाभदायक रहेगा। 23 अप्रैल को मंगल छठे भाव को छोड़कर सप्तम भाव में प्रवेश कर जाएंगे और तब अकेले शनि‌देव छठे भाव में रहेंगे। यह ग्रह स्थिति आपके प्रेम संबंध के लिए अनुकूल स्थिति बनेगी। आप के बीच जो भी समस्याएं है। वे धीरे-धीरे करके समाप्त होने लगेंगी। आपके बीच के झगड़े भी दूर हो जाएंगे, सुलझ जाएंगे और आप एक दूसरे के प्यार को महसूस करेंगे।
एक दूसरे को दिल से सराहेंगे और यही आपके प्यार को आगे और भी बेहतर तरीके से अगले स्तर पर ले जाने का समय रहेगा। यदि आप विवाहित है। तो यह महीना थोड़ा सा कमज़ोर ही रहने वाला है। क्योंकि राहु, सूर्य, शुक्र एक साथ आपके सप्तम भाव में विराजमान रहकर जहां एक तरफ आपके रिश्ते में रोमांस बढ़ाएंगे तो वही आपसी विवाद संघर्ष की स्थिति को भी जनम देंगे। राहु तथा सूर्य का यह ग्रहण दोष 13 अप्रैल तक रहेगा क्योंकि उसके बाद सूर्य निकलकर आपके अष्टम भाव में चले जाएंगे। हालांकि उससे पूर्व ही वक्री अवस्था में बुध मीन राशि में वापस लौट कर आपके सप्तम भाव में जाएंगे और 23 तारीख को मंगल भी आपके सप्तम भाव में जाएंगे। ग्रहों का इतना प्रबल प्रभाव सप्तम भाव को सक्रिय करने के कारण आप यदि जीवन साथी के साथ मिलकर या उनके नाम से कोई व्यापार करते है।  तो उसमें तो उन्नति देगा लेकिन आप के आपसी संबंधों में कड़वाहट बढ़ा सकता है। इस दौरान आपके जीवन साथी को कुछ स्वास्थ्य समस्याएं भी परेशान कर सकती है।  इसलिए केवल उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखें अपितु उनसे अच्छा व्यवहार करें। उनकी बातों को सुनें और और उन्हें यह एहसास कराएं कि वह आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वास्तव में यही आपके वैवाहिक जीवन का आधार भी है। उनको जितना हल्का महसूस कराएंगे उनका व्यवहार भी अच्छा रहेगा और आपका यह समय शांतिपूर्वक व्यतीत हो जाएगा।

पारिवारिक

मासिक राशिफल 2024 भविष्यवाणी करता है। कि, यह महीना पारिवारिक तौर पर मध्यम रहने की संभावना है। देव गुरु बृहस्पति वक्री बुध महाराज के साथ महीने की शुरुआत में अष्टम भाव में बैठकर आपके द्वितीय भाव को देखेंगे। आपकी वाणी में प्रेम और तर्क दिखाई देगा। परिवार के लोग आपको पसंद करेंगे। आपकी बातों को महत्व दिया जाएगा जिससे परिवार में आपका ओहदा बढ़ेगा और आप पारिवारिक शांति के लिए बहुत प्रयास करेंगे। चतुर्थ भाव के स्वामी बृहस्पति महाराज अष्टम भाव में होने के कारण और महीने के उत्तरार्ध में मंगल के सप्तम भाव में आकर द्वितीय भाव को देखने के कारण महीने का उत्तरार्ध थोड़ा सा कमज़ोर रहेगा। परिवार के किसी सदस्य के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं बढ़ सकती है।  जिससे परिवार का माहौल भी थोड़ा सा बिगड़ सकता है। जहां तक आपके भाई बहनों की बात है। तो यह महीना कुछ कमजोर है। उनके संबंध आपसे बिगड़ सकते है। उनको शारीरिक समस्याएं परेशान कर सकती है।  इसलिए आप अपने अच्छे भाई बहन होने का फर्ज निभायें और बुरे वक्त में उनका साथ दें। किसी भी तरह के वाद विवाद को बढ़ने ना दें क्योंकि यह लंबा चल सकता है। और इससे आपको बाद में पछताना पड़ सकता है।

सरल उपाय

बुध

1 अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए।
2 बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
3 बुधवार के दिन हरे रंग की चूड़ियाँ हिजड़े को दान करनी चाहिए।
4 हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।
5 बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
6 घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।
7 अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए।
8 फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
9 तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
10 बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते।

 

चन्द्रराशिः तुला राशि का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू या ते होता है। तुला राशि का साइन यानी चिन्ह तराजू है।तुला राशि का स्वामी शुक्र होता है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार, तुला राशि में जन्मे जातकों के लिए अप्रैल के महीने की शुरुआत थोड़ी कमज़ोर है। आपके खर्चे हद से ज्यादा बढ़े हुए रहेंगे जो आपको परेशानी देंगे और आपके माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई देंगी। इससे आप मानसिक तनाव भी महसूस करेंगे और आपको लगेगा कि कैसे इन पर काबू पाया जाए। प्रेम संबंधों में महीने की शुरुआत तनावपूर्ण रहने वाली है। इसलिए बहुत सावधान रहें। कहीं ऐसा ना हो कि आपका रिश्ता बिगड़ जाए। वैवाहिक जीवन बिता रहे जातकों के लिए महीना अच्छा रहेगा। आपको कुछ अच्छे परिणाम भी मिलेंगे और अपने जीवनसाथी का सहयोग प्राप्त होगा। हालांकि बीच-बीच में कहासुनी हो सकती है। नौकरी करने वाले जातकों को अच्छे परिणाम मिलेंगे और आपको सफलता मिलेगी। आपके सहकर्मियों का पूरा सहयोग आपके साथ रहेगा जो आपकी नौकरी में बहुत काम आएगा। व्यापार करने वाले जातकों के लिए भी यह महीना अच्छा है। धन प्राप्ति के उद्देश्य से आपके प्रयास महीने की शुरुआत से ही होंगे क्योंकि खर्चे ज्यादा होने वाले है।विदेश जाने वाले लोगों का खर्चा तो बढ़ेगा लेकिन आप विदेश जा सकते है।हालांकि द्वादश भाव में बैठे केतु के कारण कुछ रुकावटें अवश्य आएंगी इसलिए यात्रा पर जाने से पूर्व अपने दस्तावेजों को भली प्रकार जांच लें। विद्यार्थियों को शिक्षा में कुछ समस्याएं होंगी जिन से बाहर निकलने में उन्हें महीने का पूर्वार्ध का पूरा समय लग जाएगा।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना आपके लिए अनुकूल रहने की संभावना दिखाई देती है। छठे भाव में सूर्य, राहु और शुक्र के प्रभाव के कारण आपके कुछ विरोधी आपको परेशान कर सकते है। और कार्यक्षेत्र में आपकी छवि बिगाड़ने का प्रयास कर सकते है। लेकिन देव गुरु बृहस्पति की दृष्टि आपके एकादश, प्रथम और तृतीय भाव पर रहेगी। इसके परिणाम स्वरूप आप सही बुद्धि से सही निर्णय लेकर अपने विरोधियों को चारों खाने चित कर देंगे और अपना काम बेहतर तरीके से करके दिखाएंगे। केवल इतना ही नहीं, आपके साथ काम करने वाले सहकर्मी भी आपको आपके कार्यक्षेत्र में मदद करेंगे जिससे आपको अपने प्रदर्शन को सुधारने का मौका मिलेगा और विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकलने में आप कामयाब होंगे। महीने की शुरुआत में आपके पास किसी अच्छी नौकरी का मौका हाथ लग सकता है। जो एक अच्छी तनख्वाह भी प्रदान करेगी। यदि आप नौकरी बदलना चाह रहे है। तो यह आपके लिए स्वर्णिम मौका होगा। व्यापार करने वाले जातकों के लिए भी यह महीना अच्छा रहेगा। बृहस्पति और बुध सप्तम भाव में विराजमान रहेंगे और महीने की शुरुआत से ही आपको अच्छे परिणाम देने लगेंगे। सप्तम भाव में बैठे शनि देव जी की पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर होगी जो आपको सही मार्ग से अनुशासन में रहकर व्यापार करने में अच्छी सफलता प्रदान करेंगे। 13 तारीख को सूर्य महाराज भी आपके सप्तम भाव में जाएंगे और सरकारी क्षेत्र से लाभ के योग बनेंगे। यदि आप व्यापार करते है। और वह किसी सरकारी क्षेत्र से संबंधित है। तो यह महीना आपको उत्तम सफलता प्रदान करेगा। इस महीने व्यापार को लेकर कुछ निवेश भी करने होंगे और कुछ नए लोगों को नियुक्त करने से भी आपका व्यापार अच्छा चलेगा।

आर्थिक

यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो महीने के शुरुआत से ही आप अपने धन को बढ़ाने का प्रयास करते रहेंगे। मंगल और शनि पंचम भाव में बैठकर आपके एकादश भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे जिससे आपकी आमदनी बढ़ने के योग बनेंगे। तीव्र गति से धन आपके पास आएगा। देव गुरु बृहस्पति भी आप के प्रथम, तृतीय और एकादश भाव को देखेंगे और आपकी आमदनी में बढ़ोतरी करेंगे। आपकी दैनिक आमदनी भी अच्छी रहेगी जिससे दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति भली प्रकार होती रहेगी। हालांकि सूर्य, राहु और शुक्र के महीने की शुरुआत में ही आपके छठे भाव में बैठकर द्वादश भाव को देखने के कारण आप के खर्चे अप्रत्याशित रूप से बढ़ते रहेंगे। केतु भी द्वादश भाव में रहेंगे इसलिए आपका कोई कोई खर्चा लगा रहेगा जो आपकी आमदनी पर भारी पड़ सकता है। मंगल 23 तारीख को छठे भाव में आकर इन खर्चों को और बढ़ा सकते है।  लेकिन सूर्य 13 अप्रैल को सप्तम भाव में चले जाएंगे और शुक्र भी 24 अप्रैल को आपके सप्तम भाव में प्रवेश कर जाएंगे, इससे आपको यह लाभ होगा कि खर्चों में कुछ कमी आनी शुरू हो जाएगी जो अंततः आपकी आर्थिक स्थिति को बढ़ने में मददगार बनेगी। यदि आप किसी तरह का निवेश करना चाहते है। तो दीर्घावधि निवेश का अवसर देख सकते है। वह भी 23 अप्रैल के बाद। उससे आपको अच्छा लाभ मिलने के योग बनेंगे। किसी संपत्ति के क्रय-विक्रय से भी आपको इस महीने लाभ मिल सकता है।

स्वास्थ्य

यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कमज़ोर और उतार-चढ़ाव से भरा रहने की संभावना है। हालांकि ऊपर वाले की कृपा भी आप पर बनी रहेगी। देव गुरु बृहस्पति पूरे महीने आपकी राशि पर प्रभाव डालेंगे और आप के प्रथम, तृतीय और एकादश भाव को संभालेंगे जिससे स्वास्थ्य उस हद तक नहीं बिगड़ने देंगे, जिस हद तक वह बिगड़ सकता है। पंचम भाव में शनि और मंगल के कारण आपको पेट से संबंधित रोग चयापचय से संबंधित समस्याएं और पाचन तंत्र के बिगड़ने की स्थिति बन सकती है। इसके अतिरिक्त सूर्य, राहु और शुक्र के छठे भाव में रहने पर महीने के उत्तरार्ध में मंगल, शुक्र, राहु के छठे भाव में रहने के कारण बड़ी आंत से संबंधित कोई समस्या भी आपको परेशान कर सकती है। नेत्र रोग होने और अनिद्रा की समस्या भी आपको परेशान कर सकती है। इसलिए इस महीने अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखें। देव गुरु बृहस्पति आपको इतनी बुद्धि दे रहे है। कि आप अपने स्वास्थ्य को सभी चीजों से ऊपर रख सकें और अपनी प्राथमिकता में रखने के कारण अपने स्वास्थ्य को स्थान दें और ऐसी गतिविधियों में शामिल हों जो आपको स्वास्थ्य समस्याओं से बचा सकें। ऐसा करने से ही आपका स्वास्थ्य उत्तम होगा और आपको समस्याओं से छुटकारा मिलेगा।

प्रेम वैवाहिक

यदि आप किसी को प्रेम करते है। तो महीने की शुरुआत बहुत ही नाजुक कही जा सकती है। मंगल और शनि जैसे दो विपरीत प्रकृति के ग्रह आपके पंचम भाव में विराजमान रहकर आपको अपने प्रेम संबंधों से अलग करने की कोशिश करेंगे। यह दोनों ही ग्रह उग्रता के साथ आपके रिश्ते में क्रोध बढ़ाएंगे। आपसी इरिटेशन बढ़ाएंगे और इसलिए आप एक दूसरे को कुछ भी भला बुरा कहने से बाज नहीं आएंगे। आपके प्रियतम का व्यवहार भी आपको बुरा लग सकता है। जिससे आपका रिश्ते में तनाव स्पष्ट रहेगा। हालांकि मासिक राशिफल 2024 संकेत दे रहा है। कि 23 अप्रैल को मंगल के पंचम भाव से निकल जाने के बाद इस स्थिति में बहुत सुधार देखने को मिलेगा और आपका रिश्ता प्रेम से आगे बढ़ेगा इसलिए आपको पूर्वार्ध को आराम से बिताना है। ताकि उत्तरार्ध में अपने प्रेम जीवन का लुत्फ ले सकें। कुंवारे लोगों को महीने की शुरुआत में विवाह का तोहफा मिल सकता है। यदि आप किसी से प्रेम करते है।  तो महीने की शुरुआत में प्रेम विवाह हो सकता है। वह भी कुछ परेशानियों के बाद। विवाहित जातकों की बात करें तो महीने की शुरुआत बहुत खूबसूरत रहने वाली है। देव गुरु बृहस्पति और बुध महाराज सप्तम भाव में बैठकर केवल आपके जीवन साथी को बल्कि आपको ज्ञान और बुद्धि प्रदान करेंगे। आप आपसी समझदारी रखेंगे। मामलों को समझेंगे, घर और अपने आसपास की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर आप अपना व्यवहार करेंगे। इससे आपको बहुत लाभ होगा और एक दूसरे के प्रति प्रेम और अपनत्व की भावना बढ़ेगी। आपका रिश्ता मजबूत बनेगा। महीने के उत्तरार्ध में कुछ समस्याएं सामने सकती है।  क्योंकि सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में आपके सप्तम भाव में 13 अप्रैल को प्रवेश कर जाएंगे और 24 अप्रैल को शुक्र भी आपके सप्तम भाव में जाएंगे जबकि बुध 9 तारीख को वापस छठे भाव में चले जाएंगे तो इससे यह होगा कि आप के रिश्ते में प्रेम और रोमांस के पल तो आएंगे लेकिन सूर्य देव की ऊर्जा के कारण जीवन साथी कुछ ऐसी बातें और ऐसा व्यवहार कर सकते है।जो आपको अहम के रूप में नजर आएंगी और इसलिए आप दोनों के बीच अहम का टकराव हो सकता है। ऐसी स्थिति में उन्हें प्यार से समझाने की कोशिश करेंगे तो आपका रिश्ता बहुत ही सही तरीके से आगे बढ़ेगा और आप अपने वैवाहिक जीवन में खुश रह पाएंगे।

पारिवारिक

यह महीना पारिवारिक दृष्टिकोण से देखें तो ठीक-ठाक रहने की संभावना है। दूसरे भाव के स्वामी मंगल महाराज कुंडली के पंचम भाव में विराजमान होकर आपसी संबंधों को अनुकूल बनाने में कुछ मदद करेंगे। हालांकि 23 तारीख को मंगल के छठे भाव में चले जाने से कुटुंब के लोगों में आपस में कुछ तनाव और टकराव की स्थिति भी बन सकती है। कुछ जमीन-जायदाद के मौके या घर बनाने को लेकर कहासुनी हो सकती है। जिसके लिए आप भी थोड़े परेशान रहेंगे और परिवार का माहौल कुछ तनावपूर्ण हो सकता है। देव गुरु बृहस्पति की कृपा से आप सही निर्णय लेकर अपने रिश्तों को संभाल पाने में कामयाब रहेंगे। चतुर्थ भाव के स्वामी शनि महाराज पंचम भाव में बैठकर माता-पिता से प्रेम बढ़ाएंगे। माताजी के स्वास्थ्य में सुधार होगा। हालांकि महीने की शुरुआत में उनकी सेहत कुछ कमज़ोर हो सकती है। लेकिन महीने का उत्तरार्ध अनुकूल रहेगा और सेहत में सुधार देगा। पिताजी के स्वास्थ्य को लेकर आपको महीने के अंतिम सप्ताह में थोड़ी चिंता करनी चाहिए क्योंकि उनका पाचन तंत्र बिगड़ सकता है। और वह बीमार पड़ सकते है।ऐसा होने पर बिना विलंब किए चिकित्सक से संपर्क करें क्योंकि यह बड़ी समस्या बन सकता है।

सरल उपाय

शुक्र

1 काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।
2 शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
3 किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।
4 किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय 10 वर्ष से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए।
5 अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।
6 किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।
7 शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।
8 शुक्र के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शुक्रवार का दिन, शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में अधिक शुभ होते है।

 

चन्द्रराशिः वृश्चिक राशि का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू है। वृश्चिक ज्योतिष के राशि चक्र की आठवीं राशि है।इसका स्वरूप बिच्छू जैसा है। वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल होता है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार यह महीना वृश्चिक राशि के जातकों के लिए उतार-चढ़ाव से भरा महिला आने की संभावना है। आपको अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखने की आवश्यकता पड़ेगी। आपको पेट से जुड़ी गंभीर बीमारी हो सकती है। यदि आपने अपने खाने-पीने की आदतों में बदलाव नहीं किया तो आप बीमार हो सकते है।आमदनी अच्छे होने के कारण आपका स्वाभिमान बढ़ा चढ़ा रहेगा। धर्म-कर्म के कामों में भी मन लगेगा। घर में कुछ शांति रहेगी जिससे पारिवारिक जीवन में कुछ तनाव रहेगा। परिवार के किसी सदस्य का स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। आर्थिक रूप से चुनौतियां भी रहेंगी। आमदनी तो अच्छी होगी, खर्चे भी अधिक होंगे, ऊपर से स्वास्थ्य पीड़ित होगा। उस पर भी खर्च हो सकता है। इसलिए सावधानी रखनी जरूरी होगी। कार्यक्षेत्र में सफलता मिलेगी। नौकरी में बदलाव हो सकता है। व्यापार करने वाले जातकों को अच्छा लाभ होगा। विद्यार्थियों को पढ़ाई में रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना मध्यम रूप से फलदायक रहेगा। दशम भाव के स्वामी सूर्य महाराज महीने की शुरुआत में राहु के साथ ग्रहण दोष बनाते हुए पंचम भाव में विराजमान रहेंगे। यही पर शुक्र महाराज भी रहेंगे तथा वक्री बुध 9 अप्रैल को इसी राशि में जाएंगे। इससे आपकी नौकरी में बदलाव आने के योग बनेंगे। आपकी नौकरी जा भी सकती है। इसलिए अपनी ओर से ऐसी कोई गलती ना करें जिससे कारण आपको नौकरी से दूर जाना पड़े लेकिन अच्छी बात यह है। कि इसी दौरान आपके पास एक से अधिक नौकरियों का अवसर प्राप्त होगा। आपके हाथ कोई बड़ी उपलब्धि लग सकती है।, जहां नौकरी करने से आपको अच्छी आमदनी मिल सकेगी। यदि आप वर्तमान लगी नौकरी के साथ कोई नई बढ़िया नौकरी देख रहे है।  तो वह नौकरी आपको इस दौरान प्राप्त हो सकती है। और आपको लह नई नौकरी तुरंत स्वीकार कर लेनी चाहिए। छठे भाव के स्वामी मंगल देव जी के चतुर्थ भाव में शनि देव के साथ विराजमान होने के कारण नौकरी में कुछ विरोधी परेशान करेंगे लेकिन वे आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। आपको अपने मन को शांत रखना होगा और अपने काम पर ध्यान देना होगा। व्यापार करने वाले जातकों के लिए यह महीना बढ़िया रहेगा। आपका व्यापार उन्नति की राह पर बहुत मजबूत रहेगा। आपके व्यापार में आशातीत सफलता मिलेगी और व्यापार नई ऊंचाइयों को छुएगा। विदेशी माध्यमों से भी धन निवेश के कारण आपका व्यापार मजबूत हो सकता है। और सरकारी क्षेत्र से भी आपके व्यापार को सहारा मिल सकता है। यदि आप पहले से ही कोई ऐसा व्यवसाय करते है।  जो सरकार से या विदेशों से संबंधित है। तो इस दौरान अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे और व्यापार को विस्तार देने में भी सफल हो सकते है।

आर्थिक

यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो महीने की शुरुआत से ही राहु, शुक्र और सूर्य जैसे ग्रह आपके एकादश भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे तो मंगल भी चतुर्थ भाव से एकादश भाव को देखेंगे। इससे आपकी आमदनी में निरंतर बढ़ोतरी के योग बनेंगे। केवल एक ही नहीं, एक से अधिक माध्यमों के द्वारा को धन प्राप्ति के प्रबल और सुंदर योग बनेंगे। इससे आपकी आर्थिक स्थिति दिन-प्रतिदिन बढ़िया होती चली जाएगी लेकिन महीने की शुरुआत से ही बृहस्पति और बुध आप के छठे भाव में बैठकर द्वादश भाव से संबंध बनाएंगे जो आपके खर्चों में भी बढ़ोतरी करेंगे। हालांकि मासिक राशिफल 2024 भविष्यवाणी करता है। कि ये खर्च शुभ कार्यों और पूजा-पाठ जैसे कार्यक्रमों पर हो सकते है।  जो आपके लिए सही होंगे लेकिन सूर्य के मेष राशि में छठे भाव में जाने से इन खर्चों में और कमी आएगी तथा मंगल के 23 तारीख को पंचम भाव में बैठकर एकादश को देखने से आपके खर्चों में लगाम लगेगी और आमदनी में बढ़ोतरी होगी। इस प्रकार यह महीना अपने अंत होने तक आप को आर्थिक तौर पर और सुदृढ़ बना देगा और आपकी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाएगा लेकिन आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि बेवजह का निवेश करना आपके लिए नुकसान का कारण बन सकता है। इसलिए धन का निवेश कहीं भी करने से बचें।

स्वास्थ्य

यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कुछ कमज़ोर रहने की संभावना है। चतुर्थ भाव में शनि और मंगल का प्रभाव आपको छाती में जकड़न या जलन जैसी समस्याएं दे सकता है। कमर में दर्द भी आपको पीड़ित कर सकता है। पंचम भाव में राहु, सूर्य और शुक्र जैसे ग्रहों का एक साथ होना पेट से जुड़ी बीमारियों को न्योता दे सकता है। आप यदि अपने खान-पान को नहीं संभालेंगे तो आप परेशानी में सकते है।बृहस्पति देव जी भी वक्री बुध देव जी के साथ छठे भाव में रहेंगे जो आपके मोटापे में बढ़ोतरी कर सकते है।  और आपको स्वास्थ्य समस्याएं दे सकते है।बुध के 9 तारीख को पंचम भाव में वक्री होकर जाने से स्थिति और बिगड़ सकती है। हालांकि सूर्य के मेष राशि में छठे भाव में 13 अप्रैल को जाने से स्थिति में सुधार होगा और स्वास्थ्य समस्याओं में कमी आएगी लेकिन इसके बाद मंगल देव जी के 23 तारीख को पंचम भाव में जाने से फिर से स्वास्थ्य समस्याएं प्रबल हो सकती है।  इसलिए पूरे महीने आपको अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा और किसी भी लापरवाही से बचना होगा।

प्रेम वैवाहिक

यदि आप किसी प्रेम संबंध में है।  तो महीने की शुरुआत बहुत ही आश्चर्यजनक हो सकती है। उच्च राशि के होकर शुक्र यहां आपको प्यार में पागल बनाएंगे। आप दोनों के बीच प्रेम संबंध का मजबूत होगा। आपका रोमांस चरम पर होगा। प्यार के सागर में खूब डुबकी लगाने का समय रहेगा। राहु शुक्र के साथ स्थित होकर इस स्थिति को और भी अधिक बल देंगे लेकिन यहीं पर सूर्य भी स्थित है।  जो राहु और सूर्य के सूर्य-ग्रहण योग के कारण आपके प्रियतम की तबीयत बिगड़ सकती है। उनको स्वास्थ्य समस्याएं परेशान कर सकती है।  जिससे आप के मंसूबों पर पानी फिर सकता है। या फिर ऐसा भी हो सकता है। कि आप दोनों के बीच जुबानी जंग हो, जो बाद में आपके लिए नुकसानदायक साबित हो, इसलिए शांति और धैर्य के साथ अपने रिश्ते को खुलकर जिएं और अपने रिश्ते के प्रत्येक पल का लुत्फ उठाएं। सूर्य देव 13 तारीख को पंचम भाव से निकल जाएंगे तो कुछ अच्छी स्थितियों का निर्माण होगा लेकिन 23 अप्रैल को मंगल यहां जाएंगे जिससे मंगल और राहु का अंगारक दोष भी आपको परेशान कर सकता है। इसलिए अपने प्रियतम से सौहार्दपूर्ण संबंध बनाकर रखें और वाद विवाद को बढ़ने दें। यदि आप विवाहित है।  तो आपके वैवाहिक जीवन के लिए यह समय अनुकूल रहेगा। हालांकि महीने की शुरुआत कुछ कमज़ोर रहेगी।
चतुर्थ भाव में बैठकर मंगल महाराज अपनी चतुर्थ दृष्टि से आपके सप्तम भाव को देखेंगे जिस से वैवाहिक जीवन में मतभेद उभरकर सामने सकते है।  और झगड़ा भी हो सकता है। लेकिन 23 अप्रैल के यहां से निकलते ही स्थितियों में परिवर्तन देखने को मिलेगा और आपके जीवनसाथी के बीच स्थिति सामान्य होने लगेंगे और आप अपने रिश्ते को भली प्रकार समझ कर अपने जीवन साथी के साथ अच्छा आचरण करेंगे और घर का माहौल भी सुख पूर्वक अच्छा ही रहेगा जिससे आपका वैवाहिक जीवन मजबूत होगा।

पारिवारिक

यह महीना पारिवारिक तौर पर उथल-पुथल से भरा रहने वाला है। चतुर्थ भाव के स्वामी शनि महाराज चतुर्थ भाव में स्थित रहकर घर को सुख शांति पूर्ण बनाने का पूर्ण प्रयास करेंगे लेकिन वहीं पर महीने की शुरुआत में मंगल महाराज विराजमान रहकर आपकी माताजी के स्वास्थ्य को भी पीड़ित करेंगे और आपके मन का चैन छीन लेंगे। शनि और मंगल का यह युति संबंध पारिवारिक जीवन में संबंधों के बीच टकराव और विवाद को जन्म दे सकता है। इसलिए आपको बहुत सावधानी रखनी होगी। हालांकि यदि आप इसका सदुपयोग करना चाहते है।  तो आपको घर में कोई कंस्ट्रक्शन का या नव निर्माण का कार्य करना चाहिए जिससे यह नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक रूप से बदल सके और घर का माहौल अच्छा हो जाए। दूसरे भाव के स्वामी देव गुरु बृहस्पति छठे भाव में बैठकर दूसरे भाव को देख रहे है।वाद-विवाद के बाद भी अच्छे परिणाम सामने आएंगे और घर में सुख शांति स्थापित हो सकेगी। भाई-बहनों से आपके संबंध अच्छे रहेंगे। उनको अपने सुख में शामिल करें और उनके सुख-दुख की सुनने से आपका रिश्ता और भी अधिक प्रबल होगा और आप भी प्रसन्न रहेंगे तथा आपके परिवार वालों को भी प्रसन्नता होगी।

सरल उपाय

मंगल

1 लाल कपड़े में सौंफ बाँधकर अपने शयनकक्ष में रखनी चाहिए।
2 ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाये तो उसे घर में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए।
3 बन्धुजनों को मिष्ठान्न का सेवन कराने से भी मंगल शुभ बनता है।
4 लाल वस्त्र लिकर उसमें दो मुठ्ठी मसूर की दाल बाँधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिय।
5 मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिन्दूर लिकर उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए।
6 बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।
7 अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
8 मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, मंगल के नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते है।

 

चन्द्रराशिः धनु का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर ये, यो, भा, भी, भू, , फा, ढा, भे है।उनकी राशि धनु होती है। इसका चिह्न धनुषधारी है।धनु राशि का स्वामी बृहस्पति होता है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार, यह महीना धनु राशि का जातकों के लिए मिले-जुले परिणाम देने वाला रहेगा लेकिन कुछ मामलों में आपको थोड़ी सावधानी बरतनी अपेक्षित होगी। कार्यक्षेत्र में उतार-चढ़ाव की स्थितियां रहेंगी लेकिन व्यापार अनुकूल स्थितियों में आगे बढ़ेगा और आपको मुस्कुराने का मौका देगा। खुद का स्वास्थ्य बिगड़ने की संभावना है। और आपके परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के स्वास्थ्य में भी समस्याएं सकती है।  इसलिए उनका भी स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं के प्रति ध्यान रखना जरूरी होगा। विदेश यात्रा की संभावना बहुत कम है। लेकिन अपनों से प्रयास कर सकते है।परिवार का कोई सदस्य विदेश जाने में कामयाब हो सकता है। इस महीने वैसे यात्रा होने के अच्छे योग। बनेंगे प्रेम संबंधों के लिए समय अनुकूल रहेगा। महीने का उत्तरार्ध कुछ कमजोर है। जबकि वैवाहिक संबंधों में उतार-चढ़ाव के बावजूद प्रेम बना रहने की संभावना दिखाई देती है। परिवार वालों का हस्तक्षेप आपके निजी जीवन में थोड़ी समस्या उत्पन्न कर सकता है। विद्यार्थियों के लिए महीना अनुकूल है। अपनी प्रतिभा को चमकने का मौका दें, जी भर कर मेहनत करें। इससे आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। आर्थिक लाभ भी होंगे और आपकी आर्थिक स्थिति अनुकूल हो जाएगी।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना उतार-चढ़ाव से भरा रहने वाला है। महीने की शुरुआत से ही केतु महाराज आपके दशम भाव में रहेंगे जो आपके मन को भटकाते रहेंगे। आपके मन में संतुष्टि का भाव कम होगा। आपको लगेगा कि जो आपको मिल रहा है।, वह अपर्याप्त है। और आप इससे ज्यादा के लिए बने है।इससे मन में कुंठा पैदा होगी। काम करने में मन नहीं लगेगा और काम में गड़बड़ी होने की भी संभावना बन जाएगी इसलिए अपनी नौकरी में बहुत सावधानी बरतें क्योंकि आपकी गलती परेशानी खड़ी कर सकती है। महीने की शुरुआत में राहु, सूर्य और शुक्र चतुर्थ भाव में बैठकर दशम भाव को देखेंगे जिस से बहुत सारी समस्याएं कार्यक्षेत्र में आपके सामने एक साथ सकती है।उन्हें एक चुनौती की भांति स्वीकार कर उनका सामना करें तभी आप नौकरी में अच्छा प्रदर्शन कर पाने में कामयाब होंगे। षष्ठ और एकादश भाव के स्वामी शुक्र चतुर्थ भाव में बैठे है।  जिससे नौकरी में कठिन प्रयासों के बाद सुख प्राप्ति अर्थात लाभ के योग बन सकते है।आपको अपने क्षेत्र में किसी से भी नुकसान हो सकता है। व्यापार करने वाले सुकून की खबर मिल सकती है। आपका व्यापार उन्नति की राह पर चल रहा है। और इसे आगे बढ़ने का मौका दें। अपने व्यापार में कुछ नए लोगों का समावेश करें। इसका मतलब यह है। कि कुछ नए लोगों के साथ संपर्क स्थापित करें जो आपके व्यापार को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे। ऐसा करने से आपका व्यापार और अधिक विस्तार पाएगा और आपको उन्नति प्रदान करेगा।

आर्थिक

यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो महीने की शुरुआत में बृहस्पति और बुध पंचम भाव में बैठकर आपके एकादश भाव को देखेंगे जिससे आमदनी में कोई बड़ी बाधा नहीं आएगी। आपकी आमदनी सुचारू रूप से चलती रहेगी। आर्थिक लाभ होंगे। चौथे भाव में राहु, सूर्य, शुक्र के प्रभाव से घर में किसी बहुत आवश्यक काम के लिए या किसी परिजन की स्वास्थ्य समस्याओं के लिए धन व्यय करना पड़ सकता है। हालांकि 23 अप्रैल को मंगल के भी चतुर्थ भाव में जाने से और वहां से एकादश भाव पर दृष्टि डालने से आमदनी में और अच्छी बढ़ोतरी होने के योग बनेंगे। मेष राशि के सूर्य 13 अप्रैल से पंचम भाव में आकर आपकी आमदनी का मार्ग प्रशस्त करेंगे। सरकारी क्षेत्र से लाभ के योग बनेंगे। व्यापार में भी उत्तम धन लाभ होगा। इस प्रकार यह महीना आपकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने में मददगार बनेगा।

स्वास्थ्य

मासिक राशिफल 2024 भविष्यवाणी करता है। कि यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कुछ उतार-चढ़ाव से भरा रहने वाला है। तीसरे भाव में मंगल और शनि का प्रभाव होने तथा चतुर्थ भाव में राहु, सूर्य, शुक्र के प्रभाव होने से आपको थोड़ी सावधानी रखनी होगी। आपको गले या कंधों में जकड़न या दर्द होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। आपका दाहिना कान भी प्रभावित हो सकता है। इसके साथ ही चतुर्थ भाव और सूर्य पर राहु का प्रभाव होने के कारण महीने के पूर्वार्ध में आपको अपने हृदय का ध्यान रखना चाहिए और कोई भी ऐसा कार्य करें, जो आपके हृदय के लिए नुकसानदायक हो। महीने का उत्तरार्ध अपेक्षाकृत अनुकूल रहेगा और थोड़ा सेहत में सुधार देखने को मिल सकता है। तीसरे भाव में अकेले शनि महीने के उत्तरार्ध में सेहत को अच्छा बनाने में मदद करेंगे।

प्रेम वैवाहिक

यदि आप किसी प्रेम संबंध में है।  तो आपके लिए महीने का पूर्वार्ध बहुत अनुकूल रहेगा। बृहस्पति और बुध के प्रभाव से आप अपने प्रेम जीवन का भरपूर लुत्फ लेंगे। आप और आपके परिजनों के बीच की नज़दीकियां बढ़ेंगी। आप एक दूसरे से ज्ञान धर्म की बातें‌ही नहीं करेंगे बल्कि किसी तीर्थ स्थल पर घूमने भी जा सकते है।आपसी बातों को, विचारों को साझा करने से आप एक दूसरे के और निकट आएंगे और एक दूसरे को और बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। हालांकि महीने के उत्तरार्ध में सूर्य अपनी उच्च राशि में मेष में 13 अप्रैल को प्रवेश करेंगे जो कि आपका पंचम भाव होगा और उससे पहले ही बुध चतुर्थ भाव में वापस लौट जाएंगे तो बृहस्पति और सूर्य के प्रभाव से आपके प्रियतम को कोई बड़ा पद मिल सकता है। यदि वह किसी नौकरी की तैयारी कर रहे है।  तो इस दौरान उन्हें सरकारी नौकरी की प्राप्ति हो सकती है। जिससे आपको उन पर गर्व होगा और आपका रिश्ता और भी बेहतर हो जाएगा।
यदि विवाहित जातकों की बात करें तो सप्तम भाव के स्वामी बुध महाराज वक्री अवस्था में पंचम भाव में रहेंगे जिससे आप और आपके जीवनसाथी के बीच प्रेम शब्दों में झलकेगा। एक दूसरे से प्यार भरी और समझदारी भरी बातें करेंगे, एक दूसरे का मार्गदर्शन करेंगे, अच्छे पति-पत्नी के रूप में अपने जीवन को सुचारू रूप से व्यतीत करेंगे। उसके बाद 9 अप्रैल को बुध वक्री अवस्था में चतुर्थ भाव में लौट जाएंगे और 13 तारीख को पंचम भाव में आएंगे और मंगल 23 तारीख को वक्री बुध महाराज के साथ चतुर्थ भाव में रहेंगे। इस दौरान वैवाहिक जीवन में तनाव और टकराव की स्थिति बन सकती है। आप और आपके जीवनसाथी के बीच गृह क्लेश हो सकता है। क्योंकि मंगल का चतुर्थ प्रभाव और बुध के साथ युति संबंध अनुकूल नहीं रहेगा। जुबानी जंग हो सकती है। अहम का टकराव हो सकता है। इससे बचने के लिए वाद विवाद को बढ़ने से पहले ही रोक लें और थोड़ा शांत हो जाएं। परिवार के सदस्यों को अपने वैवाहिक जीवन में ज्यादा हस्तक्षेप करने से रोकेंगे तो मामला सुलझ सकता है।

पारिवारिक

यह महीना पारिवारिक तौर पर उतार-चढ़ाव से भरा रहने की संभावना है। दूसरे भाव के स्वामी शनि महाराज कुंडली के तीसरे भाव में मंगल महाराज के साथ विराजमान रहकर पारिवारिक और कुटुंब के मामलों में समस्याएं उत्पन्न कर सकते है।आपसी संबंधों में तनाव और टकराव बढ़ेगा। आपकी वाणी में कड़वाहट बढ़ सकती है। जो अपनों को चुभ हो सकती है। और इससे आप के रिश्ते प्रभावित हो सकते है।भाई-बहनों को स्वास्थ्य समस्याएं और कुछ परेशानियां पीड़ित कर सकती है।ऐसी स्थिति में आपको उनका साथ देना चाहिए क्योंकि यह आपका कर्तव्य भी है। महीने के उत्तरार्ध में जब मंगल मीन राशि में 23 अप्रैल को चले जाएंगे और अकेले शनिदेव तृतीय भाव में रहेंगे तो भाई - बहनों का सुख मिलेगा और उनके साथ किसी यात्रा पर जाने की संभावना बनेगी। चतुर्थ भाव पूरे महीने पीड़ित रहने की संभावना है। चतुर्थ भाव में राहु, सूर्य और शुक्र एक साथ स्थित होंगे। यहां राहु-सूर्य का सूर्य ग्रहण दोष भी बनेगा जिससे माता और पिता के स्वास्थ्य पर भी ग्रहण लग सकता है। इसलिए उनके स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखें। 13 अप्रैल को सूर्य के पंचम भाव में जाने से और मंगल के 23 अप्रैल को चतुर्थ भाव में जाने से राहु-मंगल अंगारक दोष के प्रभाव से भी पारिवारिक जीवन में अशांति रहेगी। परिजनों का स्वास्थ्य बिगड़ा हुआ रहेगा इसलिए आपको सावधानी बरतनी होगी।

सरल उपाय

गुरु

1 ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
2 सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
3 ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।
4 किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
5 ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / पर पुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
6 गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
7 गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
8 गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते है।

 

चन्द्रराशिः मकर का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी है।वे मकर राशि के होते है। ये राशि चक्र की दसवीं राशि है। मकर राशि का स्वामी शनि होता है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार, अप्रैल का महीना मकर राशि में जन्म लेने वाले जातकों के लिए यह महीना अनुकूल रहने की संभावना है। जीवन के अनेक क्षेत्रों में आपको अच्छे लाभ के योग बनेंगे। आपका करियर हो या निजी जीवन, कई चीजें अच्छी रहेंगी जो आपको सुकून और खुशी प्रदान करेंगी। नौकरी करने वालों को अपने काम का अच्छा प्रतिफल मिलेगा। आपकी नौकरी में स्थिति अच्छी होने लगेगी और आपको अपने काम पर विश्वास होने लगेगा। आपका आत्मविश्वास लौट कर आएगा लेकिन कार्यक्षेत्र में अपने साथी कर्मचारियों से सावधानी रखें। व्यापार करने वाले जातकों को भी उत्तम लाभ के योग बनेंगे। पारिवारिक जीवन में वैसे तो संतुष्टि का भाव रहेगा, परिवार के लोग मिलजुल कर रहेंगे लेकिन बीच-बीच में लड़ाई झगड़े की नौबत भी सकती है। प्रेम संबंधों में अनुकूल समय रहेगा। आप अपने प्रियतम को अपने मित्रों से मिलवा सकते है।वैवाहिक संबंधों में तनाव बढ़ सकता है। लेकिन महीने के उत्तरार्ध में उसके अनुकूल होने की संभावना बन जाएगी। विदेश जाने में कुछ समस्याएं सामने सकती है।  लेकिन कुछ प्रयासों के बाद विदेश जाना आसान हो सकता है। विद्यार्थियों को शिक्षा में कुछ कठिन चुनौतियों का और अवरोधों का सामना करना पड़ सकता है। स्वास्थ्य पर थोड़ा सा ध्यान देना होगा।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना अनुकूल रहने की प्रबल संभावना है। दशम भाव के स्वामी शुक्र महाराज तीसरे भाव में राहु और सूर्य के साथ विराजमान रहेंगे और छठे भाव के स्वामी बुध महाराज बृहस्पति के साथ चतुर्थ भाव में स्थित रहेंगे और उन पर शनि की पूर्ण दृष्टि होगी। नौकरी में आप खूब मेहनत करेंगे। अपने काम को और अपनी अहमियत को पहचानेंगे और अपनी अलग जगह बनाने में कामयाब रहेंगे। आप का प्रदर्शन दिन प्रतिदिन सुधरता जाएगा जिससे नौकरी में आपको लाभ होगा लेकिन आपके साथी कर्मचारियों का व्यवहार कुछ अलग प्रकार का हो सकता है। वह आपके सामने तो प्यार भरी और मीठी-मीठी बातें करेंगे लेकिन पीठ पीछे आप को नीचा करने में बिल्कुल भी कमी नहीं छोड़ेंगे। ऐसे लोगों से थोड़ा सावधान रहें और थोड़ी दूरी बना लें। अपनी निजी बातें और कार्यक्षेत्र से संबंधित कोई विशेष बात उनसे साझा करें अन्यथा इसका प्रयोग वे आपके विरुद्ध ही कर सकते है।महीने के उत्तरार्ध में शुक्र महाराज 24 तारीख को चतुर्थ भाव में आकर आपके दशम भाव को देखेंगे। इससे नौकरी में आप की स्थिति और प्रबल होने लगेगी। व्यापार करने वाले जातकों के लिए महीने की शुरुआत अच्छी है। आपको कठिन मेहनत करनी होगी। कुछ लोगों का कार्य होगा कि आपके कामों में व्यवधान डालें, जो आपके विरोधी है।  और आप से जलते है।लेकिन आपको उनकी परवाह नहीं करनी है। और अपने काम पर डटे रहना है। व्यापार को लेकर आप काफी जोखिम भी उठाएंगे। यह जोखिम यदि पहले से आंकलन करके किया हुआ है। तो आपको लाभ देगा और आपके व्यापार में उन्नति की राह प्रशस्त होगी।

आर्थिक

यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो यह महीना मध्यम रूप से फलदायक रहने वाला है। शनि और मंगल एक साथ बैठकर दूसरे भाव को विकट स्थितियों में ला सकते है।  जिससे आपका संचित धन भी खर्च होने लगेगा, बचत में कमी आने लगेगी और आप परेशानियों को महसूस करेंगे लेकिन देव गुरु बृहस्पति की कृपा से विदेशी संपर्कों से लाभ होगा। आपको बाहर से धन प्राप्ति के योग बनेंगे। 23 अप्रैल को मंगल के तीसरे भाव में चले जाने से और शनि के अपनी ही राशि में बने रहने से आर्थिक लाभ बढ़ने लगेगा। धन संचय करने में फिर से सफलता मिलेगी। आप किसी संपत्ति से भी धन अर्जित कर सकते है।शुक्र के चतुर्थ भाव में आने से आपको निजी जीवन में भी अच्छे लाभ के योग बनेंगे। पारिवारिक आय में बढ़ोतरी होगी। नौकरी करने वाले लोगों को विशेष लाभ के योग बनेंगे। व्यापार जगत के लोगों को कुछ इंतजार करना पड़ेगा लेकिन आने वाले समय में अच्छे लाभ का मार्ग प्रशस्त होगा। इस महीने पूर्व में किए गए निवेश का लाभ आपको महीने के पूर्वार्ध में प्राप्त हो सकता है।

स्वास्थ्य

यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से ठीक-ठाक तो रहेगा लेकिन कुछ स्थानों पर आपको विशेष ध्यान देना होगा। शनि और मंगल के दूसरे भाव में होने के कारण नेत्र पीड़ा, आंखों में जलन जैसी समस्या परेशान कर सकती है। आपके दांतों में दर्द भी हो सकता है। खानपान की अपनी आदतों को सुधारने से समस्या में कमी आएगी। पूरे महीने राहु के तीसरे भाव में बने रहने और महीने के पूर्वार्ध में सूर्य और उत्तरार्ध में मंगल के साथ युति करने के कारण कंधों और गले में तकलीफ का सामना करना पड़ सकता है। आपके दाहिने कान में भी कोई समस्या महसूस हो सकती है। चतुर्थ भाव वैसे तो अच्छा रहेगा और बृहस्पति महाराज की कृपा से आप यदि वसायुक्त पदार्थों का सेवन संतुलित मात्रा में करेंगे तो अच्छा स्वास्थ्य महीने के उत्तरार्ध में प्राप्त कर सकते है।अपने स्वास्थ्य को और बेहतर बनाने के लिए आपको किसी नई दिनचर्या का पालन करने पर विचार करना चाहिए।

प्रेम वैवाहिक

यदि आप किसी प्रेम संबंध में है।  तो महीने की शुरूआत अनुकूल रहेगी। आपको अपने प्रियतम को अपने दोस्तों से मिलाने का मौका मिलेगा। आप उन्हें उनसे मिलवा कर बहुत खुश महसूस करेंगे। आपके दोस्त भी आपकी पसंद की दाद देते नहीं थकेंगे। हालांकि कुछ दोस्तों का रवैया ऐसा होगा जो आपको अच्छा नहीं लगेगा और आपको लगेगा कि आपने उनसे अपने प्रियतम को मिलवाया ही क्यों लेकिन इन सब बातों से ऊपर उठकर हर रिश्ते की अहमियत को समझें। अपने प्रियतम को समय दें और उनके दिल में अपनी जगह बनाने की कोशिश करें। उनके लिए कुछ नए उपहार लेकर भी आएंगे जो उनके दिल को छू जाएंगे। 24 तारीख को शुक्र चतुर्थ भाव में आकर आपके प्रेम संबंधों को और प्रगाढ़ बनाएंगे। विवाहित जातकों के लिए महीने की शुरुआत कठिन होगी। शनि और मंगल दूसरे भाव में रहेंगे जो कि सप्तम भाव से अष्टम भाव होगा। इसके परिणाम स्वरूप जीवनसाथी का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। उन्हें कोई बड़ी शारीरिक समस्या इस दौरान परेशान कर सकती है। जिसके लिए आपको बहुत ध्यान देना होगा। हो सकता है। कि इस समय में उनकी कोई शल्य चिकित्सा भी हो। उनके व्यवहार में भी बदलाव आपको दिखाई देने लगेंगे जिसके परिणामस्वरूप आप दोनों के बीच कुछ तनाव बढ़ सकता है। लेकिन एक अच्छे जीवनसाथी की तरह आप इस समस्या से बाहर निकालने का रास्ता निकाल ही लेंगे। वैसे भी 23 अप्रैल को मंगल के द्वितीय भाव से निकलकर तीसरे भाव में जाने से इन समस्याओं में कमी आएगी और आपका वैवाहिक जीवन सुधरने लगेगा।

पारिवारिक

मासिक राशिफल 2024 भविष्यवाणी करता है। कि यह महीना पारिवारिक तौर पर अच्छा रहने की संभावना है। चौथे भाव में बृहस्पति और बुध एक साथ स्थित होकर पारिवारिक जीवन को सुखमय बनाने में पूर्ण प्रयास करेंगे। माता-पिता का स्वास्थ्य अनुकूल होगा। उनका आशीर्वाद आपको मिलता रहेगा। परिवार में एकजुटता रहेगी। परिवार के लोग आपस में प्रेम बनाए रखेंगे। तीसरे भाव में राहु, सूर्य और शुक्र के कारण आपको भाई-बहनों से प्रेम भी मिलेगा लेकिन वे खुद किसी परेशानी में घिरे हो सकते है।ऐसी स्थिति में आपको उनकी मदद करनी चाहिए क्योंकि उन्हें आपकी मदद की दरकार भी होगी। उनसे किसी भी प्रकार का वाद-विवाद करने से बचें क्योंकि इससे आपके संबंध बिगड़ सकते है।आपकी राशि से दूसरे भाव में शनि और मंगल जैसे ग्रहों का प्रभाव कुटुंब के लोगों में आपसी तनाव और टकराव की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। आप भी कुछ ऐसे शब्द और वाक्य बोल सकते है।  जो आपके अपनों को चुभ जाएं और उनको नागवार गुजरें। इससे परिवार का माहौल बिगड़ सकता है। इसलिए जहां भी हो, सोच समझ कर प्यार से बातचीत करें ताकि किसी तरह की कोई बड़ी समस्या पारिवारिक जीवन को खराब कर पाए।

सरल उपाय

शनि

1 शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएँ।
2 शनिवार के दिन लोहे, चमड़े, लकड़ी की वस्तुएँ एवं किसी भी प्रकार का तेल नहीं खरीदना चाहिए।
3 शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नही कटवाने चाहिए
भिखारी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए।
4 भिखारी को उड़द की दाल की कचोरी खिलानी चाहिए।
5 किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से पोंछने चाहिए।
घर में काला पत्थर लगवाना चाहिए।
6 शनि के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

 

चन्द्रराशिः कुंभ का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा है।वे कुंभ राशि के होते है। ये राशि चक्र की ग्याहरवीं राशि है।कुंभ राशि का स्वामी शनि होता है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार, कुंभ राशि में जन्मे जातकों के लिए यह महीना उतार-चढ़ाव से भरा रहने की संभावना है। आपको जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में मिश्रित परिणामों की प्राप्ति होगी। शनि और मंगल महीने की शुरुआत में ही आपकी राशि में विराजमान रहेंगे जिससे स्वास्थ्य समस्याएं परेशान कर सकती है।आपका स्वभाव विचित्र रहेगा। आप जल्दी इरिटेट हो जाएंगे और किसी से भी बुरा भला कहने से हिचकिचाएंगे नहीं जिससे समस्या हो सकती है। पारिवारिक जीवन में भी तनाव बढ़ेगा। आप अपने परिवार के लोगों से भी अच्छे से पेश नहीं आएंगे जिसका असर परिवार की शांति पर पड़ सकता है। भाई-बहनों का सहयोगात्मक रवैया बना रहेगा जिससे आपको लाभ होगा। प्रेम संबंधों में इस महीने नई प्रगति होनी संभव है। जबकि वैवाहिक जीवन के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय होने की प्रबल संभावना है। आपको और आपके जीवन साथी को संयम से कार्य करना होगा तभी आप अपने रिश्ते की गरिमा को संभाल पाएंगे। करियर में उतार-चढ़ाव के बावजूद कुछ प्रगति होने के योग बनेंगे। महीने का पूर्वार्ध अधिक अनुकूल रहेगा। कुछ समस्याएं सामने सकती है।विद्यार्थियों को मेहनत के बाद ही सफलता की उम्मीद करनी चाहिए।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना मध्यम रहने की संभावना है। दशम भाव के स्वामी मंगल महाराज महीने की शुरुआत में ही आपकी राशि स्वामी शनि के साथ आपके प्रथम भाव में रहेंगे। शनि और मंगल विपरीत प्रकृति के ग्रह होने के कारण आपके व्यवहार में बदलाव आएगा। आप थोड़े चिढ़चिढ़े हो जाएंगे और इसका असर आपके काम पर भी पड़ेगा। आप अपने कार्य क्षेत्र में लोगों से बिना बात के झगड़ा कर सकते है।  जिसकी कोई खास वजह नहीं होगी और इसकी वजह से आप बाद में पछताएंगे लेकिन तब तक देर हो सकती है। इसलिए आपको बहुत ज्यादा सावधानी रखनी होगी। किसी से भी व्यर्थ वाद विवाद होने दें अन्यथा आपकी नौकरी खतरे में पड़ सकती है। हालांकि अच्छी बात यह है। कि आपके सहकर्मियों का सहयोग आपके प्रति बना रहेगा जिससे आपको अपनी नौकरी में इच्छित परिणामों की प्राप्ति होगी और आप अपनी नौकरी में मेहनत के दम पर आगे बढ़ने लगेंगे।
आप के वरिष्ठ अधिकारी आपको कुछ नई चुनौतियां देंगे जिन्हें पूरा करना आपके लिए आवश्यक होगा। हालांकि आप उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेंगे और अपना स्थान पक्का करेंगे। व्यापार करने वाले जातकों को भी ध्यान देना होगा। शनि और मंगल का संयुक्त प्रभाव सप्तम भाव पर महीने की शुरुआत में ही बना रहेगा और दूसरे भाव में राहु और सूर्य ग्रहण दोष निर्मित करेंगे, जहां पर शुक्र भी विराजमान होंगे। यह दोनों ही ग्रह स्थितियां व्यापार में शिथिलता ला सकती है।आपके व्यवसाय में चुनौती बढ़ने के योग बन रहे है।आप अपने यहां काम करने वाले लोगों और जिन लोगों के साथ मिलकर काम कर रहे है।उनके साथ अच्छा व्यवहार कर पाएं, ऐसी स्थिति बन रही है। इसलिए आपको बहुत सावधानी रखनी होगी। व्यापार को लेकर किसी तरह का नया निवेश करने से बचना चाहिए।

आर्थिक

यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो इस महीने सबसे अच्छी बात यह रहेगी कि आप के खर्चे पूरी तरह से नियंत्रण में रहेंगे। कुछ एक छोटे-मोटे धार्मिक और घरेलू कार्यों को छोड़ दें तो कोई व्यर्थ का व्यय इस महीने आपके सामने नहीं आने वाला है। और इस कारण से आपकी आमदनी जितनी भी होगी, वह आपके लिए पर्याप्त होगी और आप राहत की सांस लेंगे। मासिक राशिफल 2024 संकेत दे रहा है। कि दूसरे भाव में राहु और सूर्य का ग्रहण दोष आर्थिक स्थिति में समस्या खड़ी करेगा। धन की बचत होने में समस्या होगी लेकिन यहीं पर उच्च राशि के होकर शुक्र धीरे-धीरे अपना प्रभाव बढ़ाएंगे और उनके परिणाम स्वरुप आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगेगा। एकादश भाव के स्वामी देव गुरु बृहस्पति महाराज कुंडली के तृतीय भाव में विराजमान रहेंगे। इसके परिणाम स्वरूप निजी प्रयासों से आपको अर्थ लाभ होने के योग बनेंगे। आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और आप अपने प्रयासों को बढ़ाते हुए अपनी आर्थि स्थिति को भी मजबूत बना सकते है।व्यापार में चुनौतियों के बावजूद सरकारी क्षेत्र से लाभ के योग महीने के उत्तरार्ध में बन सकते है।आप किसी संपत्ति के क्रय विक्रय का लाभ अभी इस महीने उठा सकते है।  जिससे आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी। यदि आपने शेयर बाजार में निवेश किया हुआ है। तो महीने के उत्तरार्ध में आपको अच्छी सफलता और अर्थ लाभ मिल सकता है।

स्वास्थ्य

यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कुछ कमजोर रहने की ही संभावना है। सर्वप्रथम राशि स्वामी शनि महाराज आपकी ही राशि में विराजमान रहकर स्वास्थ्य को अनुकूल बनाने का पूर्ण प्रयास करेंगे लेकिन अष्टम भाव में केतु और प्रथम भाव में मंगल का विराजमान होना शारीरिक समस्याओं को बढ़ा सकता है। आपको किसी प्रकार की शल्य चिकित्सा से गुजरना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त किसी प्रकार का गुदा रोग अथवा रक्त जनित समस्याएं या रक्त शुद्धि अथवा अनियमित रक्तचाप या सिर दर्द और बुखार जैसी समस्याएं आपको इस महीने परेशान कर सकती है।दूसरे भाव में महीने की शुरुआत में राहु और सूर्य शुक्र के साथ विराजमान होंगे और महीने के उत्तरार्ध में मंगल और राहु का अंगारक योग भी इसी भाव में बनेगा जिससे आपको आंखों में समस्या, दांतों में दर्द या मुंह में छाले परेशान कर सकते है।  इसलिए इस महीने अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखें। हल्का और सुपाच्य भोजन करें। सुबह की सैर का आनंद लें। वजन को बढ़ने दें और मसालों का कम से कम प्रयोग करें। इससे आप अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते है।यदि आप पहले से किसी बीमारी का शिकार है।  तो अपने इलाज को निरंतर बनाए रखें। इससे आपको लाभ होगा और परहेज पर भी ध्यान दें।

प्रेम वैवाहिक

यदि आप अभी तक अकेले है।  तो इस महीने आपके जीवन में किसी मित्र से खास निकटता बढ़ने की संभावना बनेगी। आप उनसे अपने दिल की बात कह सकते है।  जो अभी तक आपने छुपा रखी थी और आपको उसमें सफलता मिल सकती है। लेकिन ध्यान रखें कि आप ऐसा करना चाहते है।  तो 9 अप्रैल से पहले कर लें क्योंकि उसके बाद बुध महाराज द्वितीय भाव में चले जाएंगे जहां वह वक्री अवस्था में होंगे।‌ इससे आपकी बात का बतंगड़ बन सकता है। और आपका प्रस्ताव ठुकराया भी जा सकता है। यदि आप किसी प्रेम संबंध में है।  तो इस संबंध में नई प्रगति के योग बनेंगे। आप अपने मन की हर बात अपने प्रियतम के सामने रख देंगे। उन्हें आपकी सादगी पसंद आएगी। आप उनसे विवाह का प्रस्ताव भी रख सकते है।  जिस में सफलता मिलने की उम्मीद है। हालांकि यह महीने के प्रथम सप्ताह के दौरान ऐसा करना ज्यादा लाभदायक रहेगा। यदि आप किसी वैवाहिक संबंध में है।  तो यह महीना आपके लिए कुछ कमजोर रहने की प्रबल संभावना है। शनि और मंगल का संयुक्त प्रभाव प्रथम भाव से आपके सप्तम भाव पर पड़ेगा। इन विपरीत प्रकृति के ग्रहों के कारण आप और आपके जीवनसाथी के मध्य परेशानियां बढ़ सकती है।एक दूसरे को देख कर तनाव, टकराव, अहम की लड़ाई और अनेक ऐसी समस्याएं हो सकती है।जिनके बारे में सोचा हो। यह अल्प समय के लिए ही होगा लेकिन अपनी छाप छोड़ सकता है। आप और आपके जीवन साथी को स्वास्थ्य समस्याएं भी परेशान कर सकते है।  इसलिए इस समय को व्यतीत होने दें और कुछ प्रतीक्षा करें। मंगल महाराज 23 अप्रैल को द्वितीय भाव में जाएंगे और सप्तम भाव से उनका प्रभाव हट जाएगा। इससे यह स्थिति ठीक होने लगेगी। हालांकि जीवनसाथी को स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती है।  इसलिए उनका पूरी तरह से ध्यान रखें।

पारिवारिक

यह महीना पारिवारिक तौर पर उथल-पुथल से भरा रहने वाला है। महीने की शुरुआत में शनि और मंगल आपके प्रथम भाव में रहेंगे, जहां से शनि की दृष्टि तीसरे भाव पर रहेगी, जहां बुध और बृहस्पति विराजमान होंगे। मंगल प्रथम भाव से आपके चतुर्थ भाव और सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे तथा आपकी राशि से दूसरे भाव में शुक्र, राहु और सूर्य विराजमान होंगे। इन ग्रह स्थितियों के अनुसार पारिवारिक जीवन में तनाव और टकराव की स्थिति बन सकती है। आपका व्यवहार भी इसका एक कारण बन सकता है। आपको परिवार के सदस्यों से मीठी वाणी बोलनी चाहिए जिससे आपके संबंध आपके अपनों से मधुर बने रहें। किसी बात पर भी अनावश्यक प्रतिक्रिया देने से बचें और अत्यधिक गुस्सा करने से भी बचें। वाद विवाद को बढ़ने से रोक कर ही आप पारिवारिक समस्याओं को रोक सकते है।राहु और सूर्य का ग्रहण दोष पैतृक व्यवसाय में समस्या खड़ी कर सकता है। और कुटुंब के लोगों में आपसी विषमताओं को बढ़ावा दे सकता है। इसलिए आपको बहुत समझकर अपना कोई भी विचार सामने रखना चाहिए। हालांकि मंगल 23 अप्रैल को आपके द्वितीय भाव में जाएंगे और सूर्य 13 अप्रैल को तीसरे भाव में चुके होंगे जिससे आपके माता-पिता के स्वास्थ्य में सुधार आएगा और पुरानी समस्याओं में कमी आएगी, फिर भी आपको पारिवारिक सदस्यों से अच्छा व्यवहार करके अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए प्रयासरत रहना होगा। भाई - बहन आपके लिए मददगार साबित होंगे। आर्थिक रूप से भी वे आपकी मदद कर सकते है।  और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उनका मददगार रवैया आप को बहुत सुकून और सहानुभूति देगा।

सरल उपाय

शनि

1 शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएँ।
2 शनिवार के दिन लोहे, चमड़े, लकड़ी की वस्तुएँ एवं किसी भी प्रकार का तेल नहीं खरीदना चाहिए।
3 शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नही कटवाने चाहिए
भिखारी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए।
4 भिखारी को उड़द की दाल की कचोरी खिलानी चाहिए।
5 किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से पोंछने चाहिए।
घर में काला पत्थर लगवाना चाहिए।
6 शनि के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

 

चन्द्रराशिः मीन का मासिक राशिफल (अप्रैल 2024)

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर दी,दू,,, दे, दो, चा, जी होता है। वे मीन राशि के होते है।और इसका निशान मछली होती है। मीन राशि का स्वामी बृहस्पति होता है।

सामान्य

मासिक राशिफल 2024 के अनुसार, यह महीना मीन राशि के जातकों के लिए मध्यम रूप से फलदायक रहने की संभावना है। इस महीने की शुरुआत से ही आपको कुछ चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए जो विशेषकर आर्थिक और शारीरिक रूप तथा निजी जीवन में सामने सकती है।महीने की शुरुआत में आपकी ही राशि में राहु और सूर्य ग्रहण योग बनाएंगे जो आपके व्यवहार, आपके शारीरिक स्वास्थ्य और आपके वैवाहिक जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। द्वादश भाव में शनि और मंगल के दुष्प्रभाव से पीड़ित होने के कारण वैवाहिक जीवन में बाधाएं दे सकता है। निजी जीवन में समस्याओं को जन्म दे सकता है। और आर्थिक चुनौतियों का कारण बन सकता है। हालांकि महीने का उत्तरार्ध अपेक्षाकृत अनुकूल रहने से आप इन परिस्थितियों से बाहर भी निकल सकते है।विद्यार्थियों को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और यदि आप इन के लिए तैयार है।  तो फिर सफलता आपका इंतजार कर रही है। नौकरी करने वाले जातकों को अनुकूल परिणामों की प्राप्ति होगी और आपका ओहदा बढ़ेगा। व्यापार करने वाले जातकों को संभल कर चलना होगा। कुछ चुनौतियां आपका इंतजार कर रही है।जो कानूनी भी हो सकती है।पारिवारिक जीवन में कुछ तनाव के बाद चिंता के बादल छंट जाएंगे। विदेश जाने का सपना पूरा हो सकता है। जिससे आपको खुशी मिलेगी।

कार्यक्षेत्र

करियर के दृष्टिकोण से यह महीना मिश्रित परिणाम लेकर आने वाला है। अभी आप नौकरी करते है।  तो आपके लिए यह महीना अवसरों को जन्म देने वाला महीना हो सकता है। दशम भाव के स्वामी देव गुरु बृहस्पति आपके द्वितीय भाव में विराजमान रहेंगे। इससे आपका कार्य क्षेत्र में ओहदा बढ़ने की संभावना है। यानी कि आपकी पदोन्नति हो सकती है। आपके कार्यों को देख कर और आपके अनुभव के आधार पर आपको नया कार्यभार सौंपा जा सकता है। आपके काम की प्रशंसा होगी। आपको अपनी मेहनत का फल मिलेगा। वरिष्ठ अधिकारी आपको सहयोग देंगे। कार्यक्षेत्र में चुनौती पूर्ण कार्यों को भी आप आसानी से कर देंगे जिससे आपको चारों तरफ से प्रशंसा मिलेगी। आपके साथ काम करने वाले सहकर्मी भी आपकी तारीफ करते हुए नहीं थकेंगे और इससे आपके चारों ओर का ऐसा माहौल बनेगा जो आपको हर तरह से खुशी और संपन्नता की ओर लेकर जाएगा। छठे भाव के स्वामी सूर्य महाराज प्रथम भाव में रहकर आपको जुझारू बनाएंगे और आपके विरोधियों को भी आप पछाड़ देंगे। प्रतिकूल परिस्थितियों से बाहर निकल कर आप अपने काम पर ध्यान देंगे और उसे बेहतर बनाने में पूरा जी जान लगा देंगे। इससे कार्यक्षेत्र में आप का दबदबा बढ़ेगा।
व्यापार करने वाले जातकों को थोड़ा समझना होगा। सप्तम भाव में केतु महाराज पूरे महीने बने रहेंगे और द्वादश भाव में बैठे मंगल महाराज तथा प्रथम भाव में बैठे राहु, सूर्य और शुक्र का प्रभाव आपके सप्तम भाव पर पड़ेगा जिससे व्यापार में उथल-पुथल मच सकती है। आपको अपने व्यवसायिक साझेदार से भी अपने संबंधों को दुरुस्त करना होगा नहीं तो समस्याएं और बढ़ सकती है।13 तारीख को सूर्य आपके दूसरे भाव में चले जाएंगे और 23 तारीख को मंगल आपके प्रथम भाव में जाएंगे। इस दौरान भी व्यापार में कुछ समस्याएं सकती है।आपको कुछ कानूनी अड़चनों का भी सामना करना पड़ सकता है। उनके लिए पहले से तैयार रहेंगे तो भली प्रकार उनका सामना कर पाएंगे। वक्री अवस्था में भी प्रथम भाव में आकर 9 अप्रैल से अपना प्रभाव दिखाएंगे जिससे व्यापार में किसी एक काम को बार-बार करने पर ध्यान देना होगा। आप यदि कोई उत्पादन करते है।  तो उसमें कुछ खामियां सकती है।  जिसके लिए आपको दोबारा उसका निर्माण करना पड़ सकता है। इसलिए पूरी बारीकी से अपने काम पर ध्यान रखें ताकि आपका व्यापार सफलता की ओर बढ़ सके।

आर्थिक

यदि आपकी आर्थिक स्थिति को देखा जाए तो महीने की शुरुआत कुछ कमज़ोर रहने की संभावना है। आपकी राशि से द्वादश भाव में शनि और मंगल एक साथ विराजमान रहेंगे जिससे आपके खर्चों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी होने की संभावना है। यह बेतहाशा खर्च आपको परेशान कर के रख देंगे और आप की आमदनी पर बोझ बन जाएंगे। आपको इन्हें संभालना मुश्किल जान पड़ेगा और इससे आपकी आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगेगी। हालांकि राहत की बात यह है। कि बृहस्पति और बुध मेष राशि में आपके द्वितीय भाव में महीने की शुरुआत में रहेंगे जो धन संचय करने में भी थोड़ी मदद करेंगे और आप अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा बचत में भी लगा सकते है।जो आपके बैंक बैलेंस को बढ़ाने में मदद कर सकती है। आपको इस महीने विदेशी स्रोतों से धन लाभ होने के प्रबल योग बनेंगे फिर 13 अप्रैल को सूर्य मेष राशि में दूसरे भाव में जाएंगे जिससे वाद विवाद और कोर्ट कचहरी से संबंधित मामलों से आपको धन लाभ प्राप्त हो सकता है। 23 अप्रैल को मंगल द्वादश भाव से निकलकर प्रथम भाव में जाएंगे, तब आपके खर्चों में कुछ कमी होनी शुरू हो जाएगी और आपकी आमदनी का रास्ता खुलने लगेगा। यह समय आपके लिए अनुकूल रहेगा।
इस प्रकार विशेष रूप से महीने का उत्तरार्ध आपके लिए ज्यादा अनुकूल रहने की संभावना है। नौकरी करने वाले जातकों को अच्छी पदोन्नति मिलने से अर्थ लाभ के योग भी बनेंगे। अष्टम भाव के स्वामी शुक्र महाराज के अपनी उच्च राशि के होकर प्रथम भाव में होने से आपको गुप्त स्रोतों से भी धन लाभ हो सकता है। किसी प्रकार की वसीयत या संपत्ति जो पैतृक रूप से हो, आपको प्राप्त हो सकती है। अथवा शेयर बाजार से लाभ भी मिल सकता है।

स्वास्थ्य

यह महीना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कुछ कमज़ोर रहने की संभावना है। आपकी राशि के स्वामी देव गुरु बृहस्पति तो द्वितीय भाव में रहकर अच्छी अवस्था में रहेंगे लेकिन उन पर द्वादश भाव में बैठे शनि देव जी की पूर्ण दृष्टि होगी जो स्वास्थ्य को पीड़ित करेगी। इस महीने आपको मोटापा बढ़ने, वसा जनक बीमारियां होने अथवा कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की शिकायत हो सकती है। आपको इस महीने अपना थायराइड का चेकअप भी कराना चाहिए। आपकी राशि में राहु और सूर्य ग्रहण योग बनाएंगे तो साथ में शुक्र भी विराजमान रहेंगे। इसके साथ ही शनि द्वादश भाव में बने रहेंगे और मंगल 23 तारीख को आपके प्रथम भाव में जाएंगे। इस प्रकार स्वास्थ्य समस्याएं बनी रहने की संभावना है। आपको अपने खान-पान को सुधारना होगा और बहुत हल्का भोजन करने पर ध्यान देना चाहिए। अपने पेट को आराम देंगे और अच्छा भोजन करेंगे तो बहुत सारी बड़ी समस्याओं से आप बच सकते है।शनि देव जी और मंगल देव जी के प्रभाव से बायें नेत्र में समस्या हो सकती है। आपको एड़ियों में दर्द भी हो सकता है। छठे भाव के स्वामी सूर्य और अष्टम भाव के स्वामी शुक्र तथा सप्तम भाव के स्वामी बुध महाराज तीनों एक साथ आपके प्रथम भाव को 9 तारीख से प्रभावित करेंगे जिससे कोई बड़ी बीमारी पनप सकती है। इसलिए आपको बहुत सावधानी रखनी होगी और छोटी से छोटी समस्या को भी नजरअंदाज करने से बचना होगा। इससे ही आप किसी बड़ी समस्या की चपेट में आने से बच सकते है।

प्रेम वैवाहिक

मासिक राशिफल 2024 भविष्यवाणी करता है। कि यदि आप किसी प्रेम संबंध में है।  तो आपको थोड़ी सी सावधानियां रखनी होंगी। द्वादश भाव में शनि और मंगल के प्रभाव से आपके अंतरंग संबंध बिगड़ सकते है।आप जिन से प्रेम करते है।उनके स्वास्थ्य में गिरावट सकती है। और आपको उनकी चिंता सताएगी। जब स्वास्थ्य पीड़ित होगा तो ऐसे में प्यार की बातें ज्यादा अच्छी नहीं लगेंगी इसलिए स्वयं पर नियंत्रण रखें और अपने प्रियतम को पर्याप्त समय दें ताकि वह आप से प्रभावित हो सकें और आपके प्रेम को महसूस कर सकें। जबरदस्ती उनके ऊपर अपने प्यार की बातें थोपने की कोशिश करें। यदि वह बीमार है।  तो उनकी मदद करें। धीरे-धीरे महीने के आगे बढ़ने के साथ आप की स्थितियों में सुधार होगा और आपका प्रेम जीवन पुष्पित और पल्लवित होने लगेगा। यदि आप विवाहित है।  तो आपके वैवाहिक जीवन के लिए यह महीना बहुत परेशानी जनक हो सकता है। इसलिए आपको ह्रदय को कड़ा करते हुए चुनौतियों को स्वीकार करना होगा। राहु और सूर्य प्रथम भाव में बैठकर आपके सप्तम भाव को देखेंगे, जहां पर केतु महाराज विराजमान है।द्वादश भाव में शनि और मंगल रहेंगे, वहां से मंगल की दृष्टि सप्तम भाव पर रहेगी। शुक्र की दृष्टि भी आपके सप्तम भाव पर रहेगी। इससे वैवाहिक जीवन में तनाव बढ़ सकता है।
आपसी लड़ाई-झगड़े की स्थिति बार-बार बनेगी जिसे टालने की कोशिश आपके लिए बेहद आवश्यक होगी। 9 अप्रैल को बुध वक्री अवस्था में प्रथम भाव में आकर आपके सप्तम भाव पर प्रभाव डालने लगेंगे जिससे जुबानी जंग बढ़ा सकती है। 13 अप्रैल को सूर्य के यहां से निकल जाने के बाद स्थितियों में थोड़ा परिवर्तन होगा और शुक्र का प्रभाव बढ़ने लगेगा जिससे आपके बीच और रूमानियत भी बढ़ेगी और प्रेम की बातें भी होने लगेंगी। इसके बाद 23 अप्रैल को मंगल भी आपकी राशि में आकर सप्तम भाव को देखेंगे जो इन समस्याओं को फिर से बढ़ा सकते है।  इसलिए इस पूरे महीने धूप छांव की स्थिति रहने वाली है। आपको बहुत सावधानी के साथ अपने रिश्ते को संभालना होगा।

पारिवारिक

यह महीना पारिवारिक तौर पर बहुत हद तक अनुकूल परिणाम लेकर आने वाला है। आपके दूसरे भाव में बृहस्पति और बुध विराजमान रहेंगे तो चतुर्थ भाव पर किसी ग्रह का विशेष प्रभाव नहीं रहेगा। इससे निजी संबंधों में प्रगाढ़ता बनी रहेगी। आपसी सामंजस्य बढ़ेगा। आपकी वाणी में अधिकार और अपनत्व की भावना बढ़ेगी। बृहस्पति और बुध के प्रभाव से आप अच्छी-अच्छी बातें करेंगे जिससे परिवार के लोग आपके प्रति प्रेम का भाव रखेंगे। आपसी कुटुंब के लोगों में तनाव में कमी आएगी। हालांकि शनि देव की दृष्टि भी दूसरे भाव पर रहेगी जिससे बीच-बीच में कोई कोई ऐसी बात छिड़ सकती है। जो समस्या बढ़ाए लेकिन आप उसे समय रहते दूर कर सकते है।महीने के उत्तरार्ध में कुछ चुनौतियां बढ़ सकती है।  क्योंकि सूर्य महाराज आपके दूसरे भाव में जाएंगे और मंगल महाराज आपके प्रथम भाव में आकर चतुर्थ भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे जिससे घर में कुछ उग्रता बढ़ सकती है।, लोगों के बीच आपसी सामंजस्य की कमी के कारण घर का माहौल अशांत हो सकता है। ऐसे में धैर्य से काम लेना बेहतर होगा। तीसरे भाव के स्वामी शुक्र महाराज महीने की शुरुआत में आपके प्रथम भाव में रहकर आपको पूर्ण रूप से सहयोग देंगे जिससे आपके भाई बहनों का भी रवैया आपके प्रति प्रेम पूर्ण बना रहेगा। 24 अप्रैल को शुक्र मेष राशि में आपके दूसरे भाव में प्रवेश करेंगे जिससे आपके भाई - बहन आपकी आर्थिक मदद भी कर सकते है।हालांकि इस दौरान आपका उनसे व्यवहार और भी बढ़िया रहेगा तथा आप एक दूसरे के काम आएंगे। यही वास्तव में एक अच्छे रिश्ते की पहचान भी है।

सरल उपाय

गुरु

1 ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
2 सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
3 ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।
4 किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
5 ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / पर पुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
6 गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
7 गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
8 गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते है।

राम रामाय नमः

श्री राम ज्योति सदन

पंडित आशु बहुगुणा

भारतीय वैदिक ज्योतिष और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामशॅ दाता

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पंडित जी के बारे में

“ वक्रतुण्ड महाकाय , सूर्यकोटि समप्रभ ! निर्विघ्नं कुरु मे देव , सर्व कार्येषु सर्वदा” !! वनं समाश्रिता येपि निर्ममा निष्परिग्रहा: अपिते परिपृच्छन्ति ज्योतिषां गति कोविदम ॥ • जो सर्वस्व त्यागकर वनों में जा चुके हैं। ऐसे राग-द्वेष शुन्य,निष्परिग्रह ऋषि भी अपना भविष्य जानने को उत्सुक रहते हैं। तब साधारण मानव की तो बात ही क्या है।? आइये जाने,समझे एवं प्रयोग करें। हमारे ऋषि मुनियों द्वारा प्रदत्त उस ज्योतिषीय ज्ञान को.जिसका कोई विकल्प नहीं हें। इस ज्योतिष विद्या के द्वारा आप और हम सभी भविष्य में होने वाले अच्छे-बुरे घटना क्रम को जान सकते हें। उपाय कर सकते हें। पूजा पाठ,मन्त्र जाप जेसे उपायों द्वारा उस अशुभ घटना को टालने का प्रयास कर सकते हें। भारतीय ज्योतिष शास्त्र की दुनिया में  पिछले 32 सालों से अपनी सेवा दे रहें । पंडित आशु बहुगुणा मूल रुप से जिला मुजफ्फरनगर के निवासी हैं। इन्हें ग्रहों और नक्षत्रों का और अंक ज्योतिष,मंत्र विद्या का बहुत अच्छे से ज्ञान है। इसके अलावा, मंत्र अनुष्ठान में भी महारथ हासिल है। बता दें कि इन्होंने अपने ज्ञान से कई लोगों का उद्धार किया है। जिसकी वजह इनकी पहचान विश्वसनीय पंडित के रुप में हैं। श्रीराम ज्योतिष सदन. भारतीय वैदिक ज्योतिष.और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामँश दाता । आप जन्मकुंडली बनवाना , जन्मकुंडली दिखवाना , जन्मकुंडली मिलान करवाना , जन्मकुंडली के अनुसार नवग्रहो का उपाय जानना , मंत्रो के माध्यम से उपाय जानना , रत्नो के माध्यम से उपाय जानना , और आपकी शादी नही हो रही है। व्यवसाय मे सफलता नही मिल रही है! , नोकरी मे सफलता नही मिल रही है। और आप शत्रु से परेशान है। ओर आपके कामो मे अडचन आ रही है । , और आपको धन सम्बंधी परेशानी है । और अन्य सभी प्रकार की समस्याओ के लिये संपर्क करें । हमारे यहाँ जन्मकुण्डली भी बनाई जाती है। ॐ रां रामाय नम: श्रीराम ज्योतिष सदन, पंडित आशु बहुगुणा, संपर्क सूत्र- 9760924411- Muzaffarnagar.(up) PROVIDE YOUR DETAILS • Name/Gender • Birth Date • Birth Time • Birth Place-------------------- https://www.youtube.com/@AstroAshuPandit AstroAshuPandit Channel में आप सब का भारतीय वैदिक भारतीय ज्योतिष मन्त्र विद्या ज्ञान चैनल में स्वागत करता हूँ। यह एक ज्योतिष और आध्यात्मिक चैनल है जो आपको भारतीय ज्योतिष, वैदिक ज्योतिष, प्राचीन ग्रंथों का ज्ञान और आध्यात्मिकता पर शिक्षा प्रदान करेगा। मैंने ये सारे वीडियो,उन लोगो के लिए बनाये है। जो लोग भारतीय ज्योतिष और मन्त्र में रूचि रखते है। (ज्योतिष और आध्यात्मिक विषयों का विस्तृत ज्ञान, ज्योतिष कुंडली, कुंडली विश्लेषण, मंत्र और तंत्र के बारे में टिप्स और युक्तियां, "भारतीय ज्योतिष एवं वैदिक ज्ञान को एक स्थान पर एकत्रित करें।" "प्रभावी कुंडली विश्लेषण और ग्रहों की जानकारी प्राप्त करें।" "मन, शरीर और आत्मा का संतुलन बढ़ाने के लिए आध्यात्मिक अभ्यासों का अध्ययन करें।" "प्राचीन ग्रंथों और पौराणिक कथाओं के माध्यम से हमारी धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत का अन्वेषण करें।" "अपने जीवन में खुद को ऊपर उठाने और खुश करने के लिए आध्यात्मिक मंत्रों और तंत्रों का उपयोग करने का ज्ञान प्राप्त करें।" यहां आपको अध्यात्म से जुड़े उपयोगी टिप्स और ट्रिक्स मिलेंगे। हम इस चैनल पर साझा करेंगे .

स्वपन विचार

स्वप्न फल और स्वप्न विचार क्या है। नींद के समय जब हमें सपने दिखाई देते है। और हमें उस सपने में जो कुछ भी दिखाई देता है। ज्योतिष विद्या में उसको ही स्वप्न फल कहा जाता है। स्वप्न ज्योतिष के अनुसार स्वप्न हमें भविष्य में घटने वाली घटनाओं का संकेत पहले ही दे देते है। नींद के समय जब हमें सपने आते हैं। और हमें उस सपने में जो कुछ भी दिखाई देता है। ज्योतिष विद्या में उसका सपना फल ( स्वप्न फल ) कहा जाता है।

रात में नींद के समय हमें हर सपना अलग-अलग समय में दिखाई देता है। प्रत्येक स्वप्न के अलग-अलग समय काल में दिखाई देने के कारण हम उस स्वप्न के फल को नहीं देख पाते हैं।

मत्स्य पुराण के 242वें अध्याय के अनुसार स्वप्न फल का निश्चित समय बताया गया है।

उसके अनुसार आप भी अपना स्वप्न फल बहुत ही आसानी से जान सकते हैं। सपने फल प्राप्त करने की अवधि व समय की सारणी नीचे दी गई है।

रात के पहले पहर में दिखाई देने वाले सपने फल एक वर्ष की अवधि व समय में वर्ण प्राप्त होते हैं।

रात के दूसरे पहर में दिखाई देने वाले सपने सपने छह माह की अवधि व समय में विशेषता प्राप्त होती है।

रात के पहले पहर में दिखाई देने वाले सपने फल तीन माह की अवधि व समय में वर्ण प्राप्त होते हैं।

रात के पहले पहर में दिखाई देने वाले सपने फल एक माह की अवधि व समय में विशेषता प्राप्त होती है।

सूर्य के समय में दिखाई देने वाले स्वप्नों का फल केवल 10 दिनों की अवधि व समय में ही प्राप्त हो जाता है।

यहाँ नीचे आप सभी प्रकार के स्वप्न सन व स्वप्न स्वप्न को उनके अर्थ व् मतलब सहित समना गया है।

स्वप्न फल – सपनो का मतलब

1. यदि रोगी सिर मुंडाएं ,लाल या काले वस्त्र धारण किए किसी स्त्री या पुरूश को सपने में देखता है या अंग भंग व्यक्ति को देखता है तो रोगी की दशा अच्छी नही है ।

2. यदि रोगी सपने मे किसी ऊँचे स्थान से गिरे या पानी में डूबे या गिर जाए तो समझे कि रोगी का रोग अभी और बड़ सकता है।

3. यदि सपने में ऊठ,शेर या किसी जंगली जानवर की सवारी करे या उस से भयभीत हो तो समझे कि रोगी अभी किसी और रोग से भी ग्र्स्त हो सकता है।

4. यदि रोगी सपने मे किसी ब्राह्मण,देवता राजा गाय,याचक या मित्र को देखे तो समझे कि रोगी जल्दी ही ठीक हो जाएगा ।

5. यदि कोई सपने मे उड़ता है तो इस का अभिप्राय यह लगाया जाता है कि रोगी या सपना देखने वाला चिन्ताओं से मुक्त हो गया है ।

6. यदि सपने मे कोई मास या अपनी प्राकृति के विरूध भोजन करता है तो ऐसा निरोगी व्यक्ति भी रोगी हो सकता है ।

स्वप्न फल ज्योतिष – जानिए 251 सपनों के फल

1. अखरोट देखना – भरपुर भोजन मिले तथा धन वृद्धि हो

2. अनाज देखना -चिंता मिले

3. अनार खाना (मीठा ) – धन मिले

4. अजनबी मिलना – अनिष्ट की पूर्व सूचना

5. अजवैन खाना – स्वस्थ्य लाभ

6. अध्यापक देखना – सफलता मिले

7. अँधेरा देखना – विपत्ति आये

8. अँधा देखना – कार्य में रूकावट आये

9. अप्सरा देखना – धन और मान सम्मान की प्राप्ति

10. अर्थी देखना – धन लाभ हो

11. अमरुद खाना – धन मिले

12. अनानास खाना – पहले परेशानी फिर राहत मिले

13. अदरक खाना – मान सम्मान बढे

14. अनार के पत्ते खाना – शादी शीघ्र हो

15. अमलतास के फूल – पीलिया या कोढ़ का रोग होना

16. अरहर देखना – शुभ

17. अरहर खाना – पेट में दर्द

18. अरबी देखना – सर दर्द या पेट दर्द

19. अलमारी बंद देखना – धन प्राप्ति हो

20. अलमारी खुली देखना – धन हानि हो

21. अंगूर खाना – स्वस्थ्य लाभ

22. अंग रक्षक देखना – चोट लगने का खतरा

23. अपने को आकाश में उड़ते देखना – सफलता प्राप्त हो

24. अपने पर दूसरौ का हमला देखना – लम्बी उम्र

25. अंग कटे देखना – स्वास्थ्य लाभ

26. अंग दान करना – उज्जवल भविष्य , पुरस्का

27. अंगुली काटना – परिवार में कलेश

28. अंगूठा चूसना – पारवारिक सम्पति में विवाद

29. अन्तेस्ति देखना – परिवार में मांगलिक कार्य

30. अस्थि देखना – संकट टलना

31. अंजन देखना – नेत्र रोग

32. अपने आप को अकेला देखना – लम्बी यात्रा

33. अख़बार पढ़ना, खरीदना – वाद विवाद

34. अचार खाना , बनाना – सिर दर्द, पेट दर्द

35. अट्हास करना – दुखद समाचार मिले

36. अध्यक्ष बनना – मान हानि

37. अध्यन करना -असफलता मिले

38. अपहरण देखना – लम्बी उम्र

39. अभिमान करना – अपमानित होना

40. अध्र्चन्द्र देखना – औरत से सहयोग मिले

41. अमावस्या होना – दुःख संकट से छुटकारा

42. अगरबत्ती देखना – धार्मिक अनुष्ठान हो

43. अगरबत्ती जलती देखना – दुर्घटना हो

44. अगरबत्ती अर्पित करना – शुभ

45. अपठनीय अक्षर पढना – दुखद समाचार मिले

46. अंगीठी जलती देखना – अशुभ

47. अंगीठी बुझी देखना – शुभ

48. अजीब वस्तु देखना – प्रियजन के आने की सूचना

49. अजगर देखना – शुभ

50. अस्त्र देखना – संकट से रक्षा

51. अंगारों पर चलना – शारीरिक कष्ट

52. अंक देखना सम – अशुभ

53. अंक देखना विषम – शुभ

54. अस्त्र से स्वयं को कटा देखना – शीघ्र कष्ट मिले

55. अपने दांत गिरते देखना – बंधू बांधव को कष्ट हो

56. आंसू देखना – परिवार में मंगल कार्य हो

57. आवाज सुनना – अछा समय आने वाला है

58. आंधी देखना – संकट से छुटकारा

59. आंधी में गिरना – सफलता मिलेगी

सपनों का मतलब और उनका फल

1. आइना देखना – इच्छा पूरण हो , अछा दोस्त मिले

2. आइना में अपना मुहं देखना – नौकरी में परेशानी , पत्नी में परेशानी

3. आसमान देखना – ऊचा पद प्राप्त हो

4. आसमान में स्वयं को देखना – अच्छी यात्रा का संकेत

5. आसमान में स्वयं को गिरते देखना – व्यापार में हानि

6. आग देखना – गलत तरीके से धन की प्राप्ति हो

7. आग जला कर भोजन बनाना – धन लाभ , नौकरी में तरक्की

8. आग से कपडा जलना – अनेक दुख मिले , आँखों का रोग

9. आजाद होते देखना – अनेक चिन्ताओ से मुक्ति

10. आलू देखना – भरपूर भोजन मिले

11. आंवला देखना – मनोकामना पूर्ण न होना

12. आंवला खाते देखना – मनोकामना पूर्ण होना

13. आरू देखना – प्रसनता की प्राप्ति

14. आक देखना – शारारिक कष्ट

15. आम खाते देखना – धन और संतान का सुख

16. आलिंगन देखना पुरुष का औरत से – काम सुख की प्राप्ति

17. आलिंगन देखना औरत का पुरुष से – पति से बेवफाई की सूचना

18. आलिंगन देखना पुरुष का पुरुष से- शत्रुता बढ़ना

19. आलिंगन देखना औरत का औरत से – धन प्राप्ति का संकेत

20. आत्महत्या करना या देखना – लम्बी आयु

21. आवारागर्दी करना – धन लाभ हो नौकरी मिले

22. आँचल देखना – प्रतियोगिता में विजय

23. आँचल से आंसू पोछना – अछा समय आने वाला है

24. आँचल में मुँह छिपाना – मान समान की प्राप्ति

25. आरा चलता हुआ देखना – संकट शीघ्र समाप्त होगे

26. आरा रूका हुआ देखना- नए संकट आने का संकेत

27. आवेदन करना या लिखना – लम्बी यात्रा हो

28. आश्रम देखना – व्यापार में घाटा

29. आट्टा देखना – कार्य पूरा हो

30. आइसक्रीम खाना – सुख शांति मिले

31. इमली खाते देखना – औरत के लिए शुभ ,पुरुष के लिए अशुभ

32. इडली साम्भर खाते देखना – सभी से सहयोग मिले

33. इष्ट देव की मूर्ति चोरी होना – मृत्युतुल्य कष्ट आये

34. इश्तहार पढना – धोखा मिले, चोरी हो

35. इत्र लगाना – अछे फल की प्राप्ति, मान सम्मान बढेगा

36. इमारत देखना – मान सम्मान बढे, धन लाभ हो

37. ईंट देखना – कष्ट मिलेगा

38. इंजन चलता देखना – यात्रा हो , शत्रु से सावधान

39. इन्द्रधनुष देखना – संकट बढे , धन हानि हो

40. इक्का देखना हुकम का – दुःख व् निराशा मिले

41. इक्का देखना ईंट का -कष्टकारक स्तिथि

42. इक्का देखना पान का -पारवारिक क्लेश

43. इक्का देखना चिड़ी का – गृह क्लेश ,अतिथि आने की सूचना

1. उजाड़ देखना – दूर स्थान की यात्रा हो

2. उस्तरा प्रयोग करना – यात्रा में धन लाभ हो

3. उपवन देखना – बीमारी की पूर्व सूचना

4. उदघाटन देखना – अशुभ संकेत

5. उदास देखना – शुभ समाचार मिले

6. उधार लेना या देना – धन लाभ का संकेत

7. स्वयं को उड़ते देखना – गंभीर दुर्घटना की पूर्व सूचना

8. उछलते देखना -दुखद समाचार मिलने का संकेत

9. उल्लू देखना -दुखों का संकेत

10. उबासी लेना – दुःख मिले

11. उल्टे कपडे पहनना – अपमान हो

12. उजाला देखना – भविष्य में सफलता का संकेत

13. उजले कपडे देखना -इज्जत बढे , विवाह हो

14. उठना और गिरना – संघर्ष बढेगा

15. उलझे बाल या धागे देखना – परेशानिया बढेगी

16. उस्तरा देखना – धन हानि , चोरी का भय

ऊ— सपने का अर्थ

1. ऊंघना – धन हानि , चोरी का भय

2. ऊंचाई पर अपने को देखना – अपमानित होना

3. ऊन देखना – धन लाभ हो

4. ऊंचे पहाड़ देखना – काफी मेहनत के बाद कार्य सिद्ध होना

5. ऊंचे वृक्ष देखना – मनोकामना पूरी होने में समय लगना

औ — सपने का अर्थ

औषधी देखना – गलत संगति देखना

ऐनक लगते देखना – विद्या मिले, ख़ुशी इज्जत मिले

कब्र खोदना – धन पाए , मकान बनाये

कत्ल करना स्वयं का – अच्छा सपना है , बुरे काम से बचे

कद अपना छोटा देखना – अपमान सहना , परेशानी उठाना

कद अपना बड़ा देखना – भारी संकट आना

कसम खाते देखना – संतान का दुःख भोगना

कलम देखना – विद्या धन की प्राप्ति

कर्जा देना – खुशहाली आये

कर्जा लेना – व्यापार में हानि

कला कृतिया देखना – मान समान बढे

कपूर देखना – व्यापार में लाभ

कबाडी देखना – अच्छे दिनों की शुरूआत

कबूतर देखना – प्रेमिका से मिलना

कबूतरों का झुंड – शुभ समाचार मिले

कमल का फूल – ज्ञान की प्राप्ति

कपास देखना – सुख समृधि हो

कंगन देखना – अपमान हो

कदू देखना – पेट दर्द

कन्या देखना – धन वृद्धि हो

कफन देखना – लम्बी उम्र

कली देखना – स्वास्थ्य खराब हो

कछुआ देखना – शुभ समाचार मिले

कलश देखना – सफलता

कम्बल देखना – बीमारी आये

कपडा धोना – पहले रूकावट , फिर लाभ

कटा सिर देखना – शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी

कब्रिस्तान देखना – निराशा हो

कंघी देखना – चोट लगना , दांत या कान में दर्द

कसरत – बीमारी आने की सूचना

काली आँखे देखना – व्यापार में लाभ

काला रंग देखना – शुभ फल

काजू खाना – नया व्यापार शुरू हो

कान देखना – शुभ समाचार

कान साफ करना – अच्छी बातो का ज्ञान

काउंटर देखना – लेने देने में लाभ हो

कारखाना देखना – दुर्घटना में फसने की सूचना

काली बिल्ली देखना – लाभ हो

कुंडल पहने देखना – संकट हो

कुबडा देखना – कार्य में विघ्न

कुमकुम देखना – कार्य में सफलता

कुल्हाडी देखना – परिश्रम अधिक, लाभ कम

कुत्ता भोंकना – लोगो द्वारा मजाक उड़ना

कुत्ता झपटे – शत्रु की हार

कुर्सी खाली देखना – नौकरी मिले

कूड़े का ढेर देखना – कठिनाई के बाद धन मिले

किला देखना – ख़ुशी प्राप्त हो

कील देखना / ठोकना – परिवार में बटवारा हो

केश संवारना – तीर्थ यात्रा

केला खाना / देखना – ख़ुशी हो

केक देखना – अच्छी वस्तु मिले

कैमरा देखना – अपने भेद छिपा कर रखे

कोढ़ी देखना – धन का लाभ

कोहरा – संकट समाप्त हो

कोठी देखना – दुःख मिले

कोयल देखना / सुनना – शुभ समाचार

कोया देखना – शुभ संकेत

किसी ऊंचे स्थान से कूदना – असफलता

नर कंकाल देखना – उम्र बढने का संकेत

जप करना – विजय

कद लम्बा देखना – मृत्युतुल्य कष्ट हो

कद घटना – अपमान हो

कटोरा देखना – बनते काम बिगढ़ना

कनस्तर खाली देखना – शुभ

कनस्तर भरा देखना – अशुभ

कमंडल देखना – परिवार के किसी सदस्य से वियोग

करवा चौथ – औरत देखे तो आजीवन सधवा, पुरुष देखे तो धन धान्य संपूरण

कागज कोरा – शुभ

कागज लिखा देखना – अशुभ

सफेद कुरता देखना – शुभ

अन्य रंग का कुरता देखना – अशुभ

कुर्सी पर स्वयं को बैठे देखना – नया पद, पदोनती

कुर्सी पर अन्य को बैठे देखना – अपमान

कब्र खोदना – मकान का निर्माण करना

कपूर देखना – व्यापार नौकरी में लाभ

कबूतर देखना – प्रेमिका से मिलन

कपडा बेचते देखना – व्यापार में लाभ

कपडे पर खून के दाग – व्यर्थ बदनामी

कछुआ देखना – धन आशा से अधिक मिलना

कमल ककडी देखना – सात्विक भोजन में आनंद, ख़ुशी मिले

कपास देखना – सुख, समृधि घर आये

करी खाना – विधवा से विवाह, विधुर से विवाह

कृपाण – धरम कार्य पूर्ण होने की सूचना

कान देखना – शुभ समाचार

कान कट जाना – अपनों से वियोग

काला कुत्ता देखना – कार्य मे सफलता

काउंटर देखना – लेन देन में लाभ

काली बिल्ली देखना – शुभ समाचार

पीली बिल्ली देखना – अशुभ समाचार

काना व्यक्ति देखना – अनकूल समय नहीं

कीडा देखना – शक्ति का प्रतीक

कुम्हार देखना – शुभ समाचार

केतली देखना – दांपत्य जीवन में शांति हो

केला देखना या खाना – शुभ समाचार

कैंची – अकारण किसी से वाद- विवाद होना

कोठी देखना – दुःख मिले

कोयला देखना – प्रेम के जाल में फँस कर दुःख पाए

कुरान- सुख शांति की भावना बढे

ख— सपने का अर्थ

1. खरोंच लगना -शरीर स्वस्थ हो

2. खटमल देखना – जीवन में संघर्ष

3. खटमल मारना – कठिनाई से छुटकारा

4. खरबूजा देखना -सफलता मिले

5. ख़त पढ़ना – शुभ समाचार

6. खरगोश देखना – औरत से बेवफाई

7. खलिहान देखना – सम्मान बडे

8. खटाई खाना – धन हानि हो

9. खाली खाट देखना -बीमार पड़ने की सूचना

10. खाली बर्तन देखना – काम में हानि

11. खिलखिलाना – दुखद समाचार मिलने का संकेत

12. खिल्ली उडाना -लोगो से निराशा मिले

13. खिलौना देखना – आँखों को सुख मिले

14. खुजली होना – रोग से छुटकारा पाने का संकेत

15. ख़ुशी देखना – परेशानी बढे

16. खुशबू लगाना – सम्मान बढे

17. खून खराबा -सौभाग्य वृद्धि

18. खून देखना – धन मिले

19. खून की वर्षा देखना – देश में अकाल पड़े

20. खून में लोटना – धन-सम्पति प्राप्त होने का संकेत

21. खेल कूद में भाग लेना – भाग्यौनात्ति होना

22. खेत देखना -यात्रा हो , विद्या व् धन की वृद्धि

23. खेत काटते देखना – पत्नी से मन मुटाव होना

24. खोपडी देखना – बौधिक कार्यो में सफलता

ग— सपने का अर्थ

1. गधा देखना -प्यार मिले

2. गधा लदा हुआ देखना – व्यापार में लाभ हो

3. गधे की चीख सुनना – दुख हो

4. गधे की सवारी करना – शुभ समाचार मिले

5. गाय देखना – धन लाभ हो

6. गाय या बैल पीले रंग की देखना – महामारी आने के लक्षण

7. गरम पानी देखना – बुखार या अन्य बीमारी आये

8. गंजा सिर देखना – परीक्षा में पास हो, सम्मान बड़े

9. गली देखना – सुनसान गली देखने से लाभ , भीड़ वाली गली देखने से मृत्यु का समाचार

10. गवाही देना -अपराध में फंसना

11. गमला देखना – खाली देखने पर झंझट , फूल खिले देखने पर शुभ

12. गलीचा देखना या उस पर बैठना – शोक में शामिल होना

13. ग्वाला /ग्वालिन देखना – शुभ फल

14. गाजर देखना – फसल अच्छी हो

15. गाड़ी देखना – यात्रा सार्थक हो

16. गलिया देते देखना – बदनामी हो

17. गायत्री पाठ करना – दुर्लभ स्वप्न मान सम्मान बड़े

18. गिलास देखना – घरेलू खर्चो में कमी होगी

19. गिनती करना – काम में हानि

20. गिरगिट देखना – झगडे में फसने का संकेत

21. गिलहरी देखना – बहुत शुभ

22. गीदढ़ देखना – शत्रु से भय मिले

23. गीली वस्तु देखना – लम्बी बीमारी आने के संकेत

24. गीता देखना – दुर्लभ समय

25. गुलाब देखना – सम्मान में वृद्धि

26. गुढ खाना – सफलता मिले

27. गुडिया देखना – जल्दी विवाह का संकेत

28. गुठली खाना या फेंकना – काफी धन आने की सूचना

29. गेंहू देखना – काफी मेहनत कर के कमाई होना

30. गेंद देखना – परेशानी होना

31. गेंदे का फूल देखना – मानसिक अशांति

32. गेरुआ वस्त्र देखना – समय शुभ है

33. गीता – कष्ट दूर हो

34. ग्रन्थ साहिब – धार्मिक कार्यो में रूचि हो

घ— सपने का अर्थ

1. घडी देखना – यात्रा पर जाना

2. घडी गुम हो जाना – यात्रा का कार्यकर्म स्थगित होना

3. घर देखना (सजा हुआ ) – संपत्ति में हानि

4. घर देखना (खंडहर ) – संपत्ति में लाभ

5. घर में किसी और का प्रवेश देखना – शत्रु पर विजय

6. घर में आग देखना – सरकार से लाभ हो

7. घर सोने का देखना – घर में आग लगने का संकेत

8. घर लोहे का देखना – मान सम्मान बढेगा

9. घडा भरा देखना – धन लाभ हो

10. घंटे की आवाज़ सुनना – चोरी होने का संकेत

11. घंटाघर देखना – अशुभ समाचार

12. घाट देखना – तीर्थ यात्रा पर जाने का संकेत

13. घायल देखना – संकट से छुटकारा

14. घास देखना – लाभ होगा

15. घी देखना – धन दौलत बढे

16. घुटने टेकना – वाद विवाद में सफलता मिले

17. घुंघरू की आवाज सुनना – मान सम्मान बढेगा

18. घूंघट देखना – नया व्यापार शुरू हो

19. घोड़ा सजा हुआ देखना – कार्य में हानि

20. घोड़ा काला देखना -मान सम्मान बढेगा

21. घोड़ा या हाथी पर चड़ना – उन्नत्ति हो

च— सपने का अर्थ

1. चलता पहिया देखना – कारोबार में उन्नत्ति हो

2. चप्पल पहनना – यात्रा पर जाना

3. चक्की देखना – मान सम्मान बढेगा

4. चमडा देखना – दुःख हो

5. चबूतरा देखना -मान सम्मान बढेगा

6. चट्टान देखना (काली ) – शुभ

7. चट्टान देखना (सफेद ) – अशुभ

8. चपत मारना – धन हानि हो

9. चपत खाना – शुभ फल की प्राप्ति

10. चरबी देखना – आग लगने का संकेत

11. चलना जमीन पर -नया रोजगार मिले

12. चलना पानी पर – कारोबार में हानि

13. चलना आसमान पर – बीमारी आने का संकेत

14. चन्द्र ग्रहण देखना – सभी कार्य बिगडे

15. चमगादर उड़ता देखना – लम्बी यात्रा हो

16. चमगादर लटका देखना – अशुभ संकेत

17. चम्मच देखना – नजदीकी व्यक्ति धोखा दे

18. चप्पल देखना – यात्रा पर जाना

19. चटनी खाना – दुखो में वृद्धि

20. चरखा चलाना – मशीनरी खराब हो

21. चश्मा खोना – चोरी के संकेत

22. चांदी के बर्तन में दूध पीना – संम्पत्ति में वृद्धि हो

23. चारपाई देखना – हानि हो

24. चादर शरीर पर लपेटना -गृह क्लेश बढे

25. चादर मैली देखना – धन लाभ हो

26. चादर समेट कर रखना – चोरी होने का संकेत

27. चंचल आँखे देखना – बीमारी आने की सूचना

28. चांदी का सामान देखना – गृह क्लेश बढे

29. चोकलेट खाना -अच्छा समय आने वाला है

30. चाय देखना – धन वृद्धि हो

31. चावल देखना – कठिनाई से धन मिले

32. चाकू देखना – अंत में विजय

33. चित्र देखना – पुराने मित्र से मिलन हो

34. चिडिया देखना – मेहमान आने का संकेत

35. चींटी देखना – धन लाभ हो

36. चींटिया बहुत अधिक देखना – परेशानी आये

37. चील देखना – बदनामी हो

38. चींटी मारना – तुंरत सफलता मिले

39. चुम्बन लेना – आर्थिक समृधि हो

40. चुम्बन देना – मित्रता बढे

41. चुटकी काटना – परिवार में कलेश

42. चुंगी देना – चलते काम में रूकावट

43. चुंगी लेना – आर्थिक लाभ

44. चुडैल देखना -धन हानि हो

45. चूहा देखना -औरत से धोखा

46. चूहा फंसा देखना – शरीर को कष्ट

47. चूहा चूहे दानी से निकलते देखना – कष्ट से मुक्ति

48. चूहा मरा देखना – धन लाभ

49. चूहा मारना – धन हानि

50. चूडिया तोड़ना – पति दीर्घायु हो (औरत के लिए )

सपने का अर्थ

1. सफेद चूडिया देखना – धन लाभ हो

2. चूल्हा देखना – उत्तम भोजन प्राप्त हो

3. चूरन खाना – बीमारी में लाभ

4. चेचक निकलना – धन की प्राप्ति

5. चोर पकड़ना – धन आने की सूचना

6. चोटी पर स्वयं को देखना – हानि हो

7. चोराहा देखना – यात्रा में सफलता

8. चौकीदार देखना – अचानक धन आये

9. चौथ का चाँद देखना – बहुत अशुभ

सपने का अर्थ

1. छत देखना -मकान बने

2. छड़ी देखना – संतान से लाभ हो

3. छतरी लगाकर चलना – मुसीबतों से छुटकारा मिलना

4. छत्र देखना – राज दरबार में सम्मान मिले

5. छलनी देखना – व्यापार में हानि

6. छल्ला पहनना – शिक्षा में वृद्धि

7. छलांग लगाना – असफलता हाथ लगे

8. छम छम की आवाज़ आये – मेहमान आये

9. छाज देखना – सम्मान बढे

10. छाछ पीना -धन लाभ हो

11. छापाखाना देखना – धन लाभ

12. छात्रो का समूह देखना – शिक्षा में लाभ

13. छिपकली देखना – दुश्मन से कष्ट

14. छींक आना – अशुभ लक्षण

15. छुआरा खाना – धन लाभ हो

16. छुरा देखना – दुश्मन से भय हो

17. छोटे बच्चे देखना – इच्छा पूरण हो

सपने का अर्थ

1. जमघट देखना – कार्य की प्रशंषा मिलेगी

2. जयकार सुनना- संकट में पड़ना

3. जलना – मान सम्मान की प्राप्ति

4. ज्योतिष देखना – संतान को कष्ट

5. जटाधारी साधु देखना – शुभ लक्षण

6. जहाज देखना – दुर्घटना में फंसने का सूचक

7. खाली जंजीर देखना – इल्जाम लगेगा

8. स्वयं को जंजीर में जकडे देखना – समस्याओ से छुटकारा

9. जल देखना – संकट आएगा

10. जड़े देखना -शुभ स्वप्न

11. ज्वालामुखी देखना – स्थान परिवर्तन की पूर्व सूचना

12. जमीन खोदना – कठिनाई से लाभ हो

13. जंगल देखना – कष्ट दूर हो

14. जलेबी खाना – सुख सुविधाय बढे

15. जलता घर देखना -बीमारी परेशानी बढे

16. जलता मुर्दा देखना – शुभ समाचार

17. जादू देखना या करना -धन हानि

18. जाल देखना (मकडी का ) – शुभ लक्षण

19. जाल देखना ( मचली का ) -संकट का संकेत

20. जामुन खाना या देखना – यात्रा पर जाना पड़े

21. जलूस देखना -नौकरी में उनत्ति हो

22. जूए देखना या मारना – मानसिक चिंता

23. जूते से पीटना – मान सम्मान बढे

24. जूते से स्वयं पीटना – मान सम्मान मिलेगा

25. जेब खाली देखना -अशुभ है

26. जेब भरी देखना -खर्च अधिक होने का सूचक

27. जेल देखना – जग हँसी हो

28. जेल से छूटना – कार्य में सफलता

29. जोकर देखना – समय बर्बाद हो

सपने का अर्थ

1. झगडा देखना -शुभ समाचार

2. झरना देखना (ठंडे पानी का ) – शुभ है

3. झरना देखना (गर्म पानी का ) – बीमारी आये

4. झंडा देखना सफेद या मंदिर का -शुभ समाचार

5. झंडा देखना हरा – यात्रा में कष्ट

6. झंडा देखना पीला – बीमारी आये

7. झाडू लगाना – घर में चोरी हो

8. झुनझुना देखना – परिवार में ख़ुशी हो

सपने का अर्थ

1. टंकी खाली देखना – शुभ लक्षण

2. टंकी भरी देखना – अशुभ घटना का संकेत

3. टाई सफेद देखना – अशुभ

4. टाई रंगीन देखना – शुभ

5. टेलेफोन करना – मित्रो की संख्या में वृद्धि

6. टोकरी खाली देखना – शुभ लक्षण

7. टोकरी भरी देखना – अशुभ घटना का संकेत

8. टोपी उतारना – मान सम्मान बढे

9. टोपी सिर पर रखना – अपमान हो

सपने का अर्थ

1. ठण्ड में ठिठुरना – सुख मिले

2. डंडा देखना – दुश्मन से सावधान रहे

3. डफली बजाना – घर में उत्सव की सूचना

4. डाक खाना देखना – बुरा समाचार मिले

5. डाकिया देखना – शुभ सूचना मिले

6. डॉक्टर देखना – निराशा मिले

7. डाकू देखना – धन वृद्धि हो

सपने का अर्थ

1. तरबूज देखना – धन लाभ

2. तराजू देखना – कार्य निष्पक्ष पूर्ण हो

3. तबला बजाना – जीवन सुखपूर्वक गुजरे

4. तकिया देखना – मान सम्मान बढे

5. तलवार देखना – शत्रु पर विजय

6. तपस्वी देखना -मन शांत हो

7. तला पकवान खाना – शुभ समाचार मिले

8. तलाक देना – धन वृद्धि हो

9. तमाचा मारना -शत्रु पर विजय

10. तराजू में तुलना – भयंकर बीमारी हो

11. तवा खाली देखना – अशुभ लक्षण

12. तवे पर रोटी सेकना – संपत्ति बढे

13. तहखाना देखना या उसमे प्रवेश करना – तीर्थ यात्रा पर जाने का संकेत

14. ताम्बा देखना – सरकार से लाभ मिले

15. तालाब में तैरना – स्वस्थ्य लाभ

16. ताला देखना -चलते काम में रूकावट

17. ताली देखना – बिगडे काम बनेगे

18. तांगा देखना – सुख मिले, सवारी का लाभ हो

19. ताबीज बांधना – काम में हानि हो

20. ताबीज़ देखना – शुभ समय का आगमन

21. ताश देखना – मित्र अथवा पडोसी से लडाई हो

22. तारा देखना – अशुभ

23. तितली देखना – विवाह हो या प्रेमिका मिले

24. तितली उड़ कर दूर जाना – दांपत्य जीवन में क्लेश हो

25. तिल देखना – कारोबार में लाभ

26. तिराहा देखना – लडाई झगडा हो

27. त्रिशूल देखना – अच्छा मार्ग दर्शन मिले

28. त्रिमूर्ति देखना – सरकारी नौकरी मिले

29. तितली पकड़ना – नई संतान हो

30. तिजोरी बंद करना – धन वृद्धि हो

31. तिजोरी टूटती देखना – कारोबार में बढोतरी

32. तिलक करना – व्यापार बढे

33. तूफान देखना या उसमे फँसना – संकट से छुटकारा मिले

34. तेल या तेली देखना – समस्या बढे

35. तोलना – महंगाई बढे

36. तोप देखना -शत्रु पर विजय

37. तोता देखना – ख़ुशी मिले

38. तोंद बढ़ी देखना – पेट में परेशानी हो

39. तोलिया देखना – स्वस्थ्य लाभ हो

सपने का अर्थ

1. थप्पर खाना – कार्य में सफलता

2. थप्पर मारना – झगडे में फँसना

3. थक जाना – कार्य में सफलता मिले

4. थर थर कंपना -मान सम्मान बढे

5. थाली भरी देखना – अशुभ

6. थाली खाली देखना – सफलता मिले

7. थूकना – मान सम्मान बढे

8. थैली भरी देखना – जमीन जायदाद में वृद्धि

9. थैली खाली देखना – जमीन जायदाद में झगडा हो

1. दरवाजा बंद देखना – चिंता बढे

2. दही देखना -धन लाभ हो

3. दलिया खाना या देखना – स्वस्थ्य कुछ समय के लिए ख़राब हो

4. दरार देखना – घर में फूट

5. दलदल देखना – काम में आलस्य हो

6. दरवाजा खोलना – नया कार्य शुरू हो

7. दरवाजा गिरना – अशुभ संकेत

8. दक्षिणा लेना या देना – व्यापार में घाटा

9. दमकल चलाना – धन वृद्धि हो

10. दर्पण देखना – मानसिक अशांति

11. दस्ताना पहनना – शुभ समाचार

12. दहेज़ लेना या देना – चोरी की सम्भावना

13. दरजी को काम करते देखना – कोर्ट से छुटकारा

14. दवा खाना या खिलाना – अच्छा मित्र मिले

15. दवा गिरना – बीमारी दूर हो

16. दांत टूटना – शुभ

17. दांत में दर्द देखना -नया कार्य शुरू हो

18. दाडी देखना – मानसिक परेशानी हो

19. दादा या दादी देखना जो मृत हो – मान सम्मान बढे

20. दान लेना – धन वृद्धि हो

21. दान देना – धन हानि हो

22. दाह क्रिया देखना – सोचा हुआ कार्य बनने के संकेत

23. दातुन करना -कष्ट मिटे

24. दाना डालना पक्षियो को – व्यापार में लाभ हो

25. दाग देखना – चोरी हो

26. दामाद देखना -पुत्री को कष्ट हो

27. दाल कपड़ो पर गिरना -शुभ लक्षण

28. दाल पीना – कार्य में रूकावट

29. दाढ़ी सफेद देखना – काम में रूकावट

30. दाढ़ी काली देखना – धन वृद्धि हो

31. दियासिलाई जलाना – दुश्मनी बढे

32. दीपक बुझा देना – नया कार्य शुरू हो

33. दीपक जलाना – अशुभ समाचार मिले

34. दीवाली देखना – व्यापार में घाटा हो

35. दीपक देखना – मान सम्मान बढे

36. दुल्हन देखना – सुख मिले

37. दुकान करना – मान सम्मान बढे

38. दुकान बेचना – मानहानि हो

39. दुकान खरीदना – धन का लाभ होना

40. दुकान बंद होना – कष्टों में वृद्धि हो

41. दुपट्टा देखना – स्वस्थ्य में सुधार हों

42. दूल्हा /दुल्हन बनना – मानहानि हों

43. दूल्हा /दुल्हन बारात सहित देखना -बीमारी आये

44. दूरबीन देखना – मान सम्मान में हानि हों

45. दूध देखना – आर्थिक लाभ मिले

46. दुकान पर बैठना – प्रतिष्ट बढे,धन लाभ हों

47. देवता से मंत्र प्राप्त होना – नए कार्य में सफलता

48. देवी देवता देखना – सुख संपत्ति की वृद्धि होना

49. दोना देखना – धन संपत्ति प्राप्त होना

50. दोमुहा सांप देखना – दुर्घटना हों, मित्र द्वारा विश्वासघात मिले

51. दौड़ना – कार्य में असफलता हों

52. देवी देवता देखना – कृष्ण – प्रेम संबंधो में वृद्धि

53. देवी देवता देखना – राम – सफलता मिले

54. देवी देवता देखना – शिव – मानसिक शांति बढे

55. देवी देवता देखना – विष्णु – सफलता मिले

56. देवी देवता देखना – ब्रह्मा – अच्छा समय आने वाला है

57. देवी देवता देखना – हनुमान -शत्रु का नाश हो

58. देवी देवता देखना – दुर्गा – रोग दूर हो

59. देवी देवता देखना – सीता – पहले कष्ट मिले फिर समृधि हो

60. देवी देवता देखना – राधा – शारीरिक सुख मिले

61. देवी देवता देखना – लक्ष्मी – धन धन्य की प्राप्ति हो

62. देवी देवता देखना – सरस्वती -भविष्य सुखद हो

63. देवी देवता देखना – पार्वती – सफलता मिले

64. देवी देवता देखना – नारद -दूर से शुभ समाचार मिले

सपने का अर्थ

1. धमाका सुनना – कष्ट बढे

2. धतूरा खाना – संकट से बचना

3. धनिया हरा देखना – यात्रा पर जाना पढ़े

4. धनुष देखना – सभी कर्मो में सफलता मिले

5. धब्बे देखना – शुभ संकेत

6. धरोहर लाना या देखना – व्यापार में हानि हों

7. धार्मिक आयोजना देखना – शुभ संकेत

8. धागा देखना – कार्य में वृद्धि हों

9. धुरी देखना – मान सम्मान में वृद्धि हों

10. धुआ देखना – कष्ट बढे , परेशानी में फंसना पढ़े

11. धुंध देखना – शुभ समाचार मिले

12. धुन सुनना – परेशानी बढे

13. धूमधाम देखना – परेशानी बढे

14. धूल देखना – यात्रा हों

15. धोबी देखना – काम में सफलता मिले

16. धोती देखना – यात्रा पर जाना पड़े

सपने का अर्थ

1. नल खुला देखना – काम शीघ्र होगा

2. नल बंद देखना – काम कठिनाई से होगा

3. नरक देखना- कठिनाइयाँ बढे

4. नगीना देखना – सरकार से लाभ हों , शुभ समाचार मिले

5. नगाडा देखना – धन लाभ , प्रसिधी मिले

6. नमाज़ पढ़ते देखना – कष्ट दूर हों , शान्ति मिलेगी

7. नमक खाना – झगडे में फँसना

8. नमक देखना – बीमारी दूर हों , व्यापार में लाभ हों

9. नमकदानी देखना – गृहस्थी का सुख मिले

10. नशे में स्वयं को देखना – धन वृद्धि हों परन्तु परिशानिया बढे

11. नरगिस का फूल देखना – पारिवारिक सुख मिले

12. नदी नाले में गिरते देखना – अनेक संकट आने का संकेत

13. नक्कता मनुष्य देखना – धन तथा मान सम्मान बढे

14. नक़ल करना – काम में असफलता मिले

15. नक़ल करते देखना – यात्रा में रुकावट , काम बिगडे

16. नक्शा बनाना – नई योजनाये शुरू हों

17. नकसीर बहना – दिमागी परेशानिया आये

18. नकाब लगाना – गंभीर बीमारी आये

19. नट देखना – पारिवारिक सुख शाति मिले

20. नसवार सूंघना – मानसिक परिशानिया बढे

21. नदी देखना – भविष्य सुखद हों

22. नदी में स्नान करना – काम में सफलता मिले

23. नदी में गिरना – संकट के बाद सुख मिले

24. नहर खोदना – कार्य सम्बन्धी योजनाये मिले

25. नंगा होना – विलासिता बढे

26. नदी , वृक्ष, या पर्वत देखना – दुःख दूर हो , धन मिले

27. नाटक देखना – भविष्य अनिश्चित हो

28. नाखून टूटना – सफलता देरी से मिले

29. नाक बहुत बड़ी देखना – मान सम्मान बढे , प्रमोशन हो

30. नाखून देखना – काम में परेशानी हो

31. नाक से खून बहना – धन में वृद्धि हो

32. नाटक देखना – गृहस्थी का सुख मिले

33. नाटक में भाग लेना – धोखा मिले

34. नारियल देखना – धन लाभ हो , अच्छा भोजन मिले

35. नाक पर चोट लगना -मान सम्मान में हानि हो

36. नासूर देखना – बीमारी से छुटकारा मिले

37. नापतोल करना – व्यापार में हानि हो

38. नाग के बिल में जाते देखना – धन संग्रह हो

39. नाग के बिल से बाहर निकलते देखना – धन हानि हो

40. नाग का डंग मारना – मान सम्मान बढे

41. नाग का घर में देखना – देखे गए स्थान की पवित्रता का संकेत

42. नाग उठाये देखना – – संपत्ति प्राप्त का संकेत

43. नाना नानी देखना – पारिवारिक सुख बढे

44. नाडा बंधना या टूटना – पारिवारिक कलेश बढे

45. नाला देखना – गहरा संकट आये

46. नाव देख्ना – गृहस्थी का सुख मिले

47. नाव में बैठना – अनेक संकट आये

48. नाई से हजामत बनवाना – धोखा मिले

49. नारियल देख्ना – शुभ संकेत , धार्मिक आयोजना हो

50. नाला देख्ना – कार्य में सफलता मिले

51. नारद देख्ना – धन लाभ परन्तु लड़ाई झगडा हो

52. नाभि देख्ना – प्रगति तथा धन लाभ हो

53. निरादर देख्ना – मान सम्मान बढे

54. निशाना लगाना – पुरानी इच्छा पूर्ण हो

55. नितम्ब देख्ना – गृहस्थी का सुख मिले

56. नीम का व्रक्ष देख्ना -बिमारी दूर होना

57. नीलम देख्ना -शुभ समाचार मिले , दुश्मन परस्त हो

58. नींद में सोना या नींद से उठाना – धन लाभ हो

59. नीलकंठ देख्ना – मान सम्मान बढे , विवाह हो

60. नींबू काटना या निचोड़ना – धार्मिक कार्य हो

61. नुकीली चीज़ से चोट लगना – वाद विवाद में फसना

62. नुकीला जूता देखना – मान सम्मान बढे

63. नेवला देखना – संकट समाप्त हो , स्वर्णाभूषण मिले

सपने का अर्थ

1. धमाका होना – संकटों में वृद्धि हो

2. धार्मिक स्थल देखना -मंदिर – शुभ कार्य में धन लगे

3. धार्मिक स्थल देखना -गुरुद्वारा – ज्ञान की प्राप्ति हो

4. धार्मिक स्थल देखना -मस्जिद – समस्या का समाधान मिले

5. धार्मिक स्थल देखना -चर्च – मानसिक शांति बढे

6. धर्म ग्रन्थ देखने का फल – रामायण – संघर्ष के बाद सफलता मिले

सपने का अर्थ

1. परी देखना – सफलता मिले , स्वस्थ्य लाभ हो , मान सम्मान में वृद्धि हो , धन बढे

2. पहाड़ देख्ना – शत्रु पर विजय हो

3. पम्प से पानी निकालना – व्यवसाय में रुकावट आये

4. प्रसाद बाँटना – रोग कम हो , समृध्धि बढे

5. पहाड़ पर चढ़ना – मान सम्मान तथा धन बढे

6. पहाड़ से उतरना -व्यापार में मंदा हो

7. परदेशी देखना – मनोकामना पूरण हो

8. पटका बांधना – मान सम्मान तथा धन बढे

9. पटाखा देखना – ख़ुशी मिले

10. पलंग देखना – अपमानित होना पड़े

11. पनघट सूना देखना – कही से निमंत्रण आये

12. पनघट पर भीड़ देखना – परिवार में उत्सव हो

13. परिवार देखना – शुभ फल मिले

14. पनीर खाना – धन वृद्धि हो

15. पपीता खाना – पेट खराब हो

16. पहरेदार देखना – चोरी की सम्भावना

17. पंजीरी खाना – बीमारी आने की सूचना

18. परछाई देखना अशुभ समाचार

19. पगड़ी देखना – धन हानि हो

20. पर्दा सफेद देखना – मान – सम्मान में हानि

21. पर्दा काला देखना – धन वृद्धि हो

22. पर्स देखना – गुप्त कार्य पूरा हो

23. पहिया देखना – प्रगति तेज हो

24. पंडाल देखना – किसी बड़े उत्सव में शामिल होना

25. पत्तल देखना या उसमें खाना -शुभ लक्षण

26. पत्थर देखना या मारना – सरकार से लाभ हो

27. पत्र लिखना – परेशानी हो

28. प्याज खाना या खिलाना – दुर्भाग्य पूर्ण घटना घटे

29. प्रशंसा सुनना – अशुभ संकेत

30. प्रसाद बाँटना – शुभ फल मिले

31. प्याऊ बनवाना – धन वृद्धि हो

32. परीक्षा में बैठना – कार्य में असफलता

33. पतंग उडाना – लम्बी यात्रा हो

34. पढ़ना या पढाना – काम में सफलता

35. पकवान खाना या बनाना – दुखो में वृद्धि हो

36. पहिया देखना – यात्रा सफल हो

37. पानी देखना – सुख समृधि बढे

38. पानी पीते देखना – धन वृद्धि हो

39. पोलिश करना -नौकरी में तरक्की हो

40. पान का वृक्ष देखना – संतान की समृधि हो

41. पागल देखना – शुभ कार्य में वृद्धि हो

42. पानदान देखना – मित्रता में वृद्धि हो

43. पाउडर लगाना – मान सम्मान बढे

44. पार्वती माता देखना – सुख समृधि बढे

45. पायल बजते देखना – स्त्री से वियोग हो

46. पारितोषिक मिलना – अपमानित होना पढ़े

47. पालकी पर बैठना – स्वस्थ्य खराब हो

48. पालना देखना – पारिवारिक सुख मिले

49. पालना झुलाना – संतान के लिए कष्ट बढे

50. पार्सल लेना – अचानक लाभ मिले

51. पाताल देखना – मान सम्मान बढे , प्रशंसा मिले

52. पाद मरना या अनुभव करना – व्यापार में लाभ हो व्यवसायिक यात्रा

53. पार करना (तैरकर) – मान सम्मान बढे

54. पिटारा देखना – धन लाभ हो

55. पिजरा देखना – स्वस्थ्य खराब हो

56. पिजरा खाली देखना – धन वृद्धि हो

57. पिजरे में पक्षी देखना – गृह कलेश हो

58. पीपल देखना – शुभ सन्देश मिले

59. पीला रंग देखना स्वास्थ्य खराब हो

60. पीठ देखना – मित्र से लाभ हो

61. पीतल के बर्तन देखना – धन लाभ हो , व्यापार बढे

62. पीली सरसों देखना – सब प्रकार से शुभ हो

63. पुस्तकालय देखना – समृधि बढे

64. पुस्तक खोना – मानहानि हो

65. पुस्तक मिलना – मान सम्मान में वृद्धि हो

66. पुजारी बनना – जीवन में उन्नति हो

67. पुडिया बंधना – शारीरिक कष्ट बढे

68. पुरस्कार मिलना – हानि हो

69. पुल पार करना – धन लाभ हो

70. पुल टूटते देखना – संकट से छुटकारा हो

71. पूजा पाठ करना – सुख शान्ति तथा समृद्धि की सूचना

72. पूर्वज देखना – शुभ स्वप्ना , समृद्धि बढे

73. पूजा या प्रार्थना करना – मानसिक शान्ति मिले

74. प्रेम प्रस्ताव रखना – विवाह में विलंभ हो

75. पेड़ पौधे देखना – कार्य में लाभ हो

76. पेटी खोलना – चोरी की संभावना

77. पेशाब करना – संकट दूर हो , धनप्राप्ति हो

78. पेढा खाना – मुह में रोग हो

79. पैर कटे देखना – शत्रु पर विजय हो

80. पैर खुजलाना – यात्रा शीघ्र हो

81. पैबंद लगाना – कष्ट के पूर्व सूचना

82. पैसा मिलना – मुफ्त का धन मिले

83. पेन पेंसिल देखना – परीक्षा में उत्तीरण हो

84. पोचा लगाना – स्थान परिवर्तन हो

85. पोशाक पहनना – बीमारी आने का संकेत

सपने का अर्थ

1. फलाहार करना – सुख समृद्धि बढे

2. फटे कपडे देखना – धनहानि हो , चिंताए बढे

3. फ़कीर देखना – काम में सफलता मिले

4. फ़रिश्ता देखना – मनोकामना पूर्ण हो

5. फंदा लगाना या देखना – मुसीबतों से छुटकारा मिले

6. फफोला टूटना – मुसीबतें समाप्त हो

7. फवारा देखना – सभी मुसीबते दूर हो ,प्रसन्नता बढे

8. फाखता देखना – पत्नी की ओर से कष्ट मिले , मानसिक ग्लानी हो

9. फाटक देखना – मुकदमा समाप्त हो

10. फाटक पार करना –सफलता मिले

11. फिटकरी देखना – धन लाभ हो

12. फांसी लगाना – जीवन में दिशा परिवर्तन हो

13. फिरोजा रत्न देखना – शत्रुओं पर विजय हो

14. फूलवारी देखना – मनपसंद विवाह होना , ख़ुशी मिले

15. फुल्का खाते देखना – आर्थिक समृद्धि हो , परन्तु शोक समाचार मिले

16. फुलझडी छूटते देखना – विवाह में सम्मिलित हो

17. फुहार पढ़ते देखना – धन संमृद्धि बढे

18. फूलदान देखना – मान सम्मान बढे

19. फूटी आँख देखना – शारीरिक व् आर्थिक कष्ट बढे

20. फूंक मारना – सामाजिक कार्यो में मान सम्मान बढे

21. फूल खिलते देखना – प्रसन्नता बढे , संतान हो

22. फूल जलते देखना – प्रिय व्यक्ति की मृत्यु देखना

सपने का अर्थ

1. बतक पानी में देखना – शुभ समाचार मिले

2. बतख ज़मीन पर देखना -धन हानि हो

3. बन्दर देखना – धन वृद्धि हो , अच्छा भोजन मिले

4. बटन लगाना – संकट आने की सूचना

5. बटन देखना – धन बढे

6. बरसात देखना शहर पर – खुशहाली बढे

7. बरसात देखना अपने घर पर – संकट आये

8. बरसात में छत्री लगाकर चलना – संकट दूर हो

9. बकरी चुराना या खोना – लडाई हो

10. बर्फ खाना – चिंताए दूर हो

11. बर्फ गिरते देखना – आर्थिक समृद्धि हो

12. बनिए को दरवाज़े पर देखना – क़र्ज़ बढे

13. बटुआ देखना – धन लाभ हो , रोग दूर हो

14. बनयान पेहेनना – धन बढे , सुख शान्ति मिले

15. बगुला देखना – सफ़ेद देखने पर लाभ , काला देखने पर हानि हो

16. बधाई का सन्देश मिलना – दुखद सूचना मिले

17. बछिया देखना – शुभ समाचार मिले

18. बाल गिरते देखना – आर्थिक कष्ट बढे

19. बाजू काटना – अपमानित होना पढ़े

20. बाजू पर चोट लगाना – माता पिता के लिए अनिष्टकारक

21. बाजू कटी देखना – शत्रु पर विजय मिले

22. बांस देखना – लगातार उन्नति हो

23. बाज़ देखना – दुर्घटना में फँसना पढ़े

24. बाज़ द्वारा झपट्टा मारना – पहाड़ से गिरने के लक्षण

25. बरात में जाना – अशुभ समाचार मिले

26. बाघ देखना – शत्रु पर विजय हो

27. बारहसिंघा देखना – दूर स्थान की यात्रा हो

28. बाढ़ देखना – संकटों से छुटकारा हो

29. बाढ़ में घिरना – वातावरण सुखद हो

30. बाढ़ में फंसे आदमियों को बचाना – गृह कलेश बढ़ना

31. बाढ़ के पानी में तैरना –व्यापार में सफलता मिले

32. बाढ़ में लोगों को डूबते देखना – लम्बी यात्रा हो

33. बादल बरसते देखना –पारिवारिक सुख शान्ति या समृद्धि

34. बादल से बिजली गिरते देखना -अशुभ समाचार मिले

35. बादल को छूना – धन वृद्धि हो

36. बाज़ार में स्वयं घूमना – अच्छे समाचार मिले

37. बाज़ार देखना – धन हानि हो , व्यापार में घाटा हो

38. बाजीगरी देखना – षडयंत्र में फसना पढ़े

39. बादाम खाना – स्वस्थ्य खराब हो , अस्पताल में भर्ती होना पढ़े

40. बादाम देखना – धन वृद्धि हो

41. बादशाह देखना – धन वृद्धि हो , मान सम्मान बढे

42. बाल कटे देखना सर के – क़र्ज़ से छुटकारा मिले

43. बाल काले देखना(अपने सर के) – अधिक धन मिले

44. बाल सफ़ेद देखना (अपने) – समाज में उच्च स्थान मिले

45. बाल कटे देखना – गृह कलेश बढे

46. बाल देखना (हथेली या तलुओं में) – क़र्ज़ में फसना पढ़े

47. बाल देखना (बगल के या नाभि के नीचे के) – अपमानित होना पढ़े

48. बातें बहुत करना – काम में वृद्धि हो , मान सम्मान बढे

49. बालू देखना – धन लाभ हो

50. बालू छानते देखना – आर्थिक परेशानी बढे

51. बिछु , सांप या भयानक जीव देखना – धन मिले

52. बौना देखना – शुभ समय नज़दीक है

53. बाइबल – ज्ञान में वृद्धि हो

सपने का अर्थ

1. भण्डार देखना – काफी धन लाभ हो

2. भटठा देखना – भूमि तथा भवन में वृद्धि हो

3. भभूत लगाना – शीघ्र विवाह हो तथा गृहस्थी का सुख मिले

4. भाई देखना – भाई की आयु वृद्धि हो तथा ,रोग दूर हो

5. भाभी देखना – स्वयं को कष्ट मिले , भतीजा जन्मे

6. भागते देखना – कष्ट मिटे , अच्छा समय आने वाला है

7. भंग का नशा करना – अपमानित होना पढ़े

8. भांड देखना -लडाई झगडा अथवा वाद विवाद में फँसना पड़े

9. भाला लेकर चलना – शत्रु पर विजय हो

10. भाला मारना – अपमानित होना पढ़े

11. भाले के खेल का प्रदर्शन करना – संकट या दुर्घटना आये

12. भीड़ का छठा देखना – काफी लाभ मिले

13. भीड़ का काटना – दुःख आये

14. भिन्डी देखना – सुखो में वृद्धि हो , आलस्य बढे

15. भिखारी देखना – कार्य के अच्छे परिणाम मिले

16. भीगते देखना – सुख समृद्धि में वृद्धि हो

17. भीख मांगना या देना – पारिवारिक सुख – संपत्ति तथा समृद्धि बढे

18. भीड़ देखना या उसमे चलना – कार्य अधूरा हो

19. भीड़ को उग्र रूप में देखना – कार्य में सफलता मिले

20. भूचाल देखना – तबाही आये , जनता पर संकट पढ़े

21. भूसा देखना – पशुओं से लाभ मिले

22. भूमिगत स्वयं को देखना – भयंकर बीमारी आये या विपत्ति बढे

23. भेडिया देखना – विश्वाश घात हो खतरे की सूचना

24. भेड़ अकेली देखना – अशुभ हो

25. भेड़ो को समूह देखना – लाभ हो

26. भैंसा देखना – संघर्ष करने से सफलता मिलेगी

27. भैस देखना – अच्छा भोजन मिले

सपने का अर्थ

1. मछर देखना – अपमानित होना पड़े

2. मछली देखना – गृहस्थी का सुख मिले

3. मखी देखना – धन हानि हो

4. मकडी देखना – बहुत अधिक मेहनत करनी पड़े

5. मकान बनते देखना – मान सम्मान में वृद्धि हो

6. मलाई खाना – धन वृद्धि हो

7. मंदिर या मस्जिद देखना – खुशहाली बढे

8. मंदिर में पुजारी देखना – गृह कलेश बढे

9. मर जाना – धन वृद्धि हो

10. मखमल पर बैठना – लम्बी बीमारी आये

11. मगरमच देखना – शुभ समाचार मिले

12. मंत्री देखना – मान सम्मान में वृद्धि हो

13. माला ( पूजा वाली ) शुभ समय आने का संकेत

14. माला फूलों की पहनाना- मान सम्मान में वृद्धि हो

15. मातम करना – खुशहाली बढे

16. माली देखना – घर में समृधि बढे

17. मिर्च खाना – काम में सफलता मिले

18. मिर्गी से पीड़ित होना या देखना – बुद्दि तेज हो

19. मिठाई खाना या बाँटना – बिगडे काम बने

20. मीट खाना – मनोकामना पूरण हो

21. मुर्दा उठा कर ले जाते देखना – बिना कमाया माल मिले

22. मुर्दे को जिन्दा देखना – चिंता दूर हो

23. मुर्दा शारीर से आवाज़ आना – बना काम बिगड़ जाना

24. मुर्दों का समूह देखना – गलत सोसाइटी में काम करना पड़े

25. मुर्दे को नहलाना – धन वृद्धि हो

26. मुर्दे को कुछ देना – शुभ समाचार

27. मुर्दे के साथ खाना -अच्छा समय आये

28. मुर्गा देखना -विदेश व्यापार बढे

29. मुर्गी देखना -गृहस्थी का सुख मिले

30. मोहर लगाना – धन वृद्धि हो

31. मुरझाये फूल देखना – संतान को कष्ट हो

32. मुंडन कराना या होते देखना -गृहस्थी का तनाव दूर हो

33. मुहर्रम देखना – कारोबार में उन्नत्ति हो

34. मूंगा पहनना या देखना – कारोबार में उन्नत्ति हो

35. मूंग मसूर या मोठ देखना – अनेक परेशानी हो

36. मोची देखना -यात्रा लाभदायक हो

37. मोम देखना – झगडे या विवाद में समझोता हो

38. मोर नाचते देखना – शुभ समाचार मिले

39. मोर मोरनी देखना – दांपत्य सुख में वृद्धि हो

40. मोजा पहनना – पति पत्नी में प्रेम बड़े

41. मोमबत्ती देखना – विवाह हो

सपने का अर्थ

1. यन्त्र बनाना या देखना – अशुभ फल हो

2. यग करना या देखना – धन वृद्धि हो

3. यमराज देखना – बीमारी दूर हो

4. योजना बनाना -अशुभ फल

5. योगासन करना – शुभ फल

सपने का अर्थ

1. रजाई ओड़ना – धन मिले

2. रजाई नई बनवाना – स्थान परिवर्तन हो

3. रजाई फटी पुरानी देखना – शुभ कार्य के लिए निमंत्रण हो

4. रस्सी लपेटना – सफलता मिले

5. रथ देखना -यात्रा करनी पड़े

6. रसभरी खाना – विवाह हो

7. रसगुल्ला खाना – धन वृद्धि हो

8. रद्दी देखना – रुका हुआ धन मिले

9. रंग करना – सम्बंधित वास्तु की हानि हो

10. रक्षा करना – मान सम्मान में वृद्धि हो

11. रफू करना – नई वस्त्रो या आभूषनो की प्राप्ति हो

12. रक्षा बंधन देखना – धन वृद्धि हो

13. रसोई घर गन्दा देखना – अच्छा भोजन मिले

14. रसोई घर स्वछ देखना -धन का संकट आये

15. रास्ता देखना (साफ) -तरक्की मिले

16. रास्ता देखना (टेड़ा मेडा ) परेशानी हो

17. राख देखना – धन नाश हो

18. रॉकेट देखना – धन संपत्ति में वृद्धि हो

19. रात देखना -परेशानी आये

20. राइ देखना – काम में रूकावट आये

21. राक्षश देखना – संकट आये

22. रामलीला देखना – सुख सौभाग्य में वृद्धि

23. रिश्वत लेना – सावधान रहे

24. रिवाल्वर चलाना – शत्रुता समाप्त हो

25. रिक्शा देखना या उसमे बैठना – प्रसन्त्ता बढे

26. रेलवे स्टेशन देखना -लाभदायक यात्रा हो

27. रेल देखना – कष्ट दायक यात्रा हो

28. रेडियो बजता देखना – प्रगति में रूकावट हो

29. रेफ्रिजिरटर देखना – आर्थिक लाभ हो

30. रेगिस्तान देखना – धन सम्पदा में वृद्धि

31. रोजा रखना – आर्थिक संकट आने का संकेत

32. रोना – मान सम्मान में वृद्धि हो

33. रोशनदान से देखना – विदेश से धन की प्राप्ति हो

34. रोटी खाना या पकाना – बीमारी आने का संकेत

35. रोटी बाँटना – धन लाभ हो

36. रोटी फैंकना या गिरी हुई देखना – देश में मन न लगे , विदेश की यात्रा शीघ्र हो

सपने का अर्थ

1. लंगर खाना या देखना -धन वृद्धि हो ,व्यवसाय में तेजी आये

2. लंगूर देखना -शुभ समाचार मिले

3. लंगोटी देखना -आर्थिक कठिनाईया बढे

4. लकीर खींचना -गृह कलेश बढे , अनावश्यक झगडे हो

5. लटकना या लटकते हुए देखना -सोचा हुआ काम शीघ्र बने , आर्थिक समृद्धि बढे

6. लड़का गोद में देखना (अपना) – धन वृद्धि हो , व्यवसाय में तेजी आये

7. लड़का गोद में देखना (अनजान) – परेशानी बढे ,घर में कलेश हो

8. लड़ना – विद्रोहियों के साथ – देश तथा समाज में अशांति फैले

9. लगाम देखना -मान सम्मान बढे , धन वृद्धि हो

10. लक्ष्मी का चित्र देखना -धन तथा सुख सौभाग्य की वृद्धि हो

11. लहसुन देखना – धन वृद्धि हो परन्तु अन्न व् सब्जी के व्यापार में हानि हो

12. लक्कड़ बाघ देखना – नयी मुसीबतें आने का संकेत

13. लपटें देखना (आग की ) – परिवार में शान्ति बढे , झगडा ख़तम हो

14. लाल आँखे देखना – शुभ फल की प्राप्ति

15. लालटेन जलना – चलते हुए काम में रोड़ा अटके

16. लालटेन बुझाना – अनेक समस्या स्वयं निपट जाये

17. लाट या मीनार देखना -आयु वृद्धि हो , सुख शान्ति बढे

18. लाठी देखना -सुख शांति में वृद्धि हो ,अच्छे सहयोगी मिले

19. लाल टीका देखना -सत्संग से लाभ हो, कामो में सफलता मिले

20. लाल वस्त्र दिखाई देना – धन नाश हो ,खतरा बढे

21. लाल आकाश में देखना -लडाई झगडा व् आतंक में वृद्धि ,धन तथा देश की हानि हो

22. लिबास (अपने कपडे)सफ़ेद देखना – सुख , शान्ति तथा समृद्धि में वृद्धि हो

23. लिबास हरा देखना – धन दौलत बढे , स्वस्थ्य अच्चा हो

24. लिबास पीला देखना -स्वस्थ्य में खराबी आये ,चोरी हो

25. लिबास मैला देखना -धन हानि हो ,खराब समय आने वाला है

26. लिफाफा खोलना -समाज में मानहानि हो , गुप्त बात सामने आये

27. लोहा देखना – काफी मेहनत करने के बाद सफलता मिले

28. लोहार देखना – मान सम्मान बढे , शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो

29. लोबिया खाना – धन तथा व्यवसाय में वृद्धि हो

30. लौकी देखना या खाना -शुभ समाचार मिले , धन वृद्धि हो ,नौकरी में पदोंनिती हो

सपने का अर्थ

1. वकील देखना – कठिनाई बढे , झगडा हो

2. वजीफा पाना -काम में असफलता मिले , धनहानि हो

3. वरमाला देखना या डालना -घर में कलेश हो मित्र से लडाई हो

4. वसीयत करना -भूमि सम्बन्धी विवाद हो , घर में तनाव बढे

5. वायदा करना – झूठ बोलने की आदत पढ़े

6. वाह वाह करके हसना -मान सम्मान का ध्यान रखे , शत्रु बदनाम करेंगे

7. वार्निश करना (घर की वस्तुओं पर)- परिवार पर संकट आये, स्वस्थ्य खराब हो

8. वाष्प उड़ते देखना – धनहानि हो , दुर्घटना तथा शारीरिक कष्ट हो

9. विदाई समारोह में भाग लेना – व्यापार में तेजी आये , धन वृद्धि हो

10. विमान देखना – धन हानि हो

11. विस्फोट देखना या सुनना – नया कारोबार शुरू हो , बड़े व्यक्तियों से मुलाकात हो

12. वीणा बजाना (स्वयं द्वारा) – धन धान्य तथा समृद्धि प्राप्त हो

13. वीणा बजाना – शोक समारोह में शामिल होना पड़े , (दूसरो द्वारा)मानसिक कष्ट हो

14. वृद्धा देखना – अशुभ समाचार मिले

सपने का अर्थ

1. शंख बजाना, देखना, सुनना – शुभ समाचार

2. शंकरजी को देखना – सुखो में वृद्धि

3. शरबत देखना – बीमारी दूर हो

4. शतरंज देखना – समय व्यर्थ में बर्बाद हो

5. शराब देखना – बिना कमाया धन मिले

6. शराब पीना – धन वृद्धि हो

7. शमा (दीपक )देखना – मान सम्मान में वृद्धि हो

8. शमा दान देखना – बीमारी दूर हो

9. शहद की मक्खी देखना – धन वृद्धि हो

10. शहद देखना – शुभ कार्यो में रूचि बढे

11. शरीफा खाना या देखना – स्वस्थ्य में लाभ हो

12. शहतूत देखना – अच्छा भोजन मिले

13. शहनाई बजाना या देखना – दुखद समाचार मिले

14. शमशान पर जाना – आयु वृद्धि हो

15. शहर को जाना – धन वृद्धि हो

16. शहर का विनाश देखना – अपना निवास स्थान खाली करना पड़े

17. शव के साथ चलना – भाग्य वृद्धि

18. शरीर की मालिश करना – रोग बढे

19. शमियाना देखना – धन वृद्धि हो

20. श्राद्ध करना – अच्छा समय आने की सूचना

21. शाल ओड़ना -अपयश मिले

22. शार्क मछली देखना – विदेश यात्रा हो

23. शिकार करना – परिवार पर संकट आये

24. शीशा देखना – लम्बी बीमारी आये

25. शीशा तोड़ना – परेशानी आये

26. शेर देखना – शत्रु पर विजय हो

27. शोक मगन होना – घर में उत्सव का आयोजन हो

सपने का अर्थ

1. श्रंगार करना – प्रेम प्रसंगों में वृद्धि हो

2. श्रंगार दान टूटना – दांपत्य जीवन में सुख व् सफलता मिले

3. स्याही देखना – सरकार से सम्मान मिले

4. स्टोव जलाना – भोजन अच्छा मिले

5. संडास देखना – धन वृद्धि हो

6. संगीत देखना या सुनना – कष्ट बढे

7. संदूक देखना – पत्नी सेवा करे , अचानक धन मिले

8. सगाई देखना या उसमे शामिल होना –

9. सजा पाना – संकटों से छुटकारा मिलाना

10. सट्टा खेलना – धोखा होने का संकेत

11. सलाद खाते देखना – धन वृद्धि हो

12. सर्कस देखना – बहुत मेहनत करनी पड़े

13. सलाई देखना – मान सम्मान बढे

14. सरसों का साग खाना – बीमारी दूर हो

15. सरसों देखना – व्यापार में लाभ हो

16. ससुर देखना – शुभ समाचार मिले

17. सर कटा देखना – विदेश यात्रा हो

18. सर फटा देखना – कारोबार में हानि हो

19. सर मुंडाना – गृह कलेश में वृद्धि हो

20. सर के बाल झड़ते देखना – क़र्ज़ से मुक्ति मिले

21. ससुराल जाना – गृह कलेश में वृद्धि हो

22. समुद्र पार करना – उनत्ति मिले

23. साइकिल देखना -सफलता मिले

24. साइकिल चलाना – काम में तरक्की मिले

25. साइन बोर्ड देखना – व्यापार में लाभ हो

26. सावन देखना – जीवन में ख़ुशी मिले

27. साडी देखना – विवाह हो , दाम्पत्य जीवन में सुख मिले

28. सारस देखना – धन वृद्धि हो

29. साला या साली देखना – दाम्पत्य जीवन में सुख हो , मेहमान आये , धनवृद्धि हो

30. सागर सूखता देखना -बीमारी आये , अकाल पड़े

31. सारंगी बजाना – अपयश मिले , धन हानि हो

32. साग देखना – अचानक विवाद हो , सावधान रहे

33. साबुन देखना – स्वस्थ्य लाभ हो , बीमारी दूर हो

34. सांप मारना या पकड़ना – दुश्मन पर विजय हो , अचानक धन मिले

35. सांप से डर जाना -नजदीकी मित्र से विश्वासघात मिले

36. सांप से बातें करना -शत्रु से लाभ मिले

37. सांप नेवले की लडाई देखना – कोर्ट कचेहरी जाना पड़े

38. सांप के दांत देखना -नजदीकी रिश्तेदार हानि पहुंचाएंगे

39. सांप छत्त से गिरना – घर में बीमारी आये तथा कोर्ट कचहरी में हानि हो

40. सांप का मांस देखना या खाना – अपार धन आये परन्तु घर में धन रुके नहीं

41. सिपाही देखना – कानून के विपरीत काम कारनेका संकेत

42. सिनेमा देखना – समय व्यर्थ में नष्ट हो

43. सिगरेट पीते देखना -व्यर्थ में धन बर्बाद हो

44. सिलाई मशीन देखना – पति पत्नी में झगडा हो

45. सिलाई करना – बिगडा काम बन जाये

46. सियार देखना -धन हानि हो , बीमारी आये

47. सिन्दूर देखना – दुर्घटना की सम्भावना

48. सिन्दूर देवता पर चडाना – मनोकामना पूर्ण हो

49. सीताफल देखना -कुछ समय के बाद गरीबी दूर होगी

50. सीता जी को देखना -मान सम्मान बढे

51. सीमा पार करना -विदेश व्यापार में लाभ हो

52. सिप्पी देखना – उसे देखने पर हानि , उठाने पर लाभ

53. सीना चौडा होना – लोकप्रियता में वृद्धि हो

54. सीड़ी पर चढ़ना – काम में असफलता मिले

55. सुनहार देखना – साथी से धोखा मिले

56. सुटली कमर में बंधना -गरीबी आये , संघर्ष करना पढ़े

57. सुम्भा देखना (लोहे का)- कार्य में सफलता मिले , विवाह हो

58. सुदर्शन चक्र देखना – बईमानी का दंड शीघ्र मिले

59. सुपारी देखना -विवाह शीघ्र हो , मित्रों की संख्या में वृद्धि हो

60. सुनहरी रंग देखना – रुका हुआ धन मिले

61. सुरंग देखना या सुरंग में प्रवेश करना – नया कार्य आरंभ हो

62. सूई देखना – एक देखने पर सुख तथा अनेक देखने पर कष्ट में वृद्धि हो

63. सुलगती आग देखना – शोक समाचार मिले

64. सुन्दर स्त्री देखना – मान सम्मान में हानि हो

65. सुनहरी धूप देखना – सरकार से धन लाभ हो , मान सम्मान बढे

66. सुराही देखना – गृहस्थी में तनाव हो , पति या पत्नी का चरित्र ख़राब हो , रोग दूर हो

67. सुगंध महसूस करना – चमड़ी की बीमारी आये

68. सुनसान जगह देखना – बलवृद्धि हो

69. सूद लेते देखना – मुफ्त का धन मिले

70. सूद देते देखना -धन नाश हो , गरीबी आये

71. सूली पर चढ़ना – चिन्ताओ से मुक्ति हो , शुभ समाचार मिले

72. सूर्य देखना – धन संपत्ति तथा मान सम्मान बढे

73. सूर्य की तरह अपना चेहरा चमकता देखना – पुरस्कार मिले , मान सम्मान बढे

74. सूअर देखना – बुरे कामों में फँसना पड़े , बुरे लोगों से दोस्ती हो तथा मानहानि हो

75. सूअर का दूध पीना – चरित्र खराब हो , जेल जाना पढ़े

76. सूरजमुखी का फूल देखना – संकट आने की सूचना

77. सूर्य चन्द्र आदि का विनाश देखना – मृत्यु तुल्य कष्ट मिले

78. सेम की फली देखना – धन हानि हो परन्तु अच्छा भोजन मिले

79. सेब का फल देखना – दुःख व् सुख में बराबर वृद्धि हो

80. सेंध लगाना – प्रिये वस्तु गुम होना

81. सेवा करना – मेहनत का फल मिलेगा

82. सेवा करवाना – स्वस्थ्य खराब होने के लक्षण है

83. सेहरा बंधना – दाम्पत्य जीवन में कलेश की संभावना

84. सैनिक देखना – साहस में वृद्धि हो

85. सोंठ खाना – धन हानि हो , स्वस्थ्य में सुधार हो

86. सोना देखना – परिवार में बीमारी बढे , धन हानि हो

87. सोना मिलना – धन वृद्धि हो

88. सोना दुसरे को देना – अपनी मुर्खता से दूसरों को लाभ पहुंचाना

89. सोना लुटाना – परेशानिया बढे , अपमान सहना पढ़े

90. सोना गिरवी रखना – बईमानी करे और अपमान हो

91. सोते हुए शेर को देखना – निडरता से कार्य करे , सफलता मिलेगी

92. सोलह श्रृंगार देखना -स्वस्थ्य खराब होने का संकेत

93. स्वप्न में मानिक रत्न देखना – शक्ति तथा अधिकारों में वृद्धि

94. स्वप्न में मोती रत्न देखना – मानसिक शांति मिले

95. स्वप्न में मूंगा रत्न देखना – शत्रु पर विजय मिले

96. स्वप्न में पन्ना रत्न देखना – व्यवसाय में वृद्धि हो

97. स्वप्न में पुखराज रत्न देखना -वैर विरोध की भावना बढे

98. स्वप्न में हीरा रत्न देखना – आर्थिक प्रगति हो

99. स्वप्न में नीलम रत्न देखना – उन्नत्ति हो

00. स्वप्न में गोमेद रत्न देखना – समस्या अचानक आये

01. स्वप्न में लहसुनिया रत्न देखना – मान सम्मान बढे

02. स्वप्न में फेरोज़ा रत्न देखना – व्यवसाय में वृद्धि

सपने का अर्थ

1. हड्डी देखना – शुभ समाचार मिले , स्वस्थ्य में लाभ

2. हरियाली देखना – मन प्रसन्न रहेगा

3. हल्दी की गाँठ देखना – आर्थिक प्रगति हो

4. हल्दी पीसी देखना – परेशानी आये

5. हवा में उड़ते देखना – यात्रा में कष्ट आये

6. हवा तेजी से चलते देखना – दुखो में वृद्धि हो

7. हवा माध्यम चलते देखना -शत्रु हानि पहुंचाए

8. हथकडी देखना – परेशानियां बढे

9. हथेली देखना (पुरुष का) – शत्रुता बढे

10. हथेली देखना (स्त्री का ) – प्यार बढे

11. हवेली देखना – किसी नजदीकी व्यक्ति की मृत्यु का समाचार मिले

12. हकीम देखना – बीमारी आये परन्तु ज्ञान भी बढे

13. हत्या होते देखना – दीर्घायु हो , दुश्मनों से सावधान रहे

14. हत्या करना – लडाई झगडा शान्ति होने के लक्षण

15. हरा रंग देखना – सुख शान्ति में वृद्धि हो

16. हथौडा देखना – सम्मान मिले परन्तु परिश्रम अधिक हो

17. हशीश पीते देखना – कष्टों में वृद्धि हो

18. हजामत बनते देखना – ठगे जाने की संभावना

19. हज करना – मनोकामना पूर्ण हो

20. हमला होना – दुर्घटना की पूर्व समाचार

21. हलवाई की दूकान देखना – इच्छाए बहुत बढे परन्तु अपूर्ण रहे

22. हवाई जहाज़ देखना – व्यापार में अधिक झूठ बोलना पढ़े , लाभ हो

23. हँसना – अकारण परेशानी बढे

24. हसती स्त्री देखना – गृह कलेश बढे

25. हसाना (दूसरों के द्वारा ) – मनोकामना पूर्ण हो

26. हसुली देखना – जीवन में आनंद बढे

27. हाथ देखना – अच्चे मित्रों से मुलाकात हो

28. हाथ कटा हुआ देखना – लडाई में हानि हो

29. हाथ पर चित्रकारी देखना – आजीविका के लिए संघर्ष करना पढ़े

30. हाथ धोना – काम अपूर्ण रहे , नाकामयाबी मिले

31. हाथ से आसमान छूना – मनोकामना पूर्ण हो , काम में तरक्की मिले

32. हाथ बंधे देखना – बुरे काम का बुरा नतीजा भुगतना पढ़े

33. हाथी देखना – संतान हो , नया कार्य शुरू हो

34. हाथी की सवारी करना – मान सम्मान बढे , सरकार से लाभ हो

35. हाथी मस्त देखना – धनवृद्धि हो

36. हिसाब किताब लगाना – अपव्यय हो , काम में सावधानी बरते

37. हिरन देखना – सफलता मिले , शीघ्र विवाह हो , धन लाभ हो

38. हिमपात देखना – बिगडे काम बने , काफी धन की प्राप्ति हो

39. हिमखंड देखना – किसी नजदीकी मित्र से धोखा मिलने की संभावना है

40. हीरा देखना – धन वृद्धि हो परन्तु संघर्ष अधिक हो

41. हुंकार सुनना – शत्रु से पराजय होना पड़े

42. हुक्का पीना या पिलाना – मित्रता बढे

43. हुक्का पीते देखना – व्यर्थ में समय खराब हो

44. हुकुम का इक्का देखना – चलते हुए काम में रुकावट आएगी , निराशा बढे

45. होटल देखना – काम में तंगी आये , धन की कमी हो

सपने का अर्थ

1. आकाश की ओर उड़ना ……लम्बी यात्रा हो

2. सुर्य को देखना ………किसी महात्मा के दर्शन होना

3. बादल देखना ………तरक्की हो

4. घोड़े पर चढ़ना . ……….व्यापार मे उन्नति होना

5. शीशा मे मुह देखना ………..स्त्री से प्रेम देखना

6. उँचे से गिरना ………हानि हो, कष्ट होना

7. बाग फुलवारी देखना …………खुशी प्राप्त हो

8. बारात देखना ………..रंज हो, स्त्री देखे तो दुख हो

9. पानी बरसता देखना ……..अनाज मन्दा

10. सिर के कटे बाल देखना ………………कर्ज से छुटकारा मिले

11. पखाना देखना ………….धन का लाभ हो

12. सफेद बाल देखना ………आयु बढ़े

13. पहाड़ चढ़ना …………उन्नति प्राप्त हो

14. शरीर मे पखाना लगना ……….काफी धन मिले

15. पखाना खाना ………पुर्ण धनवान होना, खजाना मिले

16. पखाना करना ………….धन प्राप्त हो

17. फूल देखना ……..प्रेमी मिले

18. छाती देखना ………….स्त्री वश मे हो

19. पानी पीना ………….व्यापार मे लाभ होना

20. पान खाना …………..सुन्दर स्त्री मिले

21. पानी मे डुबना …………अच्छे काम करें

22. हरी तरकारी देखना …………… ……प्रसन्नता प्राप्त हो

23. हंसता देखना…………..रंज प्राप्त हो

24. रोते देखना …………..प्रसन्नता मिले

25. जहाज देख्नना ………दूर की यात्रा हो

26. झण्डा देखना ……….धर्म की वृद्धि हो

27. जवाहरात देखना ………..आशायें पूर्ण हो

28. स्त्री प्रसंग ………..धन की प्राप्ति हो

29. लड़ाई करना ………प्रसन्नता प्राप्त हो

30. जुआ खेलना …………व्यापार मे लाभ हो

31. चन्द्रमा देखना………..प्रतिष्ठा प्राप्त होना

32. नदी मे तैरता देखना …………. कष्ट दूर हो

33. आकाश की ओर उड़ना ………लम्बी यात्रा हो

34. सुर्य को देखना ………किसी महात्मा के दर्शन होना

35. बादल देखना ………तरक्की हो

36. घोड़े पर चढ़ना . …….व्यापार मे उन्नति होना

37. शीशा मे मुह देखना ………..स्त्री से प्रेम देखना

38. उँचे से गिरना ………हानि हो, कष्ट होना

39. बाग फुलवारी देखना …………खुशी प्राप्त हो

40. बारात देखना ………..रंज हो, स्त्री देखे तो दुख हो

41. पानी बरसता देखना ………..अनाज मन्दा

42. सिर के कटे बाल देखना ………कर्ज से छुटकारा मिले

43. पखाना देखना ……….धन का लाभ हो

44. सफेद बाल देखना ………आयु बढ़े

45. पहाड़ चढ़ना …………उन्नति प्राप्त हो

46. शरीर मे पखाना लगना ……………….काफी धन मिले

47. पखाना खाना …………पुर्ण धनवान होना, खजाना मिले

48. पखाना करना ………….धन प्राप्त हो

49. फूल देखना ………..प्रेमी मिले

50. छाती देखना ……….स्त्री वश मे हो

51. पानी पीना ……….व्यापार मे लाभ होना

52. पान खाना …………..सुन्दर स्त्री मिले

53. पानी मे डुबना ………अच्छे काम करें

54. हरी तरकारी देखना ………प्रसन्नता प्राप्त हो

55. हंसता देखना………..रंज प्राप्त हो

56. रोते देखना ……………………..प्रसन्नता मिले

57. जहाज देख्नना ………..दूर की यात्रा हो

58. झण्डा देखना ………….धर्म की वृद्धि हो

59. जवाहरात देखना ………..आशायें पूर्ण हो

60. स्त्री प्रसंग ………..धन की प्राप्ति हो

61. लड़ाई करना ………प्रसन्नता प्राप्त हो

62. जुआ खेलना …………व्यापार मे लाभ हो

63. चन्द्रमा देखना……..प्रतिष्ठा प्राप्त होना

64. नदी मे तैरता देखना …………. कष्ट दूर हो

सपने में गुलाब का फूल देखना

स्वप्न शास्त्र के अनुसार अगर आप अपने सपने में गुलाब का फूल देखते हैं। तो ये आपके लिए शुभ माना जाता है। ये आपके जीवन में आने वाली सकारात्मकता का संकेत है। ऐसे सपनों का ये अर्थ भी होता है। कि जल्द ही आपके मन की कोई इच्छा पूरी होने वाली है।

समुद्र का पानी होता अशुभ संकेत

अगर आप सपने में समुद्र का पानी देखते हैं। तो ये अशुभ माना जाता है। स्वप्न शास्त्र के अनुसार इस तरह के सपने देखने के बाद मनुष्य को वाहन सावधानी पूर्वक चलाना चाहिए और ऊंचाई वाली जगहों पर सावधानी से जाना चाहिए। ये सपना भविष्य में सावधानी बरतने की तरफ इशारा करता है।

सपने में डूब जाना

स्वप्न शास्त्र के अनुसार अगर आप ऐसा सपना देखते हैं। जिसमें आप गहरे पानी में डूब रहे हैं। ये इस बात का संकेत है। कि आप किसी डर या दुख में हैं। सपने में अपने आपको उस व्यक्ति को उन घटनाओं के बारे में सोचना बंद करना चाहिए जो गुजर चुकी हैं। आपको किसी भी तरह की चिंता नहीं करनी चाहिए और अपने मन को शांत करने का प्रयास करना चाहिए।

खुद को दरिद्र रूप में देखना

आप सपने में खुद को गरीब दरिद्र देखते हैं। तो आपके लिए ये स्वप्न अच्छा है। आपको इससे परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे स्वप्न का मतलब आपके धन में वृद्धि होना है। ये अटके हुए धन के वापस मिलने का भी संकेत है।

सपने में तोता देखना

अगर आपको सपने में तोता नजर आता है। तो इसका मतलब है। कि आपको कोई अच्छा समाचार मिलने वाला है। आपके जीवन में सुख की शुरूआत होने वाली है। तोता हमेशा से सौभाग्य का प्रतीक माना गया है।

सपने में नेवले का दिखना

सपनों में नेवले का दिखना शुभ माना जाता है। धर्म शास्त्रों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नेवला नजर आने का मतलब है। हमारे आर्थिक पक्ष का मजबूत होना।

सपने में नेवले का दिखना

सपनों में नेवले का दिखना शुभ माना जाता है। धर्म शास्त्रों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नेवला नजर आने का मतलब है। हमारे आर्थिक पक्ष का मजबूत होना।

झाड़ू का दिखना

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, सपने में झाड़ू का दिखाई देने शुभ संकेत होता है। झाड़ू को लक्षमी का प्रतीक माना जाता है। इसका सीधा संकेत है। आपको धन लाभ होने वाला है।

भवन का निर्माण देखना

सपनों में भवन का निर्माण दिखाई देने का मलतब है। आपके जीवन में उन्नति होने वाली है। आपको धन की प्राप्ति होने वाली है।

शिव पार्वती को देखना

भगवान शिव-पार्वती जिन्हें सपनों में एक साथ दिखाई देते हैं। उनके लिए शुभ माना जाता है। खास तौर पर ऐसे लोगों के लिए जिनका विवाह नहीं हो रहा है। सपने में शिव-पार्वती के दर्शन होना जल्दी विवाह होने का संकेत है।

मृत्यु देखना

अगर आप सपनों में अपने किसी भी परिजन की मृत्यु होते हुए देखते हैं। तो समझिए उनकी आयु में वृद्धि हो गई है। हिन्दू शास्त्रों में इस तरह के सपनों को गलत नहीं माना जाता।

सपने में फलों का पेड़ दिखाई देना

अगर आप सपनों में फलों से लदा हुआ वृक्ष देखते हैं। तो ये आपके जीवन में आने वाली ढेर सारी खुशियों की ओर इशारा करता है। फल-फूल खुशी का प्रतीक माने गए हैं। फूलों से लदा पेड़ खुशियों के आगमन का ही संकेत माना जाता है।

सपने में पहाड़ पर चढ़ना

सपनों में पहाड़ चढ़ने का मतलब आप जीवन में उन्नति करने वाले हैं। इस तरह के सपने हमेशा सफलता के शिखर पर जाने की ओर इशारा करते हैं।

सपने में मंदिर देखना

स्वप्न शास्त्र कहता है। कि यदि कोई व्यक्ति सपने में मंदिर देखता है। तो यह सपना आपको व्यापार में मुनाफा और धन प्राप्ति का संकेत देता है। ऐसे सपने जीवन में उन्नति के प्रतीत होते हैं।

यदि किसी व्यक्ति ने सपने में साफ पानी देखा है। तो यह सपना एक शुभ सपना माना जाता है। इसका अर्थ है नौकरी पेशा लोगों को उन्नति मिलने वाली है। घर में किसी तरह के धार्मिक या मांगलिक कार्य का आयोजन होने वाला है।

दर्पण में मुख देखना
अगर आपने रात की नींद में कोई ऐसा सपना देखा है। कि आप दर्पण में अपने चेहरे को निहार रहे हैं। तो ऐसे सपनों का परिणाम बहुत ही शुभ होता है। माना जाता है। कि आपकी लव लाइफ में प्‍यार की मिठास और भी ज्‍यादा घुलने वाली है। ऐसा सपना किसी स्‍त्री से प्रेम बढ़ने का प्रतीक माना जाता है।

सपने में भगवान दिखना शुभ माना जाता है। और यह सपना आपके जीवन में आशा की एक ​नई किरण लेकर आता है। इसका मतलब है। कि यदि आप किसी परेशानी में हैं। तो हिम्मत रखें जल्द ही आपको सही रास्ता मिलेगा. सपने में भगवान दिखने का मतलब है। भगवान का आशीर्वाद मिलना और अगर आपने भी ऐसा सपना देखा है। तो आपको भगवान ने आशीर्वाद दिया है।

सपने में भगवान विष्णु देखना
अगर आप सपने में सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु को देखते हैं इसका अर्थ है। कि आपके भाग्य का उदय होने वाला है। साथ ही आपके सभी कष्ट दूर होने वाले हैं। और धन-धान्य की पूर्ति के साथ ऐशवर्य की भी प्राप्ति होने वाली है।

यदि आप सपने में स्वयं को घोड़े से गिरते देखते हैं। तो यह सपना आपके करियर में परेशानियां आने का संकेत माना जाता है। इसी तरह से सपने में बंद नाला देखना, बिल्ली देखना, सूखे जंगल या सूखे पेड़ देखना भी आपके करियर या बिजनेस के लिए अच्छा नहीं माना जाता है।

सपने में खुद को कैंची चलाते देखना, या कैंची चलते देखना, किसी को थप्पड़ मारते हुए देखना दांपत्य जीवन और रिश्तों के लिए शुभ नहीं माना जाता है। इन सपनों को प्रेमी जीवन और दांपत्य जीवन के लिए बेहद अशुभ माना जाता है। ऐसे सपने आने पर व्यक्ति को संयम से काम लेना चाहिए।

 

अशुभ सपनों के प्रभाव को दूर करने के उपाय-
यदि आपको कोई अशुभ स्वप्न दिखाई देता है। तो प्रातः उठकर शिव मंदिर जाना चाहिए और भगवान शिव का पूजन व अभिषेक करना चाहिए। किसी भी तरह की अप्रिय घटना से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके अलावा सपनों के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ करना चाहिए। मान्यता है। कि इससे आपके जीवन के कष्ट दूर होते हैं। और ईश्वर आपकी रक्षा करते हैं।

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

द्वादश भाव विचार

आइये जाने फलादेश और उनके कारक का ज्ञान

यदि जातक को कुंडली में स्थित कारकों के बारे में यदि स्पष्ट जानकारी हो तो वह स्वयं से जुड़ी जिज्ञासा का समाधान कर सकता है। हर सवाल का जवाब प्राप्त कर सकता है। आइए जाने विभिन्न भावों के अनुसार किस गृह का कारक कौन हैं--

प्रथम भाव----
इस भाव का कारक सूर्य है। यह सबसे प्रमुख भाव है। इसी भाव की राशि, ग्रह और इसके अधिपति ग्रह की स्थिति से जातक की स्थिति की प्राथमिक जानकारी मिलती है। जातक की जन्मकुंडली अथवा प्रश्न कुंडली के किसी सवाल के जवाब में उसके स्वास्थ्य, जीवंतता, व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, आत्मा आदि को देखा जाता है। हर जवाब के लिए पहले लग्न, लग्न राशि, ग्रह और लग्न प्रभाव देखे जाते हैं।

दूसरा भाव---
इस भाव का कारक गुरू है। ज्योतिष में इसे धन भाव कहा जाता है। इससे बैंक एकाउंट, पारिवारिक पृष्ठभूमि देखी जाती है। यह भाव संसाधन, नैतिक मूल्य और गुणों के बारे में बताता है। किसी भी जातक का परिवार कितना बड़ा या छोटा है अथवा स्थावर संपत्ति की क्या स्थिति है, इसी भाव से देखेंगे। उदारता, मित्रों की मदद, कंजूसी, कवित्व शक्ति इसी भाव में देखी जाती है।

तीसरा भाव----
इस भाव का कारक मंगल है।इसे सहज भाव भी कहते हैं। कंुडली को ताकत देने वाला भाव यही है। भाग्य के इतर अपनी बाजुओं की ताकत से कुछ कर दिखाने वाले लोगों का यह भाव बहुत शक्तिशाली होता है। बौद्धिक विकास, साहसी विचार, दमदार आवाज, प्रभावी भाषण एवं संप्रेषण के अन्य तरीके इस भाव से देखे जाएंगे। यात्राएं और छोटे भाई के लिए भी इसे देखते हैं।

चौथा भाव---
इसका कारक चंद्रमा है। यह सुख का घर है। किसी के घर में कितनी शांति है इस भाव से पता चलेगा। इसके अलावा माता के स्वास्थ्य और घर कब बनेगा जैसे सवालों में यह भाव प्रबल संकेत देता है। शांति देने वाला घर, भावनात्मक स्थिति, पारिवारिक प्रेम जैसे बिंदुओं के लिए हमें चौथा भाव देखना होगा। यह भाव वाहन सुख के बारे में भी जानकारी देता है। 

पांचवां भाव---
इसका कारक गुरू है। इसे उत्पादन भाव भी कह सकते हैं। इंसान क्या पैदा करता है, वह इसी भाव से आएगा। इसमें शिष्य और पुत्र से लेकर पेटेंट वाली खोजें और कृतियां तक शामिल हो सकती हैं। इसके अलावा आनंदपूर्ण सृजन, बच्चे, सफलता, निवेश, जीवन का आनंद, सत्कर्म जैसे बिंदुओं को जानने के लिए इस भाव को देखा जाता है। 

छठा भाव--
इस भाव का कारक मंगल है। इसे रोग का घर भी कहते हैं। प्रेम के सातवें घर से बारहवां यानि खर्च का घर है। शत्रु और शत्रुता भी इसी भाव से देखे जाते हैं। कठोर परिश्रम, सश्रम आजीविका, स्वास्थ्य, घाव, रक्तस्त्राव, दाह, सर्जरी, डिप्रेशन, उम्र चढ़ना, कसरत, नियमित कार्यक्रम के संबंध में यह भाव संकेत देता है। अपनों से विरोध, इज्जत पर आंच भी इसी भाव में देखा जाता है। 

सातवां भाव---
इसका कारक शुक्र है। लग्न को देखने वाला यह भाव किसी भी तरह के साथी के बारे में बताता है। राह में साथ जा रहे दो लोगों के लिए, प्रेक्टिकल के लिए टेबल शेयर कर रहे दो विद्यार्थियों के लिए, एक ही समस्या में घिरे दो साथ-साथ बने हुए लोगों के लिए यह भाव देखा जाएगा।जीवनसाथी, व्यावसायिक भागीदार, करीबी दोस्त, सुंदरता जैसे विषय इसी भाव से जुड़े हुए हैं।  

आठवां भाव---
इसका कारक शनि है। स्वाभाविक रूप से गुप्त क्रियाओं, अनसुलझे मामलों, आयु, धीमी गति के काम इससे देखे जाएंगे। इसके अलावा दूसरे के संसाधनों का सृजन में इस्तेमाल, जिंदगी की जमीनी सच्चाइयां, तंत्र-मंत्र के लिए यही भाव है। ससुराल का धन भी इसी में देखा जाएगा। आलसीपन, पत्नी से होने वाला कष्ट, अंगहानि भी देखा जाता है। 

नवां भाव---
इसका कारक भी गुरू है। इसे भाग्य भाव भी कहते हैं। पिछले जन्म में किए गए सत्कर्म प्रारब्ध के साथ जुड़कर इस जन्म में आते हैं। यह भाव हमें बताता है कि हमारी मेहनत और अपेक्षा से अधिक कब और कितना मिल सकता है। धर्म, अध्यात्म, समर्पण, आशीर्वाद, बौद्धिक विकास, सच्चाई से प्रेम, मार्गदर्शक जैसे गुणों को भी इसमें देखा जाता है। 

दसवां भाव---
इसके कारक ग्रह अधिक हैं। गुरू, सूर्य, बुध और शनि के पास दसवें घर का कारकत्व है। हम जो सोचते हैं वही बनते हैं। यह भाव हमारी सोच को कर्म में बदलने वाला भाव है। हर तरह का कर्म दसवें भाव से प्रेरित होगा। व्यावसायिक सफलताएं, साख, प्रसिद्धि, नेतृत्व, लेखन, भाषण, सफल संगठन, प्रशासन, स्किल बांटना जैसे काम यह भाव बताता है।

ग्यारहवां भाव---
इसका कारक भी गुरू है। यह ज्यादातर उपलब्धि से जुड़ा भाव है। आय, प्रसिद्ध, मान सम्मान और शुभकामनाएं तक यह भाव एकत्रित करता है। हम कुछ करेंगे तो उस कर्म का कितना फल मिलेगा या नहीं मिलेगा, यह भाव अधिक स्पष्ट करता है। यह कर्म का संग्रह भाव है। उपलब्धि किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। धैर्य, विकास और सफलता भी इसी भाव से देखते हैं।

बारहवां भाव---
इसका कारक शनि है। हर तरह का खर्च, शारीरिक, मानसिक, धन और विद्या जो भी खर्च हो सकते हैं इसी से आएंगे। इस कारण बारहवें भाव में बैठा गुरू बेहतर होता है ग्यारहवें भाव की तुलना में क्योंकि सरस्वती की उल्टी चाल होती है, जितना संग्रह करेंगे कम होगी और जितना खर्चेगे उतनी बढ़ेगी। विदेश यात्रा लंबी यात्रा भी इसी भाव में देखेंगे।

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

द्वादश भाव ग्रह विचार

लाल किताब के अनुसार सूर्य 12 भाव में फल

लाल किताब

लाल किताब को वैदिक ज्योतिष की सबसे महत्वपूर्ण किताबों में से एक माना गया है। हालाँकि इसकी भविष्यवाणी वैदिक ज्योतिष से काफी अलग होती है। लाल किताब के मूल रचना कार का नाम वैसे तो अज्ञात है लेकिन पंडित रूप चंद्र जोशी जी ने इसके पांच खंडों की रचना कर आम लोगों के लिए इस किताब को पढ़ना आसान कर दिया। लाल किताब की मूल रचना उर्दू और फ़ारसी भाषा में की गयी थी। ये ज्योतिषशास्त्र के स्वतंत्र मौलिक सिद्धांतों पर आधारित एक किताब है जिसकी अपनी कुछ अनोखी विशेषताएँ हैं। इस किताब में वर्णित प्रमुख उपायों का प्रयोग व्यक्ति अपनी कुंडली में मौजूद ग्रह दोषों को दूर करने के लिए कर सकता है। इसमे दिए गए उपायों का पालन व्यक्ति आसानी से कर उससे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। लाल किताब की उत्पत्ति की बात करें तो ये पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में खुदाई के दौरान तांबे के पट पर उर्दू और फ़ारसी भाषा में अंकित मिली थी। बाद में पंडित रूप चंद्र जोशी के इसे पांच भागों में विभाजित कर उस समय आम लोगों की भाषा उर्दू में इसे लिखा। इस ज्योतिषीय किताब के उर्दू में होने की वजह से कुछ लोग ऐसा मानते हैं की इसका संबंध अरब देश से हैं, जबकि ये मात्र एक धारणा है।

लाल किताब का महत्व

लाल किताब में जीवन के हर क्षेत्र में आने वाली मुसीबतों के अचूक और आसान उपाय बताए गए हैं। इस किताब में बताए गए उपायों का अमीर, गरीब दूसरे सभी वर्ग के व्यक्ति बहुत ही आसानी से पालन कर सकते हैं। इस किताब में वैदिक ज्योतिष से इतर कुंडली के सभी भावों के स्वामी ग्रहों के बारे में ना बताकर हर भाव के एक निश्चित स्वामी ग्रह के बारे में बताया गया और इसी के आधार पर ये ज्योतिषीय गणना कर जातक को भविष्यफल प्रदान करती है। इस किताब में बारह राशियों को बारह भाव माना गया है और उसी के आधार पर फलों की गणना की गयी है। लाल किताब में दिए उपायों को आमतौर पर दिन के समय ही करने से ही समस्या का निदान होता है। उपायों को करने से पहले अपनी कुंडली का विश्लेषण निश्चित रूप से करवा लेना चाहिए। लाल किताब में मुख्य रूप से जातक के पारिवारिक, आर्थिक, स्वास्थ्य, कार्य क्षेत्र, व्यापार, शादी, प्रेम और शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली समस्याओं के उपाय बताए गए हैं। हर व्यक्ति की कुंडली में मौजूद ग्रह नक्षत्र का प्रभाव अलग-अलग पड़ता है और उसके अनुसार ही इस किताब में व्यापक प्रभावी उपायों के बारे में बताया गया है।

पंडित रूप चंद्र जोशी ने लाल किताब को निम्लिखित पांच भागों में विभाजित किया है :-

लाल किताब के फरमान : लाल किताब के इस प्रथम भाग को साल 1939 में प्रकाशित किया गया था।

लाल किताब के अरमान : इस किताब के द्वितीय भाग को 1940 में प्रकाशित किया गया।

लाल किताब (गुटका) : साल 1941 में लाल किताब के इस तीसरे भाग का प्रकाशन हुआ था।

लाल किताब : इस किताब के चौथे भाग को 1942 में प्रकाशित किया गया था।

लाल किताब : लाल किताब के पांचवें और आखिरी संस्करण को साल 1952 में प्रकाशित किया गया।

लाल किताब ने आम लोगों के लिए भी ज्योतिषशास्त्र को समझना बेहद आसान बना दिया। इसके प्रयोग से अपने आसपास की परिस्थितियों का आकलन करते हुए आप अपनी कुंडली में मौजूद ग्रह दोषों के बारे में जान सकते हैं और उसका उपाय कर सकते हैं।

लाल किताब में सूर्य ग्रह का महत्व

जिस प्रकार वैदिक ज्योतिष में सूर्य को एक प्रमुख ग्रह माना गया है उसी प्रकार लाल किताब में भी सूर्य को उतना ही महत्व दिया गया है। पुराणों में सूर्य को देवता कहा गया है जो समस्त संसार की आत्मा है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सूर्य महर्षि कश्यप और अदिति के पुत्र हैं। ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है और यह सिंह राशि का स्वामी है। मेष इसकी उच्च राशि है जबकि तुला राशि में यह नीच भाव में माना जाता है। वहीं चंद्रमा, मंगल और गुरु सूर्य के मित्र ग्रह हैं। जबकि शुक्र और शनि इसके शत्रु ग्रह माने जाते हैं। सूर्य के शुभ फल पाने तथा इसके बुरे प्रभाव से बचने के लिए बेल की जड़, माणिक्य रत्न अथवा एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने विधि ज्योतिष में बतायी गई है।

सूर्य अपने मित्र ग्रहों के साथ होता है तो यह जातकों को शुभ फल देता है। जबकि शत्रु ग्रहों के साथ इसके फल अच्छे नहीं होते हैं। ऐसा कहते हैं कि सूर्य के समीप आने पर किसी भी ग्रह का प्रभाव शून्य हो जाता है, इसलिए कई बार ऐसा होता है कि सू्र्य के प्रभाव में आने के कारण संबंधित ग्रह अपनी प्रकृति के अनुसार परिणाम नही दे पाते हैं। सूर्य गोचर के दौरान क़रीब एक महीने में एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इस कारण संपूर्ण राशि चक्र को पूरा करने में सूर्य 12 माह अर्थात एक वर्ष लगाता है। यह अन्य ग्रहों की तरह वक्री नहीं होता है।

लाल किताब के अनुसार सूर्य ग्रह के कारकत्व

सूर्य को जातक की कुंडली में सम्मान, सफलता, प्रगति एवं सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में उच्च सेवा का कारक माना जाता है। ज्योतिष में सूर्य को आत्मा तथा पिता का कारक भी कहा गया है। सूर्य सभी ग्रहों का राजा होता है अर्थात यह नेतृत्व का प्रतीक है। पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत सूर्य ही है। इसलिए सूर्य को ऊर्जा का भी कारक माना जाता है। इसके अलावा सूर्य ग्रह आत्मा का कारक होता है। मनुष्य के शरीर में सूर्य उसके हृदय को दर्शाता है। साथ ही यह पुरुषों की दायीं आँख जबकि महिलाओं की बायीं आँख का प्रतिनिधित्व करता है। पीड़ित सूर्य के कारण जातकों को कई प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। अतः यह लो ब्लड प्रेशर, चेहरे पर मुहांसे, तेज़ बुखार, टाइफाइड, मिर्गी एवं पित्त, हृदय या हड्डी से संबंधित रोगों का कारक है।

लाल किताब के अनुसार सूर्य ग्रह का संबंध

सूर्य ग्रह का संबंध भगवान विष्णु जी है। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि सूर्य ग्रह भगवान विष्णु जी का प्रतीक हैं जो कि रथ पर सवार हैं। लाल किताब में सूर्य ग्रह का संबंध तांबा, तांबे से संबंधित वस्तुएँ, काली कपिला गाय, इकलौता पुत्र, सख़्त राजा, बहादुर, नीतिवान, क्षत्रिय, राजपूत, माणिक पत्थर, तेज फल, गेहूँ, बाजरा, शिलाजीत, भूरी भैंस आदि से है।

लाल किताब के अनुसार सूर्य ग्रह के प्रभाव

यदि किसी जातक की कुंडली में सूर्य बली हो तो जातक को इसके सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। वहीं यदि कुंडली में सूर्य पीड़ित हो तो जातक को इसके नकारात्मक प्रभाव झेलने पड़ते हैं। जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में बली होगा जिसके कारण जातकों को अच्छे फल प्राप्त होंगे। वहीं सूर्य अपनी नीच राशि तुला में होगा तो जातक को अशुभ फल मिलेंगे। इसके अतिरिक्त मित्र ग्रहों (चंद्रमा, मंगल, गुरु) के साथ सूर्य शक्तिशाली होता है। अतः यह स्थिति जातकों के लिए शुभ होती है। जबकि शत्रु ग्रहों के साथ होने पर सूर्य जातकों के लिए हानिकारक हो जाता है। आइए जानते हैं किस प्रकार से सूर्य के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या हैं:

सकारात्मक प्रभाव - जिस जातक की कुंडली में सूर्य उच्च में होता है तो वह जातक स्वयं के बल पर कार्यक्षेत्र में उन्नति प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति की राह में जितनी रुकावटें आती हैं वह उन रुकावटों को अवसरों परिवर्तन कर आगे बढ़ता है और उसके शत्रुओं का नाश होता है। सूर्य का सकारात्मक प्रभाव जातकों को समाज में मान-सम्मान दिलाता है। इसके साथ ही सरकारी क्षेत्र में जातक उच्च पद की प्राप्ति करता है। इसके अलावा सूर्य के शुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति समाज का नेतृत्व करता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी जातक सदैव ऊर्जावान बना रहता है और उसके साहस में वृद्धि होती है। सूर्य का सकारात्मक प्रभाव जातकों की आभा को तेजवान बनाता है।

नकारात्मक प्रभाव - सूर्य ग्रह का नकारात्मक प्रभाव जातक को अहंकारी बनाता है। जातक अपने से संबंधित चीज़ों को लेकर घमंडी हो जाता है। इसके साथ सूर्य का नकारात्मक प्रभाव जातक को विश्वासहीन, ईर्ष्यालु, क्रोधी, महत्वाकांक्षी, आत्म केंद्रित, क्रोधी आदि बनाता है। वहीं पीड़ित सूर्य का प्रभाव पिताजी से संबंधों को ख़राब करता है। इस दौरान छोटी-छोटी बातों को लेकर पिताजी से झगड़ा अथवा उनसे मतभेद बना रहता है। अगर इसी को पिता के नज़रिए से देखें तो पीड़ित सूर्य के कारण पिता के संबंध पुत्र से ठीक नहीं रहते हैं। पीड़ित सूर्य का प्रभाव जातकों के वैवाहिक जीवन पर भी नकारात्मक असर डालता है।

लाल किताब के अनुसार सूर्य ग्रह शांति के टोटके/उपाय

ज्योतिष में लाल किताब के उपाय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। अतः लाल किताब में सूर्य ग्रह शांति के टोटके जातकों के लिए बहुत ही लाभकारी होते हैं। ये उपाय बहुत सरल होते हैं। अतः इन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से स्वयं कर सकता है। सूर्य ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय करने से जातकों को सूर्य के सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। सूर्य ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय निम्नलिखित हैंः

पति-पत्नी में से किसी एक को गुड़ से परहेज करना चाहिए

मुफ्त की चीज़ लें।

माँ का आशीर्वाद सदैव लें और चावल-दूध का दान करें।

अंधे व्यक्ति की सहायता करें

दूसरों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करें।

लाल किताब के उपाय ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित हैं। अतः ज्योतिष में इस पुस्तक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उम्मीद है कि सूर्य ग्रह से संबंधित लाल किताब में दी गई यह जानकारी आपके कार्य को सिद्ध करने में सफल होगी।

 

लाल किताब के अनुसार सूर्य का पहले भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो जातक धार्मिक इमारतों या भवनों का निर्माण और सार्वजनिक उपयोग के लिए कुओं की खुदाई करवाता है। उसकी आजीविका का स्थाई स्रोत अधिकांशत: सरकारी होगा। इमानदारी से कमाए गए धन में बृद्धि होगी। जातक अपनी आंखों देखी बातों पर ही विश्वास करेगा, कान से सुनी गई बातों पर नहीं। यदि सूर्य अशुभ है तो जातक के पिता की मृत्यु जातक के बचपन में ही हो जाती है। यदि शुक्र सातवें भाव में हो तो दिन के समय बनाया गया शारीरिक संबंध पत्नी को लगातार बीमारी देता है और तपेदिक के संक्रमण का भय पैदा करता है। पहले भाव का अशुभ सूर्य और पांचवें भाव का मंगल एक-एक कर संतान की मृत्यु का कारण होगा। इसी प्रकार पहले भाव का अशुभ सूर्य और आठवें भाव का शनि एक-एक करके संतान की मृत्यु का कारण बनता है। यदि सातवें भाव में कोई ग्रह हो तो 24 से पहले विवाह कर लेना जातक के लिए भाग्यशाली रहता है अन्यथा जातक के चौबीसवां साल विनाशकारी साबित होगा।

उपाय:
(1) 24 वर्ष से पहले ही शादी कर लें।
(2) दिन के समय यौन संबंध बनाएं।
(3) अपने पैतृक घर में पानी के लिए एक हैंडपंप लगवाएं।
(4) अपने घर के अंत में बाईं ओर एक छोटे और अंधेरे कमरे का निर्माण कराएं।
(5) पति या पत्नी दोनों में से किसी एक को गुड़ खाना बंद कर देना चाहिए।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का दूसरे भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो जातक आत्मनिर्भर होगा, शिल्पकला में कुशल और माता-पिता, मामा, बहनों, बेटियो तथा ससुराल वालों का सहयोग करने वाला होगा। यदि चंद्रमा छठवें भाव में होगा तो दूसरे भाव का सूर्य और भी शुभ प्रभाव देगा। आठवें भाव का केतू जातक को अधिक ईमानदार बनाता है। नौवें भाव का राहू जातक को प्रसिद्ध कलाकार या चित्रकार बनता है। नवम भाव का केतू जातक को महान तकनीकी जानकार बनाता है। नवम भाव का मंगल जातक को फैशनेबल बनाता है। जातक का उदार च्ररित्र उसके दुश्मनों की बृद्धि को रोकता है। यदि सूर्य अशुभ है तो सूर्य से सम्बंधित चीजों और रिश्तों जैसे पत्नी, धन, विधवाओं, गाय, स्वाद, माँ आदि पर बुरा प्रभाव पडता है। धन और सम्पत्ति को लेकर विवाद होता है। जातक की पत्नी जातक को बिगाडने वाली होगी। यदि चंद्रमा आठवें भाव में और सूर्य दूसरे भाव में हो तो दान में कोई वस्तु नहीं लेनी चाहिए अन्यथा जातक पूरी तरह विनाश को प्राप्त होगा। यदि सूर्य दूसरे, मंगल पहले और चंद्रमा बारहवें भाव में हो तो जातक की हालत गंभीर हो सकती है और वह हर तरीके से दयनीय होगा। यदि दूसरे भाव में सूर्य अशुभ हो तो आठवें भाव में स्थित मंगल जातक को लालची बनाता है।

उपाय:
(1) किसी धार्मिक स्थान में नारियल का तेल, सरसों का तेल और बादाम दान करें।
(2) धन, संपत्ति, और महिलाओं से जुड़े विवादों से बचें।
(3) दान लेने से बचें, विशेषकर चावल, चांदी, और दूध का दान नहीं लेना चाहिए।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का तीसरे भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो जातक अमीर, आत्मनिर्भर और छोटे भाइयों से युक्त होगा। जातक पर ईश्वरीय कृपा होगी और वह बौद्धिक व्यवसाय द्वारा लाभ कमाएगा। वह ज्योतिष और गणित में रुचि रखने वाला होगा। यदि तीसरे भाव में सूर्य अशुभ है और कुण्डली में चन्द्रमा भी अशुभ है तो जातक के घर में दिनदहाडे चोरी या डकैती हो सकती है। यदि नवम भाव भी पीडित है तो जातक के पूर्वज गरीब होंगें। यदि पहला भाव पीडित है तो जातक के पडोसियों का विनाश हो सकता है।

उपाय:
(1) मां को खुश रखते हुए उसका आशिर्वाद लें
(3) दूसरों को चावल या दूध परोसें
(4) सदाचारी रहें और बुरे कामों से बचने का प्रयास करें

लाल किताब के अनुसार सूर्य का चौथे भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो जातक बुद्धिमान, दयालु और अच्छा प्रशासक होगा। उसके पास आमदनी का स्थिर श्रोत होगा। ऐसा जातक मरने के बाद अपने वंशजों के लिए बहुत धन और बडी विरासत छोड जाता है। यदि चंद्रमा भी सूर्य के साथ चौथे भाव में स्थित है तो जातक किसी नए शोध के माध्यम से बहुत धन अर्जित करेगा। ऐसे में चौथे भाव या दसम भाव का बुध जातक को प्रसिद्ध व्यापारी बनाता है। यदि सूर्य के साथ बृहस्पति भी चौथे भाव में स्थित है तो जातक सोने और चांदी के व्यापर से अच्छा मुनाफा कमाता है। यदि चौथे भाव में सूर्य अशुभ है तो जातक लालची होगा। जातक को चोरी करने और दूसरों को नुकसान पहुचाने में मजा आता है। यह प्रवृत्ति अंततः बहुत बुरे परिणाम को जन्म देती है। यदि शनि सातवे भाव में हो तो जातक को रतौंधी रोग हो सकता है। यदि सूर्य चौथे भाव मे पीडित हो और मंगल दसम भाव में हो तो जातक की आंखों में दोष हो सकता है लेकिन उसकी किस्मत कमजोर नहीं होगी। यदि अशुभ सूर्य चतुर्थ भाव में हो साथ ही चंद्रमा पहले या दूसरे भाव में हो और शुक्र पंचम भाव तथा शनि सातवें भाव में हो तो जातक नपुंसक हो सकता है।

उपाय:
(1) जरूरतमंद और अंधे लोगों को दान दें और खाना बांटें।
(2) लोहे और लकड़ी के साथ जुड़ा व्यापार करें।
(3) सोने, चांदी और कपड़े से सम्बंधित व्यापार, लाभकारी रहेंगे।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का पांचवें भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो निश्चित ही परिवार तथा बच्चों की प्रगति और समृद्धि होगी। यदि मंगल पहले अथवा आठवें भाव में हो तथा राहू या केतू और शनि नौवें और बारहवें भाव में हो तो जातक राजसी जीवन जीता है। यदि पांचवें भाव में कोई सूर्य का शत्रु ग्रह स्थित है तो जातक को सरकार जनित परेशानियों का सामना करना पडेगा। यदि बृहस्पति नौवें या बारहवें भाव में स्थित है तो जातक के शत्रुओं का विनाश होगा लेकिन यह स्थिति जातक के बच्चों के लिए ठीक नहीं है। यदि पांचवें भाव का सूर्य अशुभ है और बृहस्पति दसवें भाव में है तो जातक की पत्नी जीवित नहीं रहती और चाहे जितने विवाह करें पत्नियां मरती जाएंगी। यदि पांचवें भाव में अशुभ सूर्य हो और शनि तीसरे भाव में हो तो जातक के पुत्र जीवित नहीं रहते।

उपाय:
(1) संतान पैदा करने में देरी नहीं करनी चाहिए।
(2) अपनी रसोई घर के पूर्वी भाग में बनाएँ।
(3) लगातार 43 दिनों तक सरसों के तेल की कुछ बूंदे जमीन पर गिराएं।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का छठें भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो जातक भाग्यशाली, क्रोधी, सुंदर जीवनसाथी वाला तथा सरकार से लाभ पाने वाला होता है। यदि सूर्य छठे भाव में हो, चंद्रमा, मंगल और बृहस्पति दूसरे भाव में हों तो परंपरा का निर्वाह करना फायदेमंद रहता है। यदि सूर्य छ्ठे भाव में हो और सातवें भाव में केतू या राहू हो तो जातक के एक पुत्र होगा और 48 सालों के भाग्योन्नति होती है। यदि दूसरे भाव में कोई भी ग्रह हों तो जातक को जीवन के 22वें साल में सरकारी नौकरी मिलती है। यदि सूर्य अशुभ हो तो जातक का पुत्र और ननिहाल के लोगों को मुसीबतों का सामना करना पडता है। जातक का स्वास्थ भी ठीक नहीं रहता। यदि मंगल दशम भाव में स्थित हो तो जातक के पुत्र एक एक करके मरते जाएंगे। बारहवें भाव में स्थित बुध उच्च रक्त चाप का कारण बनता है।

उपाय:
(1) कुल परम्परा और धार्मिक परम्पराओं कड़ाई से पालन करें अन्यथा परिवार की प्रगति और प्रसन्नता नष्ट होती है।
(2) घर के आहाते (परिसर) में भूमिगत भट्टियों का निर्माण करें।
(3) रात में भोजन करने के बाद दूध का छिड़काव करके रसोई की आग और स्टोव आदि को बुझाएं।
(4) हमेशा अपने घर के परिसर में गंगाजल रखें।
(5) बंदरों को गेहूं अथवा गुड़ खिलाएं।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का सातवें भाव में फल

सातवें भाव में स्थित सूर्य यदि शुभ है और यदि बृहस्पति, मंगल अथवा चंद्रमा दूसरे भाव में है तो जातक सरकार में मंत्री जैसा पद प्राप्त करता है। बुध उच्च का हो या पांचवें भाव में हो अथवा सातवां भाव मंगल से देखा जा रहा हो तो जातक के पास आमदनी का अंतहीन श्रोत होता है। यदि सातवें भाव में स्थित सूर्य हानिकारक हो और बृहस्पति, शुक्र या कोई और अशुभ ग्रह ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो तथा बुध किसी भी भाव में नीच का हो तो जातक की मौत किसी मुठभेड में परिवार के कई सदस्यों के साथ होती है। जातक को सरकार की ओर से परेशानियां तथा तपेदित और अस्थमा जैसी बीमारियां हो सकती हैं। आगजनी, सांवलापन और अन्य पारिवारिक कष्ट से आई झुंझलाहट जातक को वैरागी बनने या आत्महत्या करने को मजबूर कर सकती है। सातवें भाव हानिकारक सूर्य हो और मंगल या शनि दूसरे या बारहवें भाव में स्थित हों तथा चंद्रमा पहले भाव में हो तो जातक को कुष्ट या ल्यूकोडर्मा जैसे चर्मरोग हो सकते हैं।

उपाय:
(1) नमक सेवन की मात्रा को कम करें।
(2) किसी भी काम को शुरू करने से पहले मीठा खाएं और उसके बाद पानी जरूर पियें।
(3) खाना खाने से पहले रोटी का एक टुकड़ा रसोई घर की आग में डालें।
(4) काली अथवा बिना सींग वाली गाय को पालें और उसकी सेवा करें लेकिन ध्यान रहे गाय सफेद नहीं होनी चाहिए।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का आठवें भाव में फल

आठवें भाव स्थित सूर्य यदि अनुकूल हो तो उम्र के 22वें वर्ष से सरकार का सहयोग मिलता है। ऐसा सूर्य जातक को सच्चा, पुण्य और राजा की तरह बनाता है। कोई उसे नुकसान पहुँचाने में सक्षम होता। यदि आठवें भाव स्थित सूर्य अनुकूल हो तो दूसरे भाव में स्थित बुध आर्थिक संकट पैदा करेगा। जातक अस्थिर स्वभाव, अधीर और अस्वस्थ्य रहेगा।

उपाय:
(1) घर में कभी भी सफेद कपड़े रखें।
(2) दक्षिण मुखी घर में रहें।
(3) हमेशा किसी भी नए काम शुरू करने से पहले मीठा खाकर पानी पिएं।
(4) यदि सम्भव हो तो किसी जलती हुई चिता में तांबे के सिक्के डालें।
(5) बहते हुए पानी में गुड़ बहाएं।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का नौवें भाव में फल

नवमें भाव स्थित सूर्य यदि अनुकूल हो तो जातक भाग्यशाली, अच्छे स्वभाव वाला, अच्छे पारिवारिक जीवन वाला और हमेशा दूसरों की मदद करने वाला होगा। यदि बुध पांचवें घर में होगा तो जातक का भाग्योदय 34 साल के बाद होगा। यदि नवमें भाव स्थित सूर्य अनुकूल हो तो जातक बुरा और अपने भाइयों के द्वारा परेशान किया जाएगा। सरकार से अरुचि और प्रतिष्ठा की हानि।

उपाय:
(1) उपहार या दान के रूप में चांदी की वस्तुएं कभी स्वीकार करें। चांदी की वस्तुएं अक्सर दान करते रहें।
(2) पैतृक बर्तन और पीतल के बर्तन नहीं बेचना चाहिए बल्कि इन्हें हमेशा इस्तेमाल करना चाहिए।
(3) अत्यधिक क्रोध और अत्यधिक कोमलता से बचें।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का दसवें भाव में फल

दसम भाव में स्थित सूर्य यदि शुभ हो तो सरकार से लाभ और सहयोग मिलता है। जातक का स्वास्थ्य अच्छा और वह आर्थिक रूप से मजबूत होता है। जातक को सरकारी नौकरी, वाहनों और कर्मचारियों का सुख मिलता है। लेकिन जातक हमेशा दूसरों पर शक करता है। यदि दसम भाव में स्थित सूर्य हानिकारक हो और शनि चौथे भाव में हो तो जातक के पिता की मृत्यु बचपन में हो जाती है। सूर्य दसम भाव में हो और चंद्रमा पांचवें घर में हो तो जातक की आयु कम होती है। यदि चौथे भाव में कोई ग्रह हों तो जातक सरकारी सहयोग और लाभ से वंचित रह रह जाएगा।

उपाय:
(1) कभी भी काले और नीले कपडे पहनें।
(2) किसी नदी या नहर में लगातार 43 दिनों तक तांबें का एक सिक्का डालना शुभतादायक रहेगा।
(3) मांस मदिरा के सेवन से बचें।

 

लाल किताब के अनुसार सूर्य का ग्यारहवें भाव में फल

यदि ग्यारहवें भाव में स्थित सूर्य शुभ है तो जातक शाकाहारी और परिवार का मुखिया होगा, उसके तीन बेटे होंगे औए उसे सरकार से लाभ मिलेगा। ग्यारहवें भाव में स्थित सूर्य यदि शुभ नहीं है और चंद्रमा पांचवें भाव में है तथा सूर्य पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो यह जातक की आयु को कम करने वाली होती है।

उपाय:
(1) मांस और शराब से बचें।
(2) रात में सोते समय बिस्तर के सिरहने बादाम या मूली रखकर सोएं और अगले दिन इसे किसी मंदिर में दान कर दें इससे आयु और संतान सुख में बॄद्धि होती है।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का बारहवें भाव में फल

यदि बारहवें भाव में स्थित सूर्य शुभ हो तो जातक 24 साल के बाद अच्छा धन कमाएगा और जातक का पारिवारिक जीवन अच्छा होगा। यदि शुक्र और बुध एक साथ हों तो जातक को व्यापार से लाभ मिलता है और जातक ले पास आमदनी के नियमित स्रोत होते हैं। यदि बारहवें भाव का सूर्य अशुभ हो तो जातक अवसाद ग्रस्त, मशीनरी से आर्थिक हानि उठाने वाला और सरकार द्वारा दंडित किया जाने वाला होगा। यदि पहले भाव में कोई और पाप ग्रह हो तो जातक को रात में चैन की नींद नहीं आएगी।

उपाय:
(1) हमेशा अपने घर में आंगन रखें।
(2) धार्मिक और सच्चे बनें।
(3) घर में एक चक्की रखें।
(4) अपने दुश्मनों को हमेशा क्षमा करें।

 

चन्द्र ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

लाल किताब के अनुसार, चंद्र ग्रह का संबंध भगवान शिव से है। साथ ही लाल किताब में चंद्र ग्रह को माता के प्यार का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रह भी बताया गया है। चंद्र ग्रह का 12 भावों में फल सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूप से पड़ सकता है। हालाँकि चंद्र ग्रह की शांति के लिए लाल किताब के टोटकों का बड़ा महत्व है। चंद्र ग्रह को लेकर लाल किताब के उपाय वैदिक ज्योतिष में चंद्र ग्रह शांति के उपाय से भिन्न होते हैं। चलिए जानते हैं लाल किताब के अनुसार, जन्म कुंडली के 12 भाव पर चंद्र ग्रह का प्रभाव:-

लाल किताब में चंद्र ग्रह का महत्व

लाल किताब के अनुसार चंद्रमा कुंडली में चौथे भाव का स्वामी होता है। कुंडली में चौथा भाव माँ का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक कहा गया है। यह कर्क राशि का स्वामी होता है। सभी ग्रहों में चंद्रमा का गोचर सबसे कम अवधि का होता है। यह एक राशि में लगभग सवा दो या ढाई दिन रहता है। सूर्य, मंगल और गुरु से चंद्रमा की मित्रता है। अपने मित्र ग्रहों के साथ चंद्रमा का फल अच्छा होता है।

लाल किताब के अनुसार चंद्रमा प्रकाश देने वाला ग्रह है। यदि व्यक्ति की कुंडली में चंद्र ग्रह बली हो तो जातक को इससे मानसिक शांति प्राप्त होती है। लाल किताब में चंद्रमा को गर्मी को शीतलता में परिवर्तन करने वाला ग्रह बताया गया है। वहीं हिन्दू ज्योतिष में किसी व्यक्ति विशेष के राशिफल को ज्ञात करने के लिए चंद्र राशि का विचार किया जाता है।

लाल किताब के अनुसार चंद्र ग्रह के कारकत्व

वैदिक ज्योतिष के समान चंद्र ग्रह को लाल किताब में भी माता का कारक बताया गया है। यह माता के खानदान पक्ष को दर्शाता है। इसके साथ ही प्यार, दयालुता, उदारता, मन की शांति और मनुष्य की नीयत आदि को चंद्रमा के द्वारा ही देखा जाता है। इसके अलावा चंद्रमा से खेती के लिए भूमि, घोड़ा, मल्लाह, चावल, दूध, दादी, बूढ़ी स्त्री, सफेद या दूधिया पत्थर का भी विचार किया जाता है। पानी अथवा दूध से बने पदार्थ सबके सब चंद्रमा से संबंध रखते हैं। समुद्र में होने वाली हलचल, ज्वार-भाटा आदि आने का कारक भी चंद्रमा होता है।

लाल किताब के अनुसार चंद्र ग्रह का संबंध

लाल किताब के अनुसार चंद्र ग्रह का संबंध जल या तरल पदार्थ से संबंधित कार्य व्यवसाय से होता है। इसमें पेयजल, पेट्रोलियम पदार्थ, दूध से जुड़े सभी उत्पाद, पेय पदार्थ आदि सभी का जुड़ाव चंद्रमा से है। यदि कुंडली में चंद्रमा दुर्बल या पीड़ित होता है तो जातक को मानसिक कष्ट होते हैं। अर्थात सिरदर्द, तनाव, डिप्रेशन, पागलपन जैसी बीमारियों का भी संबंध चंद्रमा से होता है। ज्योतिष में सफेद रंग को चंद्रमा से जोड़ा जाता है। इसलिए चंद्रमा के शुभ फल को पाने के लिए मोती रत्न को धारण किया जाता है। वहीं दो मुखी रुद्राक्ष भी चंद्र ग्रह के लिए धारण की जाती है। साथ ही खिरनी की जड़ को धारण करने से चंद्रमा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

लाल किताब के अनुसार चंद्र ग्रह के प्रभाव

लाल किताब के अनुसार जब चंद्रमा कुंडली में बलवान हो तो जातक को इसके सकारात्मक लाभ प्राप्त होते हैं। जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि चंद्रमा अपने मित्र ग्रहों के साथ बली होता है। वहीं इसके विपरीत यदि जन्म-पत्रिका में चंद्र ग्रह की स्थिति कमज़ोर होती है तो यह जातकों के लिए अशुभ परिणामकारी होता है। आइए जानते हैं चंद्रमा के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव :

सकारात्मक प्रभाव - बली चंद्रमा के प्रभाव से जातक को मानसिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जिस व्यक्ति का चंद्रमा उच्च का होता है माँ के साथ उस जातक के संबंध मधुर होते हैं और माँ का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। बली चंद्रमा के प्रभाव से जातक अपने कार्य से मानसिक रूप से संतुष्ट दिखाई देगा। चंद्रमा के सकारात्मक प्रभाव से जातकों की कल्पना शक्ति भी मजबूत होती है।

नकारात्मक प्रभाव - चंद्रमा के नकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहेगा और वह तनावग्रस्त रहेगा। उसे सिरदर्द, डिप्रेशन, पागलपन, बेचैनी आदि की शिकायत रहती है। चंद्रमा के कमज़ोर होने से जातकों को माँ का सुख नहीं मिल पाता है। पीड़ित चंद्रमा के कारण जल संकट भी संभव है।

लाल किताब के अनुसार चंद्रमा ग्रह शांति के उपाय

ज्योतिष में लाल किताब के उपाय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। अतः लाल किताब में चंद्र ग्रह की शांति के टोटके जातकों के लिए बहुत ही लाभकारी और सरल होते हैं। अतः इन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से स्वयं कर सकता है। चंद्र ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय करने से जातकों को चंद्र ग्रह के सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। चंद्र ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय निम्नलिखित हैंः

पुत्र सुख के लिए भूमि में सौंफ दबाएँ

घर में चाँदी की थाली शुभ होगी

दरिया में पैसे डालें

ज़रुरतमंद लोगों को जल दूध पिलाएँ।

लाल किताब के उपाय ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित हैं। अतः ज्योतिष में इस पुस्तक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उम्मीद है कि चंद्र ग्रह से संबंधित लाल किताब में दी गई यह जानकारी आपके कार्य को सिद्ध करने में सफल होगी।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का पहले भाव में फल

सामान्य तौर पर कुंडली का पहला घर मंगल और सूर्य के प्रभाव के अंतर्गत आता है। जब चंद्रमा यहां स्थित हो तो यह भाव मंगल, सूर्य और चंद्रमा के संयुक्त प्रभाव में होगा। ये तीनों आपस में मित्र हैं और तीनो यहां की स्थिति के अनुसार परिणाम देंगे। सूर्य और मंगल इस घर में स्थित चंद्रमा को पूर्ण सहयोग देंगे। ऐसा जातक रहमदिल होगा और उसके भीतर उसकी मां के सभी लक्षण और गुण मौजूद होंगे। वह या तो भाई-बहनों में बड़ा होगा या फिर उसके साथ ऐसा बर्ताव किया जाता होगा। जातक पर उसकी मां का आशीर्वाद हमेशा रहता है साथ ही वह अपनी मां को प्रसन्न रखता है ऐसा करने से वह उन्नति करता है और उसे हर प्रकार से समृद्धि मिलती है। बुध से संबंधित चीजें और रिश्तेदार जैसे जीवनसाथी की बहन और हरा रंग आदि जो चंद्रमा के लिए हानिकारक है, जातक के लिए भी प्रतिकूल प्रभाव साबित होगें इसलिए बेहतर है उन लोगों से दूर रहें। दूध से खोया बनाना या लाभ के लिए दूध बेचना आदि कृत्य पहले भाव में स्थित चंद्रमा को कमजोर करते हैं इसका मतलब यदि जातक स्वयं भी इस प्रकार के कामों सें संलग्न होता है तो जातक का जीवन और सम्पत्ति नष्ट होने लगती है। ऐसे में जातक को दूध और पानी मुफ्त में बांटना चाहिए इससे आयु बढती और चारो ओर से समृद्धि आती है। ऐसा करने से जातक को 90 साल की दीर्घायु मिलती है और उसे सरकार से सम्मान और प्रसिद्धि मिलती है।

उपाय:
(1) 24 से 27 वर्ष की आयु के मध्य शादी नहीं करनी चाहिए, या तो 24 साल के पहले अथवा 27 साल के बाद ही शादी करनी चाहिए।
(2) 24 से 27 वर्ष की आयु के मध्य अपनी कमाई से घर का निर्माण नहीं करना चाहिए।
(3) घर में टोटी के साथ एक चांदी के बर्तन या केतली रखें।
(4) यथा सम्भव बरगद की जड़ में पानी डालें।
(5) चारपाई के चारों पायों में तांबें की कीलें ठोके।
(6) अपने बच्चों के कल्याण के लिए जब भी एक नदी पार करें, हमेशा उसमें एक सिक्का डालें।
(7) हमेशा अपने घर में चांदी की एक थाली रखें।
(8) पानी या दूध पीने के लिए हमेशा चांदी के बर्तन का प्रयोग करें, कांच के बने बर्तन के उपयोग से बचें।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का दूसरे भाव में फल

दूसरे भाव चंद्रमा स्थित होने पर वह भाव बृहस्पति, शुक्र और चंद्रमा के प्रभाव में होगा। क्योंकि दूसरा घर बृहस्पति का पक्का घर होता है और दूसरी राशि बृषभ का स्वामी शुक्र होता है। यहां स्थित चंद्रमा बहुत अच्छे परिणाम देता है। चंद्रमा इस घर में बहुत मजबूत हो जाता है क्योंकि उसे शुक्र के खिलाफ बृहस्पति का अनुकूल समर्थन मिल जाता है इस कारण यहां का चंद्रमा अच्छे परिणाम देता है। ऐसे में जातक के बहनें नहीं होतीं लेकिन निश्चित रूप से भाइयों की प्राप्ति होती है। लेकिन यदि ऐसा नहीं होता तो जातक की पत्नी के भाई अवश्य होते हैं। जातक को पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा जरूर मिलता है। ग्रहों की स्थिति जो भी हो लेकिन यहां स्थित चंद्रमा जातक के वंश को जरूर बढाता है। जातक अच्छी शिक्षा प्राप्त करता है जिससे उसके भाग्योदय में सहयोग मिलता है। चंद्रमा की चीजों से जुड़े व्यवसाय लाभप्रद साबित होंगे। जातक एक प्रतिष्ठित शिक्षक भी हो सकता है। बारहवें भाव में स्थित केतू यहं के चंद्रमा को ग्रहण लगाने वाला रहेगा जो जातक को अच्छी शिक्षा या पुत्र से वंचित कर सकता है।

उपाय:
(1) घर के भीतर मंदिर का होना जातक की पुत्र प्राप्ति में बाधक हो सकता है।
(2) चंद्रमा से सम्बंधित चीजें जैसे चांदी, चावल, घर की कच्ची फर्श, माँ और बुजुर्ग महिलाएं तथा उनका आशीर्वाद जातक के लिए बहुत भाग्यशाली रहेंगे।
(3) लगातार 43 दिनों तक कन्याओं (छोटी लड़कियों) को हरा कपडा बांटें।
(4) चंद्रमा से सम्बंधित चीजें जैसे चांदी का एक चौकोर टुकड़ा अपने घर की नीव में दबाएं।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का तीसरे भाव में फल

तीसरे भाव में स्थित चंद्रमा पर मंगल और बुध का भी प्रभाव होता है। यहां स्थित चंद्रमा लंबा जीवन और अत्यधिक धन देने वाला होता है। तीसरे भाव में स्थित चंद्रमा के कारण यदि नवमें और ग्यारहवें घर में कोई ग्रह हों तो मंगल और शुक्र अच्छे परिणाम देंगें। जातक शिक्षा और सीखने की प्रगति के साथ, जातक के पिता की अर्थिक स्थिति खराब होगी लेकिन इससे जातक की शिक्षा और सीखने की प्रगति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडेगा। यदि केतु कुण्डली में किसी शुभ जगह पर है और चंद्रमा पर कोई दुश्प्रभाव नहीं डाल रहा है तो जातक की शिक्षा अच्छे परिणाम देने वाली और हर तरीके में फायदेमंद साबित होगी। यदि चंद्रमा हानिकर है, तो यह बडी धनहानि और खर्चे का कारण हो सकता है यह घटना नवमें भाव में बैठे ग्रह की दशा या उम्र में हो सकती है।

उपाय:
(1) पुत्री के जन्म के बाद चन्द्रमा से सम्बंधित चीजें जैसे चांदी और चावल आदि का दान करें तथा पुत्र के जन्म के बाद सूर्य से सम्बंधित चीजें जैसे गेहूं और गुड़ आदि का दान करें।
(2) अपनी बेटी के पैसे और धन का उपयोग करें।
(3) आठवें घर में स्थित बुरे ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए, मेहमानों और दूसरों को खुलकर दूध और पानी बांटें।
(4) दुर्गा देवी की पूजा करें तथा कन्याओं को भोजन और मिठाई देकर उनके पांव छुएं और आशिर्वाद लें।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का चौथे भाव में फल

चौथे भाव में स्थित चंद्रमा पर केवल चंद्रमा का ही पूर्णरूपेण प्रभाव होता है क्योंकि वह चौथे भाव और चौथी राशि दोनो का स्वामी होता है। यहां चन्द्रमा हर प्रकार से बहुत मजबूत और शक्तिशाली हो जाता है। चंद्रमा से संबन्धित वस्तुएं जातक के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती हैं। मेहमानों को पानी की के स्थान पर दूध भेंट करें। मां या मां के जैसी स्त्रियों का पांव छूकर आशिर्वाद लें। चौथा भाव आमदनी की नदी है जो व्यय बढानें के लिए जारी रहेगी। दूसरे शब्दों में खर्चे आमदनी को बढाएंगे। जातक प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति होने के साथ-साथ नरम दिल और सभी प्रकार से धनी होगा। जातक को अपनी माँ के सभी लक्षण और गुण विरासत में मिलेंगे और वह जीवन की समस्याओं का सामना किसी शेर की तरह साहसपूर्वक करेगा। जातक सरकार से सहयोग और सम्मान प्राप्त करेगा साथ में वह दूसरों को शांति और आश्रय प्रदान करेगा। जातक निश्चित तौर पर अच्छी शिक्षा प्राप्त करेगा। यदि बृहस्पति 6 भाव में हो और चंद्रमा चौथे भाव में तो जातक को पैतृक व्यवसाय फायदा देगा। यदि जातक के पास कोई अपना कीमती सामान गिरवी रख जाएगा तो वह उसे मांगने के लिए कभी नहीं आएगा। यदि चंद्रमा चौथे भाव में चार ग्रहों के साथ हो तो जातक आर्थिक रूप से बहुत मजबूत और अमीर होगा। पुरुष ग्रह जातक की मदद पुत्र की तरह करेंगे और स्त्री ग्रह पुत्रियों की तरह।

उपाय:
(1) लाभ कमाने के लिए दूध का खोया बनाना अथवा दूध बेचना आदि कार्य से आमदनी, जीवन के विस्तार और मानसिक शांति पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा अतः इससे बचें।
(2) व्यभिचार और अनैतिक सम्बंध जातक की प्रतिष्ठा और आर्थिक मामलों के लिए हानिकारक होगें इसलिए इनसे बचाव जरूरी है।
(3) अधिक खर्च, अधिक आय।
(4) किसी भी शुभ या नया काम शुरू करने से पहले, घर में दूध से भरा कोई घड़ा या कनस्तर रखें।
(5) दशम भाव में स्थित बृहस्पति के दुष्प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए, जातक को अपने दादाजी के साथ पूजा स्थान में जाकर भगवान के चरणों में माथा रखकर चढ़ावा चढ़ाएं।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का पांचवें भाव में फल

पांचवें भाव में स्थित चंद्रमा के परिणाम में सूर्य, केतू और चंद्रमा का प्रभाव रहेगा। जातक हमेशा सही तरीके से पैसा कमाने की कोशिश करेगा, वह कभी भी गलत तरीके नहीं अपनाएगा। वह व्यापार में तो अच्छा नहीं कर पाएगा लेकिन निश्चित रूप से सरकार की ओर से सम्मान और सहयोग प्राप्त करेगा। उसके द्वारा समर्थित कोई भी जीत जाएगा। यदि केतू सही स्थान पर बैठा है और फायदेमंद है तो जातक के पांच पुत्र होंगें चाहे चंद्रमा किसी अशुभ ग्रह के प्रभाव में ही क्यों हो। अपनी शिक्षा और सीख के कारण जातक दूसरों के कल्याण के लिए अनेक उपाय करेगा लेकिन दूसरे उसके लिए अच्छा नहीं करेंगे। अगर जातक लालची और स्वार्थी हो जाता है तो वह नष्ट हो जाएगा। यदि जातक अपनी योजनाओं को एक गुप्त रखने में विफल रहता है, उसके अपने ही लोग उसे नुकसान पहुंचाएंगे।

उपाय:
(1) अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें। किसी के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करें ऐसा करना मुशीबतों को निमंत्रण देना होगा।
(2) लालची और स्वार्थी बनने से बचें।
(3) दूसरों के साथ छल और बेईमानी करें, इसका आप पर ही प्रतिकूल असर होगा।
(4) किसी के खिलाफ कुछ करनें से पहले किसी और से सलाह जरूर लें इसका आपके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और आप 100 सालों तक जिएंगे।
(5) लोगों की सेवा करें इससे आपकी आमदनी और प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का छठें भाव में फल

यह भाव बुध और केतु से प्रभावित होता है। इस घर में स्थित चंद्रमा दूसरे, आठवे, बारहवें और चौथे घरों में बैठे ग्रहों से प्रभावित होता है। ऐसा जातक बाधाओं के साथ शिक्षा प्राप्त करता है और अपनी शैक्षिक उपलब्धियों का लाभ उठाने के लिए उसे बहुत संघर्ष करना पडता है। यदि चंद्रमा छठवें, दूसरे, चौथे, आठवें और बारहवें घर में होता है तो यह शुभ भी होता है ऐसा जातक किसी मरते हुए के मुंह में पानी की कुछ बूंदें डालकर उसे जीवित करने का काम करता है। यदि छठवें भाव में स्थित चंद्रमा अशुभ है और बुध दूसरे या बारहवें भाव में स्थित है तो जातक में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति पाई जाएगी। ठीक इसी तरह यदि चन्द्रमा अशुभ है और सूर्य बारहवें घर में है तो जातक या उसकी पत्नी या दोनो ही आंख के रोग या परेशानियों से ग्रस्त होंगे।

उपाय:
(1) अपने पिता को अपने हाथों से दूध परोसें।
(2) रात के समय दूध कभी भी पिएं। लेकिन दिन के समय दूध उपयोग किया जा सकता है। रात के समय दही और पनीर का सेवन किया जा सकता है।
(3) दूध का दान करें। केवल पूजा के धार्मिक स्थानों पर दूध दिया जा सकता है।
(4) जातक अस्पताल या श्मशान भूमि में कुआं खुदवाएं।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का सातवें भाव में फल

सातवां घर शुक्र और बुध से संबंधित होता है। जब चंद्रमा इस भाव में स्थित होता है तो परिणाम शुक्र, बुध और चंद्रमा से प्रभावित होता है। शुक्र और बुध मिलकर सूर्य का प्रभाव देते हैं। पहला भाव सातवें को देखता है नतीजन पहले घर से सूर्य की किरणे सातवें भाव में बैठे चंद्रमा को सकारात्म रूप से प्रभावित करती हैं जिसका मतलब है कि चंद्रमा से संबंधित चीजों और रिश्तेदारों लाभकारी और अच्छे परिणाम मिलेंगे। शैक्षिक उपलब्धियां पैसा या धन कमाने के लिए उपयोगी साबित होंगी। उसके पास जमीन जायदाद हो या हो लेकिन उसके पास नकद निश्चित रूप से हमेशा रहेगा। उसके पास कवि या ज्योतिषी बनने की अच्छी योग्यता होगी। अथवा वह चरित्रहीन हो सकता है और रहस्यवाद और अध्यात्मवाद को बहुत चाहता होगा। सातवें भाव में स्थित चंद्रमा जातक की पत्नी और मां के बीच अर्थ संघर्ष देता है जो दूध के व्यवसाय में प्रतिकूल प्रभावी होता है। ऐसे में जातक अगर मां का कहना नहीं मानता तो उसे तनाव और परेशानियों का सामना करना पडता है।

उपाय:
(1) 24वें वर्ष में शादी करें।
(2) अपनी माँ को हमेशा खुश रखें।
(3) लाभ कमाने के लिए कभी भी दूध या पानी बेचें।
(4) खोया बनाने के लिए दूध को जलाएं।
(5) सुनिश्चित कर लें कि आपकी पत्नी शादी में अपने मायके से अपने वजन के बराबर चांदी और चावल लाए।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का आठवें भाव में फल

यह भाव मंगल और शनि के अंतर्गत आता है। यहां पर स्थित चंद्रमा जातक की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। लेकिन यदि शिक्षा अच्छी है तो जातक की मां का जीवन छोटा होता है। लेकिन अक्सर यही देखने को मिलता है कि जातक शिक्षा और माँ को खो देता है। हालांकि, यदि बृहस्पति और शनि दूसरे भाव में हों तो सातवें घर में बैठे चंद्रमा का बुरा कम हो जाएगा। इस भाव में स्थित चन्द्रमा जातक को पैतृद सम्पत्ति से वंचित करता है। यदि जातक की पैतृक सम्पत्ति के पास कोई कुंआ या तालाब होता है तो जातक के जीवन में चंद्रमा के प्रतिकूल परिणाम देखने को मिलते हैं।

उपाय:
(1) जुआ और अनैतिकता से बचें।
(2) अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा समारोह आयोजित करें।
(3) कुएं को छत से ढकने के बादघर का निर्माण करें।
(4) बुजुर्गों और बच्चों के पैर छूकर आशीर्वाद लें।
(5) श्मशान भूमि की सीमा के भीतर स्थित नल या कुंए से पानी लाएं और अपने घर के भीतर रखें। यह सप्तम भाव में स्थित चंद्रमा की सभी बुराइयों दूर करता है।
(6) पूजा स्थल में चना और दाल दान करें।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का नौवें भाव में फल

नौवां घर बृहस्पति, से सम्बंधित होता है जो चंद्रमा का परममित्र है। इसलिए जातक इन दोनों ग्रहों के लक्षण और सुविधाओं को आत्मसात करता है साथ ही अच्छे आचरण, कोमक हृदय, मन से धार्मिक, और धार्मिक कृत्यों तथा तीर्थयात्राओं से प्रेम करने वाला होता है। वह 75 वर्षों तक जीवित रहता है। पाचवें घर में स्थित शुभ ग्रह संतान सुख में वृद्धि और धार्मिक कामों में गहन रुचि विकसित करता है। तीसरे भाव में स्थित मित्र ग्रह पैसे और धन में काफी वृद्धि करता है।

उपाय:
(1) घर में चंद्रमा से संबंधित चीजें रखें। जैसे अलमारी में चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें।
(2) मजदूरों को दूध परोसें।
(3) साँप को दूध पिलाएं और मछली के लिए चावल डालें।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का दसवें भाव में फल

दसवां घर हर तरीके में शनि द्वारा शासित है। यह घर चौथे घर के द्वारा देखा जाता है, जो चंद्रमा द्वारा शासित होता है। इसलिए इस घर में स्थित चंद्रमा जातक को 90 साल की लंबी आयु सुनिश्चित करता है। चंद्रमा और शनि आपस में शत्रु हैं इसलिए, तरल रूप में दवाओं का सेवन जातक को हमेशा हानिकारक साबित होंगी। रात में दूध का सेवन जहर के समान कार्य करता है। यदि जातक चिकित्सक है तो उसके द्वारा रोगी को दी जाने वाली दवाएं यदि शुष्क हों तो मरीज पर इलाज का जादुई प्रभाव पड़ेगा। यदि जातक सर्जन है तो वह सर्जरी के माध्यम से वह महान धन और प्रसिद्धि अर्जित करेगा। यदि दूसरा और चौथा भाव खाली हो तो जातक पर पैसों की बरसात होगी। यदि शनि पहले भाव में स्थित हो तो विपरीत लिंगी के कारण जातक का विनाश हो जाता है, विशेषकर विधवा जातक के विनाश का कारण बनती है। शनि से संबंधित वस्तुएं और व्यवसाय जातक के लिए फायदेमंद साबित होगा।

उपाय:
(1) धार्मिक स्थानों की यात्रा भाग्य वृद्धि में सहायक होगी।
(2) बारिस अथवा नदी का प्राकृतिक जल किसी कंटेनर (कनस्तर) में भर कर अपने घर के भीतर 15 साल तक रखें। यह दसम भाव में स्थित चंद्रमा के विषाक्त और बुरे प्रभाव को धो देगा।
(3) रात में दूध पिएं।
(4) दुधारू पशु तो आपके घर में लंबे समय तक रह पाएंगे और ही वो आपके लिए फायदेमंद और शुभ साबित होंगे।
(5) शराब, मांस, और व्यभिचार से बचें।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का ग्यारहवें भाव में फल

यह घर बृहस्पति और शनि से पूरी तरह प्रभावित होता है। इस घर में स्थित हर ग्रह अपने शत्रु ग्रहों और उनके साथ जुडी बातों को नष्ट कर देता है। इस प्रकार यहां स्थित चंद्रमा अपने शत्रु केतू की चीजों को नष्ट कर देता है जैसे जातक के बेटे आदि को। यहां चंद्रमा को अपने शत्रुओं शनि और केतू की संयुक्त शक्ति का सामना करना पडता है, जिससे चंद्रमा कमजोर होता है। ऐसे में यदि केतू चौथे भाव में स्थित है तो जातक की मां का जीवन खतरे में पडेगा। बुध से जुडे व्यापार भी हानिप्रद साबित होंगे। शनिवार के दिन से घर का निर्माण या घर की खरीदी चंद्रमा के शत्रु को बलवान बनाते हैं जो जातक के लिए विनाशकारी साबित होगा। आधी रात के बाद कन्यादान और शुक्रवार के दिन किसी भी शादी समारोह में शामिल होना जातक के भाग्य को नुकसान पहुंचाएगा।

उपाय:
(1) भैरव मंदिर में दूध बांटे और दूसरों को उदारतापूर्वक दूध का दान करें।
(2) सुनिश्चित करें कि दादी अपने पोते को देखने पाए।
(3) दूध पीने से पहले सोने के एक टुकड़े को आग में गरम करें और दूध के गिलास में डालकर बुझाएं, इसके बाद दूध पिएं।
(4) 125 पीस पेड़े (मिठाइयां) नदी में बहाएं।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का बारहवें भाव में फल

यह घर चंद्रमा के मित्र बृहस्पति का है। यहाँ स्थित चंद्रमा मंगल और मंगल से संबंधित चीजों परर अच्छा प्रभाव डालता है, लेकिन यह अपने दुश्मन बुध और केतु तथा उनसे संबंधित चीजों को नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए मं गल जिस भाव में बैठा है उससे जुडा व्यापार और चीजें जातक के लिए अत्यधिक लाभकारी रहेंगी। ठीक इसी तरह बुध और केतू जिस घर में बैठे हैं उससे जुडा व्यापार और चीजें जातक के लिए अत्यधिक हानिकारक रहेंगी। बारहवें घर में स्थित चंद्रमा जातक के मन में अप्रत्याशित मुसीबतों और खतरों को लेकर एक साधारण सा डर पैदा करता है। जिससे जातक की नींद और मानसिक शांति भंग होती है। यदि चौथे भाव में स्थित केतू कमजोर और पीडित हो तो जातक के पुत्र और मां पर प्रतिकूल असर पडता है।

उपाय:
(1) कान में सोना पहनें। दूध में सोना बुझाकर दूध पियें। धार्मिक स्थलों की यात्रा करें। ये उपाय केवल 12वें भाव के चन्द्र के दुष्प्रभाव को दूर करते बल्कि चौथे भाव के केतू के दुष्प्रभाव को भी दूर करते हैं।
(2) धार्मिक साधु-संतों को कभी भी दूध और भोजन दें।
(3) स्कूल, कॉलेज या अन्य कोई शैक्षणिक संस्थान खोलें और निःशुल्क शिक्षा पाने वाले बच्चों की मदद करें।

यह घर चंद्रमा के मित्र बृहस्पति का है। यहाँ स्थित चंद्रमा मंगल और मंगल से संबंधित चीजों परर अच्छा प्रभाव डालता है, लेकिन यह अपने दुश्मन बुध और केतु तथा उनसे संबंधित चीजों को नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए मं गल जिस भाव में बैठा है उससे जुडा व्यापार और चीजें जातक के लिए अत्यधिक लाभकारी रहेंगी। ठीक इसी तरह बुध और केतू जिस घर में बैठे हैं उससे जुडा व्यापार और चीजें जातक के लिए अत्यधिक हानिकारक रहेंगी। बारहवें घर में स्थित चंद्रमा जातक के मन में अप्रत्याशित मुसीबतों और खतरों को लेकर एक साधारण सा डर पैदा करता है। जिससे जातक की नींद और मानसिक शांति भंग होती है। यदि चौथे भाव में स्थित केतू कमजोर और पीडित हो तो जातक के पुत्र और मां पर प्रतिकूल असर पडता है।

उपाय:
(1) कान में सोना पहनें। दूध में सोना बुझाकर दूध पियें। धार्मिक स्थलों की यात्रा करें। ये उपाय केवल 12वें भाव के चन्द्र के दुष्प्रभाव को दूर करते बल्कि चौथे भाव के केतू के दुष्प्रभाव को भी दूर करते हैं।
(2) धार्मिक साधु-संतों को कभी भी दूध और भोजन दें।
(3) स्कूल, कॉलेज या अन्य कोई शैक्षणिक संस्थान खोलें और निःशुल्क शिक्षा पाने वाले बच्चों की मदद करें।

 

मंगल ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

लाल किताब में मंगल को नेक (शुभ) ग्रह के साथ-साथ बुरा ग्रह भी बताया गया है। वैदिक ज्योतिष के समान लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह का संबंध भी हनुमान जी से है। कुंडली के 12 खानों में मंगल का प्रभाव शुभ और अशुभ दोनो ही रूप में पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार, कुंडली के 12 खाने मनुष्य के जन्म से लेकर मरण तक की घटनाओं का बोध कराते हैं। आइए इस लेख के माध्यम से जानते हैं लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह का प्रभाव कुंडली के 12 भाव पर किस प्रकार से पड़ता है।

लाल किताब में मंगल ग्रह का महत्व

लाल किताब के अनुसार मंगल एक ऐसा ग्रह है जो अपने नाम के अनुरूप मंगलकारी भी है और नाश करने वाला भी है। हालाँकि मंगल ग्रह को लेकर, लोगों की धारणाएँ ज्यादातर नकारात्मक ही रहती है। लाल किताब में सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह को मंगल का मित्र और बुध ग्रह को शत्रु बताया गया है। वैदिक ज्योतिष में जहाँ मंगल ग्रह मेष और वृश्चिक का स्वामी है। वहीं लाल किताब में इसे पहले और आठवें खाने का मालिक कहा गया है।

ज्योतिषीय गणना के अनुसार, मंगल का गोचर क़रीब डेढ़ माह का होता है। मंगल ग्रह (मंगल की उपस्थिति पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें खाने में होने पर) कुंडली में मंगल दोष बनता है, जिससे जातकों के वैवाहिक जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ आती हैं।

लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह के कारकत्व

लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह साहस, ऊर्जा, पराक्रम, शौर्य आदि का कारक होता है। यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल अच्छा होता है तो जातक के उपरोक्त चीज़ों में वृद्धि होती है। साथ ही मंगल ग्रह नाभि, रक्त, लाल रंग, बंधु, फौजी, वैध, हक़ीम, डॉक्टर, मनुष्य के ऊपर वाला होंठ का प्रतिनिधित्व करता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल कमज़ोर हो तो इसके प्रभाव से रक्त से संबंधित रोग, नासूर, भगंदर जैसी बीमारियाँ होती हैं।

लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह का संबंध

लाल किताब के अनुसार, यदि मंगल ग्रह का संबंध सेना, पुलिस, प्रॉपर्टी डीलिंग, इलेक्ट्रॉनिक संबंधी, इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग, स्पोर्ट्स आदि कार्य-क्षेत्रों से है। जबकि उत्पाद में यह मसूर दाल,, ज़मीन, अचल संपत्ति, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद आदि को दर्शाता है। जबकि मेमना, बंदर, भेड़, शेर, भेड़िया, सूअर, कुत्ता, चमगादड़ एवं सभी लाल पक्षियों का संबंध मंगल ग्रह से है। इसके अलावा रोगों में मंगल ग्रह का संबंध विषजनित, रक्त संबंधी रोग, कुष्ठ, ख़ुजली, रक्तचाप, अल्सर, ट्यूमर, कैंसर, फोड़े-फुंसी आदि से होता है। मंगल ग्रह के शुभ फल पाने के लिए अनंत मूल को धारण किया जाता है। इसके अलावा जातक तीन मुखी रुद्राक्ष या मूंगा रत्न भी धारण कर सकता है।

लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह का प्रभाव

यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल ग्रह बलवान होता है तो जातक को इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। मंगल ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ बली होता है। जबकि इसके विपरीत यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल की स्थिति कमज़ोर होती है अथवा वह पीड़ित हो तो जातक के लिए यह अच्छा नहीं माना जाता है। मंगल अपने शत्रु ग्रहों के साथ कमज़ोर होता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में मंगल का प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से पड़ता है। आइए जानते हैं मंगल के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या हैं:

सकारात्मक प्रभाव - मंगल के शुभ प्रभाव से व्यक्ति निडर होता है। वह निडरता वह ऊर्जावान रहता है। इससे जातक उत्पादक क्षमता में वृद्धि होती है। विपरीत परिस्थितियों में भी जातक चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार करता है और उन्हें मात भी देता है। बली मंगल का प्रभाव केवल व्यक्ति के ही ऊपर नहीं पड़ता है, बल्कि इसका प्रभाव व्यक्ति के पारिवारिक जीवन पर पड़ता दिखाई देता है। बली मंगल के कारण व्यक्ति के भाई-बहन अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति करते हैं।

नकारात्मक प्रभाव - यदि मंगल ग्रह कुंडली में कमज़ोर अथवा पीड़ित हो तो यह जातक के लिए समस्या पैदा करता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को किसी दुर्घटना का सामना करना पड़ता है। पीड़ित मंगल के कारण जातक के पारिवारिक जीवन में भी समस्याएं आती हैं। जातक को शत्रुओं से पराजय, ज़मीन संबंधी विवाद, क़र्ज़ आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह शांति के उपाय

ज्योतिष में लाल किताब के उपाय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। अतः लाल किताब में मंगल ग्रह की शांति के टोटके जातकों के लिए बहुत ही लाभकारी और सरल होते हैं। अतः इन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से स्वयं कर सकता है। मंगल ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय करने से जातकों को मंगल ग्रह के सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। मंगल ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय निम्नलिखित हैंः

बड़ वृक्ष की जड़ में मीठा दूध-पानी डालकर उसकी गीली मिट्टी नाभि पर लगाएँ

घर में ठोस चाँदी रखें

घर आयी बहन को मीठा देकर घर से विदा करें

धार्मिक स्थल पर गुड़, चने की दाल आदि का दान करें

दूसरों को मीठा खिलाएँ और संभव हो तो स्वयं भी मीठा खाएँ

लाल किताब के उपाय ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित हैं। अतः ज्योतिष में इस पुस्तक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उम्मीद है कि मंगल ग्रह से संबंधित लाल किताब में दी गई यह जानकारी आपके कार्य को सिद्ध करने में सफल होगी।

लाल किताब के अनुसार मंगल का पहले भाव में फल

पहले घर में स्थित मंगल ग्रह जातक को उम्र के 28 वर्ष से अच्छे स्वभाव वाला, सच्चा और अमीर बनाता है। उसे सरकार से सहयोग मिलता है और वह अधिक प्रयास के बिना दुश्मनों पर जीत हासिल करता है। जातक शनि से संबंधित व्यवसायों जैसे लोहा, लकडी और मशीनरी आदि के माध्यम से खूब धनार्जन करता है और शनि से संबंधित रिश्तेदार जैसे, भतीजे, पोते, मामा/चाचा आदि के लिए ऐसे जातक से मिला सहज श्राप कभी बेकार नहीं जाता। शनि और मंगल की युति जातक को शारीरिक कष्ट देती है।

उपाय:
(1) मुफ्त के उपहार या दान स्वीकार नहीं करना चाहिए।
(2) बुरे कामों और झूठ से बचें।
(3) संतों और फकीरों की संगति बहुत हानिकारक साबित होगी,अत: उनसे बचें।
(4) हाथीदांत की चीजें बहुत प्रतिकूल प्रभाव देंगी, अतः उनसे बचाव करें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का दूसरे भाव में फल

दूसरे भाव में स्थित मंगल वाला जाता आमतौर पर अपने माता पिता की बडी संतान होता है अन्यथा उसके साथ बडे के जैसे बर्ताव किया जाएगा। लेकिन रहने एक छोटे भाई की तरह रहना और बर्ताव करना जातक के बहुत फायदेमंद और कई बुराइयों को अपने आप नष्ट करता है। इस घर का मंगल जातक को ससुराल से बहुत धन-संपदा दिलवाता है। यहां पर स्थित अशुभ मंगल ग्रह जातक को इंशान के रूप में दूसरों के लिए साँप सदृश बनाता है और यह स्थिति किसी युद्ध या झगड़े में जात्क की मृत्यु का कारण बनता है। दूसरे घर में बुध के साथ स्थित मंगल जातक की इच्छा शक्ति को कमजोर और उसके महत्त्व को कमजोर करने वाला बनाता है।

उपाय:
(1) चंद्रमा से जुडे व्यवसाय जैसे कपड़े का व्यापार आदि करने से चंद्रमा मजबूत होता है जिससे जातक को ऐसे व्यापार में बडी समृद्धि मिलती है।
(2) सुनिश्चित करें कि आपके ससुराल वाले आम लोगों के लिए पीने के पानी की सुविधा और व्यवस्था करें।
(3) घर में हिरण त्वचा रखें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का तीसरे भाव में फल

तीसरा भाव मंगल और बुध से प्रभावित भाव होता है, जो जातक को भाइयों और बहनों की प्राप्ति करवाता है। वह अपने माता-पिता की अकेली संतान नहीं होगा। दूसरो को जातक से खूब लाभ मिलेगा लेकिन स्वयं जातक को दूसरों से लाभ नहीं मिलेगा। अपनी विनम्रता के कारण जातक लाभान्वित और पुरस्कृत होगा। जातक की शादी के बाद जातक के ससुराल वाले अमीर और अमीर होते जाएंगे। जातक खाओं पियो और मस्त रहो के सिद्धांत में विश्वास करेगा लेकिन रक्त विकारों से ग्रस्त रहेगा।

उपाय:
(1) नरम दिल बनें और अहंकार से बचें। समृद्धि प्राप्ति के लिए भाइयों के लिए अच्छे बनें।
(2) आप के साथ हाथीदांत की वस्तुएं रखें।
(3) बाएं हाथ में चांदी की अंगूठी पर पहनें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का चौथे भाव में फल

चौथा घर समग्र चंद्रमा की संपत्ति है। इस घर में मंगल ग्रह की आग और गर्मी चंद्रमा के ठंडे पानी को जला देती है। चंद्रमा के गुण प्रतिकूल प्रभावी हो जाते हैं। जातक अपने मन की शांति खो देता है और दूसरों से ईर्ष्या करने लगता है। वह हमेशा अपने छोटे भाई के साथ बुरा बर्ताव करता है। जातक की बुरी योजना बहुत बडी विनाशकारी शक्तियां प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार का जातक अपनी माँ, पत्नी, सास आदि के जीवन के लिए बहुत प्रतिकूल प्रभावी होता है। जातक का गुस्सा उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं के विनाश का कारण बन जाता है।

उपाय:
(1) किसी बरगद के पेड़ की जड़ों पर मीठा दूध चढाएं और वहां की गीली मिट्टी को अपनी नाभि पर लगाएं।
(2) आग से तबाही से बचने के लिए, अपने घर, दुकान या कारखाने की छत पर चीनी की खाली बैग (बोरे) रखें।
(3) हमेशा आपने साथ चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें।
(4) काले, काने और विकलांग व्यक्ति से दूर रहें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का पांचवें भाव में फल

पांचवां घर मंगल के नैसर्गिक मित्र सूर्य का घर होता है। इसलिए इस घर में मंगल बहुत अच्छे परिणाम देता है। जातक के पुत्र उसकी प्रसिद्धि और धनार्जन के माध्यम बनते हैं। जातक की समृधि पुत्र प्राप्ति के बाद कई गुना बढ़ जाती है। शुक्र और चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करने वाली वस्तुएं और रिश्तेदार को हर तरीके से फायदेमंद साबित होंगे। जातक के पूर्वजों में से कोई चिकित्सक या वैद्य रहा होगा। जातक की उम्र के साथ उसकी समृधि भी बढती जाती है। लेकिन विपरीत लिंगी के साथ भावनात्मक लगाव और रोमांस जातक के लिए अत्यधिक विनाशकारी साबित होंगे और जातक की मानसिक शांति और रातों की नीद खराब करने के कारण बनेंगे।

उपाय:
(1) अपना नैतिक चरित्र अच्छा बनाए रखें।
(2) रात को अपने बिस्तर के सिरहने एक बर्तन में पानी रखें और सुबह उसे किसी गमले में डाल दें।
(3) अपने पूर्वजों की श्राद्ध करें और घर में एक नीम के पेड़ लगाएं।

लाल किताब के अनुसार मंगल का छठें भाव में फल

यह भाव बुध और केतू का होता है। दोनो आपस में शत्रु है और मंगल के लिए हानिकारक हैं। इस लिए इस भाव में सूर्य अपने आपको इन दोनो ग्रहों से दूर रखता है। इसलिए जातक साहसी, जोखिम उठाने वाला न्यायप्रिय और पानी में आग लगाने के लिए पर्याप्त शक्ति रखने वाला होता है। बुध से संबंधित व्यापार-व्यवसाय जातक के लिए अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होंगे। उसकी कलम में तलवार से ज्यादा ताकत होगी। यदि सूर्य, शनि और मंगल इसी घर में साथ हैं तो जातक के भाई, मां, बहन और पत्नी पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा।

उपाय:
(1) बेटे के जन्म के समय मिठाई की जगह पर नमक बांटें।
(2) जातक के भाइयों को चाहिए कि अपनी सुरक्षा और समृद्धि के लिए वो जातक को खुश रखें और इसके लिए वो जातक को कोई वस्तु या और कुछ देते रहें। लेकिन यदि जातक ऐसी चीजें स्वीकार नहीं करता तो वो चीजें पानी में फेंक देनी चाहिए।
(3) जातक के लड़कों को सोना नहीं पहनना चाहिए।
(4) परिवारिक सुख के लिए शनि के उपाय अपनाएं। माता पिता के स्वास्थ्य और दुश्मनों के विनाश के लिए गणेश जी की पूजा करें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का सातवें भाव में फल

यदि घर में शुक्र और बुध, के प्रभाव के अंतर्गत आता है जो कि आपस में मिलकर सूर्य का फल देते हैं। यदि मंगल सातवें भाव में है तो सातवां भाव मंगल और सूर्य के प्रभाव के अंतरगत आएगा जो यह सुनिश्चित करता की जातक की महत्वाकांक्षा पूरी हो जाएगी। धन संपत्ति, और परिवार में वृद्धि होगी। लेकिन अगर बुध भी मंगल ग्रह के साथ स्थित है तो बुध से संबंधित बातों और रिश्तों जैसे, बहन, भाभी, नर्सों, नौकरानी, तोता, बकरी आदि प्रतिकूल प्रभावी होंगी अत: इनसे दूर रहना बेहतर होगा।

उपाय:
(1) समृद्धि के लिए घर में चांदी का ठोस टुकड़ा रखें।
(2) हमेशा बेटी, बहन, भाभी और विधवाओं को मिठाई भेंट करें।
(3) बार बार एक छोटी सी दीवार बनाएं और गिराएं।

लाल किताब के अनुसार मंगल का आठवें भाव में फल

यह घर मंगल और शनि, के संयुक्त गुणों से प्रभावित होता है। इस घर में कोई ग्रह अच्छा नहीं माना जाता है। यहां स्थित मंगल ग्रह जातक के छोटे भाई पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। लाभ या हानि की परवाह किए बिना जातक अपने द्वारा बनाई गई प्रतिबद्धताओं से चिपका रहता है।

उपाय:
(1) विधवाओं का आशीर्वाद प्राप्त करें और गले में एक चांदी की चेन पहनें।
(2) तंदूर की बनी मीठी रोटी कुत्तों को दें।
(3) भोजन रसोई घर में ही करें।
(4) अपने घर के अत में एक छोटा से अंधेरा कमरा बनाएँ और उसमें सूर्य की रोशनी आने दें।
(5) धार्मिक स्थानों में चावल, गुड़ और चने की दाल भेंट करें।
(6) किसी मिट्टी के बर्तन मेंदेशी खांडभरें और श्मशान भूमि के पास दफनाएं।

लाल किताब के अनुसार मंगल का नौवें भाव में फल

यह घर मंगल ग्रह के मित्र बृहस्पति का है। इस भाव में स्थित मंगल ग्रह बडों का आशिर्वाद और मदद दिलाकर जातक के लिए हर ढंग से अच्छा साबित होगा। जातक के भाइयों की पत्नियां जातक के लिए भाग्यशाली रहेंगी। सामान्यत: उसके अपने पिता की तरह कई भाई होंगे। भाइयों के साथ एक संयुक्त परिवार में रहने पर जातद के सुख में हर ओर से वृद्धि होगी। जातक अपनी उम्र के 28 वें वर्ष तक एक अत्यंत प्रतिष्ठित प्रशासनिक पद प्राप्त कर लेगा। जातक युद्ध से जुड़े सामान के व्यापार में भारी मुनाफा कमा सकता है।

उपाय:
(1) अपने बड़े भाई की आज्ञा मानें।
(2) अपनी भाभी यानी भाई की पत्नी की सेवा करें।
(3) नास्तिक बनें और अपने पारंपरिक और धार्मिक रीति - रिवाजों का पालन करें।
(4) धार्मिक और पूजा स्थलों पर चावल, दूध और गुड़ चढ़ाएं।

लाल किताब के अनुसार मंगल का दसवें भाव में फल

कुंडली में यह मंगल ग्रह की सबसे अच्छी स्थिति है, यह मंगल की उच्च की जगह है। यदि जातक किसी गरीब परिवार में पैदा हुआ है तो उसके जन्म के बाद उसका परिवार अमीर और संपन्न हो जाएगा। यदि वह किसी अमीर परिवार में पैदा हुआ है, तो उसके जन्म के बाद उसका परिवार अमीर और अमीर होता जाएगा। यदि जातक अपने भाइयों में सबसे बडा है तो वह समाज में एक अतिविशिष्ट होगा और खूब मान प्रतिष्ठा हासिल करेगा। जातक निर्भीक, साहसी, स्वस्थ और समाज में परंपराओं, मानदंडों और नियमों को निर्धारित करनें में पर्याप्त सक्षम होगा। हालांकि, यदि दूसरे भाव में राहु, केतु और शनि या शुक्र और चंद्रमा जैसे हनिकर ग्रह हों तो पूर्वोक्त लाभकारी प्रभाव कम हो जाते हैं। इसके अलावा यदि तीसरे भाव में कोई मित्र ग्रह भी स्थित है तो भी दसवें घर में स्थित मंगल ग्रह के परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। यदि शनि तीसरे घर में स्थित है तो जातक अपने जीवन के अंतिम भाग में खूब धन और बहुत सारी जमीन जायदाद प्राप्त करेगा। साथ ही वह एक राजसी पद भी प्राप्त करेगा। मंगल दसम में हो और पांचवें घर में कोई भी ग्रह हो तो चारों तरफ से समॄद्धि और खुशियां आती हैं।

उपाय:
(1) पैतृक संपत्ति और घर का सोना बेचें।
(2) घर में हिरण पालें।
(3) दूध उबालते समय इस बात का खयाल रखें कि दूध उफन कर आग पर गिरने पाए।
(4) काने और निःसंतान व्यक्तियों की मदद करें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का ग्यारहवें भाव में फल

क्योकि यह घर बृहस्पति और शनि ग्रह से प्रभावी होता है इसलिए इस घर में मंगल अच्छे परिणाम देता है। यदि बृहस्पति उच्च का हो तो मंगल बहुत अच्छे परिणाम देता है। जातक साहसी और आम तौर पर व्यापारी होता है।

उपाय:
(1) पैतृक संपत्ति कभी भी बेचें।
(2) किसी मिट्टी के बर्तन में शहद या सिंदूर रखना अच्छे परिणाम देगा।

लाल किताब के अनुसार मंगल का बारहवें भाव में फल

यह घर बृहस्पति से प्रभावित घर होता है। इसलिए यहां पर मंगल और और बृहस्पति दोनों के अच्छे परिणाम मिलते हैं। यह राहू का पक्का घर भी कहा गया है इसलिए मंगल के यहां स्थित होने के कारण राहू का दुष्प्रभाव भी नहीं मिलता।

उपाय:
(1) सुबह खाली पेट शहद का सेवन करें।
(2) मिठाई खाना और दूसरों को भी देने से जातक के धन की बृद्धि होती है।

 

बृहस्पति ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

पढ़ें लाल किताब के अनुसार बृहस्पति ग्रह से संबंधित प्रभाव और उपाय। ज्योतिष में बृहस्पति को एक शुभ ग्रह माना गया है। लाल किताब जो कि पूरी तरह से उपाय आधारित ज्योतिष पद्धति है। इसमें बृहस्पति ग्रह के विभिन्न भावों में फल और उनके प्रभाव के बारे में विस्तार से व्याख्या की गई है।

लाल किताब में बृहस्पति ग्रह

हिन्दू ज्योतिष में बृहस्पति को देव गुरु कहा जाता है। यह धनु और मीन राशि का स्वामी है और कर्क राशि में उच्च और मकर राशि में नीच का होता है। सूर्य, मंगल और चंद्रमा बृहस्पति के मित्र हैं। वहीं शुक्र, बुध शत्रु और शनि राहु बृहस्पति के साथ सम-भाव रखते हैं। लाल किताब में बृहस्पति को एक महत्वपूर्ण ग्रह माना गया है। पीपल, पीला रंग, सोना, हल्दी, चने की दाल, पीले फूल, केसर, गुरु, पिता, वृद्ध पुरोहित, विद्या और पूजा-पाठ यह सब बृहस्पति के प्रतीक माने गये हैं।

लाल किताब के अनुसार मित्र ग्रहों के साथ बृहस्पति

चंद्रमा का साथ मिलने पर बृहस्पति की शक्ति बढ़ जाती है। वहीं मंगल का साथ मिलने पर बृहस्पति की शक्ति दोगुना बढ़ जाती है। सूर्य ग्रह के साथ से बृहस्पति की मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है।

शत्रु ग्रहों के साथ बृहस्पति

बृहस्पति के तीन मित्र ग्रह होने के साथ-साथ तीन शत्रु ग्रह भी हैं। ये ग्रह सदैव बृहस्पति को हानि पहुंचाने के लिए अवसर तलाशते हैं। बृहस्पति का पहला शत्रु बुध है, दूसरा शुक्र और तीसरा शत्रु राहु है।

बृहस्पति ग्रह के गुण और अवगुण

संसार के हर प्राणी और वस्तु में कोई गुण और अवगुण दोनों होते हैं। ठीक इसी प्रकार आकाश में विचरण कर रहे ग्रहों में भी गुण और अवगुण दोनों होते हैं। बृहस्पति ग्रह मान, प्रतिष्ठा और उत्पत्ति का कारक है लेकिन निर्बल होने पर बृहस्पति के यह सभी गुण पलभर में खत्म हो जाते हैं। जातक अपने कर्मों के द्वारा अपनी जन्म कुंडली के प्रबल और उत्तम बृहस्पति को, जो चतुर्थ भाव में अच्छा फल देने वाला होता है, उसे निर्बल कर लेता है। पिता, बाबा, दादा, ब्राह्मण और बुजुर्गों को निरादर करने से उत्तम बृहस्पति निष्फल हो जाता है।

लाल किताब में बृहस्पति के बुरे प्रभाव के लक्षण

लाल किताब के अनुसार जब कुंडली में बृहस्पति पीड़ित होता है तो जातक पर निम्न प्रभाव देखने को मिलते हैं-

सिर के बीचों बीच से बाल उड़ने लगते हैं

शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न होने लगता है

नेत्र में पीड़ा होने लगती है

सपने में सर्प का दिखना

व्यक्ति के बारे में बेकार की अफवाहें उड़ना

गले में दर्द और फेफड़े की बीमारी होना

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति की शांति के लिए किये जाने वाले उपाय

जब जन्म कुंडली में बृहस्पति की स्थिति कमजोर हो तो, लाल किताब से संबंधित निम्न उपाय अवश्य करना चाहिए।

हल्दी की गांठ पीले रंग के धागे में बांधकर दायीं भुजा पर बांधना चाहिए।

27 गुरुवार तक केसर का तिलक लगाना और केसर की पुड़िया पीले रंग के कपड़े या कागज में अपने पास रखना चाहिए।

पीले रंग के वस्त्र पहनना और घर में पीले रंग के पर्दे लगाना शुभ होता है।

घर में पीले सूरजमुखी का पौधा लगाना चाहिए।

सोने की चेन और बृहस्पति यंत्र धारण करना चाहिए।

बृहस्पति ग्रह से संबंधित अन्य ज्योतिषीय उपाय

बृहस्पति ग्रह के अशुभ प्रभावों को दूर करने और शुभ फल की प्राप्ति के लिए लाल किताब के अलावा अन्य ज्योतिषीय उपाय भी किये जाते हैं।

व्यक्ति को माता-पिता, गुरुजन और अन्य पूज्यनीय व्यक्तियों के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखना चाहिए।

किसी मंदिर या धार्मिक स्थल पर जाकर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।

गुरुवार के दिन मंदिर में केले के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाना चाहिए।

गुरुवार के दिन आटे की लोई में चने की दाल, गुड़ और हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।

चूंकि गुरु आध्यात्मिक ज्ञान का कारक कहा जाता है इसलिए बुद्धिजीवी व्यक्ति और गुरुजन का सम्मान करें।

गुरुवार के दिन बृं बृहस्पतये नमः!’ मंत्र का जाप करें।

गुरुवार को बृहस्पति के वैदिक मंत्र का जाप करने से मोटापा और पेट से संबंधित बीमारियां दूर होती हैं।

गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा में गंध, अक्षत, पीले फूल, पीले पकवान और पीले वस्त्र का दान करें।

बृहस्पति ग्रह से संबंधित यह सभी टोटके गुरुवार के दिन बृहस्पति के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद) और गुरु की होरा में करना चाहिए।

बृहस्पति से संबंधित व्यवसाय और पेशा

बृहस्पति को धर्म, दर्शन और ज्ञान का कारक माना जाता है। न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट, वकील, बैंक मैनेजर, कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर, ज्योतिषी और शिक्षक आदि बृहस्पति ग्रह के प्रतीक हैं।

शेयर मार्केट, किताबों का बिजनेस, शिक्षा और धर्म संबंधी पुस्तकें, वकालत और शिक्षा संस्थाओं का संचालन आदि बृहस्पति के प्रतीक रूप व्यवसाय हैं। फायनेंस कंपनी और अर्थ मंत्रालय भी बृहस्पति के प्रतीक कहे जाते हैं।

बृहस्पति से संबंधित रोग

गुरु के बुरे प्रभाव से व्यक्ति के शरीर में कफ और चर्बी की वृद्धि होती है। डायबिटीज, हर्निया, कमजोर याददाशत, पीलिया, पेट, सूजन, बेहोशी, कान और फेफड़ों आदि से संबंधित रोग होते हैं।

बृहस्पति ग्रह से संबंधित अन्य उपाय

बृहस्पति ग्रह की शांति और उससे शुभ फल प्राप्त करने के लिए जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए। उनमें चीनी, केला, पीला कपड़ा, केसर, नमक, मिठाई, हल्दी, पीले फूल और पीला भोजन उत्तम माना गया है। इस ग्रह की शांति के लिए बृहस्पति से संबंधित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है। दान करते समय आपको ध्यान रहे कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो। किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को दान देना विशेष फलदायक होता है। बृहस्पतिवार के दिन व्रत भी रखना चाहिए। जिन लोगों का बृहस्पति कमजोर हो उन लोगों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए। निर्धन और ब्राह्मणों को दही चावल खिलाना चाहिए। पीपल के वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करना चाहिए। गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है।

बृहस्पति को अन्य सभी ग्रहों का गुरु और ब्रह्मा जी का प्रतीक माना गया है। बृहस्पति की कृपा से जीवन में ज्ञान, धर्म, संतान और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, इसलिए कुंडली में बृहस्पति की स्थिति प्रबल होने बहुत आवश्यक है।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का पहले भाव में फल

पहले घर में स्थित बृहस्पति निश्चय ही जातक को अमीर बनाता है, भले ही वह सीखने और शिक्षा से वंचित हो। जातक स्वस्थ और दुश्मनों निर्भीक रहने वाल होगा। जातक अपने स्वयं के प्रयासों, मित्रों की मदद और सरकारी सहयोग से हर आठवें साल में बडी तरक्की पाएगा। यदि सातवें भाव में कोई ग्रह हो तो विवाह के बाद सफलता और समृद्धि मिलती है। विवाह या अपनी कमाई से चौबीसवें या सत्ताइसवें साल में घर बनवाना जातक की पिता की उम्र के लिए ठीक नहीं होगा। बृहस्पति पहले भाव में हो और शनि नौवें भाव में हो तो जातक को स्वाथ्य से संबंधित परेशानियां होती हैं। बृहस्पति पहले भाव में हो और राहू आठवें भाव में हो तो जातक के पिता की मृत्यु दिल के दौरे या अस्थमा के कारण होती है।

उपाय:
(1) बुध, शुक्र और शनि से सम्बंधित वस्तुएं धार्मिक स्थानों में बांटे।
(2) गायों की सेवा करें और अछूतों की मदद करें।
(3) यदि शनि पांचवे भाव में हो तो घर का निर्माण करें।
(4) यदि शनि नवमें भाव में हो तो शनि से सम्बंधित चीजें जैसे मशीनरी आदि खरीदें।
(5) यदि शनि ग्यारहवें या बारहवें भाव में हो तो, शराब, मांस और अंडे का प्रयोग बिलकुल करें।
(6) नाक में चांदी पहनने से बुध का दुष्प्रभाव दूर होता है।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का दूसरे भाव में फल

इस घर के परिणाम बृहस्पति और शुक्र से प्रभावित होते हैं भले ही शुक्र कुण्डली में कहीं भी बैठा हो। शुक्र और बृहस्पति एक दूसरे के शत्रु हैं। इसलिए दोनों एक दूसरे पर प्रतिकूल असर डालते हैं। नतीजतन, यदि जातक सोने के या आभूषणों के व्यापार में संलग्न होता है, तो शुक्र से संबंधित चीजें जैसे धन और संपत्ति आदि प्रभावित होंगी। यदि जातक का जीवनसाथी भी उसके साथ है तो जातक सम्मान और धन कमाता जाएगा बावजूद इसके उसका जीवनसाथी और परिवार के लोग स्वास्थ्य समस्या या अन्य परेशानियों से ग्रस्त रहेंगे। जातक विपरीत लिंग के लोगों में प्रशंसनीय होगा और अपने पिता की संपत्ति विरासत में प्राप्त करेगा। यदि 2, 6 और 8वां घर शुभ हैं और शनि दसवें घर में नहीं है तो जातक लॉटरी या किसी नि:संतान से सम्पत्ति अर्जित करेगा।

उपाय:
(1) दान-दक्षिणा देने से समृद्धि बढ़ेगी।
(2) दशम भाव में स्थित शनि के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए सांपों को दूध पिलायें।
(3) यदि आपके घर के सामने की सड़क में कोई गड्ढा है तो उसे भर दें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का तीसरे भाव में फल

तीसरे भाव का बृहस्पति जातक को समझदार और अमीर बनाता है, जातक अपने पूरे जीवन काल में सरकार से निरंतर आय प्राप्त करता रहेगा। नवम भाव में स्थित शनि जातक को दीर्घायु बनाता है। यदि शनि दूसरे भाव में हो तो जातक बहुत चतुर और चालाक होता है। चतुर्थ भाव में स्थित शनि यह इशारा करता है कि जातक का पैसा और धन उसके अपने दोस्तों के द्वारा लूट लिया जाएगा। यदि बृहस्पति तीसरे भाव में किसी पापी ग्रह से पीडित है तो जातक अपने किसी करीबी के कारण बरबाद हो जाएगा और कर्जदार हो जाएगा।

उपाय:
(1) देवी दुर्गा की पूजा करें और कन्याओं अर्थात छोटी लड़कियों को मिठाई और फल देते हुए उनके पैर छू कर उनका आशीर्वाद लें।
(2) चापलूसों से दूर रहें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का चौथे भाव में फल

चौथा घर बृहस्पति के मित्र चंद्रमा का है। बृहस्पति इस घर में उच्च का होता है। इसलिए बृहस्पति यहाँ बहुत अच्छे परिणाम देता है और जातक को दूसरों के भाग्य भविष्य तय करने की शक्तियां प्रदान करता है। जातक पैसा, धन, और बहुत सम्पत्ति के साथ साथ सरकार की ओर से सम्मान का अधिकारी होता है। जातक को संकट के समय में दैवीय सहायता प्राप्त होगी। जैसे-जैसे उसकी उम्र बढती जाएगी जातक समृद्धि और धन में भी वृद्धि होगी। लेकिन यदि जातक घर के भीतर मंदिर बनवा लेता है तो उपरोक्त परिणाम नहीं मिलेंगे साथ ही गरीबी और परेशानी पूर्ण वैवाहिक जीवन का सामना करना पड़ेगा।

उपाय:
(1) घर में मंदिर बनायें।
(2) बड़ों की सेवा करें।
(3) सांप को दूध पिलायें।
(4) कभी भी नंगे बदन रहें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का पांचवें भाव में फल

यह घर बृहस्पति और सूर्य से संबंधित होता है। जातक के समृद्धि में वृद्धि पुत्र प्राप्ति के पश्चात होगी। वास्तव में जातक के जितने अधिक पुत्र होंगे वह उतना ही अधिक समृद्धशाली होगा। पांचवां घर सूर्य का अपना घर होता है और इस घर में सूर्य, केतू और बृहस्पति मिश्रित परिणाम देंगे। लेकिन यदि बुध, शुक्र और राहू दूसरे, नौवें, ग्यारहवें और बारहवें भाव में हों तो सूर्य, केतू और बृहस्पति खराब परिणाम देंगे। यदि जातक ईमानदार और श्रमसाध्य है तो बृहस्पति अच्छे परिणाम देगा।

उपाय:
(1) किसी भी तरह का दान या उपहार स्वीकार करें।
(2) पुजारियों और साधुओं की सेवा करें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का छठें भाव में फल

छठवा घर बुध का होता है और केतु का भी इस घर पर प्रभाव माना गया है। इसलिए यह घर बुध, बृहस्पति और केतु का संयुक्त प्रभाव देगा। यदि बृहस्पति शुभ होगा तो जातक पवित्र स्वभाव का होगा। उसे बिना मांगे जीवन में सब कुछ मिल जाएगा। बड़ों के नाम पर दान-दक्षिणा उसके लिए फायदेमंद होगा। यदि बृहस्पति छठवें घर में हो और केतु शुभ हो तो जातक स्वार्थी हो जाएगा। हालांकि, यदि केतु छठवें घर में अशुभ है और बुध भी हानिकर है तो जातक उम्र के 34 साल तक दुर्भाग्यशाली रहेगा। यहाँ स्थित बृहस्पति जातक पिता के अस्थमा रोग का कारण बनता है।

उपाय:
(1) बृहस्पति से संबंधित वस्तुएं मन्दिर में भेंट करें।
(2) मुर्गों को दाना डालें।
(3) पुजारी को कपडे भेंट करें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का सातवें भाव में फल

सातवां घर शुक्र का होता है, अत: यह मिश्रित परिणाम देगा। जातक का भाग्योदय शादी के बाद होगा और जातक धार्मिक कार्यों में शामिल होगा। घर के मामले में मिलने वाला अच्छा परिणाम चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करेगा। जातक देनदार नहीं हो सकता है लेकिन उसके अच्छे बच्चे होंगे। यदि सूर्य पहले भाव में हो तो जातक एक अच्छा ज्योतिषी और आराम पसंद होगा। लेकिन यदि बृहस्पति सातवें भाव में नीच का हो और शनि नौवें भाव में हो तो जातक चोर हो सकता है। यदि बुध नौवें भाव में हो तो जातक के वैवाहिक जीवन परेशानियों से भरा होगा। यदि बृहस्पति नीच का हो तो जातक को भाइयों से सहयोग नहीं मिलेगा साथ ही वह सरकार के समर्थन से भी वंचित रह जाएगा। सातवें घर में बृहस्पति पिता के साथ मतभेद का कारण बनता है। ऐसे में जातक को चाहिए कि वह कभी भी किसी को कपड़े दान करे, अन्यथा वह बडी गरीबी की चपेट में जाएगा।

उपाय:
(1) भगवान शिव की पूजा करें।
(2) घर में किसी भी देवता की मूर्ति रखें।
(3) हमेशा अपने साथ किसी पीले कपडे में बांध कर सोना रखें।
(4) पीले कपडे पहने हुए साधु और फ़कीरों से दूर रहें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का आठवें भाव में फल

बृहस्पति इस घर में अच्छे परिणाम नहीं देता लेकिन जातक को सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। संकट के समय जातक को ईश्वर की सहायता मिलेगी। धार्मिक होने से जातक के भाग्य में वृद्धि होगी। यदि जातक सोना पहनता है तो दुखी या बीमार नहीं होगा। यदि बुध, शुक्र या राहू दूसरे, पांचवें, नौवें, ग्यारहवें या बारहवें भाव में हों तो जातक के पिता बीमार होंगे और स्वयं जातक को प्रतिष्ठा की हानि का सामना करना होगा।

उपाय:
(1) राहु से संबंधित चीजें जैसे गेहूं, जौ, नारियल आदि पानी में बहाएं।
(2) श्मशान में पीपल का पेड़ लगाएं।
(3) मंदिर में घी, आलू और कपूर दान करें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का नौवें भाव में फल

नौवां घर बृहस्पति से विशेष रूप से प्रभावित होता है। इसलिए इस भाव वाला जातक प्रसिद्ध है, अमीर और एक अमीर परिवार में पैदा होगा। जातक अपनी जुबान का पाक्का और दीर्घायु होगा, उसके बच्चे बडे अच्छे होंगे। यदि बृहस्पति नीच का हो तो जातक में उपरोक्त गुण नहीं होंगे और वह नास्तिक होगा। यदि बृहस्पति का शत्रु ग्रह पहले, पांचवें या चौथे भाव में हो तो बृहस्पति बुरे परिणाम देगा।

उपाय:
(1) हर रोज मंदिर जाना चाहिए।
(2) शराब पीने से बचें।
(3) बहते पानी में चावल बहाएं।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का दसवें भाव में फल

यह भाव शनि का घर होता है। इसलिए जातक जब खुश होगा तो शनि के गुणों को आत्मसात करेगा। यदि जातक चालाक और धूर्त होगा तभी बृहस्पति के अच्छे परिणाम का आनंद ले पाएगा। यदि सूर्य चौथे भाव में बृहस्पति बहुत अच्छा परिणाम देगा। चौथे भाव के शुक्र और मंगल जातक के कई विवाह सुनिश्चित करते हैं। यदि 2, 4 और 6 भावों में मित्र ग्रह हों तो पैसों और आर्थिक मामलों में बृहस्पति अत्यधिक लाभकारी परिणाम प्रदान करता है। यदि दसम में स्थित बृहस्पति नीच का हो तो जातक उदास और गरीब होता है। वह पैतृक सम्पत्ति, पत्नी और बच्चों से वंचित रहता है।

उपाय:
(1) कोई भी काम शुरू करने से पहले अपनी नाक साफ करें।
(2) नदी के बहते पानी में 43 दिनों के लिए तांबे के सिक्के बहाएं।
(3) धार्मिक स्थानों में बादाम बाटें।
(4) घर के भीतर मंदिर बनाकर मूर्तियां स्थापित करें।
(5) माथे पर केसर का तिलक लगाएं।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का ग्यारहवें भाव में फल

इस घर में बृहस्पति अपने शत्रु ग्रहों बुध, शुक्र और राहु से सम्बंधित चीजों और रिश्तेदारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। नतीजतन, जातक की पत्नी दुखी रहेगी। इसी तरह, बहनें, बेटियां और बुआ भी दुखी रहेंगी। बुध सही स्थिति में तो भी जातक कर्जदार होता है। जातक तभी आराम से रह पाएगा जब वह पिता, भाइयों, बहनों और मां के साथ साथ एक संयुक्त परिवार में रहे।

उपाय:
(1) हमेशा अपने शरीर पर सोना पहनें।
(2) तांबे का कडा पहनें।
(3) पीपल के पेड़ में जल चढाएं।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का बारहवें भाव में फल

बारहवा घर बृहस्पति और राहु के संयुक्त प्रभाव में होता है जो कि एक दूसरे के शत्रु होते हैं यदि जातक अच्छा आचरण करता है, धार्मिक प्रथाओं को मानता है और सभी के लिए अच्छा चाहता है तो वह खुशहाल होगा और रात में आरामदायक नींद का आनंद ले पाएगा। जातक अमीर और शक्तिशाली होगा। शनि के दुष्कर्मों से बचाव करने पर मशीनरी, मोटर, ट्रक और कार से सम्बंधित काम फायदेमंद रहेंगे।

उपाय:
(1) किसी भी मामले में झूठी गवाही से बचें।
(2) साधुओं, गुरुओं और पीपल के पेड़ की सेवा करें।
(3) रात में अपने बिस्तर के सिरहनें पानी और सौंफ रखें।

 

शुक्र ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

पढ़ें लाल किताब के अनुसार शुक्र ग्रह से संबंधित प्रभाव और उपाय। ज्योतिष में शुक्र को एक शुभ ग्रह माना गया है। लाल किताब जो कि पूरी तरह से उपाय आधारित ज्योतिष पद्धति है। इसमें शुक्र ग्रह के विभिन्न भावों में फल और उनके प्रभाव के बारे में विस्तार से व्याख्या की गई है।

लाल किताब में शुक्र ग्रह

शुक्र एक चमकीला और नैसर्गिक रूप से सुन्दर ग्रह है। शुक्र के प्रभाव से व्यक्ति को भौतिक और समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। लाल किताब के अनुसार शुक्र ग्रह प्रेम, वासना, विवाह, जीवनसाथी, गृहस्थी सुख और जमीन का कारक होता है। मनुष्य के अंदर प्रेम की भावना का नाम शुक्र है। इसके लिए व्यक्ति रुपया, पैसा, भूमि, संपत्ति और धन-दौलत सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हो जाता है। शुक्र ग्रह को लक्ष्मी जी का प्रतीक माना गया है। कुंडली में शुक्र की शुभ स्थिति जीवन को सुखमय और प्रेममय बनाती है और अशुभ स्थिति चारित्रिक दोष पीड़ा उत्पन्न करती है।

लाल किताब में शुक्र ग्रह का महत्व

काल पुरुष कुंडली में शुक्र का स्थान द्वितीय और सप्तम है। जहां द्वितीय भाव संपत्ति, परिवार और मुख का कारक है, जबकि सप्तम भाव से जीवनसाथी, बिजनेस पार्टनर और यात्रा के समय सहयात्री को देखा जाता है। शुक्र ग्रह को वृषभ और तुला राशि का स्वामित्व प्राप्त है। शुक्र मीन राशि में उच्च का माना गया है जबकि कन्या राशि में यह नीच का होता है। लाल किताब में शुक्र ग्रह गाय, पति-पत्नी, धन, लक्ष्मी, दूसरे और सातवें घर का मालिक है। इसलिए दूसरा घर घर-पति-पत्नी या ससुराल का भाव माना गया है और सप्तम भाव गृहस्थ जीवन का भाव होता है। शनि, बुध और केतु शुक्र के मित्र ग्रह होते हैं। वहीं सूर्य, चंद्रमा और राहु इसके शत्रु माने गये हैं। बुध, केतु और शनि के घर में शुक्र बलवान और उत्तम फल देने वाला होता है। वहीं शुक्र ग्रह बृहस्पति से शत्रुता का भाव रखता है। वहीं सूर्य और शनि की दृष्टि शुक्र को प्रभावित करती है। सूर्य और शनि के बीच टकराव में शुक्र हमेशा निर्बल हो जाता है। शुक्र को पुरुष की कुंडली में स्त्री और स्त्री की कुंडली में पुरुष माना जाता है। टेवे में दूसरा, तीसरा, चौथा, सातवां और बारहवें खाने में शुक्र श्रेष्ठ माना जाता है जबकि प्रथम, षष्टम और नवम खाने में यह मंदा होता है। सप्तम भाव में शुक्र जिस ग्रह के साथ संबंध बनाता है उसे अपना प्रभाव प्रदान करता है। शुक्र चंद्रमा के साथ मिलकर नैसर्गिक लक्ष्मी योग बनाता है। जिस जातक की कुंडली में शुक्र और चंद्रमा की युति हो, वह व्यक्ति काम भावना में प्रबल और विलासिता के साधन जुटाने में आगे होता है।

लाल किताब के अनुसार शुक्र ग्रह के कारकत्व

लाल किताब में शुक्र ग्रह कई विषयों का कारक और प्रतीक माना गया है। इनमें देवी लक्ष्मी, धन, भूमि, संपत्ति, किसान, गाय, बैल, कुम्हार, मनियार, पशु पालक, शुक्र ग्रह के प्रतीक हैं। इसके अलावा दही, दही जैसा रंग, कपास, घी, पति-पत्नी, वीर्य, लिंग, कामदेव, फूल, अन्न, मक्खन, चमड़ी, स्थान, भूमि, श्रृंगार का सामान, मिट्टी मिट्टी से संबंधित कार्य, हीरा, जस्ता, धातु, गोबर और गौ मूत्र सभी वस्तुएँ शुक्र से संबंधित हैं। शरीर में जननांग, वीर्य नेत्र पर शुक्र का प्रभाव रहता है। शुक्र प्रेम, विवाह, मैथुन, ऐश्वर्य, गायन और नृत्य का अधिपति होता है।

शुक्र ग्रह का संबंध

जर (पैसा), जोरु (स्त्री) और जमीन का मिश्रण शुक्र कहलाता है, इसलिए इन तीनों के मालिक व्यक्ति के घर में शुक्र (लक्ष्मी) का वास माना जाता है। अतः शुक्र ग्रह को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है।

शुक्र ग्रह के अशुभ होने के लक्षण

शुक्र ग्रह का राहु के साथ होना यानि स्त्री और धन का प्रभाव खत्म होने लगता है।

अंगूठे में दर्द रहना या बिना किसी बीमारी के ही अंगूठा खराब हो जाता है।

त्वचा विकार, गुप्त रोग, जीवनसाथी से अनावश्यक कलह भी शुक्र के बुरे लक्षण को दर्शाती है।

अगर शनि मंदा अर्थात नीच का हो, तब भी शुक्र ग्रह का प्रभाव बुरा होता है।

शुक्र के अशुभ फल देने पर व्यक्ति में चारित्रिक दोष उत्पन्न हो जाता है। मंदा शुक्र वैवाहिक जीवन में अशांति और कलह पैदा करता है। त्वचा संबंधी रोग और अंगूठे में पीड़ा भी शुक्र की अशुभ निशानी कही गई है।

 

लाल किताब में शुक्र ग्रह से जुड़े टोटके उपाय

अगर कुंडली में शुक्र योग कारक ग्रह होते हुए भी अच्छे फल प्रदान नहीं कर रहा है तो लाल किताब के उपाय अवश्य करना चाहिए-

शुक्रवार या अन्य किसी शुभ मुहूर्त में चांदी के आभूषण धारण करना चाहिए।

चांदी की कटोरी में सफेद चंदन, सफेद पत्थर का टुकड़ा रखकर शयन कक्ष में रखें।

हीरा या शुक्र यंत्र धारण करें।

क्रीम रंग के वस्त्र धारण करना और घर में क्रीम रंग के पर्दे चादरों आदि का प्रयोग करना चाहिए।

घर में तुलसी का पौधा लगाना, सफेद पुष्प लगाना और सफेद गाय रखना शुभ होगा।

शुक्रवार के दिन श्री दुर्गा पूजन, 5 कन्याओं की पूजा और उन्हें खीर सफेद वस्त्र भेंट करना।

आलू में हल्दी डालकर उन्हें पीले कर गाय को खिलाना चाहिए।

पांच शुक्रवार तक धर्म स्थान पर दूध, मिश्री, चावल, बर्फी और सफेद वस्त्र का दान करना चाहिए।

माता, दादी और महिलाओं आदि को प्रसन्न रखना और उन्हें दुःख नहीं देना चाहिए।

शुक्रवार से शुरू करके सात दिनों तक गौ शाला में गाय को हरा चारा, शक्कर डालना चाहिए।

चांदी की गोली सदैव अपनी पॉकेट में रखें।

चतुर्थ भाव में शुक्र का मंदा होने पर जीवनसाथी से पुनः विवाह करना चाहिए।

धन संतान के लिए स्त्री को बालों में सोने की क्लिप या सुई लगाकर रखना चाहिए।

खाना नंबर 6 में शुक्र मंदा होने पर संतान के लिए अंगों को दूध से धोना चाहिए।

लाल किताब में शुक्र ग्रह के संबंध में मन और इंद्रियों को नियंत्रित रखने पर विशेष बल देता है।

शुक्र को प्रमुखता से दो रूपों में देखा जाता है। एक स्त्री या लक्ष्मी के रूप में और दूसरा दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के रूप में। एक ओर जहां शुक्र समस्त सांसारिक सुख-साधन प्रदान करता है। वहीं दूसरी ओर साहस और शक्ति भी देता है, इसलिए कुंडली में शुक्र की शुभ स्थिति हर व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होती है।

हम आशा करते हैं कि लाल किताब में शुक्र ग्रह पर आधारित यह जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का पहले भाव में फल

पहले घर का शुक्र जातक को अत्यधिक सुंदर, दीर्घायु, मॄदुभाषी, और विपरीत लिंगियो के बीच लोकप्रिय बनाता है। जातक की पत्नी बीमार रहती है। धर्म, जाति, पंथ जातक को किसी के साथ यौन संबंध बनाने में बाधक नहीं बनेंगे। आमतौर पर ऐसा जातक स्वाभाव से बहुत रोमांटिक होता है और अन्य महिलाओं के साथ प्यार और सेक्स के लिए लालायित रहता है। कमाई शुरू करने से पहले ही जातक की शादी हो जाती है। ऐसा जातक हमउम्र लोगो का नेता बन जाता है, लेकिन परिवार के सदस्यों का नेतृत्व करना मुसीबतों का कारण बनता है। ऐसा जातक कपडों के व्यापार से बहुत लाभ कमाता है। आमतौर पर ऐसे जातक की रुचि धार्मिक गतिविधियों में नहीं होती। जब वर्षफल में शुक्र सातवें भाव में आता है तो यह जीर्ण ज्वर और खूनी खाँसी का कारण बनता है।

उपाय:
(1) 25 वर्ष की उम्र में शादी करें।
(2) हमेशा दूसरों की सलाह लेकर ही किसी नये काम की शुरुआत करें।
(3) काले रंग की गाय की सेवा करें।
(4) दिन के समय सेक्स करने से बचें।
(5) दही मिलाकर स्नान करें।
(6) गोमूत्र का सेवन बहुत उपयोगी होगा।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का दूसरे भाव में फल

दूसरों का बुरा या बुराई करना जातक के लिए हानिकारक साबित होगा। साठ वर्ष की उम्र तक पैसा, धन और संपत्ति बढते जाएंगे। शेरमुखी घर (सामने से व्यापक पीछे से कम) जातक के लिए विनाशकारी साबित होगा। सोने और आभूषणों से संबंधित व्यवसाय या व्यापार अत्यंत हानिकारक होगा। मिट्टी के सामान से जुडा व्यवसाय, कृषि और पशु बेहद फायदेमंद साबित होंगे। स्त्री जातक की कुण्डली में दूसरे भाव में स्थित शुक्र संतान की समस्या देता है जबकि पुरुष जातक की कुण्डली में ऐसी स्थित पुत्र संतान की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है।

उपाय:
(1) संतान की समस्या के लिए जातक को मंगल से संबंधित चीजें जैसे शहद, सौंफ अथवा देशी खांड का इस्तेमाल करना चाहिए।
(2) गायों को हल्दी के पीले रंग से रंगे दो किलोग्राम आलू खिलाएं।
(3) मंदिर में दो किलोग्राम गाय का घी भेंट करें।
(4) व्यभिचार से बचें।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का तीसरे भाव में फल

यहाँ स्थित शुक्र जातक को एक आकर्षक व्यक्तित्व देता है जिससे हर स्त्री उसकी ओर आकर्षित होती है। आम तौर पर सभी उसे प्यार करते हैं। यदि जातक किसी और स्त्री से संबंध रखता है तो जातक को अपनी पत्नी की चापलूसी करनी पडती है। अन्यथा वह हमेशा अपनी पत्नी पर हावी रहता है। हालांकि जातक की पत्नी सब पर हावी रहेगी लेकिन यदि जातक पराई स्त्री से संबंध नही रखता हो वह उस पर हावी रहेगा। जातक की पत्नी साहसी, समर्थक और बैलगाड़ी के दूसरे बैल की तरह जातक के लिए सहयोगी होगी। वह जातक को छल, चोरी और नुकसान से बचाने वाली होगी। अन्य महिलाओं के साथ संपर्क जातक के लिए हानिकारक साबित होगा और दीर्घायु पर प्रतिकूल असर डालने वाल होगा। यदि नवम और एकादश भाव में शुक्र के शत्रु ग्रह स्थित हों तो प्रतिकूल परिणामों की प्राप्ति होगी। जातक के कई बेटियां होंगी।

उपाय:
(1) अपनी पत्नी का सम्मान करें और अतिरिक्त वैवाहिक मामलों से बचें।
(2) पराई औरतों के साथ छेड़खानी (फ्लर्ट) करने से बचें।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का चौथे भाव में फल

चौथे भाव में स्थित शुक्र दो पत्नियों की संभावना को मजबूत करता है और जातक को धनवान बनाता है। यदि बृहस्पति दसम भाव में हो और शुक्र चौथे भाव में हो और जातक धार्मिक बनने की कोशिश करेगा तो हर तरफ से प्रतिकूल परिणाम मिलेंगे। यदि जातक ने कुएं के ऊपर छ्त बना रखी है या मकान बना रखा है तो चौथे भाव में बैठा शुक्र पुत्र प्राप्ति की संभावना को कमजोर करता है। बुध से संबंधित व्यापार भी नुकशान देय होता है। यदि जातक शराब पीता है तो शनि विनाशकारी प्रभाव देगा। मंगल से संबंधित व्यापार जातक के लिए फायदेमंद साबित होगा। चौथे घर का शुक्र और पहले घर का बृहस्पति सास से झगडा करवाता है।

उपाय:
(1) अपनी पत्नी का नाम बदलें और उससे औपचारिक रूप से पुनर्विवाह करें।
(2) चावल, चांदी और दूध बहते पानी में बहाएं अथवा खीर या दूध माँ समान महिलाओं को खिलाने से सास और बहू के बीच होने वाले झगड़े शांत होंगे।
(3) पत्नी के स्वास्थ्य के लिए घर की छत को साफ और स्वच्छ बनाए रखें।
(4) बृहस्पति से सम्बन्धित चीजें जैसे चना, दालें, और केसर की तरह नदी में बहाएं।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का पांचवें भाव में फल

पांचवां घर सूर्य का पक्का घर है जहां शुक्र सूर्य की गर्मी से जल जाएगा। नतीजन जातक रसिक मिज़ाज होगा। उसे अपने जीवनकाल में बडे दुर्भाग्य का सामना करना पडेगा। हालांकि, यदि जातक अपने चरित्र को अच्छा बनाए रखता है तो वह जीवन की कठिनाइयों को पार कर जाएगा और धनवान बनेगा। शादी के पांच साल के बाद उसे पदोन्नति मिलेगी। आम तौर पर ऐसा जातक अनुभवी और शत्रुओं को परास्त करने वाला होता है।

उपाय:
(1) अपने माता पिता की मर्जी के खिलाफ शादी करें।
(2) गायों और माँ के समान स्त्रियों की सेवा करें।
(3) विवाहेत्तर संबंधों से बचें।
(4) जातक दूध या दही से अपना गुप्तांग साफ करें।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का छठें भाव में फल

यह घर बुध और केतू का माना गया है जो एक दूसरे के शत्रु हैं। लेकिन शुक्र दोनों का मित्र है। इस घर में शुक्र नीच का होता है। लेकिन यदि जातक विपरीत लिंगी को प्रसन्न रखता है और सारे और सुविधा उपलब्ध करवाता है तो उसके धन और पैसे में बृद्धि होगी। जातक की पत्नी को पुरुषों के जैसे कपडे नहीं पहनने चाहिए और ही पुरुषों के जैसे बाल रखने चाहिए अन्यथा गरीबी बढती है। ऐसे जातक को उसी से विवाह करना चाहिए जिसके भाई हों। इसके अलावा, जातक कोई भी पूरा किए बिना काम बीच में नहीं छोडता।

उपाय:
(1) पत्नी के बालों में सोने की हेयर क्लिप का उपयोग करवाएं।
(2) खयाल रखें कि पत्नी नंगे पैर चले।
(3) निजी अंगों को लाल दवा से धोएं।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का सातवें भाव में फल

यह घर शुक्र का ही होता है अत: यहां स्थित शुक्र बहुत अच्छे परिणाम देता है। अगर यह इस घर में रखा गया है। पहले भाव में स्थित ग्रह सातवें भाव पर इस प्रकार प्रभाव डालता है मानो वह सातवें भाव में स्थित हो। यदि पहले भाव में स्थित ग्रह शुक्र का शत्रु ग्रह जैसे राहू हो तो जातक की पत्नी और घरेलू मामले बुरी तरह से प्रभावित होंगे। जातक बडे पैमाने पर अपने पैसे महिलाओं पर खर्च करता है। विवाह से संबंधित व्यापार-व्यवसाय जैसे टेन्ट हाउस और ब्यूटी पार्लर आदि का काम जातक के लिए फायदेमंद रहेगा। एक आँख और काली औरत के साथ एसोसिएशन उपयोगी साबित होगा। काने व्यक्ति या काली औरत की संगति फायदेमंद रहेगी।

उपाय:
(1) सफेद गाय पालें।
(2) लाल गायों की सेवा करें।
(3) जीवन साथी के बजन के बराबर किसी मन्दिर में जौ दान करें।
(4) गंदी नाली या नहर में 43 दिनों तक नीले फूल फेंकें।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का आठवें भाव में फल

इस घर में कोई ग्रह शुभ नहीं माना जाता है यहां तक कि शुक्र भी इस घर में बिगड जाता है और जहरीला हो जाता है। ऐसे जातक की पत्नी गुस्सैल और अत्यधिक चिड़चिडी हो जाती है। उसके मुँह से निकली बुरी बातें निश्चित रूप से सच साबित होती हैं। जातक स्वयं की सहानुभूति से पीडित हो जाएगा। किसी की गारंटी या जामानत लेना विनाशकारी साबित होगा। यदि दूसरे भाव में कोई ग्रह हो तो 25 साल से पहले शादी करें अन्यथा पत्नी मर जाएगी।

उपाय:
(1) कोई भी वस्तु दान के रूप में स्वीकार करें।
(2) नियमित रूप से मन्दिर जाएं और पूजा स्थलों तथा मंदिरों में सिर झुकाएं।
(3) तांबे के सिक्के या नीले फूल लगातार दस दिनों तक गटर या गंदे नाले में फेंकें
(4) दही से अपने गुप्तांगों को धोएं।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का नौवें भाव में फल

इस घर में स्थित शुक्र अच्छे परिणाम नहीं देता। जातक धनवान हो सकता है लेकिन अपनी रोटी के लिए उसे कडी मेहनत करनी पडेगी। उसे अपने प्रयासों का उचित पुरस्कार नहीं मिलेगा। घर में पुरुष सदस्यों, पैसा, धन और संपत्ति की कमी हो जाएगी। यदि शुक्र बुध या किसी अशुभ ग्रह के साथ है तो जातक सत्रह साल की उम्र से नशे और किसी रोग का शिकार हो जाएगा।

उपाय:
(1) घर की नींव चांदी और शहद दबाएं।
(2) पत्नी (या स्त्री है तो स्वयं) लाल चूड़ियाँ पहनें जिनमें चांदी की धारियां हों अथवा चांदी चूड़ियाँ जिन पर लाल रंग की डिजाइनिंग हो।
(3) किसी नीम के पेड़ के नीचे 43 दिनों के लिए चांदी का टुकड़ा दबाएं।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का दसवें भाव में फल

इस घर में शुक्र जातक को लालची, संदिग्ध और हस्तकला में रुचि लेने वाला बनाता है। जातक अपनी पत्नी के मार्गदर्शन के तहत कार्य करेगा। जब तक पत्नी जातक के साथ होगी हर मुसीबत जातक से दूर रहेगी। कोई मोटर कार दुर्घटना या अन्य कोई नुकशान नहीं होगा। शनि से जुड़े व्यापार और चीजें फायदेमंद साबित होंगी।

उपाय:
(1) निजी अंगों को दही से धुलें।
(2) घर की पश्चिमी दीवार मिट्टी की होनी चाहिए।
(3) शराब, अण्डा और मांशाहारी भोजन करें।
(4) बीमार होने की दशा में काले रंग की गाय का दान करना चाहिए।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का ग्यारहवें भाव में फल

इस घर में शुक्र शनि और बृहस्पति से प्रभावित होता है, क्योंकि यह घर बृहस्पति और शनि के अंतर्गत आता है। यह घर तीसरे भाव से देखा जाता है जो कि मंगल और बुध का घर है। जातक की पत्नी अपने भाई के माध्यम से, बहुत फायदेमंद साबित होगी।

उपाय:
(1) बुध का उपाय उपयोगी रहेगा।
(2) शनिवार को तेल का दान करें।
(3) आम तौर पर जातक के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम हो सकती है। ऐसे में जातक को दूध में सोने के गरम टुकडे को बुझाकर दूध पीना चाहिए।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का बारहवें भाव में फल

इस घर उच्च का शुक्र बहुत लाभकारी परिणाम देता है। जातक के पास ऐसी पत्नी होगी जो मुसीबत के समय में किसी ढाल की तरह कार्य करेगी। महिलाओं से मदद लेना जातक के लिए अत्यधिक फायदेमंद साबित होगा। जातक को सरकार से सहयोग मिलेगा। शुक्र की बृहस्पति से शत्रुता के कारण पत्नी को स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं। दूसरे या छठवें भाव में स्थित बुध जातक को रोगी बनाता है लेकिन जातक को साहित्यिक और काव्य प्रतिभा प्रदान करता है। ऐसा जातक 59 साल की उम्र में उच्च आध्यात्मिक शक्तियों प्राप्त करता है और 96 वर्षों तक जीवित रहता है।

उपाय:
(1) पत्नी (स्त्री) नीला फूल या फल सूर्यास्त (शाम) के समय किसी सुनसान जगह पर खोद कर दबाए, इससे स्वास्थ अच्छा रहेगा।
(2) यदि पत्नी दूसरों को दान देती है तो वह पति के लिए किसी रक्षा की दीवार की तरह काम करेगी।
(3) गाय पालें और दान भी करें।
(4) पत्नी को प्यार, इज्जत और सम्मान दें।

 

शनि ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

लाल किताब के अनुसार शनि ग्रह से संबंधित प्रभाव और उपाय। ज्योतिष शास्त्र में शनि को क्रूर पापी ग्रह माना गया है। लाल किताब जो कि पूरी तरह से उपाय आधारित ज्योतिष पद्धति है। इसमें शनि ग्रह के विभिन्न भावों में फल और उनके प्रभाव के बारे में विस्तार से व्याख्या की गई है।

लाल किताब में शनि ग्रह

लाल किताब में शनि ग्रह को पापी ग्रहों का सरताज कहा जाता है। राहु और केतु दोनों इसके सेवक हैं। यदि यह तीनों ग्रह मिल जाये तो एक खतरनाक स्थिति बन जाया करती है। शनि शुक्र का प्रेमी और शुक्र इसकी प्रेमिका है। बुध अपनी आदत के अनुसार इन पापी ग्रहों के साथ मिलकर इनके जैसा ही बन जाया करता है। इसलिए यदि राहु, केतु शनि के सेवक हैं तो बुध, शुक्र शनि के मित्र हैं। अर्थात् शनि, राहु, केतु, बुध और शुक्र हर शरारत और फसाद की जड़ हो सकते हैं।

लाल किताब में शनि ग्रह का महत्व

ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को कलियुग का न्यायाधीश कहा जाता है। वे परम दण्डाधिकारी हैं और मनुष्य को उसके पाप और बुरे कार्यों के अनुसार दंडित करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनि देव के कारण ही भगवान गणेश के सिर कटा। भगवान राम को भी शनिदेव के कारण ही वनवास जाना पड़ा। महाभारत काल में पांडवों को जंगल में भटकना पड़ा, उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को कष्ट झेलने पड़े, राजा हरिशचंद्र दर-दर भटके और राजा नल और रानी दमयंती को जीवन में दुःखों का सामना करना पड़ा था। शनि को सूर्य पुत्र कहा जाता है। वैदिक ज्योतिष में शनि को क्रूर पापी ग्रह कहा गया है लेकिन यह सर्वाधिक शुभ फलदायी ग्रह भी है। लाल किताब के अनुसार दशम और एकादश भाव शनि के भाव हैं। शनि को मकर और कुंभ दो राशियों का स्वामित्व प्राप्त है। कुंडली के प्रथम भाव पर मेष राशि का आधिपत्य है और इस राशि में शनि नीच का होता है। शुभ योग होने पर इस भाव का शनि व्यक्ति को मालामाल कर देता है, जबकि अशुभ योग होने पर बर्बाद करके रख देता है। सप्तम भाव में राहु और केतु के होने पर शनि और भी अशुभ फलदायी हो जाता है। यदि दशम या एकादश भाव में सूर्य हो तो, मंगल शुक्र भी अशुभ फल देने लगते हैं।

लाल किताब के अनुसार शनि ग्रह के कारकत्व

शनि को कर्म भाव का स्वामी कहा जाता है। यह सेवा और नौकरी का कारक होता है। काला रंग, काला धन, लोहा, लोहार, मिस्त्री, मशीन, कारखाना, कारीगर, मजदूर, चुनाई करने वाला, लोहे के औजार सामान, जल्लाद, डाकू, चीर फाड़ करने वाला डॉक्टर, चालाक, तेज नज़र, चाचा, मछली, भैंस, भैंसा, मगरमच्छ, सांप, जादू, मंत्र, जीव हत्या, खजूर, अलताश का वृक्ष, लकड़ी, छाल, ईंट, सीमेंट, पत्थर, सूती, गोमेद, नशीली वस्तु, मांस, बाल, खाल, तेल, पेट्रोल, स्पिरिट, शराब, चना, उड़द, बादाम, नारियल, जूता, जुराब, चोट, हादसा यह सब शनि से संबंधित है।

शनि ग्रह का संबंध

शनि भैरों महाराज का प्रतीक और पापी ग्रहों के गिरोह का सरदार ग्रह है। काला धन, लोहा, तेल, शराब, मांस और मकान आदि शनि से संबंधित वस्तुएँ हैं। वहीं भैंस, सांप, मछली, मजदूर आदि शनि से संबंधित जीव हैं। शनि जिस पर प्रसन्न हो जाये उसे निहाल कर दे और अगर क्रोधी हो जाये तो बर्बाद कर दे।

शनि ग्रह के अशुभ होने के लक्षण

शनि के अशुभ प्रभाव से विवादों की वजह से भवन बिक जाता है।

मकान या भवन का हिस्सा गिर जाता है या क्षतिग्रस्त हो जाता है।

अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं।

घर या दुकान में अचानक आग लग सकती है।

किसी भी प्रकार से धन और संपत्ति का नाश होने लगता है।

मनुष्य पराई स्त्री से संबंध रखकर बर्बाद हो जाता है।

जुआ-सट्टे की लत लगने से व्यक्ति कंगाल हो जाता है।

कानूनी या आपराधिक मामले में जेल हो जाती है।

शराब के अत्यधिक सेवन से व्यक्ति की सेहत खराब हो जाती है।

किसी हादसे में व्यक्ति अपंग हो सकता है।

लाल किताब में शनि ग्रह से जुड़े टोटके उपाय

शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए हनुमान जी की सेवा और प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।

शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं।

तिल, उड़द, लोहा, भैंस, तेल, काले कपड़े, काली गाय और जूते भी दान में देना चाहिए।

मांगने वाले को लोहे का चिमटा, तवा, अंगीठी दान में देना चाहिए।

जातक मस्तक पर तेल की बजाय दूध या दही का तिलक लगाया करें तो अति लाभदायक होगा।

काले कुत्ते को रोटी खिलाना, पालना और उसकी सेवा करने से लाभ होगा।

मकान के अंत में अंधेरी कोठी शुभ होगी।

मछलियों को दाना या चावल डालना लाभकारी होता है।

चावल या बादाम बहते पानी में डालने से लाभ होगा।

शराब, मांस और अंडे से सख्त परहेज करें।

मशीनरी और शनि संबंधित अन्य वस्तुओं से लाभ होगा।

प्रतिदिन कौअे को रोटी खिलाएं।

दांत, नाक और कान सदैव साफ रखें।

अंधे, दिव्यांग, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार करें।

छाया पात्र दान करें यानि एक कटोरी या अन्य पात्र में सरसों का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापों की क्षमा मांगते हुए रख आएं।

भूरे रंग की भैंस रखना लाभकारी होगी।

मजदूर, भैंस और मछली की सेवा से लाभ होगा।

शनि हर राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहता है, इसलिए जब शनि मंदा हो या जातक अपने कर्मों द्वारा उसे मंदा कर ले, तो शनि 3 राशियों को पार करने के समय में व्यक्ति को बहुत दुःख और परेशानी पहुंचाता है। इसी को साढ़े सात वर्ष की साढ़े साती कहा गया है। चूंकि शनि एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता है इसलिए तीन राशियों में यह कुल साढ़े सात वर्ष की अवधि गुजारता है। जब शनि चंद्र से प्रथम राशि में आता है तो साढ़े साती प्रारंभ होती है और जब चंद्र से अगली राशि में से निकलने के बाद शनि की साढ़े साती खत्म हो जाती है।

हम आशा करते हैं शनि ग्रह पर आधारित लाल किताब से संबंधित यह जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

लाल किताब के अनुसार शनि का पहले भाव में फल

पहला घर सूर्य और मंगल ग्रह से प्रभावित होता है। पहले घर में शनि तभी अच्छे परिणाम देगा जब तीसरे, सातवें या दसवें घर में शनि के शत्रु ग्रह हों। यदि, बुध या शुक्र, राहू या केतू, सातवें भाव में हों तो शनि हमेशा अच्छे परिणाम देगा। यदि शनि नीच का हो और जातक के शरीर में बाल अधिक हों तो जातक गरीब होगा। यदि जातक अपना जन्मदिन मनाता है तो बहुत बुरे परिणाम मिलेंगे हालांकि जातक दीर्घायु होगा।

उपाय:
(1) शराब और मांसाहारी भोजन से स्वयं को बचाएं।
(2) नौकरी और व्यवसाय में लाभ के लिए जमीन में सुरमा दफनायें।
(3) सुख और समृद्धि के लिए बंदरों की सेवा करें।
(4) बरगद के पेड़ की जड़ों पर मीठा दूध चढानें से शिक्षा और स्वास्थ्य में सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।

लाल किताब के अनुसार शनि का दूसरे भाव में फल

जातक बुद्धिमान, दयालु और न्यायकर्ता होगा। वह धन का आनंद लेगा और धार्मिक स्वभाव का होगा। भले ही शनि उच्च का हो या नीच का, यह नतीजा आठवें भाव में बैठे ग्रह पर निर्भर करेगा। जातक की वित्तीय स्थिति सातवें भाव में स्थित ग्रह पर निर्भर करेगी। परिवार में पुरुष सदस्यों की संख्या छठवें भाव और आयु आठवें भाव पर निर्भर करेगी। जब शनि इस भाव में नीच का हो तो शादी के बाद उसके ससुराल वाले परेशान होंगे।

उपाय:
(1) लगातार 43 दिनों तक नंगे पांव मंदिर जाएं।
(2) माथे पर दही या दूध का तिलक लगाएं।
(3) साँप को दूध पिलाए।

लाल किताब के अनुसार शनि का तीसरे भाव में फल

इस घर में शनि अच्छा परिणाम देता है। यह घर मंगल ग्रह का पक्का घर है। जब केतु अपने इस घर को देखता है तो यहां बैठा शनि बहुत अच्छे परिणाम देता है। जातक स्वस्थ, बुद्धिमान और बहुत सरल स्वभाव का होता है। यदि जातक धनवान होगा तो उसके घर में पुरुष सदस्यों की संख्या कम होगी। गरीब होने की दशा में परिणाम उल्टा होगा। यदि जातक शराब और मांशाहार से दूर रहता है तो वह लम्बे और स्वस्थ जीवन का आनंद उठाएगा।

उपाय:
(1) तीन कुत्तों की सेवा करें।
(2) आँखों की दवाएं मुफ्त बांटें।
(3) घर में एक कमरे में हमेशा अंधेरा रखना बहुत फायदेमंद साबित होगा।

लाल किताब के अनुसार शनि का चौथे भाव में फल

यह भाव चंद्रमा का घर होता है। इसलिए शनि इस भाव में मिलेजुले परिणाम देता है। जातक अपने माता पिता के प्रति समर्पित होगा और प्रेम मुहब्बत से रहने वाला होगा। जब कभी जातक बीमार होगा तो चंद्रमा से संबंधित चीजें फायदेमंद होंगी। जातक के परिवार से कोई व्यक्ति चिकित्सा विभाग से संबंधित होगा। जब शनि इस भाव में नीच का होकर स्थित हो तो शराब पीना, सांप मारना और रात के समय घर की नीव रखना जैसे काम बहुत बुरे परिणाम देते हैं। रात में दूध पीना भी अहितकर है।

उपाय:
(1) साँप को दूध पिलाएं अथवा दूध चावल किसी गाय या भैंस को खिलाएं।
(2) किसी कुएं में दूध डालें और रात में दूध पियें।
(3) चलते पानी में रम डालें।

लाल किताब के अनुसार शनि का पांचवें भाव में फल

यह भाव सूर्य का घर होता है। जो शनि का शत्रु ग्रह है। जातक घमंडी होगा। जातक को 48 साल तक घर का निर्माण नहीं करना चाहिए, अन्यथा उसके बेटे को तकलीफ होगी। उसे अपने बेटे के बनवाए या खरीदे हुए घर में रहना चाहिए। जातक को अपने पैतृक घर में बृहस्पति और मंगल ग्रह से संबंधित वस्तुएं रखनी चाहिए, इससे उसके बच्चों का भला होता है। यदि जातक के शरीर में बाल अधिक होंगे तो जातक बेईमान हो जाएगा।

उपाय:
(1) बेटे के जन्मदिन पर नमकीन चीजें बाटें।
(2) बादाम का एक हिस्सा मंदिर में बाटें और दूसरा हिस्सा लाकर घर में रख दें।

लाल किताब के अनुसार शनि का छठें भाव में फल

यदि शनि ग्रह से संबंधित काम रात में किया जाय तो हमेशा लाभदायक परिणाम मिलेंगे। यदि शादी के 28 साल के बाद होगी तो अच्छे परिणाम मिलेंगे। यदि केतु अच्छी स्थित में हो जातक धन, लाभदायक यात्रओं और बच्चों के सुख का आनंद पाता है। यदि शनि नीच का हो तो शनि से सम्बंधित चीजें जैसे चमडा, लोहा आदि को लाना हानिकारक होता है, खासकर तब, जब शनि वर्षफल में छठवें भाव में हो।

उपाय:
(1) एक काला कुत्ता पालें और उसे भोजन करायें।
(2) नदी या बहते पानी में नारियल और बादाम बहाएं।
(3) सांप की सेवा बच्चों के कल्याण के लिए फायदेमंद साबित होगी।

लाल किताब के अनुसार शनि का सातवें भाव में फल

यह घर बुध और शुक्र से प्रभावित होता है, दोनो ही शनि के मित्र ग्रह हैं। इसलिए शनि इस घर में बहुत अच्छा परिणाम देता है। शनि से जुड़े व्यवसाय जैसे मशीनरी और लोहे का काम बहुत लाभदायक होगा। यदि जातक अपनी पत्नी से अच्छे संबंध रखता है तो वह अमीर और समृद्ध होगा और लंबी आयु के साथ अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेगा। यदि बृहस्पति पहले घर में हो तो सरकार से लाभ होगा। यदि जातक व्यभिचारी हो जाता है या शराब पीने लगता है तो शनि नीच और हानिकर हो जाता है। यदि जातक 22 साल के बाद शादी करता है तो उसकी दृष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है।

उपाय:
(1) किसी बांसुरी में चीनी भरें और किसी सुनसान जगह जैसे कि जंगल आदि में दफना दें।
(2) काली गाय की सेवा करें।

लाल किताब के अनुसार शनि का आठवें भाव में फल

आठवें घर में कोई भी ग्रह शुभ नहीं माना जाता है। जातक दीर्घायु होगा लेकिन उसके पिता की उम्र कम होती है और जातक के भाई एक-एक करके शत्रु बनते जाते हैं। यह घर शनि का मुख्यालय माना जाता है, लेकिन यदि बुध, राहू और केतु जातक की कुंडली में नीच के हैं तो शनि बुरा परिणाम देगा।

उपाय:
(1) अपने साथ चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें।
(2) नहाते समय पानी में दूध डालें और किसी पत्थर या लकड़ी के आसन पर बैठ कर स्नान करें।

लाल किताब के अनुसार शनि का नौवें भाव में फल

जातक के तीन घर होंगे। जातक एक सफल यात्रा संचालक (टूर ऑपरेटर) या सिविल इंजीनियर होगा। वह एक लंबे और सुखी जीवन का आनंद लेगा साथ ही जातक के माता - पिता भी सुखी जीवन का आनंद लेंगे। यहां स्थित शनि जातक की तीन पीढ़ियों शनि के दुष्प्रभाव से बचाएगा। अगर जातक दूसरों की मदद करता है तो शनि ग्रह हमेशा अच्छे परिणाम देगा। जातक के एक बेटा होगा, हालांकि वह देर से पैदा होगा।

उपाय:
(1) बहते पानी में चावल या बादाम बहाएं।
(2) बृहस्पति से संबंधित (सोना, केसर) और चंद्रमा से संबंधित (चांदी, कपड़ा) का काम अच्छे परिणाम देंगे।

लाल किताब के अनुसार शनि का दसवें भाव में फल

यह शनि का अपना घर है, जहां शनि अच्छा परिणाम देगा। जातक तब तक धन और संपत्ति का आनंद लेता रहेगा, जब तक कि वह घर नहीं बनवाता। जातक महत्वाकांक्षी होगा और सरकार से लाभ का आनंद लेगा। जातक को चतुराई से काम लेना चाहिए और एक जगह बैठ कर काम करना चाहिए। तभी उसे शनि से लाभ और आनंद मिल पाएगा।

उपाय:
(1) प्रतिदिन मंदिर जाएं।
(2) शराब, मांस और अंडे से परहेज करें।
(3) दस अंधे लोगों को भोजन कराएं।

लाल किताब के अनुसार शनि का ग्यारहवें भाव में फल

जातक के भाग्य का निर्धारण उसकी उम्र के अडतालीसवें वर्ष में होगा। जातक कभी भी निःसंतान नहीं रहेगा। जातक चतुराई और छल से पैसे कमाएगा। शनि ग्रह राहु और केतु की स्थिति के अनुसार अच्छा या बुरा परिणाम देगा।

उपाय:
(1) किसी महत्वपूर्ण काम को शुरू करने से पहले 43 दिनों तक तेल या शराब की बूंदें जमीन पर गिराएं।
(2) शराब पियें और अपना नैतिक चरित्र ठीक रखें।

लाल किताब के अनुसार शनि का बारहवें भाव में फल

शनि इस घर में अच्छा परिणाम देता है। जातक के दुश्मन नहीं होंगे। उसके कई घर होंगे। उसके परिवार और व्यापार में वृद्धि होगी। वह बहुत अमीर हो जाएगा। हालांकि, यदि जातक शराब पिए, मांशाहार करे या अपने घर के अंधेरे कमरे में रोशनी करे तो शनि नीच का हो जाएगा।

उपाय:
(1) किसी काले कपड़े में बारह बादाम बांधकर उसे किसी लोहे के बर्तन में भरकर किसी अंधेरे कमरे में रखने से अच्छे परिणाम मिलेंगे।

 

राहू ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

लाल किताब में राहु ग्रह को नष्टकारी ग्रह बताया गया है। राहु का प्रभाव टेवा (कुंडली) के 12 खानों में भिन्न-भिन्न रूप से पड़ता है। परंतु ऐसा नहीं है कि राहु व्यक्ति को सदैव बुरे फल देता है। यदि यह ग्रह कुंडली में उत्तम हो तो जातक को इसके अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि कुंडली के 12 भाव व्यक्ति के जीवन से लेकर मरण तक की यात्रा को बताते हैं। इसलिए हमारे लिए यह जानना आवश्यक हो जाता है कि लाल किताब के अनुसार राहु का 12 भावों में प्रभाव किस प्रकार से पड़ता है।

लाल किताब में राहु ग्रह का महत्व

ज्योतिष विज्ञान के क्षेत्र में लाल किताब अपने आसान उपाय के लिए अधिक प्रचलित है। हालाँकि ज्योतिष से संबंधित इस किताब में विस्तृत ज्ञान है। परंतु यह वैदिक ज्योतिष से भिन्न है। लाल किताब के अनुसार राहु ग्रह सब कुछ नष्ट करने वाला ग्रह है। परंतु यह अच्छे और बुरे विचारों को जन्म देने वाला ग्रह है।

वहीं वैदिक ज्योतिष के अनुसार, राहु एक छाया ग्रह है जिसका कोई भी भौतिक स्वरूप नहीं है। हिन्दू ज्योतिष में राहु को एक पापी ग्रह माना गया है। ज्योतिष में राहु ग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन मिथुन राशि में यह उच्च होता है और धनु राशि में यह नीच भाव में होता है।

लाल किताब के अनुसार, सूर्य के साथ शनि या शुक्र हो तो राहु का प्रभाव मंदा हो जाता है। हालाँकि कमजोर राहू चंद्रमा के उपाय के लिए सहायक है। क्योंकि चंद्रमा से राहु शांत होता है। परंतु राहु को शांत करने में चंद्रमा का प्रभाव कमज़ोर हो जाता है।

यदि किसी जातक की टेवा में मंगल मजबूत हो तो वह राहू को दबाकर रखेगा। लाल किताब के अनुसार, बुध शनि और केतु राहु के मित्र ग्रह हैं। जबकि सूर्य, मंगल और शुक्र राहु के दुश्मन ग्रह माने जाते हैं।

राहु ग्रह के कारकत्व

मनुष्य के मस्तिष्क में राहु अच्छे-बुरे विचारों को जन्म देता है। इसका वर्ण नीला है। इसलिए नीले रंग का विष, नीला थोथा आदि जो अपना प्रभाव दिखाकर नीला रंग देते हैं वे सभी राहु का प्रतिनिधित्व करते हैं। हाथी, बिल्ली, सिक्का, शत्रु, बिजली, मक्कारी नीचता ये सभी राहु ग्रह के प्रतीक माने जाते हैं।

लाल किताब के अनुसार राहु ग्रह का संबंध

लाल किताब के अनुसार, राहु ग्रह का संबंध विद्या की देवी माँ सरस्वती से है। इसके साथ ही राहु ख़ुफ़िया पुलिस, ख़ुफ़िया महकमा, जेल, ससुराल, भूचाल, जौं, सरसों, जंगली चूहा, चालबाज़, कच्चा कोयला, काला कुत्ता, गंदी नाली, लोहे में लगने वाली जंग, काना, लंगड़ा, प्लेग, बुखार, भय आदि चीज़ों का संबंध राहु ग्रह से दर्शाया जाता है। राहु का संबंध गोमेद रत्न, आठ मुखी रुद्राक्ष और नागरमोथा की जड़ी से है।

लाल किताब के अनुसार राहु ग्रह का प्रभाव

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु ग्रह मजबूत होता है तो जातक को इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है तथा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। राहु ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ बली होता है। जबकि इसके विपरीत यदि किसी जातक की कुंडली में राहु की स्थिति कमज़ोर होती है अथवा वह पीड़ित है तो जातक के लिए यह अच्छा नहीं माना जाता है।

राहु अपने शत्रु ग्रहों के साथ कमज़ोर होता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में राहु का प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से पड़ता है। आइए जानते हैं राहु के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या हैं:

सकारात्मक प्रभाव - यदि राहु किसी जातक की कुंडली में शुभ हो तो व्यक्ति के मस्तिष्क में शुभ विचार उत्पन्न होते हैं जिससे वह अच्छे कार्यों को अंजाम देता है। यदि किसी जातक की बुद्धि सही दिशा में लगे वह ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकता है। राहु के सकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति बुद्धि से काम लेता है और यदि कोई व्यक्ति अपनी बुद्धि के कार्य करता है तो बड़े से बड़ा पहाड़ हिला सकता है।

नकारात्मक प्रभाव - किसी व्यक्ति के टेवा में कमज़ोर राहु के कारण उसे कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये समस्याएँ मानसिक और शारीरिक रूप से भी हो सकती हैं। पीड़ित राहु के कारण हिचकी, पागलपन, आँतों की समस्या, अल्सर, गैस्ट्रिक आदि की समस्याएँ जन्म लेती हैं। अतः कुंडली में राहु ग्रह को मजबूत करना चाहिए।

राहु ग्रह के लिए लाल किताब के उपाय

ज्योतिष में लाल किताब के उपाय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। अतः लाल किताब में राहु ग्रह की शांति के टोटके जातकों के लिए बहुत ही लाभकारी और सरल होते हैं। अतः इन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से स्वयं कर सकता है। राहु ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय करने से जातकों को राहु ग्रह के सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। राहु ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय निम्नलिखित हैंः

चाँदी का सिक्का सदैव अपने पास रखें

चलते दरिया (बहते हुए पानी) में राहु की वस्तुओं को बहाएँ

गंगा स्नान करें

काले कुत्ते को पालें अथवा उसे खाना खिलाएँ

अंधे लोगों का सहारा बनें

मांस-मछली एवं शराब इत्यादि मादक पदार्थों का सेवन करें

भ्रष्टाचार से सदैव दूर रहें

निर्धन व्यक्ति की आर्थिक रूप से सहायता करें

लोहे का छल्ला अथवा कड़ा पहनना लाभदायक रहेगा।

लाल किताब के उपाय ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित हैं। अतः ज्योतिष में इस पुस्तक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उम्मीद है कि राहु ग्रह से संबंधित लाल किताब में दी गई यह जानकारी आपके कार्य को सिद्ध करने में सफल होगी।

लाल किताब के अनुसार राहू का पहले भाव में फल

पहला घर मंगल और सूर्य से प्रभावित होता है, यह घर किसी सिंहासन की तरह होता है। पहले घर में बैठा ग्रह सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। जातक अपनी योग्यता से बडा पद प्राप्त करेगा। उसे सरकार से भी अच्छे परिणाम मिलेंगे। इस घर में राहू उच्च के सूर्य के समान परिणाम देगा। लेकिन सूर्य जिस भाव में बैठा है उस भाव के फल प्रभावित होंगे। यदि मंगल, शनि और केतू कमजोर हैं तो राहू बुरे परिणाम देगा अन्यथा यह पहले भाव में अच्छे परिणाम देगा। यदि राहू नीच का हो तो जातक को कभी भी ससुराल वालों से बिजली के उपकरण या नीले कपडे नहीं लेने चाहिए, अन्यथा उसके पुत्र पर बुरा प्रभाव पडता है। राहू के दुष्परिणाम 42 साल की उम्र तक मिलते हैं।

उपाय:
(1) बहते पानी में 400 ग्राम सुरमा बहाएं।
(2) गले में चांदी पहनें।
(3) 1:4 के अनुपात में जौ में दूध मिलाए और बहते पानी में बहाएं।
(4) बहते पानी में नारियल बहाएं।

लाल किताब के अनुसार राहू का दूसरे भाव में फल

यदि दूसरे घर में राहू शुभ अवस्था में हो तो जातक पैसा एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करता है और किसी राजा की तरह जीवन जीता है। जातक दीर्घायु होता है। दूसरा भाव बृहस्पति और शुक्र से प्रभावित होता है। यदि बृहस्पति शुभ हो तो जातक अपनी प्रारंभिक अवस्था में धन से युक्त आराम भरी जिन्दगी जीता है। यदि राहू नीच का हो तो जातक गरीब होता है, उसका पारिवारिक जीवन खराब होता है। वह पेट के विकारों से परेशान होता है। जातक पैसे बचाने में असमर्थ होता है और उसकी मृत्यु किसी हथियार से होती है। उसके जीवन के दसवें, इक्कीसवें और बयालीसवें वर्ष में चोरी आदि माध्यमों से उसका धन खो जाता है।

उपाय:
(1) चांदी की एक ठोस गोली अपनी जेब में रखें।
(2) बृहस्पति से सम्बंधित चीजें जैसे सोना, पीले कपड़े और केसर आदि उपयोग में लाएं।
(3) माँ के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखें।
(4) शादी के बाद ससुराल वालों से कोई बिजली का उपकरण लें।

लाल किताब के अनुसार राहू का तीसरे भाव में फल

यह राहु का पक्का घर है। तीसरा घर बुध और मंगल से प्रभावित होता है। यदि यहां राहू शुभ हो तो, बहुत धन दौलत वाला और दीर्घायु होता। वह एक निडर और वफादार दोस्त होता है। वह सपनों के माध्यम से भविष्य देख सकेगा। वह कभी नि:संतान नहीं होगा। वह शत्रुओं पर विजय पाने वाला होगा। वह कभी भी कर्जदार नहीं रहेगा। वह अपने पीछे सम्पत्ति छोड जाएगा। अपने जीवन के 22वें वर्ष में वह प्रगति करेगा। लेकिन अगर राहू तीसरे घर में अशुभ है तो उसके भाई और रिश्तेदार अपने पैसे बर्बाद करेंगे। वह किसी को पैसे उधार देगा तो वापस नहीं मिलेंगे। जातक में वाणी दोष होगा और वह नास्तिक होगा। यदि सूर्य और बुध भी राहू के साथ तीसरे घर में हों तो उसकी बहन अपनी उम्र के 22वें या 32वें साल में विधवा हो सकती है।

उपाय:
(1) घर में कभी भी हाथीदांत या हाथीदांत की वस्तुएं रखें।

लाल किताब के अनुसार राहू का चौथे भाव में फल

यह घर चंद्रमा का है जो कि राहू शत्रु है। जब इस घर में रहु शुभ हो तो जातक बुद्धिमान, अमीर और अच्छी चीजों पर पैसे खर्च करने वाला होगा। तीर्थ यात्रा पर जाना जातक के लिए फायदेमंद होगा। यदि शुक्र भी शुभ हो तो शादी के बाद जातक के ससुराल वाले भी अमीर हो जाते हैं और जातक को उनसे भी लाभ मिलता है। यदि चंद्रमा उच्च का हो तो जातक बहुत अमीर हो जाता है और बुध से संबंधित कामों से बहुत लाभ कमाता है। यदि राहू नीच का या अशुभ हो और चंद्रमा कमजोर हो तो जातक गरीब होता है और जातक की मां परेशान होती है। कोयले का एकत्रीकरण, शौचालय फेरबदल, जमीन में तंदूर बनाना और छ्त में फेरबदल करना हानिकारक होगा।

उपाय:
(1) चांदी पहनें।
(2) 400 ग्राम धनिया या बादाम दान करें अथवा दोनो को पानी में बहाएं।

लाल किताब के अनुसार राहू का पांचवें भाव में फल

पांचवां घर सूर्य का होता है जो पुरुष संतान का संकेतक है। यदि राहू शुभ हो तो जातक अमीर, बुद्धिमान और स्वस्थ होता है। वह अच्छी आमदनी और अच्छी प्रगति का आनंद पाता है। जातक भक्त या दार्शनिक होता है। यहां स्थित नीच का राहू संतान में बाधा दिखाता है। पुत्र के जन्म के बाद जातक की पत्नी को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी संभव है। यदि बृहस्पति भी पांचवें भाव में स्थित हो तो जातक के पिता को कष्ट होगा।

उपाय:
(1) अपने घर में चांदी से बना हाथी रखें।
(2) शराब, मांशाहार, अण्डे के सेवन और व्यभिचार से बचें।
(3) अपनी जीवनसाथी से ही दो बार शादी करें।

लाल किताब के अनुसार राहू का छठें भाव में फल

इस घर बुध या केतु से प्रभावित होता है। राहू यहां उच्च का होता है और अच्छे परिणाम देता है। जातक सभी प्रकार की झंझटों या मुसीबतों के मुक्त होगा। जातक कपड़ों पर पैसा खर्च करेगा। जातक बुद्धिमान और विजेता होगा। जब राहु अशुभ हो तो वह अपने भाइयों या दोस्तों को नुकसान पहुंचाएगा। जब बुध या मंगल ग्रह बारहवें भाव में हों तो राहु बुरा परिणाम देता है। जातक विभिन्न बीमारियों या धनहानि से ग्रस्त होता है। किसी काम पर जाते समय छींक का होना जातक के लिए अशुभफलदायी होगा।

उपाय:
(1) एक काला कुत्ता पालें।
(2) अपनी जेब में काला सुरमा रखें।
(3) भाइयों / बहनों को कभी नुकसान पहुंचाएं।

लाल किताब के अनुसार राहू का सातवें भाव में फल

जातक अमीर होगा लेकिन पत्नी बामार होगी। वह अपने दुश्मनों पर विजयी होगा। उम्र के इक्कीस साल से पहले शादी का होना अशुभ होगा। जातक के सरकार के साथ अच्छे संबंध होंगे। लेकिन यदि जातक राहू से संबंधित व्यवसाय जैसे बिजली के उपकरणों के व्यापार से जुडेगा तो उसे नुकसान होगा। जातक सिर दर्द से पीड़ित होगा। यदि बुध शुक्र अथवा केतू ग्यारहवें भाव में हों तो राहू बहन, पत्नी या बेटे को नष्ट करेगा।

उपाय:
(1) 21 साल की उम्र के पहले शादी करें।
(3) नदी में छह नारियल प्रवाहित करें।

लाल किताब के अनुसार राहू का आठवें भाव में फल

आठवें घर का संबध शनि और मंगल ग्रह से होता है। इसलिए इस भाव का राहू अशुभ फल देता है। जातक अदालती मामलों में बेकार में पैसे खर्च करता है।परिवारिक जीवन भी प्रतिकूलता से प्रभावित होता है। यदि मंगल ग्रह शुभ हो तथा पहले या आठवें घर में हो अथवा शुभ शनि आठवें घर में हो तो जातक बहुत अमीर होगा।

उपाय:
(1) चांदी का एक चौकोर टुकड़ा पास रखें।
(2) सोते समय तकिये के नीचे सौंफ रखें।
(3) बिजली का काम या बिजली विभाग में काम करें।

लाल किताब के अनुसार राहू का नौवें भाव में फल

नौवां घर बृहस्पति से प्रभावित होता है। यदि जातक का अपने भाइयों और बहनों के साथ अच्छा संबंध है तो यह यह फायदेमंद होगा, अन्यथा जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा। यदि जातक धार्मिक स्वभाव का नहीं है तो जातक की संतान जातक के लिए बेकार रहेगी। शनि से संबम्धित व्यापार फायदेमंद रहेगा। यदि बृहस्पति पांचवें या ग्यारहवें घर में हो तो यह निष्प्रभावी होगा। यदि राहू अशुभ होकर नौवें भाव में हो तो पुत्र प्राप्ति की संभावनाएं कम रहती हैं, खासकर तब और जब जातक अपने किसी सगे रिश्तेदार कि खिलाफ कोई अदालती मामला दायर करता है। यदि राहू नौवें भाव में हो और पहला भाव खाली हो तो जातक का स्वास्थ्य पीडित होता है और जातक उम्र में बडे लोगों के द्वारा अपमानित होता है और मानसिक रूप से प्रताडित होता है।

उपाय:
(1) प्रतिदिन केसर का तिलक लगाएं।
(2) सोना पहनें।
(3) हमेशा घर में एक कुत्ता पालें (इससे आपकी संतान का बचाव होगा)
(4) ससुराल वालों से अच्छे संबंध बनाकर रखें।

लाल किताब के अनुसार राहू का दसवें भाव में फल

सिर के ऊपर कुछ पहनना दसम भाव में स्थित दुर्बल राहु का प्रभाव देता है। राहू का अच्छा या बुरा परिणाम शनि की स्थिति पर निर्भर करेगा। यदि शनि शुभ है तो जातक बहादुर, दीर्घायु, और अमीर होता है तथा उसे सभी प्रकार से सम्मान मिलता है। यदि दसवें भाव में राहू चन्द्रमा के साथ हो तो यह राज योग बनाता है। जातक अपने पिता के लिए भाग्यशाली होता है। यदि यहां पर राहू अशुभ हो तो जातक की मां पर बुरा असर पडता है और जातक का स्वास्थ्य भी खराब होगा। यदि चंद्रमा चतुर्थ भाव में अकेला हो तो जातक की आंखों पर बुरा प्रभाव पडेगा। जातक सिर दर्द से पीड़ित होगा और उसे किसी काले व्यक्ति के द्वारा धन हानि होगी।

उपाय:
(1) नीली या काली टोपी पहनें।
(2) सिर को ढक कर रखें।
(3) किसी मंदिर में 4 किलो या 400 ग्राम खांड चढाएं अथवा पानी में बहाएं।
(4) अंधे लोगों को खाना खिलाएं।

लाल किताब के अनुसार राहू का ग्यारहवें भाव में फल

ग्यारहवां घर शनि और बृहस्पति दोनो के प्रभाव में होता है। जब तक जातक के पिता जीवित हैं तब तक जातक अमीर होगा। वैकल्पिक रूप से, बृहस्पति की वस्तुएं रखना सहयोगी सिद्ध होंगी। जातक के दोस्त अच्छे नहीं होंगे। उसे मतलबी लोगों से पैसा मिलेगा। पिता की मृत्यु के बाद जातक को गले में सोना पहनना चाहिए। यदि राहू के साथ नीच का मंगल ग्यारहवें भाव में हो तो जातक के जन्म के समय घर में सारी चीजें होंगी लेकिन धीरे धीरे करके सारी चीजें बरबाद होनें लगेंगी। यदि ग्यारहवें भाव में अशुभ राहू हो तो जातक के अपने पिता सम्बंध ठीक नहीं होंगें यहां तक की जातक उन्हें मार भी सकता है। दूसरे भाव में स्थित ग्रह शत्रु की तरह कार्य करेंगे। यदि बृहस्पति या शनि तीसरे या ग्यारहवें भाव में हों तो शरीर में लोहा पहनें और चांदी की गिलास में पानी पिएं। पांचवें भाव में स्थित केतू बुरे परिणाम देगा। कान, रीढ़, मूत्र से संबंधित समस्याएं या रोग हो सकते हैं। केतु से संबंधित व्यापार में नुकसान हो सकता है।

उपाय:
(1) लोहा पहनें और पीने के पानी के लिए चांदी का गिलास का प्रयोग करें।
(2) कभी भी कोई बिजली का उपकरण उपहार के रूप में लें।
(3) नीलम, हाथीदांत या हाथी का खिलौने से दूर रहें।

लाल किताब के अनुसार राहू का बारहवें भाव में फल

Prediction for Rahu in Twelvth house in Hindi according to Lal Kitab

बारहवां घर बृहस्पति से संबंधित होता है। यह शयन सुख का घर होता है। यहां स्थित राहु मानसिक परेशानियां और अनिद्रा देता है। यह बहनों और बेटियों पर अत्यधिक व्यय भी करवाता है। यदि राहु शत्रु ग्रहों के साथ हो तो आप कितनी भी मेहनत कर लें आपके खर्चे आपकी आमदनी से अधिक ही रहेंगे। यह झूठे आरोप भी लगवाता है। जातक आत्महत्या की चरमसीमा तक जा सकता है। जातक मानसिक चिंताओं से घिरा रहता है। झूठ बोलना, दूसरों को धोखा आदि देना राहु को और भी हानिकर बानाता है। किसी भी नए काम की शुरुआत में अशुभ परिणाम मिलते हैं। चोरी, बामारी और झूठे आरोपों के लगने का भय रहता है। यदि यहां राहू के साथ मंगल भी हो तो अच्छे परिणाम मिलते हैं।

उपाय:
(1) रसोई में बैठ कर ही भोजन करें।
(2) रात में अच्छी नींद के लिए तकिये के नीचे सौंफ और खांड रखें।

 

केतु ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह भगवान गणेश जी का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक छाया ग्रह है जिसका कोई भौतिक स्वरूप नहीं है। परंतु टेवा (जन्म कुंडली) में स्थित केतु ग्रह का 12 भावों में सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हालाँकि वैदिक ज्योतिष के समान लाल किताब में भी केतु को पापी ग्रह बताया गया है। कुंडली के 12 भाव मनुष्य के संपूर्ण जीवन को दर्शाते हैं। आइए जानते हैं लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह का 12 भावों में प्रभाव और उपाय: -

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह का महत्व

लाल किताब ज्योतिष की महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक है, जो ग्रहों से संबंधित आसान उपाय के लिए प्रसिद्ध है। लाल किताब में शुक्र और राहु को केतु ग्रह का साथी (मित्र) बताया गया है, जबकि चंद्रमा और मंगल केतु के दुश्मन है। वहीं गुरु भी केतु के लिए अनुकूल ग्रह है। यह केतु की दुर्बलता को दूर करता है। इसलिए कानों में सोने के आभूषण पहनने से केतु बलवान होकर संतान को पैदा करने की प्रदान करता है।

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह कभी सीधी चाल नहीं चलता है। बल्कि यह उल्टी चाल (वक्री) चलता है। केतु कुंडली के द्वादश भाव (बारहवाँ खाना) का स्वामी होता है। यदि किसी की कुंडली में यह खाना सोया हुआ है तो इस खाने को सक्रिय करने के लिए केतु के उपाय करने चाहिए।

लाल किताब ज्योतिष के संबंध में एक बहुत ही आसान पुस्तक है जिसके द्वारा कोई भी सामान्य व्यक्ति अपने चारों ओर की परिस्थितियों के अनुसार अपने टेवा के बारे में जान सकता है। वह अपने टेवा में स्थित ग्रहों से संंबंधित सरल टोटकों को आज़माकर उन्हें ख़ुद के अनुकूल बना सकता है। इसके नियम हिन्दू ज्योतिष के नियमों से अलग हैं।

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह के कारकत्व

लाल किताब के अनुसार केतु व्यक्ति के चाल-चलन, चारपाई, कुत्ता, भिखारी, पुत्र, मामा, पोता, भांजा, भतीजा, कान, जोड़, पैर, सलाह देने वाला, चितकबरा, नींबू, रात-दिन का मेल, दूर की सोचने वाला आदि का प्रतिनिधित्व करता है।

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह का संबंध

केतु ग्रह का संबंध समाज सेवा, धार्मिक एवं आध्यात्मिक कर्म से होता है। इसके अलावा सूअर, छिपकली, गधा, खरगोश, चूहा केतु के द्वारा ही दर्शाए जाते हैं। साथ ही काला कंबल, काले तिल, लहसुनिया पत्थर, इमली, प्याज, लहसुन आदि वस्तुएँ केतु ग्रह से संबंधित हैं।

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह का प्रभाव

यदि किसी जातक की कुंडली में केतु ग्रह बलवान होता है तो जातक को इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है तथा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। केतु ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ बली होता है। जबकि इसके विपरीत यदि किसी जातक की कुंडली में केतु की स्थिति कमज़ोर होती है अथवा वह पीड़ित है तो जातक के लिए यह अच्छा नहीं माना जाता है। केतु अपने शत्रु ग्रहों के साथ कमज़ोर होता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में केतु का प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से पड़ता है। आइए जानते हैं केतु के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या हैं:

सकारात्मक प्रभाव - वहीं जब केतु गुरु ग्रह के साथ युति बनाता है तो व्यक्ति की कुंडली में इसके प्रभाव से राजयोग का निर्माण होता है। शुभ केतु लोगों को चरित्रवान बनाता है। इससे व्यक्ति के मामा, पुत्र, एवं पोते के साथ संबंध मधुर बने रहते हैं। केतु बली हो तो व्यक्ति का आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ता है।

नकारात्मक प्रभाव - लाल किताब के अनुसार पाँचवें भाव में जब शुक्र, शनि, राहु या केतु स्थित हों या इनमें से किसी की युति पाँचवें घर में हो तो जातक आत्म-ऋणि (स्वयं का ऋणि) माना जाता है। इस ऋण के कारण व्यक्ति का जीवन में संघर्षमय रहता है तथा वाद विवाद, कोर्ट केसों में पराजय का सामना करना पड़ता है। वह बार-बार बिना किसी कारण अपमान होता है और कभी-कभी राजकीय दंड भी प्राप्त होता है।

केतु ग्रह के लिए लाल किताब के उपाय

ज्योतिष में लाल किताब के उपाय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। अतः लाल किताब में केतु ग्रह की शांति के टोटके जातकों के लिए बहुत ही लाभकारी और सरल होते हैं। अतः इन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से स्वयं कर सकता है। केतु ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय करने से जातकों को केतु ग्रह के सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। केतु ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय निम्नलिखित हैंः

माथे पर केसर या हल्दी का तिलक लगाएँ

वृद्ध एवं लाचार व्यक्तियों की सहायता करें

कानों में सोने की बाली पहनें

दूध में केसर मिलाकर पीएँ

पिता एवं पुरोहित का सम्मान करें

कुत्ता पालना सहायक होगा

लाल किताब के उपाय ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित हैं। अतः ज्योतिष में इस पुस्तक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उम्मीद है कि केतु ग्रह से संबंधित लाल किताब में दी गई यह जानकारी आपके कार्य को सिद्ध करने में सफल होगी।

लाल किताब के अनुसार केतु का पहले भाव में फल

यदि केतु इस घर में शुभ है, तो जातक श्रमसाध्य, अमीर और खुशहाल होगा। लेकिन अपनी संतान की वजह से हमेशा चिंतित और परेशान होगा। वह लगातार स्थानान्तरण या यात्रा डरा रहेगा लेकिन अंत में यह हमेशा ये स्थगित हो जाया करेंगे। जब वर्ष कुंडली में केतू पहले घर में आता है तो जातक के घर पुत्र या या भतीजे का जन्म हो सकता है। लम्बी यात्रा भी हो सकती है। सूर्य की उच्चता के कारण ऐसा जातक हमेशा अपने माता पिता और गुरुजनों के लिए फायदेमंद होगा। यदि पहले घर में केतु अशुभ हो तो जातक सिर दर्द से पीड़ित होगा। उसकी पत्नी स्वास्थ्य समस्याओं और बच्चों से संबंधित चिंताओं से ग्रस्त होगी। यदि दूसरा और सातवां घर खाली हो तो बुध और शुक्र भी बुरे परिणाम देते हैम। बिना फायदे के स्थानांतरण और यात्राएं होंगी। यदि शनि नीच का हो तो यह पिता और गुरु को नष्ट करेगा। यदि सूर्य सातवें या आठवेम स्थान में हो तो पोते के जन्म के बाद स्वास्थ्य खराब रहेगा। सुबह और शाम के समय भीख नहीं देनी चाहिए।

उपाय:
(1) बंदरों को गुड़ खिलायें।
(2) केसर का तिलक लगाएं।
(3) यदि संतान से परेशान है तो मंदिर में काले और सफेद रंग वाला कंबल दान करें।

लाल किताब के अनुसार केतु का दूसरे भाव में फल

दूसरा घर चंद्रमा से प्रभावित होता है, जो केतु का शत्रु ग्रह है। यदि दूसरे भाव में स्थित केतू शुभ है तो जातक को पैतृक सम्पत्ति मिलती है। जातक खूब यात्राएं करेगा और यात्राओं से लाभ मिलेगा। ऐसी स्थित में शुक्र अपनी स्थिति के अनुसार अच्छे परिणाम देता है। चंद्रमा बुरे परिणाम देता है। यदि सूर्य 12 वें घर में हो जातक अपनी उम्र के चौबीस साल के बाद से अपनी आजीविका कमाना शुरू कर देता है। यदि केतू के साथ उच्च का बृहस्पति हो तो लाखों की आमदनी होगी। यदि दूसरे भाव में स्थित केतू अशुभ है तो जातक सूखे इलाकों की यात्राएं करेगा। जातक एक जगह पर आराम नहीं कर सकेगा और वह जगह-जगह भटकता रहेगा। आमदनी अच्छी होगी लेकिन, खर्च भी उतना ही हो जाएगा। इसप्रकार वास्तविक लाभ नगण्य हो जाएगा। यदि चंद्रमा या मंगल आठवें घर में हों तो जातक अल्पायु होगा और उसे सोलह या बीस साल की उम्र में गंभीर समस्या होगी। यदि आठवां घर खाली हो तो भी केतू बुरे परिणाम देगा।

उपाय:
(1) माथे पर केसर या हल्दी का तिलक लगाएं।
(2) चरित्र का ढीला नहीं होना चाहिए।
(3) यदि मंदिरों की धार्मिक यात्रा करें और मंदिरों में सिर झुकाएं तो दूसरे भाव का केतू अच्छे परिणाम देगा।

लाल किताब के अनुसार केतु का तीसरे भाव में फल

तीसरा घर बुध और मंगल से प्रभावित होता है, दोनो ही केतू के शत्रु हैं। तीन की संख्या जातक के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि तीसरे भाव का केतू शुभ है तो जातक के बच्चे अच्छे होंगे। जातक सभ्य और भगवान से डरने वाला होगा। यदि केतू तीसरे भाव में हो और मंगल बारहवें भाव में हो तो जातक को चौबीस साल से पहले पुत्र की प्राप्ति होती है। पुत्र जातक के धन और दीर्घायु के लिए अच्छा होता है। तीसरे भाव के केतू वाला जातक लम्बी यात्राओं वाली नौकरी करता है। यदि तीसरे भाव का केतू अशुभ हो तो लातक मुकदमेबाजी में पैसे खर्च करता है। वह अपनी पत्नी या शालियों से अलग हो जाता है। ऐसा जातक दक्षिण मुखी घर में रहता है। उसे बच्चों से सम्बंधित गंभीर समस्याएं रहती हैं। ऐसा जातक किसी भी बात के लिए नहीं कहता इसलिए वह हमेशा परेशान रहता है। जातक को अपने भाइयों से परेशानी होती है और वह बेकार की यात्रा करेगा।

उपाय:
(1) माथे पर केसर का तिलक लगाएं।
(2) सोना पहनें।
(3) बहते पानी में चावल और गुड़ बहाएं।

लाल किताब के अनुसार केतु का चौथे भाव में फल

चौथा भाव चंद्रमा का होता है जो कि केतू का शत्रु है। यदि चतुर्थ भाव में शुभ केतू स्थित हो तो जातक, भगवान से डरने वाला और अपने पिता तथा गुरु के लिए भाग्यशाली होता है। ऐसे जातक को गुरु के आशीर्वाद के बाद ही जातक को पुत्र की प्राप्ति होती है। पुत्र दीर्घायु होगा। ऐसा जातक अपने सभी निर्णय भगवान पर छोड़ देता है। यदि चन्द्रमा तीसरे या चौथे घर में हो तो शुभ परिणाम मिलते हैं। ऐसा जातक एक अच्छा सलाहकार होता है। उसे कभी भी पैसे की कमी नहीं रहती। यदि केतू इस भाव में अशुभ हो तो जातक अप्रसन्न रहेगा, उसकी मां को कष्ट होगा, खुशियां कम होंगी। जातक मधुमेह रोग से पीडित होगा। छत्तीस साल की उम्र के बाद ही बेटा पैदा होगा। ऐसा जातक को पुत्र की तुलना में पुत्रियां अधिक होती हैं।

उपाय:
(1) एक कुत्ता पालें।
(2) मन की शांति के लिए चांदी पहनें।
(3) बहते पानी में पीली चीजें बहाएं।

लाल किताब के अनुसार केतु का पांचवें भाव में फल

पांचवां घर सूर्य का होता है। यह बृहस्पति से भी प्रभावित होता है। यदि बृहस्पति, सूर्य या चंद्रमा चौथे, छठवें या बारहवें घर में हों तो आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी होगी और जातक को पांच पुत्र हो सकते हैं। चौबीस साल की उम्र के बाद केतू स्वयमेव शुभ हो जाता है। यदि पांचवें भाव में केतू अशुभ हो तो जातक अस्थमा से पीडित हो सकता है। केतू पांच साल की उम्र तक अशुभ परिणाम देता है। संतान सम्बन्धी समस्याएं होती हैं। उम्र के चौबीस साल बाद ही आजीविका शुरू होती है। जातक अपने पुत्रों के लिए शुभ नहीं होता।

उपाय:
(1) दूध और चीनी दान करें।
(2) बृहस्पति के उपाय उपयोगी रहेंगे।

लाल किताब के अनुसार केतु का छठें भाव में फल

छठवां घर बुध का होता है। यहां केतू दुर्बल माना जाता है। हालांकि यह केतू का पक्का घर होता है। यहां केतू के परिणाम बृकस्पति की प्रकृति पर निर्भर करते हैं। यह संतान के लिए अच्छे परिणाम देता है। जातक एक अच्छा सलाहकार होता है। यदि बृहस्पति शुभ हो तो जातक दीर्घायु होता है। मां खुशहाल होती है और जीवन शांतिपूर्ण होता है। यदि कोई भी दो पुरुष ग्रह जैसे सूर्य, बृहस्पति, मंगल अच्छी स्थित में हों तो केतू शुभ परिणाम देता है।यदि केतु छठे भाव में अशुभ है तो मामा परेशान रहता है। जातक भी बेकार की यात्राओं से परेशान रहता है। लोग बिना कारण के दुश्मन बन जाते हैं। जातक त्वचा रोग से परेशान रहता है। यदि चंद्रमा दूसरे भाव में हो तो मां परेशान होती है और स्वयं जातक की बृद्धा अवस्था परेशानियों में गुजरती है।

उपाय:
(1) बाएं हाथ की उंगली में सोने की अंगूठी पहनें।
(2) दूध में केसर डालकर पियें और कान में सोना पहनें।
(3) सोने की सलाई गर्म करके दूध में बुझाएं और इसके बाद उस दूध को पियें इससे मानसिक शांति बढेगी, आयु वृद्धि होगी और यह बेटों के लिए भी अच्छा रहेगा।
(4) एक कुत्ता पालें।

लाल किताब के अनुसार केतु का सातवें भाव में फल

लाल किताब के अनुसार केतु का सातवें भाव में फल

सातवां घर बुध और शुक्र का होता है। यदि सातवें भाव में स्थित केतू शुभ हो तो जातक चौबीस साल से लेकर चालीस साल तक खूब धन कमाएगा। जातक के बच्चों के अनुपात में धन की बृद्धि होती है। जातक के दुश्मन जातक से डरते हैं। यदि जातक को बुध, बृहस्पति अथवा शुक्र का सहयोग मिलता है तो जातक को कभी भी निराश नहीं होना पडता। यदि सातवें भाव में केतू अशुभ हो तो जातक अक्सर बीमार रहता है, बेकार के वादे करता है और तैतीस साल की अवस्था तक शत्रुओं से पीडित रहता है। यदि लग्न में एक से अधिक ग्रह हों तो जातक के बच्चे नष्ट हो जाते हैं। यदि जातक गालियां देता है तो जातक नष्ट होता है। यदि केतू बुध के साथ हो तो चौतीस सालों के बाद जातक के शत्रु अपने आप नष्ट हो जाते हैं।

उपाय:
(1) झूठे वादे, घमंड और गाली देने से बचे।
(2) माथे पर केसर का तिलक लगाएं।
(3) गंभीर संकट या कष्ट के समय बृहस्पति के उपचार करें।

लाल किताब के अनुसार केतु का आठवें भाव में फल

आठवां घर मंगल ग्रह का है, जो केतु का शत्रु है। यदि आठवें भाव में केतू शुभ है तो जातक को चौंतीस साल की उम्र में अथवा जात्क की बहन या पुत्री की शादी के बाद पुत्र की प्राप्ति होती है। यदि बृहस्पति या मंगल छठवें या बारहवें घर में हों तो केतू अशुभ परिणाम नहीं देता। चंद्रमा के दूसरे भाव में स्थित होने पर भी यही परिणाम मिलता है। यदि आठवें भाव में स्थित केतू अशुभ हो तो जातक की पत्नी बीमार रहती है। पुत्र का जन्म नहीं होता, यदि होता है तो मृत्यु हो जाती है। जातक मधुमेह या मूत्र रोग से ग्रस्त होता है। यदि शनि अथवा मंगल सातवें घर में हों तो जातक दुर्भाग्यशाली होता है। आठवें भाव में अशुभ केतू के होने की अवस्था में जातक का चरित्र उसके पत्नी के स्वास्थ्य को निर्धारित करता है। छब्बीस साल की उम्र के बाद वैवाहिक जीवन में परेशानियां आती हैं।

उपाय:
(1) एक कुत्ता पालें।
(2) किसी मंदिर में काला और सफेद रंग वाला कंबल दान करें।
(3) भगवान गणेश की पूजा करें।
(4) कान में सोना पहनें।
(5) माथे पर केसर का तिलक लगाएं।

लाल किताब के अनुसार केतु का नौवें भाव में फल

नौवां घर बृहस्पति का होता है जो केतू के पक्षधर हैं। नौवें भाव में केतू उच्च का माना जाता है। ऐसा जातक आज्ञाकारी और भाग्यशाली होता है। जातक का धन बढता है। यदि केतू शुभ हो तो जातक अपने प्रयासों से धनार्जन करता है। प्रगति होगी लेकिन स्थानांतरण नहीं होगा। यदि जातक अपने घर में सोनें की ईंट रखे तो धानागमन होता है। जातक का पुत्र भविष्य का अनुमान लगाने में सक्षम होगा। जातक अपने जीवन का एक बहुत बडा हिस्सा विदेशी भूमि में व्यतीत करता है। यदि चंद्रमा शुभ हो तो जातक अपने ननिहाल वालों की मदद करता है। यदि यहां पर केतू अशुभ हो तो जातक मूत्र विकार, पीठ में दर्द, और पैरों की समस्या से ग्रस्त होता है। जातक के बच्चे मरते जाते हैं।

उपाय:
(1) एक कुत्ते पालें।
(2) घर में सोने का एक आयताकार टुकड़ा रखें।
(3) कान में सोना पहनें।
(4) बड़ों का सम्मान करें, विशेषकर ससुर का सम्मान जरूर करें।

लाल किताब के अनुसार केतु का दसवें भाव में फल

दसवां घर शनि का होता है। यहाँ के केतु के परिणाम शनि की प्रकृति पर निर्भर करते हैं। यदि केतु शुभ हो तो जातक भाग्यशाली होता, अपने बारे में चिन्ता करने वाला होता है और अवसरवादी होता है। उसके पिता की मृत्यु जल्दी हो जाती है। यदि शनि छठवें भाव में हो तो जातक प्रसिद्ध खिलाड़ी होता है। यदि जातक अपने भाइयों को उनके कुकर्मों के लिए क्षमा करता है तो उसकी तरकी होगी। यदि जातक का चरित्र अच्छा हो तो वह बहुत धन कमाता है। यदि दसम भाव में अशुभ केतु हो तो जातक मूत्र विकार और कान की समस्याओं से ग्रस्त होता है। जातक को हड्डियों में दर्द होता है। यदि शनि चतुर्थ भाव में हो तो जातक का घरेलू जीवन चिंताओं और परेशानियों से भरा होता है। जातक के तीन पुत्रों की मृत्यु हो जाती है।

उपाय:
(1) घर में शहद से भरा बर्तन रखें।
(2) घर में एक कुत्ता रखें विशेषकर अडतालिस साल की उम्र के बाद।
(3) व्यभिचार से बचें।
(4) चंद्रमा और बृहस्पति का उपचार करें।

लाल किताब के अनुसार केतु का ग्यारहवें भाव में फल

यहाँ केतु बहुत अच्छा माना जाता है। यह धन देता है। यह घर बृहस्पति और शनि से प्रभावित होता है। यदि केतु यहाँ शुभ हो, और शनि तीसरे घर में हो तो यह बहुत धन देता है, जातक के द्वारा अर्जित धन उसके पैतृक धन से अधिक होगा, लेकिन फिर भी उसे अपने भविष्य के बारे में चिंता करने की आदत होगी। यदि बुध तीसरे भाव में हो तो यह एक राज योग होगा। यदि केतू यहां अशुभ हो तो जातक को पेट की परेशानी होती है। वह भविष्य के बारे में बहुत चिंता करता है, और बहुत परेशान होता है। यदि शनि भी अशुभ हो तो जातक की दादी अथवा माँ परेशान होती है। साथ की जातक को पुत्र या घर से कोई लाभ नहीं होता।

उपाय:
(1) काला कुत्ता पालें।
(2) गोमेद या पन्ना पहनें।

लाल किताब के अनुसार केतु का बारहवें भाव में फल

यहाँ केतु को उच्च का माना जाता है। जातक अमीर होगा, बडा पद प्राप्त करेगा, और अच्छे कामों को समर्पित होगा। यदि राहू छठवें भाव में बुध के साथ हो तो बेहतर परिणाम मिलते हैं। जातक को सभी तरह के लाभ और विलासिता की चीजों की प्राप्ति होती है। यदि 12वें घर में स्थित केतु अशुभ है तो जातक किसी निस्संतान व्यक्ति से भूमि खरीदता है और खुद भी निस्संतान हो जाता है। यदि जातक किसी कुत्ते को मार देता है तो केतु हानिकर परिणाम देता है। यदि दूसरे भाव में चंद्रमा, शुक्र या मंगल ग्रह हों तो केतु हानिकर परिणाम देता है।

उपाय:
(1) भगवान गणेश की पूजा करें।
(2) चरित्र ढीला रखें।(3) एक कुत्ता पालें।
(4) रात में अच्छी नींद के लिए तकिये के नीचे खांड और सौंफ रखें।

 

राम रामाय नमः

श्री राम ज्योति सदन

पंडित आशु बहुगुणा

भारतीय वैदिक ज्योतिष और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामशॅ दाता

मोबाइल नंबर - 9760924411

https://shriramjyotishsadan.in/

 

 

लाल किताब के अनुसार सूर्य 12 भाव में फल

लाल किताब

लाल किताब को वैदिक ज्योतिष की सबसे महत्वपूर्ण किताबों में से एक माना गया है। हालाँकि इसकी भविष्यवाणी वैदिक ज्योतिष से काफी अलग होती है। लाल किताब के मूल रचना कार का नाम वैसे तो अज्ञात है लेकिन पंडित रूप चंद्र जोशी जी ने इसके पांच खंडों की रचना कर आम लोगों के लिए इस किताब को पढ़ना आसान कर दिया। लाल किताब की मूल रचना उर्दू और फ़ारसी भाषा में की गयी थी। ये ज्योतिषशास्त्र के स्वतंत्र मौलिक सिद्धांतों पर आधारित एक किताब है जिसकी अपनी कुछ अनोखी विशेषताएँ हैं। इस किताब में वर्णित प्रमुख उपायों का प्रयोग व्यक्ति अपनी कुंडली में मौजूद ग्रह दोषों को दूर करने के लिए कर सकता है। इसमे दिए गए उपायों का पालन व्यक्ति आसानी से कर उससे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। लाल किताब की उत्पत्ति की बात करें तो ये पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में खुदाई के दौरान तांबे के पट पर उर्दू और फ़ारसी भाषा में अंकित मिली थी। बाद में पंडित रूप चंद्र जोशी के इसे पांच भागों में विभाजित कर उस समय आम लोगों की भाषा उर्दू में इसे लिखा। इस ज्योतिषीय किताब के उर्दू में होने की वजह से कुछ लोग ऐसा मानते हैं की इसका संबंध अरब देश से हैं, जबकि ये मात्र एक धारणा है।

लाल किताब का महत्व

लाल किताब में जीवन के हर क्षेत्र में आने वाली मुसीबतों के अचूक और आसान उपाय बताए गए हैं। इस किताब में बताए गए उपायों का अमीर, गरीब दूसरे सभी वर्ग के व्यक्ति बहुत ही आसानी से पालन कर सकते हैं। इस किताब में वैदिक ज्योतिष से इतर कुंडली के सभी भावों के स्वामी ग्रहों के बारे में ना बताकर हर भाव के एक निश्चित स्वामी ग्रह के बारे में बताया गया और इसी के आधार पर ये ज्योतिषीय गणना कर जातक को भविष्यफल प्रदान करती है। इस किताब में बारह राशियों को बारह भाव माना गया है और उसी के आधार पर फलों की गणना की गयी है। लाल किताब में दिए उपायों को आमतौर पर दिन के समय ही करने से ही समस्या का निदान होता है। उपायों को करने से पहले अपनी कुंडली का विश्लेषण निश्चित रूप से करवा लेना चाहिए। लाल किताब में मुख्य रूप से जातक के पारिवारिक, आर्थिक, स्वास्थ्य, कार्य क्षेत्र, व्यापार, शादी, प्रेम और शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली समस्याओं के उपाय बताए गए हैं। हर व्यक्ति की कुंडली में मौजूद ग्रह नक्षत्र का प्रभाव अलग-अलग पड़ता है और उसके अनुसार ही इस किताब में व्यापक प्रभावी उपायों के बारे में बताया गया है।

पंडित रूप चंद्र जोशी ने लाल किताब को निम्लिखित पांच भागों में विभाजित किया है :-

लाल किताब के फरमान : लाल किताब के इस प्रथम भाग को साल 1939 में प्रकाशित किया गया था।

लाल किताब के अरमान : इस किताब के द्वितीय भाग को 1940 में प्रकाशित किया गया।

लाल किताब (गुटका) : साल 1941 में लाल किताब के इस तीसरे भाग का प्रकाशन हुआ था।

लाल किताब : इस किताब के चौथे भाग को 1942 में प्रकाशित किया गया था।

लाल किताब : लाल किताब के पांचवें और आखिरी संस्करण को साल 1952 में प्रकाशित किया गया।

लाल किताब ने आम लोगों के लिए भी ज्योतिषशास्त्र को समझना बेहद आसान बना दिया। इसके प्रयोग से अपने आसपास की परिस्थितियों का आकलन करते हुए आप अपनी कुंडली में मौजूद ग्रह दोषों के बारे में जान सकते हैं और उसका उपाय कर सकते हैं।

लाल किताब में सूर्य ग्रह का महत्व

जिस प्रकार वैदिक ज्योतिष में सूर्य को एक प्रमुख ग्रह माना गया है उसी प्रकार लाल किताब में भी सूर्य को उतना ही महत्व दिया गया है। पुराणों में सूर्य को देवता कहा गया है जो समस्त संसार की आत्मा है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सूर्य महर्षि कश्यप और अदिति के पुत्र हैं। ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है और यह सिंह राशि का स्वामी है। मेष इसकी उच्च राशि है जबकि तुला राशि में यह नीच भाव में माना जाता है। वहीं चंद्रमा, मंगल और गुरु सूर्य के मित्र ग्रह हैं। जबकि शुक्र और शनि इसके शत्रु ग्रह माने जाते हैं। सूर्य के शुभ फल पाने तथा इसके बुरे प्रभाव से बचने के लिए बेल की जड़, माणिक्य रत्न अथवा एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने विधि ज्योतिष में बतायी गई है।

सूर्य अपने मित्र ग्रहों के साथ होता है तो यह जातकों को शुभ फल देता है। जबकि शत्रु ग्रहों के साथ इसके फल अच्छे नहीं होते हैं। ऐसा कहते हैं कि सूर्य के समीप आने पर किसी भी ग्रह का प्रभाव शून्य हो जाता है, इसलिए कई बार ऐसा होता है कि सू्र्य के प्रभाव में आने के कारण संबंधित ग्रह अपनी प्रकृति के अनुसार परिणाम नही दे पाते हैं। सूर्य गोचर के दौरान क़रीब एक महीने में एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इस कारण संपूर्ण राशि चक्र को पूरा करने में सूर्य 12 माह अर्थात एक वर्ष लगाता है। यह अन्य ग्रहों की तरह वक्री नहीं होता है।

लाल किताब के अनुसार सूर्य ग्रह के कारकत्व

सूर्य को जातक की कुंडली में सम्मान, सफलता, प्रगति एवं सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में उच्च सेवा का कारक माना जाता है। ज्योतिष में सूर्य को आत्मा तथा पिता का कारक भी कहा गया है। सूर्य सभी ग्रहों का राजा होता है अर्थात यह नेतृत्व का प्रतीक है। पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत सूर्य ही है। इसलिए सूर्य को ऊर्जा का भी कारक माना जाता है। इसके अलावा सूर्य ग्रह आत्मा का कारक होता है। मनुष्य के शरीर में सूर्य उसके हृदय को दर्शाता है। साथ ही यह पुरुषों की दायीं आँख जबकि महिलाओं की बायीं आँख का प्रतिनिधित्व करता है। पीड़ित सूर्य के कारण जातकों को कई प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। अतः यह लो ब्लड प्रेशर, चेहरे पर मुहांसे, तेज़ बुखार, टाइफाइड, मिर्गी एवं पित्त, हृदय या हड्डी से संबंधित रोगों का कारक है।

लाल किताब के अनुसार सूर्य ग्रह का संबंध

सूर्य ग्रह का संबंध भगवान विष्णु जी है। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि सूर्य ग्रह भगवान विष्णु जी का प्रतीक हैं जो कि रथ पर सवार हैं। लाल किताब में सूर्य ग्रह का संबंध तांबा, तांबे से संबंधित वस्तुएँ, काली कपिला गाय, इकलौता पुत्र, सख़्त राजा, बहादुर, नीतिवान, क्षत्रिय, राजपूत, माणिक पत्थर, तेज फल, गेहूँ, बाजरा, शिलाजीत, भूरी भैंस आदि से है।

लाल किताब के अनुसार सूर्य ग्रह के प्रभाव

यदि किसी जातक की कुंडली में सूर्य बली हो तो जातक को इसके सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। वहीं यदि कुंडली में सूर्य पीड़ित हो तो जातक को इसके नकारात्मक प्रभाव झेलने पड़ते हैं। जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में बली होगा जिसके कारण जातकों को अच्छे फल प्राप्त होंगे। वहीं सूर्य अपनी नीच राशि तुला में होगा तो जातक को अशुभ फल मिलेंगे। इसके अतिरिक्त मित्र ग्रहों (चंद्रमा, मंगल, गुरु) के साथ सूर्य शक्तिशाली होता है। अतः यह स्थिति जातकों के लिए शुभ होती है। जबकि शत्रु ग्रहों के साथ होने पर सूर्य जातकों के लिए हानिकारक हो जाता है। आइए जानते हैं किस प्रकार से सूर्य के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या हैं:

सकारात्मक प्रभाव - जिस जातक की कुंडली में सूर्य उच्च में होता है तो वह जातक स्वयं के बल पर कार्यक्षेत्र में उन्नति प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति की राह में जितनी रुकावटें आती हैं वह उन रुकावटों को अवसरों परिवर्तन कर आगे बढ़ता है और उसके शत्रुओं का नाश होता है। सूर्य का सकारात्मक प्रभाव जातकों को समाज में मान-सम्मान दिलाता है। इसके साथ ही सरकारी क्षेत्र में जातक उच्च पद की प्राप्ति करता है। इसके अलावा सूर्य के शुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति समाज का नेतृत्व करता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी जातक सदैव ऊर्जावान बना रहता है और उसके साहस में वृद्धि होती है। सूर्य का सकारात्मक प्रभाव जातकों की आभा को तेजवान बनाता है।

नकारात्मक प्रभाव - सूर्य ग्रह का नकारात्मक प्रभाव जातक को अहंकारी बनाता है। जातक अपने से संबंधित चीज़ों को लेकर घमंडी हो जाता है। इसके साथ सूर्य का नकारात्मक प्रभाव जातक को विश्वासहीन, ईर्ष्यालु, क्रोधी, महत्वाकांक्षी, आत्म केंद्रित, क्रोधी आदि बनाता है। वहीं पीड़ित सूर्य का प्रभाव पिताजी से संबंधों को ख़राब करता है। इस दौरान छोटी-छोटी बातों को लेकर पिताजी से झगड़ा अथवा उनसे मतभेद बना रहता है। अगर इसी को पिता के नज़रिए से देखें तो पीड़ित सूर्य के कारण पिता के संबंध पुत्र से ठीक नहीं रहते हैं। पीड़ित सूर्य का प्रभाव जातकों के वैवाहिक जीवन पर भी नकारात्मक असर डालता है।

लाल किताब के अनुसार सूर्य ग्रह शांति के टोटके/उपाय

ज्योतिष में लाल किताब के उपाय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। अतः लाल किताब में सूर्य ग्रह शांति के टोटके जातकों के लिए बहुत ही लाभकारी होते हैं। ये उपाय बहुत सरल होते हैं। अतः इन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से स्वयं कर सकता है। सूर्य ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय करने से जातकों को सूर्य के सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। सूर्य ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय निम्नलिखित हैंः

पति-पत्नी में से किसी एक को गुड़ से परहेज करना चाहिए

मुफ्त की चीज़ लें।

माँ का आशीर्वाद सदैव लें और चावल-दूध का दान करें।

अंधे व्यक्ति की सहायता करें

दूसरों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करें।

लाल किताब के उपाय ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित हैं। अतः ज्योतिष में इस पुस्तक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उम्मीद है कि सूर्य ग्रह से संबंधित लाल किताब में दी गई यह जानकारी आपके कार्य को सिद्ध करने में सफल होगी।

 

लाल किताब के अनुसार सूर्य का पहले भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो जातक धार्मिक इमारतों या भवनों का निर्माण और सार्वजनिक उपयोग के लिए कुओं की खुदाई करवाता है। उसकी आजीविका का स्थाई स्रोत अधिकांशत: सरकारी होगा। इमानदारी से कमाए गए धन में बृद्धि होगी। जातक अपनी आंखों देखी बातों पर ही विश्वास करेगा, कान से सुनी गई बातों पर नहीं। यदि सूर्य अशुभ है तो जातक के पिता की मृत्यु जातक के बचपन में ही हो जाती है। यदि शुक्र सातवें भाव में हो तो दिन के समय बनाया गया शारीरिक संबंध पत्नी को लगातार बीमारी देता है और तपेदिक के संक्रमण का भय पैदा करता है। पहले भाव का अशुभ सूर्य और पांचवें भाव का मंगल एक-एक कर संतान की मृत्यु का कारण होगा। इसी प्रकार पहले भाव का अशुभ सूर्य और आठवें भाव का शनि एक-एक करके संतान की मृत्यु का कारण बनता है। यदि सातवें भाव में कोई ग्रह हो तो 24 से पहले विवाह कर लेना जातक के लिए भाग्यशाली रहता है अन्यथा जातक के चौबीसवां साल विनाशकारी साबित होगा।

उपाय:
(1) 24 वर्ष से पहले ही शादी कर लें।
(2) दिन के समय यौन संबंध बनाएं।
(3) अपने पैतृक घर में पानी के लिए एक हैंडपंप लगवाएं।
(4) अपने घर के अंत में बाईं ओर एक छोटे और अंधेरे कमरे का निर्माण कराएं।
(5) पति या पत्नी दोनों में से किसी एक को गुड़ खाना बंद कर देना चाहिए।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का दूसरे भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो जातक आत्मनिर्भर होगा, शिल्पकला में कुशल और माता-पिता, मामा, बहनों, बेटियो तथा ससुराल वालों का सहयोग करने वाला होगा। यदि चंद्रमा छठवें भाव में होगा तो दूसरे भाव का सूर्य और भी शुभ प्रभाव देगा। आठवें भाव का केतू जातक को अधिक ईमानदार बनाता है। नौवें भाव का राहू जातक को प्रसिद्ध कलाकार या चित्रकार बनता है। नवम भाव का केतू जातक को महान तकनीकी जानकार बनाता है। नवम भाव का मंगल जातक को फैशनेबल बनाता है। जातक का उदार च्ररित्र उसके दुश्मनों की बृद्धि को रोकता है। यदि सूर्य अशुभ है तो सूर्य से सम्बंधित चीजों और रिश्तों जैसे पत्नी, धन, विधवाओं, गाय, स्वाद, माँ आदि पर बुरा प्रभाव पडता है। धन और सम्पत्ति को लेकर विवाद होता है। जातक की पत्नी जातक को बिगाडने वाली होगी। यदि चंद्रमा आठवें भाव में और सूर्य दूसरे भाव में हो तो दान में कोई वस्तु नहीं लेनी चाहिए अन्यथा जातक पूरी तरह विनाश को प्राप्त होगा। यदि सूर्य दूसरे, मंगल पहले और चंद्रमा बारहवें भाव में हो तो जातक की हालत गंभीर हो सकती है और वह हर तरीके से दयनीय होगा। यदि दूसरे भाव में सूर्य अशुभ हो तो आठवें भाव में स्थित मंगल जातक को लालची बनाता है।

उपाय:
(1) किसी धार्मिक स्थान में नारियल का तेल, सरसों का तेल और बादाम दान करें।
(2) धन, संपत्ति, और महिलाओं से जुड़े विवादों से बचें।
(3) दान लेने से बचें, विशेषकर चावल, चांदी, और दूध का दान नहीं लेना चाहिए।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का तीसरे भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो जातक अमीर, आत्मनिर्भर और छोटे भाइयों से युक्त होगा। जातक पर ईश्वरीय कृपा होगी और वह बौद्धिक व्यवसाय द्वारा लाभ कमाएगा। वह ज्योतिष और गणित में रुचि रखने वाला होगा। यदि तीसरे भाव में सूर्य अशुभ है और कुण्डली में चन्द्रमा भी अशुभ है तो जातक के घर में दिनदहाडे चोरी या डकैती हो सकती है। यदि नवम भाव भी पीडित है तो जातक के पूर्वज गरीब होंगें। यदि पहला भाव पीडित है तो जातक के पडोसियों का विनाश हो सकता है।

उपाय:
(1) मां को खुश रखते हुए उसका आशिर्वाद लें
(3) दूसरों को चावल या दूध परोसें
(4) सदाचारी रहें और बुरे कामों से बचने का प्रयास करें

लाल किताब के अनुसार सूर्य का चौथे भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो जातक बुद्धिमान, दयालु और अच्छा प्रशासक होगा। उसके पास आमदनी का स्थिर श्रोत होगा। ऐसा जातक मरने के बाद अपने वंशजों के लिए बहुत धन और बडी विरासत छोड जाता है। यदि चंद्रमा भी सूर्य के साथ चौथे भाव में स्थित है तो जातक किसी नए शोध के माध्यम से बहुत धन अर्जित करेगा। ऐसे में चौथे भाव या दसम भाव का बुध जातक को प्रसिद्ध व्यापारी बनाता है। यदि सूर्य के साथ बृहस्पति भी चौथे भाव में स्थित है तो जातक सोने और चांदी के व्यापर से अच्छा मुनाफा कमाता है। यदि चौथे भाव में सूर्य अशुभ है तो जातक लालची होगा। जातक को चोरी करने और दूसरों को नुकसान पहुचाने में मजा आता है। यह प्रवृत्ति अंततः बहुत बुरे परिणाम को जन्म देती है। यदि शनि सातवे भाव में हो तो जातक को रतौंधी रोग हो सकता है। यदि सूर्य चौथे भाव मे पीडित हो और मंगल दसम भाव में हो तो जातक की आंखों में दोष हो सकता है लेकिन उसकी किस्मत कमजोर नहीं होगी। यदि अशुभ सूर्य चतुर्थ भाव में हो साथ ही चंद्रमा पहले या दूसरे भाव में हो और शुक्र पंचम भाव तथा शनि सातवें भाव में हो तो जातक नपुंसक हो सकता है।

उपाय:
(1) जरूरतमंद और अंधे लोगों को दान दें और खाना बांटें।
(2) लोहे और लकड़ी के साथ जुड़ा व्यापार करें।
(3) सोने, चांदी और कपड़े से सम्बंधित व्यापार, लाभकारी रहेंगे।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का पांचवें भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो निश्चित ही परिवार तथा बच्चों की प्रगति और समृद्धि होगी। यदि मंगल पहले अथवा आठवें भाव में हो तथा राहू या केतू और शनि नौवें और बारहवें भाव में हो तो जातक राजसी जीवन जीता है। यदि पांचवें भाव में कोई सूर्य का शत्रु ग्रह स्थित है तो जातक को सरकार जनित परेशानियों का सामना करना पडेगा। यदि बृहस्पति नौवें या बारहवें भाव में स्थित है तो जातक के शत्रुओं का विनाश होगा लेकिन यह स्थिति जातक के बच्चों के लिए ठीक नहीं है। यदि पांचवें भाव का सूर्य अशुभ है और बृहस्पति दसवें भाव में है तो जातक की पत्नी जीवित नहीं रहती और चाहे जितने विवाह करें पत्नियां मरती जाएंगी। यदि पांचवें भाव में अशुभ सूर्य हो और शनि तीसरे भाव में हो तो जातक के पुत्र जीवित नहीं रहते।

उपाय:
(1) संतान पैदा करने में देरी नहीं करनी चाहिए।
(2) अपनी रसोई घर के पूर्वी भाग में बनाएँ।
(3) लगातार 43 दिनों तक सरसों के तेल की कुछ बूंदे जमीन पर गिराएं।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का छठें भाव में फल

यदि सूर्य शुभ है तो जातक भाग्यशाली, क्रोधी, सुंदर जीवनसाथी वाला तथा सरकार से लाभ पाने वाला होता है। यदि सूर्य छठे भाव में हो, चंद्रमा, मंगल और बृहस्पति दूसरे भाव में हों तो परंपरा का निर्वाह करना फायदेमंद रहता है। यदि सूर्य छ्ठे भाव में हो और सातवें भाव में केतू या राहू हो तो जातक के एक पुत्र होगा और 48 सालों के भाग्योन्नति होती है। यदि दूसरे भाव में कोई भी ग्रह हों तो जातक को जीवन के 22वें साल में सरकारी नौकरी मिलती है। यदि सूर्य अशुभ हो तो जातक का पुत्र और ननिहाल के लोगों को मुसीबतों का सामना करना पडता है। जातक का स्वास्थ भी ठीक नहीं रहता। यदि मंगल दशम भाव में स्थित हो तो जातक के पुत्र एक एक करके मरते जाएंगे। बारहवें भाव में स्थित बुध उच्च रक्त चाप का कारण बनता है।

उपाय:
(1) कुल परम्परा और धार्मिक परम्पराओं कड़ाई से पालन करें अन्यथा परिवार की प्रगति और प्रसन्नता नष्ट होती है।
(2) घर के आहाते (परिसर) में भूमिगत भट्टियों का निर्माण करें।
(3) रात में भोजन करने के बाद दूध का छिड़काव करके रसोई की आग और स्टोव आदि को बुझाएं।
(4) हमेशा अपने घर के परिसर में गंगाजल रखें।
(5) बंदरों को गेहूं अथवा गुड़ खिलाएं।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का सातवें भाव में फल

सातवें भाव में स्थित सूर्य यदि शुभ है और यदि बृहस्पति, मंगल अथवा चंद्रमा दूसरे भाव में है तो जातक सरकार में मंत्री जैसा पद प्राप्त करता है। बुध उच्च का हो या पांचवें भाव में हो अथवा सातवां भाव मंगल से देखा जा रहा हो तो जातक के पास आमदनी का अंतहीन श्रोत होता है। यदि सातवें भाव में स्थित सूर्य हानिकारक हो और बृहस्पति, शुक्र या कोई और अशुभ ग्रह ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो तथा बुध किसी भी भाव में नीच का हो तो जातक की मौत किसी मुठभेड में परिवार के कई सदस्यों के साथ होती है। जातक को सरकार की ओर से परेशानियां तथा तपेदित और अस्थमा जैसी बीमारियां हो सकती हैं। आगजनी, सांवलापन और अन्य पारिवारिक कष्ट से आई झुंझलाहट जातक को वैरागी बनने या आत्महत्या करने को मजबूर कर सकती है। सातवें भाव हानिकारक सूर्य हो और मंगल या शनि दूसरे या बारहवें भाव में स्थित हों तथा चंद्रमा पहले भाव में हो तो जातक को कुष्ट या ल्यूकोडर्मा जैसे चर्मरोग हो सकते हैं।

उपाय:
(1) नमक सेवन की मात्रा को कम करें।
(2) किसी भी काम को शुरू करने से पहले मीठा खाएं और उसके बाद पानी जरूर पियें।
(3) खाना खाने से पहले रोटी का एक टुकड़ा रसोई घर की आग में डालें।
(4) काली अथवा बिना सींग वाली गाय को पालें और उसकी सेवा करें लेकिन ध्यान रहे गाय सफेद नहीं होनी चाहिए।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का आठवें भाव में फल

आठवें भाव स्थित सूर्य यदि अनुकूल हो तो उम्र के 22वें वर्ष से सरकार का सहयोग मिलता है। ऐसा सूर्य जातक को सच्चा, पुण्य और राजा की तरह बनाता है। कोई उसे नुकसान पहुँचाने में सक्षम होता। यदि आठवें भाव स्थित सूर्य अनुकूल हो तो दूसरे भाव में स्थित बुध आर्थिक संकट पैदा करेगा। जातक अस्थिर स्वभाव, अधीर और अस्वस्थ्य रहेगा।

उपाय:
(1) घर में कभी भी सफेद कपड़े रखें।
(2) दक्षिण मुखी घर में रहें।
(3) हमेशा किसी भी नए काम शुरू करने से पहले मीठा खाकर पानी पिएं।
(4) यदि सम्भव हो तो किसी जलती हुई चिता में तांबे के सिक्के डालें।
(5) बहते हुए पानी में गुड़ बहाएं।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का नौवें भाव में फल

नवमें भाव स्थित सूर्य यदि अनुकूल हो तो जातक भाग्यशाली, अच्छे स्वभाव वाला, अच्छे पारिवारिक जीवन वाला और हमेशा दूसरों की मदद करने वाला होगा। यदि बुध पांचवें घर में होगा तो जातक का भाग्योदय 34 साल के बाद होगा। यदि नवमें भाव स्थित सूर्य अनुकूल हो तो जातक बुरा और अपने भाइयों के द्वारा परेशान किया जाएगा। सरकार से अरुचि और प्रतिष्ठा की हानि।

उपाय:
(1) उपहार या दान के रूप में चांदी की वस्तुएं कभी स्वीकार करें। चांदी की वस्तुएं अक्सर दान करते रहें।
(2) पैतृक बर्तन और पीतल के बर्तन नहीं बेचना चाहिए बल्कि इन्हें हमेशा इस्तेमाल करना चाहिए।
(3) अत्यधिक क्रोध और अत्यधिक कोमलता से बचें।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का दसवें भाव में फल

दसम भाव में स्थित सूर्य यदि शुभ हो तो सरकार से लाभ और सहयोग मिलता है। जातक का स्वास्थ्य अच्छा और वह आर्थिक रूप से मजबूत होता है। जातक को सरकारी नौकरी, वाहनों और कर्मचारियों का सुख मिलता है। लेकिन जातक हमेशा दूसरों पर शक करता है। यदि दसम भाव में स्थित सूर्य हानिकारक हो और शनि चौथे भाव में हो तो जातक के पिता की मृत्यु बचपन में हो जाती है। सूर्य दसम भाव में हो और चंद्रमा पांचवें घर में हो तो जातक की आयु कम होती है। यदि चौथे भाव में कोई ग्रह हों तो जातक सरकारी सहयोग और लाभ से वंचित रह रह जाएगा।

उपाय:
(1) कभी भी काले और नीले कपडे पहनें।
(2) किसी नदी या नहर में लगातार 43 दिनों तक तांबें का एक सिक्का डालना शुभतादायक रहेगा।
(3) मांस मदिरा के सेवन से बचें।

 

लाल किताब के अनुसार सूर्य का ग्यारहवें भाव में फल

यदि ग्यारहवें भाव में स्थित सूर्य शुभ है तो जातक शाकाहारी और परिवार का मुखिया होगा, उसके तीन बेटे होंगे औए उसे सरकार से लाभ मिलेगा। ग्यारहवें भाव में स्थित सूर्य यदि शुभ नहीं है और चंद्रमा पांचवें भाव में है तथा सूर्य पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो यह जातक की आयु को कम करने वाली होती है।

उपाय:
(1) मांस और शराब से बचें।
(2) रात में सोते समय बिस्तर के सिरहने बादाम या मूली रखकर सोएं और अगले दिन इसे किसी मंदिर में दान कर दें इससे आयु और संतान सुख में बॄद्धि होती है।

लाल किताब के अनुसार सूर्य का बारहवें भाव में फल

यदि बारहवें भाव में स्थित सूर्य शुभ हो तो जातक 24 साल के बाद अच्छा धन कमाएगा और जातक का पारिवारिक जीवन अच्छा होगा। यदि शुक्र और बुध एक साथ हों तो जातक को व्यापार से लाभ मिलता है और जातक ले पास आमदनी के नियमित स्रोत होते हैं। यदि बारहवें भाव का सूर्य अशुभ हो तो जातक अवसाद ग्रस्त, मशीनरी से आर्थिक हानि उठाने वाला और सरकार द्वारा दंडित किया जाने वाला होगा। यदि पहले भाव में कोई और पाप ग्रह हो तो जातक को रात में चैन की नींद नहीं आएगी।

उपाय:
(1) हमेशा अपने घर में आंगन रखें।
(2) धार्मिक और सच्चे बनें।
(3) घर में एक चक्की रखें।
(4) अपने दुश्मनों को हमेशा क्षमा करें।

 

चन्द्र ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

लाल किताब के अनुसार, चंद्र ग्रह का संबंध भगवान शिव से है। साथ ही लाल किताब में चंद्र ग्रह को माता के प्यार का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रह भी बताया गया है। चंद्र ग्रह का 12 भावों में फल सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूप से पड़ सकता है। हालाँकि चंद्र ग्रह की शांति के लिए लाल किताब के टोटकों का बड़ा महत्व है। चंद्र ग्रह को लेकर लाल किताब के उपाय वैदिक ज्योतिष में चंद्र ग्रह शांति के उपाय से भिन्न होते हैं। चलिए जानते हैं लाल किताब के अनुसार, जन्म कुंडली के 12 भाव पर चंद्र ग्रह का प्रभाव:-

लाल किताब में चंद्र ग्रह का महत्व

लाल किताब के अनुसार चंद्रमा कुंडली में चौथे भाव का स्वामी होता है। कुंडली में चौथा भाव माँ का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक कहा गया है। यह कर्क राशि का स्वामी होता है। सभी ग्रहों में चंद्रमा का गोचर सबसे कम अवधि का होता है। यह एक राशि में लगभग सवा दो या ढाई दिन रहता है। सूर्य, मंगल और गुरु से चंद्रमा की मित्रता है। अपने मित्र ग्रहों के साथ चंद्रमा का फल अच्छा होता है।

लाल किताब के अनुसार चंद्रमा प्रकाश देने वाला ग्रह है। यदि व्यक्ति की कुंडली में चंद्र ग्रह बली हो तो जातक को इससे मानसिक शांति प्राप्त होती है। लाल किताब में चंद्रमा को गर्मी को शीतलता में परिवर्तन करने वाला ग्रह बताया गया है। वहीं हिन्दू ज्योतिष में किसी व्यक्ति विशेष के राशिफल को ज्ञात करने के लिए चंद्र राशि का विचार किया जाता है।

लाल किताब के अनुसार चंद्र ग्रह के कारकत्व

वैदिक ज्योतिष के समान चंद्र ग्रह को लाल किताब में भी माता का कारक बताया गया है। यह माता के खानदान पक्ष को दर्शाता है। इसके साथ ही प्यार, दयालुता, उदारता, मन की शांति और मनुष्य की नीयत आदि को चंद्रमा के द्वारा ही देखा जाता है। इसके अलावा चंद्रमा से खेती के लिए भूमि, घोड़ा, मल्लाह, चावल, दूध, दादी, बूढ़ी स्त्री, सफेद या दूधिया पत्थर का भी विचार किया जाता है। पानी अथवा दूध से बने पदार्थ सबके सब चंद्रमा से संबंध रखते हैं। समुद्र में होने वाली हलचल, ज्वार-भाटा आदि आने का कारक भी चंद्रमा होता है।

लाल किताब के अनुसार चंद्र ग्रह का संबंध

लाल किताब के अनुसार चंद्र ग्रह का संबंध जल या तरल पदार्थ से संबंधित कार्य व्यवसाय से होता है। इसमें पेयजल, पेट्रोलियम पदार्थ, दूध से जुड़े सभी उत्पाद, पेय पदार्थ आदि सभी का जुड़ाव चंद्रमा से है। यदि कुंडली में चंद्रमा दुर्बल या पीड़ित होता है तो जातक को मानसिक कष्ट होते हैं। अर्थात सिरदर्द, तनाव, डिप्रेशन, पागलपन जैसी बीमारियों का भी संबंध चंद्रमा से होता है। ज्योतिष में सफेद रंग को चंद्रमा से जोड़ा जाता है। इसलिए चंद्रमा के शुभ फल को पाने के लिए मोती रत्न को धारण किया जाता है। वहीं दो मुखी रुद्राक्ष भी चंद्र ग्रह के लिए धारण की जाती है। साथ ही खिरनी की जड़ को धारण करने से चंद्रमा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

लाल किताब के अनुसार चंद्र ग्रह के प्रभाव

लाल किताब के अनुसार जब चंद्रमा कुंडली में बलवान हो तो जातक को इसके सकारात्मक लाभ प्राप्त होते हैं। जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि चंद्रमा अपने मित्र ग्रहों के साथ बली होता है। वहीं इसके विपरीत यदि जन्म-पत्रिका में चंद्र ग्रह की स्थिति कमज़ोर होती है तो यह जातकों के लिए अशुभ परिणामकारी होता है। आइए जानते हैं चंद्रमा के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव :

सकारात्मक प्रभाव - बली चंद्रमा के प्रभाव से जातक को मानसिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जिस व्यक्ति का चंद्रमा उच्च का होता है माँ के साथ उस जातक के संबंध मधुर होते हैं और माँ का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। बली चंद्रमा के प्रभाव से जातक अपने कार्य से मानसिक रूप से संतुष्ट दिखाई देगा। चंद्रमा के सकारात्मक प्रभाव से जातकों की कल्पना शक्ति भी मजबूत होती है।

नकारात्मक प्रभाव - चंद्रमा के नकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहेगा और वह तनावग्रस्त रहेगा। उसे सिरदर्द, डिप्रेशन, पागलपन, बेचैनी आदि की शिकायत रहती है। चंद्रमा के कमज़ोर होने से जातकों को माँ का सुख नहीं मिल पाता है। पीड़ित चंद्रमा के कारण जल संकट भी संभव है।

लाल किताब के अनुसार चंद्रमा ग्रह शांति के उपाय

ज्योतिष में लाल किताब के उपाय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। अतः लाल किताब में चंद्र ग्रह की शांति के टोटके जातकों के लिए बहुत ही लाभकारी और सरल होते हैं। अतः इन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से स्वयं कर सकता है। चंद्र ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय करने से जातकों को चंद्र ग्रह के सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। चंद्र ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय निम्नलिखित हैंः

पुत्र सुख के लिए भूमि में सौंफ दबाएँ

घर में चाँदी की थाली शुभ होगी

दरिया में पैसे डालें

ज़रुरतमंद लोगों को जल दूध पिलाएँ।

लाल किताब के उपाय ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित हैं। अतः ज्योतिष में इस पुस्तक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उम्मीद है कि चंद्र ग्रह से संबंधित लाल किताब में दी गई यह जानकारी आपके कार्य को सिद्ध करने में सफल होगी।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का पहले भाव में फल

सामान्य तौर पर कुंडली का पहला घर मंगल और सूर्य के प्रभाव के अंतर्गत आता है। जब चंद्रमा यहां स्थित हो तो यह भाव मंगल, सूर्य और चंद्रमा के संयुक्त प्रभाव में होगा। ये तीनों आपस में मित्र हैं और तीनो यहां की स्थिति के अनुसार परिणाम देंगे। सूर्य और मंगल इस घर में स्थित चंद्रमा को पूर्ण सहयोग देंगे। ऐसा जातक रहमदिल होगा और उसके भीतर उसकी मां के सभी लक्षण और गुण मौजूद होंगे। वह या तो भाई-बहनों में बड़ा होगा या फिर उसके साथ ऐसा बर्ताव किया जाता होगा। जातक पर उसकी मां का आशीर्वाद हमेशा रहता है साथ ही वह अपनी मां को प्रसन्न रखता है ऐसा करने से वह उन्नति करता है और उसे हर प्रकार से समृद्धि मिलती है। बुध से संबंधित चीजें और रिश्तेदार जैसे जीवनसाथी की बहन और हरा रंग आदि जो चंद्रमा के लिए हानिकारक है, जातक के लिए भी प्रतिकूल प्रभाव साबित होगें इसलिए बेहतर है उन लोगों से दूर रहें। दूध से खोया बनाना या लाभ के लिए दूध बेचना आदि कृत्य पहले भाव में स्थित चंद्रमा को कमजोर करते हैं इसका मतलब यदि जातक स्वयं भी इस प्रकार के कामों सें संलग्न होता है तो जातक का जीवन और सम्पत्ति नष्ट होने लगती है। ऐसे में जातक को दूध और पानी मुफ्त में बांटना चाहिए इससे आयु बढती और चारो ओर से समृद्धि आती है। ऐसा करने से जातक को 90 साल की दीर्घायु मिलती है और उसे सरकार से सम्मान और प्रसिद्धि मिलती है।

उपाय:
(1) 24 से 27 वर्ष की आयु के मध्य शादी नहीं करनी चाहिए, या तो 24 साल के पहले अथवा 27 साल के बाद ही शादी करनी चाहिए।
(2) 24 से 27 वर्ष की आयु के मध्य अपनी कमाई से घर का निर्माण नहीं करना चाहिए।
(3) घर में टोटी के साथ एक चांदी के बर्तन या केतली रखें।
(4) यथा सम्भव बरगद की जड़ में पानी डालें।
(5) चारपाई के चारों पायों में तांबें की कीलें ठोके।
(6) अपने बच्चों के कल्याण के लिए जब भी एक नदी पार करें, हमेशा उसमें एक सिक्का डालें।
(7) हमेशा अपने घर में चांदी की एक थाली रखें।
(8) पानी या दूध पीने के लिए हमेशा चांदी के बर्तन का प्रयोग करें, कांच के बने बर्तन के उपयोग से बचें।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का दूसरे भाव में फल

दूसरे भाव चंद्रमा स्थित होने पर वह भाव बृहस्पति, शुक्र और चंद्रमा के प्रभाव में होगा। क्योंकि दूसरा घर बृहस्पति का पक्का घर होता है और दूसरी राशि बृषभ का स्वामी शुक्र होता है। यहां स्थित चंद्रमा बहुत अच्छे परिणाम देता है। चंद्रमा इस घर में बहुत मजबूत हो जाता है क्योंकि उसे शुक्र के खिलाफ बृहस्पति का अनुकूल समर्थन मिल जाता है इस कारण यहां का चंद्रमा अच्छे परिणाम देता है। ऐसे में जातक के बहनें नहीं होतीं लेकिन निश्चित रूप से भाइयों की प्राप्ति होती है। लेकिन यदि ऐसा नहीं होता तो जातक की पत्नी के भाई अवश्य होते हैं। जातक को पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा जरूर मिलता है। ग्रहों की स्थिति जो भी हो लेकिन यहां स्थित चंद्रमा जातक के वंश को जरूर बढाता है। जातक अच्छी शिक्षा प्राप्त करता है जिससे उसके भाग्योदय में सहयोग मिलता है। चंद्रमा की चीजों से जुड़े व्यवसाय लाभप्रद साबित होंगे। जातक एक प्रतिष्ठित शिक्षक भी हो सकता है। बारहवें भाव में स्थित केतू यहं के चंद्रमा को ग्रहण लगाने वाला रहेगा जो जातक को अच्छी शिक्षा या पुत्र से वंचित कर सकता है।

उपाय:
(1) घर के भीतर मंदिर का होना जातक की पुत्र प्राप्ति में बाधक हो सकता है।
(2) चंद्रमा से सम्बंधित चीजें जैसे चांदी, चावल, घर की कच्ची फर्श, माँ और बुजुर्ग महिलाएं तथा उनका आशीर्वाद जातक के लिए बहुत भाग्यशाली रहेंगे।
(3) लगातार 43 दिनों तक कन्याओं (छोटी लड़कियों) को हरा कपडा बांटें।
(4) चंद्रमा से सम्बंधित चीजें जैसे चांदी का एक चौकोर टुकड़ा अपने घर की नीव में दबाएं।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का तीसरे भाव में फल

तीसरे भाव में स्थित चंद्रमा पर मंगल और बुध का भी प्रभाव होता है। यहां स्थित चंद्रमा लंबा जीवन और अत्यधिक धन देने वाला होता है। तीसरे भाव में स्थित चंद्रमा के कारण यदि नवमें और ग्यारहवें घर में कोई ग्रह हों तो मंगल और शुक्र अच्छे परिणाम देंगें। जातक शिक्षा और सीखने की प्रगति के साथ, जातक के पिता की अर्थिक स्थिति खराब होगी लेकिन इससे जातक की शिक्षा और सीखने की प्रगति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडेगा। यदि केतु कुण्डली में किसी शुभ जगह पर है और चंद्रमा पर कोई दुश्प्रभाव नहीं डाल रहा है तो जातक की शिक्षा अच्छे परिणाम देने वाली और हर तरीके में फायदेमंद साबित होगी। यदि चंद्रमा हानिकर है, तो यह बडी धनहानि और खर्चे का कारण हो सकता है यह घटना नवमें भाव में बैठे ग्रह की दशा या उम्र में हो सकती है।

उपाय:
(1) पुत्री के जन्म के बाद चन्द्रमा से सम्बंधित चीजें जैसे चांदी और चावल आदि का दान करें तथा पुत्र के जन्म के बाद सूर्य से सम्बंधित चीजें जैसे गेहूं और गुड़ आदि का दान करें।
(2) अपनी बेटी के पैसे और धन का उपयोग करें।
(3) आठवें घर में स्थित बुरे ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए, मेहमानों और दूसरों को खुलकर दूध और पानी बांटें।
(4) दुर्गा देवी की पूजा करें तथा कन्याओं को भोजन और मिठाई देकर उनके पांव छुएं और आशिर्वाद लें।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का चौथे भाव में फल

चौथे भाव में स्थित चंद्रमा पर केवल चंद्रमा का ही पूर्णरूपेण प्रभाव होता है क्योंकि वह चौथे भाव और चौथी राशि दोनो का स्वामी होता है। यहां चन्द्रमा हर प्रकार से बहुत मजबूत और शक्तिशाली हो जाता है। चंद्रमा से संबन्धित वस्तुएं जातक के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती हैं। मेहमानों को पानी की के स्थान पर दूध भेंट करें। मां या मां के जैसी स्त्रियों का पांव छूकर आशिर्वाद लें। चौथा भाव आमदनी की नदी है जो व्यय बढानें के लिए जारी रहेगी। दूसरे शब्दों में खर्चे आमदनी को बढाएंगे। जातक प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति होने के साथ-साथ नरम दिल और सभी प्रकार से धनी होगा। जातक को अपनी माँ के सभी लक्षण और गुण विरासत में मिलेंगे और वह जीवन की समस्याओं का सामना किसी शेर की तरह साहसपूर्वक करेगा। जातक सरकार से सहयोग और सम्मान प्राप्त करेगा साथ में वह दूसरों को शांति और आश्रय प्रदान करेगा। जातक निश्चित तौर पर अच्छी शिक्षा प्राप्त करेगा। यदि बृहस्पति 6 भाव में हो और चंद्रमा चौथे भाव में तो जातक को पैतृक व्यवसाय फायदा देगा। यदि जातक के पास कोई अपना कीमती सामान गिरवी रख जाएगा तो वह उसे मांगने के लिए कभी नहीं आएगा। यदि चंद्रमा चौथे भाव में चार ग्रहों के साथ हो तो जातक आर्थिक रूप से बहुत मजबूत और अमीर होगा। पुरुष ग्रह जातक की मदद पुत्र की तरह करेंगे और स्त्री ग्रह पुत्रियों की तरह।

उपाय:
(1) लाभ कमाने के लिए दूध का खोया बनाना अथवा दूध बेचना आदि कार्य से आमदनी, जीवन के विस्तार और मानसिक शांति पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा अतः इससे बचें।
(2) व्यभिचार और अनैतिक सम्बंध जातक की प्रतिष्ठा और आर्थिक मामलों के लिए हानिकारक होगें इसलिए इनसे बचाव जरूरी है।
(3) अधिक खर्च, अधिक आय।
(4) किसी भी शुभ या नया काम शुरू करने से पहले, घर में दूध से भरा कोई घड़ा या कनस्तर रखें।
(5) दशम भाव में स्थित बृहस्पति के दुष्प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए, जातक को अपने दादाजी के साथ पूजा स्थान में जाकर भगवान के चरणों में माथा रखकर चढ़ावा चढ़ाएं।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का पांचवें भाव में फल

पांचवें भाव में स्थित चंद्रमा के परिणाम में सूर्य, केतू और चंद्रमा का प्रभाव रहेगा। जातक हमेशा सही तरीके से पैसा कमाने की कोशिश करेगा, वह कभी भी गलत तरीके नहीं अपनाएगा। वह व्यापार में तो अच्छा नहीं कर पाएगा लेकिन निश्चित रूप से सरकार की ओर से सम्मान और सहयोग प्राप्त करेगा। उसके द्वारा समर्थित कोई भी जीत जाएगा। यदि केतू सही स्थान पर बैठा है और फायदेमंद है तो जातक के पांच पुत्र होंगें चाहे चंद्रमा किसी अशुभ ग्रह के प्रभाव में ही क्यों हो। अपनी शिक्षा और सीख के कारण जातक दूसरों के कल्याण के लिए अनेक उपाय करेगा लेकिन दूसरे उसके लिए अच्छा नहीं करेंगे। अगर जातक लालची और स्वार्थी हो जाता है तो वह नष्ट हो जाएगा। यदि जातक अपनी योजनाओं को एक गुप्त रखने में विफल रहता है, उसके अपने ही लोग उसे नुकसान पहुंचाएंगे।

उपाय:
(1) अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें। किसी के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करें ऐसा करना मुशीबतों को निमंत्रण देना होगा।
(2) लालची और स्वार्थी बनने से बचें।
(3) दूसरों के साथ छल और बेईमानी करें, इसका आप पर ही प्रतिकूल असर होगा।
(4) किसी के खिलाफ कुछ करनें से पहले किसी और से सलाह जरूर लें इसका आपके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और आप 100 सालों तक जिएंगे।
(5) लोगों की सेवा करें इससे आपकी आमदनी और प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का छठें भाव में फल

यह भाव बुध और केतु से प्रभावित होता है। इस घर में स्थित चंद्रमा दूसरे, आठवे, बारहवें और चौथे घरों में बैठे ग्रहों से प्रभावित होता है। ऐसा जातक बाधाओं के साथ शिक्षा प्राप्त करता है और अपनी शैक्षिक उपलब्धियों का लाभ उठाने के लिए उसे बहुत संघर्ष करना पडता है। यदि चंद्रमा छठवें, दूसरे, चौथे, आठवें और बारहवें घर में होता है तो यह शुभ भी होता है ऐसा जातक किसी मरते हुए के मुंह में पानी की कुछ बूंदें डालकर उसे जीवित करने का काम करता है। यदि छठवें भाव में स्थित चंद्रमा अशुभ है और बुध दूसरे या बारहवें भाव में स्थित है तो जातक में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति पाई जाएगी। ठीक इसी तरह यदि चन्द्रमा अशुभ है और सूर्य बारहवें घर में है तो जातक या उसकी पत्नी या दोनो ही आंख के रोग या परेशानियों से ग्रस्त होंगे।

उपाय:
(1) अपने पिता को अपने हाथों से दूध परोसें।
(2) रात के समय दूध कभी भी पिएं। लेकिन दिन के समय दूध उपयोग किया जा सकता है। रात के समय दही और पनीर का सेवन किया जा सकता है।
(3) दूध का दान करें। केवल पूजा के धार्मिक स्थानों पर दूध दिया जा सकता है।
(4) जातक अस्पताल या श्मशान भूमि में कुआं खुदवाएं।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का सातवें भाव में फल

सातवां घर शुक्र और बुध से संबंधित होता है। जब चंद्रमा इस भाव में स्थित होता है तो परिणाम शुक्र, बुध और चंद्रमा से प्रभावित होता है। शुक्र और बुध मिलकर सूर्य का प्रभाव देते हैं। पहला भाव सातवें को देखता है नतीजन पहले घर से सूर्य की किरणे सातवें भाव में बैठे चंद्रमा को सकारात्म रूप से प्रभावित करती हैं जिसका मतलब है कि चंद्रमा से संबंधित चीजों और रिश्तेदारों लाभकारी और अच्छे परिणाम मिलेंगे। शैक्षिक उपलब्धियां पैसा या धन कमाने के लिए उपयोगी साबित होंगी। उसके पास जमीन जायदाद हो या हो लेकिन उसके पास नकद निश्चित रूप से हमेशा रहेगा। उसके पास कवि या ज्योतिषी बनने की अच्छी योग्यता होगी। अथवा वह चरित्रहीन हो सकता है और रहस्यवाद और अध्यात्मवाद को बहुत चाहता होगा। सातवें भाव में स्थित चंद्रमा जातक की पत्नी और मां के बीच अर्थ संघर्ष देता है जो दूध के व्यवसाय में प्रतिकूल प्रभावी होता है। ऐसे में जातक अगर मां का कहना नहीं मानता तो उसे तनाव और परेशानियों का सामना करना पडता है।

उपाय:
(1) 24वें वर्ष में शादी करें।
(2) अपनी माँ को हमेशा खुश रखें।
(3) लाभ कमाने के लिए कभी भी दूध या पानी बेचें।
(4) खोया बनाने के लिए दूध को जलाएं।
(5) सुनिश्चित कर लें कि आपकी पत्नी शादी में अपने मायके से अपने वजन के बराबर चांदी और चावल लाए।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का आठवें भाव में फल

यह भाव मंगल और शनि के अंतर्गत आता है। यहां पर स्थित चंद्रमा जातक की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। लेकिन यदि शिक्षा अच्छी है तो जातक की मां का जीवन छोटा होता है। लेकिन अक्सर यही देखने को मिलता है कि जातक शिक्षा और माँ को खो देता है। हालांकि, यदि बृहस्पति और शनि दूसरे भाव में हों तो सातवें घर में बैठे चंद्रमा का बुरा कम हो जाएगा। इस भाव में स्थित चन्द्रमा जातक को पैतृद सम्पत्ति से वंचित करता है। यदि जातक की पैतृक सम्पत्ति के पास कोई कुंआ या तालाब होता है तो जातक के जीवन में चंद्रमा के प्रतिकूल परिणाम देखने को मिलते हैं।

उपाय:
(1) जुआ और अनैतिकता से बचें।
(2) अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा समारोह आयोजित करें।
(3) कुएं को छत से ढकने के बादघर का निर्माण करें।
(4) बुजुर्गों और बच्चों के पैर छूकर आशीर्वाद लें।
(5) श्मशान भूमि की सीमा के भीतर स्थित नल या कुंए से पानी लाएं और अपने घर के भीतर रखें। यह सप्तम भाव में स्थित चंद्रमा की सभी बुराइयों दूर करता है।
(6) पूजा स्थल में चना और दाल दान करें।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का नौवें भाव में फल

नौवां घर बृहस्पति, से सम्बंधित होता है जो चंद्रमा का परममित्र है। इसलिए जातक इन दोनों ग्रहों के लक्षण और सुविधाओं को आत्मसात करता है साथ ही अच्छे आचरण, कोमक हृदय, मन से धार्मिक, और धार्मिक कृत्यों तथा तीर्थयात्राओं से प्रेम करने वाला होता है। वह 75 वर्षों तक जीवित रहता है। पाचवें घर में स्थित शुभ ग्रह संतान सुख में वृद्धि और धार्मिक कामों में गहन रुचि विकसित करता है। तीसरे भाव में स्थित मित्र ग्रह पैसे और धन में काफी वृद्धि करता है।

उपाय:
(1) घर में चंद्रमा से संबंधित चीजें रखें। जैसे अलमारी में चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें।
(2) मजदूरों को दूध परोसें।
(3) साँप को दूध पिलाएं और मछली के लिए चावल डालें।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का दसवें भाव में फल

दसवां घर हर तरीके में शनि द्वारा शासित है। यह घर चौथे घर के द्वारा देखा जाता है, जो चंद्रमा द्वारा शासित होता है। इसलिए इस घर में स्थित चंद्रमा जातक को 90 साल की लंबी आयु सुनिश्चित करता है। चंद्रमा और शनि आपस में शत्रु हैं इसलिए, तरल रूप में दवाओं का सेवन जातक को हमेशा हानिकारक साबित होंगी। रात में दूध का सेवन जहर के समान कार्य करता है। यदि जातक चिकित्सक है तो उसके द्वारा रोगी को दी जाने वाली दवाएं यदि शुष्क हों तो मरीज पर इलाज का जादुई प्रभाव पड़ेगा। यदि जातक सर्जन है तो वह सर्जरी के माध्यम से वह महान धन और प्रसिद्धि अर्जित करेगा। यदि दूसरा और चौथा भाव खाली हो तो जातक पर पैसों की बरसात होगी। यदि शनि पहले भाव में स्थित हो तो विपरीत लिंगी के कारण जातक का विनाश हो जाता है, विशेषकर विधवा जातक के विनाश का कारण बनती है। शनि से संबंधित वस्तुएं और व्यवसाय जातक के लिए फायदेमंद साबित होगा।

उपाय:
(1) धार्मिक स्थानों की यात्रा भाग्य वृद्धि में सहायक होगी।
(2) बारिस अथवा नदी का प्राकृतिक जल किसी कंटेनर (कनस्तर) में भर कर अपने घर के भीतर 15 साल तक रखें। यह दसम भाव में स्थित चंद्रमा के विषाक्त और बुरे प्रभाव को धो देगा।
(3) रात में दूध पिएं।
(4) दुधारू पशु तो आपके घर में लंबे समय तक रह पाएंगे और ही वो आपके लिए फायदेमंद और शुभ साबित होंगे।
(5) शराब, मांस, और व्यभिचार से बचें।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का ग्यारहवें भाव में फल

यह घर बृहस्पति और शनि से पूरी तरह प्रभावित होता है। इस घर में स्थित हर ग्रह अपने शत्रु ग्रहों और उनके साथ जुडी बातों को नष्ट कर देता है। इस प्रकार यहां स्थित चंद्रमा अपने शत्रु केतू की चीजों को नष्ट कर देता है जैसे जातक के बेटे आदि को। यहां चंद्रमा को अपने शत्रुओं शनि और केतू की संयुक्त शक्ति का सामना करना पडता है, जिससे चंद्रमा कमजोर होता है। ऐसे में यदि केतू चौथे भाव में स्थित है तो जातक की मां का जीवन खतरे में पडेगा। बुध से जुडे व्यापार भी हानिप्रद साबित होंगे। शनिवार के दिन से घर का निर्माण या घर की खरीदी चंद्रमा के शत्रु को बलवान बनाते हैं जो जातक के लिए विनाशकारी साबित होगा। आधी रात के बाद कन्यादान और शुक्रवार के दिन किसी भी शादी समारोह में शामिल होना जातक के भाग्य को नुकसान पहुंचाएगा।

उपाय:
(1) भैरव मंदिर में दूध बांटे और दूसरों को उदारतापूर्वक दूध का दान करें।
(2) सुनिश्चित करें कि दादी अपने पोते को देखने पाए।
(3) दूध पीने से पहले सोने के एक टुकड़े को आग में गरम करें और दूध के गिलास में डालकर बुझाएं, इसके बाद दूध पिएं।
(4) 125 पीस पेड़े (मिठाइयां) नदी में बहाएं।

लाल किताब के अनुसार चन्द्र का बारहवें भाव में फल

यह घर चंद्रमा के मित्र बृहस्पति का है। यहाँ स्थित चंद्रमा मंगल और मंगल से संबंधित चीजों परर अच्छा प्रभाव डालता है, लेकिन यह अपने दुश्मन बुध और केतु तथा उनसे संबंधित चीजों को नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए मं गल जिस भाव में बैठा है उससे जुडा व्यापार और चीजें जातक के लिए अत्यधिक लाभकारी रहेंगी। ठीक इसी तरह बुध और केतू जिस घर में बैठे हैं उससे जुडा व्यापार और चीजें जातक के लिए अत्यधिक हानिकारक रहेंगी। बारहवें घर में स्थित चंद्रमा जातक के मन में अप्रत्याशित मुसीबतों और खतरों को लेकर एक साधारण सा डर पैदा करता है। जिससे जातक की नींद और मानसिक शांति भंग होती है। यदि चौथे भाव में स्थित केतू कमजोर और पीडित हो तो जातक के पुत्र और मां पर प्रतिकूल असर पडता है।

उपाय:
(1) कान में सोना पहनें। दूध में सोना बुझाकर दूध पियें। धार्मिक स्थलों की यात्रा करें। ये उपाय केवल 12वें भाव के चन्द्र के दुष्प्रभाव को दूर करते बल्कि चौथे भाव के केतू के दुष्प्रभाव को भी दूर करते हैं।
(2) धार्मिक साधु-संतों को कभी भी दूध और भोजन दें।
(3) स्कूल, कॉलेज या अन्य कोई शैक्षणिक संस्थान खोलें और निःशुल्क शिक्षा पाने वाले बच्चों की मदद करें।

यह घर चंद्रमा के मित्र बृहस्पति का है। यहाँ स्थित चंद्रमा मंगल और मंगल से संबंधित चीजों परर अच्छा प्रभाव डालता है, लेकिन यह अपने दुश्मन बुध और केतु तथा उनसे संबंधित चीजों को नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए मं गल जिस भाव में बैठा है उससे जुडा व्यापार और चीजें जातक के लिए अत्यधिक लाभकारी रहेंगी। ठीक इसी तरह बुध और केतू जिस घर में बैठे हैं उससे जुडा व्यापार और चीजें जातक के लिए अत्यधिक हानिकारक रहेंगी। बारहवें घर में स्थित चंद्रमा जातक के मन में अप्रत्याशित मुसीबतों और खतरों को लेकर एक साधारण सा डर पैदा करता है। जिससे जातक की नींद और मानसिक शांति भंग होती है। यदि चौथे भाव में स्थित केतू कमजोर और पीडित हो तो जातक के पुत्र और मां पर प्रतिकूल असर पडता है।

उपाय:
(1) कान में सोना पहनें। दूध में सोना बुझाकर दूध पियें। धार्मिक स्थलों की यात्रा करें। ये उपाय केवल 12वें भाव के चन्द्र के दुष्प्रभाव को दूर करते बल्कि चौथे भाव के केतू के दुष्प्रभाव को भी दूर करते हैं।
(2) धार्मिक साधु-संतों को कभी भी दूध और भोजन दें।
(3) स्कूल, कॉलेज या अन्य कोई शैक्षणिक संस्थान खोलें और निःशुल्क शिक्षा पाने वाले बच्चों की मदद करें।

 

मंगल ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

लाल किताब में मंगल को नेक (शुभ) ग्रह के साथ-साथ बुरा ग्रह भी बताया गया है। वैदिक ज्योतिष के समान लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह का संबंध भी हनुमान जी से है। कुंडली के 12 खानों में मंगल का प्रभाव शुभ और अशुभ दोनो ही रूप में पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार, कुंडली के 12 खाने मनुष्य के जन्म से लेकर मरण तक की घटनाओं का बोध कराते हैं। आइए इस लेख के माध्यम से जानते हैं लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह का प्रभाव कुंडली के 12 भाव पर किस प्रकार से पड़ता है।

लाल किताब में मंगल ग्रह का महत्व

लाल किताब के अनुसार मंगल एक ऐसा ग्रह है जो अपने नाम के अनुरूप मंगलकारी भी है और नाश करने वाला भी है। हालाँकि मंगल ग्रह को लेकर, लोगों की धारणाएँ ज्यादातर नकारात्मक ही रहती है। लाल किताब में सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह को मंगल का मित्र और बुध ग्रह को शत्रु बताया गया है। वैदिक ज्योतिष में जहाँ मंगल ग्रह मेष और वृश्चिक का स्वामी है। वहीं लाल किताब में इसे पहले और आठवें खाने का मालिक कहा गया है।

ज्योतिषीय गणना के अनुसार, मंगल का गोचर क़रीब डेढ़ माह का होता है। मंगल ग्रह (मंगल की उपस्थिति पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें खाने में होने पर) कुंडली में मंगल दोष बनता है, जिससे जातकों के वैवाहिक जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ आती हैं।

लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह के कारकत्व

लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह साहस, ऊर्जा, पराक्रम, शौर्य आदि का कारक होता है। यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल अच्छा होता है तो जातक के उपरोक्त चीज़ों में वृद्धि होती है। साथ ही मंगल ग्रह नाभि, रक्त, लाल रंग, बंधु, फौजी, वैध, हक़ीम, डॉक्टर, मनुष्य के ऊपर वाला होंठ का प्रतिनिधित्व करता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल कमज़ोर हो तो इसके प्रभाव से रक्त से संबंधित रोग, नासूर, भगंदर जैसी बीमारियाँ होती हैं।

लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह का संबंध

लाल किताब के अनुसार, यदि मंगल ग्रह का संबंध सेना, पुलिस, प्रॉपर्टी डीलिंग, इलेक्ट्रॉनिक संबंधी, इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग, स्पोर्ट्स आदि कार्य-क्षेत्रों से है। जबकि उत्पाद में यह मसूर दाल,, ज़मीन, अचल संपत्ति, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद आदि को दर्शाता है। जबकि मेमना, बंदर, भेड़, शेर, भेड़िया, सूअर, कुत्ता, चमगादड़ एवं सभी लाल पक्षियों का संबंध मंगल ग्रह से है। इसके अलावा रोगों में मंगल ग्रह का संबंध विषजनित, रक्त संबंधी रोग, कुष्ठ, ख़ुजली, रक्तचाप, अल्सर, ट्यूमर, कैंसर, फोड़े-फुंसी आदि से होता है। मंगल ग्रह के शुभ फल पाने के लिए अनंत मूल को धारण किया जाता है। इसके अलावा जातक तीन मुखी रुद्राक्ष या मूंगा रत्न भी धारण कर सकता है।

लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह का प्रभाव

यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल ग्रह बलवान होता है तो जातक को इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। मंगल ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ बली होता है। जबकि इसके विपरीत यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल की स्थिति कमज़ोर होती है अथवा वह पीड़ित हो तो जातक के लिए यह अच्छा नहीं माना जाता है। मंगल अपने शत्रु ग्रहों के साथ कमज़ोर होता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में मंगल का प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से पड़ता है। आइए जानते हैं मंगल के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या हैं:

सकारात्मक प्रभाव - मंगल के शुभ प्रभाव से व्यक्ति निडर होता है। वह निडरता वह ऊर्जावान रहता है। इससे जातक उत्पादक क्षमता में वृद्धि होती है। विपरीत परिस्थितियों में भी जातक चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार करता है और उन्हें मात भी देता है। बली मंगल का प्रभाव केवल व्यक्ति के ही ऊपर नहीं पड़ता है, बल्कि इसका प्रभाव व्यक्ति के पारिवारिक जीवन पर पड़ता दिखाई देता है। बली मंगल के कारण व्यक्ति के भाई-बहन अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति करते हैं।

नकारात्मक प्रभाव - यदि मंगल ग्रह कुंडली में कमज़ोर अथवा पीड़ित हो तो यह जातक के लिए समस्या पैदा करता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को किसी दुर्घटना का सामना करना पड़ता है। पीड़ित मंगल के कारण जातक के पारिवारिक जीवन में भी समस्याएं आती हैं। जातक को शत्रुओं से पराजय, ज़मीन संबंधी विवाद, क़र्ज़ आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

लाल किताब के अनुसार मंगल ग्रह शांति के उपाय

ज्योतिष में लाल किताब के उपाय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। अतः लाल किताब में मंगल ग्रह की शांति के टोटके जातकों के लिए बहुत ही लाभकारी और सरल होते हैं। अतः इन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से स्वयं कर सकता है। मंगल ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय करने से जातकों को मंगल ग्रह के सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। मंगल ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय निम्नलिखित हैंः

बड़ वृक्ष की जड़ में मीठा दूध-पानी डालकर उसकी गीली मिट्टी नाभि पर लगाएँ

घर में ठोस चाँदी रखें

घर आयी बहन को मीठा देकर घर से विदा करें

धार्मिक स्थल पर गुड़, चने की दाल आदि का दान करें

दूसरों को मीठा खिलाएँ और संभव हो तो स्वयं भी मीठा खाएँ

लाल किताब के उपाय ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित हैं। अतः ज्योतिष में इस पुस्तक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उम्मीद है कि मंगल ग्रह से संबंधित लाल किताब में दी गई यह जानकारी आपके कार्य को सिद्ध करने में सफल होगी।

लाल किताब के अनुसार मंगल का पहले भाव में फल

पहले घर में स्थित मंगल ग्रह जातक को उम्र के 28 वर्ष से अच्छे स्वभाव वाला, सच्चा और अमीर बनाता है। उसे सरकार से सहयोग मिलता है और वह अधिक प्रयास के बिना दुश्मनों पर जीत हासिल करता है। जातक शनि से संबंधित व्यवसायों जैसे लोहा, लकडी और मशीनरी आदि के माध्यम से खूब धनार्जन करता है और शनि से संबंधित रिश्तेदार जैसे, भतीजे, पोते, मामा/चाचा आदि के लिए ऐसे जातक से मिला सहज श्राप कभी बेकार नहीं जाता। शनि और मंगल की युति जातक को शारीरिक कष्ट देती है।

उपाय:
(1) मुफ्त के उपहार या दान स्वीकार नहीं करना चाहिए।
(2) बुरे कामों और झूठ से बचें।
(3) संतों और फकीरों की संगति बहुत हानिकारक साबित होगी,अत: उनसे बचें।
(4) हाथीदांत की चीजें बहुत प्रतिकूल प्रभाव देंगी, अतः उनसे बचाव करें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का दूसरे भाव में फल

दूसरे भाव में स्थित मंगल वाला जाता आमतौर पर अपने माता पिता की बडी संतान होता है अन्यथा उसके साथ बडे के जैसे बर्ताव किया जाएगा। लेकिन रहने एक छोटे भाई की तरह रहना और बर्ताव करना जातक के बहुत फायदेमंद और कई बुराइयों को अपने आप नष्ट करता है। इस घर का मंगल जातक को ससुराल से बहुत धन-संपदा दिलवाता है। यहां पर स्थित अशुभ मंगल ग्रह जातक को इंशान के रूप में दूसरों के लिए साँप सदृश बनाता है और यह स्थिति किसी युद्ध या झगड़े में जात्क की मृत्यु का कारण बनता है। दूसरे घर में बुध के साथ स्थित मंगल जातक की इच्छा शक्ति को कमजोर और उसके महत्त्व को कमजोर करने वाला बनाता है।

उपाय:
(1) चंद्रमा से जुडे व्यवसाय जैसे कपड़े का व्यापार आदि करने से चंद्रमा मजबूत होता है जिससे जातक को ऐसे व्यापार में बडी समृद्धि मिलती है।
(2) सुनिश्चित करें कि आपके ससुराल वाले आम लोगों के लिए पीने के पानी की सुविधा और व्यवस्था करें।
(3) घर में हिरण त्वचा रखें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का तीसरे भाव में फल

तीसरा भाव मंगल और बुध से प्रभावित भाव होता है, जो जातक को भाइयों और बहनों की प्राप्ति करवाता है। वह अपने माता-पिता की अकेली संतान नहीं होगा। दूसरो को जातक से खूब लाभ मिलेगा लेकिन स्वयं जातक को दूसरों से लाभ नहीं मिलेगा। अपनी विनम्रता के कारण जातक लाभान्वित और पुरस्कृत होगा। जातक की शादी के बाद जातक के ससुराल वाले अमीर और अमीर होते जाएंगे। जातक खाओं पियो और मस्त रहो के सिद्धांत में विश्वास करेगा लेकिन रक्त विकारों से ग्रस्त रहेगा।

उपाय:
(1) नरम दिल बनें और अहंकार से बचें। समृद्धि प्राप्ति के लिए भाइयों के लिए अच्छे बनें।
(2) आप के साथ हाथीदांत की वस्तुएं रखें।
(3) बाएं हाथ में चांदी की अंगूठी पर पहनें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का चौथे भाव में फल

चौथा घर समग्र चंद्रमा की संपत्ति है। इस घर में मंगल ग्रह की आग और गर्मी चंद्रमा के ठंडे पानी को जला देती है। चंद्रमा के गुण प्रतिकूल प्रभावी हो जाते हैं। जातक अपने मन की शांति खो देता है और दूसरों से ईर्ष्या करने लगता है। वह हमेशा अपने छोटे भाई के साथ बुरा बर्ताव करता है। जातक की बुरी योजना बहुत बडी विनाशकारी शक्तियां प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार का जातक अपनी माँ, पत्नी, सास आदि के जीवन के लिए बहुत प्रतिकूल प्रभावी होता है। जातक का गुस्सा उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं के विनाश का कारण बन जाता है।

उपाय:
(1) किसी बरगद के पेड़ की जड़ों पर मीठा दूध चढाएं और वहां की गीली मिट्टी को अपनी नाभि पर लगाएं।
(2) आग से तबाही से बचने के लिए, अपने घर, दुकान या कारखाने की छत पर चीनी की खाली बैग (बोरे) रखें।
(3) हमेशा आपने साथ चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें।
(4) काले, काने और विकलांग व्यक्ति से दूर रहें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का पांचवें भाव में फल

पांचवां घर मंगल के नैसर्गिक मित्र सूर्य का घर होता है। इसलिए इस घर में मंगल बहुत अच्छे परिणाम देता है। जातक के पुत्र उसकी प्रसिद्धि और धनार्जन के माध्यम बनते हैं। जातक की समृधि पुत्र प्राप्ति के बाद कई गुना बढ़ जाती है। शुक्र और चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करने वाली वस्तुएं और रिश्तेदार को हर तरीके से फायदेमंद साबित होंगे। जातक के पूर्वजों में से कोई चिकित्सक या वैद्य रहा होगा। जातक की उम्र के साथ उसकी समृधि भी बढती जाती है। लेकिन विपरीत लिंगी के साथ भावनात्मक लगाव और रोमांस जातक के लिए अत्यधिक विनाशकारी साबित होंगे और जातक की मानसिक शांति और रातों की नीद खराब करने के कारण बनेंगे।

उपाय:
(1) अपना नैतिक चरित्र अच्छा बनाए रखें।
(2) रात को अपने बिस्तर के सिरहने एक बर्तन में पानी रखें और सुबह उसे किसी गमले में डाल दें।
(3) अपने पूर्वजों की श्राद्ध करें और घर में एक नीम के पेड़ लगाएं।

लाल किताब के अनुसार मंगल का छठें भाव में फल

यह भाव बुध और केतू का होता है। दोनो आपस में शत्रु है और मंगल के लिए हानिकारक हैं। इस लिए इस भाव में सूर्य अपने आपको इन दोनो ग्रहों से दूर रखता है। इसलिए जातक साहसी, जोखिम उठाने वाला न्यायप्रिय और पानी में आग लगाने के लिए पर्याप्त शक्ति रखने वाला होता है। बुध से संबंधित व्यापार-व्यवसाय जातक के लिए अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होंगे। उसकी कलम में तलवार से ज्यादा ताकत होगी। यदि सूर्य, शनि और मंगल इसी घर में साथ हैं तो जातक के भाई, मां, बहन और पत्नी पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा।

उपाय:
(1) बेटे के जन्म के समय मिठाई की जगह पर नमक बांटें।
(2) जातक के भाइयों को चाहिए कि अपनी सुरक्षा और समृद्धि के लिए वो जातक को खुश रखें और इसके लिए वो जातक को कोई वस्तु या और कुछ देते रहें। लेकिन यदि जातक ऐसी चीजें स्वीकार नहीं करता तो वो चीजें पानी में फेंक देनी चाहिए।
(3) जातक के लड़कों को सोना नहीं पहनना चाहिए।
(4) परिवारिक सुख के लिए शनि के उपाय अपनाएं। माता पिता के स्वास्थ्य और दुश्मनों के विनाश के लिए गणेश जी की पूजा करें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का सातवें भाव में फल

यदि घर में शुक्र और बुध, के प्रभाव के अंतर्गत आता है जो कि आपस में मिलकर सूर्य का फल देते हैं। यदि मंगल सातवें भाव में है तो सातवां भाव मंगल और सूर्य के प्रभाव के अंतरगत आएगा जो यह सुनिश्चित करता की जातक की महत्वाकांक्षा पूरी हो जाएगी। धन संपत्ति, और परिवार में वृद्धि होगी। लेकिन अगर बुध भी मंगल ग्रह के साथ स्थित है तो बुध से संबंधित बातों और रिश्तों जैसे, बहन, भाभी, नर्सों, नौकरानी, तोता, बकरी आदि प्रतिकूल प्रभावी होंगी अत: इनसे दूर रहना बेहतर होगा।

उपाय:
(1) समृद्धि के लिए घर में चांदी का ठोस टुकड़ा रखें।
(2) हमेशा बेटी, बहन, भाभी और विधवाओं को मिठाई भेंट करें।
(3) बार बार एक छोटी सी दीवार बनाएं और गिराएं।

लाल किताब के अनुसार मंगल का आठवें भाव में फल

यह घर मंगल और शनि, के संयुक्त गुणों से प्रभावित होता है। इस घर में कोई ग्रह अच्छा नहीं माना जाता है। यहां स्थित मंगल ग्रह जातक के छोटे भाई पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। लाभ या हानि की परवाह किए बिना जातक अपने द्वारा बनाई गई प्रतिबद्धताओं से चिपका रहता है।

उपाय:
(1) विधवाओं का आशीर्वाद प्राप्त करें और गले में एक चांदी की चेन पहनें।
(2) तंदूर की बनी मीठी रोटी कुत्तों को दें।
(3) भोजन रसोई घर में ही करें।
(4) अपने घर के अत में एक छोटा से अंधेरा कमरा बनाएँ और उसमें सूर्य की रोशनी आने दें।
(5) धार्मिक स्थानों में चावल, गुड़ और चने की दाल भेंट करें।
(6) किसी मिट्टी के बर्तन मेंदेशी खांडभरें और श्मशान भूमि के पास दफनाएं।

लाल किताब के अनुसार मंगल का नौवें भाव में फल

यह घर मंगल ग्रह के मित्र बृहस्पति का है। इस भाव में स्थित मंगल ग्रह बडों का आशिर्वाद और मदद दिलाकर जातक के लिए हर ढंग से अच्छा साबित होगा। जातक के भाइयों की पत्नियां जातक के लिए भाग्यशाली रहेंगी। सामान्यत: उसके अपने पिता की तरह कई भाई होंगे। भाइयों के साथ एक संयुक्त परिवार में रहने पर जातद के सुख में हर ओर से वृद्धि होगी। जातक अपनी उम्र के 28 वें वर्ष तक एक अत्यंत प्रतिष्ठित प्रशासनिक पद प्राप्त कर लेगा। जातक युद्ध से जुड़े सामान के व्यापार में भारी मुनाफा कमा सकता है।

उपाय:
(1) अपने बड़े भाई की आज्ञा मानें।
(2) अपनी भाभी यानी भाई की पत्नी की सेवा करें।
(3) नास्तिक बनें और अपने पारंपरिक और धार्मिक रीति - रिवाजों का पालन करें।
(4) धार्मिक और पूजा स्थलों पर चावल, दूध और गुड़ चढ़ाएं।

लाल किताब के अनुसार मंगल का दसवें भाव में फल

कुंडली में यह मंगल ग्रह की सबसे अच्छी स्थिति है, यह मंगल की उच्च की जगह है। यदि जातक किसी गरीब परिवार में पैदा हुआ है तो उसके जन्म के बाद उसका परिवार अमीर और संपन्न हो जाएगा। यदि वह किसी अमीर परिवार में पैदा हुआ है, तो उसके जन्म के बाद उसका परिवार अमीर और अमीर होता जाएगा। यदि जातक अपने भाइयों में सबसे बडा है तो वह समाज में एक अतिविशिष्ट होगा और खूब मान प्रतिष्ठा हासिल करेगा। जातक निर्भीक, साहसी, स्वस्थ और समाज में परंपराओं, मानदंडों और नियमों को निर्धारित करनें में पर्याप्त सक्षम होगा। हालांकि, यदि दूसरे भाव में राहु, केतु और शनि या शुक्र और चंद्रमा जैसे हनिकर ग्रह हों तो पूर्वोक्त लाभकारी प्रभाव कम हो जाते हैं। इसके अलावा यदि तीसरे भाव में कोई मित्र ग्रह भी स्थित है तो भी दसवें घर में स्थित मंगल ग्रह के परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। यदि शनि तीसरे घर में स्थित है तो जातक अपने जीवन के अंतिम भाग में खूब धन और बहुत सारी जमीन जायदाद प्राप्त करेगा। साथ ही वह एक राजसी पद भी प्राप्त करेगा। मंगल दसम में हो और पांचवें घर में कोई भी ग्रह हो तो चारों तरफ से समॄद्धि और खुशियां आती हैं।

उपाय:
(1) पैतृक संपत्ति और घर का सोना बेचें।
(2) घर में हिरण पालें।
(3) दूध उबालते समय इस बात का खयाल रखें कि दूध उफन कर आग पर गिरने पाए।
(4) काने और निःसंतान व्यक्तियों की मदद करें।

लाल किताब के अनुसार मंगल का ग्यारहवें भाव में फल

क्योकि यह घर बृहस्पति और शनि ग्रह से प्रभावी होता है इसलिए इस घर में मंगल अच्छे परिणाम देता है। यदि बृहस्पति उच्च का हो तो मंगल बहुत अच्छे परिणाम देता है। जातक साहसी और आम तौर पर व्यापारी होता है।

उपाय:
(1) पैतृक संपत्ति कभी भी बेचें।
(2) किसी मिट्टी के बर्तन में शहद या सिंदूर रखना अच्छे परिणाम देगा।

लाल किताब के अनुसार मंगल का बारहवें भाव में फल

यह घर बृहस्पति से प्रभावित घर होता है। इसलिए यहां पर मंगल और और बृहस्पति दोनों के अच्छे परिणाम मिलते हैं। यह राहू का पक्का घर भी कहा गया है इसलिए मंगल के यहां स्थित होने के कारण राहू का दुष्प्रभाव भी नहीं मिलता।

उपाय:
(1) सुबह खाली पेट शहद का सेवन करें।
(2) मिठाई खाना और दूसरों को भी देने से जातक के धन की बृद्धि होती है।

 

बृहस्पति ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

पढ़ें लाल किताब के अनुसार बृहस्पति ग्रह से संबंधित प्रभाव और उपाय। ज्योतिष में बृहस्पति को एक शुभ ग्रह माना गया है। लाल किताब जो कि पूरी तरह से उपाय आधारित ज्योतिष पद्धति है। इसमें बृहस्पति ग्रह के विभिन्न भावों में फल और उनके प्रभाव के बारे में विस्तार से व्याख्या की गई है।

लाल किताब में बृहस्पति ग्रह

हिन्दू ज्योतिष में बृहस्पति को देव गुरु कहा जाता है। यह धनु और मीन राशि का स्वामी है और कर्क राशि में उच्च और मकर राशि में नीच का होता है। सूर्य, मंगल और चंद्रमा बृहस्पति के मित्र हैं। वहीं शुक्र, बुध शत्रु और शनि राहु बृहस्पति के साथ सम-भाव रखते हैं। लाल किताब में बृहस्पति को एक महत्वपूर्ण ग्रह माना गया है। पीपल, पीला रंग, सोना, हल्दी, चने की दाल, पीले फूल, केसर, गुरु, पिता, वृद्ध पुरोहित, विद्या और पूजा-पाठ यह सब बृहस्पति के प्रतीक माने गये हैं।

लाल किताब के अनुसार मित्र ग्रहों के साथ बृहस्पति

चंद्रमा का साथ मिलने पर बृहस्पति की शक्ति बढ़ जाती है। वहीं मंगल का साथ मिलने पर बृहस्पति की शक्ति दोगुना बढ़ जाती है। सूर्य ग्रह के साथ से बृहस्पति की मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है।

शत्रु ग्रहों के साथ बृहस्पति

बृहस्पति के तीन मित्र ग्रह होने के साथ-साथ तीन शत्रु ग्रह भी हैं। ये ग्रह सदैव बृहस्पति को हानि पहुंचाने के लिए अवसर तलाशते हैं। बृहस्पति का पहला शत्रु बुध है, दूसरा शुक्र और तीसरा शत्रु राहु है।

बृहस्पति ग्रह के गुण और अवगुण

संसार के हर प्राणी और वस्तु में कोई गुण और अवगुण दोनों होते हैं। ठीक इसी प्रकार आकाश में विचरण कर रहे ग्रहों में भी गुण और अवगुण दोनों होते हैं। बृहस्पति ग्रह मान, प्रतिष्ठा और उत्पत्ति का कारक है लेकिन निर्बल होने पर बृहस्पति के यह सभी गुण पलभर में खत्म हो जाते हैं। जातक अपने कर्मों के द्वारा अपनी जन्म कुंडली के प्रबल और उत्तम बृहस्पति को, जो चतुर्थ भाव में अच्छा फल देने वाला होता है, उसे निर्बल कर लेता है। पिता, बाबा, दादा, ब्राह्मण और बुजुर्गों को निरादर करने से उत्तम बृहस्पति निष्फल हो जाता है।

लाल किताब में बृहस्पति के बुरे प्रभाव के लक्षण

लाल किताब के अनुसार जब कुंडली में बृहस्पति पीड़ित होता है तो जातक पर निम्न प्रभाव देखने को मिलते हैं-

सिर के बीचों बीच से बाल उड़ने लगते हैं

शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न होने लगता है

नेत्र में पीड़ा होने लगती है

सपने में सर्प का दिखना

व्यक्ति के बारे में बेकार की अफवाहें उड़ना

गले में दर्द और फेफड़े की बीमारी होना

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति की शांति के लिए किये जाने वाले उपाय

जब जन्म कुंडली में बृहस्पति की स्थिति कमजोर हो तो, लाल किताब से संबंधित निम्न उपाय अवश्य करना चाहिए।

हल्दी की गांठ पीले रंग के धागे में बांधकर दायीं भुजा पर बांधना चाहिए।

27 गुरुवार तक केसर का तिलक लगाना और केसर की पुड़िया पीले रंग के कपड़े या कागज में अपने पास रखना चाहिए।

पीले रंग के वस्त्र पहनना और घर में पीले रंग के पर्दे लगाना शुभ होता है।

घर में पीले सूरजमुखी का पौधा लगाना चाहिए।

सोने की चेन और बृहस्पति यंत्र धारण करना चाहिए।

बृहस्पति ग्रह से संबंधित अन्य ज्योतिषीय उपाय

बृहस्पति ग्रह के अशुभ प्रभावों को दूर करने और शुभ फल की प्राप्ति के लिए लाल किताब के अलावा अन्य ज्योतिषीय उपाय भी किये जाते हैं।

व्यक्ति को माता-पिता, गुरुजन और अन्य पूज्यनीय व्यक्तियों के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखना चाहिए।

किसी मंदिर या धार्मिक स्थल पर जाकर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।

गुरुवार के दिन मंदिर में केले के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाना चाहिए।

गुरुवार के दिन आटे की लोई में चने की दाल, गुड़ और हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।

चूंकि गुरु आध्यात्मिक ज्ञान का कारक कहा जाता है इसलिए बुद्धिजीवी व्यक्ति और गुरुजन का सम्मान करें।

गुरुवार के दिन बृं बृहस्पतये नमः!’ मंत्र का जाप करें।

गुरुवार को बृहस्पति के वैदिक मंत्र का जाप करने से मोटापा और पेट से संबंधित बीमारियां दूर होती हैं।

गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा में गंध, अक्षत, पीले फूल, पीले पकवान और पीले वस्त्र का दान करें।

बृहस्पति ग्रह से संबंधित यह सभी टोटके गुरुवार के दिन बृहस्पति के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद) और गुरु की होरा में करना चाहिए।

बृहस्पति से संबंधित व्यवसाय और पेशा

बृहस्पति को धर्म, दर्शन और ज्ञान का कारक माना जाता है। न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट, वकील, बैंक मैनेजर, कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर, ज्योतिषी और शिक्षक आदि बृहस्पति ग्रह के प्रतीक हैं।

शेयर मार्केट, किताबों का बिजनेस, शिक्षा और धर्म संबंधी पुस्तकें, वकालत और शिक्षा संस्थाओं का संचालन आदि बृहस्पति के प्रतीक रूप व्यवसाय हैं। फायनेंस कंपनी और अर्थ मंत्रालय भी बृहस्पति के प्रतीक कहे जाते हैं।

बृहस्पति से संबंधित रोग

गुरु के बुरे प्रभाव से व्यक्ति के शरीर में कफ और चर्बी की वृद्धि होती है। डायबिटीज, हर्निया, कमजोर याददाशत, पीलिया, पेट, सूजन, बेहोशी, कान और फेफड़ों आदि से संबंधित रोग होते हैं।

बृहस्पति ग्रह से संबंधित अन्य उपाय

बृहस्पति ग्रह की शांति और उससे शुभ फल प्राप्त करने के लिए जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए। उनमें चीनी, केला, पीला कपड़ा, केसर, नमक, मिठाई, हल्दी, पीले फूल और पीला भोजन उत्तम माना गया है। इस ग्रह की शांति के लिए बृहस्पति से संबंधित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है। दान करते समय आपको ध्यान रहे कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो। किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को दान देना विशेष फलदायक होता है। बृहस्पतिवार के दिन व्रत भी रखना चाहिए। जिन लोगों का बृहस्पति कमजोर हो उन लोगों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए। निर्धन और ब्राह्मणों को दही चावल खिलाना चाहिए। पीपल के वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करना चाहिए। गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है।

बृहस्पति को अन्य सभी ग्रहों का गुरु और ब्रह्मा जी का प्रतीक माना गया है। बृहस्पति की कृपा से जीवन में ज्ञान, धर्म, संतान और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, इसलिए कुंडली में बृहस्पति की स्थिति प्रबल होने बहुत आवश्यक है।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का पहले भाव में फल

पहले घर में स्थित बृहस्पति निश्चय ही जातक को अमीर बनाता है, भले ही वह सीखने और शिक्षा से वंचित हो। जातक स्वस्थ और दुश्मनों निर्भीक रहने वाल होगा। जातक अपने स्वयं के प्रयासों, मित्रों की मदद और सरकारी सहयोग से हर आठवें साल में बडी तरक्की पाएगा। यदि सातवें भाव में कोई ग्रह हो तो विवाह के बाद सफलता और समृद्धि मिलती है। विवाह या अपनी कमाई से चौबीसवें या सत्ताइसवें साल में घर बनवाना जातक की पिता की उम्र के लिए ठीक नहीं होगा। बृहस्पति पहले भाव में हो और शनि नौवें भाव में हो तो जातक को स्वाथ्य से संबंधित परेशानियां होती हैं। बृहस्पति पहले भाव में हो और राहू आठवें भाव में हो तो जातक के पिता की मृत्यु दिल के दौरे या अस्थमा के कारण होती है।

उपाय:
(1) बुध, शुक्र और शनि से सम्बंधित वस्तुएं धार्मिक स्थानों में बांटे।
(2) गायों की सेवा करें और अछूतों की मदद करें।
(3) यदि शनि पांचवे भाव में हो तो घर का निर्माण करें।
(4) यदि शनि नवमें भाव में हो तो शनि से सम्बंधित चीजें जैसे मशीनरी आदि खरीदें।
(5) यदि शनि ग्यारहवें या बारहवें भाव में हो तो, शराब, मांस और अंडे का प्रयोग बिलकुल करें।
(6) नाक में चांदी पहनने से बुध का दुष्प्रभाव दूर होता है।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का दूसरे भाव में फल

इस घर के परिणाम बृहस्पति और शुक्र से प्रभावित होते हैं भले ही शुक्र कुण्डली में कहीं भी बैठा हो। शुक्र और बृहस्पति एक दूसरे के शत्रु हैं। इसलिए दोनों एक दूसरे पर प्रतिकूल असर डालते हैं। नतीजतन, यदि जातक सोने के या आभूषणों के व्यापार में संलग्न होता है, तो शुक्र से संबंधित चीजें जैसे धन और संपत्ति आदि प्रभावित होंगी। यदि जातक का जीवनसाथी भी उसके साथ है तो जातक सम्मान और धन कमाता जाएगा बावजूद इसके उसका जीवनसाथी और परिवार के लोग स्वास्थ्य समस्या या अन्य परेशानियों से ग्रस्त रहेंगे। जातक विपरीत लिंग के लोगों में प्रशंसनीय होगा और अपने पिता की संपत्ति विरासत में प्राप्त करेगा। यदि 2, 6 और 8वां घर शुभ हैं और शनि दसवें घर में नहीं है तो जातक लॉटरी या किसी नि:संतान से सम्पत्ति अर्जित करेगा।

उपाय:
(1) दान-दक्षिणा देने से समृद्धि बढ़ेगी।
(2) दशम भाव में स्थित शनि के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए सांपों को दूध पिलायें।
(3) यदि आपके घर के सामने की सड़क में कोई गड्ढा है तो उसे भर दें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का तीसरे भाव में फल

तीसरे भाव का बृहस्पति जातक को समझदार और अमीर बनाता है, जातक अपने पूरे जीवन काल में सरकार से निरंतर आय प्राप्त करता रहेगा। नवम भाव में स्थित शनि जातक को दीर्घायु बनाता है। यदि शनि दूसरे भाव में हो तो जातक बहुत चतुर और चालाक होता है। चतुर्थ भाव में स्थित शनि यह इशारा करता है कि जातक का पैसा और धन उसके अपने दोस्तों के द्वारा लूट लिया जाएगा। यदि बृहस्पति तीसरे भाव में किसी पापी ग्रह से पीडित है तो जातक अपने किसी करीबी के कारण बरबाद हो जाएगा और कर्जदार हो जाएगा।

उपाय:
(1) देवी दुर्गा की पूजा करें और कन्याओं अर्थात छोटी लड़कियों को मिठाई और फल देते हुए उनके पैर छू कर उनका आशीर्वाद लें।
(2) चापलूसों से दूर रहें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का चौथे भाव में फल

चौथा घर बृहस्पति के मित्र चंद्रमा का है। बृहस्पति इस घर में उच्च का होता है। इसलिए बृहस्पति यहाँ बहुत अच्छे परिणाम देता है और जातक को दूसरों के भाग्य भविष्य तय करने की शक्तियां प्रदान करता है। जातक पैसा, धन, और बहुत सम्पत्ति के साथ साथ सरकार की ओर से सम्मान का अधिकारी होता है। जातक को संकट के समय में दैवीय सहायता प्राप्त होगी। जैसे-जैसे उसकी उम्र बढती जाएगी जातक समृद्धि और धन में भी वृद्धि होगी। लेकिन यदि जातक घर के भीतर मंदिर बनवा लेता है तो उपरोक्त परिणाम नहीं मिलेंगे साथ ही गरीबी और परेशानी पूर्ण वैवाहिक जीवन का सामना करना पड़ेगा।

उपाय:
(1) घर में मंदिर बनायें।
(2) बड़ों की सेवा करें।
(3) सांप को दूध पिलायें।
(4) कभी भी नंगे बदन रहें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का पांचवें भाव में फल

यह घर बृहस्पति और सूर्य से संबंधित होता है। जातक के समृद्धि में वृद्धि पुत्र प्राप्ति के पश्चात होगी। वास्तव में जातक के जितने अधिक पुत्र होंगे वह उतना ही अधिक समृद्धशाली होगा। पांचवां घर सूर्य का अपना घर होता है और इस घर में सूर्य, केतू और बृहस्पति मिश्रित परिणाम देंगे। लेकिन यदि बुध, शुक्र और राहू दूसरे, नौवें, ग्यारहवें और बारहवें भाव में हों तो सूर्य, केतू और बृहस्पति खराब परिणाम देंगे। यदि जातक ईमानदार और श्रमसाध्य है तो बृहस्पति अच्छे परिणाम देगा।

उपाय:
(1) किसी भी तरह का दान या उपहार स्वीकार करें।
(2) पुजारियों और साधुओं की सेवा करें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का छठें भाव में फल

छठवा घर बुध का होता है और केतु का भी इस घर पर प्रभाव माना गया है। इसलिए यह घर बुध, बृहस्पति और केतु का संयुक्त प्रभाव देगा। यदि बृहस्पति शुभ होगा तो जातक पवित्र स्वभाव का होगा। उसे बिना मांगे जीवन में सब कुछ मिल जाएगा। बड़ों के नाम पर दान-दक्षिणा उसके लिए फायदेमंद होगा। यदि बृहस्पति छठवें घर में हो और केतु शुभ हो तो जातक स्वार्थी हो जाएगा। हालांकि, यदि केतु छठवें घर में अशुभ है और बुध भी हानिकर है तो जातक उम्र के 34 साल तक दुर्भाग्यशाली रहेगा। यहाँ स्थित बृहस्पति जातक पिता के अस्थमा रोग का कारण बनता है।

उपाय:
(1) बृहस्पति से संबंधित वस्तुएं मन्दिर में भेंट करें।
(2) मुर्गों को दाना डालें।
(3) पुजारी को कपडे भेंट करें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का सातवें भाव में फल

सातवां घर शुक्र का होता है, अत: यह मिश्रित परिणाम देगा। जातक का भाग्योदय शादी के बाद होगा और जातक धार्मिक कार्यों में शामिल होगा। घर के मामले में मिलने वाला अच्छा परिणाम चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करेगा। जातक देनदार नहीं हो सकता है लेकिन उसके अच्छे बच्चे होंगे। यदि सूर्य पहले भाव में हो तो जातक एक अच्छा ज्योतिषी और आराम पसंद होगा। लेकिन यदि बृहस्पति सातवें भाव में नीच का हो और शनि नौवें भाव में हो तो जातक चोर हो सकता है। यदि बुध नौवें भाव में हो तो जातक के वैवाहिक जीवन परेशानियों से भरा होगा। यदि बृहस्पति नीच का हो तो जातक को भाइयों से सहयोग नहीं मिलेगा साथ ही वह सरकार के समर्थन से भी वंचित रह जाएगा। सातवें घर में बृहस्पति पिता के साथ मतभेद का कारण बनता है। ऐसे में जातक को चाहिए कि वह कभी भी किसी को कपड़े दान करे, अन्यथा वह बडी गरीबी की चपेट में जाएगा।

उपाय:
(1) भगवान शिव की पूजा करें।
(2) घर में किसी भी देवता की मूर्ति रखें।
(3) हमेशा अपने साथ किसी पीले कपडे में बांध कर सोना रखें।
(4) पीले कपडे पहने हुए साधु और फ़कीरों से दूर रहें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का आठवें भाव में फल

बृहस्पति इस घर में अच्छे परिणाम नहीं देता लेकिन जातक को सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। संकट के समय जातक को ईश्वर की सहायता मिलेगी। धार्मिक होने से जातक के भाग्य में वृद्धि होगी। यदि जातक सोना पहनता है तो दुखी या बीमार नहीं होगा। यदि बुध, शुक्र या राहू दूसरे, पांचवें, नौवें, ग्यारहवें या बारहवें भाव में हों तो जातक के पिता बीमार होंगे और स्वयं जातक को प्रतिष्ठा की हानि का सामना करना होगा।

उपाय:
(1) राहु से संबंधित चीजें जैसे गेहूं, जौ, नारियल आदि पानी में बहाएं।
(2) श्मशान में पीपल का पेड़ लगाएं।
(3) मंदिर में घी, आलू और कपूर दान करें।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का नौवें भाव में फल

नौवां घर बृहस्पति से विशेष रूप से प्रभावित होता है। इसलिए इस भाव वाला जातक प्रसिद्ध है, अमीर और एक अमीर परिवार में पैदा होगा। जातक अपनी जुबान का पाक्का और दीर्घायु होगा, उसके बच्चे बडे अच्छे होंगे। यदि बृहस्पति नीच का हो तो जातक में उपरोक्त गुण नहीं होंगे और वह नास्तिक होगा। यदि बृहस्पति का शत्रु ग्रह पहले, पांचवें या चौथे भाव में हो तो बृहस्पति बुरे परिणाम देगा।

उपाय:
(1) हर रोज मंदिर जाना चाहिए।
(2) शराब पीने से बचें।
(3) बहते पानी में चावल बहाएं।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का दसवें भाव में फल

यह भाव शनि का घर होता है। इसलिए जातक जब खुश होगा तो शनि के गुणों को आत्मसात करेगा। यदि जातक चालाक और धूर्त होगा तभी बृहस्पति के अच्छे परिणाम का आनंद ले पाएगा। यदि सूर्य चौथे भाव में बृहस्पति बहुत अच्छा परिणाम देगा। चौथे भाव के शुक्र और मंगल जातक के कई विवाह सुनिश्चित करते हैं। यदि 2, 4 और 6 भावों में मित्र ग्रह हों तो पैसों और आर्थिक मामलों में बृहस्पति अत्यधिक लाभकारी परिणाम प्रदान करता है। यदि दसम में स्थित बृहस्पति नीच का हो तो जातक उदास और गरीब होता है। वह पैतृक सम्पत्ति, पत्नी और बच्चों से वंचित रहता है।

उपाय:
(1) कोई भी काम शुरू करने से पहले अपनी नाक साफ करें।
(2) नदी के बहते पानी में 43 दिनों के लिए तांबे के सिक्के बहाएं।
(3) धार्मिक स्थानों में बादाम बाटें।
(4) घर के भीतर मंदिर बनाकर मूर्तियां स्थापित करें।
(5) माथे पर केसर का तिलक लगाएं।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का ग्यारहवें भाव में फल

इस घर में बृहस्पति अपने शत्रु ग्रहों बुध, शुक्र और राहु से सम्बंधित चीजों और रिश्तेदारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। नतीजतन, जातक की पत्नी दुखी रहेगी। इसी तरह, बहनें, बेटियां और बुआ भी दुखी रहेंगी। बुध सही स्थिति में तो भी जातक कर्जदार होता है। जातक तभी आराम से रह पाएगा जब वह पिता, भाइयों, बहनों और मां के साथ साथ एक संयुक्त परिवार में रहे।

उपाय:
(1) हमेशा अपने शरीर पर सोना पहनें।
(2) तांबे का कडा पहनें।
(3) पीपल के पेड़ में जल चढाएं।

लाल किताब के अनुसार बृहस्पति का बारहवें भाव में फल

बारहवा घर बृहस्पति और राहु के संयुक्त प्रभाव में होता है जो कि एक दूसरे के शत्रु होते हैं यदि जातक अच्छा आचरण करता है, धार्मिक प्रथाओं को मानता है और सभी के लिए अच्छा चाहता है तो वह खुशहाल होगा और रात में आरामदायक नींद का आनंद ले पाएगा। जातक अमीर और शक्तिशाली होगा। शनि के दुष्कर्मों से बचाव करने पर मशीनरी, मोटर, ट्रक और कार से सम्बंधित काम फायदेमंद रहेंगे।

उपाय:
(1) किसी भी मामले में झूठी गवाही से बचें।
(2) साधुओं, गुरुओं और पीपल के पेड़ की सेवा करें।
(3) रात में अपने बिस्तर के सिरहनें पानी और सौंफ रखें।

 

शुक्र ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

पढ़ें लाल किताब के अनुसार शुक्र ग्रह से संबंधित प्रभाव और उपाय। ज्योतिष में शुक्र को एक शुभ ग्रह माना गया है। लाल किताब जो कि पूरी तरह से उपाय आधारित ज्योतिष पद्धति है। इसमें शुक्र ग्रह के विभिन्न भावों में फल और उनके प्रभाव के बारे में विस्तार से व्याख्या की गई है।

लाल किताब में शुक्र ग्रह

शुक्र एक चमकीला और नैसर्गिक रूप से सुन्दर ग्रह है। शुक्र के प्रभाव से व्यक्ति को भौतिक और समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। लाल किताब के अनुसार शुक्र ग्रह प्रेम, वासना, विवाह, जीवनसाथी, गृहस्थी सुख और जमीन का कारक होता है। मनुष्य के अंदर प्रेम की भावना का नाम शुक्र है। इसके लिए व्यक्ति रुपया, पैसा, भूमि, संपत्ति और धन-दौलत सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हो जाता है। शुक्र ग्रह को लक्ष्मी जी का प्रतीक माना गया है। कुंडली में शुक्र की शुभ स्थिति जीवन को सुखमय और प्रेममय बनाती है और अशुभ स्थिति चारित्रिक दोष पीड़ा उत्पन्न करती है।

लाल किताब में शुक्र ग्रह का महत्व

काल पुरुष कुंडली में शुक्र का स्थान द्वितीय और सप्तम है। जहां द्वितीय भाव संपत्ति, परिवार और मुख का कारक है, जबकि सप्तम भाव से जीवनसाथी, बिजनेस पार्टनर और यात्रा के समय सहयात्री को देखा जाता है। शुक्र ग्रह को वृषभ और तुला राशि का स्वामित्व प्राप्त है। शुक्र मीन राशि में उच्च का माना गया है जबकि कन्या राशि में यह नीच का होता है। लाल किताब में शुक्र ग्रह गाय, पति-पत्नी, धन, लक्ष्मी, दूसरे और सातवें घर का मालिक है। इसलिए दूसरा घर घर-पति-पत्नी या ससुराल का भाव माना गया है और सप्तम भाव गृहस्थ जीवन का भाव होता है। शनि, बुध और केतु शुक्र के मित्र ग्रह होते हैं। वहीं सूर्य, चंद्रमा और राहु इसके शत्रु माने गये हैं। बुध, केतु और शनि के घर में शुक्र बलवान और उत्तम फल देने वाला होता है। वहीं शुक्र ग्रह बृहस्पति से शत्रुता का भाव रखता है। वहीं सूर्य और शनि की दृष्टि शुक्र को प्रभावित करती है। सूर्य और शनि के बीच टकराव में शुक्र हमेशा निर्बल हो जाता है। शुक्र को पुरुष की कुंडली में स्त्री और स्त्री की कुंडली में पुरुष माना जाता है। टेवे में दूसरा, तीसरा, चौथा, सातवां और बारहवें खाने में शुक्र श्रेष्ठ माना जाता है जबकि प्रथम, षष्टम और नवम खाने में यह मंदा होता है। सप्तम भाव में शुक्र जिस ग्रह के साथ संबंध बनाता है उसे अपना प्रभाव प्रदान करता है। शुक्र चंद्रमा के साथ मिलकर नैसर्गिक लक्ष्मी योग बनाता है। जिस जातक की कुंडली में शुक्र और चंद्रमा की युति हो, वह व्यक्ति काम भावना में प्रबल और विलासिता के साधन जुटाने में आगे होता है।

लाल किताब के अनुसार शुक्र ग्रह के कारकत्व

लाल किताब में शुक्र ग्रह कई विषयों का कारक और प्रतीक माना गया है। इनमें देवी लक्ष्मी, धन, भूमि, संपत्ति, किसान, गाय, बैल, कुम्हार, मनियार, पशु पालक, शुक्र ग्रह के प्रतीक हैं। इसके अलावा दही, दही जैसा रंग, कपास, घी, पति-पत्नी, वीर्य, लिंग, कामदेव, फूल, अन्न, मक्खन, चमड़ी, स्थान, भूमि, श्रृंगार का सामान, मिट्टी मिट्टी से संबंधित कार्य, हीरा, जस्ता, धातु, गोबर और गौ मूत्र सभी वस्तुएँ शुक्र से संबंधित हैं। शरीर में जननांग, वीर्य नेत्र पर शुक्र का प्रभाव रहता है। शुक्र प्रेम, विवाह, मैथुन, ऐश्वर्य, गायन और नृत्य का अधिपति होता है।

शुक्र ग्रह का संबंध

जर (पैसा), जोरु (स्त्री) और जमीन का मिश्रण शुक्र कहलाता है, इसलिए इन तीनों के मालिक व्यक्ति के घर में शुक्र (लक्ष्मी) का वास माना जाता है। अतः शुक्र ग्रह को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है।

शुक्र ग्रह के अशुभ होने के लक्षण

शुक्र ग्रह का राहु के साथ होना यानि स्त्री और धन का प्रभाव खत्म होने लगता है।

अंगूठे में दर्द रहना या बिना किसी बीमारी के ही अंगूठा खराब हो जाता है।

त्वचा विकार, गुप्त रोग, जीवनसाथी से अनावश्यक कलह भी शुक्र के बुरे लक्षण को दर्शाती है।

अगर शनि मंदा अर्थात नीच का हो, तब भी शुक्र ग्रह का प्रभाव बुरा होता है।

शुक्र के अशुभ फल देने पर व्यक्ति में चारित्रिक दोष उत्पन्न हो जाता है। मंदा शुक्र वैवाहिक जीवन में अशांति और कलह पैदा करता है। त्वचा संबंधी रोग और अंगूठे में पीड़ा भी शुक्र की अशुभ निशानी कही गई है।

 

लाल किताब में शुक्र ग्रह से जुड़े टोटके उपाय

अगर कुंडली में शुक्र योग कारक ग्रह होते हुए भी अच्छे फल प्रदान नहीं कर रहा है तो लाल किताब के उपाय अवश्य करना चाहिए-

शुक्रवार या अन्य किसी शुभ मुहूर्त में चांदी के आभूषण धारण करना चाहिए।

चांदी की कटोरी में सफेद चंदन, सफेद पत्थर का टुकड़ा रखकर शयन कक्ष में रखें।

हीरा या शुक्र यंत्र धारण करें।

क्रीम रंग के वस्त्र धारण करना और घर में क्रीम रंग के पर्दे चादरों आदि का प्रयोग करना चाहिए।

घर में तुलसी का पौधा लगाना, सफेद पुष्प लगाना और सफेद गाय रखना शुभ होगा।

शुक्रवार के दिन श्री दुर्गा पूजन, 5 कन्याओं की पूजा और उन्हें खीर सफेद वस्त्र भेंट करना।

आलू में हल्दी डालकर उन्हें पीले कर गाय को खिलाना चाहिए।

पांच शुक्रवार तक धर्म स्थान पर दूध, मिश्री, चावल, बर्फी और सफेद वस्त्र का दान करना चाहिए।

माता, दादी और महिलाओं आदि को प्रसन्न रखना और उन्हें दुःख नहीं देना चाहिए।

शुक्रवार से शुरू करके सात दिनों तक गौ शाला में गाय को हरा चारा, शक्कर डालना चाहिए।

चांदी की गोली सदैव अपनी पॉकेट में रखें।

चतुर्थ भाव में शुक्र का मंदा होने पर जीवनसाथी से पुनः विवाह करना चाहिए।

धन संतान के लिए स्त्री को बालों में सोने की क्लिप या सुई लगाकर रखना चाहिए।

खाना नंबर 6 में शुक्र मंदा होने पर संतान के लिए अंगों को दूध से धोना चाहिए।

लाल किताब में शुक्र ग्रह के संबंध में मन और इंद्रियों को नियंत्रित रखने पर विशेष बल देता है।

शुक्र को प्रमुखता से दो रूपों में देखा जाता है। एक स्त्री या लक्ष्मी के रूप में और दूसरा दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के रूप में। एक ओर जहां शुक्र समस्त सांसारिक सुख-साधन प्रदान करता है। वहीं दूसरी ओर साहस और शक्ति भी देता है, इसलिए कुंडली में शुक्र की शुभ स्थिति हर व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होती है।

हम आशा करते हैं कि लाल किताब में शुक्र ग्रह पर आधारित यह जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का पहले भाव में फल

पहले घर का शुक्र जातक को अत्यधिक सुंदर, दीर्घायु, मॄदुभाषी, और विपरीत लिंगियो के बीच लोकप्रिय बनाता है। जातक की पत्नी बीमार रहती है। धर्म, जाति, पंथ जातक को किसी के साथ यौन संबंध बनाने में बाधक नहीं बनेंगे। आमतौर पर ऐसा जातक स्वाभाव से बहुत रोमांटिक होता है और अन्य महिलाओं के साथ प्यार और सेक्स के लिए लालायित रहता है। कमाई शुरू करने से पहले ही जातक की शादी हो जाती है। ऐसा जातक हमउम्र लोगो का नेता बन जाता है, लेकिन परिवार के सदस्यों का नेतृत्व करना मुसीबतों का कारण बनता है। ऐसा जातक कपडों के व्यापार से बहुत लाभ कमाता है। आमतौर पर ऐसे जातक की रुचि धार्मिक गतिविधियों में नहीं होती। जब वर्षफल में शुक्र सातवें भाव में आता है तो यह जीर्ण ज्वर और खूनी खाँसी का कारण बनता है।

उपाय:
(1) 25 वर्ष की उम्र में शादी करें।
(2) हमेशा दूसरों की सलाह लेकर ही किसी नये काम की शुरुआत करें।
(3) काले रंग की गाय की सेवा करें।
(4) दिन के समय सेक्स करने से बचें।
(5) दही मिलाकर स्नान करें।
(6) गोमूत्र का सेवन बहुत उपयोगी होगा।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का दूसरे भाव में फल

दूसरों का बुरा या बुराई करना जातक के लिए हानिकारक साबित होगा। साठ वर्ष की उम्र तक पैसा, धन और संपत्ति बढते जाएंगे। शेरमुखी घर (सामने से व्यापक पीछे से कम) जातक के लिए विनाशकारी साबित होगा। सोने और आभूषणों से संबंधित व्यवसाय या व्यापार अत्यंत हानिकारक होगा। मिट्टी के सामान से जुडा व्यवसाय, कृषि और पशु बेहद फायदेमंद साबित होंगे। स्त्री जातक की कुण्डली में दूसरे भाव में स्थित शुक्र संतान की समस्या देता है जबकि पुरुष जातक की कुण्डली में ऐसी स्थित पुत्र संतान की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है।

उपाय:
(1) संतान की समस्या के लिए जातक को मंगल से संबंधित चीजें जैसे शहद, सौंफ अथवा देशी खांड का इस्तेमाल करना चाहिए।
(2) गायों को हल्दी के पीले रंग से रंगे दो किलोग्राम आलू खिलाएं।
(3) मंदिर में दो किलोग्राम गाय का घी भेंट करें।
(4) व्यभिचार से बचें।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का तीसरे भाव में फल

यहाँ स्थित शुक्र जातक को एक आकर्षक व्यक्तित्व देता है जिससे हर स्त्री उसकी ओर आकर्षित होती है। आम तौर पर सभी उसे प्यार करते हैं। यदि जातक किसी और स्त्री से संबंध रखता है तो जातक को अपनी पत्नी की चापलूसी करनी पडती है। अन्यथा वह हमेशा अपनी पत्नी पर हावी रहता है। हालांकि जातक की पत्नी सब पर हावी रहेगी लेकिन यदि जातक पराई स्त्री से संबंध नही रखता हो वह उस पर हावी रहेगा। जातक की पत्नी साहसी, समर्थक और बैलगाड़ी के दूसरे बैल की तरह जातक के लिए सहयोगी होगी। वह जातक को छल, चोरी और नुकसान से बचाने वाली होगी। अन्य महिलाओं के साथ संपर्क जातक के लिए हानिकारक साबित होगा और दीर्घायु पर प्रतिकूल असर डालने वाल होगा। यदि नवम और एकादश भाव में शुक्र के शत्रु ग्रह स्थित हों तो प्रतिकूल परिणामों की प्राप्ति होगी। जातक के कई बेटियां होंगी।

उपाय:
(1) अपनी पत्नी का सम्मान करें और अतिरिक्त वैवाहिक मामलों से बचें।
(2) पराई औरतों के साथ छेड़खानी (फ्लर्ट) करने से बचें।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का चौथे भाव में फल

चौथे भाव में स्थित शुक्र दो पत्नियों की संभावना को मजबूत करता है और जातक को धनवान बनाता है। यदि बृहस्पति दसम भाव में हो और शुक्र चौथे भाव में हो और जातक धार्मिक बनने की कोशिश करेगा तो हर तरफ से प्रतिकूल परिणाम मिलेंगे। यदि जातक ने कुएं के ऊपर छ्त बना रखी है या मकान बना रखा है तो चौथे भाव में बैठा शुक्र पुत्र प्राप्ति की संभावना को कमजोर करता है। बुध से संबंधित व्यापार भी नुकशान देय होता है। यदि जातक शराब पीता है तो शनि विनाशकारी प्रभाव देगा। मंगल से संबंधित व्यापार जातक के लिए फायदेमंद साबित होगा। चौथे घर का शुक्र और पहले घर का बृहस्पति सास से झगडा करवाता है।

उपाय:
(1) अपनी पत्नी का नाम बदलें और उससे औपचारिक रूप से पुनर्विवाह करें।
(2) चावल, चांदी और दूध बहते पानी में बहाएं अथवा खीर या दूध माँ समान महिलाओं को खिलाने से सास और बहू के बीच होने वाले झगड़े शांत होंगे।
(3) पत्नी के स्वास्थ्य के लिए घर की छत को साफ और स्वच्छ बनाए रखें।
(4) बृहस्पति से सम्बन्धित चीजें जैसे चना, दालें, और केसर की तरह नदी में बहाएं।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का पांचवें भाव में फल

पांचवां घर सूर्य का पक्का घर है जहां शुक्र सूर्य की गर्मी से जल जाएगा। नतीजन जातक रसिक मिज़ाज होगा। उसे अपने जीवनकाल में बडे दुर्भाग्य का सामना करना पडेगा। हालांकि, यदि जातक अपने चरित्र को अच्छा बनाए रखता है तो वह जीवन की कठिनाइयों को पार कर जाएगा और धनवान बनेगा। शादी के पांच साल के बाद उसे पदोन्नति मिलेगी। आम तौर पर ऐसा जातक अनुभवी और शत्रुओं को परास्त करने वाला होता है।

उपाय:
(1) अपने माता पिता की मर्जी के खिलाफ शादी करें।
(2) गायों और माँ के समान स्त्रियों की सेवा करें।
(3) विवाहेत्तर संबंधों से बचें।
(4) जातक दूध या दही से अपना गुप्तांग साफ करें।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का छठें भाव में फल

यह घर बुध और केतू का माना गया है जो एक दूसरे के शत्रु हैं। लेकिन शुक्र दोनों का मित्र है। इस घर में शुक्र नीच का होता है। लेकिन यदि जातक विपरीत लिंगी को प्रसन्न रखता है और सारे और सुविधा उपलब्ध करवाता है तो उसके धन और पैसे में बृद्धि होगी। जातक की पत्नी को पुरुषों के जैसे कपडे नहीं पहनने चाहिए और ही पुरुषों के जैसे बाल रखने चाहिए अन्यथा गरीबी बढती है। ऐसे जातक को उसी से विवाह करना चाहिए जिसके भाई हों। इसके अलावा, जातक कोई भी पूरा किए बिना काम बीच में नहीं छोडता।

उपाय:
(1) पत्नी के बालों में सोने की हेयर क्लिप का उपयोग करवाएं।
(2) खयाल रखें कि पत्नी नंगे पैर चले।
(3) निजी अंगों को लाल दवा से धोएं।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का सातवें भाव में फल

यह घर शुक्र का ही होता है अत: यहां स्थित शुक्र बहुत अच्छे परिणाम देता है। अगर यह इस घर में रखा गया है। पहले भाव में स्थित ग्रह सातवें भाव पर इस प्रकार प्रभाव डालता है मानो वह सातवें भाव में स्थित हो। यदि पहले भाव में स्थित ग्रह शुक्र का शत्रु ग्रह जैसे राहू हो तो जातक की पत्नी और घरेलू मामले बुरी तरह से प्रभावित होंगे। जातक बडे पैमाने पर अपने पैसे महिलाओं पर खर्च करता है। विवाह से संबंधित व्यापार-व्यवसाय जैसे टेन्ट हाउस और ब्यूटी पार्लर आदि का काम जातक के लिए फायदेमंद रहेगा। एक आँख और काली औरत के साथ एसोसिएशन उपयोगी साबित होगा। काने व्यक्ति या काली औरत की संगति फायदेमंद रहेगी।

उपाय:
(1) सफेद गाय पालें।
(2) लाल गायों की सेवा करें।
(3) जीवन साथी के बजन के बराबर किसी मन्दिर में जौ दान करें।
(4) गंदी नाली या नहर में 43 दिनों तक नीले फूल फेंकें।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का आठवें भाव में फल

इस घर में कोई ग्रह शुभ नहीं माना जाता है यहां तक कि शुक्र भी इस घर में बिगड जाता है और जहरीला हो जाता है। ऐसे जातक की पत्नी गुस्सैल और अत्यधिक चिड़चिडी हो जाती है। उसके मुँह से निकली बुरी बातें निश्चित रूप से सच साबित होती हैं। जातक स्वयं की सहानुभूति से पीडित हो जाएगा। किसी की गारंटी या जामानत लेना विनाशकारी साबित होगा। यदि दूसरे भाव में कोई ग्रह हो तो 25 साल से पहले शादी करें अन्यथा पत्नी मर जाएगी।

उपाय:
(1) कोई भी वस्तु दान के रूप में स्वीकार करें।
(2) नियमित रूप से मन्दिर जाएं और पूजा स्थलों तथा मंदिरों में सिर झुकाएं।
(3) तांबे के सिक्के या नीले फूल लगातार दस दिनों तक गटर या गंदे नाले में फेंकें
(4) दही से अपने गुप्तांगों को धोएं।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का नौवें भाव में फल

इस घर में स्थित शुक्र अच्छे परिणाम नहीं देता। जातक धनवान हो सकता है लेकिन अपनी रोटी के लिए उसे कडी मेहनत करनी पडेगी। उसे अपने प्रयासों का उचित पुरस्कार नहीं मिलेगा। घर में पुरुष सदस्यों, पैसा, धन और संपत्ति की कमी हो जाएगी। यदि शुक्र बुध या किसी अशुभ ग्रह के साथ है तो जातक सत्रह साल की उम्र से नशे और किसी रोग का शिकार हो जाएगा।

उपाय:
(1) घर की नींव चांदी और शहद दबाएं।
(2) पत्नी (या स्त्री है तो स्वयं) लाल चूड़ियाँ पहनें जिनमें चांदी की धारियां हों अथवा चांदी चूड़ियाँ जिन पर लाल रंग की डिजाइनिंग हो।
(3) किसी नीम के पेड़ के नीचे 43 दिनों के लिए चांदी का टुकड़ा दबाएं।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का दसवें भाव में फल

इस घर में शुक्र जातक को लालची, संदिग्ध और हस्तकला में रुचि लेने वाला बनाता है। जातक अपनी पत्नी के मार्गदर्शन के तहत कार्य करेगा। जब तक पत्नी जातक के साथ होगी हर मुसीबत जातक से दूर रहेगी। कोई मोटर कार दुर्घटना या अन्य कोई नुकशान नहीं होगा। शनि से जुड़े व्यापार और चीजें फायदेमंद साबित होंगी।

उपाय:
(1) निजी अंगों को दही से धुलें।
(2) घर की पश्चिमी दीवार मिट्टी की होनी चाहिए।
(3) शराब, अण्डा और मांशाहारी भोजन करें।
(4) बीमार होने की दशा में काले रंग की गाय का दान करना चाहिए।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का ग्यारहवें भाव में फल

इस घर में शुक्र शनि और बृहस्पति से प्रभावित होता है, क्योंकि यह घर बृहस्पति और शनि के अंतर्गत आता है। यह घर तीसरे भाव से देखा जाता है जो कि मंगल और बुध का घर है। जातक की पत्नी अपने भाई के माध्यम से, बहुत फायदेमंद साबित होगी।

उपाय:
(1) बुध का उपाय उपयोगी रहेगा।
(2) शनिवार को तेल का दान करें।
(3) आम तौर पर जातक के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम हो सकती है। ऐसे में जातक को दूध में सोने के गरम टुकडे को बुझाकर दूध पीना चाहिए।

लाल किताब के अनुसार शुक्र का बारहवें भाव में फल

इस घर उच्च का शुक्र बहुत लाभकारी परिणाम देता है। जातक के पास ऐसी पत्नी होगी जो मुसीबत के समय में किसी ढाल की तरह कार्य करेगी। महिलाओं से मदद लेना जातक के लिए अत्यधिक फायदेमंद साबित होगा। जातक को सरकार से सहयोग मिलेगा। शुक्र की बृहस्पति से शत्रुता के कारण पत्नी को स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं। दूसरे या छठवें भाव में स्थित बुध जातक को रोगी बनाता है लेकिन जातक को साहित्यिक और काव्य प्रतिभा प्रदान करता है। ऐसा जातक 59 साल की उम्र में उच्च आध्यात्मिक शक्तियों प्राप्त करता है और 96 वर्षों तक जीवित रहता है।

उपाय:
(1) पत्नी (स्त्री) नीला फूल या फल सूर्यास्त (शाम) के समय किसी सुनसान जगह पर खोद कर दबाए, इससे स्वास्थ अच्छा रहेगा।
(2) यदि पत्नी दूसरों को दान देती है तो वह पति के लिए किसी रक्षा की दीवार की तरह काम करेगी।
(3) गाय पालें और दान भी करें।
(4) पत्नी को प्यार, इज्जत और सम्मान दें।

 

शनि ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

लाल किताब के अनुसार शनि ग्रह से संबंधित प्रभाव और उपाय। ज्योतिष शास्त्र में शनि को क्रूर पापी ग्रह माना गया है। लाल किताब जो कि पूरी तरह से उपाय आधारित ज्योतिष पद्धति है। इसमें शनि ग्रह के विभिन्न भावों में फल और उनके प्रभाव के बारे में विस्तार से व्याख्या की गई है।

लाल किताब में शनि ग्रह

लाल किताब में शनि ग्रह को पापी ग्रहों का सरताज कहा जाता है। राहु और केतु दोनों इसके सेवक हैं। यदि यह तीनों ग्रह मिल जाये तो एक खतरनाक स्थिति बन जाया करती है। शनि शुक्र का प्रेमी और शुक्र इसकी प्रेमिका है। बुध अपनी आदत के अनुसार इन पापी ग्रहों के साथ मिलकर इनके जैसा ही बन जाया करता है। इसलिए यदि राहु, केतु शनि के सेवक हैं तो बुध, शुक्र शनि के मित्र हैं। अर्थात् शनि, राहु, केतु, बुध और शुक्र हर शरारत और फसाद की जड़ हो सकते हैं।

लाल किताब में शनि ग्रह का महत्व

ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को कलियुग का न्यायाधीश कहा जाता है। वे परम दण्डाधिकारी हैं और मनुष्य को उसके पाप और बुरे कार्यों के अनुसार दंडित करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनि देव के कारण ही भगवान गणेश के सिर कटा। भगवान राम को भी शनिदेव के कारण ही वनवास जाना पड़ा। महाभारत काल में पांडवों को जंगल में भटकना पड़ा, उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को कष्ट झेलने पड़े, राजा हरिशचंद्र दर-दर भटके और राजा नल और रानी दमयंती को जीवन में दुःखों का सामना करना पड़ा था। शनि को सूर्य पुत्र कहा जाता है। वैदिक ज्योतिष में शनि को क्रूर पापी ग्रह कहा गया है लेकिन यह सर्वाधिक शुभ फलदायी ग्रह भी है। लाल किताब के अनुसार दशम और एकादश भाव शनि के भाव हैं। शनि को मकर और कुंभ दो राशियों का स्वामित्व प्राप्त है। कुंडली के प्रथम भाव पर मेष राशि का आधिपत्य है और इस राशि में शनि नीच का होता है। शुभ योग होने पर इस भाव का शनि व्यक्ति को मालामाल कर देता है, जबकि अशुभ योग होने पर बर्बाद करके रख देता है। सप्तम भाव में राहु और केतु के होने पर शनि और भी अशुभ फलदायी हो जाता है। यदि दशम या एकादश भाव में सूर्य हो तो, मंगल शुक्र भी अशुभ फल देने लगते हैं।

लाल किताब के अनुसार शनि ग्रह के कारकत्व

शनि को कर्म भाव का स्वामी कहा जाता है। यह सेवा और नौकरी का कारक होता है। काला रंग, काला धन, लोहा, लोहार, मिस्त्री, मशीन, कारखाना, कारीगर, मजदूर, चुनाई करने वाला, लोहे के औजार सामान, जल्लाद, डाकू, चीर फाड़ करने वाला डॉक्टर, चालाक, तेज नज़र, चाचा, मछली, भैंस, भैंसा, मगरमच्छ, सांप, जादू, मंत्र, जीव हत्या, खजूर, अलताश का वृक्ष, लकड़ी, छाल, ईंट, सीमेंट, पत्थर, सूती, गोमेद, नशीली वस्तु, मांस, बाल, खाल, तेल, पेट्रोल, स्पिरिट, शराब, चना, उड़द, बादाम, नारियल, जूता, जुराब, चोट, हादसा यह सब शनि से संबंधित है।

शनि ग्रह का संबंध

शनि भैरों महाराज का प्रतीक और पापी ग्रहों के गिरोह का सरदार ग्रह है। काला धन, लोहा, तेल, शराब, मांस और मकान आदि शनि से संबंधित वस्तुएँ हैं। वहीं भैंस, सांप, मछली, मजदूर आदि शनि से संबंधित जीव हैं। शनि जिस पर प्रसन्न हो जाये उसे निहाल कर दे और अगर क्रोधी हो जाये तो बर्बाद कर दे।

शनि ग्रह के अशुभ होने के लक्षण

शनि के अशुभ प्रभाव से विवादों की वजह से भवन बिक जाता है।

मकान या भवन का हिस्सा गिर जाता है या क्षतिग्रस्त हो जाता है।

अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं।

घर या दुकान में अचानक आग लग सकती है।

किसी भी प्रकार से धन और संपत्ति का नाश होने लगता है।

मनुष्य पराई स्त्री से संबंध रखकर बर्बाद हो जाता है।

जुआ-सट्टे की लत लगने से व्यक्ति कंगाल हो जाता है।

कानूनी या आपराधिक मामले में जेल हो जाती है।

शराब के अत्यधिक सेवन से व्यक्ति की सेहत खराब हो जाती है।

किसी हादसे में व्यक्ति अपंग हो सकता है।

लाल किताब में शनि ग्रह से जुड़े टोटके उपाय

शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए हनुमान जी की सेवा और प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।

शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं।

तिल, उड़द, लोहा, भैंस, तेल, काले कपड़े, काली गाय और जूते भी दान में देना चाहिए।

मांगने वाले को लोहे का चिमटा, तवा, अंगीठी दान में देना चाहिए।

जातक मस्तक पर तेल की बजाय दूध या दही का तिलक लगाया करें तो अति लाभदायक होगा।

काले कुत्ते को रोटी खिलाना, पालना और उसकी सेवा करने से लाभ होगा।

मकान के अंत में अंधेरी कोठी शुभ होगी।

मछलियों को दाना या चावल डालना लाभकारी होता है।

चावल या बादाम बहते पानी में डालने से लाभ होगा।

शराब, मांस और अंडे से सख्त परहेज करें।

मशीनरी और शनि संबंधित अन्य वस्तुओं से लाभ होगा।

प्रतिदिन कौअे को रोटी खिलाएं।

दांत, नाक और कान सदैव साफ रखें।

अंधे, दिव्यांग, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार करें।

छाया पात्र दान करें यानि एक कटोरी या अन्य पात्र में सरसों का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापों की क्षमा मांगते हुए रख आएं।

भूरे रंग की भैंस रखना लाभकारी होगी।

मजदूर, भैंस और मछली की सेवा से लाभ होगा।

शनि हर राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहता है, इसलिए जब शनि मंदा हो या जातक अपने कर्मों द्वारा उसे मंदा कर ले, तो शनि 3 राशियों को पार करने के समय में व्यक्ति को बहुत दुःख और परेशानी पहुंचाता है। इसी को साढ़े सात वर्ष की साढ़े साती कहा गया है। चूंकि शनि एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता है इसलिए तीन राशियों में यह कुल साढ़े सात वर्ष की अवधि गुजारता है। जब शनि चंद्र से प्रथम राशि में आता है तो साढ़े साती प्रारंभ होती है और जब चंद्र से अगली राशि में से निकलने के बाद शनि की साढ़े साती खत्म हो जाती है।

हम आशा करते हैं शनि ग्रह पर आधारित लाल किताब से संबंधित यह जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

लाल किताब के अनुसार शनि का पहले भाव में फल

पहला घर सूर्य और मंगल ग्रह से प्रभावित होता है। पहले घर में शनि तभी अच्छे परिणाम देगा जब तीसरे, सातवें या दसवें घर में शनि के शत्रु ग्रह हों। यदि, बुध या शुक्र, राहू या केतू, सातवें भाव में हों तो शनि हमेशा अच्छे परिणाम देगा। यदि शनि नीच का हो और जातक के शरीर में बाल अधिक हों तो जातक गरीब होगा। यदि जातक अपना जन्मदिन मनाता है तो बहुत बुरे परिणाम मिलेंगे हालांकि जातक दीर्घायु होगा।

उपाय:
(1) शराब और मांसाहारी भोजन से स्वयं को बचाएं।
(2) नौकरी और व्यवसाय में लाभ के लिए जमीन में सुरमा दफनायें।
(3) सुख और समृद्धि के लिए बंदरों की सेवा करें।
(4) बरगद के पेड़ की जड़ों पर मीठा दूध चढानें से शिक्षा और स्वास्थ्य में सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।

लाल किताब के अनुसार शनि का दूसरे भाव में फल

जातक बुद्धिमान, दयालु और न्यायकर्ता होगा। वह धन का आनंद लेगा और धार्मिक स्वभाव का होगा। भले ही शनि उच्च का हो या नीच का, यह नतीजा आठवें भाव में बैठे ग्रह पर निर्भर करेगा। जातक की वित्तीय स्थिति सातवें भाव में स्थित ग्रह पर निर्भर करेगी। परिवार में पुरुष सदस्यों की संख्या छठवें भाव और आयु आठवें भाव पर निर्भर करेगी। जब शनि इस भाव में नीच का हो तो शादी के बाद उसके ससुराल वाले परेशान होंगे।

उपाय:
(1) लगातार 43 दिनों तक नंगे पांव मंदिर जाएं।
(2) माथे पर दही या दूध का तिलक लगाएं।
(3) साँप को दूध पिलाए।

लाल किताब के अनुसार शनि का तीसरे भाव में फल

इस घर में शनि अच्छा परिणाम देता है। यह घर मंगल ग्रह का पक्का घर है। जब केतु अपने इस घर को देखता है तो यहां बैठा शनि बहुत अच्छे परिणाम देता है। जातक स्वस्थ, बुद्धिमान और बहुत सरल स्वभाव का होता है। यदि जातक धनवान होगा तो उसके घर में पुरुष सदस्यों की संख्या कम होगी। गरीब होने की दशा में परिणाम उल्टा होगा। यदि जातक शराब और मांशाहार से दूर रहता है तो वह लम्बे और स्वस्थ जीवन का आनंद उठाएगा।

उपाय:
(1) तीन कुत्तों की सेवा करें।
(2) आँखों की दवाएं मुफ्त बांटें।
(3) घर में एक कमरे में हमेशा अंधेरा रखना बहुत फायदेमंद साबित होगा।

लाल किताब के अनुसार शनि का चौथे भाव में फल

यह भाव चंद्रमा का घर होता है। इसलिए शनि इस भाव में मिलेजुले परिणाम देता है। जातक अपने माता पिता के प्रति समर्पित होगा और प्रेम मुहब्बत से रहने वाला होगा। जब कभी जातक बीमार होगा तो चंद्रमा से संबंधित चीजें फायदेमंद होंगी। जातक के परिवार से कोई व्यक्ति चिकित्सा विभाग से संबंधित होगा। जब शनि इस भाव में नीच का होकर स्थित हो तो शराब पीना, सांप मारना और रात के समय घर की नीव रखना जैसे काम बहुत बुरे परिणाम देते हैं। रात में दूध पीना भी अहितकर है।

उपाय:
(1) साँप को दूध पिलाएं अथवा दूध चावल किसी गाय या भैंस को खिलाएं।
(2) किसी कुएं में दूध डालें और रात में दूध पियें।
(3) चलते पानी में रम डालें।

लाल किताब के अनुसार शनि का पांचवें भाव में फल

यह भाव सूर्य का घर होता है। जो शनि का शत्रु ग्रह है। जातक घमंडी होगा। जातक को 48 साल तक घर का निर्माण नहीं करना चाहिए, अन्यथा उसके बेटे को तकलीफ होगी। उसे अपने बेटे के बनवाए या खरीदे हुए घर में रहना चाहिए। जातक को अपने पैतृक घर में बृहस्पति और मंगल ग्रह से संबंधित वस्तुएं रखनी चाहिए, इससे उसके बच्चों का भला होता है। यदि जातक के शरीर में बाल अधिक होंगे तो जातक बेईमान हो जाएगा।

उपाय:
(1) बेटे के जन्मदिन पर नमकीन चीजें बाटें।
(2) बादाम का एक हिस्सा मंदिर में बाटें और दूसरा हिस्सा लाकर घर में रख दें।

लाल किताब के अनुसार शनि का छठें भाव में फल

यदि शनि ग्रह से संबंधित काम रात में किया जाय तो हमेशा लाभदायक परिणाम मिलेंगे। यदि शादी के 28 साल के बाद होगी तो अच्छे परिणाम मिलेंगे। यदि केतु अच्छी स्थित में हो जातक धन, लाभदायक यात्रओं और बच्चों के सुख का आनंद पाता है। यदि शनि नीच का हो तो शनि से सम्बंधित चीजें जैसे चमडा, लोहा आदि को लाना हानिकारक होता है, खासकर तब, जब शनि वर्षफल में छठवें भाव में हो।

उपाय:
(1) एक काला कुत्ता पालें और उसे भोजन करायें।
(2) नदी या बहते पानी में नारियल और बादाम बहाएं।
(3) सांप की सेवा बच्चों के कल्याण के लिए फायदेमंद साबित होगी।

लाल किताब के अनुसार शनि का सातवें भाव में फल

यह घर बुध और शुक्र से प्रभावित होता है, दोनो ही शनि के मित्र ग्रह हैं। इसलिए शनि इस घर में बहुत अच्छा परिणाम देता है। शनि से जुड़े व्यवसाय जैसे मशीनरी और लोहे का काम बहुत लाभदायक होगा। यदि जातक अपनी पत्नी से अच्छे संबंध रखता है तो वह अमीर और समृद्ध होगा और लंबी आयु के साथ अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेगा। यदि बृहस्पति पहले घर में हो तो सरकार से लाभ होगा। यदि जातक व्यभिचारी हो जाता है या शराब पीने लगता है तो शनि नीच और हानिकर हो जाता है। यदि जातक 22 साल के बाद शादी करता है तो उसकी दृष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है।

उपाय:
(1) किसी बांसुरी में चीनी भरें और किसी सुनसान जगह जैसे कि जंगल आदि में दफना दें।
(2) काली गाय की सेवा करें।

लाल किताब के अनुसार शनि का आठवें भाव में फल

आठवें घर में कोई भी ग्रह शुभ नहीं माना जाता है। जातक दीर्घायु होगा लेकिन उसके पिता की उम्र कम होती है और जातक के भाई एक-एक करके शत्रु बनते जाते हैं। यह घर शनि का मुख्यालय माना जाता है, लेकिन यदि बुध, राहू और केतु जातक की कुंडली में नीच के हैं तो शनि बुरा परिणाम देगा।

उपाय:
(1) अपने साथ चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें।
(2) नहाते समय पानी में दूध डालें और किसी पत्थर या लकड़ी के आसन पर बैठ कर स्नान करें।

लाल किताब के अनुसार शनि का नौवें भाव में फल

जातक के तीन घर होंगे। जातक एक सफल यात्रा संचालक (टूर ऑपरेटर) या सिविल इंजीनियर होगा। वह एक लंबे और सुखी जीवन का आनंद लेगा साथ ही जातक के माता - पिता भी सुखी जीवन का आनंद लेंगे। यहां स्थित शनि जातक की तीन पीढ़ियों शनि के दुष्प्रभाव से बचाएगा। अगर जातक दूसरों की मदद करता है तो शनि ग्रह हमेशा अच्छे परिणाम देगा। जातक के एक बेटा होगा, हालांकि वह देर से पैदा होगा।

उपाय:
(1) बहते पानी में चावल या बादाम बहाएं।
(2) बृहस्पति से संबंधित (सोना, केसर) और चंद्रमा से संबंधित (चांदी, कपड़ा) का काम अच्छे परिणाम देंगे।

लाल किताब के अनुसार शनि का दसवें भाव में फल

यह शनि का अपना घर है, जहां शनि अच्छा परिणाम देगा। जातक तब तक धन और संपत्ति का आनंद लेता रहेगा, जब तक कि वह घर नहीं बनवाता। जातक महत्वाकांक्षी होगा और सरकार से लाभ का आनंद लेगा। जातक को चतुराई से काम लेना चाहिए और एक जगह बैठ कर काम करना चाहिए। तभी उसे शनि से लाभ और आनंद मिल पाएगा।

उपाय:
(1) प्रतिदिन मंदिर जाएं।
(2) शराब, मांस और अंडे से परहेज करें।
(3) दस अंधे लोगों को भोजन कराएं।

लाल किताब के अनुसार शनि का ग्यारहवें भाव में फल

जातक के भाग्य का निर्धारण उसकी उम्र के अडतालीसवें वर्ष में होगा। जातक कभी भी निःसंतान नहीं रहेगा। जातक चतुराई और छल से पैसे कमाएगा। शनि ग्रह राहु और केतु की स्थिति के अनुसार अच्छा या बुरा परिणाम देगा।

उपाय:
(1) किसी महत्वपूर्ण काम को शुरू करने से पहले 43 दिनों तक तेल या शराब की बूंदें जमीन पर गिराएं।
(2) शराब पियें और अपना नैतिक चरित्र ठीक रखें।

लाल किताब के अनुसार शनि का बारहवें भाव में फल

शनि इस घर में अच्छा परिणाम देता है। जातक के दुश्मन नहीं होंगे। उसके कई घर होंगे। उसके परिवार और व्यापार में वृद्धि होगी। वह बहुत अमीर हो जाएगा। हालांकि, यदि जातक शराब पिए, मांशाहार करे या अपने घर के अंधेरे कमरे में रोशनी करे तो शनि नीच का हो जाएगा।

उपाय:
(1) किसी काले कपड़े में बारह बादाम बांधकर उसे किसी लोहे के बर्तन में भरकर किसी अंधेरे कमरे में रखने से अच्छे परिणाम मिलेंगे।

 

राहू ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

लाल किताब में राहु ग्रह को नष्टकारी ग्रह बताया गया है। राहु का प्रभाव टेवा (कुंडली) के 12 खानों में भिन्न-भिन्न रूप से पड़ता है। परंतु ऐसा नहीं है कि राहु व्यक्ति को सदैव बुरे फल देता है। यदि यह ग्रह कुंडली में उत्तम हो तो जातक को इसके अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि कुंडली के 12 भाव व्यक्ति के जीवन से लेकर मरण तक की यात्रा को बताते हैं। इसलिए हमारे लिए यह जानना आवश्यक हो जाता है कि लाल किताब के अनुसार राहु का 12 भावों में प्रभाव किस प्रकार से पड़ता है।

लाल किताब में राहु ग्रह का महत्व

ज्योतिष विज्ञान के क्षेत्र में लाल किताब अपने आसान उपाय के लिए अधिक प्रचलित है। हालाँकि ज्योतिष से संबंधित इस किताब में विस्तृत ज्ञान है। परंतु यह वैदिक ज्योतिष से भिन्न है। लाल किताब के अनुसार राहु ग्रह सब कुछ नष्ट करने वाला ग्रह है। परंतु यह अच्छे और बुरे विचारों को जन्म देने वाला ग्रह है।

वहीं वैदिक ज्योतिष के अनुसार, राहु एक छाया ग्रह है जिसका कोई भी भौतिक स्वरूप नहीं है। हिन्दू ज्योतिष में राहु को एक पापी ग्रह माना गया है। ज्योतिष में राहु ग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन मिथुन राशि में यह उच्च होता है और धनु राशि में यह नीच भाव में होता है।

लाल किताब के अनुसार, सूर्य के साथ शनि या शुक्र हो तो राहु का प्रभाव मंदा हो जाता है। हालाँकि कमजोर राहू चंद्रमा के उपाय के लिए सहायक है। क्योंकि चंद्रमा से राहु शांत होता है। परंतु राहु को शांत करने में चंद्रमा का प्रभाव कमज़ोर हो जाता है।

यदि किसी जातक की टेवा में मंगल मजबूत हो तो वह राहू को दबाकर रखेगा। लाल किताब के अनुसार, बुध शनि और केतु राहु के मित्र ग्रह हैं। जबकि सूर्य, मंगल और शुक्र राहु के दुश्मन ग्रह माने जाते हैं।

राहु ग्रह के कारकत्व

मनुष्य के मस्तिष्क में राहु अच्छे-बुरे विचारों को जन्म देता है। इसका वर्ण नीला है। इसलिए नीले रंग का विष, नीला थोथा आदि जो अपना प्रभाव दिखाकर नीला रंग देते हैं वे सभी राहु का प्रतिनिधित्व करते हैं। हाथी, बिल्ली, सिक्का, शत्रु, बिजली, मक्कारी नीचता ये सभी राहु ग्रह के प्रतीक माने जाते हैं।

लाल किताब के अनुसार राहु ग्रह का संबंध

लाल किताब के अनुसार, राहु ग्रह का संबंध विद्या की देवी माँ सरस्वती से है। इसके साथ ही राहु ख़ुफ़िया पुलिस, ख़ुफ़िया महकमा, जेल, ससुराल, भूचाल, जौं, सरसों, जंगली चूहा, चालबाज़, कच्चा कोयला, काला कुत्ता, गंदी नाली, लोहे में लगने वाली जंग, काना, लंगड़ा, प्लेग, बुखार, भय आदि चीज़ों का संबंध राहु ग्रह से दर्शाया जाता है। राहु का संबंध गोमेद रत्न, आठ मुखी रुद्राक्ष और नागरमोथा की जड़ी से है।

लाल किताब के अनुसार राहु ग्रह का प्रभाव

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु ग्रह मजबूत होता है तो जातक को इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है तथा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। राहु ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ बली होता है। जबकि इसके विपरीत यदि किसी जातक की कुंडली में राहु की स्थिति कमज़ोर होती है अथवा वह पीड़ित है तो जातक के लिए यह अच्छा नहीं माना जाता है।

राहु अपने शत्रु ग्रहों के साथ कमज़ोर होता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में राहु का प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से पड़ता है। आइए जानते हैं राहु के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या हैं:

सकारात्मक प्रभाव - यदि राहु किसी जातक की कुंडली में शुभ हो तो व्यक्ति के मस्तिष्क में शुभ विचार उत्पन्न होते हैं जिससे वह अच्छे कार्यों को अंजाम देता है। यदि किसी जातक की बुद्धि सही दिशा में लगे वह ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकता है। राहु के सकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति बुद्धि से काम लेता है और यदि कोई व्यक्ति अपनी बुद्धि के कार्य करता है तो बड़े से बड़ा पहाड़ हिला सकता है।

नकारात्मक प्रभाव - किसी व्यक्ति के टेवा में कमज़ोर राहु के कारण उसे कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये समस्याएँ मानसिक और शारीरिक रूप से भी हो सकती हैं। पीड़ित राहु के कारण हिचकी, पागलपन, आँतों की समस्या, अल्सर, गैस्ट्रिक आदि की समस्याएँ जन्म लेती हैं। अतः कुंडली में राहु ग्रह को मजबूत करना चाहिए।

राहु ग्रह के लिए लाल किताब के उपाय

ज्योतिष में लाल किताब के उपाय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। अतः लाल किताब में राहु ग्रह की शांति के टोटके जातकों के लिए बहुत ही लाभकारी और सरल होते हैं। अतः इन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से स्वयं कर सकता है। राहु ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय करने से जातकों को राहु ग्रह के सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। राहु ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय निम्नलिखित हैंः

चाँदी का सिक्का सदैव अपने पास रखें

चलते दरिया (बहते हुए पानी) में राहु की वस्तुओं को बहाएँ

गंगा स्नान करें

काले कुत्ते को पालें अथवा उसे खाना खिलाएँ

अंधे लोगों का सहारा बनें

मांस-मछली एवं शराब इत्यादि मादक पदार्थों का सेवन करें

भ्रष्टाचार से सदैव दूर रहें

निर्धन व्यक्ति की आर्थिक रूप से सहायता करें

लोहे का छल्ला अथवा कड़ा पहनना लाभदायक रहेगा।

लाल किताब के उपाय ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित हैं। अतः ज्योतिष में इस पुस्तक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उम्मीद है कि राहु ग्रह से संबंधित लाल किताब में दी गई यह जानकारी आपके कार्य को सिद्ध करने में सफल होगी।

लाल किताब के अनुसार राहू का पहले भाव में फल

पहला घर मंगल और सूर्य से प्रभावित होता है, यह घर किसी सिंहासन की तरह होता है। पहले घर में बैठा ग्रह सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। जातक अपनी योग्यता से बडा पद प्राप्त करेगा। उसे सरकार से भी अच्छे परिणाम मिलेंगे। इस घर में राहू उच्च के सूर्य के समान परिणाम देगा। लेकिन सूर्य जिस भाव में बैठा है उस भाव के फल प्रभावित होंगे। यदि मंगल, शनि और केतू कमजोर हैं तो राहू बुरे परिणाम देगा अन्यथा यह पहले भाव में अच्छे परिणाम देगा। यदि राहू नीच का हो तो जातक को कभी भी ससुराल वालों से बिजली के उपकरण या नीले कपडे नहीं लेने चाहिए, अन्यथा उसके पुत्र पर बुरा प्रभाव पडता है। राहू के दुष्परिणाम 42 साल की उम्र तक मिलते हैं।

उपाय:
(1) बहते पानी में 400 ग्राम सुरमा बहाएं।
(2) गले में चांदी पहनें।
(3) 1:4 के अनुपात में जौ में दूध मिलाए और बहते पानी में बहाएं।
(4) बहते पानी में नारियल बहाएं।

लाल किताब के अनुसार राहू का दूसरे भाव में फल

यदि दूसरे घर में राहू शुभ अवस्था में हो तो जातक पैसा एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करता है और किसी राजा की तरह जीवन जीता है। जातक दीर्घायु होता है। दूसरा भाव बृहस्पति और शुक्र से प्रभावित होता है। यदि बृहस्पति शुभ हो तो जातक अपनी प्रारंभिक अवस्था में धन से युक्त आराम भरी जिन्दगी जीता है। यदि राहू नीच का हो तो जातक गरीब होता है, उसका पारिवारिक जीवन खराब होता है। वह पेट के विकारों से परेशान होता है। जातक पैसे बचाने में असमर्थ होता है और उसकी मृत्यु किसी हथियार से होती है। उसके जीवन के दसवें, इक्कीसवें और बयालीसवें वर्ष में चोरी आदि माध्यमों से उसका धन खो जाता है।

उपाय:
(1) चांदी की एक ठोस गोली अपनी जेब में रखें।
(2) बृहस्पति से सम्बंधित चीजें जैसे सोना, पीले कपड़े और केसर आदि उपयोग में लाएं।
(3) माँ के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखें।
(4) शादी के बाद ससुराल वालों से कोई बिजली का उपकरण लें।

लाल किताब के अनुसार राहू का तीसरे भाव में फल

यह राहु का पक्का घर है। तीसरा घर बुध और मंगल से प्रभावित होता है। यदि यहां राहू शुभ हो तो, बहुत धन दौलत वाला और दीर्घायु होता। वह एक निडर और वफादार दोस्त होता है। वह सपनों के माध्यम से भविष्य देख सकेगा। वह कभी नि:संतान नहीं होगा। वह शत्रुओं पर विजय पाने वाला होगा। वह कभी भी कर्जदार नहीं रहेगा। वह अपने पीछे सम्पत्ति छोड जाएगा। अपने जीवन के 22वें वर्ष में वह प्रगति करेगा। लेकिन अगर राहू तीसरे घर में अशुभ है तो उसके भाई और रिश्तेदार अपने पैसे बर्बाद करेंगे। वह किसी को पैसे उधार देगा तो वापस नहीं मिलेंगे। जातक में वाणी दोष होगा और वह नास्तिक होगा। यदि सूर्य और बुध भी राहू के साथ तीसरे घर में हों तो उसकी बहन अपनी उम्र के 22वें या 32वें साल में विधवा हो सकती है।

उपाय:
(1) घर में कभी भी हाथीदांत या हाथीदांत की वस्तुएं रखें।

लाल किताब के अनुसार राहू का चौथे भाव में फल

यह घर चंद्रमा का है जो कि राहू शत्रु है। जब इस घर में रहु शुभ हो तो जातक बुद्धिमान, अमीर और अच्छी चीजों पर पैसे खर्च करने वाला होगा। तीर्थ यात्रा पर जाना जातक के लिए फायदेमंद होगा। यदि शुक्र भी शुभ हो तो शादी के बाद जातक के ससुराल वाले भी अमीर हो जाते हैं और जातक को उनसे भी लाभ मिलता है। यदि चंद्रमा उच्च का हो तो जातक बहुत अमीर हो जाता है और बुध से संबंधित कामों से बहुत लाभ कमाता है। यदि राहू नीच का या अशुभ हो और चंद्रमा कमजोर हो तो जातक गरीब होता है और जातक की मां परेशान होती है। कोयले का एकत्रीकरण, शौचालय फेरबदल, जमीन में तंदूर बनाना और छ्त में फेरबदल करना हानिकारक होगा।

उपाय:
(1) चांदी पहनें।
(2) 400 ग्राम धनिया या बादाम दान करें अथवा दोनो को पानी में बहाएं।

लाल किताब के अनुसार राहू का पांचवें भाव में फल

पांचवां घर सूर्य का होता है जो पुरुष संतान का संकेतक है। यदि राहू शुभ हो तो जातक अमीर, बुद्धिमान और स्वस्थ होता है। वह अच्छी आमदनी और अच्छी प्रगति का आनंद पाता है। जातक भक्त या दार्शनिक होता है। यहां स्थित नीच का राहू संतान में बाधा दिखाता है। पुत्र के जन्म के बाद जातक की पत्नी को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी संभव है। यदि बृहस्पति भी पांचवें भाव में स्थित हो तो जातक के पिता को कष्ट होगा।

उपाय:
(1) अपने घर में चांदी से बना हाथी रखें।
(2) शराब, मांशाहार, अण्डे के सेवन और व्यभिचार से बचें।
(3) अपनी जीवनसाथी से ही दो बार शादी करें।

लाल किताब के अनुसार राहू का छठें भाव में फल

इस घर बुध या केतु से प्रभावित होता है। राहू यहां उच्च का होता है और अच्छे परिणाम देता है। जातक सभी प्रकार की झंझटों या मुसीबतों के मुक्त होगा। जातक कपड़ों पर पैसा खर्च करेगा। जातक बुद्धिमान और विजेता होगा। जब राहु अशुभ हो तो वह अपने भाइयों या दोस्तों को नुकसान पहुंचाएगा। जब बुध या मंगल ग्रह बारहवें भाव में हों तो राहु बुरा परिणाम देता है। जातक विभिन्न बीमारियों या धनहानि से ग्रस्त होता है। किसी काम पर जाते समय छींक का होना जातक के लिए अशुभफलदायी होगा।

उपाय:
(1) एक काला कुत्ता पालें।
(2) अपनी जेब में काला सुरमा रखें।
(3) भाइयों / बहनों को कभी नुकसान पहुंचाएं।

लाल किताब के अनुसार राहू का सातवें भाव में फल

जातक अमीर होगा लेकिन पत्नी बामार होगी। वह अपने दुश्मनों पर विजयी होगा। उम्र के इक्कीस साल से पहले शादी का होना अशुभ होगा। जातक के सरकार के साथ अच्छे संबंध होंगे। लेकिन यदि जातक राहू से संबंधित व्यवसाय जैसे बिजली के उपकरणों के व्यापार से जुडेगा तो उसे नुकसान होगा। जातक सिर दर्द से पीड़ित होगा। यदि बुध शुक्र अथवा केतू ग्यारहवें भाव में हों तो राहू बहन, पत्नी या बेटे को नष्ट करेगा।

उपाय:
(1) 21 साल की उम्र के पहले शादी करें।
(3) नदी में छह नारियल प्रवाहित करें।

लाल किताब के अनुसार राहू का आठवें भाव में फल

आठवें घर का संबध शनि और मंगल ग्रह से होता है। इसलिए इस भाव का राहू अशुभ फल देता है। जातक अदालती मामलों में बेकार में पैसे खर्च करता है।परिवारिक जीवन भी प्रतिकूलता से प्रभावित होता है। यदि मंगल ग्रह शुभ हो तथा पहले या आठवें घर में हो अथवा शुभ शनि आठवें घर में हो तो जातक बहुत अमीर होगा।

उपाय:
(1) चांदी का एक चौकोर टुकड़ा पास रखें।
(2) सोते समय तकिये के नीचे सौंफ रखें।
(3) बिजली का काम या बिजली विभाग में काम करें।

लाल किताब के अनुसार राहू का नौवें भाव में फल

नौवां घर बृहस्पति से प्रभावित होता है। यदि जातक का अपने भाइयों और बहनों के साथ अच्छा संबंध है तो यह यह फायदेमंद होगा, अन्यथा जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा। यदि जातक धार्मिक स्वभाव का नहीं है तो जातक की संतान जातक के लिए बेकार रहेगी। शनि से संबम्धित व्यापार फायदेमंद रहेगा। यदि बृहस्पति पांचवें या ग्यारहवें घर में हो तो यह निष्प्रभावी होगा। यदि राहू अशुभ होकर नौवें भाव में हो तो पुत्र प्राप्ति की संभावनाएं कम रहती हैं, खासकर तब और जब जातक अपने किसी सगे रिश्तेदार कि खिलाफ कोई अदालती मामला दायर करता है। यदि राहू नौवें भाव में हो और पहला भाव खाली हो तो जातक का स्वास्थ्य पीडित होता है और जातक उम्र में बडे लोगों के द्वारा अपमानित होता है और मानसिक रूप से प्रताडित होता है।

उपाय:
(1) प्रतिदिन केसर का तिलक लगाएं।
(2) सोना पहनें।
(3) हमेशा घर में एक कुत्ता पालें (इससे आपकी संतान का बचाव होगा)
(4) ससुराल वालों से अच्छे संबंध बनाकर रखें।

लाल किताब के अनुसार राहू का दसवें भाव में फल

सिर के ऊपर कुछ पहनना दसम भाव में स्थित दुर्बल राहु का प्रभाव देता है। राहू का अच्छा या बुरा परिणाम शनि की स्थिति पर निर्भर करेगा। यदि शनि शुभ है तो जातक बहादुर, दीर्घायु, और अमीर होता है तथा उसे सभी प्रकार से सम्मान मिलता है। यदि दसवें भाव में राहू चन्द्रमा के साथ हो तो यह राज योग बनाता है। जातक अपने पिता के लिए भाग्यशाली होता है। यदि यहां पर राहू अशुभ हो तो जातक की मां पर बुरा असर पडता है और जातक का स्वास्थ्य भी खराब होगा। यदि चंद्रमा चतुर्थ भाव में अकेला हो तो जातक की आंखों पर बुरा प्रभाव पडेगा। जातक सिर दर्द से पीड़ित होगा और उसे किसी काले व्यक्ति के द्वारा धन हानि होगी।

उपाय:
(1) नीली या काली टोपी पहनें।
(2) सिर को ढक कर रखें।
(3) किसी मंदिर में 4 किलो या 400 ग्राम खांड चढाएं अथवा पानी में बहाएं।
(4) अंधे लोगों को खाना खिलाएं।

लाल किताब के अनुसार राहू का ग्यारहवें भाव में फल

ग्यारहवां घर शनि और बृहस्पति दोनो के प्रभाव में होता है। जब तक जातक के पिता जीवित हैं तब तक जातक अमीर होगा। वैकल्पिक रूप से, बृहस्पति की वस्तुएं रखना सहयोगी सिद्ध होंगी। जातक के दोस्त अच्छे नहीं होंगे। उसे मतलबी लोगों से पैसा मिलेगा। पिता की मृत्यु के बाद जातक को गले में सोना पहनना चाहिए। यदि राहू के साथ नीच का मंगल ग्यारहवें भाव में हो तो जातक के जन्म के समय घर में सारी चीजें होंगी लेकिन धीरे धीरे करके सारी चीजें बरबाद होनें लगेंगी। यदि ग्यारहवें भाव में अशुभ राहू हो तो जातक के अपने पिता सम्बंध ठीक नहीं होंगें यहां तक की जातक उन्हें मार भी सकता है। दूसरे भाव में स्थित ग्रह शत्रु की तरह कार्य करेंगे। यदि बृहस्पति या शनि तीसरे या ग्यारहवें भाव में हों तो शरीर में लोहा पहनें और चांदी की गिलास में पानी पिएं। पांचवें भाव में स्थित केतू बुरे परिणाम देगा। कान, रीढ़, मूत्र से संबंधित समस्याएं या रोग हो सकते हैं। केतु से संबंधित व्यापार में नुकसान हो सकता है।

उपाय:
(1) लोहा पहनें और पीने के पानी के लिए चांदी का गिलास का प्रयोग करें।
(2) कभी भी कोई बिजली का उपकरण उपहार के रूप में लें।
(3) नीलम, हाथीदांत या हाथी का खिलौने से दूर रहें।

लाल किताब के अनुसार राहू का बारहवें भाव में फल

Prediction for Rahu in Twelvth house in Hindi according to Lal Kitab

बारहवां घर बृहस्पति से संबंधित होता है। यह शयन सुख का घर होता है। यहां स्थित राहु मानसिक परेशानियां और अनिद्रा देता है। यह बहनों और बेटियों पर अत्यधिक व्यय भी करवाता है। यदि राहु शत्रु ग्रहों के साथ हो तो आप कितनी भी मेहनत कर लें आपके खर्चे आपकी आमदनी से अधिक ही रहेंगे। यह झूठे आरोप भी लगवाता है। जातक आत्महत्या की चरमसीमा तक जा सकता है। जातक मानसिक चिंताओं से घिरा रहता है। झूठ बोलना, दूसरों को धोखा आदि देना राहु को और भी हानिकर बानाता है। किसी भी नए काम की शुरुआत में अशुभ परिणाम मिलते हैं। चोरी, बामारी और झूठे आरोपों के लगने का भय रहता है। यदि यहां राहू के साथ मंगल भी हो तो अच्छे परिणाम मिलते हैं।

उपाय:
(1) रसोई में बैठ कर ही भोजन करें।
(2) रात में अच्छी नींद के लिए तकिये के नीचे सौंफ और खांड रखें।

 

केतु ग्रह का 12 भावों में फल लाल किताब के अनुसार

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह भगवान गणेश जी का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक छाया ग्रह है जिसका कोई भौतिक स्वरूप नहीं है। परंतु टेवा (जन्म कुंडली) में स्थित केतु ग्रह का 12 भावों में सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हालाँकि वैदिक ज्योतिष के समान लाल किताब में भी केतु को पापी ग्रह बताया गया है। कुंडली के 12 भाव मनुष्य के संपूर्ण जीवन को दर्शाते हैं। आइए जानते हैं लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह का 12 भावों में प्रभाव और उपाय: -

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह का महत्व

लाल किताब ज्योतिष की महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक है, जो ग्रहों से संबंधित आसान उपाय के लिए प्रसिद्ध है। लाल किताब में शुक्र और राहु को केतु ग्रह का साथी (मित्र) बताया गया है, जबकि चंद्रमा और मंगल केतु के दुश्मन है। वहीं गुरु भी केतु के लिए अनुकूल ग्रह है। यह केतु की दुर्बलता को दूर करता है। इसलिए कानों में सोने के आभूषण पहनने से केतु बलवान होकर संतान को पैदा करने की प्रदान करता है।

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह कभी सीधी चाल नहीं चलता है। बल्कि यह उल्टी चाल (वक्री) चलता है। केतु कुंडली के द्वादश भाव (बारहवाँ खाना) का स्वामी होता है। यदि किसी की कुंडली में यह खाना सोया हुआ है तो इस खाने को सक्रिय करने के लिए केतु के उपाय करने चाहिए।

लाल किताब ज्योतिष के संबंध में एक बहुत ही आसान पुस्तक है जिसके द्वारा कोई भी सामान्य व्यक्ति अपने चारों ओर की परिस्थितियों के अनुसार अपने टेवा के बारे में जान सकता है। वह अपने टेवा में स्थित ग्रहों से संंबंधित सरल टोटकों को आज़माकर उन्हें ख़ुद के अनुकूल बना सकता है। इसके नियम हिन्दू ज्योतिष के नियमों से अलग हैं।

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह के कारकत्व

लाल किताब के अनुसार केतु व्यक्ति के चाल-चलन, चारपाई, कुत्ता, भिखारी, पुत्र, मामा, पोता, भांजा, भतीजा, कान, जोड़, पैर, सलाह देने वाला, चितकबरा, नींबू, रात-दिन का मेल, दूर की सोचने वाला आदि का प्रतिनिधित्व करता है।

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह का संबंध

केतु ग्रह का संबंध समाज सेवा, धार्मिक एवं आध्यात्मिक कर्म से होता है। इसके अलावा सूअर, छिपकली, गधा, खरगोश, चूहा केतु के द्वारा ही दर्शाए जाते हैं। साथ ही काला कंबल, काले तिल, लहसुनिया पत्थर, इमली, प्याज, लहसुन आदि वस्तुएँ केतु ग्रह से संबंधित हैं।

लाल किताब के अनुसार केतु ग्रह का प्रभाव

यदि किसी जातक की कुंडली में केतु ग्रह बलवान होता है तो जातक को इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है तथा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। केतु ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ बली होता है। जबकि इसके विपरीत यदि किसी जातक की कुंडली में केतु की स्थिति कमज़ोर होती है अथवा वह पीड़ित है तो जातक के लिए यह अच्छा नहीं माना जाता है। केतु अपने शत्रु ग्रहों के साथ कमज़ोर होता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में केतु का प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से पड़ता है। आइए जानते हैं केतु के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या हैं:

सकारात्मक प्रभाव - वहीं जब केतु गुरु ग्रह के साथ युति बनाता है तो व्यक्ति की कुंडली में इसके प्रभाव से राजयोग का निर्माण होता है। शुभ केतु लोगों को चरित्रवान बनाता है। इससे व्यक्ति के मामा, पुत्र, एवं पोते के साथ संबंध मधुर बने रहते हैं। केतु बली हो तो व्यक्ति का आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ता है।

नकारात्मक प्रभाव - लाल किताब के अनुसार पाँचवें भाव में जब शुक्र, शनि, राहु या केतु स्थित हों या इनमें से किसी की युति पाँचवें घर में हो तो जातक आत्म-ऋणि (स्वयं का ऋणि) माना जाता है। इस ऋण के कारण व्यक्ति का जीवन में संघर्षमय रहता है तथा वाद विवाद, कोर्ट केसों में पराजय का सामना करना पड़ता है। वह बार-बार बिना किसी कारण अपमान होता है और कभी-कभी राजकीय दंड भी प्राप्त होता है।

केतु ग्रह के लिए लाल किताब के उपाय

ज्योतिष में लाल किताब के उपाय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। अतः लाल किताब में केतु ग्रह की शांति के टोटके जातकों के लिए बहुत ही लाभकारी और सरल होते हैं। अतः इन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से स्वयं कर सकता है। केतु ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय करने से जातकों को केतु ग्रह के सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। केतु ग्रह से संबंधित लाल किताब के उपाय निम्नलिखित हैंः

माथे पर केसर या हल्दी का तिलक लगाएँ

वृद्ध एवं लाचार व्यक्तियों की सहायता करें

कानों में सोने की बाली पहनें

दूध में केसर मिलाकर पीएँ

पिता एवं पुरोहित का सम्मान करें

कुत्ता पालना सहायक होगा

लाल किताब के उपाय ज्योतिष विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित हैं। अतः ज्योतिष में इस पुस्तक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उम्मीद है कि केतु ग्रह से संबंधित लाल किताब में दी गई यह जानकारी आपके कार्य को सिद्ध करने में सफल होगी।

लाल किताब के अनुसार केतु का पहले भाव में फल

यदि केतु इस घर में शुभ है, तो जातक श्रमसाध्य, अमीर और खुशहाल होगा। लेकिन अपनी संतान की वजह से हमेशा चिंतित और परेशान होगा। वह लगातार स्थानान्तरण या यात्रा डरा रहेगा लेकिन अंत में यह हमेशा ये स्थगित हो जाया करेंगे। जब वर्ष कुंडली में केतू पहले घर में आता है तो जातक के घर पुत्र या या भतीजे का जन्म हो सकता है। लम्बी यात्रा भी हो सकती है। सूर्य की उच्चता के कारण ऐसा जातक हमेशा अपने माता पिता और गुरुजनों के लिए फायदेमंद होगा। यदि पहले घर में केतु अशुभ हो तो जातक सिर दर्द से पीड़ित होगा। उसकी पत्नी स्वास्थ्य समस्याओं और बच्चों से संबंधित चिंताओं से ग्रस्त होगी। यदि दूसरा और सातवां घर खाली हो तो बुध और शुक्र भी बुरे परिणाम देते हैम। बिना फायदे के स्थानांतरण और यात्राएं होंगी। यदि शनि नीच का हो तो यह पिता और गुरु को नष्ट करेगा। यदि सूर्य सातवें या आठवेम स्थान में हो तो पोते के जन्म के बाद स्वास्थ्य खराब रहेगा। सुबह और शाम के समय भीख नहीं देनी चाहिए।

उपाय:
(1) बंदरों को गुड़ खिलायें।
(2) केसर का तिलक लगाएं।
(3) यदि संतान से परेशान है तो मंदिर में काले और सफेद रंग वाला कंबल दान करें।

लाल किताब के अनुसार केतु का दूसरे भाव में फल

दूसरा घर चंद्रमा से प्रभावित होता है, जो केतु का शत्रु ग्रह है। यदि दूसरे भाव में स्थित केतू शुभ है तो जातक को पैतृक सम्पत्ति मिलती है। जातक खूब यात्राएं करेगा और यात्राओं से लाभ मिलेगा। ऐसी स्थित में शुक्र अपनी स्थिति के अनुसार अच्छे परिणाम देता है। चंद्रमा बुरे परिणाम देता है। यदि सूर्य 12 वें घर में हो जातक अपनी उम्र के चौबीस साल के बाद से अपनी आजीविका कमाना शुरू कर देता है। यदि केतू के साथ उच्च का बृहस्पति हो तो लाखों की आमदनी होगी। यदि दूसरे भाव में स्थित केतू अशुभ है तो जातक सूखे इलाकों की यात्राएं करेगा। जातक एक जगह पर आराम नहीं कर सकेगा और वह जगह-जगह भटकता रहेगा। आमदनी अच्छी होगी लेकिन, खर्च भी उतना ही हो जाएगा। इसप्रकार वास्तविक लाभ नगण्य हो जाएगा। यदि चंद्रमा या मंगल आठवें घर में हों तो जातक अल्पायु होगा और उसे सोलह या बीस साल की उम्र में गंभीर समस्या होगी। यदि आठवां घर खाली हो तो भी केतू बुरे परिणाम देगा।

उपाय:
(1) माथे पर केसर या हल्दी का तिलक लगाएं।
(2) चरित्र का ढीला नहीं होना चाहिए।
(3) यदि मंदिरों की धार्मिक यात्रा करें और मंदिरों में सिर झुकाएं तो दूसरे भाव का केतू अच्छे परिणाम देगा।

लाल किताब के अनुसार केतु का तीसरे भाव में फल

तीसरा घर बुध और मंगल से प्रभावित होता है, दोनो ही केतू के शत्रु हैं। तीन की संख्या जातक के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि तीसरे भाव का केतू शुभ है तो जातक के बच्चे अच्छे होंगे। जातक सभ्य और भगवान से डरने वाला होगा। यदि केतू तीसरे भाव में हो और मंगल बारहवें भाव में हो तो जातक को चौबीस साल से पहले पुत्र की प्राप्ति होती है। पुत्र जातक के धन और दीर्घायु के लिए अच्छा होता है। तीसरे भाव के केतू वाला जातक लम्बी यात्राओं वाली नौकरी करता है। यदि तीसरे भाव का केतू अशुभ हो तो लातक मुकदमेबाजी में पैसे खर्च करता है। वह अपनी पत्नी या शालियों से अलग हो जाता है। ऐसा जातक दक्षिण मुखी घर में रहता है। उसे बच्चों से सम्बंधित गंभीर समस्याएं रहती हैं। ऐसा जातक किसी भी बात के लिए नहीं कहता इसलिए वह हमेशा परेशान रहता है। जातक को अपने भाइयों से परेशानी होती है और वह बेकार की यात्रा करेगा।

उपाय:
(1) माथे पर केसर का तिलक लगाएं।
(2) सोना पहनें।
(3) बहते पानी में चावल और गुड़ बहाएं।

लाल किताब के अनुसार केतु का चौथे भाव में फल

चौथा भाव चंद्रमा का होता है जो कि केतू का शत्रु है। यदि चतुर्थ भाव में शुभ केतू स्थित हो तो जातक, भगवान से डरने वाला और अपने पिता तथा गुरु के लिए भाग्यशाली होता है। ऐसे जातक को गुरु के आशीर्वाद के बाद ही जातक को पुत्र की प्राप्ति होती है। पुत्र दीर्घायु होगा। ऐसा जातक अपने सभी निर्णय भगवान पर छोड़ देता है। यदि चन्द्रमा तीसरे या चौथे घर में हो तो शुभ परिणाम मिलते हैं। ऐसा जातक एक अच्छा सलाहकार होता है। उसे कभी भी पैसे की कमी नहीं रहती। यदि केतू इस भाव में अशुभ हो तो जातक अप्रसन्न रहेगा, उसकी मां को कष्ट होगा, खुशियां कम होंगी। जातक मधुमेह रोग से पीडित होगा। छत्तीस साल की उम्र के बाद ही बेटा पैदा होगा। ऐसा जातक को पुत्र की तुलना में पुत्रियां अधिक होती हैं।

उपाय:
(1) एक कुत्ता पालें।
(2) मन की शांति के लिए चांदी पहनें।
(3) बहते पानी में पीली चीजें बहाएं।

लाल किताब के अनुसार केतु का पांचवें भाव में फल

पांचवां घर सूर्य का होता है। यह बृहस्पति से भी प्रभावित होता है। यदि बृहस्पति, सूर्य या चंद्रमा चौथे, छठवें या बारहवें घर में हों तो आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी होगी और जातक को पांच पुत्र हो सकते हैं। चौबीस साल की उम्र के बाद केतू स्वयमेव शुभ हो जाता है। यदि पांचवें भाव में केतू अशुभ हो तो जातक अस्थमा से पीडित हो सकता है। केतू पांच साल की उम्र तक अशुभ परिणाम देता है। संतान सम्बन्धी समस्याएं होती हैं। उम्र के चौबीस साल बाद ही आजीविका शुरू होती है। जातक अपने पुत्रों के लिए शुभ नहीं होता।

उपाय:
(1) दूध और चीनी दान करें।
(2) बृहस्पति के उपाय उपयोगी रहेंगे।

लाल किताब के अनुसार केतु का छठें भाव में फल

छठवां घर बुध का होता है। यहां केतू दुर्बल माना जाता है। हालांकि यह केतू का पक्का घर होता है। यहां केतू के परिणाम बृकस्पति की प्रकृति पर निर्भर करते हैं। यह संतान के लिए अच्छे परिणाम देता है। जातक एक अच्छा सलाहकार होता है। यदि बृहस्पति शुभ हो तो जातक दीर्घायु होता है। मां खुशहाल होती है और जीवन शांतिपूर्ण होता है। यदि कोई भी दो पुरुष ग्रह जैसे सूर्य, बृहस्पति, मंगल अच्छी स्थित में हों तो केतू शुभ परिणाम देता है।यदि केतु छठे भाव में अशुभ है तो मामा परेशान रहता है। जातक भी बेकार की यात्राओं से परेशान रहता है। लोग बिना कारण के दुश्मन बन जाते हैं। जातक त्वचा रोग से परेशान रहता है। यदि चंद्रमा दूसरे भाव में हो तो मां परेशान होती है और स्वयं जातक की बृद्धा अवस्था परेशानियों में गुजरती है।

उपाय:
(1) बाएं हाथ की उंगली में सोने की अंगूठी पहनें।
(2) दूध में केसर डालकर पियें और कान में सोना पहनें।
(3) सोने की सलाई गर्म करके दूध में बुझाएं और इसके बाद उस दूध को पियें इससे मानसिक शांति बढेगी, आयु वृद्धि होगी और यह बेटों के लिए भी अच्छा रहेगा।
(4) एक कुत्ता पालें।

लाल किताब के अनुसार केतु का सातवें भाव में फल

लाल किताब के अनुसार केतु का सातवें भाव में फल

सातवां घर बुध और शुक्र का होता है। यदि सातवें भाव में स्थित केतू शुभ हो तो जातक चौबीस साल से लेकर चालीस साल तक खूब धन कमाएगा। जातक के बच्चों के अनुपात में धन की बृद्धि होती है। जातक के दुश्मन जातक से डरते हैं। यदि जातक को बुध, बृहस्पति अथवा शुक्र का सहयोग मिलता है तो जातक को कभी भी निराश नहीं होना पडता। यदि सातवें भाव में केतू अशुभ हो तो जातक अक्सर बीमार रहता है, बेकार के वादे करता है और तैतीस साल की अवस्था तक शत्रुओं से पीडित रहता है। यदि लग्न में एक से अधिक ग्रह हों तो जातक के बच्चे नष्ट हो जाते हैं। यदि जातक गालियां देता है तो जातक नष्ट होता है। यदि केतू बुध के साथ हो तो चौतीस सालों के बाद जातक के शत्रु अपने आप नष्ट हो जाते हैं।

उपाय:
(1) झूठे वादे, घमंड और गाली देने से बचे।
(2) माथे पर केसर का तिलक लगाएं।
(3) गंभीर संकट या कष्ट के समय बृहस्पति के उपचार करें।

लाल किताब के अनुसार केतु का आठवें भाव में फल

आठवां घर मंगल ग्रह का है, जो केतु का शत्रु है। यदि आठवें भाव में केतू शुभ है तो जातक को चौंतीस साल की उम्र में अथवा जात्क की बहन या पुत्री की शादी के बाद पुत्र की प्राप्ति होती है। यदि बृहस्पति या मंगल छठवें या बारहवें घर में हों तो केतू अशुभ परिणाम नहीं देता। चंद्रमा के दूसरे भाव में स्थित होने पर भी यही परिणाम मिलता है। यदि आठवें भाव में स्थित केतू अशुभ हो तो जातक की पत्नी बीमार रहती है। पुत्र का जन्म नहीं होता, यदि होता है तो मृत्यु हो जाती है। जातक मधुमेह या मूत्र रोग से ग्रस्त होता है। यदि शनि अथवा मंगल सातवें घर में हों तो जातक दुर्भाग्यशाली होता है। आठवें भाव में अशुभ केतू के होने की अवस्था में जातक का चरित्र उसके पत्नी के स्वास्थ्य को निर्धारित करता है। छब्बीस साल की उम्र के बाद वैवाहिक जीवन में परेशानियां आती हैं।

उपाय:
(1) एक कुत्ता पालें।
(2) किसी मंदिर में काला और सफेद रंग वाला कंबल दान करें।
(3) भगवान गणेश की पूजा करें।
(4) कान में सोना पहनें।
(5) माथे पर केसर का तिलक लगाएं।

लाल किताब के अनुसार केतु का नौवें भाव में फल

नौवां घर बृहस्पति का होता है जो केतू के पक्षधर हैं। नौवें भाव में केतू उच्च का माना जाता है। ऐसा जातक आज्ञाकारी और भाग्यशाली होता है। जातक का धन बढता है। यदि केतू शुभ हो तो जातक अपने प्रयासों से धनार्जन करता है। प्रगति होगी लेकिन स्थानांतरण नहीं होगा। यदि जातक अपने घर में सोनें की ईंट रखे तो धानागमन होता है। जातक का पुत्र भविष्य का अनुमान लगाने में सक्षम होगा। जातक अपने जीवन का एक बहुत बडा हिस्सा विदेशी भूमि में व्यतीत करता है। यदि चंद्रमा शुभ हो तो जातक अपने ननिहाल वालों की मदद करता है। यदि यहां पर केतू अशुभ हो तो जातक मूत्र विकार, पीठ में दर्द, और पैरों की समस्या से ग्रस्त होता है। जातक के बच्चे मरते जाते हैं।

उपाय:
(1) एक कुत्ते पालें।
(2) घर में सोने का एक आयताकार टुकड़ा रखें।
(3) कान में सोना पहनें।
(4) बड़ों का सम्मान करें, विशेषकर ससुर का सम्मान जरूर करें।

लाल किताब के अनुसार केतु का दसवें भाव में फल

दसवां घर शनि का होता है। यहाँ के केतु के परिणाम शनि की प्रकृति पर निर्भर करते हैं। यदि केतु शुभ हो तो जातक भाग्यशाली होता, अपने बारे में चिन्ता करने वाला होता है और अवसरवादी होता है। उसके पिता की मृत्यु जल्दी हो जाती है। यदि शनि छठवें भाव में हो तो जातक प्रसिद्ध खिलाड़ी होता है। यदि जातक अपने भाइयों को उनके कुकर्मों के लिए क्षमा करता है तो उसकी तरकी होगी। यदि जातक का चरित्र अच्छा हो तो वह बहुत धन कमाता है। यदि दसम भाव में अशुभ केतु हो तो जातक मूत्र विकार और कान की समस्याओं से ग्रस्त होता है। जातक को हड्डियों में दर्द होता है। यदि शनि चतुर्थ भाव में हो तो जातक का घरेलू जीवन चिंताओं और परेशानियों से भरा होता है। जातक के तीन पुत्रों की मृत्यु हो जाती है।

उपाय:
(1) घर में शहद से भरा बर्तन रखें।
(2) घर में एक कुत्ता रखें विशेषकर अडतालिस साल की उम्र के बाद।
(3) व्यभिचार से बचें।
(4) चंद्रमा और बृहस्पति का उपचार करें।

लाल किताब के अनुसार केतु का ग्यारहवें भाव में फल

यहाँ केतु बहुत अच्छा माना जाता है। यह धन देता है। यह घर बृहस्पति और शनि से प्रभावित होता है। यदि केतु यहाँ शुभ हो, और शनि तीसरे घर में हो तो यह बहुत धन देता है, जातक के द्वारा अर्जित धन उसके पैतृक धन से अधिक होगा, लेकिन फिर भी उसे अपने भविष्य के बारे में चिंता करने की आदत होगी। यदि बुध तीसरे भाव में हो तो यह एक राज योग होगा। यदि केतू यहां अशुभ हो तो जातक को पेट की परेशानी होती है। वह भविष्य के बारे में बहुत चिंता करता है, और बहुत परेशान होता है। यदि शनि भी अशुभ हो तो जातक की दादी अथवा माँ परेशान होती है। साथ की जातक को पुत्र या घर से कोई लाभ नहीं होता।

उपाय:
(1) काला कुत्ता पालें।
(2) गोमेद या पन्ना पहनें।

लाल किताब के अनुसार केतु का बारहवें भाव में फल

यहाँ केतु को उच्च का माना जाता है। जातक अमीर होगा, बडा पद प्राप्त करेगा, और अच्छे कामों को समर्पित होगा। यदि राहू छठवें भाव में बुध के साथ हो तो बेहतर परिणाम मिलते हैं। जातक को सभी तरह के लाभ और विलासिता की चीजों की प्राप्ति होती है। यदि 12वें घर में स्थित केतु अशुभ है तो जातक किसी निस्संतान व्यक्ति से भूमि खरीदता है और खुद भी निस्संतान हो जाता है। यदि जातक किसी कुत्ते को मार देता है तो केतु हानिकर परिणाम देता है। यदि दूसरे भाव में चंद्रमा, शुक्र या मंगल ग्रह हों तो केतु हानिकर परिणाम देता है।

उपाय:
(1) भगवान गणेश की पूजा करें।
(2) चरित्र ढीला रखें।(3) एक कुत्ता पालें।
(4) रात में अच्छी नींद के लिए तकिये के नीचे खांड और सौंफ रखें।

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

विशिष्ट तंत्र उपाय

श्री बगलामुखी कल्प विधान-गुप्त शत्रु मर्दनी

अपनी शब्दावली भाव प्रणाली की विशिष्टिता के कारण इसे अत्यन्त विकट शत्रु से सन्त्रास को ध्वस्त करने के लिए किया जाता है। प्रस्तुत प्रयोग की फलश्रुति के अनुसार नित्य एक बार अथवा तीनों संन्ध्याओं में एक एक बार, एक मास तक पाठ से बगलामुखी देवी साधक के शत्रु को उद्घ्वस्त करती है:-

मास मेकं पठेन्नित्यं त्रैलोक्ये चाति दुर्लभम्।

सर्व सिद्धिम वाप्नोति देव्या लोकं गच्छति।।

माँ की सिद्धि का सुगम उपाय है यदि इसका श्रृद्धायुक्त तीनों संघ्याओं में पाठ करने के उपरान्त रात्रि में तिल की खीर से नित्य भवगती को होम दें। एक मास तक यही प्रक्रिया करते रहें भवगती बगलामुखी साधक को बिना जप किए सब कुछ उपलब्ध करा देती है।

सर्वप्रथम बगलामुखि के यंत्र का आगे दिए विधान द्वारा पूजन कर, स्त्रोत के पाठ से शत्रुओं का शमन होता है और वे आप के मार्ग से हट जाते हैं। ग्यारह सौ पाठ का विधान है एक सौ ग्यारह पाठ का हवन करते हैं।

हवन सामग्री:-  हल्दी, मालकाँगनी, तिल, बूरा, हरताल, घी में सान कर पाठ के प्रत्येक स्वाहा पर आहुति देते हैं। अन्तिम आहुति प्रत्येक पाठ के बाद खीर की देते हैं। इसका तर्पण-मार्जन नहीं होता है। खीर-दूध में तिल डाल कर टाइट खीर बनाते हैं बाद में उसमें केसर शहद भी मिला लेते हैं। स्वअनुभूति इस विधान को पूर्ण कर जब हवन की अन्तिम आहुति दी गई, षडयंत्रकारी को मार्ग से हटना ही पड़ गया, जब कि वह माँ दुर्गा का अच्छा साधक था, परन्तु षडयंत्र रचने में उसे महारत हासिल थी। किसी को ज्ञात भी नहीं होता था कि किसका षडयंत्र है, परन्तु भगवती की दृष्टि से वह माँ दुर्गा का सेवक छुप सका और माँ के दंड को उसे भुगतना ही पड़ गया। इसे नित्य की पूजा में सम्लित कर आप पूर्णतः निश्चिन्त हो जाएं। भगवती सदैव आप की रक्षा ही नहीं करेगी वरन् आप के गुप्त शत्रुओं को मार्ग से सदैव के लिए हटा देती है।

पुस्तकों में लिखा है परन्तु मेरा ऐसा कोई अनुभव नहीं रहा कि यदि किसी मकान या दुकान को बांध दिया गया है तो उपरोक्त पाठ 108 बार पढ़ कर, जल पर फूकें। इस जल को घर या दुकान में प्रवेश करते समय अपने सिर पर से द्वार के बाहर की ओर फेंक दें। उसके बाद पुनः ग्यारह पाठ कर जल पर फूंके इस जल को घर/दुकान में सभी जगह छिड़क देने से वह स्थान जीवंत हो जाता है। दुकान चलने लगती है घर की समस्त बाधाएं शान्त हो जाती है।

श्री बगलामुखी कल्प विधान देखने में बहुत बड़ा लगता है, परन्तु वास्तव में अत्यन्त आसान है। सर्व प्रथम भगवति से प्रार्थना करें माँ मैं आप के इस कल्प विधान को करना चाहता हूँ मुझे अनुमति प्रदान करें साथ ही मेरी मदद करे, आप को बता दूँ माँ इसे अत्यधिक सुगम तरीके से करा देगी कि आप को पता ही नहीं चलेगा। पाठ की कुछ कुन्जियाँ आप को देता हूँ, जिससे आप को भटकन नहीं होगी पहली कुन्जी है दिशा जैसे

ऊँ ऐं ह्लीं बगलामुखि एहि एहि पूर्व दिशा बन्धय बन्धय इन्द्रस्य मुखं

ऊँ ऐं ह्लीं पीताम्बरे एहि एहि अग्निदिशायाां - अग्नि मुखं

 

 

 

इस चक्र को मस्तिष्क मैं बैठा ले किस दिशा पर किस शक्ति को पुकारते हैं और किस देवता का बन्ध करते हैं।

दूसरी कुंजी:-
 

 

 

तीसरी कुंजी - मानव आकृति मस्तिष्क में बैठा लें सर से ध्यान करे-

शिरो (सर) - बगलामुखि
2. भाले (मत्था) - पीताम्बरे
3. नेत्रो - महा भैरवि
4. कर्णो (कान) - विजये
5. नासौ (नाक) - जये
6. वदंन (चेहरा) - शारदे
7. कण्ठे (गला) - रूद्राणि
8. स्कन्धौ (कंधे) - विन्ध्यवासिनि
9. बाहू (हाथ) - त्रिपुर सुन्दरि
10. करौ (उगलियाँ) - दुर्गे
11. हृदयं - भवानि
12. उदरं (पेट) - भुवनेश्वरि
13. नाभिं - महामाये
14. कटिं (कमर) - कमल लोचने
15. उरौ (छाती) - तारे
16. सर्वाङ - महातारे
17. अग्रे (सामने) - योगिनि
18. पृष्ठे (पीछे) - कौमारि
19. दक्षिण पार्श्वे (दाई ओर) - शिवे
20. वाम पार्श्वे (बाई ओर) - इन्द्राणि

 

फिर गां गीं गू .....

सभी में प्रारम्भ ऊँ ह्लां ह्लीं हलूं ह्लैं ह्लौं ह्लः लगा करे अंग का नाम रक्षतु देवी का नाम रक्ष रक्ष स्वाहा लगाते हुए क्रमशः बढ़ते रहे और अन्त  में  एक पाठ पूरा हो जाएगा जिह्वा धारावाहिक वाचिक चलती रहती है, आनन्द की अनुभूति क्रमशः चलते-चलते चरम पर पहुंच ही जाती है।

 

बगलामुखी कल्प विधान

 

इसमें माँ बगलामुखी का सर्वांग पूजन आगे दी विधि के अनुसार करें। सर्वप्रथम 3 बार मूलमंत्र से प्राणायाम करें बाएं नथुने से धीरे-धीरे सांस खींच कर उसे तब तक रोके रहे जब तक छटपटाहट महसूस होने लगे फिर इसे दांए नथुने से धीरे-धीरे बाहर छोडे़ पुनः दांए से खींच कर बाए नथुने से सांस छोडें़ यह एक प्राणायाम हुआ, इस प्रकार तीन बार कर, मूल मंत्र का 108 बार जाप कर, दिग्बन्धन के समय सम्बन्धित दिशा में चुटकी बजाए-

दिग्बन्धन -

ऊँ ऐं ह्ल्रीं श्रीं श्यामा माँ। पूर्वतः पातु।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं आग्नेय्यां पातु तारिणी।।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं माहविद्या दक्षिणे तु।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं नैर्ऋत्यां षोडशी तथा।।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं भुवनेशी पिश्रिमायाम्।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं वायव्यां बगलमुखी।।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं उत्तरे छिन्नमस्ता च।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ऐशान्यां धूमावती तथा।।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ऊर्घ्व तु, कमला पातु।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अन्तरिक्षं सर्वदेवता।।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं अद्यस्तात् चैव मातङगी।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं सर्वदिग् बगलामुखी।।

विनियोगविनियोग बोल कर जल पृथ्वी पर डाले। दांए हाथ में जल लेकर

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं ब्रह्मास्त सिद्ध प्रयोग स्त्रोत मन्त्रस्य भगवान नारद ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, हृं बीजम् शक्ति, लं कीलकं, मम सर्वार्थ-साधन-सिद्धयर्थे पाठे

विनियोमः। फिर सम्बन्धित स्थानो को छुए

ऊँ भगवते नारदाय ऋषये नमः शिरसि

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः श्यामा देव्यै नमः ललाटे।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः तारा देव्यै नमः कर्णयोः।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः महा विद्यायै नमः भ्रवोर्मध्ये।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः षोडशी देव्यै नमः नेत्रयो।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः श्री बगला मुखी देव्यै नमः मुखे।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः बगला भुवनेश्वरी भ्यां नमः नासिकयोः।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः छिन्न मस्ता देव्यै नमः नाभौ।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः धूमावती देव्यै नमः कटयाम्।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः कमला देव्यै नमः गुहृो।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः श्री मातंगी देव्यै नमः पादयो।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हृी बीजाय नमः नाभौ।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हृी कीलकाय नमः सर्वाङगे।

मम सर्वार्थ साधने बगला देव्यै जपे विनियोगः। (जल पृथ्वी पर डाल दे)

 

कर न्यास-

ऊँ ह्लं बगलामुखी अड.गुष्ठाभ्यां नमः।

ऊँ ह्लीं बगलामुखी तर्जनी भ्यां नमः।

ऊँ ह्लूं बगलामुखी मध्यमा भ्यां नमः।

ऊँ ह्लैं बगलामुखी अनामिका भ्यां नमः।

ऊँ ह्लौं बगलामुखी कनिष्ठिका भ्यां नमः।

ऊँ ह्लः बगलामुखी करतल कर पृष्ठा भ्यां नमः।

 

हृदयदि न्यास-

ऊँ हृीं हृदयाय नमः। (हृदय को दांए हाथ से स्पर्श करें)

बगलामुखी शिरसे स्वाहा।(सिर का स्पर्श करें)

सर्व दुष्टानां शिखायै वषट्। (शिखा का स्पर्श करें)

वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम्। (कवच बनाएं

जिह्वां कीलय् नेत्रयाय वौषट। (नेत्रों का स्पर्श करें)

बुद्धि विनाशाय ऊँ ह्लीं स्वाहा (सिर के पीछे से, दाए हाथ से चुटकी बजाते हुए, दांए हाथ की गदेली पर, बांए हाथ की तर्जनी मध्यमा से तीन बार ताली बजाए।)
कवच - दांए हाथ की उंगलियाँ बाए कंधे पर रखे ठीक इसका उल्टा अर्थात् बांए हाथ की उगलियाँ दाहिने कंधे पर रखे, इस भांति सीने पर कवच की मुद्रा बनाते हैं।


 

ध्यान -

   
सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशु कोल्लासिनीं
   
हेमा भाङग रूचिं शशाङक मुकुटां सच्चम्पक स्त्रग्युताम्। 
   
हस्तै र्मुद्गर पाश वज्र रसनाः संविभ्रतीं भूषणैः। 
   
र्व्याप्ताङगीं बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत।।

 

यन्त्रोद्वार -                          

त्रिकोणं चैव षट्-कोणं, वसु-पत्रं ततः परम्।

पुनश्च वसु-पत्रं, वर्तुलं प्रकल्पयेत्।।

षोडशारं ततः पश्चात्, चतुरस्त्रं विधीयते।

वर्तुलं चतुरस्तं , मध्ये मायां समालिखेत्।।   

 

नोट -      माँ बगलामुखी के उपरोक्त यन्त्रोंद्वार वाला ही यंत्र प्रयोग करें, बाजार में इनके विभिन्न प्रकार के यंत्र मिलते हैं। इसकी विधिवत् प्राण प्रतिष्ठा कर, सर्वांग पूजन करते हैं। पीले वस्त्र पर प्राण प्रतिष्ठित यंत्र स्थापित कर जहाँ-जहाँ पूजयामि है वहाँ-वहाँ पुष्प की पंखुडियाँ सामने प्लेट में डालते जाए तर्पयामि भी जल से करते रहें।

आदौ-त्रिकोण देवताः पूजयेत् -

ऊँ ऐं ह्री श्रीं क्रोधिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्री श्रीं स्तंभिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्री श्रीं चामर धारिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

पुनस्त्रि कोणे -

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ओडयान पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं जालन्धर पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं कामगिरि पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं अनन्त नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कण्ठ नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं दन्तात्रेय नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

अथ षट्कोणे -

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं सुभगायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भग वाहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भग मालिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भग शुद्धायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भग पत्न्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

अथ वसुपत्रे -

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ब्राह्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं माहेश्वर्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं कौमार्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं वैष्णव्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं वाराहौै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं इन्द्राण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं चामुण्डायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

अथ द्वितीय वसुपत्रे -

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं जयाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं विजयाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं अजिताय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं अपराजिताय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं मोहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

अथ पत्राग्रे-

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं असिताङग भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं रूरू भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं चण्ड भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्रोध भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं उन्मन्त भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं कपालि भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भीषण भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं संहार भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

षोडश दले -

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगला मुख्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं मोहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं चच्चत्रायैै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं अचलायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं वश्यायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं कालिकायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं कल्मषायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं छात्रयै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं काल्पान्तायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शाकिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं अष्ट गन्धायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भोगेच्छायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं भाविकायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि।

मन्त्र पाठ -108 बार पाठ कर, स्त्रोत का पाठ करें।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगला मुखि सर्व दुष्टानां वश्यं कुरू कुरू कलीं कलीं ह्रीं हुं फट् स्वाहा। ऊँ ह्लं बगलामुखि श्री बगलामुखि दुष्टान् भिन्धि भिन्धि, छिन्धि छिन्धि, पर मन्त्रान् निवारय निवारय, वीर चंक्र छेदय छेदय, वृहस्पति मुखं स्तम्भय स्तम्भय, ऊँ ह्रीं अरिष्ट स्तम्भनं कुरू कुरू स्वाहा, ऊँ ह्रीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा। (108 बार पाठ करें)

 

स्त्रोत्र -

ब्रह्मास्त्रां प्रवक्ष्यामि बगलां नारद सेविताम्।

देव गन्धर्व यक्षादि सेवित पाद पङकजाम्।।

त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या सर्व शत्रु वशङकरी आकर्षणकरी उच्चाटनकरी विद्वेषणकरी जारणकरी मारणकरी जृम्भणकरी स्तम्भनकरी ब्रह्मास्त्रेण सर्व वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ह्लं द्राविणि द्राविणि भ्रामिणि भ्रामिणी एहि एहि सर्व भूतान् उच्चाटय उच्च्चाटय सर्व दुष्टान् निवारय निवारय भूत प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनीः छिन्धि छिन्धि, खड्गेन भिन्धि भिन्धि मुद्गरेण संमारय संमारय, दुष्टान्, भक्षय-भक्षय, ससैन्यं भूपतिं कीलय मुख स्तम्भनं कुरू कुरू ऊँ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

आत्म-रक्षा ब्रह्म-रक्षा, विष्णु-रक्षा रूद्र-रक्षा, इन्द्र-रक्षा, अग्नि-रक्षा, यम-रक्षा, नैर्ऋत-रक्षा, वायु-रक्षा, कुवेर-रक्षा, ईशान-रक्षा, सर्व-रक्षा, भूत-प्रेत, पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-रक्षा-अग्नि वैताल-रक्षा गण-गन्धर्व-रक्षा, तस्मात् सर्वरक्षां कुरू कुरू, व्याध्र-गज-सिंह रक्षा गण तस्कर-रक्षा, तस्मात् सर्व बन्ध्यामि ऊँ ह्लं बगलामुखि हुँ फट् स्वाहा।

ऊँ ह्लीं भो बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं बगलामुखि एहि-एहि पूर्व दिशायां बन्धय-बन्धय इन्द्रस्य मखं स्तम्भ-स्तम्भ इन्द्र शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं पीताम्बरे एहि-एहि अग्नि दिशायां बन्धय-बन्धय अग्नि मुखं स्तम्ीाय स्तम्भय अग्नि शस्त्र निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं महर्षि मर्दिनि एहि-एहि अग्नि दिशायां बन्धय-बन्धय समस्य अग्नि स्तम्भय स्तम्भय यम शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं हज्जृम्भणं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चण्डिके एहि-एहि नैऋत्य दिशायां बन्धय-बन्धय नैऋत्य मुखं स्तम्भय नैऋत्य शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कराल नयने एहि-एहि पश्चिम दिशायां बन्धय-बन्धय वरूण मुखं स्तम्भय वरूण शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं कालिके एहि-एहि वायव्य दिशायां बन्धय-बन्धय वायु मुखं स्तम्भय वायु शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं महा त्रिपुर सुन्दरी एहि-एहि नैऋत्य दिशायां बन्धय-बन्धय कुवेर मुखं स्तम्भय कुबेर शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं महाभैरवि एहि एहि ईशान दिशायां बन्धय बन्धय ईशान मुखं स्तम्भय स्तम्भय ईशान शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं गाङगेश्वरि एहि एहि ऊर्ध्व दिशायां बन्धय बन्धय ब्रह्मणं चतुर्मखं स्तम्भय स्तम्भय ब्रह्म शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ललितादेवी एहि एहि अन्तरिक्ष दिशायां बन्धय बन्धय विष्णु मुखं स्तम्भय स्तम्भय विष्णु शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं चक्रधारिणि एहि एहि अधो दिशायां बन्धय बन्धय वासुकि मुखं स्तम्भय स्तम्भय वासुकि शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

दुष्ट मन्त्रम् दुष्ट यन्त्रं दुष्ट पुरूषम् बन्धयामि शिखां बन्ध ललाट बन्ध भ्रवौ बन्ध नेत्रे बन्ध कर्णों बन्ध नासौ बन्ध ओष्ठी बन्ध अधरौ बन्ध जिह्वां बन्ध रसनां बन्ध बुद्धि कष्ठम् बन्ध हृदयं बन्ध कुक्षि बन्ध हस्तौ बन्ध नाभि बन्धा लिङगम् बन्ध गुहां बन्ध ऊरू बन्ध जानू बन्ध जङघे बन्ध गुल्फौ बन्ध पादौ बन्ध स्वर्ग-मृत्युं-पातालं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि इन्द्राय सुराधि पतये ऐरावत् वाहनाय श्वेत वर्णाय वज्र हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् निरासय निरासय विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि अग्नेय तेजोधिपतये छाग वाहनाय रक्त  वर्णाय शक्ति हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि यमाय प्रेताधिपतये महिष वाहनाय कृष्ण वर्णाय दण्ड हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वरूणाय जलाधि पतये मकर वाहनाय श्वेत वर्णाय पाश हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वायव्याय मृगवाहनाय ध्रूम वर्णाय ध्वजा हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि ईशानाय भूताधि पतये वृषभ वाहनाय कर्पूर वर्णाय त्रिशूल हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि ब्रह्मणे ऊर्ध्व दिग्लोकपालाधि पतये हंस वाहनाय श्वेत वर्णाय कमण्डलु हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ऊँ ह्लीं बगलामुखि वैष्णी सहिताय नागाधिपतये गरूण वाहनाय श्याम वर्णाय चक्र हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ नमो भगवते पुण्य पवित्रे स्वाहा।

ऊँ ह्लीं बगलामुखि नित्यम् एहि एहि रवि मण्डल मध्याद् अवतर अवतर सानिध्यं कुरू कुरू। ऊँ ऐं परमेश्वरीम् आवाहयामि नम्। मम् सानिध्यं कुरू। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुम् फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः बगले चतुर्भुजे मुद्धरशर संयुक्ते दक्षिणे जिह्वा व्रज संयुक्ते वामे श्री महाविद्ये पीत बस्त्रे पच्च महाप्रेताधि रूढे सिद्ध विद्याधर बन्दिते ब्रह्म विष्णु रूद्र पूजिते आनन्द स्वरूपे विश्व सृष्टि स्वरूपे महा भैरव रूप धारिणि स्वर्ग मृत्यु पाताल सतम्भिनि वाम मार्गाश्रिते श्री बगले ब्रह्म विष्णु रूद्र रूप निर्मिते षोडशकला परिपूरिते दानाव रूप सहस्त्रादित्य शेभिते त्रिवर्णे एहि एहि हृदयं प्रवेशय प्रवेशय शत्रुमुखं स्तम्भ स्तम्भ अन्य भूत पिशाचान् खादय खादय अरिसैन्यं विदारय विदारय पर विद्यां परचक्रं छेदय छेदय वीर चक्रं धनुषां संभारय संभारय त्रिशूलेन् छिन्धि छिन्धि पाशेन बन्धय बन्धय भूपतिं वश्यं कुरू कुरू संमाहेय-संमोहय बिना जाप्येन सिद्धय सिद्धय बिना मन्त्रंण सिद्धिं कुरू कुरू सकल दुष्टान् घातय-घतय मम त्रैलोक्यं वश्यं कुरू-कुरू सकल कुल राक्षसान् दह दह पच पच मथ मथ हन हन मर्दय मर्दय मारय मारय भक्षय भक्षय मां रक्ष रक्ष विस्फाटका दीन् नाश्य नाशय ऊँ ह्रीं विषम ज्वरं नाशय-नाशय विषं निर्विष कुरू कुरू ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ क्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पंद स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धि विनाशय विनाशय क्लीं क्लीं ह्लीं स्वाहा।

ऊँ बगलामुखि स्वाहा। ऊँ पीताम्बरे स्वाहा। ऊँ त्रिपुर भैरवि स्वाहा। ऊँ विजयायै स्वाहा। ऊँ जयायै स्वाहा। ऊँ शारदायै स्वाहा। ऊँ सुरेश्रर्ये स्वाहा। ऊँ रूद्राण्यै स्वाहा। ऊँ विन्घ्य वासिन्यै स्वाहा। ऊँ त्रिपुर सुन्दर्यै स्वाहा। ऊँ दुर्गाये स्वाहा। ऊँ भवान्यै स्वाहा। ऊँ भुवनेश्वर्यै स्वाहा। ऊँ महा मायायै स्वाहा। ऊँ कमल लोचनायै स्वाहा। ऊँ तारायै स्वाहा। ऊँ योगिन्यै स्वाहा। ऊँ कौमार्यै स्वाहा। ऊँ शिवायै स्वाहा। ऊँ इन्द्राण्यै स्वाहा। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हं फट् स्वाहा।

ऊँ क्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं विनाशय विनाशय क्लीं क्लीं ह्लीं स्वाहां

ऊँ बगलामुखि स्वाहा। ऊँ पीताम्बरे स्वाहा। ऊँ त्रिपुर भैरवि स्वाहा। ऊँ विजयायै स्वाहा। ऊँ जयायै स्वाहा। ऊँ शारदायै स्वाहा। ऊँ सुरेश्रर्ये स्वाहा। ऊँ रूद्राण्यै स्वाहा। ऊँ विन्ध्य वासिन्यै स्वाहा। ऊँ त्रिपुर सुन्दर्यै स्वाहा। ऊँ दुर्गायै स्वाहा। ऊँ भवान्यै स्वाहा। ऊँ भुवनेश्वर्यै स्वाहा। ऊँ महा मायायै स्वाहा। ऊँ कमल लोचनायै स्वाहा। ऊँ तारायै स्वाहा। ऊँ योगिन्यै स्वाहा। ऊँ कौमार्यै स्वाहा। ऊँ शिवायै स्वाहा। ऊँ इन्द्राण्यै स्वाहा। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हं फट् स्वाहा।

ऊँ ह्लीं शिव तत्व व्यापिनि बगलामुखि स्वाहा। ऊँ ह्लीं माया तत्व-व्यापिनि बगलामुखि हृदयाय स्वाहा। ऊँ ह्लीं विद्या तत्व व्यापिनि बगलामुखि शिसे स्वाहा। ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः शिरो रक्षतु बगलामुखि रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः भालं रक्षतु पीताम्बरे रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नेत्रे रक्षतु महा भैरवि रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः कर्णों रक्षतु विजये रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नासौ रक्षतु जये रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः वदनं रक्षतु शारदे रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः स्कनधौ रक्षतु विन्घ्यं रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः बाहु रक्षतु त्रिपुर सुन्दरि रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः करौ रक्षतु दुर्गे रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः उदरं रक्षतु भुवनेश्वरि रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः नाभिं रक्षतु महामाये रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः कटिं रक्षतु कमल लोचने रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः उरौ रक्षतु तारे रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः संर्वाङगे रक्षतु महातारे रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः अग्रे रक्षतु येागिनि रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः पृष्ठे रक्षतु कौमारि रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः दक्षिण पार्श्वे रक्षतु शिवे रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ ह्लं ह्लीं ह्लू ह्लै ह्लौं ह्लः वाम पार्श्वे रक्षतु इन्द्राणि रक्ष रक्ष स्वाहा।

ऊँ गां गीं गूं गैं गौं गः गणपतये सर्व जन मुख स्तम्भनाय आगच्डछ आगच्छ मम विध्नान् नाशय नाशय दुष्टं खादय खादय दुष्टस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय अकाल मृत्युं हन हन भो गणाधिपते ऊँ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ ह्लीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

 

हवन - जहाँ-जहाँ स्वाहा है आहुतियां देते रहें।

 

एक हजार पाठ के उपरान्त यह पाठ स्वतः चलने लगता है, भगवती के यंत्र की पंचोपचार पूजन कर, रीढ़ की हड्डी सीधी कर बैठे अपनी त्रिकुटि के मध्य में ध्यान रखते हुए पाठ करें कैसा भी आप पर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो उसको यह ध्वस्त कर देता है अभिचारिक व्यक्ति को दंड भी मिल जाता है। इस पाठ को आप अपनी दैनिक पूजा में यदि स्थान देते हैं तो भगवती आप की पूरी सुरक्षा ही नहीं करती वरन् बहुत कुछ दे देती है, जिसे स्वयं आप अनुभव करेंगे, धर्मता पूर्वक क्रमशः आगे बढ़ते रहें, भगवती आप की प्रत्येक मनोकामनाओं को पूर्ण करेगी। एक वर्ष में ही आप शक्ति सम्पन्न हो जाएगें। ऐसा अनुभवी साधकों ने स्वीकारा है।

(श्री बगलामुखि कल्पै वीर-तन्त्रे बगला-सिद्ध प्रयोग)

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

ज्योतिष योग

ज्योतिष में बनने वाले दुर्लभ योग जो कुंडली में होते हैं। खास

ज्योतिष में ग्रहों, नक्षत्रों, भावों, राशियों इत्यादि के आधार पर कई तरह के योग बनते हैं। जो कुछ शुभ तो कुछ अशुभ स्थिति को पाते हैं। कुछ योग ऎसे होते हैं। जो काफी विशेष रुप से व्यक्ति पर अपना असर डालते है। इन योग का असर व्यक्ति के भाग्य एवं उसके कर्म सभी पर अपना प्रभाव डालने वाला होता है। कुंडली में कुछ ग्रह स्थितियां हैं। ऎसी होती हैं। जो ग्रह की ताकत का संकेत होती हैं। ग्रहों की इन स्थितियों को हमारे ऋषियों ने अलग-अलग नाम दिए हैं। जिन्हें योग कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र में ऐसे कई योग हैं। जो कुंडली में महत्वपूर्ण बदलाव लाते हैं। ये सभी योग कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थिति के साथ काम करते हैं। योगों की शक्ति ग्रहों की स्थिति, दृष्टि और युति पर आधारित होती है। इसलिए, जब तक पूर्ण कुंडली मजबूत हो, तब तक किसी भी योग में परिणाम देने की शक्ति नहीं होती है।

पांच महापुरुष योगों को पंच-महापुरुष योग भी कहते है। यह योग पांच श्रेष्ठ योगों का समूह है। पांच महापुरुष योग में रुचक योग, हंस योग, मालव्य योग, भद्र योग शश योग आते है। इन पांचों योगों को एक साथ पंच महापुरुष योग के नाम से जाना जाता है।

 

पांच महापुरुष योग पांच ग्रहों के अपने राशि में स्थित होने अथवा उच्च के होकर केन्द्र में होने पर बनते है। इस प्रकार बनने वाले पांच योगों में से एक योग है।

रुचक योग

रूचक योग किस प्रकार बनता है।

जब कुण्डली में मंगल स्वराशि( मेष, वृ्श्चिक) अथवा मंगल अपनी उच्च राशि (मकर राशि ) में होकर केन्द्र में हो तो रुचक योग बनता है।

रुचक योग के फल

जिसके जन्म कुण्डली में रुचक योग बन रहा हो, वह व्यक्ति दीर्घायु वाला होता है। उसकी त्वचा साफ और सुन्दर होती है। शरीर में रक्त की मात्रा अधिक होती है। वह बली, और साहसी होता है। इसके साथ ही उसे सिद्धियां प्राप्त करने में विशेष रुचि हो सकती है।

इस योग से युक्त व्यक्ति सुन्दर, भृ्कुटी, घने केश, हाथ-पैर सुडौल, मंत्रज्ञ, रक्तश्याम वर्ण, बडा शूर, शत्रुजित, शंख समान कण्ठ, बडा पराक्रमी, दुष्ट, ब्राह्माण, गुरु के सामने विनयशील, जनता से प्रेम करने वाला होता है।

व्यक्ति में इन सभी गुणों के साथ साथ यह योग व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से लडने की शक्ति देता है। इस योग से युक्त व्यकि अपने शत्रुओं को परास्त करनें में कुशल होता है।

 

हंस योग कैसे बनता है।

हंस योग उस समय बनता है। जब कुण्डली में लग्न, पंचम, नवम, सप्तम भाव में सभी ग्रह स्थित हो, जिस व्यक्ति की कुण्डली में हंस योग होता है। उस व्यक्ति में सही - गलत का निर्णय करने की योग्यता होती है। वह व्यक्ति उत्तम् कार्य करने वाला उच्च कुल में जन्म लेने वाला होता है।

 यह योग व्यक्ति में निर्णय योग्यता में बढोतरी करता है।

हंस योग से युक्त व्यक्ति विद्वान और ज्ञानी होता है। उसमें न्याय करने का विशेष गुण होता है। तथा हंस के समान वह सदैव शुभ आचरण करता है। उसमें सात्विक गुण पाये जाते है।

 

पांच महापुरुष योगों में से एक अन्य योग है। भद्र योग, यह योग भी शुभ योगों की श्रेणी में आता है। तथा इस योग से युक्त व्यक्ति धन, कीर्ति, सुख-सम्मान प्राप्त करता है।

कुण्डली में जब बुध स्वराशि (मिथुन, कन्या) में हो तो यह योग बनता है। साथ ही बुध का केन्द्र अमें होना भी आवशय है। कुछ शास्त्र इसे चन्द्र से केन्द्र में भी लेते है। भद्र योग अपने नाम के अनुसार व्यक्ति को फल देता है।

भद्र योग फल

भद्र योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सिंह के समान फुर्तीला होता है। उसकी चाल हाथी के समान कहीं गई है। वक्षस्थल पुष्ट होता है। गोलाकारक सुडौळ बाहें, कामी, विद्वान, कमल के समान हाथ-पैर होते है। सत्वगुण, कान्तिमय त्वचा युक्त होता है।

इसके अतिरिक्त जिसका जन्म भद्र नामक योग में हुआ हो, उसके हाथ-पैर में शंख, तलवार, हाथी, गदा, फूल,  बाण, पताका, चक्र, कमल आदि चिन्ह हो सकते है. उसकी वाणी सुन्दर होती है. इस योग वाले व्यक्ति की दोनों भृ्कुटी सुन्दर, बुद्धिमान, शास्त्रवेता, मान सहित भोग भोगने वाला, बातों को छिपाने वाला, धार्मिक, सुन्दर ललाट, धैर्यवान, काले घुंघराले बाल युक्त होता है।

भद्र योग वाला व्यक्ति सब कार्य को स्वतन्त्र रुप से करने में समर्थ होता है। अपने जन को भी क्षमा करने वाला तथा उसकी संपति को अन्य भी भोगते है।

 

मालव्य योग कैसे बनता है।

शुक्र जब कुण्डली में स्वराशि (वृ्षभ, तुला) राशि में हो, तो मालव्य योग बनता है।

मालव्य योग फल

मालव्य योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति को विदेश स्थानों की यात्रा करने के अवसर प्राप्त होते है। मालव्य योग में उत्पन्न व्यक्ति पतले होंठ वाला होता है। अंगों की संधियां रक्त रहित, दुर्बल, चन्द्रमा के समान कान्ति, दीर्घ नासिका, सुन्दर गाल, उत्तम तेज दृष्टि, सर्वत्र पराक्रमी, लम्बी बाहें, और दीर्घायु वाला होता हैv

कुण्डली में ग्रहों अपनी विशेष स्थिति में होने पर विशेष रुप से शुभ या अशुभ फल देने वाले हो जाते है।  इस स्थिति को योग कहा जाता है। योग बनाने वाले ग्रहों की फल देने की क्षमता बढ जाती है। योग शुभ हो तो व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते है। इसके विपरीत योग अशुभ बन रहा हो तो व्यक्ति को योग के परिणाम अशुभ रुप में प्राप्त होते है।   

 

शश योग कैसे बनता है।

शश योग शनि से बनने वाला योग, जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग हो, उस व्यक्ति के जीवन की मुख्य घटनाएं शनि देव से प्रभावित रहती है. शश योग विशेष योगों की श्रेणी में से आता है। साथ ही यह योग पांच महापुरुष योग भी है।

कुण्डली में जब शनि स्वराशि (मकर,कुम्भ) में हो,  अथवा शनि अपनी उच्च राशि तुला में होकर, कुण्डली के केन्द्र भावों में स्थित हो, उस समय यह योग बनता है। एक अन्य मत के अनुसार इस योग को चन्द्र से केन्द्र में भी देखा जाता है।

शश योग फल

शश योग को शशक योग के नाम से भी जाना जाता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति छोटे मुंह वाला, जिसकें छोटे छोटे दांत होते है। उसे घूमने-फिरने के शौक होता है। वह भ्रमण उद्देश्य से अनेक यात्राएं करता है। शश योग वाला व्यक्ति क्रोधी, हठी, बडा वीर, वन-पर्वत,किलों में घूमने वाला होता है। उसे नदियों के निकट रहना रुचिकर लगता है। इसके अतिरिक्त उसे घर में मेहमान आने प्रिय लगते है. कद से मध्यम होता है। उसे अपनी मेहनत के कार्यो से प्रसिद्धि प्राप्त होती है।

ऎसा व्यक्ति दूसरों के सेवा करने में परम सुख का अनुभव करता है। धातु वस्तु निर्माण में कुशल होता है। चंचल नेत्र होते है। विपरीत लिंग का भक्त होता है। दूसरे का धन का अपव्यय करता है। माता का भक्त होता है। सुन्दर पतली कमर वाला होता है।  सुबुद्धिमान और दूसरों के दोष ढूंढने वाला होता है।

 

बुद्धादित्य योग क्या है।

जब कुण्डली में सूर्य और बुध किसी भी रशि में एक साथ हो तो बुद्धादित्य योग बनता है. बुद्धादित्य योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, वह व्यक्ति बुद्धिमान, विद्वान, और तेजस्वी होता है. उसमें साहस भाव भी भरपूर पाया जाता है. तथा अपने बौद्धिक कार्यो से वह उन्नतिशील बनता है. इसके अतिरिक्त ऎसा व्यक्ति अपने सिद्धान्तों पर स्थिर रहकर् जीवन व्यतीत करता है।

 

लक्ष्मी योग, गजकेसरी योग, धन योग, मांगलिक योग, अंगारक योग जैसे कई प्रसिद्ध और विशेष योग हैं. इन्हें कई कुंडली में देखा जा सकता हैं लेकिन कुछ ऎसे दुर्लभ योग भी होते हैं जो अद्वितीय ग्रह संयोजनों के साथ बनते हैं. आइए उनमें से कुछ को समझने का प्रयास करते हैं।

 

अधिपति योग

इस योग को धर्म-कर्म अधिपति योग नाम से भी जाना जाता है. यह बहुत ही सुंदर योग है. यह तब बनता है जब दशम या नवम भाव का स्वामी केंद्र या त्रिकोण भाव में संबंध बनाता है. इस योग को लग्न कुंडली या चंद्र लग्न कुंडली से देख सकते हैं. जब किसी व्यक्ति की कुंडली में यह योग बनता है, तो वह एक साधन संपन्न होने के साथ आधिकारिक व्यक्ति बन जाएगा, और कोई भी उसके अधिकार पर सवाल नहीं उठा पाएगा.करियर राशिफल दशम भाव को कर्म भाव के रूप में जाना जाता है, और नवम भाव को धर्म का घर कहा जाता है. जब धर्म और कर्म के स्वामी केंद्र या त्रिकोण में युति करते हैं, तो यह कुंडली में एक बहुत शक्तिशाली होता, जो व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ हासिल करने में मदद करता है. अगर यह खराब ग्रहों पर बनता है तो ऎसे में यह उस अधिकार में कठोरता को भी शामिल करता है।

 

नल योग

नल योग एक बहुत ही दुर्लभ योग है और इसलिए, कम ज्ञात है. यह तब बनता है जब सभी ग्रह द्विस्वभाव राशियों में मौजुद होते हैं. कुंडली में मिथुन राशि, कन्या राशि, धनु राशि और मीन  राशि को द्विस्वभाव राशि कहा जाता है. इस तरह कुंडली में जब ग्रह इन्हीं राशियों में होते हैं तब इस योग का असर दिखाई देता है. यह योग व्यक्ति को बहुत अधिक विद्यावान बनाता है, क्योंकि सभी राशियां बुद्धि ज्ञान के कारक ग्रहों से प्रभावित होती हैं. बुध और बृहस्पति इन राशियों का स्वामित्व पाते हैं.  बुध तर्क की कुशलता देता है और बृहस्पति उच्च ज्ञान का संकेत देता है. तो स्वाभाविक रूप से, जब सभी ग्रह इन भावों में होंगे, तो व्यक्ति बहुत ज्ञानी होगा. उनका ज्ञान ही उनकी ताकत होगा, जो उन्हें अपने जीवन में ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मदद करेगा. इस का असर ऎसे लोगों की कुंडली में देखा जा सकता है जो उच्च स्तर के कार्यों में मौजूद होते हैं जिनके ज्ञान द्वारा चीजें सही से काम कर रही होती हैं।

 

कहल योग

कहल एक आश्चर्यजनक योग है जो चौथे और नौवम भाव के स्वामी के आपसी संबंध से बनता है. यदि वे दोनों एक दूसरे के केंद्र हों तो यह योग बनता है. यह योग व्यक्ति को नेता बना देगा, और उसके पास एक वफादार लोग होते हैं ऎसे प्रशंसक होते हैं जो उसकी सफलता में विशेष स्थान रखते हैं. यह योग दर्शाता है कि राजनीति में स्थान पाने के लिए पर्याप्त शक्ति मिलती है और सरकारी अधिकारियों के साथ व्यक्ति के अच्छे संबंध होंगे. इसलिए, वह एक सरकारी अधिकारी हो सकता है. संस्कृत में कहला का अर्थ है ढोल की ध्वनि या बड़ी ध्वनि. इसलिए जब जातक बोलेगा तो उसकी आवाज में इतनी गहराई होगी कि हर कोई उसकी बात सुनेगा अगर यह खराब भाव में बनता है तो यह व्यक्ति को बहुत ही चिड़चिड़े स्वभाव का बना सकता है. फिर भी लोग उन्हें फॉलो करना पसंद करते हैं।

 

शुभ कर्तरी और पाप कर्तरी योग

शुभ कर्तरी और पाप कर्तरी योग कुंडली में बनने वाले ऐसे योग हैं जो कुंडली को विशेष बल देते हैं. संस्कृत में शुभ का अर्थ अच्छा, सकारात्मक होता है. कर्तरी का अर्थ काटने से होता है. शुभ कर्तरी योग दो स्थितियों में उत्पन्न होता है. जब कोई ग्रह दो शुभ राशियों के बीच में होता है और जन्म के घर से बारहवें और दूसरे भाव में शुभ ग्रह होते हैं, तो इसका परिणाम शुभ कर्तरी योग में मिलता है. इसके विपरित यदि कोई ग्रह पाप ग्रहों के बीच में है, तो जातक को पाप कर्तरी योग से परेशानी झेलता है. इस योग के दो असर होंगे या तो यह शुभ होगा या खराब होगा.

शुभ कर्तरी योग व्यक्ति को बुद्धिमान, धनवान और पराक्रमी बनता है. यदि कुंडली में शुभ ग्रहों पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो रही हो, तो शुभ कर्तरी योग फल नहीं दे पाता है पूर्ण रुप से. यदि  शुभ  योग है, तो उस भाव के परिणाम बहुत शुभ होंगे और जीवन के शुरुआती दौर से ही इनका फल भोग पाएंगे

 

आदि या अधि योग

जन्म कुंडली में अगर लग्न से छठे भाव, सातवें भाव, आठवें भाव में कोई तीन शुभ ग्रह हों तो अधि योग बनता है. यह साधारण योग नहीं है, इसलिए यह योग बहुत ही दुर्लभ होता है. अधि का अर्थ है अधीनस्थ, और इस योग वाले व्यक्ति के पास बहुत सारे नौकर और अधीनस्थ होंगे जो उसका आदेश लेने के लिए होंगे. वह राजा तुल्य होगा, और आजीवन उन्नति होगी. व्यक्ति के पास घर और धन होगा. यह एक राजयोग है जो उसे अपने पूरे जीवन का आनंद लेने में मदद कर सकता है. प्रत्येक राजयोग जीवन की विपत्तियों से बचने के लिए शक्ति देता है।

 

केमद्रुम योग कैसे बनता है

केमद्रुम योग कुण्डली में तब बनता है. जब सूर्य के सिवाय चन्द्रमा के साथ कोई ग्रह हों, ही उसके बारहवें या द्वितीय भाव में कोई ग्रह हो तो ऎसी स्थिति में केमन्द्रुम योग बनता है.  एक अन्य मत के अनुसार जब लग्न से केन्द्र में कोई ग्रह हो तो तब भी केमन्द्रुम योग बनता है. इस योग में उत्पन्न हुआ व्यक्ति अशिक्षित, या कम पढा लिखा, निर्धन मूर्ख होता है. लोगों से उसे घृ्णा प्राप्त होती है.  

यह भी कहा जाता है, कि केमदुम योग वाला व्यक्ति वैवाहिक जीवन और संतान पक्ष से सुखरहित होता है. वह सामान्यत: घर से दूर ही रहता है. परिजनों को सुख देने में प्रयास रत रहता है. व्यर्थ बात करने वाला होता है. उसके स्वभाव में नीचता का भाव हो सकता है.

जब कुण्डली में लग्न से केन्द्र से चन्द्रमा या कोई ग्रह हो तो केन्द्रुम योग भंग माना जाता है.  योग भंग होने पर केमन्द्रुम योग के अशुभ फल भी समाप्त होते है.  

कुण्डली में बन रही कुछ अन्य स्थितियां भी इस योग को भंग करती है, जैसे अगर कुण्डली में सुनफा, अनफा या दुरुधरा योग बन रहा हो, तो केमन्द्रुम योग भंग हो जाता है. परन्तु अगर चन्द्रमा से केन्द्र में कोई ग्रह हो तब भी यह अशुभ योग भंग हो जाता है. और व्यक्ति इस योग के प्रभावों से मुक्त हो जाता है।

 

यूप योग कैसे बनता है।

यूप योग लग्न से चतुर्थ भाव अर्थात कुण्डली के पहले चार भावों में सभी ग्रह होने पर बनता है. यह योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है. यह योग क्योकि लग्न, भाव, धन भाव, तृ्तीय भाव अर्थात यात्रा भाव चतुर्थ भाव अर्थात सुख भाव के संयोग से बनता है. इसलिए इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति को इन्हीं चारों भावों से मिलने वाले फल प्राप्त होते है.

जब लग्न भाव से चतुर्थ भाव तक सारे ग्रह स्थित हों, तो यूप योग बनता है. इस योग वाला व्यक्ति धार्मिक रुचि वाला होता है. उसे धर्म कर्म विषयों में विशेष रुचि होती है. ऎसे व्यक्ति की धार्मिक यात्रा करने और व्रत, यज्ञ करने में सहज रुचि होती है. समाज सेवा के कार्यो में महत्वपूर्ण योगदान देने के कारण वह अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध होता है. इस योग से युक्त व्यकि को जीवन में सभी सुख - सुविधाएं प्राप्त होती है।

  

शर योग - नभस योग

यूप योग के बाद अगला योग शर योग है. यूप योग लग्न से चतुर्थ भाव में ग्रहों की स्थिति से बनता है, तो शर योग चतुर्थ भाव से सप्तम भाव के मध्य ग्रह होने पर बनता है. इस योग में शामिल होने वाले भाव चतुर्थ भाव, पंचम भाव, षष्ट भाव सप्तम् भाव आते है. यह योग व्यक्ति को इन्हीं भावों से संबन्धित फल देता है।

 

शर योग कैसे बनता है।

कुण्डली में जब चतुर्थ भाव से सप्तम भाव तक सारे ग्रह स्थित होते है. तब शर योग बनता है.  यह योग व्यक्ति को क्रूर बना सकता है. इस योग वाले व्यक्ति को साहस और बल दिखाने वाले कार्य पसन्द होते है. ऎसा व्यक्ति स्वभाव से जोखिम लेने की प्रवृ्ति रखता है. उसमें सामान्य से अधिक उर्जा पाई जाती है. शर योग से युक्त व्यक्ति के लिए सेना और पुलिस से जुडे क्षेत्र कार्य करने के लिए अनुकुल रहते है।

 

शक्ति योग - नभस योग

शक्ति योग भी नभस योगों का एक भाग है. नभस का अभिप्राय आकाश है. जिस प्रकार रात्रि में तारें अपनी विभिन्न स्थिति के कारण किसी किसी आकृ्ति का निर्माण कर रहे होते है, उसी प्रकार कुण्डली में भी विभिन्न भावों में ग्रहों की स्थिति से कोई कोई आकृ्ति बन रही होती है.  इस प्रकार बनने वाली आकृ्ति ही ज्योतिष शास्त्र में नभस योग कहलाती है।

 

शक्ति योग कैसे बनता है.

जब कुण्डली में सभी ग्रह सप्तम भाव से दशम भाव के मध्य हों, तोल शक्ति योग बनता है. इस योग की यह विशेषता है, कि यह योग अपने नाम के विपरीत फल देता है. इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति साधारणतया: किसी छोटे पद पर नौकरी करता है. उसे अपनी योग्यता के अनुसार पद प्राप्त करने में समय लगता है।

अगर वह अपना व्यवसाय भी करता है, तो वह भी निम्न स्तर का होता है. इसके कारण उसके जीवन में आर्थिक परेशानियां बनी रहती है. मेहनत के अनुरुप आय प्राप्त होने के कारण जीवन में आगे जाकर उसमें आलस्य की भावना भी सकती है।

 

गजकेसरी योग के फल

गजकेसरी शब्द का संधिविच्छेद करें तो हमें गज+केसरी दो शब्द मिलते है. गज का अर्थात हाथी है, जिसमें बल और योग्यता दोनों होती है. वह शक्ति का प्रतिक है. अपनी शक्ति को भी वह समझ-बूझ से प्रयोग करता है. तथा केसरी सिंह को कहा जाता है. सिंह में फुर्ती, तेजी और चतुरता होती है. अपने लक्ष्य को पाना सिंह को बेहरीन ढंग से आता है.   जब गज और केसरी दोनों के गुणों को मिलाया जाता है, तो गजकेसरी योग बनता है.

जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है. उसमें ये सभी खूबियां होती है. यह योग व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय पाने वाला बनाता है. इस योग की शुभता से व्यक्ति सुख और गुणों से युक्त बनता है. तथा उस व्यक्ति की कुशाग्रबुद्धि होती है।

  

उभयचरी योग कैसे बनता है।

उभयचारी योग ज्योतिष में एक शुभ योग स्थान में आता है. जन्म कुण्डली में यह योग सूर्य की स्थिति के अनुरुप ही बनता है. सूर्य को ज्योतिष में एक शुद्ध आत्मिक रुप से देखा जाता है. यही व्यक्ति की निश्च्छलता और उसकी जीवन जीने की संघर्षशिलता को भी दर्शाता है. सूर्य की जन्म कुण्डली में मजबूत स्थिति के प्रभाव स्वरुप जातक के जीवन में भी बहुत प्रबलता और प्रभावशाली रंग दिखाई देता है।

उभयचारी योग की यह विशेषता है, कि इस योग राहू-केतु और चन्द्र ग्रह को शामिल नहीं किया जाता है. यहां तक की अगर उभयचारी योग बनते समय चन्द्र भी योग बनाने वाले ग्रहों के साथ युति कर रहा हो तो, यह योग भंग हो जाता है.

जब कुण्डली में चन्द्रमा को छोडकर सूर्य से द्वितीय भाव और बारहवें स्थान में अथवा सूर्य के दोनों और कोई ग्रह हो तो उभयचारी योग बनता है. यह एक सुन्दर और शुभ योग है.

उभयचरी (उभयचारी) योग का प्रभाव

उभयचारी योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति रुपवान और आकर्षण से युक्त होता है. जातक आर्थिक संपन्नता पाता है. जातक अपने प्रयासों से आर्थिक क्षेत्र में संपन्नता को प्राप्त करता है. कई बार परिवार की ओर से भी उसे जीवन जीने की प्रेरणा भी मिलती है. जातक बोलचाल में कुशल और मधुरभाषी बनता है. योग्य विद्वान, तर्क में कुशल, अच्छा वक्ता और लोकप्रिय होता है. इसके अतिरिक्त इस योग का व्यक्ति सहनशील होता है. वह दूसरों के अपराधों को क्षमा करने वाला होता है. स्थिर बुद्धि होता है. स्वयं प्रसन्न रहने का प्रयास करता है दूसरों को भी प्रसन्न रखता है।

 

यव योग प्रभाव

यव योग के अन्तर्गत जन्म कुण्डली का चौथा भाव शुभ ग्रहों से युक्त होने पर जातक को अपने घर और जीवन का सुख भोगने का मौका मिलता है. माता की ओर से स्नेह और प्रेम भी प्राप्त होता है. व्यक्ति को वाहन का सुख और धन और आभूषण की प्राप्ति भी होती है. जातक की माता एक सम्मानित महिला होंगी. प्रारंभिक शिक्षा का स्वरुप भी बेहतर स्थिति का रहा होगा.

जातक को कार्यक्षेत्र में अच्छे मौके मिल सकते हैं. वह अपनी योग्यता और भाग्य के सहयोग से अपने लिए एक अच्छे काम की तलाश को पूरा कर सकता है. अपने अधिकारियों की ओर से उसे सहयोग मिल सकता है और उसकी बनाई हुई योजनाएं बहुत ही प्रभावशाली होती हैं. काम के क्षेत्र में नाम भी कमाता है.

जातक में बदलाव की चाह अधिक होने के कारण जीवन में स्थिरता मिल पाना मुश्किल होगा. जीवन में रिश्तों में भी एक प्रकार की स्थिरता का अभाव होगा. इस कारण दांपत्य जीवन में कुछ तनाव अधिक रह सकता है. फ्लर्ट करने वाला हो सकता है. जीवन साथी के साथ मन मुटाव भी परेशान कर सकता है.

इस योग के प्रभाव से जातक में क्रोध अधिक हो सकता है और वह अपनी जिद को करने वाला होगा. कई बार दुसाहसिक काम करने के कारण स्वयं के लिए नुकसान भी कर सकता है. व्यर्थ के वाद विवाद में रह सकता है.

वज्र योग प्रभाव

इस योग के प्रभाव से जातक योग्य और प्रभावशाली व्यक्तित्व का होता है. जातक में प्रतिभा होती है और वह अपने प्रयासों द्वारा जीवन को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष भी करता है. परिवार के साथ चलने वाला और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने वाला भी होता है. शांत और सौम्य होता है. सभी के साथ प्रेम पूर्वक और सदभाव युक्त व्यवहार करने वाला होता है.

व्यक्ति अपने साथी के प्रति निष्ठा और कर्तव्य बोध के प्रति जागरुक होता है. वह अपने दांपत्य जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश भी करता है. जीवन साथी का सहयोग भी पाता है. रिश्तों में प्रेम भरपूर होता है और परिवार की ओर से भी सहयोग मिलता है.

जातक का सुख प्रभावित हो सकता है. मानसिक रुप से जातक को बेचैनी अधिक रह सकती है. माता के सुख में कमी मिल सकती है अथवा माता का स्वास्थ्य भी प्रभावित रह सकता है. कई कारणों से अपने घर से दूर भी रहना पड़ सकता है. घर पर शांति नहीं मिल पाती है, तनाव के कारण या काम काज के कारण अस्थिरता बनी रहती है.

कार्य क्षेत्र में मेहनत अधिक करनी पड़ती है. अधिकारियों की ओर से अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है. कार्यक्षेत्र में बदलाव भी अधिक रहते हैं. मेहनत अधिक रहती है पर धनार्जन अधिक नहीं हो पाता है।

 

शकट योग प्रभाव

सामान्य इस योग को अशुभ योगों में शामिल किया जाता है. इस योग से युक्त व्यक्ति निर्धन होता है. उसका जीवन कष्टमय होता है. आजीविका प्राप्त करने के लिए उसे कठोर परिश्रम करना पडता है. कर्ज का बोझ भी व्यक्ति पर रह सकता है. मानसिक रुप से तनाव अधिक झेलना पड़ता है. जातक की कार्यकुशलता का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता है।

जन्म कुण्डली में ग्रहों की स्थिति के कारण बहुत से योगों का निर्माण होता है. कुछ शुभ और कुछ अशुभ योग बनते ही हैं. पर अगर शुभ ग्रहों का बल मजबूत हो तो कठीन परिस्थितियों में भी जातक विजय प्राप्त कर लेता है।

 

सुनफा योग - चन्द्रादि योग

सुनफा योग चन्द्र से बनने वाला योग है. चन्द्र से बनने वाले शुभ- अशुभ योगों में सुनफा योग को शामिल किया जाता है. चन्द से बनने वाले योग इसलिए भी विशेष माने गये है, क्योकि चन्द्र मन का कारक ग्रह है. और अपनी गति के कारण अन्य ग्रहों की तुलना में व्यक्ति को सबसे अधिक प्रभावित करता है।

  

सुनफा योग कैसे बनता है।

सूर्य के सिवाय को अन्य ग्रह चन्द्रमा से दूसरे स्थान में हो तो उसे सुनफा योग कहते है. इस योग वाला व्यक्ति अपनी शैक्षिक योग्यताओं के लिए प्रसिद्ध होगा. वह धनवान होगा, और जीवन के सभी सुख -सुविधाएं प्राप्त होगी.

 

मंगल सुनफा योग फल

अगर कुण्डली में चन्द्र से दूसरे स्थान में मंगल स्थित हो, तो मंगल सुनफा योग बनता है. यह योग व्यक्ति को पराक्रमी, धनवान, कडक मिजाज, निष्ठुर वचन बोलने वाला, भूमि का स्वामी, हिंसा में रुचि रखने वाला बनाता है।

 

बुध सुनफा योग फल

बुध से सुनफा योग हो तो व्यक्ति वेद शास्त्र और संगीत में कुशल होता है. वह धर्मात्मा होता है. उसे काव्य करने में विशेष रुचि होती है. अपने गुणों के कारण वह सबका प्रिय होता है. इस योग का व्यक्ति शरीर से सुन्दर होता है।

 

गुरु सुनफा योग फल

गुरु से सुनफा योग बन रहा हो तो व्यक्ति अनेक विद्याओं का आचार्य होता है. अपनी योग्यता के कारण वह हर ओर विख्यात होता है. धर्म का पालन करने वाला होता है. परिवार सहित धन से सम्पन्न होता है।

 

शुक्र सुनफा योग फल

सुनफा योग कुण्डली में शुक्र से बन रहा हो तो व्यक्ति खेती करने वाला, भूमि से युक्त, गृ्ह, वाहन को रखने वाला होता है.  वह पराक्रमी राजमान्य भी होता है. इसके अतिरिक्त उसमें चतुरता का गुण भी पाया जाता है।

 

अनाफा योग

 कुण्डली में ग्रहों की परस्पर स्थिति से कुछ विशेष योगों का निर्माण होता है. इस प्रकार बनने वाले योग व्यक्ति के धन, संपति उन्नति में बढोतरी करने वाले होते है. ये योग सूर्य, चन्द्र और लग्न से बनने वाले योग है. चन्द्र से बनने वाले योगों में से एक योग अनफा योग है।

अनफा योग कैसे बनता है।

अगर कुण्डली में सूर्य को छोडकर चन्दमा से बारहवें स्थान अथवा पिछले स्थान में कोई ग्रह हो ,तो अनाफा योग बनता है. इस योग के निर्माण में विशेष बात ध्यान देने योग्य यह है कि इस योग में बारहवें स्थान पर सूर्य की स्थिति नहीं होनी चाहिए. सूर्य के होने पर यह योग भंग हो जाता है।

  

अनाफा योग फल

जिस व्यक्ति की कुण्डली में अनाफा योग होता है, वह व्यक्ति सुन्दर, बलवान, गुणवान, मृ्दुभाषी प्रसिद्ध होता है. इसके साथ ही वह शरीर से ह्र्ष्ट पुष्ट होता है. उसमें राजनेता बनने की योग्यता होती है।

 

मंगल अनाफा योग फल

जब चन्द्र से बारहवें भाव में मंगल स्थित हो, तो मंगल अनाफा योग बनता है. यह योग कुण्डली में होने पर व्यक्ति अपने ग्रुप का नेता होता है. वह तेजस्वी, स्वयं को सीमित रखने वाला होता है. अपने बल पर वह मान करता है. और झगडों और लडाई के लिए सदैव तैयार रहता है. उसमें क्रोध भावना अधिक पाई जाती है।

 

बुध अनाफा योग फल

बुध से अनाफा योग बने तो व्यकि गंधर्व के समान सुन्दर होता है. वह गायक, चतुर, लेखक , कवि, वक्ता, राजसुख, और प्रसिद्धि पाने वाला होता है।

 

गुरु अनाफा योग फल

अनाफा योग गुरु से बनने पर व्यक्ति गंभीर, मेधावी, बुद्धिमन, राजकीय सम्मान प्राप्त और प्रसिद्ध कवि होता है।

  

शुक्र अनाफा योग फल

शुक्र से अनाफा योग बने तो व्यक्ति विपरीत लिंग में लोकप्रिय होता है. उसे राजा का स्नेह मिलता है. इसके साथ ही वह उत्तम वाहन युक्त होता है. तथा उसके प्रसिद्ध कवि होने की भी संभावनाएं बनती है।

 

शनि अनाफा योग फल

शनि से अनफा योग हो तो व्यक्ति लम्बी बाहों वाला होता है. वह भाग्यवान होता है. गुणी, और संतान युक्त होता है।

 

दुरधरा योग- चन्द्रादि योग

जब कुण्डली में सूर्य के सिवाय, जब चन्द्र के दोनों और अथवा द्वितीय द्वादश भाव में ग्रह हों, तो इससे दुरुधरा योग बनता है. इस योग वाले व्यक्ति को जन्म से ही सब सुख-सुविधाएं, प्राप्त होती है. उसके पास धन-संपति वाहन और नौकर चाकर होते है. वह स्वभाव से उदार चित्त, स्पष्ट बात कहने वाला, दान-पुण्य़ करने वाला और धर्मात्मा होता है।

 

 

मंगल-बुध दुरुधरा योग

जब कुण्डली में मंगल-बुध से दुरुधरा योग हो तो , असत्यवादी, पूर्ण धनी, चतुर, हठी, गुणवान, लोभी अपने कुल का नाम रोशन करने वाला.

 

मंगल-गुरु दुरुधरा योग

मंगल-गुरु से दुरुधरा योग हो तो व्यक्ति अपने कार्यो के कारण विख्यात रहता है.  उसमें कपट भावना पाई जा सकती है. धन के प्रति महत्वकांक्षी होना उसके शत्रुओं में बढोतरी करता है. इसके साथ ही वह क्रोधी होता है. हठी भी होता है. धन संचय में उसे विशेष रुचि होती है।

 

मंगल-शुक्र दुरुधरा योग

किसी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल-शुक्र से दुरुधरा योग बन रहा हो तो व्यक्ति का जीवन साथी सुन्दर होता है. उसे विवादों में रहना पसन्द होता है.  साथ ही वह और लडाई आदि विषयों के प्रति उत्साही रहता है।

 

मंगल -शनि दुरुधरा योग

ऎसा व्यक्ति कामी, धन इकठा करने वाला, व्यसनी, क्रोधी अनेक शत्रुओं वाला होता है।

 

बुध-गुरु दुरुधरा योग

बुध-गुरु दुरुधरा योग युक्त व्यक्ति धार्मिक, शास्त्रज्ञ, वक्ता, सभी वस्तुओं से सुखी, त्यागी और विख्यात होता है।

 

बुध-शनि दुरुधरा योग

इस योग का व्यक्ति प्रियवक्ता, सुन्दर, तेजस्वी, पुण्यवान, सुखी, तथा राजनीति में काम करने के लिए उत्साहित होता है।

 

बुध-शुक्र दुरुधरा योग

यह योग हो तो व्यक्ति देश-विदेश घूमने वाला, निर्लोभी, विद्वान, दूसरों से पूज्य, स्वजन विरोधी होता है।

 

गुरु-शुक्र दुरुधरा योग

गुरु और शुक्र से दुरुधरा योग हो तो वह व्यक्ति धैर्यवान, मेधावी, स्थिर स्वभाव, नीति जानने वाला होता है. उसकी ख्याती अपने प्रदेश में होती है. इसके अतिरिक्त उसके सरकारी क्षेत्र में कार्य करने के योग बनते है।

 

गुरु-शनि दुरुधरा योग

व्यक्ति सुखी, नीतिज्ञ, विज्ञानी, विद्वान, कार्यो को करने में समर्थ,  पुत्रवान,  धनवान, और रुपवान होता है।

 

शुक्र-शनि दुरुधरा योग

ऎसे व्यक्ति का जीवन साथी व्यसनी होता है. कुलीन, सब कार्यो में निपुण होता है. विपरीत लिंग का प्रिय, धनवान, सरकारी क्षेत्रों से सम्मान प्राप्त करने वाला होता है।

 

शंख योग कैसे बनता है।

शंख योग के प्रभाव से व्यक्ति को समाज में समान मिलता है. उसकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है. वह अपनी मेहनत से आगे बढ़ता और अपने लक्षय को पाने में सफल भी होता है. उच्च शिक्षा को पा सकता है. जो शिक्षा प्राप्त करता है उसमें अपने कैरियर को भी आगे ले जा सकने में सामर्थ रखता है।

 

धनुष योग

धनुष योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, उस व्यक्ति कि निगाहें सदैव अपने लक्ष्यों पर होती हैं. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सफल होने की संभावनाएं बढ जाती है. अपने कार्यों के प्रति वह जिम्मेदारी का निर्वाह करने का इच्छुक भी रहता है।

काम के प्रति गंभीर और मेहनत करने वाला होता है. जातक का संघर्ष ही उसे सफलता दिलाने में सहायक भी होता है. स्वभाव से कुछ कठोर हो सकता है लेकिन उसकी ये कठोरता ही उसे समाज में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाने में भी सहायक होती है, लोग उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते हैं. वह अपने मनोकूल काम करता है. कुछ जिद्दी हो सकता है पर अपनों के प्रति प्रेम भाव रखता है. जिनसे प्रेम करता है उनके लिए अपना सब कुछ त्याग भी सकता है।

 

धनुष योग कैसे बनता है।

धनुष योग को चाप योग भी कहते है. जब दशम भाव से लेकर चतुर्थ भाव तक लगातार सारे ग्रह स्थित हों, तो धनुष योग बनता है. ऎसा व्यक्ति चुस्त, चालाक, झूठ बोलने में निपुण, युक्ति से काम निकालने वाला अथवा किसी गुप्तचर विभाव में कार्य करने वाला होता है. उस व्यक्ति की रुचि तान्त्रिक विद्याओं में भी होती है।

 

पाश योग

पाश योग एक प्रकार के बंधन को दिखाता है. ये बंधन जातक की जिंदगी में किसी भी रुप में सामने सकता है. जातक को अपने लोगों के कारण बंधन हो सकता है या फिर घर की परिस्थितियों के कारण या उसके जीवन में कोई कोई ऎसी घटना घटित होती है जो इस स्थिति की ओर इशारा करती दिखाई देती है. पाश योग का प्रभाव जातक के जीवन में किसी किसी कारण पड़ सकता है।

कभी कभी और किसी किसी कारण व्यक्ति को ऎसी स्थिति का अनुभव होता है जिसके कारण उसे लगता है की वह किसी प्रकार के पाश में जकड़ा हुआ है. किसी चीज की गिरफ्त में है और उससे भागने या बच पाने की स्थिति उसके सामने नहीं है. यह खराब योग की श्रेणी में आता है. ऎसे में इस योग के कारण व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रुप से तनाव को झेलता है।

 

पाश योग कैसे बनता है।

जब किन्हीं पांच राशियों में सभी ग्रह हो तो पाश योग बनता है. इस योग वाला व्यक्ति चतुर, चालाक और बडे कुटुम्ब वाला होता है. ऎसे व्यक्ति को पुलिस या किसी अन्य सरकारी कार्यालय में काम प्राप्त होता है, और व्यक्ति सदैव धन कमाने की धुन में लगा रहता है।

 

दाम योग

दाम योग के प्रभाव से जातक की शिक्षा उत्तम होती है. उसे अपने मित्रों का सहयोग मिलता है. जातक को घूमने और जीवन को आनंद से बिताने के अनेकों मौके भी मिलते हैं. अपने काम-काज में वह बेहतर स्थिति तक पहुंचता है. व्यक्ति नेतृत्व करने वाला, परिवार में मुखिया की भूमिका निभाने वाला. अपने कार्यों से समाजिक रुप से विख्यात होता है. अपने माता-पिता और परिवार का सहयोग उसे मिलता है.

पर अगर इस योग के निर्माण में कुण्डली के दुस्थानों का प्रभाव अधिक हो, तो ऎसे में शुभ योग के सभी परिणाम पूर्ण रुप से नहीं मिल पाते हैं. किसी किसी कारण से इस योग के मिलने पर अटकाव बने रहते हैं, क्योंकि ऎसा होने पर जीवन में संघर्ष की स्थिति अधिक बढ़ जाती है।

दाम योग कैसे बनता है।

जब कुण्डली में सभी ग्रह किन्हीं 6 राशियों या 6 भावों में हों तो दाम योग बनता है. दाम योग से युक्त व्यक्ति धर्मात्मा, परोपकारी, लोकप्रिय, धनवान, पुत्रवान अपने क्षेत्र में सम्मान प्राप्त करता है. इस योग को शुभ योग की श्रेणी में आता है. यदि कुण्डली में सभी ग्रह शुभ भावों में स्थित हों तो उसके प्रभाव से जातक को इस योग के उत्तम फायदे मिलते हैं. जातक धन धान्य से भरपूर जीवन जीता है. वह वाहन वस्त्र इत्यादि चीजों का लाभ उठाता है।

 

वीणा योग

विणा योग भी शुभ योग की ही श्रेणी में स्थान पाता है. इस योग की शुभता जातक में संस्कारों और सौम्यता को प्रदान करती है. जिस प्रकार नारद जी की विणा सदैव प्रभु नारायण के नाम का जाप करती है, उसी प्रकार जातक भी विणा की भांति सुंदर मधुर व्यक्तित्व का और शुभ विचारों वाला होता है.

वीणा योग कैसे बनता है

जब सभी ग्रह किन्हीं 7 राशियों में हों, तो ऎसा व्यक्ति धनवान और राजनीति में कुशल होता है. उसकी कला और संगीत में रुचि होती है. केन्द्र और त्रिकोण स्थानों पर बन रहा यह योग व्यक्ति को समाज में सम्मान और लोगों के मध्य प्रसिद्ध दिलाने वाला होता है. जातक की व्यवहार कुशलता सभी को प्रभावित करती है।

 

वोशी योग कैसे बनता है।

जब कुण्डली में चन्द्र के सूर्य से बारहवें स्थान या पिछले स्थान में कोई ग्रह हो तो इससे वोशी योग बनता है. इस भाव में किसी अन्य ग्रह के साथ चन्द्र भी स्थित हो तो योग भंग हो जाता है. वोशी योग शुभ योग है. इसलिए इस योग से प्राप्त होने वाले फल भी शुभ होते है।

 

वोशी योग फल

जिस व्यक्ति की कुण्डली में वोशी योग होता है. वह व्यक्ति अति धनवान होता है. साथ ही वह लोकप्रियता प्राप्त करता है. वोशी योग युक्त व्यक्ति स्थिर वाक्य वाला होता है. बडा परिश्रमी होता है. गणित विषय का जानकार होता है. जातक समाज में लोगों के मध्य लोकप्रियता पाता है. अपनों के प्रति उसके मन में स्नेह और लगाव होता है. जातक को सरकार और राज्य की ओर से भी जातक को शुभ फल मिलते हैं।

 

गुरु वोशी योग फल

गुरु से बनने वाला वेशी योग, गुरु वोशी योग कहलाता है. इस योग की स्थिति बहुत ही शुभ प्रभावदायक होती है. यह योग जातक को धर्म परायण एवं संस्कारों के प्रति निष्ठावान बनाता है. व्यक्ति अपने लोगों के प्रति आदर और प्रेम का भाव भी रखता है. जातक एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति होता है. अपने काम को करने की पूरी क्षमता भी वह रखता है. अपने काम को निष्ठा और सच्चाई के साथ करने की कोशिश भी करता है. जातक को अनेक वस्तु संचय करने का शौक होता है।

 

बुध वोशी योग फल

बुध की स्थिति से यदि वोशी योग बन रहा हो, तो वह बौद्धिकता और सूझ-बूझ के साथ काम करने वाला होता है. कई बार जातक को अपनी बुद्धि का घमंड भी होता है. वह अपने अहंकार के कारण बहुत सी गलतियां भी करता है. जातक में चालाकी होती है लेकिन वह दूसरों का अहित करने की इच्छा नही रखता. अपने कार्यों से समाज और इस दुनिया के प्रति समर्पण का भाव भी रखता है. व्यक्ति दूसरों की आलोचना प्राप्त करने वाला होता है. यह योग व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में कमी कर सकता है. स्वभाव से कोमल, विनयी होता है।

 

मंगल वोशी योग फल

मंगल से वोशी योग होने पर व्यक्ति परोपकारी होता है. जातक में मेहनत करने की योग्यता होती है. वह ऎसे काम करने में आगे रहता है जिसमें बाहुबल अधिक होता है. जातक में साहस होता है. वह निडरता के साथ काम करता है. जल्दबाजी में काम करने के कारण वह कई बार स्थिति को सही से समझ नहीं पाने के कारण गलतियां भी कर बैठता है. चोट इत्यादि लगने का डर अधिक बना रहता है।

 

शुक्र वोशी योग फल

शुक्र से बनने वाला वेशी योग जातक को सांसारिक चीजों के प्रति लगाव रखने वाला बना सकता है. जातक को कला के क्षेत्र में काम करने के मौके मिलते हैं. उसकी प्रतिभा किसी किसी वस्तु को एक अलग ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिशों में लगती है. जातक मिलनसार और सौम्य आचरण करने वाला होता है. जातक को आर्थिक क्षेत्र में लाभ मिलता है, मान सम्मान भी प्राप्त होता है. व्यक्ति की महत्वकांक्षाएं बहुत होती है. पर वह उन्हें शुक्र से वोशी योग का व्यक्ति डरपोक और कामी हो सकता है।

 

शनि वोशी योग फल

शनि से बनने वाला वोशी योग व्यक्ति को कुछ कठोर और व्यवहारिक बना सकता है. व्यक्ति अपने में अधिक रहन अपसंद कर सकता है. ऎसा योग विपरीत लिंग में अत्यधिक रुचि लेने वाला होता है. आयु से बडा दिखने वाला होता है. तथा उसे लोगों की बेरुखी और कई बार अपमान का सामना भी करना पडता है. व्यक्ति को अपने वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से परेशानी अधिक झेलनी पड़ सकती है. धार्मिक क्षेत्र में अग्रीण होता है और कर्म करने के प्रति भी प्रयासहील होता है. राज्य की ओर से अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है।

 

युग योग कैसे बनता है।

जब कुण्डली में सभी ग्रह किन्हीं दो राशियों में हों, तो यह योग बनता है.  इस योग से युक्त व्यक्ति को माता-पिता के साथ रहने का सुख कम प्राप्त होता है. ऎसा व्यक्ति अपने गलत कार्यो के कारण समाज में निन्दा और तिरस्कार प्राप्त करता है. इस योग से युक्त व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सामान्यत: कमजोर रहती है. साथ ही यह योग उसके स्वास्थय को भी प्रभावित करता है।

यह योग जिन भी दो भावों में बनता है, उन दो भावों से जुडे कारकतत्वों के अनुसार व्यक्ति को फल मिलते है. उदाहरण के लिए अगर यह योग चतुर्थ और दशम भाव में बन रहा है, तो व्यक्ति के जीवन की घटनाओं में मातृ सुख, भौतिक सुख-सुविधाएं, भूमि भवन के विषय और कैरियर से जुडी घटनाएं प्रमुख होती है।

युग योग क्योकि एक अशुभ योग है, इसलिए इस योग के अशुभ फलों में कमी करने के लिए व्यक्ति को शुभ कार्यों में अधिक से अधिक योगदान करने का प्रयास करना चाहिए. तथा धर्म क्रियाओं में शामिल होना चाहिए.

 

केदार योग-नभस योग

 

जब कुण्डली में सातों ग्रह किन्हीं चार राशियों में हों तो केदार योग बनता है. इस योग में जिस व्यक्ति का जन्म हुआ हो, वह व्यक्ति भूमि भवन से युक्त होता है. अपनी मेहनत से वह अपनी अचल संपति में वृ्द्धि करने में सफल रहता है।

 

केदार योग फल

केदार योग व्यक्ति की भौतिक सुख सुविधाओं में वृ्द्धि करने के अलावा, मातृ्सुख भी बढाता है.  ऎसा व्यक्ति भूमि विषयों से आय प्राप्त करता है. तथा वह सत्यवक्ता भी होता है. कृ्षि के क्षेत्र में नये कार्य करने वाला होता है. इसके अतिरिक्त यह योग जिन चार राशियों में बन रहा हो, और वे चार राशियां जिन भावों में स्थित है, उन सभी भावों के कारकतत्वों की शुभता में वृ्द्धि होती है।

 

एकावली योग

कुण्डली में शुभ योगों की अधिकता व्यक्ति के जीवन में शुभता बनाये रखने में सहयोग करती है. तथा बनने वाला योग अगर अशुभ हो तो व्यक्ति को उसके फल अशुभ रुप में प्राप्त होते है।

 

एकावली योग कैसे बनता है।

जब लग्न से या किसी भी भाव से क्रम से सब ग्रह पडें हो तो एकावली योग बनता है. इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सुखी और भौतिक सुख सुविधाओं से युक्त होता है. यह योग व्यक्ति के जीवन की बाधाओं में कमी करता है।

एकावली योग वाले व्यक्ति के पास अपुल धन -संपति के योग बनते है.  यह योग व्यक्ति को चरित्रवान और साहसी बनाता है. और समाज में व्यक्ति को सम्मानजनक स्थान दिलाने में सायोग करता है।

 

अधि योग कैसे बनता है।

जब बुध, गुरु, शुक्र लग्न या चन्द्रमा से छठे, सातवें और आठवें भाव में एक साथ या अलग - अलग हो, तो अधि योग बनता है.  अधि योग व्यक्ति को धनवान बनाता है, यह शुभ योग है, इस योग के शुभ प्रभाव से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुदृ्ढ होती है. व्यक्ति दीर्घायु ,समृ्द्धिशाली बनता है. उसकी आत्मा श्रेष्ठ होती है, वह साहसिक और ऊर्जावान होता है।

परन्तु योग बना रहे ग्रहों का संबन्ध अशुभ भावों के स्वामियों के साथ बन रहा हो, तो व्यक्ति में नेतृ्त्वता, स्वार्थीपन से दूषित होने के योग बनते है।

  

गुरुमंगल योग कैसे बनता है।

गुरु मंगल योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है. यह योग तब बनता है, जब मंगल और गुरु की युति हो रही होती है. यह योग होने पर व्यक्ति शहर का मुखिया होता है. यह योग धन योगों में आता है. इस योग वाला व्यक्ति स्वतन्त्र

प्रकृ्ति का होता है. उसका शरीर गठा हुआ होता है. व्यक्ति में अत्यधिक व्यय करने की प्रवृ्ति होती है. उसे विभिन्न स्त्रोतों से आय प्राप्त होती है।

 

गुरुचण्डाल योग कैसे बनता है।

गुरुचण्डाल योग में राहू की युति गुरु ग्रह के साथ हो रही होती है. इस व्यक्ति की धार्मिक आस्थ में कमी हो सकती है. इस योग से युक्त व्यक्ति सच्चाई और न्याय को ऊपर उठाने वाला, लेकिन व्यक्तिगत जीवन में इसके विपरीत व्यवहार करता है।

 

लक्ष्मी योग कैसे बनता है।

लक्ष्मी योग एक शुभ योग है. यह योग धन वृ्द्धि का योग है. जब कुण्डली में नवमेश स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर केन्द्र या त्रिकोण भाव में हों, तो लक्ष्मी योग बनता है. लक्ष्मी योग होने पर व्यक्ति धनवान होता है. इस योग के व्यक्ति में शुभ कार्य करने की प्रवृ्ति होती है, उसके स्वभाव का यह गुण उसे मान-सम्मान दिलाने के साथ उसे एक महान इन्सान बनाता है. लक्ष्मी योग केवल धन देता है, बल्की इस योग कि शुभता से व्यक्ति के ज्ञान में भी बढोतरी होती है. व्यक्ति अपने वर्ग का सम्मानीय व्यक्ति बनता है. यह योग व्यक्ति को भौतिक सुख-सुविधाओं से युक्त करता है. राजनैतिक क्षेत्र में सफल होने के पक्ष से यह योग शुभ माना जाता है।

 

गौरी योग कैसे बनता है।

गौरी योग उस समय बनता है, जब कुण्डली में चन्द्रमा गुरु से द्र्ष्ट हों. यह योग व्यक्ति को स्वस्थय शरीर देने के साथ साथ, व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को सुदृ्ढ करता है. इस योग वाला व्यक्ति सम्मानीय परिवार से संबन्ध रखने वाला होता है. उसके बच्चे अच्छे चरित्रवान होते है. व्यक्ति तथा संतान दोनों को सराहना प्राप्त होती है।

  

श्रीकण्ठ योग कैसे बनता है।

श्रीकण्ठ योग में नवमेश शुक्र या बुध केन्द्र या त्रिकोण में अपनी मित्र या उच्च राशियों में हों तो श्रीकण्ठ योग बनता है. श्रीकण्ठ योग व्यक्ति को धनवान बनाता है. इस योग में बुध शुक्र शामिल है. इसके कारण यह योग व्यक्ति को बौद्धिक योग्यता देता है. शुक्र के प्रभाव से व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं वाला होता है. नवमेश के कारन इस योग से व्यक्ति धार्मिक प्रवृ्ति का बनता है।

 

चक्र योग से मिलने वाले फल

चक्र योग व्यक्ति को राजनीति के क्षेत्र में कार्य करने की योग्यता देता है. ऎसा व्यक्ति राजकाज के कार्यो में कुशल होता है. तथा वह जिस भी क्षेत्र में कार्य करता है, उसके पास अतिरिक्त अधिकार सुरक्षित होते है. यह देखा गया है, कि चक्र योग वाले व्यक्ति का प्रभुत्व बीस वर्ष की आयु के बाद बढने लगता है।

  

समुद्र योग फल

समुद्र योग जिन व्यक्तियों की कुण्डली में होता है, उन व्यक्तियों को जीवन में धन-धान्य की प्राप्ति होती है. वे राजनीति के क्षेत्र में सफल होते है. तथा अपने द्वारा किए गये शुभ कार्यो के कारण उन्हें लोकप्रियता भी प्राप्त होती है. समुद्र योग कुण्डली में होने पर व्यक्ति के संतान सुख में वृ्द्धि होती है. व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं से युक्त होता है।

   

गोल योग फल

गोल योग योग अशुभ फलकारी है, इस योग की अशुभता में कमी करने के लिए व्यक्ति का सदाचार का जीवन व्यतीत करना भी अनुकुल रहता है. साथ ही व्यक्ति का पुरुषार्थी बनना उसे, जीवन में आगे बढने में सहयोग करता है. गोल योग से युक्त व्यक्ति के स्वभाव में आलस्य का भाव सामान्य से अधिक हो सकता है, इस कारण से भी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रभावित हो सकती है. तथा व्यक्ति का काम में लगे रहना इस योग की अशुभता में कमी करता है.  

कुछ अन्य ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार यह योग व्यक्ति को साहस और जोखिम के क्षेत्रों से जोडता है, तथा इन क्षेत्रों में कार्य करने से व्यक्ति को इस योग के शुभ फल प्राप्त होते है.  यह भी देखने में आया है, कि इस योग के व्यक्ति के स्वभाव में चतुरता का भाव भी पाया जाता है.  

संक्षेप में यह कहा जा सकता है, कि गोल योग में व्यक्ति अगर अपने आलस्य भाव का त्याग करता है, तो उसे पुलिस या सेना के क्षेत्रों से आय प्राप्त होती है. तथा वह व्यक्ति अपने कर्म से इस योग की अशुभता को भंग करने में सफल रहता है।

  

बुधादित्य योग क्या है।

जब कुण्डली में सूर्य और बुध किसी भी रशि में एक साथ हो तो बुद्धादित्य योग बनता है. बुद्धादित्य योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, वह व्यक्ति बुद्धिमान, विद्वान, और तेजस्वी होता है. उसमें साहस भाव भी भरपूर पाया जाता है. तथा अपने बौद्धिक कार्यो से वह उन्नतिशील बनता है. इसके अतिरिक्त ऎसा व्यक्ति अपने सिद्धान्तों पर स्थिर रहकर जीवन व्यतीत करता है।

बुधादित्य योग फल

जन्म कुंडली के प्र्त्येक भाव का अपना फल होता है ऎसे में जिस भाव में ये योग बनता है उस भाव के अनुरुप जातक को फल भी मिलते हैं. जिसे एक सामान्य नजरिये से इस प्रकार समजा जा सकता है.

जन्म कुण्डली के लग्न भाव पर सूर्य और बुध का योग होने पर बुधादित्य योग बनता है. इस भाव में यह योग जातक को परिवार में मुख्य सदस्य की भूमिका देता है. व्यक्ति अपने घर में घर के मुखिया का रोल निभाता है. समाज में सम्मान और सफलता पाता है. नेतृत्व करने की योग्यत अभी जातक में जन्मजात होती है.

जन्म कुण्डली के दूसरे भाव में बुधादित्य योग बनने पर व्यक्ति को आर्थिक क्षेत्र में सफलता मिलती है. परिवार का सुख मिलता है और पैतृक संपति का सुख भी पाता है. व्यक्ति बोलने में कुशल वक्ता बनता है ओर लोगों के मध्य एक बेहतरीन विचारक भी बनता है. शिक्षा के क्षेत्र में भी जातक को सफलता प्राप्त होती है.

जन्म कुण्डली के तीसरे भाव में यह योग व्यक्ति को मेहनती बनाता है और जातक अपनी बौद्धिकता से सफलता पाता है. व्यक्ति में रचनाशीलता भी अच्छी होती है और जातक के भीतर छुपी हुई प्रतिभा भी सभी के सामने आती है. इस प्रतिभा के बल पर वह प्रतिष्ठा भी पाता है. भागदोड़ करने वाला और परिश्रम में आगे रहने वाला होगा. व्यवसायिक सफलता तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान कर सकता है.

जन्म कुण्डली के चौथे भाव में इस योग का निर्माण होने पर जातक को सुम्दर घर और वाहन की प्राप्ति होती है. लोगों का सहयोग मिलता है. सरकार की ओर से लाभ भी प्राप्त होता है. यह स्थिति जातक को बहुत अच्छी कुशलता देती है जिसके चलते जातक रचनात्मक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकता है. जातक को विदेश भ्रमण आदि का भी अवसर प्राप्त होता है.

पंचम भाव में बुधादित्य योग के बनने पर व्यक्ति मंत्र सिद्धि पाता है, शिक्षा के क्षेत्र में सफल होता है. अपने ज्ञान के द्वारा वह कई चीजों की खोज भी करता है. एक बेहतर अन्वेशी बन सकता है. इस योग के प्रभाव से जातक में कलात्मक ओर रचनाशील होता है. उसके विचारों में गहराई देखने को मिलती है. आध्यात्मिक स्तर पर जातक आगे बढ़ता है.

जन्म कुण्डली के छठे भाव में बुधादित्य योग का फल जातक को पराक्रमी और साहसी बनाता है. इस स्थान पर व्यक्ति अपने विरोधियों को परास्त कर पाने के लिए बौद्धिक रुप से योजनाओं को बनाने में निपुण होता है. व्यक्ति में वाक चातुर्य होता है. अपने कार्यक्षेत्र में वह शारिरीक परिश्रम से अधिक बौद्धिक परिश्रम अधिक करता है.

जन्म कुण्डली के सप्तम भाव में इस योग के बनने पर व्यक्ति जीवन साथी के साथ अपने विचारों का टकराव झेल सकता है. व्यक्ति अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम करता है और समाज में प्रतिष्ठा भी पाता है.

जन्म कुण्डली में आठवें भाव में बुधादित्य योग के बनने पर व्यक्ति धार्मिक क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है. जातक को रहस्यों को जानने की जिज्ञासा भी बहुत होती है.पैतृक संपत्ति को भी पा सकता है. जातक कुछ गंभीर और कम बोलने वाला भी हो सकता है. वाद विवाद में निपुण भी होता है.

जन्म कुण्डली के नवम भाव में बुधादित्य योग बनने पर व्यक्ति भाग्य द्वारा लाभ पाता है. जातक को अपने पिता एवं वरिष्ठ लोगों का साथ और सहयोग मिलता है. व्यक्ति धार्मिक क्षेत्र में आगे बढ़ने वाला होता है. भाई बंधुओं की ओर से प्रेम की प्राप्ति होती है. जातक को सुखमय जीवन, ऐश्वर्य, वाहन सुख इत्यादि का सुख भी मिलता है.

जन्म कुण्डली के दसवें भाव में बुधादित्य योग के बनने पर व्यक्ति कार्यक्षेत्र में राज्य की ओर से लाभ प्राप्त कर सकता है. व्यापार में अच्छे लाभ मिलते हैं. काम को लेकर यात्राएं भी अधिक होती हैं. जातक को जीवन में अनेक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त हो सकती है. अपने काम में वह समान और उच्च पद भी पा सकता है.

जन्म कुण्डली के एकादश भाव में बुधादित्य योग बनने पर आर्थिक क्षेत्र में उन्नती मिलती है. जातक अपने भाई बंधुओं का साथ पाता है. लम्बी यात्राएं भी करता है. पुरस्कार एवं पद प्राप्ति करता है.

बुधादित्य योग जन्म कुण्डली के बारहवें भाव में बनने पर जातक कमाई खूब करता है और खर्च भी दिलखोल कर करता है. बाहरी लोगों से लाभ पाता है।

 

नल योग फल

नल योग जिन व्यक्तियों की कुण्डली में होता है, उन व्यक्तियों में दिखावा करने की प्रवृ्ति पाई जाती है. ऎसे व्यक्ति देखने में सीधे -साधे होते है. किन्तु चतुर और चालाक होते है. सामान्यत: देखा गया है, कि ये लोग बहुत स्वार्थी भी होते है.  इसके अतिरिक्त यह भी माना जाता है, कि नल योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति में मुख्यत: निराशा की भावना देखी जाती है. नभस योगों में रज्जू योग, मूसल योग नल योग तीनों योग चर, स्थिर द्विस्वभाव राशियों की विशेषताओं पर आधारित योग है.  इन तीनों योगों को आश्रय योग भी कहा जाता है।

 

मूसल योग कैसे बनता है।

सभी ग्रह स्थिर राशियों में अर्थात वृ्षभ, सिंह, वृ्श्चिक तथा कुम्भ राशि में हो, तो मूसल योग बनता है. इस योग से युक्त व्यकि स्थिरता में विश्वास करने वाला होता है. उसमें अपने इरादों पर अटल रहने की प्रवृ्ति होती है. वह् व्यक्ति विश्वसनीय होता है. और अपने नियमों पर दृढ रहता है. अपने इन गुणों के कारण वह धनवार बनता है.  और साथ ही उसे प्रसिद्धि भी प्राप्त होती है.  

कुछ अन्य शास्त्रों में इस योग के फलों को भिन्न तरीके से लिया गया है. उनके अनुसार जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है, वह व्यक्ति ज्ञानी, धनी,राजमान्य, प्रसिद्ध,संतान युक्त, और शासनप्रणाली में भाग लेने वाला होता है।

 

रज्जु योग फल

सभी ग्रह चर राशियों अर्थात मेष, कर्क, तुला और मकर राशि में हो तो रज्जु योग बनता है. रज्जु योग से युक्त व्यक्ति एक स्थान पर बहुत समय तक ठिक कर नहीं रह पाता है. वह घूमने फिरने का शौकिन होता है, साथ ही उसमें परिवर्तनशील प्रवृ्ति होती है. साधारणत: ऎसा व्यक्ति अविश्वसनीय और अवसरवादी होता है।

 

कमल योग का फल

जन्म कुण्डली में बनने वाला कमल योग एक शुभ योग की श्रेणी में आता है. इस योग में यदि शुभ ग्रहों की अधिकता हो तो इस योग के बहुत ही शुभ फल प्राप्त होते हैं. कमल योग के प्रभाव से व्यक्ति को आभुषण एवं वस्त्र इत्यादि की प्राप्ति होती है. व्यक्ति नेतृत्व कर पाता है और लोगों के मध्य अपनी एक प्रभावशालि छवि को बनाता है।

जातक को अपने परिवार का प्रेम और सहयोग मिलता है. शिक्षा और व्यवसाय के क्षेत्र में सफलता मिलती है. राज्य की ओर से अथव अवरिष्ठ अधिकारी वर्ग की ओर से जातक सम्मान और उच्च स्थान भी पाता है. जातक को प्रेम और सुख की प्राप्ति होती है. विवाह का सुख पाता है. संबंधों में अगर कोई परेशानी भी हो तो मित्रों के सहयोग से उसे बहुत सहयोग मिलता है।

कमल योग में शुभ ग्रहों का होना शुभता बढ़ाता है अन्यथा यहां पाप ग्रहों की स्थिति होने पर जातक को इस फल का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है. ऎसी स्थिति में व्यक्ति को मिलेजुले परिणाम मिलते हैं।

 

पक्षी योग फल

जिस व्यक्ति की कुण्डली में पक्षी योग होता है. वह चर प्रकृति का होता है. वह एक स्थान पर अधिक समय तक टिक कर नहीं रह पाता है. इस योग वाला व्यक्ति पक्षी की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान पर उडता या भागता रहता है. साधारणतया ऎसा व्यक्ति परिवहन संचार या संप्रेक्षण संम्बन्धि क्षेत्रों से जुडा होता है. या फिर उसका कार्य ऎसा होता है, कि उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर बार-बार जाना पडता है.

जातक में संघर्ष करने की प्रवृति होती है. वह अपने बल पर आगे बढ़ता है. विरोधियों का दबाव भी अधिक झेलता है. अपनों का साथ बहुत अधिक नही मिल पाता है. कार्यक्षेत्र में अधिक व्यस्त रहता है. जीवन को बेहतर बनाने और सुख सुविधाओं की प्राप्ति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है।

 

गदा योग फल

गदा योग के प्रभव से व्यक्ति आशावान होकर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा पाता है. जातक अपने पुरुषार्थ से अपना भाग्य निर्मित करता है. शास्त्र और धर्म का जानकार होता है. कलात्मक एवं रचनात्मकता से युक्त होता है. सदैव आजीविका प्राप्ति में लगा रहने वाला. परिवार के प्रति दायित्व निभाने वाला होता है. जिस प्रकार गदा का उपयोग शत्रुओं का नाश करने के लिए और संकट से बचाव के लिए एक शस्त्र रुप में किया जाता है. उसी प्रकार इस का जन्म कुण्डली में बनना भी जातक को शत्रुओं से बचाने वाला होता है.

गदा योग के शुभ प्रभाव से व्यक्ति प्रत्योगिताओं में सफलता पाता है. जातक में किसी भी संकट का सामना करने का साहस भी होता है. अपने लोगों का एवं किसी भी संगठन का नेतृत्व करने में कुशल भी होता है।

 

इष्टबल योग क्या है।

जब पहले, चौथे या दसवें भाव में पंचमेश और नवमेश के साथ लग्नेश हों तो इष्टबल योग बनता है. यह योग व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र में उच्च स्थान प्राप्त करने में सहयोग करता है।

 

कीर्ति योग कैसे बनता है।

लग्न या चन्द्रमा से केन्द्र में शुभ ग्रह हों, तो कीर्ति योग बनता है. कीर्ति योग व्यक्ति को जीवन भर समृ्द्धि और नाम दिलाता है।

 

चामर योग कैसे बनता है।

केन्द्र में उच्च का चन्द्रमा गुरु से दृ्ष्ट हो या पहले, सातवें, नवें या दसवें भाव में दो शुभ ग्रह हों, तो चामर योग बनता है. इस योग से युक्त व्यक्ति उच्च स्तर के व्यक्तियों से आदर प्राप्त होता है. व्यक्ति श्रेष्ठ ज्ञानी होता है. उसे व्यवसायिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. आयु के पक्ष से भी यह योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है. शिक्षा के क्षेत्र में उसे मान-सम्मान प्राप्त होता है।

 

कुलश्रेष्ठ योग कैसे होता है।

जब कुण्डली में शुक्र और शनि स्वराशियों में हों, तो कुलश्रेष्ठ योग बनता है. इस योग की शुभता से व्यक्ति आज्ञाकरी और निष्ठावान पुत्र प्राप्त करने में सफल होता है।

 

भाग्य योग फल

भाग्य योग होने पर नवमेश ग्यारवें भाव में, गुरु के साथ हों, तब भाग्य योग बनता है. भाग्य योग से युक्त व्यक्ति धनवान होता है. उसे जीवन के कार्यो में भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. आय और लाभ के पक्ष से भी यह योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है।

 

बन्धन योग कैसे बनता है।

जब कुण्डली में लग्नेश अस्त हों, और सूर्य नीच राशि का हों, तो बन्धन योग बनता है. यह योग स्वास्थय के पक्ष से शुभ योग नहीं है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में बन्धन योग होता है. उसे किसी कारण वश कारावास में जीवन बीताना पडता है।

 

मीराती योग फल

मिराती योग में तृ्तीयेश एक त्रिक भाव में या अशुभ ग्रहों की युति या दृ्ष्टि में हों, तो मिराती योग बनता है. इस योग का व्यक्ति शत्रुओं से पराजित होता है. उसे जीवन में भाईयों का सहयोग कम प्राप्त होता है. साथ ही यह योग व्यक्ति के साहस में कमी करता है. इस योग का व्यक्ति शक्तिहीन होता है. ऎसा व्यक्ति शीघ्र उतेजित होना पडता है.

तथा योग के अनुकुल होने के कारण व्यक्ति में अनुचित कार्य करने की प्रवृ्ति हो सकती है।

 

मूक योग फल

जब कुण्डली में द्वितीयेश की आठवें भाव में गुरु से युति हो रही होती है. उस समय मूक योग बनता है. यह योग अपने नाम के अनुसार फल देता है. यह योग व्यक्ति को बोलने में दोष देता है. ऎसा व्यक्ति बातचीत करते समय हकलाने का आदि हो सकता है।

 

नृ्पत योग क्या है।

नृपत योग में दो ग्रह नीच होकर एक-दूसरे से केन्द्र में होते है. उदाहरण के लिए शनि मेष में और मंगल कर्क राशि में हों तो यह योग बनता है. इस योग का व्यक्ति सफलता प्राप्त करने के लिए अनुचित तरीकों को प्राप्त करता है।

  

दुर्गेश योग किस प्रकार बनता है।

दुर्गेश योग में राहू नवांशेश उच्च का होकर पांचवें या नवें भाव में, नवमेश सातवें भाव में और मंगल बली हों.  यह योग व्यक्ति को भू-सम्पितयों का स्वामी बनाता है. पुरुषार्थ से सफलता प्राप्ति के पक्ष से यह शुभ योग है।

 

शिव योग फल

जब कुण्डलीमें पंचमेश नवें भाव में या दशमेश पांचवें भाव में और नवमेश दसवें भाव में होता है, तो शिव योग बनता है. शिव योग से युक्ति व्यक्ति महत्वपूर्ण कार्यो में लगा रहता है. उसे सत्ता संभालने के अवसर प्राप्त हो सकते है. साथ ही वह प्रभत्वशाली पद प्राप्त करने में सफल होता है।

  

हर्ष योग फल

इस योग में छठे भाव का संबन्ध आंठवें भाव या बारहवें भाव से बनता है। इसलिए यह योग व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की क्षमता देता है.  इस योग से युक्त व्यक्ति का शरीर सुडौळ होता है. उस व्यक्ति के पास धन -संपति होती है. वह समाज के गणमान्य व्यक्तियों की संगति में रहता है. इसके अतिरिक्त इस योग के व्यक्ति को जीवन साथी और संतान और मित्रों का सहयोग प्राप्त होता है।

 

सरल योग में जन्मा जातक

जिस व्यक्ति की कुण्डली में सरल योग हो, वह व्यक्ति विद्वान होता है। अपने प्रयासों से वह अतुलनीय धन प्राप्त करने में सफल रहता है। इसके साथ ही वह संपति का भी स्वामी होता है. व्यक्ति प्रसिद्ध होता है। वह अपने सिद्धांतों पर अटल रहने वाला होता है, निर्णय लेने में कुशल होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति आदर्शवादी होता है. वह व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय पाने वाला तथा दीर्घायु होता है. जातक को अपने शत्रुओं से भी लाभ मिलता है वह उसके लिए फ़ायदेमंद हो सकते हैं।

सरल योग एक शुभ विपरीत राजयोग कहा जा सकता है. इस योग में जन्मा जातक अपने भाग्य और अपने कर्मों के शुभ फलों को प्राप्त कर सकेगा. इस योग के कारण व्यक्ति के जीवन में आने वाला कष्ट तो होगा लेकिन उस कष्ट से बाहर निकलते हुए जातक को सुख भी मिल सकेगा. इसे हम इस तरह से समझ सकते हैं की एक होगा राजयोग जिसमें व्यक्ति को शुभ स्थिति ही मिलेगी. जीवन में परेशानी नहीं आएगी. लेकिन विपरीत राजयोग के कारण जातक के जीवन में कठिनाईयां तो होंगी पर वह अपने भाग्य और कर्म द्वारा उस कष्ट से निकलते हुए जीवन के शुभ फलों को पा सकेगा।

 

सरल योग फल

सरल नामक विपरीत राजयोग अपने नाम के अनुरूप होता है. वह सरल रुप अर्थात साधारण रुप में होते हुए भी एक असाधारण प्रभाव देता है. जातक को इसके असरदायक प्रभाव दिखाई देते हैं. यह योग ऐसे समय पर जातक को फल देता है जब व्यक्ति एक ऐसे स्थान पर अटक जाता है किसी परेशानी में पड़ जाता है और उसे महसूस होता है की वह इस स्थिति से निकल नहीं पाएगा तो उस स्थिति में व्यक्ति यह योग अपना प्रभाव दिखाता है और व्यक्ति अचानक से उस स्थिति से उबर जाता है और अप्रत्याशित फल पाता है।

 

चांडाल योग या विप्र योग

चांडाल शब्द का अर्थ होता है। क्रूर कर्म

करनेवाला, नीच कर्म करनेवाला. इस चांडाल शब्द पे से ज्योतिष -शास्त्र में एक योग है. जिसे गुरु चांडाल योग या विप्र योग कहा जाता है।

राहू और केतु दोनों छाया ग्रह है. पुराणों में यह राक्षस है। राहू और केतु के लिए बड़े सर्प या अजगर की कल्पना करने में आती है। राहू सर्प का मस्तक है। तो केतु सर्प की पूंछ.

ज्योतिषशास्त्र में राहू -केतु दोनों पाप ग्रह है। अत: यह दोनों ग्रह जिस भाव में या जिस ग्रह के साथ हो उस भाव या उस ग्रह संबंधी अनिष्ठ फल दर्शाता है. यह दोनों ग्रह चांडाल जाती के है।

इसलिए गुरु के साथ इनकी युति गुरु चांडाल या विप्र (गुरु) चांडाल ( राहू-केतु ) योग कहा जाता है।

राहू-केतु जिस तरह गुरु के साथ चांडाल योग बनाते है इसी तरह अन्य ग्रहों के साथ चांडाल योग बनाते है जो निम्न प्रकार के है।

रवि-चांडाल योग :- सूर्य के साथ राहू या केतु हो तो इसे रवि चांडाल योग कहते है. इस युति को सूर्य ग्रहण योग भी कहा जाता है. इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक गुस्सेवाला और जिद्दी होता है. उसे शारीरिक कष्ठ भी भुगतना पड़ता है. पिता के साथ मतभेद रहता है और संबंध अच्छे नहीं होते. पिता की तबियत भी अच्छी नहीं रहती.

 

) चन्द्र-चांडाल योग :- चन्द्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे चन्द्र चांडाल योग कहते है. इस युति को चन्द्र ग्रहण योग भी कहा जाता है. इस योग में जन्म लेनेवाला शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य नहीं भोग पाता. माता संबंधी भी अशुभ फल मिलता है. नास्तिक होने की भी संभावना होती है।

 

) भौम-चांडाल योग :- मंगल के साथ राहू या केतु हो तो इसे भौम चांडाल योग कहते है. इस युति को अंगारक योग भी कहा जाता है. इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक क्रोधी, जल्दबाज, निर्दय और गुनाखोर होता है. स्वार्थी स्वभाव, धीरज रखनेवाला होता है. आत्महत्या या अकस्मात् की संभावना भी होती है।

 

) बुध-चांडाल योग :- बुध के साथ राहू या केतु हो तो इसे बुध चांडाल योग कहते है. बुद्धि और चातुर्य के ग्रह के साथ राहू-केतु होने से बुध के कारत्व को हानी पहुचती है. और जातक अधर्मी. धोखेबाज और चोरवृति वाला होता है।

 

) गुरु-चांडाल योग :- गुरु के साथ राहू या केतु हो तो इसे गुरु चांडाल योग कहते है.ऐसा जातक नास्तिक, धर्मं में श्रद्धा रखनेवाला और नहीं करने जेसे कार्य करनेवाला होता है.

 

) भृगु-चांडाल योग :- शुक्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे भृगु चांडाल योग कहते है. इस योग में जन्म लेनेवाले जातक का जातीय चारित्र शंकास्पद होता है. वैवाहिक जीवन में भी काफी परेशानिया रहती है. विधुर या विधवा होने की सम्भावना भी होती है।

 

) शनि-चांडाल योग :- शनि के साथ राहू या केतु हो तो इसे शनि चांडाल योग कहते है. इस युति को श्रापित योग भी कहा जाता है. यह चांडाल योग भौम चांडाल योग जेसा ही अशुभ फल देता है. जातक झगढ़ाखोर, स्वार्थी और मुर्ख होता है. ऐसे जातक की वाणी और व्यव्हार में विवेक नहीं होता. यह योग अकस्मात् मृत्यु की तरफ भी इशारा करता है.

उपरोक्त सभी चांडाल योग ज्योतिषशाश्त्र में मिलते नहीं है. पर यहाँ गुरु चांडाल योग के सिद्धांत पे से दर्शाया गया है। राहू-केतु के साथ जो ग्रह है

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

A To Z: नाम

A To Z: नाम के 1st अक्षर से जानिए अपनी और दूसरों की बातें

ज्योतिष की ही एक अन्य शाखा है अंक ज्योतिष। अंक ज्योतिष के अनुसार नाम के अक्षर का भी कारक अंक होता है। A से Z तक के सभी अल्फाबेट्स के लिए अलग-अलग अंक बताए गए हैं। हर एक अंक का अलग महत्व है। अलग ग्रह स्वामी है। हमारे नाम का पहला अक्षर जिस अंक से संबंधित होता है, हमारा स्वभाव और भविष्य उसी के अनुसार रहता है।

अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार अंक

A- 1, B- 2, C- 3, D- 4, E- 5

F- 8, G- 3, H- 5, I- 1, J- 1

B- 2, L- 3, M- 4, N- 5, O- 7

P- 8, Q- 1, R- 2, S- 3, T- 4

U- 6, V- 6, W- 6, X- 5, Y- 1, Z- 7.

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘A’ है।

जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर इंग्लिश अक्षर ए से शुरू होता है। उन लोगों में जन्म से ही कई गुण होते हैं। इन गुणों के कारण ये लोग समाज में खास मुकाम हासिल करते हैं। और घर-परिवार में भी इन्हें पूरा मान-सम्मान मिलता है। ए अक्षर वाले लोग बहुत भावुक होते हैं। और जल्दी ही आवेश में भी आ जाते हैं। इन लोगों की इच्छा होती है। कि घर-परिवार और समाज में सभी सही ढंग से रहें और लोग इनका कहना भी मानें। जब इनकी बात पूरी नहीं हो पाती है। तो इन्हें बुरा लगता है। और इस कारण ये लोग निराश भी हो सकते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘B’ है।

यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर इंग्लिश के बी से शुरू होता है। तो वे वैचारिक स्तर पर काफी प्रभावी होते हैं। ये लोग अपने विचारों और सोच से सभी का दिल जीत लेते हैं। इन लोगों से बहस में जीत पाना बहुत मुश्किल होता है। कई बार छोटी-छोटी बातों पर भी ये लोग बहस कर सकते हैं। सामान्यत: इस प्रकार के लोग अंतर्मुखी होते हैं और अपने विचारों में ही डूबे रहते हैं। ये लोग हर किसी पर आसानी से भरोसा भी नहीं करते हैं। और इनके दोस्तों की संख्या भी कम ही रहती है। अपने आत्मविश्वास के बल पर इन्हें जीवन में कई महत्वपूर्ण उपब्धियां हासिल होती हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘C’ है।

वे लोग बहुत ही अस्थिर विचारों वाले होते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर C है। इस अक्षर के लोग अधिक समय तक एक ही बात पर अडिग नहीं रह पाते हैं। और विचार बदलते रहते हैं। ये लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अंतिम क्षण तक पूरा प्रयास करते हैं। किसी भी नए वातावरण में स्वयं को आसानी से बदल नहीं पाते हैं। इस कारण नए स्थान पर या नए काम में इन्हें कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनके दिमाग में विचार बदलते रहते  हैं। लेकिन भविष्य की योजनाओं को लेकर विजन क्लिकर रहता है।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘D’ है।

जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर डी है। वे हर काम को पूरे विश्वास के साथ करते हैं। और अंतिम क्षण तक सफलता पाने का प्रयास करते हैं। साथ ही, इन लोगों का खुद पर नियंत्रण भी अच्छा रहता है। किसी भी परिस्थिति में खुद को आसानी से बदल लेते हैं। इन बातों के कारण जीवन में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल करते हैं। और मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। इनका दिमाग रचनात्मक होता है। और इनके पास योग्यता भी होती है। कि अपने आइडियाज को कैसे लागू करेंगे।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘E’ है।

वे लोग खुले विचारों वाले और बिंदास होते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर ई है। ये लोग सच बोलने में कभी भी हिचकते नहीं हैं और ना ही इस बात की परवाह करते हैं। कि सच बोलने पर दूसरों को कितना कष्ट सहन करना पड़ सकता है। इनकी योजनाएं बहुत ही रचनात्मक होती हैं। और इन योजनाओं पर ये लोग आसानी से काम भी कर लेते हैं। कार्यों में सफलता पाने के लिए पूरी मेहनत करते हैं। और जब तक सफल नहीं हो जाते, इन्हें शांति नहीं मिलती है। इन लोगों की काम करने की क्षमता गजब की होती है। शारीरिक रूप से भी ये लोग शक्तिशाली होते हैं। इनकी सहनशक्ति भी बहुत अधिक होती है।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘F’ है।

यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर इंग्लिश के एफ से शुरू होता है। तो वे लोग अपने घर-परिवार से पूरी तरह अटैच रहते हैं। इनके लिए परिवार ही पहली प्राथमिकता होता है। और सदस्यों के लिए कुछ भी कर सकने का जुनून भी होता है। कभी भी ये लोग बच्चों की तरह व्यवहार करते हैं। लेकिन इससे वातावरण खुशनुमा हो जाता है। और परिवार का मनोरंजन करते हैं। समाज में भी अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को पूरा करने का प्रयास करते हैं। सच के साथ रहना इन्हें पसंद होता है। इन लोगों में दूसरों की मदद करने की इच्छा काफी अधिक होती है।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘G’ है।

ऐसे लोग अपनी ईमानदारी और निष्ठा के कारण समाज में मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर जी होता है। ये लोग किसी भी बात को घुमा-फिराकर बोलना पसंद नहीं करते हैं। जो भी बात होती है, उसे सीधे बोल देते हैं। इनका व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक होता है। और इस कारण इनके आसपास कई लोग सदैव रहते हैं। जी अक्षर वाले लोग अपने सिद्धांतों पर जीना पसंद करते हैं। इन्हीं के बल पर खास उपलब्धियां हासिल करते हैं। इनका बौद्धिक स्तर भी काफी ऊंचा रहता है।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘H’ है।

यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर एच है। तो वह स्वार्थी हो सकता है। ऐसे लोग बहुत ही चतुर होते हैं। और चतुराई के बल पर अपने स्वार्थ को सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं। चतुरता के कारण सफलता भी प्राप्त करते हैं। और जीवन अपने स्तर पर ऐश-आराम के साथ व्यतीत करते हैं। इनकी महत्वकांक्षाएं काफी अधिक होती हैं। और उन्हें पूरा करने के लिए योजनाएं भी बनाते रहते हैं। घर-परिवार के सदस्यों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए कोशिश करते हैं। कभी-कभी कार्यों में सफलता न मिलने पर निराश भी हो जाते हैं। लेकिन थोड़े समय के बाद नई ऊर्जा के साथ पुन: कार्यों में जुट जाते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘I’ है।

ऐसे लोग कड़ी मेहनत करने वाले होते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर आई होता है। इन्हें आलस्य से नफरत होती है। ये खुद भी सदैव चुस्त रहते हैं। और चाहते हैं। कि सभी इन्हीं की तरह आलस्य का त्याग करें। घर-परिवार के सदस्यों को भी यही सलाह देते हैं कि कार्यों में देरी नहीं होनी चाहिए। इनके सामने जो भी काम आता है, उसे फटाफट निपटने के लिए जुट जाते हैं। किसी भी बात को बहुत गहराई से सोचते हैं। और पूरा मंथन करने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचते हैं। वैचारिक स्तर पर भी ये लोग काफी प्रभावशाली होते हैं। इनका शब्दकोश भी विस्तृत होता है।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘J’ है।

ऐसे लोगों की सोच बहुत व्यापक होती है, जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर जे होता है। ये लोग पुराने समय से चली आ रही रूढ़ीवादी परंपराओं का पालन नहीं करते हैं। खुद भी पूरी तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं। और दूसरों को भी स्वतंत्र रहने की सलाह देते हैं। किसी भी प्रकार के पारंपरिक बंधन इन्हें पसंद नहीं होते हैं। जे अक्षर वाले लोग सदैव सजग रहते हैं। और इस बात की जानकारी रखते हैं। कि उनके आसपास क्या हो रहा है। इन्हें समाज की पूरी जानकारी होती है। लेकिन सही मामलों में ही अपनी सहभागिता दर्शाते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘K’ है।

ऐसे लोग जीवन में बहुत संघर्ष करते हैं, जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर के होता है। इन लोगों को जीवन के अलग-अलग चरणों में कठिन परिश्रम करना पड़ता है। लेकिन अंतत: सफलता प्राप्त करते हैं। कड़ी मेहनत के बाद प्राप्त की हुई सफलता लंबे समय तक इनका साथ देती है। कभी-कभी ये लोग खुद अपने भाग्य पर विश्वास नहीं कर पाते हैं। कि इतने कठिन समय के बाद एकाएक सफलता कैसे मिल गई। के अक्षर वाले लोग एक पल में सुखी तो दूसरे ही पल में दुखी भी हो सकते हैं। क्योंकि इनका जीवन अनिश्चित तौर पर ही चलता रहता है। इन विपरीत परिस्थितियों के चलते कई बार निराश भी हो जाते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘L’ है।

वे लोग जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर एल है। वे बहुत ही संवेदनशील होते हैं। इस स्वभाव के कारण दूसरों के दुख दूर करने का प्रयास भी करते हैं। इनकी सोच दार्शनिक होती है। और हर बात को अलग ही अंदाज से सोचते हैं। इनकी बातों में बहुत गहराई होती है और इन लोगों को आसानी से समझा नहीं जा सकता है। धर्म के मामले में भी ये लोग अग्रणी रहते हैं। और ईश्वर पर आस्था रखते हैं। ये लोग अपने अनुभव के आधार पर कार्यों में सफलता प्राप्त करते हैं। अतीत की बातों को पीछे छोड़कर वर्तमान में जीते हैं। अधिकांश समय खुद के लिए और अपने परिवार के सुख के लिए प्रयास करते रहते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘M’ है।

जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर एम होता है। वे अपने नैतिक मूल्यों पर जीवन व्यतीत करते हैं। गलत काम को और गलत काम करने वाले लोगों को कभी भी बढ़ावा नहीं देते हैं। सामान्यत: इनकी सोच यही होती है। कि सादा जीवन और उच्च विचार, लेकिन इनकी सादगी ही कई बार इन्हें परेशानियों में फंसा देती है। किसी भी बात को घुमा-फिराकर नहीं बोलते, सीधे-सीधे बोल देते हैं। इस कारण अन्य लोगों को इनकी बातें चूभती हैं। और वे इनसे शत्रुता का भाव रखने लग जाते हैं। इन लोगों की यही कोशिश होती है। समाज में इन्हें मान-सम्मान मिले। इसके लिए ये लोग सही प्रयास भी करते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘N’ है।

जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर एन है, वे जीवन में कई बार कठिन समय का सामना करते हैं। इनके कार्यों में बाधाएं आती हैं। आसानी से सफलता प्राप्त नहीं हो पाती है। जीवन में लगातार परेशानियों का सामना करते हुए ये लोग मजबूत और शक्तिशाली बन जाते हैं। अपने अनुभव के आधार पर समस्याओं को निपटा लेते हैं। और आगे बढ़ जाते हैं। ये लोग बहुत अच्छे मित्र भी होते हैं। अपने मित्रों के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। और उनकी मदद करते रहते हैं। समय के साथ इनके व्यक्तित्व में आकर्षण बढऩे लगता है और इस कारण इनकी ख्याति भी बढ़ती है।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘O’ है।

जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर ओ होता है। वे स्वार्थी हो सकते हैं। ओ अक्षर वाले लोगों का अंदाज बोल्ड होता है, पुरानी परंपराओं को पीछे छोड़कर आगे बढ़ते हैं। इन्हें आधुनिक जीवन अधिक पसंद आता है। ये लोग जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखते हैं। लेकिन विपरीत परिस्थितियों के कारण कभी हार नहीं मानते हैं। इसी विशेषता के कारण ये लोग दूसरों से अलग नजर आते हैं। ओ अक्षर वाले लोगों के मित्रों की संख्या बहुत अधिक होती है। लेकिन इनके शत्रु भी अधिक होते हैं। इन्हें कई बार अन्य लोगों द्वारा छला भी जाता है और इसी कारण कई परिस्थितियों में ये स्वार्थी बन जाते हैं। इनकी महत्वकांक्षाओं के कारण जीवन में कई उपलब्धियां हासिल करते हैं। और समाज में एक खास मुकाम बनाते हैं। इन लोगों को जीवन में हर चीज कुछ विलंब के बाद हासिल होती है।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘P’ है।

वे लोग अंदर से बहुत अशांत रहते हैं, जिनके नाम का पहला इंग्लिश पी है। पी अक्षर वाले लोगों के मन में कई प्रकार की उथल-पुथल चलती रहती है। लेकिन वे बाहर स्वयं शांत ही दिखाते हैं। आंतरिक स्थिति के विषय में किसी से बात करना पसंद नहीं करते हैं। इनके मन की स्थिति चाहे जैसी हो, लेकिन दूसरों को खुश रखने का प्रयास करते हैं। इनके विचारों में भी पवित्रता होती है। और ईश्वर पर आस्था रखते हैं। अपने भविष्य के प्रति लगातार विचार मंथन करते रहते हैं। ये लोग सदैव शांतिपूर्ण तरीके से जीवन जीना पसंद करते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘Q’ है।

यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर क्यू है। तो वह व्यक्ति जीवन को सही ढंग से व्यतीत करने वाला होता है। इन लोगों की इच्छा होती है। कि वे हमेशा सही तरीके से कार्य करें और दूसरों की मदद करते रहे। क्यू अक्षर वाले लोग अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। दृढ़ता के साथ परेशानियों को दूर करते हैं। ये लोग झूठा अहंकार नहीं दिखाते हैं। और इन्हें ऐसे ही लोग पसंद होते हैं जो अहंकार रहित होते हैं। घर-परिवार के मामलों में सदैव सजग रहते हैं। और सदस्यों की इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास भी करते रहते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘R’ है।

यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर आर है। तो वह व्यक्ति वैचारिक रूप से शक्तिशाली होता है। ऐसे लोग किसी बात को गहराई से मंथन करते हैं। और उसके बाद निर्णय करते हैं। जो कि अधिकांश परिस्थितियों में सही सिद्ध होता है। ये लोग आसानी से मित्र बना लेते हैं।  इस वजह से इनके मित्रों की संख्या काफी अधिक होती है। अपने सिद्धांतों और व्यवहार के कारण इनकी समाज में सराहना भी होती है। आर अक्षर वाले लोग जिस क्षेत्र में भी काम करते हैं। अपनी मेहनत के बल पर वहां सफलता प्राप्त करते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘S’ है।

इस इंग्लिश नाम अक्षर वाले लोग बहुत ही रचनात्मक होते हैं। किसी भी काम को अपने अलग अंदाज से करना पसंद करते हैं। इन्हें भीड़ के साथ चलना पसंद नहीं होता है। अपनी बुद्धिमानी से परेशानियों को दूर कर लेते हैं। ये लोग अपने आसपास हो रही गतिविधियों की जानकारी भी रखते हैं। इनके जीवन में कई बार ऐसी स्थितियां आ जाती हैं। जब ये लोग कोई निर्णय नहीं ले पाते हैं। ऐसे में इन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार कुछ अलग करने के चक्कर में गलत निर्णय भी ले लेते हैं। मित्रों के प्रति वफादार रहते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘T’ है।

वे लोग अपने जीवन से संतुष्ट रहते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर टी है। इनके विचार मंथन का स्तर काफी ऊंचा होता है और अपनी बुद्धिमानी के बल पर समाज में ऊंचा मुकाम हासिल करते हैं। ये लोग कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए काफी दिमागी कसरत करते हैं। टी अक्षर वाले लोग ना तो पूरी तरह आस्तिक होते हैं। और ना ही पूरी तरह नास्तिक। इन्हें कार्य क्षमता पर बहुत अधिक विश्वास होता है और अपने निर्णयों के संबंध में इन्हें पूरी स्वतंत्रता चाहिए। कई बार अपने निर्णयों पर अडिग रहते हैं। और इस वजह से कभी नुकसान भी हो सकता है।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘U’ है।

जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर यू है। वे लोग सदैव नए आइडियाज पर काम करने के लिए तैयार रहते हैं। ये लोग अपने ग्रुप में नए विचारों के लिए खास पहचान रखते हैं। यू अक्षर वाले लोग किसी भी मौके को हाथ से जाने नहीं देते हैं। जैसे ही कोई सही मौका इन्हें नजर आता है। उसे फौरन प्राप्त लेते हैं। ये लोग सदैव सच के साथ रहते हैं। और सच पसंद करने वाले लोग इन्हें विशेष प्रिय होते हैं। ये लोग अपने कार्यों और विचारों के बल पर उज्जवल भविष्य का निर्माण करते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘V’ है।

वी- इस इंग्लिश अक्षर वाले लोग इस बात को गहराई से अपने जीवन पर लागू करते हैं। कि हम दूसरों को सम्मान देंगे तो हमें भी सम्मान मिलेगा। इस कारण ये सभी को सम्मान देते हैं। और दूसरों से भी पूरा सम्मान चाहते हैं। इनकी बुद्धि बहुत तेज होती है। और किसी भी बात को कभी भूलते नहीं हैं। ये लोग बातचीत में पारंगत होते हैं। और इस कारण अपने निर्णय पर दूसरों को भी आसानी से राजी कर लेते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘W’ है।

ऐसे लोग जोखिम भरे काम अधिक पसंद करते हैं। जिनके नाम का पहला इंग्लिश अक्षर डब्ल्यू होता है। ये लोग कड़ी मेहनत करने वाले होते हैं। और ईमानदारी के साथ काम में लगे रहते हैं। साहसभरे काम इन्हें आकर्षित करते हैं। ये लोग विनम्र स्वभाव रखते हैं। और सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहते हैं। सामान्यत: इन लोगों को बुढ़ापे में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘X’ है।

जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर एक्स होता है। वे लोग शांतिप्रिय होते हैं। एक्स अक्षर वाले लोग संगीत प्रिय होते हैं। और कला संबंधी कार्यों में भी इनकी विशेष रुचि रहती है। अपने कार्यों में पूरी मेहनत के साथ लगे रहते हैं। और इस कारण इन्हें सफलता भी प्राप्त होती है। कभी-कभी इनके जीवन में परेशानियां भी आती हैं। लेकिन धीरे-धीरे ये उन परेशानियों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘Y’ है।

यदि किसी व्यक्ति के नाम का पहला इंग्लिश वाय है तो वे लोग स्वयं में डूबे रहने वाले होते हैं। ऐसे लोग अपने निर्धारित लक्ष्यों को पाने के लिए निरंतर विचार मंथन करते हैं। और नई योजनाएं बनाकर उन पर काम भी शुरू कर देते हैं। वाय अक्षर वाले लोग कार्यों का विश्लेषण करते हैं। और अन्य लोगों की कार्य प्रणाली पर भी ध्यान रखते हैं।

जिन लोगों के नाम का 1st Alphabet ‘Z’ है।

जिन लोगों के नाम का पहला इंग्लिश अक्षर झेड होता है। वे लोग बहुत जिद्दी हो सकते हैं। ऐसे लोग कई बार कोई खतरनाक काम भी कर देते हैं। जोखिम उठाने में इन्हें बिल्कुल भी संकोच नहीं होता है। यदि ये लोग किसी से शत्रुता रखते हैं। तो शत्रु के प्रति हिंसक भी हो सकते हैं। इन विशेषताओं के कारण कभी-कभी ये लोग परेशानियों का सामना भी करते हैं।

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

वर्षफल

ताजिक शास्त्र में लग्न का आपकी कुंडली पर असर

वर्षफल कैसे तैयार किया जाता है। और मुंथा की कौन सी स्थिति कैसी होती है।

आज जानिए मेरे साथ की वर्षफल कैसे तैयार किया जाता है। और मुंथा की कौन सी स्थिति कैसी होती है।

जातक के लिए आने वाले वर्ष का फलादेश करने हेतु वर्षफल द्वारा आने वाले वर्ष का फलादेश: वर्षफल में संपूर्ण जीवन की घटनाओं का वर्णन होकर, किसी एक या दो विशेष वर्ष की मुख्य एवं आकस्मिक घटनाओं, स्वास्थ्य रोगादि का विचार, पदोन्नति, स्त्री एवं संतान सुख, परीक्षा में सफलता, व्यापार में उतार-चढ़ाव या स्थानांतरण आदि मुख्य विषयों का समावेश रहता है। वर्षफल द्वारा फलादेश करने हेतु किसी जातक का इष्टकालीन सूर्य आगामी वर्ष जब ठीक उसी राशि, अंश, कला, विकला पर जाता है, तो तत्कालीन वार, तिथि, नक्षत्र एवं इष्टकाल पर आधारित जो वर्ष कुंडली बनाई जाती है, उस समय की कुंडली को वर्ष प्रवेश कुंडली कहा जाता है। वर्ष कुंडली में ग्रहों की स्थिति एवं मुंथा या मुंथेश ग्रह की स्थिति अशुभ हो, तो जन्म के दिन संबद्ध ग्रहों की पूजा, जप एवं दानादि करने से ग्रह-जनित दोषों की शांति हो जाती है तथा वर्ष में संभावित बाधाएं दूर होकर अभीष्ट कार्यों में सफलता एवं सिद्धि प्राप्त होती है। वर्षफल में मुंथा का विशेष महत्व होता है। वर्ष कुंडली में चैथे, छठे, सातवें, आठवें एवं 12वें भावों में स्थित मुंथा अशुभ फलदायक होती है। जैसे यदि वर्ष कुंडली में मुंथा छठे या आठवें भाव में हो, तो शत्रु, रोग एवं ऋण में वृद्धि, शारीरिक कष्ट, कलह आदि का कारक होती है। इसी तरह द्वादश भाव में मुंथा स्थान हानि एवं व्यय कारक होती है। मुंथा यदि पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, तो शुभ स्थानों में होने पर भी अशुभ फल देती है। यदि दुःस्थान पाप ग्रस्त हो, तो और भी अधिक अनिष्टकारक होती है। किंतु यदि मुंथा  शुभ ग्रह के साथ या दृष्ट हो, तो शुभ फलदायक होती है। यदि भाव 4, 6, 7, 8 या 12 में शुभ ग्रह युक्त हो, तो अधिक अनिष्टकारी नहीं होती है। मुंथा जिस राशि में स्थित होती है, उस राशि के स्वामी को मुंथेश कहा जाता है। मुंथा की तरह मुंथेश फल का भी विचार करना चाहिए। यदि मुंथेश और अष्टमेश वर्ष कुंडली में एक साथ स्थित हों, तो वर्ष में मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। यदि मुंथा या मुंथेश को अष्टमेश या अन्य कोई पाप ग्रह 4, 7, 10 दृष्टि से देखता हो, तो धन हानि एवं शारीरिक कष्ट होता है। द्वादश भावों में मुंथेश की श्रेष्ठ स्थिति लग्न, द्वितीय, तृतीय, पंचम, नवम, दशम तथा एकादश भाव में होती है। तृतीय, चतुर्थ, षष्ठ, सप्तम, अष्टम या द्वादश में स्थित मुंथेश अनिष्ट फल प्रदान करता है। पंचाधिकारी निर्णय: जैसा कि नीचे उल्लिखित है, वर्ष कुंडली में पांच ग्रह पंचाधिकारी कहलाते हैं तथा इनमें से जो ग्रह पंचवर्गीय बल में सर्वाधिक बली है और लग्न को देखता हो वर्षेश कहलाता है। जन्म लग्न का स्वामी: जन्म कुंडली में जो ग्रह लग्न राशि का स्वामी हो, वही लग्न का स्वामी कहलाता है। वर्ष लग्नपति: वर्ष कुंडली में जो ग्रह वर्ष लग्न राशि का स्वामी हो, वह वर्ष लग्नपति कहलाता है। मुंथाधिपति: वर्ष

कुंडली में मुंथा जिस राशि में हो, उस राशि का स्वामी ग्रह मुंथाधिपति कहलाता है। राशिपति: दिन में वर्ष प्रवेश होने की स्थिति में सूर्य जिस राशि में हो, उस राशि का स्वामी तथा रात्रि में वर्ष प्रवेश होने की स्थिति में चंद्र जिस राशि में हो, उस राशि का स्वामी राशिपति कहलाता है। त्रिराशिपति: नीचे चित्रित चक्र में देखते हुए दिन में वर्ष लग्न प्रवेश हुआ तो दिवात्रिराशिपति ग्रह तथा यदि रात्रि को वर्ष प्रवेश हुआ हो, तो तदनुसार रात्रि त्रिराशिपति ग्रह मानना चाहिए। उदाहरणार्थ यदि किसी जातक का लग्न कुंभ है ओर रात्रिकालीन जन्म है तो कुंभ राशि के नीचे और रात्रि त्रिराशिपति के आगे बृहस्पति लिखा है तो बृहस्पति त्रिराशिपति होगा जन्म लग्न से वर्ष लग्न का विचार वर्षफल की दृष्टि से वर्ष कुंडली का लग्न भी विशेष महत्व रखता है। यदि किसी जातक का वर्ष लग्न जन्म कुंडली के प्रथम, छठे, अष्टम अथवा बारहवें भावस्थ की राशि का उदित हो, तो अशुभ फलदायी होता है। द्वितीय भावस्थ राशि का लग्न हो, तो मिश्रित फलदायी होता है। अगर किसी जातक का जन्म लग्न कन्या हो और उसका आगामी वर्ष लग्न कन्या जाए, तो वह द्विजन्मा लग्न कहलाता है। इसी प्रकार जन्म कुंडली के द्वादश भावों की राशियां अगर वर्ष लग्न में लग्न बनकर प्रकट हों, तो वह अपना अलग-अलग प्रभाव देती हैं। वर्ष लग्न जन्म कुंडली का प्रथम भाव उदित हो, तो वह द्विजन्मा लग्न कहलाता है। द्विजन्मा वर्ष लग्न होने की स्थिति में शारीरिक कष्ट, अनावश्यक व्यय, गुप्त चिंताओं, स्वास्थ्य हानि एवं बनते कार्यों में विघ्न की संभावना रहती है। वर्ष लग्न जन्म कुंडली का द्वितीय भाव हो, तो जातक को उस वर्ष आकस्मिक आय एवं धन लाभ, वाहन सुख आदि की प्राप्ति की संभावना रहती है, परंतु उसका स्वास्थ्य प्रतिकूल रहता है। वर्ष लग्न जन्म कुंडली के तृतीय भाव की राशि का हो, तो जातक को उस वर्ष भाई-बंधुओं एवं मित्रों का सहयोग मिलता है। बिगडे  काम बनत है और धन की प्राप्ति होती है, परतं साथ ही खर्च एवं आकस्मिक यात्राओं और पराक्रम में वृद्धि होती है। वर्ष लग्न जन्म कुंडली की चतुर्थ भावस्थ राशि का हो, तो उस वर्ष आय में वृद्धि के साथ-साथ वाहन सुख की प्राप्ति होती है। साथ ही भूमि, भवन आदि की प्राप्ति के अवसर प्राप्त होते हैं। वर्ष लग्न जन्म कुंडली की पंचमस्थ राशि का हो, तो उस वर्ष पूर्व से चल रही योजनाओं में आंशिक सफलता प्राप्त होती है। विद्या में सफलता तथा स्त्री एवं संतान सुख की प्राप्ति होती है। घर में कोई कोई मंगल कार्य होता है। कार्य व्यवसाय संबंधी गुप्त योजनाएं बनती हैं। वर्ष लग्न कुंडली की छठी राशि का हो, तो उस वर्ष जातक को संघर्ष अधिक करना पड़ता है। रोग आदि के कारण शारीरिक कष्ट तथा ऋण की संभावना एवं शत्रु का भय रहता है। इसके अतिरिक्त आय कम तथा खर्च अधिक होते हैं। साथ ही गृह-कलह, मानसिक तनाव एवं धन हानि होती है। वर्ष लग्न जन्म

कुंडली की सातवीं राशि का हो, तो घर परिवार में विवाह आदि मांगलिक कार्य होते हैं। विद्या या विवाद आदि में सफलता अथवा पूर्व से चल रही योजनाओं में कामयाबी मिलती है। स्त्री सुख एवं विलासादि कार्यों पर अधिक खर्च होते हैं। वर्ष लग्न जन्म कुंडली की आठवीं राशि का हो, तो उस वर्ष रोग, एवं शारीरिक कष्ट या दुर्घटना का डर रहता है। आय में रुकावटें एवं धन हानि तथा खर्च भी आशा के विपरीत अधिक होते हैं। पारिवारिक उलझने बढ़ती हैं। वर्ष लग्न यदि जन्म कुंडली का नवम भाव हो, तो उस वर्ष धन लाभ के अवसर प्राप्त होते हैं। धार्मिक कार्यों में अभिरुचि बढ़ती है। भाग्योन्नति एवं मान-सम्मान में वृद्धि होती है। वर्ष लग्न यदि जन्म कुंडली का दशम भाव हो, तो कार्य व्यवसाय में लाभ उन्नति के अवसर मिलते हैं। सरकारी क्षेत्र में या सर्विस में उन्नति के अवसर बनते हैं तथा मान-सम्मान में वृद्धि होती है। वर्ष लग्न यदि जन्मकुंली का ग्यारहवां भाव हो, तो उस वर्ष जातक को धन प्राप्ति प्रगति के विशेष अवसर प्राप्त होते हैं। बिगड़े हुए कार्य बनते हैं। पारिवारिक सुख एवं आकस्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। वर्ष लग्न यदि जन्मकुंडली का बारहवां भाव हो, तो उस वर्ष जातक को अधिक संघर्ष करना पड़ता है। आय कम खर्च अधिक होता है। शारीरिक कष्ट एवं गुप्त चिंताओं के कारण वह मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है। उसके अपने भी परायों जैसा व्यवहार करते हैं। वर्षफल में विभिन्न ग्रहों की दशाओं का फल: वर्षफल बनाने के उपरांत मुद्दा दशा निकालने हेतु गत वर्ष में जन्मकालीन नक्षत्र को जोड़कर उसमें से 2 घटाकर तथा 9 से भाग देने पर जो शेष अंक बचता है, उसी अंक अनुरूप विभिन्न ग्रहों की दशा जाननी चाहिए। इस तरह, यदि 1 शेष बचे तो सूर्य की, 2 बचे तो चंद्र की, 3 बचे तो मंगल की, 4 बचे तो राहु की, 5 बचे तो गुरु की, 6 बचे तो शनि की, 7 बचे तो बुध की, 8 बचे तो केतु की और 9 अथवा 0 बचे तो शुक्र की दशा जाननी चाहिए। वर्ष कुंडली में फलादेश करने हेतु जरूरी नियम: वर्ष कुंडली एवं जन्म कुंडली में छठे, आठवें और द्वादश भावों में क्रूर, शुभ तथा सौम्य ग्रह अशुभ फलदायी माने जाते हैं। यदि वर्ष लग्न जन्म लग्न से अष्टम या षष्ठ हो, तो उस वर्ष जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है तथा धन की हानि होती है। वर्ष लग्नेश तथा मुंथेश दोनों ग्रह अस्त, वक्री या नीच राशिगत हों, तो उस वर्ष शारीरिक कष्ट, मानसिक तनाव, संतान संबंधी चिंता और धन की हानि होती है। यदि जन्म कुंडली का अष्टमेश ग्रह वर्ष में लग्नस्थ हो या लग्नेश हो, तो उस वर्ष जातक को बहुत अधिक संघर्ष एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जन्म कुंडली में जो ग्रह शुभ भावों के स्वामी हों, वे यदि वर्ष कुंडली में केंद्र, त्रिकोण या शुभ भाव में हों, तो वर्ष में उन भावो के फलों की वृद्धि होती है। वर्ष कुंडली में सूर्य और चंद्र एक ही राशि में हों, या दोनों छठे, आठवें या बाहरवें भाव में हों, तो वह वर्ष अनिष्टकारी होता है। यदि वर्ष लग्नेश निर्बल हो तथा मुन्थेश सूर्य, मंगल या बुध पाप युक्त हो, तो कार्य हानि, नेत्र रोग, एवं नजदीकी भाई-बंधुओं या मित्रों के कारण दुःख होता है। चंद्र या शुक्र पाप युक्त हो तो स्त्री, माता या पुत्री के कारण चिंता, गुरु पाप युक्त हों, तो पति, ज्येष्ठ भाई या संतान की चिंता होती है। शनि पापाक्रांत हो, तो बुरे कार्यों में अभिरुचि, धन की कमी, रोग शत्रु भय की संभावना रहती है तथा कर्मचारियों के कारण परेशानियां पैदा होती हैं। यदि वर्ष कुंडली में चंद्र छठे, आठवें या द्वादश भाव अथवा लग्न में हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो, तो शस्त्र से भय या दुर्घटना से चोट, शनि की दृष्टि हो, तो रोग भय, सूर्य की दृष्टि हो तो शत्रु भय तथा बुध, गुरु या शुक्र की दृष्टि हो, तो धन लाभ के साथ-साथ रोग शारीरिक कष्ट होता है। जन्म लग्नेश, वर्ष लग्नेश, अष्टमेश, वर्षेश और मुंथेश बलवान हों तथा पांचवें, छठे, आठवें और बारहवें भावों में हों, तो उस वर्ष शुभ फल घटित होते हैं तथा जातक को धन एवं सुख के साधन प्राप्त होते रहते हैं। यदि उक्त ग्रह बल रहित हों और इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि भी हो, तो जातक को धन हानि, दुख, पीड़ा एवं रोग या शत्रु भय देते हैं। वर्ष कुंडली में वर्ष लग्नेश, जन्म लग्नेश, मुंथा या मुंथेश तथा वर्षेश का विशेष महत्व होता है। ये सब अपने बल के अनुसार अपनी दशा में फल देते हैं। ये सभी अथवा इनमें से अधिकांश ग्रह षष्ठ, अष्टम या व्यय भाव में हों, अथवा इन पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो या ये पाप ग्रहों से युक्त हों, तो उस वर्ष जातक को मृत्युतुल्य कष्ट होता है एवं उसे अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है। जिस भाव का स्वामी अपने भाव में शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, उस भाव के फल की वृद्धि होती है। जैसे यदि वर्ष लग्न का स्वामी नवम भाव में पड़कर लग्न भाव को पंचम मित्र दृष्टि से देखता हो, तो उस वर्ष जातक के भाग्य में उन्नति होती है और उसे धन लाभ के अवसर प्राप्त होते हैं। इसी तरह, जो भाव पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, उस भाव के फल की हानि होती है। शुभ एवं पापी दोनों प्रकार के ग्रहों से युक्त अथवा शुभ ग्रह से युक्त क्रूर ग्रह से दृष्ट हो, तो मिश्रित फल मिलते हैं। यो यो भाव, स्वामि सौम्यैः दृष्टो युक्तोऽमेद्यते। पाप दृष्ट युतैर्नाशो मिश्रैः मिश्रफल वदेत्।। वर्ष लग्न, मुंथा, मुंथेश, वर्ष लग्नेश ये सब पाप ग्रहों के मध्य में हों, तो उस वर्ष जातक को रोग होने का भय रहता है। नीच राशि का एवं शत्रु के घर स्थित ग्रह, उस भाव के फल का नाश करता है। समराशि में मध्यम फलदायी होता है। मित्र राशिगत या स्वराशिगत, अथवा त्रिकोण भाव में स्थित ग्रह उच्च राशिस्थ हो या मित्र ग्रह से दृष्ट हो, तो उस भाव की वृद्धि अवश्य करता है। वर्ष कुंडली संबंधी 16 विशेष योग ताजिक ग्रंथों में वर्ष कुंडली संबंधी सोलह योगों को विशेष महत्व दिया गया है। इन योगों के आधार पर किया गया फलादेश सटीक चमत्कारिक होता है। वर्ष कुंडली के समान इन योगों का प्रयोग जन्म कुंडली तथा प्रश्न कुंडली में भी किया जा सकता है। इन योगों के नाम इस प्रकार से हैं: इक्कबाल योगइन्दुवार योगइत्थशाल योगईशराफ योगनक्त योगयमया योगमणऊ योगकम्बूल योगगैरी कम्बूल योगखल्लासर योगरद्द योगदुष्फाली योगकुत्थ योगदुत्थकुत्थीर योगताम्बीर योगकुत्थ योगदुरुफ योग

ऊपर वर्णित सभी 16 योग प्रायः फारसी भाषा से प्रभावित लगते हैं, परंतु इनका उपयोग भारतीय ज्योतिष प्रणाली में ही हुआ है। इक्कबाल योग: वर्ष कुंडली में यदि सभी ग्रह केंद्र तथा पणफर भावों में अर्थात 1, 4, 7, 10 तथा 2, 5, 8, 12वें भावों में स्थित हों, तो इक्कबाल नामक योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप वर्ष में व्यवसाय में तरक्की, सर्विस में पदोन्नति, स्त्री या संतान सुख के साथ-साथ भूमि, भवन, वाहन आदि के सुखों की प्राप्ति तथा सौभाग्य में वृद्धि होती है। इंदुवार योग: वर्ष कुंडली में यदि सभी ग्रह आपोक्लिम भाव 3, 6, 9, 12 में हों, तो इंदुवार नामक योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप वर्ष में आय कम तथा खर्च अधिक होता है। स्त्री, संतान एवं व्यवसाय संबंधी चिंता, अवांछित स्थान पर स्थानांतरण, मानसिक तनाव शारीरिक कष्ट, शत्रु भय आदि अशुभ फल घटित होते हैं। इत्थशाल योग: वर्ष कुंडली में लग्नेश और कार्येश ग्रहों का परस्पर दृष्टि संबंध दीप्तांशों के भीतर हो, तो इत्थशाल योग बनता है। फलस्वरूप वर्ष भर भाग्य में उन्नति के योग बनते हैं तथा अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है। इशराफ योग: इसे मुशरिफ योग भी कहते हैं। यह इत्थशाल योग के विपरीत है। जब शीघ्रगामी ग्रह मंदगामी ग्रह से आगे हो, तब इशराफ नामक योग बनता है। इस योग में लग्नेश और कार्येश परस्पर कभी नहीं मिल पाते हैं। फलस्वरूप वर्ष में हानि एवं कार्य निष्फल होता है तथा अनेकानेक विघ्न उत्पन्न होते हैं। परंतु यदि दोनों शुभ ग्रह हों, तो अशुभ फल नहीं होता है। नक्त योग: जब वर्ष कुंडली में लग्नेश और कार्येश की परस्पर एक दूसरे पर दृष्टि हो, परंतु दोनों ग्रहों के मध्य दीप्तांशों के अभ्यंतर तीव्र गति वाला कोई अन्य ग्रह हो, जो लग्नेश और कार्येश दोनों पर दृष्टि डालता हो अथवा अन्य प्रकार से संबंध रखता हो, तब वह ग्रह शीघ्र गति वाले ग्रह का तेज मंद गति वाले ग्रह को देता है। नक्त योग में किसी अन्य व्यक्ति की सहायता से कार्य सिद्ध होता है। यमया योग: जब लग्नेश और कार्येश (जिस भाव के फल का ज्ञात करना हो, उसके स्वामी को कार्येश कहते हैं।) ग्रहों के परस्पर दृष्टि हो और अन्य कोई मंद गति का ग्रह दीप्तांशों के भीतर ही दोनों ग्रहों को देखता हो, तब वह शीघ्रगामी ग्रह की शक्ति (तेज) मंद ग्रह को देता है। इसी का नाम यमया योग है। इस योग के कारण उस वर्ष जातक के कार्य की सिद्धि तो होती है, किंतु उसे विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। मणऊ योग: यदि लग्नेश कार्येश ग्रहों में इत्थशाल हो रहा हो, परंतु कोई पाप ग्रह मंगल और शनि दोनों को अथवा किसी एक को भी शत्रु दृष्टि 1, 4, 7 या 10 से देखता हो और यह दृष्टि संबंध दीप्तांशों के भीतर हो, तो मणऊ योग बनता है। यह योग कार्य का नाश करने वाला एक अशुभ योग है। कंबूल योग: लग्नेश और कार्येश ग्रहों में परस्पर इत्थशाल हो और चंद्र इन दोनों में से किसी एक से भी इत्थशाल करता हो, तो कंबूल नामक योग बनता है। यदि लग्नेश, कार्येश और चंद्र तीनों उच्च राशिस्थ या स्वराशिगत हों, तो अति उत्तम कंबूल योग बनता है। यह अत्यंत शुभ फलदायक एवं कार्य सिद्धि कारक योग है। यदि लग्नेश, कार्येश तथा चंद्र नीचस्थ, शत्रु राशिस्थ या अस्त हों, तो निर्बल कंबूल योग बनता है। उत्तम कंबूल योग से वर्ष में संतान सुख की प्राप्ति होती है। गैरी कंबूल योग: यदि लग्नेश और कार्येश दोनों ग्रहों का परस्पर इत्थशाल हो और चंद्र की इन पर दृष्टि हो, परंतु चंद्र अग्रिम राशि में जाकर किसी अन्य बलवान या शुभ ग्रह के साथ परिवर्तन करे, तो गैरी कंबूल योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप वर्ष में जातक किसी गैर व्यक्ति की सहायता से काम करता है। खल्लासर योग: जब लग्नेश और कार्येश ग्रहों का परस्पर इत्थशाल हो, परंतु शून्य मार्गी चंद्र स्वराशि, उच्च अथवा किसी ग्रह द्वारा दृष्ट हो और दोनों में से किसी से भी इत्थशाल करता हो, तो खल्लासर नाम का अशुभ योग बनता है। यह कार्य में बाधा उत्पन्न करने वाला एक विनाशक योग है। इस योग के कारण कंबूल योग नष्ट हो जाता है। यह पुत्र संतान की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करता है। रद्द योग: यदि लग्नेश या कार्येश नीच, अस्त, शत्रु क्षेत्री अथवा भाव 6, 8 या 12 में हो और वह परस्पर इत्थशाल करते हुए किसी क्रूर ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, तब रद्द नामक योग होता है। यह योग कार्यों में बाधक तथा हानिकारक होता है। कई बार कार्य सिद्ध होकर भी निष्फल हो जाता है। दुफालि कुत्थयोग: यदि लग्नेश और कार्येश ग्रहों में इत्थशाल हो तथा इनमें से मंद गति वाला ग्रह स्वराशि, स्वोच्च या स्वद्रेष्काण में बली हो तथा शीघ्रगामी ग्रह स्वराशि या उच्च राशि में स्थित हो, तो दुफालि कुत्थ नामक योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप कठिनाई एवं अड़चनों के साथ कार्य की सिद्धि होती है। दुत्थकुत्थीर योग: यदि लग्नेश और कार्येश ग्रह निर्बल (शत्रु क्षेत्री) पाप ग्रहों से युक्त होकर इत्थशाल करें और उनमें से एक ग्रह किसी अन्य उच्चस्थ, स्वक्षेत्री या बली ग्रह के साथ इत्थशाल करे, तो दुत्थकुत्थीर नामक योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप कार्य का सिद्ध होना किसी दूसरे व्यक्ति की सहायता से मुमकिन होता है। तंबीर योग: जब लग्नेश और कार्येश ग्रहों में परस्पर दृष्टि हो, परंतु दोनों में से एक ग्रह राशि के अंत में स्थित हो और आगामी राशि में स्थित ग्रह स्वगृही और उच्चादि बल से युक्त हो तथा राश्यंत वाला ग्रह निकट भविष्य में बली ग्रह से मिलकर कार्येश और लग्नेश के साथ इत्थशाल करे, तो तंबीर नामक योग बनता है। इस योग के फलस्वरूप पूर्व निर्धारित कार्य की सिद्धि होती है। कुत्थ योग: जब वर्ष कुंडली में लग्नेश और कार्येश ग्रह बली (सर्वोच्च, स्वगृही, स्वनवांश, शत्रु-युत, उदयी) हों, तो कुत्थ नामक योग बनता है। कुत्थ योग होने से कार्य-व्यवसाय में विशेष सफलता तथा उन्नति सुख साधनों में वृद्धि होती है। दुरुफ (निर्बली) योग: यह कुत्थ योग का विपरीत है। इसके फलस्वरूप शारीरिक कष्ट, विपरीत मानसिक तनाव, धन-हानि, कलह-क्लेश आदि होते हैं। यदि वर्ष कुंडली में लग्नेश एवं अन्य ग्रह निर्बल हों, तब यह योग होता है। जातक के लिए आने वाले वर्ष के फलोदश के लिए गोचरीय ग्रहों का फल जन्मकालिक नक्षत्र, राशि एवं लग्न कुंडली को आधार मानकर वर्तमान कालिक नव ग्रहों के उस वर्ष में विभिन्न राशियों के भ्रमण के अनुसार गोचर फल का विचार किया जाता है। जातक पर चल रहे वर्तमान समय की शुभाशुभ जानकारी के लिए गोचरफल का विचार अत्यंत सुगम्य एवं उपयोगी साधन है। गोचर ग्रहों के प्रभाव उनकी राशि एवं नक्षत्र परिवर्तन के साथ-साथ बदलते रहते हैं। सामान्यतः गोचर विभिन्न ग्रहों का गोचरीय फल सूर्य: जन्म राशि से सूर्य गोचरवश प्रथम भाव में हानि, द्वितीय में रोग भय, तृतीय में धन लाभ, चैथे में मान हानि, पांचवें में धन का नाश, छठे में शत्रु नाश, सातवें में धन हानि, व्यर्थ यात्रा, आठवें में रोग भय, नौवें में मान हानि, दसवें में कार्य सिद्धि, ग्यारहवें में धन लाभ एवं बारहवें में धन का नाश होता है। चंद्र: जन्म राशि से लग्न, द्वितीय, तृतीय, षष्ठ, सप्तम, दशम या एकादश भाव में स्थित चंद्र धन लाभ कराता है। मित्रों से साहचर्य और बुद्धि का विकास कराता है। जन्म राशि से चतुर्थ, पंचम, अष्टम, नवम या द्वादश में स्थित चंद्र के फलस्वरूप धन की हानि, चोरी, अग्नि आदि का भय एवं प्रिय व्यक्ति का वियोग, कष्ट आदि होते हैं। मंगल: जन्म राशि से तीसरे, छठे एवं ग्यारहवें भाव में मंगल हो, तो भूमि और धन लाभ, भ्रातृ सुख, शत्रुओं पर विजय और राज्य कृपा, आरोग्य आदि की प्राप्ति हाती है। इसके अलावा लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम, दशम या द्वादश में स्थित मंगल क्रमशः भय, कष्ट, धनहानि, नेत्र पीड़ा, कष्ट, अस्वस्थता, रोग भय, पाप-वृद्धि, कष्ट, फिजूल खर्च आदि का कारक होते है। बुध: जन्म राशि से द्वितीय, चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, दशम या एकादश में स्थित बुध लाभ, भाग्य वृद्धि, सुख, प्रसन्नता, आय एवं आकस्मिक लाभ का कारक होता है। अन्य राशियों में होने से धन-सुख का नाश, भाइयों से विरोध, शोक, शारीरिक कष्ट, शत्रु भय और चिंताएं पैदा करता है। गुरु: गुरु जन्म राशि से द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम या एकादश भाव में हो, तो मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि, धन-हानि, विवाह, संतान सुख की प्राप्ति और व्यापार में वृद्धि होती है। राशि 3, 4, 8, 10 या 12 में हो, तो व्याधि और विदेश यात्रा तथा पदोन्नति में बाधा आदि अशुभ फल होते हैं। शुक्र: शुक्र जन्म से प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ, अष्टम, नवम, एकादश या द्वादश में हो, तो जातक को धन, ऐश्वर्य, वाहन सुख, मित्रों से सहयोग आदि की प्राप्ति होती है। इसके जन्म से षष्ठ, सप्तम या दशम भाव में स्थित होने से धन, ऐश्वर्य, वाहन आदि सुखों की हानि होती है। इसके अतिरिक्त कार्यों में बाधाएं आती हैं एवं स्त्री से विरोध उत्पन्न होता है। शनि: शनि जन्म राशि से तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में हो, तो धन का लाभ और सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त अभीष्ट कार्य की सिद्धि, व्यापार में लाभ, अधिकारी वर्ग से मेल-मिलाप और शत्रुओं का नाश होता है। शनि जन्म राशि से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम, दशम या द्वादश राशि में हो, तो जातक को अपने परिवारजनों से कष्ट मिलता है, उसके धन की हानि होती है और शत्रु भय बना रहता है। जन्म से चैथी, आगामी राशि में स्थित शनि व्याधि, बंधुओं से विरोध, कष्ट, और चिंता पैदा करता है। जन्मराशि से प्रथम, द्वितीय या द्वादश में स्थित होने पर शनि मानसिक संताप, शारीरिक कष्ट, धन हानि, स्त्री, पुत्रादि के कारण कष्ट और प्रयत्नों में विफलता का कारक होता है। शनि के जन्म राशि से प्रथम, द्वितीय और बारहवें में गोचर को ही शनि की साढ़ेसाती का नाम दिया गया है। इसके प्रभावस्वरूप जातक को धन हानि, कलह-क्लेश, शत्रु रोग भय एवं शारीरिक कष्ट आदि अशुभ फल भोगने पड़ते हैं। जन्म राशि पर शनि की चतुर्थ, अष्टम संचार गति को शनि की ढैया कहा जाता है। इसके प्रभावस्वरूप जातक को लगभग ढाई वर्ष तक मानसिक संताप, वृथा खर्च, भाई-बंधुओं से वियोग, धन हानि शरीर कष्ट आदि अशुभ फल भोगने पड़ते हैं। राहु: राहु जन्म राशि से तृतीय, छठे, दसवें या ग्यारहवें जन्म राशि तथा नवम भाव में हो, तो पुत्र तथा स्त्री सुख की प्राप्ति और धन लाभ होता है। यदि जन्म राशि से भाव 2, 4, 5, 7, 8 या 12 में हो, तो धन की हानि होती है और शत्रु एवं रोग भय तथा अनेक प्रकार की विपत्तियां पैदा होते हैं। केतु: केतु जन्म राशि से तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में हो, तो धन का लाभ, सुख- संपत्ति की प्राप्ति, अभीष्ट कार्य की सिद्धि, व्यापार में उन्नति तथा शत्रुओं का नाश होता है। इसके विपरीत लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम, नवम, दशम या द्वादश भाव में होने पर कुटुंब से कष्ट मिलता है, प्रयत्नों एवं धन की हानि होती है और शत्रु भय बना रहता है। जन्म राशि से चतुर्थ या अष्टम राशि में स्थित केतु व्याधि, भाई-बंधुओं से विरोध, कष्ट और चिंता उत्पन्न करता है। जन्म राशि से भाव 1, 2 या 12 में होने पर केतु मानसिक संताप, शारीरिक कष्ट, धन हानि और स्त्री, पुत्रादि के कारण कष्ट पैदा करता है।

वर्षफल में मुंथा विचार

अक्सर जब भी नववर्ष आता है और कैलेंडर का साल बदलता है तो विभिन्न न्यूज़ चैनलों एवं पत्र-पत्रिकाओं में समस्त 12 राशियों के जातकों का वार्षिक भविष्यफल बताने की होड़ सी लग जाती है। जनमानस भी नववर्ष में अपने भाग्य के अनुसार लाभ-हानि का गणित बिठाने लग जाता है किंतु क्या आप जानते हैं कि नववर्ष के आगमन पर आपके वार्षिक भविष्यफल के बारे में कहना एक मिथ्याभाषण एवं भ्रामक बात है।

ऐसा इसलिए क्योंकि प्रत्येक जातक की वर्षकुंडली उसके स्वयं के जन्मदिवस की दिनांक से परिवर्तित होती है ना कि कैलेंडर के वर्ष बदलने से। वर्ष कुंडली का भी प्रत्येक जातक के जीवन में उतना ही महत्त्व है जितना अन्य ज्योतिषीय कारकों का।

आइए आज आपको वर्ष कुंडली के एक और महत्वपूर्ण पहलू मुंथा के बारे में जानकारी देने का प्रयास करें. मुंथा का उपयोग वर्ष कुंडली में किया जाता है. जन्म के समय मुंथा लग्न भाव में मौजूद होती है और एक वर्ष तक वही रहती है. उसके बाद एक भाव आगे बढ़ जाती है और इस प्रकार जब बच्चा बारहवें साल में प्रवेश करता है तब वह जन्म कुण्डली के बारहवें भाव में होती है. माना जन्म के समय लग्न में कन्या राशि उदय होती है तो मुंथा लग्न में कन्या राशि में होगी. अगले वर्ष की जब वर्ष कुण्डली बनाई जाएगी उसमें मुंथा एक भाव आगे अर्थात जन्म कुण्डली के दूसरे भाव तुला राशि में होगी. वर्ष कुण्डली में तुला राशि जिस भाव में पड़ेगी मुंथा उसी भाव में मानी जाएगी.

मुंथा का विचार वर्षफल में किया जाता है. वर्षफल के चतुर्थ, छठे, सप्तम, अष्टम और बारहवें भाव में मुंथा की स्थिति को अच्छा नहीं माना गया है. इन भावों में मुंथा जीवन में कुछ ना कुछ परेशानी पैदा करती है. वर्ष कुंडली में मुंथा के साथ मुंथा स्वामी का भी विचार किया जाता है कि वह कुण्डली में किस हालत में है. आइए वर्ष कुण्डली के विभिन्न भावों में मुंथा फल का विचार करें.

प्रथम भाव में मुंथा फल -

वर्ष कुंडली के यदि पहले भाव अर्थात लग्न में ही मुंथा स्थित होती है तब उसका फल ना तो बहुत अच्छा होता है और ना ही बहुत खराब होता है. वर्ष सामान्य सा ही रहता है. व्यक्ति यदि परिश्रम करता है तो कुछ लाभ उसे हो जाता है और कुछ धन लाभ मिल जाता है. लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से लग्न की मुंथा को अच्छा नही माना गया है. लग्न में होने से यह बेकार की चिन्ताएँ और क्लेश पैदा करति है.

मुंथा फल दूसरे भाव में -

यदि वर्ष कुण्डली के दूसरे भाव में मुंथा स्थित है तब व्यक्ति नए उद्योग अथवा व्यवसायों में धन का निवेश करता है. जातक पूरे वर्ष अत्यधिक परिश्रम कठोर मेहनत करता है. व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने परिश्रम से अपने अनुकूल बनाने में सफलता पाता है. धन प्राप्ति में बहुत सी बाधाओं और संकटो का सामना करना पड़ता है.

मुंथा फल तीसरे भाव में -

वर्ष कुण्डली के तीसरे भाव में अगर मुंथा स्थित है तब व्यक्ति अपनी नवीन योजनाओं से आगे बढ़ता है और सफलता पाता है. समाज में उसे मान-सम्मान मिलता है और आदर की दृष्टि से देखा जाता है. व्यक्ति ऎसा कुछ काम करता है कि उसे समाज में प्रसिद्धि मिलती है. लेकिन तीसरे भाव की मुंथा निजी जीवन के लिए शुभ नहीं मानी जाती है. पारीवारिक कलह पैदा होता है. भाई से मतभेद होता है और कलह इतना बढ़ सकता है कि भाईयों में तनाव होकर घर का बंटवारा तक हो सकता है. पारीवारिक कलह के कारण मुकदमा आदि भी हो सकता है.

मुंथा फल चतुर्थ भाव में -

चतुर्थ भाव की मुंथा को ज्यादा शुभ नही माना गया है. यह मिश्रित फल प्रदान कर सकती है. मन व्याकुल तथा बेचैन रह सकता है. घर में कलह क्लेश बने रह सकते हैं. साल भर आपको अनिष्ट फलों का सामना करना पड़ सकता है. स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ भी व्यक्ति को घेरे रह सकती है. शरीर में दर्द की शिकायत, हड्डियों में दर्द, वायु संबंधी विकार, शत्रुओं से चिन्ता आदि बातों से परेशानी होने की संभावना बनती है. इस वर्ष व्यक्ति को झूठी बदनामी का भी खतरा बना रह सकता है.

चतुर्थ भाव की मुंथा नौकरी अथवा व्यापार में भी अड़चने अटकाने का काम कर सकती है. मुंथा के इस स्थान में होने से स्थान परिवर्तन भी हो सकता है जिसे व्यक्ति नहीं चाहता है. बिना मन के स्थान परिवर्तन से दुख और अधिक बढ़ जाते हैं.

मुंथा फल पंचम भाव में -

वर्ष कुण्डली के पांचवें भाव की मुंथा को शुभ माना गया है. इस वर्ष व्यक्ति को सुख शांति मिलती है, वह उन्नति प्राप्त करता है. विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता मिलती है. संतान प्राप्ति होती है अथवा संतान की उन्नति होती है. इस भाव में मुंथा की स्थिति से व्यक्ति को आर्थिक लाभ होता है. नौकरी तथा व्यापार में उन्नति के अवसर मिलते हैं. मान प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है. पंचम भाव को धर्म त्रिकोण भी कहा गया है इसलिए जिस वर्ष पंचम भाव में मुंथा होती है उस वर्ष व्यक्ति को धर्म संबंधी कामों में रुचि रह सकती है, व्यक्ति तीर्थ यात्राएँ करता है. विवाह अथवा अन्य शुभ मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं. सुख सौभाग्य में वृद्धि भी होती है.

छठे भाव में मुंथा फल -

वर्ष कुण्डली के छठे भाव में मुंथा का स्थित होना शुभ नही माना गया है. छठे भाव की मुंथा व्यक्ति को बुरे काम की ओर प्रेरित करती है. व्यक्ति बुरे व्यसनो और दुष्कर्म में लिप्त हो सकता है. लड़ाई झगड़े कर सकता है और इस कारण मुकदमें आदि में भी फंस सकता है. मन में बुरे ख्याल पनप सकते हैं. बुरी आदतों का शिकार होने से बदनामी भी हो सकती है. व्यक्ति के स्वभाव में चिड़चिड़ापन समा सकता है. हर छोटी बात पर वह परेशान हो जाएगा. मन में हर समय उत्तेजना अशांति बनी रहेगी. शरीर में आलस्य की मात्रा बढ़ सकती है और अकसर सिरदर्द की शिकायत भी बनी रह सकती है. इस वर्ष व्यक्ति अनैतिक संबंधो में भी फंस सकता है और उनके कारण बदनामी होने की भी संभावना बनती है.

सप्तम भाव में मुंथा फल -

जिस वर्ष कुण्डली के सप्तम भाव में मुंथा होती है उस वर्ष स्त्री को रोग होने की संभावना बनती है यदि स्त्री की कुण्डली है तब उसके पति को बीमारी होने की संभावना बनती है. इस वर्ष व्यर्थ के व्यय बने रह सकते हैं. भाईयों से परेशानी अथवा हानि की संभावना बनती है. परिवार में आपस में विरोध तथा वैर की भावना बढ़ सकती है. व्यक्ति झूठे मुकदमों में फंस सकता है. मान हानि का सामना करना पड़ सकता है. मन में उद्वेग्निता बनी रह सकती है. अधर्म की ओर रुचि बढ़ सकती है. उत्साह की कमी रह सकती है. व्यक्ति जुए और सट्टे अदि जैसी बातों में भी संलग्न रह सकता है. इस वर्ष भाग्य आपसे रूष्ट रह सकता है और आपके बने हुए काम बिगड़ सकते हैं.

अष्टम भाव में मुंथा फल -

वर्ष कुण्डली के आठवें भाव में भी मुंथा की स्थिति को शुभ नहीं माना गया है. आठवें भाव की मुंथा व्यक्ति को बिना उद्देश्य भटकाने का काम करती है. सम्पत्ति का नुकसान हो सकता है या व्यापार में हानि होने की भी संभावना बनती है. बुरे कार्यों की ओर रुझान हो सकता है और इस कारण आर्थिक हानि भी होती है और बाद में आपको इस बात का पश्चाताप भी हो सकता है. व्यक्ति को शारीरिक मानसिक पीड़ा दोनो ही बनी रह सकती हैं. व्यक्ति शरीर से दुर्बल हो सकता है और रोगों की बढ़ोतरी हो सकती है. स्थान परिवर्तन हो सकता है.

नवम भाव में मुंथा फल -

नवम भाव की मुंथा को शुभ माना गया है. वर्ष कुण्डली के जिस वर्ष में मुंथा नवम भाव में होती है उस वर्ष व्यक्ति का भाग्योदय होने की संभावना बनती है. इस वर्ष इच्छाएँ पूरी होने की संभावना भी बनती है. यदि व्यक्ति अपना व्यवसाय करता है तो उस वर्ष उसका व्यवसाय फलता-फूलता है. यदि व्यक्ति नौकरी करता है तब उस वर्ष व्यक्ति को नौकरी में प्रमोशन तरक्की मिलती है. व्यक्ति शुभ तथा मांगलिक कार्यों में संलग्न रह सकता है. तीर्थ यात्राएँ भी कर सकता है. श्रेष्ठ पद की प्राप्ति भी होती है और समाज में सम्मानित भी होता है.

दशम भाव में मुंथा फल -

यदि दशम भाव में मुंथा हो तब उस वर्ष व्यक्ति को पद लाभ मिलता है, प्रमोशन मिलती है और सरकार की ओर से सम्मान भी मिलता है. व्यक्ति तरक्की पाता है. मन में जिन कार्यों को करने की ईच्छा होती है वह पूरे होते हैं. व्यवसाय उन्नति की ओर अग्रसर होता है. व्यक्ति को सुयश सम्मान मिलता है. इस भाव की मुंथा व्यक्ति को ऎश्वर्य और पूरा सुख उपभोग प्रदान करती है.

एकादश भाव में मुंथा फल -

वर्ष कुण्डली के एकादश भाव में अगर मुंथा होती है तब वह वर्ष आर्थिक दृष्टि से श्रेष्ठ रहता है. इस वर्ष व्यक्ति को आकस्मिक धन लाभ होने की संभावना बनती है. साथ ही विभिन्न अन्य स्त्रोतो से भी आय के साधन बनने की संभावना बनती है. सरकार से लाभ मिल सकता है. रुका हुआ पैसा वापिस मिलने की संभावना बनती है. व्यक्ति के आमोद-प्रमोद में वृद्धि होती है. व्यक्ति सभी प्रकार के मनोरथ सिद्ध होने की संभावना बनती है.

द्वादश भाव में मुंथा फल -

बारहवें भाव की मुंथा को शुभफलदायी नही माना गया है. इस वर्ष यह व्यक्ति को अनिष्टकारी फल प्रदान करने वाली हो सकती है. इस वर्ष आपके व्यय अधिक हो सकते हैं और आपका संचित धन भी खर्च हो सकता है. कार्य बनने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इस भाव की मुंथा दुष्ट लोगो का संग करा सकती है. चित्त में चंचलता बनी रह सकती है. व्यक्ति धर्म विरुद्ध काम कर सकता है और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ भी परेशानी उत्पन्न करती है.

आइए जानते हैं कि वर्ष कुंडली के महत्वपूर्ण कारक कौन से हैं जो आपके जीवन पर अपना प्रभाव डालते हैं।

1. मुंथा राशि- वर्ष कुंडली में मुंथा राशि का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। लग्न संख्या में जातक की वर्तमान आयु के वर्ष जोड़कर 12 से भाग देने पर जो शेष बचे वही मुंथा राशि होती है।

2. मुंथा की अशुभ स्थिति- वर्ष लग्न कुंडली में यदि मुंथा वर्षलग्न से 4,6,7,8,12 वें स्थित हो तो यह अशुभ होती है। यदि मुंथा राशि पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो यह विशेष अशुभ हानिकारक होती है।

3. राहु-केतु युक्त मुंथा- यदि मुंथा राहु-केतु से युक्त तो अशुभ फ़लदायक होती है।

4. मुंथेश- वर्ष कुंडली में मुंथा राशि का स्वामी ग्रह मुंथेश कहलाता है। मुंथेश यदि 4,6,8,12 भाव में अस्त, वक्री या पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो यह अशुभ होता है। मुंथेश यदि वर्षलग्न से अष्टमेश से युत दृष्ट हो तो यह विशेष हानिकारक होता है।

5. वर्षकुंडली में जन्म लग्नेश की स्थिति- वर्षकुंडली में यदि जन्मकुंडली का लग्नेश निर्बल, अष्टम या सूर्य आदि क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो तो उस वर्ष जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।

-मुंथेश यदि वर्ष कुंडली में अस्त होकर शनि द्वारा दृष्ट हो तो उस वर्ष जातक का सर्वनाश, मानसिक कष्ट भयंकर रोग से ग्रस्त होने की संभावना होती है।

6. वर्षलग्न- वर्षलग्न यदि जन्मलग्न या जन्मराशि से अष्टम राशि का हो तो उस वर्ष जातक को भीषण कष्ट रोग होने की संभावना होती है।

7. वर्षकुंडली में चन्द्र की स्थिति- वर्षकुंडली में यदि चन्द्र 1,6,7,8,12 भाव में पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो उस वर्ष जातक का प्रबल अरिष्ट होता है। जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट या मृत्यु होने की संभावना होती है।

-यदि वर्षकुंडली में चन्द्र मंगल से दृष्ट हो अग्नि के द्वारा, यदि राहु-केतु से दृष्ट हो तो शत्रुओं के द्वारा, सूर्य से दृष्ट हो तो आर्थिक हानि के कारण जातक को कष्ट होता है।

-यदि वर्षकुंडली में चन्द्र गुरु से दृष्ट हो तो शुभफलदायक होकर अशुभता में कमी करता है।

मुंथा कैसे वर्ष कुण्डली में प्रवेश करती है जन्म कुण्डली में कहाँ रहती कब आती है।

वर्ष कुण्डली में गणना के संदर्भ में मुंथा का अत्यधिक उपयोग किया जाता है. जन्म कुण्डली में मुन्था सदैव लग्न में स्थित रहती है और हर वर्ष यह एक राशि आगे बढ़ जाती है. उदाहरण के लिए यदि किसी का जन्म मेष लग्न में हो तो जातक के जन्म समय मुन्था मेष राशि में होगी तथा आने वाले वर्ष में यह मुंथा वृष राशि में और इससे आगे आने वाले वर्ष में यह मिथुन में स्थित होगी इस तरह से प्रत्येक वर्ष मुंथा एक राशि आगे बढ़ जाती है।

मुंथा कोई ग्रह नहीं है लेकिन यह नवग्रहों के समान ही महत्व रखती है और इसके विचार द्वारा कुण्डली के अनेक प्रभावों का वर्णन किया जा सकता है. मुन्था के शुभ और अशुभ प्रभाव जातक के जीवन को पूर्ण रुप से प्रभावित करते हैं। ज्योतिष के अनेक शास्त्रों में हमें मुन्था के विषय में बहुत कुछ जानने को मिलता है जिसके द्वारा मुंथा का महत्व परिलक्षित होता है और मुथा की गणना को वर्ष कुण्डली में करके जातक के जीवन में घटने वाली घटनाओं को बताया जा सकता है।

मुंथा की गणना

मुंथा की गणना के लिए चाहिए की जन्म कुण्डली में लग्न की राशि संख्या ज्ञात करनी चाहिए जैसे यदि वह संख्या पांच है तो लग्न की राशि सिंह होगी.

जिन वर्षों के लिए मुंथा की गणना करनी होती है जन्म से उन पूरे वर्षों की संख्या को लग्न की संख्या से जोड़ देना होता है. यदि यह जोड़ 12 वर्ष से अधिक आता है तो इसे 12 से भाग दिजिए और जो शेष संख्या आए उसी में मुंथा स्थित होगी. यदि शेष संख्या शून्य आती है तो इसे बारहवीं राशि कहेंगे.

मुंथा का प्रभाव

वर्ष कुण्डली में जन्म कुण्डली के लग्न की भांति मुंथा अत्याधिक महत्वपूर्ण होती है. वर्ष के फल तभी शुभ होंगे जब मुंथेश उच्च युक्त या स्वराशि से युक्त हो.

मुन्थेश शुभ ग्रहों से युक्त या उनसे प्रभावित है तो परिणाम अच्छे प्राप्त हो सकते हैं.

मुन्था 2, 9 10, 11 भाव में स्थित होने पर आर्थिक पक्ष की मजबूती को दर्शाती है. यह अच्छी व्यवसायिक स्थिति को दर्शाता है.

मुन्था की विपरित स्थिति

भाव 4, 6, 8, 12 और सप्तम भाव में मुन्था अच्छी नहीं मानी जाती यह अशुभ परिणामदायक हो सकती है. इस प्रकार यदि मुन्था षष्ठेश, अष्टमेश अथवा द्वादशेश युक्त हो तो शुभ परिणाम प्रदान करने वाली होती है.

मुन्थेश यदि नीच का हो या नीचता से युक्त हो अथवा पिड़ित, निर्बल या शत्रु भाव में स्थित हो तो यह शुभ परिणाम प्रदान नहीं करता है.

मुन्था यदि क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो तो विपरित फल प्रदान करती है.

वर्ष कुण्डली में मुन्था महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. मुन्था को ग्रह के जैसा ही महत्वपूर्ण माना जाता है. वर्ष कुण्डली में जिस भाव में मुन्था स्थित होती है उस भाव तथा भाव के स्वामी कि स्थिति को देखा जाता है. बली हैं या निर्बल है. 4,6,7,8,12 भाव में मुन्था का स्थित होना शुभ नहीं माना जाता है. इसी प्रकार हम वर्ष कुण्डली में वर्षेश तथा पंचाधिकारियों की स्थिति को भी देखा जाता है. वर्षेश की स्थिति कुण्डली में यदि कमजोर है तो शुभ नहीं है.इसके आधार पर वर्ष कुण्डली का फलित काफी हद तक निर्भर

वर्ष फल पद्धति अपने आप में एक महत्वपूर्ण पद्धति है। वर्ष फल के द्वारा हम एक वर्ष में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगा सकते हैं।

वर्ष फल कुण्डली में ग्रहों की आपसी दृष्टियाँ पराशरी दृष्टि से भिन्न होती हैं। यहाँ हम ताजिक दृष्टियों का प्रयोग करते हैं। वर्ष कुण्डली में 3,5,9,11 भावों में स्थित ग्रहों की आपसी दृष्टि मित्र दृष्टि कहलाती है। 2,6,8,12 भावों में स्थित ग्रहों की आपसी दृष्टि सम दृष्टि कहलाती है। 1,4,7,10 भावों में स्थित ग्रहों की आपसी दृष्टि शत्रु दृष्टि कहलाती है।

वर्ष फल में ताजिक योगों का बहुत ज्यादा महत्व है। यह ताजिक योग शुभ और अशुभ दोनों प्रकार से बनते हैं। योग तो बहुत से हैं लेकिन सोलह योगों का महत्व अधिक है। जो निम्न लिखित हैं -

इक्कबाल योग

इन्दुवार योग

इत्थशाल योग

ईशराफ योग

नक्त योग

यमया योग

मणऊ योग

कम्बूल योग

गैरी कम्बूल योग

खल्लासर योग

रद्द योग

दुष्फाली कुत्थ योग

दुत्थकुत्थीर योग

ताम्बीर योग

कुत्थ योग

दुरुफ योग

वर्ष कुण्डली में मुन्था का भी महत्व काफी है। मुन्था को हम ग्रह के जैसे मानते हैं। वर्ष कुण्डली में जिस भाव में मुन्था स्थित होती है उस भाव तथा भाव के स्वामी कि स्थिति को देखा जाता है। बली हैं या निर्बल है। 4,6,7,8,12 भाव में मुन्था का स्थित होना शुभ नहीं माना जाता है। इसी प्रकार हम वर्ष कुण्डली में वर्षेश तथा पंचाधिकारियों की स्थिति को भी देकहते हैं। वर्षेश की स्थिति कुण्डली में यदि कमजोर है तो शुभ नहीं है। इनके अलावा त्रिपताकी चक्र का निर्माण भी किया जाता है। इसके आधार पर भी वर्ष कुण्डली का फलित किया जाता है। वर्ष कुण्डली में सहम का भी महत्व है। यदि अच्छे सहम बन रहें हैं तो फल अच्छे मिल सकते हैं।

वर्ष कुण्डली में तीन प्रकार की दशाओं का प्रयोग किया जाता है। प्रथम दशा विंशोत्तरी मुद्दा दशा है। द्वितीय दशा विंशोत्तरी योगिनी दशा है। तृ्तीय दशा सबसे महत्वपूर्ण दशा है जो पात्यायनी दशा कहलाती है। मुद्दा दशा और योगिनी दशा की गणना पराशरी गणना के जैसी है लेकिन पात्यायनी दशा की गणना इनसे भिन्न है, इस दशा में वर्ष कुण्डली में ग्रहों के भोगांश के आधार पर दशा क्रम निश्चित किया जाता है।

वर्ष कुण्डली में विंशोपक बल या विश्व बल की गणना का भी महत्व होता है। यह बल राहु/केतु को छोड़कर सात ग्रहों पर आधारित होता है। इस बल को हम गणितीय विधि से निकालते हैं। इस बल के अधिकतम अंक 20 होते हैं। जिस ग्रह के 15 से 20 के मध्य बल है वह बहुत बली हो जाता है। जो ग्रह 10 से 15 के मध्य बल पाता है वह बली होता है। जो 5 से 10 के मध्य बल पाता है वह ग्रह निर्बल होता है। 5 से नीचे बल प्राप्त करने वाला बहुत अधिक कमजोर होता है।

उपरोक्त नियमों के आधार पर वर्ष वर्ष कुण्डली का निर्माण होता है। वर्ष फल कुण्डली का अपना स्वतंत्र रूप से कोई महत्व नहीं है। यदि व्यक्ति की जन्म कुण्डली में कोई अच्छा योग नहीं है और वर्ष कुण्डली उस वर्ष में अच्छे योग दिखा रही है तो वर्ष कुण्डली के अच्छे फलों का कोई महत्व नहीं होगा।

 

किसी भी भाव के वर्षफल कुंडली में लग्न बनए का फल

वर्ष कुंडली को हर वर्ष के लिए देखा जाता है. वर्षफल कुंडली में प्रत्येक वर्ष का भविष्यफल देखा जाता है. वर्ष फल कुंडली को ताजिक शास्त्र में उपयोग किया जाता है. वर्ष कुंडली अनुसार इस समय पर भविष्यफल कथन करने से काफी सटीक भविष्यवाणी करता है. किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को निर्धारित करने के लिए वर्षा कुंडली या वार्षिक राशिफल को देख कर स्थिति का विश्लेषण किया जाता है. इस प्रकार की कुंडली का ज्योतिष के क्षेत्र में काफी महत्व रहा है. वर्ष कुंडली को देखने ओर उसके अध्ययन के दौरान जन्म कुंडली की दशा और योगों के निर्माण को ध्यान में रखा जाता है.

वर्ष कुंडली के द्वारा सूक्षम विचार से फलकथन करना काफी अच्छे परिणाम दिखाता है. वर्ष की कुंडली में जिस लग्न का निर्माण होता है उसी के द्वारा आगे की बातों को देखा जाता है. भाव का विश्लेषण करके हम उस साल मिलने वाले फलों को देख पाते हैं. इन भविष्यवाणियों में कार्यक्षेत्र, संबंध, रोग, धन लाभ एवं जीवन में होने वाले बदलावों को समझ पाना आसान होता है. वर्ष की शुरुआत में लग्न बनने वाला भाव उस विशिष्ट अवधि के दौरान व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाने के लिए विशेष रुप से जिम्मेदार होता है.

पहला भाव

यदि किसी व्यक्ति का लग्न किसी विशेष वर्ष में वर्ष कुंडली का लग्न हो जाता है तो उसे "द्विवर्ष लग्न" कहा जाता है, कुछ लोग इसे "पुनर्जन्म वर्ष कुंडली" के रूप में भी परिभाषित किया जाता है.  इस लग्न को व्यक्ति के लिए ज्यादा शुभ नहीं माना जाता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से यह वर्ष कुछ कमजोर स्थिति को दिखा सकता है. व्यक्ति को अपने जीवन के कई पहलूओं में बहुत उतार-चढ़ाव से गुजर सकता है. करियर और व्यवसाय क्षेत्र में बाधाओं और अटकाव की स्थिति परेशान कर सकती है.

इस समय पर व्यक्ति अधिक परेशानी का अनुभव कर सकता है. इस समय पर व्यक्ति को कुछ चीजौं पर ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना आवश्यक होता है. इस वर्ष कोई नया कार्य प्रारंभ नहीं करना चाहिए. जो लोग सेवा काम में लगे होते हैं उन्हें नौकरी बदलने के बारे में सोचने से बचना चाहिए. व्यवसाय में कई बदलाव आप कर सकते हैं. व्यक्ति लगातार बाधाओं के कारण काफी मानसिक तनाव से गुजर सकता है. इस समय के दौरान धैर्य एवं शांति के साथ आगे बढ़ना ही उपयुक्त होता है.

दूसरा भाव

वर्ष कुंडली में लग्न के रूप में अगर जन्म कुंडली का दूसर अभाव उदय होता है तो यह मिलेजुले फलों को दर्शाता है. द्वितीय भाव में अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के असर देखने पड़ते हैं.  व्यक्ति संपत्ति से कुछ लाभ प्राप्त कर सकता है या आय के नए स्रोत से वित्तीय लाभ प्राप्त कर सकते हैं. धन और वित्त के मामले में यह एक अनुकूल वर्ष बना हुआ है. दुर्घटनाओं और अप्रत्याशित घटनाओं की बड़ी संभावनाओं का समय होता है. इस समय के दौरान परिवार और धन को लेकर अधिक परिणाम प्रभावित करते हैं. नए सदस्यों का आगमन हो सकता है. कुछ सामान्य स्वास्थ्य बीमारियों और कुछ मानसिक चिंताओं से भी प्रभावित होना पड़ सकता है.

तीसरा भाव

जिस वर्ष तृतीय भाव वर्ष कुंडली का लग्न होता है. इस समय के दौरान व्यक्ति का परिश्रम अधिक रहता है. परिश्रम के द्वारा ही काम की प्राप्ति होती है. इस वर्ष कुंडली के दौरान व्यक्ति को चीजों के लिए अधिक भागदौड़ करनी पड़ सकती है. काम में व्यक्ति को शक्ति का अनुभव होता है वृद्धि का अनुभव मिलता है. भाई बंधुओं के साथ रिश्ते प्रभावित होंगे. अपनों को प्रसिद्धि और धन की प्राप्ति होती है. व्यक्ति स्वयं भी ऐसे कार्य करता है जिससे समाज में उसकी स्थिति मजबूती को पाती है. इस समय पर जन संपर्क भी बढ़ता है. मान सम्मान प्राप्ति भी इस समय पर होती है.

चौथा भाव

जन्म कुण्डली के चतुर्थ भाव का वर्ष कुण्डली में लग्न रुप से उदित होना अनुकूल माना गया है. इस समय पर व्यक्ति को जीवन में सुख की प्राप्ति होती है. इस समय पर कुछ नया वाहन या अन्य प्रकार के सामान खरीद सकते हैं. भौतिक सुविधाओं की खरीदारी अधिक कर सकते हैं. इस समय धन खर्च भी बना रह सकता है. आराम और खुशी बनी रह सकती है. इस समय के दौन आमदनी का ज्यादातर हिस्सा घर की साज-सज्जा पर खर्च हो जाता है. धन प्रसिद्धि, मान्यता और सम्मान के मामले में यह समय अनुकूल रहता है.

पंचम भाव

कुंडली का पंचम भाव वर्ष फल कुंडली के लिए अनुकूल कहा जाता है. जन्म कुंडली का पंचम भाव जब वर्ष कुंडली का लग्न बनता है उस वर्ष व्यक्ति को काफी  बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. व्यक्ति जीवन के हर पहलू में सुखद परिणाम प्राप्त कर सकता है. इस समय पर प्रेम संबंधों, शिक्षा एवं संतान से जुड़े मसले मुख्य होते हैं. अपने जीवन में शिक्षा एवं संबंधों के मामले में बेहतर लाभ प्राप्त कर सकते हैं. कार्य अच्छे स्तर की सफलता के साथ पूरे होते हैं. परीक्षा में सफलता मिलती है. इस समय के दौरान काम में किए गए प्रयासों के अनुसार ही सफलता भी मिलती है.

छठा भाव

जन्म कुंडली का छठा भाव अगर वर्षफल कुंडली के लग्न के रूप में आता है तो समय मिश्रित रहता है. इस समय के दौरान चिंताएं अधिक बनी रह सकती हैं. कानूनी मामलों में ये समय तनाव दे सकता है. इस अवधि में व्यक्ति को काफी शत्रुता का सामना करना पड़ सकता है. काम पर बहुत प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है. व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और काम में बाधाओं का भी सामना करना पड़ सकता है. धन की हानि, शत्रुओं से परेशानी, घर में विवाद जैसी दिक्कतें अधिक बनी रह सकती हैं.

सातवां भाव

जन्म कुण्डली का सप्तम भाव जब वर्ष कुण्डली का लग्न बनता है तब यह स्थिति जीवन के संबंधों को अधिक प्रभावित करने वाली होती है. इस समय पर विवाह, संतान, साझेदारी के काम आदि मसलों पर शुभ कार्य सिद्ध होते हैं. जो लोग अविवाहित हैं उनके इस साल विवाह बंधन में बंधने की प्रबल संभावना भी दिखाई दे सकती है. व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है और वह अपने काम के लिए सम्मान  प्राप्त करता है.

आठवां भाव

जन्म कुंडली का अष्टम भाव वर्ष कुण्डली में लग्न होने पर व्यक्ति को एक वर्ष में बहुत सारी समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है. उसके जीवन में कई अप्रत्याशित घटनाएं घट सकती हैं. स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ सकती हैं. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में काफी असफलताओं का सामना करना पड़ता है. इस वर्ष मान-सम्मान में कमी के भी संकेत मिल सकते हैं.

नौवां भाव

जिस वर्ष जन्म कुंडली का नवम भाव वर्ष कुंडली का लग्न बनता है, तो इसे "भाग्योदय वर्ष" यानि भाग्य का वर्ष भी कहा जाता है. व्यक्ति को व्यापार और कार्यक्षेत्र में अपार सफलता मिलती है. वह विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करता है. उसके द्वारा किए गए सभी कार्य सफलतापूर्वक पूरे होते हैं. व्यक्ति विभिन्न आध्यात्मिक और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेता है.

दसवां भाव

जब जन्म कुंडली का दशम भाव वर्ष कुंडली का लग्न हो जाता है, तो वर्ष को सफलता का वर्ष कहा जाता है. इस वर्ष के दौरान व्यक्ति को सरकारी सेवाओं में भाग लेने का अवसर मिलता है. यदि व्यक्ति सरकारी सेवाओं के लिए कार्य करने में सक्षम नहीं है तो उसे अपने वर्तमान कार्यस्थल पर ही सफलता, प्रसिद्धि और मान्यता प्राप्त होती है.

ग्यारहवां भाव

जन्म कुण्डली का एकादश भाव जब वर्ष कुण्डली का लग्न हो जाता है तो इस वर्ष व्यवसायी व्यक्तिों को अपने कार्यक्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त होती है. नौकरी के अवसर मिलते हैं. इस साल की शुरुआत के साथ व्यक्ति की ज्यादातर चिंताएं दूर हो जाती हैं. सभी प्रकार के ऋण समाप्त होने के अच्छे मौके बनते हैं.

बारहवां भाव

जन्म कुण्डली का बारहवाँ भाव जब वर्ष कुण्डली का लग्न हो जाता है तो व्यक्ति को बहुत अधिक खर्चों का सामना करना पड़ता है. उसकी इच्छाएं बढ़ जाती हैं, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स भी उत्पन्न हो सकते हैं.  कर्ज लेने या दूसरे से पैसे उधार लेने की जरूरत महसूस होती है. मानसिक और आर्थिक तनाव का सामना करना पड़ता है।

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
https://shriramjyotishsadan.in/Default.aspx https://youtube.com/@AstroAshuPandit?si=BA4arcEU5om86yvR

 

शकुन शास्त्र

शकुन हमारे भविष्य में होने वाली घटना का संकेत देते हैं। प्राचीन काल में ये शकुन लोकवार्ता के द्वारा ही पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचते रहे हैं। कुछ लोग इन शकुनों को अंधविश्वास मानते हैं। फिर भी ज्यादातर लोग इन शकुनों की उपेक्षा नहीं करते। हर मनुष्य कभी-कभी किसी ना किसी रूप में शकुनों को मानता है। शकुनों के परिणाम उतने ही प्राचीन हैं जितनी मनुष्य जाति। न केवल भारत में अपितु विश्व भर में ये शकुन प्रचलित हैं। शकुन का संकेत हमारे वेदों, पुराणों व धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। महाभारत व रामायण जैसे महाकाव्यों में भी कई जगह शकुनों की बात कही गई है। ज्योतिष में भी शकुनों पर विशेष विचार किया जाता है। प्रश्न कुंडली की विवेचना में शकुनों का महत्व विशेष है। शुभ शकुनों में पूछे गये प्रश्न सफल व अपशकुनों में पूछे गये प्रश्न असफल होते देखे गये हैं। शकुन पृथ्वी से, आकाश से, स्वप्नों से व शरीर के अंगों से संबंधित हो सकते हैं। किसी भी कार्य के वक्त घटित होने वाले प्राकृतिक व अप्राकृतिक तथ्य अच्छे व बुरे फल की भविष्यवाणी करने में सक्षम होते है॥ ''शुुभ शकुुन'' ''ब्राह्मण, घोड़ा, हाथी, न्योला, बाज, मोर। दूध, फल, फूल व वेद ध्वनि का सोर॥ अन्न, सिंहासन, जल, कलश, पशु एक बधन्त। न्योला चापा, मछली और अग्नि प्रज्वलंत॥ छाता, वैश्या, पगड़ी, अंजन, ऐना, शस्त्र। कन्या, रत्न, स्त्री, धोबी धोया वस्त्र॥ घृत मिट्टी अस्त्र शहद, मदिरा वस्त्र श्वेत। गोरोचन सरसों अमिष, गन्ना खज्जन भेद॥ बिन रोदन मुर्दा मिले, पालकी भरदुल गीत। ध्वज अकुंश बकरा पडे़, सम्मुख अपना गीत॥ बालक संग स्त्री मिले, नौ बेटा बैल सफेद। साधु सुधा सुरतर-पड़े, सम्मुख चारों वेद ॥ कूड़ा से भरी टोकरी जो सम्मुख पडंत। पाछे घट खाली पड़े, निश्चय काज बनंत। । प्रिय वाणी कानों पड़े, सम्मुख वाहन भार। कह कवि ये शुभ शकुन यात्रा चलती बार॥ अर्थात् ब्राह्मण, घोड़ा, हाथी, न्योला, बाज, मोर, दूध, दही, फल, फूल, कमल, वेदध्वनि, अन्न, सिंहासन, जल से भरा कलश, बंधा हुआ एक पशु, न्योला, चापा (चाहा पक्ष) मछली, प्रज्वलित अग्नि, छाता, वैश्या, पनाली, अंजन, ऐना, शस्त्र, रत्न, स्त्री, कन्या, धुले हुए वस्त्र सहित धोबी, घी, मिट्टी, सरसों, मांस, गन्ना, खज्जन पक्ष, रोदन रहित मुर्दा, पालकी, भारद्वाज पक्षी, ध्वजा, अंकुश, बकरा, अपना प्रिय मित्र, बच्चे के सहित स्त्री, गाय या गोह के सहित बछड़ा, सफेद बैल, साधु, अमृत, कल्पवृक्ष चारों वेद, शहद, शराब, गोरोचन आदि में से कुछ भी सम्मुख पड़े या कूड़े से भरी टोकरी, प्रिय वाणी या सामान से लदा वाहन यदि यात्रा के वक्त सम्मुख पड़ जाए तो निश्चय ही इच्छा पूर्ति का संकेत करते हैं। खाली घड़ा पीठ पीछे हो तो अच्छा है। ये शुभ शकुन हैं। ''नीलकण्ठ छिक्कर-पिक्कर वानर कौवी भालु। जै कुकर दाएं पड़े तो सिद्ध होय सब काजु॥ अर्थात् नीलकण्ठ छिक्कर नामक विशेष मृग, पिक्कर पक्षी, कौवी (स्त्री संज्ञक) भालू व कुत्ता यदि दाएं हाथ पर पड़े तो कार्य सिद्ध होता है। मृग बाएं ते दाहिने जो आवे तत्काल। बाएं गर्दभ रेकंजा सिद्धि होय सब काज॥ अर्थात् यदि हिरण बायीं तरफ से रास्ता काटकर दायीं तरफ आ जाए या बायीं तरफ गधा बोलना प्रारंभ कर दे तो शुभ शकुन है। खड़ा कोबरा, सूकरा, जाहक, कछुआ, गोह। ये शब्द कानों पड़े निश्चय कारज होय॥ पर दर्शन हो जाएं तो महाअशुभ होय। अतिहि कु शकुन जानिये काट सके ना कोय॥ अर्थात् यदि खरगोश, सर्प, सूअर, जाहक, पशु, कछुआ व गोह के शब्द कानों में पड़े तो अत्यंत शुभ शकुन समझें। परंतु यदि ये प्रत्यक्ष सामने पड़ जाएं तो महा अशुभ हैं। बानर, भालु दर्शन भले, नाम के सुनते हानि। कह कवि विचार के तब आगे करौ पदान॥ अर्थात् यदि वानर भालू यात्रा आरंभ वक्त आगे जाए तो उत्तम शकुन है परंतु यदि इनका नाम कानों में पड़े तो अपशकुन का द्योतक है। ''अपशकुनुन विचार'' दांए गर्दभ शब्द हो, सम्मुख काला धान्य। टूटी खाट आगे मिले तो बहुत हानि॥ कूकूर लोटे भुम्म पर, अथवा मारे कान। पांच भैंस सम्मुख पड़ें, निश्चय होवे धन॥ एक अजाः नौ स्त्री, बिल्ली दो लड़न्त। छह कुत्ता आगे पड़ें, नहीं बात में तंत॥ तीन गाय दो बानिया, एक बछड़ा एक शूद्र। हाथी सात सम्मुख पडं़े, निश्चय बिगड़े बुद्धि॥ भैंसा पर बैठा हुआ, मनुष्य सम्मुख होय। निश्चय हानि होयेगी, बचा सके ना कोय ॥ जननी का तिरस्कार होय या हो अकाल वृष्टि। क्षत्री चार सम्मुख पडं़े, निश्चय महाअनिष्ट ॥ तीन विप्र बैरागिया, सन्यासी केश खुलंत। भगवा व स्त्री सम्मुख पड़े, निश्चय कारण अंत॥ बंध्या, रजः, रजस्वला, भूसा हड्डी चामं। अंधा, बहरा, कूबड़ा विधवा लगड़ा पांव ॥ ईंधन लक्कड़ उन्मादिया, भैंसा दो लड़ंत। गुंड, मट्ठा, कीचड़ पड़े सम्मुख छींक हुवंत ॥ हिजड़ा विष्ठा तेल जो, मालिश तेल मनुष्य। अंग भंग नंगा पतित रोगी पूरा सुस्त॥ गंजा भिजे वस्त्र सों, चर्बी शत्रु सांप। नमक औषधि गिरगिरा कुटंबी झगड़े आप ॥ कटु बचन सम्मुख पड़े, जौ यात्रा चलती बार। कह कवि हानि महा बिगड़े सारे काज॥ अर्थात् यदि यात्रा के समय गधा दायीं तरफ बोले या कोई सामने से टूटी खाट लाता हुआ मिले कारज भंग होता है। यदि कुत्ता भूमि पर लेटे या कान फड़फड़ाये, पांच भैंस सामने आये, एक बकरी नौ स्त्री, दो बिल्ली लड़ती हुई, छः कुत्ते, तीन गाय, दो वैश्य, एक बैल एक शूद्र, सात हाथी, या भैंसे पर बैठा हुआ व्यक्ति यदि सम्मुख पड़े तो अपशकुन का सूचक है। यात्रा में चलते समय जननी का तिरस्कार करे या अकाल वर्षा हो, चार क्षत्रिय, तीन ब्राह्मण बैरागी, सन्यासी, खुले केशों वाला गेरूरा वस्त्र धारण करने वाला सम्मुख पड़ जाए तो अपशकुन है। इसी प्रकार बांझ औरत, स्त्री का रज, रजोवती स्त्री, भूसा, हड्डी, चमड़ा, अंधा, बहरा, कूबड़ा, विधवा स्त्री, जलाने वाली लकड़ी, उपला, पागल, गुड़, मट्ठा कीचड़ सामने आये, दो भैंसे लड़ते हुए, नपुसंक, विष्ठा, तेल मालिश किये आदमी, अंग भंग, नंगा नीच पुरुष, दीर्घ रोगी, गंजा भीगे वस्त्रों में, चर्बी, सर्प, शत्रु, नमक, औषधि, गिरगिट सामने आ जाए, अपने ही कुटुंबी सामने लड़ते हों, सामने कोई छींक दे या यात्रा के वक्त अप्रिय बचन सुनाई पड़ें तो अपशकुन का सूचक है। कुुछ अन्य शकुुन अपशकुुन जो पशु पक्षियों द्वारा होते हैैं शकुनों में कौवा, छिपकली व अन्य पशु पक्षियों का विचार किया जाता है। काक स्पर्श व छिपकली के गिरने को अशुभ समझा गया है। यदि कौआ अचानक शोरगुल करे या किसी के सिर पर बैठे तो आर्थिक हानि दर्शाता है। यदि स्त्री के सिर पर बैठे तो पति को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। संध्या के समय मुर्गों की ध्वनियां महामारी दर्शाती हैं। जब मछलियां जल की सतह पर छलांग मारें, मेढक टर्र-टर्र करे, बिल्ली भूमि खोदे, चीटियां अपने अंडों को स्थानांतरित करें, सांपों का जोड़ा व पशु आकाश की ओर देखे, पालतू पशु बाहर जाने से घबराएं तो तुरंत ही वर्षा होती है। ये वर्षा के लिए शुभ शकुन है। यदि रात्रि में दीपकीट दिखाई दे, कीड़े या सरीसृप घास के ऊपर बैठें तो भी तत्काल वर्षा होती है। यदि वर्षा ऋतु के दौरान सायंकाल में गीदड़ों की चिल्लाहट सुनाई दे तो बिल्कुल वर्षा नहीं होती। मांसभक्षी पशु-पक्षी, का दिखाई देना अशुभ व शाकाहारी पशु, पक्षी प्रायः शुभ शकुन का संकेत देते हैं। ज्योतिष में शकुनों अपशकुनों का विशेष विचार प्रश्न आदि में किया जाता है। साथ ही साथ मेदिनीय ज्योतिष में भी शकुन अपना विशेष महत्व रखते हैं -वर्षा होगी या नहीं होगी, कम होगी या अधिक होगी इस प्रकार की भविष्य वाणियां भी शकुनों के आधार पर की जाती हैं कुछ उदाहरण निम्न हैं- _यदि आसमान बादलों से घिरा हो व पालतू कुत्ता घर से बाहर न जाए, तो वर्षा का सूचक है। _यदि आसमान में चील 400 फुट की ऊंचाई पर उड़ रही हो, तो भी वर्षा होने वाली होती है। _यदि मकड़ी घर के बाहर जाला बनाए तो वर्षा ऋतु जाने का सूचक है। _मेढकों की टर्रराहट वर्षा का संकेत है। _मोर का नृत्य तथा शोर भी वर्षा का सूचक है।

शकुन-अपशकुन
कई प्रकार के शकुन-अपशकुन प्रचलित हैं। पशु-पक्षियों को भी शकुन-अपशकुन की मान्यताओं से जोड़ा गया है। कौए को पितरों की संज्ञा भी दी गई है। कौओं से जुड़ी शकुन-अपशकुन की कई मान्यताएं काफी प्रचलित है। इन्हीं में से कुछ मान्यताएं नीचे उल्लेखित हैं-
1- यदि किसी व्यक्ति के ऊपर कौआ आकर बैठ जाए तो उसेधन व सम्मान की हानि होती है। यदि किसी महिला के सिर पर कौआ बैठता है तो उसके पति को गंभीर संकट का सामना करना पड़ता है। 2- यदि बहुत से कौए किसी नगर या गांव में एकत्रित होकर शौर करें तो उस नगर या गांव पर भारी विपत्ति आती है। 3- किसी के भवन पर कौओं का झुण्ड आकर शौर मचाए तो भवन मालिक पर कई संकट एक साथ आ जाते हैं। 4- कौआ यदि यात्रा करने वाले व्यक्ति के सामने आकर सामान्य स्वर में कांव-कांव करें और चला जाए तो कार्य सिद्धि की सूचना देता है। 5- यदि कौआ पानी से भरे घड़े पर बैठा दिखाई दे तो धन-धान्य की वृद्धि करता है। 6- कौआ मुंह में रोटी, मांस आदि का टुकड़ा लाता दिखाई दे तो उसे अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है। 7- पेड़ पर बैठा कौआ यदि शांत स्वर में बोलता है तो स्त्री सुख मिलता है। 8- यदि उड़ता हुआ कौआ किसी के सिर पर बीट करे तो उसे रोग व संताप होता है। और यदि हड्डी का टुकड़ा गिरा दे तो उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। 9- यदि कौआ पंख फडफ़ड़ाता हुआ उग्र स्वर में बोलता है तो यह अशुभ संकेत है। 10- यदि कौआ ऊपर मुंह करके पंखों को फडफ़ड़ाता है और कर्कश स्वर में आवाज करता है तो वह मृत्यु की सूचना देता है।
घरों में आमतौर पर पाई जाने वाली छिपकली भी जीवन में होने वाली कई घटनाओं के बारे में संकेत करती है। 1- अगर छिपकली समागम करती मिले तो किसी पुराने मित्र से मिलन होता है। लड़ती दिखे तो किसी दूसरे से झगड़ा होता है और अलग होती दिखे तो किसी प्रियजन से बिछुडऩे का दु:ख होता है। 2- भोजन करते समय छिपकली का बोलना शुभ फलकारक होता है। 3- नए घर में प्रवेश करते समय गृहस्वामी को छिपकली मरी हुई व मिट्टी लगी हुई दिखाई दे तो उसमें निवास करने वाले लोग रोगी रहेंगे। 4- छिपकली किसी व्यक्ति के सिर अथवा दाहिने हाथ पर गिरे तो सम्मान तो मिलता है किंतु बाएं हाथ पर गिरती है तो धन हानि होती है। 5- यदि छिपकली किसी व्यक्ति के दाई ओर से चढ़कर बाईं ओर उतरती है तो उसे पदोन्नति और धन लाभ मिलता है। 6- यदि छिपकली पेट पर गिरती है तो अनेक प्रकार के उत्पात और छाती पर गिरती है तो सुस्वादु भोजन मिलता है। 7- घुटने पर गिरकर सुख प्राप्ति की सूचना देती है छिपकली। 8- स्त्री की बाईं बांह पर छिपकली गिरे तो सौभाग्य में वृद्धि और दाहिनी बांह पर गिरे तो सौभाग्य की हानि होती है। 9- यदि किसी के दाहिने गाल पर छिपकली गिरे तो उसे भोग-विलास की प्राप्ति होती है। बाएं गाल पर गिरे तो स्वास्थ्य में विकार उत्पन्न होते हैं। 10- यदि छिपकली नाभि पर गिरे तो पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। गुप्त अंगों पर गिरे तो रोग की संभावना व्यक्त करती है।
छींक आना एक सामान्य शारीरीक प्रक्रिया है लेकिन पुरातन समय से ही छींक को शकुन-अपशकुन से जोड़कर देखा जाता है। छींक आना कहीं शुभ माना जाता है कहीं अशुभ। छींक से जुड़ीं कुछ मान्यताएं तथा विश्वास हैं हमारे समाज में प्रचलित हैं जो प्राचीन समय से चले आ रहे हैं। अलग-अलग जाति तथा धर्म में छींक आने को लेकर कई धारणाएं मानी जाती हैं। उनमें से कुछ नीचे दी गई हैं-
1- यदि घर से निकलते समय कोई सामने से छींकता है तो कार्य में बाधा आती है। अगर एक से अधिक बार छींकता है तो कार्य सरलता से संपन्न हो जाता है। 2- किसी मेहमान के जाते समय कोई उसके बाईं ओर छींकता है तो यह अशुभ संकेत है। 3- कोई वस्तु क्रय करते समय यदि छींक आ जाए तो खरीदी गई वस्तु से लाभ होता है। 4- सोने से पूर्व और जागने के तुरंत बाद छींक की ध्वनि सुनना अशुभ माना जाता है। 5- नए मकान में प्रवेश करते समय यदि छींक सुनाई दे तो प्रवेश स्थगित कर देना ही उचित होता है। 6- व्यावसायिक कार्य आरंभ करने से पूर्व छींक आना व्यापार वृद्धि का सूचक होती है। 7- कोई मरीज यदि दवा ले रहा हो और छींक आ जाए तो वह शीघ्र ही ठीक हो जाता है। 8- भोजन से पूर्व छींक की ध्वनि सुनना अशुभ मानी जाती है। 9- यदि कोई व्यक्ति दिन के प्रथम प्रहर में पूर्व दिशा की ओर छींक की ध्वनि सुनता है तो उसे अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं। दूसरे प्रहर में सुनता है तो देह कष्ट, तीसरे प्रहर में सुनता है तो दूसरे के द्वारा स्वादिष्ट भोजन की प्राप्ति और चौथे प्रहर में सुनता है तो किसी मित्र से मिलना होता है। 10- धार्मिक अनुष्ठान या यज्ञादि प्रारंभ करते समय कोई छींकता है तो अनुष्ठान संपूर्ण नहीं होता है।

 

-----------शकुन शास्त्र---------
ज्योतिष सीखने के लिये सबसे पहले भारतीय ज्योतिष के अन्दर शकुन शास्त्र को जानना जरूरी है,क्योंकि भेद को जाने बिना भाव का अर्थ समझ में नही आता है,तरीके से सीखा गया काम हर जगह फ़लदायी होता है,अक्सर ज्योतिषी से पूंछा जाता है कि हमे यात्रा करनी है,या हमे अमुक काम करना है,मुहूर्त बतादो,अब पूरी ज्योतिष की जानकारी तो है,लेकिन शकुन शास्त्र का जरा सा भी ज्ञान नही है,तो ज्योतिष वहीं पर अपना नाम खराब करवा देती है,सबसे पहले आपको शकुन शास्त्र,दिशाओं का ज्ञान,यात्रा और कार्य को करने के मुहूर्त आदि की जानकारी जानवरों के द्वारा प्रत्यक्ष में बताये जाने वाले शकुन आदि का विवेचन करते है.
यात्रा मुहूर्त तथा शुभाशुभ शकुन विचार
अनुराधा ज्येष्ठा मूल हस्त मृगसिरा अश्विनी पुनर्वसु पुष्य और रेवती ये नक्षत्र यात्रा के लिये शुभ है,आर्द्रा भरणी कृतिका मघा उत्तरा विशाखा और आशलेषा ये नक्षत्र त्याज्य है,अलावा नक्षत्र मध्यम माने गये है,षष्ठी द्वादसी रिक्ता तथा पर्व तिथियां भी त्याज्य है,मिथुन कन्या मकर तुला ये लगन शुभ है,यात्रा में चन्द्रबल तथा शुभ शकुनो का भी विचार करना चाहिये.

रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
भारतीय वैदिक ज्योतिष और नवग्रह रत्न एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल नं- 9760924411
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